Wednesday, 7 May 2025

कर्नल सोफ़िया कुरेशी और व्योमिका सिंह की कैफ़ियत

दयानंद पांडेय 

कर्नल सोफिया सिद्दीक़ी 

विंग कमांडर व्योमिका सिंह 

आपरेशन सिंदूर में सेक्यूलर खेमे , ख़ास कर वामपंथी लेखकों और पत्रकारों के सुकून के लिए नया कंधा बन कर उपस्थित हुई हैं सोफ़िया ताजुद्दीन कुरेशी। मानसिक रूप से बीमार यह सेक्यूलरजन नहीं जानते कि बायो केमेस्ट्री से मास्टर डिग्री प्राप्त गुजरात से आने वाली सोफिया इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब के वंश कुरैश वंश से हैं। 

लेकिन मुसलमान इन मानसिक रूप से बीमार लोगों की आकांक्षा की वह कड़ी है , जिस में मोदी विरोध का सागर तलाशने में उन्हें बड़ी सहूलियत होती है। अपने नफ़रत की मुंडेर पर मुसलमान को बैठा कर यह लोग इस क़दर ख़ुश और तृप्त होते हैं गोया मोदी को अपमानित कर सारी सफलता प्राप्त कर गए हैं। वह भूल गए हैं कि इस विकट युद्ध की घड़ी में जैसे आपरेशन सिंदूर का नामकरण मोदी ने किया ठीक वैसे ही प्रेस ब्रीफिंग सिंदूर को अपना सर्वस्व मानने वाली स्त्रियां करेंगी , मोदी ने ही तय किया। थल सेना से ब्रीफिंग के लिए सोफिया और एयर फ़ोर्स से व्योमिका सिंह का नाम भी मोदी ने ही तय किया। मोदी की मर्जी के बिना आज के युद्ध की रणनीति का एक पत्ता भी नहीं खड़कता है। लेकिन उन की कुंठा है कि इसी में तृप्त हो कर मुदित है कि सेना ने हिंदू-मुसलमान का बैलेंस बहुत अच्छा बनाया है। ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेसजन सिंदूर आपरेशन के लिए सेना पर गर्व जता कर अपनी कुंठा शमित करने में अपना झंडा ऊंचा रखे हुए हैं। याद कीजिए कि इसरो की सफलता का भी श्रेय यह लोग नासा को देने में ज़रा भी संकोच नहीं करते। देश की उपलब्धि का अपमान करते हुए इन के दिल दिमाग में मोदी बैठा रहता है। 

ज़िक्र ज़रूरी है कि चेन्नई सैनिक अकादमी से प्रशिक्षित सोफिया के पति मेजर ताजुद्दीन कुरेशी इंफेंट्री में अफसर हैं। सोफिया के पिता और दादा जी भी सेना में थे। सोफिया गुजरात के वड़ोदरा से केमेस्ट्री से एम एस सी हैं। संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में 6 साल सेवाएं दे चुकी सोफिया वर्ष 2006 में कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन में सैन्य पर्यवेक्षक भी रही हैं। वर्ष 2016 में सोफिया ने 'एक्सरसाइज फोर्स 18' में भारतीय दल का नेतृत्व किया था, जो भारत की ओर से आयोजित सबसे बड़ा विदेशी सैन्य अभ्यास था। 18 देशों ने इस में भाग लिया था जिन में सोफिया एकमात्र महिला कमांडर थीं। सूचना दिलचस्प है कि सोफ़िया कुरेशी उस वंश से आती हैं जिस कुरैश वंश से इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब आते हैं। 

दूसरी महिला प्रवक्ता विंग कमांडर व्योमिका सिंह भी शौर्य चक्र से सम्मानित हैं। व्योमिका सिंह अपने परिवार में सशस्त्र बलों में शामिल होने वाली पहली हैं। उन्हें भारतीय वायु सेना में एक हेलीकॉप्टर पायलट के रूप में कमीशन दिया गया और 18 दिसंबर, 2019 को फ्लाइंग ब्रांच में स्थायी कमीशन मिला था। विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने 2,500 से ज़्यादा घंटे फ्लाइट्स उड़ाने का अनुभव हासिल किया है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर सहित कुछ सबसे कठिन इलाकों में चेतक और चीता जैसे हेलीकॉप्टरों का संचालन किया है। व्योमिका सिंह कई बचाव अभियानों में अहम भूमिका निभा चुकी हैं। अपनी ऑपरेशनल भूमिका के अलावा, विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने उच्च सहनशक्ति मिशनों में भी भाग लिया है। 2021 में, वह माउंट मणिरंग पर तीनों सेनाओं के सभी महिला पर्वतारोहण अभियान में शामिल हुईं, जो 21,650 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस प्रयास को वायु सेना प्रमुख सहित वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों ने मान्यता दी थी। व्योमिका सिंह ने छठी कक्षा से ही तय कर लिया था कि एक ना एक दिन वह भारतीय वायु सेना का हिस्सा बनेंगी। परिवार ने बेटी का नाम व्योमिका रखा था, जिसका मतलब है- आकाश में रहने वाली... और उन्होंने अपने नाम को सार्थक कर दिखाया। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने नेशनल कैडेट कोर (NCC) ज्वाइन कर लिया था।

पृष्ठ भाग से टपकता लहू !

दयानंद पांडेय


बिना किसी नुक़सान के भारत के लिए आपरेशन सिंदूर गर्व का विषय है पर भारत में रहने वाले वामपंथी लेखकों , पत्रकारों के लिए मातम का l यकीन न हो तो फ़ेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर उन की पोस्ट देख लें l हंसुआ के विवाह में खुरपी का गीत गा रहे हैं l इन का वश चलता तो पाकिस्तान जा कर आतंकियों के जनाजे में शामिल हो जाते l जैसे पाकिस्तानी सेना शामिल हुई है l इन को लगता है , मनुष्यता ख़तरे में पड़ गई है l

कोई लव जेहाद का गीत गाते हुए , हिंदू मुस्लिम एकता के विधवा विलाप में मसरूफ़ है , कोई हिंसा पर ग़मगीन है l कोई कह रहा है , वह भी ठीक नहीं था , यह भी ठीक नहीं है l कोई भारतीय सैनिकों के हताहत होने की अफ़वाह उड़ाने में लगा है तो कोई भारतीय विमान ही पाक द्वारा गिरा देने की अफ़वाह सुना कर जश्न मना रहा है l कोई नोटबंदी की आह भर रहा है l और तो और वामपंथ के नाम पर दाग एक कुकवि , अपनी आत्म-मुग्धता में लीन चार लोगों को बैठा कर अपना ही काव्य पाठ पोस्ट कर बैठा है l इस कविता पाठ में नीरो की तरह वंशी बजा रहा है l ऐसे जैसे आपरेशन सिंदूर के बाबत उन्हें कुछ मालूम ही नहीं l

इस पूरे विधवा विलाप में मोदी से इन की घृणा आग मूत रही है l इन के आंगन में हर्ष , विषाद में तब्दील है l जाने कौन सा ख़ून इन की रगों में बहता है l आपरेशन सिंदूर पर लगभग पूरी दुनिया भारत के साथ है , मोदी के साथ है लेकिन यह वामपंथी लेखक , हिंदू-मुस्लिम की माला फेरते हूए पाकस्तानी आतंकियों के साथ , बहुत आहिस्ता से खड़े हो गए हैं l बकौल ग़ालिब इन की आँख से लहू नहीं टपकता l पृष्ठ भाग से लहू टपकता है l टपक ही रहा है l निरंतर l ऐसे गोया यह ख़ुद भी पाकिस्तान बन कर घाव खा बैठे हैं l इस लिए भी कि सारी सूचना परोस कर पाकिस्तान मीडिया ने इन से सुबूत मांगने का हक़ भी छीन लिया है l सो पृष्ठ भाग से लहू टपकाना ही इन्हें मयस्सर है l वामपंथ और इस्लाम के क़दमताल के कुकर्म की यह जुगलबंदी बहुत वीभत्स है l निंदनीय भी l इन वामपंथी लेखकों , पत्रकारों की निर्लज्जता का यह एटम बम कर्नल सोफ़िया कुरेशी लेकिन फुस्स कर देती है l

हत्यारों को सैल्यूट करते हुए , आह ऐसे ही बदनाम होती है

दयानंद पांडेय


पहले की बात को, मुग़ल काल की बातों , धर्म परिवर्तन , अत्याचार , संहार , जजिया आदि को एक बार भूल जाते हैं l पर 1947 से डायरेक्ट एक्शन से लगायत अब तक जितने नरसंहार भारत में हुए , हिंदुओं के ही हुए l कश्मीर , पंजाब , महाराष्ट्र , पश्चिम बंगाल , केरल , और देश के अन्य हिस्सों में भी l दिल्ली में एक बार सिखों का भी नरसंहार हुआ l कभी कहीं मुस्लिम का भी नरसंहार हुआ क्या ? कभी नहीं हुआ l

पर सेक्युलरिज्म की हवा कुछ ऐसी है कि भारत में भयभीत सर्वदा मुसलमान ही रहते हैं l चाहे मुसलमान मारें या सिख , एक लाइन से खड़ा कर हिंदुओं को ही मारते हैं l

जानते हैं क्यों ?

हमारा सेक्युलर भारत बहुत महान है l गंगा-जमुनी तहज़ीब और भाईचारा भी बहुत है l

दिलचस्प यह कि अगर आप यह सच कहने की हिमाकत कर दें तो सांप्रदायिक हैं l संघी और भाजपायी हैं l देश का माहौल ख़राब कर देते हैं l ग़ज़ब नैरेटिव है l अजब बीमारी है l लेफ्टिनेंट नरवाल की पहलगाम में हत्या के बाद उस की पत्नी हिमांशी नरवाल जैसे लोग भी मिल जाते हैं जो इन्हें कंधा दे कर , भाईचारे का जामा ओढ़ कर , नफ़रत के तीर चलाने लगते हैं l भाईचारे का फ़र्जी और कायर पाठ भी पढ़ाने लग जाते हैं l अदभुत माइंडसेट है l गज़ब का नैरेटिव है l

आह ऐसे ही तो बदनाम होती है l

हत्यारों को सैल्यूट करते हुए !

देश भक्त चैंपियन ओवैसी

दयानंद पांडेय


देश भक्ति में इस समय ओवैसी चैंपियन बने इतराते हुए घूम रहे हैं l ग़ज़ब बैटिंग कर रहे हैं l भारतीय मुसलमानों के माइंड सेट से अलग मिजाज है यह l ओवैसी ख़ुद अपने सांचे से अलग दिख रहे हैं l अपना सांचा तोड़ कर वह जैसे बाहर आ गए हैं l ऐसे , जैसे अंडे से चूजा बाहर आ जाए l

पाकिस्तान वक़्फ़ बोर्ड बिल संशोधन ने असदुद्दीन ओवैसी की ज़ुबान को ऐसे बदल दिया है कि लोग समझ नहीं पा रहे कि इस हैदराबादी को हो क्या गया है l रोज़-रोज़ पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सीना ठोंक कर ओवैसी ऐसी-ऐसी बातें बोल रहे हैं कि भाजपाई भी ऐसे और इतना खुल कर नहीं बोल पा रहे हैं l इस समय ज़ुबानी जंग में ओवैसी अव्वल हैं l पाकिस्तान को ट्रक भर-भर कर गरिया रहे हैं l उस की औक़ात बता रहे हैं l

यह सब देख कर मुस्लिम समाज भी सकते में है l पशोपेश में है l

तो क्या आठ रुपए एकड़ किराए पर वक़्फ़ की हज़ारों बीघा ज़मीन जो ओवैसी ने हड़प रखी है , बदले में मोदी की भाजपा सरकार , ओवैसी को कुछ राहत दे देगी ?

ओवैसी को उम्मीद तो यही है l

क़ानून , गायकी और पत्रकारिता में अखिलेश यादव की दलाली करने वाले एक साथ खड़े हो गए

दयानंद पांडेय




राहुल गांधी एक समय तत्कालीन कांग्रेसी हिमंत शर्मा से मिलते समय अपने कुत्तों को बिस्किट खिलाते रहे। बात नहीं की। और बाद में वही कुत्तों वाला बिस्किट हिमंत शर्मा को पेश कर दिया। इस संदर्भ को याद करते हुए यह दो फ़ोटो देखिए। देखिए कि पी डी ए के दुकानदार अखिलेश यादव ने कैसे अपने लिए भौकने वालों को कपिल सिब्बल से मिलवाया। पर फ़ोटो साथ नहीं खिंचवाई। इन के साथ फ़ोटो खिंचवाने लायक़ नहीं माना या जाने क्या बात है , वही जानें। पर दोनों फ़ोटो में कपिल सिब्बल के वस्त्र वही हैं। वह बेवफ़ा सनम फ़िल्म में अनवर मदान का लिखा , सोनू निगम का गाया एक फ़िल्मी गाना है न :

इश्क में हम तुम्हें क्या बताये
किस कदर चोट खाये हुये हैं

ऐलहद अपनी मिट्टी से कह दे
दाग लगने ना पाये कफन को

आज ही हमने बदले हैं कपड़े
आज ही हम नहाये हुये हैं।

लेकिन दाग़ तो लग गया है। दिलचस्प यह कि कपिल सिब्बल , नेहा राठौर , संजय शर्मा में से कोई भी पी डी ए वाला नहीं है। सभी अगड़ी जाति के हैं। पर अखिलेश यादव के लिए भौकना , इन की बड़ी ख़ासियत है। क़ानून , गायकी और पत्रकारिता में अखिलेश यादव की दलाली करने वाले एक साथ खड़े हो गए। नंगे हो गए हैं। इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है भला !

इस बाबत अखिलेश यादव का ट्वीट भी देख सकते हैं।

लिखा ही था नेहा राठौर ने कि उन के बैंक खाते में सिर्फ़ पांच सौ रुपए रह गए हैं। पर पहुंच गईं एक पेशी के लिए एक करोड़ रुपए लेने वाले कपिल सिब्बल के पास। क्या इतनी क्राऊड फंडिंग मिल गई ? कि यह अखिलेश यादव ही यह भुगतान करेंगे ? दिलचस्प यह कि नेहा राठौर के साथ मशहूर ब्लैकमेलर और अखिलेश यादव के लिए दलाली करने वाले 4 पी एम के संजय शर्मा भी हैं। इन का यू ट्यूब चैनल भी सरकार ने पाकिस्तानपरस्त होने के आरोप में हटवा दिया है। कल रात मेरी एक दूसरी पोस्ट पर बौखला कर संजय शर्मा लगातार तू - तड़ाक और अभद्रता की भाषा बघार रहे हैं। कभी मेरे पांव छूते थे , जब बाक़ायदा दलाल नहीं थे। पर अब दलाली की चर्बी इतनी चढ़ गई है , काला धन इतना आ गया है कि सारी तमीज और भाषा भूल कर अनाप - शनाप , अंट-शंट बोल रहे हैं। मजा लीजिए उन की इस बौखलाहट का भी। उन की अभद्र भाषा का। फ़िलहाल तो कपिल सिब्बल के साथ अपनी फ़ोटो साझा करते हुए अपनी वाल पर लिख रहे हैं : जिंदगी के सुनहरे पल।

एक दलाल , दूसरे दलाल से मिल कर ऐसा ही महसूस कर और लिख सकता है। इस में कुछ नया नहीं है। एक क़ानून का दलाल , एक गायकी की दलाल और एक पत्रकारिता का दलाल।

भाजपा वालों शर्म करो। तुम भी अपने लिए भौंकने वालों , अपने दलालों की रक्षा करने के लिए अखिलेश यादव से कुछ सीखो। कांग्रेस से कुछ सीखो।



Thursday, 1 May 2025

राजनीतिक दलाली के दलदल में धंसे सवाल बहादुरों के सवाल पर सवाल

दयानंद पांडेय

वर्ष 1996 में अमिताभ बच्चन ने मुझ से एक इंटरव्यू में कहा था कि अगले जन्म में मैं आप की तरह पत्रकार बनना चाहता हूं l मैं ने पूछा था उन से कि क्यों ? अमिताभ बच्चन ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़ते हुए कहा था कि यह जो सवाल पूछने का अधिकार है , आप के पास , जो मेरे पास नहीं है , इस लिए l यह सवाल पूछने का अधिकार चाहता हूं। अलग बात है अब कौन बनेगा करोड़पति के मार्फ़त इसी जन्म में सवाल पूछने का अधिकार अमिताभ बच्चन पा गए हैं। ठीक है कि उन के अधिकांश सवाल सामान्य ज्ञान के होते हैं , जो कि उन की टीम तैयार करती है , जिस के वह महज प्रस्तोता हैं। पर बेहतरीन प्रस्तोता। बाकमाल प्रस्तोता।

अमिताभ बच्चन से जब वह बातचीत हुई थी तब सोशल मीडिया नहीं था। इलेक्ट्रानिक मीडिया के नाम पर भी दूरदर्शन था। अब तमाम चैनल हैं। सोशल मीडिया है l सोशल मीडिया ने यह सवाल पूछने का अधिकार हर नागरिक को दे दिया है l संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने इस सवाल पूछने के अधिकार को और भी चोखा कर दिया है l सो हर कोई विदुर बना सवाल लिए सुलग रहा है l तो किसी भी लेखक , पत्रकार , कलाकार और अदने से नागरिक को भी किसी भी से सवाल पूछने का अधिकार है l ख़ास कर सत्ता से सवाल पूछने का l पर सवाल अगर स्वाभाविक सवाल रहें तो क्या ही आनंद है l लेकिन सवाल पूछने की आड़ में अगर आप लेखक , पत्रकार होने के बावजूद राजनीतिक दलाली करने लगते हैं तब सवाल की दियासलाई में जो तीली है न , वह सिल जाती है l सवाल की आग सुलगने के बजाय बुझ जाती है l जल नहीं पाती। सो सवाल से घिन आ जाती है l आप संसद में हैं , विधान सभा में हैं , प्रतिपक्ष में हैं , या सत्ता में तब तो आप के सवाल में जनता की धड़कन होनी ही चाहिए , बावजूद सारी राजनीति के l


फिरोज गांधी सत्ता पक्ष के सांसद हुआ करते थे l प्रधान मंत्री नेहरू के दामाद हुआ करते थे l लेकिन जब संसद में सवाल करते थे तो सरकार हिल जाती थी l जानते हैं क्यों ?

क्यों कि वह सवालों के दलाल नहीं थे l उन के सवालों में जनता की धड़कन थी। सत्ता की चोरी और चार सौ बीसी पर हमला था।

पर आज तो महुआ मोइत्रा जैसी सांसद , कुछ पैसे की लालच में संसद में सवाल पूछने के एवज में अपनी आई डी तक किसी और को सौंप देती हैं। पर सवाल बहादुरों की बिकी हुई जुबां से कोई सवाल नहीं फूटता। इस तरह क्या जन प्रतिनिधि , क्या लेखक , क्या पत्रकार , क्या कलाकार कमोवेश सभी सवालों की राजनीतिक दलाली में व्यस्त और न्यस्त हैं l इतना कि सवाल अपनी नैतिकता , प्रासंगिकता और उस की अर्थवत्ता धूमिल कर चुके हैं l राजनीतिक दलाली और एकपक्षीयता में , प्रायोजित एजेंडा में अपनी चमक खो चुके हैं l सवालों का पैनापन अपनी धार भूल चुका है l इस लिए सत्ता भी निरंकुश हो कर मदहोश हो चुकी है l सत्ता समझती है आप के सवालों की राजनीतिक दलाली के मंतव्य और उस का बेअसर होना l सवालों के बेअसर होने की तफ़सील का आलम यह है कि अगर सवालों पर सवाल उठा दिया जाए तो सवाल उठाने वाले लोग गुंडागर्दी पर उतर आते हैं l अराजक और हिंसक हो कर समाज में अपनी साख पर बट्टा लगाते हैं l

सवाल किसी समय कबीर भी उठाते थे , अपने समय में तुलसी भी l बल्कि हिंदी कविता में जो भक्ति काल है , सवाल बहुत करता है l तुलसी, सूर , मीरा , रैदास हर किसी के पास सवाल है l बहुत नरम लेकिन बहुत ही बेधक और मारक सवाल l यह सवाल ही था कि रामचरित मानस जैसी रचना पर अकबर प्रतिबंध लगाने को आतुर था l काशी के कुछ आचार्यों ने भी रामचरित मानस पर प्रतिबंध लगाने की पैरवी की थी l अकबर को बताया गया था कि रामचरित मानस से इस्लाम ख़तरे में पड़ गया है l अकबर इस सूचना से परेशान था l प्रतिबंध लगाने पर आमादा था l तुलसी से वह पहले ही से ख़फ़ा था l तुलसी एक समय अकबर का नवरत्न बनने से इंकार कर चुके थे l अकबर के प्रस्ताव को ठोकर मार चुके थे। तब जब कि आर्थिक रुप से वह ताज़िंदगी विपन्न और दरिद्र ही रहे। दाना - दाना भीख मांग कर अपना भरण पोषण करते रहे। वह तो ऐन समय पर अकबर ने अपने सेनापति अब्दुल रहीम खारखाना से इस पर राय मांग ली l जो रहीम नाम से कविता भी लिखते थे l रहीम ने कुछ समय लिया l अध्ययन किया रामचरित मानस का l फिर अकबर को बता दिया कि रामचरित मानस से इस्लाम को कोई ख़तरा नहीं है l अकबर मान गया l प्रतिबंध नहीं लगाया रामचरित मानस पर l

पर जानने वाले जानते हैं कि रामचरित मानस न होता तो आज की तारीख़ तक यह सनातन जीवित न रह पाता l समाप्त हो गया होता। रामचरित मानस के यह सवाल ही हैं जो सनातन को जीवन देते रहते हैं l जिस दिन रामचरित मानस के भीतर उपस्थित प्रश्न अनुपस्थित हो जाएंगे , सनातन समाप्त हो जाएगा l रामचरित मानस सिर्फ़ राम कथा नहीं है , राम कथा के बहाने उपनिषदों का समुच्चय है l उपनिषदों में भी प्रश्न बहुत हैं l पर न उपनिषद में उपस्थित प्रश्न कोई दलाली करते हैं , न रामचरित मानस में तुलसीदास कोई राजनीतिक दलाली करते हैं l इस लिए आज भी प्रश्न बन कर प्रासंगिक हैं l सत्ता से मुठभेड़ करते हुए भी l सूर, मीरा , रैदास के सवाल आज भी सुलगते और मथते हैं l इन के सवाल तात्कालिक नहीं , सर्वकालिक हैं l तो सिर्फ़ इस लिए कि वह कोई राजनीतिक दलाली नहीं करते l समाज को जोड़ने का काम करते हैं l तोड़ने का नहीं l सवाल मनुष्यता में प्राण डालने के लिए हैं , खंडित करने के लिए नहीं l राम की सत्ता का सुफल है कि लोग आज इस तकनीकी युग , घोर कलयुग में भी राम राज्य की कल्पना करते रहते हैं l पर मत भूलिए कि राम भी अपने समय में सत्ता से मुठभेड़ और प्रश्न करते रहे l निरंतर करते रहे l राक्षसी सत्ता से लड़े और जीते भी राम। सवाल अर्जुन के पास भी बहुत थे। कृष्ण ने समाधान बताए। अश्वत्थामा का सवाल तो आज तक अनुत्तरित है। न कोई जवाब , न कोई समाधान।

सवाल दुर्योधन के पास भी बहुत थे। दुर्योधन का एक महत्वपूर्ण सवाल यह था कि अगर मेरा बाप अंधा था तो इस में मेरा क्या कुसूर ? मुझे इस की सजा क्यों ? पर इस जायज सवाल के जवाब के समाधान में दुर्योधन ने कई सारे नाजायज तरीक़े इख़्तियार किए। लाक्षागृह से चीर हरण तक के। राहुल गांधी के पास भी बहुत सवाल हैं। अपने सवालों से संसद में भूकंप लाने की तमन्ना थी कभी उन की। तब जब कि उन के पितामह फ़िरोज़ गांधी अपने सवालों से संसद हिलाते रहे थे। भूकंप से भी ज़्यादा।

राहुल गांधी के सवाल भी कई बार दुर्योधन की गंध देते हैं और समाधान पाने के उन के तरीक़े भी लाक्षागृह और चीरहरण वाले ही हैं। दुर्योधन के पास तो एक शकुनि था पर राहुल के पास शकुनि टाइप लोगों की फ़ौज है। राहुल भूल जाते हैं कि उन के पितामह फ़िरोज़ गांधी बहुत योग्य और निर्भीक सांसदों में शुमार होते हैं। काश कि राहुल अपनी शकुनि चौकड़ी से बाहर आ कर अपने पितामह से भी कुछ सीखने की कोशिश करते। कम से कम सवाल पूछने की शिफत ही। शिद्दत ही। जब राहुल गांधी के पास सवाल पूछने का सलीक़ा और शऊर नहीं है तो उन के लिए राजनीतिक दलाली कर रहे लेखकों , पत्रकारों और एन जी ओ धारियों से यह और ऐसी अपेक्षा करना सिर्फ़ मूर्खता है।

सत्ता से प्रश्न करने के लिए राम बनना पड़ता है l लोक कल्याणकारी राम। मनुष्यता के हामीदार राम। राम होने के लिए राम की मर्यादा का पालन करना पड़ता है l राहुल गांधी जैसा धूर्त और कुटिल बन कर आप तथ्य से परे प्रश्न पूछते हैं तो बेअसर हो कर आप मनोरंजन और घृणा के पात्र बन जाते हैं l फिर आप चाहते हैं कि राहुल के फ़ॉलोवर बन कर प्रश्न पूछते हुए सत्ता के लिए काल बन जाएं ? चुटकी बजाते हुए काल कवलित कर दें सत्ता को।

यह कैसे मुमकिन हो सकता है भला ?

राहुल गांधी के लिए राजनीतिक दलाली करते हुए प्रश्न पूछ कर आप विदुर नहीं बन सकते l रवीश कुमार , कुणाल कामरा , नेहा राठौर ज़रूर बन सकते हैं l हद से हद सरल संपत बन सकते हैं l सूची थोड़ी सी और है l वामपंथी लेखकों और पत्रकारों की राजनीतिक दलाली भी आप इस में जोड़ सकते हैं l एन जी ओ चलाने वाले कुछ अति क्रांतिकारियों को भी l जिन में से कब कोई सवाल करते-करते दिलीप मंडल बन कर उपस्थित हो जाए , कौन जानता है l

छोड़िए तुलसी दास और भक्ति काल के कवियों को , विदुर को भी l आज की तारीख़ में कोई लोहिया या फ़िरोज़ गांधी जैसा भी प्रश्न पूछने वाला कोई एक दिखता हो तो ज़रूर बताएं l जिन के सवालों में ताप भी हो , तन्मयता भी। कबीर , तुलसी से लगायत आज के परसाई , धूमिल , दुष्यंत कुमार , अदम गोंडवी आदि की कविता में किसी को कहीं राजनीतिक दलाली दिखती हो तो बताए भी। तब जब कि इन सब की समूची रचना , रचना , रचना का कथ्य , कविता , कविता का कथ्य , सत्ता से निर्मम सवाल और सत्ता पर पुरजोर प्रहार ही है। इतना कि आज भी वह उसी ताज़गी के साथ प्रासंगिक भी हैं और उपस्थित भी। लगता है उन के सवालों के फ्रेम में कांग्रेस नहीं , भाजपा ही है। तो इस लिए कि यह रचनाकार राजनीतिक दलाली नहीं कर रहे थे। पत्रकार भी तब तक राजनीतिक दलाल नहीं थे।

दिक्कत ही बड़ी यह है कि यह प्रश्न पूछने की कतार में खड़े प्रश्न बहादुर लोग राजनीतिक दलाल लोग हैं l राजनीतिक दलाली में निपुण हैं। कुछ और नहीं l इसी लिए नरेंद्र मोदी की सत्ता को इन से कोई तकलीफ़ नहीं l अलग बात है कि कुछ पत्रकार , पत्रकारिता की आड़ में राजनीतिक दलाली करते हुए , कब पार्टी प्रवक्ता बन गए , वह लोग जान ही नहीं पाए l और देखिए कि उन में से अब ज़्यादातर समय की मार खा कर यूट्यूबर बन कर उपस्थित हैं l लेकिन उन के सवालों में राजनीतिक दलाली की बदबू ख़ूब-ख़ूब बढ़ती ही गईं है l बढ़ती ही जा रही है l रत्ती मात्र भी अफ़सोस नहीं है , इन दलालों को। ख़ुद बदबू भंडार बन कर परिचित हो चुके हैं।

इसी लिए सवाल , अब सन्नाटा बनते जा रहे हैं l ऐसे गोया मैं ने तुम को छुआ और कुछ नहीं हुआ। तो ऐसे में इन सवालों के क्या मायने ? इन सवाल बहादुरों का हासिल क्या है ? सत्ता का कौन सा पुर्जा ढीला कर पा रहे हैं ? समाज की किस संरचना में परिवर्तन कर पा रहे हैं ? सवाल फिर भी ख़त्म नहीं होते इन के l अज्ञेय की एक कविता याद आती है : एक सन्नाटा बुनता हूं l वह इस कविता के आख़िर में लिखते हैं : 

जिस के लिए फिर
दूसरा सन्नाटा बुनता हूँ।

तो सवालों का सन्नाटा बुनते यह राजनीतिक दलाल अपने बनाए दलदल में फंस गए हैं l अफ़सोस कि कोई कबीर , कोई तुलसी , कोई मीरा , कोई सूर , कोई रैदास , कोई विदुर , कोई धूमिल , कोई दुष्यंत , कोई परसाई , कोई लोहिया , कोई फ़िरोज गांधी , कोई पीलू मोदी भी इन्हें सवाल पूछना नहीं सिखा सकता , न इन्हें इन की राजनीतिक दलाली के दलदल से निकाल सकता है l इस लिए भी कि इन सवाल बहादुरों के सवाल इन के नहीं होते हैं। जैसे अमिताभ बच्चन की कौन बनेगा करोड़पति की टीम उन के लिए सवाल तैयार करती है , ठीक उसी तरह किसी टीम द्वारा तैयार किए हुए सवाल यह राजनीतिक दलाल लेखक , पत्रकार कलाकार प्रस्तुत करते रहते हैं। इन का माइंडसेट और एजेंडा सेट करते हैं। यह अनायास नहीं है कि एक ही समय में , एक ही विषय पर कुछ मुट्ठी भर लेखक पत्रकार एक ही सवाल ले कर एक ही भाषा में कुत्तों की तरह भौंकना शुरू कर देते हैं। किसी एक कविता , किसी एक कहानी या किसी भी रचना पर लेखक एकराय नहीं होते। कभी नहीं होते। पर यही लेखक किसी घटना , किसी बयान , किसी विषय पर चुटकी बजाते ही एक राय में लिखने बोलने लगते हैं।

किसी ख़बर पर भी सभी पत्रकारों का अलग - अलग नजरिया , ट्रीटमेंट और कवरेज होता है। पर पत्रकार का लबादा ओढ़े इन राजनीतिक दलालों का नज़रिया एक जैसा ही होता है , एक सुर , एक ताल में होता है। ऐसे जैसे किसी फ़ौज की किसी टुकड़ी का कदमताल। एक भी सुर इधर - उधर नहीं। सब एक ही बैंड पर क़दमताल करते हुए।