Saturday 7 September 2019

चाहे कितना भी बड़ा वैज्ञानिक हो , वह भी टूटता है और रोता भी है


सुप्रसिद्ध उपन्यासकार अमृतलाल नागर से एक बार मैं ने विद्यार्थी भाव से पूछा था कि क्या साहित्यकार भी टूटता है ? तब विद्यार्थी था भी। नागर जी पान कूंचते हुए सहज भाव से बोले थे , ' साहित्यकार भी आदमी है , टूटता भी होगा। इस में पूछने की क्या बात है ? ' एक बार सुबह-सुबह गोर्की ताल्स्तॉय के पास पहुंचे। ताल्स्तॉय उस समय एक शीशी से कार्क निकालने में व्यस्त थे। कार्क था कि निकल ही नहीं रहा था । बहुत कोशिशों के बाद आखिर कार्क निकला लेकिन साथ ही शीशी भी टूट गई। गोर्की से रहा नहीं गया। बोले , ' ओह , शीशी टूट गई।' यह सुनते ही ताल्स्तॉय , गोर्की पर बुरी तरह भड़क गए। बोले , ' भाग जाओ , यहां से ! अब तुम्हें चाय भी नहीं पिलाऊंगा। ' ताल्स्तॉय गोर्की से आहत हो कर बोले , ' तुम्हें शीशी का टूटना तो दिख रहा है , मेरा टूटना नहीं दिख रहा ? ' इसरो चीफ़ के सीवन का रोना देख कर यह दोनों बातें सहसा याद आ गईं। नागर जी का कहा बरबस याद आ गया । पता लग गया कि एक वैज्ञानिक भी आदमी ही होता है। चाहे कितना भी बड़ा वैज्ञानिक हो , वह भी टूटता है और रोता भी है। भूल जाता है कि सब के सामने नहीं रोना चाहिए। जैसे कि कभी यह सुनने और पढ़ने को मिलता था कि नेहरु सब के सामने नहीं रोया करते। सब कुछ भूल-भाल कर एक छोटी सी असफलता पर इसरो चीफ़ के सीवन टूट गए और टूट कर रो पड़े।

संयोग से रोने के लिए उन्हें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का मज़बूत कंधा मिला। बस क्या था ! एक से एक सूरमा , एक से एक मवाद हुसेन , मवाद मिश्र , मवाद सिंह लोग अपनी-अपनी काठ की तलवार ले कर कूद पड़े। अपनी बीमारी , मुंह और कलम का बवासीर ले कर मवाद फ़ैलाने लगे। इसरो चीफ़ के सीवन के रोने , मोदी के कंधे की तफ़सील में सान कर इजहारे कुढ़न की इबारत बांचने लगे। यह वही मुट्ठी भर लोग हैं जो उरी के बाद सर्जिकल स्ट्राइक , पुलवामा के बाद बालाकोट में एयर स्ट्राइक के सुबूत मांगने में अपना खून जलाते-जलाते खुद जलने लगे। के सीवन और इसरो की मेहनत का मजाक उड़ाने वाले यह लोग कोढ़ हैं इस समाज और देश पर। वैज्ञानिक कोशिशें , परचून की दुकान या कोई माल नहीं होतीं कि आप पैसा और झोला ले कर जा कर सामान लेते आएं। वैज्ञानिक कोशिशें कामयाब भी होती हैं और नाकाम भी। नाकामी पर इस तरह बीमारी के साथ उपस्थित होने से बचा भी जा सकता है। चुप रहना भी एक कला होती है। यह समय इसरो के वैज्ञानिकों के साथ , देश के साथ खड़े रहने का है , उन का मजाक उड़ाने का नहीं। लेकिन यह मवाद और बवासीर ब्रिगेड देश की हर सफलता में भी छेद खोज लेने की कुत्ता कोशिश में कूद पड़ती है। फिर निरंतर मुंह की खा कर नया छेद खोजने में मसरूफ हो जाने में महारत भी रखती है। यह पढ़े-लिखे कबीलाई लोग हैं।

1 comment:



  1. आपके एक ब्लॉग पोस्ट की वीडियो के साथ ब्लॉग चर्चा नरेंद्र मोदी से शिकायत कैसे करे ? और बेस्ट 25 में की गई है

    कृपया एक बार जरूर देखें

    Enoxo multimedia

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