Wednesday, 24 June 2020

आपदा को अवसर में बदलने का मतलब व्यवसाय का नया प्राचीर खड़ा करना नहीं होता रामदेव जी !



आपदा को अवसर में बदलने में चूक गए रामदेव। वैसे भी अब वह चूकते-चूकते , पूरी तरह चुक गए हैं। व्यक्तिगत संपर्कों तथा विज्ञापन के बूते मीडिया खरीद लेना , और बात है लेकिन यह भारत है। भारत के लोग राम को भी कसौटी पर कस लेते हैं और गांधी को भी। मन करता है तो पूज लेते हैं। मन करता है तो गरिया देते हैं। फिर रामदेव के योग को पूज भी लेते हैं। लेकिन आयुर्वेद और स्वदेशी को बेच कर , इस के कंधे पर बैठ कर व्यापार और व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा करने के लिए रामदेव सर्वदा निंदित होते रहे हैं। होते रहेंगे। वैसे भी रामदेव के प्रोडक्ट की विश्वसनीयता सर्वदा संदिग्ध रही है। तिस पर भारी दाम। गुणवत्ता और शुद्धता के नकली दावों के बूते आटा , दाल , देशी घी , बिस्कुट आदि के दाम भी बाज़ार में आसमान पर पहुंचाने के लिए रामदेव ही ज़िम्मेदार हैं। आयुर्वेदिक दवाओं के दाम भी आसमान पर रामदेव ने ही पहुंचाया। यह तथ्य भी हम कैसे भूल सकते हैं भला। इतना कि आयुर्वेदिक दवाएं भी आम आदमी की पहुंच से निरंतर दूर होती गई हैं। अपने व्यवसाय की प्राचीर में कितनी ही बार होम कर , आयुर्वेद को भी भस्म कर चुके हैं रामदेव।

हां , आचार्य पातंजलि के योग को ज़रूर उन्हों ने बाज़ार के कंधे पर बिठा कर ही सही वर्तमान में प्रासंगिक कर उत्कर्ष पर पहुंचाया है। काश कि योग की आड़ में रामदेव ने अरबों-खरबों के व्यवसाय का सपना न बुना होता तो उन के योग की आभा , उन्हें बहुत प्रतिष्ठित किए रहती। लेकिन उन की यह योग की आभा , उन के व्यवसाय के प्राचीर में लुप्त हो चुकी है। तिस पर उन के शार्ट कट , उन का बड़बोलापन , उन्हें निरंतर धूमिल करते गए हैं। कोरोना काल में , कोरोनिल लांच करने का उन का व्यावसायिक दांव उन्हें वैसा ही घाव दे गया है जैसा घाव कभी उन्हें दिल्ली के रामलीला मैदान में औरतों का सलवार , समीज पहन कर छुपने और भागने पर मिला था। कि उन से चिढ़े हुए लोग उन्हें सलवारी बाबा नाम से संबोधित करने लगे। यह सलवारी बाबा का घाव जैसे जीवन भर के लिए उन के ऊपर दाग और घाव बन कर चिपका रहेगा , वैसे ही यह कोरोनिल का घाव भी रामदेव पर दाग बन कर जीवन भर चिपका रहेगा।

बहुत संभव है , कोरोनिल बाज़ार में अब लांच भी न हो पाए। खुदा न खास्ता कोरोनिल लांच हुआ भी तो उन के उपभोक्ता कोरोनिल को शायद हाथ भी न लगाएं। कैंसर ठीक करने का थोथा दावा करना और बात थी। कोरोना के लिए कोरोनिल बनाना भी वही बात है। लेकिन यह पैसा बड़ी हानिकारक चीज़ है। चिमटे से भी छू लेने पर भी बीमार बना देता है। सत्ता हो या पैसा , बड़ी साधना मांगता है। रामदेव जी , वर्तमान में योग को जो काया दी है आप ने , वह दुर्लभ है। हो सके तो आप फिर से उसी योग की दुनिया में , सिर्फ योग की दुनिया में रहिए। व्यावसायिक दुनिया से छुट्टी ले लीजिए। दुनिया आप को फिर से सलाम करेगी। अभी तो धिक्कार रही है। बचिए इस धिक्कार से। आयुर्वेद के पाखंड से बचिए।

आपदा को अवसर में बदलने का मतलब व्यवसाय का नया प्राचीर खड़ा करना नहीं होता रामदेव जी ! कोरोनिल का पाखंड खड़ा करना तो बिलकुल नहीं। बहुत बदनाम कर चुके आप आयुर्वेद को। अब और मत कीजिए। आयुर्वेद को लोग संजीवनी की तरह देखते और जानते हैं। किसी कोरोनिल किट के जाल में बहेलिया बन कर आयुर्वेद को मत फंसाइए। वैसे भी भारत में भारतीय संस्कृति और मान्यताओं से घृणा करने वालों की एक लंबी फ़ौज है। उस फ़ौज को बहुत ताकत आप के इस पाखंड ने दे दी है। पूर्व में भी आप ने बहुत से झूठ बोले हैं , बहुतेरी गलतियां की हैं। क़ानून से भी खेले हैं आप। लेकिन तब कांग्रेस के अकूत पाप और आप के योग के पुण्य में सब कुछ लोग भूलते रहे हैं। लेकिन लोगों के भूलने-भुलाने की भी एक सीमा होती है। लोगों के धैर्य की अब और परीक्षा मत लीजिए। योग को आप ने गरिमा दी है। योग के मार्फत करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य लाभ दे कर आप ने बहुत पुण्य कमाए हैं। उन्हें व्यावसायिक लाभ के गटर में अब और मत डुबाइए।

Saturday, 20 June 2020

उद्योगपतियों की लूटपाट , चीन के साथ कम्युनिस्टों की वफादारी और सरहद पर लड़ती सेना



भारत के उद्योगपतियों ने अगर देश के अपने उपभोक्ताओं के साथ गद्दारी न की होती , उपभोक्ताओं को सिर्फ लूट का कारखाना न माना होता और बनाया होता तो चीनी सामानों के बहाने हर साल देश का अरबो रुपए चीन की तिजोरी में न जाता कभी। जब तक देश के उद्योगपति लूट-पाट का कारखाना बंद कर , अपने उपभोक्ताओं को चीन से भी सस्ता लेकिन टिकाऊ सामान नहीं उपलब्ध नहीं करवाते , दवा हो या इलेक्ट्रानिक या प्लास्टिक आदि सामान , आप चीन को व्यवासायिक स्तर पर नहीं पीट सकते।

जब तक भारत के कम्युनिस्टों की वफादारी चीन के साथ रहेगी , चीन को विभीषण सुख मिलता रहेगा। एक नैतिक ताक़त भी। नहीं , हम कांग्रेस की बात नहीं कर रहे। एक मृतप्राय पार्टी का एक लतीफा कुमार की देश में कोई हैसियत नहीं रह गई है। कांग्रेस को वैसे भी सत्ता से इतना इश्क है कि वह युद्ध और प्यार में सब कुछ जायज है , मुहावरे को बारंबार सिद्ध करती हुई पतन के पाताल लोक में प्रविष्ट हो चुकी है। फिर आप कहेंगे कि कम्युनिस्टों की हालत तो कांग्रेस से भी गई गुज़री है। बिलकुल ठीक बात है।

कम्युनिस्टों की हालत चुनावी लोकतंत्र में प्राय: समाप्त है। संसदीय लोकतंत्र में उन का यक़ीन भी नहीं है। तानाशाही और हिंसा में यकीन रखते हैं वह। लेकिन कम्युनिस्टों का जो सांस्कृतिक , पत्रकारीय और साहित्यिक फ्रंट है , वह अफवाह फ़ैलाने में , निगेटिव नैरेटिव रचने और निगेटिव माहौल बनाने में बहुत मज़बूत है। तो इस मोर्चे पर मोदी सरकार पूरी तरह फिसड्डी है। नेहरू भी इस मोर्चे पर फिसड्डी थे। 1962 में चीन से पराजित होने के बाद कम्युनिस्टों की तरफ अपनी भृकुटि टेढ़ी की थी पर जल्दी ही वह विदा हो गए। फिर इंदिरा गांधी ने संघियों से लड़ने के लिए कम्युनिस्टों को अपना बगल बच्चा बना कर आहिस्ता-आहिस्ता कांग्रेस के पेरोल पर रख लिया।

इंदिरा मंत्रिमंडल में तत्कालीन शिक्षा मंत्री नुरुल हसन ने इस में मुख्य भूमिका अदा की। सभी शिक्षण संस्थाओं , अकादमियों , समितियों में वामपंथियों की भर्ती युद्धस्तर पर की। जे एन यू ,रोमिला थापर , इरफ़ान हबीब , रामचंद्र गुहा आदि इसी दौर की पैदावार हैं। नफ़रत , हिंसा , और तानाशाही का बिरवा रोप कर भारतीय संस्कृति को रौंदने और निगेटिव बनाने का खेल शुरू हुआ , जो आज भी मुसलसल जारी है।

राजीव गांधी के कार्यकाल में अर्जुन सिंह ने इन निगेटिव तत्वों को खुल कर पैसा देना शुरू किया। इस के बाद ही से कम्युनिस्ट लेखक , इतिहासकार , संस्कृतिकर्मी खुल कर कांग्रेस की कुत्तागिरी करने लगे। तरुण तेजपाल , बहल , प्रणव रॉय , विनोद दुआ , बरखा दत्त , राजदीप सरदेसाई आदि की नागफनी सामने आई। लेखकों में , संस्कृतिकर्मियों में खूब पैसा बंटा। सरकारी कुर्सियों पर बैठाए गए। इनाम , इकराम , विदेश यात्राएं और सत्ता सुख का प्रसाद बांटा गया। अब यह लोग पूरी तरह अल्सेशियन बन चुके थे। माइंड सेट तो था ही सेक्यूलरिज्म का एक पट्टा भी गले में पहना दिया कांग्रेस ने। क्विंट , वायर , कारवा जैसी चीज़ें भी इसी बीच हुईं। चीन की ऊष्मा भी , वामपंथ के नाम पर मिलने लगी। तभी तो नक्सली हिंसा में मारे जाने वाले सुरक्षा बलों के जवानों के प्रति श्रद्धांजलि नहीं , जश्न मनाने लगे यह लोग। हर घर से अफजल निकालने का नारा लगाते-लगाते भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला तक आ गए। बात यहीं कहां रुकी ?

देश के हर पॉजिटिव काम में नुक्स निकालने का ठेका ले लिया इन लोगों ने। सेना को बलात्कारी बताने लगे। चुनाव आयोग पर ई वी एम का दाग लगाने लगे। सी बी आई को नचाने लगे। सुप्रीम कोर्ट को भी अपनी जद में लेने की कोशिश की। जे एन यू , जामिया मिलिया करते-करते शाहीन बाग़ करने लगे। सी ए ए के बहाने देश जलाने लगे। कोरोना के बहाने मज़दूरों को भड़काने और भगाने लगे। जनविद्रोह की पूरी तैयारी थी। पर गर्भपात हो गया , इस जनविद्रोह का। अब चीन का जाल सामने है तो इन की फिर बल्ले-बल्ले है। एक से एक खुराफाती सवाल है। अजब-गज़ब सूचनाएं। चीन को नहीं , मोदी से नफरत के बहाने देश को घेरने की सारी कवायद आप के सामने है। समझना हो समझिए। नहीं , आंख बंद कर सो जाइए। विभीषण की सहिष्णुता का सुख लीजिए। चीन की चाटुकारिता में घुटने टेके कम्युनिस्टों की बलैया लीजिए !

इस लिए भी कि किसी भी जंग में सरहद पर भले सेना लड़ती है लेकिन भीतर से समूचा देश लड़ता है। सेना के साथ खड़ा ही नहीं , उस पर अटूट विशवास भी करता है। सैनिक जानता है कि हमारे पीछे पूरा देश , पूरी मनुष्यता खड़ी है। हम पर कुछ आंच आई भी तो हमारा देश देख लेगा। उस का मनोबल बढ़ा रहता है। लेकिन जब अफजल के पैरोकार , विभीषण सुख देने को लालायित लोग सेना पर ही सौ सवाल ले कर पिल पड़ें तो ?

Wednesday, 17 June 2020

कोरोना और चीनी एक साथ मिलें तो पहले चीनी को मारिए


कुछ विघ्नसंतोषी लोग चीन सीमा पर 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर ऐसे परोस रहे हैं गोया मारे खुशी के हलवा परोस रहे हों। यह कमीने लोग लेकिन साथ यह भी बताना भूल जा रहे हैं कि चीन के भी 43 सैनिक मारे गए हैं। 43 पर 20 का नंबर क्यों भूल रहे हैं यह लोग ? आप खुद समझदार हैं। ज़्यादा समझ सकते हैं।

जान लीजिए चीन डरा हुआ है। भारत बीस है , चीन नहीं। सैनिक मोर्चे पर भी और कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत चीन पर भारी है। रहेगा। भारत में बसे चीन के समर्थक कुत्तों को यह बात समय रहते समझ लेना चाहिए। यह भी कि इन छ सालों में सिर्फ कूटनीतिक सफलता ही नहीं मिली है भारत को , सैनिक मोर्चों पर भी समृद्ध हुआ है भारत। नहीं जानते लोग तो अब से जान लें कोई हर्ज नहीं है। यह कि अटल बिहारी वाजपेयी ने तमाम खतरे और पाबंदियां भुगतते हुए भी परमाणु विस्फोट किया था तो पाकिस्तान जैसे मरगिल्ले देश के लिए नहीं , चीन के लिए किया था। और कि नरेंद्र मोदी सरकार ने राफेल सौदा किया तो कुत्ते पाकिस्तान के लिए नहीं , कमीने चीन के लिए किया है। वह चीन ही था , पाकिस्तान नहीं , जिस ने भारत में राफेल सौदे पर हल्ला-गुल्ला और कोहराम मचाने की साज़िश अपने पालतू वामपंथी कुत्तों के मार्फत करवाया था।

निश्चिंत रहिए कोरोना में अगर मोदी सरकार कुछ अव्यवस्थित दिखी तो सिर्फ इस लिए कि मोदी का सारा ध्यान बिलकुल इसी समय चीन पर केंद्रित हो गया था। यह बात मैं ने पहले भी लिखी थी। फिर दुहरा रहा हूं कि वामपंथियों ने ही मज़दूरों को कोरोना काल में भड़का कर जन विद्रोह में तब्दील किया। मंशा गृह-युद्ध फ़ैलाने की थी। और कि यह सब चीन के इशारे पर हुआ। भूखे पेट , नंगे पांव / कैसे पहुंचा अपने गांव / हम याद रखेंगे / इस का हिसाब रखेंगे। जैसे गीत इसी रणनीति के तहत बोए गए हैं। संयोग ही है कि मज़दूरों का गुस्सा जनविद्रोह में तब्दील हो कर भी शोला नहीं बन पाया। मज़दूर अब सामान्य होने लगे हैं। अपने काम पर लौटने लगे हैं।

पंजाब में लौट रहे मज़दूरों का स्वागत हो रहा है तो चीनी सरहद पर चीनी सैनिकों की सनक उतारी जा रही है। यह सब अचानक नहीं हुआ है। कोरोना भले अचानक आया है पर चीनी चालबाजी तो अरसे से जारी है। भारत में सिर्फ पाकिस्तान समर्थक ही नहीं चीन समर्थक भी बहुतेरे हैं। कदम-कदम पर थाली में छेद करने के अभ्यस्त भी बहुतेरे हैं। सोशल मीडिया में कुछ टिप्पणियां देख कर लगता है कि पराजित भारत देखने की लालसा और अभिलाषा कितनी तीव्र है कुछ लोगों की। दुर्भाग्य कि उन की इस अभिलाषा और लालसा की प्यास बुझने वाली नहीं है। एक पुरानी कहावत की याद करते हुए कहना चाहता हूं कि कोरोना और चीनी एक साथ मिलें तो पहले चीनी को मारिए , कोरोना को बाद में देख लीजिएगा। नरेंद्र मोदी सरकार ने यही किया है। इस कहावत को चरितार्थ किया है। सवाल पूछना , सतर्क रहना बहुत ज़रूरी है। पर बाक़ी तय तो आप को ही करना है कि आप भारत के साथ हैं कि चीन के साथ।