Thursday 31 March 2022

योगी बने प्रधान मंत्री , नरेंद्र मोदी अब राष्ट्रपति बनेंगे , हरिवंश उप राष्ट्रपति

दयानंद पांडेय 

आज अचानक हुए राजनीतिक उथल-पुथल में आदित्यनाथ योगी प्रधान मंत्री बन गए हैं। नरेंद्र मोदी अब राष्ट्रपति बनेंगे। इस तरह पाकिस्तान में सत्ता बदलने के पहले भारत की सत्ता में बहुत भारी फेरबदल हो गया है। इमरान जब जाएंगे , तब जाएंगे अभी तो मोदी गए। मोदी युग समाप्त , योगी युग शुरु। चाय वाला गया , गाय वाला आया। योगी के प्रधान मंत्री बनने से दुनिया भर के साधु संतों में हर्ष की लहर है। गोरखपुर , अयोध्या , काशी और मथुरा सहित तमाम शहरों में , मंदिरों में घंटे-घड़ियाल बजाए जा रहे हैं। लड्डू बांटे जा रहे हैं। रुस-यूक्रेन युद्ध से ठंडे पड़े भारत के शेयर बाज़ार में भारी उछाल आ गया है। उछाल के सारे रिकार्ड टूट गए हैं। सेंसेक्स और निफ्टी ने रफ्तार पकड़ ली। सेंसेक्स ने 80 हज़ार की रिकार्ड ऊंचाई छू ली है। निफ्टी ने भी अच्छी शुरुआत करते हुए 70 अंकों की बढ़त ले ली।  योगी ने अपने प्रधान मंत्री बनने पर मोदी को नमन करते हुए हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया है। योगी ने कहा है कि मोदी जी कड़े और बड़े फ़ैसले के लिए इसी लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। हम उन के नेतृत्व में भारत को दुनिया के अव्वल देशों में भारत को खड़ा कर महाशक्ति बनाएंगे। साबित करेंगे कि हम विश्व गुरु थे , हैं और रहेंगे। 

अमित शाह अब उप प्रधान मंत्री होंगे। माना जा रहा है कि योगी को नकेल डालने के लिए अमित शाह को उप प्रधान मंत्री बनाया जा रहा है। गृह मंत्रालय और सहकारिता विभाग पूर्व की तरह अमित शाह के पास ही रहेगा। जब कि तमाम जोड़-तोड़ और सारी गणित के बावजूद नीतीश कुमार के उप राष्ट्रपति बनने की उम्मीद पूरी तरह टूट गई है। मोदी ने तय किया है कि नीतीश कुमार नहीं , हरिवंश बनेंगे नए उप राष्ट्रपति। तर्क यह दिया गया है कि हरिवंश , नीतीश की तरह झल्लाते नहीं हैं। बहुत विनम्रता से सख़्त से सख़्त फ़ैसले ले लेते हैं। जो मोदी के मनोनुकूल होते हैं। संभव है नीतीश कुमार केरल के राज्यपाल बनाए जाएं। आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में रख कर मुख़्तार अब्बास नक़वी की छुट्टी कर दी जाएगी। राज्यसभा के उप सभापति के लिए किसी नाम पर अभी सहमति नहीं बन पाई है। जब कि राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के अब नए मुख्य मंत्री होंगे। राजनाथ सिंह ने अपनी तर्जनी दिखाते हुए बताया है कि उन के प्रदेश मंत्रिमंडल में उप मुख्य मंत्री के लिए कोई जगह नहीं होगी। इस का कोई औचित्य भी नहीं है। यह सब हाथी के दांत हैं। दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी भारी बदलाव के संकेत हैं। निर्मला सीतारमण , स्मृति ईरानी आदि की छुट्टी तय मानी जा रही है। कुछ एकदम नए चेहरों पर योगी की नज़र है। 

अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने योगी को बधाई देते हुए कहा है कि मिस्टर योगी , रुस के झांसे में हरगिज मत आइएगा। भारत और अमरीका की दोस्ती बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है। बढ़ती रहनी चाहिए। रुस के राष्ट्रपति पुतिन ने योगी को बधाई देते हुए यूक्रेन को ध्वस्त करने के लिए कुछ बुलडोजर भेजने के लिए रिक्वेस्ट की है। यूक्रेन के  राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी योगी को बधाई देते हुए कुछ बुलडोजर तुरंत भेजने की फरमाइश की है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने योगी को बधाई देते हुए पूछा है कि आप के बुलडोजर क्या कोरोना को भी कुचल कर ध्वस्त कर सकते हैं ? कर सकें तो फौरन भेजें। फ़्रांस , जर्मनी , जापान , कनाडा , पोलैंड , नेपाल , भूटान आदि दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षों के बधाई संदेशों का तांता लगा हुआ है। योगी ने बुलडोजर की अंतरराष्ट्रीय मांग को देखते हुए जे सी बी ग्रुप के चेयरमैन को तलब कर लिया है। 

आख़िर वही हुआ जिस का कि अंदेशा था। पर इतनी जल्दी यह सब घट जाएगा , यह बिलकुल उम्मीद नहीं थी। आज सुबह यह सारा राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेज़ी से घटा कि सहसा किसी को यक़ीन नहीं हुआ। मुझे भी नहीं हुआ। पर जब मोदी ने ख़ुद ट्वीट कर योगी को प्रधान मंत्री बनने की बधाई दी तो यक़ीन करना पड़ा। योगी को दूसरी बधाई संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दी है। योगी के प्रधान मंत्री बनने पर विपक्षी दलों में मिश्रित प्रतिक्रिया है। कुछ दल ख़ुश हैं कि जैसे भी मोदी जैसे राक्षस से छुट्टी मिली। तो कुछ दल मानते हैं कि योगी , मोदी से बड़ा राक्षस साबित होगा। सोनिया गांधी ने योगी को बधाई देते हुए कहा है कि देश में सांप्रदायिकता का ख़तरा सौ फ़ीसदी बढ़ गया है। मोदी ने गुजरात में जो किया था , योगी अब उसे पूरे देश में दुहराएंगे। राहुल गांधी ने कहा है कि योगी प्रधान मंत्री बन गया अच्छा है। लेकिन क्या वह पेट्रोल का दाम कम करेगा ? डीजल , गैस , बिजली का दाम भी कम करेगा ? मंहगाई , बेरोजगारी का क्या करेगा ? 

मुलायम सिंह यादव ने योगी को बधाई देते हुए कहा है कि अखिलेश की बेवकूफियों को भूल जाइए। भूल जाइए कि हम ने कभी आप को जेल भेजा था और संसद में आप को रोना पड़ा था। जैसे मोदी जी ने माफ़ किया था , आप भी माफ़ कर दीजिए। ये सी बी आई , ई डी वग़ैरह का सांप हमारे ऊपर मत छोड़िएगा। मोदी जी की तरह मुझे बचा कर रखिएगा। लालू जी की तरह बुढ़ौती नहीं ख़राब करनी। जेल नहीं जाना। डर लगता है। हम भी आप की तरह गऊ-सेवक हैं। गऊ माता आप का कल्याण करें। हनुमान भक्त हैं। अखिलेश यादव ने भी योगी को बधाई दी है। कहा है कि योगी मुझ से डर कर उत्तर प्रदेश विधान सभा छोड़ कर भाग गए। सामने होते तो हम उन्हें छठी का दूध याद दिला देते। लेकिन व्यक्तिगत रुप से फ़ोन कर अखिलेश ने योगी से कहा , पुराना सारा कहा-सुना माफ़ कर दीजिए। हम पर अपना बुलडोजर मत चढ़ाइएगा। मायावती ने कहा है कि मनुवादी ताक़तों का शासन हमें किसी सूरत मंज़ूर नहीं है। फिर भी बधाई देती हूं। क्यों कि बाबा साहब का संविधान मानती हूं। तेजस्वी यादव ने योगी को बधाई देते हुए कहा है कि सामाजिक न्याय की राह में एक पत्थर और आ गया। 

अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि यह सब हमारे ख़िलाफ़ साज़िश है। मोदी और योगी दोनों मिले हुए हैं। केंद्र में हमारी सरकार कभी नहीं बन पाए इसी लिए मोदी ने यह पैतरा खेला है। मोदी जानते थे कि उन के अच्छे दिन अब जाने वाले हैं सो हमारे भी अच्छे दिन आने पर उन्हों ने लगाम लगाई है। लेकिन हम रुकने वाले नहीं हैं। दिल्ली नगर निगम नहीं है , केंद्र की गद्दी। हम अब योगी के ख़िलाफ़ बुलडोजर फ़ाइल्स नाम से एक फ़िल्म बनवाएंगे। फिर देखते हैं , योगी कैसे टिकते हैं। हम टिकने नहीं देंगे किसी को। न मोदी को , न योगी को।  शरद यादव ने योगी को फ़ोन कर प्रार्थना करते हुए एक भावुक अपील की है कि आप गो सेवक हैं , हम भी यदुवंशी हैं। हमारा ख़याल रखिएगा। हमारा घर मत ख़ाली करवाइएगा। इस लिए भी कि अपनी बीमारी ठीक करने के लिए आज कल में मैं भी सुबह-शाम गोमूत्र का सेवन शुरु करने वाला हूं। आप को गऊ-माता की क़सम है। 

शरद पवार ने प्रधान मंत्री बनने की उम्मीद अब पूरी तरह छोड़ दी है। फिर भी योगी को बधाई देते हुए कहा है कि अमित शाह से सहकारिता मंत्री शीघ्र से शीघ्र वापस ले लें। महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरे ने योगी को बधाई देते हुए कहा है कि हमारा झगड़ा मोदी के अहंकार से था , अब ख़त्म हुआ। हम भी आप की तरह हिंदुत्व वाले हैं। शिवा जी वाले हैं। सब भूल कर हमारी सरकार को समर्थन दे दीजिए। पवार , कांग्रेस से छुट्टी मिले तो इन के दांत खट्टे करें। बहुत हो गया। ममता बनर्जी ने कहा है कि योगी को हम बधाई देता है लेकिन उस को बंगाल में हम घुसने नहीं देगा। ममता बनर्जी ने एक महत्वपूर्ण बात और कही है कि योगी को बहुत ख़ुश होने का ज़रुरत नहीं है। क्यों कि यह फ़ैसला , देश को राष्ट्रपति प्रणाली की तरफ ले जाने की फ़ासिस्ट कोशिश है। मोदी बंगाल पर हमला करना चाहता है। हम को मिटाना चाहता है। लेकिन मोदी कुछ भी कर ले , हम हरगिज मिटेगा नहीं। फ़ारुख़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती ने संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि कभी 370 , कभी कश्मीर फ़ाइल्स और अब यह योगी हमारे ऊपर थोप दिया गया है। मुसलमानों के साथ , मुल्क़ के साथ यह गद्दारी है। हमारे जीने के अधिकार हम से एक-एक कर छीने जा रहे हैं। आख़िर कब तक छीनते रहेंगे ?

उधर इमरान ख़ान ने कहा है कि इंडिया ने पाकिस्तान को डराने के लिए योगी को प्राइम मिनिस्टर बनाया है। नवाज़ शरीफ़ ने लंदन में बैठ कर यह सब करवाया है। हमारी सरकार को अस्थिर करने के लिए। मोदी हो या योगी , कश्मीर हम नहीं छोड़ेंगे। और जब हम अमरीका से नहीं डरे तो योगी से क्यों डरेंगे। अमरीका की आंख में , रुस और चीन की आंख में धूल झोंकते आए हैं , मोदी को भी उल्लू बनाते रहे तो योगी क्या चीज़ है। मोदी छोटे दिमाग का हो कर बड़ा पद पा गया था। योगी का तो दिमाग और क़द दोनों छोटा है। अगर मैं प्राइम मिनिस्टर बना रह गया तो योगी को भी चूहा बना दूंगा। पाकिस्तान के आगे वह है क्या। बाकी कौन प्रधान मंत्री बनता है , कौन राष्ट्रपति , यह भारत का अंदरुनी मामला है। मुझे इस से क्या। बस कश्मीर की आज़ादी की लड़ाई जारी रहेगी। 

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महामंत्री डी राजा ने कहा है इंडिया बड़ी तेज़ी से फ़ासिस्ट बनता जा रहा है। इंडिया अब सवर्णों के चंगुल में है। अब हिंदू राष्ट्र बनाने के आर एस एस के सपनों को पंख लग गए हैं। पर हम सारे पंख काट लेंगे। क्षत्रिय राज नहीं चलने देंगे। राजतंत्र हरगिज नहीं चलने देंगे इंडिया में। अतुल अंजान ने कहा कि हम इसे प्राइम मिनिस्टर ही नहीं मानते। प्रलेस , जलेस , जसम जैसे लेखक संगठनों ने संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि मोदी राज में तो असहिष्णुता और अभिव्यक्ति के ही ख़तरे थे पर योगी राज में तो सांस लेने के भी ख़तरे बढ़ गए हैं। मुक्तिबोध की कविता अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे / उठाने ही होंगे।  / तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब। को कोट करते हुए कहा है कि योगी के गोरखपुर जा कर संभावित संसदीय उप चुनाव में रावण को साझा उम्मीदवार बना कर योगी की ज़मानत ज़ब्त करवा देंगे। फिर देखेंगे कैसे यह फासिस्ट और हत्यारा प्रधान मंत्री बना रहता है। ईंट से ईंट बजा देंगे। भगवा राज और हिंदू आतंकी की हम पूरी ताक़त से निंदा करते हैं। दुनिया भर के प्रगतिकामी ताक़तों को संगठित कर इस भगवा आतंक से हम लड़ेंगे। अप्रैल , 2022 के बाद की कविता में हम इस का पर्दाफ़ाश करेंगे। मनुवादी ताक़तों की धज्जियां उड़ा देंगे। आज़ादी ले कर रहेंगे। हिंदू राष्ट्र नहीं बनने देंगे , हिंदुस्तान को। 

सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा , इस से बुरा कुछ नहीं हो सकता मुल्क़ के लिए। यह बहुत ही बुरा हुआ। भाजपा अब बर्दाश्त से बाहर हो गई है। असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि जागो मुसलमानो , अब से जागो। योगी और मोदी को जैसे भी हो भगाओ। देश के तमाम मुस्लिम संगठनों और मौलवियों ने योगी के प्रधान मंत्री बनने पर भारी अफ़सोस जताया है। उधर जेल से आज़म खान संयुक्त राष्ट्र संगठन को चिट्ठी लिख कर कहा है कि इंडिया में मुसलमानों का रहना अब मुश्किल हो गया है। मुसलमानों के सारे मौलिक अधिकार छीन लिए गए हैं। एक भगवाधारी , हिंदुत्ववादी को प्राइम मिनिस्टर बना कर लोकतंत्र का गला घोट दिया गया है। दुनिया की सभी ताक़तें फौरन दखल दें। योगी से कुछ सेक्यूलर पत्रकारों ने पूछ लिया है कि आप क्या देश में मुसलमानों को नहीं चाहते ? योगी ने कहा कि बिलकुल चाहते हैं। एक पत्रकार ने पूछा है कि कितना चाहते हैं आप मुसलमानों को ? योगी ने हंस कर जवाब दिया है , जितना वह मुझे चाहते हैं , उतना ही हम उन्हें चाहते हैं। 

जो भी हो , यह तो होना ही था। जब 2017 में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने थे तभी मैं ने कयास लगाया था कि योगी को उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बना कर नरेंद्र मोदी ने अपने ऊपर ही वार कर लिया है। क्यों कि योगी को जानने वाले जानते हैं कि योगी अब मुख्य मंत्री पद पर ही नहीं रुकने वाले। निश्चित रुप से योगी , मोदी को रिप्लेस कर प्रधान मंत्री बनेंगे। पर 2022 में ही योगी प्रधान मंत्री बन जाएंगे , यह किसी को उम्मीद नहीं थी। माना जा रहा था कि हो न हो योगी 2024 या 2026 तक प्रधान मंत्री बन सकते हैं। पर वह कहते हैं न कि राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है। राजनीति सर्वदा एक संभावना है। राजनीति सर्वदा संभावनाओं का खेल है। सो योगी जी को भी बधाई प्रधान मंत्री बनने की और मोदी जी को भी बधाई राष्ट्रपति बनने की। हरिवंश जी को बधाई उप राष्ट्रपति बनने की। नीतीश कुमार को राज्यपाल बनने की और राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की बधाई ! 

हां , रवीश कुमार ने एक टवीट कर बताया है कि मोदी के फ़ैसले हमेशा ही से जन विरोधी रहे हैं। जैसे नोटबंदी , जी एस टी , और 370 हटाए जाने जैसा ही यह फ़ैसला भी काला फ़ैसला है। इस का विरोध करने के लिए  आज वह अपना प्राइम टाइम  स्क्रीन काला कर दिखाएंगे। इस ख़बर का बायकाट करेंगे। और बहुत सारी ख़बरें हैं दिखने के लिए। देखने के लिए। तो आप ही बताइए हुजूरे आला , यह मनहूस ख़बर क्यों देखी और दिखाई जाए। होश खोए सेक्यूलर चैम्पियंस में रवीश की बात से जोश आ गया है। अरुंधती राय ने कहा है कि फासिस्ट ताकतों और भगवा आतंकियों का मुकाबला इसी प्रतिरोध और इसी बायकॉट के साथ किया जा सकता है।

यह सारा घटना क्रम बड़ी तेज़ी से सुबह-सुबह ही घटा। मोदी ने आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर योगी को फोन किया और तुरंत दिल्ली पहुंचने के लिए कहा। इस बीच मोदी ने प्रधान मंत्री पद से अपना इस्तीफ़ा , राष्ट्रपति को सौंप दिया।योगी के दिल्ली पहुंचते ही भाजपा संसदीय दल की बैठक हुई। योगी भाजपा संसदीय दल के नेता चुने गए। और इस तरह आनन-फानन योगी को प्रधान मंत्री पद की शपथ दिलवा दी गई। मोदी ने योगी से साफ कह दिया है कि अब आगे अपना मंत्रीमंडल खुद तय कर लें। अपनी मर्जी का। उत्तर प्रदेश की तरह यहां उन के हाथ-पांव नहीं बांधे जाएंगे। न कोई थोपा जाएगा। यह सब कुछ जब घट रहा था तो संयोग से मैं सो रहा था। अभी-अभी उठा हूं। तो सोचा आप सभी को एक अप्रैल की बधाई दे दूं !


 

दर्द न जाने कोई के दर्द की कैफ़ियत

दयानंद पांडेय 

बरेली के लवलेश दत्त से अलवर में एक कार्यक्रम में भेंट हुई थी। ग़ज़लगो विनय मिश्र ने मिलवाया था। सितंबर , 2019 में। होटल के कमरे में लवलेश दत्त से किसिम-किसिम की बातें होती रहीं। लवलेश दत्त तब एक कालेज में प्राचार्य थे। लेकिन उन का व्यवहार किसी विद्यार्थी की तरह बहुत ही शिष्ट और बालकोचित था। सादगी , विनम्रता और शालीनता से संपन्न लवलेश दत्त बातचीत में बड़ी उत्सुकता से उपन्यास लिखने के बारे में , उपन्यास लिखने की तकनीक जानने की जिज्ञासा ले कर अचानक उपस्थित हो गए। बिलकुल बालसुलभ जिज्ञासा। ऐसे कि जैसे अ कैसे लिखा जाए , क कैसे लिखा जाए। जानना चाहते थे कि उपन्यास कैसे लिखा जाता है। उन की यह शालीनता , संकोच और उत्सुकता देख कर दंग था मैं। लवलेश कविता , कहानी लिखने और पत्रिका संपादन से परिचित थे। निरंतर लिखते आ रहे थे। पर उपन्यास लिखने को ले कर वह मुश्किल में थे। कि शुरु कैसे करुं। 

मैं ने उन से कहा कि कुछ भी लिखने की कोई ख़ास टेक्निक नहीं होती। हां , जैसे मैं कुछ लिखता हूं , ख़ास कर उपन्यास , वह आप को बता देता हूं। फिर अपने उपन्यास लिखने की टेक्नीक बहुत सरलता से बता दी उन्हें । बता दिया कि जैसे कोई नदी जब पर्वत से छलकती हुई मैदान में आती है तो यह नहीं सोचती कि कौन उस के साथ चलेगा , कौन नहीं। किसे ले चलें , किसे नहीं। वह तो यह सब भूल कर कंकड़ , पत्थर , हीरा , मोती , मिट्टी , पानी सब कुछ साथ लाती है। ठीक वैसे ही आप अपने उपन्यास में कही जाने वाली कथा को नदी की तरह बहा कर ले आइए। कोई बांध या बैरियर मत बनाइए। क्या लेना है , क्या नहीं। पहले मत सोचिए। भूल कर भी मत सोचिए। कथा को नदी की तरह बहने दीजिए। छोड़ दीजिए उसे , उस के हाल पर। जब कथा थम जाए , कथा की नदी थम जाए , तब तय कीजिए कि इस में से क्या लेना है , क्या छोड़ना है। और यह देखिए लवलेश दत्त ने यही कर दिखाया। सच्ची कथा , असल चरित्र ले कर भी नदी का यह स्वभाव वह नहीं भूले। जब लोग कोरोना से जूझ रहे थे , लवलेश दत्त अपनी कथा नदी को पर्वत से मैदान में लाने के यत्न में लगे थे। पहाड़ी नदी की तरह पूरे वेग से बहती हुई नदी , एक दर्द की नदी बन कर हमारे सामने उपस्थित थी , उन की कथा । दो साल में ही दर्द न जाने कोई उपन्यास ले कर लवलेश दत्त ने एक मिसाल क़ायम कर दिया है। 2019 में उपन्यास लिखने का गुन जाना लवलेश दत्त ने और 2021 में 239 पृष्ठ का उपन्यास प्रस्तुत कर मन मोह लिया लवलेश दत्त ने। 

दर्द न जाने कोई उपन्यास ट्रांसवुमेन की कथा है। एक मनोवैज्ञानिक व्यथा है। किन्नर विमर्श पर अब हिंदी में भी पर्याप्त लिखा जा चुका है। निरंतर लिखा जा रहा है। लेकिन अभी तक किन्नर विमर्श के तहत हिंदी कथा-साहित्य में किन्नर की सामाजिक और पारिवारिक यातना की इबारत ही बांची गई है। किन्नर विमर्श की मनोवैज्ञानिक इबारत हिंदी कथा साहित्य में लवलेश दत्त पहली बार बांच रहे हैं। किन्नर विमर्श की भावनात्मक कथा तो है ही लवलेश दत्त के पास पर साथ ही किन्नर विमर्श का मनोवैज्ञानिक पाठ कहीं ज़्यादा गहरा , कहीं ज़्यादा पैना है। इधर के हिंदी कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिक कथाओं की विपन्नता तमाम थोथे विमर्शों के बुलडोजर तले कुचल दी गई है। जैनेंद्र कुमार और अज्ञेय को ख़ारिज करने वाले विमर्शों ने ऐसे एहसास करवा दिया कि हिंदी कथा में मनोवैज्ञानिक कथा की कोई गुंजाइश नहीं है। लेकिन लवलेश दत्त ने एक साथ दो ख़तरे उठाए हैं दर्द न जाने कोई उपन्यास में। एक यह कि किन्नर कथा को परिपाटी की खोह से उसे बाहर निकाला है बल्कि ट्रांसवुमेन के मनोविज्ञान को , उस के संघर्ष के मनोविज्ञान को एक प्राणवान विमर्श में बदल दिया है। इस दर्द में सिर्फ़ रुदन ही नहीं है , प्रेम का पावन बिरवा भी है। 

यौन विकलांगता का मुखर हिसाब-किताब भी है दर्द न जाने कोई उपन्यास में। दर्द न जाने कोई की नदी में स्कूल , सर्जरी , अस्पताल जैसे अनेक स्वाभाविक मोड़ हैं। कुछ मोड़ ऐसे हैं , जैसे नदी अचानक मुड़ जाए। बहते-बहते अचानक ठहर जाए। अचानक जल के गहरे जाल में उतार ले जाए। फिर उठा कर लहरों पर पटक दे। कोई नाविक मिल जाए। और समय की नाव पर उठा कर बिठा ले। उपन्यास के अंत में पंद्रह ट्रांस जेंडर दूल्हों और पंद्रह ट्रांस जेंडर दुल्हनों की शादी वाली बारात भले असमंजस और अचरज में डालती है और बैंड पर बजती धुन , आज मेरे यार की शादी है ! फैंटेसी की माला में गुंथी दिखती है पर मुरली और दिव्या की कथा का कोहरा किसी काली रात सा डस लेता है। जो छोड़ गया , उसे छोड़ दिया की यातना तोड़ डालती है। देवेंद्र और देबू का दंश अलग ही यातना है। तनाव और सांघातिक तनाव के अनेक तंबू हैं। 

महेंद्र भीष्म के उपन्यास किन्नर कथा या मैं पायल से अलग है लवलेश दत्त का यह दर्द न जाने कोई की कथा। यातना और कशमश के तार भी अलग हैं। खुशवंत सिंह की दिल्ली की याद भी आती है , दर्द न जाने कोई को पढ़ते हुए। लेकिन बस याद ही आती है। कथा के तार कहीं नहीं मिलते। लवलेश दत्त के दर्द न जाने कोई उपन्यास की खासियत यह भी है कि वह किन्नर विमर्श के बने-बनाए ढांचे को न सिर्फ़ ध्वस्त करते मिलते हैं बल्कि किन्नर विमर्श का एक नया आकाश , एक नई धरती रचते हैं। इस धरती में किन्नरों का पर्वत भी है और समंदर भी। वनस्पतियां भी। हवा भी नई है और उस की ख़ुशबू भी बिलकुल अलग। लवलेश दत्त के दर्द न जाने कोई उपन्यास में देवेंद्र का दिव्या बन जाना ही दर्द नहीं है , दर्द के मनोविज्ञान का औचक निरीक्षण भी है। चूंकि दर्द न जाने कोई की कथा काल्पनिक नहीं है , देवेंद्र से दिव्या बन जाने की कथा का चरित्र असली है , इस लिए इस की कैफ़ियत को किसी क्राफ़्ट में , किसी तफ़सील में क़ैद करने की ज़रुरत नहीं। इस दर्द की नदी में उसी शिद्दत से बहने की ज़रुरत है जिस शिद्दत से लवलेश दत्त ने इसे लिखा है। इस नदी को डूब कर , पढ़ कर ही , इस आग से जल कर ही , इस दर्द की नदी को पार किया जा सकता है। दर्द की सिलवटों की शिनाख़्त की जा सकती है। लवलेश दत्त इस दर्द न जाने कोई का दर्द बताने के लिए , दर्द की इस नदी से परिचित करवाने के लिए बहुत बधाई ! आप ख़ूब लिखें , ख़ूब यश प्राप्त करें और हमारा दिल लूटते रहें। ऐसे ही सर्वदा-सर्वदा लूटते रहें। 


समीक्ष्य पुस्तक :

दर्द न जाने कोई 

लेखक - लवलेश दत्त 

मूल्य - 600 रुपए 

पृष्ठ - 239 

प्रकाशक - विकास प्रकाशन 

311 सी , विश्व बैंक , बर्रा , कानपुर - 208027 

लवलेश दत्त का मोबाइल नंबर 

9412345679 

9259972227 



Friday 25 March 2022

योगी मंत्रिमंडल का कुल हासिल यह है कि उन का बुलडोजर , उन्हीं पर चला दिया गया है

दयानंद पांडेय 


फ़िलहाल तो उत्तर प्रदेश की सत्ता राजनीति में यूक्रेन और रुस जैसा ही घमासान है। अटल बिहारी वाजपेयी इकाना स्टेडियम अखिलेश यादव का बनवाया हुआ। मंत्रिमंडल नरेंद्र मोदी और अमित शाह का बनाया हुआ। योगी मंत्रिमंडल का कुल हासिल यह है कि उन का बुलडोजर , उन्हीं पर चला दिया गया है। कुचल कर रख दिया गया है योगी को उन के ही बुलडोजर से। 10 मार्च को नतीज़ा आया और 15 दिन लग गया शपथ ग्रहण में। इस देरी से ही समझ आ गया कि योगी के हाथ-पांव बांधने की इक्सरसाइज चल रही है। गड़बड़ कल से ही दिख रही थी। कल जब विधायक दल की बैठक लोकभवन में नेता चुनने के लिए हुई तभी योगी तनाव में दिखे। लगातार। योगी के भाषण में भी जोश नहीं औपचारिकता थी। 

हरदम ऊर्जा से भरे रहने वाले योगी कल से ही चेहरे पर थकान लिए घूम रहे थे। और आज जब उन के 52 सहयोगियों ने शपथ ली तो उन के तनाव के प्याज के छिलके परत दर परत खुलते दिखे। और हद्द तो तब हो गई जब शपथ के बाद ग्रुप फ़ोटो सेशन हुआ। बीच में मोदी , मोदी के एक बगल राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और दूसरी बगल योगी। यहां तक तो ठीक था। पर आनंदीबेन पटेल की बगल में केशव प्रसाद मौर्य पीछे से आ कर एक मर्यादित दूरी रख कर खड़े हुए। लेकिन योगी के बगल में बृजेश पाठक जिस तरह अशोभनीय ढंग से योगी को चांप कर खड़े हुए , वह बहुत ही अमर्यादित था। 

यह दृश्य देख कर निरहुआ का गाया गाना याद आ गया , चलेला जब चांपि के बाबा क बुलडोजर ! बृजेश पाठक योगी के बग़ल में इस क़दर चांप कर खड़े हुए कि भूल गए कि वह अपने कैप्टन के बग़ल में खड़े हैं। इतना कि योगी अपना हाथ भी उठा कर हिला नहीं पाए। कम क़द वाले योगी ने लंबे क़द वाले बृजेश पाठक को बग़ल से सिर उठा कर दो बार तरेर कर देखा भी। पर ब्रजेश पाठक को इस की बिलकुल परवाह नहीं थी। जितनी बदतमीजी वह कर सकते थे , अभद्रता कर सकते थे , भरपूर करते रहे। इस पर योगी का तमतमाया चेहरा देख कर एक बार तो मुझे लगा कि कहीं वह बृजेश पाठक को वहीं डपट कर चपत न मार दें। 

लेकिन योगी ऐसा कुछ करने के बजाय वह किसी तरह अपने को संयत किए रहे। फिर अभद्र स्थिति से बचाव के लिए ख़ुद मुड़ कर खड़े हो गए। 180 डिग्री से हट कर 90 डिग्री पर खड़े हो गए। आप ख़ुद देख लीजिए इस फ़ोटो में कि क्या कोई मुख्य मंत्री शपथ के बाद ऐसे भी कहीं ग्रुप फ़ोटो खिंचवाता है ? मोदी समेत सब लोग एक दिशा में देख रहे हैं। और मुख्य मंत्री योगी अकेले दूसरी दिशा में मुड़ा हुआ। चेहरे पर हर्ष नहीं , हताशा है। क्या पता आगे , ऐसे और भी चित्र देखने को मिलें। 

जाहिर है बृजेश पाठक ने अपने आक़ा लोगों की ताक़त पर योगी को मुख्य मंत्री नहीं , फिलर मान लिया है। आज ही से। योगी के वह पुराने निंदक भी हैं। केशव प्रसाद मौर्य पहले ही से योगी को अपमानित करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ने के अभ्यस्त रहे हैं। कुछ समय पहले तक जब भी कभी उन से पूछा जाता था कि किस के नेतृत्व में चुनाव लड़ेंगे ? तो वह या तो मोदी का नाम लेते थे या कमल का फूल के नेतृत्व में चुनाव लड़ना बताते थे। और हरदम माहौल बनाते रहते थे कि योगी अब गए कि तब गए। 

योगी गए तो नहीं पर प्रचंड बहुमत पा कर लौटे। पर क्या जानते थे कि जिस बुलडोजर के नाम पर वह विजयी हुए , वही बुलडोजर मोदी और अमित शाह उन पर ही चढ़ा देंगे। मैं होता या कोई अन्य सामान्य आदमी भी होता तो ऐसे मंत्रिमंडल के साथ शपथ लेने की जगह शपथ लेने से इंकार कर देता। या अपने मनमुताबिक़ मंत्रिमंडल बनाता या सरकार से बाहर रह जाता। 2017 में योगी ने मुख्य मंत्री न बनने की स्थिति में बग़ावत का झंडा उठा लिया था। मोदी एंड कंपनी को झुकना पड़ा था। तब योगी के साथ बग़ावत करने भर के विधायक थे। इस लिए योगी की बात मान ली गई। फिर जब बीते दिनों योगी को ताश के पत्ते की तरह फेंटने की कोशिश की गई तब भी योगी ने ताश की गड्डी में समाने से इंकार कर दिया था। 

इस बार योगी के पास बग़ावत करने के लिए कुछ नहीं है। क्यों कि इस बार टिकट बांटने में उन की नहीं चली है। अब योगी के पास अगर है कुछ तो नाथ संप्रदाय की ताक़त , गोरखनाथ का योग। और गोरख की शिक्षा। वन डे मैच खेलने वाले योगी हार-जीत और कुचक्र के फेर में नहीं पड़ते। योगी को अपने काम पर इतना भरोसा है , अपनी निर्भीकता पर इतना भरोसा है कि यहां-वहां उठक-बैठक करने में यक़ीन नहीं करते। गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर में यह सब उन्हों ने सीखा है। लोग जानते ही हैं कि योगी आदित्यनाथ गुरु गोरखनाथ के नाथ संप्रदाय से आते हैं। वह गोरख जो अपने गुरु मछेंद्रनाथ को भी उन के विचलन पर अवसर आने पर चेताते हुए कहते हैं , जाग मछेंदर , गोरख आया ! योगी अपनी राजनीति में भी यही सूत्र अपनाते हैं। 

पर हाईकमान के नाम पर जो मंत्रिमंडल योगी को मिला है , उस में योगी के मन के दो-चार लोग ही हैं। उन की पसंद का तो एक भी नाम नहीं है। देखना दिलचस्प होगा कि ऐसे बेमन के मंत्रिमंडल से योगी कैसे शासन और प्रशासन को साध पाते हैं। अभी तो योगी मंत्रिमंडल में प्रशासनिक सेवा के सिर्फ़ अरविंद शर्मा ही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा प्रसाद मिश्र भी मोदी के सहयोगी रहे हैं। रिटायर होने के एक दिन पहले ही मिश्रा को मुख्य सचिव बना कर मोदी ने उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बना कर भेजा और साल भर का सेवा विस्तार दे दिया। मतलब मंत्रिमंडल ही नहीं , प्रशासन भी योगी की मन मर्जी का नहीं है। 

मुलायम सिंह यादव का पहला कार्यकाल याद आता है। अखिलेश यादव का कार्यकाल याद आता है। मुलायम सिंह यादव जब पहली बार मुख्य मंत्री बने थे बसपा के सहयोग से तब कांशीराम ने पी एल पुनिया को मुख्य मंत्री का सचिव बनवा कर अपना प्रतिनिधित्व कायम रखा था। मुलायम पर नकेल लगा रखी थी। पी एल पुनिया , मुलायम के लिए कम , कांशीराम और मायावती के लिए काम ज़्यादा करते थे। इसी तरह जब अखिलेश यादव मुख्य मंत्री बने तो मुलायम ने अखिलेश पर नकेल लगाने के लिए अखिलेश की सचिव अनीता सिंह को बनवाया था। अनीता सिंह मुलायम के लिए काम करती थीं। अखिलेश के लिए नहीं। अखिलेश को अनुभव भी नहीं था। अब मोदी लगातार योगी के लिए यही सब करते जा रहे हैं। निरंतर। कभी इसी तरह इंदिरा गांधी भी अपने मुख्य मंत्रियों को इसी तरह नकेल डाले रहती थीं। नौकरशाही और मंत्रिमंडल मुख्य मंत्री के मनमुताबिक नहीं , अपने मनमुताबिक़ रखती थीं। एक नहीं , अनेक  क़िस्से हैं। 

तो अभी मंत्रियों के विभाग बंटवारे और फिर अफ़सरों के तबादले में भी योगी की कितनी चलती है , यह देखना दिलचस्प होगा। अफ़सरों के तबादले में अभी तक एक नाम सुनील बंसल का नाम अकसर लिया जाता रहा है। सो अभी तो योगी को चारो तरफ से केकड़ों से घेर दिया गया है। इन केकड़ों के भरोसे अगर मोदी 2024 में उत्तर प्रदेश में 70 -75 सीट जीतने का सपना देखे हुए हैं तो अभी से यह सपना टूटा हुआ समझिए। हां ,  योगी के हिस्से अभी भी शहरों के नाम बदलने और बुलडोजर चलाने का काम शेष है। जाग मछेंदर , गोरख आया ! सूत्र भी साथ है , उन के साथ। कौन कितना फलदायी साबित होगा , यह आने वाला समय बताएगा। कि कौन रुस है , कौन यूक्रेन। फ़िलहाल तो उत्तर प्रदेश की सत्ता राजनीति में यूक्रेन और रुस जैसा ही घमासान है। परमाणु संपन्नता की परवाह किसी को नहीं है। इस लिए भी कि योगी मंत्रिमंडल का कुल हासिल यह है कि उन का बुलडोजर , उन्हीं पर चला दिया गया है।

Wednesday 16 March 2022

कैसे कुछ लोग अपने को अपने बाप का बताने को ले कर होड़ में लग गए हैं

दयानंद पांडेय 

कुछ राजाओं की कथा के बहाने आज के कुछ राजाओं और उन की प्रजा का हाल जानिए। कश्मीर फाइल्स फ़िल्म के बहाने कैसे कुछ लोग अपने को अपने बाप का बताने को ले कर होड़ में लग गए हैं। क्यों कि उन्हें समझा दिया गया है कि जो भी कोई ग़लती से भी कश्मीर फ़ाइल्स का हामीदार या प्रशंसक निकला , वह अपने बाप का नहीं रहेगा। तो सब के सब अपने बाप का होने का सुबूत लिए घूम रहे हैं। नगाड़ा बजा-बजा कर बता रहे हैं कि हम अपने बाप के ही हैं। फिर कश्मीर फाइल्स कोई पहला मामला नहीं है। हर ऐसे मामले में यह राजा जानी लोग यकायक पूरे देश में गोलबंद हो कर सुर में सुर मिला कर मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा ! गाने लगते हैं। ले के रहेंगे आज़ादी गाने लगते हैं। इन की गोलबंदी और एक सुर के हम तो क़ायल है। एकपक्षीय होने की इन की मिसाल , बेमिसाल है। कोई आपदा हो , कोई ख़ुशी हो , यह राजा जानी लोग सर्वदा एक सुर में रुदाली बन जाते हैं। फांसी पर चढ़ने लगते हैं। एक दूसरे को अमर फल खिलाने लगते हैं। अपनी तलवार से भरपूर वार अपनी ही पिछाड़ी पर करने लगते हैं। दूध की जगह , पानी का तालाब बना डालते हैं। अपने को केंद्र में रख कर अपने लिए महाभारत लिखवाने लग जाते हैं। अपनी फ़ासिस्ट विचारधारा को मनवाने के लिए लोगों को डिक्टेट करने लगते हैं। आप उन का डिक्टेशन नहीं मानते तो आप हरामी हैं। अपने बाप के नहीं हैं। ऐसा नैरेटिव बनाते हैं। पर अब यह नैरेटिव अपना रंग खो चुका है। इन का कठमुल्लापन सड़-गल कर समाप्त हो चुका है। बेहाल हो कर यह सारे के सारे लोग एक ही बाप की औलाद बने घूम रहे हैं। पूरी तरह नंगे हो कर घूम रहे हैं। इन की शोभा यात्रा निकल चुकी है , हर नगर में पर अपने बाप का होने का इन का गुमान इन्हें अपने को नंगा होना स्वीकार्य नहीं हो रहा। तो यह लीजिए पहली कथा सुनिए। 


कथा - 1 

राजा तो नंगा है 

एक पुराना क़िस्सा है। एक बार एक आदमी किसी महत्वपूर्ण आदमी के पास गया। और कहा कि आप के लिए एक दैवीय वस्त्र ले आया हूं। वह व्यक्ति बहुत ख़ुश हुआ। कि वह दैवीय वस्त्र धारण करेगा। पर तभी उसे याद आया कि राज्य के एक मंत्री से उसे काम था। फिर उस ने सोचा कि क्यों न वह यह दैवीय वस्त्र उस मंत्री को भेंट कर दे। मंत्री ख़ुश हो जाएगा और उस का काम बन जाएगा। सो उस ने उस व्यक्ति से अपनी मंशा बता दी कि वह यह दैवीय वस्त्र उसे दे दे ताकि वह मंत्री को दे सके। उस व्यक्ति ने बताया कि यह दैवीय वस्त्र वह ख़ुद ही पहना सकता है। कोई और नहीं पहना या पहन सकता है। सो वह व्यक्ति मंत्री के पास उस आदमी को ले कर गया। मंत्री भी बहुत ख़ुश हुआ कि उसे दैवीय वस्त्र पहनने को मिलेगा। फिर वह बोला कि राजा के सामने मैं दैवीय वस्त्र पहनूंगा तो यह अच्छा नहीं लगेगा। ऐसा करते हैं कि यह दैवीय वस्त्र राजा को भेंट कर देते हैं। 

अब मंत्री उस दैवीय वस्त्र वाले आदमी को ले कर राजा के पास पहुंचा। राजा को दैवीय वस्त्र के बारे में बताया। और कहा कि यह आप को भेंट देने के लिए आया। राजा बहुत ख़ुश हुआ। मंत्री से कहा कि आप लोग मेरा इतना ख़याल रखते हैं , ऐसा जान कर बहुत अच्छा लगा। राजा दैवीय वस्त्र पहनने के लिए राजी हो गया। उस आदमी ने कहा कि दैवीय वस्त्र पहनने के लिए स्नानादि कर लें। फिर मैं पहनाऊं, इसे। राजा नहा-धो कर आए तो उस आदमी ने सब से कहा कि राजा को छोड़ कर सभी लोग बाहर चले जाएं। लोग कक्ष से बाहर निकल गए। अब राजा से उस आदमी ने कहा कि जो भी वस्त्र देह पर हैं , सब उतार दें। राजा ने उतार दिया। आदमी ने कहा कच्छा भी उतारिए। राजा ने आपत्ति की कि यह कैसे हो सकता है। आदमी ने कहा , दैवीय वस्त्र पहनने के लिए निकालना तो पड़ेगा। राजा ने बड़ी हिचक के साथ कच्छा भी उतार दिया। अब उस आदमी ने अपने थैले से कुछ निकाला जिसे राजा देख नहीं सका। फिर उस आदमी ने कुछ मंत्र पढ़ते हुए प्रतीकात्मक ढंग से राजा को दैवीय वस्त्र पहना दिया। और राजा से कहा कि अब कक्ष से बाहर चलें महाराज ! 

राजा ने पूछा , इस तरह निर्वस्त्र ? वह आदमी बोला , क्या कह रहे हैं , राजन ? क्या आप को दैवीय वस्त्र नहीं दिख रहा ? राजा ने कहा , बिलकुल नहीं। आदमी ने कहा , राम-राम ! ऐसा फिर किसी से मत कहिएगा। राजा ने पूछा , क्यों ? आदमी ने बताया कि असल में जो अपने पिता का नहीं होता , उसे यह दैवीय वस्त्र कभी नहीं दिखता। राजा बोला , ऐसा ! आदमी ने कहा , जी ऐसा ! अब राजा ने फ़ौरन पैतरा बदल दिया। दैवीय वस्त्र की भूरि-भूरि प्रशंसा शुरु करने लगा। राजा निर्वस्त्र ही बाहर आया तो लोग चौंके। कि राजा इस तरह नंगा ! पर लोग कुछ बोलते , उस के पहले ही उस आदमी ने लोगों को बताया कि जो आदमी अपने बाप का नहीं होगा , उस को यह दैवीय वस्त्र नहीं दिखेगा। राजा ने फिर से वस्त्र की भूरि-भूरि प्रशंसा शुरु की। राजा की देखा-देखी मंत्री समेत सभी दरबारी लोग भी राजा के दैवीय वस्त्र की भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे। कि क्या तो वस्त्र है ! कैसी तो चमक है ! ऐसा बढ़िया वस्त्र कभी देखा नहीं आदि-इत्यादि। अब चूंकि राजा ने दैवीय वस्त्र पहना था तो तय हुआ कि इस ख़ुशी में नगर में राजा की एक शोभा यात्रा निकाली जाए। 

राजा की शोभा यात्रा निकली नगर में। पूरे नगर की जनता देख रही थी कि राजा नंगा है। पर शोभा यात्रा के आगे-आगे प्रहरी नगाड़ा बजाते हुए उद्घोष करते हुए चल रहे थे कि आज राजा ने दैवीय वस्त्र पहन रखा है। लेकिन जो अपने बाप का नहीं होगा , उसे वह यह वस्त्र नहीं दिखेगा। जो अपने बाप का होगा , उसे ही यह दैवीय वस्त्र दिखेगा। अब नगर की सारी जनता राजा के दैवीय वस्त्र का गुणगान कर रही थी। भूरि-भूरि प्रशंसा कर रही थी। राजा के दैवीय वस्त्र के बखान में पूरा नगर मगन था। राज्य के किसी गांव से एक व्यक्ति भी अपने छोटे बच्चे को कंधे पर बिठा कर नगर आया था। बच्चे ने अपने पिता से पूछा , बापू राजा नंगा क्यों है ? उस व्यक्ति ने अपने बच्चे को दो थप्पड़ लगाया और बोला , राजा इतना बढ़िया कपड़ा पहने हुए है और तुझे नंगा दिख रहा है ? बच्चा फिर बोला , लेकिन बापू , राजा नंगा ही है ! अब गांव घर पहुंच कर उस आदमी ने अपनी पत्नी की अनायास पिटाई कर दी। पत्नी ने पूछा , बात क्या हुई ? वह व्यक्ति बोला , बोल यह बच्चा किस का है ? पत्नी बोली , तुम्हारा ही है। इस में पूछने की क्या बात है भला ? उस आदमी ने कहा , फिर इसे राजा का दैवीय वस्त्र क्यों नहीं दिखा ? बच्चा बोला , पर बापू राजा नंगा ही था ! उस आदमी ने फिर से बच्चे और पत्नी की पिटाई कर दी !


कथा - 2 

अमरफल और राजा भरथरी का संन्यास 

एक बार किसी संत ने राजा के कामकाज से ख़ुश हो कर राजा को एक फल दिया। कहा कि इस फल को खा लेने से आप ज़िंदगी भर युवा बने रहेंगे। प्रजा की सेवा करेंगे। राजा को लगा कि मैं ज़िंदगी भर जवान रह कर क्या करुंगा। रानी जवान रहेंगी तो ज़्यादा अच्छा रहेगा। सो वह फल राजा ने रानी को दे दिया। रानी को लगा कि मैं जवान रह कर क्या करुंगी। अगर यह फल मेरा आशिक़ खा ले तो ज़िंदगी भर जवान रहेगा और मुझे आनंद देगा। रानी का आशिक़ एक घुड़सवार था। उस ने वह फल घुड़सवार को दे दिया। घुड़सवार एक तवायफ़ पर मरता था। सो घुड़सवार ने वह फल उस तवायफ़ को दे दिया। तवायफ़ को लगा कि उस का राजा प्रजा के कल्याण के लिए दिन-रात मेहनत करता है। क्यों न यह अमरफल राजा को दे दे। सो वह अमरफल ले कर , वह राजा के पास गई। और अमरफल की महत्ता बताते हुए राजा को दिया। कहा कि आप का युवा बने रहना , प्रजा के कल्याण के लिए बहुत ज़रुरी है। सो आप यह अमर फल खा लीजिए। राजा ने जब वह अमर फल देखा तो चकित रह गया। कि यह तो वही अमर फल है , जो उस ने रानी को दिया था। तवायफ़ से पूछा कि यह अमर फल तुम को कहां से मिला ? तवायफ़ ने झूठ नहीं बोला। बता दिया कि एक घुड़सवार उस का आशिक़ है उस ने दिया है। घुड़सवार को बुलवाया राजा ने। घुड़सवार ने बताया कि यह अमर फल उसे रानी ने दिया है। राजा का दुनिया से यक़ीन उठ गया। उस ने राजपाट छोड़ कर संन्यास ले लिया। योगी बन गया और गुरु गोरखनाथ का शिष्य बन गया। यह राजा भरथरी था। 


कथा -3 

जब गौरैया के कारण राजा ने अपनी ही पिछाड़ी , अपने ही तलवार से काट ली 

एक राजा था। [अब किस जाति का था यह मत पूछिए। क्यों कि राजा की कोई जाति नहीं होती। वह तो किसी भी जाति का हो, राजा बनते ही निरंकुश हो जाता है। फ़ासिस्ट हो जाता है। हर सच बात उसे अप्रिय लगने लगती है।] तो उस राजा को भी सच न सुनने की असाध्य बीमारी थी। अप्रिय लगता था हर सच उसे। सो उस ने राज्य के सारे दर्पण भी तुड़वा दिए। मारे डर के प्रजा राजा के खिलाफ़ कुछ कहने से कतरा जाती थी। बल्कि राजा का खौफ़ इतना था कि लोग सच के बारे में सोचते भी नहीं थे। और फिर चेले-चपाटों-चाटुकारों का कहना ही क्या था। अगर राजा कह देता था कि रात है तो मंत्री भी कह देता था कि रात है। फिर सभी एक सुर से कहने लग जाते क्या राजा, क्या मंत्री, क्या प्रजा, कि रात है, रात है ! रात है का कोलाहल पूरे राज्य में फैल जाता। भले ही यह सुबह-सुबह की बात हो ! 

लेकिन जब सब के सब सुबह-सुबह भी रात-रात करते होते तो एक गौरैया सारा गड़बड़ कर देती और कहने लगती कि सुबह है, सुबह है ! राजा बहुत नाराज होता। ऐसे ही राजा की किसी भी गलत या झूठ बात पर गौरैया निरंतर प्रतिवाद करती, फुदकती फिरती। राजा को बहुत गुस्सा आता। अंतत: राजा ने अपने मंत्री को निर्देश दे कर कुछ बहेलियों को लगवाया कि इस गौरैया को गिरफ़्तार कर मेरे सामने पेश किया जाए। बहेलियों ने गौरैया के लिए जाल बिछाया और पकड़ लिया। अब राजा ने गौरैया को पिंजड़े में कैद करवा दिया। भूखों रखा उसे। अपने चमचों को लगाया कि इस गौरैया का ब्रेन वाश करो। ताकि यह मेरे पक्ष में बोले, मेरी आलोचना न करे। मुझे झूठा न साबित करे। भले सुबह हो लेकिन अगर मैं रात कह रहा हूं तो स्वीकार कर ले कि रात है। चमचों ने अनथक परिश्रम किया। एक चमचे को कबीर बना कर खड़ा किया और सुनवाया कि घट-घट में पंक्षी बोलता ! और कहा कि ठीक इसी तरह तुम भी गाओ कि घट-घट में राजा बोलता ! और जो बोलता, सच ही बोलता ! कुछ अंड-बंड भी कहा। 

लेकिन गौरैया नकली कबीर के धौंस में नहीं आई, झांसे में भी नहीं आई। नकली कबीर कहता, घट-घट में राजा बोलता ! गौरैया कहती, खुद ही डंडी, खुद ही तराजू, खुद ही बैठा तोलता! नकली कबीर फिर कहता, घट-घट में राजा बोलता ! गौरैया कहती, खुद ही माली, खुद ही बगिया, खुद ही कलियां तोड़ता ! नकली कबीर अपनी दाल न गलती देख फिर लंठई पर उतर आया। पर उस की लंठई भी काम न आई। क्यों कि गौरैया जानती थी कबीर तो सच, निर्दोष और मासूम होते हैं। फ़ासिस्ट नहीं, न फ़ासिस्टों की चमचई में अतिरेक करते हैं। वह असली कबीर को जानती थी। आखिर गौरैया थी, घूमती फिरती थी, जग , जहान जानती थी। सो गौरैया नहीं मानी, सच बोलती रही। निरंतर सच बोलती रही। राजा तबाह हो गया इस गौरैया के फेर में और गौरैया के सच से। और अंतत: जब कोई तरकीब काम नहीं आई तो राजा ने गौरैया की हत्या का हुक्म दे दिया। 

तय दिन-मुकाम के मुताबिक राजा के फ़रमान के मुताबिक गौरैया की हत्या कर दी गई। लेकिन यह देखिए कि गौरैया तो अब भी शांत नहीं हुई। वह फिर भी बोलती रही। राजा ने कहा कि अब गौरैया का मांस पका दो, फिर देखता हूं कैसे बोलती है। गौरैया का मांस पकाया गया। वह फिर भी बोलती रही। राजा का दुख और अफ़सोस बढ़ता जा रहा था। राजा ने कहा कि अब मैं इसे खा जाता हूं। फिर देखता हूं कि कैसे बोलती है। और राजा ने गौरैया का पका मांस खा लिया। लेकिन अब और आफ़त ! गौरैया तो अब राजा के पेट में बैठी-बैठी बोल रही थी। राजा का गुस्सा अब सातवें आसमान पर। चमचों, चेलों-चपाटों को उस ने डपटा और कहा कि तुम लोगों ने गौरैया की ठीक से हत्या नहीं की, ठीक से मारा नहीं। इसी लिए वह लगातार चू-चपड़ कर रही है। अब इस को मैं अपनी तलवार से सबक सिखाता हूं, तब देखना ! अब सुबह हुई। राजा नित्य क्रिया में भी तलवार ले कर बैठा। बल्कि तलवार साध कर बैठा। और ज्यों गौरैया बाहर निकली उस ने तलवार से भरपूर वार किया। गैरैया तो निकल कर फुर्र हो गई। लेकिन राजा की तलवार का भरपूर वार उस की खुद की पिछाड़ी काट गया था। अब गौरैया उड़ती हुई बोली, 'अपने चलत राजा गंड़ियो कटवलैं लोय-लाय !'

तो मित्रो, कहने का कुल मतलब यह है कि सुबह को रात कहने का अभ्यास बंद होना चाहिए। किसी निरंकुश और फ़ासिस्ट विचारधारा की हां में हां मिलाने का अभ्यास खुद के लिए तो खतरनाक है ही, राजा के हित में भी नहीं है। बल्कि राजा के लिए ज़्यादा तकलीफ़देह और नुकसानदेह है। और जो राजा समझदार न हो तो उस के मंत्रियों का कर्तव्य बनता है कि अपने राजा को सही सलाह दें ताकि सही विमर्श हो सके। और कि उस की पिछाड़ी भी सही सलामत रहे।

कथा - 4 

अकबर ने जब अपने लिए महाभारत लिखवाने की सोची 

एक बार बीरबल ने अकबर को महाभारत पढ़ने के लिए दिया। अकबर ने पढ़ा और बहुत खुश हुए। दरबार लगाया और बताया कि, 'बीरबल ने मुझे महाभारत पढ़ने के लिए दिया था। मैं ने पढ़ा और मुझे बहुत पसंद आई है महाभारत। अब मैं चाहता हूं कि मुझे केंद्र में रख कर अब मेरे लिए भी एक महाभारत लिखी जाए।' अब दरबार का आलम था। सो सारे दरबारी, 'वाह, वाह ! बहुत सुंदर, बहुत बढ़िया !' में डूब गए। लेकिन इस सारे शोरो-गुल में बीरबल खामोश थे। अकबर हैरान हुआ। उस ने बीरबल से कहा कि, 'बीरबल तुम ने ही मुझे महाभारत दी पढ़ने के लिए और तुम ही खामोश हो? कुछ बोलते क्यों नहीं? तुम भी कुछ कहो !' बीरबल ने कहा कि, 'बादशाह हुजूर, कुछ कहने के पहले मैं रानी से एक सवाल पूछने की इज़ाज़त चाहता हूं।'

'इज़ाज़त है !' अकबर ने कहा।

'क्या आप अपने पांच पति पसंद करेंगी रानी साहिबा !' बीरबल ने पूछा तो रानी बिगड़ गईं। बोलीं,'यह क्या बेहूदा सवाल है?' अकबर भी बिगड़े, ' बीरबल यह क्या बदतमीजी है ?'

'हुजूर, इसी लिए इज़ाज़त ले कर पूछा था। गुस्ताखी माफ़ हो !' बीरबल ने कहा और चुप हो गए। अकबर होशियार आदमी था। सब समझ गया। समझ गया कि महाभारत की तो बुनियाद ही है द्रौपदी और उस के पांच पति। सो अकबर ने ऐलान कर दिया कि हमारे लिए कभी कोई महाभारत नहीं लिखी जाएगी।

कथा - 5 

जब राजा ने ब्राह्मण की जगह ख़ुद फांसी पर चढ़ गया 

एक राजा था जिस के लिए भारतेंदु ने अंधेर नगरी चौपट राजा नाटक लिखा। उस में से सिर्फ़ एक कथा का यहां ज़िक्र गौरतलब है। राजा एक ब्राह्मण से बहुत परेशान था। राजा के हर ग़लत काम पर खुल कर टिप्पणी करता था। राजा परेशान हो गया। राजा ने एक बार उस ब्राह्मण को फांसी की सज़ा सुना दी। ब्राह्मण ने खुद फांसी की मुहूर्त और दिन तय कर दिया। ऐन फांसी के समय उस ब्राह्मण का एक शिष्य पहुंचता है। राजा से कहता है कि यह ब्राह्मण बहुत होशियार आदमी है। सारी बात राजा के ख़िलाफ़ मैं बताता था और यह बोलता था। फिर फांसी का ऐसा मुहूर्त निकाला है कि इस मुहूर्त में जिस को भी फांसी लगेगी , वह सीधे स्वर्ग जाएगा। तो यह ब्राह्मण यहां भी मेरा हक़ छीन लेना चाहता है। सो इस की जगह मुझे फांसी दिया जाए। ताकि मुझे स्वर्ग मिले। इसे नहीं। राजा यह बात सुन कर ताव में आ गया। बोला , अपने को बहुत होशियार समझते हो ! अरे , स्वर्ग ही जाना है तो तुम क्यों , मैं जाऊंगा। और राजा ख़ुद फांसी चढ़ गया। ऐसे समझदार शिष्य हों तो किसी गुरु का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कि अपने गुरु को न सिर्फ़ फांसी से उतार लिया बल्कि राजा को भी फांसी पर चढ़वा दिया। 

कथा - 6 

दूध की जगह पानी का तालाब बन गया 

एक राजा ने एक बार सोचा कि क्यों न दूध का एक तालाब बनवा दिया जाए। तालाब खुदवाया। और सारी प्रजा को आदेश दिया कि निर्धारित दिन पर सभी लोग भोर में एक-एक लोटा दूध डाल दें। प्रजा ने ऐसा किया भी। लेकिन सारी प्रजा ने लगभग एक ही तरह से सोचा। कि सभी लोग दूध डालेंगे ही। मैं अगर एक लोटा पानी डाल दूंगा तो क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा। अंधेरे में देखेगा भी कौन कि क्या डाला। दूध कि पानी। नतीज़ा यह निकला कि सुबह हुई तो पूरा तालाब पानी से लबालब था। किसी ने दूध डाला ही नहीं था। 

तो कश्मीर फ़ाइल्स ही नहीं , हर आपदा और हर ख़ुशी में इन बेबाप की औलादों का एक सुर में मिले सुर , मेरा तुम्हारा गाने का राज आप सब की समझ में ज़रुर आ गया होगा। 

Monday 14 March 2022

जगमोहन न होते तो कोई बताने वाला नहीं होता कि कश्मीर में हुआ क्या था

 दयानंद पांडेय 


जब कश्मीरी पंडितों पर जुल्म शुरु हुआ तो दो दिन में नहीं हुआ। जैसे आप के या किसी भी के पैदा होने में बहुत समय लगता है वैसे ही कोई भी समस्या दो-एक साल में पैदा नहीं होती। मुख्य मंत्री को बर्खास्त कर , राष्ट्रपति शासन लगा , जगमोहन को राज्यपाल बना कर भेजा ही इसी लिए गया कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई थी। 

राज्यपाल बनने के समय जगमोहन का भाजपा से कोई नाता नहीं था। आई ए एस अफ़सर रहे थे। कांग्रेस के संजय गांधी के ख़ास थे। दिल्ली में संजय गांधी के कहे पर तुर्कमान गेट को तोड़ने के लिए जाने जाते थे। वी पी सिंह सरकार की ग़लती यह थी कि तुरंत फ़ौज उतार देनी चाहिए थी , कश्मीर में। नहीं उतारी। जगमोहन कहते रह गए , फ़ौज भेजिए। 

कश्मीर की सारी समस्या ही 370 थी। जो कांग्रेस की नेहरु सरकार ने लागू की थी। इस लिए दोषी कांग्रेस। बातें और भी बहुत हैं कांग्रेस और कश्मीर के बाबत। एक पोस्ट में लिख पाना मुमकिन नहीं। हां , जगमोहन ने एक बड़ा काम यह किया कि तमाम कश्मीरी पंडितों को वहां से भागने में मदद की। साफ़ कहा कि यहां से भागो। पहले अपनी जान बचाओ। जान बचेगी तब ही कुछ बचेगा। 

कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा और वाहन उपलब्ध करवाया। जम्मू भेजा। नहीं बहुत बड़ा नरसंहार होता। कोई बताने वाला भी नहीं बचता कि कश्मीर में हुआ क्या। आतंकी यासीन मलिक की फ़ोटो कभी देखी है , मनमोहन सिंह के साथ ? न देखी हो तो इस लेख के साथ में देख लें। वही यासीन मलिक जिस ने केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के कहने पर मुफ्ती की बेटी का अपहरण किया , कुछ आतंकियों को छुड़ाने के लिए। भला कोई अपनी बेटी का अपहरण भी करवाता है ? मुफ्ती ने करवाया। यह मुफ्ती ही था , जिस ने कश्मीर में फ़ौज नहीं उतारने की सलाह दी थी वी पी सिंह को। यह मुफ्ती तब केंद्रीय गृह मंत्री था। 

ग़लती भाजपा की भी थी कि उस ने तभी वी पी सिंह सरकार से समर्थन वापस नहीं लिया। लेकिन भाजपा ने 370 ख़त्म कर कश्मीर को काफी नियंत्रित किया है अब। अभी और करेगी। बहुत टाइम लगेगा अभी कश्मीर को राइट टाइम करने में। दो-चार दिन या किसी पंचवर्षीय योजना में ठीक होने वाला नहीं है कश्मीर। 

कुल हासिल यह कि कश्मीर का बुरा हाल करने में कांग्रेस का अस्सी प्रतिशत हाथ है। राजीव गांधी सरकार ने भी कश्मीर को खूब झुलसाया था। वी पी सिंह सरकार का 20 प्रतिशत। मनमोहन सिंह ने तो कश्मीरी आतंकियों को दामाद ही बना रखा था। कारण सिर्फ़ एक था , मुस्लिम वोट बैंक की गुलामी। और कुछ नहीं। इस मुस्लिम वोट बैंक की क़ीमत सिर्फ़ कश्मीरी पंडित ही नहीं , पूरे देश ने भुगती है। मनुष्यता ने भुगती है। अब लगाम लगी है इस मुस्लिम वोट बैंक पर। भाजपा तो कश्मीर को दुरुस्त कर रही है निरंतर। कश्मीर में पत्थरबाजी बंद है। हिंसा बंद है। देश में आतंकी घटनाएं पूरी तरह बंद हैं। सात साल में और कितना नतीज़ा चाहते हैं। 

फिर कश्मीर फ़ाइल्स फ़िल्म ऐसी किसी फाइंडिंग पर नहीं गई है कि कश्मीर की इस दुर्दशा और नरसंहार में किस राजनीतिक दल की क्या भूमिका थी। कोई इशारा भी नहीं। लेकिन कांग्रेस अपने मुंह की कालिख छुपाने के लिए ऐसा भाजपा , जगमोहन नैरेटिव चलाए हुई है। और कांग्रेस के अल्सेशियन संसद से लगायत सोशल मीडिया तक पर यह ग़दर मचाए हुए हैं। कश्मीर देश का मुकुट है , उस को अपनी शान समझिए। सब ठीक होगा। पर टाइम लगेगा। बहुत लगेगा।

Sunday 13 March 2022

कश्मीर फ़ाइल्स में नरसंहार देखने के बाद नींद उड़ गई है मेरी

दयानंद पांडेय 


आज और कल दो रात ठीक से सो नहीं सका। दिन में सोने की कोशिश की। फिर नहीं सो सका। कश्मीरी पंडितों का नरसंहार सोने नहीं देता। कुछ और सोचने नहीं देता। कश्मीर फ़ाइल्स देखे दो दिन हो गए हैं। लेकिन कश्मीरी पंडितों का दुःख है कि दिल में दुबका हुआ है। किसी मासूम की तरह गोद में दुबका बैठा है। छाती से चिपका हुआ। बहुत कोशिश के बावजूद नहीं जा रहा। इस कश्मीर फ़ाइल्स के बारे में बहुत चाह कर भी लिख नहीं पा रहा था। उन का दुःख लासा की तरह चिपक गया है। क्या करुं। इस फ़िल्म ने रुलाया भी बहुत है। कोई भी भावुक व्यक्ति रो देगा। 

प्रसिद्द फ़िल्मकार विधु विनोद चोपड़ा जो ख़ुद कश्मीरी हैं , की कश्मीर पर बनी फ़िल्म शिकारा: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित भी देखी है। पर वह फैंटेसी थी। व्यावसायिक और बेईमानी भरी फ़िल्म थी। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का आंखों देखा हाल नहीं बताती थी शिकारा। मनोरंजन करने वाली फ़िल्म थी। सो उस में अंतर्विरोध भी बहुत थे। मनोरंजन में दबा डायरेक्टर दुःख बेच तो सकता है , दुःख दिखा नहीं सकता। दुःख महसूस करने की चीज़ होती है। नरसंहार की कहानी में प्यार और प्यार के गाने नहीं फिट हो सकते। कैसे फिट हो सकते हैं भला। तो विधु विनोद चोपड़ा ने प्रेम कहानी परोस दी थी। 

कई बार दुःख चीख़ कर सामने आता है तो कई बार चुपचुप। तो कश्मीर फ़ाइल्स चुपचाप चीख़ती है। चीख़ती हुई कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की लोमहर्षक कथा कहती है। बिना लाऊड हुए। कश्मीरी पंडितों के लहू में डूबी कथा। क्या स्त्री , क्या बच्चे , क्या बूढ़े , क्या जवान , सब के लहू में डूबी अंतहीन लहू की कथा। जेहाद के क्रूर हाथों और इन जेहादियों को मदद करता सत्ता का सिस्टम। क्या मास्टर , क्या डाक्टर , क्या पत्रकार , क्या पुलिस अफ़सर , क्या आई ए एस अफ़सर। हर कोई जेहादियों के निशाने पर है। प्रताड़ित और अपमानित है। नर संहार का शिकार है। कब कौन बेबात मार दिया जाए , कोई नहीं जानता। लेकिन शारदा पंडित को सब के सामने नंगा कर सार्वजनिक रुप से घुमाना और आरा मशीन में चीर देना , देख कर कलेजा मुंह को आ जाता है। 

कुछ समय पहले कश्मीरी पंडित दिलीप कुमार कौल की एक कविता पढ़ी था , शहीद गिरिजा रैना का पोस्टमार्टम। इस कविता में गिरिजा रैना के साथ यही जेहादी सामूहिक बलात्कार कर आरा मशीन में चीर दिया जाता है। यह कविता पढ़ कर भी मैं हिल गया था। नहीं सो पाया था। लेकिन ऐसी ह्रदय विदारक घटनाओं की कश्मीर में तब बाढ़ आई हुई थी। सारे मानवाधिकार संगठन  रजाई ओढ़ कर सो गए थे। पूरे देश में जेहादी आतंकवाद मासूम नागरिकों को अपना ग्रास बनाए हुए था। पर सेक्यूलरिज्म के मुर्ग़ मुसल्लम में सब के सब ख़ामोश थे। जब अपने ऊपर आतंकी हमले का लोग प्रतिकार करने में शर्मा रहे थे , कहीं सांप्रदायिक न घोषित कर दिए जाएं , इस लिए लजा रहे थे। तो कश्मीरी पंडितों पर भला कोई क्यों बात करता। 

यहां तो लव जेहाद के खिलाफ बोलना भी हराम बता दिया गया था। कश्मीरी पंडितों पर आज भी कुछ बोलिए और लिखिए तो विद्वान लोग बताते हैं कि यह तो माहौल ख़राब करना है। इन विद्वानों के दामाद जेहादी जो चाहें , करें। नरसंहार भी करें तो वह मनुष्यता के हामीदार कहलाते हैं। लेकिन इन विद्वानों के दामाद जेहादियों का हत्यारा चेहरा दिखाने वाला सांप्रदायिक क़रार दे दिया जाता है। हिंदू-मुसलमान करने वाला बता दिया जाता है। भाजपाई , संघी और भक्त की गाली से नवाज़ा जाता है। अजब नैरेटिव गढ़ दिया गया है। इसी लिए जो बालीऊड कभी हर चार में दो फ़िल्म की शूटिंग कश्मीर में करता था , कम से कम गाने तो करता ही था। इन कश्मीरी पंडितों का नरसंहार भूल गया। 

दाऊद की बहन हसीना पार्कर का चेहरा साफ़ करने के लिए हसीना पार्कर पर फ़िल्म बनाना तो याद रहा। पर कश्मीरी पंडितों का नरसंहार और उन को कश्मीर से जेहादियों द्वारा भगा देना भूल गया। हेलमेट , हैदर और मुल्क़ जैसी प्रो टेररिस्ट फ़िल्में लेकिन बनाता रहा यही बालीऊड। लेखक , बुद्धिजीवी , पत्रकार ही नहीं , फ़िल्मकार भी सेक्यूलरिज्म और हिप्पोक्रेसी के कैंसर से पीड़ित हैं। कश्मीर फ़ाइल्स फ़िल्म के ख़िलाफ़ फतवा जारी हो गया है कि यह फ़िल्म माहौल ख़राब करने वाली फ़िल्म है। ऐसे जैसे कश्मीर फ़ाइल्स ने इन के नैरेटिव पर हमला कर दिया हो। फ़िल्म देखने के बाद आप पाएंगे कि कश्मीर फ़ाइल्स सचमुच इन हिप्पोक्रेट्स पर बहुत कारगर और क़ामयाब हमला है। इन के सारे नैरेटिव ध्वस्त कर दिए हैं इस अकेली एक फ़िल्म ने। कश्मीर फ़ाइल्स देखने के बाद दो आंखें बारह हाथ फ़िल्म में भरत व्यास का लिखी वह एक प्रार्थना याद आती  है :

ऐ मालिक तेरे बंदे हम,
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चले और बदी से टले,
ताकी हँसते हुये निकले दम

फ़िल्म शुरु होते ही पूरे सिनेमाघर में एक अजीब निस्तब्धता छा जाती है। हाल हाऊसफुल है पर पिन ड्राप साइलेंस। ऐसी ख़ामोशी , ऐसी नीरवता किसी फ़िल्म में अभी तक नहीं देखी थी। कभी नहीं। शाम सात बजे का शो है। ज़्यादातर लोग परिवार सहित आए हैं। पर कहीं कोई खुसफुस नहीं। फ़िल्म की गति , कथा की यातना ऐसी है , विषय ऐसा है कि कुछ और सोचने का अवकाश ही नहीं मिलता। अचानक इंटरवल होता है। भारी क़दमों से , भारी मन से कुछ लोग उठते हैं। जल्दी ही लौट कर फिर अपनी-अपनी कुर्सियों पर धप्प से बैठ जाते हैं। बिन कुछ बोले। बिना किसी की तरफ देखे। 

कश्मीर फ़ाइल में फ्लैश बैक बहुत है। कहीं कोई उपकथा या क्षेपक नहीं है। पूरी फ़िल्म में एक गहरी उदासी है। निर्मम और ठहरी हुई उदासी। पतझर जैसी। बर्फ़ में गलती हुई। ठहर-ठहर कर अतीत को देखती हुई। डल झील में जमती और पिघलती बर्फ़ की तरह। वर्तमान से जोड़ती हुई। कोई शिकारा जैसे पानी को चीरता हुआ चले। किसी हाऊस बोट की तरफ। फिर लौट-लौट आए। दुःख के और-और , ओर-छोर ले कर। कश्मीरी पंडितों के अपमान , दुराचार और नरसंहार को टटोलती हुई। जैसे कोई निर्धन बच्चा नदी के जल में कोई सिक्का खोजे। फ़िल्म कश्मीरी पंडितों की पीड़ा , उन की यातना की इबारत उसी तरह खोजती और बांचती मिलती है। अकथनीय दुःख को दृश्य और शब्द देती हुई। कई बार बच्चा कोई सिक्का पा जाता है। कभी नहीं भी पाता। पर लगा रहता है। 

मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट शिवरात्रि के नाटक की तैयारी में है। उन का छोटा पोता शिवा क्रिकेट खेल रहा होता है। बर्फ़ीले मैदान में। रेडियो पर क्रिकेट की कमेंट्री और बच्चों का खेल एक साथ जारी है। अचानक सचिन तेंदुलकर का नाम रेडियो पर आता है। शिवा भी सचिन-सचिन चिल्लाने लगता है। जेहादी यह सुनते हुए उसे दौड़ा लेते हैं मारने के लिए। शिवा अपने दोस्त के साथ भागता है। भागता जाता है। सड़कों पर जेहादी बेवजह सब को मौत के घाट उतारते जाते हैं। बेहिसाब। मौत के घाट उतरते जा रहे यह कश्मीरी पंडित हैं। सारे जेहादी चूंकि स्थानीय हैं , सो सब को पहचानते हैं। कौन अपना है , कौन कश्मीरी पंडित। 

छुपते-छुपाते शिवा अपने दोस्त के साथ इधर-उधर भटकता रहता है। हर सड़क पर कश्मीरी पंडितों पर काल मंडरा रहा है। पुष्कर नाथ भट्ट शंकर जी के मेकअप में बैठे हुए हैं कि उन के घर से फ़ोन आता है। वह मेकअप बिना उतारे , शिव बने , स्कूटर ले कर शिवा को खोजने निकल पड़ते हैं। शिवा मिल जाता है। पर सड़क पर तो कोहराम है। अचानक एक पुलिस जीप आती है। पुष्कर नाथ भट्ट के पास। पुलिस वाला कहता है , मास्टर जी कहां ऐसे माहौल में आप निकल पड़े हैं। आइए मेरे साथ। वह पुलिस जीप के पीछे-पीछे चलने का इशारा करता है। मास्टर जी पुलिस जीप के पीछे-पीछे चल पड़ते हैं। अचानक पुलिस जीप को जेहादी बम फेंक कर उड़ा देते हैं। मास्टर जी शिवा को स्कूटर पर लिए रास्ता बदल लेते हैं। 

इधर मास्टर के घर पर भी जेहादी हमला बोल चुके हैं। मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट का पड़ोसी पहले ही उन के बेटे को घर छोड़ कर जाने की सलाह दे चुका है। माहौल बहुत ख़राब है कह कर कहता है , आप का घर मैं देख लूंगा। कब्जा करने की नीयत साफ़ दिखती है। पर मास्टर का बेटा घर छोड़ कर नहीं जाता। अचानक पड़ोसी की शह पर जेहादी घर पर हमला बोल देते हैं। बीवी के कहने पर मास्टर का बेटा , न-न कहते हुए , चावल के ड्रम में छुप जाता है। एक पल के लिए मौत टल जाती है। मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट भी शिवा को ले कर घर आ जाते हैं। पर पड़ोसी के इशारे पर जेहादी फिर लौटते हैं। पड़ोसी इशारे से बता देता है , चावल के ड्रम में। 

जेहादी चावल के ड्रम पर इतनी गोली मारते हैं कि चावल कम , लहू ज़्यादा बहने लगता है , ड्रम से। लहू में सना चावल पुष्कर नाथ की बहू शारदा पंडित को जेहादी जबरिया खिलाता है। कहता है दो ही रास्ता है। मेरे साथ चल या यह चावल खा। यह जेहादियों का नेता है। कमांडर है। पुष्कर नाथ भट्ट का विद्यार्थी रहा है। मास्टर से कहता है , पढ़ाया था , इस लिए छोड़ रहा हूं तुम को। लेकिन मास्टर पुष्कर को और बहू शारदा को मारता बहुत है। बंदूक़ की बट से मारता है। पति के लहू में सना चावल खा कर किसी तरह जान बचती है। 

ऐसा एक विवरण पढ़ा है पहले भी। दो बेटों की हत्या कर उन के खून में भात सान कर उन की मां को खिलाया गया था। वामपंथियों ने ऐसा किया था कोलकाता में। और ऐसा करने वाले लोग बरसों मंत्री पद भी भोगते रहे , वाम शासन में। पश्चिम बंगाल का चरित्र ही रक्तपात का बना दिया गया। जो हाल-फ़िलहाल जाता नहीं दीखता। अब की यह विवरण भले फ़िल्म में सही , नंगी आंखों से देख रहा था।

शारदा पंडित और पुष्कर नाथ को बेटे के लहू में सना चावल खाते देख कर। देख रहा था और दहल रहा था। कहते हैं यह शारदा पंडित और पुष्कर नाथ सच्चे चरित्र हैं। सच्ची घटना है। आप ऐसी घटना देख कर कैसे सो सकते हैं। हां , आप कम्युनिस्ट हैं , जेहादी हैं तो फिर कोई बात नहीं। आप का तो यह नित्य का अभ्यास है। यही लक्ष्य है आप का। फिर मास्टर का परिवार घर छोड़ कर दूसरी जगह शरण ले लेते हैं। शरण देने वाले को ही जेहादी उस के घर से उठा ले जाते हैं। इस घर में कई कश्मीरी पंडित शरणार्थी हैं। 

रातोरात एक ट्रक से जम्मू के लिए चल देते हैं सभी के सभी। अचानक रास्ते में एक लड़की को पेशाब लगती है। बहुत चिल्लाने पर भी ट्रक नहीं रुकता। ट्रक में स्त्री-पुरुष खचाखच भरे पड़े हैं। दो कंबल की आड़ में दो स्त्रियां ट्रक के आख़िरी छोर पर पेशाब करवाती हैं। पेशाब कर के वह लड़की उठती है और चीख़ पड़ती है। सड़क किनारे पेड़ों पर लाशें टंगी पड़ी हैं। सब के सब चीख़ पड़ते हैं। यह कश्मीरी पंडितों की सामूहिक चीख़ है। जिसे किसी सरकार , किसी पार्टी , किसी मानवाधिकार , किसी लेखक , किसी पत्रकार ने कभी नहीं सुनी। बर्फ़ से घिरी सड़कों और वृक्षों ने , जमी हुई बर्फ़ ने भी जाने यह चीत्कार कभी सुनी कि नहीं। ट्रक भी कैसे सुनता भला। 

श्रीनगर का कमिश्नर ब्रह्मदत्त , पुष्करनाथ भट्ट का दोस्त है। सब से बड़ा पुलिस अफ़सर भी पुष्कर का दोस्त है। एक डाक्टर भी और दूरदर्शन का एक पत्रकार भी। कोई एक पुष्कर की मदद नहीं कर पाता। चाह कर भी नहीं। आई ए एस अफ़सर जो श्रीनगर का कमिश्नर है , उस से एक सब्जी दुकानदार भी नहीं डरता। कमिश्नर के सामने ही वह पाकिस्तान का रुपया वापसी में मास्टर को देता है। और कहता है कि यहां रहना है तो पाकिस्तान का रुपया ही लेना होगा। एक गोल्ड मेडलिस्ट लड़की है। कमिश्नर से कहती है कि राशन दुकानदार उसे इस लिए राशन नहीं बेच रहा है कि वह कश्मीरी पंडित है। कमिश्नर के कहने पर भी उसे राशन नहीं मिलता। कमिश्नर के सामने ही एयर फ़ोर्स के कुछ अफ़सर सरे आम मार दिए जाते हैं , जेहादियों द्वारा। 

कमिश्नर अवाक देखता रह जाता है। वहां उपस्थित पुलिस वालों से कमिश्नर कहता है , मुंह क्या देख रहे हो। पकड़ो इन्हें। पुलिस वाले सिर झुका कर खड़े रह जाते हैं। कमिश्नर के सामने ही भारतीय तिरंगा हटा कर पाकिस्तानी झंडा लगा दिया जाता है। ऐसी अनगिन कहानियों , दुःख और नरसंहार से कश्मीर फ़ाइल्स भरी पड़ी है। मुख्य मंत्री से जब कमिश्नर यह सब बताता है तो मुख्य मंत्री कमिश्नर से कहता है यू , थोड़ा रुकता है और कहता है , आर सस्पेंडेड। यह फ़ारुख़ अब्दुल्ला है। जो एक जेहादी से मिलने को बेक़रार है। जेहादी मुख्य मंत्री आवास के लॉन में सामने ही कुर्सी पर बैठा हुआ है। मय हथियार के। बगल में खड़े पुलिस अफ़सर की कमर में लगी पिस्तौल निकाल कर कमिश्नर ब्रह्मदत्त उस जेहादी को वहीं शूट कर देता है। मुख्य मंत्री लाचार खड़ा देखता रह जाता है। 

कमिश्नर ब्रह्मदत्त की यह लाजवाब भूमिका मिथुन चक्रवर्ती के हिस्से आई है। मिथुन का अभिनय पूरी फ़िल्म में बेमिसाल है। आदत के मुताबिक़ वह किसी भी दृश्य या संवाद में लाऊड नहीं हुए हैं। गुरु फ़िल्म से ही उन की फ़िल्मोग्राफ़ी जो बदली है , वह निरंतर निखरती गई है। कश्मीर फ़ाइल्स में आई ए एस अफ़सर जिस की छवि समाज में ख़ुदा की सी है। परम शक्तिशाली की है। उस अफ़सर की लाचारी और बेबसी को अभिनय में बेसाख़्ता परोसना बहुत आसान नहीं था। बहुत जटिल भूमिका को आहिस्ता-आहिस्ता कश्मीर की बर्फ़ में गला कर सख़्त किया है मिथुन ने। जम्मू में कश्मीरी पंडितों के कैंप में केंद्रीय गृह मंत्री के साथ बतौर राज्यपाल के सलाहकार रुप में उपस्थित हैं मिथुन । मुफ़्ती मुहम्मद सईद कश्मीरी पंडितों के लिए अपमानजनक तंज के साथ उपस्थित है। यहां मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट को अचानक देख कर वह परेशान होते हैं। 


पुष्कर लगभग विक्षिप्त हो रहे हैं। रिफ्यूजी कैम्प के टेंट में गरमी और विपन्नता उन की साथी है। मिथुन कश्मीर में उन की वापसी का प्रबंध करते हैं। एक आरा मशीन में नौकरी का प्रबंध भी। और यहीं उन की बहू शारदा पंडित को सब के सामने नंगा कर आरा मशीन में लगा कर चीर दिया जाता है। इसी के बाद गिन कर चौबीस कश्मीरी पंडितों को लाइन से खड़ा कर गोली मार देते हैं जेहादी। मास्टर का पोता शिवा सब से छोटा बच्चा है , इस नरसंहार में। मास्टर शिवा के छोटे भाई कृष्ण को ले कर दिल्ली में हैं अब। पेट काट-काट कर वह उसे पढ़ाते हैं। बड़ा होता है तो जे एन यू में दाखिला लेता है। छात्र संघ की राजनीति में पड़ जाता है। जेहादियों की संगत में आ जाता है। छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव लड़ता है। प्रोफेसर राधिका मेनन के आज़ादी , आज़ादी , ले के रहेंगे आज़ादी के जादू में आ जाता है। पुष्कर नाथ उसे बहुत समझाते हैं पर कृष्णा किसी सूरत नहीं समझता। 

प्रोफ़ेसर राधिका मेनन ने उस का पूरी तरह ब्रेन वाश कर दिया है। इतना कि उसे अपने ग्रैंड फ़ादर की बातें जहर लगती हैं। उसे बता दिया है राधिका ने कि कश्मीरी पंडितों ने कश्मीरी लोगों का इतना शोषण किया कि उन के ख़िलाफ़ क्रांति हो गई। और उन्हें कश्मीर से भागना पड़ा। कि कश्मीरी जेहादी फ्रीडम फाइटर हैं। बुहान वानी हमारा हीरो है। अफजल हम शर्मिंदा हैं , तेरे कातिल ज़िंदा हैं जैसे नारे लगाने लगता है कृष्णा। बात-बेबात वह इस मसले पर घर में मास्टर पुष्कर नाथ से लड़ जाता है। पुष्कर नाथ भट्ट की ग़लती यह है कि उन्हों ने कृष्णा के माता-पिता और भाई शिवा को जेहादियों ने नरसंहार में मार दिया बताने के बजाय स्कूटर दुर्घटना में मारा बताया होता है। ताकि उस के मन पर विपरीत प्रभाव न पड़े। दर्शन कुमार ने कृष्णा का यह अंतर्विरोधी चरित्र जिया है। 

अचानक जब पुष्कर का निधन हो जाता है तो जे एन यू का यह कृष्णा जब पुष्कर की अस्थियां ले कर कश्मीर जाने को होता है। पुष्कर नाथ भट्ट की इच्छा है कि उन की अस्थियां उन के कश्मीर वाले घर में ही बिखेर दी जाएं। उन के कुछ मित्रों की उपस्थिति में। तब तक धारा 370 हट चुका है। कश्मीर में नेट बंद है। राधिका मेनन , कृष्णा को 370 हटाने के ख़िलाफ़ , इंटरनेट बंद होने के ख़िलाफ़ ब्रेन वाश कर के कश्मीर भेजती है। अपने कुछ संपर्क के सूत्र देती है। फोन नंबर देती है कि जाओ इन से मिलो। इन की कहानी इन से सुनो। इन पर कितना अत्याचार हुआ है , ख़ुद देखो। और यह कहानी ला कर ख़ुद सुनाओ। 

कृष्णा पहुंचता है आई ए एस अफ़सर ब्रह्मदत्त के घर। सारे मित्र इकट्ठे होते हैं। पुरानी यादों में खो जाते हैं। फ्लैश बैक में आते-जाते रहते हैं। फिल्म की यह एक बड़ी कमी है कि बहुत सारी बातें , अत्याचार और नरसंहार की बातें दृश्य में कम , संवाद में ज़्यादा हैं। बहुत से विवरण संवादों के मार्फ़त परोसे गए हैं। दृश्य में होते तो और ज़्यादा प्रभावी होते। संवाद लेकिन असर डालते हैं। जैसे दूरदर्शन के रिपोर्टर को जब डाक्टर बात-बात में आस्तीन का सांप कह देता है। दोनों गुत्थमगुत्था हो जाते हैं। दूरदर्शन का रिपोर्टर अपनी ख़बरों में सरकार के निर्देश पर झूठ बहुत परोसता है। आंखों देखा झूठ। लेकिन पुलिस अफ़सर की भूमिका में पुनीत इस्सर अचानक रिपर्टर को डाक्टर से अलग कर झटक देता है। 

पुनीत इस्सर ने अपनी भूमिका को बहुत जीवंत ढंग से जिया है। पुष्कर नाथ भट्ट की भूमिका में अनुपम खेर ने अभिनय लाजवाब किया है। लेकिन लेखक निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने पुष्कर नाथ के चरित्र को ठीक से लिखा नहीं है। टुकड़ों-टुकड़ों में बांट दिया है। जो तारतम्यता और कसावट पुष्कर जैसे चरित्र में अपेक्षित थी निर्देशक और लेखक नहीं दे पाए हैं। चूक गए हैं। कृष्णा की भूमिका में दर्शन शुरु में चरित्र में ठीक से समा नहीं पाते। कश्मीर में भी कृष्णा का चरित्र बहुत प्रभाव नहीं छोड़ता। एक स्प्लिट व्यक्तित्व की भूमिका वैसे भी कठिन होती है। कृष्णा के ब्रेनवाश बहुत बढ़िया से किया गया है। यह स्क्रिप्ट में है , निर्देशन और संवाद में भी है। भरपूर है। पर अभिनय में बहुत लचर। 

कश्मीर से लौट कर जब कृष्णा जे एन यू में अपना भाषण देता है , तब जा कर कहीं दर्शन के अभिनय में आंच आती है। कश्मीर के इतिहास और कश्मीरी पंडितों के गुणों और उन की विद्वता का आख्यान और उस का व्याख्यान जिस तरह दर्शन ने अपने अभिनय में परोसा है , वह अप्रतिम है। एरियन तक को कोट किया है। ऋषि कश्यप , आदि शंकराचार्य आदि सब के योगदान को रेखांकित करते हुए कश्मीर का सारा वैभव बताते हुए बताया है कि क्यों जन्नत कहा गया है , कश्मीर को। जिसे जेहादियों ने जहन्नुम बना दिया। जेहादियों की पैरवी का सारा ब्रेनवाश राधिका का धरा का धरा रह जाता है। 

अरबन नक्सल की भूमिका में पल्लवी जोशी का अभिनय बाकमाल है। जे एन यू में ले के रहेंगे आज़ादी के माहौल पर निर्देशक ने जो प्रहार किया है , अभूतपूर्व है। कभी नक्सलाइट रहे मिथुन चक्रवर्ती वामपंथी मृणाल सेन जैसे निर्देशक के अभिनेता रहे हैं। कश्मीर फ़ाइल्स में मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट के घर में जेहादियों द्वारा लगाए गए पाकिस्तानी झंडे को हटा कर अचानक देखते हैं कि शिवलिंग को नीचे गिरा दिया गया है। वह शिवलिंग को बड़ी श्रद्धा से उठा कर फिर प्रतिष्ठापित करते हैं , यह देखना भी विस्मयकारी था। 

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म , लाजिम है कि हम भी देखेंगे ! अर्बन नक्सल की पसंदीदा नज़्म है।  इस में भी यह नज़्म पल्लवी जोशी पर बहुत शानदार ढंग से फ़िल्माया गया है। इस नज़्म को अभी तक वामपंथी अपने कार्यक्रमों में बहुत सलीक़े से किसी हथियार की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन कश्मीर फ़ाइल्स में फ़ैज़ की इस नज़्म को वामपंथियों और जेहादियों के ख़िलाफ़ भरपूर प्रहार की तरह इस्तेमाल किया गया है। इस लिए भी शायद कहा जा रहा है कि यह फ़िल्म माहौल ख़राब करने के लिए बनाई गई है। जब कि ऐसा बिलकुल नहीं है। कश्मीर फ़ाइल्स देख कर कश्मीरी पंडितों के लिए गहरी संवेदना और सहानुभूति उमगती है दिल में। कई बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वहीं यह फ़िल्म जेहादियों को उन की बेहिसाब और बेवज़ह हिंसा के लिए कोसती है। बहुत ग़ुस्सा दिलाती है। जो कि दिलानी चाहिए। 

पूरी फ़िल्म सभी दर्शक जैसे सांस रोके , निस्तब्ध हो कर देखते रहे। लेकिन आख़िर में जब कश्मीरी पंडितों को जेहादी लाइन से खड़ा कर गोली मारने लगते हैं तभी हाल में अचानक सारी निस्तब्धता तोड़ कर मोदी-योगी , ज़िंदाबाद के नारे हाल में लगने लगते हैं। बहुत ज़ोर से। उधर परदे पर गोलियां चलती रहती हैं , इधर मोदी-योगी , ज़िंदाबाद ! के नारे। अचानक यह नारा जैसे समवेत हो गया। स्त्रियों का स्वर भी इस में मिल गया। मिलता गया। ऐसे जैसे कोई बड़ा फोड़ा फूट गया हो। उस का सारा मवाद बाहर आ गया हो। इस नारे में इतना गुस्सा और जोश मिला-जुला था। अचानक मैं अवाक रह गया। मुझे लगा , जैसे सिनेमा घर में नहीं , किसी राजनीतिक रैली में हूं। परदे पर कश्मीरी पंडितों की लाश बिछ चुकी थी , एक गड्ढे में। एक के ऊपर एक। 

मोदी-योगी का नारा मद्धिम पड़ ही रहा था कि सब से छोटे बच्चे शिवा को ज्यों गोली मारी गई और वह जा कर लाशों के बीच गिर गया। कि तभी जेहादियों के लिए भद्दी-भद्दी गालियां शुरु हो गईं। तेज़-तेज़। जाहिर है अब तक सभी दर्शकों का खून लेखक, निर्देशक और अभिनेता लोग खौला चुके थे। तब जब कि सात स्क्रीन वाला यह सिनेपोलिस सिनेमा घर लखनऊ के पॉश इलाक़े गोमती नगर के विभूति खंड में स्थित है। लेकिन सिनेमा घर में यह दृश्य देख कर लगा कि यह फ़िल्म दो-तीन महीने लेट आई। अगर तीन महीने पहले आई होती तो उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के  परिणाम में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ पड़ गया होता। 

कुल मिला कर कश्मीर फ़ाइल्स एक भावनात्मक और बहुत ही क़ामयाब फ़िल्म है। लेखक , निर्देशक ने स्क्रिप्ट , निर्देशन और फ़ोटोग्राफ़ी में अगर कंप्रोमाइज नहीं किया होता , थोड़ी और मेहनत की होती , थोड़ा और पैसा ख़र्च कर लिया होता तो कश्मीर फ़ाइल्स एक क्लासिक फ़िल्म भी बन सकती थी। महाकाव्यात्मक आख्यान बन गई होती। जो नहीं बन पाई , इस का अफ़सोस रहेगा। फ़िल्म में कई जगह कश्मीरी में कुछ गानों का इस्तेमाल अंगरेजी कैप्शन के साथ किया गया है। कश्मीरी स्पष्ट है कि मुझे बिलकुल नहीं मालूम। लेकिन वह सारे गीत कश्मीरी पंडितों के दुःख को द्विगुणित करते रहे। उन की यातना और बेवतनी की विभीषिका को बांचते रहे। अनुपम खेर के अभिनय में बर्फ़ की तरह गलते रहे। उन की यातना को मन में सुई की तरह चुभोते रहे। निरंतर। ऐसे जैसे मन में कोई कांटा चुभे और चुभता ही रहे निरंतर। 

इन गीतों की तासीर और मद्धम सुर अभी भी मन में मंदिर की घंटियों की तरह बज रहे हैं। कुछ संवाद भी कश्मीरी में थे , अंगरेजी कैप्शन के साथ। जैसे जेहादियों का एक नारा , कश्मीरी पंडितों को संबोधित था और बार-बार , ‘रलिव गलिव चलिव !’ यानी अपने को कनवर्ट करो , मर जाओ या भाग जाओ ! एक और नारा है , “असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान” यानी  “हमें पाकिस्तान चाहिए और हिंदू औरतें भी लेकिन अपने मर्दों के बग़ैर।” जेहादियों की यह धमकी , कश्मीरी न समझ आने के बावजूद अभी तक कान में किसी तलवार की तरह कान को चीर रही है। चीरती ही जा रही है।


Friday 11 March 2022

न हर्र थी मेरे पास , न फिटकिरी , लेकिन रंग चोखा होता गया

 दयानंद पांडेय 

हज़ारों मित्रों ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव परिणाम के सटीक आकलन पर लगातार बधाई दी है। देते ही जा रहे हैं। सब को अलग-अलग से जवाब देना मुमकिन नहीं हो पा रहा। वाल पर तो लगभग कोशिश की है। पर मेसेंजर और वाट्स अप पर एक-एक को जवाब देना कठिन हो गया है। कुछ मित्रों ने कल के लेख को योगी को टैग किया। उन का भी धन्यवाद ज्ञापन मिला है। सभी मित्रों का बहुत आभार। आप मित्र ही मेरी ताक़त हैं। हमारी निडरता , निर्भीकता और निष्पक्षता का आधार बिंदु हैं , हमारे पाठक। हमारी क़लम और जुबां कभी किसी की ग़ुलामी नहीं करती। न कभी बिकी है। न बिकेगी। न ग़ुलाम बनेगी। ईमानदारी ही हमारी थाती है। 

पूरी विनम्रता के साथ कहना चाहता हूं कि हम तो बस जो ज़मीन पर था वही लिख रहे थे। समय की दीवार पर लिखी इबारत को बांच रहे थे। न हर्र थी मेरे पास , न फिटकिरी। लेकिन रंग चोखा होता गया। कबीर की जुबान में जो कहें तो ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया भी आप कह सकते हैं। प्रोपगैंडा नहीं , तर्क और तथ्य के आधार पर बात कहने का अभ्यास है। बस इतनी ही सी तो बात है। 2014 , 2017 , 2019 और अब 2022 सब की यही कथा है। चुनाव ही नहीं , बाक़ी मसलों पर भी ऐसे ही लिखता हूं। 

सत्ता के गलियारों का चक्कर नहीं काटता। इन की , उन की ठकुरसुहाती नहीं करता। अपने लिखे पर गर्व करता हूं। सीना तान कर चलता हूं। किसी पैकेज या किसी कमेंट के तहत नहीं लिखता। जनता के बीच रहने वाला सामान्य आदमी हूं। हर किसी से संवादरत रहता हूं। कोई पूर्वाग्रह नहीं रखता कभी भी। किसी भी के लिए नहीं। अपने निंदकों के लिए भी नहीं। जनता के बीच रहने के कारण सच , झूठ पता चलता रहता है। किसी से नफ़रत और घृणा भी नहीं करता। लिखते समय पसंद-नापसंद की नहीं सत्य का ख़याल रखता हूं। झूठ की नदी में नहीं बहता। न अपनी मनोकामना लिखता हूं। अपनी कहानी , उपन्यास में भी गप्प नहीं हांकता। न कविता में। न , लेख में। 

बस सलीक़े से सत्य को तथ्य और तर्क के साथ परोसने की कोशिश करता हूं। लेख में तो गप्प की गुंजाइश भी नहीं होती। हां , राजनीतिक लेख में या तो आप गप्प लिख सकते हैं या तथ्य। तीसरा कोई विकल्प नहीं होता। नकली माहौल बनाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं रही कभी। प्रोपगैंडा मुझे नहीं भाता। न आता है। तथ्य और तर्क के साथ बात करता हूं। आप को पसंद आए तो ठीक। नापसंद हो तो भी ठीक। 

लेकिन यह सत्य , तथ्य और तर्क की क़ीमत यह है कि कई निजी मित्र अनफ्रेंड कर के भाग गए। कुछ ब्लॉक कर ख़ुश हुए। अनर्गल आरोपों का भी लंबा सिलसिला है। किसिम-किसिम की गालियां , धमकी और ताने बहुत मिलते हैं। क्या-क्या नहीं कहते लोग। लेकिन मैं कभी इस की चिंता नहीं करता। जब रिपोर्टर था , तब भी धमकियां बहुत मिलती थीं। मुकदमे भी बहुत झेले हैं ख़बरों पर। 

अपने एक उपन्यास अपने-अपने युद्ध पर भी कंटेम्प्ट का मुक़दमा भुगता है। सो अब फ़ेसबुक पर लिखने से मिली धमकियों और गालियों की चिंता क्यों करुं भला। फर्जी आई डी के साथ भी लोग गाली और धमकी देते हैं। फ़ोन पर धमकी और गाली दे कर फ़ौरन ब्लॉक कर देते हैं। धमकियों से तो नहीं , पर हां , गालियां सुन कर दुःख होता है। लेकिन आप मित्र ही मेरी ताक़त हैं। आप मित्रों के भरोसे ऐसी बातों को तुरंत टाल देता हूं। गले में बांध कर नहीं घूमता। 

ग़ालिब का एक क़िस्सा याद आता है। ग़ालिब को लोग ख़त लिख कर गालियां देते थे। एक दिन ग़ालिब ऐसे ख़त पढ़ते हुए , अपने एक दोस्त से बोले , लोगों को गालियां देने की भी समझ नहीं है। तमीज़ नहीं। बताओ मुझे मां की गाली देते हैं। मेरी मां से उन को क्या मिल जाएगा ?

Thursday 10 March 2022

अगर योगी भी ताश की गड्डी में समा गए होते तो क्या मंज़र होता उत्तर प्रदेश में

दयानंद पांडेय 

पहले तो कृपया मुझे यह कहने की अनुमति दीजिए कि उत्तर प्रदेश का यह चुनाव मोदी-योगी नहीं जनता खुद लड़ रही थी। सपा के जंगल राज से बचने के लिए। नहीं भाजपा में चल रही रसाकसी को देखते हुए यह दो तिहाई बहुमत इस तरह नहीं मिलता। याद कीजिए कि कुछ समय पहले भाजपा गुजरात , उत्तराखंड समेत अपने सभी मुख्य मंत्रियों को ताश की गड्डी की तरह फेंट रही थी। उस समय अगर योगी आदित्यनाथ भी सरेंडर कर ताश की गड्डी में शामिल हो गए होते तो उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में क्या यही परिणाम होते ? निश्चित रुप से परिणाम यह नहीं होते। ठीक उल्टा होते। जो और जितनी सीट भाजपा को मिली है , वह और उतनी ही सीट समाजवादी पार्टी की होती। और जो और जितनी सीट समाजवादी पार्टी को मिली है , वह और उतनी ही सीट भाजपा को मिली होती। फिर नरेंद्र मोदी चाहे जितना शीर्षासन कर लेते अखिलेश सिंह यादव के साईकिल का जंगल राज नहीं रोक पाते। किसी सूरत नहीं रोक पाते। 

वह तो योगी ने हठ योग का सटीक उपयोग किया और ताल ठोंक कर खड़े हो गए। अगर इस रसाकसी में दो-तीन महीने ख़राब नहीं हुए होते तो भाजपा आज 350 सीट पर जीत का झंडा लिए उपस्थित मिलती। क्यों कि इस आपसी रसाकसी के असर ने न सिर्फ़ विपक्ष को भरपूर लाभ दिया बल्कि मतदाता भी भ्रमित हुआ। इधर-उधर हुआ। आई ए एस अफ़सर अरविंद शर्मा के मंत्री बनने , न बनने के विवाद ने भी भाजपा की सीटों में माठा डाला था। फिर केशव प्रसाद मौर्य का पिछड़ा होने का गुमान और मुख्य मंत्री पद पाने की लालसा में योगी के ख़िलाफ़ जब-तब बिगुल बजाने ने भी भाजपा का बहुत नुकसान किया। केंद्र ने केशव मौर्या को निरंतर शह दी और अरविंद शर्मा का वितंडा खड़ा किया। लेकिन योगी झुके नहीं कभी। अड़े रहे हठयोगी बन कर। मोदी भूल गए थे कि वह न सिर्फ़ योगी हैं। नाथ पंथ के योगी हैं। जिस का एक सूत्र हठयोग भी है।  

जल्दी ही योगी के हठयोग का नुकसान होता मोदी को दिखने लगा। योगी को पूर्वांचल एक्सप्रेस पर पैदल छोड़ कर  पीछे-पीछे चलने वाले योगी को , लखनऊ के राज भवन में कंधे पर हाथ रख कर अनुजवत बराबरी में ले कर चलने लगे मोदी। तो भी मोदी के काफिले के पीछे-पीछे पैदल चल रहे योगी के संदेश को लोग अलग-अलग पाठ निकलने लगे। जो भी हो बीच की खाई पटने लगी। अपने भाषणों में योगी राज के बुलडोजर का हवाला देने लगे। मोदी योगी को , यू पी के लिए बहुत उपयोगी कहने लगे। लेकिन अब तक जंगल राज के प्रतीक अखिलेश यादव और उन के जातीय और अपराधी सलाहकारों को पर्याप्त आनंद और मसाला मिल गया था। मीडिया में सपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए अखिलेश द्वारा पर्याप्त पैसा बंट चुका था। सोशल मीडिया पर पेड वर्कर ने बैटिंग शुरु कर दी थी , भाजपा के खिलाफ। ख़ास कर यू ट्यूबर्स की बटालियन ने तो ग़ज़ब माहौल बना दिया। सब को लगने लगा कि योगी सरकार तो गई। भाजपा संगठन में अलग शतरंज बिछी हुई थी। भीतरघात की बिसात पर लोग शेयर मार्केट की तरह उछाल मार रहे थे। योगी को अयोध्या , मथुरा घुमा रहे थे। अजब-ग़ज़ब के गुणा-भाग बता रहे थे। लेकिन योगी अभिमन्यु  नहीं , अर्जुन की भूमिका में उपस्थित थे। यह बात विपक्ष भी नहीं देख रहा था और भाजपा के भीतरघाती भी नहीं देख पा रहे थे। वह तो योगी को अभिमन्यु की तरह घेर कर बस किसी भी तरह मार देने के लिए व्यूह दर व्यूह रच रहे थे। मतलब पूरा चक्रव्यूह। 

नेहा राठौर की गायकी में यू पी में का बा गीत में योगी-मोदी से घायल लोगों को थोड़ी राहत ज़रुर मिली पर इस एक गाने का संदेश अच्छा नहीं गया। उत्तर प्रदेश के लोगों ने इस गीत को अपने अपमान , उत्तर प्रदेश के अपमान से जोड़ कर देखा। फिर इस गीत यू पी में का बा ! के जवाब में अनगिनत गीत आ गए। जो यू पी की महत्ता के बखान में पगे हुए थे। इस गाने की ही तरह जब भी कोई काम होता , आचार संहिता के पहले , हर काम को अखिलेश अपना काम बताने लगे। नतीज़े में अखिलेश यादव और उन के काम को ले कर हज़ारों लतीफ़े सोशल मीडिया पर घूमने लगे। इतना कि लतीफ़ा सीरीज में वह राहुल गांधी को बहुत पीछे छोड़ गए। दुनिया के हर काम में अखिलेश का नाम लोग जोड़ने लगे। ताजमहल के निर्माण तक में। न्यूटन और आर्कमिडीज के सिद्धांत तक में अखिलेश यादव का नाम जुड़ने लगा। तो क्या यह सब अखिलेश यादव के कान तक कभी पहुंचा नहीं। इस की काट क्या खोजी उन्हों ने , दिखा तो नहीं अभी तक। नेहा राठौर के गीत के जवाब में तो इतने वर्जन आ गए कि लोग गिन नहीं सकते। तो अखिलेश ने अपने इर्द-गिर्द सिर्फ़ चाटुकार ही पाल रखे हैं। फिर बाद में जिस तरह अखिलेश और उन के लोगों ने फर्जी और प्रायोजित ख़बरों का खेल खेला , वह तो और भी हास्यास्पद था। 

क्या तो अखिलेश यादव की सरकार बनती देख एक वरिष्ठ आई ए एस अफ़सर रात के अंधेरे में अखिलेश से मिले। तब जब कि इस अफ़सर की लिखित शिकायत अखिलेश चुनाव आयोग से कर चुके थे। हटाने के लिए कहा था। एक और ख़बर चलवाई कि अखिलेश की सरकार बनती देख एक वरिष्ठ आई ए एस अखिलेश को रोज चार बार गुड मॉर्निंग भेजने लगा। अखिलेश ने उसे ब्लॉक कर दिया। क्या आई ए एस अफ़सर इतने उठल्लू होते हैं ? फिर डी एम अयोध्या के निवास की नाम पट्टी हरी होने की ख़बर चली कि अखिलेश सरकार को आता देख नाम पट्टी भगवा से हरा किया। और तो और एक अख़बार भास्कर में ख़बर छपी कि अखिलेश और मुलायम के पुराने सरकारी बंगले की रंगाई , पुताई शुरु। जनेश्वर मिश्र पार्क , गोमती रिवर फ्रंट पर काम शुरु। ऐसी फर्जी और तथ्यहीन ख़बरों पर भी अखिलेश यादव का ख़ूब मजाक उड़ा। पर मोदी-योगी विरोध में पागल वामपंथियों ने सोशल मीडिया पर ऐसी भ्रामक खबरों की क्रांति कर दी। गोलबंद हो कर नैरेटिव बनाने लगे अखिलेश सरकार के आमद की। अरे अखिलेश और मुलायम को वह घर अब नहीं मिल सकते। मुख्य मंत्री बन कर भी नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने ख़ाली करवाया है। यह मतिमंद वामपंथी क्या नहीं जानते थे। इतनी धूर्तता। इंतिहा थी यह। लेकिन चक्रव्यूह तो चक्रव्यूह। फर्जी ही सही। एक हवा में ही उड़ जाए तो क्या। आख़िर यादव राज के जहांपनाह ठहरे। 

फिर अखिलेश यादव को अपने ऐसे फर्जी अनगिन चक्रव्यूह से भी ज़्यादा एक-दो अंधविश्वास पर भी कुछ ज़्यादा विश्वास था। एक अंधविश्वास नोएडा जाने को ले कर था। अभी तक एक मान्यता थी कि उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री रहते हुए जो भी कभी नोएडा गया , फिर मुख्य मंत्री नहीं रहा। कांग्रेस के शासनकाल का यह अंधविश्वास था। नोएडा बसाने वाले नारायणदत्त तिवारी की कुर्सी जाने से इस अंधविश्वास का क़िला बना था। फिर तो नोएडा बाद में नारायणदत्त तिवारी भी नहीं जाते थे। वीरबहादुर सिंह भी नहीं गए। इस अंधविश्वास पर मुलायम , मायावती , कल्याण , राजनाथ , राम प्रकाश गुप्त , अखिलेश यादव हर किसी ने विश्वास किया। मुख्य मंत्री रहते हुए इन में से कोई भी नोएडा नहीं गया। तब जब कि इसी नोएडा से मुलायम , मायावती और अखिलेश ने डट कर अपनी-अपनी तिजोरी भरी है। दो-दो आई ए एस अफ़सर जो बाद में चीफ सेक्रेटरी भी बने मुलायम राज में , अखंड प्रताप सिंह और नीरा यादव इसी नोएडा के भ्रष्टाचार में जेल गए। दर्जनों अफ़सर जेल जाने की तैयारी में हैं। नोएडा से सर्वाधिक कमाई मायावती ने की है। मनुवाद का विरोध करती हैं। पर अंधविश्वास भरपूर मानती हैं। नोएडा से अथाह कमाई की पर चार बार मुख्य मंत्री  रहते कभी नोएडा नहीं गईं। नोएडा में निठारी कांड हुआ , मुलायम राज में। बहुत सारे बच्चों का यौन शोषण कर हत्या कर दी गई। पर अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाने वाले मुलायम नोएडा नहीं गए। भाई शिवपाल को भेजा। और शिवपाल नोएडा जा कर बच्चों के परिजनों के घाव पर नमक छिड़कते हुए एक बेहूदा बयान दे कर चले आए। 

इसी अपशकुन नोएडा में योगी दर्जन भर से ज़्यादा बार गए , मुख्यमंत्री रहते हुए। तो अखिलेश यादव को योगी के इस नोएडा जाने पर विश्वास बहुत था कि योगी तो गए। अपनी मित्र मंडली में शाम को पेय पदार्थ लेते हुए चर्चा करते रहते थे। अखिलेश भूल गए कि योगी , गोरखनाथ की नाथ परंपरा से आते हैं। गोरखनाथ रुढ़ियों और अंधविश्वास को तोड़ने के लिए भी परिचित हैं। फिर दूसरा अपशकुन था कि कोई भी मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश में दूसरे कार्यकाल का सपना भी नहीं देखता था। कांग्रेस राज में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी अपने ही मुख्य मंत्री को साल , दो साल में बदल देने का शौक़ रखते थे। बाद में जैसे इनिंग हो गई थी। मुलायम और मायावती में सरकार की अदला-बदली बीते तीस सालों में उत्तर प्रदेश ने लगातार देखा है। अखिलेश खुद भी रिपीट नहीं कर पाए थे। तो योगी के लिए भी अखिलेश के मन में यही तमन्ना थी। 

पेड न्यूज़ ने उन की इस तमन्ना को और रवां किया। किसान आंदोलन की आग में वह अपनी बढ़त देख रहे थे। जयंत चौधरी फिर ओमप्रकाश राजभर , स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे जातीय मोहरों ने उन का दिमाग और ख़राब किया। यादव वोटर उन के बंधुआ हैं ही। मुसलमान वोटरों के निशाने पर सर्वदा से भाजपा चली आ रही है। तो अखिलेश यादव को लगा कि जातीय गणित , एम वाई फैक्टर के बूते वह अपना जंगल राज और यादव राज बड़ी शान से लौटा लेंगे। मनबढ़ई और अहंकार में चूर , सामंती अखिलेश अपनी यादवी लंठई में यह कभी नहीं समझ पाए कि अमित शाह बहुत पहले मंडल-कमंडल की दूरी ख़त्म कर सोशल इंजीनियरिंग के तहत इस की फसल 2014 से निरंतर काट रहे हैं। किसान आंदोलन की आग में भी पानी डाल चुके हैं। लेकिन सत्ता प्राप्ति के मद में अखिलेश को यह सब नहीं दिखा। आई ए एस अफ़सर और पूर्व मुख्य सचिव रहे आलोक रंजन अखिलेश के मुख्य चुनावी सलाहकार रहे। तमाम एन जी ओ , यू ट्यूबर और मीडिया को फंडिंग कर के नकली माहौल बना कर , भाड़े की भीड़ बटोर कर अखिलेश का मन बढ़ाए रहे। कभी चुनाव नहीं लड़ने वाले दुर्योधन मनोवृत्ति वाले राम गोपाल यादव अखिलेश यादव के गाइड और फिलास्फर। 

तिस पर वामपंथियों के लाल सलाम का साथ भी अखिलेश को मिला हुआ था। वामपंथी ख़ुद अपनी चुनावी ज़मीन कब का गंवा चुके हैं पर दूसरों को जीत का सपना दिखाना और सपना बेचना बहुत अच्छी तरह जानते हैं। कांग्रेस को इसी सपने में बरबाद कर अब वामपंथियों ने अखिलेश यादव को बरबाद करने की ठान ली है। अखिलेश ने लेकिन मेहनत बहुत की। पानी की तरह पैसा बहाया। 47 सीट से आगे बढ़ कर इतनी बढ़त ली। यह भी आसान नहीं था। लेकिन योगी के बुलडोजर राज की हनक और धमक ने अखिलेश यादव के सत्ता के सपने को , अखिलेश राज के संभावित जंगल राज को बड़ी बेरहमी से कुचल दिया है। अगर बीते दिनों मोदी और योगी की रसाकसी न हुई होती तो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को विधान सभा में खड़े हो पाना कठिन होता। दहाई में ही होती। लोकसभा में जैसे कांग्रेस खड़ी नहीं हो पाती। बैसाखी ले कर खड़ा होना पड़ता है। यहां उत्तर प्रदेश विधान सभा में अखिलेश का भी यही हाल होता। पूर्व में मिली 47 सीट भी नहीं मिलती। जो भी हो उत्तर प्रदेश में जंगल राज के साइकिल के पहिए को पूरी तरह से रोक देने के लिए उत्तर प्रदेश की जनता को कोटिश : प्रणाम कीजिए। नहीं उत्तर प्रदेश की हालत बिहार से भी ज़्यादा बुरी होती। सारी फिजिक्स-केमेस्ट्री धरी रह जाती और हमारे ग्लोबल लीडर नरेंद्र मोदी सिर्फ़ टुकुर-टुकुर ताकते रह जाते। 2024 में जीत का सपना भी सांसत में पड़ता सो अलग। अभी तो बुलडोजर राज के मार्फ़त योगी के क़ानून व्यवस्था को सैल्यूट करने का समय है। क्यों कि यह चुनाव मोदी-योगी नहीं जनता खुद लड़ रही थी। सपा के जंगल राज से बचने के लिए।

Wednesday 9 March 2022

चाहता हूं रुस और यूक्रेन के बीच शांति लिखूं


ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

मनुष्यता के नाम सारी दुनिया को पाती लिखूं 
चाहता हूं रुस और यूक्रेन के बीच शांति लिखूं 

बारुद की गंध शिशुओं की सांस में धंसे नहीं 
मां के दूध की सुगंध ही शिशु की थाती लिखूं 

जैसे मिलते हैं सुगंध और सुमन बिना युद्ध के 
युद्ध बंद कर कभी बेला , कभी रातरानी लिखूं 

सुबह सूरज उगे और ख़बरों में मिले ख़ुशी
दिन गुज़रे प्यार में , घर लौटूं संझवाती लिखूं 

रात सुनूं राग मालकोश भोर भैरवी गाते उठूं 
ज़ुल्फ़ों में छुप फागुनी रात को मदमाती लिखूं 

विवाद सारे संवाद से सुलटें जैसे ज़ुल्फ़ें संवरती हैं 
मनुष्यता के नाम शांति की गर्वीली प्रणामी लिखूं 

प्यार की ओस में भीग कर प्रेम का गायक बनूं 
युद्ध नहीं मनुष्यता के प्यास का अनुगामी लिखूं 

बहूं मोस्कवा नदी के जल में किसी बांसुरी की धुन में 
संतूर की मीठी तान में सन कर शाम सुहानी लिखूं 

मिसाइलें नहीं सुनहरे सपने दिखें आकाश में 
नदी में ऐसी कोई सपनों की नाव आती लिखूं 


[ 9 मार्च , 2022 ]

Monday 7 March 2022

हां , अगर इस फ़ोटो सीक्वेंस को किसी स्त्री की निजता पर हमला मान लिया जाए तो ?

दयानंद पांडेय 

एक्ज़िट पोल पर तो मुझे भी यक़ीन नहीं है। ओपिनियन पोल , एक्ज़िट पोल और रिजल्ट में अकसर विरोधाभास देखा गया है। लेकिन एक्ज़िट पोल के बरक्स देश और उत्तर प्रदेश की जनता पर पक्का यक़ीन है। और बड़ी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश की जनता एम वाई फैक्टर के बलबूते जंगल राज को अब किसी सूरत नहीं आने देगी। न आने दे रही है अभी। बस एक मुश्किल यह है कि जंगल राज के आशिक़ लोग जनादेश का सम्मान करना नहीं जानते , अपमानित करते रहते हैं , जनता का। उस के जनादेश का। 

जनादेश का सम्मान पूरे दिल से करना चाहिए , यह बात भी बहुत प्यार के साथ कहना चाहता हूं। पूरे आदर से करना चाहिए। जनादेश जैसा भी हो , सम्मान करना सीखना होगा , जंगल राज के आशिक़ों को। बाक़ी मनमाफ़िक जनादेश न मिलने से संविधान बचाने और लोकतंत्र बचाने की दुकानदारी भी बंद होनी चाहिए। सेना को बलात्कारी , सुप्रीम कोर्ट को भाजपाई-संघी , चुनाव आयोग को भाजपा आयोग आदि भी जनादेश को बौना बनाना होता है। ऐसी नौटंकी करने के बजाए जनता की नब्ज़ और पसंद समझने की ज़रुरत है। उन्हें जागरुक करने के लिए उन के बीच काम करने की ज़रुरत है। 

इस के लिए पेड न्यूज़ के खेतिहर यथा यू ट्यूबर , सोशल मीडिया के मीडियाकरों आदि-इत्यादि की महफ़िल मुफ़ीद नहीं है। नफ़रत और घृणा का माहौल बना कर असहमत लोगों पर घृणा और नफ़रत की ज़हर खुरानी नहीं होनी चाहिए। किसान की बात करना ठीक बात है। पर किसान आंदोलन की दुकानदारी और बात है। लालक़िले और आई टी ओ पर उपद्रव करने , शहर-शहर , शाहीन बाग़ बसा कर , बिरयानी खा कर आज़ादी-आज़ादी का तराना गा कर देश को गृह युद्ध में झोंकने की तरक़ीब से जनता कुढ़ती बहुत है। 

बीच कोरोना संकट में तब्लीग़ियों की बदशऊरी के ताबेदारी से भी जनता ख़ुश नहीं होती। सरकार का विरोध लोकतंत्र की ताक़त है पर शकुनि चाल चल कर आप सरकार नहीं बदल सकते। अरुंधती रॉय का यह कहना कि एक आदमी पांच साल में एक बार ही प्रधान मंत्री बने। दुबारा न बने। ऐसी फ़ासिस्ट बात कर सरकार बदलने का ख़्वाब पूरा नहीं होता। नहीं हो सकता। बाक़ी यह फ़ोटो एक्ज़िट पोल की पोल-पट्टी खोलने के लिए रवीश कुमार के प्राइम टाइम के आज एक्ज़िट खोल से तो बहुत बेहतर है। हां , अगर इस फ़ोटो सीक्वेंस को किसी स्त्री की निजता पर हमला मान लिया जाए तो ?

[ एक मित्र की पोस्ट पर मेरी यह टिप्पणी। ]

Sunday 6 March 2022

मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा गाते यू ट्यूबरों की लीला

दयानंद पांडेय 

यू ट्यूबर अब पेड न्यूज़ की नई खेती हैं। सारे सेक्यूलर चैंपियंस एन जी ओ का पहाड़ा छोड़ कर यू ट्यूब पर ट्रवेल कर रहे हैं। इन में कुछ लोग तो प्रमुख चैनलों से बेरोजगार हो कर , कहीं कोई दूसरी नौकरी न पाने की विवशता में आए हैं यू ट्यूब पर। सुनते हैं कि आठ-दस लाख वेतन पाने वाले एक से एक तोपची लोग यू ट्यूब पर लाख-दो लाख घसीट ले रहे हैं। दिलचस्प यह कि लाइलाज हो चुके यह लोग अब अखिलेश यादव का इलाज कर रहे हैं। ताकि अखिलेश यादव स्वस्थ हो कर मुख्य मंत्री की कुर्सी सुशोभित कर सकें।  

इस ख़ातिर कोई पुण्य कमाने के लिए दाढ़ी खुजाते हुए पसीना बहा रहा है। कोई दाढ़ी मुड़वा कर अपनी अंजुमन सजा रहा है। कोई सत्य और हिंदी भाख कर अपना जहर फैला रहा है। कोई शुक्रवार , शनिवार बता रहा है। कोई शाम का 4 बजा रहा है। कोई बारह बजा रहा है। तो कोई दिन को रात , रात को दिन बता रहा है। तो कोई किसी पुरोहित की तरह पत्रा बांच-बांच कर जीत-हार का भविष्यफल बता रहा है। 

जो किचकिचा कर अपराध की ख़बरें बांचता रहा हो , वह भी अब राजनीति समझने लगा है। जो भूत-प्रेत की कहानियों का गप्प बताता फिरता दीखता था वह भी उत्तर प्रदेश की राजनीति का सौदागर बन गया है। गोया यू ट्यूबर न हों , कुंभ के मेले के पंडा हों। जजमान की सेवा करते हुए तंबू , तख्ता , पुआल का बंदोबस्त में जुट गए हों। तिस पर कोढ़ में खाज यह कि अखिलेश यादव ने सब को बुला-बुला कर एकमुश्त पचास लाख से एक करोड़ तक थमा दिया है। यश भारती का लभ्भा अलग है। आने-जाने के लिए टैक्सी , जहाज  , रहने-खाने के लिए होटल आदि -इत्यादि की भरपेट सुविधा भी। 

अलग बात है कि अखिलेश यादव को उन का कोई सलाहकार यह नहीं बताने वाला था कि अगर वह इस तरह इफरात पैसा न बांटते तो भी इन सेक्यूलर चैंपियंस को यही करना था। पोलिटिकली करेक्ट होने की बीमारी है इन्हें। कमिटमेंट के खूंटे से बंधे रहना लाचारी है इन की। हां , पैसा मिल जाने से इन के उत्साह और सुविधा में रवानी ज़रुर आ गई। सो यह भी ज़रुरी था। अखिलेश यादव को भी अफ़सोस नहीं रहेगा कि हम ने पंडा को दक्षिणा नहीं दिया। पंडा को उम्मीद रहेगी कि अगले कुंभ में भी जजमान भूलेंगे नहीं। एक पत्रकार तो एक सब से तेज़ चैनल पर पैनल पर दो दिन क्या आ गए , जहर उगलते-उगलते साइकिल का सिंबल भी ले कर बैठने लगे। सपा के लिए सीधे वोट मांगने की अपील करने लगे। अजब था यह भी। पेड न्यूज़ की हाइट थी यह तो। वह तो यूक्रेन-रुस की जंग में यह पैनल पर उन का आना ठप्प हो गया। चुनाव की जगह , युद्ध पर चीख़-पुकार शुरु हो गई। 

यह अनायास नहीं है कि सारे के सारे यू ट्यूबर शीर्षासन कर-कर , पानी-पानी पी-पी कर योगी सरकार को विदा कर अखिलेश यादव की ताजपोशी कर रहे हैं। अखिलेश यादव के जंगल राज को राम राज की तरह याद कर रहे हैं।  आज तो एक पुराने और मशहूर एंकर अपने यू ट्यूब चैनल पर मुख़्तार अंसारी के प्रभाव का ऐसे बखान कर रहे थे गोया मऊ और आजमगढ़ में राम , कृष्ण और शिव की तरह पूजे जाते हैं मुख़्तार अंसारी। 

जनाब ने एक बार भी भूल कर मुख़्तार के बेटे के हालिया भाषण का ज़िक्र नहीं किया , जिस में वह छह महीने ट्रांसफर रोक कर सब का यहीं हिसाब-किताब करने की बात कर रहा है। बल्कि अब्बास की जीत का सर्टिफिकेट जाने किस पुण्य-वश आज ही जारी कर दिया , निर्वाचन अधिकारी बन कर। गो कि कल 7 मार्च को वोट पड़ना है अभी। लेकिन अब्बास अंसारी की जीत का पुण्य उन्हों अभी से अपने खाते में डाल लिया है। कोई क्या कर सकता है भला। उन की सारी प्रखरता और चमक एक अब्बास अंसारी में खर्च होते देख अपने आप पर बहुत अफ़सोस हुआ कि अरे , इन को तो मैं जीनियस एंकर मानता रहा हूं कभी। 

यही क्यों सारे के सारे यू ट्यूबर मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा की तर्ज़ पर एक ही गीत गाए जा रहे हैं। सब की गणित और औज़ार एक ही है। संगीत भी वही , लिरिक्स भी वही। इन यू ट्यूबर के यहां फ़ुटबाल , हॉकी और क्रिकेट की कमेंट्री एक साथ उपलब्ध है। इन की इस कमेंट्री का आनंद लीजिए। जैसे कुली फ़िल्म में अंडे का आमलेट बनाने की विधि रेडियो से सीख रहे अमिताभ बच्चन का अभिनय लाजवाब करता है। आमलेट बनाने के साथ ही कोई दूसरा रेडियो स्टेशन योग सिखा रहा। योग और आमलेट बनाने की विधि वाला कंट्रास्ट इन यू ट्यूबरों के यहां भी मिलता रहता है। हंसाता , गुदगुदाता और खिझाता हुआ। 

पेड न्यूज़ से माहौल बहुत बढ़िया बनता है पर वह एक गाना है न , ये पब्लिक है सब जानती है। इन ट्यूबर को भी , इन की मानसिकता और एजेंडे को भी जनता जानती है। पहले ही से। फिर इन का खाया लहसुन इन के आगे-पीछे से और भी बता देता है। पिछली बार 2017 में अखिलेश का एक नारा था , काम बोलता है। अब की नारा है , इत्र बोलता है। कुछ कमज़ोर दिल वाले लोग इस इत्र में बहक कर एक दूसरे से फ़ोन कर पूछने लगते हैं कि क्या सचमुच गोरखपुर में योगी की ज़मानत ज़ब्त हो रही है ? अगला जब यह सुन कर ठठा कर हंसता है , तब उस को असलियत समझ आती है। 

संयोग है कि प्रिंट मीडिया या न्यूज़ चैनलों पर पहले जैसे पेड न्यूज़ का एकाधिकार रहता था , सोशल मीडिया पर यह एकाधिकार टूट गया है अब। मीडिया के देसी घी और डालडा का स्वाद लोग जान चुके हैं। वैसे भी वाट्स अप , फ़ेसबुक जैसा सोशल मीडिया अब सिर्फ़ पेड न्यूज़ वालों की जागीर नहीं है। यह सारे वाट्स अप , फ़ेसबुक , ट्वीटर आदि सोशल मीडिया के औज़ार आम आदमी के पास भी है। कौवा कान ले गया सुन कर , अब कौवा के पीछे नहीं भागते लोग। अपना कान पहले जांच लेते हैं और फिर हंसने लगते हैं। इन यू ट्यूबरों को लानत ही नहीं भेजते , इन्हें जगह-जगह दौड़ा भी लेते हैं। ऐसे भी वीडियो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हैं। 

फैक्ट फाइंडिंग की मास्टर अब जनता-जनार्दन ख़ुद है। मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा गाते यू ट्यूबरों की लीला , यू ट्यूबरों से ज़्यादा जनता जानती है। सब का भाष्य और दर्पण जनता के पास है। अगर आप के मनीष सिसौदिया कहते हैं और अख़बार वाले छाप देते हैं कि उत्तर प्रदेश में आप की सरकार बनना तय। तो इसे पढ़ कर न कोई उत्प्रेरित होता है , न हंसता है। कोई राय भी नहीं देता। न कहीं चर्चा करता है , इस बाबत। अख़बार का पन्ना पलट देता है। चुपचाप। ऐसे ही इन यू ट्यूबरों को भी एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देता है। कई बार इन की प्रवंचना का प्रवचन सुनता भी नहीं।

Saturday 5 March 2022

तो योगी सरकार तो गई !

दयानंद पांडेय 




तो योगी सरकार तो गई ! ऐसी ख़बरों के साथ उत्तर प्रदेश में पेड न्यूज़ अभी भी उछाल मार रहा है। इसी वसंत बहार में झूम-झूम कर सोशल मीडिया का सेक्यूलर चैंपियन , पेड मीडिया की ख़बरों को ले कर अफवाह उड़ाने के खूंटे पर दौड़-दौड़ कर बैठ रहा है। पेड न्यूज़ वाली फ़ोटो चिपका-चिपका कर नमक़ हलाली कर रहा है। तो कुछ बीमार , समान विचारधारा की नमक़ हलाली में तल्लीन हैं। तर्क और तथ्य से इन लोगों का कभी कोई वास्ता नहीं होता। सारा शौक एजेंडे के खूंटे पर कूद-कूद कर बैठने का ही है। इस से कुछ नुकसान भी होता है तो होता रहे। मंज़ूर है , एजेंडा साधने के लिए। 

भास्कर अख़बार लखनऊ से नहीं छपता। भास्कर का वेब एडीशन आता है , लखनऊ से। यह पेड न्यूज़ का कमाल इसी भास्कर ने अपने वेब एडीशन से किया है। हफ़्ते भर से योगी सरकार के विदा होने के संकेत देते हुए ,अफसरशाही में मची भगदड़ को टोटी यादव के चमचे पत्रकारों ने हथियार बनाया हुआ है। तीन दिन पहले एक ख़बर ट्वीट की गई कि एक वरिष्ठ आई ए एस अफ़सर ने रात के अंधेरे में अखिलेश यादव से भेंट की। तो क्या अखिलेश यादव के घर की बिजली काट दी गई है कि उन के घर के सामने की स्ट्रीट लाइट की बिजली काट दी गई है। नहीं तो अंधेरा कैसे ? अंधेरे में कैसे मिले ? बिजली तो अब लखनऊ समेत समूचे उत्तर प्रदेश में चौबीसो घंटे आती है। 

एक ट्वीट उसी दिन फिर आया कि सपा सरकार बनती देख एक आई ए एस अफ़सर अखिलेश यादव को दिन में तीन-चार बार गुड मॉर्निंग भेजने लगे। अखिलेश यादव ने उस अफ़सर को ब्लॉक किया। यह दोनों ट्वीट दो अलग-अलग पत्रकारों के हैं। एक लखनऊ से , एक दिल्ली से। लेकिन दोनों ही पत्रकारों ने किसी अधिकारी का नाम लिखने से परहेज़ किया। तभी एक फ़ोटो आई अयोध्या के डी एम के आवास पट्टिका की। योगी सरकार बदलने के उत्साह की जैसे सुनामी आ गई। बताया गया कि सपा सरकार बनती देख , डी एम , अयोध्या ने अपने आवास पट्टी का रंग भगवा से हरा किया। बाद में पता चला कि डी एम आवास में कुछ काम हो रहा है सो वह पी डब्लू डी गेस्ट हाऊस में शिफ्ट हुए हैं। पी डब्लू डी वाले हरे रंग का ही इस्तेमाल करते हैं। 

एक सेक्यूलर चैंपियन राजदीप सरदेसाई भी हैं। सेक्यूलर लोग उन्हें चुनावी भविष्य वाणी का आचार्य मानते रहे हैं। दिल्ली और लखनऊ से प्रकाशित 27 फ़रवरी के हिंदुस्तान टाइम्स में एक लेख लिख कर राजदीप सरदेसाई ने कहा है कि यू.पी.चुनाव में भाजपा की साफ बढ़त नजर आ रही है। लेकिन सोशल मीडिया पर सेक्यूलर चैंपियंस ने राजदीप सरदेसाई के इस लेख की नोटिस नहीं ली। क्यों कि इस में अफवाह की धूल उड़ाने का तत्व नहीं था। उन को सूट भी नहीं करता था। तो बिचारे करते भी तो क्या करते ? उन लोगों ने भी नहीं जो लोग अकसर टेलीग्राफ़ की वाहियात और मुहल्ला छाप ख़बरों को भी सोशल मीडिया पर नियमित चिपका कर उस का भाष्य हिंदी में समझाते रहते हैं। तो क्या राजदीप सरदेसाई भी अब संघी या भाजपाई हो गए हैं। दिलचस्प यह कि राजदीप के इस लेख की नोटिस भाजपाइयों और संघियों ने भी नहीं ली। 

अब आज कुछ नई ख़बरें आई हैं। भास्कर ने अपने वेब एडीशन पर फ़ोटो लगा कर ख़बर छापी है कि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के पुराने सरकारी आवास की साफ़-सफाई शुरु की। गुड है !

तो क्या अखिलेश यादव सपा की सरकार बनाने के बाद भी अधिकृत मुख्य मंत्री निवास , 5 कालिदास मार्ग पर नहीं रहेंगे ? विक्रमादित्य मार्ग स्थित उस घर में रहेंगे जहां वह पूर्व मुख्य मंत्री की हैसियत से रहते थे और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन वह घर उन्हें छोड़ना पड़ा था। इस घर से ही वह टाइल और टोटी उखाड़ कर ले गए थे और उन का एक नाम टोटी यादव भी पड़ गया। एक तल्ख़ सचाई यह है कि अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण यह दोनों घर बतौर पूर्व मुख्य मंत्री न मुलायम सिंह यादव को मिल सकता है , न अखिलेश यादव को मिल सकता है। सिर्फ़ एक सूरत है अखिलेश यादव को यह घर मिलने की। कि बतौर विधायक वह इस में रहने आ जाएं। क्यों कि करहल विधान सभा सीट वह क्लीयरकट जीत रहे हैं। तो क्या लोकसभा की सदस्यता से वह इस्तीफ़ा दे देंगे ? इस बात की भी तुक नहीं दिखती। बतौर विधायक यहां रहेंगे नहीं अखिलेश। करहल की विधायकी से इस्तीफ़ा देने के लिए ही वह लड़ रहे हैं। अच्छा जो मुख्य मंत्री बनेंगे तो 5 , कालिदास मार्ग के मुख्य मंत्री निवास में ही रहेंगे। कहीं और नहीं। 

फिर क्या इन घरों की साफ़-सफाई भी न हो ? रुटीन साफ़-सफाई हो तो दिमाग से ख़ाली , पेड न्यूज़ के पत्रकारों की ऐसी फर्जी ख़बरों पर आप लट्टू बन जाएंगे ? क्यों कि सोशल मीडिया पर बड़े-बड़े सेक्यूलर चैंपियंस विद्वान आज दिन भर इस फ़ोटो वाली ख़बरों को ले कर किसी बंदर की मानिंद कूद रहे हैं। इस डाल से , उस डाल। क्या सपाई , क्या कम्युनिस्ट , क्या कांग्रेसी। गुड है यह मंकी एफर्ट भी। दो और ख़बरें भी नत्थी हैं। क्या तो जनेश्वर मिश्र पार्क और गोमती रिवर फ्रंट भी पर काम शुरु हो गया है। अजब है यह बीमारी भी। जनेश्वर मिश्र पार्क या गोमती रिवर फ्रंट क्या अखिलेश यादव के पिता जी का है कि मुलायम सिंह के पिता जी का है , कि उत्तर प्रदेश सरकार का है ? इतना भी नहीं जानते यह उल्लू के ढक्कन लोग तो क्या करें इन का। ऐसे बैसाखनंदनों का कोई कुछ कर सकता हो तो कर ले। 

हक़ीक़त तो यह है कि किसी भी सरकारी संपत्ति का रख-रखाव कोई अफ़सर या बाबू अपनी मर्जी से कभी नहीं कर सकता। इस के लिए फंड भी सरकार ही देती है। पिद्दी से पिद्दी काम के लिए टेंडर होता है। दुनिया भर की फाइलबाजी होती है। तब कहीं जा कर फंड जारी होता है। विक्रमादित्य मार्ग स्थित मुलायम सिंह के पुराने सरकारी आवास को मैं ने भीतर-बाहर से पूरा देख रखा है। मुलायम सिंह यादव ने ही एक बार दिखाया था। तब वह रक्षा मंत्री थे। कई बार गया हूं यहां। हाल तक। किसी राजा के राज महल जैसा है यह। कुछ राज महल भी देखे हैं मैं ने। वह राज महल भी इस आवास के आगे पानी मांगते हैं। वैसे पी डब्लू डी विभाग के एक इंजीनियर ने इस बाबत खंडन जारी किया है। 

बहरहाल अरबों रुपए का यह बंगला मुलायम सिंह यादव ने बड़ी मेहनत और जतन से तैयार करवाया था। मुख्य मंत्री का अधिकृत सरकारी आवास भी इस आवास के आगे पानी मांगता है। सिर्फ़ राज्यपाल का राजभवन ही इस की शानो-शौक़त के मुक़ाबिल है। इस आवास की पेंटिंग कुछ लाख रुपए में नहीं हो सकती। कम से कम एक करोड़ रुपए तो लगेंगे ही। ज़्यादा ही लगेंगे। आज की तारीख़ में किसी अफ़सर के अधिकार क्षेत्र में नहीं है , यह करोड़ो रुपए जारी करना। पी डब्लू डी का मंत्री भी इस फ़ाइल को स्वीकृति के लिए मुख्य मंत्री को ही भेजेगा। कुछ समय पहले तक तो स्थिति यह थी कि एक करोड़ रुपए का कोई बजट उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री भी स्वीकृत नहीं कर सकता था। फ़ाइल केंद्र में प्रधान मंत्री के पास जाती थी। एक क़िस्सा याद आता है। वीर बहादुर सिंह तब मुख्य मंत्री थे। 

मार्च का महीना था और वीर बहादुर अपनी आदत के मुताबिक मुख्यमंत्री कार्यालय में एक शाम लोगों से घिरे लेटे पड़े थे। एक वरिष्ठ आई. ए. एस. अधिकारी कुछ इंजीनियरों के साथ काफी देर से खड़े थे। वह कई बार आए गए भी पर वीर बहादुर ने उन पर ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर बाद वह अधिकारी एक फाइल ले कर उन की ओर बढ़े और बोले कि, 'सेंटर ने फिर प्रस्ताव रिजेक्ट कर दिया है।' वीर बहादुर ने पूछा, ‘कौन सा प्रस्ताव?’ अधिकारी बाले, ‘वही पुल वाला सर। सर, तीन साल से प्रस्ताव भेजा जा रहा है और हर बार रिजेक्ट हो जाता है।’

'क्यों-क्यों?' पूछा वीर बहादुर ने तो अधिकारी ने कुछ तकनीकी तथा अन्य मुद्दे बता दिए। वीर बहादुर बोले, 'इस से क्या होता है। एक करोड़ से ऊपर के लिए केंद्र की मंजूरी चाहिए। तीन पुलों के लिए 90-90 लाख का प्रस्ताव बना कर हमें दो। हम मंजूर करेंगे।'

फिर वह अधिकारी खुशी-खुशी जाने लगा तो उसे फिर वापस बुलाया और कहा कि अगले दो हफ्ते में ही तारीख तय कर शिलान्यास करवा डालो फिर बैठे ही बैठे उन्हों ने न सिर्फ़ तारीख तय की वरन् अपने को उद्घाटनकर्ता भी तय कर दिया और कहा कि केंद्र से अध्यक्षता के लिए फला को बुला लो। वह अधिकारी और इंजीनियर सारे समय जी-जी करते रहे। फिर वह अधिकारी और इंजीनियर भाव विभोर हो कर गए। 

तो इस समय भी मार्च का महीना है। स्वीकृत फंड को खर्च करना भी सरकारी विभागों का सिर दर्द होता है। नहीं लैप्स कर जाता है। तो यह पेड न्यूज़ के सौदागर अपनी आत्मा तो बेच ही चुके हैं। कुछ प्रक्रिया भी होती है , हर शासकीय काम के लिए। खाला जी का घर नहीं है। यह लोग चाहते हैं कि स्वीकृत पैसा भी नष्ट हो जाए। बहुत लोग बेताब हैं योगी सरकार को विदा करने के लिए। जनता विदा करे , न करे। यह मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने वाले तो विदा कर चुके हैं। गुड है , यह सपना भी। 

यह वही लोग हैं जो कभी लोकतंत्र बचाने के लिए , कभी संविधान बचाने के लिए तबाह रहते हैं। लेकिन लोकतंत्र में इन को रत्ती भर भी यक़ीन नहीं है। लोकतंत्र और संविधान बचाने की आड़ में यह लोग अपने को बचाने में लगे हैं। अपनी उजड़ी हुई दुकान को बचाने में लगे हुए हैं। एक चुनी हुई सरकार को तो यह लोग कभी स्वीकार नहीं कर पाते और जनादेश का निरंतर अपमान करते रहते हैं। लेकिन संविधान और लोकतंत्र बचाने का स्वांग भरते हैं। फासिस्ट वग़ैरह बुदबुदाते रहते हैं। अभी देखिएगा कि जो लोग सरकारी कामकाज के बहाने विदा होती योगी सरकार का सपना देख रहे हैं , ठीक यही लोग 10 मार्च की शाम से ई वी एम का गाना गाते हुए लोकतंत्र और संविधान बचाने का कोरस गान गाने लगेंगे। समवेत !