Monday 19 August 2024

पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की हैसियत में नहीं हैं नरेंद्र मोदी

दयानंद पांडेय 

पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन के कयास लगाने वाले लगा रहे हैं। क्यों कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल दिल्ली पहुंचे हैं। मेरा मानना है कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की हैसियत में नहीं हैं नरेंद्र मोदी। होते तो कब का लगा चुके होते। नोबिल प्राइज की लालसा अलग है। पर असल समस्या यह है कि राष्ट्रपति शासन लगने के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी लेफ्ट की मदद से जो आग लगाएंगी , उसे सेना , केंद्रीय पुलिस बल सब के सब मिल कर बुझा नहीं पाएंगे। न दंगे संभाल पाएंगे। ममता बनर्जी ने बांग्लादेशी और रोहिंगिया को दंगा प्रशिक्षित कर दिया है। भारत - पाकिस्तान विभाजन के समय में भी पश्चिम बंगाल जिस तरह जला था , लोग भूले नहीं हैं। 

डायरेक्ट एक्शन आज भी पश्चिम बंगाल के लोगों को याद है। डायरेक्ट एक्शन जिन्ना का फरमान था। डायरेक्ट एक्शन मतलब हिंदुओं को देखते ही मारो। बांग्लादेश में जिस तरह हिंदुओं पर हमले अभी भी जारी हैं , मंदिरों और स्त्रियों पर लूट - पाट , अत्याचार और बलात्कार अभी भी थमा नहीं है। सोचिए कि बांग्लादेश में आंदोलन आरक्षण को ले कर हो रहा था। पर परिणति क्या हुई ? हिंदू स्त्रियों के साथ बलात्कार , सामूहिक बलात्कार। मंदिरों की तोड़ - फोड़। हिंदुओं के घर दुकान लूटे गए। जलाए गए। 

पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बांग्लादेश से भी ज़्यादा उग्र और हिंसक हैं। जिन की लगाम ममता बनर्जी और लेफ्ट के हाथ है। समूचे देश में खड़े मिनी पाकिस्तान भी इन के समर्थन में खुल कर आ जाएंगे। नहीं पश्चिम बंगाल , पंजाब , केरल और दिल्ली चारो ही प्रदेश राष्ट्रपति शासन मांगते हैं। पश्चिम बंगाल इस में नंबर एक पर है। बीते कई सालों से पश्चिम बंगाल में क़ानून व्यवस्था ठेंगे पर है। पर डरपोक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैसियत नहीं है कि राष्ट्रपति शासन लगाने की सोच भी सकें। और कि देश हित में भी यही है। नहीं देश में दंगाइयों का क्या है , नागरिकता देने वाले क़ानून सी ए ए को ले कर भी देश में दंगे फैला देते हैं। शहर-शहर शाहीन बाग़ बसा लेते हैं। 

देखना दिलचस्प होगा कि स्वत: संज्ञान लेने वाला सुप्रीम कोर्ट पश्चिम बंगाल पर क्या रुख़ अख़्तियार करता है कल। क्यों कि पश्चिम बंगाल तो मुस्लिम सांप्रदायिकता के एटम बम पर बैठा हुआ है। 

मुस्लिम आतंक से जितना मोदी सरकार डरती है , कांग्रेस सरकारें भी इतना नहीं डरती थीं। यह तथ्य है। मुस्लिम आतंकियों को दुरुस्त करने के लिए आप को योगी के प्रधान मंत्री बनने तक प्रतीक्षा करनी ही होगी। 

कश्मीर में हिंदू अनुपस्थित थे। ज़्यादातर हिंदुओं का नरसंहार हो चुका था। शेष भाग चुके थे। मैदान ख़ाली था। पश्चिम बंगाल में मैदान ख़ाली नहीं है। बहुत से हिंदू उपस्थित हैं। नरसंहार देखने के लिए। मोदी इसी नरसंहार से बचाना चाहते हैं। इसी लिए डरपोक बने बैठे हैं। सेना या केंद्रीय पुलिस नरसंहार नहीं न कर सकती , इस लिए , इस बिंदु पर कमज़ोर है। हालां कि पश्चिम बंगाल का बंटवारा , बांग्लादेशियों और रोहिंगिया को देश से बाहर करना भी एक उपाय है। 

क्यों कि ममता बनर्जी अब भस्मासुर हैं , बस एक शिव चाहिए , नचा कर भस्म करने के लिए। इस विकट समय को वही शिव नहीं मिल रहा। ई डी , सी बी आई पर हमले हुए। संदेशखाली में स्त्रियों के साथ शाहजहां शेख़ ने क्या - क्या नहीं किया। शिव जी शांत रहे। डाक्टर बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या पर भी चुप हैं। शांत हैं। जाने कब जागेंगे शिव। और इस भस्मासुर को नचाएंगे। नचाएंगे तो ज़रूर। अब बस यही एक उम्मीद है। बाक़ी लोकतंत्र , अदालत - फदालत , संविधान वग़ैरह सब कुछ सेक्यूलरिज्म के ठेंगे पर है। क्या कहा , मां , माटी , मानुष ! तो ज़माने धत्त तेरे की !

Tuesday 6 August 2024

आने वाले दिन भारत में हिंसा , हत्या और अराजकता की चपेट में आने के दिन हैं

दयानंद पांडेय 


असल में इस्लाम और वामपंथ दोनों ही हिंसा , हत्या और अराजकता की बुनियाद पर खड़े हैं। यह दोनों दुनिया में जहां भी बहुमत में होते हैं , मनुष्यता को तार-तार करने में ज़रा भी नहीं चूकते। संकोच नहीं करते। तानाशाही और हिंसा के स्तंभ लेनिन , स्टालिन , माओ ने करोड़ों लोगों की हत्या की और करवाई। माओ तो मनुष्य का मांस तक खाता था। अपने ही साथियों का मांस खाता था। ऐसे अनेक विवरण दर्ज हैं। लेकिन ऐसे तमाम विवरण पर सायास कालीन बिछा दी गई है। 

भारत में लेकिन इन के अनुयायी आज कल सेक्यूलर चैंपियन की छवि गढ़ कर बगुला भगत बन कर उपस्थित हैं। बांग्लादेश में बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की आदमक़द मूर्तियां खंडित होते देख कर पश्चिम बंगाल में नक्सल हिंसा की याद आ गई। जब रवींद्रनाथ टैगोर की मूर्तियां जगह-जगह तोड़ी गई थीं। बेटों के रक्त में भात सान कर मां को खिलाया गया जैसी अनेक घटनाएं सामने आ गईं। अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध प्रतिमा की याद आ गई , जिसे डाइनामाइट लगा कर तालिबानियों ने उड़ा दिया। दुनिया हाथ जोड़ती रह गई पर तालिबान नहीं माने। बांग्लादेश में तमाम हिंदू मंदिर तोड़े जा रहे हैं। हिंदुओं के घर , दुकान और स्त्रियां लूटी जा रही हैं। वह ऐसा न करें , ऐसी कोई अपील भी दुनिया में कहीं से किसी ने अभी तक नहीं की है। भारत सरकार ने भी नहीं। 

भारत को भी बर्बाद करने में , निरंतर बर्बाद करने में मुख्यत: दो लोगों का ही हाथ है। इस्लाम और वामपंथ का। हिंसा , हत्या और अराजकता की आग में देश और समाज को झोकने में ही इन्हें सुख मिलता है। भारत ही क्यों ब्रिटेन , फ़्रांस , इजराइल आदि हर कहीं की यही कथा है। मुस्लिम देशों का भी बुरा हाल है। सोचिए न कि दुनिया में 57 मुस्लिम देश हैं। पर हसीना , जान बचाने के लिए किसी मुस्लिम देश नहीं , भारत आईं। सेना द्वारा दिए गए 45 मिनट में देश छोड़ने का संदेश मिलते ही उन्हें पहला नाम भारत ही सूझा। कोई मुस्लिम देश नहीं। अभी भी किसी मुस्लिम या कम्युनिस्ट देश नहीं , यूरोप में ठिकाना तलाश रही हैं। अमरीका ने उन का वीजा रद्द कर दिया है। ब्रिटेन ने भी लाल झंडी दिखा दी है। 

फिर ?

असल में इस्लाम और वामपंथ की हिंसा , हत्या और अराजकता कलंक है मनुष्यता के माथे पर। दुनिया और समाज इन से मुक्ति का तलबगार है। पर मुक्ति मिलती दिखती नहीं। वह दिन दूर नहीं जब भारत भी इस्लाम और वामपंथ की हिंसा , हत्या और अराजकता की आग में झुलसने को बेबस और अभिशप्त हो जाएगा। हम नहीं , न सही पर  हमारी अगली पीढ़ी को यह हिंसा , हत्या और अराजकता भोगनी ही है। देश में बढ़ती नफ़रत की राजनीति को देखते हुए इसे रोक पाना अब कठिन लगता है। बहुत कठिन। क्यों कि इस्लाम और वामपंथ का संयुक्त हमला भारत पर हो चुका है। इस हमले को रोकने की तरक़ीब फ़िलहाल तो नहीं दिखती। 

आप को दिखती हो तो कृपया बताइए। 

अंबेडकर ने भारत में इस्लाम और वामपंथ के संयुक्त हमले को बहुत पहले पहचान लिया था। इस बाबत अंबेडकर ने लिख-लिख कर आगाह किया है। लेकिन लोग तो लोग अंबेडकर के अनुयायी ही इस तथ्य पर आंख मूंद गए। जय भीम , जय मीम के शिकार हो गए। बांग्लादेश का ख़तरा , भारत के ऊपर अब किसी चील की तरह मंडरा रहा है। मोदी सरकार के हाथ-पांव फूल गए हैं। क्यों कि लड़ाई बाहर से ज़्यादा भीतर है। वामपंथ और इस्लाम के पैरोकार बांग्लादेश की बुनियाद पर भारत में भी वैसी ही हिंसा , हत्या और अराजकता की मन्नत खुलेआम मांग रहे हैं। तानाशाही का हवाला दे रहे हैं। जैसे कभी श्रीलंका की बर्बादी में भारत की बर्बादी देखने की उम्मीद पाल लिया था इन लोगों ने। ऐलान किया था कि अब अगला नंबर भारत का है। 

अब इन लोगों की मनोकामना है कि भारत में भी बांग्लादेश की तरह हिंसा , हत्या और अराजकता का तांडव शुरू हो जाए। इन की मनोकामना और तैयारी देखते हुए मान लीजिए कि आने वाले दिन भारत में हिंसा , हत्या और अराजकता की चपेट में आने के दिन हैं। बांग्लादेश ने रास्ता दिखा दिया है। कोई चमत्कार ही बचा सकता है इस हिंसा , हत्या और अराजकता से। इस हमले का बड़ा बहाना मोदी विरोध भी है।

Saturday 20 July 2024

अद्भुत प्रेमोत्सव-- विपश्यना में प्रेम

कुमार तरल

" ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ' पंक्ति यूँ ही नहीं लिख गई, यह विधिवत मंथन के बाद सृजित हुई है। ऋषि , मुनि, तपस्वी , ज्ञानी-विज्ञानी , विद्वान यहां तक कि देवी देवता भी कभी प्रेम से विरत नहीं रहे। " लव इज गाड ' कह कर जगत नियंता को भी प्रेम के अटूट बन्धन में बांध दिया गया है। हमारे चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में भी प्रेम की सुगंध को नकारा नहीं जा सकता। अलौकिक साधना- पथ पर प्रेम की पावन परिभाषा गढ़ते हुये श्री दयानंद पांडेय जी ने एक अनमोल उपन्यास का सृजन किया है।

समस्त विचारों व बंधनों से मुक्ति की साधना है विपश्यना, स्वयं के अंदर विशेष रूप से झांकने का योग। यह बुद्ध धम्म की आधारशिला भी है। इस से जीवनकाल में ही निर्वाण संभव है। भगवान बुद्ध को भी बुद्धत्व विपश्यना से ही प्राप्त हुआ था। यह मूलतः वैज्ञानिक ध्यान विधि है। साधना एवं समाधि का सुख-संतुष्टि भाव इस के चरमोत्कर्ष में निहित है। इसकी अनुभूति अनिर्वचनीय है।

उपन्यास किसी कहानी का विस्तार है। पांडेय जी ने बड़ी सूझबूझ एवं धैर्य के साथ इस कहानी के विस्तृत स्वरूप को चित्रित किया है। भगवतीचरण वर्मा की चित्रलेखा  तथा ओशो की संभोग से समाधि की ओर  मैं ने भी पढ़ी है। दोनों कृतियाँ डूबकर पढ़ी जाने के लिए हैं। विपश्यना में प्रेम का सम्मोहन भी पाठकों को बांधे रखने में पूर्ण समर्थ है।

योग और आध्यात्म-पथ के युवक एवं युवतियां ,आश्रमों, मठों , व योग शिविरों में कुछ दिन व्यतीत करना पसंद  करते हैं। ऐसे ही एक योग शिविर में विनय व एक रशियन युवती का आगमन होता है। विनय योग तथा युवती अपने अस्वस्थ पति के स्वास्थ्य लाभ हेतु आती है। युवती विनय को भा जाती है। प्रेम के वशीभूत हो कर वह युवती का काल्पनिक नाम मल्लिका रख देता है जबकि युवती का नाम दारिया था। दोनों परस्पर आकर्षित होकर एक शाम शिविर के एक झुरमुट में दो शरीर एक जान हो जाते हैं। शिविर समाप्ति के बाद सभी साधक अपने-अपने घर चले जाते हैं। दारिया विनय के बच्चे की मां बन जाती है। दारिया फोन पर यह खुशखबरी कृतज्ञ भाव से निःसंकोच विनय को देती है। यह भाव अटूट बंधन का प्रतीक है।

विपश्यना में प्रेम पढ़ कर मैं आश्चर्यचकित हूं कि पांडेय जी ने इस कहानी को उपन्यास का रूप देने के लिए कैसे विस्तृत ज़मीन तैयार की होगी। कैसे इस ज़मीन पर रंग-बिरंगे फूल खिला कर मादक सुगंध में एक युवा जोड़े को सृजन का भार सौंप दिया होगा, वह भी पवित्रतम योग शिविर में। पांडेय जी का यह तानाबाना पूरी सूझबूझ , देश ,काल, परिस्थिति, अवस्था व व्यवस्था के अनुसार ही संपूर्ण है। अन्य पाठकों की तरह मेरा भी मानना है कि पांडेय  जी अपने संकल्पित सृजन के लिए ऐसी उर्वर जमीन तलाश ही लेते हैं। इनकी तलाश अनवरत जारी है , जारी रहेगी।

दारिया का विनय को यह सूचित करना कि वह उसके बच्चे की मां बन गई है , निश्छल प्रेम की पराकाष्ठा का अनूठा उदाहरण है। अगर वह चाहती तो यह बात छिपा भी सकती थी। इस से पाठकों को न तो विनय से ईर्ष्या होती है, न ही दारिया से नफ़रत। इस स्थिति की अनुभूति, सहानुभूति को जन्म देती है। अतृप्त धरा बादलों की घनघोर बरसात से ही तो तृप्त होती है। यह सृष्टि से जुड़ी हुई समस्या भी है साथ ही समाधान भी।

उपन्यास में कई द्वंद्व हैं, कई प्रश्न हैं, जिस का उत्तर खोजने की जिम्मेदारी पांडेय जी ने पाठकों पर डाल दी है। इस में साधना के साथ ही प्रेम अपनी सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाने में सफल रहा है। विनय और दारिया का मिलन सिर्फ वासना के इर्द गिर्द न हो कर समर्पित निर्मलता से आलोकित हो कर प्रेमोत्सव बन जाता है। यह रोमांच सुखद है।इस प्रणयन का उद्देश्य भी शायद यही भावभूमि संजोए हुए है।

अब तक कई कृतियों के प्रणेता, मंजे हुये मुखर पत्रकार होने के नाते पांडेय जी की भाषा शैली पर किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी उचित नहीं। पांडेय जी की निर्भीक कलम किसी आलोचना की परवाह नहीं करती। पांडेय जी गंभीर व्यक्तित्व के साहित्यकार, पत्रकार हैं, अतः लेखन में गंभीरता व गहराई स्वाभाविक है।

विपश्यना में प्रेम लीक से हट कर अप्रतिम उपन्यास है। इस का आवरण भी कृति की भावभूमि के अनुरूप है। आशा है पाण्डेय जी का यह उपन्यास सुधी पाठकों के लिये अविस्मरणीय होगा।


विपश्यना में प्रेम उपन्यास पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए 


विपश्यना में विलाप 


समीक्ष्य पुस्तक :



विपश्यना में प्रेम 

लेखक : दयानंद पांडेय 

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 

4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002 

आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र 

हार्ड बाऊंड : 499 रुपए 

पेपरबैक : 299 रुपए 

पृष्ठ : 106 

अमेज़न (भारत)
हार्डकवर : https://amzn.eu/d/g20hNDl


     

     

               





      

उन को मुस्लिम वोट चाहिए , इन को हिंदू ग्राहक

दयानंद पांडेय 

भारतीय राजनीति भी अजीब है। राजनीतिक पार्टियों को जातीय जनगणना चाहिए। आरक्षण चाहिए। मुस्लिम वोट चाहिए। मुस्लिम को हिंदू नेता नहीं पर बहुसंख्यक हिंदू ग्राहक चाहिए। नहीं व्यापार बैठ जाएगा। हलाल सर्टिफिकेट का जूनून भी चाहिए। गाय का मांस भी चाहिए। खाद्य सामग्री पर थूकने आदि का अधिकार भी चाहिए। काफिर का कंसेप्ट भी। यह तो वही हुआ कि चीन का बहिष्कार भी चाहिए और सस्ता चीनी सामान भी। 

अपनी दुकान पर प्रोप्राइटर का नाम क़ानूनी तौर पर लिख देने में नुकसान क्या है। अगर आप किसी का धर्म भ्रष्ट करने का ठेका लेना चाहते हैं तो कोई समाज कैसे इस की इज़ाज़त दे देगा। आप को अगर झटके से परहेज़ की इज़ाज़त है तो किसी को अपनी धर्म के मुताबिक़ , अपने त्यौहार पर अपनी पसंद की जगह से खाने-पीने का अधिकार भी क्यों नहीं होना चाहिए।

लेकिन क्या कीजिएगा कि हम ऐसे समाज में रहते हैं जिस में लोगों को आक्रमणकारी मुगलों , ब्रिटिशर्स से ख़तरा नहीं दिखा , ब्राह्मणवाद से ख़तरा बहुत दिखता है। हिंदू-मुसलमान की अजीब रेखागणित है। लेकिन सेक्यूलरिज्म के फ्राड और मुस्लिम तुष्टिकरण की इंतिहा है यह। दुकान पर नाम लिखने का क़ानून पुराना है। भाजपा का बनाया क़ानून नहीं है। भाजपा के योगी ने कांवड़ियों के तप , नियम , व्रत की निष्ठा और आस्था को बचाए रखने के लिए इस क़ानून की याद दिला दी है बस। अगर यह क़ानून पुराना नहीं होता तो घड़ियाली आंसू बहाने वाले यह लोग अब तक किसी अदालत का दरवाज़ा खटखटा चुके होते। 

बहुत से लोग दिल्ली में करीम होटल के मुरीद हैं। तो क्या करीम लिख देने से उस का होटल नहीं चलता ? हबीब हेयर ड्रेसर लिख देने से क्या हबीब का कारोबार नहीं चलता ? लखनऊ में टूंडे-कबाब की धूम रहती है। हलाल लिखने से तमाम प्रोडक्ट बिकते हैं। नाम की चीटिंग ग़लत है। इन दिनों तमाम बांग्लादेशी , रोहिंग्या तो साधू-संत के वेश में भी घूमते मिलते हैं। जहां-तहां पकड़े जा रहे हैं। अकसर। तो इन को भी अपना नाम छुपाने की इज़ाज़त दे देनी चाहिए। 



Friday 19 July 2024

हत्या तो मोदी की ही नहीं राहुल गांधी की भी हो सकती है

दयानंद पांडेय 

चहुं ओर नरेंद्र मोदी की हत्या की आशंका की बहार है। क्या चैनल , क्या सोशल मीडिया , यह मीडिया , वह मीडिया , यह लोग , वह लोग। अरे भाई राहुल गांधी की भी तो हत्या हो सकती है। इस पर चर्चा क्यों नहीं हो रही। आख़िर नरेंद्र मोदी से कम नफ़रत नहीं करते लोग राहुल गांधी से। बल्कि राहुल गांधी की नफ़रत और उन से नफ़रत करने वालों का स्कोर ज़्यादा बड़ा है। मोहब्बत की दुकान में नफ़रत की डिप्लोमेसी सर्वविदित है। राहुल के दुश्मनों में खटाखट योजना से निराश लोग तो मुस्लिम समाज में ही बहुत हैं। इधर सनातनी भी बहुत नाराज हैं। लेकिन सनातनी हिंसक नहीं होते। सो ख़तरा यहां से नहीं है। सिर्फ़ गुस्सा है। हां , जिन नक्सलियों ने राहुल गांधी से तमाम उम्मीदें पाल रखी हैं , उन्हें पूरा होते न देख नक्सली हिंसा का शिकार भी हो सकते हैं राहुल गांधी। नक्सली जिस से प्रेम करते हैं , लक्ष्य प्राप्त न होने पर उस की हत्या भी कर देते हैं। यह उन की परंपरा में है। स्वभाव में है। अनेक उदाहरण हैं इस के। मार्क्स , लेनिन , स्टालिन से लगायत माओ और शी जिपिंग तक का यही क़िस्सा है। स्टालिन हिटलर से भी बड़ा तानाशाह था। हिटलर का दोस्त भी था स्टालिन। स्टालिन की नफ़रत , हिंसा और हत्या के अनेक क़िस्से हैं। लेकिन वामपंथियों ने बड़ी चालाकी से स्टालिन की जगह हिटलर का नाम आगे बढ़ा दिया। बहुतेरे लोग हिटलर को तो जानते हैं , स्टालिन को नहीं। स्टालिन द्वारा हिंसा और हत्या की कहानियां लोग नहीं जानते। स्टालिन की नफ़रत की कहानियां लोग नहीं जानते। स्टालिन अपने लोगों की हत्या भी बड़ी निर्ममता से करवा देता था। दुनिया में कहीं भी वह किसी की हत्या करवा देता था। अपनी नफ़रत का शिकार बना लेता था। 

राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी की जब हत्या हुई तो वह भी नफ़रत में ही हुई थी। लिट्टे के लोग बहुत नाराज थे राजीव गांधी से। एक बार बतौर प्रधान मंत्री राजीव गांधी श्रीलंका गए तो गार्ड आफ आनर के दौरान एक श्रीलंकाई सैनिक ने राजीव गांधी पर अपनी सलामी देने वाली बंदूक़ की बट से अचानक हमला कर दिया। वह तो राजीव गांधी के पीछे चलने वाले सैनिक ने उन्हें लपक कर बचा लिया। हमला करने वाला सैनिक तुरंत गिरफ़्तार हो गया। बाद में उस सैनिक ने राजीव गांधी से अपनी नफ़रत का इज़हार करते हुए कहा कि अगर मेरे हाथ में झाड़ू भी होता तो मैं राजीव गांधी को झाड़ू से मार देता। तमिल आंदोलन को कुचलने के लिए श्रीलंका में भारतीय सेना भेजने के कारण तमिल लोग राजीव गांधी से बेहद नाराज थे। दशकों बाद अभी भी उन की नाराजगी गई नहीं है। 

इंदिरा गांधी की हत्या भी नफ़रत के ही कारण हुई थी। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सैनिक कार्रवाई से सिख समुदाय इतना नाराज था कि इंदिरा गांधी के घर में तैनात अंगरक्षकों ने जो कि सिख थे , इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री बना कर सिखों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की कांग्रेस ने। पर सिखों में इंदिरा और उन की कांग्रेस के प्रति गुस्सा कभी गया नहीं। अलग बात है कि इन दिनों सिखों का गुस्सा और नफ़रत नरेंद्र मोदी के प्रति कहीं ज़्यादा है। इंदिरा से भी ज़्यादा। बहुत ज़्यादा। 

भारत में राजनीतिज्ञों की हत्या अधिकतर नफ़रत के कारण ही होती हैं। मुग़ल काल की तरह सत्ता बदलने के लिए नहीं। गांधी की हत्या भी नफ़रत में ही गोडसे ने की थी। गांधी के मुस्लिम तुष्टिकरण और पाकिस्तान प्रेम के चलते एक बड़ा वर्ग गांधी से नफ़रत करता था। आज भी करता है। तो जो किसी को लगता है , नरेंद्र मोदी की हत्या के बाद कांग्रेस या वामपंथियों की सत्ता का आसमान साफ़ हो जाएगा तो ग़लत लगता है। बहुत ग़लत। ख़ुदा न खास्ता अगर नरेंद्र मोदी की हत्या हो गई तो भाजपा कम से कम पचास सालों तक और सत्ता में बनी रह जाएगी। अभी तो बिना हत्या के भी नरेंद्र मोदी के जीते जी तो कोई और सत्ता में आता नहीं दीखता। इसी लिए नरेंद्र मोदी की हत्या की बात जब-तब होती रहती है। अमरीका में ट्रंप पर हमले के बाद यह चर्चा बड़े ज़ोर शोर से हो रही है। 

बीते समय में वामपंथी लेखिका अरुंधती राय तो कोई और चारा न देख कर नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए संविधान में संशोधन की तजवीज ले कर प्रस्तुत थीं कि कोई भी एक बार से अधिक प्रधानमंत्री न बने। हां , राहुल गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस का क्या होगा , कहना कुछ कठिन है। दिलचस्प यह कि बाद की सहानुभूति बटोरने के लिए न नरेंद्र की कोई संतान है , न राहुल की। इंदिरा की हत्या बाद चुनाव में इंदिरा लहर चली। इतना कि विपक्ष साफ़ हो गया। पर राजीव की हत्या के बाद चुनाव में राजीव लहर नहीं चली। नरसिंहा राव की सरकार तो बनी पर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत भी नहीं मिला। 

तो क्या मोदी पर भी कातिलाना हमला मुमकिन है ? 

मोदी के वोटरों का मोदी से फ़िलहाल मोहभंग हो चुका है। भाजपा कार्यकर्ता नाराज हैं मोदी से। संघ प्रमुख भागवत सहित संघ के तमाम लोग मोदी से नाराज हैं। लेकिन मोदी के वोटर , भाजपा कार्यकर्ता और संघ के लोग उन की हत्या करेंगे , ऐसा सोचा नहीं जा सकता। हां , मोदी के वोटरों से भी ज़्यादा हताश मुसलमान , कांग्रेसी और वामपंथी हैं। ट्रंप पर हमला एक वामपंथी ने ही किया है। वामपंथी दुनिया भर में हताश हैं। भारत में कहीं ज़्यादा। मोदी के सामने उन की विफलता इस का बड़ा सबब है। राहुल गांधी और उन की कांग्रेस वामपंथियों के ट्रैप में बुरी तरह फंस चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष राहुल अब कांग्रेसी नहीं , नक्सल कांग्रेसी हैं। सो अब सवाल है कि नरेंद्र मोदी की हत्या कौन-कौन लोग कर सकते हैं। 

इस में प्रमुख रूप से तीन लोगों की संभावना बनती है। अव्वल तो नक्सल वामपंथी। दूसरे कोई इस्लामिक आतंकी। तीसरे कोई खालिस्तानी। तीनों मिल कर भी नरेंद्र मोदी की हत्या को अंजाम दे सकते हैं। कांग्रेस , तृणमूल , सपा , वामपंथी आदि इन को अपने बयानों से कवरिंग फ़ायर दे ही रहे हैं। कुछ कांग्रेसी हिटलर की मौत मरेगा , मोदी तेरी कब्र खुदेगी , मोदी तू मर जा जैसी बातें करते रहने में गर्व महसूस करते हैं। वह कांग्रेसी जो कभी गांधी की अहिंसा के पैरोकार थे , अब ऐसे हिंसक नारों की पैरोकारी पर आमादा हैं। अपनी शान समझते हैं। 

निर्मम और नंगा सच यही है कि नरेंद्र मोदी की ज़िंदगी पल-पल ख़तरे में है। देश ही नहीं विदेश में भी नरेंद्र मोदी के दुश्मन बहुत हैं। चीन , अमरीका , कनाडा और पाकिस्तान भी नरेंद्र मोदी के ख़ून के प्यासे हैं। इस लिए कि मोदी निरंतर चीन , अमरीका , कनाडा और पाकिस्तान के हितों को चोट पहुंचा रहे हैं। आर्थिक , कूटनीतिक और सामरिक तीनों ही मोर्चे पर। यही स्थिति देश में कांग्रेस , वामपंथी , तृणमूल कांग्रेस समेत कई क्षेत्रीय दलों की भी है। इन के हितों पर भी मोदी निरंतर हमलावर हैं। तो मोदी की हत्या की योजना बननी सहज स्वाभाविक है। लेकिन यह लोग भूल जाते हैं कि मोदी अभिमन्यु नहीं अर्जुन हैं। गंगा पुत्र भीष्म पितामह को भी शर शैया पर लिटा कर , वाण से धरती भेद कर पानी पिलाने वाले अर्जुन। 

और राहुल गांधी ?

राहुल गांधी का दुर्भाग्य है कि भारतीय राजनीति की वर्तमान पटकथा में वेद व्यास ने उन के लिए दुर्योधन की ही भूमिका लिख छोड़ी है। लाक्षागृह का निर्माण और द्रौपदी के चीर हरण करवाने के कलंक का ठीकरा ही उन्हें हासिल है। सत्ता नहीं। शकुनि जानता था कि अपने प्रतिशोध में इस पूरे वंश को समाप्त करना है। दुर्योधन जानता था कि उसे लड़ना है। लेकिन अर्जुन की परिजनों से लड़ने में दिलचस्पी नहीं थी। युद्ध भूमि में आ कर अर्जुन ने शस्त्र रख दिए। मुश्किल बहुत थी। अर्जुन की यह मुश्किल दूर करने के लिए , युद्ध कितना ज़रूरी है यह बताने के लिए , प्रेरित करने के लिए अर्जुन को समूची गीता सुनानी पड़ी थी श्रीकृष्ण को। 

राजनीतिक हत्या भी एक अवधारणा है। राहुल गांधी के नसीब में फ़िलहाल यही बदा है। तो क्या कर लेंगे उन के किसिम-किसिम के शकुनि अंकल लोग भी। यथा दिग्विजय सिंह , मणिशंकर अय्यर , सैम पित्रोदा , के सी वेणु गोपाल , जयराम रमेश , खरगे आदि-इत्यादि भी। माता गांधारी भी बेक़रार हैं पर लाचार भी हैं। हार का भी कुटिल जश्न मनाना किसी को सीखना हो तो कलयुग के इस दुर्योधन और गांधारी से सीखे। अभी और अभी तो बस नरेंद्र मोदी की हत्या की चर्चा और योजना। मौत का सौदागर किसी को ऐसे ही तो नहीं कह दिया जाता है। बरसों बरस की मेहनत है यह। वेद व्यास ने इस अर्जुन के लिए अपनी पटकथा में में जाने कैसी मृत्यु लिखी है। मृत्यु लिखी है कि हत्या। 

कौन जाने !



Saturday 13 July 2024

मोदी मैजिक बस स्वाहा !

दयानंद पांडेय 

समय की दीवार पर लिखी इबारत बताती है कि मोदी मैजिक बस स्वाहा होना ही चाहता है। भाजपा का सूर्य आधा डूब चुका है। पूरा भी डूबने में अब बहुत देर नहीं है। नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए लगातार ख़तरे की घंटी बज रही है। 2024 के आम चुनाव ने भाजपा पर जो डेंट मारा है , विधानसभा के ताज़ा उपचुनाव के नतीज़ों ने उसे और गहरा किया है। बदरंग किया है। सारा विकास , सारी लोकल्याणकारी योजनाओं का असर जैसे किसी नदी की बाढ़ में डूब कर छिन्न-भिन्न हो तिरोहित हो गया है। जैसे किसी सुनामी ने लील लिया है। मोदी की गारंटी किसी पाताल लोक में समा गई है। 

लेकिन मोदी और भाजपा को जैसे इस की परवाह ही नहीं है। विदेश नीति की सफलता में मगन हैं। सर्वोच्च सम्मान की श्रृंखला के सुरूर में हैं। सुरूर इतना कि सांस लेने की फुरसत नहीं। नहीं जानते घर का जोगी , जोगड़ा , आन गांव का सिद्ध ! गांव , घर और मुहावरे में ही फिट पड़ता है। राजनीति और चुनाव में इस का कोई मोल नहीं। रही बात गठबंधन दलों की , बैसाखियों की तो वह कब और किधर छिटक जाएं , उन्हें भी नहीं पता। कब दांव दे जाएं , वह भी नहीं जानते। जनता जनार्दन जैसे भाजपा से दूर-दूर , बहुत दूर हो चली है। फिर भी वह अपने पुराने जादू के नशे में चूर हैं। हुजूर होने के गुरुर में धुत्त हैं। हुजूर होने के आकाश से नीचे उतरने को जैसे तैयार ही नहीं हैं। ठोकर पर ठोकर मिलती जा रही है। पर वह पीता नहीं हूं , पिलाई गई है वाली ऐंठ में मगरूर हैं। जाने किस तमन्ना में तर-बतर हैं। हुजूरे आला होश में आइए। 

भाजपा और उस के नीति-नियंता लोग मान कर बैठ गए हैं कि यह नतीज़े सिर्फ़ संविधान बदलने और आरक्षण ख़त्म करने की अफ़वाह का कुपरिणाम है। इसी लिए जवाब में 25 जून को संविधान की हत्या दिवस मनाने के बहाने कांग्रेस की काली करतूत की याद दिलाने का स्वांग करना चाहते हैं। सवाल है कि बीते पचास सालों में इमरजेंसी लगने की तारीख़ को संविधान की हत्या दिवस के रूप में सुधि क्यों नहीं आई कभी। न सही , बहुत पहले इन दस बरसों में भी क्यों नहीं आई यह सुधि। सुधि क्यों बिसरी रही। किस ने बिसराई। अब जब तगड़ी लात पड़ गई है , तभी क्यों यह सुधि आई है। 

लोग तो मुग़लों समेत तमाम आक्रमणकारियों के लूट-खसोट , अत्याचार , ब्रिटिशर्स के अत्याचार भी भुला बैठे हैं। कांग्रेस के ज़ुल्मो-सितम , इमरजेंसी के काले और कठिन दिन भी भूल गए हैं। कोई पढ़वा देता है , सुना देता है , बता देता है तो जान लेते हैं। इन पचास बरसों में दो-दो जवान पीढ़ियां आ कर आगे की पीढ़ी लाने की तैयारी में है। आज की जवान पीढ़ी को किसी इतिहास में नहीं , वर्तमान में दिलचस्पी है। वर्तमान में युवा पीढ़ी को रोजगार और अपनी निजी तरक्की में दिलचस्पी है। इस जवान पीढ़ी को जोड़ने में भाजपा बुरी तरह नाकाम रही है। यह पीढ़ी वोट डालने में भी बहुत दिलचस्पी नहीं रखती। जो लोग वोट डालने में दिलचस्पी रखते हैं ,  वह आरक्षण प्रेमी हैं , मुसलमान हैं। जो मोदी और भाजपा को वोट देने में अपनी तौहीन समझते हैं। नफ़रत करते हैं मोदी और भाजपा से। हां , जो कुछ लोग मोदी और भाजपा को वोट देने में दिलचस्पी रखते हैं , मोदी सरकार ने उन से उन का बहुत कुछ छीन लिया है। अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन देने वाली मोदी सरकार ने रेलवे टिकट में सीनियर सिटीजन को दी जाने वाली छूट चुपचाप छीन ली। अकारण। अटल सरकार ने पुरानी पेंशन छीन ली थी। सेना में वन रैंक , वन पेंशन देने वाली मोदी सरकार ने लेकिन बहुत मिन्नतों के बावजूद पुरानी पेंशन बहाल नहीं की। उलटे सीनियर सिटीजन ने जो बैंक में अपनी जमा पूँजी ,  जमा किया कि जिस के इंट्रेस्ट से जीवन आसान करेंगे , उस इंट्रेस्ट पर भारी इनकम टैक्स लगा दिया। इनकम टैक्स में राहत छीन ली। 

2014 और 2019 में लोगों ने मुस्लिम तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ वोट दिया था और मोदी मैजिक चल गया था। अनेक  तथ्य गवाह हैं कि मोदी सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण को कांग्रेस से कहीं ज़्यादा बढ़ावा दिया है। एक पुराना लोकगीत है , घर में दियना बारि के मंदिर में दियना बार हो ! बीते दस सालों में मोदी की भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं की सिर्फ़ बलि दी है। लगातार बलि दी है। अपने वोटरों के साथ छल किया है। कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की गणित के फेर में तमाम दगे कारतूस टाइप कांग्रेसियों को भाजपा में न सिर्फ़ भर लिया बल्कि उन्हें सिर पर बिठा लिया। सोनिया , राहुल को चिढ़ाने की इस रणनीति ने मोदी का ईगो मसाज तो ख़ूब किया पर भाजपा कार्यकर्ताओं का अपमान भी भरपूर किया। 

इतना कि 99 सीट लाने वाली कांग्रेस के राहुल गांधी ने अब मोदी को संसद में चिढ़ाने के ईगो मसाज का नया पाठ पढ़ना शुरू कर दिया है। मुहल्ले के लफंगे लौंडों की तरह ललकार कर चिढ़ाने का वार , काम भी ख़ूब कर रहा है। मोदी पूरे चुनाव में शहजादे कर टांट करते रहे जिस राहुल गांधी पर , उसी नामदार राहुल गांधी ने सारी संसदीय गरिमा बिसार कर मोदी को सचमुच कामदार की हैसियत में डाल कर कामदार होने की हैसियत भी उतार दी है। पश्चिम बंगाल , केरल , पंजाब आदि ही नहीं दिल्ली , उत्तर प्रदेश तक में भाजपा कार्यकर्ता सुरक्षित नहीं रह गए हैं। 

मनोबल इतना गिर गया है भाजपा नेतृत्व का कि उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक बाबा जो 121 लोगों का हत्यारा सिद्ध हो चुका है समाज में लेकिन बुलडोजर बाबा के जे सी बी का डीजल इतना सूख गया है कि उस का नाम तक एफ आई आर में नहीं दर्ज हुआ है। क्या तो वह बाबा जाटव है। यानी दलित है। तो कहीं दलित वोटर न नाराज हो जाएं , इस खौफ में बुलडोजर बाबा थर-थर कांप रहे हैं। मोदी , अमित शाह चुप हैं। राजनाथ सिंह कड़ी निंदा भी नहीं कर पा रहे। अखिलेश यादव , राहुल गांधी उस हत्यारे बाबा का ईगो मसाज मक्खन लगा-लगा कर , कर रहे हैं। मीडिया को वह हत्यारा बाबा मिल जा रहा है , बाइट दे रहा है पर बुलडोजर बाबा की पुलिस की पहुंच से दूर है। दलित मायावती रह-रह कर इस हत्यारे के ख़िलाफ़ बोल रही हैं। लेकिन टोटी चोर यादव चूंकि इस हत्यारे बाबा का पैरोकार है इस लिए बुलडोजर बाबा की पुलिस असहाय है। टोटी टाइल में भी इन सात सालों में क्या कर लिया ?

वोट बैंक के डर से कहीं कोई सरकार और प्रशासन चलता है भला। इस से अच्छी तो 25 जून , 1975 को संविधान की हत्या करने वाली वह इंदिरा गांधी ही थीं। इंदिरा गांधी ने पंजाब में खालिस्तानी आतंक को कुचलने के लिए स्वर्ण मंदिर में सेना भेज कर भिंडरावाले और उस के आतंक को नेस्तनाबूद कर दिया था। बदले में उन की हत्या हो गई यह अलग बात है। तो क्या अपनी जान बचाने के लिए वह पंजाब से आतंक खत्म करने पर आंख मूंदे रहतीं। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दस्यु उन्मूलन अभियान चलाया था। बदले में फूलन देवी ने बेहमई कांड कर दिया। बच्चे , बूढ़े सभी 22 ठाकुरों को एक साथ मार दिया था। विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा था। पर दस्यु उन्मूलन का उन का ख्वाब पूरा हो गया था। यह और ऐसे अनेक उदाहरण हैं। 

जिस योगी मॉडल की दुनिया भर में चर्चा थी , एक हत्यारे दलित बाबा ने उस योगी मॉडल को चकनाचूर कर दिया है। उन्नाव में बलात्कारी कुलदीप सेंगर और चिन्मयानंद की हुई गिरफ़्तारी में देरी पर योगी आदित्य नाथ की बहुत भद पिटी थी। ठाकुरवाद का आरोप भी लगा था। अंतत: गिरफ़्तार करना पड़ा था। गिरफ़्तार तो देर-सवेर हाथरस में 121 लोगों का यह हत्यारा बाबा भी होगा , भले अदालती हस्तक्षेप पर ही हो। लेकिन तब तक इतनी देर हो जाएगी कि योगी के बुलडोजर राज की धमक और  इकबाल ध्वस्त हो कर मिट्टी में मिल चुकी होगी। धूल-धूल हो कर हवा में उड़ कर तार-तार हो चुकी होगी। लुंज-पुंज हो कर चलने वाली सरकारें मनमोहन सिंह सरकार की  नपुंसक सरकार की तरह याद की जाती हैं। या फिर उत्तर प्रदेश में श्रीपति मिश्र की सरकार की तरह। जिस का स्लोगन ही था : नो वर्क , नो कंप्लेंड। लेकिन योगी सरकार ने तो सिर्फ़ सात साल लगातार सरकार चलाने का एक नया रिकार्ड बनाया है , जो पहले किसी ने नहीं बनाया उत्तर प्रदेश में बल्कि क़ानून व्यवस्था क़ायम रखने का एक नया व्याकरण रचा है। वही सरकार अब हत्यारे बाबा के ख़िलाफ़ इतनी लुंज-पुंज क्यों हो गई है। 

याद आता है किसान आंदोलन के समय नोएडा में राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी की तैयारी का मंज़र। गिरफ़्तारी की सारी तैयारी कर उस रात योगी अचानक थम गए थे। राकेश टिकैत को गिरफ़्तार करने गई भारी फ़ोर्स दो-तीन घंटे की क़वायद के बाद अचानक लौट गई थी। टी वी पर यह सारा कुछ देख कर लोग अवाक रह गए थे। कि एक राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी के लिए गई हज़ारों की फ़ोर्स लौटने लगी। बाद के समय में जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने बताया था कि फ़ोन पर राकेश टिकैत बहुत रोने लगा था। तब अमित शाह को फ़ोन कर उन्हों ने राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी रुकवाई थी। सत्यपाल मलिक की इस बात का प्रतिवाद आज तक किसी ने नहीं किया। न राकेश टिकैत ने , न अमित शाह ने। न किसी और ने। जो किसान आंदोलन लालक़िले पर खालिस्तानी झंडा फहराने के बाद ध्वस्त हो गया था , टिकैत की गिरफ़्तारी न होने से नया जीवन पा गया था। यह और बुरा हुआ था। अलग बात है कि हरियाणा की सरहद पर बंद सड़क खुलने की करवट अब ले चुकी है। किसान आंदोलन की चिंगारी शोला बनने की सनक पर आतुर होना ही चाहती है। 

हाथरस में 121 लोगों के हत्यारे इस दलित बाबा शिवहरि के ठिकानों पर बुलडोजर न चलने के पीछे भी क्या किसी अमित शाह , किसी मोदी का हाथ तो नहीं ? कि योगी का ख़ुद का यह कायराना फ़ैसला है। यह समय बताएगा। जो भी हो योगी सरकार और भाजपा को इस की भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। बर्बादी की राह पर चल रही भाजपा के लिए यह धरती में धंस जाने वाला निर्णय है। जो सरकार जनता का दुःख न समझे , हत्यारे की आड़ में वोट बैंक को महत्वपूर्ण समझे , ऐसी निकम्मी सरकार को उखाड़ ही फेकना चाहिए। ऐसी सरकार को कल जाना हो तो आज ही चली जाए। आख़िर हाथरस में कुचल कर मरने वाले भी दलित और निर्बल लोग ही थे। क्या वह लोग वोट बैंक का हिस्सा नहीं हैं। हत्यारा बाबा इस लिए बचा हुआ है कि वह अरबपति है। उस के साथ दलित वोट बैंक का वहम खड़ा है। 

इस लिए ? इस लिए कि भाजपा बर्बादी की डगर पर ढोल-नगाड़े के साथ निकल पड़ी है। 

इस लिए ? 

कांग्रेस इसी तरह बर्बाद हुई थी। सपा-बसपा इसी तरह बर्बाद हुई थीं। मुस्लिम वोट बैंक के खौफ में कांग्रेस और सपा-बसपा जैसी पार्टियां आतंकियों को हाथ लगाने से थर-थर कांपती थीं। सपा ने यादव अपराधियों के साथ भी यही नरमी बरती। मुस्लिम अपराधी तो सपा के दामाद ही थे। कांग्रेस के भी। बसपा के भी। अतीक़ अहमद , मुख़्तार अंसारी जैसे अनेक खूंखार अपराधी ऐसे ही सत्ता के सिर पर बैठ कर आग मूतते थे। बिहार में शहाबुद्दीन जैसे लालू के सिर पर बैठ कर आग मूतता था। मुस्लिम वोट बैंक अफ़ीम बन चुका था , सेक्यूलरिज्म की आड़ में। इन्हीं सब से आजिज आ कर जनता ने 2014 में भाजपा को चुना था। भाजपा भी इसी कुमार्ग पर चल पड़ेगी , जनता कहां जानती थी। भाजपा के मोदी राज में भी रामनवमी पर , हनुमान जयंती पर , दुर्गा पूजा पर दिल्ली जैसी जगह पर मिनी दंगे होने लगे। पश्चिम बंगाल में तो नर्क ही हो गया है। देश के तमाम हिस्सों में भी यह इस्लामी हिंसा का नर्क और बढ़ा है। कर्नाटक , तमिलनाडु तक में। 

सनातन को कैंसर , मलेरिया , डेंगू , एड्स जैसे ख़िताब भी मोदी राज में पेश किए गए हैं। यह और ऐसी फेहरिस्त  बहुत लंबी है। और तो और बीते कर्नाटक विधान सभा चुनाव में जैसे जय हनुमान का रंग उतर गया था वैसे ही 2024 के लोकसभा चुनाव में जय श्री राम का रंग उतर कर भाजपा को चिढ़ाने लगा है। काशी में शर्मनाक जीत हुई , अयोध्या , चित्रकूट जैसी जगहों पर भाजपा को पराजय मिली। और जैसे करेला और नीम चढ़ा जो कहते हैं न , इस उपचुनाव में बद्रीनाथ में भी भाजपा चित्त हो चुकी है। सनातन की रखवाली का जो परसेप्शन था वह पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। गरज यह कि भाजपा के सारे चुनावी औजार अब भोथरे हो चुके हैं। सब में जंग लग चुके हैं। हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव में भी पलीता लग चुका है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के जुमले से भाजपा के लोग ही आजिज हो चुके हैं। देश ऊब गया है , इस कोरी लफ़्फ़ाज़ी से। गगन बिहारी स्लोगन से राजनीति , चुनाव और सरकार ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकते। स्लोगन भी ओवरहालिंग मानते हैं। औज़ार भी। कई बार बदल भी। भाजपा को अब मोदी को भी बदलने की समय रहते सोचना चाहिए। कम से कम मोदी की ओवरहालिंग पर ही सोचना चाहिए। नहीं अगले चुनावों में भाजपा को कांग्रेस की तरह बर्बादी के पड़ाव पर देखने के लोग तैयार हो गए हैं। अग्निवीर जैसे तमाम मसले हैं जिन्हें सत्ता पक्ष देश को समझाने में बुरी तरह पराजित है। 

मुकेश अंबानी जैसे पूंजीपति ने बेटे के विवाह के बहाने इंडिया गठबंधन के लोगों के लिए लाल कारपेट वैसे ही तो नहीं बिछा दी है। मोदी की गारंटी का गगन बिहारी रंग एक पूंजीपति ने भी समय रहते समझ लिया है। समझ लिया है कि मोदी मैजिक बस स्वाहा ही है। पर नहीं अगर कोई समझ पाया है तो वह भाजपा के सरगना नरेंद्र मोदी हैं। मोदी अकसर कहते रहे हैं और उन के सिपाहसालार भी कि जहां लोग सोचना बंद करते हैं , मोदी वहां से सोचना शुरू करता है। तो हुजुरेआला , जब भाजपा के पतन की पराकाष्ठा और दुर्दशा प्राप्त कर ही सोचेंगे क्या कि आख़िर मोदी मैजिक स्वाहा हो कैसे गया है ! 




Thursday 4 July 2024

अबे सुन बे मोदी !

दयानंद पांडेय 

अबे सुन बे मोदी ! 

अभी जो बातें कह रहा हूं , उसे ध्यान से सुन। बहुत ध्यान से। जब निरंतर गिरते ही जाना है , गलीज से गलीज समझौते करते ही जाना है तो सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास में आख़िर जिसे तुम बड़ी हिकारत से जिसे बालक बुद्धि कहते हो , उस बालक बुद्धि और उस की मां को भी क्यों नहीं शामिल कर लेते , इस स्लोगन के तहत। जो ढाई-तीन दर्जन केस बिचारे मां -बेटे पर हैं , उठा क्यों नहीं लेते। सरकार के पास यह अधिकार होता ही है। इस बालक की पूजा कर के उस को प्रधान मंत्री की कुर्सी ही क्यों नहीं सौंप देते। यही तो उस का सपना है। पूरा कर दो उस का सपना। बहुत पुण्य मिलेगा। केजरीवाल , सोरेन टाइप लोगों को भी आराम क्यों नहीं दे देते। हो सकता है 80 करोड़ राशन पाने वालों , मुफ़्त शौचालय , गैस आदि पाने वालों से ज़्यादा एहसान जताएं यह लोग।

एहसानफ़रामोशी न करें। 

लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का रिकार्ड तो अब तुम्हारा बन ही गया है। अब चिंता भी क्या है भला। देश किसी के भी बिना चल सकता है। तुम्हारे बिना भी। चक्रवर्ती सम्राटों , मुगलों , ब्रिटिशर्स , नेहरू , शास्त्री , इंदिरा , अटल आदि के बिना भी चल ही रहा है। तुम्हारे बिना भी चल जाएगा। लेकिन यह जो मुफ़्तख़ोरी का ख़ून लगा दिया है , न तुम ने , लोक कल्याण के नाम पर यह ठीक वैसे ही है , जैसे लोगों के मुंह में आरक्षण का ख़ून। हटा कर देख तो लो एक बार अस्सी करोड़ लोगों का मुफ़्त राशन। आग लग जाएगी देश में। जैसे आरक्षण हटाने के नाम पर आग लग जाने का भय लगता है हर किसी को। तुम को क्या लगता है कि तुम्हारी अयोध्या में आग क्या अचानक लग गई है ? काशी ने भी तुम  को क्यों ज़लील किया है ? नहीं मालूम तो अब से जान लो कि आरक्षण के भस्मासुर ने तुम्हारी अयोध्या और काशी ही नहीं , तुम्हारे  विकास की सारी मीनारों में , लोक कल्याण के कार्यक्रमों में आग लगा दी है। किसी लंका की तरह जल रही हैं , विकास की मीनारें , लोक कल्याणकारी योजनाएं। तुम्हारे इस खोखले स्लोगन सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के कारण। लफ्फाजी की इंतिहा है यह। बीच चुनाव में तुम्हारे और तुम्हारे नंबर दो और सो काल्ड चाणक्य अमित शाह के आरक्षण और संविधान के बाबत डाक्टर्ड वीडियो गांव-गांव वायरल थे और तुम लोगों को ख़बर तक नहीं हुई। देर से सही , हुई भी तो कुछ एफ आई आर और गिरफ़्तारी ही इस का इलाज था ? यू ट्यूब से यह वीडियो हटवाने की बुद्धि क्यों नहीं आई ? तुम्हारी काशी के ही एक गीतकार हुए हैं श्रीकृष्ण तिवारी। उन का एक गीत याद आ गया है :

भीलों ने बाँट लिए वन

राजा को खबर तक नहीं


पाप ने लिया नया जनम

दूध की नदी हुई जहर

गाँव, नगर धूप की तरह

फैल गई यह नई ख़बर

रानी हो गई बदचलन

राजा को खबर तक नहीं


कच्चा मन राजकुंवर का

बेलगाम इस कदर हुआ

आवारे छोरे के संग

रोज खेलने लगा जुआ

हार गया दांव पर बहन

राजा को खबर तक नहीं


उलटे मुंह हवा हो गई

मरा हुआ सांप जी गया

सूख गए ताल -पोखरे

बादल को सूर्य पी गया

पानी बिन मर गए हिरन

राजा को खबर तक नहीं


एक रात काल देवता

परजा को स्वप्न दे गए

राजमहल खंडहर हुआ

छत्र -मुकुट चोर ले गए

सिंहासन का हुआ हरण

राजा को खबर तक नहीं


तुम्हारे सिंहासन का हरण खुले आम हो रहा था , और तुम्हें ख़बर भी नहीं हो सकी। अफ़सोस ! कैसी मशीनरी है तुम्हारी। कैसे कार्यकर्ता हैं तुम्हारे। तुम जब-तब सनातन-सनातन का ढिढोरा पीटते रहते हो। और लोग तुम्हारे सनातन को डेंगू , मलेरिया , कैंसर और एड्स कह कर तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं। तुम कुछ नहीं कर पाते। हाथ मलते रहते रह जाते हो। 

इतने उदार क्यों हों ? बल्कि पलट कर पूछूं कि इतने कायर क्यों हो ? 

बंगाल में एक पुरानी कहावत है कि किसी को भीख में मछली देने से अच्छा है , उसे मछली मारना सिखा दो। कोरोना तक तो ठीक था मुफ़्त राशन। लेकिन उस के बाद यह मुफ्तखोरी विशुद्ध रूप से वोट ख़रीदने की गहरी चाल थी जो नाकामयाब साबित हुई है। यह मुफ्तखोर जान चुके हैं कि अब तुम्हारी हैसियत नहीं है इसे बंद कर पाना। ठीक वैसे ही जैसे लोकसभा और राज्य सभा में प्रतिपक्ष जान चुका है कि तुम तो प्रतिपक्ष को , उस की जली-खोटी , गाली-गलौज आदि संसदीय गरिमा के आवरण में सुनोगे ही। तुम्हारी सत्ता पक्ष में बैठने की मज़बूरी है। तुम बहिर्गमन नहीं कर सकते। समय-बेसमय स्पीकर से संरक्षण की भीख मांगोगे। जो मिलेगी नहीं। जैसे कोई श्वान किसी के मुंह पर मूत्र विसर्जित कर दौड़ कर भाग जाता है , ठीक यही सुलूक़ तुम्हारे साथ संसद में प्रतिपक्ष करता आ रहा है। और तुम अपने आत्म-मुग्ध भाषण में अपने मुंह पर श्वानों द्वारा यह मूत्र विसर्जन महसूस ही नहीं कर पा रहे। 

हद्द है !

भारतीय लोकतत्र , चुनाव और संसद के औज़ार अब बदल चुके हैं। लेकिन तुम नहीं बदलना चाहते। क्यों नहीं बदलना चाहते हो ? इस लिए कि तुम डरपोक हो। महाडरपोक। 

लेकिन अपने इस डर पर एक छाता लगा रखे हो कि तुम देश को बदलना चाहते हो। देश को प्रगति की राह ले जा कर विकसित भारत बनाना चाहते हो। दुनिया की तीसरी इकोनामी बनाना चाहते हो। बंद भी करो अब यह लफ्फाजी। बहुत हो चुका। और लड़ रहे हो , उन पुराने औज़ारों से जिस से मालवीय , तिलक , गांधी , पटेल भारत को आज़ाद करना चाहते थे। किया भी। पर क्या सावरकर , भगत सिंह , आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस आदि जैसे असंख्य क्रांतिकारियों की ज़मीन के बिना यह मुमकिन था ? 

बिलकुल नहीं। 

कांग्रेस में भी नरम दल और गरम दल था। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के मार्फ़त अगर कांग्रेसी और क्रांतिकारी भी लड़े होते तो अंगरेज अभी भी भारत पर हुकूमत कर रहे होते। क्यों कि यह एक कायर स्लोगन है। पाखंड है तुम्हारा। 

हर पार्टी अपना वोट बैंक देखती है। अपनी कांस्टीच्यवेंसी देखती है। कांग्रेस , वाम और तमाम क्षेत्रीय दल मुसलमानों के ख़िलाफ़ , पिछड़े, दलितों के ख़िलाफ़ एक शब्द नहीं सुन सकते। कोई बोल दे तो आग लगा दें। लेकिन तुम तो सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास की फ़ालतू रंगबाजी में लगे रहते हो। अपने कार्यकर्ताओं की हिफाज़त नहीं कर पाते तो वोटरों की कहां से करोगे। सनातनियों की कहां से करोगे। पश्चिम बंगाल में रोज-रोज मारे जा रहे अपने कार्यकर्ताओं की रक्षा ही नहीं कर पाते। हर चुनाव के बाद वह मारे जाते हैं। भाग कर आसाम-बिहार में जान छुपाते हैं। उन के घर जला दिए जाते हैं। 

तो क्या पश्चिम बंगाल , भारत गणराज्य से बाहर है ? 

लोगों की जान जाती रहती है , पिटते रहते हैं , आग लगती रहती है। और तुम दीदी-दीदी , लोकतंत्र-लोकतंत्र की लफ्फाजी झोंकते रहते हो। कायरता और नपुंसकता की इंतिहा है यह। ई डी , सी बी आई भी पश्चिम बंगाल जा कर पिटती रहती है। 

एक नुपूर शर्मा हैं। कभी तुम्हारी पार्टी की प्रवक्ता थीं। तुम्हारे सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के राज में लेकिन अब वह घर से निकलती नहीं। सालों से। दिल्ली में रह कर भी डरती हैं। थर-थर कांपती हैं मुसलमानों से। सिर तन से जुदा का फतवा है। नुपूर शर्मा का निजी , पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन चौपट हो चुका है। वह भी तुम्हारे सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के राज में। इस्लामिक हिंसा की शिकार एक बार तस्लीमा नसरीन दिल्ली में घूम सकती हैं। इस्लामिक हिंसा के शिकार एक बार सलमान रुश्दी भी दिल्ली और देश घूम सकते हैं। पर नुपूर शर्मा नहीं। नुपूर शर्मा को अकेला छोड़ दिया गया है। क्यों कि तुम तो सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के नशे में चूर हो। तुम्हें कुछ सूझता ही नहीं। भगवा आतंकवाद , हिंदू आतंकवाद की गाली जैसे कम पड़ रही थी जो बालक बुद्धि राहुल समूची अराजकता और गुंडई के साथ तुम्हें लोकसभा में सरे आम हिंसक हिंदू , नफ़रती हिंदू , झूठा हिंदू कह कर तुम्हारे मुंह पर मूत्र विसर्जन कर देता है। करता ही रहता है। किसी कायर और नपुंसक की तरह तुम्हारा चेहरा मलिन हो जाता है। तुम कठोरता से प्रतिकार नहीं कर पाते। और वह काठ का स्पीकर भी तुम्हारे कंधे से कंधा मिला कर चेहरे पर मलिनता ओढ़ कर संसदीय कायरता का शिखंडी शिलालेख लिख देता है। क्या हमारी  संसदीय परंपरा इतनी कायर , इतनी नपुंसक और इतनी बेजान है ?

सुप्रीम कोर्ट के पास भी कुछ विशेषाधिकार होते हैं। जब कोई क़ानून , संविधान और अनुच्छेद नहीं साथ देते तो सुप्रीम कोर्ट अपने विशेषाधिकार का प्रयोग पूरी ताक़त से करता है। निरंकुश हो कर करता है। कोई वकील , कोई संविधान , कोई क़ानून तब सुप्रीम कोर्ट के सामने खड़ा नहीं होता। नहीं हो पाता। तो क्या सुप्रीम कोर्ट से भी कमज़ोर है , लोकसभा और लोकसभा अध्यक्ष ? संविधान क्या झूठ ही कहता है कि संसद सर्वोच्च है। सर्वोच्च है तो क्या यही दिन दिखाने के लिए ? झूठ पर झूठ फेंकता रहा वह बालक बुद्धि। पूरी गुंडई से। किसी मुहल्ले के दादा की तरह। शोर मचाने के लिए लगातार लोगों को उकसाता रहा।लोगों को भेड़ की तरह बेल में हांक दिया। अनाप-शनाप बोल कर जो चाहा किया। और क्या स्पीकर , क्या प्रधान मंत्री और अन्य मंत्री जैसे संसदीय गरिमा की लाज लुटते हुए वैसे ही देखते रहे जैसे दुर्योधन की सभा में द्रौपदी का चीर हरण भीष्म पितामह सहित अन्य लोग सिर झुका कर देखते रहे। निष्प्राण ! संसद और लोकतंत्र द्रौपदी की साड़ी नहीं है। कि जो जब चाहे , जैसे खींच ले। संसद और लोकतंत्र देश की लाज है। गरिमा है। आन-बान-शान है।  

धिक्कार है तुम्हें नरेंद्र मोदी , तुम्हारे स्पीकर और तुम्हारी सरकार को। संसद में जब इस तरह गुंडई मुसलसल चलती रहती है और तुम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हो। संसद और लोकतंत्र की लाज लुटती रहती है और तुम असहाय बैठे रहते हो। संसद के भीतर भी और बाहर भी। कब तक अपनी कायरता और अक्षमता को इको सिस्टम के माथे पर ठीकरा फोड़ते हुए लोगों को बरगलाते रहोगे। बंद भी करो अब यह इको सिस्टम का पहाड़ा। दस बरसों में कुचल क्यों नहीं पाए इस इको सिस्टम का फन। एन सी आर टी समेत तमाम पाठ्यक्रमों में बदलाव के लिए किस बादल और किस बरसात की प्रतीक्षा है। किस-किस से डरते हो। सभी अकादमिक जगहों पर आज भी वामपंथी और कांग्रेसियों का कब्ज़ा है। दस बरस क्या कम होते हैं , इन्हें बदलने के लिए ? 

डरता होगा तुम से पाकिस्तान। लेकिन तुम तो राहुल गांधी और मुसलमान से डरते हो। नहीं डरते हो तो राहुल-सोनिया के नेशनल हेराल्ड केस को क्यों ढक्कन बनाए हुए हो ? हज़ारो करोड़ का घोटाला है। हेमंत सोरेन , केजरीवाल जेल जा सकते हैं तो नेशनल हेराल्ड के आरोपी कब तक आरोपी बने ज़मानत लिए घूमते रहेंगे ? ज़मानत क्या आजीवन होती है। वाड्रा के घोटाले का क्या हुआ। क्या हुआ तब्लीगी जमात के उस मौलवी का। तब्लीग़ियों का। जहां एक दारोगा को जाना चाहिए था , राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल को जाना पड़ा था , उस तब्लीगी मौलवी को आधी रात समझाने के लिए। एफ आई आर हुई थी तब। क्यों नहीं कभी गिरफ़्तार हुआ वह मौलवी कभी। ओवैसी सिर्फ़ एक सीट जीत कर तुम्हारी छाती पर हर पांच साल पर मुसलसल मूंग दलता रहता है। क्या उखाड़ लेते हो उस का। बरेली के एक छुटभैया मौलाना तौक़ीर रज़ा के पीछे दंगे के आरोप में कोर्ट ने वारंट जारी कर रखा है , चुनाव के पहले से। चुनाव बीत चुका है। योगी की पुलिस तौक़ीर रज़ा को पकड़ कर कोर्ट में पेश नहीं कर पाई है। तुम्हारे कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर अजब-गज़ब बाते करते रहते हैं वक्फ बोर्ड को ले कर। और तुम संसद में वक्फ बोर्ड को और मज़बूत करने का संशोधन कर देते हो। कोई जान भी नहीं पाता। 

सब जानते हैं 2014 में तुम्हें हाहाकारी जीत मिली थी , मुस्लिम तुष्टिकरण के ख़िलाफ़। किसी मनमोहन सरकार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार को ले कर नहीं। 2019 में भी तुम मुस्लिम तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ और बढ़त ले कर आए। 2024 में 240 पर ठिठके तो इस लिए भी कि कांग्रेसियों और क्षेत्रीय दलों से ज़्यादा मुस्लिम तुष्टिकरण तुम करने लगे हो। जय हनुमान का निरंतर उदघोष कर के भी तुम कर्नाटक विधानसभा इसी लिए हारे। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और राम की प्राण प्रतिष्ठा बहुत बड़ी घटना है , इस सदी की। जो तुम्हारे कारण ही मुमकिन हुई। लेकिन प्रचंड राम लहर के बावजूद तुम 2024 में जो जनता की लात खाए हो , बहुत बड़ी लात। आरक्षण और संविधान का प्रोपगैंडा तो है ही , इस के पीछे। तुम्हारी मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा ने भी तुम्हारी चुनावी पिच खोद कर रख दी है। नहीं हमारे जैसे निष्पक्ष प्रेक्षक भी साफ़ देख रहे थे कि तुम सचमुच चार सौ पार कर रहे थे। करते दिख रहे थे। पर यह हम और हमारे जैसे लोग भी नहीं देख पाए कि जो मुस्लिम तुष्टिकरण का दीमक है न , कि कब तुम्हें खा गया। खा गया तुम्हारा औरा और तुम्हारा सारा इवेंट। 

देश भर के रोड शो में घूम रही , हर सड़क किनारे तुम्हारी आरती की थालियों में , लोगों के हर्ष और जूनून में कहीं कोई कमी नहीं थी। काशी हो , पटना हो , केरल , तमिलनाडु या बंगाल , उड़ीसा का या देश का कोई भी शहर। राम मय था देश। राम-नाम के बीच हर कहीं मोदी नाम की खुशबू थी। यह खुशबू इतनी ज़बरदस्त थी कि इस खुशबू में ही मुस्लिम तुष्टिकरण का दीमक छुप गया। तिस पर आग में घी का काम किया आरक्षण और संविधान के प्रोपगैंडा ने। 8500 रुपए की लालच ने। आरक्षण प्रेमियों का पेट मुफ्त राशन से भरा हुआ था। वह जान गए थे कि राम मंदिर बन चुका है। अगड़ों को तुम ने बंधुआ मान रखा है। अपनी निरंतर उपेक्षा से वह भी बिफरे और थोड़ा सा सही , शिफ्ट हुए। आदतन ज़्यादातर वोट डालने भी नहीं गए। क्यों कि लोगों ने पाया कि तुम भी मुस्लिम तुष्टिकरण और उस मुसलमान के तलवे चाट रहे हो। जिसे सिर तन से जुदा करने का अभ्यास है। तो क्या फर्क पड़ता है , इधर से उधर होने में। हो जाने में। तुम्हारे कार्यकर्ता भी नहीं गए लोगों को घर से निकालने वोट देने के लिए। फिर सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास में तुम स्वाहा हो गए। भाजपा होती अगर तीन सौ पार इस बार भी तो हर ऐरा-गैरा तुम्हारे मुंह पर मूत्र विसर्जन करता हुआ इस तरह न घूमता। 

शत्रुघन सिनहा याद आ गए हैं। जब देखिए तब ख़ामोश ! कह कर सब को ख़ामोश करते रहे। पर उन की ही बेटी सोनाक्षी ने अपने एक निजी फ़ैसले से उन्हें ऐसा ख़ामोश कर दिया है कि पूछिए मत। जिसे देखिए , वही उन का मज़ाक उड़ाता घूम रहा है। उन को ख़ामोश करता घूम रहा है। सोशल मीडिया शत्रुघन सिनहा के इस मुश्किल भरे नर्क से रंगा पड़ा है। सना और भरा पड़ा है। और शत्रुघन सिनहा को कोई जवाब देते नहीं बन रहा है। मुंह छुपाए , खिसियाए घूम रहे हैं। नरेंद्र मोदी , तुम्हारी वर्तमान राजनीतिक स्थिति भी जैसे शत्रुघन सिनहा के निजी और पारिवारिक जीवन सरीखी हो चली है। शत्रुघन सिनहा का पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन नष्ट हो गया है। मारे शर्म के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी अभी शपथ लेने लोकसभा नहीं आ सके हैं। जैसे शत्रुघन सिनहा का निजी , पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन नष्ट हुआ है , ठीक वैसे ही नरेंद्र मोदी , तुम्हारा राजनीतिक जीवन नष्ट हो गया दिखता है। लेकिन शत्रुघन सिनहा भले जीवन भर अभिनय करते रहे हों , अब अभिनय उन का , उन से पानी मांग गया है , सोनाक्षी सिनहा के एक निजी फ़ैसले के कारण। जनता के चुनावी करवट से , भारी करंट लगने के बाद भी नरेंद्र मोदी तुम्हारा अभिनय लेकिन उफान पर है। ऐसे में भी कैसे हंस और चमक लेते हो। इतनी बेशर्मी आख़िर कैसे कर लेते हो। किस चक्की का आटा खाते हो , यह बेशर्मी पाने के लिए। 

भारत देश संविधान और क़ानून से नहीं चलता है। भारत चलता है धर्म , जाति , भ्रष्टाचार , आरक्षण और माफ़िया से। और ऐसे पवित्र माहौल में नरेंद्र मोदी तुम चलते हो , सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास जैसे खोखले नारे से। दिखने में यह सूत्र वाक्य में बहुत अच्छा लगता है। लेकिन जीवन और राजनीति में सूत्र वाक्य मुंह चिढ़ाते रहते हैं। स्वेट मार्डेन की सूत्र वाक्य की किताबें पढ़ने और सुनने के लिए बहुत गुड हैं। ठीक वैसे ही तुम्हारा सूत्र वाक्य सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास भी गुड है। पढ़ने और सुनने में। पर चुनाव तो अपने वोट बैंक से जीता जाता है। किसी सूत्र वाक्य से नहीं। और नरेंद्र मोदी , विकास की तमाम मीनारें खड़ी करने , लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों की झड़ी लगा देने के बावजूद तुम ने अपने वोट बैंक को इन दस बरसों में सर्वदा ठेंगे पर रखा है। टेकेन ग्रांटेड मान लिया। इसी लिए सब कुछ के बावजूद चुनावी बिसात पर तुम बिखर गए। छिन्न-भिन्न हो गए। देह जब कमज़ोर होती है तो तमाम बीमारियां दस्तक दे देती हैं। देती ही रहती हैं। घेर लेती हैं तमाम बीमारियां। आदमी अशक्त हो जाता है। होता ही जाता है। नरेंद्र मोदी , अब तुम मानो या मत मानो पर राजनीतिक रूप से तुम बहुत कमज़ोर हो चुके हो। इस लिए अब हर अराजक मूत्र विसर्जन के लिए तुम्हारा मुंह तलाशेगा। अभी अराजक और नक्सल कांग्रेसी राहुल मूत्र विसर्जन कर रहा है। कल को केजरीवाल आदि करेंगे। परसों को क्या गारंटी है कि नायडू और नीतीश भी न करें। रहीम लिख गए हैं :

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। 

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥ 

अफ़सोस कि नरेंद्र मोदी तुम चंदन नहीं हो लेकिन जहरीले सांपों से लिपटे हुए हो। और इन का असर भी तुम पर बहुत है। 

बार-बार लोग तुम्हें हिटलर कहते हैं। तानाशाह कहते हैं। यह कह कर तुम्हें अपमानित करते रहते हैं। और तुम इन कसाइयों के आगे हरदम अपनी गरदन पेश करते रहते हो कि नहीं-नहीं हम तो लोकतंत्र के सिपाही हैं। संविधान के आगे माथा टिकाते घूमते रहते हो। और जो संविधान का स भी नहीं जानते , जय संविधान कह कर तुम्हारी अयोध्या जला देते हैं। इस्लाम में आदमी धीरे-धीरे हलाल होता है। झटके से नहीं। जापान में इसे हाराकिरी कहते हैं। हाराकिरी आत्महत्या की एक जापानी विधि है। जिस में आदमी ख़ुद को तकलीफ़ देते हुए , ख़ुद को धीरे-धीरे काटता रहता है , कटे पर नमक भी डालता रहता है। जब तक मर नहीं जाता। तुम्हारी गरदन पर कटने के घाव के , हलाल होने के अनगिन निशान दुनिया भर को दिख रहे हैं पर तुम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास की लफ़्फ़ाजी में अंधे हो चले हो। कुछ दिखता ही नहीं तुम को। 

तुम्हें पता भी क्यों नहीं चल पाता यह ?

370 ख़त्म किया। अच्छा किया। लेकिन देश का अधिकांश पैसा आतंकवादियों को सुधारने में ढकेल दिया। कोई बात नहीं। पर जम्मू का क्या अपराध है ? इन दस बरसों में जम्मू के विकास का हक़ क्यों छीन लिया ? किसी काने आदमी की तरह एक ही राज्य को एक आंख से देखना भी गुड बात है क्या ? अच्छा जम्मू के साथ यह नाइंसाफ़ी भी एक बार क़ुबूल कर लिया। पर कश्मीर में अपना एक प्रत्याशी भी चुनाव में क्यों नहीं खड़ा किया। छप्पन इंच की छाती यहां क्यों सिकुड़ गई। किसान क़ानून बनाया। अच्छा बनाया था। कुछ खालिस्तानियों की ब्लैकमेलिंग में आ कर वह किसान क़ानून वापस ले लिया। किस भय से लिया। लालक़िला की जो बेइज्जती हुई सो अलग। दिल्ली न हो गई , हर किसी की भौजाई हो गई। जो भी चाहे जब चाहे हमलावर बन कर चढ़ाई कर दे। शाहीनबाग कर दे। दंगा कर दे। सी ए ए की बात हो और दिल्ली धू-धू कर जलने लगे। अजब मंज़र है। यह सब तुम्हारे राज में हुआ। यह कलंक है तुम्हारे माथे पर। 

कार सेवकों पर मुलायम सिंह यादव ने गोलियां चलवाईं , सरयू का पानी लाल हो गया था। उस ख़ूनी मुलायम को पद्मविभूषण देने की क्या लाचारी थी भला। कौन सी उदारता थी यह। चीन में एक कहावत है कि इतने उदार भी मत बनिए कि किसी को अपनी बीवी भी गिफ्ट कर दीजिए। अच्छा महाभ्रष्ट शरद पवार को भी पद्मविभूषण देना किस रणनीति का रण था भला। एक चुनाव जीतने के लिए एक साथ पांच-पांच भारत रत्न देना भी चुनावी बिसात पर क्यों नहीं रंग ला पाया। अच्छा आडवाणी को राष्ट्रपति नहीं बनाया , न सही , भारत रत्न इतनी देर से देने का सबब भी क्या था। कि बिचारे राष्ट्रपति भवन भी नहीं जा पाए लेने खातिर। भारत रत्न का सुख नहीं ले पाए अटल जी की तरह ही। जब वह स्वस्थ थे , तभी दे दिया होता। गुरु थे। राजनीति में आक्सीजन दिया था , तुम को। 

सुनते हैं दुनिया भर में तुम्हारी डिप्लोमेसी का डंका बजता है। देश में भी कभी बजता था। लेकिन अब देश में तो नहीं बजता। नहीं जानते हो तो , अब से जान लो। बहुत कुछ हो रहा है , जो तुम शायद नहीं जानते। भारी उथल-पुथल है देश में। गृह युद्ध के मुहाने पर बैठा है भारत। कश्मीर अभी वेंटीलेटर पर ही है। पश्चिम बंगाल , केरल और पंजाब की स्थिति कश्मीर से भी बदतर है। हर शहर में बसे मिनी पाकिस्तान को अब आरक्षण प्रेमियों का भी साथ मिल गया है। कभी लोगों को अच्छे दिन की आस दिलाने वाले नरेंद्र मोदी , भविष्य की तो हम नहीं जानते पर वर्तमान में तुम्हारे कठिन और काले दिन साफ़ दिख रहे हैं। दुर्भाग्य से देश के भी। येन केन प्रकारेण सरकार चलाने की सनक में तुम चक्की पीस रहे हो , यह बात अब दुनिया जानती है। कांग्रेसी अगर कहते हैं कि यह तुम्हारी नैतिक हार है तो ठीक ही कहते हैं। मैं होता जो तुम्हारी जगह नरेंद्र मोदी तो सरकार में नहीं , विपक्ष में बैठता। स्वाभिमान और लोकतंत्र का तकाज़ा यही था। अभी तो तुम्हारी इस दुर्दशा पर जोश मलीहाबादी का एक शेर याद आता है :

हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी 

और उन की तरफ़ ख़ुदाई है। 

सुन बे मोदी , बोल भारत माता की जय !




Sunday 30 June 2024

अराजक महावत किसी हाथी को जब मिल जाता है

दयानंद पांडेय 

कहते हैं कि विपक्ष सत्ता पर अंकुश का काम करता है। अपने सकारात्मक व्यवहार से। किसी महावत की तरह। लेकिन अठारहवीं लोकसभा को सब से ज़्यादा विध्वंसक विपक्ष मिला है। विपक्ष को बहुत गुरुर है कि राम मंदिर बनवाने का श्रेय लेने वालों को राम के प्रतीक अयोध्या , प्रयाग , चित्रकूट समेत तमाम संसदीय क्षेत्रों में बड़ी पटकनी दे दी है। संविधान बदल कर , आरक्षण ख़त्म करने का डर दिखा कर , हर महीने 8500 रुपए की लालच दिखा कर झंडा ऊंचा करने वाला विपक्ष नहीं जानता कि कोई अराजक महावत किसी हाथी को जब मिल जाता है तब हाथी बिना चूके महावत का काम तमाम कर देता है , क्षण भर में। आह भी भरने का समय नहीं देता , महावत को। 

ऐसा अनेक बार देखा और सुना गया है। 

यक़ीन न हो तो लोकसभा अध्यक्ष के हालिया चुनाव में यह घटना अभी-अभी गुज़री है। याद कर लें। पूर्व में नज़ीर और भी कई हैं। 2014 में भी , 2019 में भी। 2024 के इस सत्र में ऐसी घटनाएं और भी गुज़रने ही वाली हैं। कि आह भी लेने का अवकाश नहीं मिलने वाला। फिर जब सत्ता की जगह जब प्रतिपक्ष ही मदांध हो जाए तो लोकतंत्र का भगवान ही मालिक है। तब और जब समूचा विपक्ष किसी चुने हुए प्रधानमंत्री को निरंतर तानाशाह घोषित करते हुए , अघोषित आपातकाल की घोषणा करने का अभ्यस्त हो चला हो। जीतने पर भी नैतिक हार बताने की बीमारी हो गई हो जिस विपक्ष को , उस से रचनात्मक विपक्ष की उम्मीद करना बैल से दूध दूहने की कल्पना जैसा है। क्यों कि ऐसा नकारात्मक नेता प्रतिपक्ष किसी लोकसभा को कभी नहीं मिला। हिंसक और अराजक बयान ही जिस की आत्मा हो , आत्ममुग्धता ही जिस का सरोकार हो छल-कपट ही जिस की खेती हो , उस नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति में लोकसभा कभी किसी भी सत्र में निरापद ढंग से चल भी पाएगी , मुझे शक़ है। 

इस लिए भी कि नेता प्रतिपक्ष को संसदीय अनुभव चाहे जितना हो , संसदीय परंपरा और मूल्यों का ज्ञान शून्य है। हिंसक बयान और अराजकता ही नेता प्रतिपक्ष की बड़ी पूंजी है। अराजकता ही उन की ताक़त है। तब जब कि नेता प्रतिपक्ष को शैडो प्राइम मिनिस्टर माना जाता है। लेकिन वर्तमान नेता प्रतिपक्ष प्राइम मिनिस्टर के पीछे-पीछे चलते हुए शैडो तो बन सकते हैं पर शैडो प्राइम मिनिस्टर कैसे बनेंगे , यह यक्ष प्रश्न है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर नेता प्रतिपक्ष ने जो रुख़ अपना कर अपने संसदीय ज्ञान का जो परिचय दिया है , वह विलक्षण है। भूतो न भविष्यति !

नेता प्रतिपक्ष का एकमात्र मक़सद है कि येन-केन-प्रकारेण लोकसभा को सुचारु रूप से चलने नहीं देना है। कोई बिल पास नहीं होने देना है। जिस भी क़ीमत पर हो अराजकता की चादर ओढ़ कर तानाशाह , तानाशाह का उच्चारण करते रहना है। नैतिक हार का उदघोष करते रहना है। मछली की आंख की तरह लक्ष्य साफ़ है कि जैसे भी हो सरकार गिर जाए। और कि बिना चुनाव दूसरी सरकार बने और नेता प्रतिपक्ष प्रधान मंत्री बन जाएं। नीतीश और नायडू किसी उम्मीद , किसी छींके की तरह हैं। छींका टूटे और बिल्ली का भाग्य खुल जाए , मुहावरा ही नहीं , पुरानी आसानी भी है। 

छींका टूटता भी है और नहीं भी। क़िस्मत-क़िस्मत की बात है। राजनीति की नहीं। 

Monday 10 June 2024

7 वर्ष से लगातार मुख्य मंत्री बने रह कर योगी ने एक बड़ा रिकार्ड बनाया

 दयानंद पांडेय 

दिल्ली का जश्न हो गया , अब एक जश्न लखनऊ में भी होना चाहिए। क्यों कि उत्तर प्रदेश में 7 वर्ष से लगातार मुख्य मंत्री बने रह कर योगी आदित्य नाथ ने एक बड़ा रिकार्ड बना दिया है। इस से ज़्यादा समय तक उत्तर प्रदेश में लगातार अभी तक कोई और मुख्य मंत्री नहीं रह पाया है। जो सूरतेहाल है वह बताता है कि योगी इस रिकार्ड को तोड़ते हुए दस साल लगातार मुख्य मंत्री बने रहने का रिकार्ड भी बना सकते हैं। या फिर मोदी को फॉलो करते हुए तीसरे कार्यकाल में भी मुख्य मंत्री बने रह सकते हैं। जो भी हो योगी के इस रिकार्ड की भी चर्चा होनी चाहिए। तब और जब नेहरू के बाद मोदी के तीसरी बार लगातार प्रधान मंत्री बनने की बड़ी चर्चा है। योगी  ने लगातार सर्वाधिक  7 वर्ष, 83 दिन उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बने रहने का रिकार्ड बना लिया है। 19 मार्च 2017 से 25 मार्च 2022  तक बतौर विधान परिषद सदस्य और फिर  गोरखपुर शहर से बतौर विधायक 25 मार्च 2022 से लगातार मुख्य मंत्री बने हुए हैं। 

सवाल है कि आगे भी बने रहेंगे योगी ?

यह सवाल इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में तमाम राजनीतिज्ञों की तरह योगी अभिनेता नहीं हैं। उन के जो भीतर है , वही बाहर है। वह कुछ छुपाते नहीं। बेधड़क बोल देते हैं। फ़िल्टर नहीं रखते। कि क्या कहना है , क्या नहीं कहना है। वह जानते हैं कि जो है , वही कहना है। योगी मुखौटा भी नहीं पहनते। अभी लोकसभा के सेंट्रल हाल में जब नरेंद्र मोदी को एन डी ए का नेता चुना गया तब लगभग सभी के चेहरे पर चमक थी। दर्प था। सभी मुस्कुराते हुए , सीना ताने हुए बैठे थे। इकलौते योगी ही थे जिन का चेहरा कुम्हलाया हुआ था। अवसाद था उत्तर प्रदेश में अपेक्षित सीट नहीं ला पाने का। चेहरे पर चमक का गुलाल नहीं , सीटें गंवाने का मलाल था। चेहरा बुझा-बुझा सा। अंग-अंग कुम्हलाया हुआ था। अभिनय नहीं , आह थी। चुनाव में झुलस जाने की आंच में चेहरा तप रहा था। यह किसी योगी से ही संभव था। ऐसे जैसे तमाम अभिनेताओं के बीच एक आदमी बैठा था। ऐसे जैसे आग में सोना तप रहा था। 

राजनीति में दुःख का ऐसा कोलाज , ऐसा कोई कोना अब दुर्लभ है। बहुत दुर्लभ। 

गौरतलब है कि बीते लोकसभा चुनाव में मोदी और योगी की जोड़ी बड़ी मशहूर रही है। उत्तर प्रदेश में हिट नहीं हुई यह अलग बात है। तो भी योगी ने उत्तर प्रदेश में क़ानून का राज स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। माफियाओं का अहंकार , गुरुर और उन का जाल तोड़ा है। अयोध्या , काशी की गरिमा को गर्व और गुमान दिया है। उत्तर प्रदेश में विकास की गंगा बहाई है। 

इन सारी बातों के आलोक में राजनीति के इस रंगमंच पर उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्य मंत्री योगी द्वारा बनाए गए इस लगातार 7 वर्ष के रिकार्ड का ज़िक्र किसी इत्र की तरह होना चाहिए। इस रिकार्ड की सुगंध दूर-दूर तक जानी चाहिए। 

आइए जायज़ा लेते हैं उत्तर प्रदेश के अन्य मुख्य मंत्रियों के कार्यकाल और उन के रिकार्ड का। योगी के पहले अधिकतम दिन वाला संपूर्णानंद के नाम 5 वर्ष 345 दिन उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बनने का रिकार्ड दर्ज है। वाराणसी से विधायक रहे संपूर्णानंद 10 अप्रैल 1957 से 7 दिसंबर 1960 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे थे। तीसरे नंबर पर अखिलेश यादव का नाम दर्ज है जो 15 मार्च 2012 से 19 मार्च 2017 तक यानी 5 वर्ष, 4 दिन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे बतौर विधान परिषद सदस्य। संपूर्णानंद से पहले यह रिकार्ड गोविंद बल्लभ पंत के नाम दर्ज है। बरेली से विधायक रहे गोविंद वल्लभ पंत पहले 26 जनवरी 1950 से 20 मई 1952 और फिर 20 मई 1952 से 28 दिसंबर 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे थे। इस तरह कुल 4 वर्ष, 336 दिन गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के लगातार मुख्य मंत्री रहे थे। 13 मई 2007 से 15 मार्च 2012 तक बतौर विधान परिषद सदस्य मायावती भी 4 वर्ष, 307 दिन मुख्य मंत्री रहीं। इस के पहले 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक मायावती 1 वर्ष, 118 दिन मुख्य मंत्री रही थीं। इस के पहले 1995 में 137 दिन और 1997 में 184 दिन मायावती मुख्य मंत्री रहीं। 

सब से कम 20 दिन मुख्य मंत्री रहने का रिकार्ड सी बी गुप्ता के नाम दर्ज है। 14 मार्च 1967से 3 अप्रैल 1967 तक। इस के पहले सी बी गुप्ता 2 वर्ष, 299 दिन तक मुख्य मंत्री रह चुके थे। 7 दिसंबर 1960 से 14 मार्च 1962 और 14 मार्च 1962  से 2 अक्टूबर 1963 तक। 26 फरवरी 1969 से 18 फरवरी 1970 तक 357 दिन तक भी सी बी गुप्ता मुख्य मंत्री रहे। सुचेता कृपलानी 2 अक्टूबर 1963 से 14 मार्च 1967 तक यानी 3 साल, 163 दिन मुख्य मंत्री रहीं।चरण सिंह एक बार 328 दिन और दूसरी बार 225 दिन मुख्य मंत्री रहे। 

कमलापति त्रिपाठी 2 वर्ष 70 दिन और हेमवती नंदन बहुगुणा 2 वर्ष 22 दिन मुख्य मंत्री रहे। नारायण दत्त तिवारी तीन बार मुख्य मंत्री रहे और एक वर्ष कुछ दिन पूरा होते न होते हटा दिए जाते रहे। राम नरेश यादव 1 वर्ष 250 दिन , बनारसी दास 354 दिन और विश्वनाथ प्रताप सिंह 2 वर्ष 40 दिन मुख्य मंत्री रहे। श्रीपति मिश्र 2 वर्ष 15 दिन और वीर बहादुर सिंह 2 वर्ष 275 दिन मुख्य मंत्री रहे। मुलायम सिंह यादव तीन बार मुख्य मंत्री रहे। दो बार एक साल कुछ दिन तो तीसरी बार 3 वर्ष 257 दिन। 

कल्याण सिंह भी दो बार मुख्य मंत्री रहे हैं। अतरौली से विधायक रह कर 24 जून 1991 से 6 दिसंबर 1992 तक एक वर्ष 165 दिन और दूसरी बार 21 सितम्बर 1997 से 12 नवंबर 1999 तक 2 वर्ष, 52 दिन जब कि रामप्रकाश गुप्त 12 नवंबर 1999 से 28 अक्टूबर 2000 351 दिन मुख्य मंत्री रहे। राजनाथ सिंह 28 अक्टूबर 2000 से 8 मार्च 2002 तक यानी 1 वर्ष, 131 दिन उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे। कहने को कुछ घंटे जगदंबिका पाल ने भी मुख्य मंत्री पद की शपथ ली थी। वह अर्जुन सिंह की साज़िश थी कल्याण सिंह को हटाने की। जिस में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने साथ दिया। लेकिन ज्यों जगदंबिका पाल ने शपथ ली , त्यों हाईकोर्ट ने जगदंबिका पाल की शपथ को अवैध घोषित कर दिया , आधी रात। इसी लिए किसी भी अभिलेख या आदेश में बतौर मुख्य मंत्री जगदंबिका पाल का नाम दर्ज नहीं है। 

प्राण जाए पर वचन न जाए फ़िल्म में एस एच बिहारी का लिखा एक गीत है जिसे आशा भोसले ने ओ पी नैय्यर के संगीत में गया है : चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया ! उत्तर प्रदेश के तमाम मुख्य मंत्री या तो केंद्र द्वारा कठपुतली बनाने , बर्खास्त होने या फिर परिस्थितिवश , साझा सरकार होने के कारण अपना कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर सके थे। इंदिरा गांधी , राजीव गांधी ने कांग्रेसी मुख्य मंत्रियों को भी ताश की तरह फेंटा ही , अटल बिहारी वाजपेयी ने  भी कल्याण सिंह को राजनाथ सिंह की महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ा दिया। कल्याण सिंह को हटा कर पहले रामप्रकाश गुप्ता को मुख्य मंत्री बनाया फिर अंतत : राजनाथ सिंह को मुख्य मंत्री बना दिया। कल्याण सिंह को चैन से नहीं रहने दिया। कई बार योगी के चैन में भी खलल पड़ते देखा गया है। वह तो योगी हैं कि सारी बाधाओं को जाग मछेंदर , गोरख आया के बल पर सारी बलाएं टाल देते रहे हैं। देखना दिलचस्प होगा कि नरेंद्र मोदी अपने रिकार्ड के साथ योगी के रिकार्ड को भी बनते रहने देते हैं या फिर अपने पूर्ववर्तियों की तरह योगी को यह गाना गाना देने के लिए मज़बूर कर देते हैं : चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया !



Friday 7 June 2024

भाजपा की अयोध्या में लगी आग कैसे बुझेगी !

दयानंद पांडेय 

भाजपा की अयोध्या में लगी आग कैसे बुझेगी ! समय बता रहा है कि त्रेता की इस आधुनिक और चुनावी अयोध्या में लगी आग शायद द्वापर का अर्जुन ही बुझाए। ऐसे जैसे कभी शर-शैया पर लेटे गंगा पुत्र भीष्म की प्यास तीर मार कर अर्जुन ने ही बुझाई थी। दरअसल आज सेंट्रल हाल से एक बड़ी ख़बर यह मिली है कि अठारहवीं लोकसभा को प्रधानमंत्री के रूप में अभिमन्यु नहीं अर्जुन मिला है। कौरवों के सारे चक्रव्यूह तोड़ कर लोकतंत्र में गहरी आस्था जगाने के लिए। देश के चौतरफा विकास ख़ातिर यह अर्जुन कुछ भी करने के लिए बेक़रार दिखता है। वह अर्जुन जो कृष्ण नीति से चलता है। तीसरी अर्थव्यवस्था जैसी बहुत बड़े-बड़े काम करने का अब भी दम भरता है। मोदी ने अपने भाषण में इंडिया गठबंधन पर जैसे मिसाइल पर मिसाइल दागे। तेजाबी मिसाइल। आंकड़ों के आइने में कांग्रेस को उतार कर किसी धोबी की तरह पीट-पीट कर धोया। ऐसे जैसे सर्जिकल स्ट्राइक हो। कांग्रेस अभी तक निरुत्तर है। सहयोगी दलों को एड्रेस करते हुए मंत्री आदि मामलों में भी न झुकने का संकेत देते हुए मोदी ने स्पष्ट बता दिया है कि कामकाज और सरकार तो वह अपनी शर्तों पर ही चलाएंगे। 

पर क्या सचमुच ? 

लगता तो है। क्यों कि जो धुंध कल तक एन डी ए के सहयोगी दलों की तरफ से छाई थी , तात्कालिक रूप से यह धुंध अब छंटी हुई दिखती है। और तो और इंडिया गठबंधन में रहते हुए भाजपा और नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत में लंगड़ी मारने वाले नीतीश कुमार ने मंच पर अपने उदबोधन के बाद अनायास और अचानक नरेंद्र मोदी के पांव छू कर न सिर्फ़ इस लंगड़ी मारने का प्रायश्चित किया है बल्कि यह भी सुनिश्चित  करने की कोशिश की है कि अब वह और पलटी नहीं मारेंगे। अलग बात है कि लोग भूल गए हैं कि नीतीश पहले भी मोदी को बैठे-बैठे प्रणाम कर चुके हैं। आज खड़े हो कर कर दिया। भावुकता में , सम्मान में हो जाता है ऐसा भी। इस बात को तिल का ताड़ बनाना ठीक नहीं। मोदी के पांव तो आज चिराग़ पासवान ने भी छुए। और भी कुछ लोगों ने। सब के सब विनयवत रहे। यहां तक कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तो आज मोदी को दही-चीनी खिलाया अपने हाथ से राष्ट्रपति भवन में। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद भी मोदी को मिठाई खिलाते दिखे आज। 

बहरहाल , आप पूछ सकते हैं कि नीतीश कुमार ने भाजपा की हाहाकारी जीत में लंगड़ी कैसे मारी है ? 

याद कीजिए जातीय जनगणना की क़वायद। शुरुआत नीतीश कुमार ने ही बिहार से की थी। बिहार विधान सभा से इस जातीय जनगणना का प्रस्ताव पास करवाया। जातीय जनगणना करवाई। आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं किए। पर इसी बिना पर बिहार में 75 प्रतिशत आरक्षण भी लागू कर दिया। इसी दौरान विधान सभा में लड़का-लड़की के शादी के बाद वाला अश्लील बयान भी नीतीश का आया था। दरअसल यह जातीय जनगणना का दांव नीतीश कुमार ने बहुत सोच समझ कर चला था। भाजपा ने जो बड़ी मेहनत से मंडल-कमंडल का वोट बैंक 2014 और 2019 में एक किया था और चौतरफा लाभ लिया था। 303 सीट इसी बल पर लाई थी भाजपा। मंडल-कमंडल का वोट एक करना मतलब अगड़ा-पिछड़ा वोट बैंक एक कर हिंदू वोट बैंक खड़ा करना। इसी हिंदू वोट बैंक के चक्कर में मुस्लिम वोट बैंक ध्वस्त हो गया था। 

तो जातीय जनगणना एक ऐसा दांव था जिस ने अगड़े-पिछड़े वोट बैंक को तितर-बितर कर दिया। आप याद कीजिए अखिलेश यादव और कांग्रेस पोषित यू ट्यूबर अजित अंजुम को। जो बीते विधान सभा चुनाव में अकसर गांव-कस्बे में कुछ औरतों को घेरते और पूछते रहते थे कि किस जाति से हो ? संयोग से वह औरतें कहतीं हिंदू। बहुत कुरेदने पर भी वह औरतें जाति नहीं बताती थीं। अजित अंजुम निराश हो जाते थे। एक समय रवीश कुमार भी कौन जाति हो का सवाल लिए घूमते रहते थे। तो रणनीति बनी जातीय जनगणना की। प्रयोगशाला बना बिहार। जो पहले ही से जातीय दुर्गंध से बदबू मारता है। 

लालू , नीतीश की बिहार की सारी राजनीति ही जातीय नफ़रत और घृणा की ताक़त पर है। नक्सल कांग्रेसी बन चुके राहुल और यादवी राजनीति के सूरमा अखिलेश यादव ने इस लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना का बिगुल बजा दिया। आंख में धूल झोंकने के लिए नाम दिया पी डी ए। अपने को चाणक्य बताने वाले , सोशल इंजीनियरिंग के अलंबरदार अमित शाह पी डी ए के जाल में कब फंस गए , जान ही नहीं पाए। गरीबों के लिए लोक कल्याणकारी योजना चलाने वाली केंद्र और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने इस जातीय जनगणना के खेल को भी समय रहते समझा नहीं। मंडल-कमंडल के वोट इस जातीय जनगणना के व्यूह में कब तार-तार हो गए , चाणक्य लोग जान ही नहीं पाए। अयोध्या , चित्रकूट हाथ से निकल गया। अमेठी , रायबरेली , सुलतानपुर समेत आधा उत्तर प्रदेश निकल गया। बनारस जैसे-तैसे जाते-जाते बचा है। 

जातीय जनगणना की हवा में आग यह लगाई गई कि भाजपा संविधान बदल कर आरक्षण ख़त्म कर देगी।  और उत्तर प्रदेश की ज़्यादातर सीटें निकल गईं भाजपा के हाथ से तो यह वही रसायन है। वही केमेस्ट्री है। उत्तर प्रदेश ही नहीं , बिहार , महाराष्ट्र , बंगाल हर कहीं यह केमेस्ट्री काम आई और 400 की लालसा लिए भाजपा और सहयोगी दल औंधे मुंह गिरे। मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , हिमाचल जैसे प्रदेशों में जाने कैसे मंडल-कमंडल साथ रह गए तो भाजपा की जैसे-तैसे लाज बच गई। नीतीश कुमार एन डी ए में न आए होते तो भाजपा का जाने क्या हाल हुआ होता। याद कीजिए इस बाबत अमित शाह का एक डाक्टर्ड वीडियो भी कांग्रेसियों ने जारी किया था। भाजपा ने क़ानूनी एफ आई आर , कुछ गिरफ्तारी आदि से इतिश्री कर ली। लेकिन आरक्षण ख़त्म करने की आग सुलगती रह गई , भीतर-भीतर। भाजपा ज़मीन पर गई नहीं। गांव-गांव यह वीडियो फ़ैल चुका था। एल आई यू भी सोई रही। मीडिया भी। असल में आरक्षण ऐसी बीमारी है जिस के आगे राम , कृष्ण , शंकर सब फ़ालतू हैं। राम नहीं आरक्षण चाहिए। कान नहीं , कौआ चाहिए। जैसे मुसलमान को देश नहीं इस्लाम चाहिए , दलित और पिछड़ों को राम , कृष्ण , शंकर नहीं , आरक्षण चाहिए। बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि अब आप मुफ्त अनाज रोकने की हैसियत में नहीं हैं। गैस भी आप को देना है , शौचालय भी और पक्का मकान भी। एक बार रोक कर देखिए , आग लग जाएगी देश में। 

क्यों कि जैसे कभी  नक्सली वामपंथी होते थे , अब नक्सल कांग्रेसी हो चले हैं। समूची कांग्रेस की जुबान अब नक्सली हो गई है। जुबान ही नहीं , सारी गतिविधियां भी। राहुल ही नहीं , सारे प्रवक्ता भी। आप अवसर तो दीजिए। यह दोनों मिल कर आग लगाने को तैयार बैठे हैं। राहुल की कुतर्की आक्रामक शैली , और गाली-गलौज की भाषा , कांग्रेस की भाषा नहीं है। नक्सलियों की भाषा है। कांग्रेसियों को बड़ी शिकायत रहती है कि नरेंद्र मोदी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते। हां , राहुल गांधी जब तब प्रेस कांफ्रेंस करते रहते हैं। किसी असहमत प्रश्न पर फौरन भड़कते हैं। कहते हैं यह तो भाजपा का सवाल है। और उस रिपोर्टर पर आक्रामक हो जाते हैं। ताज़ा मसला आज तक की मौसमी सिंह का है। मौसमी सिंह राहुल गांधी की प्रिय रिपोर्टर रही हैं। सालों से। कुछ पत्रकार उन्हें कांग्रेस की गोद में बैठी पत्रकार का तंज भी कसते रहे हैं , बतर्ज़ गोदी मीडिया। 

ख़ैर जातीय जनगणना ने भाजपा की अयोध्या में जो आग लगाई है। अगर इस आग को समय रहते नहीं बुझाया भाजपा ने तो 2027 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में साफ़ हो जाएगी। 

जो भी हो आज की तारीख़ में सारा राजनीतिक मंज़र मोदी के पक्ष में है। नीतीश ही नहीं , नायडू समेत सभी सहयोगी दल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक सुर से साथ खड़े दीखते हैं। समर्पित भाव में। नीतीश ने अपने उदबोधन में यहां तक कह दिया कि अगली बार जब आइएगा तो जो कुछ लोग इधर-उधर जीत गए हैं , वह सब भी हार जाएंगे। नीतीश का इशारा तेजस्वी की तरफ था। नीतीश तो और दो क़दम आगे जा कर बोल रहे हैं कि जल्दी काम शुरू कीजिए। यानी तेजस्वी को जेल भेजिए। 

नीतीश कुमार का सहसा नरेंद्र मोदी का पांव छूना बताता है कि लालू और तेजस्वी से बिहार में वह बहुत आजिज हैं। नरेंद्र मोदी की राजनीतिक छांव की उन्हें बहुत ज़रूरत है। मोदी को नीतीश की ज़रूरत कम , नीतीश को मोदी की ज़रूरत ज़्यादा है। जो भी हो नीतीश और नायडू समेत सभी सहयोगी दल अब इंडिया गठबंधन के खिलाफ न सिर्फ एकजुट हैं बल्कि फ़ायर के मूड में हैं। देखिए कि यह मंज़र कब तक बना रहता है। 

क्यों कि समय तो सर्वदा बदलता रहता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता। सब कुछ बदलता रहता है। पर राजनीति इतनी तेज़ बदलती है कि कई बार लगने लगता है कि घड़ी की सूई कहीं पीछे तो नहीं रह गई इस राजनीति से। राजनीति और वह भी नरेंद्र मोदी की राजनीति। मोदी निरंतर कपड़े बदलते रहते हैं। एक-एक दिन में आधा दर्जन बार कपड़े बदल लेते हैं। एक समय मनमोहन सरकार में गृह मंत्री शिवराज पाटिल भी निरंतर कपड़े बदलने के लिए जाने गए थे। पर मोदी उन से बहुत आगे हैं। फिर वह कपड़े से ज़्यादा अपना गोल बदलते रहते हैं। 

एक पुराना क़िस्सा याद आता है। 

एक कुम्हार अपने चाक पर घड़ा बना रहा था। अचानक मिट्टी बोली , कुम्हार , कुम्हार यह क्या कर रहे हो ? कुम्हार हैरत में पड़ गया। बोला , माफ़ करना हमारा ध्यान बदल गया था। मिट्टी बोली , तुम्हारा तो सिर्फ़ ध्यान बदल गया था , हमारी तो दुनिया बदल गई। घड़ा बनना था , सुराही बन गई। 

राजनीति की दुनिया भी कई बार ऐसे ही बदल जाती है। मतदाताओं का ज़रा सा ध्यान बदलते ही  देश घड़े की जगह सुराही या सुराही की जगह घड़ा बन जाता है। क्यों कि लोगों को आरक्षण और इस्लाम चाहिए होता है। जाति और भ्रष्टाचार चाहिए होता है। देश नहीं। देश का विकास नहीं। निजी स्वार्थ सर्वोपरि है मतदाता का भी। देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति का यह अर्जुन भाजपा की अयोध्या में लगी आग बुझा पाता है कि ख़ुद इस में झुलस जाता है। 


Thursday 6 June 2024

अब गांव भर की भौजाई मोदी

 दयानंद पांडेय 

भारतीय राजनीति के महाबली नरेंद्र दामोदर दास ने अभी शपथ भी नहीं ली है लेकिन उन पर चढ़ाई शुरू हो गई है। दुहरी-तिहरी चढ़ाई। क्या सहयोगी , क्या विपक्ष। हर कोई चढ़ाई पर आमादा है। आंख दिखा रहा है। आंख मिला रहा है। नरेंद्र मोदी की हालत गांव के उस ग़रीब की लुगाई जैसी हो गई है , जो अब गांव भर की भौजाई है। भौजाई की इस दुर्गति को देखते हुए एक सवाल पूछने का मन हो रहा है कि नरेंद्र मोदी की नई सरकार की आयु कितनी है ? पूछना इस लिए लाजिम है कि दस बरस बाद सही भारत को मिलीजुली सरकार फिर मिल गई है। विशुद्ध मिलीजुली सरकार। गो कि हमारे मित्र और भोजपुरी के अमर गायक बालेश्वर एक समय गाते थे ‘दुश्मन मिलै सबेरे लेकिन मतलबी यार न मिले / हिटलरशाही मिले मगर मिली-जुली सरकार न मिले / मरदा एक ही मिलै हिजड़ा कई हजार न मिलै।’ यहीं दुष्यंत कुमार का एक शेर याद आता है :

कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये

कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

तो चार सौ सीट का सपना था। लक्ष्य था। कहां-कहां , कब और कैसे यह टूटा। राजनीतिक पंडित लोग लोग गुणा-भाग में लगे हुए हैं। पक्ष भी विपक्ष भी। घमासान मचा हुआ है। विपक्ष का भी सपना टूटा है। दुष्यंत फिर याद आ गए हैं : शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। लेकिन बुनियाद तो हिली नहीं। लक्ष्य तो नरेंद्र मोदी को हटाना था। हटा नहीं मोदी। चाहे जैसे भी हो नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधान मंत्री बन गए हैं। मनो बुनियाद बच गई है। 

सांप-सीढ़ी का खेल बन कर रह गई है राजनीति। राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। पर भाजपा लोकसभा के इस सत्र में बहुमत के 272 के जादुई आंकड़े को अब किसी सूरत नहीं छू सकती। छोटी पार्टियां भाजपा में विलय करने से रहीं। हां , नीतीश और नायडू की ब्लैकमेलिंग का घनत्व कम करने के कुछ उपाय अवश्य संभव हैं। होंगे भी देर-सवेर। जैसे कि इंडिया गठबंधन के कुछ धड़ों को तोड़फोड़ कर एन डी ए परिवार को बढ़ा कर बड़ा करना। लेकिन यह भी टेम्परेरी इंतज़ाम है। 272 का जादुई आंकड़ा न होने से बड़े-बड़े काम का जो वादा , डंका बजा कर महाबली कर चुके हैं , उन का क्या होगा। समय-बेसमय चौआ , छक्का मारने की जो आदत है , जो धुन और सनक है , उस का क्या होगा। क्या होगा उन तमाम सुधारों का , विकास कार्यों का , इंफ्रास्ट्रक्चर का , जो अपेक्षित हैं। एन आर सी , जनसंख्या नियंत्रण , मुसलमानों का आरक्षण ख़त्म करने का वायदा क्या पूरा होगा ? वन नेशन , वन इलेक्शन का क्या होगा ? 

अभी और अभी तो मदारी की रस्सी बंध चुकी है महाबली नरेंद्र दामोदर दास मोदी के लिए। देखना दिलचस्प होगा कि महाबली मदारी की भूमिका में इस रस्सी पर कैसे और कितनी देर चल सकते हैं। धराशाई होते हैं या अटल बिहारी वाजपेयी की तरह संतुलन बना कर पांच बरस निकाल लेते हैं। क्यों कि सरकार अभी बनी नहीं और नीतीश कुमार के के सी त्यागी अग्निवीर का त्याग खुल कर मांग रहे हैं। इशारों में कई और सारी लगाम लगा रहे हैं। विशेष दर्जा बिहार को भी चाहिए और आंध्र को भी। 

यह लगाम तोड़ पाएंगे , महाबली ? 

तिस पर 12 सांसद पर आधा दर्जन मंत्री पद की फरमाइश। उस में भी रेल सहित तमाम मलाईदार विभाग। उधर चंद्र बाबू , चंद्र खिलौना लैहों पर आमादा हैं। 16 सांसद पर आधा दर्जन मलाईदार विभाग वाले मंत्री पद और लोकसभा अध्यक्ष के पद की फरमाइश। जीतन राम माझी , अठावले जैसे एक-एक सीट वाले भी हौसला बांधे हुए हैं। अगर यह ख़बरें सच हैं तो महाबली का बल तो सारा छिन जाएगा। गृह , वित्त , रक्षा , कृषि ,परिवहन , रेल आदि तो महाबली किसी सहयोगी को देने से रहे। न लोकसभा अध्यक्ष पद। तमाम सुधार अपेक्षित हैं इन हलकों में। फिर इन सहयोगियों पर सारे सपने न्यौछावर हो जाएंगे तो मोदी के अपने भाजपाई सिपहसालार क्या करेंगे ? लोकसभा का सत्र शुरू नहीं हुआ है , कांग्रेस के मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने शेयर की उछल-कूद पर जे पी सी की फरमाइश कर दी है। मतलब महफ़िल सजी नहीं और मुजरे पर मुजरे की फरमाइश शुरू ! 

सूर्योदय हुआ नहीं , सुबह हुई नहीं कि गरीब की लुगाई यानी गांव भर की भौजाई की सांसत शुरू। 

गांव में मैं ने देखा है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद गरीब की लुगाई यानी गांव भर की भौजाई भी लेकिन सम्मान सहित जीने की जुगत लगा लेती है। गरीबी में अपना आन और अना बचा कर रख लेती है। सारे शोहदों की सनक शांति से उतार कर अपना शील बचा लेती है। फिर यह महाबली नरेंद्र दामोदर दास मोदी तो इवेंट मैनेजर ठहरे। डिप्लोमेट ठहरे। अहमदाबादी व्यापारी ठहरे। 

कांग्रेस के मोहम्मद बिन तुग़लक़ से तो निपटना आसान है। वह तो बैटरी वाला खिलौना हैं। जितनी चाभी भरी वामियों ने उतना चले खिलौना वाली बात है। लेकिन यह सुशासन बाबू और नायडू बाबू की ब्लैकमेलिंग ? यह तो मुंबई में मुसलसल बरसात की तरह जारी रहने वाली है। यह फरमाइश पूरी तो वह फरमाइश। 272 का जादुई आंकड़ा होता तो यही लोग समर्पित सहयोगी होते। पर जैसे रखैलें होती हैं न , न जीने देती हैं , न मरने देती हैं। सुकून भर सांस नहीं लेने देतीं। बहुमत न होने पर सहयोगी पार्टियां सत्ता के सरदार के साथ वही सुलूक़ करने की सनक पर सवार रहती हैं। एक समय नरसिंहा राव तो बिना किसी सहयोगी दल के अल्पमत की सरकार बड़े ठाट से पांच साल चला ले गए थे। लेकिन चरण सिंह , अटल बिहारी वाजपेयी , विश्वनाथ प्रताप सिंह , चंद्रशेखर , देवगौड़ा , गुजराल , मनमोहन सिंह हर किसी सरकार की यही कहानी रही है। सहयोगी डिक्टेट करते रहे। पैरों में बेड़ियां डाले रहते। 370 , राम मंदिर आदि तमाम सवाल पर अटल बिहारी वाजपेयी तो अकसर लाचार हो कर कहते रहते थे कि हमारी बहुमत की सरकार नहीं है , मिलीजुली सरकार है , क्या करें ! 

मनमोहन सिंह सरकार के सहयोगी दलों ने तो जम कर भ्रष्टाचार और अनाचार किए। पर मनमोहन सिंह तो मूदें आँखि कतहुँ कोउ नाहीं। में ही दस बरस बिता ले गए। शेष लोग भी थोड़ा-थोड़ा। मनमोहन सिंह के लिए तो एक बड़ी आफत सोनिया गांधी भी थीं। सुपर प्राइम मिनिस्टर थीं। कोई राष्ट्राध्यक्ष आए तो सोनिया गांधी ही आगे बढ़ कर हाथ मिलाती थीं। स्वागत करती थीं। मनमोहन सिंह निठल्लों की तरह कठपुतली बने सोनिया गांधी के पीछे खड़े रहते थे। लोग मजा लेते हुए कहते फिरते थे कि मनमोहन सरकार इतनी अमीर सरकार है कि हाथ मिलाने के लिए भी एक रख रखा है। हां , देवगौड़ा ज़रूर एक बार जब बहुत परेशान हुए लालू प्रसाद यादव जैसे सहयोगी की ब्लैकमेलिंग से तो चारा घोटाले में लालू को बांध कर दुरुस्त कर दिया। सी बी आई इंक्वायरी करवा कर उन्हें रगड़ दिया। लालू अब इसी चारा घोटाले में बाक़ायदा सज़ायाफ्ता हैं। भूसी छूट गई है लालू प्रसाद यादव की। बीमारी के बहाने जेल से बाहर हैं। पर कब तक ? 

नीतीश कुमार पर तो कोई कुछ नहीं कर सकता। जातीय राजनीति और पलटी वह चाहे जितनी मारें , जैसे और जब मारें , भ्रष्टाचार का कोई दाग़ , कोई छींटा उन पर नहीं है। नायडू पर जांच की तलवार ज़रूर है। 

कई सारी कहानियां , कई सारे दृष्टांत हैं मिलीजुली सरकारों के। बीते दस बरस नरेंद्र मोदी ने भी मिलीजुली सरकार चलाई है। पर भाजपा अकेले स्पष्ट बहुमत में थी सो मोदी महाबली बन कर उपस्थित हुए। पर अब महाबली के पंख कट गए हैं। गगन को गाना कठिन हो गया है। 32 सीट कम पा कर ग़रीब की लुगाई बन गांव भर की भौजाई बने नरेंद्र दामोदर दास मोदी की यह कड़ी परीक्षा की घड़ी है। उन की तानाशाह की छवि अब चूर-चूर है। यह वही आदमी है जो एक सांस में किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित सारे मंत्री बदल देता रहा है और पार्टी में कोई चूं नहीं बोल पाता था। समूचा प्रदेश जीत कर आए लोगों को घर बैठा देता था। केंद्र में , प्रदेश में ताश की तरह मंत्रिमंडल फेट देता था। अमरीका को चिढ़ा कर रूस से तेल ले लेता रहा है। अमरीका और चीन जैसे महाबलियों को पानी पिलाने वाला महाबली , इजराइल और फिलिस्तीन को एक साथ चाहने वाला मोदी , पाकिस्तान को घुटने के बल खड़ा कर कटोरा थमा देने वाले विश्व नेता को घर में ही घात मार कर लोगों ने रगड़ दिया है। कंबल ओढ़ा कर। 

अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करने वाला मोदी अयोध्या में ही मात खा गया है। देश में विकास की चहुंमुखी चांदनी खिलाने वाला , गरीबों के लिए बेशुमार कल्याणकारी योजनाएं फलीभूत करने वाला मोदी अब ख़ुद बहुत ग़रीब हो गया है। इन गरीबों का ही श्राप लग गया है। काशी में हज़ारो करोड़ की विकास योजना लाने वाला मोदी ख़ुद हारते-हारते बमुश्किल बचा है। ऐसे में क़ायदे से झोला उठा कर चल देना चाहिए था। अपमान का यह घूंट पीने से बेहतर था झोला उठा कर चल देना। जाने क्यों सहयोगी दलों का विष पीने को आतुर है यह महाबली। लगता है देश सेवा और देश को दुनिया के नक्शे में नंबर वन बनाने का नशा टूटा नहीं है अभी। बहुत मुमकिन है जल्दी है टूटे। अपमान कथा अभी शायद पूरी नहीं हुई है। हो सकता है जल्दी ही पूरी हो। क्यों कि इस देश के चुनाव के चक्के को विकास के आनबान शान की बयार नहीं , जाति की धरती , आरक्षण की हवा और मुसलमान का आसमान चाहिए। 


Tuesday 4 June 2024

जिस की पताका ऊपर फहराई

दयानंद पांडेय 


नरेंद्र मोदी की जीत को सैल्यूट कीजिए। ई वी एम की जीत को सैल्यूट कीजिए। लोकतंत्र की इस ख़ूबसूरती को भी सैल्यूट कीजिए कि लोग अपनी हार में भी जीत खोज ले रहे हैं। ख़ुशी में झूम रहे हैं। सैल्यूट कीजिए कि काशी में मोदी हारते-हारते बचे। इतना कुछ करने-कराने के बावजूद। पास ही रायबरेली में राहुल गांधी नरेंद्र मोदी से कहीं ज़्यादा मार्जिन से जीते। अमेठी में के एल शर्मा की जीत मोदी से अच्छी है। अमित शाह , शिवराज सिंह चौहान , नितिन गडकरी जैसे लोग लाखों की मार्जिन से रिकार्ड तोड़ते हुए जीते। लेकिन उन के नेता मोदी , जिन के नाम पर एन डी ए ने समूचा चुनाव लड़ा , वही अच्छी मार्जिन पाने के लिए तरस गए। 

आरक्षण भक्षण प्रेमी लोगों के आरक्षण खत्म हो जाने के भय की मार्केटिंग और साढ़े आठ हज़ार रुपए महीने की मुफ़्तख़ोरी की लालसा में लोगों ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को कुचल कर रख दिया। बंग्लादेशी और रोहिंगिया ने पश्चिम बंगाल में भाजपा को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा को कंगाल बना दिया। संदेशखाली कार्ड पिट गया। सारे अनुमान धराशाई हो गए। तो भी 2024 के इस लोकपर्व में आप भी उत्सव मनाइए और जानिए कि जीत कैसी भी हो , खंडित भी हो तो भी जीत लेकिन महत्वपूर्ण होती है। फिर भी जो आप कुछ नहीं समझ पा रहे हैं तो आप को कन्हैयालाल नंदन की यह कविता ज़रूर ध्यान में रख लेनी चाहिए। 

तुमने कहा मारो

और मैं मारने लगा 

तुम चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं हारने लगा

माना कि तुम मेरे योग और क्षेम का

भरपूर वहन करोगे

लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर मैं क्या पाऊंगा

मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में/ हारा हुआ ही कहलाऊंगा 

तुम्हें नहीं मालूम 

कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं सेनाएं 

तो योग और क्षेम नापने का तराजू 

सिर्फ़ एक होता है

कि कौन हुआ धराशायी

और कौन है 

जिस की पताका ऊपर फहराई 

योग और क्षेम के

ये पारलौकिक कवच मुझे मत पहनाओ

अगर हिम्मत है तो खुल कर सामने आओ 

और जैसे हमारी ज़िंदगी दांव पर लगी है

वैसे ही तुम भी लगाओ।

सो तमाम तकलीफ़ और मुग़ालते के बावजूद दिल थाम कर मान लीजिए। दिल कड़ा कर लीजिए। और  सारे इफ-बट के बावजूद मान लीजिए कि नरेंद्र मोदी अब तीसरी बार प्रधान मंत्री बनने जा रहे हैं। अपनी क़िस्मत के पट्टे में वह ऐसा लिखवा कर लाए हैं। अब सारी कसरत के बावजूद कोई इसे रोक नहीं सकता। पार्टी कार्यालय में आज के भाषण में मोदी ने अपनी पुरानी गारंटी वाली बातें दुहरा दी हैं। तीसरी अर्थव्यवस्था जैसी बातें उसी तेवर में दुहराईं जो चार सौ की गुहार में दुहराते थे। बड़े-बड़े काम करने का ऐलान भी किया। 

अलग बात है कि इंडिया गठबंधन के कुछ सूरमा भोपाली नीतीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू में अपनी सत्ता की भूख को मिटाने ख़ातिर मुंगेरीलाल का हसीन सपना देखने में लग गए हैं। गुड है यह भी। पर बिना यह सोचे कि तोड़-फोड़ का यह काम उन से बढ़िया अमित शाह करने के लिए परिचित हैं। सो क़ायदे से आगे के दिनों में इंडिया गठबंधन को इस तोड़-फोड़ से सतर्क रहना चाहिए। जो कि देर-सवेर होना ही होना है। अरुणाचल और उड़ीसा में भाजपा की सरकार बनना , आंध्र में एन डी ए की सरकार का बनना लोग क्यों भूल रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी वाली भाजपा जैसी नैतिकता और शुचिता अगर कोई मोदी वाली भाजपा में तलाश कर रहा है तो उसे अपनी इस नादानी पर तरस खानी चाहिए। 

हां , राहुल गांधी को अभी चाहिए कि अभी और दूध पिएं और खेलें-कूदें। उत्तर प्रदेश में जो भी फतेह है , वह अखिलेश यादव और उन के पी डी ए की फ़तेह है। आरक्षण भक्षण प्रेमी लोगों के आरक्षण खत्म हो जाने के भय की मार्केटिंग और साढ़े आठ हज़ार रुपए महीने की मुफ़्तख़ोरी की लालसा की फ़तेह है। राहुल गांधी या इंडिया गठबंधन की नहीं। अच्छा अगर नीतीश और नायडू इंडिया गठबंधन रातोरात ज्वाइन ही कर लेते हैं तो भी बहुमत के लिए 272 के हिसाब से बहुमत का शेष आंकड़ा कहां से ले आएंगे ? बाक़ी नैतिक हार का पहाड़ा पढ़ने पर कोई टैक्स नहीं लगता। न कोई फीस लगती है। 

नैतिकता और शुचिता वैसे भी आज की राजनीति की किसी भी पाठशाला में शेष है क्या ? सब के सब अनैतिक और लुटेरे हैं। 


Friday 31 May 2024

इस एंटी मोदी स्क्वॉड के क्या कहने !

दयानंद पांडेय  


इस एंटी मोदी स्क्वॉड के क्या कहने ! यह मोदी को हरा कर ही मानेंगे। मोदी की जीत की सुनामी को तहस-नहस कर के ही मानेंगे। ठाना तो यही है। इस एंटी मोदी स्क्वॉड में राजनीतिक पार्टियों के लोग तो भर्ती हैं ही , तमाम लेखक , पत्रकार और बुद्धिजीवी भी इन के अल्सेशियन बन कर , लंगोट पहन कर झूठ के अखाड़े में कूदे पड़े हैं। एंटी मोदी स्क्वॉड के यह लोग जब देखिए तब युधिष्ठर बने रहते हैं। अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा ! का भ्रम भूजते हुए अपने फ्रस्ट्रेशन की नित नई रोटी सेंकते रहते हैं। फिर इस एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियनों की जब देखिए , तब कांग्रेसी हड्डी या वामी हड्डी की पार्टी चलती रहती है। उदाहरण अनेक हैं। पर यहां अभी दो ही उदाहरण। पहला उदाहरण हर आदमी के खाते में पंद्रह लाख रुपए आने का है। यह 2014 का मामला है। सच यह है कि नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विदेशों में देश का काला धन इतना ज़्यादा है कि अगर वापस आ जाए तो हर किसी के खाते में पंद्रह-पंद्रह लाख आ जाएगा। मोदी ने कहा था , अगर वापस आ जाए तो इतना धन आ जाए कि सब के खाते में पंद्रह लाख आ जाए। यह मात्र उस काले धन का आकलन था , सब के खाते में डालने का आश्वासन नहीं। पर कान ले गए कौवे के पीछे भागने का जो यह अभ्यास है , बहुत मुश्किल से छूटता है। आज तक इस कौवे के पीछे भाग रहे हैं यह एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियन। 

पूरे विश्वास के साथ एंटी मोदी स्क्वॉड के अल्सेशियन ले उड़े हैं इस पंद्रह लाख को। अब दस साल बीत जाने पर भी अपने खाते में पंद्रह लाख की प्रतीक्षा में विक्षिप्त हैं। जब देखिए तब पंद्रह लाख की माला जपते रहते हैं। इन दस सालों में अगर मेहनत से काम किए होते तो पंद्रह लाख तो क्या पंद्रह करोड़ भी कमा कर अपने खाते में जमा कर सकते थे। पर कोढ़ में खाज की तरह यह पंद्रह लाख की खुजली मुसलसल जारी है। तिस पर मोदी के नंबर दो अमित शाह ने मज़ा लेते हुए कह दिया कि यह पंद्रह लाख तो एक जुमला था ! अब अमित शाह के इस जुमले वाले डायलॉग को भी एंटी मोदी स्क्वॉड ने खट से कैच कर लिया। इन दस बरसों में समंदर में जाने कितनी नदियों का पानी मिल गया। मीठे से खारा हो गया पानी पर एंटी मोदी स्क्वॉड के चैंपियंस के खातों में पंद्रह लाख की मिठास नहीं आई , जो नहीं ही आनी थी। एंटी मोदी स्क्वॉड की टीम को लगता है कि इस नैरेटिव से वह मोदी की सत्ता को उखाड़ फेकेंगे। जनता को इतना मूर्ख समझना भी इन की बलिहारी है। 

दूसरा उदाहरण :

एंटी मोदी स्क्वॉड ने अब एक नया अश्वत्थामा फिर मारा है। बतर्ज पंद्रह लाख महात्मा गांधी आ गए हैं। आप वह क्लिपिंग देखिए न कभी। जिस में मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि जब गांधी फ़िल्म बनी तब दुनिया में ज़्यादा लोगों ने गांधी को जाना। क्या यह काम हम नहीं कर सकते थे ? नरेंद्र मोदी ने यह पूछा है। उन के पूछने का आशय यह है कि किसी भारतीय फ़िल्म निर्देशक ने बहुत पहले यह काम क्यों नहीं किया। किया तो आज तक नहीं है। यह तो ठीक बात है। इस में ग़लत बात क्या है। अब एंटी मोदी स्क्वॉड के खूंखार अल्सेशियन तो जैसे झपट पड़े। कि बताइए फ़िल्म नहीं बनती तो गांधी पैदा ही नहीं होते ? गांधी को लोग जानते ही नहीं ? 

एंटी मोदी स्क्वॉड का यह अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा ! का ड्रामा अब इतना बचकाना हो चला है कि बस ऐसा नैरेटिव बनाने वालों की मानसिक ख़ुराक़ बन कर रह गया है। यह लोग ख़ुद ही पाद कर ख़ुद ही हंसने का खेल खेलने में इतने शिशुवत हो गए हैं कि भारतीय मतदाता अब इन्हें बालिग़ मानने से इंकार कर इन के पक्ष में वोट नहीं डालते। लगातार दस बरस से यह लोग राहुल गांधी के हमराह बने हुए हैं। एक सॉलिड मुस्लिम वोट बैंक के बूते यह लोग कब तक देश को मारीच बन कर धोखा देते रहेंगे भला ! वह मुस्लिम वोट बैंक जिस का मिथ 2014 में ध्वस्त हो चुका है। फिर भी बच्चों वाले खेल के खोल से बाहर निकलने में इन्हें डर लगता है। ऐसे जैसे मोगली हो गए हैं। याद कीजिए एक पुराने टी वी सीरियल में मोगली नाम का बच्चा जंगल में जानवरों के साथ पला-बढ़ा। बाद में जब उसे मनुष्यों के साथ रहना पड़ा तो उस को मुश्किल हो गया। वह जंगल के अपने साथी जानवरों को मिस करने लगा। जंगल-जंगल बात चली है पता चला है / चड्ढी पहन कर फूल खिला है गाना ख़ूब मशहूर हुआ था। तो जाने कब राहुल गांधी इस गाने से बाहर निकलेंगे। राहुल तो राहुल , समूचा विपक्ष इसी त्रासदी से दो-चार है। चाहिए कि तमाम फोटो सेशन के तलबगार राहुल गांधी चरखे पर सूत कातना शुरू करें। इस से उन में धैर्य धारण करने का सलीक़ा आएगा। सत्य और अहिंसा का भाव भी शायद आ जाए। मोटर साइकिल की मरम्मत , बढ़ई का काम , धान रोपने जैसे काम के फ़ोटो सेशन से बेहतर होगा। गांधी को समझने का रास्ता मिलेगा। एंटी मोदी स्क्वॉड का फर्जी मूवमेंट चलने से भी फुरसत मिले शायद। 

यह सही है कि 1982 में ब्रिटिश डायरेक्टर रिचर्ड एटनबरो निर्देशित जब गांधी फ़िल्म आई और बेन किंग्सले ने गांधी की भूमिका में गांधी का अनूठा अभिनय परोसा तो दुनिया ने गांधी के बारे में ठीक से जाना। गांधी का डंका पहले से बजता था , और ज़्यादा बजने लगा। गांधी को तो लोग जानते थे। पर गांधी का नाम , उन का सत्य , उन की अहिंसा जैसी बातें , उन के जीवन के बारे में , उन के संघर्ष के बारे में लोग ठीक से नहीं जानते थे। इतना नहीं जानते थे। न जानने वाले अभी भी ठीक से नहीं जानते। गांधी नामधारी सोनिया , राहुल और प्रियंका तो अभी भी गांधी के बारे में ठीक से नहीं जानते। कभी कोई इन लोगों से गांधी के बारे में बात कर के देख तो ले। गांधी की खादी तक तो अब यह लोग पहनते नहीं। गांधी की टोपी भी नहीं जानते। गांधी का सत्य और अहिंसा का पाठ भी इस गांधी परिवार से कोसो दूर है। गांधी का सत्य और अहिंसा जानते तो रोज इतना झूठ न बोलते। हार-हार जाते पर लोगों को बरगलाते नहीं। जातीय जनगणना की नफ़रती बात नहीं करते। हां , दुर्भाग्य से राहुल गांधी और उन की आज की कांग्रेस मुस्लिम वोट ख़ातिर गांधी का मुस्लिम तुष्टिकरण ज़रूर जानते हैं। दिन-रात इसे ओढ़ते-बिछाते हैं। 

अलग बात है कि गुजराती नरेंद्र मोदी भी गुजराती महात्मा गांधी के विचारों को ओढ़ते-बिछाते नहीं हैं। गांधी के विचार और सिद्धांतों से कोसों दूर रहते हैं। बस जब तब गांधी का नाम लेते रहते हैं। बस। गांधी के सत्य और अहिंसा का पाठ अब किताबों और कुछ गांधीवादी विचारकों के विमर्श तक सीमित रह गया है। महात्मा गांधी मार्ग भी अब हर जगह एम जी मार्ग हो गया है। दिल्ली में गांधी समाधि अरविंद केजरीवाल जैसे भ्रष्ट लोगों की आड़ बन कर रह गया है। कुछ विदेशी मेहमानों द्वारा औपचारिक तर्पण और कुछ संस्थानों के नामकरण में ही शेष रह गया है , गांधी नाम। राजनीति में जहां सब से ज़्यादा ज़रूरत है गांधी की , वहां मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी का अवशेष भी अब समाप्त हो चला है। गांधी नाम का खंडहर भी अब पहचान में नहीं आता। बहुत नज़दीक से भी नहीं। नेहरू जो गांधी के सब से प्रिय रहे , उन नेहरू ने ही गांधी की सब से ज़्यादा उपेक्षा की। प्रधान मंत्री बनते ही गांधी की सभी नीतियों को नाबदान में डाल दिया। स्वदेशी , अहिंसा , सत्य , कुटीर उद्योग आदि सब को तिलांजलि दे दी। वामपंथियों ने तो गांधी को सर्वदा दुश्मन ही माना। उन की सशस्त्र क्रांति के आड़े आ जाती थी गांधी की अहिंसा और सत्य की बात। गांधी को मानते तो नक्सल मूवमेंट होता ही नहीं कभी। मुसलमान भी गांधी को मानते होते तो कश्मीर को जहन्नुम न बनाते। आतंक की फसल देश भर में नहीं काटते। पश्चिम बंगाल और केरल में हिंसा का तांडव नहीं करते। 

गांधी जब गोलमेज कांफ्रेंस में लंदन गए तो जार्ज पंचम ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया। गांधी एक धोती पहने और उसी को लपेटे , मामूली चप्पल पहने पहुंचे। सूटेड-बूटेड सर्दी में कांप रहा जार्ज पंचम यह देख कर चकित हुआ। गांधी से पूछा , आप के कपड़े कहां हैं ? गांधी ने छूटते ही कहा , मेरे और मेरे देशवासियों के कपड़े आप ने लूट लिए हैं। ठीक इसी तरह कांग्रेस ने अपने लंबे कार्यकाल में देश को बुरी तरह लूटा है। कंगाल बनाया है। 

आप सभी को याद होगा कि योगी आदित्यनाथ जब 2017 में मुख्यमंत्री बने थे तब योगी ने उत्तर प्रदेश में एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाया था। अखिलेश यादव के राज में लव जेहाद की जैसे सुनामी आई हुई थी। तमाम हिंदू लड़कियों को मुस्लिम लड़के हिंदू बन कर फंसाते थे। प्यार का ड्रामा करते थे। फिर धर्म परिवर्तन करवा कर निकाह पढ़वाते थे। फिर इन लड़कियों को बेच भी देते थे। इस काम में इन लड़कों को अच्छी खासी फंडिंग मिलती थी। तो ऐसी लड़कियों को बचाने के लिए योगी ने एंटी रोमियो स्क्वॉड बनाया। काफी मुस्लिम लड़के तब पकड़े गए थे। लगातार पकड़े गए। अंतत: उत्तर प्रदेश में लव जिहाद पर भारी अंकुश लग गया। एंटी रोमियो स्क्वॉड से भयभीत ऐसे अराजक लोगों का खात्मा हो गया। लव जिहाद के मामले अब इक्का-दुक्का ही सामने आते हैं। अखिलेश यादव राज के समय की लव जिहाद की सुनामी लगभग चली गई। 

तो इसी तर्ज़ पर मोदी की जीत की सुनामी को रोकने के लिए , मोदी राज को समाप्त करने के लिए एंटी मोदी स्क्वॉड का गठन हुआ है कोई दस सालों से। पहले इस का नाम यू पी ए था , अब इंडिया है। इस एंटी मोदी स्क्वॉड में कांग्रेसी , वामपंथी , सपाई , राजद टाइप के तमाम सेक्यूलर रसगुल्ले एक साथ सक्रिय हैं। सोशल मीडिया पर माहौल बनाने के लिए एन जी ओ धारी सेक्यूलर लेखक , पत्रकार बुद्धिजीवी शामिल हैं। ख़ास माइंड सेट के तहत एक कहता है हुआं ! फिर सुर में सुर मिला कर सभी कहने लगते हैं , हुआं-हुआं ! कुछ भौ-भौ वाले भी इन के साथ सुर में सुर मिलाने लगते हैं। अपने-अपने इलाके में भले एक दूसरे को न आने दें पर अपने-अपने इलाके से सामूहिक भौ-भौ से माहौल बना कर इलाक़ाई कलक्टर तो बन ही जाते हैं। इन इलाक़ाई कलक्टरों का ट्रैक्टर जब चल पड़ता है तो माहौल तो बन ही जाता है। उन को लगता है कि मोदी अब गया कि तब गया। एंटी मोदी स्क्वॉड की इतनी सी ही सही पर उन की राय में यही भारी सफलता है। वह नहीं समझ पाते कि इस तरह मुसलसल ऐसा ख़याली पुलाव पकाना एक गंभीर बीमारी है। बहुत ख़तरनाक़ बीमारी। झूठ के प्राचीर पर सत्ता का क़िला नहीं बनता। भाड़े के यू ट्यूबर माहौल तो बना सकते हैं , उसे वोट में कभी कनवर्ट नहीं कर सकते। 

हां , एंटी मोदी स्क्वॉड की एक और तकलीफ़ अभी सामने आई है चुनाव प्रचार ख़त्म होने के बाद कन्याकुमारी में विवेकानंद मेमोरियल में मोदी के ध्यान की। एंटी मोदी स्क्वॉड के कबीले के सारे सूबेदार एक सुर में खड़े हुए हैं कि मोदी के इस ध्यान सत्र को टी वी पर हरगिज न दिखाया जाए ! टी वी वाले दिखा भी नहीं रहे हैं। बस फ़ोटो आई है। पर एक तानाशाह के साथ ऐसी तानाशाही का सपना गुड बात तो नहीं है। क्या पता कोई याचिका ही न दायर हो जाए सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत। क्यों कि जो अभिषेक मनु सिंघवी अपने मुख मैथुन सुख का वीडियो यू ट्यूब से हटवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को कनविंस कर सकते हैं , हटवा लेते हैं , वह या कोई और सही इतना तो कर ही सकता है। लेकिन मोदी ने तो 2019 में भी ध्यान लगाया था। मीडिया ने उसे भी दिखाया था। तो क्या उस एक ध्यान से भाजपा का प्रचार हो जाता है ? मोदी भारी अंतर से जीत जाता है। मोदी मैजिक चल जाता है। 

अगर ऐसा है तो क्या बात है ! 

फिर तो यह देश भर में सड़कों का संजाल , रेल और रेलवे स्टेशनों का कायाकल्प , नदी के बीच से मेट्रो , समुद्र पर सेतु , सरहदों तक सड़क , टनल , सरहद पर गांव का फिर से बसना , बेशुमार हवाई अड्डों आदि का बनना , गरीबों के लिए कल्याणकारी योजना , पक्का मकान , शौचालय , गैस , नल से जल इत्यादि चौतरफा विकास की चांदनी की कोई ज़रूरत ही नहीं। चांद पर भी जाने की क्या ज़रूरत। इतने रोड शो , इतनी रैली , इतने इंटरव्यू , रात-दिन इतनी मेहनत की ज़रूरत भी क्या है। शराब घोटाला करो। संदेशखाली करो। शिक्षक भर्ती घोटाला करो। जगह-जगह नोटों का पहाड़ खड़ा करो। हेलीकाप्टर में मछली खाने का वीडियो बनाओ , मुस्लिम वोटरों को भयभीत करो , जातीय जनगणना का जहर घोल कर ध्यान करो और वोट लो।  गज़ब है एंटी मोदी स्क्वॉड की यह हुआं-हुआं और भौं-भौं ! 

याद कीजिए नोटबंदी , जी एस टी , सर्जिकल स्ट्राइक , एयर स्ट्राइक , अभिनंदन , राफेल , तीन तलाक़ , धारा 370 , अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा। जातीय जनगणना , इलेक्टोरल ब्रांड का तराना। कोरोना वैक्सीन का फ़साना। इन सब मामलों में एंटी मोदी स्क्वॉड का सुर एक भी सूत जो इधर-उधर हुआ हो। एंटी मोदी स्क्वॉड के सभी लोग एक सुर में हुआं-हुआं और भौं-भौं का आलाप जो लिए हुए हैं , इन का जो आरोह-अवरोह है , वह अद्भुत है। बड़े-बड़े बड़े गुलाम अली खां , बिस्मिल्ला ख़ान , भीमसेन जोशी , किशोरी अमोनकर फेल। नो तथ्य , नो तर्क पर माहौल बिलकुल टनाटन ! बार-बार एक अश्वत्थामा की आड़ में एंटी मोदी स्क्वॉड के इस अपने ही ईगो मसाज की भी कोई हद होती है क्या ? 

होती हो तो प्लीज़ बताइए भी न ! 

बात फिर भी शेष रह जाती है : अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा !