Thursday 3 March 2022

जंगल राज की फिर ग़लती से भी वापसी न हो , इस लिए ऐसा मुसलसल लिख रहा हूं

दयानंद पांडेय 

बहुतेरे मित्र मुझ पर इन दिनों तोहमत लगाते मिलते हैं कि मैं लगातार भाजपा के पक्ष में लिख रहा हूं। सच यह नहीं है। सच यह है कि उत्तर प्रदेश में जंगल राज की फिर ग़लती से भी वापसी न हो , इस बाबत लोगों को निरंतर सतर्क करने के लिए ऐसा मुसलसल लिख रहा हूं। बिना किसी लोभ , लालच और पूर्वाग्रह के। सपा का जंगल राज भले आप को अच्छा लगता रहा हो , मुझे कभी अच्छा नहीं लगा। मनुष्यता और स्त्री विरोधी लगा। किसी शरीफ़ आदमी का सम्मान से सीना तान कर चलना मुहाल था अखिलेश राज में। पुलिस तक सुरक्षित नहीं थी। 

सी ओ स्तर के पुलिस अफ़सर को सपाई गुंडों द्वारा जीप की बोनट पर बांध कर घुमाते हुए लखनऊ ने  सरेशाम देखा है। वह भी हज़रतगंज जैसे मुख्य इलाक़े में। सपाई गुंडे सी ओ को बोनट पर बांधे हुए एस एस पी रेजिडेंस में पहुंच गए थे तब। कुंडा में डिप्टी एस पी जिया उल हक की हत्या लोग भूले नहीं हैं। गाज़ियाबाद में आई ए एस अफ़सर दुर्गा शक्ति नागपाल के साथ सपाइयों की हिंसा भी कौन भूल सकता है। अखिलेश यादव के जूते के पास उंकड़ू बैठे आई जी स्तर के अफ़सर की फ़ोटो अभी भी मन में टंगी हुई है। मुख़्तार अंसारी द्वारा लखनऊ जेल में ताज़ी मछली खाने के लिए तालाब खुदवा लेना किसी से छुपा था क्या। गाज़ीपुर जेल में डी एम और एस पी मुख़्तार अंसारी के साथ बैडमिंटन खेलने क्या ख़ुशी-ख़ुशी जाते थे ? किस के आदेश पर जाते थे ? लोग जानते हैं। जहां देखिए , वहां गुंडई। स्त्रियों का सड़क पर चलना कितना कठिन था ? घर से भी लोग उठा लेते थे। हर नगर , हर गांव में सम्मानित जीवन असुरक्षित था। अवैध बूचड़खानों की बहार थी। यादव राज और मुस्लिम तुष्टिकरण की इंतिहा थी। 

कैबिनेट मंत्री  गायत्री प्रजापति , सरकारी बंगले में नाबालिग के साथ बलात्कार करे और सरकार उस के ख़िलाफ़ मुक़दमा भी नहीं लिखने दे। एक से एक माफ़िया , जनता के सिर पर आग मूतते रहें। सरकार ख़ामोश रहे। और आप चाहते हैं , ऐसे जंगल राज की वापसी की पैरवी कर सेक्यूलर होने की कलगी माथे पर बांध कर घूमूं और उस की शान में क़सीदे पढ़ूं ? माफ़ कीजिए , यह हरमजदगी , मैं नहीं कर सकता। यह हरमजदगी , आप को ही मुबारक़। आप मुझे गरियाते रहिए। यह आप का अधिकार है। और देखिए कि यह बताते हुए अच्छा लगता है कि तथ्य और तर्क के साथ लिखते हुए मेरा यह जंगल राज के ख़िलाफ़ मुसलसल लिखना सफल होता हुआ साफ-साफ दिखने लगा है। सकारात्मक लिखने का फलदायी नतीजा मिलता दिख रहा है। जिगर मुरादाबादी ने लिखा है :

उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें

मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे

कुछ मित्र लोग वैचारिकी की आड़ ले कर या कुछ दूसरे आग्रह के कारण नफ़रत , घृणा और कुतर्क की आग में ख़ुद तो झुलस ही रहे हैं अपने अहंकार में सपा के जंगलराज की पैरवी में चंपू बन गए हैं। उन को तथ्य और तर्क से कुछ लेना-देना नहीं रह गया है। न समय की दीवार पर लिखी इबारत ही उन से पढ़ी जा पा रही है। वह तो बस एक अनकही बीमारी से ग्रस्त जंगल राज की पैरवी में न्यस्त और व्यस्त हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में जंगल राज की सब से बड़ी ताक़त एम वाई फैक्टर रहा है। इस एम वाई फैक्टर को तोड़ना बहुत ज़रुरी है। 

उत्तर प्रदेश की तरक़्क़ी के लिए जंगल राज को रोकना बहुत ज़रुरी है। चाहे कुछ भी करना पड़े। मनुष्यता के लिए भी जंगल राज को रोकना बहुत ज़रुरी है। सेक्यूलरिज्म का पहाड़ा पढ़ना बंद करना बहुत ज़रुरी है। अभी एक मुस्लिम मित्र आरिफ़ ज़कारिया लंदन से आए थे तो उन से कल भेंट हुई। पाकिस्तान से हैं। पर उन के पुरखे गुजरात से पाकिस्तान गए थे। वह बताने लगे कि यूरोप भी सेक्यूलर है। पर वहां माइनॉरिटी के नाम पर कोई अलग सुविधा नहीं है। सेक्यूलर देश भी हो और माइनॉरिटी वाला दबदबा और सुविधा भी , यह सिर्फ़ भारत में है , दुनिया में कहीं और नहीं। या तो पाकिस्तान की तरह आप धार्मिक देश हैं या सेक्यूलर। बस। 

इस लिए लगातार जंगल राज की याद कर , उस की मनमानियां , जातीयता और गुंडई याद कर उन को रोकने का प्रयत्न कर रहा हूं। आप को अगर उसी जंगल राज की तलब है , तो आप को वह मुबारक़ ! मुझे ऐसे जंगल राज को रोकने का अधिकार है। अपनी पूरी ताक़त से इसे रोकने के लिए लिख-लिख कर निरंतर सब को जागरुक कर रहा हूं। मेरे पास एक निर्भीक और स्वतंत्र क़लम है। उस क़लम को अपनी ज़िंदगी मानता हूं। यही क़लम लोगों को जागरुक कर रही है। आप भी संभल सकते हैं तो ज़रुर संभलें। नहीं यूक्रेन के नाम पर लड़कियों के 4 डिग्री के तापमान में टी शर्ट पहन कर , भारत सरकार को निकम्मा बताने वाले फर्जी वीडियो फारवर्ड करते रहिए कि भारत सरकार कुछ नहीं कर रही। भारतीय छात्रों की मदद तो पाकिस्तान सरकार कर रही है। 

ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक के बाद सुबूत मांगते हुए , अभिनंदन की वापसी पर जैसे आप अपने देश की निंदा कर पाकिस्तानी प्रधान मंत्री इमरान ख़ान को शांतिदूत बनाने में व्यस्त थे। नहीं मालूम था आप को कि भारत ने पाकिस्तान पर कितनी मिसाइलें तैनात की थीं , अभिनंदन की वापसी ख़ातिर। पर भारत को निरंतर अपमानित करना आप का शग़ल बन गया है। आप यही कर सकते हैं , कीजिए। यह आप का अधिकार है , आप का विवेक है। मुझे सच लिखने दीजिए। यह मेरा अधिकार है। मुझे इसे इंज्वाय करने दीजिए। लोगों की आंख खोलते रहने दीजिए। आप अपनी मनोकामना लिखिए। मुझे तथ्य और तर्क के साथ सच लिखने दीजिए। बाक़ी अखिलेश यादव का जंगल राज सोच कर , फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ याद आते हैं :

चंद रोज़ और मेरी जां फ़क़त चंद ही रोज़

ज़ुल्म की छाँव में दम लेने पे मजबूर हैं हम

और कुछ देर सितम सह लें तड़प लें रो लें

अपने अज्दाद की मीरास है माज़ूर हैं हम


जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरें हैं

फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं

अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं

ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में

हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं


लेकिन अब ज़ुल्म की मीआद के दिन थोड़े हैं

इक ज़रा सब्र कि फ़रियाद के दिन थोड़े हैं


अरसा-ए-दहर की झुलसी हुई वीरानी में

हम को रहना है पे यूँ ही तो नहीं रहना है

अजनबी हाथों का बे-नाम गिराँ-बार सितम

आज सहना है हमेशा तो नहीं सहना है


ये तेरे हुस्न से लिपटी हुई आलाम की गर्द

अपनी दो रोज़ा जवानी की शिकस्तों का शुमार

चाँदनी रातों का बेकार दहकता हुआ दर्द


दिल की बे-सूद तड़प जिस्म की मायूस पुकार

चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़

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