आचार्य रामदेव शुक्ल को सुनना सर्वदा एक अनुभव होता है। उन को सुने की अनगूंज मन में ऐसे बस जाती है कि फिर मन से , जीवन से जाती नहीं। हिंदी में इतनी तैयारी के साथ , इतनी सरलता और इतनी सतर्कता के साथ बहुत कम लोगों को सुना है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी को सुना है , अज्ञेय और नामवर सिंह को सुना है , अशोक वाजपेयी या फिर रामदेव शुक्ल को। तमाम लोगों की तरह रामदेव जी कभी भी इस डाल से उस डाल पर नहीं कूदते। अपने विषय पर पूरी तरह केंद्रित रहते हैं। भूल कर भी कभी सूत भर भी इधर-उधर नहीं होते। रामदेव जी आज उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान , लखनऊ में हिंदी साहित्य पर नाथपंथ का प्रभाव विषय पर बोले। नाथ पंथ के बहाने गोरख पर भी खूब बोले। बताया कि शिव आदियोगी थे , कृष्ण योगेश्वर और गोरख महायोगी थे। गोरख के लिखे पद और उन के जीवन की चर्चा भी विस्तार से की। बताया कि गोरख और गोरक्ष एक ही हैं , अलग नहीं । ध्वनि और उच्चारण के अर्थ में बस अलग हैं। गोरख ने कैसे पाखंड और कुरीतियों को तार-तार किया। न सिर्फ उत्तर भारत बल्कि समूचे भारत में वह घूमे और अलख जगाया। गुजरात का अपना एक अनुभव जोड़ते हुए बताया कि वहां लोग गोरख को गोबरनाथ के रूप में भी जानते हैं।
किस्सा यह है कि गोरख के गुरु गुजरात के एक गांव से गुज़र रहे थे। एक नि:संतान स्त्री ने अपनी दुर्दशा बताई और कहा कि मुझे एक बेटा चाहिए। तो उस संन्यासी ने अपने झोले में से भभूत निकाल कर देते हुए कहा , इसे खा लो ! कोई बारह साल बाद वह संन्यासी उस गांव से लौट रहा था। तो उस औरत से पूछा , तुम्हारा बेटा कहां है , बुलाओ उसे। औरत ने कहा , मेरे बेटा कहां है ? तो संन्यासी ने पूछा कि वह भभूत क्या खाई नहीं ? औरत बोली , नहीं। तो संन्यासी ने पूछा , क्या किया ? औरत ने बताया कि उसे यहीं एक घूरे पर फेंक दिया था। संन्यासी ने घूरे के पास जा कर पुकारा और बारह साल का एक लड़का उस घूरे के गोबर से निकल आया। संन्यासी उसे ले कर चला गया। यही लड़का गोरखनाथ हुआ। जिसे गुजरात में लोग आज भी गोबरनाथ कहते हैं। जाने इस किस्से में कितनी सचाई है । पर गोरखनाथ ने बाद में योग की विधियां तो खोजी ही , तमाम अंध विश्वास और कुरीतियों से भी वह लड़े। रामदेव जी ने गोरख के अहिंसा,सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच यम पर भी बात की। कबीर , जायसी , नानक आदि पर गोरख और नाथ पंथ के प्रभाव पर बात की। और इतना डूब कर बात की कि सुनने वाले भी उन की बातों में डूब गए। गोरख के कई पद और शाबर पर भी रामदेव जी बोले।
रामदेव जी ने सूफियों पर भी विस्तार से बात की। बुद्ध पर भी बात की।अप्प दीपो भव की चर्चा की। गोरख के मूल से इसे जोड़ा। बताया कि इस्लाम से भी बहुत पहले सूफी भारत आए थे। सूफियों के कठिन जीवन की चर्चा की। कि कैसे खेत से फसल कट जाने के बाद खेत में गिरे एक-एक दाना बटोर कर भोजन करते थे। भेड़ , बकरियों के रोएं काटों में से निकाल कर अपने लिए कपड़ा तैयार करते थे। कितनी साधना करते थे। गोरखनाथ की साधना को भी इसी तरह रेखांकित किया। कृष्ण द्वारा सूर्य को भी योग सिखाने के प्रसंग का संदर्भ दिया।
अनुज प्रताप सिंह , राधेश्याम दूबे , प्रदीप कुमार राव , योगेंद्र प्रताप सिंह ने भी इस विषय पर विस्तार से बात की। गोरखनाथ किस जाति के थे , इस पर भी बात आ गई। फिर हुआ कि हजारी प्रसाद द्विवेदी ने गोरख को ब्राह्मण बताया है। फिर बात आई कि गोरख ने कैसे तो दलितों को भी बराबरी में बिठाया। देश भर में गोरख के सामाजिक सुधारों की भी चर्चा हुई। तमिलनाडु , कर्नाटक , पूर्वोत्तर तक में उन के काम और लिखे की चर्चा हुई। युग प्रवर्तक महायोगी गोरखनाथ पर त्रिदिवसीय गोष्ठी का आज आख़िरी दिन था। सो हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष सदानंद गुप्त ने समारोप वक्तव्य भी दिया। सदानंद गुप्त द्वारा परोसे गए तीन दिन की इस संगोष्ठी के विवरण सुन कर और आज विभिन्न विद्वानों द्वारा गोरखनाथ पर विशद चर्चा सुन कर बहुत पछताया कि बाकी दो दिन भी मैं क्यों नहीं गया। लोगों को गोरख पर सुनने। लेकिन सदानंद गुप्त ने बताया है कि अगले वर्ष फिर इस से बड़ा आयोजन महायोगी गोरखनाथ पर किया जाएगा। यह जान कर अच्छा लगा। इस लिए भी कि गोरख को जानना , खुद को जानना होता है ।
बहुत सुंदर आरडी शुक्ला
ReplyDeleteगोरखनाथ पर विस्तृत जानकारी के लिए आभार
ReplyDeleteBahut jankari vardhak. Abhar avm sadhuwad
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