Thursday 30 March 2017

यह सादगी और ईमानदारी भरी परंपरा काश कि सभी राजनीतिज्ञ अपनाते

नीतीश कुमार
जब नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्य मंत्री बने थे तो न्यूज़ चैनलों ने उन के गांव से जो घर दिखाया था उन का , वह न सिर्फ़ एक साधारण किसान का घर था बल्कि नीतीश कुमार की ईमानदारी और पारदर्शिता भी दिखती थी । निम्न मध्यवर्गीय ताना बाना और नीतीश कुमार की मां की सरलता भी देखते बनती थी । तब जब कि नीतीश कुमार सांसद और रेल मंत्री भी रह चुके थे । वह अपने घर परिवार के लिए कुछ भी करवा सकते थे । पर भूल कर भी नहीं किया ।

देखने को तो लालू यादव के मुख्य मंत्री बनने के समय उन के चपरासी भाई के साथ उन का रहना और राबड़ी का आलू प्याज की सब्जी बनाना भी मीडिया दिखा चुका था पर जल्दी ही लालू यादव सपरिवार भ्रष्टाचार की गंगोत्री में फिसल गए । फिर उन का अहंकार , लंठई , बदतमीजियां आदि बहुत विस्तार पा गईं । लेकिन सुनते हैं नीतीश कुमार अभी तक अपनी ईमानदारी की पगडंडी से उतरे नहीं हैं । 


माणिक सरकार
त्रिपुरा के कामरेड मुख्य मंत्री माणिक सरकार की ईमानदारी और सादगी भी सर्वदा चर्चा के शिखर पर रही है । ममता बनर्जी भी सादगी से रहती ज़रुर हैं पर भ्रष्टाचार के छींटे उन पर , उन की पार्टी पर बहुत पड़ गए हैं ।

फिर जब नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने तब उन का भी घर देख कर पता लग गया कि दस साल मुख्य मंत्री रह कर भी नरेंद्र मोदी ईमानदारी की राह पर ही रहे हैं । प्रधान मंत्री बनने के बाद भी उन के घर या परिवारीजनों में वैभव या संपन्नता प्रवेश नहीं कर पाई है । सत्ता का मद भी नहीं । यह बड़ी बात है । अब जब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने तो गढ़वाल उन के माता , पिता , परिजनों और घर को देख कर लग गया कि ईमानदारी की पथरीली राह योगी ने भी छोड़ी नहीं है ।



योगी आदित्यनाथ
पांच बार एम पी रहने , अरबों रुपए के साम्राज्य गोरखनाथ मंदिर का महंत हो कर काम काज संभालने के बाद भी उन के परिजन अपनी विपन्नता में ही जी रहे हैं । वह चाहते तो मंदिर से या किसी और से भी कह कर अपनी परिजनों का जीवन स्तर तो सुधार सकते ही थे ।इतना ही नहीं बहुत से गेरुवाधारी लोग राजनीतिज्ञ हैं पर उन का गेरुवा देखिए और योगी आदित्यनाथ का गेरुवा वस्त्र देख लीजिए । सिल्क और मामूली कपड़े का फ़र्क साफ दिख जाएगा । और अब मुख्य मंत्री निवास से ए सी सहित सारी ऐशो आराम की चीज़ें हटवा देना भी आसान नहीं है । मुख्य मंत्री निवास में गऊ शाला बना कर सादगी से रहना आसान नहीं है । अपनी तमाम ड्रेस की चर्चा के बावजूद सुनता हूं , मोदी भी प्रधान मंत्री निवास में बड़ी सादगी से रहते हैं ।


नरेंद्र मोदी
यह सादगी और ईमानदारी भरी परंपरा काश कि सभी राजनीतिज्ञ अपनाते । नहीं हम ने जय ललिता जैसी मुख्य मंत्री का भ्रष्टाचार और ऐश्वर्य भरा जीवन भी देखा ही है । मुलायम , अखिलेश , मायावती , राम विलास पासवान जैसे तमाम भ्रष्ट , ऐय्यास राजनीतिज्ञों की तो खैर बात ही क्या करनी । राहुल गांधी के कुर्ते की फटी जेब वाली जोकरई भी की क्या बात करनी ।

Wednesday 22 March 2017

यह तो सही है कि आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में दंगे नहीं होने देंगे



उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री आदित्यनाथ ने जो कल लोक सभा में तत्कालीन उर्वरक मंत्री सुरजीत सिंह बरनाला का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्हों ने गोरखपुर मंडल में दंगे नहीं होने दिए , किसी व्यापारी या डाक्टर का अपहरण नहीं होने दिया , किसी को गुंडा टैक्स नहीं लेने दिया । तो यह बात तो लगभग सच है । सरकार किसी भी पार्टी की रही हो गोरखपुर इलाक़े में प्रभुत्व आदित्यनाथ का ही रहा है । लगभग समानांतर सरकार । सिर्फ़ एक बार मुलायम सिंह यादव ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज कर उन्हें सबक़ सिखाया था । जेल से निकलने के बाद आदित्यनाथ लोक सभा में फूट-फूट कर रोए थे । वह यहां तक मनबढ़ हो गए थे कि एक बार तत्कालीन उप प्रधान मंत्री जो गृह मंत्री भी थे लालकृष्ण आडवाणी गोरखपुर पहुंचे तो उन की सभा में भी आदित्यनाथ नहीं पहुंचे , न मिलने ।

आडवाणी को ही विवश हो कर उन से मिलने गोरखनाथ मंदिर जाना पड़ा था । तब आदित्यनाथ भाजपा के समर्थन से हिंदू महासभा के सांसद थे । इस घटना के बाद ही अगले चुनाव में आदित्यनाथ को भाजपा के चुनाव निशान पर चुनाव लड़ने को बाध्य होना पड़ा । एक बार भाजपा के शिवप्रताप शुक्ला से वह नाराज हो गए , वह तब मंत्री थे तो विधान सभा चुनाव में गोरखपुर से शिवप्रताप शुक्ला के ख़िलाफ़ राधामोहन दास अग्रवाल को निर्दलीय चुनाव लड़वा कर जिता दिया । पार्टी कुछ नहीं कर पाई। उलटे अगले चुनाव से राधामोहन दास अग्रवाल को ही अपना उम्मीदवार बनाने लगी । शिवप्रताप शुक्ला साफ हो गए । अब इधर उन को राज्य सभा में भेजा गया है । आदित्यनाथ ने भाजपा में जो चाहा है गोरखपुर मंडल में वही हुआ । अब उन का दायरा पूर्वी उत्तर प्रदेश तक फैल चुका है ।

तो बात हो रही थी गोरखपुर मंडल में दंगा , व्यापारियों से गुंडा टैक्स , अपहरण आदि के बंद हो जाने की । तो गुंडा टैक्स तो पूरी तरह बंद नहीं हुआ था अभी गोरखपुर में । हरिशंकर तिवारी तथा इन के जैसे और लोग यह काम अभी तक जारी रखे हुए थे । लेकिन यह सच है कि आज की तारीख़ में आदित्यनाथ के प्रभाव के चलते ही गोरखपुर और आसपास अब कभी दंगे नहीं होते। मैं ख़ुद गोरखपुर का रहने वाला हूं इस लिए इस बात को भीतर तक जानता हूं । सुनने और पढ़ने में यह बात कुछ लोगों को अप्रिय लग सकती है और कि मुझे भी यह लिखना अच्छा नहीं लग रहा लेकिन जो सच है , वह सच है । वह यह कि गोरखपुर और आसपास के बहुसंख्यक लोग आदित्यनाथ से बहुत नाराज रहते हैं । उन की दबंगई , मनबढ़ई और समानांतर सरकार चलाने से । उन की हिंदू युवा वाहिनी के मनबढ़ कार्यकर्ताओं से भी । बावजूद इस के चुनाव में जब वोट देने का समय आता है तब लोग आदित्यनाथ और उन के लोगों को ही आंख मूंद कर वोट देते हैं । तो सिर्फ़ इस एक अवधारणा पर कि मुसलमानों की अराजकता को सिर्फ़ आदित्यनाथ ही क़ाबू कर सकते हैं , कोई शासन , प्रशासन या सरकार नहीं । आदित्यनाथ ने इस अवधारणा को अभी बरक़रार रखा है । बिलकुल नरेंद्र मोदी की तर्ज पर । और तय मानिए कि आदित्यनाथ के मुख्य मंत्री रहते उत्तर प्रदेश में दंगे नहीं होंगे । अपहरण आदि भी नहीं । गोरखुपर का तजुर्बा तो यही कहता है । 

इस मौक़े पर मुझे लालू प्रसाद यादव के दूरदर्शन पर दिए गए एक इंटरव्यू की याद आ रही है । लालू नए-नए मुख्य मंत्री हुए थे । लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा बिहार में रोक कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था । लगभग पूरे देश में दंगे हुए थे लेकिन बिहार में नहीं । जब कि आडवाणी की गिरफ्तारी बिहार में ही हुई थी। लालू से इस बारे में जब पूछा गया तो लालू ने बहुत सख्ती से जवाब दिया था कि इस लिए बिहार में दंगे नहीं हुए क्यों कि मैं नहीं चाहता था । लालू ने दूरदर्शन पर कहा कि जिस दिन बिहार में दंगे हो समझ लेना लालू करवा रहा है ।

यह सही बात है । अभी जो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दंगे हुए थे , मुझे कहने दीजिए कि अखिलेश यादव सरकार ने करवाए थे । आज़म खान पर वह तब लगाम नहीं लगा पाए थे और वह दंगे भड़काते रहे थे । अब उत्तर प्रदेश की जनता ने उस का जवाब दे दिया है , अखिलेश यादव पर लगाम लगा दिया है । मुझे कृपया यह भी कहने दीजिए कि भाजपा को केंद्र और उत्तर प्रदेश में मिला भारी बहुमत मुस्लिम तुष्टिकरण के प्रतिकार में है । मुस्लिम वोट बैंक की विदाई हो चुकी , समझिए कि दंगों की भी विदाई हो चुकी है । आप ख़ुद  देख लीजिए कि  जगह-जगह से अवैध बूचड़खानों के बंद होने की लगातार ख़बरें आ रही हैं लेकिन कहीं भी कोई  हलका  सा भी कोई बवाल होने की ख़बर है क्या ? 

इस लिए कि दंगों के निहितार्थ में मुस्लिम तुष्टिकरण का बहुत बड़ा हाथ है । जो अब समाप्त है उत्तर प्रदेश से ।


अब यह अलग बात है कि गोरखपुर में दंगा क़ाबू  करना आदित्यनाथ को विरासत में मिला ही । अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से । अवैद्यनाथ को यह विरासत मिली थी अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ से । दिग्विजयनाथ और अवैद्यनाथ दोनों ही गोरखनाथ मंदिर के महंत और हिंदू महासभा के सांसद रहे थे । अवैद्यनाथ विधायक भी रहे थे । गोरखपुर में मुसलमानों को क़ाबू  करने की विद्या एक दंगे में दिग्विजयनाथ ने ही ईजाद की थी । साठ के दशक में मई , 1964 या 1965 के वर्ष की बात है । उस के बाद से अब तक गोरखपुर में हिंदू-मुस्लिम दंगा नहीं हुआ । तो सिर्फ़ इस लिए कि गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर  के महंत लोगों का डर गोरखपुर के मुसलमानों में सर्वदा व्याप्त रहा है । गोरखपुर क्षेत्र के मुसलामानों में मंदिर के इस डर को आदित्यनाथ ने नित्य प्रति चटक किया है । आज़मगढ़ में दिया गया एक हाथ में माला , एक हाथ में भाला वाला उन का भाषण लोग अभी तक भूले नहीं हैं । मुसलमानों के प्रति उन का आक्रामक रवैया ही अब उन की ताक़त बन गया है । उन को लोग सांप्रदायिक कहें , हत्यारा कहें , इस सब की परवाह कभी की नहीं आदित्यनाथ ने । मुसलमानों में उन के प्रति गहरी नफ़रत है । लेकिन यह बात कुछेक को छोड़ कर ज़्यादातर मुसलमान जाहिर नहीं करते । लेकिन मुसलमानों में आदित्यनाथ के ख़ौफ़ का आलम यह है कि अगर कोई  मामूली विवाद भी हो तो लोग अगर इतना भर कह दें कि , ठीक है , फिर हम जा रहे हैं मंदिर महंत जी के पास ! इतने में ही अगला पैर पकड़ कर बैठ जाता है और समझौता कर लेता है । 


मुसलमान छोड़िए , गोरखपुर में कोई प्रशासनिक अधिकारी , पुलिस अधिकारी भी बिना मंदिर में मत्था टेके गोरखपुर में आराम से नहीं रह सकता । वह चाहे कोई  भी हो । लालू और दिग्विजय सिंह जैसे सेक्यूलर भी गोरखपुर जाते हैं तो आदित्यनाथ के चरण छू कर मंदिर में मत्था टेकते ही हैं । गोरखपुर में दो शक्ति केंद्र हैं । एक मंदिर , एक हाता । मंदिर मतलब आदित्यनाथ , हाता मतलब हरिशंकर तिवारी । एक से एक लेखक , बुद्धिजीवी , पत्रकार , विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर , वाइस चांसलर तक इन दोनों केंद्रों में नियमित मत्था टेकते रहते हैं और वहां से वापस आ कर लोगों के बीच छाती फुला कर बड़ी शान और हेकड़ी से बताते हैं कि मंदिर से आ रहा हूं , मंदिर गया था ! या हाता गया था , हाता से आ रहा हूं । अब आप को यह सुन कर , पढ़ कर घिन आ रही हो तो यह आप की असुविधा है । लेकिन गोरखपुर के लोगों की यह सुविधा है । इक्का दुक्का अपवाद छोड़ दीजिए , पनचानबे प्रतिशत लोग इसी मत्था टेकू भीड़ में शुमार हैं । हिंदू , मुसलमान सभी । अगड़े-पिछड़े सभी । 


इन दिनों देखिए न तमाम टी वी चैनल आदित्यनाथ गुणगान से भरे हैं , इस गुणगान में आदित्यनाथ का एक चेहरा मुस्लिम प्रेमी का भी है । कि उन का कामकाज संभालने वाला मुस्लिम , खजांची मुस्लिम , रसोईया मुस्लिम आदि-आदि । जिस में कुछ सच है , कुछ गप्प है । पर यह सच है कि  गोरखनाथ मंदिर मुस्लिम बहुल इलाक़े के बीच है । और लगभग सारे मुसलमान आदित्यनाथ का ख़ास बन कर रहते हैं । या कहिए बने रहते हैं । ख़ास कर व्यवसाई । जुलाहों की आबादी यहां ज़्यादा है जिन्हें राजनीतिक लोग बुनकर भाई कहते रहते हैं । 


ख़ैर जो कार्यशैली है गोरखपुर में आदित्यनाथ की वह उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्य मंत्री भी जारी रहेगी यह मैं जानता हूं । आप उन्हें हिंदू हृदय सम्राट कहिए , हत्यारा कहिए , गुंडा , दंगाई और सांप्रदायिक कहिए वह इस सब की फ़िक्र नहीं करते । अर्जुन की तरह सिर्फ़ मछली की आंख देखते हैं । लोग चक्रव्यूह बना कर उन्हें अभिमन्यु की तरह घेर लेते हैं पर आदित्यनाथ अभिमन्यु होने से इंकार करते हुए अर्जुन की तरह चक्रव्यूह तोड़ कर निकल लेते हैं । आदित्यनाथ वन डे मैच खेलने वाले खिलाड़ी हैं । हार जीत की परवाह किए बगैर । अपने आगे किसी को कुछ समझते नहीं हैं । बस एक नरेंद्र मोदी की तारीफ़ में उन को बिछे और झुके देखना मेरे लिए आश्चर्य का विषय है । अभी तक अपने गुरु और मंदिर के सिवाय किसी व्यक्ति के आगे झुके हुए या कहें शरणागत होते आदित्यनाथ को मैं ने नहीं देखा है । इतना ही नहीं , वह एक बार जिस से उखड़  गए तो उखड़ गए । टूटी बात को वह गांठ में नहीं जोड़ते । अभी आप लोगों ने देखा होगा शपथ ग्रहण समारोह में उन्हों ने वेंकैया नायडू को किस तरह इग्नोर किया । मोदी , अमित शाह , राजनाथ से हाथ मिलाने के बाद  भड़क कर पलट गए । राजनाथ के बगल में हाथ जोड़े वेंकैया नायडू हाथ जोड़े खड़े रह गए । इस के पहले की शाम जब वह वेंकैया से मिलने गए थे तो हंसते हुए । मिल कर बाहर निकले तो रुठे हुए । वेंकैया से उन का गुस्सा दूसरे रोज भी समाप्त नहीं हुआ था । और तो और शपथ मंच पर वह अखिलेश या मुलायम से भी नहीं मिले । आदित्यनाथ इस मामले में सर्वदा से ही ऐसे ही रहे हैं । 



लोक सभा में कल का उन का भाषण जिस आश्वस्ति भाव में था , वह उन्हें नरेंद्र मोदी का विकल्प तो बनाता ही है , भारतीय राजनीति का एक नया दरवाज़ा भी खोलता है । लेकिन जिस तरह वह छोटे-छोटे फ़ैसले  ले रहे हैं वह उन के क़द के फ़ैसले नहीं हैं । जैसे पान मसाला , गुटका या पॉलीथिन का सरकारी कार्यालयों में बैन । आप सीधे-सीधे इस का अंतिम हल क्यों नहीं करते । पान मसाला , गुटका , पॉलीथिन वगैरह के निर्माण और बिक्री पर तुरंत रोक लगाना ज़्यादा कारगर फ़ैसला होगा । बिहार की तरह शराब बंदी का फ़ैसला भी ज़रुरी । एंटी रोमियो स्कवॉड वगैरह भी सस्ती लोकप्रियता वाले पाठ हैं । मुख्य काम है , विकास , क़ानून व्यवस्था , बिजली , सड़क , साफ पानी , शिक्षा , रोजगार , चिकित्सा । भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से निपटना । सांप्रदायिक सौहार्द्र और सदभाव । राम-जन्म भूमि का मसला अब फिर गरमाया है । यह पहला इम्तहान होगा , आदित्यनाथ की क्षमता का । उन के दंगा रोकने के दावे का । क्यों कि उत्तर प्रदेश सिर्फ़  गोरखपुर नहीं है । बूचड़खाने बंद करना महारत नहीं है , महारत है कि मनुष्य का , मनुष्यता का ख़ून न हो । हर मनुष्य का इस राज में यक़ीन बना रहे । हिंदू हो या मुसलमान या कोई भी । कल्याण सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे तब कहते थे कि , सरकार चलती है धमक और इक़बाल से । फिर अभी भले वही पुरानी मशीनरी आप का चेतक बन कर कुछ फौरी कार्रवाइयां करती दिख रही है लेकिन आप के राज की असली धमक और इक़बाल को देखना अभी शेष है । भ्रष्ट नौकरशाही को अब आप कैसे नाथते और साधते हैं , इस पर भी बहुत कुछ मुन:सर करेगा । 

इस लिए भी आदित्यनाथ कि , आप अपने को योगी मानते हैं , संत मानते हैं । और जिस पीठ के जिस मंदिर के आप महंत हैं उन गुरु गोरख के बिना भारत में संत परंपरा की कोई अर्थवत्ता नहीं है। गुरु गोरख के बिना परम सत्य को पाने के लिए विधियों की जो तलाश शुरू हुई, साधना की जो व्यवस्था प्रतिपादित की गुरु गोरखनाथ ने, मनुष्य के भीतर अंतर-खोज के लिए जितने आविष्कार किए गुरु गोरखनाथ ने, किसी ने नहीं किए। मनुष्य के अंतरतम में जाने के लिए इतने द्वार तोड़े हैं गुरु गोरखनाथ ने कि लोग द्वारों में उलझ गए। लेकिन आप गुरु गोरखनाथ को भूल कर गोरखधंधे में लग गए हैं। 

गुरु गोरखनाथ तो कहते हैं; मरौ वे जोगी मरौ, मरौ मरन है मीठा/तिस मरणी मरौ, जिस मरणी गोरख मरि दीठा। तो गुरु गोरखनाथ तो मरना सिखाते हैं। अहंकार को मारने की, द्वैत को मारने की बात करते हैं। उन की सारी साधना ही समय को मार कर शाश्वतता पाने की है, शाश्वत हो जाने की है, इसी लिए वह अब भी शाश्वत हैं। आप को पता है कबीर, नानक, मीरा यह सभी गोरख की शाखाएं हैं। इन के बीज गुरु गोरखनाथ ही हैं। गुरु गोरखनाथ अहंकार को मारने की बात करते हैं। वह कहते हैं आप जितने अकड़ेंगे, छोटे होते जाएंगे। अकड़ना अहंकार को मज़बूत करता है। वह तो कहते हैं कि आप जितने गलेंगे, उतने बड़े हो जाएंगे, जितना पिघलेंगे उतने बड़े हो जाएंगे। अगर बिलकुल पिघल कर वाष्पी भूत हो जाएंगे तो सारा आकाश आप का है। गुरु गोरख सिखाते हैं कि आप का होना, परमात्मा का होना एक ही है। पर आदित्यनाथ आप ध्यान दीजिए कि आप क्या कर रहे हैं । अब आप मुख्य मंत्री हैं भारत के सब से बड़े प्रदेश , उत्तर प्रदेश के । सो अपनी न सही, अपनी पीठ और गुरु गोरखनाथ का ही मान रख लीजिएगा तो सब ठीक हो जाएगा।



घर में रहने के पहले पूजा पाठ भी एक बड़ी ख़बर है 

 

आदित्यनाथ अगर अपने लखनऊ के सरकारी आवास 5 कालिदास मार्ग पर रहने के पहले तमाम धार्मिक अनुष्ठान करवा रहे हैं तो यह मीडिया पर चर्चा-कुचर्चा का विषय बन गया है । लेकिन लोग भूल गए हैं कि गोरखपुर के ही कांग्रेसी वीर बहादुर सिंह ने मुख्य मंत्री कार्यालय को गंगा जल से धुलवाया था , तब जब कि उन के पूर्ववर्ती कांग्रेस के ही नारायण दत्त तिवारी रहे थे । सुनते हैं कि इसी उत्तर प्रदेश में कांग्रेसी मुख्य मंत्री संपूर्णानंद जो दो बार मुख्य मंत्री बने , हर बार सार्वजनिक रुप से मंगलाचरण और चंदन का लेप लगवा कर ही शपथ ली । श्लोक और मंत्रोच्चार के बीच ही आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री एन टी रामाराव ने भी चंदन लगा कर शपथ लिया था। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने मुस्लिम टोपी पहन कर शपथ के पहले कुरआन का पाठ किया था । केरल के मुख्य मंत्री एच मोहम्मद कोया ने भी बिस्मिल्लाह निर्रहमान कह कर ही शपथ ली थी । नार्थ ईस्ट के प्रदेशों के कई मुख्य मंत्रियों ने बाईबिल पाठ के साथ शपथ ली है । 

आदित्यनाथ ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में लेकिन यह सब तो नहीं किया । अगर मंगलाचरण भी हो गया होता तो अब तक क़यामत आ गई होती । हां , भगवा वस्त्र पहनने वाले आदित्यनाथ देश में तीसरे मुख्य मंत्री हैं । पहले थे तेलगूदेशम पार्टी के आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री एन टी रामाराव , दूसरी भाजपा की मध्य प्रदेश की मुख्य मंत्री रहीं उमा भारती और अब आदित्य नाथ तीसरे मुख्य मंत्री हैं उत्तर प्रदेश के जो सर्वदा भगवा वस्त्र में ही रहते हैं ।
लेकिन सेक्यूलर राजनीति की दुकानदारी और पेड न्यूज़ की मारी मीडिया की यह इंतिहा है कि आदित्यनाथ का घर में रहने के पहले पूजा पाठ भी एक बड़ी ख़बर है । जैसे कोई अजूबा बात हो गई हो । धर्म , पूजा-पाठ आदि हर व्यक्ति का व्यक्तिगत है , संवैधानिक अधिकार है । जिस को जो रुचे करे , न रुचे न करे ।

लेकिन हम ने इसी 5 कालिदास मार्ग के मुख्य मंत्री निवास में रहने के पहले साधना गुप्ता के साथ मुलायम सिंह यादव का भी भारी पूजा पाठ देखा है । जब कि मायावती के लखनऊ के निजी आवास पर भी गृह प्रवेश के समय का पूजा पाठ , संगीत के नाम पर भजन संध्या भी अभी बहुत पुरानी बात नहीं है । हमारे बहुत से वामपंथी मित्र बाहर लाल सलाम करते हुए , धर्म को अफीम बता कर , घर में घंटी बजा कर आरती करते ही हैं , नमाज , रमजान आदि-इत्यादि करते ही हैं । बीते दिनों रामलीला में राम , लक्ष्मण , सीता की आरती करते कामरेड अतुल अंजान की सार्वजनिक हुई फ़ोटो लोग क्या भूल गए हैं ? कि कोलकाता के दुर्गा पंडालों में पूजा करते तमाम कामरेडों की फ़ोटो भी भूल गए हैं । यह तो बड़ी बैड बात है ।

Monday 13 March 2017

चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव परिणामों को रद्द कर दिया

आख़िर मायावती और अखिलेश यादव की व्यथा-कथा के मद्देनज़र चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड  के चुनाव परिणामों को रद्द कर दिया है । यह भी कि अब अगला चुनाव ई वी एम मशीन के बिना होगा । चुनाव आयोग ने इस बाबत भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को नोटिस दे कर पूछा है कि क्यों न इस चुनाव को रद्द कर दुबारा चुनाव करवाया जाए ? अमित शाह ने इस पर नरेंद्र मोदी से सलाह मांगी तो मोदी ने हामी भरते हुए संघ प्रमुख भागवत की इस पर सहमति मांगी है । समझा जाता है कि भागवत ने भी चुनाव आयोग की इस बात को सकारात्मक माना है । माना जा रहा है कि अब अप्रैल में फिर से चुनाव की तारीखें तय हो सकती हैं । इस ख़बर को देखते हुए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में हर्ष की लहर आ गई है । अखिलेश ने मुलायम को फिर से अध्यक्ष पद सौंपने का प्रस्ताव दे दिया है । मुलायम ने कह दिया है कि अब शिवपाल का नंबर है । अब राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल को बनाओ । उसी जनेश्वर मिश्र पार्क में सम्मेलन बुला कर । राम गोपाल यादव को बाहर करो । नरेश अग्रवाल को बाहर करो । अपने हर हर उस चमचे को बाहर करो जो मेरे अपमान में शामिल रहा है । हां , अपनी बुआ से गठबंधन कर सकते हो । 

अखिलेश ने बुआ जी , प्रणाम कर के अपना निवेदन रखा है । लेकिन मायावती का कहना है कि गठबंधन तभी होगा जब मुझे मुख्य मंत्री पद का साझा उम्मीदवार घोषित करो । गायत्री प्रजापति ने कहा है कि पार्टी को फंडिंग का सारा जिम्मा मेरा है बशर्ते मेरे पीछे से पुलिस हटा ली जाए और कि सतीश मिश्रा जैसे मायावती को अब तक जेल जाने से बचाए हुए हैं , मुझे भी बचा लेने की गारंटी ले लें । गौरव भाटिया ने हस्तक्षेप करते हुए कहा है कि इस की गारंटी मैं लेता हूं । लेकिन गायत्री प्रजापति ने गौरव भाटिया को  मना करते हुए बता दिया है कि टी वी डिवेट में तो आप पार्टी का पक्ष कभी ठीक से रख नहीं पाते हैं , सुप्रीम कोर्ट में मेरा पक्ष क्या ख़ाक रखेंगे ?

मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश से कहा है कि यह सब मामले अमर सिंह के जिम्मे कर देते हैं । कौन वकील होगा , कौन जज , यह सब अमर सिंह देख लेंगे । उन्हों ने अखिलेश से यह बात भी साफ तौर पर कह दिया  है कि मुझे तुम्हारा राहुल गांधी से याराना भी बिलकुल पसंद नहीं है । मैं ने सोनिया जी से भी कह दिया है कि अब राहुल अखिलेश के साथ दिखना नहीं चाहिए । अगर गलती से भी दिख गया तो प्रियंका के साथ गायत्री प्रजापति और उस का गैंग दिख जाएगा । फिर कुछ मत कहना । समझा जाता है कि सोनिया ने इस मसले पर कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद के सिपुर्द कर दिया है । साथ ही लालू प्रसाद यादव को कहा है कि वह मुलायम को समझा लें । लालू ने सोनिया से कहा है कि आप जानती हैं मुलायम का स्टैंड । उन के लड़कों से गलतियां होती रहती हैं । मैं इस में कुछ नहीं कर सकता । इस मामले में आप शरद यादव जी से बात कीजिए । 

घबरा कर सोनिया ने शिव सेना के उद्धव ठाकरे को फ़ोन मिलाया । उद्धव ने मामले की नज़ाकत देखते हुए फ़ोन पर आने से ही मना कर दिया । पी ए से कहला दिया है कि मौका मिलते ही वह खुद फोन करेंगे । 

उधर चुनाव आयोग के फैसले को देखते हुए अजित सिंह ने लोक दल के विलय के लिए अमित शाह से प्रार्थना की है । लेकिन अमित शाह ने उन से साफ कह दिया है कि जाट लैंड के भगवा रंग में रंग जाने के बाद आप के इस प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं रह गया है । 

बड़ी बात यह कि उत्तर प्रदेश के मेंडेड में कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए इस के मद्देनज़र मोदी ने तारिक़ फ़तह को भारतीय नागरिकता देते हुए उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त करने का फैसला ले लिया है । बस नागपुर में भागवत जी की मुहर का इंतज़ार है । लेकिन मणिशंकर अय्यर ने इस पर पाकिस्तान से अपील की है कि वह तारिक़ फ़तह को अब से ही सही संभाल ले । कनाडा को भी उन्हों ने गुहार लगाई है कि तारिक़ फ़तह  को वापस बुला ले । उन को अंदेशा है कि कहीं मुस्लिम औरतों ने तारिक़ फ़तह को अपना काजी मान लिया तो उन का वोट बैंक तो बरबाद हो जाएगा । सलमान खुर्शीद ने एक  चैनल को इंटरव्यू में बता दिया है कि तारिक़ फ़तह मसले पर सोनिया जी के आंसू थम नहीं रहे । चिदंबरम ने कहा है कि कांग्रेस भले बरबाद हो जाए लेकिन देश के मुसलमानों को हम ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकते । 

यह ख़बर लिखते-लिखते मायावती का एक और बयान फ्लैश हो रहा है कि बैंकों में जमा पैसों को ले कर जो नोटिस चुनाव आयोग ने दिया है , उसे तो वह रद्द करे ही बाक़ी उन के पास जो दो लाख करोड़ रुपए के पुराने नोट पड़े हैं , उन्हें भी बिना नोटिस-पोटिस के , बिना जांच-पड़ताल के नए नोट में बदल दिया जाए । दलित की बेटी के साथ देश इतना इंसाफ तो कर ही सकता है । इस के जवाब में मुलायम ने मायावती को आश्वासन दिया है कि चिंता नहीं , सब ठीक हो जाएगा । बस मुख्य मंत्री बनने के बाद यह यादव थानेदार , यादव ठेकेदार हटने नहीं चाहिए । 

अब एक ख़बर और हमारे विश्वस्त सूत्र तस्दीक कर रहे हैं कि भाजपा ने राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश का नया मुख्य मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है । महंथ आदित्य नाथ नाराज हो कर गोरखनाथ मंदिर में समाधिस्थ हो गए हैं । यह कहते हुए कि अब फिर से हिंदू महासभा को पुनर्जीवित करने का समय आ गया है । केशव मौर्य ने कहा है कि अब पिछड़ों का वोट ले कर दिखाए भाजपा । सिद्दार्थ नाथ सिंह प्रवक्ता पद पर लौट आए हैं । दिनेश शर्मा ने कहा कि मैं तो लखनऊ का प्रथम नागरिक ही बन कर ख़ुश हूं । 

मायावती , मुलायम और अखिलेश के लखनऊ में रोड शो की तैयारी पूरी हो गई है । पारिवारिक एकता की मिसाल के तौर पर डिंपल यादव , अपर्णा यादव और साधना गुप्ता भी साथ रहेंगी , प्रतीक यादव की फरारी में जिसे गायत्री प्रजापति चलाएंगे ।अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस नए गठबंधन को तहे दिल से अग्रिम बधाई भेजी है । कहा है कि इस गठबंधन से भारत में सेक्यूलरिज्म की रवायत और मज़बूत होगी ।

[ बुरा न मानो होली है ! ]

Sunday 12 March 2017

काश कि उत्तर प्रदेश के यादव लैंड या दलित लैंड बनने पर भी लेखक मित्रों ने कभी मुह खोला होता

काश कि उत्तर प्रदेश के यादव लैंड या दलित लैंड बनने पर भी लेखक मित्रों ने कभी मुह खोला होता । मुस्लिम तुष्टिकरण पर भी सांस ली होती । एकपक्षीय सेक्यूलरिज्म का पहाड़ा न पढ़ा होता तो शायद यह नतीज़े यह और इस तरह कतई नहीं होते । हिंदी संस्थान जैसी जगह पर साहित्य के साथ यादववाद का भी पाठ पढ़ाया जाने लगा । पुरस्कृत किया जाने लगा । दलित राज में तो हिंदी संस्थान को बंद करने की साज़िश रची गई । लेकिन लेखक इस सब पर भी मासूम बन कर चुप थे । हर थानेदार यादव , हर ठेकेदार यादव , हर प्राईज पोस्टिंग पर यादव । सौ में से 84 डिप्टी कलक्टर यादव । इस पर भी मुंह खुलना चाहिए था । क्यों नहीं खुला भला ?

सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी जैसे मसलों पर किसी पार्टी के कार्यकर्ता की तरह लामबंद हो गए । गिरोह की तरह काम करने लगे । कश्मीर की आज़ादी जैसे मसलों पर अलगाववाद के पैरोकार बन गए , सेना को बलात्कारी बनाने की मुहिम चलाने लगे । तिहरे तलाक़ जैसे मसलों पर शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर धंसा कर सिट डाऊन हो गए । स्त्रियों की यातना नहीं दिखी । जनता की भावना और संवेदना नहीं , अपनी ज़िद , सनक और पूर्वाग्रह की ऐंठ में ऐंठे रहे । दुश्मनी मोदी और भाजपा से करनी थी , देश से करने लगे । जो भी कोई रत्ती भर असहमत हो , उसे भक्त कहने लगे । संघी बताने लगे ।

दादरी से लगायत मुजफ्फर नगर तक सपा सरकार दोषी थी , जवाबदेह थी , पर उस के दोष पर परदा डाल कर नरेंद्र मोदी को फ्रेम करने लगे । लड़ना था मोदी से , साहित्य अकादमी से लड़ने लगे । पुरस्कार वापसी का रैकेट चलाने लगे । फिर ऐसे में नतीज़े अब वल्गर हो गए । भाई वाह ! पूरा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड भक्त हो गया । इतना कि उत्तर प्रदेश के 31 जिलों में भाजपा के सिवाय किसी का खाता नहीं खुला । 403 सीट में से सौ सीट भी समूचा प्रतिपक्ष नहीं पा सका । 79 सीट पर सिमट गया समूचा प्रतिपक्ष ।

लेखक , लेखक के बजाय जब पार्टी कार्यकर्ता बन कर एक व्यक्ति से एकतरफा नफ़रत का खेल खेलने लगे तो उस समाज को , लेखक के अंतर्विरोध को समझना बहुत मुश्किल नहीं है । पत्रकार तो पेड मीडिया में गिरफ्तार हैं , चाकर हैं । लेकिन लेखक ? यह किस पेड अभियान में हैं , किस के चाकर हैं ? अधिकांश लेखक भी इस संभावित दुर्घटना को कैसे नज़रअंदाज़ कर गए ? कैसे नहीं देख पाए यह सब ? जनता भक्त हो रही थी और आप उस को अपनी ज़िद और सनक में यह देख भी नहीं पा रहे थे ? एक फ़ासिस्ट का विरोध करते-करते इतने अंधे क्यों हो गए कि ख़ुद भी फ़ासिस्ट हो गए ? वेरी गुड ! और आप फिर भी लेखक हैं ? धन्य हैं आप लेखक शिरोमणि ! जनादेश का सम्मान करना सीखिए लेखक शिरोमणि , नफ़रत नहीं । असहमत होना और नफ़रत करना दोनों दो बात है । तिस पर आप लेखक जन की एक बड़ी शिकायत है कि आप को लोग पढ़ते नहीं । जनता से , जन भावना से , उस की संवेदना से कट कर रहेंगे तो साहित्य भी तो नकली ही लिखेंगे प्रभु ! नक्कालों से सावधान रहना जनता बहुत बेहतर जानती है । आप यह भी कैसे भूल गए हैं ।

तो कैसे पढ़ेगी आप को जनता । बल्कि क्यों पढ़ेगी । ख़ुद ही लिख कर , ख़ुद ही पढ़ लेने की आदत हो गई है आप को । यह बात तो अब सब जानते हैं । हो सके तो यह आदत बदलिए । क्यों कि लेखन के लिए , समाज के लिए यह बहुत गुड आदत नहीं है । हो सके तो अपने विचार , अपनी असहमतियां कायम रखते हुए अपनी ज़िद , सनक और पूर्वाग्रह से बाहर निकलिए । कुंठा से छुट्टी ले लीजिए । जनता अगर राजनीतिक पार्टियों को नकारना जानती है तो लेखक किस खेत की मूली हैं । लेखकों को भी जनता नकार रही है वही जनता जिस को आप पाठक कहते हैं । सभी पाठक भक्त नहीं होते , न संघी । सामान्य जन ही होते हैं । यह भी कि आत्म-मंथन भी एक चीज़ होती है।

हालां कि लेखकों को यह समझाना बहुत मुश्किल है कि विचार अपनी जगह हैं , असहमति अपनी जगह है पर तथ्य भी तो अपनी जगह हैं । लेकिन विचार की बुनियाद पर , असहमति की बुनियाद पर तथ्यों पर पानी डालने की कसरत कर कैसे लेते हैं आप ?  आप की यह कसरत आप को मुबारक ! लेकिन चश्मा लगा कर धूप में बरसात न दिखाएं , न देखें ।  रेत में सिर घुसा कर चुप रहना भी गुड बात नहीं । जन मानस और जनता की नसों को समझिए , उन की भावनाओं , समझ और पसंद को वैचारिकी के बूटों तले रौदना , कुचलना अब बंद भी कीजिए । कृपया दिन को दिन , रात को रात कहने का अभ्यास कीजिए ।