दयानंद पांडेय
हज़ारों मित्रों ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव परिणाम के सटीक आकलन पर लगातार बधाई दी है। देते ही जा रहे हैं। सब को अलग-अलग से जवाब देना मुमकिन नहीं हो पा रहा। वाल पर तो लगभग कोशिश की है। पर मेसेंजर और वाट्स अप पर एक-एक को जवाब देना कठिन हो गया है। कुछ मित्रों ने कल के लेख को योगी को टैग किया। उन का भी धन्यवाद ज्ञापन मिला है। सभी मित्रों का बहुत आभार। आप मित्र ही मेरी ताक़त हैं। हमारी निडरता , निर्भीकता और निष्पक्षता का आधार बिंदु हैं , हमारे पाठक। हमारी क़लम और जुबां कभी किसी की ग़ुलामी नहीं करती। न कभी बिकी है। न बिकेगी। न ग़ुलाम बनेगी। ईमानदारी ही हमारी थाती है।
पूरी विनम्रता के साथ कहना चाहता हूं कि हम तो बस जो ज़मीन पर था वही लिख रहे थे। समय की दीवार पर लिखी इबारत को बांच रहे थे। न हर्र थी मेरे पास , न फिटकिरी। लेकिन रंग चोखा होता गया। कबीर की जुबान में जो कहें तो ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया भी आप कह सकते हैं। प्रोपगैंडा नहीं , तर्क और तथ्य के आधार पर बात कहने का अभ्यास है। बस इतनी ही सी तो बात है। 2014 , 2017 , 2019 और अब 2022 सब की यही कथा है। चुनाव ही नहीं , बाक़ी मसलों पर भी ऐसे ही लिखता हूं।
सत्ता के गलियारों का चक्कर नहीं काटता। इन की , उन की ठकुरसुहाती नहीं करता। अपने लिखे पर गर्व करता हूं। सीना तान कर चलता हूं। किसी पैकेज या किसी कमेंट के तहत नहीं लिखता। जनता के बीच रहने वाला सामान्य आदमी हूं। हर किसी से संवादरत रहता हूं। कोई पूर्वाग्रह नहीं रखता कभी भी। किसी भी के लिए नहीं। अपने निंदकों के लिए भी नहीं। जनता के बीच रहने के कारण सच , झूठ पता चलता रहता है। किसी से नफ़रत और घृणा भी नहीं करता। लिखते समय पसंद-नापसंद की नहीं सत्य का ख़याल रखता हूं। झूठ की नदी में नहीं बहता। न अपनी मनोकामना लिखता हूं। अपनी कहानी , उपन्यास में भी गप्प नहीं हांकता। न कविता में। न , लेख में।
बस सलीक़े से सत्य को तथ्य और तर्क के साथ परोसने की कोशिश करता हूं। लेख में तो गप्प की गुंजाइश भी नहीं होती। हां , राजनीतिक लेख में या तो आप गप्प लिख सकते हैं या तथ्य। तीसरा कोई विकल्प नहीं होता। नकली माहौल बनाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं रही कभी। प्रोपगैंडा मुझे नहीं भाता। न आता है। तथ्य और तर्क के साथ बात करता हूं। आप को पसंद आए तो ठीक। नापसंद हो तो भी ठीक।
लेकिन यह सत्य , तथ्य और तर्क की क़ीमत यह है कि कई निजी मित्र अनफ्रेंड कर के भाग गए। कुछ ब्लॉक कर ख़ुश हुए। अनर्गल आरोपों का भी लंबा सिलसिला है। किसिम-किसिम की गालियां , धमकी और ताने बहुत मिलते हैं। क्या-क्या नहीं कहते लोग। लेकिन मैं कभी इस की चिंता नहीं करता। जब रिपोर्टर था , तब भी धमकियां बहुत मिलती थीं। मुकदमे भी बहुत झेले हैं ख़बरों पर।
अपने एक उपन्यास अपने-अपने युद्ध पर भी कंटेम्प्ट का मुक़दमा भुगता है। सो अब फ़ेसबुक पर लिखने से मिली धमकियों और गालियों की चिंता क्यों करुं भला। फर्जी आई डी के साथ भी लोग गाली और धमकी देते हैं। फ़ोन पर धमकी और गाली दे कर फ़ौरन ब्लॉक कर देते हैं। धमकियों से तो नहीं , पर हां , गालियां सुन कर दुःख होता है। लेकिन आप मित्र ही मेरी ताक़त हैं। आप मित्रों के भरोसे ऐसी बातों को तुरंत टाल देता हूं। गले में बांध कर नहीं घूमता।
ग़ालिब का एक क़िस्सा याद आता है। ग़ालिब को लोग ख़त लिख कर गालियां देते थे। एक दिन ग़ालिब ऐसे ख़त पढ़ते हुए , अपने एक दोस्त से बोले , लोगों को गालियां देने की भी समझ नहीं है। तमीज़ नहीं। बताओ मुझे मां की गाली देते हैं। मेरी मां से उन को क्या मिल जाएगा ?
तथ्यों व तर्कों पर आधारित सटीक विश्लेषण हेतु बधाई
ReplyDeleteसटीक विश्लेषण
ReplyDelete