दयानंद पांडेय
हिटलर का मंत्री नाजी जर्मनी का मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा डॉ जोसेफ गोएबल्स भी आप से पानी मांगे। पर ग़नीमत है कि आप जैसे कांग्रेस-कम्युनिस्ट के टूल्स को भी लोग जान चुके हैं। सो आप या आप जैसे मित्र तमाम मेहनत के बावजूद सफल नहीं हो पा रहे। जब कि तमाम स्टार्ट अप सफल हो चुके हैं। बाक़ी जॉन अब्दुलाह हों या कोई अंसारी , सिद्दीक़ी या कोई ख़ान बहादुर उन सब की छाती पर सांप डोल ही रहा है। अभी बहुत समय तक डोलता रहेगा।
जॉन अब्दुलाह हों या आप , आप जैसे लोगों को कहानी लिखने का और अभ्यास करना चाहिए। कहानी लिखने आप लोगों को अभी नहीं आती। मोदी की स्टोरी टेलिंग से बहुत पीछे हैं आप लोग। कोसों पीछे। इसी लिए आप के आई टी सेल वालों को छोड़ कर किसी के गले यह नहीं उतरती। उतरती होती तो 2024 कांग्रेस के लिए आक्सीजन ले कर आता हुआ दिखता। लेकिन अफ़सोस कि दिख नहीं रहा। मोदी से नहीं , न सही , कभी लोहिया या रजनीश से कहानी लिखना और कहना सीखने की कोशिश कीजिए।
गोएबल्स का सलीक़ा और तरीक़ा दोनों ही अब बासी हो चला है। बेअसर भी। अफ़वाह के ट्रिक से अब दुनिया नहीं चलती। न कोई व्यवसाय। अर्थ जगत की भी बहुत समझ नहीं है आप जैसे आज के गोएबल्स लोगों को। नितांत अपरिचित हैं अर्थ जगत के नए औज़ारों और पहियों से आप लोग। विज्ञापन की कसरतें भी अब बहुत बदल गई हैं। हां , आप जैसे आई टी सेल वाले अभी भी आठ साल वाले पुराने ढर्रे पर ठस हो कर बैठे हैं। कटहल और बड़हल का फ़र्क़ बूझिए मालवीय जी। फिर आप तो गिरीश भी हैं। नहीं जानते तो अब से जानिए कि गिरीश भी शंकर जी का ही एक नाम है। वही शंकर जी जो काशी के ज्ञानवापी में मिले हैं। पर गिरीश नाम उन का इस लिए है कि वह हिमालय पर्वत में निवास करते थे। तो गिरीश मतलब पर्वत का स्वामी भी होता है। तो कुछ अपने नाम का भी सम्मान रखिए। फुटकरियों की तरह इतनी रेजगारी आप रोज उछालते रहते हैं पर आप की बात बनती नहीं। सधती नहीं।
क्यों ?
क्यों कि आप सर्वदा अपनी मित्र मंडली और अपने से सहमत होने वाले लोगों के लिए लिखते हैं। दूसरे अर्थों में अपनी विचारधारा से जुड़े लोगों के लिए ही लिखते हैं। अरे कुछ ऐसा लिखिए कभी कि आप से असहमत लोग भी आप के लिखे पर वाह कर के जाएं। आप की विचारधारा से सहमत हो जाएं। तब आप के मेहनत की सार्थकता है। बाक़ी रोज-रोज पानी पीटते रहना ही आप का शग़ल है और आप को लगता है कि आप के ऐसा ही लिखने से भाजपा की दुनिया तबाह हो जाएगी तो आप की इस मनोकामना को शुभकामना।
पर बीते आठ सालों में कांग्रेस और कम्युनिस्टों का सिर्फ़ और सिर्फ़ नुकसान हुआ है। उलटे भाजपा का शुभ ही शुभ हुआ है। तो दिन-रात आप के पानी पीटने का परिणाम अगर यही है तो अपने लिखे की पड़ताल ज़रुर आप को करनी चाहिए। कांग्रेस-कम्युनिस्ट की हस्ती दिन-ब-दिन मिटाने में आप जैसे मित्रों का लगातार गोएबल्स की तरह लिखते रहना भी एक बड़ा फैक्टर है। दिन को रात अब कौन मानता है। ऐसा नेहरु युग में हो जाता था। इंदिरा युग में हो जाता था। इमरजेंसी में तो पूरमपूर हो जाता था। अब मोदी युग में नहीं हो पाता। नेहरु-इंदिरा युग की एक कविता है :
राजा बोला—
‘रात है’
मंत्री बोला—‘रात है’
एक-एक कर फिर सभासदों की बारी आई
उबासी किसी ने, किसी ने ली अँगड़ाई
इसने, उसने—देखा-देखी फिर सबने बोला—
‘रात है...’
यह सुबह-सुबह की बात है...
लेकिन अब तो जिन को आप जैसे लोग भक्त कह कर दिन-रात गरियाते हुए अपने कलेजे को ठंडक पहुंचाते रहते हैं , वह भक्त भी अगर उन की राय में मोदी-योगी कुछ ग़लत कर बैठते हैं तो यह भक्त ही मोदी-योगी पर राशन-पानी ले कर चढ़ बैठते हैं। वह चाहे सी ए ए के ख़िलाफ़ खड़े शाहीन बाग़ को क़िला बनने देना हो , कृषि बिल की वापसी हो या अभी-अभी नूपुर शर्मा का निलंबन हो। या ऐसे और भी अनेक मामले हैं। यह भक्त लोग राजा के सुर में सुर मिलाने के बजाय दिन को दिन और रात को रात कहने के तलबगार हैं। ग़लत को ग़लत , सही को सही , दूध को दूध और पानी को पानी कहने में क्षण भर की भी देरी नहीं करते। राजा की हां में हां नहीं मिलाते। आप जैसे मित्रों की तरह यह भक्त पार्टी लाइन का इंतज़ार नहीं करते। जानते हैं क्यों ? कृष्ण बिहारी नूर का एक शेर याद आता है :
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे
झूट की कोई इंतिहा ही नहीं।
दुर्भाग्य से आप जैसे कुछ मित्र लोग झूठ की इसी इंतिहा को अपनी मंज़िल मान बैठे हैं।
[ एक मित्र की पोस्ट पर मेरा प्रतिवाद ]
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