एक
बार क्या हज़ार बार मान लेते हैं बल्कि निश्चित ही मान लेते हैं कि नरेंद्र
मोदी कुछ और नहीं आर एस एस की बिसात पर एक मामूली से मोहरा भर हैं। यह भी
मान लेते हैं कि उन का पुराना चेहरा सांप्रदायिकता के कीचड़ में सना हुआ है।
गुजरात का नरसंहार भी उन के नाम दर्ज है ही। और कि मोदी ने एक लड़की की
जासूसी भी करवाई। यह भी कि अपनी पत्नी यशोदा बेन को परित्यक्ता बना दिया।
एक बार क्या हज़ार बार यह भी मान लेते हैं कि मोदी ने मीडिया को भी खरीद लिया है और कि मीडिया को कुत्ता बना लिया है।
तो क्या सिर्फ़ इन कारणों ने ही मोदी को इतना लोकप्रिय बना दिया?
तो
मुस्लिम तुष्टीकरण, जातिवादी राजनीति और कांग्रेस के एक वंशीय शासन,
सोनिया राहुल के रिमोट से चल रही मनमोहन सरकार के अंतर्विरोध, कमरतोड़
मंहगाई और सुरसा की तरह छाए भ्रष्टाचार ने मोदी को इस तरह खड़ा करने में
क्या कोई भूमिका नहीं निभाई? जाने क्यों राजनीतिक टिप्पणीकार और राजनीतिक
पार्टियां यह कहने में परहेज कर रहे हैं। पर एक तल्ख सच यह भी है कि
मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति ने मोदीे की राजनीति के लिए एक बहुत बड़ी
कालीन बिछा दी है। चौतरफ़ा मोदी विरोध ने मोदी को इस कदर अजेय बना कर खड़ा कर
दिया है अब मोदी विरोध खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत में तब्दील है।
कुछ धर्मनिरपेक्ष ताकतों के अति विरोध और लफ़्फ़ाज़ी ने मोदी को वह ताकत दे
दी है जो ताकत उन्हें आर एस एस भी नहीं दे पा रहा था। लगभग सभी राजनीतिक
पार्टियां, यहां तक खुद भाजपा भी जिस तरह की मुस्लिम तुष्टीकरण की
राजनीति में लथपथ है, इसी एक राजनीतिक बीमारी ने मोदी को यह कद दे दिया है
कि अब मोदी एक राजनीतिक ही नहीं, एक प्रतिमान बन कर मोदी फ़ोबिया बन चले
हैं। क्या भीतर, क्या बाहर तमाम स्पीड ब्रेकर, बैरियर, बाधा और हिच के इस
चुनाव में मोदी का कोई दूसरा विकल्प खोजे नहीं मिल रहा।
तो क्यों? तो क्या भारतीय राजनीति इस कदर बंजर हो गई है? इस की पड़ताल कोई क्यों नहीं करना चाहता? कर क्यों नहीं रहा? मोदी के खिलाफ़ धर्मनिर्पेक्षता की बीन बजाने, एक लड़की, एक पत्नी की आड़ लेना भी अब किसी के काम नहीं आ रहा। यह तो ठीक है पर कोई राजनीतिक व्यक्तित्व भी मोदी के आसपास आ कर क्यों नहीं खड़ा हो जाता? बड़े-बड़े आडवाणी बह गए। मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह बह गए। राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी की घिघ्घी बंध गई है। मनमोहन सिंह सिरे से लापता हो गए। मुलायम, मायावती, जयललिता, ममता, नीतीश कुमार आदि फ़िलर बन गए। अच्छा तो अरविंद केजरीवाल? निश्चित ही अरविंद केजरीवाल मोदी की नाक में दम भर सकते थे। सिर्फ़ नाक में दम ही नहीं भर सकते थे बल्कि मोदी की राजनीति पर लगाम लगा सकते थे। और बहुत संभव था कि वह मोदी के लिए इतना स्पेस बनने ही नहीं दिए होते। और मोदी का यह कद नहीं हो पाया होता। लेकिन अब आज की तारीख में कांग्रेस की डिप्लोमेसी में फंस कर दगा कारतूस बन चुके हैं। रामगोपाल यादव के शब्दों में जो कहें तो अब वह एक भटकी हुई मिसाइल हैं वह। लेकिन एक समय था कि भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल बिलकुल ताजी हवा बन कर उपस्थित हुए थे। लगता था कि वह सचमुच कुछ कर गुज़रेंगे। बस उन की अनुभवहीनता और उन के बछड़ा उत्साह ने सब गुड़ गोबर कर दिया। मारे उत्साह में वह समझ नहीं पाए कि दिल्ली पूर्णकालिक राज्य नहीं है, उन को बहुमत नहीं मिला है और कि कांग्रेस अपने विरोधियों के लिए लाक्षागृह बनाने में पुरानी एक्सपर्ट है। वह यह भी भूल गए कि अभी जल्दी ही अन्ना हजारे और रामदेव के आंदोलन को कांग्रेस अपनी डिप्लोमेसी में शिफ़्ट कर चुकी है तो वह किस खेत की मूली हैं? दूसरे उन की सरकार की अराजकता ने, सोमनाथ और राखी बिड़लान जैसे मंत्रियों ने उन की अलग किरकिरी करवाई। असमय सरकार छोड़ कर भगोड़ा करार कर दिए गए अलग। उन की लोकसभा में बैठने की महत्वाकांक्षा और जल्दबाजी ने न सिर्फ़ उन की राजनीति पर बल्कि जनता ने उन के बहाने जो साफ सुथरी राजनीति का सपना देखा था, उस पर भी पानी फेर दिया। अब अरविंद केजरीवाल की विफलता ने एक भारी शून्य खड़ा कर दिया किसी नए राजनीतिक विकल्प के लिए। और अब आप सहमत हों या असहमत, सांप्रदायिक हों या धर्मनिर्पेक्ष पर अब यह मान लीजिए कि अपनी तमाम खामियों और खूबियों के साथ नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति में एक नया वैकल्पिक सच है। पर अजब मंजर है इन दिनों। मोदी विरोध और मोदी समर्थन में ही दुनिया जी रही है। और भी गम हैं जमाने में मोदी के सिवा !एक मोदी से जनता की इतनी मुहब्बत, इतना समर्थन और कुछ लोगों की मोदी से इस कदर नफ़रत, इतनी खुन्नस ! क्या कहने ! जाने क्या है कि कुछ लोगों को मोदी की हर बुरी बात भी अच्छी लगती है। तो कुछ लोगों को मोदी की हर अच्छी बात भी बुरी लगती है। या इलाही ये माजरा क्या है ! अजब है यह भी। कि जो लोग धर्म, ब्राह्मण, काशी आदि से नफ़रत करते रहे हैं वही लोग आज इन्हीं धर्म, ब्राह्मण, काशी आदि से निरंतर देश को बचा लेने का दम भर रहे हैं। उन्हें उन की ताकत बता रहे हैं। मोेदी है कि इन के छाती पर इन की लफ़्फ़ाज़ी के चलते सवार है। काश कि यह लोग समय रहते कांग्रेस की भ्रष्टाचारी नीतियों, महगाई और अनाचार के खिलाफ़ भी लामबंद हुए होते तो मोदी से देश को बचाने के लिए इन लोगों को इस कदर हांफना नहीं पड़ता। मोदी आ चुका है और यह लोग तेली के बैल की तरह आंख और दिमाग पर पट्टी बांधे अभी भी धर्मनिरपेक्षता की जुगाली में जुते पड़े हैं। मोदी विरोध अब खिसियाई बिल्ली खंभा नोचे में तब्दील दिखता है। कोई माने या न माने आज का सच यही है। काशी में नरेंद्र मोदी का नामांकन जुलूस तो न भूतो, न भविष्यति के तौर पर दर्ज हो गया है। कांग्रेस के लोग या और तमाम लोग मोदी को चाहते नहीं किसी भी कीमत पर। तो भी। खैर अब यह एक बीती हुई बहस है।
अब नई बहस यह है कि मोदी की सरकार तो बननी तय है लेकिन
यह मोदी सरकार भाजपा के बहुमत वाली होगी कि एन डी ए के बहुमत वाली सरकार
होगी। जो भी हो। मोदी सरकार से दो तीन चीज़ें तो सचमुच ठीक हो जाएंगी यह
पक्का है। जैसे कि कश्मीर की समस्या तो निश्चित ही मोदी निपटा देंगे। क्यों
कि कश्मीर समस्या निपटाने के लिए जिस सख्ती की दरकार है वह मुस्लिम
तुष्टीकरण में लगी कोई सरकार तो कतई नहीं कर सकती। और कांग्रेस तो
हरगिज नहीं। अलगाववादी नेताओं के सुर देखिए कि अभी से बदलने लगे हैं। बल्कि
पाकिस्तान से लगायत अमरीका तक के सुर बदल गए हैं। अमरीकी अखबार तो नरेंद्र मोदी की तुलना अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से करने लगे हैं। दूसरी जो बड़ी बात कही है
मोदी ने कि वह संसद को अपराधियों से मुक्त करवाएंगे। इस के लिए जीत कर
पहुंचे सांसदों के शपथ पत्र में दिए डिटेल्स को ही वह सुप्रीम कोर्ट के मार्फ़त कमेटी बना कर
जांच करवा कर तुरंत कार्रवाई करेंगे। वह सांसद भले भाजपा का ही क्यों न
हो। यह बहुत ज़रुरी है। तीसरी महत्वपूर्ण बात जो मोदी ने आज काशी में
नामांकन भरने के समय दिए बयान में कही कि वह गंगा को भी साफ करने की बात।
साबरमती को साफ करने का हवाला भी उन्हों ने दिया ही। गंगा के बहाने और तमाम नदियां भी साफ होंगी ही। मुस्लिमों के लिए भी
वह पसीजे और बताया कि जैसे गुजरात में पतंग बनाने वालों के व्यवसाय के लिए
उन्हों ने बहुत कुछ किया है। और कि पतंग व्यवसाय पैतीस करोड़ से बढ़ कर सात
सौ करोड़ का हो गया है। तो वह काशी के बुनकरों के लिए भी बहुत कुछ
करेंगे। तो भी यह एक बात तो तय है कि मुस्लिम मतदाता तो मोदी के पक्ष में
फिर भी नहीं आने वाले यह पूरी तरह तय है। मोदी का डर मुसलमानों के दिल से जाने वाला जल्दी है नहीं। जाएगा भी तो मुस्लिम वोट के चूल्हे पर रोटी सेंक रही पार्टियां जाने नहीं देंगी। मोदी का खराब रिकार्ड अपनी जगह है। लेकिन फिर भी कुछ टिप्पणीकार
मानते हैं कि मोदी के तमाम विरोध के बावजूद मोदी की बातों पर यकीन किया
जाना चाहिए। देश को आगे बढ़ने की लिए कड़वाहट भूल कर आगे तो बढ़ना ही पड़ेगा।
जर्मनी में हिटलर के इतिहास को भूल कर ही लोग आगे बढ़े हैं।
हिंदुस्तान को भी जर्मनी की राह पर चल देने में कोई हर्ज नहीं है। शैलेंद्र ने एक भोजपुरी फ़िल्म हे गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबों के लिए एक गाना लिखा था जिसे चंद्रगुप्त के निर्देशन में लता मंगेशकर ने गाया है: हे गंगा मैया तोंहे पियरी चढ़इबो, सैयां से करि द मिलनवा हो राम ! तो अभी तो सौ सवालों में एक सवाल है कि क्या गंगा मैया के बुलावे पर काशी आए नरेंद्र मोदी को भी गंगा मैया क्या उन के सैयां से मिलवा देंगी? और कि वह उन को प्रधान मंत्री बनवा देंगी? अभी तो मदन मोहन मालवीय की मूर्ति समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लोगों ने धो दी है यह कह कर कि मोदी ने उसे माला पहना कर अपवित्र कर दिया है। तो क्या वह लोग विवेकानंद और पटेल की मूर्ति को भी गंगा और दूध से धो कर पवित्र नहीं करेंगे? और कि अगर मोदी जीत गए काशी से तो क्या वह पूरी काशी भी गंगाजल से धोएंगे? और जो धोएंगे ही तो भला कैसे? अभी तो आलम यह है कि मोदी मंदिर की बात नहीं कर रहे न हिंदू मुसलमान की। लेकिन सेक्यूलर कही जाने वाली पार्टियां कांग्रेस, सपा, बसपा आदि ही हिंदू मुसलमान आदि की माला फेर रही हैं। यह नज़ारा ठीक वैसा ही है जैसे कभी पश्चिम बंगाल में जब नंदीग्राम, सिंगूर घट रहा था तब वहां की वामपंथी सरकार मज़दूरों के खिलाफ़ खड़ी थी और तृणमूल कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टियां मज़दूरों के साथ खड़ी थीं। इस चुनाव में भी वही बात जैसे दुहराई जा रही है। कि अयोध्या, मथुरा, काशी का नारा देने वाली भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी काशी में रह कर भी विश्वनाथ मंदिर और मस्जिद की बात नहीं कर रहे और समाजवादी पार्टी के लोग मदनमोहन मालवीय की मूर्ति को गंगा जल से धो कर पवित्र कर रहे हैं। क्या तो मोदी ने माला पहना कर उसे अपवित्र कर दिया है। कभी बड़े गुलाम अली खां ने गाया था और बिस्मिल्ला खां ने बजाया भी वही दादरा जाने क्यों याद आ रहा है : का करुं सजनी आए न बालम ! कम से कम सत्ता तो ऐसे नहीं आने वाली मित्रो ! आप लाख गाते रहिए और गंगाजल से मूर्तियां पवित्र करते रहिए। देश की राजनीति अब बदल गई है। भारत में धर्म और जाति-पाति एक निर्मम सचाई ज़रुर है पर निर्णायक भी हो यह कतई ज़रुरी नहीं। नरेंद्र मोदी की नई राजनीति फ़िलहाल इसी राह पर है। अब आप नरेंद्र मोदी को फ़ासिस्ट कह लीजिए, तानाशाह कह लीजिए या सांप्रदायिक या हत्यारा ! जनता इस को सुनने वाली है नहीं। कम से कम इस चुनाव में। वह अब की चुनाव को मंहगाई और भ्रष्टाचार के मुकाबिल विकास और रोजगार के सपने में तौलने जा रही है। आंख खोलिए और गंगा के किनारे उग रहे इस सूरज को प्रणाम करिए न करिए यह आप की सुविधा है पर सूरज डूब रहा है कृपया यह कहने से हो सके तो बचिए। जनता तो अपने फ़ैसले का चश्मा और तराजू बदल चुकी है। आप भी बदलिए और हां, अपना विरोध ज़रुर जारी रखिए ताकि यह आदमी अपनी तानाशाही से बाज आए ! | ||
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Thursday 24 April 2014
Tuesday 22 April 2014
चुनावी रंग में रंगे कुछ फ़ेसबुकिया नोट्स
कहां
तो अपने बड़बोले राजनीतिक लबार लालू प्रसाद यादव इन के गालों जैसी चिकनी
सड़क बनाने का ख्वाब देख रहे थे एक समय। कहां ये गुलाबी गाल आ गए मथुरा
की पगडंडियों में अपना स्वप्न जैसा सौंदर्य ले कर। यह औचक सौंदर्य इस तरह
खेतों में गेहूं की बाल कटवाए, हैंड्पंप
चलवाए ! मथुरा की यह पगडंडियां और यह हमारी रुपसी संसद के द्वार जाने के
लिए इस चैत मास में इतना कंट्रास्ट भर रही है। ताहि अहीर की छोकरियां,
छछिया भरि छांछ पे नाच नचावैं! तो सुना था पर कोई स्वप्न सुंदरी भी ऐसे
नाचेगी, वोटरों के वोट के छांछ पर। यह भी भला कौन जानता था? हाय रे यह
राजनीति! और ऐ दिले नादां! आरजू क्या है, जुस्तजू क्या है ! क्या इसी दिन
के लिए लिखा गया था मेरी जान ! तेरे सदके जाऊं ! हे नंदकिशोर, यह कौन सी
लीला है, जो इस रुपसी को आप इस तरह अपनी गलियों में मीरा बनाए भटका रहे
हैं?
सोच रहा हूं अब बिक जाऊं।
-हमदम गोरखपुरी
| ||
Friday 18 April 2014
कुलदीप कुमार कंबोज तो कहते हैं कि वह असली हैं पर ज़रा धमकी भरे अंदाज़ में !
कुलदीप
कुमार कंबोज जी ने मेरी वाल पर एक टिप्पणी के बहाने पहले कुतर्क किया और
फिर फ़रार हो गए। मुझे अनफ्रेंड कर दिया। और अब इन बाक्स में उन की धमकी आई
है कि अगर वह मर गए तो उस का ज़िम्मेदार मैं ही हूंगा और कि वह पुलिस
कमिश्नर दिल्ली को इस बाबत सूचना देंगे। फ़ेसबुक पर भी वह कुछ अलग से
लिखेंगे। आदि-आदि। मैं भी उन्हें इनबाक्स में अपनी बात लिखता। लेकिन उन के
द्वारा अनफ्रेंड किए जाने के कारण शायद उन्हें संदेश नहीं जा पा रहा।
या हो सकता है कि कोई और तकनीकी दिक्कत हो। सो उन्हें अपनी बात कहने के लिए
और नैसर्गिक न्याय के तकाजे के तहत उन का वह पूरा संदेश मित्रो के संज्ञान
के लिए यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। जस का तस। बिना किसी छेड़छाड़ के। अपने
जवाब के साथ।
कुलदीप कुमार कंबोज का इन बाक्स संदेश:
कुलदीप कुमार कंबोज का इन बाक्स संदेश:
श्री दयानन्द पाण्डेय, मैं पिछले दो महीनों से
कनाडा में अपनी बेटी के यहां हूं. अच्छाखासा कनाडा देख रहा था. समय मिलता
था तो फेसबुक को इंज्वाय करता था. ना जाने किस मनहूस घड़ी में मैंने आपके एक
पोस्ट पर एक कमैंट दे दिया. मुझे पता नहीं था कि ये ही मेरी जिन्दगी की
सबसे बड़ी भूल बनने जा रही है. फेसबुक पर आपके द्वारा मुझे ‘फेक’ बता दिये
जाने से मुझे बहुत मानसिक आघात पहुंचा है. आपकी जिस पोस्ट पर आपसे
चर्चा चल रही थी, उस को लेकर मेरे एक दो कमेंट के बाद मुझे फेक कहते हुए
आपने जिस भाषा का प्रयोग किया, वह मेरी सोच और संस्कारों के बिल्कुल विपरीत
थी। मैं बात को आगे न बढ़ाने की मंशा से फेसबुक से उठ गया। मुझे लगा कि
गुस्से में आपने कह दिया है, कोई बात नहीं हैै. उसके चंद घंटों के बाद आपने
एक फोटो के साथ मेरा नाम लेते हुए अपनी फेसबुक की वाल पर और बढ़ा-चढ़ा कर एक
पोस्ट डाल दी.
इस पोस्ट को मैंने तुरन्त डीलिट किया. आपको अपनी मित्रता सूची से यह सोचकर अलग किया कि अब मुझे आप क्या तंग करेंगे. लेकिन ऐसा लगता है कि आप पिछले जन्म का कोई बैर निकाल रहे हैं, आप ने दोबारा से उस पोस्ट को मेरे द्वारा पोस्ट के ‘राईट दा कमेंट’ में जाकर अपने ब्लाग की यही पोस्ट करदी. ताकी उसे मेरे करीब ग्यारह सौ फेसबुक मित्र उसे पढ़लें. और आपको देवता और मुझे शैतान समझें - उसे भी मैंने डीलिट किया. इधर मेरे मैसेज बाक्स में मित्रों के मैसेज आने शुरु हो गये. मैं इस उधेड़बुन में लग गया कि किस किस को क्या जवाब दूं? आप के द्वारा दी जा रही इस निरन्तर प्रताड़ना ने मुझे दो-तीन दिन में ही तोड़कर रख दिया. नींद गायब हो गई. मेरी 65 साल की आयु है, भारत से चलते समय एंबेसि द्वारा मेरा मैडिकल हुआ था. इस पोस्ट से पहले तक मैं खुद को स्वस्थ समझता था, लेकिन ये पोस्ट पढ़ते ही मुझे पसीने आने लगे, ऐसा लगने लगा जैसे किसी ने सरेआम नंगा कर दिया हो. छाती में दर्द सा महसूस हुआ और मैं कम्प्यूटर को ऐसे ही छोड़कर लेट गया मेरे दामाद ने अगर उस समय मुझे संभाला न होता तो पता नहीं क्या होता. बहुत देर के बाद मैं कुछ सामान्य हुआ और आपके द्वारा लिखी गयी बातों को एक बुरे सपने की तरह भुलाने की कोशिश में लग गया. मैं आपकी इस कार्यवाही से डिप्रेशन में आ गया हूं. घर में लेटा रहता हूं.
नहीं लगता कि मैं भारत जिन्दा वापिस पहुंचुगा. किसी तरह अपने आपको मैं संभाल रहा हूं. मुझे सपने में भी ये विचार नहीं था कि दयानन्द पाण्डेय नाम के आदमी से मैं इस तरह अपमानित किया जाउंगा. मेरे मन में आपकी कार्यवाही ने ये बात बैठादी है कि आप मरते दम तक मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगे. मैं क्या करुं? मैं यहां ये बताने के लिये यह भी लिख रहा हूं कि कि इस आघात के चलते यदि मेरी मृत्यु अथवा लकवे टाईप की कोई व्याधि आ जाये तो इसके लिये सौ प्रतिशत श्री दयानन्द पाण्डेय को जिम्मेदार माना जायेगा. इस पत्र को मेरा मरने से पहले का ब्यान समझा जाये. कुलदीप कुमार काम्बोज इस पत्र को कमिश्नर दिल्ली पुलिस, पुलिस मुख्यालय, आई.टी.ओ., नई दिल्ली के नाम भी समझा जाये. पाण्डेय जी इस मेटर को में राईट तो कमेंट में पेस्ट कर रहा था. लेकिन में विवाद को कमतर करने के लिए आपको ऐसे भेज रहा हूँ. कल में सारे वाद विवाद को फेसबुक पर दूंगा.
मेरा जवाब :
कुलदीप जी, ईश्वर करे कि आप स्वस्थ रहें। और कि कनाडा का भरपूर आनंद लें। बाकी पुलिस कमिश्नर से लगायत फ़ेसबुक तक या कहीं और भी किसी भी स्तर पर कोई भी कानूनी या सामाजिक कार्रवाई करने के लिए आप पूरी तरह स्वतंत्र हैं। मुझे कोई आपत्ति भला क्यों होगी। यह आप का अधिकार है। लेकिन साथ ही कुछ विनम्र सुझाव भी हैं। इन्हें मानना या न मानना पूरी तरह आप के विवेक पर है। कोई बाध्यता नहीं है कि आप यह मान ही लें।
अव्वल तो आप अगर कहीं कोई टिप्पणी करते हैं तो तार्किक टिप्पणी करें। पूरे विवेक और संयम के साथ। बीच बहस में अनर्गल आरोप लगा कर अचानक फ़रार हो जाना कोई विकल्प नहीं है। अनफ्रेंड करना न करना आप का अपना व्यक्तिगत है। आप की अपनी सुविधा है। इस पर मुझे कुछ नहीं कहना। लेकिन आरोप लगा कर बच्चों की तरह भाग लेना किसी भी की सुविधा नहीं हो सकती। मेरी भी नहीं। आप सलमान खुर्शीद जैसे बेइमान नेताओं पर लगे आरोप की बात पर आक्रामक हो कर पूछें कि किस लैब्रोट्री से जांच हुई है? तार्किक बात नहीं हुई। खैर। अब रही बात फ़ेसबुक पर आप के प्रोफ़ाइल के नकली होने की बात। प्रोफ़ाइल पिक्चर आप की बिलकुल स्पष्ट नहीं है। आप की कोई और पिक्चर भी कहीं नहीं है। न घर-परिवार, न दोस्त-अहबाब न किसी और की। ऐसा अमूमन होता नहीं है। ऐसा होता है तो सिर्फ़ फ़र्जी प्रोफ़ाइलों के साथ। जिस तरह से आप रिएक्ट कर रहे थे अपनी टिप्पणी में इस तरह अमूमन फ़र्जी प्रोफ़ाइल वाले लोग ही ऐसी बेपरवाह, बेलगाम और बेअंदाज़ भाषा इस्तेमाल करते हैं। या फिर जाहिल और अनपढ़ लोग। खैर, यह आप का अपना विवेक और अपनी सुविधा है। लेकिन स्पष्ट बताना चाहता हूं कि आप की प्रोफ़ाइल देख कर एक नज़र में मैं उसे आज भी, अभी भी फर्जी ही कहना पसंद करुंगा। हां, अगर आप कुछ उस में अपेक्षित सुधार कर कुछ व्यक्तिगत आदि भी शेयर करते दीखते हैं तो शायद राय बदल सके। क्यों कि जो पोस्ट मैं ने लगाई है उस में विमर्श में आए कुछ और दूसरे नाम भी पूरी तरह फर्जी आई डी वाले और भी हैं। जिन्हों ने अपनी प्रोफ़ाइल में कुछ व्यक्तिगत का तड़का लगाने की कोशिश भी ज़रुर की है बावजूद इस के उन का फर्जीपना समझ में तो आ ही जाता है। फ़ेस बुक पर उपस्थित लोग अगर इस तथ्य पर रिएक्ट नहीं करते हैं और कि चुप रहते हैं तो इतने नादान भी नहीं हैं जितना यह फ़र्जी आई डी वाले लोग सब को समझ बैठे हैं। आमीन !
इस पोस्ट को मैंने तुरन्त डीलिट किया. आपको अपनी मित्रता सूची से यह सोचकर अलग किया कि अब मुझे आप क्या तंग करेंगे. लेकिन ऐसा लगता है कि आप पिछले जन्म का कोई बैर निकाल रहे हैं, आप ने दोबारा से उस पोस्ट को मेरे द्वारा पोस्ट के ‘राईट दा कमेंट’ में जाकर अपने ब्लाग की यही पोस्ट करदी. ताकी उसे मेरे करीब ग्यारह सौ फेसबुक मित्र उसे पढ़लें. और आपको देवता और मुझे शैतान समझें - उसे भी मैंने डीलिट किया. इधर मेरे मैसेज बाक्स में मित्रों के मैसेज आने शुरु हो गये. मैं इस उधेड़बुन में लग गया कि किस किस को क्या जवाब दूं? आप के द्वारा दी जा रही इस निरन्तर प्रताड़ना ने मुझे दो-तीन दिन में ही तोड़कर रख दिया. नींद गायब हो गई. मेरी 65 साल की आयु है, भारत से चलते समय एंबेसि द्वारा मेरा मैडिकल हुआ था. इस पोस्ट से पहले तक मैं खुद को स्वस्थ समझता था, लेकिन ये पोस्ट पढ़ते ही मुझे पसीने आने लगे, ऐसा लगने लगा जैसे किसी ने सरेआम नंगा कर दिया हो. छाती में दर्द सा महसूस हुआ और मैं कम्प्यूटर को ऐसे ही छोड़कर लेट गया मेरे दामाद ने अगर उस समय मुझे संभाला न होता तो पता नहीं क्या होता. बहुत देर के बाद मैं कुछ सामान्य हुआ और आपके द्वारा लिखी गयी बातों को एक बुरे सपने की तरह भुलाने की कोशिश में लग गया. मैं आपकी इस कार्यवाही से डिप्रेशन में आ गया हूं. घर में लेटा रहता हूं.
नहीं लगता कि मैं भारत जिन्दा वापिस पहुंचुगा. किसी तरह अपने आपको मैं संभाल रहा हूं. मुझे सपने में भी ये विचार नहीं था कि दयानन्द पाण्डेय नाम के आदमी से मैं इस तरह अपमानित किया जाउंगा. मेरे मन में आपकी कार्यवाही ने ये बात बैठादी है कि आप मरते दम तक मेरा पीछा नहीं छोड़ेंगे. मैं क्या करुं? मैं यहां ये बताने के लिये यह भी लिख रहा हूं कि कि इस आघात के चलते यदि मेरी मृत्यु अथवा लकवे टाईप की कोई व्याधि आ जाये तो इसके लिये सौ प्रतिशत श्री दयानन्द पाण्डेय को जिम्मेदार माना जायेगा. इस पत्र को मेरा मरने से पहले का ब्यान समझा जाये. कुलदीप कुमार काम्बोज इस पत्र को कमिश्नर दिल्ली पुलिस, पुलिस मुख्यालय, आई.टी.ओ., नई दिल्ली के नाम भी समझा जाये. पाण्डेय जी इस मेटर को में राईट तो कमेंट में पेस्ट कर रहा था. लेकिन में विवाद को कमतर करने के लिए आपको ऐसे भेज रहा हूँ. कल में सारे वाद विवाद को फेसबुक पर दूंगा.
मेरा जवाब :
कुलदीप जी, ईश्वर करे कि आप स्वस्थ रहें। और कि कनाडा का भरपूर आनंद लें। बाकी पुलिस कमिश्नर से लगायत फ़ेसबुक तक या कहीं और भी किसी भी स्तर पर कोई भी कानूनी या सामाजिक कार्रवाई करने के लिए आप पूरी तरह स्वतंत्र हैं। मुझे कोई आपत्ति भला क्यों होगी। यह आप का अधिकार है। लेकिन साथ ही कुछ विनम्र सुझाव भी हैं। इन्हें मानना या न मानना पूरी तरह आप के विवेक पर है। कोई बाध्यता नहीं है कि आप यह मान ही लें।
अव्वल तो आप अगर कहीं कोई टिप्पणी करते हैं तो तार्किक टिप्पणी करें। पूरे विवेक और संयम के साथ। बीच बहस में अनर्गल आरोप लगा कर अचानक फ़रार हो जाना कोई विकल्प नहीं है। अनफ्रेंड करना न करना आप का अपना व्यक्तिगत है। आप की अपनी सुविधा है। इस पर मुझे कुछ नहीं कहना। लेकिन आरोप लगा कर बच्चों की तरह भाग लेना किसी भी की सुविधा नहीं हो सकती। मेरी भी नहीं। आप सलमान खुर्शीद जैसे बेइमान नेताओं पर लगे आरोप की बात पर आक्रामक हो कर पूछें कि किस लैब्रोट्री से जांच हुई है? तार्किक बात नहीं हुई। खैर। अब रही बात फ़ेसबुक पर आप के प्रोफ़ाइल के नकली होने की बात। प्रोफ़ाइल पिक्चर आप की बिलकुल स्पष्ट नहीं है। आप की कोई और पिक्चर भी कहीं नहीं है। न घर-परिवार, न दोस्त-अहबाब न किसी और की। ऐसा अमूमन होता नहीं है। ऐसा होता है तो सिर्फ़ फ़र्जी प्रोफ़ाइलों के साथ। जिस तरह से आप रिएक्ट कर रहे थे अपनी टिप्पणी में इस तरह अमूमन फ़र्जी प्रोफ़ाइल वाले लोग ही ऐसी बेपरवाह, बेलगाम और बेअंदाज़ भाषा इस्तेमाल करते हैं। या फिर जाहिल और अनपढ़ लोग। खैर, यह आप का अपना विवेक और अपनी सुविधा है। लेकिन स्पष्ट बताना चाहता हूं कि आप की प्रोफ़ाइल देख कर एक नज़र में मैं उसे आज भी, अभी भी फर्जी ही कहना पसंद करुंगा। हां, अगर आप कुछ उस में अपेक्षित सुधार कर कुछ व्यक्तिगत आदि भी शेयर करते दीखते हैं तो शायद राय बदल सके। क्यों कि जो पोस्ट मैं ने लगाई है उस में विमर्श में आए कुछ और दूसरे नाम भी पूरी तरह फर्जी आई डी वाले और भी हैं। जिन्हों ने अपनी प्रोफ़ाइल में कुछ व्यक्तिगत का तड़का लगाने की कोशिश भी ज़रुर की है बावजूद इस के उन का फर्जीपना समझ में तो आ ही जाता है। फ़ेस बुक पर उपस्थित लोग अगर इस तथ्य पर रिएक्ट नहीं करते हैं और कि चुप रहते हैं तो इतने नादान भी नहीं हैं जितना यह फ़र्जी आई डी वाले लोग सब को समझ बैठे हैं। आमीन !
पुरानी पोस्ट पर कुलदीप जी प्रकरण पर वाद-विवाद-संवाद:
का चुप साधि रहा बलवाना !
चंचल जी, आप ने कुछ समय पहले ऐलान किया था अपनी ही वाल पर कि आप बनारस से
चुनाव लड़ेंगे। तो अपनी उस इच्छा का सम्मान कीजिए। अपने समाजवादी शस्त्रों
के साथ उतर आइए काशी के चुनावी मैदान में। हार-जीत की चिंता किए बिना और कि
इन तानाशाहों को चुनौती दे डालिए और बता दीजिए दुनिया को कि हम सिर्फ़
फ़ेसबुक पर जुगाली करने ही के लिए पैदा नहीं हुए हैं। तय मानिए आप का साथ
देने आप के तमाम साथी तो आएंगे ही, आप
अनुमति देंगे तो हम भी अपने दस-बीस साथियों के साथ अपने खर्चे पर आएंगे। आप
के प्रचार में। छोड़िए उस चोर, बेइमान सलमान खुर्शीद का फरुखाबाद और उस का
प्रचार। और निर्दलीय ही सही, प्रतीकात्मक ही सही जूझ जाइए। भले बिल्ली की
तरह ही सही इन बाघों से बाज जाइए। अभी समय शेष है। और कि समर भी शेष है।
नहीं बाद मे पछताइएगाऔर गाइएगा कि चड़िया चुग गई खेत ! तब कोई फ़ायदा नहीं
होगा। फिर काशी के आप पुराने वीर हैं। का चुप साधि रहा बलवाना !
- Rachit Pankaj, Amit Kumar Kashyap, Raghwendra Pratap Singh and 68 others like this.
- Ranjeet Gupta चंचल जी कैसे चुनाव लड़ सकते है , सोनिया जी ने तो ......नही-नही प्रियंका जी ने यहा से पुराने भाजपाई अजय राय जी को टिकट थमा दिया है और चंचल जी अब समाजवादी भी नही रहे जो विरोध कर चुनाव लड़ जाये . पहले वाले चंचल जी होते तो वह लड़ भी जाते .....
- Artiman Tripathi लगता है कि चंचल जी से आपकी मित्रता काफी गहरी है, लेकिन इस बार काफी समय के बाद याद आई.
- राघवेन्द्र डी किन्नरों को आज ही तो इतना सब कुछ दिया है सुप्रीम कोर्ट ने, अब चुनाव लड़के और क्या ले लेगा। बिन मांगे इतना मिला, मांगे मिले न भीख . . .
- Gyanendra Tripathi Ese kahate hain baton se chingoti katna ............... wo bhi poore jor se ......
- Kuldip Kumar Kamboj · 157 mutual friends
पाण्डेय जी, किस आधार पर आप ये कह पा रहे हैं -"छोड़िए उस चोर, बेइमान सलमान खुर्शीद का फरुखाबाद और उस का प्रचार।" क्या चोर और बेईमान सिर्फ राजनीति में होंते हैं ? क्या लेखन में भी चोर और बेईमान होते हैं ? में बतोर पाठक ये बात पूंछ रहा हूँ ? - Dayanand Pandey कुलदीप जी दुनिया के हर हलके में चोर उचक्के होते हैं। लेखन जगत भी इस से अछूता नहीं है। रही सलमान खुर्शीद के चोर होने की बात तो यह बात राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित हो चुकी है। सलमान के एन जी ओ ने विकलांगो तक को नहीं छोड़ा।
- Kuldip Kumar Kamboj · 157 mutual friends
कौन सी 'लेबोरेटरी' में ये बात प्रमाणित हो गयी है ? मुझे उस लेबोरेटरी का पता ठिकाना देंगे ? - Kuldip Kumar Kamboj · 157 mutual friends
पाण्डेय जी, आरएसएस और उसके समर्थक इस बात के लिए क्या अभिशप्त हैं, कि जो बोलेंगे झूट बोलेंगे ? - Dayanand Pandey चोरों की जांच लैब्रोट्री में नहीं होती। उत्तर प्रदेश सरकार की जांच में उन की चोरी साबित हो चुकी है। आज तक के स्टिंग को भी पूरे देश ने देखा। प्रेस कांफ़्रेंस में आज तक के रिपोर्टर से सलमान अभद्रता पर उतर आए और अपने ऊपर लगे आरोपों से आंख चुराने लगे। एक सवाल का सामना नहीं कर पाए। लेकिन आप यह बताइए कि उस चोर सलमान के आप हैं कौन? साझेदार? वकील? प्रवक्ता या रिश्तेदार?
- Kuldip Kumar Kamboj · 157 mutual friends
ये है सही बात ? मैं कौन हूँ ? आपकी उलटबासी में टांग अड़ाने वाला मैं कौन हूँ ? अगर ऐसा करूँगा तो मुझे भी अपना करेक्टर सार्टिफिकेट साथ में संलग्न करना होगा. में ये भी अंदाजे से कह सकता हूँ कि बहुत शीघ्र आपकी और से गाली गलोज जरी हों वाली है. धन्य हैं प्रभु आप ! - Dayanand Pandey मैं लखनऊ में रहता हूं। पढ़ने-लिखने वाला आदमी हूं। गाली गलौज वाला नहीं। लेकिन आप ने जिस अंदाज़ में सवाल पूछा है उस पर ज़रा गौर फ़रमा लीजिए दो बार। फिर कोई सवाल आप पूछें तो जवाब देने में आनंद आएगा। एक चीज़ और बड़ी विनम्रता से बताना चाहता हूं कि अगर एक अक्षर भी कुछ लिखता हूं, कोई आरोप लगाता हूं तो पूरी ज़िम्मेदारी और पूरे तर्क और तथ्य के साथ। लफ़्फ़ाज़ी या फेकना मेरे मिजाज में नहीं। और जो कोई सवाल आप या कोई और मित्र करता है तो उसे पूरे तर्क और पूरी विनम्रता से जवाब देता हूं। पीठ नहीं दिखाता, कुतर्क नहीं करता। आप लेकिन ऐसे सवाल कर रहे थे गोया चोर और बेइमान सलमान खुर्शीद नहीं, मैं ही होऊं ! ज़रा पलट कर अपना लिखा पढ़ लीजिए और बेइमानों की पैरवी बंद कीजिए। एक बात और नोट कर लीजिए कि मैं संघी या भाजपाई नहीं हूं। दूसरे हर चोर की पैरवी करने के लिए हर किसी को संघी या भाजपाई करार देना फ़ासिस्ट तरीका है। यह फ़ासिज्म बंद कीजिए। बहुत हो गया।
- Kuldip Kumar Kamboj · 157 mutual friends
पाण्डेय जी, दुर्भाग्य से मुझे पढने लिखने का अवसर नहीं मिला. आपका सौभाग्य कि आप पढ़ने-लिखने वाला आदमी हैं. मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ. आपकी शालीनता ने भी मुझे प्रभावित किया. चलते चलते ये बात कह कर में सोने जा रहा हूँ "व्यक्ति जहाँ से चलना प्रारम्भ करता है, लौट कर वही आजाता है." शायद ये ही मनुष्य की नियति है. धन्यवाद ! - Dayanand Pandey कुलदीप जी, बाध्यता नहीं है लेकिन क्षमा कीजिएगा आप कीआई डी पर भी मुझे संदेह है। अपना पूरा परिचय बता दीजिएगा तो इस आरोप को वापस ले लूंगा और कि आप से सार्वजनिक रुप से इस आरोप के लिए क्षमा मांग लूंगा।खुदा करे कि मेरा आरोप झूठा निकले और कि आप सही साबित हों। लेकिन एक नज़र में फ़ेक लगती है आप की आई डी। आप का कोई परिचय, फ़ोटो आदि सब गोल-गोल है। यह किस गिरोह के हैं आप जैसे लोग? जो बिना नाम पहचान के संघियों से लड़ने चले हैं, कुतर्क का बाना पहन कर? यह तो फ़ुल फ़ासिज्म है।
- Padampati Sharma bhai Dayanandji jis Samajwadi Flameboyent Chanchal ko ham jante the wo Chanchal kahi gum ho gaya uski jagah maine ek thake Boodhe ko Congress ke Manch se bolte hue paya aur han tabhi yani 30 baras bad jan paya ki samJwadi Chanchal congressi hote hi Chanchal singh ho gaye
- Artiman Tripathi पूरे देश में पहले से ही ऐसे लोगों की कमी नहीं थी और फेसबुक पर भी देश के लोग हैं. वैसे इस तरह के वाकयों को देखकर मानव मन और व्यवहार की विविधता का पता चलता है. कुछ लोग झगडा करने की नीयत लेकर ही पैदा होते हैं. फिर यह कोई अपवाद नहीं हैं. वैसे चांदी तो पाण्डेय जी की ही है, उन्हें एक और कैरेक्टर मिल गया, अपने आगामी उपन्यास के लिए.
- Dayanand Pandey फर्जी आई डी धारक कुलदीप कुमार कंबोज, कहां छुप कर सो गए? कुछ तो सांस लीजिए और अपने असली होने का प्रमाण दीजिए। सारी हुंकार गीदड़ भभकी में कैसे तब्दील हो गई? कम से कम यही बता दीजिए।
- Artiman Tripathi मैंने कही सुना या पढ़ा था कि सांप एक बार अगर अपने बिल में सर दाल दे तो फिर उसे पूँछ से पकड़कर बाहर खींचना असंभव होता है क्योंकि कहते हैं की उसके बदन पर कुछ कांटेदार अवयव होते हैं जो उसके पीछे घसिटने का रास्ता रोक देते हैं और बहके ही सांप बीच से टूट जाये, बैक गियर में वापस नही लौट सकता है. सो उसे पकड़ने के लिए शिकारी लोड बिल का दूसरा मुंह तलाशते है और जब वह बिल के दूसरे मुंह से बाहर निकलता है तभी उसे पकड़ते हैं. अब निवेदन है कि कोई मित्र मेरी इस बात में वैज्ञानिक दृष्टि न देने लगे. एक बात दिमाग में आई सो बक दी. अब कोई चाहे तो मुझे वह बुढिया समझ सकता है, जिसने चन्द्रगुप्त मौर्य को अनजाने में ही रोटी के बजाये युद्ध में विजय की रणनीति का मंत्र दे दिया था.
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