Wednesday, 9 March 2022

चाहता हूं रुस और यूक्रेन के बीच शांति लिखूं


ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

मनुष्यता के नाम सारी दुनिया को पाती लिखूं 
चाहता हूं रुस और यूक्रेन के बीच शांति लिखूं 

बारुद की गंध शिशुओं की सांस में धंसे नहीं 
मां के दूध की सुगंध ही शिशु की थाती लिखूं 

जैसे मिलते हैं सुगंध और सुमन बिना युद्ध के 
युद्ध बंद कर कभी बेला , कभी रातरानी लिखूं 

सुबह सूरज उगे और ख़बरों में मिले ख़ुशी
दिन गुज़रे प्यार में , घर लौटूं संझवाती लिखूं 

रात सुनूं राग मालकोश भोर भैरवी गाते उठूं 
ज़ुल्फ़ों में छुप फागुनी रात को मदमाती लिखूं 

विवाद सारे संवाद से सुलटें जैसे ज़ुल्फ़ें संवरती हैं 
मनुष्यता के नाम शांति की गर्वीली प्रणामी लिखूं 

प्यार की ओस में भीग कर प्रेम का गायक बनूं 
युद्ध नहीं मनुष्यता के प्यास का अनुगामी लिखूं 

बहूं मोस्कवा नदी के जल में किसी बांसुरी की धुन में 
संतूर की मीठी तान में सन कर शाम सुहानी लिखूं 

मिसाइलें नहीं सुनहरे सपने दिखें आकाश में 
नदी में ऐसी कोई सपनों की नाव आती लिखूं 


[ 9 मार्च , 2022 ]

1 comment:

  1. आमीन! कितने सुंदर ख़्वाब हैं और कितनी कटु असलियत

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