Tuesday 16 July 2019

इन गिरोहबंद लेखकों के आगे बड़े-बड़े अपराधियों के गिरोह भी मात खा जाएं , शर्मा जाएं


लखनऊ में एक से एक गिरोहबंद लेखक हैं , कि इन के आगे बड़े-बड़े अपराधियों के गिरोह मात खा जाएं ,शर्मा जाएं , जिन की हिप्पोक्रेसी बरेली की साक्षी मिश्रा के बहाने सामने आ रही है। कलई खुल रही है। वामपंथ के नाम पर उन का धंधा , कुंठा और बीमारी किसी कोढ़ की तरह सामने आ रही है। जातीय जहर से भरे कुछ दलित शिरोमणियों का जायका और चटकारा देखने लायक है । दिक्कत यह है कि जातीय जहर में भरे यह तमाम लोग जब अपने परिवार के बच्चों का रिश्ता करते हैं तो किसी दलित , किसी मुस्लिम से नहीं करते। सर्वदा अपर कास्ट में ही जाते हैं। दामाद कायस्थ तो बहू ब्राह्मण। दलित या मुस्लिम नहीं मिलते इन्हें। अपने से नीची जाति भी नहीं मिलती । मैं ने साक्षी मिश्रा पर एक पोस्ट लिखी , उस से यह लोग इतने तरंगित हो गए कि पूछिए मत। मैं ब्राह्मण हो गया। क्या तो एक ब्राह्मण लड़की का , एक दलित से विवाह करना मुझे नहीं सुहाया। आदि-इत्यादि। इन कूपमंडूकों को चुनौती दे कर कहता हूं कि अगर मेरी पोस्ट में इस बाबत एक भी शब्द , एक भी वाक्य दिखे तो बताएं। मैं ने तो सिर्फ साक्षी द्वारा , पिता को बेबात निशाना बनाने पर पोस्ट लिखी है। लेकिन दिक्कत यह है कि इन जातिवादी जहरीलों को सिर्फ़ ब्राह्मण दीखता है , अपनी बीमारी और कुंठा नहीं।

मैंने तो अपनी बेटी की शादी सुदूर केरल में की है, अरेंज्ड मैरिज की है। बेटी की सहमति से। बिना दहेज़ , बिना किसी लगन , कुंडली आदि के। दामाद एम्स , दिल्ली के गोल्ड मेडलिस्ट हैं , एम डी में। सुपरिचित मेडिकल साइंटिस्ट हैं। आस्ट्रेलिया से एक रिसर्च प्रोजेक्ट पूरा कर भारत लौटे हैं । एक मेडिकल कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और टाइफाइड पर महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे हैं। जिस भादो में उत्तर प्रदेश में किसी जाति के लोग विवाह नहीं करते , मैं ने अपनी बेटी का विवाह उस भादों में किया है। फिर भी मैं ब्राह्मण हूं। और लगन , कुंडली आदि देख कर अपने बच्चों का विवाह करने वाले यह हिप्पोक्रेट जनवादी हैं , प्रगतिशील हैं , वामपंथी हैं । एक मानसिक रूप से बीमार और तंगदिल महिला जो ओ बी सी है , मंदिर में पुजारी होने वाले पारंपरिक गोंसाई परिवार की है , सो घर में रोज आरती गाती है , बाहर रोज लाल सलाम बोलती है। अनगिन फर्जी फेसबुक आकऊंट रखने वाली यह महिला अपने बच्चों के रिश्ते के लिए कुंडली लिए घूम रही है। योगी आदित्यनाथ के साथ ललक कर फ़ोटो खिंचवाती है। ऐसे ही लखनऊ में एक से एक भद्र लेखक हैं , जो लिखते-पढ़ते कम , लाल सलाम ज़्यादा बोलते हैं , रचना एक ग्राम भर की नहीं है , प्रतिबद्धता कुंटल भर की है। जातीय जहर बेहिसाब है , गिरोहबंदी की तारबंदी भयानक रूप से है , लेकिन वह जनवादी हैं , प्रगतिशील हैं । प्रगतिशील लेखक संघ की एक महिला पदाधिकारी के बच्चे खुल्लमखुल्ला भाजपाई हैं लेकिन वह भी लाल सलाम बहुत जोर से बोलती है। लाल सलाम बोलने का लाभ और लोभ इतना बड़ा है कि बिना रचना या कच्ची , अधकचरी रचना , फर्जी और बोगस रचना के बावजूद आप को लोग लेखक ही नहीं , बहुत बड़ा लेखक कह कर नवाजते हैं । भले आप को अपनी रचना और किताब का शीर्षक लिखने का शऊर और समझ भी नदारद हो। लेकिन लाल सलाम है , स्त्री हैं , बस रचना नहीं हैं , तो क्या हुआ ? आप से बड़ा रचनाकार नहीं है कोई।

वापस साक्षी मिश्रा की बात पर आता हूं और चुनौती दे कर लखनऊ और लखनऊ से बाहर के भी हिप्पोक्रेट लेखकों से कहता हूं , कि कितने हैं , जिन्हों ने अपने बच्चों की मर्जी से ही सही दामाद और बहू , दलित खोजे हैं , मुस्लिम खोजे हैं। अपने रिश्ते सार्वजनिक करें । नहीं , बेशर्मी भरी हिप्पोक्रेसी में यह ब्राह्मण , ब्राह्मण की ब्राह्मण  चालीसा का पाठ बंद करें। जानता हूं कि सभी अपने हमाम में नंगे हैं। और कि मुझे नाम ले कर नंगा करना भी आता है। क्यों कि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी। हाथी के दांत , खाने के और दिखाने के और बहुत हो चुका। मैं सरनेम से ब्राह्मण हूं लेकिन यह हिप्पोक्रेट लेखक , आलोचक अपने कर्मकांड से पूरे ब्राह्मण हैं , ब्राह्मणवादी हैं । यह बात मैं बहुत जोर से कहना चाहता हूं।

यह भी कि रचना की ज़मीन पर भी कौन लोग कितना खड़े हैं , अपने भीतर झांक लें। सो , बेमतलब उंगली कटवा कर , फोकट में शहीद बनने की लालसा से बचें। दोस्तों , आप के किसी गिरोह में नहीं हूं लेकिन अपनी रचना की ज़मीन पर , अपनी सोच और समझ पर पूरी ताक़त से खड़ा हूं। मेरी इस ज़मीन को हिला पाना , खोद पाना किसी गिरोहबाज के वश का नहीं है। लेकिन आप तो अपनी घड़ियाली वैचारिकी में इतने दरिद्र हैं कि समय की दीवार पर लिखी इबारत भी साफ़ नहीं पढ़ पाते तो रचना और आलोचना क्या ख़ाक लिखेंगे ?

अगर मैं समय की दीवार पर लिखा पढ़ कर , जनता की नब्ज़ पढ़ कर , अपनी पत्रकारीय समझ के आधार पर लिख रहा था कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की सरकार फिर आ रही है। जांच लीजिए कि 19 मई को चैनलों पर एक्जिट पोल आए थे। लेकिन इस के पहले 11 मई को ही अपने चुनावी आकलन में मैं ने स्पष्ट लिखा था कि उत्तर प्रदेश में 60 प्लस भाजपा आ रही है , केंद्र में 285 के आस-पास और कि एन डी ए 350 प्लस। और लगभग यही हुआ। लेकिन आप मित्र लोग तब के समय , मेरे आकलन की पड़ताल करने के बजाय मुझे भाजपाई और संघी घोषित करने की जहरीली कार्रवाई में व्यस्त और न्यस्त थे। ठीक वैसे ही जैसे आज मुझे ब्राह्मण घोषित करने की बीमारी में त्रस्त हैं। वामपंथी होने के ढकोसले में यह जातीय जहर की खेती बंद कीजिए। और जानिए कि आप के लेखक संगठनों से जुड़े तमाम लोगों से ज़्यादा मार्क्स और मार्क्सवाद को मैं ने पढ़ा है। गांधी और लोहिया सहित तमाम विचारकों को पढ़ा है। जब जो चाहे , मार्क्स , गांधी और लोहिया पर बात कर सकता है , मैं सर्वदा उपस्थित हूं। लेकिन मार्क्सवाद के नाम पर हिप्पोक्रेसी के कायल लोगों को भी पढ़ता रहता हूं , बेपर्दा करता रहता हूं। तो लोग मुझ से बुरी तरह चिढ़ते हैं । जान लीजिए कि इन लेखक संगठनों से जुड़े लोगों से ज्यादा रचना की ज़मीन पर भी जातिवाद के ख़िलाफ़ लड़ा है , सेक्यूलरिज्म की लड़ाई लड़ी है। लड़ता ही रहता हूं। यह बात कोरी लफ्फाजी नहीं है , तथ्य है , मेरी रचनाएं इस की गवाह हैं । लेकिन अपनी गिरोहबंदी में आप इतने अपढ़ , साक्षर और जाहिल हो चुके हैं तो आप की इस दरिद्रता और बीमारी का इलाज किसी हकीम लुकमान के पास भी नहीं है।

Saturday 13 July 2019

अपनी अय्याशी में असंख्य बेटियों की आज़ादी छीन ली है , साक्षी मिश्रा , यह तुम क्या जानो !

एक कमीनी साक्षी और दूसरा कमीना अजितेश 
बरेली की साक्षी मिश्रा जैसी लड़कियां भारतीय समाज पर कलंक हैं। कोढ़ हैं। ठीक है कि आप बालिग़ हैं , क़ानून आप को अधिकार भी देता है कि जिस से चाहें शादी करें , जिस के साथ चाहें रहें और सोएं । लेकिन क़ानून यह अधिकार तो नहीं ही देता कि आप किसी के जाल में , रैकेट में फंस कर बेबात अपने पिता और परिवार की सार्वजनिक छीछालेदर करती फिरें। निरंतर बेबुनियाद आरोपों की झड़ी लगाती रहें। आप की अपनी निजी जिंदगी है , आप रंडी बन जाइए , रोकता कौन है। कोई फर्क भी नहीं पड़ता। लेकिन पिता का राजनीतिक , सामाजिक और पारिवारिक जीवन छिन्न-भिन्न करने का अधिकार किस क़ानून ने दे दिया ? पिता आप की इस बेहूदी क्रांतिकारी शादी का वेलकम करे ही , कानून की किस किताब में लिखा है ? आप की ब्लैकमेलिंग में फंस कर आप की इस बेहूदगी को पिता स्वीकृति दे ही दे , किस क़ानून की किताब में लिखा है । पिता कह रहा है कि तुम खुश रहो और तुम कह रही कि नहीं मुझे जैसे भी हो , मेरे पाप को , मेरे अपराध को स्वीकार करो ही । मुझ से दस साल बड़े मेरे बेरोजगार और फ्राड पति की पूजा करो ही। अजब गुंडई है। टी आर पी बटोरने वाले , कुत्ता दौड़ में हांफ रहे , कारोबारी चैनलों के कंधे पर बैठ कर पिता के कंधों को कमज़ोर करना , वह कंधा , जिस पर बैठ कर बड़ी हुई , खेली , पढ़ी , अपनी अय्यासी के लिए उस कंधे को कमज़ोर करना कोई क़ानून की कताब नहीं सिखाती।

यह तुम्हारा तथाकथित पति कमीना और हरामी अजितेश बरेली के मुहल्ले में ठाकुर साहब बन कर रहता था , न्यूज़ चैनलों पर वह पूरी बेशर्मी से दलित बन गया है। बेरोजगार , नशेबाज और औरतबाज तुम से दस बरस बड़ा अजितेश तुम्हारे ही साथ नहीं इस सभी समाज के साथ भी खेल गया है। इस तरह दलित कार्ड और बालिग होने की यह आज़ादी और इस का दुरूपयोग असंख्य बेटियों की आज़ादी छीन ले गया है , साक्षी मिश्रा यह तुम क्या जानो ! तुम्हारी जैसी कमीनी और चरित्रहीन लड़कियां ही गर्भ में बेटियों को मार डालने का व्यूह रचती हैं। बहादुरी तुम्हारी तब होती जब एक बार पिता से या परिवार से शादी के पहले इस शादी के लिए चर्चा करती। लेकिन नहीं तुम कायरों की तरह उस कमीने और नामर्द अजितेश के साथ भाग कर शादी का एक फर्जी सर्टिफिकेट बनवा कर अपने परिवार , समाज और पिता की पगड़ी उछाल कर मूर्ख मीडिया की बैसाखी पर खड़ी बेहूदगी की मीनार बनाती फ़ुटबाल की तरह उछल रही हो। अपनी अय्याशी में ख़ूब उछलो लेकिन बाक़ी बेटियों का रास्ता मत बंद करो। बहुत मुश्किल से बेटियों को पढ़ने-लिखने और अपनी मंज़िल तय करने की आज़ादी मिल पाई है। अपनी अय्याशी में बेटियों की यह तरक्की , यह आज़ादी मत छीनो। अय्याशी अपनी जारी रखो लेकिन अपनी औकात में रहो साक्षी मिश्रा। यह कमीना और हरामी अजितेश तुम्हारे लिए अंधी सुरंग है , बेहिसाब दलदल है। जिस से तुम कभी निकल नहीं पाओगी। और अगर तुम इतनी राईट टाइम हो तो भोपाल की उस दलित लड़की का क्या कुसूर था , जिस से सगाई के बाद भी इस कमीने ने विवाह नहीं किया। अपनी कमीनगी में ही सही , अपनी चरित्रहीनता में सही , कभी पूछा तो होता , इस हरामखोर अजितेश से । जो मुहल्ले में ठाकुर साहब बन कर रहता था , न्यूज़ चैनलों पर बड़े ठाट से दलित बन गया है। धिक्कार है साक्षी मिश्रा , तुम्हारी आत्मा मर गई है। अपनी अय्याशी को जस्टीफाई करने के लिए सिर्फ़ एक लाचार और बेबस पिता से ही सवाल पूछने की हैसियत रह गई है तुम्हारी ।

भोपाल में कमीने अजितेश की दलित लड़की से सगाई की फ़ोटो 

Monday 1 July 2019

सेक्यूलरिज्म के कमीने दुकानदारों कहां हो तुम ?

आइ ए एस टॉपर शाह फ़ैज़ल भारत की सर्वाधिक प्रतिष्ठित नौकरी को लात मार कर कश्मीर लौट गया। दंगल फेम ज़ायरा वसीम फिल्म इंडस्ट्री को लात मार कर कश्मीर लौट गई। दस बरस तक उप राष्ट्रपति रहा एक हरामखोर मोहम्मद हामिद अंसारी जब-तब कहता ही रहता है कि भारत में मुस्लिम सुरक्षित नहीं है। ऐसी ही भाषा एक मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह भी बोलता है। यह सभी इस्लाम के लिये प्रतिबद्ध लोग हैं। तृणमूल की नुसरत जहां सिंदूर , बिंदी , मेंहदी , चूड़ी पहन कर कहती है कि मैं मुसलमान हूं। कश्मीर में मुसलमान पंडितों को मारते रहे , कश्मीरी पंडित कश्मीर से भागते रहे । कैराना से भी कुछ लोग भागते रहे और कुछ कमीने सेक्यूलरिज्म , सेक्यूलरिज्म का पहाड़ा पढ़ते रहे। अब मेरठ से भी कुछ लोग भाग रहे हैं । और योगी हुंकार रहे हैं कि हम हैं , ऐसा नहीं हो सकता है। जब कि हो रहा है। दिल्ली के सुंदर नगर और ब्रहमपुरी को ले कर देश सोया हुआ है क्यों कि उस का मोहल्ला बचा हुआ है। मुसलमान चोर के मरने पर उस की विधवा के खाते में बत्तीस लाख रुपए आ जाते हैं जब कि जूस वाले यादव की हत्या पर उस की विधवा को दो लाख रुपए मिलते हैं। एक कठुआ , एक झारखंड पर कोहराम मच जाता है , ज़रूर मचना चाहिए। पर ऐसे ही गैर मुस्लिम मामलों पर लंबी खामोशी क्यों। यह सब क्या है ?

हालत संस्कृत स्कूलों की भी खस्ताहाल है , न पढ़ने वाले लोग हैं , न पढ़ाने वाले लोग शेष हैं। बनारस में रहने वाले जनवादी लेखक काशीनाथ सिंह द्वारा लिखी , सनी देओल अभिनीत , चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा निर्देशित फिल्म मोहल्ला अस्सी तिल-तिल कर मरती हुई संस्कृत की यातना को बहुत बारीकी से बांचती है। पर एक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , जो बनारस का सांसद भी है , को सिर्फ मदरसों की खस्ता हालत सुधारने की फ़िक्र है। जो लोग कुरआन के साथ कंप्यूटर को कुफ्र मानते हैं , उन्हें ही कंप्यूटर देने पर सरकार आमादा हैं। वह संस्कृत जो दुनिया में कंप्यूटर के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा मानी गई है , उस के लिए कंप्यूटर की ज़रूरत मोदी सरकार को नहीं दिखती। सब का विश्वास के नारे का यह कुफल और छल है। रही बात नुसरत जहां के सिंदूर चूड़ी की लफ्फाजी और विभिन्न मौलानाओं के कुफ्र की तो बताता चलूं कि गोरखपुर में मेरे गांव बैदौली की मुस्लिम महिलाएं बहुत पहले से सिंदूर और चूड़ी पहनती आई हैं। बिछुआ भी। मैं तो बचपन ही से देखता आया हूं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की तमाम मुस्लिम औरतें सिंदूर , चूड़ी पहनती हैं। लखनऊ में भी बहुतेरी मुस्लिम स्त्रियों को सिंदूर , चूड़ी पहनते देख रहा हूं। बरसों से यह उन की तहजीब का हिस्सा है । हमारे गांव में चूड़ी पहनाने वाली स्त्रियां भी मुस्लिम हैं , तब जब कि हमारा गांव ब्राह्मण बहुल गांव है। हमारे गांव में उन्हें चूड़ीहार ही कहा जाता रहा है , मुसलमान नहीं। चूड़ीहार टोला में ही वह रहते हैं। लेकिन राजनीति का यह हिंदू-मुस्लिम पहाड़ा कश्मीर से कैराना तक कैसे फैल जाता है। यह समझना कुछ बहुत कठिन नहीं है। 

सेक्यूलरिज्म के कमीने दुकानदारों कहां हो तुम ? सुन रहे हो यह सब ? तुम्हारी चुनी हुई चुप्पियां , चुने हुए विरोध , चुनी हुई विवशताएं तुम्हारी हिप्पोक्रेसी की इबारत को बहुत तल्खी से बांच रही हैं। इन्हें पढ़ो , शर्म करो और चुल्लू भर पानी में डूब मरो । 

राजस्थान की सेक्यूलर कांग्रेसी सरकार ने चार्जशीट में पहलू खान और उस के बेटे को गो तस्कर लिखा है। क्यों कि वह गो तस्कर ही था। मारा गया , यह दुखद था। लेकिन तुम कमीनों अपनी सेक्यूलरिज्म की दुकानदारी में तथ्य भूल कर सिर्फ दुकानदारी ध्यान में रखते हो , अपने जहर की फसल का ख्याल रखते हो , यह भी बहुत दुखद है। बंद करो सेक्यूलरिज्म की यह अपनी जहरीली दुकानें । मनुष्यता कराह रही है , तुम्हारी इन जहरीली दुकानों से। सुनते हैं तुम्हारी जहरीली दुकानों को चलाने वाले तमाम एन जी ओ को फंडिंग भी बंद है। अब तो अपनी जहरीली दुकानें बंद करो।