Thursday, 24 April 2025

ऐसे जैसे महाभारत में श्रीकृष्ण का पांचजन्य शंख बज गया हो

दयानंद पांडेय 

हम अब युद्ध में हैं। मुसलसल युद्ध में हैं। रूस -यूक्रेन युद्ध , इजराइल - हमास युद्ध को रोकने की बात करने वाले , संवाद से मसला हल करने की बात करने वाले नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ आक्रमण का उद्घोष कर दिया है। ऐसे जैसे महाभारत में श्रीकृष्ण का पांचजन्य शंख बज गया हो। कूटनीतिक हमला बोल दिया है। जल प्रहार हो चुका है। सैनिक हमला बस होना ही चाहता है। 

संभल , मुर्शिदाबाद  और पहलगाम में एक ही तत्व है , जेहाद !  कोई दूसरा तत्व हो तो प्लीज़ बता दीजिए l मतलब उत्तर प्रदेश , पश्चिम बंगाल और कश्मीर तीनों का मौसम और मिजाज एक है l वह है जेहाद। बल्कि इस अर्थ में पूरे देश का मिजाज और मौसम एक है l रत्ती भर भी कहीं कोई फ़र्क़ नहीं है l इस बात को देश के लोग जितनी जल्दी समझ लें , बेहतर है l वक़्फ़ बोर्ड की रेशमी ज़ुल्फ़ों के पेचोखम में मत भटकिए l पहलगाम में मारे गए लोग पर्यटक नहीं थे , हिंदू थे। धर्म पूछ कर , कलमा पढ़वा कर , पैंट खोल कर खतना चेक कर लोगों की हत्या की गई है। मुर्शिदाबाद में यही किया गया। संभल में भी यही सिलसिला है। देश भर में ही नहीं दुनिया भर में यही सिलसिला है। इस सिलसिले को बंद करना बहुत ज़रूरी है। इस लिए भी कि इन जेहादियों से समूची दुनिया परेशान और तबाह है। 

एक समय था कि योगी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा में अतीक़ अहमद को इंगित कर , अखिलेश यादव को धमकाते हुए कहा था कि इस माफ़िया को मिट्टी में मिला दूंगा। अंतत: मिट्टी में मिला दिया। कुछ इसी तर्ज पर नरेंद्र मोदी ने आतंकियों के आका पाकिस्तान में मिट्टी मिला देने का ऐलान कर दिया है। 

इस एक ऐलान से पाकिस्तान की सिट्टीपिट्टी गुम है। घरेलू मोर्चे पर नरेंद्र मोदी सरकार भले कई बार पिटती हुई दिखती है पर विदेशी और कूटनीतिक मोर्चे पर मोदी सरकार का डंका बजता है। दुनिया भर के देश इस पहलगाम मुद्दे पर भारत के साथ , पाकिस्तान के खिलाफ खड़े हो गए हैं। एक चीन को छोड़ कर सब पर भरोसा भी किया जा सकता है। गो कि चीन ने भी पाकिस्तान के खिलाफ भारत के विदेश मंत्रालय में अपनी आमद दर्ज करवा दी है। मुस्लिम देशों ने भी भारत के साथ खड़े होने की सहमति दी है। इन्हीं सब के बूते मोदी ने बिहार के भाषण में अंग्रेजी में बोल कर विश्व समुदाय को संदेश देने की कोशिश की है। यह बड़ी बात है। 

2014 में मोदी जब प्रधान मंत्री बने थे तब कुछ लोग उन्हें बहुत ज़ोर से फेंकू कहने लगे थे। आज भी कहते रहते हैं। ख़ास कर मोदी विरोधी कुछ लेखकों , पत्रकारों और जेहादी मुसलमानों की यह बीमारी बढ़ती गई है। वह कहते हैं न कि मर्ज बढ़ता गया , ज्यों - ज्यों दवा की। पहलगाम हो , संभल या मुर्शिदाबाद हर बार पोलिटिकली करेक्ट होने के चक्कर में यह लोग पाकिस्तान की भाषा बोलते रहते हैं। जेहादियों की पैरवी करते रहते हैं। दंगाइयों और आतंकियों के लिए कवरेज फायर देते रहते हैं। पहलगाम पर भी इन लेखकों , पत्रकारों का यह रुख बदला नहीं है। पाकिस्तान से ज़्यादा आतंकियों के पक्ष में यह लेखक पत्रकार खड़े हैं। कभी इस बहाने , कभी उस बहाने। सांप्रदायिक सद्भावना का भी बहाना है। पर वास्तव में मोदी विरोध की यह गंभीर बीमारी है। इन लेखकों , पत्रकारों को यह बीमारी कांग्रेस ने एक ख़ास वैक्सीन लगा कर इन के ख़ून में भर दी है। कांग्रेस के साथ कुछ क्षेत्रीय दलों ने भी सपोर्टिंग वैक्सीन इन्हें दे रखी है। 

कश्मीर की पूर्व मुख्य मंत्री महबूबा मुफ्ती जो एक समय पाकिस्तानी आतंकियों की भाषा बोलती थीं। कहती थीं , कश्मीर में तिरंगा उठाने वाला नहीं मिलेगा कोई। पर पहलगाम में आतंकी हमले के ख़िलाफ़ कल कश्मीर बंद के जुलूस में आतंकियों के खिलाफ तख्ती लिए वह आगे - आगे चल रही थीं। जेहादी महबूबा का यह बदलाव दिलचस्प है। और तो और आज यह जहरीले कांग्रेसी भी दिखावे के लिए सही पाकिस्तान के खिलाफ मोदी सरकार के साथ खड़े हो गए हैं। महबूबा बदल गईं , कांग्रेसी बदल गए। लेकिन यह बीमार लेखक , पत्रकार कांग्रेस के वैक्सीन से निकलने में असहाय हो गए हैं। नहीं बदल पा रहे। पाकिस्तान के लिए बैटिंग करने में प्राणप्रण से युद्धरत हैं। 

लेकिन इन के फेंकू ने इस बार बात बहुत दूर तक फेंक दी है। इतना दूर कि इन के संभाले कुछ नहीं संभलने वाला। मित्र वाहिद अली वाहिद की एक कविता याद आती है :


कब तक बोझ संभाला जाए

द्वंद्व कहां तक पाला जाए

दूध छीन बच्चों के मुख से 

क्यों नागों को पाला जाए

दोनों ओर लिखा हो भारत 

सिक्का वही उछाला जाए

तू भी है राणा का वंशज 

फेंक जहां तक भाला जाए 


इस बिगड़ैल पड़ोसी को तो 

फिर शीशे में ढाला जाए 

तेरे मेरे दिल पर ताला 

राम करें ये ताला जाए 

वाहिद के घर दीप जले तो 

मंदिर तलक उजाला जाए


यह राफ़ेल वाफ़ेल क्या हवाई पट्टी सजाने के लिए हैं ?

दयानंद पांडेय


कश्मीर में चुनी हुई सरकार है l उमर अब्दुल्ला मुख्य मंत्री हैं l वह लेकिन पहलगाम पर ख़ामोश हैं l ऐसे जैसे उन की कोई ज़िम्मेदारी न थी l न है l

कश्मीर विधानसभा में वक़्फ़ बोर्ड संशोधन बिल पर कोहराम मचाने और बिल फाड़ने वाले लोग तब भी भारत पर हमलावर थे , अब भी हैं l आज का कश्मीर बंद , हरामखोरी का नायाब नमूना है l

केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर को इतनी फ़ंडिंग हो रही है , कि उस की लालच में यह हरामखोर दिखावा कर रहे हैं l इस नरसंहार के लिए हरामखोर सेक्यूलरजन भी राज्य सरकार और उमर अब्दुल्ला का नाम लेने में इस लिए भयभीत हैं कि उन का नाम लेते ही उन के सेक्युलरिज्म के पाखंड की पोल खुल जाएगी l उन के अब्बू का नाम लोग जान जाएंगे l

रही बात सरहद की तो पंजाब और गुजरात भी पाकिस्तान की सरहद से लगे सूबे हैं l वहां क्यों नहीं होता कभी धर्म पूछ कर नरसंहार ?

क्यों कि पंजाब और गुजरात के अधिकांश स्थानीय लोग पाकिस्तान के हामीदार नहीं हैं l बहुसंख्यक इस्लाम के सरपरस्त नहीं हैं l

लेकिन कश्मीर घाटी में बहुसंख्यक आतंक और इस्लाम के सरपरस्त हैं l इसी लिए यह नरसंहार होते आ रहे हैं l होते रहेंगे l

बताइए कि अभी इसी 16 अप्रैल को एक लेफ्टिनेंट नरवार की शादी हुई थी l उस की पत्नी के सामने ही उसे मार डाला , मुस्लिम आतंकियों ने l कानपुर के शुभम की शादी दो महीने पहले हुई थी l उस की बीवी के सामने उसे मार डाला गया l एक अधेड़ स्त्री के सामने उस के पति को मारा गया l स्त्री बोली , मुझे भी मार दो l मुस्लिम आतंकी बोला , नहीं मारेंगे तुम्हें l मोदी को जा कर बताना l ऐसे अनेक विवरण हैं l

वह आतंकी मोदी की जगह उमर अब्दुल्ला का नाम भी तो ले सकता था l नहीं लिया l कुछ मतिमंद कह रहे हैं , यह कायराना हमला है l कायराना नहीं वहशियाना हमला है यह l एक दो एयर स्ट्राइक इस हमले का जवाब नहीं हो सकता l इजराइल की तरह मुसलसल हमला जारी रहना चाहिए l तब तक जब तक पाकिस्तान खंडहर न हो जाए l नेस्तनाबूद न हो जाए l हमास की रीढ़ जिस तरह इजराइल ने तोड़ी है , उस से भी ज़्यादा l कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में रह रहे ऐसे राक्षसों तथा इन को शरण देने या पैरवी करने वालों की रीढ़ तोड़नी ज़रूरी है l बेहद ज़रूरी l कश्मीर से लगायत पश्चिम बंगाल तक l

वक़्फ़ संशोधन बिल फाड़ने वाले लोगों को भी फाड़ देना चाहिए l नो रियायत l यह राफ़ेल वाफ़ेल सरहद पार के लिए नहीं तो क्या हवाई पट्टी सजाने के लिए लाए गए हैं ?

गोरखपुर के डाक्टर राधामोहन अग्रवाल राज्य सभा सदस्य हैं l राज्य सभा में वक़्फ़ बोर्ड पर बहस करते हुए एक मुस्लिम सांसद को इंगित करते हुए एक किताब का नाम लेते हुए कहा था कि अगर हम लोग वह किताब पढ़ कर आप से बात करेंगे तो मार हो जाएगी , मार !

सेटेनिक वर्सेज पर बैन लग सकता है , तमाम और किताबों और चीज़ों पर बैन लग सकता है तो जैसे चीन बहुत कुछ पर बैन लगा कर देश में अमन-चैन क़ायम रखता है , सारा रिस्क ले कर भारत को भी क्या यह नहीं कर देना चाहिए ?

आख़िर आइडेंटिटी कार्ड देख कर , पैंट खोल कर ख़तना न देख कर कहीं आतंकी हत्या करते हैं ? कलमा न पढ़ने आने पर हत्या कर देते हैं ? पंजाब का खालिस्तानी आंदोलन याद आता है l सिख और हिंदू बस से उतार कर अलग-अलग खड़े कर दिए जाते थे और सिखों को छोड़ कर बाक़ी को लाइन से खड़े कर गोली मार देते थे

अराजक और हिंसक अल्पसंख्यक का अत्याचार जब बढ़ जाए तो चीन बन जाना चाहिए

दयानंद पांडेय


शांति से रहने वाले बहुसंख्यक पर जब अराजक और हिंसक अल्पसंख्यक का अत्याचार बहुत बढ़ जाए तो सदियों से अत्याचार सहने की जगह किसी भी देश को चीन की तरह पेश आना चाहिए l कुछ समय के लिए लोकतंत्र को मुल्तवी कर तानाशाह बन जाना चाहिए l

अराजक और हिंसक अल्पसंख्यक को चीन की तरह कुचल कर दुरुस्त कर देना चाहिए l चीन की तरह देशभक्त बनने की ट्रेनिंग देनी चाहिए l जैसे कि चीन तीस लाख से अधिक अल्पसंख्यकों को नज़रबंद कर देशभक्ति की ट्रेनिंग दे रहा है l अल्पसंख्यकों के तमाम धार्मिक चिन्ह और जगह ध्वस्त कर , उन्हें राइट टाइम कर चुका है चीन l भारत में कश्मीर , पश्चिम बंगाल , केरल , महाराष्ट्र , दिल्ली , उत्तर प्रदेश आदि हर कहीं यह राइट टाइम कर देने की सख़्त ज़रूरत है l

आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब इजराइल की तरह देना चाहिए l इजराइल ने जो सुलूक फ़िलिस्तीन , लेबनान , इराक़ जैसे देशों के साथ किया है , करता जा रहा है , पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ वही सुलूक भारत को करना चाहिए l

इसी तरह हर कहीं मनुष्यता और सभ्यता की तामील होनी चाहिए l शांति दूतों को सिर चढ़ा कर शांति नहीं आती l शांति आती है चीन और इजराइल की तरह इन राक्षसों को कुचल कर आदमी बना देने से l इन को इन की औक़ात बता देने से l

तमाम इतिहास और उदाहरण हमारे सामने हैं l सबक लेना , न लेना हमारे ऊपर है l लेकिन देश और मनुष्यता को बचाए रखने के लिए कोई राम या कृष्ण जैसा अवतार अब नहीं आएगा l ख़ुद ही तय करना होगा l

Saturday, 5 April 2025

असदुदीन ओवैसी की मर्चेंट आफ वेनिस

दयानंद पांडेय



यह तो मालूम था कि गृह मंत्री अमित शाह से हद से अधिक ख़ौफ़ खाने वाले असदुदीन ओवैसी को क़ानून , इस्लाम और भारतीय मुसलमान के बारे में बहुत ज़्यादा मालूम है। क़ानून की बारीकियां , इस्लाम और मुसलमान की जहालत पर असदुदीन ओवैसी की बहुत अच्छी पकड़ है। और कि इस का दुरूपयोग वह बहुत ख़ूबी से करते हैं। यही उन की कुल कमाई , कुल उपलब्धि है।

पर कल आधी रात संसद में असदुदीन ओवैसी को सुनते हुए शेक्सपियर की मर्चेंट आफ वेनिस की याद आ गई। मानना पड़ा कि क़ानून ही नहीं , इस्लाम और मुसलमान ही नहीं , क़ानून के मद्देनज़र शेक्सपियर को भी वह बहुत जानते हैं। कल संसद में वक़्फ़ बिल संशोधन को ऐलानिया तौर पर फाड़ते हुए गांधी की दुहाई दी और कहा कि गांधी की तरह इसे फाड़ता हूं। फिर भी उसे फाड़ा नहीं।

स्टैपल्ड पन्नों को स्टैपल से अलग करते हुए कहा कि गांधी की तरह फाड़ता हूं। संशोधन को फाड़ा भी नहीं और फाड़ने का ऐलान भी कर दिया। ख़ून की एक बूंद भी नहीं गिरी और मांस भी काट लिया। नाख़ून कटवा कर शहीद बन जाना , इसे ही कहते हैं।

भारत में 1911 में वक़्फ़ बोर्ड बनाया भले मोहम्मद अली जिन्ना ने पर इस वक़्फ़ बोर्ड का सर्वाधिक दोहन और मज़ा असदुदीन ओवैसी ने ही लिया है। इस लिए वक़्फ़ बोर्ड बिल के संशोधन का सर्वाधिक नुक़सान असदुदीन ओवैसी को ही उठाना है। कमर इन की सब से ज़्यादा टूटी है। आठ रुपए एकड़ के किराए पर हज़ारों बीघा वक़्फ़ की ज़मीन असदुदीन ओवैसी के पास है। अमिताभ भट्टाचार्य का लिखा एक गाना याद आ गया है :

थोड़ी फुरसत भी मेरी जान कभी बाहों को दीजिए,
आज की रात मज़ा हुस्न का आँखों से लीजिए।

आनंद कीजिए कि आप काफ़िर भी हैं और कायर भी

दयानंद पांडेय


क़ायदे से गड़बड़-घोटाले और नफ़रत के केंद्र वक़्फ़ बोर्ड को ही समाप्त कर देना चाहिए l पर ऐसा करने से देश में आग लग जाने की संभावना है l दंगों में देश झुलस जाएगा l 1947 दुहरा दिया जाएगा l डायरेक्ट एक्शन हो जाएगा l सिर तन से जुदा हो जाएगा l

ए ट्रेन टू पाकिस्तान लिखना पड़ जाएगा किसी खुशवंत सिंह को l किसी भीष्म साहनी को तमस लिखना पड़ जाएगा l किसी अमृता प्रीतम को पिंजर लिखना पड़ जाएगा l किसी मिल्खा सिंह को रोते हुए वतन छोड़ना पड़ेगा l जाने क्या-क्या खोना पड़ जाएगा l

सो अफ़सोस कि मोदी सरकार ने कायरता दिखाते हुए वक़्फ़ बिल में संशोधन का झुनझुना थमा दिया है l

वक़्फ़ बिल में संशोधन को भी सौगाते-मोदी ही मान लीजिए l मुफ़्त अनाज , गैस , शौचालय , पक्का मकान आदि की तरह चालीस लाख एकड़ ज़मीन की सौग़ात है यह l जान लीजिए कि इतनी ज़मीन न वन विभाग के पास है , न रेल विभाग , न किसी और विभाग के पास l यह अदभुत है और आश्चर्यजनक भी l

आनंद कीजिए कि आप काफ़िर भी हैं और कायर भी l सो काल्ड सेक्यूलर देश में रहना भी एक अय्याशी ही है l इस अय्याशी को इंज्वाय कीजिए l इस लिए भी कि राणा सांगा गद्दार है और औरंगज़ेब एक नायाब बादशाह।

कट्टर कांग्रेसी और घनघोर सेक्यूलर रहे जगदंबिका पाल भाजपा के बड़े एसेट बन गए

दयानंद पांडेय



कभी कट्टर कांग्रेसी रहे , भाजपा और आर एस एस को दिन-रात गरियाने वाले कुछ घंटे के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे जगदंबिका पाल कांग्रेस के सो काल्ड सेक्यूलरिज्म के ताबूत पर इस तरह कील ठोंकने वाले बन जाएंगे , यह तो जगदंबिका पाल भी नहीं जानते रहे होंगे। जगदंबिका पाल के जीजा राम प्रताप बहादुर सिंह , एडवोकेट भी कांग्रेसी थे। गोरखपुर शहर कांग्रेस कमेटी के सचिव थे। राम प्रताप बहादुर सिंह के छोटे और चचेरे भाई हरिकेश प्रताप बहादुर सिंह गुमनामी में सही , आज भी कांग्रेसी हैं।

बी एच यू छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हेमवती नंदन बहुगुणा के शिष्य , गोरखपुर के दो बार ग़ैर कांग्रेसी सांसद रहे बेहद सरल-सहज और अतिशय ईमानदार हरिकेश प्रताप बहादुर सिंह जब उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष थे तब ही जगदंबिका पाल युवक कांग्रेस में आए। यह संजय गांधी और इमरजेंसी का ज़माना था। क़ानून की पढ़ाई किए पाल बाद में कांग्रेस सेवादल के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष रहे। प्रधान मंत्री राजीव गांधी के क़रीबी हुए।

ठाकुरवादी राजनीति के तहत अर्जुन सिंह के ख़ास बने। तमाम कांग्रेसी नेताओं की तरह जगदंबिका पाल एजूकेशन माफ़िया भी बने। लखनऊ से लगायत सिद्धार्थ नगर तक दर्जनों इंजीनियरिंग कालेज , मैनेजमेंट कालेजों की लंबी श्रृंखला है उन के पास। यह सब तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के आशीर्वाद से संभव बना। उत्तर प्रदेश में विभिन्न सरकारों में कई बार मंत्री रहे जगदंबिका पाल को अर्जुन सिंह के कहने पर ही राज्यपाल रोमेश भंडारी ने फ़रवरी , 1998 में कल्याण सिंह को बर्खास्त कर रातोरात उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बना दिया था। कुछ घंटे के लिए ही सही। अलग बात है कि उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्रियों की अधिकृत सरकारी सूची में जगदंबिका पाल का नाम दर्ज नहीं है।

जब कांग्रेस का पतन प्रारंभ हुआ और भाजपा का उत्थान तो समय की नज़ाकत देखते हुए ठाकुरवादी संपर्क में राजनाथ सिंह जगदंबिका पाल के काम आए। अपने एजुकेशन माफिया को बचाने की पाल की बड़ी ज़रूरत भी थी यह। भाजपा का टिकट मिला और जीत गए। दुबारा , तिबारा भी जीते। तमाम कोशिशों के बावजूद मंत्री नहीं बन पाए मोदी सरकार में। लेकिन कट्टर कांग्रेसी और घनघोर सेक्यूलर रहे जगदंबिका पाल भाजपा के एसेट बन गए। बड़े एसेट। वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार करने वाली संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल वक्फ़ बोर्ड के कारण जीते जी इतिहास में दर्ज हो गए हैं।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री हरीश रावत और जगदंबिका पाल लखनऊ विश्वविद्यालय में सहपाठी रहे हैं। दोनों आज भी दोस्त हैं। राज्य सभा में कांग्रेसी सांसद प्रमोद तिवारी से भी दोस्ती टूटी नहीं है , पाल की। नाम भले मोदी का हो पर जानने वाले जानते हैं कि राजनाथ सिंह ने जगदंबिका पाल का ग़ज़ब इस्तेमाल किया है। जगदंबिका पाल पर संघी होने का आरोप लगा कर उन्हें ख़ारिज करने की , निंदा करने का अवसर भी विपक्ष को नहीं मिल सका है। विपक्ष का सारा ज़ोर और रणनीति , नायडू , नीतीश और जयंत चौधरी आदि को मुस्लिम वोट का भय दिखा कर वक्फ़ बिल के ख़िलाफ़ झांसे में लाने का था।

पर विपक्ष का यह ख़ुद को धोखा देना था। मुसलमानों को भड़काना भर था। सी ए ए की तर्ज़ पर भड़काना था। शाहीन बाग़ तो न बना सका विपक्ष पर अपने राजनीतिक तमाशे और स्वार्थ के लिए मीठी ईद पर भी काली पट्टी बंधवा कर मुसलमानों से कड़वी ईद मनवा दिया। जो भी हो संसद में वक्फ़ बिल पास होना अब सिर्फ औपचारिकता ही रह गया है। दो अप्रैल को चर्चा के बाद , तीन तलाक़ , 370 और सी ए ए की तरह बिना किसी बाधा के इसे संसद में पास हो जाना है। जनसंख्या नियंत्रण बिल और समान नागरिक संहिता के लिए रास्ता प्रशस्त हो जाना है। यह राजनीतिक सचाई है। बाक़ी सब विपक्ष की मोह माया है। मुस्लिम समाज को बरगलाने के लिए , वोट बैंक की लालसा में इस बिल पर बहस के समय मर्सिया गायन , हिंदू-मुस्लिम की खाई को और चौड़ा करना , फिर वोटिंग के समय संसद से वॉकआऊट कर इस बिल पर खीझ मिटाना , मुसलमानों को दंगे की हद तक भड़काना ही लक्ष्य है। संख्या बल के आगे हताश और पराजित विपक्ष के लिए इस डाल से उस डाल पर कूदने वाला यह मंकी एफर्ट भी उचित ही है।

राजनीति सचमुच वेश्या से भी गई गुज़री है। पुराने लोग अगर यह कहते थे , तो ग़लत नहीं कहते थे। अब तो लगता है , यह भी बहुत थोड़ा कहते थे। राजनीति अब इस से भी बहुत-बहुत आगे निकल गई है।

चित्रा के बहाने नफ़रत और घृणा का फैलता कारोबार

दयानंद पांडेय


चित्रा त्रिपाठी की सलमान ख़ान से विवाह की संभावना की पोस्टों की फ़ेसबुक पर इन दिनों धूम है l इन में ज़्यादातर फेक अकाउंट हैं लेकिन महिलाओं के नाम से हैं l फिर इन पोस्टों पर चटखारे लेते हुए अधिकतम हलाला गैंग और ओ बी सी टाइप लोगों के अभद्र कमेंट की बरसात है l कुछ ब्राह्मण सरनेम वाले भी हैं l

एक से एक अभद्र टिप्पणियां हैं l जाहिर है यह आई टी सेल की करामात है l हज़ारों , सैकड़ों के लाइक , कमेंट आई टी सेल की पोस्टों या प्रायोजित पोस्टों पर ही होते हैं l आई टी सेल के मार्फ़त या प्रायोजित पोस्ट करवाने वाले यह कौन लोग हैं , बताने की ज़रूरत नहीं है l

नफ़रत और घृणा का यह अजब चक्रव्यूह है l सोशल मीडिया पर यह जाने कौन सा समय है l कि किसी का दुःख भी लोगों का सुख बन गया है l किसी का निजी जीवन भी लोगों को अपनी घृणा बघारने का सबब बन गया है l किसी का दांपत्य टूटना हर्ष और घृणा का विषय भी हो सकता है भला , यह देखना अचरज में डालता है l स्त्री विमर्श के पहरुआ जाने किस दड़बे में छुपे पड़े हैं l

चित्रा का कुसूर उन का त्रिपाठी होना ही हो गया है l

नई राजनीति , नई कॉमेडी और नई पत्रकारिता

दयानंद पांडेय


नाम का नाम , दाम का दाम ! पता चला है कि इन्हीं दो-चार दिन में कुणाल कामरा को सहानुभूति में दो करोड़ रुपए की क्राऊड फंडिंग मिल गई है। यू ट्यूब की कमाई अलग है। जो लोग नहीं जानते थे कुणाल कामरा को , वह भी जानने लगे। मैं भी नहीं जानता था। जान गया। फ़िल्मी गानों की पैरोडी में गाली ठूंस कर गाता है कुणाल कामरा मोदी और मोदी से जुड़े लोगों के ख़िलाफ़। गाली - गलौज कब से कॉमेडी हो गई ? अगर हो गई है तो मोदी राज की यह नई उपलब्धि है।

राहुल गांधी जो बात अपने भाषणों में बोलते हैं , वही बात कुणाल कामरा अपने पैरोडी गानों में गाली भर कर , कॉमेडी बता कर गाता है। राठी , रवीश कुमार , प्रसून , अजित अंजुम अपने यू ट्यूब में बोलते हैं। वह गाता है , यह बोलते हैं। वह अपने को कलाकार बताता है , यह अपने को पत्रकार बताते हैं। राहुल के लोग , इंडी गठबंधन के लोग मज़े लेते हैं। मोदी के लोग कुढ़ते रहते हैं। पर मारपीट , तोड़फोड़ नहीं। राजनीतिक दलाली करने वाले कुछ लेखक भी यही सब करते हैं जो कुणाल कामरा करता है। वह एक मंचीय कवि संपत सरल भी इसी बीमारी से ग्रस्त हो कर अपने को महाकवि मानता है। आजकल लगता है उस की दुकान ठंडी हो गई है। दिख नहीं रहा। नफ़रत और घृणा की उस की दुकान भी एक समय ख़ूब चलती थी।

नफ़रत और घृणा से भरी हुई दुकान है इन सब की भी। पर चलती हुई दुकान है। कुछ इस तरह समझिए कि राठी , रवीश कुमार , प्रसून , अजित अंजुम आदि की दुकान का एक्सटेंशन है कुणाल कामरा। राहुल गांधी का चंपू। पर अब की वह उद्धव ठाकरे का चंपू बन कर शिंदे के शिकार पर लग गया। फंस गया।

क्या है कि आप ट्रंप के ख़िलाफ़ , मोदी , शी जिनपिंग या पुतिन के ख़िलाफ़ कुछ भी लिख या बोल दें , कोई नोटिस नहीं लेता। लेकिन किसी लोकल गुंडे या नेता के ख़िलाफ़ कुछ बोल या लिख दें , उन के लोग आप की नोटिस ले लेते हैं। कुटाई कर देते हैं। तोड़ - फोड़ कर देते हैं। किसी विशेष जाति या विशेष धर्म के साथ भी यही है। हिंदू देवी , देवता के ख़िलाफ़ लोग रोज ही बोलते या लिखते रहते हैं। कौन पूछता है ?

कोई नहीं पूछता। इसी लिए ज़्यादातर कलाकार , पत्रकार लोकल लोगों के ख़िलाफ़ नहीं लिखते , बोलते या गाते। सौ बात की एक बात आप राहुल गांधी को अगर नेता मानते हैं तो कुणाल कामरा कलाकार है। नेता नहीं मानते तो यह कलाकार नहीं है।

वैसे कोई पता कर सके तो ज़रूर कर के बताए कि जब कंगना रानावत का घर या कार्यालय जो भी था उद्धव ठाकरे ने गिरवाया था और संजय राऊत ने सामना में छापा था कि उखाड़ दिया ! तो कंगना रानावत को भी कुछ क्राऊड मिली थी क्या ? मुझे तो नहीं याद आता। हां , भाजपा का टिकट मिला और वह सांसद हो गई। अभिनेत्री भी वह शानदार है। पर कुणाल कामरा तो बहुत बेहूदा है। कलाकार तो हरगिज नहीं।

हां , इस बीच कुछ पुरानी क्लिपिंग्स भी देखने को मिलीं जो राजनीतिक दलाली करने वाले कुछ लेखकों और पत्रकारों ने दिखाईं कि यह देखिए कि तब तो नेता , नाराज नहीं होते थे। जैसे लालू की मिमिक्री वाली। एक तो सोनिया और मनमोहन सिंह की भी। कि कैसे सोनिया मनमोहन को कठपुतली , पिट्ठू और चमचा बनाए हुई थीं। मारे उत्साह में यह राजनीतिक दल्ले नहीं समझ पाए कि अपनी ही पोल खोले जा रहे हैं। यह राजनीतिक दलाल भूल गए कि कैसे कार्टूनिस्टों और पत्रकारों को कांग्रेस राज में जेल भेजा गया। हत्या हुई। इधर मुलायम , अखिलेश , लालू राज में पत्रकारों की हत्या भी यह लोग भूल गए।

अच्छा , मिमिक्री कलाकार क्या तब , क्या अब गाली - गलौज करते हैं। जो कुणाल कामरा टाइप लोग करने लगे हैं। राठी , रवीश , प्रसून , अभिसार , अंजुम आदि-इत्यादि भी विक्टिम कार्ड खेलते हुए बस मां-बहन नहीं उच्चारते पर देते तो गाली ही हैं। मंशा और फ़ितरत तो वही है। यह नई पत्रकारिता और नई कॉमेडी का दौर है ! ख़ुमार बाराबंकवी याद आते हैं :

चरागों के बदले मकां जल रहे हैं
नया है ज़माना नई रोशनी है।

इस लिए भी कि इस नए ज़माने ने हमें बता दिया है कि राणा सांगा गद्दार है और औरंगज़ेब एक नायाब बादशाह !