Sunday, 26 June 2022

नहीं सूट करता तो लोग सुप्रीम कोर्ट में भी कोढ़ खोजने लगते हैं

दयानंद पांडेय 

आप भूल रहे हैं कि सलमान खान को आनन-फानन ज़मानत दिलवाने वाले भी यही हरीश साल्वे हैं। एक रुपए की फीस पर , जो अभी तक नहीं मिली , अंतरराष्ट्रीय अदालत में कुलभूषण जाधव की फांसी रुकवाने वाले भी यही हरीश साल्वे हैं। फिर अभी उत्तर प्रदेश में चल रहे बुलडोजर को सुप्रीम कोर्ट से क़ानूनी ठप्पा लगवाने वाले भी यही हरीश साल्वे हैं। 

हरीश साल्वे की वकालत की चादर अपेक्षतया थोड़ी साफ़-सुथरी है। सलमान खान के दाग़ के बावजूद। अभिषेक मनु सिंधवी की तरह मुख मैथुन के बदले किसी स्त्री को जस्टिस नहीं बनवाते हरीश साल्वे। कपिल सिब्बल की तरह दलाली वाली वकालत नहीं है हरीश साल्वे की। मेरिट पर होती है। कपिल सिब्बल कभी किसी अंतरराष्ट्रीय अदालत गए हैं ? कि अभिषेक मनु सिंधवी। कि सलमान खुर्शीद या चिदंबरम ? या इन जैसे लोग ? यह लोग तो गमले में गोभी लगा कर अरबपति बन जाने वाले लोग हैं। 

तीस्ता सीतलवाड़ के वकील हैं कपिल सिब्बल। जानते ही होंगे कि कितने आतंकियों के वकील हैं कपिल सिब्बल। टू जी , कोयला आदि सभी भ्रष्ट जनों के वकील कपिल सिब्बल। कांग्रेस छोड़ कर सपा के सहयोग से राज्य सभा पहुंचे ही इस शर्त पर हैं कपिल सिब्बल कि अखिलेश को आय से अधिक आय वाले मामले में जेल नहीं जाने देंगे। जैसे कभी बाजवक्त राम जेठमलानी लालू से सौदा कर राज्य सभा गए। कि लालू को जेल से बचाएंगे। पर लालू जेल गए। निश्चिन्त रहिए अखिलेश भी जेल जाएंगे। कपिल सिब्बल बचा नहीं पाएंगे। क्यों कि अखिलेश के भ्रष्टाचार मामले में दर्जनों लोग अभी जेल पहुंच गए हैं। पहुंचते ही जा रहे हैं। निरंतर। दर्जनों यादव इंजीनियर , अफ़सर जेल की हवा काट रहे हैं। ज़मानत नहीं मिल रही। अखिलेश तक आंच आ चुकी है। 

अच्छा आप को क्या लगता है , उद्धव ठाकरे सरकार क्या अभी भी बहुमत में है ? मुख्य मंत्री रहते हुए भी ठाकरे बागियों के लिए जो गुंडई , हिंसा , आगजनी करवा रहा है , अपने बाप बाल ठाकरे की तरह , वह जायज है ? संसदीय लड़ाई क्या सड़क पर गुंडों की तरह लड़ी जाती है ? यक़ीन कीजिए हरीश साल्वे एकनाथ शिंदे और शिवसेना के बाग़ी विधायकों के बाबत कल सुप्रीम कोर्ट से अपेक्षित सफलता ले कर लौटेंगे। बाकी आप जैसे मित्र तो भूल ही जाते हैं कि अफजल जैसे आतंकियों के लिए यही सुप्रीम कोर्ट आधी रात भी खुल जाती रही है। कल्याण सिंह के लिए भी खुली थी हाईकोर्ट जब अर्जुन सिंह ने तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी पर दबाव डलवा कर जगदंबिका पाल को कुछ घंटों के लिए मुख्य मंत्री बनवा दिया था। 

आज 26 जून है। आज ही की तारीख में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी। इस लिए कि जस्टिस जगमोहन सिनहा ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया था। पर आप को कहां याद होगा यह सब। क्यों कि आप की नज़र में यह सुनहरा अध्याय था , काला अध्याय नहीं। संविधान , सुप्रीम कोर्ट की सौगंध खाने और इसे बचाने की गुहार लगाने वाले लोग कैसे तो अगर कुछ नहीं सूट करता तो उस में कोढ़ खोजने लगते हैं। यह सब देख कर सच अब बहुत आनंद आता है। निर्मल आनंद।

 


नहीं तो योगी और भाजपा आप को सम्मानित नागरिक बना ही देंगे

दयानंद पांडेय 


भारतीय मुसलमानों को अब से सही यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि अगर वह नरेंद्र मोदी और भाजपा को चुनावी बिसात पर हराना चाहते हैं तो भारत देश के नागरिक की तरह रहना और सोचना शुरु कर दें। देश की मुख्य धारा में रहना सीख लें। मोदी और भाजपा समाप्त हो जाएंगे। मुकम्मल तौर पर समाप्त हो जाएंगे। क्यों कि आप का मुसलमान होना , होते रहना ही उन की सारी ताक़त है। जब तक भारत के नागरिक की जगह मुसलमान बन कर सोचते रहेंगे , मुसलमान बन कर रहते रहेंगे , तय मानिए नरेंद्र मोदी और भाजपा को महाबली बनाते रहेंगे। इस इस्लाम और मुसलमान की बिना पर नरेंद्र मोदी और भाजपा को चुनावी बिसात पर हराना अब किसी सूरत नामुमकिन है। यह बात इस्लाम के अनुयायियों और मुसलमानों को बड़े-बड़े अक्षरों में लिख कर रख लेना चाहिए। आज़मगढ़ और रामपुर के लोकसभा उपचुनाव के नतीजों का निहितार्थ समझिए। चुनावी बिसात पर इस्लाम और मुसलमान के बहुत बड़े गढ़ थे यह दोनों। बरसों से। पर यह दोनों गढ़ आज गड्ढे में चले गए। 

और जो सेक्यूलरिज्म के दुकानदारों कांग्रेस , कम्युनिस्ट , ओवैसी , आज़म और सपा ,  बसपा जैसों के हाथों खिलौना बन कर रहना , मुसलमान और शरिया की सल्तनत में ही रहना क़ुबूल है तो यह आप की ख़ुशी है। अपनी क़िस्मत में अगर यही अपमान लिखवा कर आप लाए हैं तो आप को यह मुबारक़ ! फिर ख़ुशी-ख़ुशी भाजपा और नरेंद्र मोदी को बर्दाश्त करना भी सीख लीजिए। और जो इसी तरह बात-बेबात इस्लाम और मुसलमान-मुसलमान करते हुए अपनी ज़िंदगी जहन्नुम बनाए रहेंगे , देश का सामान्य नागरिक बनना क़ुबूल नहीं करेंगे तो जल्दी ही योगी आदित्यनाथ को भी बर्दाश्त करने का अभ्यास करना शुरु कर दीजिए। उत्तर प्रदेश में पत्थरबाज़ी कर-कर के बुलडोजर राज अभी आप बर्दाश्त कर ही रहे हैं , मोदी की जगह जब योगी आ जाएंगे तब पूरे देश का इलाज यही होगा। आप इस्लाम और मुसलमान-मुसलमान करते रहेंगे और बुलडोजर चलता रहेगा। फिर क्या करेंगे आप ? शाहीनबाग़ की सारी शहंशाही चकनाचूर हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट आर्डर-आर्डर करता रहेगा , बुलडोजर चलता रहेगा। यह किसी भी सभ्य समाज के लिए गुड बात नहीं कि बुलडोजर चले किसी के घर पर। बड़ी मुश्किल से किसी का घर बनता है। पर हिंसक और असभ्य लोगों का इलाज भी तो फिलहाल बुलडोजर ही है। कहते ही हैं कि लोहा , लोहे को काटता है। 

चीन के उइगर मुसलमानों की याद कर लें। कि किस तरह चीन लाखों उइगर मुसलमानों को नज़रबंद कर उन्हें देशप्रेम का पाठ पढ़ा रहा है। दाढ़ी , बुरका , मस्जिद , मजार कब्रिस्तान , नमाज आदि सब वहां पूरी तरह प्रतिबंधित है। पूरी सख़्ती से प्रतिबंधित है। 

बहरहाल , देश का सम्मानित नागरिक बनने का सौभाग्य अगर आप नहीं प्राप्त करना चाहते हैं , आप के नसीब में यह नहीं है तो यह भी लिख कर रख लीजिए कि आप का इलाज फिर भाजपा और योगी ही हैं। कुछ दिनों में आप को यह सम्मानित नागरिक बना ही देंगे। भले ही बरास्ता चीन बनाएं , बना देंगे। इस्लाम और मुसलमान-मुसलमान कर के आप ने अपना तो भरपूर नुकसान किया ही है , देश और भारतीय समाज का भी बहुत नुकसान किया है। जहन्नुम बना दिया है देश को। अपनी हिंसा , आगजनी और पत्थरबाजी से। 2014 से लगातार आप मुसलमान-मुसलमान का नतीज़ा देखते आ रहे हैं। फिर भी कुछ समझ नहीं आ रहा ? अभी तक आप गुजरात-गुजरात का पहाड़ा पढ़ कर अपने अपराधों और अपनी हिंसा पर परदा डालते आ रहे थे। पर अब ?

अब यह परदा भी फट चुका है। 

कम्युनिस्टों , कांग्रेसियों के सेक्यूलरिज्म के छल-कपट की दुकानदारी से बाहर निकलिए। इन के झांसे में कब तक आते रहेंगे ? कब तक मुसलमान बने रहेंगे। इस्तेमाल होते रहेंगे ? अच्छा इंसान बनिए। अच्छा इंसान ही अच्छा मुसलमान बन सकता है। हिंसक और पत्थरबाज आदमी मुसलमान नहीं , अपराधी होता है। दुनिया बड़ी खूबसूरत है। इसे और ख़ूबसूरत बनाइए। बना चुके हैं आप मुसलमान और इस्लाम के नाम पर कश्मीर जैसे जन्नत को जहन्नुम। अब भारत को जहन्नुम बनाने से बाज आइए। योगी और भाजपा का ध्यान धरिए। अच्छा इंसान बनने में मदद मिलेगी। लीलाधर जगूड़ी की एक कविता पंक्ति है कि भय भी शक्ति देता है।

जुमे के दिन पत्थरबाज़ी , आगजनी और हिंसा का लोकतांत्रिक जवाब और परिणाम रामपुर और आज़मगढ़ ने दे दिया है

दयानंद पांडेय 


नूपुर शर्मा के बहाने उत्तर प्रदेश में हर शुक्रवार यानी जुमे के दिन पत्थरबाजी , आगजनी और हिंसा का लोकतांत्रिक जवाब और परिणाम उत्तर प्रदेश की जनता ने आज़मगढ़ और रामपुर के उपचुनाव के मार्फ़त दे दिया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के जीत की  बुनियाद पड़ गई है। मुख्यमंत्री योगी ने तो उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सभी अस्सी सीटों को जीत लेने का ऐलान का ऐलान कर दिया है। संकेत साफ़ है कि हिंदू वोटर पोलराइज हो गया है। अगर आप मुस्लिम हैं तो हम भी हिंदू हैं , यह बता दिया है। कोई माने या न माने पर आजमगढ़ और रामपुर की जनता ने यह स्पष्ट बता दिया है। और हां , यह योगी के बुलडोजर राज की भी जीत है। 

गौरतलब है कि बीते 23 जून को हुए उपचुनाव में आज़म ख़ान के गढ़ रामपुर में घनश्याम लोधी ने आसिम रजा को 42 हजार से अधिक मतों से और मुस्लिम और यादव के गढ़ आज़मगढ़ में दिनेश लाल निरहुआ ने सपा प्रत्याशी और अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को 10 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। लोकसभा की यह दोनों सीटें सपा के पास थीं। आज़मगढ़ से अखिलेश यादव और आज़म ख़ान के रामपुर से इस्तीफ़ा देने के बाद यह सीट खाली हुई थी। 

समाजवादी पार्टी ने सिर्फ़ यह दोनों सीट नहीं खोई है। यह भी बताया है कि अखिलेश यादव का अहंकार उन्हें राजनीति के पतन के पाताल में पहुंचा दिया है। ज़िक्र ज़रुरी है कि इन दोनों सीटों पर अखिलेश एक भी दिन प्रचार के लिए नहीं गए। मुस्लिम और यादव वोटर का अपना गुलाम समझ लिया था। एम वाई फैक्टर का गुरुर एक बार फिर टूट गया है। एम वाई फैक्टर मतलब जंगलराज। गुंडई और हिंसा।

Thursday, 23 June 2022

हनुमान जी लंका जलाने के लिए भी जाने जाते हैं सत्ता के गुरुर में उद्धव ठाकरे भूल गए

 दयानंद पांडेय 

शायद भारतीय राजनीति में यह पहली बार हुआ है कि किसी सत्ताधारी पार्टी के विधायकों ने हिंदुत्व के नाम पर बग़ावत कर के उद्धव ठाकरे सरकार को धराशाई कर बड़ा सा घाव दे दिया है। अभी तक तो सेक्यूलरिज्म की हिप्पोक्रेसी के नाम पर सरकार से समर्थन वापसी या समर्थन देने की बात होती रही है। वैसे शरद पवार और कांग्रेस की राय बनी है कि उद्धव ठाकरे विधान सभा के फ्लोर पर ही सरकार की लड़ाई लड़ें। 

उद्धव ठाकरे ने इन की राय मानते हुए विधान सभा के फ्लोर पर अपनी इज्ज़त का फालूदा बनाना स्वीकार कर लिया है। बाक़ी उत्तर भारतीयों को मुंबई में  अकसर मार देने और मुंबई से भगा देने वाले बाल ठाकरे नाम के गुंडे के कुपुत्र उद्धव ठाकरे की धुलाई देखना भी दिलचस्प होगा। उद्धव ठाकरे समेत शरद पवार समेत कांग्रेस को लगता है कि एकनाथ शिंदे और उन के जैसे विधायकों का मुंबई आने पर ह्रदय परिवर्तन हो जाएगा। 

राजनीति में कुछ भी मुमकिन है। वैसे भाजपा इस लड़ाई को अब जितना लंबा चलाएगी , उस का उतना ही ज़्यादा नुकसान होगा। अगर दो-तीन दिन में आर या पार नहीं हुआ तो भाजपा का बहुत ज़्यादा नुकसान होगा। बागी विधायकों का हृदय परिवर्तन भी हो सकता है ,शरद पवार ने शिवसेना के बाग़ी विधायकों को धमकी देते हुए कड़ी चेतावनी भी दे दी है , कि बागी विधायकों को क़ीमत चुकानी पड़ेगी। बताइए कि बागी विधायक शिवसेना के और चेतावनी शरद पवार दे रहे हैं। वैसे बेहतर तो यह होगा कि महाराष्ट्र विधान सभा भंग कर चुनाव हो जाए। सब से बेहतर विकल्प यही है। लोकतांत्रिक भी। जो भी हो , उद्धव ठाकरे पार्टी , प्रतिष्ठा , और सरकार तीनों गंवा चुके हैं।

चुनाव जीतने के बाद भी देवेंद्र फडवणीस का हक़ मारने की बद्दुआ तो रही ही होगी। पर पाल घर में निर्दोष संन्यासियों की हत्या , सुशांत सिंह राजपूत के परिवारीजनों , कंगना रानौत , नवनीत राणा आदि की भी बद्दुआएं क्या नहीं होंगी। ज़रुर होंगी। उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र को लंका बना देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक , गृह मंत्री रहे अनिल देशमुख जो अब जेल में हैं इन जैसे लोगों ने क्या कम नर्क बना रखा है। अंबानी तक से फिरौती का फच्चर भी अजब था। सेक्यूलर होने की खाल ओढ़ कर बेटे को बेबी पेंग्विन बना बैठे। अपने ही लोगों को कुत्ता बना कर कांग्रेसियों और पवार की पूजा में व्यस्त रहे।  फिर हनुमान जी सीता जी को खोजने , संजीवनी बूटी लाने आदि के लिए ही नहीं लंका जलाने के लिए भी जाने जाते हैं। सत्ता के गुरुर में उद्धव ठाकरे भूल गए थे।

उद्धव ठाकरे की सरकार जाने की संभावना से शरद पवार की पार्टी और कांग्रेस अगर परेशान है तो समझ आता है कि उन के आगे से सत्ता की रबड़ी-मलाई की थाली जाती दिख रही है। पर देख रहा हूं कि पवार और कांग्रेस से भी ज़्यादा हैरान-परेशान ममता बनर्जी  दिख रही हैं। विधायकों के ख़रीद-फरोख्त का आरोप भी लगा रही हैं। गौहाटी में उन की पार्टी ने प्रदर्शन भी किया उस होटल के सामने जिस में बागी विधायक ठहरे हुए हैं।

उद्धव ठाकरे सरकार के पतन का जब भी कभी कोई इतिहास लिखेगा तो उस इतिहास में वह सब से पहले संजय राउत का नाम बड़े-बड़े , काले-काले अक्षरों में ज़रुर लिखेगा। उद्धव ठाकरे का नाम संजय राउत के बाद लिखेगा। वैसे भी उद्धव ठाकरे का नाम , राहुल गांधी , अखिलेश यादव की पंक्ति में लिखा जाने वाला नाम है। यह तीनों ही ऐसे कलंक हैं जो अपने बाप और ख़ानदान का नाम चौपट करने में प्रवीणता प्राप्त कर के ही पैदा हुए थे। थोड़े समय के लिए ही सही , अखिलेश यादव और उद्धव ठाकरे तो फिर भी कुर्सी पर बैठने का स्वाद चख लिए पर राहुल गांधी तो पूरा व्याकुल भारत ही है। कंप्लीट अभागा जिसे कह सकते हैं। न सत्ता का स्वाद चख सका , न ही विवाह का स्वाद।


Wednesday, 22 June 2022

एक गीत और संगीत ही ऐसा तत्व है जो किसी को कभी तोड़ता नहीं , सिर्फ़ और सिर्फ़ जोड़ता है

दयानंद पांडेय 


एक गीत और संगीत ही ऐसा तत्व है जो किसी को कभी तोड़ता नहीं , सिर्फ़ और सिर्फ़ जोड़ता है। तो इस लिए कि संगीत में सिर्फ़ एक ही विचार होता है । जोड़ने का विचार । भारतीय वांग्मय में माना जाता है कि शिव और सरस्वती की आराधना से ही संगीत की शुरुआत हुई है । यह दोनों ही जोड़ना जानते हैं , घटाना नहीं । कहा ही गया है , सत्य ही शिव है , शिव ही सुंदर है । सत्यम , शिवम , सुंदरम । यही तो है संगीत । सरगम यही तो है । कालिदास, तानसेन, अमीर खुसरो आदि ने इसे नया रंग दिया। पंडित रवि शंकर, भीमसेन गुरूराज जोशी, पंडित जसराज, प्रभा अत्रे, सुल्तान खान ने इसे नई शान दी । बहुत मशहूर है एक गीत , का करूं सजनी आए न बालम ! सुनिए इसे कभी एक साथ बड़े गुलाम अली खां की आवाज़ और बिस्मिल्ला खां की शहनाई में इसे । भूल जाएंगे सारे रंजो गम । गा कर पढ़िए न गीत गोविंदम , भूल जाएंगे सारे भटकाव । जाइए न कभी काशी के संकटमोचन मंदिर में आयोजित संगीत सभा में , हिंदू - मुसलमान का भेद भूल जाएंगे । रविशंकर के सितार , बिस्मिल्ला की शहनाई , हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी , शिव कुमार शर्मा का संतूर , किशन महराज का तबला , गिरिजा देवी का गायन , छन्नू लाल मिश्र की स्वर-लहरी , गुलाम अली की तान आप को अपने सुख की गोद में सुला लेगी ।

शकील बदायूनी और साहिर लुधियानवी ने हिंदी फिल्मों के लिए अधिकतर भजन लिखे हैं , नौशाद ने इन भजनों को संगीत दिया है , मुहम्मद रफ़ी ने गाया और दिलीप कुमार , मीना कुमारी पर फिल्माया गया है। इस की कोई और मिसाल नहीं है । अमीर खुसरो और कबीर ने जितने निर्गुण लिखे हैं उन का कोई सानी नहीं है । आज भी भक्ति संगीत के यह सिरमौर हैं । आप सुनिए न कभी दमा दम मस्त कलंदर, सखी शाबाज़ कलंदर । भूल जाएंगे कौन गा रहा है , किस ने लिखा है । मन्ना डे जब कौव्वाली गाते थे तो कोई उन को हिंदू या बंगाली कह कर ख़ारिज नहीं करता।

लता मंगेशकर कोकड़ी भाषा की हैं , उन की मातृभाषा कोकड़ी ही है लेकिन जब वह किसी भी भारतीय भाषा में गाती हैं तो कौन उन्हें अपनी भाषा का नहीं मानता । मराठी और हिंदी फ़िल्मों में गायन के लिए तो दुनिया भर में वह जानी जाती हैं । हिंदी भाषा की सब से बड़ी और अनकही अम्बेसडर हैं । पूरे भारत में एक सुर से सुनी जाती हैं । बिना किसी विरोध और मतभेद के । हमारी मातृभाषा भोजपुरी में भी कुछ गीत गाए हैं लता मंगेशकर ने । क्या खूब गाया है । लागे वाली बतिया न बोले मोरे राजा हो करेजा छुए ला ! सुन कर lलगता ही नहीं कि वह भोजपुरी की नहीं हैं । लता ही क्यों आशा भोसले , हेमलता और अलका याज्ञनिक ने भी भोजपुरी में कुछ गाने गाए हैं और इतना डूब कर गाए हैं कि कलेजा काढ़ लेती हैं ।

भोजपुरी लोकगीत गायकी के शिखर पर विराजमान इस समय चार स्त्रियां हैं , शारदा सिनहा , मालिनी अवस्थी , कल्पना और विजया भारती । लेकिन इन चारो ही की मातृभाषा भोजपुरी नहीं है । लेकिन इन की भोजपुरी गायकी लोगों के दिलों को जोड़ती हैं । माइकल जैक्सन अब नहीं हैं । लेकिन क्या डूब कर गाते थे । मुझे अंगरेजी बहुत समझ में नहीं आती । लेकिन माइकल जैक्सन का गाया समझ में आता है । इस लिए कि उन का संगीत भी दिल जोड़ता है । एक कोल्ड ड्रिंक के विज्ञापन में माइकल जैक्सन ऐसे गाते थे गोया संस्कृत के श्लोक पढ़ रहे हों , वेद की कोई ऋचा पढ़ रहे हों । मेरा तो स्पष्ट मानना है कि जब भी , जहां कहीं भी नफ़रत के बीज बोते लोग दिखें उन्हें संगीत की संगत में बुला लेना चाहिए । वह प्यार की भाषा बोलने लगेंगे । एक बार आज़मा कर तो देखिए । एक बार आंख खोल कर देखिए तो सही , देखेंगे तो पाएंगे कि दुनिया के सारे लोग कोई और भाषा समझें , नहीं समझें लेकिन संगीत ही एक भाषा है जिसे सारी दुनिया चुपचाप समझती है । दिल से समझती है , समझ कर संतोष और सुकून के दरिया में गहरे डूब जाती है । तो इस लिए भी कि गीत-संगीत तपस्या है , राजनीतिक या वैचारिक लफ्फाजी नहीं ,, बड़ी मुश्किल से नसीब होती है ।

Saturday, 18 June 2022

श्रीरामशलाका प्रश्नावली और पर्वत पार करती अकेली किरन बन जाना

दयानंद पांडेय 

श्रीरामशलाका प्रश्नावली हमारे जीवन में भी बहुत-बहुत रही है। विद्यार्थी जीवन में तो बहुत ज़्यादा। अब तो बहुत समय हो गए , इस का सहारा लिए। बेटी का  विवाह खोजने और विवाह हो जाने के बाद बहुत सारे भ्रम टूट गए। जान गए कि अपने हाथ में बहुत कुछ नहीं होता। अपने विवाह के बाद भी ऐसा ही लगा था। तुलसीदास लिख ही गए हैं : हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ। 

वैसे भी जीवन में संशय की बहुतेरी दीवारें टूट चुकी हैं। अब तो बस मालूम होता है कि यह होना है और यह नहीं होना है। जो हो जाता है तो हो जाता है। नहीं होता है तो भी अब वह निराशा नहीं होती। जो पहले कभी होती थी। बहुत होती थी। जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए वाली बात भी हो गई है अब। बहुत कुछ पाना था , जो नहीं मिला। अब भला क्या मिलेगा। बहुत कुछ खो चुके हैं , जो नहीं खोना था। वह भी। तो जो खोना था , खो चुके हैं। जो पाना था , पा चुके हैं। 

तो श्रीरामशलाका प्रश्नावली का अर्थ कभी हमारे लिए पाना ही होता था। पर अब समझ आ गया है कि बस जीवन में सिर्फ़ पाना ही नहीं होता है। खोना बहुत-बहुत ज़्यादा , पाना बहुत-बहुत कम होता है। सुख हो दुःख हो , मिलना होता है तो अनायास ही मिलता है। सायास कुछ भी नहीं होता। गीता का ज्ञान भी कि जैसा कर्म करेगा , वैसा फल देगा भगवान वाली बात भी अधिकांशत : ग़लत होते  पाया है। बहुधा अल्ला मेहरबान तो गधा पहलवान ही होते देखा है। तो किस से गिला , किस से शिकवा भला। कैसे कैसे ऐसे वैसे हो गए / ऐसे वैसे कैसे कैसे हो गए। वाली बात बारंबार ज़िंदगी में घटते देखते आ रहा हूं। और कि जहां , जिस बात की उम्मीद की वही उम्मीद ज़रुर टूटी। जिस पर ज़्यादा भरोसा किया , उसी ने सब से ज़्यादा धोखा दिया। तोड़-तोड़ दिया। और यह धोखा और टूटना भी बारंबार मेरे जीवन में उपस्थित है। तो कुछ कविताओं का आलंब ले कर ग़म ग़लत करता हूं। बहुत पुराना एक कता है :

ज़िंदगी ग़म ही सही गाती तो है 

दुनिया धोखा ही सही भाती तो है 

क्यों मौत के आगे हाथ जोड़ूं  

नींद थम-थम के सही आती तो है। 


भोजपुरी के कवि मोती बी ए तो मुहावरा ही तोड़ते मिलते हैं। बहुत पुराना मुहावरा है , मृगतृष्णा। लेकिन मोती बी ए लिखते हैं :


रेतवा बतावै नाईं दूर बाड़ें धारा 

तनी अउरो दौरअ हिरना पा जइबअ किनारा !

हिंदी के कवि देवेंद्र कुमार भी एक मशहूर मुहावरा तोड़ते हैं। अंगूर खट्टे हैं मुहावरे को ही वह तोड़ देते हैं :

तावे से जल-भुन कर  

कहती है रोटी 

अंगूर नहीं खट्टे 

छलांग लगी छोटी। 


और गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र तो ग़ज़ब करते हैं। भला मछली भी कहीं फंसना चाहती है। पर वह लिखते हैं :


एक बार और जाल फेंक रे मछेरे

जाने किस मछली में बंधन की चाह हो।


तो जाल फेंकता रहता हूं। बात बन गई तो बहुत सुंदर। नहीं बनी तो भी कोई बात नहीं। बुद्धिनाथ मिश्र तो इस गीत की अपनी गायकी में नागिन में भी प्रीत का उछाह खोज लेते हैं। तो ज़िंदगी ऐसी ही शलाका प्रश्नावली में घूमती , मचलती और प्रीत का उछाह खोजती रहती है। ऐसे में ही श्रीरामशलाका प्रश्नावली भी आलंब बन कर ज़िंदगी में उपस्थित होती रही है। 

पता नहीं , इस श्रीरामशलाका प्रश्नावली को तुलसीदास ने तैयार किया है कि हनुमान प्रसाद पोद्दार ने या किसी और ने। पर जानता हूं कि समय के भंवर में फंसे जाने कितने लोगों का अवलंब बनती रही है , बनती रहती है। बनती रहेगी। प्रश्नों का उत्तर नहीं , समाधान नहीं , न सही , पर आलंब भी कम नहीं , बहुत होता है। हम तो जब अपनी समस्या का समाधान नहीं मिलता था तो आंख मूंद कर फिर किसी कोष्ठक पर पेंसिल की नोक रख देते थे। तब तक बार-बार रखते रहते थे जब तक सकारात्मक चौपाई नहीं मिल जाती थी। उस दिन नहीं , दूसरे दिन सही। मिल ही जाती थी मनचाही चौपाई। बचपने की ज़िद ही समझ लीजिए इसे। 

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥

गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥

एक समय यह चौपाई हर काम शुरु करने के पहले , घर से निकलते ही बुदबुदाने की आदत सी हो गई थी। इस लिए कि चौपाई के अर्थ में लिखा मिलता है : अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथजी को हृदय में रखकर नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है। भगवान राम का ये मंत्र क‍िसी सुरक्षा कवच से कम नहीं है।

तो ज़िंदगी के अनेक पड़ाव पर यह चौपाई साहस बंधवाने का काम करती थी। करती ही है। 

मंगल भवन अमंगल हारी।

द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी॥

होइहि सोइ जो राम रचि राखा।

को करि तर्क बढ़ावै साखा॥

जैसी और भी चौपाई थीं। चौपाई क्या थीं , डूबते को तिनके का सहारा थीं। काम बने न , न बने संबल तो बनती ही थीं। तब के समय काम भी क्या होता था भला। कि इम्तहान में पेपर अच्छा हो जाए। नंबर अच्छा आ जाए। परिवार , रिश्तेदार में कोई बीमार है , तो ठीक हो जाए। कोई संकट में है तो संकट से उबर जाए। ऐसी ही छोटी-मोटी इच्छाएं। अब तो आलम है कि पल छिन चले गए / जाने कितनी इच्छाओं के दिन चले गए। परमानंद श्रीवास्तव के इस गीत पंक्ति में ही अब जीवन स्वाहा है। माहेश्वर तिवारी की गीत पंक्ति में कहूं तो जैसे कोई किरन अकेली / पर्वत पार करे। तो वही किरन बन गया हूं और रोज ही कोई न कोई पर्वत पार करता रहता हूं। 

जीवन से ज़्यादा मन के संघर्ष अब भारी हैं। तो किरन बन कर ही यह संघर्ष पार हो पाते हैं। बड़े-बड़े पर्वत पार हो जाते हैं। और जो वह लिखते हैं जैसे कोई हंस अकेला /आंगन में उतरे। तो हंस बन कर आंगन न सही , बालकनी में उतरता रहता हूं। लौट रही गायों की धूल भी माथे को छूती रहती है। श्रीरामशलाका प्रश्नावली बन-बन कर ज़िंदगी की सीवन उधेड़ती और बुनती रहती है। यह श्रीरामशलाका प्रश्नावली है ही ऐसी। जो अब बिना किसी कोष्ठक में पेंसिल लगाए ही लगाती रहती है। जीवन का हिसाब-किताब लगाती रहती है। प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥ मन ही मन गुहराती हुई मंगल भवन अमंगल हारी,  गुनगुनाती हुई जानती है कि होइहि सोइ जो राम रचि राखा।




Friday, 17 June 2022

यह शौक़े सज्दा, यह ज़ौक़े नियाज़ रहने दे !

दयानंद पांडेय 

बंदिश और जुगलबंदी सुनने का सुख ही और है। आज यूट्यूब पर टहलते-टहलते अचानक यह जुगलबंदी मिल गई। राग भैरवी में विभोर कर गई। वाज़िद अली शाह का लिखा बाबुल मोरा नइहर छूटो ही जाए ! का एक तो वैसे ही कोई जवाब नहीं। फिर गिरिजा देवी के गायन में , बिस्मिल्ला ख़ान की शहनाई , पंडित वी जी जोग का वायलिन और पंडित किशन महराज का तबला। क्या ही कहने ! क्या जुगलबंदी है। सुन कर मन इतरा-इतरा गया है। 

वैसे तो एक जुगलबंदी बड़े गुलाम खान और बिस्मिल्ला खान की भी अकसर सुनता रहता हूं। का करुं सजनी आए न बालम ! इस में गुलाम अली की तान में बिस्मिल्ला ख़ान की शहनाई बीस पड़ जाती है। तब जब कि का करुं सजनी आए न बालम , बड़े गुलाम ख़ान का सिग्नेचर गीत है। वैसे ही बाबुल मोरा नइहर छूटो ही जाए कुंदनलाल सहगल का सिग्नेचर गीत है। पर भीमसेन जोशी , जगजीत सिंह समेत  कई सारे गुनी गायकों ने अलग-अलग अंदाज़ और नाज़ में गाया है। पर यहां जो चार-चार गुणकारों की जो जुगलबंदी है न , वह अप्रतिम है , अनन्य है , अविकल और अविरल है। वह एक शेर है न : 

यह मयक़दा है कोई जामे-जम नहीं है 

यहां कोई किसी से कम नहीं है। 

तो सचमुच यहां कोई किसी से कम नहीं है। हां , बिस्मिल्ला ख़ान की शहनाई पर , पंडित वी जी जोग की वायलिन का वेग देखते बनता है। काश कि इस जुगलबंदी में बिरजू महराज भी रहे होते तो क्या बात हुई होती ! बहुत जुगलबंदी सुनने का अवसर ज़िंदगी में मिला है। आमने-सामने भी और रिकार्डिंग में भी। लखनऊ के भातखण्डे ने भी यह अवसर बारंबार दिया है। 

बंदिश तो हम ने पंडित हृदयनाथ मंगेशकर से भी ख़ूब सुनी हैं। आमने-सामने भी और बगल में बैठ कर भी। लखनऊ के दिलकुशा में गिरिजा देवी के गायन और पंडित हनुमान मिश्र की सारंगी की जुगलबंदी दो दशक भी अधिक हुए सुने हुए। पर वह जुगलबंदी अभी भी मन में बजती रहती है। दिल में धड़कती रहती है। बाद में हनुमान मिश्र को सारंगी छोड़ गाने के लिए गुहार लिया तो वह गाने भी लगे। और गिरिजा देवी को अपनी गायकी की गमक में भी डुबो बैठे थे। 

जैसे कभी पंडित बिरजू महराज नाचते-नाचते तबला बजाने लगते थे। तबला बजाते-बजाते गाने लगते थे। मैं आज तक नहीं समझ पाया न तय कर पाया कि बिरजू महराज नर्तक ज़्यादा अच्छे थे , कि तबला वादक अच्छे थे कि गायक अच्छे थे। पर हां , आज यह ज़रुर कहने की स्थिति में हूं कि अभी तक सुनी तमाम जुगलबंदी में यह जुगलबंदी सर्वश्रेष्ठ है।  इसी कार्यक्रम में गिरिजा देवी का एक और गायन है , उलझ मति जइयो मोरे राजा जी ! बिस्मिल्ला खान की शहनाई इस में भी बा कमाल है। वह कहते हैं न : यह शौक़े सज्दा, यह ज़ौक़े नियाज़ रहने दे !तो कहूंगा कि आप इस जुगलबंदी में उलझिए ज़रुर। सुख मिलेगा।

इस जुगलबंदी का लिंक यह रहा :

https://www.youtube.com/watch?v=ZO4jC0x3M9E

Monday, 13 June 2022

डायमंड बुक्स से कथा-गोरखपुर

कथा-गोरखपुर के सभी सम्मानित कथाकारों और सम्मानित पाठकों के लिए हर्ष का समाचार है। हमारी मेहनत , संयम , आप का सहयोग और धैर्य रंग लाया। आप सभी को अग्रिम बधाई ! बस किताब जल्दी ही आप के हाथ होगी। डायमंड बुक्स का हार्दिक आभार , 81 कथाओं की कथा-पुष्प की माला में गुंथे कथा-गोरखपुर को इतनी जल्दी सब के सामने उपस्थित करने के लिए। लेखकों का स्वाभिमान और सम्मान बनाए रखने के लिए भी डायमंड बुक्स का बहुत आभार। आभार प्रतिष्ठित कलाकार अवधेश मिश्र का भी। अवधेश मिश्र की पेंटिंग ने कथा-गोरखपुर की चमक में खनक भर दिया है। कथा-गोरखपुर की ख़ास ख़ासियत यह है कि कमोवेश सभी कहानियां गोरखपुर की माटी की खुशबू में तर-बतर हैं। इन कथाओं में गोरखपुर की माटी ऐसे बोलती है जैसे मां बोलती है। भोजपुरी का खदबदाता मानस इन कथाओं की बड़ी ताक़त है। एक से एक अद्भुत प्रेम कथाएं हैं। परिवार के बीच खदबदाती और सामाजिक कथाओं का कसैलापन कथा-गोरखपुर की कहानियों के फलक पर अपने पूरे पन में उपस्थित हैं।

डायमंड बुक्स से कथा-लखनऊ

कथा-लखनऊ के सभी सम्मानित कथाकारों और सम्मानित पाठकों के लिए हर्ष का विषय। हमारी मेहनत , संयम , आप का सहयोग और धैर्य रंग लाया। आप सभी को अग्रिम बधाई ! बस किताब जल्दी ही आप के हाथ होगी। डायमंड बुक्स का हार्दिक आभार , 178 कथाओं की कथा-पुष्प की माला में गुंथे कथा-लखनऊ को इतनी जल्दी सब के सामने उपस्थित करने के लिए। लेखकों का स्वाभिमान और सम्मान बनाए रखने के लिए भी डायमंड बुक्स का बहुत आभार। आभार प्रतिष्ठित कलाकार मदनलाल नागर के सुपुत्र अक्षय नागर का , आभार प्रतिष्ठित कलाकार अवधेश मिश्र का भी। आभार प्रतिष्ठित फ़ोटोग्राफ़र रवि कपूर का भी। मदनलाल नागर , अवधेश मिश्र की पेंटिंग तथा रवि कपूर की फ़ोटो ने कथा-लखनऊ की चमक में चांदनी भर दी है। अप्रतिम चांदनी। जैसे गोमती नदी चांदनी में नहाती हुई , बल खाती हुई लखनऊ से लिपटती हुई कल-कल बहती है ठीक वैसे ही कथा-लखनऊ के कवर पर यह पेंटिंग , यह फ़ोटो कथा-लखनऊ को लपेटे हुए इस में संकलित कथाओं की चांदनी में चमक भरती हुई मिलती हैं। अविकल कल-कल।

भ्रष्ट न्यायपालिका की अकर्मण्यता के कारण बुलडोजर राज ज़रुरी है

दयानंद पांडेय 

न्यायपालिका अगर भ्रष्ट न होती , लाचार न होती , हर मामले को दो-दो पीढ़ी तक तारीख़ दर तारीख़ पर न लटकाती तो न पुलिस एनकाउंटर करती न योगी का बुलडोजर राज आया होता। कृपया मुझे यह कहने की अनुमति दीजिए कि यह दंगाई , यह अपराधी , यह भ्रष्टाचारी , यह आतंकी , पत्थरबाज आदि जितने भी समाज विरोधी लोग हैं आलसी और और भ्रष्ट न्यायपालिका की देन हैं। न्यायपालिका उलटे इन्हें सेलिब्रेटी बना देती है। एक नहीं सैकड़ो उदाहरण सामने हैं। 

न्यायपालिका अगर ईमानदार और तेज़ रफ़्तार होती तो यह मुख़्तार अंसारी , अतीक अहमद , आज़म ख़ान , डी पी यादव , हरिशंकर तिवारी जैसे नामों से हम लोग परिचित भी न होते। ऐसे नाम उभरते ही अगर न्यायपालिका इन को कुचल देती , समय रहते ही सज़ा दे देती तो हमारा समाज अपराध मुक्त होता। ठीक वैसे ही जैसे नितिन गडकरी जैसा सक्षम मंत्री आते ही हमारी सड़कें न सिर्फ गड्ढामुक्त हो गईं हैं बल्कि शानदार और चमचमाती हुई हो गई हैं। जब की हमारी न्यायपालिका अभी भी गड्ढायुक्त हैं। लक्ष्मी पूजा में व्यस्त हैं। सिर्फ अड़ंगेबाजी और अपराधियों को मुक्त करने के लिए परिचित हैं। वह एक शेर है न :

जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,

सज़ा न दे के अदालत बिगाड़ देती हैं।

न्यायपालिका के भरोसे अगर पंजाब को छोड़ा गया होता तो अब तक पंजाब को हम खालिस्तान के रुप में जान रहे होते। वह तो देश और पंजाब का सौभाग्य था कि हमारे पास एक के पी एस गिल था। जिस ने साफ़ कहा कि नो अरेस्ट , नो सुनवाई ! तुरंत फ़ैसला ! और आतंकवादियों को देखते ही निपटा देने का फरमान जारी कर दिया। पंजाब से आतंक का ख़ात्मा हो गया। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी ने भी अपराधियों और पत्थरबाजों पर बुलडोजर चला कर के पी एस गिल की याद दिला दी है। 

आलसी , अड़ंगेबाज़ और भ्रष्ट न्यायपालिका के भरोसे आतंकवादियों , अपराधियों को कभी नेस्तनाबूद नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका ने यह बात बारंबार सिद्ध किया है। सिद्ध करती रहेगी। तय मानिए कि कानपुर का विकास दुबे अगर न्यायपालिका के हिस्से आया होता तो बहुत मुमकिन है ज़मानत पा कर चुनाव लड़ कर किसी सदन की शोभा बन कर इतरा रहा होता। तो चाहे कानपुर हो , प्रयाग या सहारनपुर आदि हर कहीं बुलडोजर राज न्यायोचित है , तुरंत परिणाम देने वाली भी। फिर जिन पर बुलडोजर चल रहा है , उन के खिलाफ तमाम साक्ष्य हैं। सी सी कैमरा से लगायत वाट्सअप चैट वगैरह। 

नहीं याद कीजिए कि असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने साफ़ कहा था कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो तो सौ करोड़ पर हमारे पंद्रह करोड़ भारी पड़ेंगे। अकबरुद्दीन ओवैसी के भाषण का यह वीडियो आज भी यू ट्यूब और अन्य माध्यम पर उपस्थित है। लेकिन वर्षों इस बाबत मुकदमा चला कर सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में अकबरुद्दीन ओवैसी को बाइज़्ज़त बरी कर दिया है बीते दिनों। क्या करेंगे ऐसी न्यायपालिका का आप। अचार ही डाल सकते हैं। आप ही बताएं कि दिल्ली के जहांगीरपुरी में नगर निगम द्वारा अतिक्रमण हटाने पर सुप्रीम कोर्ट को स्टे देना चाहिए था क्या ? न्यायपालिका अपनी प्रासंगिकता ख़ुद ही ख़त्म करती जा रही है। तो बुलडोजर राज नहीं आएगा तो क्या इन पत्थरबाजों पर आकाश से फूल बरसाया जाएगा ?


Saturday, 11 June 2022

कुंठा , जहालत और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है

दयानंद पांडेय 



कुंठा , जहालत , भाषा की विपन्नता और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है। वैसे भी सुधेंदु मतलब सुधा और इंदु। सुधेंदु नाम का संधि विच्छेद यही बताता है। तो मर्दानियत का तो वैसे ही सत्यानाश हो जाता है। बाक़ी पैसे दे कर किताब छपवा लेना , रवींद्र जैन जैसे लोगों से अधकचरे गीत गवा लेना , अपने स्टूडियो में और इन की उन की ठकुरसुहाती से यश तो नहीं मिलता। पर यश:प्रार्थी तो यश:प्रार्थी। कोई रोक तो सकता नहीं। 

असल में दिल्ली में जितेंद्र पात्रो ने एक नया धनिक खोज लिया है। पिता की विरासत में मिले धन को बेहिसाब खर्च कर यह यश:प्रार्थी सुधेंदु ओझा इन दिनों जितेंद्र पात्रो के मार्फ़त न सिर्फ़ यश ख़रीद लेना चाहते हैं बल्कि जितेंद्र पात्रो का चंपू और चापलूस बन कर उपस्थित हैं। लेखन कला से विपन्न इस आदमी को जितेंद्र पात्रो से बड़ी उम्मीदें हैं। जितेंद्र पात्रो में एक बात तो है कि यश:प्रार्थी लेखकों को सपने बेचने में निपुणता हासिल है। तो  स्कूल और स्टूडियो चलाने वाले इस नवधनाढ्य यश:प्रार्थी को जितेंद्र पात्रो ने अपना चंपू और चापलूस बना कर इन के गले में प्रलेक प्रकाशन का पट्टा बांध दिया है। रहीम ने लिखा है : जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। / चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥ तो रहीम का लिखा यहां पलट गया है। इस यश:प्रार्थी व्यक्ति पर जितेंद्र पात्रो रुपी भुजंग ने लिपट कर इस व्यक्ति को भी विषैला और वनैला बना दिया है। इतना कि कभी मेरे आदर में बिछ-बिछ जाने , मेरे प्रशंसा गीत गाने वाले यह व्यक्ति सुधेंदु ओझा मुझ में जाने कौन सा मायानंद खोजने लगा। जो घटनाएं मेरे जीवन में कभी घटी नहीं , वह मायानंद के बहाने मेरे जीवन में चिपकाने लगा। मायानंद में कभी नारद , कभी दिव्या भारती को लिपटाने लगा। 

सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट में मेरे पुराने वरिष्ठ सहकर्मी रहे राम अरोड़ा का नाम ले-ले कर ऐसी बातें करने लगा कि गोया यह सारी बातें राम अरोड़ा ने उसे बताई हों। वह नहीं जानता राम अरोड़ा को , न मुझे। न हमारे और राम अरोड़ा के संबंध को। सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट में संपादक थे अरविंद कुमार। संत प्रवृत्ति के थे अरविंद कुमार। विनम्रता , सरलता और विद्वता का अद्भुत संगम थे अरविंद कुमार। राम अरोड़ा और मैं ने ही नहीं पत्रकारिता की दो-तीन पीढ़ियों ने अरविंद कुमार से बहुत कुछ सीखा है। मैं तो अब भी सीखता रहता हूं। गो कि अरविंद जी बीते बरस कोरोना के दिनों में दुनिया को विदा कह गए। मुझे पुत्रवत स्नेह करते थे। लेकिन यह सुधेंदु ओझा , मुझे अरविंद जी का अर्दली बताता है। अरे मेरा नहीं , न सही संत जैसे सर्वोत्तम संपादक अरविंद कुमार का आदर तो रखा होता। विरल और श्रेष्ठ संपादक थे वह। हिंदी पर उन का बहुत ऋण है। हिंदी थिसारस के जनक हैं , अरविंद कुमार। टाइम्स आफ इंडिया की माधुरी जैसी फ़िल्मी पत्रिका के वह 14 बरस संपादक रहे। संस्थापक संपादक थे माधुरी के और सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट के भी। खुशवंत सिंह , धर्मवीर भारती , कमलेश्वर के समकालीन हैं। खुशवंत सिंह से भी अरविंद जी ने मुझे मिलवाया था। खुशवंत सिंह के बेटे राहुल सिंह रीडर्स डाइजेस्ट , भारतीय अंगरेजी संस्करण के चीफ़ एडीटर थे। बल्कि कमलेश्वर को फ़िल्मी दुनिया से परिचित ही करवाया अरविंद कुमार ने। जाने कितने अमिताभ बच्चन बनाए , बिगाड़े हैं अरविंद कुमार ने। 

अभिनेता विनोद मेहरा अरविंद कुमार के गहरे दोस्त थे। एक बार टाइम्स के मालिकानों ने अरविंद कुमार से विनोद मेहरा की फ़ोटो माधुरी में छापने के लिए कह दिया। जब तक अरविंद कुमार माधुरी के संपादक रहे , विनोद मेहरा की फिर कोई फ़ोटो नहीं छपी। विनोद कहते रहे अरविंद कुमार से कि मैं ने कुछ नहीं कहलवाया। पर अरविंद जी नहीं माने तो नहीं माने। राज कपूर , शैलेन्द्र , गुलज़ार जैसों से यारी थी , अरविंद कुमार की। तमाम फ़िल्मी हस्तियों से मिलवाया मुझे अरविंद जी ने। दिलीप कुमार , देवानंद , गुलज़ार जैसों से मुझे अरविंद जी ने मिलवाया। बहुत सी बातें हैं। क्या-क्या बताऊं। फिर हिंदी पत्रकारिता को अमूल्य योगदान है उन का। हिंदी थिसारस के लिए समूचा हिंदी समाज उन के आगे विनयवत है। अरविंद कुमार हिंदी में एक ही हैं। कोई एक दूसरा नहीं है। न उन का नाखून भी छू सकता है कोई। पर वह बहुत ही सरल और विनम्र थे। विद्वान ऐसे ही होते हैं। विद्वान लोग अर्दली नहीं रखते सुधेंदु ओझा , अब से नोट कर लीजिए। आप ने जो लिखा है न मायानंद चैप्टर , कभी राम अरोड़ा को दिखा दीजिएगा। गालियां दे कर भगा देंगे , ऐसा फूहड़ और लंपट लेखन देख कर। वह राम अरोड़ा हैं , अरविंद कुमार नहीं। एक बार हिम्मत कर ट्राई कर लीजिए। भाषा और कथा की मर्यादा बहुत है राम अरोड़ा में। 

अरविंद कुमार को जब हिंदी अकादमी , दिल्ली ने
श्लाका सम्मान दिया तब के समारोह में अरविंद जी के साथ मैं 

सर्वोत्तम टीम का अकेला व्यक्ति हूं जिसे मई , 1981 से दिवंगत होने तक अरविंद जी और उन के परिवार का स्नेह निरंतर मिलता रहा है। पुत्रवत आज भी उन के घर में हूं। दुनिया में अरविंद जी कहीं भी रहे , मुझ से निरंतर संपर्क बनाए रखते रहे। अमरीका , दुबई , सिंगापुर , पांडिचेरी , गाज़ियाबाद। हर किसी जगह से वह मुझे पुकारते रहते। फ़ोन कर हाल लेते और देते रहते। अरविंद कुमार संपादक थे। पर कभी बॉस बन कर दफ़्तर में नहीं रहते थे। सभी से मित्रवत। मेरे संस्मरण में पढ़िए। राम अरोड़ा से पूछ लीजिए। अरविंद जी पर मैं ने कई बार , कई तरह से लिखा है। संस्मरण मैं ने बहुत लोगों पर लिखे हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी , जैनेंद्र कुमार से लगायत विष्णु प्रभाकर , अमृतलाल नागर आदि दर्जनों लोगों पर। लेकिन सब से बड़े संस्मरण अभी तक मैं ने सिर्फ़ तीन लोगों पर लिखे हैं। एक अपनी अम्मा पर , दूसरा अरविंद कुमार और तीसरा , प्रभाष जोशी पर। तो अरविंद कुमार पर लिखा संस्मरण ही किसी वाट्स अप ग्रुप पर पढ़ कर सुधेंदु ओझा ने मुझ से संपर्क किया। मेरे प्रशंसक बन गए। अरविंद जी के इस संस्मरण में सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट में घटे एक अप्रिय प्रसंग में राम अरोड़ा से जुड़ी एक घटना का ज़िक्र है। इस घटना के कारण ही राम अरोड़ा सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट से इस्तीफ़ा दे दिए। स्वाभिमानी आदमी हैं। फिर कभी सर्वोत्तम में भूल कर भी नहीं लौटे। न किसी से संपर्क रखा। तो वाट्स अप ग्रुप में अरविंद जी पर संस्मरण पढ़ कर राम अरोड़ा का ज़िक्र किया सुधेंदु ओझा ने। उन की दो फ़ोटो भेजी। और बताया कि वह वसुंधरा , गाज़ियाबाद में रहते हैं। मैं ने राम अरोड़ा का नंबर मांगा। कुछ दिन बाद दिया सुधेंदु ने। सर्वोत्तम के बाद राम अरोड़ा से मेरा कोई संपर्क नहीं था। सुधेंदु ओझा ने राम अरोड़ा का नंबर दिया तो राम अरोड़ा से मेरी बात हुई। हम दोनों की प्रसन्नता का कोई पारावार नहीं था। क्यों कि सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट टीम से अब हम दो ही शेष रह गए हैं। शेष सभी लोग स्मृति-शेष हो गए हैं। ऋतुशेष के कहानीकार राम अरोड़ा से तय हुआ कि आगे जब भी नोएडा आऊंगा , हम लोग मिलेंगे। 

अब सुधेंदु ओझा का अकसर फ़ोन आने लगा। वह कुछ न कुछ जानकारी लेने लगे। एक दिन अपने स्टूडियो की जानकारी देते हुए बताने लगे कि एक छोटे चैनल को किराए पर दिया था। पर कोरोना में चैनल बंद हो गया। अब उसे ठीकठाक करवा कर अपना यू ट्यूब चैनल चलाएंगे। आदि-इत्यादि। अपने घर बुलाने लगे। पर हाय ग़ज़ब कहीं तारा टूटा। जितेंद्र पात्रो पर जब बीते 7 अप्रैल , 2022 को लिखा तो दूसरे दिन सुधेंदु ओझा का फोन आया। कहने लगे कि मेरा अनुभव तो जितेंद्र पात्रो के साथ बहुत अच्छा रहा है। मैं ने उन्हें बताया कि शुरु में मेरा भी अनुभव अच्छा रहा था। मेरी एक किताब तो तीन दिन के अंदर छाप कर लखनऊ मंगवा लिया था। पर बाद में जितेंद्र पात्रो से बेहद ख़राब अनुभव रहा है। बहुत अपमानजनक। इंतज़ार कीजिए , आप का भी होगा। दो दिन बाद फिर फ़ोन आया सुधेंदु ओझा का। थोड़ी देर इधर-उधर की बात के बाद वह बोले कि प्रलेक प्रकाशन के जितेंद्र पात्रो से बात फिर से हो सकती है। कोई रास्ता निकाल लीजिए। मैं ने उन्हें बताया कि जितेंद्र पात्रो के बेहूदा और अभद्र व्यवहार को देखते हुए अब कोई रास्ता शेष नहीं है। न ही अब मेरी कोई दिलचस्पी है। बहुत गंदा और गिरा हुआ आदमी है वह। सुधेंदु ओझा को स्पष्ट बता दिया कि अभी नहीं , और कभी नहीं। बात ख़त्म हो गई। फिर 20 मई , 2022 का अप्रिय प्रसंग आया जब 112 नंबर की पुलिस ले कर आधी रात जितेंद्र पात्रो लखनऊ के मेरे घर आ गया। एक घिनौना आरोप लगाया कि मैं ने उस की बीवी को अश्लील संदेश भेजा है। 

वह संदेश क्या है , जितेंद्र पात्रो आज तक नहीं बता पाया , न दिखा पाया। अलग बात है कि उलटे पुलिस उसी को घसीट ले गई। 30 घंटे हवालात में काटने के बाद माफ़ी मांग कर छूटा। एक तहरीर लिख कर अगर हम ने दे दिया  होता तो वह हफ़्ते भर जेल काट कर लौटता। यह विकल्प अभी भी मेरे पास शेष है। जितेंद्र पात्रो को अभी भी जेल भिजवा सकता हूं। क्यों कि उस का सारा किया-धरा पुलिस रिकार्ड में दर्ज है। जी डी में। ख़ैर , माफ़ी वीर बन कर थाने से निकलने के बाद कई लेखकों को जितेंद्र पात्रो ने मेरे ख़िलाफ़ लिखने के लिए संपर्क किया। हर किसी ने मना कर दिया। क्यों कि जितेंद्र पात्रो का क्या है ? वह किसी को माता तुल्य कह कर उसे पागल भी कह सकता है। 70 - 75 बरस की वृद्ध महिला का ब्वाय फ्रेंड भी खोज सकता है। जितेंद्र पात्रो के पतन की यह पराकाष्ठा है। और तो और स्त्री अस्मिता की ललकार लगाने वाली ललनाएं भी इस पतित जितेंद्र पात्रो के सुर में सुर मिला कर अपने पतन का उद्घोष करने में अव्वल हो जाती हैं। जितेंद्र पात्रो को विक्टिम बता देती हैं। तब जब कि यही जितेंद्र पात्रो इन ललनाओं के बारे में लोगों से बिलो द बेल्ट बातें करता घूमता है। इतना कि उस का उल्लेख करना भी मेरे लिए यहां कठिन है। अब अलग बात है सुधेंदु ओझा जैसे अपने चापलूसों द्वारा वह किसी को बीताश्री भी लिखवा देता है। विनय पत्रिका में तुलसीदास वैसे ही तो नहीं लिख गए हैं : केशव , कहि न जाइ का कहिए ! 




बहरहाल , सुधेंदु ओझा को जितेंद्र पात्रो ने अमर बनाने का झांसा दे दिया। तो हिंदी साहित्य में अमर होने की अभिलाषा में एक अकेले सुधेंदु ओझा ने बैलेंस बनाते हुए अपने संपर्क भाषा भारती पत्रिका की वाल पर बीते 22 मई , 2022 को एक पोस्ट लिखी। किसी और ने नहीं। शीर्षक दिया : यूँ ही......बदनाम करने का कुचक्र या फिर लेखक का शोषण ??? उन के इस लिखे को एक मित्र ने मेरे पास 29 मई को भेजा। मैं ने उन से मेसेज बॉक्स में संदेश भेज कर पूछा , यह क्या है ? बताया कि आप का यह लिखना अनुचित है। आप व्यवसाई हैं , आप को किसी धूर्त प्रकाशक के पचड़े में पड़ने से बचना चाहिए। उन का घिघियाता हुआ एक जवाब आया। लिखा कि मेरी पोस्ट का मंतव्य तथ्यों को सामने रख कर अफ़वाहों के बाज़ार को ठंडा करना मात्र है। मैं ने उन्हें लिखा : स्कूल चलाने का अर्थ यह नहीं होता कि एक धूर्त प्रकाशक जितेंद्र पात्रो की चापलूसी में लिप्त हो कर आप मुझे ज्ञान देने लगें। जितेंद्र पात्रो वाली पोस्ट पढ़ कर आप ने ही पहले फ़ोन किया था। खैर, आप अपनी चापलूसी की दुनिया में प्रसन्न रहें। मुझे जो करना है, मैं कर ही रहा हूं। करता रहूंगा। आप खातिर जमा रखें।

सुधेंदु ओझा तड़क गए। उन्हों ने लिखा :

ख़ातिर आप भी जमा रखिएगा। आप/हम ईश्वरीय ख़ातिर का जीता-जागता प्रमाण हैं। आपके रमेश रिपु द्वारा भेजी पोस्ट को पढ़ कर फोन किया था। आप भाषा संयत रखें। आपके लिए दुनिया धूर्त, कमीना, चापलूस और जाने क्या क्या हो सकती है। अपने बारे में भी किसी से राय ले लीजिएगा। सम्यक दृष्टि/संतुलन रखिए।

जवाब में मैं ने उन्हें सिर्फ़ दो अक्षर का एक शब्द लिखा : 

हुंह! 

यह 30 मई , 2022 की बात है। सुधेंदु ओझा ने इस हुंह ! को जाने दिल पर ले लिया कि जितेंद्र पात्रो का विष व्याप गया। 2 जून , 2022 को अपने संपर्क भाषा भारती पत्रिका की वाल पर सुधेंदु ने लिखा : यूँ ही .......मायानन्द की माया। इस शीर्षक से पोस्ट में जितेंद्र पात्रो द्वारा दिया गया सारा जहर उतार दिया। सारी कुंठा बघार दी। ऐसे जैसे कोई दाल बघारे। तो ख़ूब तड़का लगा कर भाषा की सारी दरिद्रता और अभद्रता से रिश्तेदारी निभाते हुए लिखा। मायानंद को अरविंद जी का अर्दली बता दिया। पहाड़गंज के किसी होटल में दिव्या भारती से लंपटई की एक फूहड़ और नकली कहानी रची। मायानंद के पिता को पुरोहित बताया। बताया कि भूख का मारा मायानंद पिता के पैसे चुरा कर घर से भागा। झिलमिल में अरविंद बाबू मिले। आदि-इत्यादि। नहीं मालूम इस जहरीले व्यक्ति को कि मेरे गांव , परिवार और रिश्तेदारों में एक भी पुरोहित नहीं है। फिर पुरोहित होना कोई पाप नहीं है। और कि मेरे पिता जी तो केंद्रीय तारघर में तार बाबू थे। इस मतिमंद को यह भी नहीं मालूम कि मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री के लोग पहाड़गंज जैसी जगहों के खटारा और खस्ताहाल होटलों में नहीं ठहरते। अशोका , ताज़ , ओबेराय जैसे सात सितारा होटलों में ठहरते हैं। मेहरौली के फ़ार्म हाऊसों में ठहरते हैं। फिर दिव्या भारती जैसी अभिनेत्री कभी दिल्ली आई भी होगी , मुझे शक़ है। दिव्या भारती जब फिल्मों में आई तब तक मैं दिल्ली छोड़ कर लखनऊ शिफ्ट हो चुका था। दिव्या भारती की फ़िल्मोग्राफ़ी कुल दो-ढाई बरस की ही थी। असमय ही संदिग्ध निधन हो गया। तो दिव्या भारती से कभी मिला तो नहीं। पर हां , दिव्या भारती पर एक श्रद्धांजलि लेख ज़रुर लिखा था। 

अमिताभ बच्चन का इंटरव्यू 

सुधेंदु ओझा जैसे मतिमंद को जानना चाहिए कि दिलीप कुमार से लगायत शशि कपूर , अमिताभ बच्चन , जितेंद्र , शत्रुघन सिनहा , जानी वाकर , ए के हंगल , राज बब्बर , कुलभूषण खरबंदा , मनोज वाजपेयी जैसे तमाम अभिनेताओं , महेश भट्ट जैसे निर्देशक , आशा पारेख , रेखा , हेमा मालिनी , शबाना आज़मी , रोहिणी हटंगणी , रति अग्निहोत्री , पूजा भट्ट , सिंधु भाग्या जैसी तमाम अभिनेत्रियों ,  लता मंगेशकर , आशा भोसले , हृदयनाथ मंगेशकर , जगजीत सिंह , दलेर मेंहदी , कुमार शानू जैसे गायकों समेत तमाम फ़िल्मी हस्तियों से लगातार मिलता रहा हूं।  इन सब के इंटरव्यू किए हैं। बराबरी में बैठ कर। लंबे-लंबे इंटरव्यू। इन सब के साथ तमाम फ़ोटो हैं। सिनेमा पर मेरी एक मोटी सी किताब भी है। और यह मतिमंद दिव्या भारती के साथ पहाड़गंज के खटारा होटल में खर्च हो गया ,किसी लंपट मायानंद के साथ। कहानी लिखते नहीं बनी तो नारद को ऐसे घुसेड़ दिया कहानी में जैसे भूसा भर रहा हो। रह-रह ब्लू फिल्म की हीरोइनों की तरह राम अरोड़ा , राम अरोड़ा की चीत्कार करता रहा। गोया यह सब कुछ उसे राम अरोड़ा ने बताया हो। अजब मतिमंद है यह सुधेंदु ओझा भी। फिर गोरखपुर का एक चार सौ बीस अतुल श्रीवास्तव पुष्पार्थी , जो प्रकाशन जगत की चार सौ बीसी में जितेंद्र पात्रो का बाप है। जो जितेंद्र पात्रो से ज़्यादा बदबू मारता है , पोस्ट पर किसी बैसाखनंदन की तरह रेंकता हुआ आ गया। फिर गिनती के कुछ सांप बिच्छू भी अहा, अहो ! करते हुए दिखे। जितेंद्र पात्रो भी गदगद हो कर आया। पूछा कि शेयर कर लूं ? 

फिर 5 जून , 2022 को मतिमंद सुधेंदु ओझा ने अपने अपने संपर्क भाषा भारती पत्रिका की वाल पर मायानन्द : हिन्दी के छिछले समुद्र की गंदगी शीर्षक पोस्ट लिखी। इस में मायानंद , मायानंद करते हुए अचानक गुरु दयानंद पर आ गए। अरे जितेंद्र पात्रो के चंपू , चापलूस सुधेंदु ओझा सीधे मेरा नाम लिखने की औक़ात रखो। सही और सच्ची बात करना सीखो। छाती ठोंक कर लिखो। जैसे मैं लिखता हूं। तर्क और तथ्य के साथ। कोई एक भी मेरी बात को किसी सूरत काट नहीं सकता। दिलचस्प यह कि इस पोस्ट पर जितेंद्र पात्रो के लीगल टीम की हेड , राजेंद्र यादव फेम ज्योति कुमारी को बहुत आनंद आया। ऐसे जैसे चरम सुख में डूब गई। वह एक कहावत है न सूप हंसे तो हंसे , चलनी भी हंसे जिस के बहत्तर छेद। बिलकुल उसी तरह। वही लिजलिजापन लिए। क्या भेल से रिटायर हो कर पत्रकार बनने की हकलाहट है यह ? हालां कि केशव ओझा के पोते और निशेंदु ओझा के पुत्र सुधेन्दु ओझा के सामाजिक सरोकार के प्रशंसक लोग भी मिले हैं मुझे। भूरि-भूरि प्रशंसा करने वाले लोग। लेकिन क्या कीजिएगा जब कोई विषैला भुजंग लिपट जाए तो विष तो आ ही जाता है , व्यवहार में। लेखन में भी। 

एक पुरानी कहावत है कि डाइन भी सात घर छोड़ देती है। लेकिन जितेंद्र पात्रो उस डाइन को भी मात करता है। एक सत्तर साल की वृद्ध लेखिका के लिए जिस तरह अभद्र भाषा में लिखा है और उन्हें पागल घोषित करते हुए ब्वाय फ्रेंड जैसी अपमानजनक बातें भी लिख गया है। दूसरी तरफ जिस लेखिका के कंधे पर बैठ कर दीदी-दीदी कर के प्रलेक प्रकाशन का तंबू-कनात गाड़ा , उसी लेखिका का नाम बिगाड़ कर इस मतिमंद सुधेंदु ओझा से बीताश्री लिखवाने लगा। आप भी गौर कीजिए की वाल पर इस लिखे पर संपर्क भाषा भारती पत्रिका की वाल पर :

अब एक ताज़ी खबर और सुन लीजिए.....यह आप केलिए ही है।   

जस्ट ब्रेकिंग न्यूज़ : कुछ पत्रकार की तरह साहित्य लिखने वाले अब सिंगल मदर्स को भी अपनी कुंठा के निशाने पर लेने लग गए हैं। लेखिका एटम पावर सिंह और बीताश्री को लेकर भी कुंठा-वमन हो रहा है। 

यह हिन्दी साहित्य का छिछला महासागर है जिसमें दूर-दूर तक, बहुत दूर तक सड़े-गले व्यक्तिगत सम्बन्धों की गंदगी को साहित्य के नाम पर परोसने की कोशिश हो रही है। पर यह कोशिश नई नहीं है। फूल कुमारी भारती हों या सहेली फूल कुमारी सभी रेत की मछलियाँ बन कर साहित्य में तड़प रही हैं। 

हिन्दी साहित्य का पाठक गत सदी के तीस और चालीस दशक का रचा हुआ साहित्य तलाश रहा है पर उसे मिल रहा है आज कल के लेखक-लेखिकाओं का जिया हुआ इतिहास। 

खैर, यह छिछला समुद्र है। यहाँ इस तरह की गंदगी मिलती ही रहेगी। ऐसा मुझे पूरा यकीन है।

अंत में, फेसबुक पर नमूदार मायानन्द, महेश जैसे पथिकों का जिनका रास्ता और लक्ष्य ही अद्भुत है......उन्हें प्रणाम, उनके बहाने कुछ कहने का अवसर प्राप्त हुआ......

बीताश्री को तो पहचान गया पर इन में से यह स्वेद पुत्र एटम पावर सिंह , महेश कुमार भोंपू और फूल कुमारी भारती को पहचान पाने में मैं अभी तक असफल हूं। कोई मित्र पहचान करवाएं। बहरहाल लेखक कोई भी हो , कभी भी बीता हुआ नहीं होता। अपने पाठकों में सर्वदा ज़िंदा रहता है। सहमति-असहमति , पसंद-नापसंद अपनी जगह है। तो यह बीताश्री क्या होता है ? अरे हिम्मत है तो सीधा नाम लिखो। जिस का भी लिखो। लेकिन एक तो साहस नहीं। दूसरे तथ्य और तर्क नहीं। तीसरे , लिखने का हुनर नहीं। कलम से दरिद्र। होने को मेरे पास सुधेंदु ओझा के निजी जीवन की कुछ अतिरिक्त और आकर्षक जानकारियां भी हैं। पर अभी उन का ज़िक्र नहीं करना चाहता। कुछ कार्ड होते हैं जिन्हें खोल कर नहीं खेला नहीं जाता। खेल अभी शुरु हुआ है। तो आगे ज़रुरत पड़ी तो देखा जाएगा। वैसे भी किसी की निजी ज़िंदगी में ताक-झांक करना मैं गुड बात नहीं मानता। बहुत बैड बात मानता हूं। पर क्या करुं गीता भी पढ़ रखी है। फिर वह एक शेर है न :

मैं वो आशिक़ नहीं जो बैठ के चुपके से ग़म खाए 

यहां तो जो सताए या आली बरबाद हो जाए। 

फिर मेरे जीवन में तो छुपाने के लिए कुछ है ही नहीं। सारा जीवन ईमानदारी , नैतिकता और शुचिता का तलबगार रहा हूं। कोई एक पैसे का भी कोई आक्षेप नहीं लगा सकता। इसी लिए छाती ठोंक कर लिखता हूं। किसी भी के बारे में। फिर अपने बारे में बहुत कुछ ख़ुद लिख चुका हूं। लिखता ही रहता हूं। घर से ले कर सार्वजनिक जीवन की सारी बातें सब के सामने हैं। खुली किताब हूं। जो जब चाहे , पढ़ सकता है। सर्वदा स्वागत है। मायानंद की आड़ लेने की ज़रुरत ही किसी को नहीं है। लेकिन आधा सुधा , आधा इंदु मतलब सुधेंदु ने एक पोस्ट में लिखा है :

मैंने मायानन्द के पुराने जानकारों से संपर्क किया।

सब ने एक ही स्वर में मुझ से पूछा “अरे वो साला अभी ज़िंदा है क्या?”

मैंने जवाब दिया “हाँ!!”

“अरे उस साले से बच के रहना। महा धूर्त किस्म का काइयाँ इंसान है।“ उधर से यह पारिभाषित टिप्पणी हासिल हुई। 

बताइए कि वह यही सुधा और इंदु है जो मुझ से लिखने के लिए टिप मांगता था। मुझे कभी बहुत आदर पूर्वक ऐसे संदेश भेजा करता था :

आदरणीय दयानंद पांडेय जी प्रणाम!!

उपरोक्त छलात्कारी विषय में मैंने आपके कुछ आलेख पढ़े हैं जिनमें कमलेश्वर, मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, राजेन्द्र अवस्थी, नंदन, दुष्यंत, नीलाभ इत्यादि का कुछ-कुछ रेखा चित्र आपने खींचा था। शायद एक घोर जनवादी आलोक आपकी निगाह से बच निकला था। 

मेरे पास भी कुछ रोचक सामग्री है, इजाफा करना चाहता हूं।

नीलाभ और आलोक धन्वा के त्रासद जीवन में कुछ साम्यता है तो कुछ असाम्यता भी।

आपसे सहयोग/सहायता की दरकार है।

संभवतः, आपके विषय में धनंजय सिंह (कादम्बिनी) के मुख से कई बार सुना था।


सादर

सुधेन्दु ओझा

लेकिन जितेंद्र पात्रो रुपी भुजंग ने लिपट कर इस व्यक्ति को इतना विषैला बना दिया कि इस आदमी में इतना जहर भर गया। भाषा में दरिद्र पहले ही से था , अब अभद्र भी हो गया। जितेंद्र पात्रो के विष में लिपटे इस व्यक्ति को कोई बताने वाला नहीं है कि नाम के आगे पंडित लिखने से कोई पंडित नहीं होता। पंडित होने के लिए बड़ी तपस्या करनी होती है। बहुत अध्ययन और अनुभव से , बड़ी विनम्रता और धैर्य से पंडित बनता है कोई। पंडित मतलब ज्ञानी। अधजल गगरी छलकत जाए वाली जानकारी , आदमी को पंडित नहीं , कुत्ता बनाती है। कुंठित बनाती है। चापलूस और चंपू बनाती है। होठों पर उंगली रख कर फ़ोटो क्लिक करवाने से कोई लेखक नहीं बन जाता। लेखक बनने के लिए रचना पड़ता है। लेखकीय आचरण करना होता है। मायानंद जैसे , बीताश्री जैसे फर्जी नाम की आड़ नहीं लेनी पड़ती है। लेखक तो सीधा कहता है। उसे मायानंद और बीताश्री की ज़रुरत नहीं पड़ती। सनातन समाज की आचार संहिता क्या ऐसे ही दरिद्र भाषा में लिखा है ? कि सितारा देवी जैसी नर्तकी पर इसी तरह अभद्र ढंग से लिखा है ? 

पिता का कमाया पैसा उड़ाना आसान होता है। पर ख़ुद कमाना कठिन होता है। बहुत कठिन। पिता का मेहनत से कमाया हुआ पैसा चापलूसी और चंपूगिरी में पानी की तरह बहाना कोई गुड बात तो नहीं ही है। वह भी एक कलंकी , चालबाज और धूर्त प्रकाशक जितेंद्र पात्रो की चापलूसी और चंपूगिरी में तो कतई गुड बात नहीं है। वैसे भी पहले ही बताया कि सुधेंदु मतलब सुधा और इंदु। तो मर्दानियत का तो वैसे ही सत्यानाश हुआ पड़ा है। बाक़ी पैसे दे कर किताब छपवा लेना , रवींद्र जैन जैसे लोगों से अधकचरे गीत गवा लेना , अपने स्टूडियो में और इन की उन की ठकुरसुहाती से यश तो नहीं मिलता। फिर जो आदमी जितेंद्र पात्रो जैसे माफ़ी वीर की चंपूगिरी और चापलूसी में ही खर्च होने के लिए पैदा हुआ हो , उस पर मैं भी काहे खर्च हुआ जा रहा ! हुंह !

माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो का माफ़ीनामा 



कृपया इस लिंक को भी पढ़ें :


1 . कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर को ले कर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की झांसा कथा का जायजा 

2 .  प्रलेक के प्रताप का जखीरा और कीड़ों की तरह रेंगते रीढ़हीन लेखकों का कोर्निश बजाना देखिए 

3 . जितेंद्र पात्रो , प्रलेक प्रकाशन और उन का फ्राड पुराण 

4 . योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि पर बट्टा लगा रही है

5 . तो जितेंद्र पात्रो अब साइबर सेल के मार्फ़त पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे

6 . लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है , पैंट गीली हो जाती है , यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है

7 . जितेंद्र पात्रो , ज्योति कुमारी और लीगल नोटिस की गीदड़ भभकी का काला खेल 

8 . माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब शची मिश्र की चुनौती , अनुबंध रद्द कर सभी किताबें वापस ले लीं 

9 . कुंठा , जहालत और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है

Friday, 10 June 2022

मिस्टर मोदी , 2024 के लिए अग्रिम बधाई लीजिए और सी आई ए को शुक्रिया कहिए

दयानंद पांडेय 

मूर्खों ने 2024 में मोदी के लिए चुनावी पिच तैयारी कर दी है। फिर जब मोदी का चौआ , छक्का लगेगा तब फिर से हिंदू राष्ट्र बनेगा का तराना शुरु होगा। अब इतने पर भी बहुसंख्यक वर्ग के वोट का ध्रुवीकरण नहीं होगा तो भला कब होगा ? नमाजवादियों को लेकिन लगता है कि क़तर के कंधे पर बैठ कर उन्हों ने बाज़ी मार ली है। गुड है यह फ़रेब भी। फव्वारा-फव्वारा का खेल जैसे कम पड़ गया था। कि शहर-शहर , पत्थर-पत्थर भी खेल गए। परिणाम पुलिस की कुटाई और पिच तैयार दोनों एक साथ। मोदी वैसे भी सौदागर है। सोनिया गांधी कहती हैं , खून का सौदागर। मैं कहता हूं वोट का सौदागर। मिस्टर मोदी , 2024 का सरदार बनने के लिए अग्रिम बधाई ! 

इंदिरा गांधी अकसर किसी मुश्किल में अकसर विदेशी शक्तियों का हाथ बताने के लिए परिचित थीं। इंदिरा गांधी बिना नाम लिए कई बार बिना नाम लिए सी आई ए की तरफ इशारा करती थीं। बाद में तो वह सी आई ए का नाम खुल्ल्मखुल्ला लेने लगी थीं। तो अब तो सी आई ए ने नरेंद्र मोदी की 2024 में ताजपोशी का इंतज़ाम अनजाने में कर दिया है। यह सी आई ए ही है जिस ने अरब देशों को भारत के ख़िलाफ़ भड़काने का काम किया। काशी में बाबा और फौव्वारे की बहस अभी जारी ही थी , लोहा गरम ही था कि नूपुर शर्मा का एक सच्चा बयान सी आई ए ने लपक लिया। सी आई ए को लगा कि भारत को नीचा दिखाने का यही माकूल समय है। 

क़तर समेत अरब देशों के दल्ले ओ आई सी को साधा। फायरिंग शुरु हो गई। राजदूत तलब होने लगे। मदरसा बुद्धियों को भी सी आई ए ने कैच फेंकी। बाल कैच हो गई। ओवैसी जैसे कठमुल्लों का शोरुम देश भर में खुलता गया। अरब देशों की ताक़त इन की जुबान पर आ गई। कानपुर बना प्रयोगशाला। फिर क्या था जुमा तो हर हफ़्ते आता है। और गुम्मा छत पर भी होता है , ठेले पर भी। देशव्यापी युगलबंदी हो गई गुम्मा और जुम्मा की। मुंबई , हावड़ा और रांची तक यह जुमा और गुम्मा की यह युगलबंदी जलवा दिखा गई। हावड़ा में तो ममता को नेट तक बंद कर देना पड़ा है। उन के सांप , उन्हीं के गले पड़ गए हैं। बस नरेंद्र मोदी को और क्या चाहिए। बैठे-बिठाए , हाथ पर हाथ धरे , हिंदू वोटों का ज़बरदस्त ध्रुवीकरण हो गया। न हर्र लगी , न फिटकरी। रंग चोखा हो गया। 

उत्तर प्रदेश में तो योगी का बुलडोजर और जुमे के गुम्मे वालों की लाल गिट्टी की तरह कुटाई बोनस में है। यह बोनस तो अब सुप्रीम कोर्ट की दीवारें फलांग कर लोगों की सेवा में न्यस्त है। जो भी हो , सी आई ए कोई काम छोटा नहीं करती। सो जुमा और गुम्मा की युगलबंदी मदरसा बुद्धि वाले इतनी जल्दी फिनिश नहीं करने वाले।  वैसे भी मोदी ने उन के एक हाथ में कुरआन और एक हाथ में कंप्यूटर दे दिया है। तिस पर भोले बाबा और गंगा मैया की कृपा की बात ही और ही है। मैं ने तो वोट के सौदागर , नरेंद्र मोदी को 2024 की इस मुफ्त की पिच पर मैच जीतने की अग्रिम बधाई दे दी है। आप भी देना चाहिए तो दे दीजिए। या फिर समय का इंतज़ार कीजिए। वोट के सौदागर के मैच जीतने का। क़तर को ओ आई सी और अरब देशों को यह पत्थरबाज़ी रास नहीं आएगी। बाकी यहां तो दिमाग से दिवालिए लोग भाई-चारा का जुमला ले कर जुमा और गुम्मा की युगलबंदी मुसलसल जारी रखेंगे ही। 

आख़िर यह तुम्हारी कैसी आराधना है जो आदमी को अराजक , हिंसक और दंगाई बना देती है

दयानंद पांडेय 

चोरी भी और सीनाजोरी भी। आख़िर यह तुम्हारी कैसी आराधना है जो आदमी को अराजक , हिंसक और दंगाई बना देती है। ऐसा कौन सा सज्दा है जो करते ही हराम हो जाता है। बंद करो ऐसी जुमे की नमाज। भाड़ में डालो इस नमाज को जो मनुष्यता नहीं समझती। सिर्फ़ इस्लाम की हिंसा समझती है। हिंसा किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकती। नूपुर शर्मा ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो ग़लत कहा। ग़लत किया है क़तर जैसे देशों ने। जिन्हों ने भारत के मुसलमानों को शह दे कर भड़काया। 

और जहालत के मारे यह मुसलमान हिंसा पर उतारु हो गए हैं। कभी कश्मीर , कभी कानपुर , मुजफ़्फ़र नगर , फिर पूरा देश। जहन्नुम बना दिया है देश को। इन अराजक और हिंसक लोगों को कस के रगड़ देना चाहिए। और क़ायदे से क़तर जैसे मुस्लिम देशों से राजनयिक संबंध ख़त्म कर लेना चाहिए। यह जो करोड़ो रुपए रोज क़ानून व्यवस्था के नाम पर हर जुमे को खर्च हो रहे हैं। हिंसा और आगजनी हो रही है। यह तो रुक जाएगी ,क़तर और अरब को अपना बाप मानने वाले लोग बुलडोजर के ही हक़दार हैं। 

मैं गांधी और उन की अहिंसा के बड़े प्रशंसकों में से हूं। पर अब लगता है कि गांधी ने बहुत ग़लत किया। बंटवारे के बाद मुसलमानों को हिंदुस्तान में बिलकुल नहीं रहने देना चाहिए था। सौ प्रतिशत को पाकिस्तान भेज देना चाहिए था। बल्कि जबरिया भेज दिया जाना चाहिए था। गांधी-नेहरु की इस ग़लती को हम जाने कब तक भुगतते रहेंगे। और यह जिन्नावादी इस्लाम के नाम पर रोज डायरेक्ट ऐक्शन करते रहेंगे। डायरेक्ट ऐक्शन जिन्ना ने शुरु किया था। कि हिंदुओं को देखते ही मार डालो। जिन्ना के इस डायरेक्ट ऐक्शन में ही डर कर गांधी झुक गए और पाकिस्तान क़ुबूल कर लिया। पाकिस्तान बना कर एक सभ्य और शरीफ़ शहरी की तरह इन को भारत में रहना लेकिन आज तक नहीं आया। बात-बेबात हिंसा , जेहाद और ब्लैकमेलिंग ही इन का चरित्र हो गया है। यह सब देखते हुए भारत को अब इजरायल मॉडल की सख़्त ज़रुरत है। हद हो गई है। देश के संविधान की जगह शरिया के तलबगारों से छुट्टी चाहता है देश। 

आख़िर इस्लाम की बिना पर ही तो पाकिस्तान बना था। और यह कमबख़्त कहते हैं कि बाई च्वायस यहां भारत में रह गए थे। क्यों रह गए थे भाई। क्या भारत को दिन-ब-दिन जलाने के लिए ही रुके थे ? यह बात-बेबात आए दिन शहर-दर-शहर को हिंसा की आग में जलाने को अगर आप सेक्यूलरिज्म मानते हैं तो भाड़ में जाएं आप और आप का यह सेक्यूलरिज्म। कि रोज-रोज मनुष्यता को जलाते रहते हैं। अरे जलाना ही है तो विवाद की जड़ उस किताब को ही जला देना चाहिए। इन हिंसक लोगों से निपटने के लिए किसी स्टालिन , किसी हिटलर की ज़रुरत आ पड़ी है। लोकतांत्रिक तरीक़े से इन हिंसक लोगों से किसी सूरत नहीं निपटा जा सकता। इस जुमे की हिंसा पर बशीर बद्र याद आते हैं :

यहां एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें 

तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है।

माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब शची मिश्र की चुनौती , अनुबंध रद्द कर सभी किताबें वापस ले लीं

दयानंद पांडेय 

बिना किताब छापे ही कवर बना कर आंख में धूल झोंकने का एक ज्वलंत उदाहरण 

माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब उन के महाराष्ट्र से ही एक लेखिका शची मिश्रा ने चुनौती दे कर उन्हें तगड़ा सबक़ सिखा दिया है। जितेंद्र पात्रो के काले कारनामों को उजागर करते हुए उन्हें बीते 8 जून को एक कड़ी चिट्ठी लिख दी है। जितेंद्र पात्रो के छल-कपट और झूठ से आजिज आ कर अपनी सभी किताबें शची मिश्र ने जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन से वापस ले ली हैं। सारे अनुबंध रद्द कर दिए हैं। अनुबंध रद्द होते ही , सभी किताबें वापस लेते ही जितेंद्र पात्रो इतना घबरा गए कि कल रात ही शची मिश्र को जवाब भी लिख भेजा। रात एक से दो बजे तक लगातार फ़ोन करते रहे। जो आदमी शची मिश्रा का महीनों से फोन न उठाता रहा हो। मेसेज या मेल का जवाब न देता रहा हो। सिर्फ एक कड़ी चिट्ठी पाते ही , किताब वापस लेते ही आधी रात को रिप्लाई कर देता है। फ़ोन पर फ़ोन करने लगता है। 

गौर तलब है कि जितेंद्र पात्रो जैसे कभी मुझे पिता तुल्य बताते थे , शची मिश्र जी को मां की तरह मानते थे। कैंसर आदि बीमारियों की कहानियों का पिटारा शची मिश्र को भी परोस देते थे। जितेंद्र पात्रो के पास बीमारी और व्यस्तता दो ही बहाने हैं काम टालने और फोन न उठाने के बाबत। हम से तो एक बार जितेंद्र पात्रो कहने लगे कि जीभ में कांटा फंस गया है। मछली का कांटा। आपरेशन करवाना है। उन दिनों मैं लंबे समय तक नोएडा में था। वह दिल्ली आए थे। क्या तो कथा-लखनऊ की तैयारी के लिए। लेकिन एक दिन फोन आया कि अस्पताल में भर्ती हूं। ऐसा दो बार हुआ कि दिल्ली आ कर जितेंद्र पात्रो ने अस्पताल में भर्ती हुआ बताया। बताया कि दिल्ली उन्हें सूट नहीं करती।

हां , लेखकों से धोखाधड़ी , झूठ बोलना , लोगों की आंख में धूल झोंकना ज़रुर सूट करता है। शची जी वैसे भी ममतामयी हैं सो बहुत समय तक जितेंद्र पात्रो पर बेटा -बेटा कह कर अपनी ममता लुटाती रहीं। पर जितेंद्र पात्रो ने उन की ममता का अपमान किया। स्त्री होने के नाते वह निरंतर चुप रहीं। वैसे भी वह गोरखपुर के एक प्रतिष्ठित और संभ्रांत परिवार से आती हैं। उन के पति भी सेना में उच्च पदस्थ रहे हैं। लेकिन जब मैं ने जितेंद्र पात्रो की कुंडली बांचनी शुरु की है बीते 7 अप्रैल से तो जितेंद्र पात्रो की कुंडली और काले कारनामे से वह और ज़्यादा परिचित हो गईं। स्त्री सुलभ संकोच से छुट्टी ली। अपनी ममता लुटानी बंद की जितेंद्र पात्रो पर। और अचानक एक दिन शची मिश्र जी ने जितेंद्र पात्रो को एक कड़ी चिट्ठी लिख दी है। इतनी कड़ी कि चिट्ठी पाते ही , वह आधी रात में उन्हें फ़ोन करने लगा। लगातार करता रहा। फोन साइलेंट पर होने के कारण उठा नहीं। तो रात ही शची मिश्र जी की चिट्ठी का लंबा जवाब भी भेज दिया। शची मिश्र इस धूर्त प्रकाशक जितेंद्र पात्रो को लीगल नोटिस भी बस भेजने ही वाली हैं। मेरी जानकारी में शची मिश्र अकेली लेखक नहीं हैं जिन का जितेंद्र पात्रो से मोह भंग हुआ है और अपनी अनुबंध निरस्त कर प्रलेक प्रकाशन से किताब वापस ले ली है। बल्कि तीन दर्जन से अधिक लेखक हैं जिन्हों ने इस दो महीने के बीच प्रलेक प्रकाशन से हुआ क़रार तोड़ कर अपनी किताबें वापस ले ली हैं। अब वही लेखक लोग चुप  हैं जिन्हों ने जितेंद्र पात्रो को पैसा दे रखा है। बाक़ी लेखक लोगों ने जितेंद्र पात्रो को उस की औक़ात बता दी है। कुछ बताने की तैयारी में हैं। लोगों की आंख खुल गई है। जैसे कई लेखकों के साथ जितेंद्र पात्रो करता आ रहा है कि बिना किताब छापे ही पुस्तक सूची में नाम छाप देता है , शचि मिश्रा के साथ भी जितेंद्र पात्रो ने यही किया है। बल्कि बिना किताब छपे किताबों के कवर के साथ जन्म-दिन की बधाई भी दे दी है। अब इस कला को कमीनेपन के किस विश्लेषण से नवाजेंगे आप जितेंद्र पात्रो को। फ़िलहाल तो शची मिश्र की जितेंद्र पात्रो को लिखी वह कड़ी चिट्ठी पढ़िए और फिर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की तरफ से उस की घिघियाती चिट्ठी का भी आनंद लीजिए। 

शची मिश्र की प्रलेक प्रकाशन को लिखी चिट्ठी 

08- 06- 2022 

प्रिय प्रकाशक

प्रलेक प्रकाशन, मुम्बई

महोदय,

आप न तो फोन उठाते हैं और न ही ‘ह्वाट्स अप’ पर लिखे गए मैसेज का उत्तर देते हैं, इस लिए मुझे मजबूर होकर यह मेल लिखना पड़ रहा है।

1.    आपने मुझसे राम पर एक पुस्तक संपादित करने के लिए कहा था और यह भी कहा कि, “दीदी आपके अलावा यह काम कोई कर भी नहीं सकेगा।” ( इसके पूर्व मैं आपको ‘लोक गीतों में राम कथा’ पर पुस्तक संपादित करके आपको भेज चुकी थी।) उसके पारिश्रमिक के रूप में आपने मुझे 35000 रुपए एवं प्रत्येक लेखक को एक लेखकीय प्रति देने की बात तय हुई थी। मैंने यह जानते हुए भी कि यह श्रम साध्य कार्य है आपके अनुरोध पर उसे स्वीकार कर लिया। और कार्य में लग गई। बीच में एक बार आपसे पुनः बात हुई और मैंने अपनी माँग दुहराई उसके बाद आपने फोन उठाना बंद कर दिया। यदि कभी बात हुई भी तो आपने अपनी बीमारी जिसमें कोरोना, एल्सर से लेकर संभावित कैंसर तक को मेरे सामने बयान किया। उम्र के इस मोड़ पर जबकि आप से दो, चार साल बड़े मेरे बच्चे हैं ,मेरा स्नेह भी आपके प्रति मातृत्व भाव का ही रहा और मैं इसके विषय में आपको अपनी जानकारी के अनुसार सलाह और ईश्वर से आपके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना भी करती रही। उम्र के इस मोड़  पर मेरा नजरिया सभी युवक युवतियों के लिए के प्रति मातृ भाव ही रहता है और मैं आपके बताए कार्य में व्यस्त हो गई और 27 नवंबर 2021 को ‘राम एक कालजयी चेतना ’ का कार्य पूरा हो गया जिसमें तीस विद्वानों के लिखे लेख जिसमें 119689 ( एक लाख उन्नीस हजार छः सौ नवासी ) शब्द हैं। जिसमें मेरा लगभग छः महीने तक का लगातार लोगों से बार बार लेख माँगने का अनुरोध, उसे टाइप करने का परिश्रम भी शामिल है। एक दिन आपने फोन उठाया और मैंने इस संदर्भ में बात की तो आप ने कहा कि सिनोप्सिस भेज दीजिए मैंने 28 मई को सिनोप्सिस मेल कर दिया किन्तु आज तक उसका उत्तर नहीं मिला। कल पुनः आपको मैसेज किया किन्तु आपने उत्तर नहीं दिया।

मेरे पास उन लेखकों के फोन लगातार आते रहते हैं, जिन्होंने लेख दिया था उन लेखकों का फोन आता है और मुझे आपके कारण अपमानित  होना पड़ रहा है। इस विषय में अनावश्यक रूप से बहुत देरी हो चुकी है इसलिए आप तत्काल टाइपिंग का खर्च ( जिसे आप प्रति शब्द की दर से बताते रहते हैं) एवं अनुबंध की राशि को मोबाइल बैंकिंग के द्वारा मेरे एक मात्र फोन नंबर से मेरे तत्काल एकाउंट में ट्रांसफर करें और अनुबंध को अपने हस्ताक्षर के साथ स्कैन करके ( जैसा कि मैंने किया था) मेल करें।

2.    आपने अगस्त 2020 में प्रकाशित करने वाली पुस्तकों का मेरे साथ अनुबंध ठीक से नहीं किया। मैंने मेल द्वारा आपका भेजे अनुबंध का प्रिंट निकाल कर अपने हस्ताक्षर करके भेज दिया किन्तु मुझे आपके हस्ताक्षर के साथ वह अनुबंध पत्र प्राप्त नहीं हुआ। मुझे भी इस बात का ध्यान नहीं रहा, यही घटना दोबारा दो पुस्तकों - ‘लोक गीतों में राम कथा’ ( संकलन) एवं ‘ययाति पुत्री माधवी ( उपन्यास) के समय भी हुई। यह एक तरफा अनुबंध भी पहले की ही भाँति 1 अगस्त 2020 में हुआ था और इसे भी मैंने पहले की ही तरह स्कैन करके भेजा था और पुनः ‘राम एक कालजयी चेतना’ के संकलन के समय तक मैं सचेत हो चुकी थी और बिना धन राशि और टाइपिंग के खर्चे के मैं पहले की भाँति एग्रीमेंट करने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए पहले आपसे हस्ताक्षर किया गया एग्रीमेंट माँगा। आपके द्वारा पहले किए इस आचरण से भी मेरा संदेह विश्वास में बदल रहा है, अतः तत्काल पुराने एक पक्षीय जिसमें आपने हस्ताक्षर नहीं किया था, हस्ताक्षर करके भेजें।

3.    आपने अब तक प्रकाशित तीनों पुस्तकों की साल के अंत में ( जैसा कि आपके अनुबंध में लिखा था ) कोई रायल्टी नहीं दी, जब कि दो लोक साहित्य पर आधारित पुस्तकों की भारी बिक्री हुई, यह आपने ‘लखनऊ पुस्तक मेला’ ( मार्च 2021 )के समय मुझसे कहा था कि मैं पचास पचास प्रतियाँ लेकर आया था किन्तु दो चार दिन में ही वे सारी बिक गई और आपने और पुस्तकें  छपवा कर मँगाई हैं। संदर्भ में आपने एक समाचार पत्र का लिंक भी दिया था और उसी के आधार पर मैंने उस समय फेसबुक पर एक पोस्ट भी किया था। चूकि मुझे आपके द्वारा ज्ञात हो चुका था कि अब कम्प्यूटर से लेजर छपाई तत्काल हो जाती है इसी लिए जब चाहें दस बीस प्रतियाँ छाप सकते हैं। संग्रह करने की समस्या के कारण कोई भी प्रकाशक अब एक बार में पचास प्रति से अधिक नहीं छापता। आप मेरी पुस्तकों का अनुमति के बिना पाँच संस्करण को कौन कहे न जाने कितने संस्करण निकाल चुके है अतः अब मेरी पुस्तकों से प्राप्त रायल्टी का भुगतान करें।

4.    मैं एक को छोड़ कर दो पुस्तकों - ‘भोजपुरी की लोक कथाएँ’ एवं ‘भोजपुरी के प्रणय गीत : नकटा’ का कवर अपने मित्रों से बनवा कर दिया था जिसके लिए उनको एक सम्मान जनक धन राशि देने की बात हुई थी, ( विवरण और आपकी स्वीकृति 16 अगस्त 2020 ह्वाट्स अप पर दर्ज है)  पर आपने वह भी नहीं दिया, उस का भुगतान करें।

5.     मैंने आपके माँगने पर दो किताबें- ‘ भोजपुरी लोकगीतों में राम कथा’ ( संपादन) एवं  ‘ययाति पुत्री माधवी’ की पाण्डुलिपि भेजी। ( चूँकि आप कहते थे कि, “दीदी मैं साल में आपकी दो किताबें छापूँगा।”) और उसका भी अनुबंध का पहले की ही भाँति आपने किया, अर्थात मेरे हस्ताक्षर तो ले लिए किन्तु अपना करके नहीं भेजा।

6.    इसी क्रम में ह्वाट्स अप के द्वारा आपने पूछने पर 24 अक्तूबर 2020 को सूचित किया कि ‘लोक गीतों में राम कथा’ पर कार्य आरंभ हो चुका है। किन्तु अब तक मुझे कोई कंपोज की हुई सामग्री नहीं मिली। दोनों पुस्तकों का कवर मैंने अपनी सहेली से बनवाया था पर माधवी का कवर मुझे पसंद नहीं आया इसलिए उसे बदलने के लिए कहा। इस क्रम में आपने माधवी पर काम आरंभ कर दिया और मैंने 10 जुलाई 2021 को माधवी का संशोधन भेजा, बार बार कहने पर अंत में  25 -11 - 2021 को मैंने ‘ययाति पुत्री माधवी’ का फाइलन प्रूफ भेजने के बाद भी कवर के दर्शन नहीं हुए और तो पुस्तक क्या छापते?

7.    हाँ आप मेरे जन्म दिन पर 24 अप्रैल 2021 को अपनी पोस्ट में पाँचों पुस्तकों के कवर के साथ जन्म दिन की बधाई दी थी जिसे मैंने अपनी वाल पर भी लगाया था। तब से एक साल से अधिक समय हो गया, कार्य में कोई प्रगति नहीं हुई।

8.    इसी क्रम में मेरे बार बार पूछने पर तथा यह बताने पर कि मैं ‘ययाति पुत्री माधवी’ की प्रति को विभिन्न संस्थाओं में  पुरस्कार के लिए नामित होने के लिए भेजना चाहती हूँ, तो आपने 15 मार्च 2021 को मैसेज में लिखा कि अप्रैल में दोनों किताबें आ जाएँगी किन्तु अफसोस कि मेरी एक कृति जो कि पुरस्कृत हो सकती थी अटक गई। आपके इस झूठ से मुझे जो दुःख और मानसिक प्रताड़ना मिली उसका बयान नहीं कर सकती। पुनः इस वर्ष होने वाले पुस्तक मेले में हर हाल में मेरी पुस्तक लाने के लिए वादा किया था किन्तु अफसोस...।

9.    आपने 4 नवम्बर 2021 को अपने द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की सूची में बिना कंपोज और प्रकाशित किए ही दोनों पुस्तकों -‘लोकगीतों में राम कथा’ ( संकलन ) एवं ‘ययाति पुत्री माधवी’ ( उपन्यास ) का उल्लेख किया तो मुझे लगा कि आप काम कर रहे हैं और एकाध महीने में पुस्तक बाजार में आ जाएगी किन्तु यहाँ भी धोखा हाथ लगा।

10. इसी क्रम में मैं पिछले वर्ष अपने मूल निवास (  गोरखपुर ) जा रही थी और पूर्व में हुई बात के आश्वासन पर आपसे अगस्त 2020 में प्रकाशित रचनाओं की 5-5 प्रतियाँ मूल निवास ( गोरखपुर ) के पते पर भेजने के लिए कहा किन्तु कोई पुस्तक नहीं मिली।

11. इस बीच मैं निरंतर आपको फोन और मैसेज लिखती रही किन्तु जैसा कि आप सबके साथ करते हैं मेरे फोन को नहीं उठाया और न ही कोई कॉल बैक किया। न ही मैसेज का कोई उत्तर दिया। आपके निरंतर इस प्रकार से किए गए व्यवहार से मुझे बहुत मानसिक पीड़ा हुई है।

12. इस बीच मुझे निरंतर  मुझे सोशल मीडिया, फेसबुक, ब्लॉग और व्यक्तिगत संदेशों, बात चीत से आपके द्वारा सताए, धमकाए गए  पीड़ित लोगों से बहुत कुछ पता चला। एक बार आपसे पूछा भी था किन्तु आपने सारे आरोप को झूठा बताया किन्तु खुले तौर पर ब्लॉग और फेसबुक पर प्रमाणों के साथ आप पर लगाए गए आरोपों का प्रमाण के साथ खण्डन करने में भी आप असमर्थ रहे।

13. आपके व्यवहार से परेशान हो कर मैं यह कदम उठा रही हूँ कि, जब तक आप मुझे ऊपर लिखे गए धन का भुगतान नहीं करते मेरी, दोनों पुस्तकों -‘लोकगीतों में राम कथा’ ( संकलन ) एवं ‘ययाति पुत्री माधवी’ ( उपन्यास ) प्रकाशन को रोक रही हूँ, इसके साथ साथ मैं आपके द्वारा पूर्व प्रकाशित तीन पुस्तकों- 1. यानी की फुल्ली फालतू’ 2- भोजपुरी के प्रणय गीत नकटा 3- भोजपुरी की लोक कथाएँ, का पुनः मुद्रण एवं बिक्री के अधिकार को भी अपने कॉपीराइट और आपके द्वारा अपनाए गए संदिग्ध आचरण ( अग्रीमेंट आदि ) के कारण रोक रही हूँ।

14. आप शीघ्र ही इन सबका निपटारा करें अन्यथा मुझे आपके द्वारा भेजे गए अनुबंध के  बिन्दु संख्या ( 13 ) के लिए आगे बढ़ना पड़ेगा।

15. पुनः मुझे किसी प्रकार का मौखिक आश्वासन नहीं चाहिए इसलिए फोन न करें, केवल बकाए धन राशि का भुगतान मोबाइल बैंकिंग के द्वारा करें। भुगतान के बाद ही किसी प्रकार का संवाद संभव हो सकेगा।

धन्यवाद

शची मिश्र

प्रलेक प्रकाशन का जवाब 

From: Pralek Prakashan <pralek.prakashan@gmail.com>
Date: Thu, 9 Jun, 2022, 07:32
Subject: Fwd: पत्र
To: Shachi Mishra <mishra.shachi@gmail.com>
Cc: <salilsudhakar@yahoo.in>, <editor.pralekprakashan@gmail.com>, Jitendra Patro <jitendra.vpatro@gmail.com>, <haiderkhan1983@gmail.com>



आदरणीय लेखिका महोदया,
सादर प्रणाम

आपका भेजा हुआ पत्र प्राप्त हुआ, पढने के बाद यह जान कार दुःख हुआ कि जिस प्रकाशक ने कोरोना काल और LOCKDOWN में आपकी 3 किताबों को एक साथ प्रकाशित किया था उसके प्रति आप इस प्रकार का व्यवहार रखती हैं.

1) आपसे राम भगवान पर जिस प्रोजेक्ट के लिए बात हुई थी उसके संदर्भ में :  
न तो आपने कभी इस प्रोजेक्ट की हमें लिखित में नियमित सूचना दी और न ही आपके साथ हमारा कोई भी अनुबंध ही हुआ है अब तक. 
अगर आपने काम 27/11/2021 को पूर्ण कर दिया था तो हमें मेल भेज कर अवगत क्यों नहीं करवाया आपने? आपने सिनाप्सिस हमें क्यूँ नहीं भेजा? जब आपने प्रोजेक्ट पूर्ण होने की हमें लिखित सूचना पाण्डुलिपि के साथ हमें आज तक दी ही नहीं है तो आप अपमानित कैसे हो रही हैं?
आपका २८/०५/२०२२ को हमारे निदेशक श्री जितेन्द्र पात्रो को भेजा गया मेल हमें प्राप्त हुआ जिसमे सिर्फ आपका आक्रोश और दो शब्द हमें दिख रहा है पर पाण्डुलिपि नहीं.
आपने किताब के नाम पर भी हमारे साथ चर्चा नहीं किया कभी.
प्रकाशक की भी अपनी व्यस्तता होती है, हर काम में समय लगता है.
क्या आप यह जरुरी नहीं समझती कि कमर्शियल प्रोजेक्ट की पाण्डुलिपि पर हमारे संपादक का निर्णय भी जाना जाए?
जिस प्रकाशक को किताब प्रकाशित करना है उसके पास पूर्ण अधिकार है की वो पाण्डुलिपि पढने के बाद आपको सुधार के विषय में बताये और आपके साथ अनुबंध की शर्तों को पूरा करें.
बिना पाण्डुलिपि देखे कोई प्रकाशक आपके साथ अनुबंध कैसे करेगा?
अग्रिम राशी हमेशा बैंक खाते में भेजी जाती है, गूगल पे से नहीं. क्यूंकि हमें भी पेमेंट के प्रमाण की जरुरत होती है.
आपके द्वारा भेजे गए सूची पत्र से हम संतुष्ट नहीं हैं.
"बिना पाण्डुलिपि का PDF पढ़े हम आपके साथ अनुबंध करने में असमर्थ हैं."

2) आपकी प्रकाशित 3 किताबों के सन्दर्भ में : 1)भोजपुरी के प्रणय गीत नकटा 2) भोजपुरी की लोक कथाएं और 3) फुल्ली फालतू
आदरणीय लेखिका महोदया,
जब पूरा संसार कोरोना की चपेट में त्राहि-त्राहि कर रहा था और हमने अपना प्रकाशन शुरू किया था.
उस समय कहीं से हमारा संपर्क पाकर आपने हमसे संपर्क किया था और अपनी 3 पाण्डुलिपि हमें भेजी थी. 
हमने आपका आदर पूर्वक स्वागत कर आपकी किताबों पर काम किया और आपने करीब 12-15 बार आपकी किताबों की कवर पेज पर हमसे काम कराया.
क्या आपको लगता है सब कुछ आसान और बिना क्रय / धन के संभव है?
जहाँ लोगों के व्यापार बंद हो रहे थे वहां हमने आपकी 3 किताबों को प्रकाशित किया और अनुबंध के अनुसार आपको प्रत्येक किताब की 5-5 लेखकीय प्रतियां भेजी भी गई जिसकी प्राप्ति की सूचना आपने हमें किताबों की तस्वीर (भेजकर) के साथ 25/09/2020 के दिन दिया था. 
उसके पश्चात आपका बार-बार मुफ्त में किताबें गोरखपुर भेजने के लिए कहना सरासर गलत है. उसके पश्चात आपने स्वयं कहा था की आप गोरखपुर नहीं जा रही हैं इसलिए किताबों को न भेजा जाए.
आपको अनुबंध के अनुसार लेखकीय प्रतियाँ 5-5 देने के बाद आपको मुफ्त में किताबें देने के लिए हम बाध्य नहीं हैं.
आपको हमने मेल द्वारा तीनों किताबों का अनुबंध भी भेजा था और कहा भी था की अनुबंध का प्रिंटआउट निकालकर प्रत्येक अनुबंध की 2-2 कापियों पर अपने हस्ताक्षर कर हमें भेजें परंतु आपने ऐसा न कर हमें सिर्फ 1-1 प्रति पर अपने हस्ताक्षर करके भेजा. उसके बाद से आपने कभी भी हमसे लिखित में अनुबंध की कॉपी नहीं माँगी. क्यूंकि आपने अनुबंध की 1 हि कॉपी भेजी है इसलिए आपकी स्कैन कॉपी भेज दिया जाएगा
पर आपके मेल में आपने सरासर गलत इलज़ाम हमपर लगाया है.
रही रॉयल्टी की बात को पहले ही आपको सूचित किया गया था कि कोरोना में सफल व्यापार न होने के कारण आपका हिसाब जुलाई,2022 में किया जायेगा. तो आप निश्चिंत रहिये आपको हिसाब जुलाई,2022 में भेज दिया जायेगा, जिसके लिये आपको हमें मेल पर अपना बैंक डिटेल्स भेजना होगा. गूगल पे या फ़ोन पे पर हम पेमेंट नहीं भेजते हैं

3) 2 पुस्तकें ‘ययाति पुत्री माधवी’  और ‘लोकगीतों में राम कथा’ के सन्दर्भ में :
प्रकाशक किताबें अपनी रणनीति और व्यापार नीति के आधार पर अपने संपादको और सेल्स टीम के साथ परामर्श कर प्रकाशित करता है, न की किसी लेखक को खुश करने के लिए.
हर किताब का प्रकाशन लागत / धन मांगता है, जिसकी व्यवस्था प्रकाशक को करनी पड़ती हैं. 
आपकी किताबों को बंद बाज़ार में जहाँ कोई भी लाइब्रेरी खरीद नहीं है प्रकशित करने के लिए क्या प्रकाशक अपने आप को कहीं गिरवी रखे?
लेखक के पास अधिकार कोई नहीं है कि वो प्रकाशक पर किताबों को जल्दी प्रकाशित करने का दबाव बनाए.
आपने बार-बार माधवी की पाण्डुलिपि में बदलाव किया और कई बार किताब का कवर हमसे बनवाया और फिर हमें नया कवर बनाने के लिए कहा जिसके कारण किताब प्रकाशन देरी होती रही (इसका प्रमाण है हमारे पास).
आपने आज तक आपको 16/11/2021 के दिन भेजे गए मेल का जवाब हमें दिया नहीं है.
आपके इस व्यवहार को देखकर हम किताब के प्रकाशन पर पुनः विचार करना चाहते हैं.

4) आदरणीय लेखिका  महोदया, क्या आप सुप्रीम कोर्ट द्वारा मनोनीत कोई जज हैं?
जो आप बिना तथ्यों को जाने हमपर इलज़ाम लगाने बालों को सही बोल रही हैं? आप बार-बार हम पर झूठे आरोप भी लगा रही हैं .
IN FACT आप लेखकीय प्रतियों की गलत जानकारी लोगों को देकर खुद हमारे खिलाफ षड्यंत्रकारियों का साथ दे रही हैं.
क्या आप चाहती हैं की दूसरों की तरह हम भी सारा काम छोड़कर सड़क पर आ जाएँ और लोगों से झगड़ते रहें?
लेखिका महोदया विरोधियों और हमपर झूठे इलज़ाम लगाने बालों को जवाब देने के लिए हमारी लीगल टीम है और हम उनको जवाब न्यायपालिका में देंगे.
अतः आपसे निवेदन है की हमारे किसी भी मामले में आप हस्तक्षेप न करें.

5) अपना काम हमसे कराते समय आपने बेटा-बेटा बोलकर प्रेम से हमसे काम कराया और आज आपने इस प्रकार का धमकी भरा पत्र हमें भेजा. 
आपके आक्रोशित पत्र को पढने के बाद हम आपके साथ अपने प्रकाशक-लेखक के संबंधों पर पुनः  विचार करना चाहते हैं !!
 
**6) कृपया मेल पर ही हमसे बात कीजिए, हमारे निदेशक श्री जितेन्द्र पात्रो ऑफिसियल टूर पर रहने के कारण हो सकता कि आपका फ़ोन रिसीव करने में असमर्थ हों. 

Best Wishes & Warm Regards,
Team Legal & Compliance, 
Pralek Prakashan Samuh &
Redfox Literature,
Add. : Thane - 401303, Maharashtra & Badarpur, New Delhi.
Mobile No. : +91 7021263557

जितेंद्र पात्रो को भेजा गया राम एक कालजयी चेतना पुस्तक के बाबत शची मिश्र का प्रारुप 

On Sat, May 28, 2022 at 9:54 AM Shachi Mishra <mishra.shachi@gmail.com> wrote:

प्रिय जितेन्द्र जी

खूब खुश रहें।

आपके कहे अनुसार मैं राम एक कालजयी चेतना का प्रारूप भेज रही हूँ, जो कि पूरी तरह से संशोधित होकर तैयार है। आप अपने कहे अनुसार पारिश्रमिक के तौर पर 35000 रूपए एवं अनुबंध पत्र भेज दें। रूपए मुझे गूगल पे से मेरे एकमात्र फोन नं. 9850427137 पर भेजे तो मुझे सुविधा रहेगी।

* इसमें 30 आलेख हैं और कुल शब्द संख्या- 119689 है।

धन्यवाद 

शची मिश्र


दो शब्द

जै श्रीराम


                             “सिय राम मैं सब जग जानी,

                             करहु प्रनाम जोरि जुग पानी।।”

पाँच अगस्त दो हजार बीस के दिन करोड़ों लोगों की भाँति मेरा भी मन उल्लास से भरा हुआ था और मैं भी टेलीविजन पर श्रीराम जन्मभूमि के भूमि पूजन का प्रसारण देख रही थी। उसी समय मेरे मन में विचार उठा कि, श्रीराम के उदात्त मानवीय व्यक्तित्व पर आधुनिक युग में बहुत से सुधी जनों ने विविध विधाओं के माध्यम से अपने अपने नजरिये से श्रीराम के विषय में लिखा है उनमें से कुछ लोगों से आलेख लेकर मैं भी एक पुस्तक संपादित करूँ। समय के साथ विचार संकल्प बन गया और आरंभ हुआ विद्वानों से सहयोग का प्रयास। जब मैंने श्रीराम के विषय में विद्वानों के लेखन को पढ़ना आरंभ किया तो इतना समृद्ध लेखन मिला कि चाह कर भी इस छोटी सी पुस्तक में सबको समेट नहीं सकती थी। जिस उत्साह से प्रयास आरंभ किया था उसी उत्साह से विद्जनों ने सहयोग देना आरंभ किया। इसके साथ साथ मैं पूर्ववर्ती विद्वानों और अपने गुरुजनों के पूर्व प्रकाशित सामग्री को भी संकलित करती रही और अंततः श्रीराम की कृपा से मेरा संकल्प पूरा हुआ।

मैं इस संकलन में सहयोग करने वाले सभी मित्रों और गुरुजनों की आभारी हूँ।

          धन्यवाद।

          शची मिश्र


                                                भूमिका

आदि कवि महर्षि वाल्मीकि से लेकर अनगिनत मनीषियों और शास्त्रकारों ने अपने अपने ढंग से राम - कथा को रचा और जन मानस में बसाया। इन शास्त्रकारों से पूर्व विभिन्न लोक समुदायों ने भी अपने ढंग से राम को रचा, जाना और माना है। आज लोक में राम और उनकी जीवन गाथा से संबंधित हजारों कथाएँ और गीत लोगों के कंठ में विराजमान हैं।

श्रीराम हमारी संस्कृति के मुख्य स्तंभ हैं और इसी कारण उनकी कथाओं की जड़ें आदि काल से ही हमारे समाज में बहुत गहराई से पैठी हुई हैं। इसकी शाखाओं और उपशाखाओं की व्याप्ति छोटी मोटी विषमताओं के साथ देश देशांतर में फैली हुई हैं। रेवरेंड फादर कामिल बुल्के ने अपने शोध प्रबंध में प्रमाणित किया है की राम कथा केवल भारतीय कथा नहीं वरन यह अंतरराष्ट्रीय कथा है। राम कथा के इस विस्तार को फादर कामिल बुल्के ‘आदि कवि वाल्मीकि की दिग्विजय’ कहते हैं। फादर कामिल बुल्के के आकलन के अनुसार केवल भारत में पाठांतर सहित तीन सौ रामाख्यान के साथ साथ दो तीन हजार लोक कथाएँ और लोक गीत हैं। राम कथा के इसी विस्तार के कारण तुलसी दास को कहना पड़ा-

                   “नाना भाँति राम अवतारा,

                   रामायण सत कोटि अपरा।।” ( बाल काण्ड, राम चरित मानस)

वाल्मीकि रामायण के काव्य के सौन्दर्य, श्रीराम के उदात्त चरित्र, पारिवारिक और सामाजिक मर्यादाओं का ही प्रभाव था कि यह कथा धर्म, जाति, भाषा तथा क्षेत्र की सीमाओं को तोड़ कर भारत एवं एशिया के कोने कोने में फैल गई। मंगोलिया से लेकर चीन जापान होते हुए इंडोनेशिया का कोई ऐसा देश नहीं है जहाँ इस महाकाव्य की कथाएँ उन देशों की संस्कृति, लोक कथाओं तथा इतिहास के अविच्छिन्न अंग की भाँति फली फूली न हों।

राम कथा का प्रचार और प्रसार जिन कारणों से हुआ, उनमें सबसे प्रमुख है राम के चरित्र की उदात्त मानवता। अन्याय के विरुद्ध राम का संघर्ष, निर्बल वर्गों से आत्मीयता, आदर्शों के लिए बड़े बड़े त्याग के लिए उनकी तत्परता, पिता की प्रतिज्ञा की रक्षा के लिए कठिन वनवास, एकपत्नी व्रत, ऋषियों के लिए आदर, श्रद्धा और उनकी रक्षा का संकल्प, जंगली और आदिवासी जातियों में आत्मविश्वास भर कर उन्हें संगठित करके उनकी सहायता से आसुरी शक्तियों को पराजित करना, शरणागत के लिए दया के स्थान पर मैत्री की भावना, वीरता के साथ सौम्यता, कर्तव्य की कठोरता के साथ अद्भुत मृदुता इन्हीं कारणों से राम जनमानस के अराध्य बने और उन्हें एशिया का अद्वितीय मानव बना दिया। असंख्य विद्वानों, कवियों ने विगत दो हजार वर्षों में समय समय पर श्रीराम की कथा पर अपनी लेखनी चलाई। अपने काव्य को लोक ग्राह्य बनाने के लिए उन्होंने उसमें स्थानीय रीति रिवाजों, परंपराओं, लोक कथाओं आदि के साथ साथ अपनी कल्पना शक्ति का भी भरपूर उपयोग किया इसके लिए इन रचनाकारों ने मूल कथा में फेर बदल करने से भी परहेज नहीं किया। इस महाकाव्य का लोक में इतना प्रभाव पड़ा कि संस्कृत सहित समस्त भारतीय भाषाओं में राम कथा को लेकर काव्य एवं नाटक लिखे गए और इस रचना ने समस्त एशियाई देशों को एक सांस्कृतिक सूत्र में पिरोने के कार्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य किया है।

‘राम एक कालजयी चेतना’ में संकलित आलेखों में विद्वानों ने राम कथा और राम के महामानव चरित्र के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय ‘कुंठा, संत्रास्त, विघटन अनास्था के युग में तुलसी के राम’ में राम के आचरण के अनुसरण की आवश्यकता को महसूस करते हैं तो डॉ. कुबेरनाथ राय राम को पूर्ण अवतार मानते हैं क्योंकि मानुषी सीमाओं का वरण श्री रामचंद्र ही करते हैं। सुधीर चंद्र बेहुरा ने ओड़िया के प्रथम रामकाव्य ‘विचित्र रामायण’ में शामिल घटनाओं, विविध कथाओं की विचित्रता की और इंगित किया हैं। गुरुवर डॉ. रामचंद्र तिवारी जी ‘तुलसी के राम’ के अंतर्गत राम के सम्पूर्ण जीवन को रेखांकित करते हुए लिखते हैं, “भारतीय साहित्य में शायद ही कोई अन्य पात्र हो जिसका जीवन राम जितना संघर्षाकुल हो। यह संघर्ष जितना बाह्य है उतनी ही आंतरिक भी।” साथ ही राम के लोकवादी रूप, सर्वहारा वर्ग के दीनबंधुत्व के साथ साथ भालू बंदर जैसी जनजातियों को साथ लेकर अपना लक्ष्य पूरा करने की राम की क्षमता को भी इंगित किया और साथ साथ राम के ऊपर उठाए गए प्रश्नों पर राम विरोधियों को उत्तर भी देते चलते हैं। गुरुवर डॉ. भगवती प्रसाद सिंह ने कृष्ण की अनन्योपासिका मीराबाई के राम की निष्ठा पर प्रकाश डाला है।

इनके अतिरिक्त विभिन्न भारतीय भाषाओं में लिखे गए रामकथा से संबंधित आलेखों को भी मैंने इस संग्रह में शामिल किया है। इस क्रम में नव भारतीय भाषा में लिखे गए माधव कंदली के ‘सप्तकाण्ड रामायण’ के बारे में वर्नाली वैश्य जी ने लिखा है कि, माधव ने राम को लौकिक तथा मानवीय गुणों से संपृक्त करके उनके चरित्रांकन में विभिन्न पक्षों को उजागर किया है तथा असमिया समाज एवं जनजीवन का प्रसंगानुसार चित्रण किया है। कंदली के राम गुणवान, धैर्यवान,कृतज्ञ, सत्यवादी, चरित्रवान, क्रोध को जीतनेवाले, असूयासून्य हैं। कृतिवास ओझा द्वारा रचित बँगला रामकथा ‘राम पांचाली’ में श्रुति परंपरा, कल्पना तथा स्थानीय लोक बहुतायत से देखने को मिलता है। प्रो. टी. आर. भट्ट जी ने कन्नड रामकाव्य परंपरा में हिन्दू और जैन दोनों परंपराओं का उल्लेख किया है। डॉ एम शेषन ने अपने आलेख ‘आधुनिक तमिल साहित्य पर रामायण का प्रभाव’ में लोकगीतों, कविता, कल्लिकै – खण्ड काव्य में अहिल्या के शापमोचन की कथा पर प्रकाश डाला है। डॉ. वी. जयलक्ष्मी ने कंबन की रामकथा ‘इरामावतारम्’ राम और सीता को विष्णु और लक्ष्मी का अवतार बताया जो कि वियुक्त होकर जनक वाटिका में मिलते हैं। साथ ही कंबन की अहल्या के प्रति भी दृष्टि उदार है। वे इस प्रसंग में कई स्थानों पर वाल्मीकि से भिन्नता स्पष्ट दिखाई देती है। डॉ. शिब्बन कृष्ण रैना के ‘कश्मीरी काव्य में रामकथा’ का आधार तो वाल्मीकि की रामायण ही है किन्तु कई स्थानों जैसे- मंदोदरी का जन्म, सीता वनवास का कारण आदि प्रसंगों में कवि ने विलक्षण तथा मौलिक मान्यताओं की उद्घोषणा की है जैसे रावण द्वारा शिव से माँगी गई मक्केश्वर लिंग की कथा आदि। इस रचना पर स्थानीय प्रभाव इतना अधिक है कि रामकथा का पूरा कश्मीरीकरण हो गया है।

 डॉ.सर्वेश पाण्डे ने राम और रामराज्य की अवधरणा में लोकजीवन की महत्ता को रेखांकित किया है। उनके अनुसार, “लोक के मूल्यों से विहीन राजसत्ता को राम राज्य नहीं कहा जा सकता है।” डॉ. इंदीवर ने अपने आलेख ‘कब आए थे राम’ में ऐतिहासिक काल निर्धारण की विविध पद्धतियों द्वारा राम के समय का निर्धारण करने का प्रयास किया है। डॉ. रामकिशोर शर्मा के ‘अपभ्रंश महाकवि स्यंभू के राम और लक्ष्मण’ आलेख से ज्ञात होता है कि जैन मुनियों ने जैन धर्म की महत्ता को दिखाने के लिए रामकथा के पात्रों को अपने धर्म में घसीटा और मनमाना परिवर्तन किया। प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने राम कथा के विश्व विस्तार पर चर्चा की तो डॉ. हरिश्चंद्र मिश्र जी ने लोकगीतों की एक विधा सोहर में रामकथा के लौकिकीकरण पर चर्चा की है। डॉ. कृष्ण चंद्र लाल जी ने रसिक संप्रदाय की राम भक्ति पद्धति से जिसमें “राम सर्व लोक में सबसे रमण करते हैं, इसी रमणशीलता के कारण वे राम कहलाते हैं। सभी लोकों में वे ही पुरुष हैं बाकी सब स्त्री रूप हैं अतः राम सबके भोक्ता और पति हैं।” इनके राम समय समय पर विविध लीलाएँ करते हैं। प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार रामसागर शुक्ल ने राजा दशरथ और श्रीराम द्वारा लोकमत की प्रधानता को दिखाया है। डॉ. रामकिशोर शर्मा ने अपभ्रंश भाषा में लिखे गए जैन रामायण ‘पउमचरिउ’ में जैन धर्म की मान्यता के अनुसार लिखी गई कथा का विश्लेषण किया है। डॉ. आद्या प्रसाद सिंह ‘प्रदीप’ जी ने राम अनुज भरत के चरित्र और राम से अभिन्न संबंधों के बारे में लिखा है तो डॉ. इंदुशेखर ‘तत्पुरुष’ ने रामचरित मानस के आधार पर राम के निज सिद्धांतों के विषय में लिखा है। डॉ. सभापति मिश्र ने वाल्मीकि के राम के विषय में लिखा जिनका आचरण मानव के आचार पथ का सम्यक दिग्दर्शन करता है। डॉ. अनुज प्रताप सिंह ने ‘निराला की शक्ति पूजा’ के आधार पर राम के मानसिक उथल पुथल का विश्लेषण किया है। गुरुवर डॉ. रामदेव शुक्ल ने आचार्य केशवदास के रामचंद्रिका के आधार पर राम कथा पर प्रकाश डाला है जो एक काव्य नाटक के रूप में विचित्र कल्पनाओं और नाटकीयता से भरी हुई है। प्रो. राधेश्याम दूबे ने ‘कबीर के राम’ शीर्षक लेख में कबीर की भक्ति परंपरा के आधार पर राम का विवेचन किया। डॉ. प्रसाद ब्रह्मभट्ट ने गुजराती भाषा में रामकाव्य परंपरा का उल्लेख किया है। राम कथा ‘आनंद रामायण’ पर ओंकार नाथ द्विवेदी ने राम के दो रूपों का उल्लेख किया है, एक में वे दशरथ नंदन है तो दूसरे में अपने अलौकिक रूप में निर्गुण और सगुण ब्रह्म भी। डॉ. सरोज सिंह ने डॉ. नरेश मेहता की कृति ‘संशय की एक रात’ में मिथकों के आधार पर युग संदर्भों को पहचानने का प्रयास किया है जो राम कथा की पृष्ठभूमि में युद्ध की समस्या को उठाते हैं। इनके राम मानवीय विकल्पों के पुंज हैं, संशय और प्रश्नों के समूह है और शुभाशुभ कर्मों के भोक्ता भी हैं।

मैं पुनः उन सभी विद्वानों की आभारी हूँ जिन्होंने परिश्रम करके समय पर अपने आलेख उपलब्ध करवाए। मुझे आशा है कि आप सभी सुधीजनों को मेरा प्रयास और चयन पसंद आएगा जिसे पूरा करने में मैंने काफी परिश्रम किया है।

धन्यवाद।

शची मिश्र


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                                                                                                          पृष्ठ


१.    प्रपत्ति और संधर्ष के प्रतीक राम                राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय


२.    राम ही पूर्णावतार थे                              कुबेरनाथ राय


३.    तुलसी और राम राज्य के मूल्य                  सर्वेश पाण्डेय


४.    राम कब आए थे                                    इंदीवर


५.    तुलसी के राम                                       राम चंद्र तिवारी


६.    रहीम के राम                                        क्षमाशंकर पाण्डेय


७.    कन्नड़ रामायण                                      वी. वै. ललितम्बा


८.    कृतिवास एक संक्षिप्त आकलन                  शैलेन्द्र कुमार त्रिपाठी


९.    कंबरामायण की महत्ता                           वी. जयलक्ष्मी


१०. कशमीरी काव्य में रामकथा                   शिब्बन कृष्ण रैना


११. मीराबाई के रामभक्तिपरक पद               भगवती प्रसाद सिंह


१२. माधव कंदलि के ‘सप्तकाण्ड रामायण’ में


              चित्रित राम                                बर्नाली वैश्य


१३. ओड़िया का प्रथम राम काव्य सिद्धेश्वर


              का ‘विचित्र रामायण’                    सुधीर चंद्र बेहुरा


१४. संत एकनाथ का भावार्थ रामायण           सरजू प्रसाद मिश्र


१५. रामकथा कै मिति जग माहीं                   सूर्यप्रसाद दीक्षित


१६. सोहर लोकगीतों में रामकथा का


लौकिकीकरण                              हरिश्चंद्र श्रीवास्तव


१७. रसिक राम भक्तों के राम                       कृष्णचंद्र लाल


१८. तुलसीदास और राम राज्य के मूल्य           सर्वेश पाण्डेय


१९. लोकतंत्र और राम राज्य                        राम सागर शुक्ल


२०. अपभ्रंश कवि स्वयंभू के राम और लक्ष्मण  राम किशोर शर्मा


२१. भरत महा महिमा सुखकारी                             आद्याप्रसाद सिंह ‘प्रदीप’


२२. आनंद रामायण के राम                          ओंकार नाथ द्विवेदी


२३. राम का निज सिद्धांत और सामाजिक


समरसता की दृष्टि                        इंदुशेखर ‘तत्पुरुष’


२४. वाल्मीकि के राम                                  सभापति मिश्र


 २५. सेनापति का राम काव्य                        रामानंद शर्मा


२६. राम की शक्तिपूजा                                अनुज प्रताप सिंह


२७. ‘रामचंद्रिका’ एक विलक्षण प्रयोग            रामदेव शुक्ल


२८. कबीर के राम                                      राधेश्याम दूबे


२९. गुजराती भाषा साहित्य में राम चरित्र      प्रसाद ब्रह्मभट्ट


३०. संशय की एक रात                                सरोज सिंह


अब आप लोग ख़ुद देखें और समझें कि जितेंद्र पात्रो किस तरह हर किसी हिंदी लेखक के साथ छल-कपट और शोषण पर आमादा है। वह सिर्फ़ और सिर्फ़ लेखकों का शोषण और अपमान करना ही जानता है। कुछ और नहीं। जल्दी ही जितेंद्र पात्रो के काले कारनामों के कुछ और हिस्सों से परिचित करवाऊंगा। 

जितेंद्र पात्रो का माफ़ीनामा 


कृपया इस लिंक को भी पढ़ें :


1 . कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर को ले कर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की झांसा कथा का जायजा 

2 .  प्रलेक के प्रताप का जखीरा और कीड़ों की तरह रेंगते रीढ़हीन लेखकों का कोर्निश बजाना देखिए 

3 . जितेंद्र पात्रो , प्रलेक प्रकाशन और उन का फ्राड पुराण 

4 . योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि पर बट्टा लगा रही है

5 . तो जितेंद्र पात्रो अब साइबर सेल के मार्फ़त पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे

6 . लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है , पैंट गीली हो जाती है , यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है

7 . जितेंद्र पात्रो , ज्योति कुमारी और लीगल नोटिस की गीदड़ भभकी का काला खेल 

8 . माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब शची मिश्र की चुनौती , अनुबंध रद्द कर सभी किताबें वापस ले लीं 

9 . कुंठा , जहालत और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है