Sunday, 5 June 2022

जितेंद्र पात्रो , ज्योति कुमारी और लीगल नोटिस की गीदड़ भभकी का काला खेल

दयानंद पांडेय 

जितेंद्र पात्रो का माफ़ीनामा 

प्रलेक प्रकाशन और जितेंद्र पात्रो के ख़िलाफ़ लगातार लिखने का लाभ बहुत हुआ है। जितेंद्र पात्रो के फ़रेब की दुकान अब टूटने लगी है। उजड़ने लगी है। नए-पुराने अधिकांश लेखक प्रलेक प्रकाशन और जितेंद्र पात्रो से मुंह फेर बैठे हैं। इस दो महीने में ही कोई 70 प्रतिशत लेखकों ने जितेंद्र पात्रो और प्रलेक प्रकाशन से कुट्टी कर ली है। कुछ के रिश्ते ठंडे हो गए हैं। जमशेदपुर के एक लेखक का भी मोहभंग हो गया है। ताज़ा और बड़ा झटका जितेंद्र पात्रो को बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में लगा है। अभी जितेंद्र पात्रो मुज़फ़्फ़रपुर गए थे। संस्कृत और हिंदी के प्रतिष्ठित कवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की रचनावली प्राप्त कर छापने के लिए। जितेंद्र पात्रो की बदबू मारती बदनामी को देखते हुए शास्त्री जी के परिजनों ने जितेंद्र पात्रो को दुत्कार कर भगा दिया। कहा जा रहा है कि दिल्ली में रहने वाली बिहार की एक लेखिका ने भी जितेंद्र पात्रो की इस मंशा और मक़सद पर पानी फेरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अब अलग बात है उक्त लेखिका के आशीर्वाद से ही जितेंद्र पात्रो भस्मासुर बन गया। पर अच्छा है कि समय रहते ही उन्हों ने जितेंद्र पात्रो के भस्मासुर रुप को पहचान लिया और उस की शिनाख़्त कर उसे उस की औक़ात समझा दी है। अब उसे झटके पर झटके मिलते ही जा रहे हैं। निरंतर। सवाल है कि जितेंद्र पात्रो के भस्मासुर को खाद-पानी कैसे मिला ? किस ने दिया ?

असल में  पारंपरिक और पुराने प्रकाशकों की हेकड़ी और तानाशाही से परेशान लेखकों के लिए दो साल पहले प्रलेक प्रकाशन जैसे हवा का ताज़ा झोंका बन कर उपस्थित हुआ। छपास के मारे लेखकों को जैसे सांस मिल गई। प्रलेक प्रकाशन ने सहसा उन्हें एक बड़ा स्पेस दे दिया था। तिस पर जितेंद्र पात्रो की ओढ़ी हुई विनम्रता। पर दुनिया को सीख और दृष्टि देने का दावा करने वाले लेखकों को यह नहीं दिखा कि प्रलेक प्रकाशन का जितेंद्र पात्रो राम के वेश में रावण है। जितेंद्र पात्रो की ओढ़ी हुई विनम्रता में लेकिन लोग लुढ़क गए तो लुढ़कते चले गए। साल भर में ही पता चल गया लेखकों को कि वह आसमान से गिर कर खजूर में लटक गए हैं। पर जिस भी लेखक ने इस खजूर से छुट्टी पाने की हसरत पाली और कोशिश की वह जितेंद्र पात्रो की धमकी , लीगल नोटिस और मानहानि की नोटिस पाने लगे। लोग डरने लगे। चुप्पी साधने लगे। लोकलाज में फंस गए। अभी भी फंसे हुए हैं इस लोकलाज में। और चुप्पी तथा यातना के संधि-पत्र पर दस्तख़त पर दस्तख़त किए जा रहे हैं। कहीं मौखिक तो कहीं लिखित। प्रलेक प्रकाशन के जितेंद्र पात्रो की धमकियों से , लीगल नोटिसों से डरने वाले लेखकों की संख्या बेहिसाब है। और लोगों के लिए मजलूमों के लिए लड़ने का दावा करने वाले लेखकों की कायरता के भी क्या कहने। 

जितेंद्र पात्रो कब किस पर क्या आरोप लगा दे , वह ख़ुद भी नहीं जानता। मुर्गी मार कर अंडा खाने के तलबगार जितेंद्र पात्रो पर ऐसा कोई सगा नहीं , जिस को हम ने ठगा नहीं ! वाली कहावत भी फेवीकोल की तरह चिपक गई है। बिलो द बेल्ट आरोप लगाने का उस का शग़ल सनक की हद तक है। समंदर पार के एक एक लेखक तो यहां तक कहते हैं कि वह मेंटली सिक है। जैसे बीते बीस मई को जितेंद्र पात्रो ने अपनी इसी सनक के तहत मुझ पर ही आरोप लगा दिया कि मैं ने उस की पत्नी को अश्लील संदेश भेजा। और 112 नंबर की पुलिस ले कर आधी रात मेरे घर आ गया। उक्त अश्लील संदेश क्या है और कहां है , वह आज तक नहीं बता सका। न दिखा सका। एक समय था कि मुझे पिता तुल्य कहते नहीं अघाता था। और ऐसा घिनौना आरोप लगा बैठा। अब अलग बात है कि खुद ही धर लिया गया और 30 घंटे लखनऊ के हज़रतगंज थाने के लॉकअप में बंद रहा। माफ़ीनामा लिख कर छूटा। पुलिस वाले मुझ से तहरीर मांगते रहे कि लिख कर दे दीजिए तो मुक़दमा लिख कर इसे जेल भेज दिया जाए। पर मैं ने कुछ भी लिख कर देने से इंकार कर दिया। मैं ने कहा , इस ने जो किया वह जाने। मुझे कुछ नहीं करना। अब वह अपनी गिरफ़्तारी और माफ़ीनामे से पल्ला झाड़ रहा है। वह नहीं जानता कि उस की गिरफ़्तारी की वीडियो क्लिपिंग , थाने की वीडियो क्लिपिंग भी है। कि कैसे उसे पुलिस घसीट कर ले जा रही है। जब ज़रुरत पड़ेगी , सब सामने रख दूंगा। कहीं मुंह दिखाने लायक़ नहीं रहेगा। मैं ने तो कई बार चुनौती दी है कि अपनी राइटिंग में लिख कर कुछ भी दो लाइन लिख कर सार्वजनिक कर दे कि मेरी राइटिंग यह है , यह नहीं। या फिर कोर्ट में चैलेंज कर दे। पर नहीं। वनली हेकड़ी। 

अब उस के बिलो द बेल्ट जाने का ताज़ा मामला यह है कि एक लेखिका के लिए जितेंद्र पात्रो कहता फिर रहा है कि उस की बेटी मेरी गर्ल फ्रेंड है। वह क्या कर लेगी मेरा। सोचिए कि जितेंद्र पात्रो इस लेखिका को दीदी-दीदी कहता रहा है। दीदी कहने का भी मान नहीं रख पाया। और जब देखिए तब किसी न किसी को मानहानि की नोटिस देता रहता है। मई के पहले हफ्ते में मुझे भी पचास लाख रुपए की एक लीगल नोटिस भेज दी थी कि आप ने मेरी मानहानि की है। मैं ने उक्त नोटिस अपने वकील मित्रों को दिखाया। लीगल नोटिस देखते ही मित्र लोग हंसे। बोले , इस के वकील को एक तो अंगरेजी ही नहीं आती। बहुत भ्रष्ट है इस के वकील की अंगरेजी। दूसरे पचास लाख की मानहानि का मुक़दमा क़ायम करने के लिए पांच लाख रुपए कोर्ट में पहले ही जमा करना होगा जितेंद्र पात्रो को। जमा करने दीजिए उसे पांच लाख रुपए। करने दीजिए उसे मुक़दमा। लड़ लिया जाएगा। मुझे भी हंसी आ गई। हंसी इस लिए आ गई कि जो आदमी अपने बच्चों की फीस भरने के नाम पर खुद को कैंसर मरीज बता कर , शुगर की रिपोर्ट को कैंसर की रिपोर्ट बता कर , किसी लेखक को भाउक बना कर रुपए ऐंठता फिरता हो , वह क्या खा कर कोर्ट में पांच लाख रुपए जमा करेगा। कहां से और कैसे बल्कि क्यों करेगा ? करे तो मजा आए। सो कोई जवाब नहीं दिया इस डिफाल्टर की लीगल नोटिस का। जो करना हो कर ले। 

सोचिए कि प्रलेक प्रकाशन का मुख्यालय है मुंबई में। पर प्रलेक प्रकाशन की लीगल टीम की चीफ़ रहती हैं पटना में। और लीगल नोटिस देते हैं दिल्ली के वकील। यह वकील भी बारी-बारी बदलते रहते हैं। बाक़ी जितेंद्र पात्रो का क्या है , वह तो किसी लेखक को मेल भेज कर भी चेतावनी और धमकी देते हुए चौबीस घंटे में दो करोड़ रुपए की मांग कर सकते हैं। किया ही है। मनो प्रकाशक न हो कोई माफ़िया हो। दाऊद इब्राहिम हो कि लाओ नहीं , मार डालेंगे। अच्छा जितेंद्र पात्रो की लीगल टीम का काम कौन देखती हैं ? जितेंद्र पात्रो का कहना है ज्योति कुमारी। ऐसा एक ऑडियो में जितेंद्र पात्रो को कहते हुए सुना है। 

ज्योति कुमारी की याद है किसी को ?

अरे वही दस्तख़त वाली ज्योति कुमारी। अब भी नहीं याद आया ?

तो याद कीजिए राजेंद्र यादव की। हंस के संपादक राजेंद्र यादव की। राजेंद्र यादव की उस किताब की याद कीजिए। स्वस्थ व्यक्ति के बीमार विचार। स्वस्थ व्यक्ति के बीमार विचार की सहयोगी लेखिका हैं ज्योति कुमारी। कुछ दिनों तक ज्योति कुमारी राजेंद्र यादव की सहयोगी रही थीं। उन के साथ ही रहती भी थीं। स्वस्थ व्यक्ति के बीमार विचार किताब की ख्याति बढ़ी ही थी कि विवाद भी भारी शुरु हो गया। एक पत्रकार ने राजेंद्र यादव को इतना हड़काया , इतना धमकाया कि राजेंद्र यादव को किताब के कुछ हिस्से बदलने पड़े। फिर किताब के और हिस्सों को भी बदलने का दबाव राजेंद्र यादव पर पड़ा। उन में एक कमलेश जैन , एडवोकेट भी थीं। अभी यह विवाद थमा भी नहीं था कि ज्योति कुमारी ने राजेंद्र यादव और उन के ड्राइवर के खिलाफ दिल्ली के दरियागंज थाने में एफ आई आर लिखवा दिया। राजेंद्र यादव का ड्राइवर जेल भेज दिया गया। कुछ प्रतिष्ठित लोगों के पुलिस पर दबाव के कारण किसी तरह राजेंद्र यादव जेल जाने से बच गए। पर इस मामले का उन पर तनाव और दबाव इतना बढ़ा कि राजेंद्र यादव दुनिया से चले गए। ज्योति कुमारी ने राजेंद्र यादव और उन के ड्राइवर पर न्यूड वीडियो बनाने से लगायत कई बिलो द बेल्ट आरोप लगाए था। कहा गया था कि ज्योति कुमारी ऐसे आरोप और निजी संबंधों के दम पर हंस पर कब्जा करना चाहती थीं। अक्षर ट्रस्ट को हथियाना चाहती थीं। आदि-इत्यादि। वह तो सही समय पर राजेंद्र यादव की बेटी रचना यादव ने इस पूरे मामले में हस्तक्षेप किया और किसी सफल सर्जन की तरह ज्योति कुमारी को हंस , अक्षर ट्रस्ट और राजेंद्र यादव से काट कर किनारे कर दिया। ज्योति कुमारी जो शोला की तरह लपक रही थीं , राजेंद्र यादव के निधन के बाद लुप्त हो गईं।



ज्योति कुमारी इस के पहले भी एक बार ख़ूब चर्चा में आई थीं। उन का एक कहानी संग्रह राजकमल प्रकाशन छाप रहा था। दिल्ली के पुस्तक मेले में विमोचन आदि तय हो गया था। ऐन विमोचन के पहले ज्योति कुमारी ने उस अपने छपे हुए कहानी संग्रह को रिजेक्ट कर दिया। विमोचन में दो दिन शेष था। प्रकाशक ने ज्योति कुमारी के कहानी संग्रह का नाम बदल दिया था। ज्योति कुमारी ने इसे नाक का सवाल बना लिया। सो दो दिन में इसी कहानी संग्रह को वाणी प्रकाशन ने छाप दिया। पूर्व से निश्चित समय पर ही पुस्तक मेले में विमोचन हुआ। राजेंद्र यादव की उपस्थिति में नामवर सिंह ने विमोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता की। बतौर अध्यक्ष नामवर सिंह ने अपने भाषण में कहा कि दस्तख़्त पर मेरे दस्तख़त नहीं हैं। ज्योति कुमारी के कहानी-संग्रह दस्तख़त में भूमिका नामवर सिंह के नाम से छपी थी। और नामवर सिंह कह गए कि दस्तख़त पर उन के दस्तख़त नहीं हैं यानी भूमिका उन की लिखी हुई नहीं है। अफरा-तफरी मच गई। पर यह देखिए कि हफ़्ते भर में ही नामवर सिंह ने बयान दिया कि दस्तख़त में जो भूमिका है वह उन से बातचीत पर आधारित है। बात फिर भी ख़त्म नहीं हुई। 

पंद्रह दिन बाद नामवर सिंह ने कहा कि दस्तख़त में भूमिका उन्हीं की है जो उन्हों ने बोल कर लिखवाई है। क्यों कि जाड़ा बहुत पड़ रहा था। हाथ कांप रहे थे। सो लिख नहीं पा रहा था तो बोल कर लिखवाया। दिलचस्प यह कि बाद में दस्तख़त को बेस्ट सेलर भी बताया गया। समारोहपूर्वक। बहरहाल राजेंद्र यादव प्रसंग में तमाम सारे विवाद में लिपटी रहने के बाद ज्योति कुमारी राजेंद्र यादव के निधन के बाद दिल्ली छोड़ कर पटना रवाना हो गईं। और अब विवाद के नए नर्क जितेंद्र पात्रो की लीगल टीम लीडर बन कर उपस्थित हुई हैं। लखनऊ के हज़रतगंज थाने के लॉकअप से छुड़ाने में भी ज्योति कुमारी का नाम सामने आया है। जितेंद्र पात्रो खुद एक ऑडियो में कहते हुए सुने जा रहे हैं कि हमारी लीगल टीम की ज्योति कुमारी ने दो वकील थाने भेजे थे। बहरहाल जिस जितेंद्र पात्रो की हैसियत एक टाइपिस्ट रखने की भी न हो , जाने कितने टाइपिस्टों का पैसा दबा रखा हो , उस जितेंद्र पात्रो ने लीगल टीम में ज्योति कुमारी को रख लिया है। ज्योति कुमारी बहुत बधाई आप को। अब तो आप वाणी प्रकाशन , जिस ने आप के गाढ़े समय में आप का साथ दिया , उसे भी ठेंगा दिखाएंगी ही। है न ? जितेंद्र पात्रो जैसे कलंक का साथ देने में देखना दिलचस्प होगा कि इस काजल की कोठरी से निकलने के बाद आप क्या होंगी। राजेंद्र यादव के बाद आप को जितेंद्र पात्रो जैसा बिलो द बेल्ट आरोप लगाने वाला अधम और नीच आदमी ही मिला ? यह कैसी लाचारी है भला। ख़ैर , अब ज्योति कुमारी अपने परिचय में सोशल एक्टिविस्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकील बताती हैं। लिव इन में रहने वालों की पैरोकार बताती हैं खुद को। मेरा भी दो-चार बार का संवाद है ज्योति कुमारी से। 

ख़ैर , बताइए कि जिस की दो कौड़ी की भी हैसियत न हो , कोई सम्मान न हो , मान या सम्मान शब्द से भी परिचित न हो , उस की दिन भर में कम से कम दस-बीस बार मानहानि हो जाती है। अच्छा जो इस व्यक्ति का किसी किस्म का मान होता तो क्या होता भला ! यूक्रेन में रहने वाले एक लेखक राकेश शंकर भारती को मेल लिख कर जितेंद्र पात्रो ने कहा कि आप ने मेरी मानहानि की है। चौबीस घंटे में मुझे दो करोड़ रुपए दीजिए। फिर लीगल नोटिस दे दी। दिल्ली में एक लेखक ने दो साल पहले जितेंद्र पात्रो को 30 हज़ार रुपए और किताब की टाइप प्रति दी छापने के लिए। पैसा पाने के बाद जितेंद्र पात्रो ने उस लेखक का फ़ोन उठाना बंद कर दिया। संदेश का जवाब देना भी बंद कर दिया। दो साल बाद इस लेखक ने जितेंद्र पात्रो को संदेश भेजा कि मैं अपनी किताब वापस ले रहा हूं। अनुबंध रद्द कर रहा हूं। जितेंद्र पात्रो ने लेखक से कहा कि अगर किताब वापस लेंगे तो आप को मुझे पांच लाख रुपया हर्जाना देना होगा। क्यों कि आप की किताब पर मैं ने लाखो रुपए खर्च कर दिए हैं। तब जब कि जितेंद्र ने एक भी पैसे उस किताब पर नहीं खर्च किया था। पर उक्त लेखक महोदय पांच लाख रुपए हर्जाने की घुड़की से डर गए। ऐसे हर्जाने की धमकी पा कर डरे हुए कम से कम दो दर्जन से अधिक लेखक मेरे संपर्क में हैं। मंज़र यह है कि लेखक किताब खुद टाइप करवा कर देता है। प्रूफ़ भी पढ़ता है। लेकिन सिर्फ़ फ़ॉन्ट कनवर्ट करवाने में जितेंद्र पात्रो के लाखो रुपए खर्च हो जाते हैं। गज़ब भी है यह और अजब भी। तब और जब डिजिटल प्रिंटर के मार्फ़त 10 से 5 किताब ही छापनी है। जो किताब न मिली हो , उसे भी अपनी पुस्तक सूची में छाप देना है। और इस तरह बीच कोरोना में डेढ़ साल में ही चार सौ किताब छापने की ढोल भी पुस्तक सूची छाप कर बजा देनी है। 

झारखंड में शिक्षा विभाग में एक अधिकारी की एक किताब जितेंद्र पात्रो ने छापी। इस मक़सद से कि वह शिक्षा विभाग में अपनी किताब के साथ प्रलेक प्रकाशन की अन्य किताबें भी बिकवा देंगे। उक्त अधिकारी को लेखकीय प्रतियां दीं। किताब का विमोचन हुआ धूमधाम से। उक्त अधिकारी ने अपनी किताब की 50 प्रतियां और मांगी। इधर-उधर कर के जितेंद्र पात्रो ने उक्त अधिकारी को 50 किताबें दे दीं। फिर किताबें बिकवाने के लिए दबाव डालने लगे। उक्त अधिकारी ने कोई भी किताब बिकवाने से मना कर दिया। अब जितेंद्र पात्रो ने उक्त अधिकारी को 50 किताबों का बिल भेजा। अधिकारी ने एक भी पैसा देने से इंकार कर दिया। उलटे रायल्टी मांग ली। अब जितेंद्र पात्रो ने उक्त अधिकारी को धमकी दी। धमकी दी कि झारखंड के शिक्षा मंत्री से यह-यह शिकायत कर दूंगा। पर अन्य लेखकों की तरह उक्त अधिकारी जितेंद्र पात्रो की धमकी से नहीं डरा। कहा कि शिक्षा मंत्री से हफ्ते में दो-तीन बार मेरी ख़ुद बात होती है। तुम क्या मेरी शिकायत करोगे , मैं ही तुम्हारी शिकायत किए देता हूं। जितेंद्र पात्रो अपनी धमकी ले कर दुम दबा कर निकल लिए। 

हिमाचल प्रदेश की एक लेखिका हैं। उनका उपन्यास दो साल पहले छापने के लिए जितेंद्र पात्रो ने लिया। बहुत पीछे पड़ने पर तीन महीने पहले उपन्यास छापा। पांच लेखकीय प्रतियां दीं और लेखिका पर किताब ख़रीदने का दबाव बना दिया। अंतत: लेखिका ने साढ़े सात हज़ार रुपए जितेंद्र पात्रो को भेज दिए। डेढ़ सौ पृष्ठ के इस उपन्यास का मूल्य रखा है दो सौ रुपए। बीस प्रतिशत डिस्काउंट दे कर कुल बाइस प्रतियां भेजीं। लेखिका का कहना है कि यह सारी प्रतियां मेरे किसी काम की नहीं हैं। क्यों कि इस में हर पृष्ठ पर प्रूफ की पचास गलतियां हैं। किस को यह किताब दिखाऊं , जब मैं खुद ही इसे नहीं देखना चाहती। इस बीच इस लेखिका का कहानी संग्रह भी दिल्ली के एक प्रकाशक ने छाप दिया है। लेखिका  का कहना है , अभी तो मैं कहानी संग्रह पर ही फोकस करना चाहती हूं। इस उपन्यास को बुरे सपने की तरह भूल जाना चाहती हूं। पर जल्दी ही किसी और प्रकाशक से इसे छपवाऊंगी। ऐसी जाने कितनी लेखिकाएं हैं जो जितेंद्र पात्रो के जाल में फंसी पड़ी हैं। रायपुर की उर्मिला शुक्ल ऐसी ही लेखिका हैं। जिन्हें जितेंद्र पात्रो दो साल से छकाते रहे। न किताब छाप रहे थे , न फ़ोन उठाते थे  , न संदेश या मेल का जवाब देते थे। अब बहुत दबाव के बाद इस हफ़्ते पांच किताब भेजी है। 

ऐसे बहुत से लेखक हैं जो जितेंद्र पात्रो से एकतरफा अनुबंध कर के , पैसा दे कर फंसे हुए हैं। कुछ कहने पर लाखो रुपए की मानहानि और हर्जाने की मांग कर देते हैं जितेंद्र पात्रो। बहुत से लेखक यह तो चाहते हैं कि उन की बात मैं सब के सामने रखूं और कि उन की लड़ाई लड़ूं। पर वह यह नहीं चाहते कि उन का नाम सार्वजनिक हो। वह सामने आएं। सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे की तर्ज पर यह लेखक लोग और आगे जा कर जितेंद्र पात्रो रुपी सांप को मार देना चाहते हैं और चाहते हैं कि उन की लाठी भी नहीं दिखे। अब क्या करें ऐसे कायर और डरपोक लेखकों का। 

ऐसे डरपोक और कायर लेखकों को एक महत्वपूर्ण बात बता देना चाहता हूं। वह यह कि अगर आप ने जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन से किसी कारणवश अनुबंध कर लिया है तो उसे सिर्फ़ एक मेल या वाट्स अप संदेश भेज कर निरस्त कर सकते हैं। अगर आप के पास अनुबंध की जितेंद्र पात्रो या प्रलेक प्रकाशन द्वारा हस्ताक्षरित प्रति है या नहीं भी है तो भी। आप ने किसी कारण या अपनी ख़ुशी से भी अनुबंध किया है और कि किताब छपी है या नहीं छपी है , कोई तार्किक आधार बता कर या अपनी असहमति जता कर भी उस अनुबंध को निरस्त कर सकते हैं। रचना आप की है। स्वामित्व आप का है। आप के मना कर देने के बाद वह अनुबंध सिर्फ़ काग़ज़ का एक रद्दी टुकड़ा है। और कुछ नहीं। यहां तक कि कोई भी अनुबंध सौ , पांच सौ या दस रुपए के स्टैंप पर भी अगर है और रजिस्ट्री आफिस में अगर वह अनुबंध रजिस्टर्ड नहीं है तो उस की कोई क़ानूनी वैधता नहीं है। सिर्फ़ काग़ज़ का रद्दी टुकड़ा है। 

कोई भी जितेंद्र पात्रो कभी भी किसी भी अनुबंध को अगर रजिस्ट्री आफिस में रजिस्टर्ड नहीं है तो किसी भी अदालत में प्रस्तुत कर आप के ख़िलाफ़ एक पैसे की भी कार्रवाई नहीं कर सकता। क़ानूनी स्थिति यही है। न आप को कोई हर्जाना देने की ज़रुरत है न किसी की मानहानि की नोटिस से डरने की ज़रुरत है। बाक़ी आप का अपना विवेक है। इतना ही नहीं अगर आप ने जितेंद्र पात्रो को थ्रू बैंक पैसा दिया है , अकाउंट में डाल दिया हो , चेक या ड्राफ्ट से दिया हो , उसे भी क़ानूनी रुप से वापस लेने का आप का अधिकार है। जितेंद्र पात्रो आप को वापस देगा। उस का बाप भी देगा। बाध्य हो कर देगा। कोई दिक़्क़त हो तो मुझे बताइए। आप का पैसा वापस करवा दूंगा। एक बात और जान लीजिए कि कोई भी बिना रजिस्टर्ड अनुबंध सिर्फ़ एक जेंटिलमैन प्रॉमिज है। और कुछ नहीं। क़ानूनी वैधता उस की एक पैसे की नहीं है। आप को नहीं सूट करता तो आप जब चाहें वह अनुबंध तोड़ दीजिए। कोई कुछ नहीं कर सकता आप का। 

फिर जेंटिल मेन प्रॉमिज जेंटिल आदमी से निभाया जाता है। धूर्त और कमीने आदमी से नहीं। आप जानते ही हैं कि कोई ताला शरीफ़ आदमी के लिए होता है , किसी चोर के लिए नहीं। बाक़ी शेक्सपीयर का मर्चेंट आफ वेनिस तो पढ़ा ही होगा। नहीं पढ़ा है तो खोज कर पढ़ लीजिए। कानूनी बारीकियां समझ लीजिए। बहुत आसान है। जितेंद्र पात्रो को उसी के छल-छंद से मारिए। आप भी जितेंद्र पात्रो को लीगल नोटिस दीजिए। जितनी चाहिए , उतनी दीजिए। पागल हो जाएगा। साल-दो साल में वह प्रकाशन जगत से ऐसे भाग जाएगा , जैसे गधे के सिर से सींग। यक़ीन न हो तो यह लिख कर रख लीजिए। प्रकाशन जगत की भी कुछ मूल्य , सिद्धांत , मान्यता , नैतिकता और शुचिता होती है। लेकिन ऐसे किसी भी शब्द से जितेंद्र पात्रो और उस का प्रलेक प्रकाशन परिचित नहीं है। जितेंद्र पात्रो की जितनी उम्र है , उस से डेढ़ गुनी से ज़्यादा मेरी प्रकाशित पुस्तकें हैं। और अभी तक किसी भी प्रकाशक से कभी कोई अप्रिय स्थति नहीं आई। सब से मधुर संबंध हैं। सिवाय प्रलेक प्रकाशन और जितेंद्र पात्रो के। लेखक मित्रो , जितेंद्र पात्रो के प्रकाशन व्यवसाय का सच समझिए। समझिए कि आप की किताब प्रलेक प्रकाशन से छप कर कुछ महीनों में ही विलुप्त हो जाती है। किसी किताब की दुकान , किसी लाइब्रेरी में नहीं दिखती। ले-दे कर ह्फ़्ता-दस दिन अमेज़न पर दिखती है। फिर स्टॉक खत्म हो जाता है। साल भर से यही खेल देख रहा हूं। मेरी किताबों का भी यही हश्र हुआ है। 

सो राम के वेश में रावण को पहचानिए। आप के घर आते-जाते , आप से फ़ोन पर बतियाते हुए जाने कब कह दे कि आप की बेटी , बीवी या बहन उस की गर्ल फ्रेंड है। तब आप क्या करेंगे ? क्या इस बात को ले कर उस से लड़ेंगे ? हरगिज नहीं। चुप ही रहना पसंद करेंगे। कोई भी शरीफ़ शहरी यही करेगा। कीचड़ में पत्थर नहीं मारेगा। पर वह तो आप के घर पुलिस ले कर आधी रात आ जाएगा। क्या तो आप ने उस की पत्नी को अश्लील संदेश भेजा है। जैसे मेरे घर आ गया था। मेरे साथ तो उस का दांव उलटा पड़ गया। ख़ुद 30 घंटे हवालात में बंद रहा। रात भर और दूसरे दिन सब को मेसेज भेजता रहा। फोन करता रहा कि हज़रतगंज थाने में बैठा हूं। छुड़ा लीजिए। लेकिन किसी दीदी , किसी सर ने उस की सुधि नहीं ली। न फोन उठाया , न संदेश का जवाब दिया। न कोई थाने मिलने गया। दूसरे दिन माफ़ीनामा लिख कर एक लोकल आदमी की गारंटी पर छूटा। तब जब कि बीते महीने जितेंद्र पात्रो ने लखनऊ के कमिश्नर की पत्नी की कविता की किताब छापी है। और भी कई लोगों की किताब छापी है। पर क्यों नहीं गया कोई उस से मिलने ? जितेंद्र पात्रो से ज़रुर पूछा जाना चाहिए। 

पर अगर ऐसे ही अगर वह किसी आधी रात आप के घर पहुंच गया तो ? कहता घूमेगा कि आप की बेटी उस की गर्ल फ्रेंड है। जैसे कि एक लेखिका की बेटी के लिए वह कहता फिर रहा है। तब ? तब क्या करेंगे आप ? अच्छा जब वह कह देगा कि आप आधी रात उसे अपनी पत्नी की फ़ोटो भेजते हैं। तब ? जैसे कि एक लेखक राकेश शंकर भारती पर उस ने यह नीच आरोप लगाया है। जितेंद्र पात्रो ने तो दिल्ली की एक लेखिका से अपनी पत्नी के बारे में भी तमाम ऊल-जुलूल बातें की हैं। जो आदमी अपनी पत्नी को भी नहीं बख्शता , उस का क्या कर लेंगे। उन युवा लेखिकाओं से पूछिए जिन को रात-रात भर चैट कर के परेशान करता है। और किताब छपवाने के लिए वह इसे बर्दाश्त कर लेती हैं। लेकिन अब वह लेखिकाएं भी जाग गई हैं। आप भी जाग जाइए। जाग जाइए तो बेहतर। बाक़ी आप लेखक हैं ही। अहो रूपं अहो ध्वनि: में व्यस्त और न्यस्त रहिए। मैं ने तो जितेंद्र पात्रो की पैंट उतार कर उस के हाथ में थमा दी है। अब वह चाहे तो उसे ख़ुद पहन ले। नहीं कच्छा उतरने में देर नहीं लगेगी। आगे वह जाने।अपनी आप जानिए। 


कृपया इस लिंक को भी पढ़ें :


1 . कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर को ले कर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की झांसा कथा का जायजा 

2 .  प्रलेक के प्रताप का जखीरा और कीड़ों की तरह रेंगते रीढ़हीन लेखकों का कोर्निश बजाना देखिए 

3 . जितेंद्र पात्रो , प्रलेक प्रकाशन और उन का फ्राड पुराण 

4 . योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि पर बट्टा लगा रही है

5 . तो जितेंद्र पात्रो अब साइबर सेल के मार्फ़त पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे

6 . लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है , पैंट गीली हो जाती है , यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है

7 . जितेंद्र पात्रो , ज्योति कुमारी और लीगल नोटिस की गीदड़ भभकी का काला खेल 

8 . माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब शची मिश्र की चुनौती , अनुबंध रद्द कर सभी किताबें वापस ले लीं 

9 . कुंठा , जहालत और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है

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