Thursday, 14 September 2023

हम हिंदी की जय जयकार करने वाले कुछ थोड़े से बचे रह गए लोग

दयानंद पांडेय 


जैसे नदियां , नदियों से मिलती हैं तो बड़ी बनती हैं , भाषा भी ऐसे ही एक दूसरे से मिल कर बड़ी बनती है। सभी भाषाओँ को आपस में मिलते रहना चाहिए। संस्कृत , अरबी , हिंदी , उर्दू , फ़ारसी , अंगरेजी , तमिल , तेलगू , कन्नड़ , मराठी , बंगाली , रूसी , जापानी आदि-इत्यादि का विवाद बेमानी है। अंगरेजी ने साइंस की ज्यादातर बातें फ्रेंच से उठा लीं , रोमन में लिख कर उसे अंगरेजी का बना लिया। तो अंगरेजी इस से समृद्ध हुई और फ्रेंच भी विपन्न नहीं हुई। भाषा वही जीवित रहती है जो नदी की तरह निरंतर बहती हुई हर किसी से मिलती-जुलती रहती है। अब देखिए गंगा हर नदी से मिलती हुई चलती है और विशाल से विशालतर हुई जाती है। हिंदी ने भी इधर उड़ान इसी लिए भरी है कि अब वह सब से मिलने लगी है। भाषाई विवाद और छुआछूत भाषा ही को नहीं मनुष्यता को भी नष्ट करती है। भाषा और साहित्य मनुष्यता की सेतु है , इसे सेतु ही रहने दीजिए।

हम तो जानते और मानते थे कि हिंदी हमारी मां है , भारत की राज भाषा है। लेकिन कुछ साल पहले हिंदी दिवस पर माकपा महासचिव डी राजा ने एक नया ज्ञान दिया था कि हिंदी हिंदुत्व की भाषा है। उधर हैदराबाद से असदुद्दीन ओवैसी ने भी यही जहर उगला। ओवैसी ने कहा है कि भारत हिंदी , हिंदू और हिंदुत्व से बड़ा है। यह सब तो कुछ वैसे ही है जैसे अंगरेजी , अंगरेजों की भाषा है। उर्दू , मुसलामानों की भाषा है। संस्कृत पंडितों की भाषा है। इन जहरीलों को अब कौन बताए कि भाषा कोई भी हो , मनुष्यता की भाषा होती है। संस्कृत , हिंदी हो , अंगरेजी , उर्दू , फ़ारसी , अरबी , रूसी , फ्रेंच या कोई भी भाषा हो , सभी भाषाएं मनुष्यता की भाषाएं है। सभी भाषाएं आपस में बहने हैं , दुश्मन नहीं। पर यह भी है कि जैसे अंगरेजी दुनिया भर में संपर्क की सब से बड़ी भाषा है , ठीक वैसे ही भारत में हिंदी संपर्क की सब से बड़ी भाषा है। तुलसी दास की रामायण पूरी दुनिया में पढ़ी और गाई जाती है। लता मंगेशकर का गाना पूरी दुनिया में सुना जाता है।

तीन वर्ष पहले तमिलनाडु के शहर कोयम्बटूर गया था , वहां भी हिंदी बोलने वाले लोग मिले। शहर में हिंदी में लिखे बोर्ड भी मिले। ख़ास कर बैंकों के नाम। एयरपोर्ट पर तो बोर्डिंग वाली लड़की मेरी पत्नी को बड़ी आत्मीयता और आदर से मां कहती मिली। मंदिरों में हिंदी के भजन सुनने को मिले। मेरी बेटी का विवाह केरल में हुआ है। वहां हाई स्कूल तक हिंदी अनिवार्य विषय है। मेरी बेटी की चचिया सास इंडियन एयर लाइंस में हिंदी अधिकारी हैं। मेरे दामाद डाक्टर सवित प्रभु बैंक समेत हर कहीं हिंदी में ही दस्तखत करते हैं। मेरे पितामह और पड़ पितामह ब्राह्मण होते हुए भी उर्दू और फ़ारसी के अध्यापक थे। हेड मास्टर रहे। महाराष्ट्र , आंध्र प्रदेश के लोगों ने मेरे हिंदी उपन्यासों पर रिसर्च किए हैं। अभी भी कर रहे हैं। पंजाबी , मराठी , उर्दू और अंगरेजी में मेरी कविताओं और कहानियों के अनुवाद लोगों ने अपनी पसंद और दिलचस्पी से किए हैं। मराठी की प्रिया जलतारे जी [ Priya Jaltare ] तो जब-तब मेरी रचनाओं , कविता , कहानी , ग़ज़ल के मराठी में अनुवाद करती ही रहती हैं ।

मुंबई में भी लोगों को बेलाग हिंदी बोलते देखा है । नार्थ ईस्ट के गौहाटी , शिलांग , चेरापूंजी , दार्जिलिंग , गैंगटोक आदि कई शहरों में गया हूं , हर जगह हिंदी बोलने , समझने वाले लोग मिले हैं। कोलकाता में भी। श्रीलंका के कई शहरों में गया हूं। होटल समेत और भी जगहों पर लोग हिंदी बोलते , हिंदी फिल्मों के गाने गाते हुए लोग मिले। तमाम राष्ट्राध्यक्षों को नमस्ते ही सही , हिंदी बोलते देखा है। लेकिन भारत ही एक ऐसी जगह है जहां लोग हिंदी के नाम पर नफ़रत फैलाते हैं। महात्मा गांधी गुजराती थे लेकिन उन्हों ने हिंदी की ताकत को न सिर्फ़ समझा बल्कि आज़ादी की लड़ाई का प्रमुख स्वर हिंदी ही को बनाया। अंगरेजी वाले ब्रिटिशर्स को हिंदी बोल कर भगाया। गुजराती नरेंद्र मोदी भी दुनिया भर में अपने भाषण हिंदी में ही देते हैं। उन की हिंदी में ही दुनिया भर के लोग उन के मुरीद होते हैं। अभी जल्दी ही अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चुटकी लेते हुए कहा भी कि नरेंद्र मोदी अंगरेजी अच्छी जानते हैं पर बोलते हिंदी में ही हैं। प्रधान मंत्री रहे नरसिंहा राव तेलुगु भाषी थे पर हिंदी में भाषण झूम कर देते थे।

जयललिता भले हिंदी विरोधी राजनीति करती थीं पर हिंदी फ़िल्मों की हिरोइन भी थीं। धर्मेंद्र उन के हीरो हुआ करते थे। जयललिता हिंदी अच्छी बोलती भी थीं। वैजयंती माला , वहीदा रहमान , हेमा मालिनी , रेखा , श्रीदेवी , विद्या बालन आदि तमाम हीरोइनें तमिल वाली ही हैं। बंगाली , मराठी , पंजाबी और तमिल लोगों का हिंदी फिल्मों में जो अवदान है वह अद्भुत है। निर्देशन , गीत , संगीत , अभिनय आदि हर कहीं। अटल बिहारी वाजपेयी ने बतौर विदेश मंत्री जब संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दे कर हिंदी की वैश्विक पताका फहराई थी तो पूरा देश झूम गया था। सुषमा स्वराज ने बतौर विदेश मंत्री , संयुक्त राष्ट्र संघ में अटल जी द्वारा बोए हिंदी के बीज को वृक्ष के रूप में पोषित किया। यह अच्छा ही लगा कि आज एक और गुजराती अमित शाह ने हिंदी के पक्ष में बहुत ताकतवर और बढ़िया भाषण दिया है। अमित शाह के आज के भाषण से उम्मीद जगी है कि हिंदी जल्दी ही राष्ट्र भाषा के रूप में प्रतिष्ठित होगी। शायद इसी लिए डी राजा समेत ओवैसी समेत कुछ लोग बौखला कर हिंदी को हिंदुत्व की भाषा बताने लग गए हैं। इन की बौखलाहट बताती है कि हिंदी भाषा का भविष्य बहुत उज्ज्वल है।

राजनीतिक दलों के बगलबच्चा विभिन्न लेखक संगठनों ने राजनीतिक दलों का एजेंडा सेट करने के अलावा क्या कभी लेखकों की भी कोई लड़ाई लड़ी है ? लड़ाई तो छोड़िए अपने लिखे की मजदूरी यानी सो काल्ड रायल्टी तक की लड़ाई भी लड़ते किसी ने देखा है कभी ? तब जब कि कम से कम सरकारी ख़रीद में ही बाकायदा नियम है कि लेखक को रायल्टी दी गई है , इस की एन ओ सी देने पर ही प्रकाशक को भुगतान दिया जाए। सारे बेईमान प्रकाशक लेखकों के फर्जी दस्तखत से सरकारी भुगतान के लिए एन ओ सी दे कर भुगतान ले लेते हैं। करोड़ो रुपए का यह खेल है । और यह दुनिया भर की लड़ाई का स्वांग भरने वाले लेखक और लेखक संगठन अपनी ही लड़ाई लड़ने से सर्वदा भाग जाते हैं। शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर धंसा लेते हैं। कांग्रेस और वाम दलों के टुकड़ों पर खेलने , खाने वाले लेखक संगठनों की यह हिप्पोक्रेसी अब किसी से छुपी नहीं है। सोचिए कि जो लोग अपनी और अपने श्रम की मेहनत का दाम पाने के लिए टुच्चे और भ्रष्ट प्रकाशकों से नहीं लड़ सकते , वह लोग फासिस्ट ताकतों से , बाज़ार से , सांप्रदायिकता से और जाने किस , किस और इस , उस से लड़ने का दम भरते हैं। जैसे भारत का विपक्ष जनता जनार्दन से कट कर सारी लड़ाई सोशल मीडिया पर लड़ने की हुंकार भरता रहता है , हमारे लेखक और लेखक संगठन भी जनता जनार्दन से कट कर हवा में काठ की तलवार भांजते हैं। 

नकली कहानी , नकली कविता और एक दूसरे की पीठ खुजाती आलोचना के औजार से वह समाज को , व्यवस्था को एक झटके से बदल देने का सपना देखते हैं , लफ्फाजी झोंकते हैं और शराब पी कर सो जाते हैं। नहीं जानते कि अधिकांश जनता आखिर क्यों गेरुआ हुई जा रही , नहीं चाहते कि जनता का मिजाज बदले । चाहते तो लफ्फाजी और हिप्पोक्रेसी की अपनी यह चादर उतार कर जनता से मिलते , जनता को समझते , समझाते। समाज और व्यवस्था को बदलने की ज़मीनी बात करते। बात करना तो दूर इन हिप्पोक्रेट लेखकों , कवियों की सारी रचनात्मकता एक व्यक्ति और एक पार्टी की नफ़रत में खर्च हुई जाती दिखती है। कोई किसी पन्ने पर उल्टी कर रहा है , कोई किसी पन्ने पर पेशाब कर रहा है , कोई किसी पन्ने को कमोड बना कर आसीन है। लेकिन इस फासिज्म , इस सांप्रदायिकता , इस बाज़ार से लड़ती एक कारगर रचना नहीं कर पा रहा कोई। कालजयी रचना तो बहुत दूर की बात है। जो लोग खुद की सुविधा नहीं छोड़ सकते , खुद को नहीं बदल सकते , वह लोग व्यवस्था बदल देने का नित नया पाखंड भाख रहे हैं। नफरत और घृणा का प्राचीर रच रहे हैं। भूल गए हैं कि साहित्य समाज को तोड़ने का औजार नहीं , साहित्य समाज का सेतु होता है। धन्य , धन्य कवि और धन्य , धन्य कविता ! और क्या कहें , कैसे और कितना कहें !

हर भाषा का सम्मान करना सीखिए। हर भाषा स्वाभिमानी होती है । आन-बान-शान होती है । याद रखिए कि भाषा का भेद और भाषा का अपमान दुनिया का भूगोल बदल देता है। मनुष्यता चीखती है । अगर भारत के विभाजन का कारण धार्मिक था , इस्लामिक कट्टरपन था और पाकिस्तान बना । तो भाषाई भेद भाव ही था जो बांग्लादेश बना । बांग्ला भाषियों पर अगर जबरिया उर्दू न थोपी गई होती , फौजी बूटों तले बांग्ला न दबाई गई होती तो दुनिया का भूगोल नहीं बदलता , बांग्लादेश नहीं बनता । मनुष्यता अपमानित न हुई होती । लाखो-करोड़ो लोग अनाथ और बेघर न हुए होते । हिंदी दिवस पर हिंदी की जय ज़रुर कीजिए , ख़ूब जोर-शोर से कीजिए पर दुनिया भर की भाषाओँ का सम्मान करते हुए । किसी का अपमान करते हुए नहीं । भाषाई औरंगज़ेब बनने से हर कोशिश , हर संभव बचिए ।

पहले अ पर ए की मात्रा लगा कर एक लिखा जाता था। गांधी की पुरानी किताबें उठा कर देखिए। कुछ और ही वर्तनी है। गुजराती से मिलती-जुलती। भारतेंदु की , प्रेमचंद की पुरानी किताबें पलटिए वर्तनी की लीला ही कुछ और है। सौभाग्य से मैं ने तुलसी दास के श्री रामचरित मानस की पांडुलिपि भी देखी है। श्री रामचरित मानस के बहुत पुराने संस्करण भी। वर्तनी में बहुत भारी बदलाव है। वर्तनी कोई भी उपयोग कीजिए , बस एकरूपता बनी रहनी चाहिए। अब यह नहीं कि एक ही पैरे में सम्बन्ध भी लिखें और संबंध भी । आए भी और आये भी। गयी भी और गई भी। सभी सही हैं , कोई ग़लत नहीं। लेकिन कोशिश क्या पूरी बाध्यता होनी चाहिए कि जो भी लिखिए , एक ही लिखिए। एकरूपता बनी रहे। यह और ऐसी बातों का विस्तार बहुत है। भाषा विज्ञान विषय और भाषाविद का काम बहुत कठिन और श्रम साध्य है। लफ्फाजी नहीं है। पाणिनि होना , किशोरी प्रसाद वाजपेयी होना , भोलानाथ तिवारी होना , रौजेट होना , अरविंद कुमार होना , बरसों की तपस्या , मेहनत और साधना का सुफल होता है। व्याकरणाचार्य होना एक युग की तरह जीना होता है। वर्तनी और भाषा सिर्फ़ विद्वानों की कृपा पर ही नहीं है। छापाखानों का भी बहुत योगदान है। उन की सुविधा ने , कठिनाई ने भी बहुत से शब्द बदले हैं। चांद भले अब सपना न हो , पर चंद्र बिंदु अब कुछ समय में सपना हो जाएगा। हुआ यह कि हैंड कंपोजिंग के समय यह चंद्र बिंदु वाला चिन्ह का फांट छपाई में एक सीमा के बाद कमज़ोर होने के कारण टूट जाता था। तो कुछ पन्नों में चंद्र बिंदु होता था , कुछ में नहीं। तो रसाघात होता था। अंततः धीरे-धीरे इस से छुट्टी ली जाने लगी। बहस यहां तक हुई कि हंस और हंसने का फर्क भी कुछ होता है ? पर छापाखाने की दुविधा कहिए या सुविधा में यह बहस गुम होती गई। यही हाल , आधा न , आधा म के साथ भी होता रहा तो इन से भी छुट्टी ले ली गई। ऐसे और भी तमाम शब्द हैं । जब कंप्यूटर आया तो और बदलाव हुए। यूनीकोड आया तो और हुए। अभी और भी बहुत होंगे। तकनीक बदलेगी , बाज़ार और मन के भाव बदलेंगे तो भाषा , शब्द और वर्तनी भी ठहर कर नहीं रह सकेंगे। यह सब भी बदलते रहेंगे। भाषा नदी है , मोड़ पर मोड़ लेती रहेगी। कभी करवट , कभी बल खा कर , कभी सीधी , उतान बहेगी। बहने दीजिए। रोकिए मत। वीरेंद्र मिश्र लिख गए हैं , नदी का अंग कटेगा तो नदी रोएगी। भाषा और नदी कोई भी हो उसे रोने नहीं दीजिए , खिलखिलाने दीजिए।

हम हिंदी की जय जयकार करने वाले कुछ थोड़े से बचे रह गए लोगों में से हैं । हिंदी हमारी अस्मिता है । हमारा गुरुर , हमारा मान है । यह भी सच है कि सब कुछ के बावजूद आज की तारीख में हिंदी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है । पर एक निर्मम सच यह भी है कि आज की तारीख में हिंदी की जय जयकार वही लोग करते हैं जो अंगरेजी से विपन्न हैं । हम भी उन्हीं कुछ विपन्न लोगों में से हैं । जो लोग थोड़ी बहुत भी अंगरेजी जानते हैं , वह हिंदी को गुलामों की भाषा मानते हैं । अंगरेजी ? अरे मैं देखता हूं कि मुट्ठी भर उर्दू जानने वाले लोग भी हिंदी को गुलामों की ही भाषा न सिर्फ़ मानते हैं बल्कि बड़ी हिकारत से देखते हैं हिंदी को । बंगला , मराठी , गुजराती , तमिल , तेलगू आदि जानने वालों को भी इन उर्दू वालों की मानसिकता में शुमार कर सकते हैं । नई पीढ़ी तो अब फ़िल्में भी हालीवुड की देखती है , बालीवुड वाली हिंदी फ़िल्में नहीं । पढ़ी-लिखी नई पीढ़ी के लिए हिंदी अब दादी-दादा , नानी-नाना वाली भाषा है । वह हिंदी की गिनती भी नहीं जानती । सो जो दयनीय हालत कभी भोजपुरी , अवधी की थी , आज वही दयनीयता और दरिद्रता हिंदी की है । तो जानते हैं क्यों ? हिंदी को हम ने कभी तकनीकी भाषा के रुप में विकसित नहीं किया । विज्ञान , अर्थ , कानून , व्यापार कहीं भी हिंदी नहीं है । तो जो भाषा विज्ञान और तकनीक नहीं जानती , उसे अंतत: बोली जाने वाली भाषा बन कर ही रह जाना है , मर जाना है । दूसरे हिंदी साहित्य छापने वाले प्रकाशकों ने हिंदी को रिश्वत दे कर सरकारी ख़रीद की गुलाम बना कर मार दिया है । लेखक-पाठक का रिश्ता भी समाप्त कर दिया है । साहित्यकार खुद ही लिखता है , खुद ही पढ़ता है । हम हिंदी की लाख जय जयकार करते रहें , पितृपक्ष में हिंदी दिवस मनाते रहें , हिंदी अब सचमुच वेंटीलेटर पर है , बोलने वाली भाषा बन कर । ऐसे में भारतेंदु हरिश्चंद्र की यह कविता और ज़्यादा प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो जाती है :


मातृ-भाषा के प्रति / भारतेंदु हरिश्चंद्र


निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।


अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन।

पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।


उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय।

निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।।


निज भाषा उन्नति बिना, कबहुँ न ह्यैहैं सोय।

लाख उपाय अनेक यों भले करो किन कोय।।


इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग।

तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।।


और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात।

निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।।


तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय।

यह गुन भाषा और महं, कबहूँ नाहीं होय।।


विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।

सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।


भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात।

विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।।


सब मिल तासों छाँड़ि कै, दूजे और उपाय।

उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।।

Wednesday, 13 September 2023

बीच विपश्यना में दारिया नाम की लड़की के प्रेम के दरिया में डूबा विनय

शन्नो अग्रवाल

'विपश्यना' उपन्यास के लेखक दयानंद पांडेय जी की सरस, सरल और रोचक भाषा शैली के सभी कायल हैं। वह अपने लेखन में जीवन के तमाम बिंदुओं को अपने काल्पनिक किरदारों के माध्यम से उतारने की अद्भुत क्षमता रखते हैं।

इस उपन्यास को भी उन्होंने अपनी उसी रोचक भाषा-शैली का लिबास पहनाया है। जिसे पढ़ते हुये पाठक अंत तक ऊबता नहीं। इसके कथानक में मुख्य किरदार हैं विनय बाबू जो अपने गृहस्थ जीवन से दुखी होकर कुछ दिनों के लिये मानसिक शांति की खोज में चिंतन करने एक शिविर में आते हैं। लेकिन बाद में उन्हें पता लगता है कि वह जिस तरह के आश्रम की कल्पना करके आये थे वह माहौल यहाँ नहीं है। यहाँ तो चारों तरफ हर समय मौन ही मौन पसरा था। और उनसे चिंतन नहीं हो पाता था। मौन रहना उन्हें खलने लगा क्योंकि उनके अंदर का शोर बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था। न जाने वह कैसा शोर था कि उसके बारे में वह खुद भी नहीं जानते थे।  

आश्रम के नियमों के अनुसार आने वाले लोगों पर शारीरिक, मानसिक हर तरह के सुखों पर प्रतिबंध थे। मनोरंजन का कोई साधन नहीं, नमकीन, मिठाई, बिस्किट आदि सभी चीजें खाना मना था। सात्विक भोजन ही खाने को मिलता था। बाहर जाने पर प्रतिबंध था और न ही आश्रम में किसी से मिल-जुल कर बतिया सकते थे। लेकिन उन्हें एक खास तरह की बेचैनी है जिसे वह खुद ही नहीं समझ पाते हैं। उनके मन में एक अजीब शोर है जिसे वह शांत करने में असमर्थ हैं। आचार्य जी से अपनी चिंता बताते हैं तो वह बस उन्हें टके सा जबाब दे देते हैं कि 'मौन साधते रहो। समय के साथ एक दिन यह शोर बंद हो जायेगा' हर बार यही जबाब देकर गुरु जी उन्हें टरका कर मौन हो जाते हैं।

खैर, उस शोर को बंद करने की जब सारी उम्मीदें टूट जाती हैं तो अचानक एक दिन उनकी तकदीर पलटा खाती है। 'बिल्ली के भाग छींका टूटा' वाली बात हो जाती है। एक दिन शिविर में ही मौन साधने के दौरान एक विदेशी लड़की से आँखें चार हो जाती हैं। 'नयन लड़ि जइहैं तो मनवा में कसक हुइवे करी'....और बस उसी पल से विनय के मन में जैसे सावन की रिमझिम होने लगती है। उनकी जिंदगी में उस मौन के पतझर में भी बहार आ जाती है। 

एक दिन बाग में घूमने के दौरान दोनों फिर टकरा जाते हैं एक दूसरे से। और बस वहीं से उनका प्रेम प्रसंग शुरू हो जाता है। सतर्कता बरतते हुये रोज ही चोरी छिपे दोनों मिलने लगते हैं। अब विनय के मन का शोर भी कम होने लगता है और मौन साधना में भी चित्त लगने लगता है। जैसे कोई चमत्कार हो गया हो। 

दारिया नाम की उस लड़की के प्रेम के दरिया में वह इतना डूब जाते हैं कि उन्हें अपना होश नहीं रहता। आगे के परिणाम के बारे में कुछ नहीं सोचना चाहते। उन दोनों के बीच भाषा थोड़ी बाधक बनती है। किंतु उस जंजीर को तोड़कर, आश्रम के  नियमों के विरुद्ध, आचार्य जी व अन्य लोगों की आँखों में धूल झोंक कर उन दोनों की वासना की पैगें बढ़ती रहती हैं। उनका मिशन सफल रहता है। और फिर एक दिन आश्रम में रहने की अवधि समाप्त होते ही सब एक दूसरे से विदा लेते हैं।

विनय के जीवन में क्या उथल-पुथल होने वाली है इस बात से वह अनजान हैं। और कुछ महीनों बाद ही उन दोनों के कर्मों का परिणाम उन्हें सुनने को मिलता है....विपश्यना। जिसने दारिया की कोख से जन्म लिया है। दारिया फोन करके विनय को बताती है कि बेटे का नाम वह विपश्यना रखने जा रही है। जिसका बीज आश्रम की विपश्यना के दौरान पड़ा था। और अब वह बच्चा उन दोनों को जीवन भर उस विपश्यना की याद दिलाता रहेगा जिसके लिये वह आश्रम गये थे। रिश्तों की यह कैसी विडंबना है? 

आश्रम जैसी जगह में आचार्य जी की नाक के नीचे दोनों इस तरह का कांड करते रहे। जैसे बिल्ली आँख मूँदकर दूध पीती रहती है कि कोई उसे देख नहीं रहा....वैसा ही उनका हाल था। विनय को इस बात का कोई अंदेशा नहीं था कि दारिया शादी-शुदा होते हुये भी सिर्फ माँ बनने के लिये उसका इस्तेमाल कर रही थी। क्योंकि उसका पति उसे माँ बनने का सुख देने में असमर्थ था। आश्चर्य तो इस बात से होता है कि वह भी उसी आश्रम में रहते हुये इन दोनों की प्रेमलीला से बेख़बर था। 

यह उपन्यास आजकल के उन लोगों की तरफ इंगित करता है जो शिविरों में अपने मन की शांति खोजने आते हैं। पर मन चंचल होने से वह आश्रम के सख्त नियमों की परवाह न करके किसी तरह सबकी आँखों में धूल झोंक कर अपनी मनमानी करने में समर्थ हो जाते हैं। इस उपन्यास का नायक विनय भी ऐसा ही है। 

उपन्यास में दयानंद जी की पैनी दृष्टि ने समाज के ऐसे ही विकृत मानसिकता के लोगों की झाँकी दिखाई है। कुछ लोग तो छुट्टी मनाने के उद्देश्य से आश्रम में दाखिल हो जाते हैं। उनका इरादा वहाँ साधना करना नहीं बल्कि आश्रम के शांत वातावरण में रहकर कुछ दिन बिताने का होता है। किसके मन में क्या है किसी को पता नहीं चलता। ऐसे लोग 'मन में राम बगल में ईंटे' लेकर आश्रम जैसी पवित्र जगह में मन की शांति ढूँढने आते हैं। लेकिन वहाँ भी वासना की भावना उनका पीछा करती रहती है। शांत वातावरण में भी उनका चित्त स्थिर नहीं रहता। 

यही बात आजकल के साधु, संतों और महंतों के बारे में भी कही जा सकती है। उनके दुराचारों की कहानियाँ भी अक्सर सुनी जाती हैं। गेरुआ वसन के पीछे की असलियत पता चलने पर भी लोगों का ऐसे लोगों के प्रति सम्मान व अंधविश्वास बना रहता है। आश्रम की दीवारें कितने भेद छिपाये हुये हैं इसका खुलासा अक्सर होता रहता है। इस तरह के साधु-संतों की ढकोसलेबाजी अब जनता जानने लगी है। 

'पर्दे में रहने दो, पर्दा न उठाओ

पर्दा जो उठ गया तो राज खुल जायेगा

अल्लाह मेरी तोबा, अल्लाह मेरी तोबा....'

लेकिन....कभी न कभी, कहीं न कहीं, कोई न कोई तो पर्दाफाश कर ही देता है। और तब उनकी अच्छी मलामत होती है।

उपन्यासकार दयानंद जी के इस निर्भीक लेखन ने आश्रमों की जो तसवीर उकेरी है उसके लिये उन्हें बहुत बधाई। शुभकामनाओं के साथ.....

[ शन्नो अग्रवाल जी , लंदन में रहती हैं। ]


विपश्यना में प्रेम उपन्यास पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए 


विपश्यना में विलाप 


समीक्ष्य पुस्तक :



विपश्यना में प्रेम 

लेखक : दयानंद पांडेय 

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 

4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002 

आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र 

हार्ड बाऊंड : 499 रुपए 

पेपरबैक : 299 रुपए 

पृष्ठ : 106 

अमेज़न (भारत)
हार्डकवर : https://amzn.eu/d/g20hNDl

 

Sunday, 10 September 2023

जी-20 से दमकता भारत और मोदी निंदकों की मुश्किलें

दयानंद पांडेय 

मोदी विरोधियों को इस एक तथ्य से भी ज़रुर परिचित हो लेना चाहिए कि चुप रहना भी एक कला है। कबीर कह ही गए हैं : अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, / अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप। यू ट्यूबर टाइप बीमार लोगों समेत कुछ संपादकों को भी जान लेना चाहिए कि वह संपादक हैं , सम-पादक नहीं। जान लीजिए कि जी -20 ने भारत और नरेंद्र मोदी की कीर्ति में बेतहाशा इज़ाफ़ा किया है। नरेंद्र मोदी और भारत विश्व में सूर्य की तरह दमक रहे हैं। इन्हें दमकने दीजिए। विरोध और निंदा के लिए बहुतेरे विषय हैं। जी -20 के आयोजन और उस की सफलता पर गर्व करना सीखिए। सूर्य पर थूकने से बाज आइए। जिस जी -20 पर समूची दुनिया गर्व कर रही है , आप उस में छेद खोज-खोज कर , विष-वमन कर ख़ुद को अपमानित कर रहे हैं। मत सम्मान कीजिए भारत और नरेंद्र मोदी का पर मुसलसल अपना अपमान भी मत कीजिए। 

कोणार्क और नालंदा के प्रतीक को समझिए। यह बहुत बड़ा प्रतीक है और संदेश भी। आप अगर इस संदेश को अभी तक नहीं समझ पाए हैं तो राजघाट पर साबरमती आश्रम के प्रतीक और संदेश को ही समझ लीजिए। एक साथ इतने सारे राष्ट्राध्यक्ष गांधी समाधि पर कभी एक साथ सिर झुकाने नहीं गए। आज ही गए। यू के , यू एस , अरब देश , अफ्रीकी यूनियन सहित सभी भारत की कूटनीति के आगे नतमस्तक हैं। चीन के भी सुर बदल गए हैं। फिर भी आप अगर इतने विक्षिप्त हो गए हैं कि यह सारा कुछ जो दो दिन में सहसा घट गया है , और इस बड़ी घटना को नहीं समझ पा रहे हैं तो भी कोई दिक़्क़त नहीं है। मौज़ कीजिए। 

पर जो इसी तरह अपना सिर दीवार में अकारण मारते रहेंगे तो सिर आप का ही फूटेगा। नुकसान आप का ही होगा। कोणार्क सिर्फ़ एक चक्र भर नहीं है। सूर्य बन पूरी पृथ्वी को रौशनी देने वाला चक्र है। गरमी-बरसात-सर्दी  बताने वाला भी। नालंदा सिर्फ़ एक विश्वविद्यालय नहीं है। विद्या और ज्ञान की पुरातन क्षमता का एहसास है। साबरमती सिर्फ़ आश्रम नहीं है , शांति और अहिंसा का संदेश है। भारत के गौरव और ऐश्वर्य का यह दर्पण है। जी-20 के बहाने भारत के इस दर्पण को निहारना सुखद है। नालंदा के पुस्तकालय में खिलजी ने आग लगाई थी। अब वही आग आप अपनी हताशा में अपने भीतर लगाए बैठे हैं। मोदी विरोध की बीमारी में झुलस कर अपने भीतर के नालंदा को क्यों जला रहे हैं। बचिए इस आग को लगाने से। बचाइए अपने भीतर के नालंदा को। यूक्रेन युद्ध की आग में झुलस रहा है। लेकिन आज देखा कि एक यूक्रेनी डेलीगेट जाकेट ख़रीद और पहन कर किसी को बता रहा था कि , यस मोदी जाकेट ! अच्छा अक्षर धाम मंदिर में मत्था टेक कर नारायण का दर्शन करने वाले ब्रिटेन का प्रधानमंत्री भी आप को नहीं दिखा ? इस संदेश को भी आप नहीं समझ पाए ? चश्मा बदलिए और इस शक्ति को समझिए। 

सनातन की शक्ति यही तो है। 

नरेंद्र मोदी और भारत अब आप के लिए चीन की दीवार से भी बड़ी दीवार बन कर उपस्थित हैं। भारत से यूरोप तक जो आर्थिक कारीडोर बनाने की राह बनी है , इसे क्या समझते हैं आप ? पाकिस्तान की राह पर चीन को अनायास धकेल दिया है मोदी के इस मास्टरस्ट्रोक ने। जी-20 की अध्यक्षता और मेज़बानी के अन्य अनेक संदेश हैं। वसुधैव कुटुंबकम की खिल्ली उड़ाने में आप की उस्तादी किसी से छुपी नहीं है। पर यह देखिए कि दुनिया इसी वसुधैव कुटुंबकम के सूत्र में बंध गई है। ऐसे जैसे किसी रक्षाबंधन पर बहन राखी बांध कर भाई से अपने संबंध को ताक़त  और ताज़गी से भर लेती है। तो ठीक वैसे ही बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर अब दुनिया के सामने इसी वसुधैव कुटुंबकम के सूत्र में बंध कर। भारत के साथ बिना किसी हिच के समूची दुनिया क़दमताल कर रही है।

नरेंद्र मोदी बहुत बड़े इवेंट मैनेजर हैं , यह बात उन के विरोधी भी तंज में अकसर कहते ही रहते हैं। मोदी के इन निंदकों को अब जान लेना चाहिए कि नरेंद्र मोदी इवेंट मैनेजर तो हैं ही बड़े , मेज़बान और कूटनीतिज्ञ भी बहुत बड़े हैं। अब यह एक तथ्य है और सत्य भी। विश्व गुरु का तंज भी कसिए ज़रुर , और ज़ोर से कसिए , पूरी ताक़त से कसिए। पर नरेंद्र मोदी ने आज साबित कर दिया है कि विश्व गुरु किसे कहते हैं। गांधी समाधि पर सभी राष्ट्राध्यक्षों की अगुवाई करते मोदी को देख कर आप की तो छाती फट गई होगी। पर मनोज कुमार की फ़िल्म पूरब और पश्चिम के लिए इंदीवर के लिखे , कल्याण जी -आनंद जी के संगीत में महेंद्र कपूर के गाए गीत भारत का रहने वाला हूं / भारत की बात सुनाता हूं , के साथ मोदी का यह वीडियो वायरल हो गया है। सब को मालूम है कि अब आप खीझ कर एक बार फिर गोडसे और सावरकर को फिर से धो-पोंछ कर गरियाने के लिए निकाल लेंगे। शी जिनपिंग की तरह कुढ़ कर आंख चुराने के लिए अब आप के पास रह भी क्या गया है भला। भारत के गौरव से आप की यही चिढ़ , मोदी को निरंतर मज़बूत करती रहती है। इस तथ्य से , इस सत्य से जाने कब आप का साक्षात्कार होगा भला। होगा भी कि नहीं , कौन जाने ! 

फिर भी लीजिए मनोज कुमार की फ़िल्म पूरब और पश्चिम के लिए इंदीवर के लिखे , कल्याण जी -आनंद जी के संगीत में महेंद्र कपूर के गाए गीत भारत का रहने वाला हूं / भारत की बात सुनाता हूं , गीत को यहां पूरा पढ़िए , सुनिए और भारत के दर्पण में ख़ुद को देख कर चुपके से एक बार इतरा भी लीजिए। आनंद मिलेगा। निर्मल आनंद। बाक़ी इंडिया रत्न बन कर भी सीना तान लीजिएगा। कोई हर्ज नहीं। कौन रोकता है भला !


जब जीरो दिया मेरे भारत ने

भारत ने मेरे भारत ने

दुनिया को तब गिनती आयी

तारों की भाषा भारत ने


दुनिया को पहले सिखलायी

देता ना दशमलव भारत तो

यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था


धरती और चाँद की दूरी का

अंदाजा लगाना मुश्किल था


सभ्यता जहाँ पहले आयी

पहले जनमी है जहाँ पे कला

अपना भारत वो भारत है

जिसके पीछे संसार चला


संसार चला और आगे बढ़ा

यूँ आगे बढ़ा, बढ़ता ही गया

भगवान करे ये और बढ़े

बढ़ता ही रहे और फूले फले


होहो होहो हो हो


है प्रीत जहाँ की रीत सदा

है प्रीत जहाँ की रीत सदा

है प्रीत जहाँ की रीत सदा


मैं गीत वहाँ के गाता हूँ

भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

है प्रीत जहाँ की रीत सदा


होहो होहो हो हो


काले-गोरे का भेद नहीं

हर दिल से हमारा नाता है

कुछ और न आता हो हमको

हमें प्यार निभाना आता है


जिसे मान चुकी सारी दुनिया

हो जिसे मान चुकी सारी दुनिया


मैं बात

मैं बात वो ही दोहराता हूँ

भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

है प्रीत जहाँ की रीत सदा


जीते हो किसी ने देश तो क्या

हमने तो दिलों को जीता है

जहाँ राम अभी तक है नर में

नारी में अभी तक सीता है


इतने पावन हैं लोग जहाँ

हो इतने पावन हैं लोग जहाँ

मैं नित नित

मैं नित नित शीश झुकाता हूँ


भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

है प्रीत जहाँ की रीत सदा


होहो होहो हो हो


इतनी ममता नदियों को भी

जहाँ माता कह के बुलाते हैं

इतना आदर इन्सान तो क्या

पत्थर भी पूजे जाते हैं


इस धरती पे मैंने जनम लिया

हो इस धरती पे मैंने जनम लिया


ये सोच


ये सोच के मैं इतराता हूँ

भारत का रहने वाला हूँ

भारत की बात सुनाता हूँ

है प्रीत जहाँ की रीत सदा


होहो होहो हो हो


Wednesday, 30 August 2023

फ़ेसबुक पर वाद-विवाद-संवाद के ऐसे भी रंग

बताइए कि फ़ेसबुक पर वाद-विवाद-संवाद के ऐसे भी रंग मिलते हैं। कि लोग अपनी ही भूलभुलैया में खो जाते हैं। घेरते-घेरते ख़ुद घिर जाते हैं। जाने-अनजाने अपनी ही कुंडली खोल बैठते हैं। इसी लिए लिखा था कि सच तो यह है कि मेरी आलोचना करते हुए लोग डरते हैं। लेकिन यह जनाब मेरे कहे पर यक़ीन नहीं कर पाए। अभी भी समझ नहीं पाए हैं। ख़ैर , आप मित्र इस वाद-विवाद-संवाद पर गौर कीजिए :


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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan इस पोस्ट पर इस प्रश्न का क्या तुक ? या आप का लीगी तत्व भारी हो गया है आप पर ? गोलवलकर के इस कथन के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है। दूसरे , अगर आप ने इस बारे में पढ़ ही रखा है तो मुझ से क्या जानना चाहते हैं ? तीसरे , गोलवलकर का यह कथन आप ने… 
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    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey सर जी Badal Saroj सर की वॉल से
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    • Zafir Khan
      मैं न किसी मुस्लिम लीग से संबंध रखता हूँ न ही किसी पार्टी विशेष से
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan उठल्लू ही निकले आप जैसी कि उम्मीद थी। इस तरह की मूर्खता से बाज आइए। यह मेरी वाल है , आप की कुंठा की चरागाह नहीं। कुछ जानकारी नहीं है तो बंदर की तरह उछलना बंद कीजिए। ऐसी मूर्खता के लिए मेरी वाल नहीं है। न ही इतना अवकाश है।
    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey मैंने सिर्फ प्रश्न किया था आदरणीय आप क्रोधित न होइये, धन्यवाद 🙏
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan क्रोधित क्यों होऊंगा भला ? अगर आप सियार हो कर , शेर की खाल ओढ़ लेंगे तो भी आप को सियार ही कहूंगा , शेर नहीं। तो इस में क्रोध कहां से आ गया ? आप गोलवलकर की किसी कही बात पर अलग से बहस कीजिए। गोलवलकर के लोगों से बात कीजिए। दिक़्क़त क्या है ? आप अभ… 
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    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey जी सिर्फ जानकारी चाहता था मेरा इरादा आपको ठेस पहुंचाने का नहीं था और ये बंच ऑफ थौट से लिया गया है ये सही है या गलत बस यही जानना चाहता था
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan मुझ से क्यों जानना चाहते हैं भला ? क्या मैं गोलवलकर पर अथॉरिटी हूं ? इस प्रश्न को ले कर किसी संघ के आदमी से जानकारी लीजिए। जानता हूं कि आप आइसा या पैगंबर के बाबत कुछ बात करुं तो अनुचित होगा। जानता हूं कि आप इस बाबत अथॉरिटी नहीं हैं। अलग बात  
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      May be an image of 1 person, henna, smiling and wedding
    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey जी आपको कैसे पता चला कि मैंने बेटी की उम्र की लड़की से निकाह किया है
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    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey जी मैंने सिर्फ प्रश्न पूंछा था न कि आपकी भावनाओ को ठेस पहुंचाने का मेरा कोई इरादा था पर आप तो व्यक्तिगत प्रश्न कर रहे हैं
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    • Zafir Khan
      क्या आपके पास मेरी बीबी का बर्थ सर्टिफिकेट है अगर है तो दिखाइये मुझे भी तो पता चले कि मेरी बीबी की आयु कितनी है
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    • Soban Singh Bisht
      कमाल है अब सपने में भी संघ आने लगा तुम सबके...
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan क्या मुस्लिम लीगियों की तरह बार-बार मेरी भावना-भावना की रट लगा रखी है। मेरी भावना किसी गोलवलकर के साथ नहीं , मनुष्यता के साथ संलग्न है। आप की तरह अमानुषिक नहीं हूं। शर्म नहीं आती बेटी की उम्र की लड़की से निकाह कर के ? यह निजी नहीं , सामाजिक प… 
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    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey जी यही तो मैं जानना चाहता हूँ कि मेरी बीबी की जन्म तारीख क्या है, और रही बात मुस्लिम लीग की तो मैं किसी लीग से ताल्लूक नहीं रखता
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan जानता हूं , अभी ब्लाक कर के मिमियाते हुए भाग जाएंगे। लेकिन किसी प्रश्न का माकूल जवाब नहीं दे सकेंगे। क्यों कि कट्टर लीगी न होते तो बेटी की उम्र की लड़की से शादी न करते। जन्म तिथि तो आप ही जानिए। फोटो बता रही है कि आप से आधी उम्र से भी कम की ह… 
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    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey जी क्या कोई फोटो देखकर किसी की उम्र का अंदाजा लगा सकता है? ये प्रतिभा मुझ में तो नहीं और रही बात उम्र की तो मेरी उम्र 40 है मेरी बीबी की 35 और कुछ जानना चाहते हैं
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    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey चेहरे पर मेकअप द्वारा उम्र छुप भी जाती है
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan क्यों झूठ पर झूठ बोले जा रहे हैं। खैर , जन्म-तिथि पूछी है आप की और उस बिचारी कम उम्र लड़की की। सर्टिफिकेट या आधार कार्ड ही प्रस्तुत कर दें , दोनों की। फोटो में तो आधी उम्र की लग रही है। फिर सवाल यह है कि मर्द की 40 और स्त्री की 35 की उम्र शाद… 
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan आंख रखता हूं , जनाबे आली ! और अनुभव भी। मेकअप से उम्र आधी नहीं हो सकती।
    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey कारण यही है कि मैं शादी नहीं करना चाहता था पर माँ मेरी शादी की रट लगाए रहती थी तो मुझे उसकी जिद की बजह से मुझे शादी करनी पड़ी, रही बात आधार कार्ड की तो पिछोर आइये या पिछोर में कोई आपका परिचित हो या कैसे भी आप परिचय निकाल सकें तो स्वयं कोशिश कीजिये
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    • Zafir Khan
      एक बात और अभी अभी रणवीर कपूर और आलिया भट्ट की शादी हुई है जिनकी उम्र 39 और 25 है
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    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey आँखों देखी कभी कभी सत्य नहीं होती आदरणीय
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    • Zafir Khan
      Dayanand Pandey एक बात और आदरणीय मुझे चार दिन पूर्व ही पता चला है कि मेरी बीबी गंभीर बीमारी का शिकार है जिसे मैं यहाँ नहीं बता सकता मेरे साथ छल हुआ भी हुआ है
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan फोटो दिखा सकते हैं , आधार या सर्टिफिकेट क्यों नहीं ? दिखा दीजिए। परिचित कोई नहीं है उधर। आप ही हो गए हैं अब। फिर आप के सिवाय कोई और कैसे यह उपलब्ध करवा सकता है आप का आधार , या आप की बेगम का आधार। ज़ाहिर है दाल में काला है। पिछोर आने-जाने ,… 
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      Dayanand Pandey
      Zafir Khan हे राम !
      बीमारी न सही , आधार तो दिखा ही सकते हैं। फिर उम्र में आधी ही सही , अब वह आप की हमसफ़र है। सो उस का इलाज करवाना आप का फ़र्ज़ बनता है।