Wednesday 6 February 2013

एक जनांदोलन के गर्भपात की त्रासदी


[राजनीतिक लेखों का संग्रह]



-मेरी पांच नई किताबें- 
अब की पुस्तक मेले में एक साथ मेरी पांच नई किताबें होंगी।

१-यादों का मधुबन
[संस्मरण]
२-मीडिया तो अब काले धन की गोद में
[लेखों का संग्रह]
३-एक जनांदोलन के गर्भपात की त्रासदी
[राजनीतिक लेखों का संग्रह]
४-कुछ मुलाकातें, कुछ बातें
[ संगीत, सिनेमा, थिएटर और साहित्य से जुड़े लोगों के इंटरव्यू]
५- ग्यारह प्रतिनिधि कहानियां

यह सभी किताबें जनवाणी प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई हैं। दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित पुस्तक मेले में हा्ल नंबर १२ के स्टाल नंबर २५ और २६ पर आप को यह किताबें मिल सकती हैं।




बाज़ार और वर्ड बैंक के रथ पर सवार राजनीति और उस के रंग इतने बदरंग हो चुके हैं कि अब हर किसी के निशाने पर राजनीति और राजनीतिज्ञ हैं। कमोवेश सभी राजनीतिक पार्टियां अब अप्रासंगिक हो कर हमारे सामने अपने खल रुप में उपस्थित हैं। राजनीति पर कभी अंकुश का काम करने वाली मीडिया भी अब अपना अर्थ और अस्तित्व खो कर बाज़ारु सफलता की उत्तेजना में नहाई गुलामी में धुत्त है। राजनीति इसी लिए और पतित हो गई है। पक्ष और प्रतिपक्ष नागनाथ और सांपनाथ में तब्दील हैं। जनता भी कोई नृप होई हमें का हानि ! के अर्थ में वोट डालने से विरक्त हो चुकी है। सो भ्रष्टाचारी और अपराधी सत्ता के रथ पर सवार हैं। भ्रष्टाचार, मंहगाई और बेरोजगारी बेलगाम हो गई है। एक जनांदोलन के गर्भपात की त्रासदी में संकलित लेखों में राजनीति के इन्हीं अंतर्विरोधों, सरोकारों और सिसकियों का अंतर्नाद है। जैसे मन के भीतर टूटे शीशे की किरिचें हों। इन किरिचों की चुभन और उस की टीस, उस की आंच, उस की झुलसन और उस की सुलगन की ताज़ी इबारत इन लेखों में अपने पूरे ताप के साथ उपस्थित हैं।

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