दयानंद पांडेय
बात कोई दस-बारह बरस पुरानी है। गोरखपुर शहर में रिश्ते की एक लड़की की शादी थी। बारात आने में थोड़ा समय था। तो कुछ लोग घेरा बना कर बैठ गए। इधर-उधर की बतियाने लगे। अचानक चर्चा के केंद्र में योगी आदित्यनाथ आ गए। योगी तब सांसद थे। और हर कोई योगी की निंदा करने लगा। एक भी व्यक्ति योगी की तारीफ़ में नहीं था। शुरुआत हुई गोरखनाथ मंदिर में मुंडन , जनेऊ , विवाह आदि के लिए भी शुल्क लिए जाने से। पहले यह सब निःशुल्क था। अब न्यूनतम शुल्क लिया जाने लगा था। गोरखनाथ के अस्पताल में भी शुल्क लिए जाने की बात आई। यहां तक मैं चुप रहा। क्यों कि जब आप कोई सेवा , कोई सुविधा लेंगे तो न्यूनतम शुल्क कोई पाप नहीं था। फिर बात हिंदू युवा वाहिनी के उत्पात की भी आई। योगी के ठाकुरवाद की भी आई। तरह-तरह की निंदा। एकसुर से।
कहना न होगा कि यह सभी लोग ब्राह्मण लोग ही थे। और कि गोरखपुर मेरा घर है। गोरखनाथ मंदिर में मेरी आस्था , बचपन से ही है। और कि गोरखनाथ मंदिर के पूर्ववर्ती महंतों पर भी ठाकुरवाद के आरोप नत्थी रहे हैं। यह भी कोई नई बात नहीं थी। वह चाहे महंत दिग्विजयनाथ हों , महंत अवैद्यनाथ हों , सभी पर यह आरोप रहे हैं। लेकिन कोई उन की निंदा नहीं करता था। पर यहां योगी की निंदा चौतरफा थी। योगी की निंदा सुनते-सुनते अचानक मैं ने हस्तक्षेप किया। और वहां उपस्थित लोगों से पूछा कि योगी से आप लोग इतना नाराज हैं और भी लोगों को नाराज देखता हूं। पर समझ नहीं आता कि योगी फिर चुनाव जीतते कैसे हैं , हर बार। मेरा सवाल सुन कर सब लोग हंसने लगे। फिर एक सज्जन बोले , योगी को वोट भी हम लोग ही देते हैं। मैं ने पूछा , यह क्या बात हुई भला ! तो एक दूसरे सज्जन बोले , असल में हम लोग योगी से लाख नाराज हों पर वोट तो थोक भाव में और आंख मूंद कर योगी को ही देते हैं। देते रहेंगे।
ऐसा क्यों ? पूछा मैं ने। लोग बोले , इस लिए कि योगी यहां हम लोगों की रक्षा करते हैं। यहां के दंगाइयों और उत्पातियों को अगर कोई क़ाबू कर सकता है तो वह अकेला योगी है। योगी को एक वोट दे कर हम लोग पांच साल के लिए सुरक्षित हो जाते हैं। किसी से डरते नहीं। गुंडा हो , दंगाई हो , कोई और उत्पाती। योगी है तो सब क़ाबू रहते हैं। मैं ने पूछा , फिर प्रशासन क्या करता है ? लोग फिर हंसे। और बोले , प्रशासन शोभा की चीज़ है। और इस प्रशासन को भी योगी ही क़ाबू करते हैं। और हम लोग शांति की ज़िंदगी जीते हैं।
ज़िक्र ज़रुरी है कि योगी तब सिर्फ़ सांसद थे और बड़े-बड़ों से टकरा जाते थे लोगों से। पार्टी में भी , पार्टी से बाहर भी। एक नहीं , अनेक क़िस्से हैं। आडवाणी तब उप प्रधान मंत्री थे। आडवाणी से भी एक बार टकरा गए थे योगी। आडवाणी को मंदिर जाना पड़ा था उन्हें मनाने। गोरखपुर के धर्मशाला में तत्कालीन मुख्य मंत्री मायावती एक फ्लाई ओवर का उद्घाटन कर के ज्यों लौटीं , फ्लाई ओवर को गंगा जल से धो कर फिर से उद्घाटन किया। ऐसे ही तत्कालीन मुख्य मंत्री मुलायम से भी वह टकरा गए। मुलायम को कुछ नहीं सूझा तो योगी को जेल भेज दिया। योगी तब छूटने के बाद संसद में फूट-फूट कर रोए थे।
शिवप्रताप शुक्ल उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थे। पर किसी बात पर योगी शिवप्रताप से नाराज हो गए। शिवप्रताप जब फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े तो एक निर्दलीय डाक्टर राधामोहन अग्रवाल को निर्दलीय चुनाव लड़वा कर शिवप्रताप शुक्ल की ज़मानत ज़ब्त करवा दी। अभी जब योगी ने गोरखपुर सांसद से इस्तीफ़ा दिया तो उप चुनाव में भाजपा के उपेंद्र शुक्ल चुनाव हार गए , सपा जीत गई। इस लिए कि उपेंद्र शुक्ल योगी की पसंद के उम्मीदवार नहीं थे। शिवप्रताप शुक्ला ने अरुण जेटली के मार्फ़त उपेंद्र शुक्ला को लैंड करवा दिया था। योगी को यह अच्छा नहीं लगा। अब उन्हीं उपेंद्र शुक्ला की विधवा पत्नी योगी के ख़िलाफ़ सपा उम्मीदवार हैं। चंद्रशेखर आज़ाद रावण भी करोड़ो रुपए का चंदा बटोरने के लिए योगी के मुक़ाबले उम्मीदवारी दर्ज करवा दी है।
पूरे प्रदेश में सपा को चुनाव जीतवाने के लिए कमर कसे कामरेड लोग लेकिन गोरखपुर में रावण को जितवाने की मुहिम में हैं। वामपंथियों की अपनी चुनावी ज़मीन तीन-चार दशक से खिसक चुकी है। दो दशक से यही वामपंथी कांग्रेस की ज़मीन को परती बनाने में युद्धरत हैं। अब की उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में वह कांग्रेस की सवारी छोड़ कर सपा की सवारी गांठ चुकी है। सपा की चुनावी ज़मीन को बंजर बनाने में पूरी ताक़त लगा चुके हैं कामरेडजन। संसदीय राजनीति में उन का वैसे यक़ीन नहीं है। जैसे अखिलेश यादव कम पड़ रहे थे सपा को समूल नष्ट करने में तो वामपंथियों के साथ ही उन के सहयोग में स्वामी प्रसाद मौर्या और ओमप्रकाश राजभर , दारा सिंह चौहान जैसे लोग भी आ गए हैं।
ज़िक्र ज़रुरी है कि चुनाव में अपनी नाव डूबते देख स्वामी प्रसाद मौर्या ने फाजिल नगर में अपने ऊपर हमले का ड्रामा भी रच लिया है ,उन की बेटी और भाजपा सांसद संघमित्रा भी पिता के साथ खुल कर खड़ी हो गई हैं। राजभर पहले ही हमले का नाटक खेल चुके हैं। नामांकन के समय ही। यह लोग नहीं जानते कि गोरखपुर और आस-पास की जनता में योगी का सिक्का चलता है। गोरखपुर की जनता यह नहीं देखती कि योगी का स्टैंड ग़लत है या सही , वह सिर्फ़ योगी का स्टैंड देखती है। वोट डालते समय ब्राह्मण-ठाकुर नहीं देखती गोरखपुर की जनता। सिर्फ़ अपनी सुरक्षा और शांति देखती है। गोरखपुर ही नहीं , योगी के मुख्य मंत्री बनने के बाद अब पूरे उत्तर प्रदेश की जनता योगी में अपनी सुरक्षा और शांति देखती है। किसी को अगर इस बिंदु पर ऐतराज हो तो वह अपना ऐतराज 10 मार्च तक अपनी ज़ेब में रखे। क्यों कि यह चुनाव क़ानून व्यवस्था के मसले पर जनता लड़ रही है। टोटी और टाइल उखाड़ने वाले इस मसलहत को कभी नहीं समझेंगे। चुनाव परिणाम के बाद भी नहीं। वसीम बरेलवी का एक शेर है :
चिराग़ घर का हो, महफिल का हो कि मंदिर का
हवा के पास कोई मसलहत नहीं होती।
इस बात को समझने की ज़रुरत है।
रोचक
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