महात्मा गांधी और टैगोर |
महात्मा गांधी और नेता जी सुभाष चंद्र बोस , पटेल |
जो लोग नहीं जानते वह लोग अब से जान लें कि गांधी को महात्मा की उपाधि रवींद्रनाथ टैगोर ने दिया था। जब कि गांधी को राष्ट्रपिता नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने कहा था। और समूचे देश ने एक स्वर में तब इसे स्वीकार कर लिया था। यह देश को आज़ादी मिलने से पहले की बात है।
सोचिए कि गांधी ने ही चंपारण में सत्याग्रह कर अंगरेज सरकार की आंख में अंगुली डाल कर उन की सत्ता का काजल निकाल लिया था। अंगरेज जज कहता ही रहा कि माफ़ी मांग लीजिए और जाइए। गांधी ने कहा , किसी सूरत माफ़ी नहीं मांगता। लाचार जज ने कहा , फिर भी आप को रिहा किया जाता है। दमनकारी ब्रिटिश सत्ता के लिए यह आसान नहीं था। यह पहली बार था। अंगरेजी वस्त्रों की होली जला कर गांधी ने उन की संस्कृति को जला दिया था। असहयोग आंदोलन कर अंगरेजों की सत्ता में भूचाल ला दिया था। गोरखपुर में एक चौरीचौरा कांड हो गया। अराजक भीड़ ने थाना बंद कर पुलिस वालों को जिंदा जला दिया। इस एक हिंसक घटना से विचलित हो कर गांधी ने पूरे देश से असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। नेहरु , पटेल सब के सब समझाते रहे थे। कि एक घटना के कारण आंदोलन वापस लेना ठीक नहीं रहेगा। पूरा देश आगे बढ़ चुका है। पर गांधी ने साफ़ कह दिया कि हमें ईंट का जवाब पत्थर से दे कर यह आंदोलन नहीं चाहिए , तो नहीं चाहिए। दांडी यात्रा कर , नमक क़ानून तोड़ते हुए , नमक बना कर अंगरेजों के क़ानून को तार-तार कर दिया था गांधी ने। और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया था। 1947 में अंगरेज भारत छोड़ कर गए भी।
दुनिया भर से कोई एक नाम बता दे कोई कि जिस ने उपवास कर के भयानक दंगा रोक दिया हो। गांधी ने रोका था , नोआखली दंगा। सिर्फ़ उपवास के बल पर। तब जब कि प्रशासन हार गया था। ऐसे जाने कितने किस्से , कितने काम , कितनी तपस्या गांधी के जीवन में हैं जिन की लोग कल्पना नहीं कर सकते। जब सब कुछ से हार जाते हैं लोग तो गांधी के सत्य के प्रयोग पर उतर आते हैं। चरित्र हत्या पर उतर आते हैं। कि वह तो नंगी औरतों के साथ सोते थे। हां , सोते थे। दरवाज़ा खोल कर सोते थे। अय्यास और बलात्कारी दरवाज़ा खोल कर नहीं सोते। उस में ब्रिटिशर्स , जर्मन , भारतीय आदि तमाम स्त्रियां थीं। अपनी खुशी से सोती थीं। प्रतिस्पर्धा थी उन में कि कौन सोएगा। आप क्या कहेंगे , गांधी ने खुद इस बाबत बहुत लिखा है और खुद छापा है अपने हरिजन में। जब बहुत हुआ तो अपने निजी सचिव महादेव तक से गांधी ने कहा कि जाओ मेरा भंडाफोड़ कर दो। आप को क्या लगता है कि अगर उन के कट्टर दुश्मन अंगरेजों को इस बाबत एक भी छेद मिलता तो वह गांधी को जीने देते। उन की चरित्र हत्या से बाज आते भला ? और जनता छोड़ती उन्हें। गाना गाती , दे दी आज़ादी हमें बिना खड्ग , बिना ढाल / साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ! अरे अंगरेज बाद में , जनता पहले ही उन्हें भून कर खा जाती। जानिए कि यह सारे विवरण गांधी ने खुद लिखे हैं , स्वीकार किए हैं। चिट्ठियों में लेखों में। तब आप जान पाए। किसी स्टिंग आपरेशन से नहीं। गांधी को समग्र में पढ़ना हो तो प्रकाशन विभाग , भारत सरकार ने सौ भाग में गांधी समग्र प्रकाशित किया है। हिंदी और अंगरेजी दोनों में। पढ़ डालिए। लेकिन लोग पढ़ेंगे नहीं , सिर्फ़ गाली देंगे।
लेकिन जिन अंगरेजों को गांधी ने भारत से खदेड़ दिया उन अंगरेजों ने गांधी को कभी गाली नहीं दी। उलटे ब्रिटिश संसद के सामने , सम्मान में गांधी की स्टैचू लगा रखी है। ब्रिटिशर्स ही थे रिचर्ड एटनबरो जिस ने गांधी पर शानदार फिल्म बनाई है। ब्रिटिशर्स ही थे बेन किंग्सले जिन्हों ने गांधी की भूमिका में प्राण फूंक दिए। भारत में हिंदी , अंगरेजी या किसी और भी भारतीय भाषा में गांधी जैसी कोई एक कालजयी फिल्म नहीं है। उस के आस-पास भी नहीं। गांधी के अवदान को ब्रिटिशर्स अब भी भूल नहीं पाते। दुनिया उन के सत्य , अहिंसा और सत्याग्रह के आगे शीश झुकाती है। लेकिन अफ़सोस कि भारत में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो गांधी को बिलकुल नहीं जानते। गांधी को सिर्फ़ गालियां देना जानते है। गांधी की चरित्र हत्या करना जानते हैं। अफ़सोस कि यह लोग अपने को भारतीय कहते हैं। हे गांधी , इन अज्ञानियों और नफ़रत से भरे लोगों को माफ़ करना ! यह आप को नहीं जानते। यह मनुष्यता , अहिंसा , सत्य और सत्याग्रह नहीं जानते। देश के लिए आप का संघर्ष नहीं जानते। नहीं जानते यह मूर्ख कि मूल्यों की रक्षा के लिए , मनुष्यता और सत्य के लिए आप ने जान दे दी। जैसे सोने का हिरन दिखा कर रावण सीता का हरण कर ले गया , वैसे ही आप के पांव छू कर गोडसे गोली मार कर आप की हत्या कर गया ! आप ने हे राम ! कहा और विदा हो गए। यह वही लोग हैं जिन्हों ने कभी राम को भी नहीं छोड़ा था। हे राम , हे गांधी इन अज्ञानियों को क्षमा करना !
आप गरियाते रहिए महात्मा गांधी को। खोजते रहिए उन में छेद पर छेद। पूरी तरह असहमत रहिए महात्मा गांधी से। कोई बात नहीं। यह आप का अधिकार है , आप का विवेक है और आप की समझ। इस लिए भी कि गांधी कोई देवता नहीं थे। मनुष्य थे। फिर हमारे यहां तो देवताओं को भी गरियाने की परंपरा है। गांधी कोई पैगंबर नहीं हैं कि आप उन को भला-बुरा नहीं कह सकते। कह देंगे तो तूफ़ान मच जाएगा। गांधी मनुष्य हैं। और जैसे भी हैं , मुझे पसंद हैं। आप कीजिए उन की निंदा। भरपेट कीजिए। लेकिन मैं महात्मा गांधी का गायक हूं। प्रशंसक हूं। अनन्य गायक। अनन्य प्रशंसक। उन की तमाम खूबियों और खामियों के साथ गाता हूं उन्हें । आप मुझे भी गरिया लीजिए। गरिया ही रहे हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता। सच यह है कि जो एक बार गांधी को ठीक से जान लेगा , वह गांधी को गाएगा। गाता ही रहेगा। मैं उन्हीं असंख्य लोगों में से एक हूं। राष्ट्र कवि सोहनलाल द्विवेदी की इस कविता को मन करे तो आप भी पढ़िए और गाइए। ऐसी कविता लिखना और ऐसी कविता पढ़ना भी सौभाग्य होता है।
चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर ;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,
जिसके शिर पर निज हाथ धरा
उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गए उसी पर कोटि माथ ;
हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु
हे कोटि रूप, हे कोटि नाम !
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम !
युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख
युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की
खीचते काल पर अमिट रेख ;
तुम बोल उठे युग बोल उठा
तुम मौन रहे, जग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना ;
युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक
युग संचालक, हे युगाधार !
युग-निर्माता, युग-मूर्ति तुम्हें
युग युग तक युग का नमस्कार !
दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से
तुम काल-चक्र की चाल रोक,
नित महाकाल की छाती पर
लिखते करुणा के पुण्य श्लोक !
हे युग-द्रष्टा, हे युग सृष्टा,
पढ़ते कैसा यह मोक्ष मन्त्र ?
इस राजतंत्र के खण्डहर में
उगता अभिनव भारत स्वतन्त्र !
आप गरियाते रहिए महात्मा गांधी को। खोजते रहिए उन में छेद पर छेद। पूरी तरह असहमत रहिए महात्मा गांधी से। कोई बात नहीं। यह आप का अधिकार है , आप का विवेक है और आप की समझ। इस लिए भी कि गांधी कोई देवता नहीं थे। मनुष्य थे। फिर हमारे यहां तो देवताओं को भी गरियाने की परंपरा है। गांधी कोई पैगंबर नहीं हैं कि आप उन को भला-बुरा नहीं कह सकते। कह देंगे तो तूफ़ान मच जाएगा। गांधी मनुष्य हैं। और जैसे भी हैं , मुझे पसंद हैं। आप कीजिए उन की निंदा। भरपेट कीजिए। लेकिन मैं महात्मा गांधी का गायक हूं। प्रशंसक हूं। अनन्य गायक। अनन्य प्रशंसक। उन की तमाम खूबियों और खामियों के साथ गाता हूं उन्हें । आप मुझे भी गरिया लीजिए। गरिया ही रहे हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता। सच यह है कि जो एक बार गांधी को ठीक से जान लेगा , वह गांधी को गाएगा। गाता ही रहेगा। मैं उन्हीं असंख्य लोगों में से एक हूं। राष्ट्र कवि सोहनलाल द्विवेदी की इस कविता को मन करे तो आप भी पढ़िए और गाइए। ऐसी कविता लिखना और ऐसी कविता पढ़ना भी सौभाग्य होता है।
चल पड़े जिधर दो डग, मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर ;
गड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर,
जिसके शिर पर निज हाथ धरा
उसके शिर- रक्षक कोटि हाथ
जिस पर निज मस्तक झुका दिया
झुक गए उसी पर कोटि माथ ;
हे कोटि चरण, हे कोटि बाहु
हे कोटि रूप, हे कोटि नाम !
तुम एक मूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि
हे कोटि मूर्ति, तुमको प्रणाम !
युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख
युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,
तुम अचल मेखला बन भू की
खीचते काल पर अमिट रेख ;
तुम बोल उठे युग बोल उठा
तुम मौन रहे, जग मौन बना,
कुछ कर्म तुम्हारे संचित कर
युगकर्म जगा, युगधर्म तना ;
युग-परिवर्तक, युग-संस्थापक
युग संचालक, हे युगाधार !
युग-निर्माता, युग-मूर्ति तुम्हें
युग युग तक युग का नमस्कार !
दृढ़ चरण, सुदृढ़ करसंपुट से
तुम काल-चक्र की चाल रोक,
नित महाकाल की छाती पर
लिखते करुणा के पुण्य श्लोक !
हे युग-द्रष्टा, हे युग सृष्टा,
पढ़ते कैसा यह मोक्ष मन्त्र ?
इस राजतंत्र के खण्डहर में
उगता अभिनव भारत स्वतन्त्र !
सुन्दर लेख ।
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ReplyDeleteआंख खोलती खरी बात। अफसोस आजकल भाई लोग जोश में होश खो बैठे हैं और कुछ भी बके जा रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत सटीक संदर्भ।अहिंसा,सत्य,सादगी के बल पर दुनिया को दिखा दिया।गांधी के पुजारी पूरी दुनिया में हैं।लेकिन अपने ही देश में कुछ लोग मदमस्त होकर उस महात्मा को आज क्या कह रहे हैं...!
ReplyDeleteगाँधी जी के यश को चंद लोगों की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ सकता, वे अमर हैं उनका यश भी अमर है
ReplyDeleteशानदार आलेख, किसी ओजस्वी भाषण की तरह। संक्षेप में बहुत सारे तथ्य भी समेट लिए हैं। बढ़िया।
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ReplyDeleteगाँधी को समझना सबके वश की बात नहीं है।
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