दयानंद पांडेय
जितेंद्र पात्रो |
जितेंद्र पात्रो प्रलेक प्रकाशन से लोगों की 10 -20 किताबों का संस्करण ही नहीं छापते लोगों को भावनात्मक रुप से दोहन भी करते हैं। शोषण भी करते हैं। आर्थिक , दैहिक और भावनात्मक शोषण। मतलब न सधे तो गाली-गलौज , धमकी , और क़ानूनी नोटिस देना , अफवाह फैलाना , फर्जी सूचना दे कर लोगों को परेशान करना , साइबर सेल में मुक़दमा करना , 112 नंबर पर फोन कर पुलिस बुला कर लोगों को डराना आदि जितेंद्र पात्रो का नियमित शग़ल है। जाने कितनों से , कितनी बार। लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है। यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है। किसी लेखक से लाख-दो लाख , करोड़-डेढ़ करोड़ रुपए हर्जाने का मांग लेना तो इस पात्रो का चुटकी बजाने का खेल है। नीचे की नोटिसों में खुद पढ़ लीजिए। पढ़ लीजिए कि जो इस की बीन पर नहीं नाचा , उसे कैसे तो हड़काता है। करोड़-डेढ़ करोड़ का इस का घाटा हो जाता है। दिलचस्प तो यह कि जिस का कोई मान नहीं , उस की कभी लाखों की , कभी करोड़ों की मानहानि हो जाती है। होती ही रहती है। बिलो द बेल्ट आरोप लगाना , अपनी पत्नी को हथियार बनाना शग़ल है इस आदमी का। दूसरों की पत्नी पर भी बिलो डी बेल्ट आरोप लगाने में नो हिचक। राकेश भारती की पत्नी पर आरोप नीचे पढ़ सकते हैं। राकेश भारती की पत्नी यूक्रेनी हैं। कैंसर होने के नाम पर लोगों का आर्थिक दोहन भी करना आम बात है जितेंद्र पात्रो के लिए।
पर अभी जितेंद्र पात्रो की चंपूगिरी में उद्धत लेखकों को यह बात समझ नहीं आएगी। साल-छ महीने में ज़रुर आ जाएगी। अभी इस लिए नहीं आएगी क्यों कि अभी तो वह लोगों को सब्जबाग दिखा कर अतिशय विनम्रता दिखा कर , चरणों में बैठ कर , अपना माथा किसी के चरणों में रख कर वह लोगों के दिल में अपनी जगह बनाने की कला का प्रदर्शन कर रहे होंगे। मैं भी जितेंद्र पात्रो के इसी अभिनय और ओढ़ी हुई विनम्रता के झांसे में आ गया था। वह अपना सिर मेरे चरणों में रख देता था। मैं ब्राह्मण आदमी करता भी भला तो क्या करता। पिघल गया। इस धूर्त के झांसे में आ गया। वसीम बरेलवी का वह शेर है न :
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता
कैंसर बता कर किसी से लाखो रुपए का दोहन कर सकते हैं जितेंद्र पात्रो और फिर कैंसर की जगह एच बी - 1 सी की रिपोर्ट भेज कर आंख में धूल झोंक सकते हैं। लोग जानते हैं कि एच बी - 1 सी रिपोर्ट शुगर की रिपोर्ट होती है। ऐसी अनेक कहानियां हैं जितेंद्र पात्रो की।
रायपुर में रहने वाले रमेश रिपु ने बताया है कि प्रलेक प्रकाशन से मेरी 4 किताबों का अनुबंध हुआ था। जिसमें से दो किताबें प्रकाशित हुई। रेड फायर और इश्क की हरी पत्तियां । रेड हंट और दादर पुल की हसीना किताब प्रकाशित नहीं हुई है । लेकिन प्रलेक प्रकाशन के कैटलॉग में मेरी इन किताबों का जिक्र है। दिलचस्प यह भी है कि रेड हंट और दादर पुल की हसीना किताबों की पांडुलिपि प्रलेक प्रकाशन को नहीं दी गई है।
प्रयाग के रहने वाले एक डी टी पी आपरेटर ने दिल्ली में प्रलेक प्रकाशन का टाइपिंग का काम किया। 80 हज़ार रुपए का काम किया। लेकिन प्रलेक के जितेंद्र पात्रो ने एक पैसा नहीं दिया। दिल्ली छोड़ कर प्रयाग वापस चला गया वह डी पी टी आपरेटर। लेकिन फ़ोन कर , संदेश भेज पैसा मांगता रहा। फ़ोन पर जितेंद्र पात्रो ने उसे ब्लाक कर दिया। तो उस ने फेसबुक पर अपनी व्यथा लिखी। लिखा कि मेरा 80 हज़ार रुपए दे दीजिए। जितेंद्र पात्रो ने साइबर सेल में मुक़दमा लिखवा दिया। उस डी टी पी आपरेटर को पुलिस थाने ले आई। जितेंद्र पात्रो ने कहा कि तुम्हारे यह सब लिखने से मेरी मानहानि हुई है। मानहानि के एवज में मुझे दो लाख रुपए दो। पुलिस को भी जितेंद्र पात्रो ने पटा लिया था।
पुलिस उस डी टी पी आपरेटर पर दबाव बनाती रही कि दो लाख रुपए देने के लिए लिखित आश्वासन दे दो। डी टी आपरटेर के मामा प्रयाग में वकील हैं। जब उन्हें यह सब पता चला तो वह पंद्रह-बीस वकीलों के साथ थाने पहुंच गए। जितेंद्र पात्रो और उस के साथ खड़ी पुलिस के हाथ-पांव फूल गए। उस डी टी पी आपरेटर को पुलिस को छोड़ना पड़ गया। जितेंद्र पात्रो को बेइज़्ज़त हो कर लौटना पड़ा। लेकिन उस डी टी पी आपरेटर को उस की मेहनत का पैसा अभी तक नहीं मिला। ऐसे जाने कितने डी टी पी आपरेटर , पेज डिजाइन करने वाले , किताबों के कवर बनाने वालों का पैसा जितेंद्र पात्रो ने दबा रखा है। जो भी मुंह खोलता है , उसे धमकी , गाली। लीगल नोटिस और पुलिस का सामना करना पड़ता है। ऐसे कई लोगों के डिटेल मेरे पास सप्रमाण हैं। समय आने पर पूरा चार्ट प्रस्तुत करुंगा। लेकिन अपनी रचनाओं में क्रांति की मशाल जलाने वाले लेखकों की आंख यहां इस बिंदु पर मुद जाती है।
फिर लेखकों के साथ भी जितेंद्र पात्रो का यह धमकी और लीगल नोटिस राग चलता रहता है। रीढ़हीन और कायर लेखक डर जाता है। धमकियों से। लीगल नोटिस देखते ही उस की पैंट गीली हो जाती है। चुप हो जाता है। सोचिए कि यह आदमी मुंबई में रहता है। इस का मुख्यालय मुंबई में है। पर लीगल नोटिस यह दिल्ली के पते वाले वकीलों से भिजवाता है।
राकेश भारती बिहार के रहने वाले हैं। यूक्रेन में रहते हैं। जितेंद्र पात्रो ने उन्हें भी इसी धमकी और लीगल नोटिस के हथियार से डराना चाहा। लेकिन राकेश भारती ने जितेंद्र पात्रो की इस लीगल नोटिस और धमकी को ठेंगे पर ले लिया। आप देखिए जितेंद्र पात्रो की राकेश भारती को लीगल नोटिस और धमकी भरा पत्र। डेढ़ लाख रुपए की मांग भरी हेकड़ी। इतना ही नहीं , राकेश भारती के बहाने एक और लेखक को भी जितेंद्र पात्रो ने अर्दब में लेने की कोशिश की है। और भी लेखकों पर बेवकूफी के आरोप। ऐसे सिलसिलों की बरसात है जितेंद्र पात्रो के खाते में। बस पढ़ते रहिए और इस प्री मानसून का आनंद लेते रहिए।
मन करे तो खड़े होइए इस धूर्त प्रकाशक के खिलाफ। नहीं इस धूर्त की चंपूगिरी और अपनी पैंट गीली करने का विकल्प तो आप के पास सर्वदा ही उपस्थित है। यह आप का अपना विवेक है। पर अनायास ही मुझे मार्टिन नीमोलर की वे पंक्तियां याद आने लगीं जिन्हें शायद ब्रैख्त ने भी दुहराया है-
जर्मनी में नाजी पहले-पहल
कम्यूनिस्टों के लिए आए ....
मैं चुप रहा/क्योंकि मैं कम्यूनिस्ट नहीं था
फिर वे आए यहूदियों के लिए
मैं फिर चुप रहा क्योंकि मैं यहूदी भी नहीं था
फिर वे ट्रेड-यूनियनों के लिए आए
मैं फिर कुछ नहीं बोला, क्योंकि मैं तो ट्रेड-यूनियनी भी नहीं था
फिर वे कैथोलिको के लिए आए
मैं चूंकि प्रोटेस्टेंट था इसलिए इस बार भी चुप रहा
और अब जब वे मेरे लिए आए
तो किसी के लिए भी बोलने वाला बचा ही कौन था ?
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Team Legal,
Pralek Prakashan Pvt. Ltd.
602, I/3, Global City, VIrar (West), Thane
Mumbai
मान्यवर !
मुझें आपकी उपरोक्त मेल में अपना नाम देख कर अत्यंत हैरानी एवं छोभ हुआ हैं . जहां तक मैंने इसे पढ़ा और समझा ये आपके प्रतिष्ठित प्रकाशन एवं लेखक श्री राकेश शंकर भारतीय के मध्य हुआ कोई व्यतिगत/व्यवसायिक विवाद हैं . जिस में मेरी न तो कोई भी व्यक्तिगत/व्यवसायिक भूमिका हैं और न ही मैं इस विवाद का कोई पछ हूँ तो फिर इस विवाद के सन्दर्भ में मेरे नाम को उल्लेखित करने की क्या वजह हैं ..?
आप या श्री राकेश शंकर भारतीय के बीच में मेरे या मेरे काम में सबंध में मेरी अनुपस्थिति एवं मेरी अनिभिज्ञता में क्या बात / डील हुयी ये आप दोनों लोगों के मध्य का विषय है और न ही मैं इस सबंध में जानना चाहता हूँ . और वैसे भी बगैर प्रमाण किसी भी बात पर सहज विश्वास करना उचित प्रतीत नहीं होता हैं .
अत: मैं आपके प्रतिष्ठित प्रकाशन एवं श्री राकेश शंकर भारतीय को स्पस्ट शब्दों में ये बता देना चाहता हूँ की भविष्य में आप अपने वाद/विवाद में मेरे नाम का कोई सन्दर्भ या उपयोग न करें अन्यथा की स्थिति में मुझे विधिक कार्यवाही के लियें विवश होना पड़ेगा .
साथ ही मेरा आप से अनुरोध हैं की पूर्व में मेरे द्वारा आपको प्रेषित की गयी बीस कहनियों का आप कोई भी एवं किसी भी प्रकार का उपयोग बगैर मेरी सहमती के कदापि न करें . ये अनुचित एवं गैर-क़ानूनी माना जायेगा .
प्रलेक प्रकाशन की कोटिश: प्रगति की शुभकमानाओं सहित .
“रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार.
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार.”
मंगल, 8 सित॰ 2020 को 6:07 pm बजे को Pralek Prakashan <pralek.prakashan@gmail.com> ने लिखा:आदरणीय लेखक महोदय, Rakesh Shankar Bhartiआपकी अनुमति से प्रलेक प्रकाशन ने आपका अपन्यास "मैं तेरे इंतजार में"को प्रकाशित किया थाIआपने अपने TRP के लिए तथा अपने प्रमोशन के लिए प्रलेक प्रकाशन का इस्तेमाल कियाI आपने अपना परिचय और पता भी हमें झूठा दिया और यह भी बात को छुपाया कि आप जेल में भी आप पर लगे आपराधिक मामले में जा चुके हैं. जो आपने खुद बाद में कबूला थाIआपने युक्रेन का पता न देकर हमें आपका पुराना पता दिया है जो गैरकानूनी हैIआपने हमें आपके मित्र लेखकों को पैसे देने के लिए मजबूर किया तथा उनकी नई पांडुलिपि दिलाने का वादा करके उन्हें हमसे पैसे भी दिलायेIआपने मृदुल कपिल जी के एडवांस रॉयल्टी के पैसों को आपने अपने खाते में ट्रान्सफर करने के लिए कहा था, जिसका हमने विरोध भी किया थाI इससे आपकी आपराधिक मनसा के हमें दर्शन हो गएIयही कारण था की जिसके कारण आदरणीय मृदुल कपिल जी के साथ हमारी बात नहीं बनीI"आदरणीय सुभाष अखिल जी" और "किन्नर गुरु माई मनीषा महंत जी" को आपने प्रलेक प्रकाशन से एडवांस रॉयल्टी दिलाई इस वादे के साथ कि आप इन्हें प्रलेक प्रकाशन से प्रकाशित करने के लिए हमें इनकी नाई पांडुलिपि मई,2020 में दिलाएंगे,परन्तु अब तक "माई मनीषा महंत जी" के किताब की पांडुलिपि हमें नहीं मिली. इनको एडवांस रोयल्टी दी जा चुकी हैIहमें आदरणीय सुभाष अखिल जी की पांडुलिपि मिल गई है और "माई मनीषा महंत" का कहना है कि उन्होंने लिखना छोड़ दिया हैIराकेश जी ये किस प्रकार का खेल आप प्रकाशकों के साथ खेलते हैं?आपने हर चीज का अप्रूवल हमें दिया है, उसके पश्चात हमने आपकी किताब को Ebook और पेपरबेक में प्रकाशित किया थाI आपने स्वयं हर page की प्रूफरीडिंग किया है तथा करेक्शन भी किया हैIआपने पहले संस्करण के लिए अनुबंध की शर्तों को मेल द्वारा बदला था, वो भी बिना एडवांस रॉयल्टी के तथा बिना किसी अनुबंध के पहले संस्करण का सर्वाधिकार प्रिंट एवं डिजिटल हमें दिया थाI (via mail)हमारे हर लेखक को फ़ोन करके आपने हमारे प्रकाशन और हमारे प्रकाशक महोदय (श्री जितेंद्र पात्रो जी) के विषय में झूठी बातें बोलकर बदनाम किया है एवं अब भी आप यही कर रहे हैंIएक तरफ से आपने लेखकों की गुटबाज़ी करके हमें बदनाम किया तथा हमारा इस्तेमाल किया इसके गवाह आदरणीय नीलोत्पल रमेश जी, आदरणीय बिक्रम सिंह जी, आदरणीय मुक्ति शर्मा जी एवं आदरणीय महेंद्र भीष्म जी हैंIआपने श्री बिक्रम सिंह जी तथा श्री नीलोत्पल रमेश जी को फ़ोन करके आपको प्रलेक प्रकाशन से Rs.5000 रूपये दिलाने को कहा.(अनुबंध में एडवांस रॉयल्टी की कोई भी बात नहीं की गई हैI)पैसे न मिलने के कारण आपने हमें बदनाम करने के लिए फेसबुक तथा रात में लेखकों को फ़ोन करने का मोर्चा खोल दिया एवं हमारे प्रकाशन की छवि को ख़राब करने की कोशिश कियाI आपने आपके द्वारा भेजी हुई मेल पर अनुबंध अप्रूवल की शर्तों को तोडा हैIआप हमेशा हमें आधी रात में आपकी धर्मपत्नी की तस्वीरों को भेजकर jpg एवं पोस्टर बनाने के लिए बोलते थे, कितने शर्म की बात है कि कोई लेखक इस हद तक गिरकर किसी प्रकाशक को इस काम के लिए भी मजबूर कर सकता हैI यह बड़े शर्म की बात हैIराकेश जी इस बजह से आपके और हमारे बीच संबंध बिगड़े हैंIकोई भी साहित्यकार अपनी धर्मपत्नी की तस्वीर किसी को आधी रात को तो छोडिये किसी कारण से भी किसी प्रकाशक को नहीं भेजता है. कितनी शर्म की बात है की आप अपने पुस्तक के प्रचार में एवं अपनी TRP के लिए अपनी धर्मपत्नी का भी इस्तेमाल करते हैंIयह भी एक बजह है आपके और हमारे संबंधों में खटास कीIआप आधी रात में हमें हि नहीं अनेक लेखकों और लेखीकाओं को फ़ोन करके हमारे बारे में अनाप-सनाप बोलते रहे हैंIकोई भी साहित्यकार, स्त्री लेखिकाओं को आधी रात में फ़ोन करके उन्हें परेशान करें और यह भी चाहे कि प्रलेक प्रकाशन के साथ उसके संबंध मधुर रहे यह कैसे मुमकिन है?यह दुसरी वजह थी जिसके कारण आपके संबंध प्रलेक प्रकाशन के साथ ख़राब हुए हैंIआप साहित्य की खरीद बिक्री भी करते हैं और आपने आदरणीय मुक्ति शर्मा जी पर भी झूठे आरोप लगाये हैं. किसी स्त्री को बदनाम करने से पहले आपको 10 बार सोचना चाइयेIआपने आदरणीय महेंद्र भीष्म जी पर भी झुठे आरोप लगाया कि भीष्म जी अपनी सेक्रेटरी को पैसें देकर अपनी किताबें लिखवाते हैंIआपने एक बरिष्ठ साहित्यकार का अपमान किया हैIआपने दिग्गज एवं महान साहित्यकारों को फ्रेम में सजाने की चीज बोलकर पुरे साहित्य जगत का अपमान किया हैIआपने जो पांडुलिपि हमें प्रकाशित करने के लिए दिया वही पांडुलिपि आपने दुसरे प्रकाशकों को भी दिया जिसके गवाह भी हमारे पास हैI और अब भी आप दे रहे हैंIयह एक कानूनन अपराध हैIहम आपसे गुज़ारिश करते हैं कि आप पर खर्च हुए हमारे सारे पैसों का भुगतान 24 घंटों में आप हमें वापिस करें तथा आपकी किताब पर किये गए खर्च को आप हमें लौटाएंI जो कि करीब 1.5 लाख रूपये हैंI उसके पश्चात आप अपनी किताब को कहीं से भी प्रकाशित करने के लिए स्वतंत्र हैंIतथा आपने हमें बदनाम करने की कोशिश करके हमारा जो नुकसान किया है उसका हर्जाना 2 करोड़ रूपये हमें आप 24 घंटों में हमें देंIमामले को गंभीरता से लेकर आप शीघ्रता पूर्वक हमें भुगतान 24 घंटों के भीतर हमारे पैसों का भुगतान करेंIअन्यथा हम आप पर मानहानि का मुक़दमा करेंगे और साथ में क्रिमिनल केस के अंतर्गत FIR भी फाइल करेगेंITeam Legal,Pralek Prakashan Pvt. Ltd.602, I/3, Global City, VIrar (West), ThaneMumbai - 401303.Tell No. - +91 7021263557कृपया इस लिंक को भी पढ़ें :
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