Monday, 13 June 2022

भ्रष्ट न्यायपालिका की अकर्मण्यता के कारण बुलडोजर राज ज़रुरी है

दयानंद पांडेय 

न्यायपालिका अगर भ्रष्ट न होती , लाचार न होती , हर मामले को दो-दो पीढ़ी तक तारीख़ दर तारीख़ पर न लटकाती तो न पुलिस एनकाउंटर करती न योगी का बुलडोजर राज आया होता। कृपया मुझे यह कहने की अनुमति दीजिए कि यह दंगाई , यह अपराधी , यह भ्रष्टाचारी , यह आतंकी , पत्थरबाज आदि जितने भी समाज विरोधी लोग हैं आलसी और और भ्रष्ट न्यायपालिका की देन हैं। न्यायपालिका उलटे इन्हें सेलिब्रेटी बना देती है। एक नहीं सैकड़ो उदाहरण सामने हैं। 

न्यायपालिका अगर ईमानदार और तेज़ रफ़्तार होती तो यह मुख़्तार अंसारी , अतीक अहमद , आज़म ख़ान , डी पी यादव , हरिशंकर तिवारी जैसे नामों से हम लोग परिचित भी न होते। ऐसे नाम उभरते ही अगर न्यायपालिका इन को कुचल देती , समय रहते ही सज़ा दे देती तो हमारा समाज अपराध मुक्त होता। ठीक वैसे ही जैसे नितिन गडकरी जैसा सक्षम मंत्री आते ही हमारी सड़कें न सिर्फ गड्ढामुक्त हो गईं हैं बल्कि शानदार और चमचमाती हुई हो गई हैं। जब की हमारी न्यायपालिका अभी भी गड्ढायुक्त हैं। लक्ष्मी पूजा में व्यस्त हैं। सिर्फ अड़ंगेबाजी और अपराधियों को मुक्त करने के लिए परिचित हैं। वह एक शेर है न :

जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,

सज़ा न दे के अदालत बिगाड़ देती हैं।

न्यायपालिका के भरोसे अगर पंजाब को छोड़ा गया होता तो अब तक पंजाब को हम खालिस्तान के रुप में जान रहे होते। वह तो देश और पंजाब का सौभाग्य था कि हमारे पास एक के पी एस गिल था। जिस ने साफ़ कहा कि नो अरेस्ट , नो सुनवाई ! तुरंत फ़ैसला ! और आतंकवादियों को देखते ही निपटा देने का फरमान जारी कर दिया। पंजाब से आतंक का ख़ात्मा हो गया। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी ने भी अपराधियों और पत्थरबाजों पर बुलडोजर चला कर के पी एस गिल की याद दिला दी है। 

आलसी , अड़ंगेबाज़ और भ्रष्ट न्यायपालिका के भरोसे आतंकवादियों , अपराधियों को कभी नेस्तनाबूद नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका ने यह बात बारंबार सिद्ध किया है। सिद्ध करती रहेगी। तय मानिए कि कानपुर का विकास दुबे अगर न्यायपालिका के हिस्से आया होता तो बहुत मुमकिन है ज़मानत पा कर चुनाव लड़ कर किसी सदन की शोभा बन कर इतरा रहा होता। तो चाहे कानपुर हो , प्रयाग या सहारनपुर आदि हर कहीं बुलडोजर राज न्यायोचित है , तुरंत परिणाम देने वाली भी। फिर जिन पर बुलडोजर चल रहा है , उन के खिलाफ तमाम साक्ष्य हैं। सी सी कैमरा से लगायत वाट्सअप चैट वगैरह। 

नहीं याद कीजिए कि असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने साफ़ कहा था कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो तो सौ करोड़ पर हमारे पंद्रह करोड़ भारी पड़ेंगे। अकबरुद्दीन ओवैसी के भाषण का यह वीडियो आज भी यू ट्यूब और अन्य माध्यम पर उपस्थित है। लेकिन वर्षों इस बाबत मुकदमा चला कर सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में अकबरुद्दीन ओवैसी को बाइज़्ज़त बरी कर दिया है बीते दिनों। क्या करेंगे ऐसी न्यायपालिका का आप। अचार ही डाल सकते हैं। आप ही बताएं कि दिल्ली के जहांगीरपुरी में नगर निगम द्वारा अतिक्रमण हटाने पर सुप्रीम कोर्ट को स्टे देना चाहिए था क्या ? न्यायपालिका अपनी प्रासंगिकता ख़ुद ही ख़त्म करती जा रही है। तो बुलडोजर राज नहीं आएगा तो क्या इन पत्थरबाजों पर आकाश से फूल बरसाया जाएगा ?


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