आज़म खान ने पहले जयाप्रदा की चड्ढी का खाकी रंग बताया था। चुनाव आयोग से माफ़ी मांगने और बैन भुगतने के बाद अब जयाप्रदा को आम्रपाली कह दिया है। आम्रपाली मतलब नगर वधू । नगर वधू मतलब तवायफ़। वेश्या। बाप तो बाप बेटा सुभान अल्ला। आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला ने अपनी अम्मा की उम्र की जयाप्रदा को अनारकली बता दिया है। बता दिया है भाषण में कि अली और बजरंग बली तो चाहिए। लेकिन अनारकली नहीं चाहिए।
अनारकली मतलब अकबर की रखैल। इतिहास में यही दर्ज है। लाहौर में इस अनारकली की कब्र मौजूद है। कमाल अमरोही की काल्पनिक कहानी और संवाद वाली के आसिफ़ की फिल्म मुगले आज़म फिल्म में बांदी है अनारकली। अकबर के बेटे सलीम की माशूका है। कुल जमा यह मान लीजिए कि आम्रपाली और अनारकली समानार्थी शब्द हैं। बाप-बेटे की राय यही बनी है कि जयाप्रदा तो वेश्या है। स्त्री संगठन , क्रांतिकारी स्त्रियां , बात-बेबात कैंडिल जुलूस निकालने वाली स्त्रियां , आज़म खान द्वारा , जयाप्रदा की चड्ढी का रंग बताने पर भी ख़ामोश थीं। जयाप्रदा को आज़म और अब्दुल्ला द्वारा आम्रपाली और अनारकली कहने पर भी ख़ामोश हैं। ख़ामोश ही रहेंगी। इन को इन की ख़ामोशी की बधाई दीजिए।
क्यों कि जयाप्रदा स्त्री नहीं हैं । स्त्री अस्मिता का प्रश्न नहीं हैं जयाप्रदा।
गोया फ़िल्म इंडस्ट्री की भी नहीं हैं जयाप्रदा। क्यों कि यह बात आज़म खान और अब्दुल्ला ने कही है , जो मुसलमान हैं। और तथ्य है कि मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्री दाऊद इब्राहीम के काले पैसे पर वैसे ही टिकी है जैसे शिव के त्रिशूल पर काशी। तो हिम्मत कैसे पड़े किसी की बोलने की आज़म खान और अब्दुल्ला की बात पर। बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन। फिर यही हाल अपने स्त्री सगठनों का भी है कि उन के एन जी ओ को जहां-जहां से फंडिंग मिलती है , जयाप्रदा के पक्ष में आवाज़ उठाने से उन की फंडिंग बंद हो जाने का अंदेशा है। या फिर उन के थिंक टैंक के आका लोग नाराज हो जाएंगे । एक बड़ा डर यह भी है। वैचारिक गुलामी का भी अपना आनंद है। वैचारिक बंधुआ बन कर जीने का अपना वैभव है। सो बेचारी वह लिपी-पुती क्रांतिकारी औरतें भी चुप हैं।
हां , यह बहुत संभव है कि मेरे यह लिपी-पुती औरतें कहने पर यह स्त्रियां भले नाराज हो जाएं। मेरे ख़िलाफ़ खड़ी हो जाएं। मुझे स्त्री विरोधी घोषित कर दें। लेकिन जयाप्रदा प्रसंग पर वह फिर भी चुप ही रहेंगी। जयाप्रदा अछूत हैं । आख़िर आज़म खान और अब्दुल्ला खान सीधे क्यों नहीं कह देते कि जयाप्रदा देवदासी हैं , जो कि वह हैं। देवदासी दक्षिण के मंदिरों में हुआ करती थीं कभी। अब यह परंपरा संभवतः समाप्त हैं। जयाप्रदा देवदासी परिवार से आती हैं। यह बात पब्लिक डोमेन में पहले से है। संभवतः आज़म खान और अब्दुल्ला दरअसल जयाप्रदा को प्रकारांतर से यही कहना चाह रहे हैं। जो घुमा कर कह रहे हैं । हिंदू धर्म को सांकेतिक गाली दे कर , मुस्लिम वोटरों को अपना संदेश दे रहे हैं। जयाप्रदा को गाली दे कर वह योगी को उकसा रहे हैं कि बेटा , कुछ तो बोल दो और फिर एक बैन भुगत लो।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/04/2019 की बुलेटिन, " टूथ ब्रश की रिटायरमेंट - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सही उत्तेजक आलेख . लेकिन सुविधाभोगी लोग उचित और न्याय की बात कहाँ करते हैं . और अमर्यादित और असत्य बोलने वालों , अफवाहों द्वारा जनता को गुमराह करने वालों का , जनता के विरोध से भी अधिक आवश्यक है आयोग द्वारा नामांकन रद्द करना .
ReplyDeleteये तो बदजुबान हैं ही ! उन मूर्खों को क्या कहें जो इनकी बातों पर खीसें निपोर, तालियां बजा इनकी हौसला अफजाई करते रहते हैं !
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 24अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!
ReplyDeleteमिजाज़ मस्त हो गया इस खरी खोटी पर।
एक दिन बवाल मचा था, मुलायम की परकटी पर।
बात आयी गई, लड़कों से गलती हो जाती है,
अब कुछ भी कर लो, नारियों की जमात सो जाती है।
Wah सर वाह , सटीक और आनंददायक 💐🙏
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