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Thursday, 8 February 2024

लता मंगेशकर से घृणा और नफ़रत करने वाले लोग

दयानंद पांडेय 


क़ायदे से लता मंगेशकर से घृणा और नफ़रत करने वाली फोर्सेज को उन शायरों , कवियों , संगीतकारों , फ़िल्म निर्देशकों , हीरो , हीरोइनों से भी उतनी ही नफ़रत करनी चाहिए , उतनी ही घृणा करनी चाहिए , जितनी वह लता मंगेशकर से करता हुआ दिख रहे हैं। जिन शायरों , कवियों के लता ने गीत गाए। ग़ज़लें गाईं। जिन संगीतकारों के साथ गाए। जिन गायकों के साथ गाए। जिन निर्देशकों , जिन हीरोइनों , हीरो के लिए गाए। इस तरह कोई 80-90 प्रतिशत लोगों को फ़िल्म इंडस्ट्री से इन फोर्सेज को अपनी घृणा और नफ़रत के क़ारोबार में रखना पड़ेगा। बचेंगे वही जो लता के पहले के थे या लता के बाद हुए। 

क्यों कि बिना लता मंगेशकर के तो कोई संगीत निर्देशक , कोई गीतकार , कोई फ़िल्म निर्देशक , हीरो-हीरोइन या गायक रहा नहीं। असल में घृणा और नफ़रत करने वाली यह फ़ोर्स , हिप्पोक्रेट फ़ोर्स है। ठीक वैसे ही जैसे , कोरोना वैक्सीन के ख़िलाफ़ हिक़ारत दिखाने वालों ने चुपके-चुपके वैक्सीन लगवा ली , यह घृणा और नफ़रत के दुकानदार भी लता मंगेशकर को सुनते हैं। यह बहुत बीमार लोग हैं। वैचारिकी के कोढ़ में कुढ़ते हुए सड़ गए हैं। वैचारिकी के खूंटे में बंधे तेली के बैल हैं। भेड़ चाल के अभ्यस्त लोग हैं। इन को डर है कि अगर लता मंगेशकर के प्रति अपनी घृणा नहीं परोसेंगे तो अपने बाप के नहीं रहेंगे। इन के लोग इन्हें हरामी घोषित कर देंगे। नाजायज औलाद बता देंगे। सो सब के सब प्रतिस्पर्धा में आ गए हैं। कि कौन ज़्यादा घृणा और नफ़रत परोसे। गोया कुर्सी दौड़ आयोजित हो यह बताने की कि अपने बाप की ही औलाद हूं। यह सिद्ध करने का यही समय है। अलग बात है कि इन लोगों के लिए इन दिनों ऐसा समय अकसर आता रहता है। 

एक पियक्कड़ और बदमिजाज पत्रकार याद आ रहा है जो सेक्यूलरिज्म के नाम पर एन जी ओ के पैसे से इतना मुटा गया है कि अपने बाप का दिया नाम हटा कर नया नाम रख लिया है। विदेश यात्राएं बहुत करता है। कहीं किसी देश में घर भी ले चुका है। ज़ी न्यूज़ के एंकर रोहित सरदाना के निधन पर उस ने रोहित की बेटी से बलात्कार करने की गुहार कर दी। तो यह सभी लोग बलात्कारी लोग हैं। लता मंगेशकर के मरने के बाद अपनी घृणा और नफ़रत का इज़हार कर , देवी जैसी लता मंगेशकर और उन की अप्रतिम गायकी के साथ निरंतर बलात्कार कर रहे हैं। 

सहमति-असहमति होती रहती है। पसंद-नापसंद भी। पर यह घृणा और नफ़रत ? इस के क्या मायने हैं भला ! ख़ैरियत बस यही है कि लता मंगेशकर के कोई बेटी या संतान नहीं है। नहीं यह बलात्कारी लोग , अपनी बीमार मानसिकता की बघार ज़रुर लगा देते। छी है ऐसे लोगों पर। लता मंगेशकर की गायकी छोड़िए , लोक कल्याण के लिए लता मंगेशकर ने कितने काम किए हैं , यह मूर्ख यह भी नहीं जानते। अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के नाम पर गरीबों के लिए लगभग निःशुल्क बड़ा सा कैंसर अस्पताल बनवाया है। जाने कितनों की चुपचाप मदद की है। लोक कल्याण के और भी कई काम लता मंगेशकर के खाते में। लेकिन यह मूर्ख नहीं जानते। हां , लता को श्रद्धांजलि देते समय शाहरुख़ खान थूक नहीं रहा , इस के बचाव में ज़रुर खड़े हो गए हैं यह लोग। पर लता मंगेशकर के ख़िलाफ़ जहर बदस्तूर जारी है।


Tuesday, 10 October 2023

मनुष्यता का महाकाव्य है , द वैक्सीन वार !

दयानंद पांडेय 

द वैक्सीन वार का एक दृश्य 

द वैक्सीन वार सेल्यूलाइड के परदे पर फ़िल्म नहीं , मनुष्यता का महाकाव्य है। कालजयी फ़िल्म है। द वैक्सीन वार देखते हुए , उस की डिटेलिंग देखते हुए कई बार सत्यजीत रे याद आए। ह्वी शांताराम याद आए। और श्याम बेनेगल भी याद आए। कमाल की स्क्रिप्ट और कमाल का निर्देशन। एक भी सूत इधर से उधर नहीं। बहुत कम फ़िल्में होती हैं जो अपने विषय पर केंद्रित रहती हैं। उसी पर मर मिटती हैं। इस डाल से उस डाल पर कूदती हुई , मंकी एफ़र्ट करती हुई फ़िल्म नहीं है , द वैक्सीन वार। एक क्षण का भी अवकाश नहीं देती कुछ और सोचने के लिए द वैक्सीन वार। अपने साथ लगातार बांधे रहती है। ऐसे जैसे मां की उंगली हो , दर्शक मां की उंगली को नहीं छोड़ता। 

द वैक्सीन वार की ऐसी निरंतरता और ऐसी कसावट को सघन किया है , डॉक्टर बलराम भार्गव की भूमिका में नाना पाटेकर के सहज और सशक्त अभिनय ने। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री एक समय पत्रकार भी रहे हैं। तो चीज़ों को देखने का पत्रकार का पैनापन भी अनायास दीखता है द वैक्सीन वार में। निरंतर दीखता है। बिना लाऊड हुए चीन पर भी चोट करती चलती है द वैक्सीन वार। वायर जैसी प्रोपगैंडा पत्रकारिता पर भी भरपूर वार करती है। द वैक्सीन वार , वैक्सीन बनाने की जद्दोजहद तक ही नहीं सीमित है। किसी वैज्ञानिक का काम सिर्फ़ शोध और संधान तक ही सीमित होता है। पर द वैक्सीन वार फ़िल्म बताती है कि हमारे वैज्ञानिकों को बीच कोरोना में वैक्सीन पर तो काम करना ही था , प्रोपगैंडा पत्रकारिता से भी रोज दो-चार हाथ करना था। विपक्षी राजनीति के निशाने पर तो वह थे ही , अंतरराष्ट्रीय साज़िशों से भी लोहा लेना था। 

डब्ल्यू एच ओ जैसी संस्थाएं भी भारत नहीं , चीन के साथ खड़ी थीं। जब विपक्ष और प्रोपगैंडा पत्रकारिता लगातार हमलावर थे देश के वैज्ञानिकों पर , तब यह निहत्थे वैज्ञानिक किस तरह घर , समाज और प्रोपगैंडा पत्रकारिता के आगे किस तरह निहत्थे थे। निहत्थे लड़ रहे थे। बता क्या लगभग फ़ैसला दे दिया गया था कि इंडिया कैन नाट डू इट। और ऐसे विपरीत समय में इन वैज्ञानिकों का ध्यान मछली की आंख की तरह सिर्फ़ वैक्सीन बनाने पर था। इन वैज्ञानिकों ने न सिर्फ़ क़ामयाब वैक्सीन बनाई बल्कि साबित किया कि इंडिया कैन डू इट। न सिर्फ़ भारत में बल्कि दुनिया भर में यह भारतीय वैक्सीन मशहूर और क़ामयाब हुई। दुनिया भर में भारतीय वैक्सीन का डंका बजा। अब इसी वैक्सीन बनने की संघर्ष कथा को द वैक्सीन वार के मार्फ़त विवेक अग्निहोत्री दुनिया के सामने ले कर उपस्थित हैं। 

द वैक्सीन वार फ़िल्म में कोविड वैक्सीन के जनक आईसीएमआर के डी जी डाक्टर बलराम भार्गव सिर्फ़ वैज्ञानिक नहीं हैं , एक ईमानदार और अदभुत व्यक्तित्व वाले आदमी हैं। फ़िल्म में वह पागलपन की हद तक वह अपने काम में डूबे रहते हैं। कोविड वैक्सीन बनाने के समय उन के काम का जूनून जैसे किसी जंग में तब्दील होता जाता है। कई-कई दिन तक वैज्ञानिक अपने घर नहीं जा पाते। घर के लोगों , बच्चों से मिल नहीं पाते। डाक्टर बलराम भार्गव अपने साथी वैज्ञानिकों को कब क्या काम सौंप दें , भले ही वह घर पहुंचे ही हों , तुरंत लैब आने को कह दें , वह भी नहीं जानते। जाने को कह देने के बाद , दौड़ कर आफिस की सीढ़ियों पर ही रोक लें , ऐसी अनगिन घटनाएं फ़िल्म में भरी पड़ी हैं। नाना पाटेकर , पल्लवी जोशी , राइमा सेन , अनुपम खेर , गिरिजा ओक , निवेदिता भट्टाचार्य , सप्तमी गौड़ा , मोहन कपूर  , यज्ञ तुर्लापति जैसे कलाकारों का अभिनय कहीं से भी अभिनय नहीं लगता। लगता है जैसे यही उन का जीवन है। कहीं से भी किसी अभिनय की कोई औपचारिकता नहीं दिखती। फ़िल्म की ताक़त यही है। किसी भी दृश्य या संवाद में स्पेशल इफेक्ट की नकली छौंक नहीं दिखी। 

एक दृश्य है , जिस में कैबिनेट सेक्रेटरी , आईसीएमआर के डी जी डाक्टर बलराम भार्गव से एक वैक्सीन बनाने के लिए वाट्सअप ग्रुप बना कर काम करने की सलाह देते हैं। और डाक्टर भार्गव बड़ी विवशता से कहते हैं , वाट्सअप ग्रुप नहीं बना सकते क्यों कि उन के पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है। घर आ कर बच्चों से डिस्कस करते हैं कि वाट्सअप चलाने के लिए कौन सा स्मार्ट फ़ोन ठीक है , जो सस्ते में मिल जाए ! पत्नी ताना देती है कि बताइए डी जी हो गए हैं , पर कंजूसी नहीं गई है। कोट भी रफू करवा कर पहनते हैं। डाक्टर भार्गव की एक बड़ी मुश्किल यह भी है कि वह सिर्फ़ आदेश देना जानते हैं। टारगेट एचीव करना जानते हैं। नहीं जानते तो प्लीज़ कहना , थैंक यू कहना। वैज्ञानिकों की टीम उन से , इस बात पर भड़कती रहती है। डाक्टर अब्राहम बनी पल्लवी जोशी तो रो तक पड़ती है। एकाधिक बार। 

एक साइंटिस्ट है , उसे घर जाने की अनुमति दे देते हैं , डाक्टर भार्गव। रात हो गई है। पर अचानक वह दौड़ते हुए आते हैं। आफिस की सीढ़ियों पर बैठ कर बतियाने लगते हैं। फिर उस का घर जाना रद्द कर देते हैं। एक बार यह साइंटिस्ट घर पहुंचती है। छोटे बेटे ने कविता लिखी है। मां को सुनाना चाहता है। डाक्टर भार्गव का फ़ोन आ जाता है , फ़ौरन आओ। बेटा मां के पांव पकड़ कर झूल जाता है। रोने लगता है। लेकिन मां रुक नहीं पाती। जाना है। वैक्सीन बनाना है। चल देती है। एक साइंटिस्ट छुट्टी पर है। छुट्टी कैंसिल हो जाती है। वैक्सीन बनाना है। डाक्टर अब्राहम के घर में पारिवारिक कार्यक्रम है। पर सब रद्द। वैक्सीन बनाना है। वैक्सीन बनाने में सारे निजी रिश्ते , परिवार , भावना , सब स्वाहा है। क्यों कि वैक्सीन बनाना है। बीमार हैं पर वैक्सीन बनाना है। वैक्सीन वार है। डाक्टर भार्गव सभी साथियों से कहते हैं , अब तुम लोग साइंटिस्ट ही नहीं , सोल्जर भी हो। सोल्जर की तरह काम करो। सभी साइंटिस्ट सोल्जर की तरह काम करने लगते हैं। 

ईरान जाना है। सभी पुरुष साइंटिस्ट एक-एक कर हाथ खड़े कर देते हैं। कि नहीं जा सकते। स्त्री साइंटिस्ट तैयार हो जाती हैं। इस में एक गर्भवती साइंटिस्ट है। फिर सभी साइंटिस्ट ईरान जाते हैं। वैक्सीन टेस्ट करने के लिए बंदर चाहिए। नहीं मिलते। तो यही साइंटिस्ट नागपुर के जंगलों में बंदर खोजने भी जाते हैं। सरकार की अनुमति से। पर मेनका गांधी और प्रोपगैंडा जर्नलिस्ट कहीं से इस बात को जान जाते हैं। हल्ला हो जाता है। पर काम बंद नहीं होता। डाक्टर भार्गव सभी साइंटिस्टों से स्पष्ट कह देते हैं कि मीडिया से दूर रहें। मीडिया वार का जवाब मीडिया वार से नहीं देना है। हमें सिर्फ़ वैक्सीन बनानी है। लेकिन प्रोपगैंडा जर्नलिस्ट कहां मानने वाले ? ख़ास कर डेली वायर पर द वैक्सीन वार फ़िल्म में फायर किया गया है। वायर विदेशी शह पर , भारत के वैज्ञानिकों को कटघरे में खड़ी करने में युद्धरत है। जिस तरह विश्वगुरु के व्यंग्य से मोदी सरकार को यह पत्रकार दिन-रात घेरती रहती है , वह लाजवाब है। राइमा सेन ने डेली वायर की पत्रकार की भूमिका बहुत अर्थपूर्ण ढंग से की है। उस के अंग-अंग से सरकार और वैज्ञानिकों के लिए घृणा फूटती रहती है। विदेशी शह पर वह यह सब कर रही है। डालर कमाने के लिए यह सब कर रही है। पर उस की नौकरानी रह-रह कर उसे कोंचती रहती है। कहती है , सरकार को नहीं पसंद करती , कोई बात नहीं। पर वैक्सीन बनाने वालों से क्या दुश्मनी है ? पत्रकार के पास कोई जवाब नहीं है। अंतत: एक दिन वह काम छोड़ कर चल देती है। राइमा सेन ने इस प्रोपगैंडा पत्रकार की भूमिका में प्राण फूंक दिए हैं। ख़ास कर प्रेस कांफ्रेंस में जिस तरह साइंटिस्टों पर सवालों का आक्रमण करती हुई ख़ुद ही घिर जाती है , वह दृश्य लाजवाब है। वैक्सीन वार ने प्रोपगैंडा मीडिया और वायर जैसों पर बुरी तरह फायर किया है। 

वैक्सीन बनाने वाली ज़्यादातर साइंटिस्ट स्त्री हैं। जिस तरह अपनी जान पर खेल कर , परिवार , पति और बच्चों को छोड़ कर वह इस वैक्सीन को बनाने में लगी हैं , फ़िल्म में उन के काम को रेखांकित करते हुए विवेक अग्निहोत्री ने जिस तरह उन के काम को सैल्यूट किया है , वह अप्रतिम है। सैल्यूटिंग है। जीता-जागता दस्तावेज़ है यह फ़िल्म। बहुत ज़रुरी और विश्वसनीय फ़िल्म है द वैक्सीन वार। नाना पाटेकर के अभिनय के कंधे पर टिकी यह फ़िल्म जब तक मनुष्य और मनुष्यता है , तब तक याद की जाएगी। हां , फ़िल्म में अगर शहर-दर-शहर कोरोना में बेघर हुए मज़दूरों आदि को भी दिखाया गया होता , बिछती और जलती हुई लाशों का अंबार भी दिखाया गया होता , आक्सीजन की किल्लत भी बैकग्राउंड में ही सही , दिखाई गई होती तो बात और होती। और जीवंतता आती। लेकिन यहां तो प्रेस कांफ्रेंस में समवेत तालियां भी बजती मिलती हैं। इस से बचना चाहिए था , विवेक अग्निहोत्री को। हां , लेकिन अगर कोरोना आदि से बेघर और मरते हुए लोगों को भी दिखाया जाता तो शायद फ़िल्म द वैक्सीन वार के विषय से भटकती हुई दिखती। यह एक ख़तरा भी था। 

जो भी हो कश्मीर फ़ाइल्स से तकनीक , स्क्रिप्ट , कैमरा और निर्देशन में यह द वैक्सीन वार फ़िल्म बीस है। पर बॉक्स ऑफ़िस पर कश्मीर फ़ाइल्स से बहुत पीछे है। रहेगी। तो शायद इस लिए कि इस में कश्मीर वाली त्रासदी नहीं है। कश्मीर फाइल्स भी मनुष्यता की ही फ़िल्म है और द वैक्सीन वार फ़िल्म भी। इस लिए भी कि द वैक्सीन वार फ़िल्म मसाला फ़िल्म नहीं है। नकली फ़िल्म नहीं है। नहीं पिटने को काग़ज़ के फूल , मेरा नाम जोकर , पाक़ीज़ा और तीसरी क़सम जैसे फ़िल्में भी पिट जाती हैं। पर बाद में हम उन्हें कालजयी और क्लासिक फ़िल्म के तौर पर दर्ज कर देते हैं। द वैक्सीन वार फ़िल्म भी ऐसी ही कालजयी फ़िल्म है। मनुष्यता की महान कविता है , द वैक्सीन वार फ़िल्म। मनुष्यता का महाकाव्य है। देश भर में इसे टैक्स फ्री होना चाहिए। 

द वैक्सीन वार का एक दृश्य 


 


Tuesday, 27 December 2022

ड्रग , सिनेमा , शराब और औरत की सनसनी

दयानंद पांडेय 


टीनएज में जब सिनेमा देखता था तो सिनेमा का जैसे नशा सा हो जाता था। तब नहीं मालूम था कि सिनेमा वालों को सफलता के अलावा भी कोई नशा होता है। ड्रग का तो नाम भी नहीं सुना था तब। तब तो सिनेमा देखना एक त्यौहार सा होता था। पर चुपके-चुपके। भीतर से तो डर भी लगता रहता था कि यह मेरा सिनेमा देखना घर में किसी को पता न चल जाए। तो एक अपराध बोध भी डसता रहता था निरंतर। क्यों कि घर में सिनेमा देखने का पता चलने पर पिटना तय होता था। जब बड़ा हुआ और सिनेमा समझने लगा , सिनेमा के लोगों को समझने लगा , उन से मिलने लगा तो उन की शराब और और शबाब की लत का भी पता चलने लगा। शराब और औरतों में तबाह अभिनेताओं और निर्देशकों के किस्से दर किस्से पहले ख़ास लोगों में ही आम थे। पर जल्दी ही आम लोगों में भी यह किस्से आम होने लगे। अभिनेत्रियों की शराब और मर्दखोरी के किस्से भी बाद के दिनों में सामान्य मान लिए गए। वैसे भी पहले हाजी मस्तान और फिर दाऊद इब्राहिम जैसे अंडर वर्ल्ड के लोगों के काले धन के दबाव में चलने वाली मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री किसी न किसी विवाद में सर्वदा ग्रसित रहने के लिए जैसे शापग्रस्त है। 

पहले फिल्म इंडस्ट्री से नामचीन लोगों की मोहब्बत और मोहब्बत टूटने के किस्से आते थे। यथा अशोक कुमार के प्रेम में कैसे देविका रानी पड़ीं। वही देविका रानी जिन्हों ने अशोक कुमार को ब्रेक दिया था। फिर निरुपा रॉय अशोक कुमार से जुड़ीं। या फिर अन्य स्त्रियां। इसी दम पर अशोक कुमार को लोग सदाबहार भी कहने लगे। मधुबाला भी पहले-पहल अशोक कुमार के फेर में पड़ीं। फिर वहां से टूटीं तो दिलीप कुमार के गले पड़ीं। बस ज़रा सी एक बात पर शादी तय हो कर भी टूट गई। अंतत: मधुबाला अशोक कुमार के  ही छोटे भाई किशोर कुमार की पत्नी बनीं। और मरते-मरते फिर दिलीप कुमार ही उन के काम आए। किशोर कुमार नहीं। उन के कैंसर में दर्द की एक दवा दिलीप कुमार भी मान लिए गए थे। मीना कुमारी जब बच्ची थीं तो बतौर बाल कलाकार किसी स्टूडियो में शूटिंग के बाद खेल रही थीं अपनी बड़ी बहन के साथ। तो खेलते-खेलते अशोक कुमार के पास आ गईं। अशोक कुमार ने उन्हें अपनी गोद में बिठा लिया। लोगों से पूछा किस की बच्ची है। लोगों ने बताया तो वह बच्ची से बोले , जल्दी से बड़ी हो जाओ और मेरी हीरोइन बनो। संयोग देखिए कि मीना कुमारी बड़ी हो कर अशोक कुमार की कई फिल्मों की हीरोइन बनीं भी। पर कमाल अमरोही के प्यार भरे छल में आ कर उन से अनमेल विवाह भी वह कर बैठीं। तलाक भी हुआ और फिर हलाला भी। हलाला किया ज़ीनत अमान के पिता ने फिर वह कमाल अमरोही की दुबारा बेगम बनीं। पर हलाला के कारण वह टूट गईं और उन के शराब पीने की खबरें आने लगीं। वह शायरा भी बन गईं। 

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा,

दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा


बुझ गई आस, छुप गया तारा,

थरथराता रहा धुआँ तन्हा


ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,

जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा

जैसे शेर कहने लगीं। जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा लिए मीना कुमारी की ज़िंदगी में धर्मेंद्र आ गए। फिर जाने और कौन-कौन। आख़िर में गुलज़ार भी। अंतत: शराब ने कुल 39 बरस की उम्र में ही मीना कुमारी ऊर्फ महज़बीन की ज़िंदगी पर विराम लगा दिया। परदेसी इलाज भी काम न आया। पाकीज़ा के ख़ूबसूरत पांव ज़मीन से विदा हो गए। ऐसे और भी कई सारे किस्से सिने दुनिया के आते रहे। जैसे राज कपूर और नरगिस के। राज कपूर और पद्मिनी के। राज कपूर और वैजयंती माला के। राज कपूर और ज़ीनत अमान के। गो कि कृष्णा से भी राज कपूर ने प्रेम विवाह ही किया था। तब के सुपर स्टार अशोक कुमार भी गए थे विवाह में। खैर , नरगिस से संबंध टूटने और सुनील दत्त से उन के विवाह के बाद राज कपूर पी कर घर आते और बाथ टब में लेट जाते। रोते रहते। नरगिस से बिछोह के बाद राज कपूर की शराब इतनी ज़्यादा हो गई कि पिता पृथ्वीराज कपूर को बीच में आना पड़ा। पृथ्वीराज कपूर ने राज कपूर से कहा कि मेरे बूढ़े कंधे , जवान बेटे की लाश उठाने का दुःख उठाने को तैयार नहीं हैं। राज कपूर की शराब तो एकदम से नहीं छूटी पर कम ज़रूर हो गई। खैर , नरगिस ने सुनील दत्त से विवाह के कुछ समय बाद राज कपूर की पत्नी कृष्णा कपूर से मिल कर माफी भी मांग ली थी। उन्हों ने माफ़ भी कर दिया था। नरगिस का वैसे भी राज कपूर के साथ प्रेम के साथ ही पारिवारिक संबंध भी था। राज कपूर के छोटे भाई शम्मी कपूर , शशि कपूर , और बेटे रणधीर कपूर , ऋषि कपूर कौन ऐसा था जिस ने नरगिस की दी चॉकलेट नहीं खाई थी। और हर किसी ने समय-समय पर नरगिस के चॉकलेट की मिठास को बड़ी शिद्दत से याद किया है। बड़े सम्मान के साथ याद किया है। फिर आर के स्टूडियो के निर्माण में नरगिस का भी खून-पसीना लगा था। राज कपूर के साथ कंधे से कंधा मिला कर वह खड़ी रही थीं , आर के स्टूडियो के निर्माण में। राज कपूर बड़े फख्र से कहा करते थे कि सिर्फ परदे पर ही नहीं , रील लाइफ़ में ही नहीं , रियल लाइफ में भी नरगिस उन की हीरोइन थीं और कृष्णा उन के बच्चों की मां। नरगिस के मरने के बहुत समय बाद भी दादा साहब फाल्के सम्मान मिलने के मौक़े पर दूरदर्शन को दिए गए इंटरव्यू में यह बात राज कपूर ने बड़ी आत्मीयता और सम्मान के साथ कही थी। 

पर वैजयंती माला को कृष्णा कपूर कभी माफ़ नहीं कर पाईं। एक बार तो वह घर छोड़ कर एक होटल में शिफ्ट हो गईं। महीनों रहीं। कारण वैजयंती माला ही थीं। बाद के समय में तो हो यह गया था कि अपनी हर हीरोइन से राज कपूर प्यार करने लगे थे। हेमा मालिनी से लगायत ज़ीनत अमान तक यह सिलसिला कायम रहा। बल्कि ज़ीनत अमान तो राज कपूर और देवानंद के बीच अजब रश्क का सबब बनी रहीं। देवानंद भी कभी सुरैया से इश्क करते थे , विवाह भी करना चाहते थे दोनों। पर सुरैया की नानी बीच में आ गईं ,धर्म की बिना पर। गायिका और अभिनेत्री सुरैया फिर आजीवन अविवाहित रहीं , देवानंद के प्यार में। पाकिस्तान चली गईं। पर देवानंद ने विवाह कर लिया। प्रेम आगे भी करते रहे वह ,कई-कई स्त्रियां आईं उन के भी जीवन में। राज कपूर की तरह वह भी अपनी हीरोइनों को दिल देते रहे , लेते रहे। पर एक ज़ीनत अमान को ले कर वह टूट से गए। ज़ीनत अमान को देवानंद ने ही खोजा था। ब्रेक दिया था , हरे रामा , हरे कृष्णा में। और भी फिल्मों में जारी रखा। पर सत्यम , शिवम , सुंदरम के बाद वह राज कपूर की भी हो गईं। ज़ीनत अमान राज कपूर और देवानंद दोनों ही को अपने अलकजाल में बांधे रहीं। देवानंद को पता ही नहीं चला। पता चला एक फ़िल्मी पार्टी में। तब जब ज़ीनत अमान उस पार्टी में आईं। पार्टी में आईं तो देवानंद उन के स्वागत में अपनी दोनों बाहें फैला कर खड़े हो गए। ज़ीनत अमान छलकती हुई बढ़ी भी पर देवानंद की बाहों के लिए नहीं , पीछे खड़े राज कपूर की बाहों में समाने के लिए। और यह देखिए देवानंद को बाईपास कर ज़ीनत अमान राज कपूर की बाहों में समा गईं। अपनी आत्मकथा में देवानंद ने इस पूरी घटना का न सिर्फ़ विस्तार से ज़िक्र किया है बल्कि लिखा है कि ज़ीनत अमान के इस क़दम से वह टूट से गए थे। देवानंद हालां कि वहीदा रहमान से संबंधों के लिए बहुत जाने गए। वह वहीदा रहमान जिन के चक्कर में गुरुदत्त ने आत्महत्या कर ली थी। गुरुदत्त ने गीता घोष रॉय से प्रेम विवाह किया था। जो बाद में गीता दत्त कहलाईं। पर वहीदा रहमान भी कागज़ के फूल के बहाने उन की ज़िंदगी में दाखिल हो गईं। वह अशोक कुमार , राज कपूर , देवानंद या दिलीप कुमार आदि की तरह तमाम स्त्रियों के बीच सामंजस्य नहीं बिठा पाए और कम उम्र में ही ज़िंदगी से तौबा कर बैठे। नींद की बहुत सारी गोलियां खा कर सोए तो फिर उठे नहीं। 

गुरुदत्त की आत्महत्या बहुत बड़ी खबर बनी थी तब। पर उस के केंद्र में प्रेम था तब। सस्पेंस नहीं। शराब या ड्रग नहीं। गुरुदत्त और देवानंद बहुत गहरे दोस्त थे। जाने यह दोस्ती का तकाज़ा था कि कैरियर का या कुछ और वहीदा रहमान को विवाहित देवानंद का कंधा मिला। हालां कि देवानंद बाद के समय में राज कपूर की तरह अपनी तमाम हीरोइनों को अपनी ज़िंदगी में दाखिल करते रहे। ज़ीनत अमान से लगायत टीना मुनीम तक कई सारे नाम हैं। बाद के दिनों में तमाम अभिनेत्रियों ने तो अशोक कुमार , राज कपूर , देवानंद , दिलीप कुमार , राजेश खन्ना तक को पानी पिलाया इस मामले में। स्कोर के मामले में। 

टीना मुनीम समेत कई और अभिनेत्रियां देवानंद के जीवन में आईं और गईं पर कसक उन्हें सुरैया से विवाह न हो पाने और ज़ीनत अमान के उन के सामने ही राज कपूर की बाहों में समा जाने पर ही हुई। देवानंद के बड़े भाई और मशहूर निर्देशक चेतन आनंद भी अपनी हीरोइनों खातिर बदनाम रहे। पर एक समय प्रिया राजवंश के ही हो कर रह गए। चेतन आनंद के निधन के बाद  संपत्ति विवाद में चेतन के दोनों बेटे प्रिया राजवंश की हत्या कर बैठे और जेल भेज दिए गए। देवानंद के छोटे भाई निर्देशक और अभिनेता विजय आनंद ने हीरोइनों के साथ तो डुबकी मारी ही अपनी भांजी से विवाह भी कर बैठे। धर्मेंद्र के जीवन में भी कई हीरोइनें हैं। मीना कुमारी से लगायत अनीता राज तक। हीरोइनों के पसंदीदा हीरो। हीरोइनें निर्माता-निर्देशक से इसरार कर के धर्मेंद्र को हीरो रखवाती थीं। क्यों कि धर्मेंद्र उन की जिस्मानी ज़रूरतें पूरी करने में हुनरमंद थे। ऐसा कहा जाता है। मिथुन चक्रवर्ती कभी हेलेना ल्यूक से विवाह किया था। पर साल भर में तलाक हो गया। किशोर कुमार ने योगिता बाली को तलाक दे कर लेना चंद्रावरकर से विवाह किया तो मिथुन ने योगिता बाली से विवाह कर लिया। अभिनेत्री और मशहूर डांसर हेलेन तमाम बाहों से गुजरने के बाद अब सलमान के पिता सलीम खान के साथ रहती हैं। सलमान उन्हें मम्मी कहते हैं। ऐसे अनेक किस्से हैं।

पर राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के जीवन में स्त्रियां तमाम हैं। इतना कि हर एक के हिस्से में अशोक कुमार , दिलीप कुमार , राज कपूर , देवानंद यानी इन चारो के हिस्से में आई स्त्रियों से ज़्यादा एक-एक के हिस्से में। ज़ीनत अमान अमिताभ से भी जुड़ीं। ज़ीनत अमान संजय खान , राजेश खन्ना आदि कई और लोगों से भी जुड़ीं। पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कैप्टन रहे और अब पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान से भी उन के संबंधों की खूब चर्चा रही। विवाह के बाद भी , बेटे के जवान होने के बाद भी पराए मर्दों से जुड़ने की लत उन की छूटी नहीं। इतनी कि इस मुद्दे पर ज़ीनत अमान के पति मज़हर खान और बेटे मिल कर जब-तब उन की पिटाई करने लगे। पति मज़हर खान की तो बाद में किडनी फेल होने के कारण मृत्यु हो गई। बेटे से भी पिटते-पिटते वह उस से अलग हो गईं। ज़ीनत अमान ने फिर दो और शादी की। उन का एक पति तो उन से 30 बरस छोटा था। नाम था अमन खन्ना। जो बाद में सरफराज बना। पर ज़ीनत ने बाद में इस के खिलाफ भी बलात्कार का मुकदमा लिखवा दिया। अब 70 बरस की उम्र में ज़ीनत अमान फिर सिंगिल हैं। ज़रीना वहाब और आदित्य पंचोली के किस्से भी लोग भूले नहीं हैं। न आदित्य पंचोली और कंगना रानावत के। न शेखर सुमन के बेटे अध्ययन सुमन और कंगना रानावत के। कंगना रानावत और ऋत्विक रोशन के किस्से तो अभी भी चर्चा में आ जाते हैं।  मीना कुमारी के साढ़ू और कॉमेडियन महमूद के अरुणा ईरानी समेत अनेक क़िस्से हैं। किसी हीरो से भी बहुत ज़्यादा। कभी महेश भट्ट के साथ मौज करने वाली परवीन बॉबी ने तो अमिताभ पर सार्वजनिक रूप से आरोप भी लगाए और टूट गईं। अकेली हो गईं। अपने फ़्लैट में अकेलापन काटते-काटते कब मर गईं , लोग जान ही न पाए। दूध वाले ने कुछ दिन बाद बताया कि कई दिन से दूध घर के अंदर नहीं गया। तब पता चला। दरवाज़ा तोड़ा गया और परवीन बॉबी की लाश मिली। 

रेखा , अमिताभ की माला आज भी जपती मिलती हैं। अमिताभ बच्चन के नाम का सिंदूर लगाती ही हैं। अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले अमर सिंह ने तो बाकायदा सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया था कि अमिताभ बच्चन  , जया बच्चन के साथ नहीं रेखा के साथ रहते हैं। बाकायदा दिन बांट रखे हैं दोनों के बीच। अमर सिंह के इन आरोपों पर प्रतिवाद किसी ने नहीं किया। न अमिताभ बच्चन ने , न जया बच्चन ने , न ही रेखा ने। न किसी अन्य ने। न अमर सिंह के खिलाफ इस मुद्दे पर कोई कोर्ट गया। और भी कई नाम हैं अमिताभ के साथ जुड़े हुए। नई से नई लड़कियों तक के। राजेश खन्ना तो अनगिन औरतों और शराब के चक्कर में न सिर्फ अपना दांपत्य , परिवार बल्कि सामाजिक जीवन भी बर्बाद कर बैठे और चुपचाप मर गए। राजेश खन्ना एक पत्रकार देवयानी चौबल को सिर्फ इस लिए अपने हरम का सदस्य बना बैठे थे कि उन के मार्फत फिल्म इंडस्ट्री की खबरें मनमुताबिक छपवा सकें। देवयानी चौबल वैसे भी बहुत खूबसूरत थीं। पर राजेश खन्ना का अपनी पत्रकारिता में जम कर इस्तेमाल किया और बड़े-बड़ों पर रौब गांठा। 

ओम पुरी भी ऐसे ही एक पत्रकार नंदिता को दिल दे बैठे थे जो उन का इंटरव्यू लेने आई थी। और पत्नी सीमा को छोड़ कर उस से शादी कर ली। सीमा कपूर मशहूर अभिनेता , निर्देशक रंजीत कपूर की बहन हैं। बाद में इस पत्रकार पत्नी नंदिता कपूर से भी ओम पुरी का झगड़ा हो गया और वह अलग हो गए। लेकिन इस पत्रकार पत्नी ने बाद में ओम पुरी की विभिन्न सेक्स कथाओं की एक पूरी किताब ही लिख दी। 'अनलाइकली हीरो : द स्टोरी ऑफ ओमपुरी'। इस किताब में बचपन में कामवाली से लगायत आखिर तक की उम्र में छोटी-बड़ी उम्र की स्त्रियों की सारी सेक्स कथाएं रस ले कर परोसी गई थी। ओम पुरी के जीवित रहते ही यह किताब छप गई थी। ओम पुरी  ने इस किताब पर कोई प्रतिवाद नहीं किया। क्यों कि सारी कथाएं उन्हों ने ही पत्नी को कभी बता रखी थीं। हां , ऐतराज ज़रूर किया कि ऐसा उन्हें नहीं करना चाहिए था। मेरी ज़िंदगी के इन पन्नों को बिना मेरी सहमति के सार्वजनिक नहीं करना चाहिए था। आमिर खान की दूसरी पत्नी भी पत्रकार ही हैं। आमिर का इंटरव्यू लेते-लेते हमसफ़र बन गईं। तो भी यह लोग राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का स्कोर बोर्ड दूर-दूर तक नहीं छू सके। अलग बात है कि इन राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का भी रिकार्ड अकेले संजय दत्त ने तोड़ दिया। यानी राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन दोनों के योग से भी कहीं ज़्यादा का रिकार्ड संजय दत्त ने ऑफिशियली बनाया। आज से दस बरस पहले तक संजय दत्त का ऑफिशियल रिकार्ड तमाम छोटी-बड़ी हीरोइनों यथा रेखा , माधुरी दीक्षित आदि को मिला कर कोई तीन सौ से ज़्यादा औरतों को भोगने का था। अब कुछ और बढ़ा ही होगा। 

संजय दत्त ने सिर्फ औरतों को भोगने का ही नहीं ड्रग लेने का भी बेहिसाब रिकार्ड बनाया। यह संजय दत्त ही थे जिन के मार्फ़त पता चला कि फ़िल्मी दुनिया के लोग शराब और औरतों के अलावा ड्रग भी खूब लेते हैं। किसिम-किसिम के ड्रग। लेकिन संजय दत्त पीक पर चले गए। औरतों के साथ ही ड्रग लेने का तब कीर्तिमान बनाया था संजय दत्त ने। मां नरगिस कैंसर से जूझ रही थीं , मृत्यु शैया पर थीं और संजय दत्त को तब भी अगर कुछ सूझ रहा था तो औरतें , शराब और ड्रग। सब से ज़्यादा ड्रग। यहां-वहां इलाज करवा कर हार चुके पिता सुनील दत्त ने अमरीका के एक बड़े अस्पताल में ड्रग से छुट्टी दिलाने के लिए संजय दत्त को भर्ती करवाया था। पर संजय दत्त वहां की कड़ी सुरक्षा पार कर सब की आंख में धूल झोंक कर अस्पताल से कोई दो हज़ार किलोमीटर दूर अमरीका में अपने एक दोस्त के पास पैदल ही चल पड़े। ताकि दोस्त से पैसा ले कर ड्रग खरीद सकें। संजय दत्त आर्म्स ऐक्ट में भी गिरफ्तार हो कर लंबी जेल काट चुके हैं। संजय दत्त के जीवन पर बनी फिल्म संजू देख कर जब मैं सिनेमा घर से निकला तो यही सोचा कि बेहतर है भगवान नि:संतान रखें पर संजय दत्त जैसी संतान कभी किसी को न दें। बहुत दुर्भाग्यशाली पिताओं को देखा है पर सुनील दत्त जैसा अभागा पिता कोई एक दूसरा नहीं देखा। फिर भगवान ने सुनील दत्त को कितना तो धैर्य दिया था। यह संजू देख कर पता चला। एक तरफ कैंसर से मर रही पत्नी नरगिस की सेवा , दूसरी तरफ ड्रग , औरतों के शौक और आर्म्स एक्ट का मारा बेटा संजय दत्त को सुधारने और छुड़ाने की परवाह। अदभुत था। 

संजय दत्त के बाद फिर कई और बिगड़ैल शहजादों का नाम ड्रग लेने में जुड़ा। हीरोइनों का भी। पर संजय दत्त के बाद ड्रग के लिए मशहूर निर्माता , निर्देशक और अभिनेता फ़िरोज़ खान के बेटे फरदीन खान का नाम सामने आया। बहुत इलाज हुआ पर जाने वह आज भी ड्रग के चंगुल से निकले कि नहीं , ख़ुदा जाने। फिर छिटपुट कई और हीरो , हीरोइन के नाम ड्रग के लिए वैसे ही सामने आने लगे जैसे कभी कुछ बड़ी हीरोइनों के नाम आते थे जो दुबई जाती रहती थीं , शेखों को खुश करने के लिए। एक बहुत ही शानदार अभिनेता राज किरन का नाम जब ड्रग में आया तो मैं चौंक गया। पर जल्दी ही वह इलाज में लग गए। लेकिन ड्रग तो ड्रग। डसता है तो फिर कायदे से डसता है। बहुत लंबे समय से वह सिने दुनिया ही नहीं , घर से भी गायब हो गए। आज भी कुछ पता नहीं है। ड्रग ट्रैफकिंग में वह पकड़े गए। बहुत समय बाद अमरीका कि कहीं और की किसी जेल से उन की एक फोटो ऋषि कपूर को किसी ने उपलब्ध करवाई। उन्हों ने वह फ़ोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट की। फिर राज किरन का कुछ पता नहीं चला। न किसी ने उन की कोई खबर ली। जो भी हो ड्रग फ़िल्मी दुनिया का शौक ज़रूर था पर सनसनी नहीं था। पर ड्रग , सिनेमा और सनसनी का पहली सुर्खी तब बनी जब मशहूर हीरोइन ममता कुलकर्णी का नाम ड्रग के कारोबार में खुल कर सामने आया। और वह भारत देश छोड़ कर भाग चुकी थीं। पति समेत। बरसों बीते इस घटना को भी। 

फिर सिने जगत से शराब , इश्क , औरतबाज़ी और ड्रग की ख़बरें आम हो गईं। लिव इन रिलेशन शुरू हो गया। राजेश खन्ना , अंजू महेंद्रू से होते हुए बरास्ता शत्रुघन सिनहा , रीना राय तक यह खबरें ख़ास थीं। पर बाद में ऐसी ख़बरें आम हो गईं। ऐसे जैसे नाली में पानी बह रहा हो। एक-एक बांह में कई-कई। कलर्स चैनल पर हर साल बिग बॉस आता है। बिग बॉस में होने वाले आपसी झगड़ों में भी टी वी कलाकारों के ऐसे अनगिन रिश्ते तार-तार होते मिलते हैं। हर बार मिलते हैं। इस साल भी मिल रहे हैं। कब किस के साथ कौन रह गया , कौन बह गया , जैसे सामान्य बात हो गई है। अनुराग कश्यप का मामला तो अभी एक हीरोइन ने सामने रखा ही था। पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई थी..पर क्या हुआ। कास्टिंग काऊच भी कोई चीज़ होती ही है। राजेश खन्ना तो अंतिम समय में भी एक सिंधी महिला के साथ लिव इन में रह रहे थे। लिव इन में ही मृत्यु को प्राप्त हुए। इसी फेर में संपत्ति विवाद भी सामने आया। विनोद खन्ना , अमृता सिंह के साथ रहने लगे थे। शादी के लिए अप्लाई भी किया था कोर्ट में। पर अचानक बात टूट गई। और अमृता सिंह ने सैफ अली खान से विवाह कर लिया। फिर अमृता को छोड़ सैफ करीना कपूर से विवाह रचा लिए। तैमूर उन का बेटा है। एक और की खबर है। सारा अली खान अमृता सिंह , सैफ अली खान की ही बेटी हैं जो इन दिनों अक्षय कुमार के साथ रोमैंटिक जोड़ी बना कर चर्चा में हैं। अभी ड्रग कनेक्शन में भी उन से जांच-पड़ताल चली थी। राजेश खन्ना डिंपल से अलग हो कर इस डाल से उस डाल होते हुए टीना मुनीम के साथ लिव इन में लंबे समय तक रहे थे। पर अचानक टीना मुनीम की उद्योगपति अनिल अंबानी से विवाह की खबर आ गई। दिलचस्प यह कि नाना पाटेकर एक फिल्म खामोशी द म्यूजिकल में काम कर रहे थे। मनीषा कोइराला , सलमान खान के अपोजिट हीरोइन थीं। नाना पाटेकर की बेटी की भूमिका में थीं मनीषा कोइराला। पर पिता बने नाना पाटेकर से नैन भी लड़ा रही थीं। शूटिंग सेट पर जब-तब नाना पाटेकर से मिलने आयशा जुल्का आ जाती थीं। पर मनीषा कोइराला नाना पाटेकर को ले कर इतनी पजेसिव थीं कि आयशा जुल्का को देखते ही भड़क जाती थीं। लेकिन  दिलचस्प यह कि जब फिल्म की शूटिंग खत्म हुई तो नाना पाटेकर आयशा जुल्का के साथ लिव इन में रहने लगे। 

सलमान खान के वैसे तो संगीता बिजलानी समेत तमाम किस्से हैं। वही संगीता बिजलानी जो बाद में क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन की दूसरी बेगम बनीं। पर बाद में मोहम्मद अजहरुद्दीन ने नौरीन की तरह संगीता को भी तलाक दे दिया। पर ऐश्वर्या राय और कैटरीना कैफ के साथ तो सलमान खान जाने कितनी सरहदें लांघ गए थे। सरहद ही नहीं लिव इन को भी मात दे दिया। ऐश्वर्या को ले कर शाहरुख खान की पिटाई तक कर दी थी सलमान ने। विवेक ओबेराय को भी धर दबोचा था। ऐसी ही हिंसा कभी हेमा मालिनी को ले कर धर्मेंद्र किया करते थे। एक बार तो धर्मेंद्र ने एक स्क्रीन के एक पत्रकार को भी सरे आम पीट दिया था। पत्रकार की ग़लती यह थी कि उस ने हेमा और धर्मेंद्र के संबंधों पर कुछ लिख दिया था। रेखा ने तो किस-किस से विवाह नहीं किया। किरन  कुमार , विनोद मेहरा , संजय दत्त , मिस्टर अग्रवाल , अमिताभ बच्चन आदि कई लोगों के नाम चर्चा के सागर में डूब चुके हैं। हेमा मालिनी का भी यही हाल है। संजीव कुमार , जितेंद्र , गिरीश कर्नाड आदि-इत्यादि से होती-हवाती आखिर धर्मेंद्र के ही हिस्से आईं। पर जितेंद्र के साथ विवाह के लिए मंडप में भी बैठ चुकी थीं हेमा। वह एक लंबी कहानी है। महेश भट्ट के पिता विजय भट्ट नामी निर्देशक थे अपने समय में। एक से एक कामयाब फ़िल्में बनाई हैं। पर महेश भट्ट की मां के साथ विवाह नहीं कर पाए और तीन बेटे पैदा कर लिए। महेश भट्ट की मां मुस्लिम थीं। सो विरोध बहुत हुआ। यह एक दूसरी कहानी है। इसी बिना पर महेश भट्ट खुल कर कहते हैं , मैं हरामी हूं। दिलचस्प यह कि शराब और औरतों के मारे हुए परवीन बॉबी के साथी रहे महेश भट्ट अपनी पहली पत्नी से हुई बेटी पूजा भट्ट की सिगरेट पर बहुत नाराज रहते थे। पूजा भट्ट तब के दिनों चेन स्मोकर हो गई थीं। पिता की तरह वह भी कई पुरुषों के फेर में पड़ीं। विवाह हुआ किसी तरह। दिलचस्प यह कि अभी बीते हफ्ते ही पूजा भट्ट ने अपने शराब छोड़ने की चौथी सालगिरह मनाई है। अपने शराब और मर्दों की बाहें बदलने की शौक़ीन श्रीदेवी तो कभी अमिताभ बच्चन से भी विवाह करना चाहती थीं। कम लोग जानते हैं कि रेखा से एक समय अमिताभ को दूर करने में श्रीदेवी का बहुत बड़ा हाथ था। हुआ यह कि रेखा ने ही अमिताभ से मिलने के लिए श्रीदेवी का फ़्लैट चुना था। श्रीदेवी के फ़्लैट पर रेखा , अमिताभ के साथ समय गुज़ारती थीं। किसी को शक भी नहीं होता था। बाद के समय में बिना रेखा को बताए श्रीदेवी अमिताभ को बुलाने लगीं। अमिताभ श्रीदेवी के साथ समय गुज़ारने लगे। एक समय श्रीदेवी , मिथुन चक्रवर्ती के साथ बस रहती नहीं थी , पर लिव इन ही था। बाद में बोनी कपूर के बंगले के एक हिस्से में श्रीदेवी रहने लगीं। मिथुन का शक दूर करने के लिए बोनी कपूर को राखी बांधती थीं। पर यह देखिए कि श्रीदेवी ने राखी भूल कर बोनी कपूर से विवाह किया और उन की दो बेटियों की मां बनीं। दुबई के एक होटल में बाथ टब में डूब कर मर गईं। जाने शराब ज़्यादा पी ली कि ड्रग ज़्यादा ले लिया। आज तक पता नहीं चला। बोनी कपूर ने सब कुछ मैनेज कर लिया। 

तो शराब , औरत और ड्रग का बहुत पुराना रिश्ता है हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री का। कह सकते हैं कि चोली दामन का रिश्ता है। पर इस कोरोना काल में , बीच लॉक डाऊन में सुशांत सिंह राजपूत की  हत्या ऊर्फ आत्महत्या की घटना ने जैसे फिल्म इंडस्ट्री को नंगा कर दिया। हिला कर रख दिया। हर साल गर्लफ्रेंड बदलने वाला , गर्लफ्रेंड को चार्टर्ड प्लेन से विदेश घुमाने वाला सुशांत सिंह राजपूत ड्रग लेता था कि नहीं , यह सवाल अब बहुत बेमानी है। सुशांत सिंह राजपूत पूरा का पूरा अय्याश था , यह तो अब पूरी तरह सिद्ध है। बहरहाल शुरू में तो लोगों ने मुंबई पुलिस के कहे मुताबिक़ आत्महत्या ही माना ,पर जब सुशांत के पिता ने हत्या का आरोप लगाते हुए सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती को हत्यारा कहा तो जैसे तूफ़ान आ गया। रिया पहले तो मासूम बनी रही पर जल्दी ही हमलावर बन गई। सुशांत के पिता और बहनों पर आक्रामक हो गई। क्या-क्या आरोप नहीं लगाए। बिहार पुलिस के तत्कालीन डी जी पी गुप्तेश्वर पांडेय अचानक रॉबिन हुड बन कर इस मामले में कूद पड़े। महाराष्ट्र पुलिस और बिहार पुलिस में ऐसी रस्साकसी चली कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और जांच सी बी आई को चली गई। जैसे केंद्र सरकार , बिहार सरकार वर्सेज महाराष्ट्र सरकार का मामला बन गया। अभी सी बी आई जांच शुरू भी नहीं हुई थी कि इंफोरस्मेंट की जांच में सुई ड्रग रैकेट की तरफ घूम गई। रिया चक्रवर्ती ने जांच के फंदे में खुद को घिरते देख आज तक न्यूज़ चैनल पर एक प्रायोजित इंटरव्यू में सुशांत सिंह राजपूत पर ही ड्रग लेने का आरोप लगा दिया। अंतत: रिया और उस के भाई को नारकोटिक्स ब्यूरो ने गिरफ्तार कर लिया। आहिस्ता-आहिस्ता पूरी फिल्म इंडस्ट्री शक के घेरे में आ गई। एक से एक बड़े-बड़े नाम चर्चा के केंद्र में आ गए। कंगना रानावत पहले ही अपने को ड्रग एडिक्ट बता चुकी थीं। अब सुशांत सिंह राजपूत मामले में भी कूद पड़ीं। बात यहां तक बढ़ी कि कंगना की उद्धव सरकार से ठन गई। उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे तक का नाम घसीट लिया गया। छोटा पेंग्विन कह कर आदित्य ठाकरे पर आरोपों की बौछार लग गई। 

बात यहां तक पहुंची कि कंगना का पाली हिल वाला घर मुंबई नगर निगम ने तोड़-फोड़ दिया। सामना अखबार में बैनर हेडिंग लगा कर खबर छापी कि उखाड़ दिया। इस के पहले एक वीडियो जारी कर कंगना ने उद्धव ठाकरे को चुनौती दी थी कि आ रही हूं मुंबई , जो उखाड़ना हो उखाड़ लो। कंगना को वाई श्रेणी की सुरक्षा भी केंद्र सरकार ने दे दी। कंगना ने सुशांत सिंह राजपूत की हत्या में आदित्य ठाकरे पर सीधा निशाना साधा। बताया कि सुशांत सिंह राजपूत की पुरानी मैनेजर दिशा सालियान की भी हत्या हुई थी , उस में भी आदित्य ठाकरे का हाथ था। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री नारायण राणे और उन के बेटे ने भी दिशा सालियान और सुशांत सिंह राजपूत की हत्या में आदित्य ठाकरे का नाम सीधे तौर पर लिया। पर सी बी आई जांच में अभी तक कुछ भी साबित हो कर स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया है। अटकलों का खेल भी अभी बंद है। पर तब के दिनों नारकोटिक्स ब्यूरो की जांच में जैसे पूरी मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग की आग ऐसे लगी थी गोया जंगल में आग लगी हो। बीच कोरोना काल और लॉक डाऊन के सन्नाटे में दो ही मामले तब खबरों का सन्नाटा तोड़ रहे थे। एक प्रवासी मज़दूरों का विस्थापन दूसरे , मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग का सेवन। पहले नंबर पर यह ड्रग ही था। एक से एक बड़े-बड़े नाम। सलमान खान से लगायत शाहरुख खान तक के नाम चर्चा में आए। सुशांत सिंह का फ़ार्म हाऊस भी खूब चर्चा में आया ड्रग पार्टी के लिए। बात संसद तक पहुंची। गोरखपुर के सांसद और भोजपुरी फ़िल्मों के हीरो रवि किशन ने फ़िल्म इंडस्ट्री में ड्रग मामले को बड़े ज़ोर-शोर से उठाया लोक सभा में । मामला इतना गरमा गया कि राज्य सभा में मशहूर हीरोइन और सपा सांसद जया बच्चन ने रवि किशन का नाम लिए बिना उन पर कड़ा प्रहार करते हुए वह उद्धव ठाकरे सरकार के बचाव की पैरवी में उतर गईं। अंगरेजी में दिए गए भाषण में जया बच्चन ने कहा कि कुछ लोग हैं जो जिस थाली में खाते हैं , उसी थाली में छेद करते हैं। रवि किशन फिर पूरा राशन-पानी ले कर जया बच्चन पर चढ़ाई कर बैठे। तब जब कि रवि किशन खुद तमाम किसिम के नशे के आरोपों में घिरे रहे हैं। फिर क्या था जया बच्चन अब सोशल मीडिया पर बुरी तरह ट्रोल हो गईं। जो-जो नहीं कहा जाना चाहिए था , सब कहा गया। जया बच्चन की निजी ज़िंदगी के पन्ने खोले जाने लगे। डैनी से उन की पुरानी दोस्ती और संबंधों तक को खंगाल लिया गया। कहा गया कि धन्यवाद डैनी जया की थाली में छेद करने के लिए। जया के बहाने अमिताभ बच्चन भी निशाने पर आ गए। उन की थाली के अनगिन छेद खोज डाले गए। उन की महानायक की छवि जैसे खंडित होने लगी। फोन पर अमिताभ की कोरोना वाली कॉलर ट्यून तक का विरोध। जया की बेटी श्वेता की निजी ज़िंदगी के पन्ने भी खुले। बात ऐश्वर्या की निजी ज़िंदगी तक आ गई। ऐश्वर्या की थाली में छेद करने के तौर पर सलमान खान और विवेक ओबेराय तक की याद की गई। जया बच्चन की नातिन का शाहरुख खान के बेटे आर्यन के साथ एक कार में सेक्सुअल वीडियो भी वायरल हुआ यह कहते हुए कि थाली में ऐसे भी छेद होता है। कुल मिला कर यह कि जया बच्चन का राज्य सभा में थाली में छेद करने वाला भाषण उन पर बहुत बुरी तरह भारी पड़ा। इस सब पर न जया बच्चन की मदद के लिए कोई सामने आया और न ही वह खुद इस सब पर कोई प्रतिवाद कर पाईं आज तक। भरपूर छीछालेदर हुई सो अलग।    

बहरहाल सलमान , शाहरुख खान तो तमाम चर्चा के बावजूद अभी तक नारकोटिक्स शिकंजे में नहीं आए पर एक बड़ी हीरोइन दीपिका पादुकोण ज़रूर ड्रग लेने के जाल में फंस गईं। जेल तो नहीं गईं अभी तक दीपिका पर पूछताछ के फंदे में ज़रूर वह आ गईं। गोवा तक उन का पीछा हुआ। दीपिका पादुकोण का जैसे सार्वजनिक जीवन नष्ट हो गया। करन जौहर के घर एक ड्रग पार्टी का वीडियो जिस में दीपिका पादुकोण भी किसी की गोद में बैठी हुई हैं , वायरल हो गया। कारण जौहर भी शक के घेरे में हैं। खैर तब दीपिका के तमाम विज्ञापन बंद हो गए। सारी कंपनियों ने एक साथ दीपिका वाले विज्ञापन बंद कर दिए। इतना नुकसान और अपमान तो जे एन यू जाने पर भी दीपिका का नहीं हुआ था। लगा कि जैसे दीपिका पादुकोण के कैरियर पर ग्रहण लग गया हो। पर इन दिनों हफ्ते भर से जियो के विज्ञापन में अपने पति रणवीर सिंह के साथ वह फिर से दिखने लगी हैं। दीपिका के साथ पूछताछ में उन की मैनेजर और एक पी आर कंपनी भी घेरे में आई। ड्रग के बाबत पूछताछ के फंदे में नवाब पटौदी और शर्मीला टैगोर की नातिन , सैफ अली खान , अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान भी आईं। लेकिन अब वह भी अक्षय कुमार सिंह के साथ एक फिल्म में अपनी रोमैंटिक जोड़ी के रूप में पर्याप्त चर्चा में हैं। ड्रग लेने की आंच कॉमेडियन भारती और उन के पति पर भी आई। जेल की हवा खा कर ज़मानत ले कर दोनों बाहर आ चुके हैं। जैसे और तमाम लोग। अलग बात है कि अभिनेता अर्जुन रामपाल इन दिनों फिर ड्रग की जांच का सामना कर रहे हैं। 

पर जैसा कि कहा जाता रहा था कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी-बड़ी मछलियां ड्रग के फंदे में फंसेंगी और कि जेल की सलाखों के पीछे होंगी। ऐसा तो अभी तक नहीं हुआ। अब लगता है कि जैसे यह सब सिर्फ एक शगूफा था। एक बुरा सपना था। यह सपना अब टूट इस लिए गया है कि मुंबई फिल्म इंड

स्ट्री के लोग जाग गए हैं। जाग कर सब कुछ मैनेज कर ले गए हैं। जैसे आदित्य ठाकरे के पिता उद्धव ठाकरे ने शरद पवार के मार्फत आदित्य ठाकरे को हत्या और ड्रग की बदनामी के दाग को मैनेज कर धो दिया है। मुंबई के सागर में अब सब कुछ सामान्य दीखता है। बदनामी की लहरें जैसे किनारों की चट्टानों से टकरा कर कहीं कोई और पटकथा लिख रही हैं। ड्रग की एक सुनामी थी जो आ कर चली गई लगती है। एक बुरा सपना था ड्रग का जिसे किसी डाक्टर ने चुपचाप दवा दे कर दबा दिया है।  

कमलेश्वर याद आते हैं। कमलेश्वर ने फिल्म इंडस्ट्री में कई निर्माता-निर्देशकों के लिए फिल्म लिखने का काम किया है। कभी कथा , कभी पटकथा। एक फ़िल्मी पार्टी में वह देवानंद के साथ थे। उन के हाथ में स्कॉच से भरा गिलास था। अचानक देवानंद ने उन से चलने के लिए कहा। कमलेश्वर ने उन से कहा , ऐसे कैसे चला चलूं। हाथ में स्कॉच है। इसे कैसे फेंक दूं। ऐसे कैसे छोड़ दूं। देवानंद ने कहा , कुछ नहीं इसे ऐसे ही कहीं रख दीजिए। यह पियक्कड़ों की पार्टी है। कोई न कोई पी लेगा।  बेकार नहीं जाएगी यह स्कॉच। कमलेश्वर ने स्कॉच का भरा गिलास वहीँ कहीं रख दिया। और देवानंद के साथ चल दिए। मुड़ कर देखा तो पाया कि सचमुच कोई उन के स्कॉच का गिलास उठा कर होठों से लगा चुका था। वह एम जी हशमत का लिखा एक गाना है न :

हे, ये बम्बई शहर हादसों का शहर है

यहाँ ज़िन्दगी हादसों का सफ़र है

यहाँ रोज़-रोज़ हर मोड़-मोड़ पे

होता है कोई न कोई

हादसा, हादसा...


यहाँ की ख़ुशी और गम हैं अनोखे

बड़े खूबसूरत से होते हैं धोखे

बहुत तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी की

है फुर्सत किसे कोई कितना भी सोचे

ख़ुशी हादसा है, गम हादसा है

हकीकत भुला कर हर इक भागता है

यहाँ रोज़-रोज़ की भाग-दौड़ में

होता है कोई न कोई

हादसा, हादसा...


यहाँ आदमी आसमां चूमते हैं

नशे में तरक्की के सब झूमते हैं

हरी रौशनी देख भागी वो कारें

अचानक रुकी फिर से बन के कतारें


यहाँ के परिंदों की परवाज़ देखो

हसीनों के चलने का अंदाज़ देखो

यहाँ हुस्न इश्क की आब-ओ-हवा में

होता है कोई न कोई

हादसा, हादसा...

तो घबराइए नहीं। जल्दी ही फिर कोई नया हादसा हमारे सामने हो सकता है। ड्रग का नहीं न सही , कोई और सही। कोई न कोई पटकथा लिख ही रहा होगा। कोई न कोई डायरेक्टर लाइट , कैमरा , ऐक्शन ! बोलेगा ही। ड्रग नहीं , शराब नहीं , औरत नहीं , और सही। सिने दुनिया है। आखिर कोई न कोई शुरुर तो चाहिए ही। गुलशन कुमार का हत्यारा नदीम जैसे क़ानून के हाथ नहीं लगा। जैसे हीरोइन दिव्या भारती की हत्या की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी। जैसे निर्देशक मनमोहन देसाई की मृत्यु हत्या थी कि आत्महत्या कोई नहीं जान पाया। जैसे सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु हत्या थी कि आत्महत्या। ड्रग लेता था कि नहीं। जैसी गुत्थियां अभी तक नहीं सुलझीं। तो आप क्या समझते हैं कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग की गुत्थी सुलझ जाएगी। तौबा-तौबा ! ऐसा कुफ्र तो मत ही कीजिए।

Sunday, 13 March 2022

कश्मीर फ़ाइल्स में नरसंहार देखने के बाद नींद उड़ गई है मेरी

दयानंद पांडेय 


आज और कल दो रात ठीक से सो नहीं सका। दिन में सोने की कोशिश की। फिर नहीं सो सका। कश्मीरी पंडितों का नरसंहार सोने नहीं देता। कुछ और सोचने नहीं देता। कश्मीर फ़ाइल्स देखे दो दिन हो गए हैं। लेकिन कश्मीरी पंडितों का दुःख है कि दिल में दुबका हुआ है। किसी मासूम की तरह गोद में दुबका बैठा है। छाती से चिपका हुआ। बहुत कोशिश के बावजूद नहीं जा रहा। इस कश्मीर फ़ाइल्स के बारे में बहुत चाह कर भी लिख नहीं पा रहा था। उन का दुःख लासा की तरह चिपक गया है। क्या करुं। इस फ़िल्म ने रुलाया भी बहुत है। कोई भी भावुक व्यक्ति रो देगा। 

प्रसिद्द फ़िल्मकार विधु विनोद चोपड़ा जो ख़ुद कश्मीरी हैं , की कश्मीर पर बनी फ़िल्म शिकारा: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ कश्मीरी पंडित भी देखी है। पर वह फैंटेसी थी। व्यावसायिक और बेईमानी भरी फ़िल्म थी। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का आंखों देखा हाल नहीं बताती थी शिकारा। मनोरंजन करने वाली फ़िल्म थी। सो उस में अंतर्विरोध भी बहुत थे। मनोरंजन में दबा डायरेक्टर दुःख बेच तो सकता है , दुःख दिखा नहीं सकता। दुःख महसूस करने की चीज़ होती है। नरसंहार की कहानी में प्यार और प्यार के गाने नहीं फिट हो सकते। कैसे फिट हो सकते हैं भला। तो विधु विनोद चोपड़ा ने प्रेम कहानी परोस दी थी। 

कई बार दुःख चीख़ कर सामने आता है तो कई बार चुपचुप। तो कश्मीर फ़ाइल्स चुपचाप चीख़ती है। चीख़ती हुई कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की लोमहर्षक कथा कहती है। बिना लाऊड हुए। कश्मीरी पंडितों के लहू में डूबी कथा। क्या स्त्री , क्या बच्चे , क्या बूढ़े , क्या जवान , सब के लहू में डूबी अंतहीन लहू की कथा। जेहाद के क्रूर हाथों और इन जेहादियों को मदद करता सत्ता का सिस्टम। क्या मास्टर , क्या डाक्टर , क्या पत्रकार , क्या पुलिस अफ़सर , क्या आई ए एस अफ़सर। हर कोई जेहादियों के निशाने पर है। प्रताड़ित और अपमानित है। नर संहार का शिकार है। कब कौन बेबात मार दिया जाए , कोई नहीं जानता। लेकिन शारदा पंडित को सब के सामने नंगा कर सार्वजनिक रुप से घुमाना और आरा मशीन में चीर देना , देख कर कलेजा मुंह को आ जाता है। 

कुछ समय पहले कश्मीरी पंडित दिलीप कुमार कौल की एक कविता पढ़ी था , शहीद गिरिजा रैना का पोस्टमार्टम। इस कविता में गिरिजा रैना के साथ यही जेहादी सामूहिक बलात्कार कर आरा मशीन में चीर दिया जाता है। यह कविता पढ़ कर भी मैं हिल गया था। नहीं सो पाया था। लेकिन ऐसी ह्रदय विदारक घटनाओं की कश्मीर में तब बाढ़ आई हुई थी। सारे मानवाधिकार संगठन  रजाई ओढ़ कर सो गए थे। पूरे देश में जेहादी आतंकवाद मासूम नागरिकों को अपना ग्रास बनाए हुए था। पर सेक्यूलरिज्म के मुर्ग़ मुसल्लम में सब के सब ख़ामोश थे। जब अपने ऊपर आतंकी हमले का लोग प्रतिकार करने में शर्मा रहे थे , कहीं सांप्रदायिक न घोषित कर दिए जाएं , इस लिए लजा रहे थे। तो कश्मीरी पंडितों पर भला कोई क्यों बात करता। 

यहां तो लव जेहाद के खिलाफ बोलना भी हराम बता दिया गया था। कश्मीरी पंडितों पर आज भी कुछ बोलिए और लिखिए तो विद्वान लोग बताते हैं कि यह तो माहौल ख़राब करना है। इन विद्वानों के दामाद जेहादी जो चाहें , करें। नरसंहार भी करें तो वह मनुष्यता के हामीदार कहलाते हैं। लेकिन इन विद्वानों के दामाद जेहादियों का हत्यारा चेहरा दिखाने वाला सांप्रदायिक क़रार दे दिया जाता है। हिंदू-मुसलमान करने वाला बता दिया जाता है। भाजपाई , संघी और भक्त की गाली से नवाज़ा जाता है। अजब नैरेटिव गढ़ दिया गया है। इसी लिए जो बालीऊड कभी हर चार में दो फ़िल्म की शूटिंग कश्मीर में करता था , कम से कम गाने तो करता ही था। इन कश्मीरी पंडितों का नरसंहार भूल गया। 

दाऊद की बहन हसीना पार्कर का चेहरा साफ़ करने के लिए हसीना पार्कर पर फ़िल्म बनाना तो याद रहा। पर कश्मीरी पंडितों का नरसंहार और उन को कश्मीर से जेहादियों द्वारा भगा देना भूल गया। हेलमेट , हैदर और मुल्क़ जैसी प्रो टेररिस्ट फ़िल्में लेकिन बनाता रहा यही बालीऊड। लेखक , बुद्धिजीवी , पत्रकार ही नहीं , फ़िल्मकार भी सेक्यूलरिज्म और हिप्पोक्रेसी के कैंसर से पीड़ित हैं। कश्मीर फ़ाइल्स फ़िल्म के ख़िलाफ़ फतवा जारी हो गया है कि यह फ़िल्म माहौल ख़राब करने वाली फ़िल्म है। ऐसे जैसे कश्मीर फ़ाइल्स ने इन के नैरेटिव पर हमला कर दिया हो। फ़िल्म देखने के बाद आप पाएंगे कि कश्मीर फ़ाइल्स सचमुच इन हिप्पोक्रेट्स पर बहुत कारगर और क़ामयाब हमला है। इन के सारे नैरेटिव ध्वस्त कर दिए हैं इस अकेली एक फ़िल्म ने। कश्मीर फ़ाइल्स देखने के बाद दो आंखें बारह हाथ फ़िल्म में भरत व्यास का लिखी वह एक प्रार्थना याद आती  है :

ऐ मालिक तेरे बंदे हम,
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चले और बदी से टले,
ताकी हँसते हुये निकले दम

फ़िल्म शुरु होते ही पूरे सिनेमाघर में एक अजीब निस्तब्धता छा जाती है। हाल हाऊसफुल है पर पिन ड्राप साइलेंस। ऐसी ख़ामोशी , ऐसी नीरवता किसी फ़िल्म में अभी तक नहीं देखी थी। कभी नहीं। शाम सात बजे का शो है। ज़्यादातर लोग परिवार सहित आए हैं। पर कहीं कोई खुसफुस नहीं। फ़िल्म की गति , कथा की यातना ऐसी है , विषय ऐसा है कि कुछ और सोचने का अवकाश ही नहीं मिलता। अचानक इंटरवल होता है। भारी क़दमों से , भारी मन से कुछ लोग उठते हैं। जल्दी ही लौट कर फिर अपनी-अपनी कुर्सियों पर धप्प से बैठ जाते हैं। बिन कुछ बोले। बिना किसी की तरफ देखे। 

कश्मीर फ़ाइल में फ्लैश बैक बहुत है। कहीं कोई उपकथा या क्षेपक नहीं है। पूरी फ़िल्म में एक गहरी उदासी है। निर्मम और ठहरी हुई उदासी। पतझर जैसी। बर्फ़ में गलती हुई। ठहर-ठहर कर अतीत को देखती हुई। डल झील में जमती और पिघलती बर्फ़ की तरह। वर्तमान से जोड़ती हुई। कोई शिकारा जैसे पानी को चीरता हुआ चले। किसी हाऊस बोट की तरफ। फिर लौट-लौट आए। दुःख के और-और , ओर-छोर ले कर। कश्मीरी पंडितों के अपमान , दुराचार और नरसंहार को टटोलती हुई। जैसे कोई निर्धन बच्चा नदी के जल में कोई सिक्का खोजे। फ़िल्म कश्मीरी पंडितों की पीड़ा , उन की यातना की इबारत उसी तरह खोजती और बांचती मिलती है। अकथनीय दुःख को दृश्य और शब्द देती हुई। कई बार बच्चा कोई सिक्का पा जाता है। कभी नहीं भी पाता। पर लगा रहता है। 

मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट शिवरात्रि के नाटक की तैयारी में है। उन का छोटा पोता शिवा क्रिकेट खेल रहा होता है। बर्फ़ीले मैदान में। रेडियो पर क्रिकेट की कमेंट्री और बच्चों का खेल एक साथ जारी है। अचानक सचिन तेंदुलकर का नाम रेडियो पर आता है। शिवा भी सचिन-सचिन चिल्लाने लगता है। जेहादी यह सुनते हुए उसे दौड़ा लेते हैं मारने के लिए। शिवा अपने दोस्त के साथ भागता है। भागता जाता है। सड़कों पर जेहादी बेवजह सब को मौत के घाट उतारते जाते हैं। बेहिसाब। मौत के घाट उतरते जा रहे यह कश्मीरी पंडित हैं। सारे जेहादी चूंकि स्थानीय हैं , सो सब को पहचानते हैं। कौन अपना है , कौन कश्मीरी पंडित। 

छुपते-छुपाते शिवा अपने दोस्त के साथ इधर-उधर भटकता रहता है। हर सड़क पर कश्मीरी पंडितों पर काल मंडरा रहा है। पुष्कर नाथ भट्ट शंकर जी के मेकअप में बैठे हुए हैं कि उन के घर से फ़ोन आता है। वह मेकअप बिना उतारे , शिव बने , स्कूटर ले कर शिवा को खोजने निकल पड़ते हैं। शिवा मिल जाता है। पर सड़क पर तो कोहराम है। अचानक एक पुलिस जीप आती है। पुष्कर नाथ भट्ट के पास। पुलिस वाला कहता है , मास्टर जी कहां ऐसे माहौल में आप निकल पड़े हैं। आइए मेरे साथ। वह पुलिस जीप के पीछे-पीछे चलने का इशारा करता है। मास्टर जी पुलिस जीप के पीछे-पीछे चल पड़ते हैं। अचानक पुलिस जीप को जेहादी बम फेंक कर उड़ा देते हैं। मास्टर जी शिवा को स्कूटर पर लिए रास्ता बदल लेते हैं। 

इधर मास्टर के घर पर भी जेहादी हमला बोल चुके हैं। मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट का पड़ोसी पहले ही उन के बेटे को घर छोड़ कर जाने की सलाह दे चुका है। माहौल बहुत ख़राब है कह कर कहता है , आप का घर मैं देख लूंगा। कब्जा करने की नीयत साफ़ दिखती है। पर मास्टर का बेटा घर छोड़ कर नहीं जाता। अचानक पड़ोसी की शह पर जेहादी घर पर हमला बोल देते हैं। बीवी के कहने पर मास्टर का बेटा , न-न कहते हुए , चावल के ड्रम में छुप जाता है। एक पल के लिए मौत टल जाती है। मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट भी शिवा को ले कर घर आ जाते हैं। पर पड़ोसी के इशारे पर जेहादी फिर लौटते हैं। पड़ोसी इशारे से बता देता है , चावल के ड्रम में। 

जेहादी चावल के ड्रम पर इतनी गोली मारते हैं कि चावल कम , लहू ज़्यादा बहने लगता है , ड्रम से। लहू में सना चावल पुष्कर नाथ की बहू शारदा पंडित को जेहादी जबरिया खिलाता है। कहता है दो ही रास्ता है। मेरे साथ चल या यह चावल खा। यह जेहादियों का नेता है। कमांडर है। पुष्कर नाथ भट्ट का विद्यार्थी रहा है। मास्टर से कहता है , पढ़ाया था , इस लिए छोड़ रहा हूं तुम को। लेकिन मास्टर पुष्कर को और बहू शारदा को मारता बहुत है। बंदूक़ की बट से मारता है। पति के लहू में सना चावल खा कर किसी तरह जान बचती है। 

ऐसा एक विवरण पढ़ा है पहले भी। दो बेटों की हत्या कर उन के खून में भात सान कर उन की मां को खिलाया गया था। वामपंथियों ने ऐसा किया था कोलकाता में। और ऐसा करने वाले लोग बरसों मंत्री पद भी भोगते रहे , वाम शासन में। पश्चिम बंगाल का चरित्र ही रक्तपात का बना दिया गया। जो हाल-फ़िलहाल जाता नहीं दीखता। अब की यह विवरण भले फ़िल्म में सही , नंगी आंखों से देख रहा था।

शारदा पंडित और पुष्कर नाथ को बेटे के लहू में सना चावल खाते देख कर। देख रहा था और दहल रहा था। कहते हैं यह शारदा पंडित और पुष्कर नाथ सच्चे चरित्र हैं। सच्ची घटना है। आप ऐसी घटना देख कर कैसे सो सकते हैं। हां , आप कम्युनिस्ट हैं , जेहादी हैं तो फिर कोई बात नहीं। आप का तो यह नित्य का अभ्यास है। यही लक्ष्य है आप का। फिर मास्टर का परिवार घर छोड़ कर दूसरी जगह शरण ले लेते हैं। शरण देने वाले को ही जेहादी उस के घर से उठा ले जाते हैं। इस घर में कई कश्मीरी पंडित शरणार्थी हैं। 

रातोरात एक ट्रक से जम्मू के लिए चल देते हैं सभी के सभी। अचानक रास्ते में एक लड़की को पेशाब लगती है। बहुत चिल्लाने पर भी ट्रक नहीं रुकता। ट्रक में स्त्री-पुरुष खचाखच भरे पड़े हैं। दो कंबल की आड़ में दो स्त्रियां ट्रक के आख़िरी छोर पर पेशाब करवाती हैं। पेशाब कर के वह लड़की उठती है और चीख़ पड़ती है। सड़क किनारे पेड़ों पर लाशें टंगी पड़ी हैं। सब के सब चीख़ पड़ते हैं। यह कश्मीरी पंडितों की सामूहिक चीख़ है। जिसे किसी सरकार , किसी पार्टी , किसी मानवाधिकार , किसी लेखक , किसी पत्रकार ने कभी नहीं सुनी। बर्फ़ से घिरी सड़कों और वृक्षों ने , जमी हुई बर्फ़ ने भी जाने यह चीत्कार कभी सुनी कि नहीं। ट्रक भी कैसे सुनता भला। 

श्रीनगर का कमिश्नर ब्रह्मदत्त , पुष्करनाथ भट्ट का दोस्त है। सब से बड़ा पुलिस अफ़सर भी पुष्कर का दोस्त है। एक डाक्टर भी और दूरदर्शन का एक पत्रकार भी। कोई एक पुष्कर की मदद नहीं कर पाता। चाह कर भी नहीं। आई ए एस अफ़सर जो श्रीनगर का कमिश्नर है , उस से एक सब्जी दुकानदार भी नहीं डरता। कमिश्नर के सामने ही वह पाकिस्तान का रुपया वापसी में मास्टर को देता है। और कहता है कि यहां रहना है तो पाकिस्तान का रुपया ही लेना होगा। एक गोल्ड मेडलिस्ट लड़की है। कमिश्नर से कहती है कि राशन दुकानदार उसे इस लिए राशन नहीं बेच रहा है कि वह कश्मीरी पंडित है। कमिश्नर के कहने पर भी उसे राशन नहीं मिलता। कमिश्नर के सामने ही एयर फ़ोर्स के कुछ अफ़सर सरे आम मार दिए जाते हैं , जेहादियों द्वारा। 

कमिश्नर अवाक देखता रह जाता है। वहां उपस्थित पुलिस वालों से कमिश्नर कहता है , मुंह क्या देख रहे हो। पकड़ो इन्हें। पुलिस वाले सिर झुका कर खड़े रह जाते हैं। कमिश्नर के सामने ही भारतीय तिरंगा हटा कर पाकिस्तानी झंडा लगा दिया जाता है। ऐसी अनगिन कहानियों , दुःख और नरसंहार से कश्मीर फ़ाइल्स भरी पड़ी है। मुख्य मंत्री से जब कमिश्नर यह सब बताता है तो मुख्य मंत्री कमिश्नर से कहता है यू , थोड़ा रुकता है और कहता है , आर सस्पेंडेड। यह फ़ारुख़ अब्दुल्ला है। जो एक जेहादी से मिलने को बेक़रार है। जेहादी मुख्य मंत्री आवास के लॉन में सामने ही कुर्सी पर बैठा हुआ है। मय हथियार के। बगल में खड़े पुलिस अफ़सर की कमर में लगी पिस्तौल निकाल कर कमिश्नर ब्रह्मदत्त उस जेहादी को वहीं शूट कर देता है। मुख्य मंत्री लाचार खड़ा देखता रह जाता है। 

कमिश्नर ब्रह्मदत्त की यह लाजवाब भूमिका मिथुन चक्रवर्ती के हिस्से आई है। मिथुन का अभिनय पूरी फ़िल्म में बेमिसाल है। आदत के मुताबिक़ वह किसी भी दृश्य या संवाद में लाऊड नहीं हुए हैं। गुरु फ़िल्म से ही उन की फ़िल्मोग्राफ़ी जो बदली है , वह निरंतर निखरती गई है। कश्मीर फ़ाइल्स में आई ए एस अफ़सर जिस की छवि समाज में ख़ुदा की सी है। परम शक्तिशाली की है। उस अफ़सर की लाचारी और बेबसी को अभिनय में बेसाख़्ता परोसना बहुत आसान नहीं था। बहुत जटिल भूमिका को आहिस्ता-आहिस्ता कश्मीर की बर्फ़ में गला कर सख़्त किया है मिथुन ने। जम्मू में कश्मीरी पंडितों के कैंप में केंद्रीय गृह मंत्री के साथ बतौर राज्यपाल के सलाहकार रुप में उपस्थित हैं मिथुन । मुफ़्ती मुहम्मद सईद कश्मीरी पंडितों के लिए अपमानजनक तंज के साथ उपस्थित है। यहां मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट को अचानक देख कर वह परेशान होते हैं। 


पुष्कर लगभग विक्षिप्त हो रहे हैं। रिफ्यूजी कैम्प के टेंट में गरमी और विपन्नता उन की साथी है। मिथुन कश्मीर में उन की वापसी का प्रबंध करते हैं। एक आरा मशीन में नौकरी का प्रबंध भी। और यहीं उन की बहू शारदा पंडित को सब के सामने नंगा कर आरा मशीन में लगा कर चीर दिया जाता है। इसी के बाद गिन कर चौबीस कश्मीरी पंडितों को लाइन से खड़ा कर गोली मार देते हैं जेहादी। मास्टर का पोता शिवा सब से छोटा बच्चा है , इस नरसंहार में। मास्टर शिवा के छोटे भाई कृष्ण को ले कर दिल्ली में हैं अब। पेट काट-काट कर वह उसे पढ़ाते हैं। बड़ा होता है तो जे एन यू में दाखिला लेता है। छात्र संघ की राजनीति में पड़ जाता है। जेहादियों की संगत में आ जाता है। छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव लड़ता है। प्रोफेसर राधिका मेनन के आज़ादी , आज़ादी , ले के रहेंगे आज़ादी के जादू में आ जाता है। पुष्कर नाथ उसे बहुत समझाते हैं पर कृष्णा किसी सूरत नहीं समझता। 

प्रोफ़ेसर राधिका मेनन ने उस का पूरी तरह ब्रेन वाश कर दिया है। इतना कि उसे अपने ग्रैंड फ़ादर की बातें जहर लगती हैं। उसे बता दिया है राधिका ने कि कश्मीरी पंडितों ने कश्मीरी लोगों का इतना शोषण किया कि उन के ख़िलाफ़ क्रांति हो गई। और उन्हें कश्मीर से भागना पड़ा। कि कश्मीरी जेहादी फ्रीडम फाइटर हैं। बुहान वानी हमारा हीरो है। अफजल हम शर्मिंदा हैं , तेरे कातिल ज़िंदा हैं जैसे नारे लगाने लगता है कृष्णा। बात-बेबात वह इस मसले पर घर में मास्टर पुष्कर नाथ से लड़ जाता है। पुष्कर नाथ भट्ट की ग़लती यह है कि उन्हों ने कृष्णा के माता-पिता और भाई शिवा को जेहादियों ने नरसंहार में मार दिया बताने के बजाय स्कूटर दुर्घटना में मारा बताया होता है। ताकि उस के मन पर विपरीत प्रभाव न पड़े। दर्शन कुमार ने कृष्णा का यह अंतर्विरोधी चरित्र जिया है। 

अचानक जब पुष्कर का निधन हो जाता है तो जे एन यू का यह कृष्णा जब पुष्कर की अस्थियां ले कर कश्मीर जाने को होता है। पुष्कर नाथ भट्ट की इच्छा है कि उन की अस्थियां उन के कश्मीर वाले घर में ही बिखेर दी जाएं। उन के कुछ मित्रों की उपस्थिति में। तब तक धारा 370 हट चुका है। कश्मीर में नेट बंद है। राधिका मेनन , कृष्णा को 370 हटाने के ख़िलाफ़ , इंटरनेट बंद होने के ख़िलाफ़ ब्रेन वाश कर के कश्मीर भेजती है। अपने कुछ संपर्क के सूत्र देती है। फोन नंबर देती है कि जाओ इन से मिलो। इन की कहानी इन से सुनो। इन पर कितना अत्याचार हुआ है , ख़ुद देखो। और यह कहानी ला कर ख़ुद सुनाओ। 

कृष्णा पहुंचता है आई ए एस अफ़सर ब्रह्मदत्त के घर। सारे मित्र इकट्ठे होते हैं। पुरानी यादों में खो जाते हैं। फ्लैश बैक में आते-जाते रहते हैं। फिल्म की यह एक बड़ी कमी है कि बहुत सारी बातें , अत्याचार और नरसंहार की बातें दृश्य में कम , संवाद में ज़्यादा हैं। बहुत से विवरण संवादों के मार्फ़त परोसे गए हैं। दृश्य में होते तो और ज़्यादा प्रभावी होते। संवाद लेकिन असर डालते हैं। जैसे दूरदर्शन के रिपोर्टर को जब डाक्टर बात-बात में आस्तीन का सांप कह देता है। दोनों गुत्थमगुत्था हो जाते हैं। दूरदर्शन का रिपोर्टर अपनी ख़बरों में सरकार के निर्देश पर झूठ बहुत परोसता है। आंखों देखा झूठ। लेकिन पुलिस अफ़सर की भूमिका में पुनीत इस्सर अचानक रिपर्टर को डाक्टर से अलग कर झटक देता है। 

पुनीत इस्सर ने अपनी भूमिका को बहुत जीवंत ढंग से जिया है। पुष्कर नाथ भट्ट की भूमिका में अनुपम खेर ने अभिनय लाजवाब किया है। लेकिन लेखक निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने पुष्कर नाथ के चरित्र को ठीक से लिखा नहीं है। टुकड़ों-टुकड़ों में बांट दिया है। जो तारतम्यता और कसावट पुष्कर जैसे चरित्र में अपेक्षित थी निर्देशक और लेखक नहीं दे पाए हैं। चूक गए हैं। कृष्णा की भूमिका में दर्शन शुरु में चरित्र में ठीक से समा नहीं पाते। कश्मीर में भी कृष्णा का चरित्र बहुत प्रभाव नहीं छोड़ता। एक स्प्लिट व्यक्तित्व की भूमिका वैसे भी कठिन होती है। कृष्णा के ब्रेनवाश बहुत बढ़िया से किया गया है। यह स्क्रिप्ट में है , निर्देशन और संवाद में भी है। भरपूर है। पर अभिनय में बहुत लचर। 

कश्मीर से लौट कर जब कृष्णा जे एन यू में अपना भाषण देता है , तब जा कर कहीं दर्शन के अभिनय में आंच आती है। कश्मीर के इतिहास और कश्मीरी पंडितों के गुणों और उन की विद्वता का आख्यान और उस का व्याख्यान जिस तरह दर्शन ने अपने अभिनय में परोसा है , वह अप्रतिम है। एरियन तक को कोट किया है। ऋषि कश्यप , आदि शंकराचार्य आदि सब के योगदान को रेखांकित करते हुए कश्मीर का सारा वैभव बताते हुए बताया है कि क्यों जन्नत कहा गया है , कश्मीर को। जिसे जेहादियों ने जहन्नुम बना दिया। जेहादियों की पैरवी का सारा ब्रेनवाश राधिका का धरा का धरा रह जाता है। 

अरबन नक्सल की भूमिका में पल्लवी जोशी का अभिनय बाकमाल है। जे एन यू में ले के रहेंगे आज़ादी के माहौल पर निर्देशक ने जो प्रहार किया है , अभूतपूर्व है। कभी नक्सलाइट रहे मिथुन चक्रवर्ती वामपंथी मृणाल सेन जैसे निर्देशक के अभिनेता रहे हैं। कश्मीर फ़ाइल्स में मास्टर पुष्कर नाथ भट्ट के घर में जेहादियों द्वारा लगाए गए पाकिस्तानी झंडे को हटा कर अचानक देखते हैं कि शिवलिंग को नीचे गिरा दिया गया है। वह शिवलिंग को बड़ी श्रद्धा से उठा कर फिर प्रतिष्ठापित करते हैं , यह देखना भी विस्मयकारी था। 

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म , लाजिम है कि हम भी देखेंगे ! अर्बन नक्सल की पसंदीदा नज़्म है।  इस में भी यह नज़्म पल्लवी जोशी पर बहुत शानदार ढंग से फ़िल्माया गया है। इस नज़्म को अभी तक वामपंथी अपने कार्यक्रमों में बहुत सलीक़े से किसी हथियार की तरह इस्तेमाल करते रहे हैं। लेकिन कश्मीर फ़ाइल्स में फ़ैज़ की इस नज़्म को वामपंथियों और जेहादियों के ख़िलाफ़ भरपूर प्रहार की तरह इस्तेमाल किया गया है। इस लिए भी शायद कहा जा रहा है कि यह फ़िल्म माहौल ख़राब करने के लिए बनाई गई है। जब कि ऐसा बिलकुल नहीं है। कश्मीर फ़ाइल्स देख कर कश्मीरी पंडितों के लिए गहरी संवेदना और सहानुभूति उमगती है दिल में। कई बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वहीं यह फ़िल्म जेहादियों को उन की बेहिसाब और बेवज़ह हिंसा के लिए कोसती है। बहुत ग़ुस्सा दिलाती है। जो कि दिलानी चाहिए। 

पूरी फ़िल्म सभी दर्शक जैसे सांस रोके , निस्तब्ध हो कर देखते रहे। लेकिन आख़िर में जब कश्मीरी पंडितों को जेहादी लाइन से खड़ा कर गोली मारने लगते हैं तभी हाल में अचानक सारी निस्तब्धता तोड़ कर मोदी-योगी , ज़िंदाबाद के नारे हाल में लगने लगते हैं। बहुत ज़ोर से। उधर परदे पर गोलियां चलती रहती हैं , इधर मोदी-योगी , ज़िंदाबाद ! के नारे। अचानक यह नारा जैसे समवेत हो गया। स्त्रियों का स्वर भी इस में मिल गया। मिलता गया। ऐसे जैसे कोई बड़ा फोड़ा फूट गया हो। उस का सारा मवाद बाहर आ गया हो। इस नारे में इतना गुस्सा और जोश मिला-जुला था। अचानक मैं अवाक रह गया। मुझे लगा , जैसे सिनेमा घर में नहीं , किसी राजनीतिक रैली में हूं। परदे पर कश्मीरी पंडितों की लाश बिछ चुकी थी , एक गड्ढे में। एक के ऊपर एक। 

मोदी-योगी का नारा मद्धिम पड़ ही रहा था कि सब से छोटे बच्चे शिवा को ज्यों गोली मारी गई और वह जा कर लाशों के बीच गिर गया। कि तभी जेहादियों के लिए भद्दी-भद्दी गालियां शुरु हो गईं। तेज़-तेज़। जाहिर है अब तक सभी दर्शकों का खून लेखक, निर्देशक और अभिनेता लोग खौला चुके थे। तब जब कि सात स्क्रीन वाला यह सिनेपोलिस सिनेमा घर लखनऊ के पॉश इलाक़े गोमती नगर के विभूति खंड में स्थित है। लेकिन सिनेमा घर में यह दृश्य देख कर लगा कि यह फ़िल्म दो-तीन महीने लेट आई। अगर तीन महीने पहले आई होती तो उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के  परिणाम में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ पड़ गया होता। 

कुल मिला कर कश्मीर फ़ाइल्स एक भावनात्मक और बहुत ही क़ामयाब फ़िल्म है। लेखक , निर्देशक ने स्क्रिप्ट , निर्देशन और फ़ोटोग्राफ़ी में अगर कंप्रोमाइज नहीं किया होता , थोड़ी और मेहनत की होती , थोड़ा और पैसा ख़र्च कर लिया होता तो कश्मीर फ़ाइल्स एक क्लासिक फ़िल्म भी बन सकती थी। महाकाव्यात्मक आख्यान बन गई होती। जो नहीं बन पाई , इस का अफ़सोस रहेगा। फ़िल्म में कई जगह कश्मीरी में कुछ गानों का इस्तेमाल अंगरेजी कैप्शन के साथ किया गया है। कश्मीरी स्पष्ट है कि मुझे बिलकुल नहीं मालूम। लेकिन वह सारे गीत कश्मीरी पंडितों के दुःख को द्विगुणित करते रहे। उन की यातना और बेवतनी की विभीषिका को बांचते रहे। अनुपम खेर के अभिनय में बर्फ़ की तरह गलते रहे। उन की यातना को मन में सुई की तरह चुभोते रहे। निरंतर। ऐसे जैसे मन में कोई कांटा चुभे और चुभता ही रहे निरंतर। 

इन गीतों की तासीर और मद्धम सुर अभी भी मन में मंदिर की घंटियों की तरह बज रहे हैं। कुछ संवाद भी कश्मीरी में थे , अंगरेजी कैप्शन के साथ। जैसे जेहादियों का एक नारा , कश्मीरी पंडितों को संबोधित था और बार-बार , ‘रलिव गलिव चलिव !’ यानी अपने को कनवर्ट करो , मर जाओ या भाग जाओ ! एक और नारा है , “असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान” यानी  “हमें पाकिस्तान चाहिए और हिंदू औरतें भी लेकिन अपने मर्दों के बग़ैर।” जेहादियों की यह धमकी , कश्मीरी न समझ आने के बावजूद अभी तक कान में किसी तलवार की तरह कान को चीर रही है। चीरती ही जा रही है।


Sunday, 27 December 2020

ड्रग , सिनेमा , शराब और औरत की सनसनी

दयानंद पांडेय 


टीनएज में जब सिनेमा देखता था तो सिनेमा का जैसे नशा सा हो जाता था। तब नहीं मालूम था कि सिनेमा वालों को सफलता के अलावा भी कोई नशा होता है। ड्रग का तो नाम भी नहीं सुना था तब। तब तो सिनेमा देखना एक त्यौहार सा होता था। पर चुपके-चुपके। भीतर से तो डर भी लगता रहता था कि यह मेरा सिनेमा देखना घर में किसी को पता न चल जाए। तो एक अपराध बोध भी डसता रहता था निरंतर। क्यों कि घर में सिनेमा देखने का पता चलने पर पिटना तय होता था। जब बड़ा हुआ और सिनेमा समझने लगा , सिनेमा के लोगों को समझने लगा , उन से मिलने लगा तो उन की शराब और और शबाब की लत का भी पता चलने लगा। शराब और औरतों में तबाह अभिनेताओं और निर्देशकों के किस्से दर किस्से पहले ख़ास लोगों में ही आम थे। पर जल्दी ही आम लोगों में भी यह किस्से आम होने लगे। अभिनेत्रियों की शराब और मर्दखोरी के किस्से भी बाद के दिनों में सामान्य मान लिए गए। वैसे भी पहले हाजी मस्तान और फिर दाऊद इब्राहिम जैसे अंडर वर्ल्ड के लोगों के काले धन के दबाव में चलने वाली मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री किसी न किसी विवाद में सर्वदा ग्रसित रहने के लिए जैसे शापग्रस्त है। 

पहले फिल्म इंडस्ट्री से नामचीन लोगों की मोहब्बत और मोहब्बत टूटने के किस्से आते थे। यथा अशोक कुमार के प्रेम में कैसे देविका रानी पड़ीं। वही देविका रानी जिन्हों ने अशोक कुमार को ब्रेक दिया था। फिर निरुपा रॉय अशोक कुमार से जुड़ीं। या फिर अन्य स्त्रियां। इसी दम पर अशोक कुमार को लोग सदाबहार भी कहने लगे। मधुबाला भी पहले-पहल अशोक कुमार के फेर में पड़ीं। फिर वहां से टूटीं तो दिलीप कुमार के गले पड़ीं। बस ज़रा सी एक बात पर शादी तय हो कर भी टूट गई। अंतत: मधुबाला अशोक कुमार के  ही छोटे भाई किशोर कुमार की पत्नी बनीं। और मरते-मरते फिर दिलीप कुमार ही उन के काम आए। किशोर कुमार नहीं। उन के कैंसर में दर्द की एक दवा दिलीप कुमार भी मान लिए गए थे। मीना कुमारी जब बच्ची थीं तो बतौर बाल कलाकार किसी स्टूडियो में शूटिंग के बाद खेल रही थीं अपनी बड़ी बहन के साथ। तो खेलते-खेलते अशोक कुमार के पास आ गईं। अशोक कुमार ने उन्हें अपनी गोद में बिठा लिया। लोगों से पूछा किस की बच्ची है। लोगों ने बताया तो वह बच्ची से बोले , जल्दी से बड़ी हो जाओ और मेरी हीरोइन बनो। संयोग देखिए कि मीना कुमारी बड़ी हो कर अशोक कुमार की कई फिल्मों की हीरोइन बनीं भी। पर कमाल अमरोही के प्यार भरे छल में आ कर उन से अनमेल विवाह भी वह कर बैठीं। तलाक भी हुआ और फिर हलाला भी। हलाला किया ज़ीनत अमान के पिता ने फिर वह कमाल अमरोही की दुबारा बेगम बनीं। पर हलाला के कारण वह टूट गईं और उन के शराब पीने की खबरें आने लगीं। वह शायरा भी बन गईं। 

चाँद तन्हा है आसमाँ तन्हा,

दिल मिला है कहाँ-कहाँ तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा,

थरथराता रहा धुआँ तन्हा

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,

जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा

जैसे शेर कहने लगीं। जिस्म तन्हा है और जाँ तन्हा लिए मीना कुमारी की ज़िंदगी में धर्मेंद्र आ गए। फिर जाने और कौन-कौन। आख़िर में गुलज़ार भी। अंतत: शराब ने कुल 39 बरस की उम्र में ही मीना कुमारी ऊर्फ महज़बीन की ज़िंदगी पर विराम लगा दिया। परदेसी इलाज भी काम न आया। पाकीज़ा के ख़ूबसूरत पांव ज़मीन से विदा हो गए। ऐसे और भी कई सारे किस्से सिने दुनिया के आते रहे। जैसे राज कपूर और नरगिस के। राज कपूर और पद्मिनी के। राज कपूर और वैजयंती माला के। राज कपूर और ज़ीनत अमान के। गो कि कृष्णा से भी राज कपूर ने प्रेम विवाह ही किया था। तब के सुपर स्टार अशोक कुमार भी गए थे विवाह में। खैर , नरगिस से संबंध टूटने और सुनील दत्त से उन के विवाह के बाद राज कपूर पी कर घर आते और बाथ टब में लेट जाते। रोते रहते। नरगिस से बिछोह के बाद राज कपूर की शराब इतनी ज़्यादा हो गई कि पिता पृथ्वीराज कपूर को बीच में आना पड़ा। पृथ्वीराज कपूर ने राज कपूर से कहा कि मेरे बूढ़े कंधे , जवान बेटे की लाश उठाने का दुःख उठाने को तैयार नहीं हैं। राज कपूर की शराब तो एकदम से नहीं छूटी पर कम ज़रूर हो गई। खैर , नरगिस ने सुनील दत्त से विवाह के कुछ समय बाद राज कपूर की पत्नी कृष्णा कपूर से मिल कर माफी भी मांग ली थी। उन्हों ने माफ़ भी कर दिया था। नरगिस का वैसे भी राज कपूर के साथ प्रेम के साथ ही पारिवारिक संबंध भी था। राज कपूर के छोटे भाई शम्मी कपूर , शशि कपूर , और बेटे रणधीर कपूर , ऋषि कपूर कौन ऐसा था जिस ने नरगिस की दी चॉकलेट नहीं खाई थी। और हर किसी ने समय-समय पर नरगिस के चॉकलेट की मिठास को बड़ी शिद्दत से याद किया है। बड़े सम्मान के साथ याद किया है। फिर आर के स्टूडियो के निर्माण में नरगिस का भी खून-पसीना लगा था। राज कपूर के साथ कंधे से कंधा मिला कर वह खड़ी रही थीं , आर के स्टूडियो के निर्माण में। राज कपूर बड़े फख्र से कहा करते थे कि सिर्फ परदे पर ही नहीं , रील लाइफ़ में ही नहीं , रियल लाइफ में भी नरगिस उन की हीरोइन थीं और कृष्णा उन के बच्चों की मां। नरगिस के मरने के बहुत समय बाद भी दादा साहब फाल्के सम्मान मिलने के मौक़े पर दूरदर्शन को दिए गए इंटरव्यू में यह बात राज कपूर ने बड़ी आत्मीयता और सम्मान के साथ कही थी। 

पर वैजयंती माला को कृष्णा कपूर कभी माफ़ नहीं कर पाईं। एक बार तो वह घर छोड़ कर एक होटल में शिफ्ट हो गईं। महीनों रहीं। कारण वैजयंती माला ही थीं। बाद के समय में तो हो यह गया था कि अपनी हर हीरोइन से राज कपूर प्यार करने लगे थे। हेमा मालिनी से लगायत ज़ीनत अमान तक यह सिलसिला कायम रहा। बल्कि ज़ीनत अमान तो राज कपूर और देवानंद के बीच अजब रश्क का सबब बनी रहीं। देवानंद भी कभी सुरैया से इश्क करते थे , विवाह भी करना चाहते थे दोनों। पर सुरैया की नानी बीच में आ गईं ,धर्म की बिना पर। गायिका और अभिनेत्री सुरैया फिर आजीवन अविवाहित रहीं , देवानंद के प्यार में। पाकिस्तान चली गईं। पर देवानंद ने विवाह कर लिया। प्रेम आगे भी करते रहे वह ,कई-कई स्त्रियां आईं उन के भी जीवन में। राज कपूर की तरह वह भी अपनी हीरोइनों को दिल देते रहे , लेते रहे। पर एक ज़ीनत अमान को ले कर वह टूट से गए। ज़ीनत अमान को देवानंद ने ही खोजा था। ब्रेक दिया था , हरे रामा , हरे कृष्णा में। और भी फिल्मों में जारी रखा। पर सत्यम , शिवम , सुंदरम के बाद वह राज कपूर की भी हो गईं। ज़ीनत अमान राज कपूर और देवानंद दोनों ही को अपने अलकजाल में बांधे रहीं। देवानंद को पता ही नहीं चला। पता चला एक फ़िल्मी पार्टी में। तब जब ज़ीनत अमान उस पार्टी में आईं। पार्टी में आईं तो देवानंद उन के स्वागत में अपनी दोनों बाहें फैला कर खड़े हो गए। ज़ीनत अमान छलकती हुई बढ़ी भी पर देवानंद की बाहों के लिए नहीं , पीछे खड़े राज कपूर की बाहों में समाने के लिए। और यह देखिए देवानंद को बाईपास कर ज़ीनत अमान राज कपूर की बाहों में समा गईं। अपनी आत्मकथा में देवानंद ने इस पूरी घटना का न सिर्फ़ विस्तार से ज़िक्र किया है बल्कि लिखा है कि ज़ीनत अमान के इस क़दम से वह टूट से गए थे। देवानंद हालां कि वहीदा रहमान से संबंधों के लिए बहुत जाने गए। वह वहीदा रहमान जिन के चक्कर में गुरुदत्त ने आत्महत्या कर ली थी। गुरुदत्त ने गीता घोष रॉय से प्रेम विवाह किया था। जो बाद में गीता दत्त कहलाईं। पर वहीदा रहमान भी कागज़ के फूल के बहाने उन की ज़िंदगी में दाखिल हो गईं। वह अशोक कुमार , राज कपूर , देवानंद या दिलीप कुमार आदि की तरह तमाम स्त्रियों के बीच सामंजस्य नहीं बिठा पाए और कम उम्र में ही ज़िंदगी से तौबा कर बैठे। नींद की बहुत सारी गोलियां खा कर सोए तो फिर उठे नहीं। 

गुरुदत्त की आत्महत्या बहुत बड़ी खबर बनी थी तब। पर उस के केंद्र में प्रेम था तब। सस्पेंस नहीं। शराब या ड्रग नहीं। गुरुदत्त और देवानंद बहुत गहरे दोस्त थे। जाने यह दोस्ती का तकाज़ा था कि कैरियर का या कुछ और वहीदा रहमान को विवाहित देवानंद का कंधा मिला। हालां कि देवानंद बाद के समय में राज कपूर की तरह अपनी तमाम हीरोइनों को अपनी ज़िंदगी में दाखिल करते रहे। ज़ीनत अमान से लगायत टीना मुनीम तक कई सारे नाम हैं। बाद के दिनों में तमाम अभिनेत्रियों ने तो अशोक कुमार , राज कपूर , देवानंद , दिलीप कुमार , राजेश खन्ना तक को पानी पिलाया इस मामले में। स्कोर के मामले में। 

टीना मुनीम समेत कई और अभिनेत्रियां देवानंद के जीवन में आईं और गईं पर कसक उन्हें सुरैया से विवाह न हो पाने और ज़ीनत अमान के उन के सामने ही राज कपूर की बाहों में समा जाने पर ही हुई। देवानंद के बड़े भाई और मशहूर निर्देशक चेतन आनंद भी अपनी हीरोइनों खातिर बदनाम रहे। पर एक समय प्रिया राजवंश के ही हो कर रह गए। चेतन आनंद के निधन के बाद  संपत्ति विवाद में चेतन के दोनों बेटे प्रिया राजवंश की हत्या कर बैठे और जेल भेज दिए गए। देवानंद के छोटे भाई निर्देशक और अभिनेता विजय आनंद ने हीरोइनों के साथ तो डुबकी मारी ही अपनी भांजी से विवाह भी कर बैठे। धर्मेंद्र के जीवन में भी कई हीरोइनें हैं। मीना कुमारी से लगायत अनीता राज तक। हीरोइनों के पसंदीदा हीरो। हीरोइनें निर्माता-निर्देशक से इसरार कर के धर्मेंद्र को हीरो रखवाती थीं। क्यों कि धर्मेंद्र उन की जिस्मानी ज़रूरतें पूरी करने में हुनरमंद थे। ऐसा कहा जाता है। मिथुन चक्रवर्ती कभी हेलेना ल्यूक से विवाह किया था। पर साल भर में तलाक हो गया। किशोर कुमार ने योगिता बाली को तलाक दे कर लेना चंद्रावरकर से विवाह किया तो मिथुन ने योगिता बाली से विवाह कर लिया। अभिनेत्री और मशहूर डांसर हेलेन तमाम बाहों से गुजरने के बाद अब सलमान के पिता सलीम खान के साथ रहती हैं। सलमान उन्हें मम्मी कहते हैं। ऐसे अनेक किस्से हैं। 

पर राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के जीवन में स्त्रियां तमाम हैं। इतना कि हर एक के हिस्से में अशोक कुमार , दिलीप कुमार , राज कपूर , देवानंद यानी इन चारो के हिस्से में आई स्त्रियों से ज़्यादा एक-एक के हिस्से में। ज़ीनत अमान अमिताभ से भी जुड़ीं। ज़ीनत अमान संजय खान , राजेश खन्ना आदि कई और लोगों से भी जुड़ीं। पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कैप्टन रहे और अब पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान से भी उन के संबंधों की खूब चर्चा रही। विवाह के बाद भी , बेटे के जवान होने के बाद भी पराए मर्दों से जुड़ने की लत उन की छूटी नहीं। इतनी कि इस मुद्दे पर ज़ीनत अमान के पति मज़हर खान और बेटे मिल कर जब-तब उन की पिटाई करने लगे। पति मज़हर खान की तो बाद में किडनी फेल होने के कारण मृत्यु हो गई। बेटे से भी पिटते-पिटते वह उस से अलग हो गईं। ज़ीनत अमान ने फिर दो और शादी की। उन का एक पति तो उन से 30 बरस छोटा था। नाम था अमन खन्ना। जो बाद में सरफराज बना। पर ज़ीनत ने बाद में इस के खिलाफ भी बलात्कार का मुकदमा लिखवा दिया। अब 70 बरस की उम्र में ज़ीनत अमान फिर सिंगिल हैं। ज़रीना वहाब और आदित्य पंचोली के किस्से भी लोग भूले नहीं हैं। न आदित्य पंचोली और कंगना रानावत के। न शेखर सुमन के बेटे अध्ययन सुमन और कंगना रानावत के। कंगना रानावत और ऋत्विक रोशन के किस्से तो अभी भी चर्चा में आ जाते हैं।  मीना कुमारी के साढ़ू और कॉमेडियन महमूद के अरुणा ईरानी समेत अनेक क़िस्से हैं। किसी हीरो से भी बहुत ज़्यादा। कभी महेश भट्ट के साथ मौज करने वाली परवीन बॉबी ने तो अमिताभ पर सार्वजनिक रूप से आरोप भी लगाए और टूट गईं। अकेली हो गईं। अपने फ़्लैट में अकेलापन काटते-काटते कब मर गईं , लोग जान ही न पाए। दूध वाले ने कुछ दिन बाद बताया कि कई दिन से दूध घर के अंदर नहीं गया। तब पता चला। दरवाज़ा तोड़ा गया और परवीन बॉबी की लाश मिली। 

रेखा , अमिताभ की माला आज भी जपती मिलती हैं। अमिताभ बच्चन के नाम का सिंदूर लगाती ही हैं। अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले अमर सिंह ने तो बाकायदा सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया था कि अमिताभ बच्चन  , जया बच्चन के साथ नहीं रेखा के साथ रहते हैं। बाकायदा दिन बांट रखे हैं दोनों के बीच। अमर सिंह के इन आरोपों पर प्रतिवाद किसी ने नहीं किया। न अमिताभ बच्चन ने , न जया बच्चन ने , न ही रेखा ने। न किसी अन्य ने। न अमर सिंह के खिलाफ इस मुद्दे पर कोई कोर्ट गया। और भी कई नाम हैं अमिताभ के साथ जुड़े हुए। नई से नई लड़कियों तक के। राजेश खन्ना तो अनगिन औरतों और शराब के चक्कर में न सिर्फ अपना दांपत्य , परिवार बल्कि सामाजिक जीवन भी बर्बाद कर बैठे और चुपचाप मर गए। राजेश खन्ना एक पत्रकार देवयानी चौबल को सिर्फ इस लिए अपने हरम का सदस्य बना बैठे थे कि उन के मार्फत फिल्म इंडस्ट्री की खबरें मनमुताबिक छपवा सकें। देवयानी चौबल वैसे भी बहुत खूबसूरत थीं। पर राजेश खन्ना का अपनी पत्रकारिता में जम कर इस्तेमाल किया और बड़े-बड़ों पर रौब गांठा। 

ओम पुरी भी ऐसे ही एक पत्रकार नंदिता को दिल दे बैठे थे जो उन का इंटरव्यू लेने आई थी। और पत्नी सीमा को छोड़ कर उस से शादी कर ली। सीमा कपूर मशहूर अभिनेता , निर्देशक रंजीत कपूर की बहन हैं। बाद में इस पत्रकार पत्नी नंदिता कपूर से भी ओम पुरी का झगड़ा हो गया और वह अलग हो गए। लेकिन इस पत्रकार पत्नी ने बाद में ओम पुरी की विभिन्न सेक्स कथाओं की एक पूरी किताब ही लिख दी। 'अनलाइकली हीरो : द स्टोरी ऑफ ओमपुरी'। इस किताब में बचपन में कामवाली से लगायत आखिर तक की उम्र में छोटी-बड़ी उम्र की स्त्रियों की सारी सेक्स कथाएं रस ले कर परोसी गई थी। ओम पुरी के जीवित रहते ही यह किताब छप गई थी। ओम पुरी  ने इस किताब पर कोई प्रतिवाद नहीं किया। क्यों कि सारी कथाएं उन्हों ने ही पत्नी को कभी बता रखी थीं। हां , ऐतराज ज़रूर किया कि ऐसा उन्हें नहीं करना चाहिए था। मेरी ज़िंदगी के इन पन्नों को बिना मेरी सहमति के सार्वजनिक नहीं करना चाहिए था। आमिर खान की दूसरी पत्नी भी पत्रकार ही हैं। आमिर का इंटरव्यू लेते-लेते हमसफ़र बन गईं। तो भी यह लोग राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का स्कोर बोर्ड दूर-दूर तक नहीं छू सके। अलग बात है कि इन राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन का भी रिकार्ड अकेले संजय दत्त ने तोड़ दिया। यानी राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन दोनों के योग से भी कहीं ज़्यादा का रिकार्ड संजय दत्त ने ऑफिशियली बनाया। आज से दस बरस पहले तक संजय दत्त का ऑफिशियल रिकार्ड तमाम छोटी-बड़ी हीरोइनों यथा रेखा , माधुरी दीक्षित आदि को मिला कर कोई तीन सौ से ज़्यादा औरतों को भोगने का था। अब कुछ और बढ़ा ही होगा। 

संजय दत्त ने सिर्फ औरतों को भोगने का ही नहीं ड्रग लेने का भी बेहिसाब रिकार्ड बनाया। यह संजय दत्त ही थे जिन के मार्फ़त पता चला कि फ़िल्मी दुनिया के लोग शराब और औरतों के अलावा ड्रग भी खूब लेते हैं। किसिम-किसिम के ड्रग। लेकिन संजय दत्त पीक पर चले गए। औरतों के साथ ही ड्रग लेने का तब कीर्तिमान बनाया था संजय दत्त ने। मां नरगिस कैंसर से जूझ रही थीं , मृत्यु शैया पर थीं और संजय दत्त को तब भी अगर कुछ सूझ रहा था तो औरतें , शराब और ड्रग। सब से ज़्यादा ड्रग। यहां-वहां इलाज करवा कर हार चुके पिता सुनील दत्त ने अमरीका के एक बड़े अस्पताल में ड्रग से छुट्टी दिलाने के लिए संजय दत्त को भर्ती करवाया था। पर संजय दत्त वहां की कड़ी सुरक्षा पार कर सब की आंख में धूल झोंक कर अस्पताल से कोई दो हज़ार किलोमीटर दूर अमरीका में अपने एक दोस्त के पास पैदल ही चल पड़े। ताकि दोस्त से पैसा ले कर ड्रग खरीद सकें। संजय दत्त आर्म्स ऐक्ट में भी गिरफ्तार हो कर लंबी जेल काट चुके हैं। संजय दत्त के जीवन पर बनी फिल्म संजू देख कर जब मैं सिनेमा घर से निकला तो यही सोचा कि बेहतर है भगवान नि:संतान रखें पर संजय दत्त जैसी संतान कभी किसी को न दें। बहुत दुर्भाग्यशाली पिताओं को देखा है पर सुनील दत्त जैसा अभागा पिता कोई एक दूसरा नहीं देखा। फिर भगवान ने सुनील दत्त को कितना तो धैर्य दिया था। यह संजू देख कर पता चला। एक तरफ कैंसर से मर रही पत्नी नरगिस की सेवा , दूसरी तरफ ड्रग , औरतों के शौक और आर्म्स एक्ट का मारा बेटा संजय दत्त को सुधारने और छुड़ाने की परवाह। अदभुत था। 

संजय दत्त के बाद फिर कई और बिगड़ैल शहजादों का नाम ड्रग लेने में जुड़ा। हीरोइनों का भी। पर संजय दत्त के बाद ड्रग के लिए मशहूर निर्माता , निर्देशक और अभिनेता फ़िरोज़ खान के बेटे फरदीन खान का नाम सामने आया। बहुत इलाज हुआ पर जाने वह आज भी ड्रग के चंगुल से निकले कि नहीं , ख़ुदा जाने। फिर छिटपुट कई और हीरो , हीरोइन के नाम ड्रग के लिए वैसे ही सामने आने लगे जैसे कभी कुछ बड़ी हीरोइनों के नाम आते थे जो दुबई जाती रहती थीं , शेखों को खुश करने के लिए। एक बहुत ही शानदार अभिनेता राज किरन का नाम जब ड्रग में आया तो मैं चौंक गया। पर जल्दी ही वह इलाज में लग गए। लेकिन ड्रग तो ड्रग। डसता है तो फिर कायदे से डसता है। बहुत लंबे समय से वह सिने दुनिया ही नहीं , घर से भी गायब हो गए। आज भी कुछ पता नहीं है। ड्रग ट्रैफकिंग में वह पकड़े गए। बहुत समय बाद अमरीका कि कहीं और की किसी जेल से उन की एक फोटो ऋषि कपूर को किसी ने उपलब्ध करवाई। उन्हों ने वह फ़ोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट की। फिर राज किरन का कुछ पता नहीं चला। न किसी ने उन की कोई खबर ली। जो भी हो ड्रग फ़िल्मी दुनिया का शौक ज़रूर था पर सनसनी नहीं था। पर ड्रग , सिनेमा और सनसनी का पहली सुर्खी तब बनी जब मशहूर हीरोइन ममता कुलकर्णी का नाम ड्रग के कारोबार में खुल कर सामने आया। और वह भारत देश छोड़ कर भाग चुकी थीं। पति समेत। बरसों बीते इस घटना को भी। 

फिर सिने जगत से शराब , इश्क , औरतबाज़ी और ड्रग की ख़बरें आम हो गईं। लिव इन रिलेशन शुरू हो गया। राजेश खन्ना , अंजू महेंद्रू से होते हुए बरास्ता शत्रुघन सिनहा , रीना राय तक यह खबरें ख़ास थीं। पर बाद में ऐसी ख़बरें आम हो गईं। ऐसे जैसे नाली में पानी बह रहा हो। एक-एक बांह में कई-कई। कलर्स चैनल पर हर साल बिग बॉस आता है। बिग बॉस में होने वाले आपसी झगड़ों में भी टी वी कलाकारों के ऐसे अनगिन रिश्ते तार-तार होते मिलते हैं। हर बार मिलते हैं। इस साल भी मिल रहे हैं। कब किस के साथ कौन रह गया , कौन बह गया , जैसे सामान्य बात हो गई है। अनुराग कश्यप का मामला तो अभी एक हीरोइन ने सामने रखा ही था। पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई थी..पर क्या हुआ। कास्टिंग काऊच भी कोई चीज़ होती ही है। राजेश खन्ना तो अंतिम समय में भी एक सिंधी महिला के साथ लिव इन में रह रहे थे। लिव इन में ही मृत्यु को प्राप्त हुए। इसी फेर में संपत्ति विवाद भी सामने आया। विनोद खन्ना , अमृता सिंह के साथ रहने लगे थे। शादी के लिए अप्लाई भी किया था कोर्ट में। पर अचानक बात टूट गई। और अमृता सिंह ने सैफ अली खान से विवाह कर लिया। फिर अमृता को छोड़ सैफ करीना कपूर से विवाह रचा लिए। तैमूर उन का बेटा है। एक और की खबर है। सारा अली खान अमृता सिंह , सैफ अली खान की ही बेटी हैं जो इन दिनों अक्षय कुमार के साथ रोमैंटिक जोड़ी बना कर चर्चा में हैं। अभी ड्रग कनेक्शन में भी उन से जांच-पड़ताल चली थी। राजेश खन्ना डिंपल से अलग हो कर इस डाल से उस डाल होते हुए टीना मुनीम के साथ लिव इन में लंबे समय तक रहे थे। पर अचानक टीना मुनीम की उद्योगपति अनिल अंबानी से विवाह की खबर आ गई। दिलचस्प यह कि नाना पाटेकर एक फिल्म खामोशी द म्यूजिकल में काम कर रहे थे। मनीषा कोइराला , सलमान खान के अपोजिट हीरोइन थीं। नाना पाटेकर की बेटी की भूमिका में थीं मनीषा कोइराला। पर पिता बने नाना पाटेकर से नैन भी लड़ा रही थीं। शूटिंग सेट पर जब-तब नाना पाटेकर से मिलने आयशा जुल्का आ जाती थीं। पर मनीषा कोइराला नाना पाटेकर को ले कर इतनी पजेसिव थीं कि आयशा जुल्का को देखते ही भड़क जाती थीं। लेकिन  दिलचस्प यह कि जब फिल्म की शूटिंग खत्म हुई तो नाना पाटेकर आयशा जुल्का के साथ लिव इन में रहने लगे। 

सलमान खान के वैसे तो संगीता बिजलानी समेत तमाम किस्से हैं। वही संगीता बिजलानी जो बाद में क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन की दूसरी बेगम बनीं। पर बाद में मोहम्मद अजहरुद्दीन ने नौरीन की तरह संगीता को भी तलाक दे दिया। पर ऐश्वर्या राय और कैटरीना कैफ के साथ तो सलमान खान जाने कितनी सरहदें लांघ गए थे। सरहद ही नहीं लिव इन को भी मात दे दिया। ऐश्वर्या को ले कर शाहरुख खान की पिटाई तक कर दी थी सलमान ने। विवेक ओबेराय को भी धर दबोचा था। ऐसी ही हिंसा कभी हेमा मालिनी को ले कर धर्मेंद्र किया करते थे। एक बार तो धर्मेंद्र ने एक स्क्रीन के एक पत्रकार को भी सरे आम पीट दिया था। पत्रकार की ग़लती यह थी कि उस ने हेमा और धर्मेंद्र के संबंधों पर कुछ लिख दिया था। रेखा ने तो किस-किस से विवाह नहीं किया। किरन  कुमार , विनोद मेहरा , संजय दत्त , मिस्टर अग्रवाल , अमिताभ बच्चन आदि कई लोगों के नाम चर्चा के सागर में डूब चुके हैं। हेमा मालिनी का भी यही हाल है। संजीव कुमार , जितेंद्र , गिरीश कर्नाड आदि-इत्यादि से होती-हवाती आखिर धर्मेंद्र के ही हिस्से आईं। पर जितेंद्र के साथ विवाह के लिए मंडप में भी बैठ चुकी थीं हेमा। वह एक लंबी कहानी है। महेश भट्ट के पिता विजय भट्ट नामी निर्देशक थे अपने समय में। एक से एक कामयाब फ़िल्में बनाई हैं। पर महेश भट्ट की मां के साथ विवाह नहीं कर पाए और तीन बेटे पैदा कर लिए। महेश भट्ट की मां मुस्लिम थीं। सो विरोध बहुत हुआ। यह एक दूसरी कहानी है। इसी बिना पर महेश भट्ट खुल कर कहते हैं , मैं हरामी हूं। दिलचस्प यह कि शराब और औरतों के मारे हुए परवीन बॉबी के साथी रहे महेश भट्ट अपनी पहली पत्नी से हुई बेटी पूजा भट्ट की सिगरेट पर बहुत नाराज रहते थे। पूजा भट्ट तब के दिनों चेन स्मोकर हो गई थीं। पिता की तरह वह भी कई पुरुषों के फेर में पड़ीं। विवाह हुआ किसी तरह। दिलचस्प यह कि अभी बीते हफ्ते ही पूजा भट्ट ने अपने शराब छोड़ने की चौथी सालगिरह मनाई है। अपने शराब और मर्दों की बाहें बदलने की शौक़ीन श्रीदेवी तो कभी अमिताभ बच्चन से भी विवाह करना चाहती थीं। कम लोग जानते हैं कि रेखा से एक समय अमिताभ को दूर करने में श्रीदेवी का बहुत बड़ा हाथ था। हुआ यह कि रेखा ने ही अमिताभ से मिलने के लिए श्रीदेवी का फ़्लैट चुना था। श्रीदेवी के फ़्लैट पर रेखा , अमिताभ के साथ समय गुज़ारती थीं। किसी को शक भी नहीं होता था। बाद के समय में बिना रेखा को बताए श्रीदेवी अमिताभ को बुलाने लगीं। अमिताभ श्रीदेवी के साथ समय गुज़ारने लगे। एक समय श्रीदेवी , मिथुन चक्रवर्ती के साथ बस रहती नहीं थी , पर लिव इन ही था। बाद में बोनी कपूर के बंगले के एक हिस्से में श्रीदेवी रहने लगीं। मिथुन का शक दूर करने के लिए बोनी कपूर को राखी बांधती थीं। पर यह देखिए कि श्रीदेवी ने राखी भूल कर बोनी कपूर से विवाह किया और उन की दो बेटियों की मां बनीं। दुबई के एक होटल में बाथ टब में डूब कर मर गईं। जाने शराब ज़्यादा पी ली कि ड्रग ज़्यादा ले लिया। आज तक पता नहीं चला। बोनी कपूर ने सब कुछ मैनेज कर लिया। 

तो शराब , औरत और ड्रग का बहुत पुराना रिश्ता है हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री का। कह सकते हैं कि चोली दामन का रिश्ता है। पर इस कोरोना काल में , बीच लॉक डाऊन में सुशांत सिंह राजपूत की  हत्या ऊर्फ आत्महत्या की घटना ने जैसे फिल्म इंडस्ट्री को नंगा कर दिया। हिला कर रख दिया। हर साल गर्लफ्रेंड बदलने वाला , गर्लफ्रेंड को चार्टर्ड प्लेन से विदेश घुमाने वाला सुशांत सिंह राजपूत ड्रग लेता था कि नहीं , यह सवाल अब बहुत बेमानी है। सुशांत सिंह राजपूत पूरा का पूरा अय्याश था , यह तो अब पूरी तरह सिद्ध है। बहरहाल शुरू में तो लोगों ने मुंबई पुलिस के कहे मुताबिक़ आत्महत्या ही माना ,पर जब सुशांत के पिता ने हत्या का आरोप लगाते हुए सुशांत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती को हत्यारा कहा तो जैसे तूफ़ान आ गया। रिया पहले तो मासूम बनी रही पर जल्दी ही हमलावर बन गई। सुशांत के पिता और बहनों पर आक्रामक हो गई। क्या-क्या आरोप नहीं लगाए। बिहार पुलिस के तत्कालीन डी जी पी गुप्तेश्वर पांडेय अचानक रॉबिन हुड बन कर इस मामले में कूद पड़े। महाराष्ट्र पुलिस और बिहार पुलिस में ऐसी रस्साकसी चली कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और जांच सी बी आई को चली गई। जैसे केंद्र सरकार , बिहार सरकार वर्सेज महाराष्ट्र सरकार का मामला बन गया। अभी सी बी आई जांच शुरू भी नहीं हुई थी कि इंफोरस्मेंट की जांच में सुई ड्रग रैकेट की तरफ घूम गई। रिया चक्रवर्ती ने जांच के फंदे में खुद को घिरते देख आज तक न्यूज़ चैनल पर एक प्रायोजित इंटरव्यू में सुशांत सिंह राजपूत पर ही ड्रग लेने का आरोप लगा दिया। अंतत: रिया और उस के भाई को नारकोटिक्स ब्यूरो ने गिरफ्तार कर लिया। आहिस्ता-आहिस्ता पूरी फिल्म इंडस्ट्री शक के घेरे में आ गई। एक से एक बड़े-बड़े नाम चर्चा के केंद्र में आ गए। कंगना रानावत पहले ही अपने को ड्रग एडिक्ट बता चुकी थीं। अब सुशांत सिंह राजपूत मामले में भी कूद पड़ीं। बात यहां तक बढ़ी कि कंगना की उद्धव सरकार से ठन गई। उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे तक का नाम घसीट लिया गया। छोटा पेंग्विन कह कर आदित्य ठाकरे पर आरोपों की बौछार लग गई। 

बात यहां तक पहुंची कि कंगना का पाली हिल वाला घर मुंबई नगर निगम ने तोड़-फोड़ दिया। सामना अखबार में बैनर हेडिंग लगा कर खबर छापी कि उखाड़ दिया। इस के पहले एक वीडियो जारी कर कंगना ने उद्धव ठाकरे को चुनौती दी थी कि आ रही हूं मुंबई , जो उखाड़ना हो उखाड़ लो। कंगना को वाई श्रेणी की सुरक्षा भी केंद्र सरकार ने दे दी। कंगना ने सुशांत सिंह राजपूत की हत्या में आदित्य ठाकरे पर सीधा निशाना साधा। बताया कि सुशांत सिंह राजपूत की पुरानी मैनेजर दिशा सालियान की भी हत्या हुई थी , उस में भी आदित्य ठाकरे का हाथ था। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री नारायण राणे और उन के बेटे ने भी दिशा सालियान और सुशांत सिंह राजपूत की हत्या में आदित्य ठाकरे का नाम सीधे तौर पर लिया। पर सी बी आई जांच में अभी तक कुछ भी साबित हो कर स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया है। अटकलों का खेल भी अभी बंद है। पर तब के दिनों नारकोटिक्स ब्यूरो की जांच में जैसे पूरी मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग की आग ऐसे लगी थी गोया जंगल में आग लगी हो। बीच कोरोना काल और लॉक डाऊन के सन्नाटे में दो ही मामले तब खबरों का सन्नाटा तोड़ रहे थे। एक प्रवासी मज़दूरों का विस्थापन दूसरे , मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग का सेवन। पहले नंबर पर यह ड्रग ही था। एक से एक बड़े-बड़े नाम। सलमान खान से लगायत शाहरुख खान तक के नाम चर्चा में आए। सुशांत सिंह का फ़ार्म हाऊस भी खूब चर्चा में आया ड्रग पार्टी के लिए। बात संसद तक पहुंची। गोरखपुर के सांसद और भोजपुरी फ़िल्मों के हीरो रवि किशन ने फ़िल्म इंडस्ट्री में ड्रग मामले को बड़े ज़ोर-शोर से उठाया लोक सभा में । मामला इतना गरमा गया कि राज्य सभा में मशहूर हीरोइन और सपा सांसद जया बच्चन ने रवि किशन का नाम लिए बिना उन पर कड़ा प्रहार करते हुए वह उद्धव ठाकरे सरकार के बचाव की पैरवी में उतर गईं। अंगरेजी में दिए गए भाषण में जया बच्चन ने कहा कि कुछ लोग हैं जो जिस थाली में खाते हैं , उसी थाली में छेद करते हैं। रवि किशन फिर पूरा राशन-पानी ले कर जया बच्चन पर चढ़ाई कर बैठे। तब जब कि रवि किशन खुद तमाम किसिम के नशे के आरोपों में घिरे रहे हैं। फिर क्या था जया बच्चन अब सोशल मीडिया पर बुरी तरह ट्रोल हो गईं। जो-जो नहीं कहा जाना चाहिए था , सब कहा गया। जया बच्चन की निजी ज़िंदगी के पन्ने खोले जाने लगे। डैनी से उन की पुरानी दोस्ती और संबंधों तक को खंगाल लिया गया। कहा गया कि धन्यवाद डैनी जया की थाली में छेद करने के लिए। जया के बहाने अमिताभ बच्चन भी निशाने पर आ गए। उन की थाली के अनगिन छेद खोज डाले गए। उन की महानायक की छवि जैसे खंडित होने लगी। फोन पर अमिताभ की कोरोना वाली कॉलर ट्यून तक का विरोध। जया की बेटी श्वेता की निजी ज़िंदगी के पन्ने भी खुले। बात ऐश्वर्या की निजी ज़िंदगी तक आ गई। ऐश्वर्या की थाली में छेद करने के तौर पर सलमान खान और विवेक ओबेराय तक की याद की गई। जया बच्चन की नातिन का शाहरुख खान के बेटे आर्यन के साथ एक कार में सेक्सुअल वीडियो भी वायरल हुआ यह कहते हुए कि थाली में ऐसे भी छेद होता है। कुल मिला कर यह कि जया बच्चन का राज्य सभा में थाली में छेद करने वाला भाषण उन पर बहुत बुरी तरह भारी पड़ा। इस सब पर न जया बच्चन की मदद के लिए कोई सामने आया और न ही वह खुद इस सब पर कोई प्रतिवाद कर पाईं आज तक। भरपूर छीछालेदर हुई सो अलग।    

बहरहाल सलमान , शाहरुख खान तो तमाम चर्चा के बावजूद अभी तक नारकोटिक्स शिकंजे में नहीं आए पर एक बड़ी हीरोइन दीपिका पादुकोण ज़रूर ड्रग लेने के जाल में फंस गईं। जेल तो नहीं गईं अभी तक दीपिका पर पूछताछ के फंदे में ज़रूर वह आ गईं। गोवा तक उन का पीछा हुआ। दीपिका पादुकोण का जैसे सार्वजनिक जीवन नष्ट हो गया। करन जौहर के घर एक ड्रग पार्टी का वीडियो जिस में दीपिका पादुकोण भी किसी की गोद में बैठी हुई हैं , वायरल हो गया। कारण जौहर भी शक के घेरे में हैं। खैर तब दीपिका के तमाम विज्ञापन बंद हो गए। सारी कंपनियों ने एक साथ दीपिका वाले विज्ञापन बंद कर दिए। इतना नुकसान और अपमान तो जे एन यू जाने पर भी दीपिका का नहीं हुआ था। लगा कि जैसे दीपिका पादुकोण के कैरियर पर ग्रहण लग गया हो। पर इन दिनों हफ्ते भर से जियो के विज्ञापन में अपने पति रणवीर सिंह के साथ वह फिर से दिखने लगी हैं। दीपिका के साथ पूछताछ में उन की मैनेजर और एक पी आर कंपनी भी घेरे में आई। ड्रग के बाबत पूछताछ के फंदे में नवाब पटौदी और शर्मीला टैगोर की नातिन , सैफ अली खान , अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान भी आईं। लेकिन अब वह भी अक्षय कुमार सिंह के साथ एक फिल्म में अपनी रोमैंटिक जोड़ी के रूप में पर्याप्त चर्चा में हैं। ड्रग लेने की आंच कॉमेडियन भारती और उन के पति पर भी आई। जेल की हवा खा कर ज़मानत ले कर दोनों बाहर आ चुके हैं। जैसे और तमाम लोग। अलग बात है कि अभिनेता अर्जुन रामपाल इन दिनों फिर ड्रग की जांच का सामना कर रहे हैं। 

पर जैसा कि कहा जाता रहा था कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी-बड़ी मछलियां ड्रग के फंदे में फंसेंगी और कि जेल की सलाखों के पीछे होंगी। ऐसा तो अभी तक नहीं हुआ। अब लगता है कि जैसे यह सब सिर्फ एक शगूफा था। एक बुरा सपना था। यह सपना अब टूट इस लिए गया है कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के लोग जाग गए हैं। जाग कर सब कुछ मैनेज कर ले गए हैं। जैसे आदित्य ठाकरे के पिता उद्धव ठाकरे ने शरद पवार के मार्फत आदित्य ठाकरे को हत्या और ड्रग की बदनामी के दाग को मैनेज कर धो दिया है। मुंबई के सागर में अब सब कुछ सामान्य दीखता है। बदनामी की लहरें जैसे किनारों की चट्टानों से टकरा कर कहीं कोई और पटकथा लिख रही हैं। ड्रग की एक सुनामी थी जो आ कर चली गई लगती है। एक बुरा सपना था ड्रग का जिसे किसी डाक्टर ने चुपचाप दवा दे कर दबा दिया है।  

कमलेश्वर याद आते हैं। कमलेश्वर ने फिल्म इंडस्ट्री में कई निर्माता-निर्देशकों के लिए फिल्म लिखने का काम किया है। कभी कथा , कभी पटकथा। एक फ़िल्मी पार्टी में वह देवानंद के साथ थे। उन के हाथ में स्कॉच से भरा गिलास था। अचानक देवानंद ने उन से चलने के लिए कहा। कमलेश्वर ने उन से कहा , ऐसे कैसे चला चलूं। हाथ में स्कॉच है। इसे कैसे फेंक दूं। ऐसे कैसे छोड़ दूं। देवानंद ने कहा , कुछ नहीं इसे ऐसे ही कहीं रख दीजिए। यह पियक्कड़ों की पार्टी है। कोई न कोई पी लेगा।  बेकार नहीं जाएगी यह स्कॉच। कमलेश्वर ने स्कॉच का भरा गिलास वहीँ कहीं रख दिया। और देवानंद के साथ चल दिए। मुड़ कर देखा तो पाया कि सचमुच कोई उन के स्कॉच का गिलास उठा कर होठों से लगा चुका था। वह एम जी हशमत का लिखा एक गाना है न :

हे, ये बम्बई शहर हादसों का शहर है

यहाँ ज़िन्दगी हादसों का सफ़र है

यहाँ रोज़-रोज़ हर मोड़-मोड़ पे

होता है कोई न कोई

हादसा, हादसा...


यहाँ की ख़ुशी और गम हैं अनोखे

बड़े खूबसूरत से होते हैं धोखे

बहुत तेज़ रफ़्तार है ज़िन्दगी की

है फुर्सत किसे कोई कितना भी सोचे

ख़ुशी हादसा है, गम हादसा है

हकीकत भुला कर हर इक भागता है

यहाँ रोज़-रोज़ की भाग-दौड़ में

होता है कोई न कोई

हादसा, हादसा...


यहाँ आदमी आसमां चूमते हैं

नशे में तरक्की के सब झूमते हैं

हरी रौशनी देख भागी वो कारें

अचानक रुकी फिर से बन के कतारें

यहाँ के परिंदों की परवाज़ देखो

हसीनों के चलने का अंदाज़ देखो

यहाँ हुस्न इश्क की आब-ओ-हवा में

होता है कोई न कोई

हादसा, हादसा...

तो घबराइए नहीं। जल्दी ही फिर कोई नया हादसा हमारे सामने हो सकता है। ड्रग का नहीं न सही , कोई और सही। कोई न कोई पटकथा लिख ही रहा होगा। कोई न कोई डायरेक्टर लाइट , कैमरा , ऐक्शन ! बोलेगा ही। ड्रग नहीं , शराब नहीं , औरत नहीं , और सही। सिने दुनिया है। आखिर कोई न कोई शुरुर तो चाहिए ही। गुलशन कुमार का हत्यारा नदीम जैसे क़ानून के हाथ नहीं लगा। जैसे हीरोइन दिव्या भारती की हत्या की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी। जैसे निर्देशक मनमोहन देसाई की मृत्यु हत्या थी कि आत्महत्या कोई नहीं जान पाया। जैसे सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु हत्या थी कि आत्महत्या। ड्रग लेता था कि नहीं। जैसी गुत्थियां अभी तक नहीं सुलझीं। तो आप क्या समझते हैं कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ड्रग की गुत्थी सुलझ जाएगी। तौबा-तौबा ! ऐसा कुफ्र तो मत ही कीजिए। 

Sunday, 8 July 2018

संजय दत्त की बायोपिक नहीं , संजय दत्त का चेहरा साफ़ करने के लिए बनाई गई है संजू


कल रात संजू देखी। बहुत ही पावरफुल फ़िल्म है । मैं तो बहुत देर तक नि:शब्द रह गया। बहुत से लोगों की आत्मकथा पढ़ी है । जीवनी पढ़ी है । बायोपिक फ़िल्में देखी हैं । रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी से बेहतर बायोपिक अब तक नहीं बनी , आगे भी खैर क्या बनेगी । तीन फ़िल्मी लोगों की बायोपिक देखी है । एक मीना कुमारी पर मीना कुमारी की अमर कहानी जो बहुत ही लिजलिजी फ़िल्म थी और भटकी हुई भी । मीना कुमारी की फ़िल्मी क्लिपिंग से लदी-फदी । कोई ओर-छोर नहीं । सिर्फ़ मीना कुमारी के नाम पर भावनात्मक दोहन कर दर्शकों को सिनेमाघर तक बुला लिया गया था । दूसरी , मराठी अभिनेत्री हंसा वाडेकर पर श्याम बेनेगल की फ़िल्म भूमिका जिस का रोल स्मिता पाटिल ने किया था । उन के क्रूर पति के रूप में अमोल पालेकर थे । शानदार फ़िल्म थी । और अब संजय पर बनी संजू । राज कुमार हिरानी की यह फिल्म इन तीनों में बहुत बेहतर है । बहुत शानदार । लेकिन इस संजू को सिर्फ़ एक कमी के कारण हम अप्रतिम फ़िल्म कहते-कहते रुक से गए हैं । यह फिल्म संजय दत्त की बायोपिक कम , संजय दत्त का चेहरा साफ़ करने के लिए ज़्यादा बनाई गई है । बस यह संजय दत्त की तरफ से क़दम-क़दम पर सफाई देने वाली फ़िल्म के रूप में न बनाई गई होती , अपने सहज रूप में , सहज गति में चली होती , इसी ध्यान से लिखी और निर्देशित की गई होती तो निश्चित मानिए यह कालजयी फ़िल्म भी होती । सिर्फ़ पैसा कमाने वाली फ़िल्म नहीं होती। गाडफादर जैसी क्लासिक फ़िल्में भी आख़िर हमारे सामने हैं ।

इस फ़िल्म को देखने के बाद ज़रा ठहर कर सोचिए तो क़ायदे से यह सुनील दत्त के त्याग , साहस और धैर्य की फ़िल्म है । अब चूंकि फ़िल्म के लेखक और निर्देशक को सुनील दत्त की तरफ से कोई सफाई नहीं देनी थी , उन का चेहरा साफ़ नहीं करना था सो उन की भूमिका परेश रावल जैसे सधे हुए अभिनेता को निर्विकार ढंग से थमा दी है और परेश रावल ने उसी सहजता से उन्हें जी लिया है । फ़िल्म देख कर सुनील दत्त के प्रति करुणा और संवेदना जगती है , संजय दत्त के प्रति नहीं । यह तो फिल्म है लेकिन असल जीवन में संजय दत्त को ले कर सुनील दत्त ने कितना अपमान , कितना कष्ट , कितना लांछन और कितना टूटन जिया होगा , वह ही जानते रहे होंगे । फिल्म भी थोड़ा बहुत बताती ही है । जानने वाले जानते हैं कि संजय दत्त का 1993 के मुम्बई की आतंकवादी बम ब्लास्ट घटना में कितना हाथ था , कितना सहयोग था पर एक सुनील दत्त के सामाजिक और राजनीतिक पुण्य-प्रताप के कारण ही वह आतंकवादी घटना से जैसे-तैसे क़ानूनी तौर पर बरी हो पाए । सचमुच नहीं । होते तो इस फिल्म का इस एक बात पर इतना जोर नहीं होता कि संजय दत्त टेररिस्ट नहीं हैं । ए के - 56 रखने पर सिर्फ़ आर्म्स एक्ट पर सजा नाकाफी हैं संजय दत्त पर । क़ानून के जानकार और मुम्बई के लोग भी जानते हैं । जिन परिवारों के लोग तब मरे थे , उन से पूछिए ।

पुरानी कहावत है कि आदमी परिस्थितियों का दास होता है । संजय दत्त के लिए इस संजू फिल्म में बार-बार यही जतलाने की कोशिश भी की गई है । जब कि सच यह नहीं है । परिस्थितियों का दास आदमी एक बार , दो बार हो सकता है , बार-बार नहीं । फिर भी अगर यही तर्क मान लिया जाए कि आदमी परिस्थितियों का दास होता है तो इस बिना पर तो सभी ड्रगिस्ट , सभी आतंकवादी , सभी औरतबाज़ , सभी अपराधी बरी हो जाएंगे । जैसे संजय दत्त बरी हो गए हैं । संजय दत्त भले क़ानूनी रूप से बरी हो गए हैं , इस फिल्म के मार्फत अपना चेहरा साफ़ करने की सफाई पेश कर गए हैं लेकिन तथ्य अपनी जगह हैं । बहुत से हत्यारे और आतंकवादी कानून की आंख में धूल झोंक कर , पैसे के दम पर बरी हो जाते हैं , संजय दत्त इकलौते नहीं हैं । हां साढ़े तीन सौ से अधिक औरतों को भोगने का संजय दत्त का रिकार्ड ज़रुर अनूठा है । इस संख्या में उन्हों ने वेश्याओं की गिनती छोड़ दी है ।

अभी कुछ समय पहले एक फिल्म तलवार आई थी । वह भी बहुत बेहतरीन फिल्म थी । नायाब । जिसे तलवार दम्पति ने पैसा खर्च कर अपनी बेटी की हत्या के बाबत अपना चेहरा साफ़ किया था । हाईकोर्ट द्वारा जेल से भी बरी हो गए हैं । लेकिन जानने वाले जानते हैं कि तलवार दम्पति कितना बरी हैं , कितना दोषी। बहरहाल यह एक ग़लत ट्रेंड बन रहा है कि पैसे वाले लोग पैसा खर्च कर अपनी सफाई में फिल्म बना कर , किताब लिख-लिखवा कर अपने को महात्मा गांधी साबित करने लगे हैं । परिस्थितियों का दास साबित कर सारा ठीकरा बिकाऊ मीडिया पर फोड़ देना बहुत आसान है किसी फिल्म के मार्फत । आप दादागिरी की तर्ज पर गांधीगिरी कर सकते हैं और फ़िल्म कामयाब कर सकते हैं तो यह कौन सा कठिन काम है भला । पर यह न भूलिए कि कुछ दोगले इतिहासकारों के इतिहास लेखन से अभी तक इतिहास के परसेप्शन तो नहीं बदले हैं । लोग जानते हैं कि इतिहास क्या है और दोगले इतिहासकार क्या लिख रहे हैं या लिख गए हैं । फिल्मों से , किताब से आप के या किसी के पाप नहीं धुलते , परसेप्शन नहीं बदलते । रावण , रावण ही रहता है , राम नहीं बन जाता । ठीक वैसे ही जैसे गंगा नहाने से सचमुच पाप और अपराध नहीं धुलते । पाप और अपराध परछाई की तरह आप के साथ रहते हैं । मरने के बाद भी नहीं मिटते ।

रही बात संजू फिल्म की तो फिल्म के लिहाज से वंडरफुल फिल्म है । बतौर अभिनेता रणवीर कपूर ने अपने जीवन का श्रेष्ठ अभिनय परोसा है । रणवीर में संभावनाएं बहुत हैं अभी । उन के अभिनय में सिर्फ़ ड्रामा ही नहीं जीवन भी है , सादगी और निश्छलता भी भरपूर । संजय दत्त को जैसे शीशे में उतार दिया है अपने अभिनय में रणवीर कपूर ने । तिस पर उन्हें परेश रावल जैसे अनूठे अभिनेता का साथ मिल गया है । दोनों की बीट और ट्यून ज़बरदस्त है । मनीषा कोइराला ने भी नरगिस को जीने की कोशिश की है । अमरीकी दोस्त भी गज़ब है । विकी कौशल ने गज़ब अभिनय किया है । काश कि ऐसा समर्पित दोस्त सब के जीवन में हो । सोनम कपूर भी भली लगी हैं । और बोमन ईरानी के अभिनय के क्या कहने । पूरी फिल्म की पटकथा , परिकल्पना और निर्देशन लाजवाब है । बहुत दिन बाद इतनी कसी और सधी हुई फिल्म देखने को मिली । शार्प और सुंदर ।देखते समय आप एक क्षण के लिए भी फिल्म से फुर्सत नहीं ले सकते । सब कुछ कसा और सधा हुआ । देखने के बाद भी फ़िल्म मन में निरंतर चलती और गूंजती रहती है । अनुष्का शर्मा जैसी हिरोइन टाइप , पैसे वाली संपन्न लेखिका देखना किसी हिंदी फिल्म में ही मुमकिन है । एक दृश्य में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जिस तरह खिल्ली उड़ाई गई है वह न सिर्फ़ बहुत अभद्र है बल्कि अटल जी के चरित्र से भी मेल नहीं खाती । यह निर्देशक राजकुमार हिरानी की हार और संजय दत्त का अपना फ्रस्टेशन हो सकता है , सच नहीं । इसी तरह इंडियन मीडिया पर जिस तरह फ़िल्म टूट कर बरसती है तो मीडिया की कलई खोलती हुई हिट भी ख़ूब करती है लेकिन जानने वाले जानते हैं कि ऐसी सभी ख़बरें मीडिया में पुलिस की अनआफिशियल ब्रीफिंग पर आधारित होती हैं , जिन की ज़मीन भी कहीं न कहीं होती ही है । आधारहीन नहीं होती यह ब्रीफिंग भी । बिकाऊ मीडिया अब दूध की धुली नहीं है , मुम्बई में तो माफ़िया के दबाव में वैसे ही रहती है जैसे फ़िल्म इंडस्ट्री । आकंठ पाप में डूबी हुई है मीडिया भी पर संजय दत्त जैसा दाग़ी व्यक्ति जब मीडिया पर अपने फ्रस्ट्रेशन का घड़ा फोड़ता दीखता है तो हंसी आती है । सुनील दत्त जैसा व्यक्ति भी जब अख़बार के संपादक के पास अपने नालायक , ड्रगिस्ट और टेररिस्ट बेटे का उलाहना ले कर जाता है तो खीझ होती है ।

इस फिल्म में पहली बार गीतकारों को इतना सम्मान मिलता देख कर भी ख़ुशी हुई । गीतकारों को मुश्किल समय में याद कर उन्हें उस्ताद कह कर गुहराना अभिभूत करता है और चकित भी । अभी तक लोग फ़िल्मी गाने याद तो करते हैं पर अकसर गायकों के नाम से या कभी-कभार संगीतकारों के नाम से । लेकिन संजू में हर मुश्किल की घड़ी में जब उस्ताद कह कर गीतकारों को सुनील दत्त की भूमिका में परेश रावल याद करते हैं और अचानक बोलते हैं मज़रूह सुल्तानपुरी ! तो फ़िल्म का स्वाद बेहिसाब बढ़ जाता है । और वह उन का गीत याद करते हैं , रुक जाना नहीं , तू कभी हार के / कांटों पे चल के मिलेंगे साए बहार के ! नरगिस से शादी पर हाजी मस्तान के विरोध को वह एक दूसरे उस्ताद साहिर लुधियानवी को याद करते हैं , न सिर झुका के जियो , न मुंह छुपा के जियो ! आख़िर में एक तीसरे उस्ताद आनंद बक्षी आते हैं , कुछ तो लोग कहेंगे , लोगों का काम है कहना ! कुछ तो लोग कहेंगे नाम से ही अनुष्का शर्मा उन की जीवनी की किताब ले कर उपस्थित होती हैं । इस के पहले भी आनंद बक्षी मिलते हैं हाथी मेरे साथी के एक गीत के मार्फ़त , दुनिया में रहना है तो काम करो प्यारे ! इन उस्ताद लोगों को वह नरगिस की यादों को झरोखे से याद करते हैं तो बात में भावनात्मक और संवेदनात्मक दम आ जाता है । संजू फिल्म इस लिए भी याद की जानी चाहिए कि नरगिस और राजकपूर के परिवार का यह समानुपातिक मिलन भी है ।

रेखा , माधुरी दीक्षित जैसी अभिनेत्रियों के साथ संजय दत्त का प्रेम संबंध और गुपचुप शादी जैसे घटनाएं इस फ़िल्म में विलुप्त हैं । उन की पहली पत्नी ऋचा शर्मा और उन से उन की बेटी भी अनुपस्थित है फ़िल्म से । दूसरी पत्नी भी । मान्यता से उन के विवाह के प्रसंग और जुड़े विवाद भी गुम हैं । ऐसी बहुत सी नालायकी और फ़रेब भी संजय दत्त के छुपा ले गए हैं निर्देशक । संजय की बहन प्रिया दत्त का सारा अवदान फ़िल्म में भुला दिया गया है । तब जब कि प्रिया सुनील दत्त के जाने के बाद जिस तरह से संजय के साथ संघर्ष में कंधे से कंधा मिला कर खड़ी दिखी थीं , वह अदभुत था । संजय के वकील भी लापता हैं । सारी कायनात एक तरफ दूसरी तरफ एक बाला साहब ठाकरे न होते तो भी संजय दत्त का टेररिस्ट के जुर्म से छूट्टी पा पाना नामुमकिन था । लेकिन बाला साहब ठाकरे भी फ़िल्म से अनुपस्थित हैं । फिल्म में संजय दत्त का चेहरा साफ़ करने के लिए इसी तरह जहां बहुत से तथ्य छुपाए गए हैं वहीँ बहुत से तथ्य काल्पनिक रूप से गढ़े गए हैं । दाऊद इब्राहीम से सीधा संपर्क था संजय दत्त का । आमिर खान , शाहरुख़ खान जब अंडरवर्ल्ड के मार्फत संजय दत्त का नुकसान पर नुकसान कर रहे थे , यह सब भी फिल्म से पूरी तरह गोल है । नरगिस संजय का ड्रगिस्ट रूप नहीं जानती थीं , यह भी झूठ है । ऐसी बहुतेरी बातें हैं । जब बायोपिक ही बना रहे थे , पूरी बायोपिक बनाते । सच-झूठ करने से बातें क्या छुप जाती हैं । संजय दत्त का बिगड़ैल बचपन और स्कूली जीवन भी लापता है । तो यह बायोपिक बनाने की ज़िद भला क्यों थी । आप घोषित कर देते कि संजय दत्त के जीवन से प्रेरित या आधारित । पर शायद इस तरह दोस्ती नहीं निभ पाती । चेहरा साफ़ करने का मकसद कामयाब नहीं हो पाता । बावजूद इन सब बेवकूफियों के यह मकसद हासिल तो नहीं हो पाया है ।

हर नालायक और बिगड़े लड़के के पिता को यह फ़िल्म ज़रुर देखनी चाहिए । शायद सुनील दत्त के धैर्य को देख कर उसे सीख मिले । धैर्य धारण करने का साहस भी । वह अभागा पिता यह भी सोच सकता है कि उस का लड़का कितना भी नालायक और बिगड़ा हुआ हो पर संजय दत्त से तो बहुत बेहतर है । संजय दत्त जैसा ड्रगिस्ट , नशेड़ी , मनबढ़ और टेररिस्ट लड़का भगवान किसी को न दे । इस लिए भी कि दुनिया के सारे पिता सुनील दत्त जैसा धैर्य , पैसा , फ़िल्मी लोकप्रियता , सामाजिक और राजनीतिक जीवन नहीं पाते । विधु विनोद चोपड़ा , राजकुमार हिरानी को सुनील दत्त के जीवन पर भी एक फिल्म बनाने की सोचनी चाहिए । इसी जूनून और इसी समर्पण के साथ । वह शायद क्लासिक बन जाए ।