दयानंद पांडेय
बइठ राफ़ेल अब उड़ो अकासा
इहां नहीं अब वोट के आसा
मतदाता का विवेक ही जाने
अब कौन है सोना , कौन है कांसा
ई झूठ कि ऊ झूठ कि सारे झूठ
किसी के पास नहीं सच का पासा
झूठ के दलदल में बोलें ख़ुद को सांच
चुनाव जीतने के लिए खुद को फांसा
बैंड बजाते घूम रहे थे इन का उन का
बाज रहा अब उन के सिर पर तासा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-04-2019) को "फिर से चौकीदार" (चर्चा अंक-3303) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'