Sunday 3 February 2013

यादों का मधुबन

[संस्मरण]


-मेरी पांच नई किताबें- 
अब की पुस्तक मेले में एक साथ मेरी पांच नई किताबें होंगी।

१-यादों का मधुबन 
[संस्मरण]
२-मीडिया तो अब काले धन की गोद में
[लेखों का संग्रह]
३-एक जनांदोलन के गर्भपात की त्रासदी
[राजनीतिक लेखों का संग्रह]
४-कुछ मुलाकातें, कुछ बातें
[ संगीत, सिनेमा, थिएटर और साहित्य से जुड़े लोगों के इंटरव्यू]
५- ग्यारह प्रतिनिधि कहानियां

यह सभी किताबें जनवाणी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई हैं। दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित पुस्तक मेले में हा्ल नंबर १२ के स्टाल नंबर २५ और २६ पर आप को यह किताबें मिल सकती हैं।



यादों की नदी ऐसी नदी है जो कभी साथ नहीं छोड़ती। हमेशा कल-कल, छल-छल बहती रहती है। किसी घर की याद हो, व्यक्ति की याद हो या किसी हस्ती की मन से नहीं जाती तो नहीं जाती। और जो नहीं आती तो फिर नहीं आती। बतर्ज़ खुमार बाराबंकवी, 'जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं वही आज फिर याद आने लगे हैं। लेकिन खुमार ही यह भी कहते हैं कि, 'सुना है वो हम को भुलाने लगे हैंतो क्या हम उन्हें फिर याद आने लगे हैं। यादों की भूलभुलैया असल में ऐसी ही होती है और गाना ही पड़ता है कि जिन्हें हम भूलना चाहें वो अकसर याद आते हैं। इस की तासीर भी खूब है अब जैसे कि मेरे बचपन का वह घर जहां हम पले-बढ़े, पढ़े-लिखे और जवान हुए, किराए का घर था। लेकिन बड़ा सा और खूब खुला हुआ था। बेला, चमेली, रातरानी, गुड़हल, कनइल, हरसिंगार, गुल मोहर और चंपा जैसे फूल, करौंदा, अमरूद, शहतूत और शरीफा जैसे फल, कुंआं, मंदिर और नीम के पेड़ जैसे हाते वाला वह घर भुलाए नहीं भूलता। जितना बड़ा घर उसका दस गुना हाता। उस घर को छूटे साढ़े तीन दशक से अधिक हो गए हैं, वह घर भी गिर कर अब मैदान हो गया है पर क्या करें कि सपने में अब भी वही घर रह-रह कर लौटता रहता है। गोरखपुर के इलाहीबाग़ में जमींदार साहब का हाता वाला घर । गोरखपुर जाता हूं तो उस मैदान हो चुके घर को भी बड़े मोह से देखने जाता हूं। सारे पुराने दुख-सुख याद आ जाते हैं। जीवन में कई घर और शहर बदले पर मन की यादों में वही घर बसा हुआ है, जाता ही नहीं। मिटता ही नहीं। जैसे प्यार आप चाहे जितने कर लें पर जैसे पहले प्यार की खुशबू नहीं जाती, ठीक वैसे ही वह घर, वह लोग नहीं जाते। वह पूरा का पूरा मुहल्ला अभी भी मन में टहलता मिलता है। इसे आप नास्टेलिजया भी कह सकते हैं। शायद जो कभी आत्म-कथा लिखूं तो उस में इस मुहल्ले की मन में बसी और कभी जियी हुई तसवीर उतरे। क्या होता है कि कई बार अप्रिय घटनाएं भी काफी समय बीत जाने के बाद लोग किसी सुख की तरह याद करते हैं। यादें एक धरोहर बन जाती हैं। सभी के जीवन में तरह-तरह के लोग मिलते हैं। असंख्य लोग। पर कुछ लोग और उन की याद मन की अलगनी पर टंगी रह जाती है। उतरती नहीं। यादों की खिड़की में कुछ लोग ऐसे झांकते हैं कि मन करता है कि उन्हें घर में बुला लें। यहां यादों के इस मधुबन में ऐसे ही कुछ लोग घर आ गए हैं। इन से, इन की स्मृतियों से मिलना अच्छा लगेगा आप को भी। यह मिलने-मिलाने का सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। रुकेगा नहीं। इस लिए भी कि वो जब याद आए, बहुत याद आए। 

21 comments:

  1. यादों की नदी अनवरत बहे - शुभकामनायें

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  2. दया जी , आपकी लिखी किताबे हैं तो नि;संदेह अनूठी और पठनीय होंगी ही , इन्हें सिर्फ देखने ही नहीं अपितु खरीदने के लिए अवश्य ही पुस्तक मेले में जाऊंगा , आपकी किताबों को विश्व पुस्तक मेले में अपार लोकप्रियता और बढ़िया रिस्पांस मिले इस हेतु मेरी शुभकामनायें स्वीकार करें .....

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  3. bahut bahut badhai...prashannta hui ek saath itni kitabon ke baare mai sunkar.

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  4. सुन्दर! आपके संस्मरणात्मक लेख अद्भुत हैं। यादों का मधुबन मंगायेगे पढ़ने के लिये।

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  5. शुभकामनायें... शुभकामनायें... शुभकामनायें... शुभकामनायें...............................

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  6. आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  7. यादों का मधुबन यादों के पुष्पों से महकता ,खुश्बू बिखेरता ,अति मनमोहक है !!!अति सुन्दर !!!!

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  8. आपकी किताबों के प्रकाशन हेतु अशेष बधाई...और उसकी सफलता के लिए अनन्य शुभ कामनाएं.

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  9. ढेर सारी शुभकामनाएं !
    बधाई मित्रवर !

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  10. बहुत- बहुत बधाई ! इतनी सारी किताबें एक साथ, एक उपलब्धि ही कही जायेंगी । और यादों की क्या बात करें - बचपन की यादें शायद सर्वोपरि होती हैं इसलिए हम कितने भी घर बदल लें , सपनों में लौट कर उसी पुराने घर में होते हैं ।

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  11. प्रगति मैदान से आपकी पाँचों पुस्तकें लोगों कि आँखों से होती हुई सबके हाथों में भी पहुंचे, सभी पुस्तकों के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामना

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  12. hardik shubhkamnayen sir....abhi parh nahi payaa hoon lekin poora parhunga to jaroor dil me upaji baaten aap se share karunga

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  14. बड़ा तो था ही पर नयी किताबोँ के बारे मेँ सुनकर लगा कि अचानक बहुतबड़ा हो गया मैँ!ऐसे ही मुझे बड़ा बनाते रहो।बधाई।बधाई।।

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  15. Agar aap chahtein hain ki aapke mitra aapkee kitaabein padhein to kripya unhein muft me uplabdh karvayin aur saath me kuch khaane peene kee uttam vyavasthaa bhee ho.

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  16. आपकी किताबों के प्रकाशन हेतु बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें...
    Abdul Rashid
    www.aawaz-e-hind.in

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  17. किताबों के प्रकाशन हेतु बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें!

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