Tuesday, 23 April 2019

कांग्रेस ने गोगोई को भी , दीपक मिश्रा की तरह डरपोक जस्टिस समझ लिया था


द वायर , स्क्राल , कारवां , और द लीफलेट जैसे न्यूज़ पोर्टल किस के लिए काम करते हैं ? अगर किसी को ग़लतफ़हमी हो तो जान ले कि कांग्रेस के लिए काम करते हैं। कांग्रेस द्वारा पोषित यह पोर्टल कांग्रेस द्वारा प्रायोजित खबरों को ही चलाते हैं। नरेंद्र मोदी की नफ़रत में डूबे यह जहरीले पोर्टल तहलका का परिष्कृत और समृद्ध संस्करण हैं। एजेंडा न्यूज के शीर्ष पर बैठे यह सभी पोर्टल अपराधियों की तरह ख़बर चलाने की सुपारी लेते हैं । याद कीजिए कि सी बी आई के निदेशक रहे सुप्रीम कोर्ट को दिया गया आलोक वर्मा का सील बंद जवाब भी द वायर ही छापता था। कांग्रेस की लड़ाई लड़ते हुए। संयोग से कांग्रेस आलोक वर्मा की लड़ाई हार गई और कांग्रेस के टूल बने आलोक वर्मा निपट गए। अब राफेल को ले कर जब राहुल गांधी के ख़िलाफ़ कंटेम्प्ट सुनवाई का समय आया तो कांग्रेस आखिर अपनी मुगलिया साज़िशों पर उतर आई। चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई के ख़िलाफ़ एक औरत को आगे बढ़ा कर यौन उत्पीड़न का मामला बनाया गया और इस बाबत उस औरत की एफीडेविट को द वायर , स्क्राल , कारवां , और द लीफलेट जैसे पोर्टलों पर छपवाया गया। आहत हो कर जस्टिस गोगोई शनिवार को भी बंद कोर्ट खोल कर बैठे और इस मामले की सुनवाई के लिए एक अलग बेंच बना दी।

कांग्रेस आखिर अपनी मुगलिया साज़िशों में निरंतर घिरती जा रही है। पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस रहे दीपक मिश्रा को घेरा। दीपक मिश्रा भी कांग्रेसी पृष्ठभूमि के ही थे। लेकिन कांग्रेस के डिक्टेशन पर नहीं चलने के कारण कांग्रेस ने दीपक मिश्रा के ख़िलाफ़ महाभियोग की धमकी दी। जस्टिस लोगों के एक ग्रुप से प्रेस कांफ्रेंस करवाई। दीपक मिश्रा का गुनाह यह था कि उन्हों ने राम जन्म भूमि मामले की सुनवाई के लिए बेंच बना दी थी। लेकिन इन प्रसंगों से वह घबरा गए । अंततः दीपक मिश्रा ने राम जन्म भूमि केस को ठंडे बस्ते में डाल दिया और चुपचाप रिटायर हो गए। और अब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का नंबर आ गया है। गोगोई भी कांग्रेस के डिक्टेशन पर चलने से अब इंकार कर चुके हैं। लेकिन कांग्रेसी पृष्ठभूमि के रंजन गोगोई ने दीपक मिश्रा की तरह चुप रहने की जगह दहाड़ लगा दी है। कभी कांग्रेस और लेफ्ट की शह पर दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस की कमान संभालने वाले रंजन गोगोई ने कह दिया है कि न्यायपालिका की आज़ादी गंभीर ख़तरे में है। बिलो द बेल्ट आरोप से आहत जस्टिस गोगोई ने साफ कह दिया है कि लेकिन कुछ भी हो , मैं अपने कार्यकाल के अंतिम दिन तक निडर हो कर इस कुर्सी पर रहूंगा । यह अविश्वसनीय है। मैं इन आरोपों को नकारने के लिए नीचे नहीं झुकूंगा। मैं ने आज अदालत में बैठने का असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्यों कि चीज़ें बहुत आगे बढ़ चुकी हैं।

गोगोई ने आहत हो कर कहा है कि इज्जत ही एकमात्र चीज़ है जो हमें मिलती है , अब इस पर भी हमले हो रहे हैं। गौरतलब है कि उक्त महिला के आरोप के बाबत मीडिया को सुनवाई होने तक ख़बर न लिखने पर रोक लगी हुई थी। लेकिन द वायर , स्क्राल , कारवां , और द लीफलेट जैसे न्यूज़ पोर्टल ने एक साथ , एक जैसी ख़बर जारी कर दी।

अब कांग्रेस यह प्रचारित कर रही है कि चीफ़ जस्टिस पर यह हमला भाजपा ने करवाया है। क्यों कि राम जन्म-भूमि मामले की भाजपा के हिसाब से सुनवाई नहीं हुई। लेकिन अब जब राहुल पर कंटेम्प्ट को ले कर गोगोई ने सख्त रुख अपना लिया है तो कांग्रेस अब दाएं-बाएं देख रही है। ज़िक्र ज़रूरी है कि चीफ जस्टिस गोगोई कांग्रेस प्रभावित माने जाते हैं। इन के पिता आसाम में कांग्रेस के मुख्य मंत्री रहे हैं , भाई अभी भी कांग्रेस में हैं। लेकिन आदमी की ख़ुद की इज्जत पर आती है तो आदमी सारी प्रतिबद्धता भूल जाता है। गोगोई ने कहा ही है कि यह मेरी इज्जत पर हमला है। कांग्रेस ने रंजन गोगोई को भी , दीपक मिश्रा की तरह डरपोक जस्टिस समझ लिया था। लेकिन दांव ग़लत चल दिया। देखना दिलचस्प होगा कि राहुल का राफेल पर क्या होता है । बाकी और भी कई महत्वपूर्ण मामले बस गोगोई के सामने आने ही वाले हैं। कांग्रेस अब दिल थाम कर बैठे। घायल गोगोई भरे बैठे हैं। अपना बैंक बैलेंस बता कर ख़ुद को सामने कर दिया है । मेरे मित्र और भोजपुरी के मशहूर गायक बालेश्वर एक गाना गाते थे , जे केहू से नाईं हारल , ते हार गइल अपने से !

Monday, 22 April 2019

आज़म , अब्दुल्ला , आम्रपाली , अनारकली और जयाप्रदा की ख़ाकी चड्ढी का चुनाव


आज़म खान ने पहले जयाप्रदा की चड्ढी का खाकी रंग बताया था। चुनाव आयोग से माफ़ी मांगने और बैन भुगतने के बाद अब जयाप्रदा को आम्रपाली कह दिया है। आम्रपाली मतलब नगर वधू । नगर वधू मतलब तवायफ़। वेश्या। बाप तो बाप बेटा सुभान अल्ला। आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला ने अपनी अम्मा की उम्र की जयाप्रदा को अनारकली बता दिया है। बता दिया है भाषण में कि अली और बजरंग बली तो चाहिए। लेकिन अनारकली नहीं चाहिए।

अनारकली मतलब अकबर की रखैल। इतिहास में यही दर्ज है। लाहौर में इस अनारकली की कब्र मौजूद है। कमाल अमरोही की काल्पनिक कहानी और संवाद वाली के आसिफ़ की फिल्म मुगले आज़म फिल्म में बांदी है अनारकली। अकबर के बेटे सलीम की माशूका है। कुल जमा यह मान लीजिए कि आम्रपाली और अनारकली समानार्थी शब्द हैं। बाप-बेटे की राय यही बनी है कि जयाप्रदा तो वेश्या है। स्त्री संगठन , क्रांतिकारी स्त्रियां , बात-बेबात कैंडिल जुलूस निकालने वाली स्त्रियां , आज़म खान द्वारा , जयाप्रदा की चड्ढी का रंग बताने पर भी ख़ामोश थीं। जयाप्रदा को आज़म और अब्दुल्ला द्वारा आम्रपाली और अनारकली कहने पर भी ख़ामोश हैं। ख़ामोश ही रहेंगी। इन को इन की ख़ामोशी की बधाई दीजिए।

क्यों कि जयाप्रदा स्त्री नहीं हैं । स्त्री अस्मिता का प्रश्न नहीं हैं जयाप्रदा।

गोया फ़िल्म इंडस्ट्री की भी नहीं हैं जयाप्रदा। क्यों कि यह बात आज़म खान और अब्दुल्ला ने कही है , जो मुसलमान हैं। और तथ्य है कि मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्री दाऊद इब्राहीम के काले पैसे पर वैसे ही टिकी है जैसे शिव के त्रिशूल पर काशी। तो हिम्मत कैसे पड़े किसी की बोलने की आज़म खान और अब्दुल्ला की बात पर। बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन। फिर यही हाल अपने स्त्री सगठनों का भी है कि उन के एन जी ओ को जहां-जहां से फंडिंग मिलती है , जयाप्रदा के पक्ष में आवाज़ उठाने से उन की फंडिंग बंद हो जाने का अंदेशा है। या फिर उन के थिंक टैंक के आका लोग नाराज हो जाएंगे । एक बड़ा डर यह भी है। वैचारिक गुलामी का भी अपना आनंद है। वैचारिक बंधुआ बन कर जीने का अपना वैभव है। सो बेचारी वह लिपी-पुती क्रांतिकारी औरतें भी चुप हैं।

हां , यह बहुत संभव है कि मेरे यह लिपी-पुती औरतें कहने पर यह स्त्रियां भले नाराज हो जाएं। मेरे ख़िलाफ़ खड़ी हो जाएं। मुझे स्त्री विरोधी घोषित कर दें। लेकिन जयाप्रदा प्रसंग पर वह फिर भी चुप ही रहेंगी। जयाप्रदा अछूत हैं । आख़िर आज़म खान और अब्दुल्ला खान सीधे क्यों नहीं कह देते कि जयाप्रदा देवदासी हैं , जो कि वह हैं। देवदासी दक्षिण के मंदिरों में हुआ करती थीं कभी। अब यह परंपरा संभवतः समाप्त हैं। जयाप्रदा देवदासी परिवार से आती हैं। यह बात पब्लिक डोमेन में पहले से है। संभवतः आज़म खान और अब्दुल्ला दरअसल जयाप्रदा को प्रकारांतर से यही कहना चाह रहे हैं। जो घुमा कर कह रहे हैं । हिंदू धर्म को सांकेतिक गाली दे कर , मुस्लिम वोटरों को अपना संदेश दे रहे हैं। जयाप्रदा को गाली दे कर वह योगी को उकसा रहे हैं कि बेटा , कुछ तो बोल दो और फिर एक बैन भुगत लो।

हां , मैं पप्पू , मैं लतीफ़ा गांधी !


पंडित जवाहरलाल नेहरु ने क्या शानदार किताब लिखी है डिसकवरी आफ़ इंडिया। जिस ने नहीं पढ़ी , उसे खोज कर पढ़ना चाहिए। श्याम बेनेगल ने भारत एक खोज नाम से शानदार सीरियल भी बनाया है , इस किताब के आधार पर। पंडित नेहरु अमीर बाप के बेटे भले थे पर ज़मीन से जुड़े व्यक्ति थे। उन के पितामह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे ब्रिटिश गवर्नमेंट में। कोई कहता है चपरासी थे , कोई चौकीदार बताता है । लोहिया चपरासी बताते थे । कहते थे , भारत में एक चपरासी का पोता भी प्रधान मंत्री बन सकता है। एक बार किसी ने लोहिया को टोका कि क्यों आप इस तरह नेहरु को बेइज्जत करते रहते हैं। लोहिया बोले , मैं किसी की बेइज्जती नहीं करता यह कह कर। मैं तो भारत के लोकतंत्र की ताकत और खासियत का बखान करता हूं यह कह कर कि एक चपरासी का पोता भी यहां प्रधान मंत्री बन सकता है। 

नेहरु के साथ बतौर निजी सचिव रह कर इंदिरा गांधी ने भी ज़मीनी सचाई सीखी और जानी । राजनीति और प्रशासन के गुण सीखे । और नेहरु से भी ज़्यादा ताकतवर और प्रभावी बन कर राजनीति में जानी गईं। वैसे तो बहुतेरी घटनाएं है पर इंदिरा गांधी के साथ की दो घटनाएं यहां गौर तलब हैं । एक बार एक फिल्म समारोह में ख्वाज़ा अहमद अब्बास आए तो नेहरु ने उस समारोह में उन से शाम को अपने घर पर चाय पर बुलाया। अब्बास ने कहा कि मैं अपनी टीम के साथ आया हूं सो अपनी टीम के साथ आना चाहूंगा। नेहरु ने उन से कहा कि ठीक है फिर इंदिरा से बात कर लीजिएगा । इंदिरा उन दिनों नेहरु की निजी सचिव भी थीं। अब्बास उसी समारोह में इंदिरा से मिले और नेहरु द्वारा शाम को चाय पर नेहरु द्वारा बुलाने और खुद टीम के साथ आने की बात बताई। इंदिरा गांधी ने अब्बास से कहा कि अगर आप अकेले चाय पर आ सकते हों तो ज़रूर आएं , पर टीम के साथ नहीं। अब्बास ने कारण जानना चाहा तो इंदिरा गांधी ने उन्हें बताया कि असल में हम घर का खर्च पापा को मिलने वाले रायल्टी से चलाते हैं , सरकारी खर्च पर नहीं। सो सात-आठ लोगों को चाय पिलाने का खर्च नहीं उठा सकते। अब्बास नेहरु के घर चाय पर नहीं गए।  

दूसरी घटना 1977 की है। जनता पार्टी जीतने और सरकार बनाने के बाद दिल्ली के रामलीला मैदान में विजय दिवस मना रही थी। मोरार जी देसाई के नेतृत्व में । जयप्रकाश नारायण को भी उस विजय दिवस में बुलाया गया था । लेकिन जयप्रकाश नारायण विजय दिवस की रैली में जाने के बजाय ठीक उसी समय इंदिरा गांधी से मिलने उन के घर गए। बेटी इंदिरा गांधी का हाल-चाल लेने। वह चिंतित थे और इंदिरा से पूछ रहे थे कि अब तुम्हारा कामकाज कैसे चलेगा ? घर का खर्च कैसे चलेगा ? इंदिरा ने बताया कि घर खर्च की चिंता नहीं है , पापू की किताबों की रायल्टी इतनी आ जाती है कि घर खर्च तो आराम से चल जाएगा। चिंता मेरी यह है कि अब मैं करुंगी क्या। टाइम कैसे बीतेगा । जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा से कहा कि तुम फिर से जनता के बीच जाओ। लोगों से मिलो जुलो और मेहनत करो। इंदिरा ने जयप्रकाश नारायण की बात मान ली , वह जयप्रकाश नारायण , जिस ने इंदिरा की सत्ता को उखाड़ फेंका था। और इंदिरा ने जयप्रकाश नारायण की सलाह पर , फिर से जनता के बीच जाना शुरु किया । छ महीने बाद ही आज़मगढ़ का उपचुनाव जीत लिया कांग्रेस की मोहसिना किदवई ने। और ढाई साल में ही इंदिरा गांधी आम चुनाव जीत कर फिर प्रधान मंत्री बन गईं।

लेकिन इंदिरा गांधी ने अपने बच्चों को ज़मीन से जुड़ने पर ध्यान नहीं दिया। मुंह में चांदी का चम्मच ले कर पैदा हुए राजीव गांधी और संजय गांधी गगन विहारी बन गए। राजीव तो शुरू में पायलट बन कर खुश थे। राजनीति में उन की दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन संजय गांधी की राजनीति में न सिर्फ़ दिलचस्पी थी बल्कि एक समय वह सुपर प्राइम मिनिस्टर बन कर उपस्थित थे। मनमानी , बदमिजाजी और अय्याशी के उन के बहुतेरे किस्से हैं। कुछ झूठे , कुछ सच्चे। इंदिरा गांधी को थप्पड़ मारने तक के। यह इमरजेंसी के दिनों की बात है। इमरजेंसी के बीस सूत्रीय कार्यक्रमों के साथ ही संजय गांधी के पांच सूत्रीय कार्यक्रमों की बहार के दिन थे। नसबंदी की ज्यादतियों के साथ ही संजय गांधी द्वारा गुड़ बोओ , गन्ना बोओ , पेड़ बोओ के दिन थे । उन के जीवन में अंबिका सोनी , रुखसाना सुल्ताना और मेनका गांधी के दिन थे। 1977 के चुनाव में हार के बाद भी वह नहीं सुधरे । दुबारा सत्ता में लौटने के बाद तो संजय गांधी करेला और नीम चढ़ा बन चले थे। लेकिन एक हवाई दुर्घटना में उन का दुर्भाग्यपूर्ण निधन हो गया। उन की ज़िद , उन की सनक , बदमिजाजी और अय्यासियों की कहानी लेकिन अभी भी शेष है।

इंदिरा गांधी को संभालने और सहारा देने के लिए अब राजीव गांधी पायलट की नौकरी छोड़ कर राजनीति में आ गए। अभी वह राजनीति का ककहरा सीख ही रहे थे कि इंदिरा गांधी की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या हो गई। राजीव गांधी बड़ा पेड़ गिरने के बाद धरती हिलाते हुए प्रधान मंत्री बने। हिंदू-सिख दंगे उन्हें उन के धरती हिलाऊ बयान के परिणाम में सौगात में मिले। राजीव गांधी अपने छोटे भाई संजय की तरह बदमिजाज तो नहीं थे पर उन की अय्याशियों और भ्रष्टाचार के बेशुमार किस्से हैं। इतने कि उन दिनों राजीव गांधी के नाम पर उन दिनों नानवेज लतीफ़े भी ख़ूब बने और चले। अरुण सिंह से उन की ख़ास किसिम की दोस्ती और राजीव शुक्ला पर उन की ख़ास मेहरबानियों और राजीव शुक्ला की छप्पर फाड़ सफलता के किस्से तो आज भी सामने हैं।  बोफ़ोर्स का दाग़ उन पर बहुत गहरा है। हां , संजय गांधी का गुड़ बोओ , गन्ना बोओ , पेड़ बोओ की विरासत भी राजीव गांधी ने संभाली। किस्से बहुत हैं पर यहां अभी दो ही का ज़िक्र कर रहा हूं।

1989 का चुनाव प्रचार राजीव गांधी ने अयोध्या से शुरू किया। कहा कि यहां एक नैमिषारण जी भी हुए , बहुत बड़े ऋषि थे। अब उन को कोई यह बताने वाला नहीं था कि नैमिषारण सीतापुर में एक जगह है , कोई ऋषि नहीं।

राजीव गांधी की एक अदा थी कि वह आफ़ बीट बहुत होते थे। एक बार राजस्थान दौरे पर थे। सुरक्षा का तामझाम छोड़ कर वह अचानक एक गांव के खलिहान में पहुंच गए। खलिहान में पहुंच कर वह किसानों से बतियाने लगे। खलिहान में दो तरह की मिर्च रखी हुई थी। एक तरफ हरी , दूसरी तरफ लाल।  राजीव गांधी ने किसानों से पूछा कि लाल मिर्च के ज़्यादा पैसे मिलते हैं कि हरी मिर्च के ? किसानों ने बताया कि लाल मिर्च के। छूटते ही राजीव गांधी ने पूछा फिर आप लोग हरी मिर्च बोते ही क्यों हो ? लाल मिर्च ही बोया करो। किसान उन्हें समझाते ही रहे कि हरी मिर्च ही बाद में सूख कर लाल मिर्च बनती है। लेकिन राजीव गांधी उन किसानों की कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे। बस यही रट लगाए रहे कि लाल मिर्च ही बोओ , हरी नहीं। क्यों कि हम चाहते हैं कि आप को ज़्यादा से ज़्यादा लाभ मिले।  

राजीव गांधी और संजय गांधी तो मुंह में चांदी का चम्मच ले कर पैदा हुए थे। लेकिन राहुल गांधी मुंह में सोने का चम्मच ले कर पैदा हुए। वह सोने का चम्मच अभी उन के मुंह से निकला नहीं है। बाक़ी सोनिया गांधी के पुत्र मोह ने उन्हें बुरी तरह बिगाड़ दिया। राहुल न सिर्फ़ बदमिजाज , सनकी  , बड़बोले बन गए बल्कि नशेड़ी भी बन गए। अमरीका में एक बार स्पेनिश महिला मित्र के साथ हेरोइन के एक पैकेट और एक लाख साठ हज़ार डालर के साथ बोस्टन में लोगन एयरपोर्ट पर पकड़े गए। सोनिया के हाथ-पैर जोड़ने पर उदारमना अटल बिहारी वाजपेयी ने बिना किसी शोर शराबे के किसी तरह राहुल गांधी को अमरीका की एफ बी आई से छुड़वाया।  राहुल की ऐसी अय्याशियों की अनगिन कहानियां हैं। उन की विदेश यात्राओं का ज़िक्र कीजिए , लोग समझ जाते हैं कि अय्याशी यात्रा। इस फेर में राहुल गांधी ने अपना जीवन तो नष्ट किया ही , एक शानदार पार्टी कांग्रेस को भी नष्ट कर बैठे। पूरी तरह तबाह कर बैठे कांग्रेस को। आलू की फैक्ट्री लगाने , ट्रक और ट्रैक्टर में पेट्रोल डालने जैसी मूर्खता भरे बयान , चौकीदार चोर है जैसा फर्जी नारा लगा कर कांग्रेस की कब्र खोद बैठे हैं। सर्जिकल स्ट्राइक , एयर स्ट्राइक पर सुबूत मांग-मांग कर कांग्रेस को ताबूत में लिटा चुके हैं। अपने नित नए मूर्खता भरे बयान और अंदाज़ से लतीफ़ा बन कर देश में उपस्थित हैं राहुल गांधी। भारतीय राजनीति में ऐसा विदूषक कोई और नहीं मिल सकता।

एक समय भारतीय राजनीति में राजनारायण भी अपनी बातों से बहुत हंसाते थे । लालू यादव भी अपने हंसाने की बातों के लिए जाने जाते हैं । अटल जी भी कई बार अपनी गंभीर बातों से हंसा-हंसा देते थे। लेकिन राहुल गांधी तो स्वयं लतीफ़ा बन कर उपस्थित हैं। राहुल गांधी का नाम लेने मात्र से लोग हंस पड़ते हैं। ऐसे बुद्धिहीन , निकम्मे और नशेड़ी नेता भारत में राहुल गांधी इकलौते हैं। संसद में सोने वाले , बदजुबानी करने वाले , झूठ बोलने वाले बहुतेरे नेता हैं। लेकिन सोने , भूकंप लाने की बात करने और ज़बरदस्ती गले लिपट कर आंख मारने वाले राहुल गांधी इकलौते हैं। अभी आज चौकीदार चोर है पर राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में भले अपनी गलती मांग कर माफ़ी मांग ली है लेकिन यह नारा लगाना नहीं छोड़ा है। आज की चुनावी सभाओं में माफ़ी मांगने के बावजूद लगा रहे हैं। चुनावी ज़रूरत और लत दोनों ही की विवशता है उन की यह। वैसे भी अभी उन को अपने लतीफ़ा गांधी होने के प्रमाण के कई और किस्से भारतीय राजनीति को उपलब्ध करवाने हैं। पप्पू गांधी अब शायद बीती हुई बात है। उन की नागरिकता , डिग्री आदि की बातें उन के इस लतीफा गांधी की छवि के आगे पता नहीं लगतीं। लोग भूल जाते हैं। जनेऊ पहन कर दत्तात्रेय गोत्र बता कर इस पारसी व्यक्ति का मंदिर-मंदिर घूमना भी अब लोग लतीफ़े के रुप में ही याद करते हैं। अलग बात है कि मीडिया वाले इसे उन का साफ्ट हिंदुत्व बताते हैं। 

संसद में एक और हंसोड़ नेता थे पीलू मोदी। 1950 में उत्तर प्रदेश के गवर्नर रहे होमी मोदी के पुत्र पीलू मोदी भी पारसी थे । मुंबई से थे। इंदिरा गांधी को बातों बातों में लाइन मारने से बाज नहीं आते थे। कहते थे तुम टेम्परेरी पी एम लेकिन मैं परमानेंट पी एम। संसद में एक बार इंदिरा को अख़बार में छपी पहेली सुलझाते हुए उन्हें सार्वजनिक रूप से टोक दिया। स्पीकर से पूछा , क्या पीएम संसद में अखबारी पहेली हल कर सकता है? नीलम संजीव रेड्डी स्पीकर थे और इंदिरा को ऐसा करने से रोक दिया। इंदिरा ने उन्हें स्लिप भेजी , तुम को कैसे पता चला ? - पी एम । पीलू ने उन्हें स्लिप भेजी , मेरे जासूस हर तरफ हैं - पी एम । प्रेस गैलरी में बैठे एक पत्रकार ने उन्हें इशारे से यह बताया था। पीलू मोदी राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी से गोधरा से सांसद थे। बाद में चौधरी चरण सिंह की पार्टी में आ गए। इमरजेंसी में जेल भी गए। जनता पार्टी का उन को अध्यक्ष बनाने की बात भी हुई थी। पर उन की शराब बीच में आ गई और चंद्रशेखर अध्यक्ष बने। अलग बात है चंद्रशेखर भी शराब पीते थे पर पीलू बदनाम थे।  1978 में राज्यसभा में आए ।


खैर , पीलू मोदी  से नाराज हो कर एक बार इंदिरा गांधी ने उन पर सी आई एजेंट होने का आरोप लगा दिया । इंदिरा गांधी की उन दिनों आदत थी कि अपने हर फेल्योर पर वह विदेशी हाथ खोजते हुए सी आई ए तक पहुंच जाती थीं । कहती थीं , सी आई ए का हाथ है । तो पीलू मोदी इंदिरा गांधी के आरोप से आहत हो कर अपने गले में , आई एम सी आई ए एजेंट  , की तख्ती गले में लटका कर संसद के सेट्रल हाल में पहुंच गए । इंदिरा गांधी का मुंह अपने आप बंद हो गया। लेकिन इंदिरा गांधी को क्या पता था कि एक समय उन का ही अपना पोता राहुल गांधी भरी संसद में कहेगा कि हां , मैं पप्पू हूं ! अगर ख़ुदा न खास्ता राहुल गांधी इस बार लोकसभा फिर पहुंच गए , [ पूरी उम्मीद है पहुंचने की ] तो तय मानिए अभी तो एक आंख मारी थी , अगली बार दोनों आंख मार कर बताएंगे कि हां , मैं लतीफ़ा गांधी हूं !

और लोग हंसेंगे। लेकिन राहुल गांधी के चमचों की फ़ौज , इस बात पर ताली बजा कर झूम-झूम जाएगी ।


क्या पता जैसे कभी नेहरु ने डिसकवरी आफ़ इंडिया लिखी थी वैसे ही कभी कोई डिसकवरी आफ़ लतीफ़ा गांधी भी लिखे। कौन जाने राहुल गांधी ख़ुद लिखें। अपने परनाना नेहरु की पुस्तक लेखन की विरासत संभालते हुए। अगर ईमानदारी से लिखेंगे तो डिसकवरी आफ़ इंडिया की तरह बेस्ट सेलर भी बनेगी उन की यह किताब ।फ़िलहाल तो चुनाव के चक्कर में ही सही , अपने परनाना का गोत्र दत्तात्रेय संभाले हुए हैं               
                                      

Saturday, 20 April 2019

जब राहुल गांधी हेरोइन , डालर और अपनी स्पेनिश महिला मित्र के साथ अमरीका में गिरफ्तार हुए थे


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आज फिर अपनी ब्रिटिश नागरिकता और फर्जी डिग्री के लिए चर्चा में हैं। लेकिन राहुल एक बार अमरीका के बोस्टन में लोगन हवाई अड्डे पर पकड़े गए थे और अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें छुड़वाया था। यह बात कितने लोग जानते हैं भला। बात 27 सितंबर , 2001 की है। बोस्टन के लोगन हवाई अड्डे पर स्पेनिश महिला मित्र के साथ राहुल गांधी को अमरीकी जांच एजेंसी एफ़ बी आई ने  गिरफ्तार किया। गिरफ्तार इस लिए किया कि इन के पास से तब एक लाख साठ हज़ार डालर और सफ़ेद पाऊडर [ हेरोइन  ] का पैकेट बरामद किया गया था। इस अपराध के लिए अमरीकी क़ानून के मुताबिक 128 साल तक की सज़ा का प्राविधान है। अमरीकी मीडिया में तब यह ख़बर खूब छाई रही। 

सुर्खियां थीं कि भारत के एक पूर्व प्रधान मंत्री का बेटा गिरफ्तार। भारत के हिंदू अख़बार ने भी 30 सितंबर , 2001 को यह ख़बर छापी। सुब्रमण्यम स्वामी ने तब भी इस खबर को ले कर बयान दिए थे। सोनिया गांधी ने अमरीका में भारत के राजदूत रहे ललित मान सिंह से बात की। कहा कि जैसे भी हो राहुल को वह छुड़ा लें । ललित मान सिंह ने भरपूर कोशिश की। लेकिन नाकाम रहे। उन दिनों अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव तथा सुरक्षा सलाहकार थे , बृजेश मिश्र । बृजेश मिश्र के पिता पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र एक समय मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार के ताकतवर मुख्य मंत्री रहे थे । पंडित नेहरु के मित्र रहे पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र , इंदिरा गांधी के चाणक्य कहे जाते थे । इंदिरा गांधी को प्रधान मंत्री बनवाने में द्वारिका प्रसाद मिश्र की चाणक्य नीति ही रंग लाई थी । नहीं प्रधान मंत्री तो तब मोरार जी देसाई का बनना तय था । अलग बात है कि इंदिरा गांधी ने प्रधान मंत्री बनने के बाद बहुत जल्दी ही अपने चाणक्य को निपटा दिया था।  

खैर , उन्हीं कांग्रेसी संपर्कों का लाभ लेते हुए सोनिया गांधी ने बृजेश मिश्रा से मिल कर हाथ जोड़ा कि किसी भी तरह वह राहुल गांधी को छुड़वाने में मदद करें। बृजेश मिश्र ने अटल जी से हाथ जोड़े। सोनिया गांधी फिर अटल जी से भी मिलीं और अपने बेटे राहुल गांधी को अमरीका की कैद से रिहा करवाने की फ़रियाद की। भारत के एक पूर्व प्रधान मंत्री के बेटे की बात थी , भारत के इज्जत की बात थी। राजीव गांधी से अटल जी के संबंध भी अच्छे रहे थे। अटल जी ने बिना कोई शोर शराबा किए , चुपचाप राहुल गांधी को छुड़वा कर भारत बुलवा लिया। तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अटल जी के निर्देश पर राहुल को रिहा करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बृजेश मिश्र ने अमरीकी सरकार से वादा किया कि एफ़ बी आई की जांच को वह सी बी आई से करवाएंगे। और दोषी को दंडित करवाएंगे। लेकिन राहुल के ख़िलाफ़ अभी तक कोई ऐसी जांच नहीं हुई।  

बाद के दिनों में अमरीका के अख़बार न्यूज़ ग्राम 24 ने 16 अगस्त , 2015 को इस बाबत डिटेल स्टोरी छापी। लेकिन कांग्रेस और सोनिया गांधी के प्रभाव के कारण भारतीय मीडिया इस ख़बर को पी गई। सो कहीं कोई चर्चा नहीं हुई। इधर जब मसूद अज़हर की चर्चा चली तब राहुल गांधी ने बहुत उछल-उछल कर कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने मसूद अज़हर जी को कांधार ले जा कर छोड़ा। संयोग ही है कि राहुल को रिहा करवाने में जी जान से लगे रहे तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ही अज़हर मसूद को भी कांधार ले गए थे। लेकिन राहुल गांधी यह बताना भूल गए कि अटल बिहारी वाजपेयी और जसवंत सिंह  ने उन्हें भी चुपचाप छुड़वाया था। नहीं आज भी वह अमरीका की जेल में सड़ रहे होते। 

दिलचस्प यह कि भाजपाई भी कभी पलट कर राहुल गांधी को यह तथ्य बता पाने का साहस नहीं कर सके। क्या पता भूल गए हों। वैसे भी भाजपाइयों को भूलने की आदत बहुत है। याद कीजिए कि 1989 वी पी सिंह सरकार में गृह मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रुबिया सईद का अपहरण हुआ था और बदले में पांच कश्मीरी आतंकवादियों को छोड़ा गया था। बाद में पता चला कि मुफ्ती ने आतंकवादियों को छोड़ने के लिए बेटी के अपहरण का ड्रामा खुद रचा था । भाजपाइयों ने यह बात भी कभी पलट कर कहीं कही क्या।   

हिंदू अखबार की ख़बर


 THE HINDU
Online edition of India's National Newspaper
Sunday, September 30, 2001
Was Rahul Gandhi detained by FBI?
By Our Special Correspondent
NEW DELHI, SEPT. 29. With the U.S. security agencies leaving nothing to chance after the September 11 terrorist strikes, sleuths of the Federal Bureau of Investigation (FBI) ``detained'' Mr. Rahul Gandhi, son of the former Prime Minister, Rajiv Gandhi, and the Leader of the Opposition, Ms. Sonia Gandhi, for about an hour at the Boston airport early this week, sources here said.
According to sources, Mr. Gandhi, reportedly travelling from Boston to Washington, was detained by the FBI agents who would not let him go even after checking his travel documents thoroughly. They checked his baggage, despite being told that he was the son of a former Indian Prime Minister.
Sources here maintain that only when the news reached 10, Janpath, and the Congress president, Ms. Sonia Gandhi, reportedly spoke to the Indian Ambassador in the U.S., Mr. Lalit Mansingh, Mr. Gandhi was able to proceed with his onward journey. (from ‘the Hindu’ of 30 September 2001)

ख़बर का यह लिंक है 


https://www.thehindu.com/thehindu/2001/09/30/stories/02300003.htm?fbclid=IwAR3Kk3jd-KKCnkjfbb02IyQoHmrO_5z4NDHuAgVrzqZ_ioA4UuQsgfy4Amo


न्यूज़ ग्राम 24 की ख़बर भी देखें 


News Gram 24
Thursday, 16 Aug 2015, 10.59 am

In the year 2001, Rahul Gandhi who was traveling to America was stopped in the Boston Airport, it is said that he was caught carrying 1,60,000 USD in CASH and a bag of white powder. The preliminary reports indicated that the white powder was Heroin (banned drug). The FBI had detained him and taken into private room for interrogation. Sonia Gandhi then had requested the then Prime Minister Mr Vajpayee to meddle in and help Rahul Gandhi. She had promised Vajpayee that she will help Parliament function and will not disrupt developmental plans. Mr. Vajpayee could have ignored the request, but however he saw no grudge against Sonia Gandhi and had instructed his principle secretary Brajesh Mishra to call Condoleezza Rice and had asked for the immediate release of Rahul Gandhi.
     

Friday, 19 April 2019

जब अंबानी बंधु मुलायम को प्रधान मंत्री बनाने के लिए दिल्ली आए और सोनिया के साथ चाय पीने लगे

दयानंद पांडेय 

अभी तक लोग राजनीति में रामविलास पासवान को मौसम विज्ञानी बताते थे। बेधड़क। लेकिन व्यापारियों को संबोधित करते दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में नरेंद्र मोदी ने कहा कि व्यापारी बहुत बड़े मौसम विज्ञानी होते हैं । मोदी ने हालां कि यह बात व्यापरियों के व्यापार के बाबत कही। लेकिन मेरा आकलन है कि व्यापारी राजनीति का मौसम विज्ञान भी ख़ूब जानते हैं।

2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान लगभग स्पष्ट हो गया था कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का कंटीन्यू करना मुश्किल है और कि हंग पार्लियामेंट होगी। पहले के समय लालू और वी पी सिंह का दोहरा दांव खा कर , चित्त हो जाने और प्रधान मंत्री न बन पाने की कसक मुलायम के मन में बहुत गहरे बैठ गई थी । देवगौड़ा और गुजराल बारी-बारी प्रधान मंत्री बन गए और मुलायम वामपंथी हरकिशन सिंह सुरजीत की तमाम पैरोकारी के खड़े-खड़े देखते रह गए थे । बतर्ज़ कारवां गुज़र गया , गुबार देखते रहे। हरकिशन सिंह सुरजीत उन दिनों मुलायम के लगभग दलाल बन गए थे , सेक्यूलर राजनीति के नाम पर। खैर , 2004 में वामपंथ का कंधा छोड़ कर मुलायम ने कारपोरेट सेक्टर का कंधा पकड़ा। बतौर मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश , अंबानी परिवार की उन्हों ने खूब सेवा की थी। सुरजीत मुलायम के लिए भले राजनीतिक दलाली करते थे पर उन दिनों मुलायम अंबानी , अमिताभ बच्चन , अमर सिंह और सहारा के लिए जाने जाते थे और इन के लिए ही जीते-मरते थे। अमर सिंह इन के सेतु थे। तब के दिनों मुलायम को बिगाड़ने और उन को अय्याश बनाने में अमर सिंह ने धरती-आसमान एक कर दिया था। सो अमर सिंह के नेतृत्व में मुलायम ने अंबानी परिवार को साधा और मकसद बताया कि प्रधान मंत्री बनना है । मदद करो । मदद मतलब सांसदों की ख़रीद-फरोख्त के लिए अपनी तिजोरी खोल दो। तब के दिनों अंबानी बंधु एक साथ थे , अलग नहीं हुए थे। उत्तर प्रदेश में सरकारी संसाधनों की लूट में मुलायम की कुर्बानियां और सुविधाएं उन्हें याद थीं। उम्मीद थी कि प्रधान मंत्री बनने के बाद भी उन्हें वह लूट की छूट देते रहेंगे।

सो चुनाव परिणाम आने के एक दिन पहले ही अंबानी बंधु दिल्ली में डेरा डाल दिए। मय तिजोरी के। मकसद था मुलायम सिंह यादव को प्रधान मंत्री बनवाना। तैयारी में कोई कमी नहीं थी। दलाल पत्रकारों सहित किसिम-किसिम के लायजनर तैनात थे। दूसरे दिन सुबह आठ बजे से चुनाव परिणाम आने शुरु हो गए। साढ़े आठ बजते-बजते अंबानी बंधु समझ गए कि मुलायम सिंह यादव का खेल खत्म हो गया है। और मुकेश अंबानी ने 10 जनपथ पर सोनिया गांधी को फ़ोन किया कि आप के साथ चाय पीना चाहते हैं। और सुबह नौ बजे अंबानी बंधु सोनिया गांधी के साथ चाय पी रहे थे। उस के बाद का सारा खेल सब को मालूम है। सोनिया के घर बिना बुलाए सुरजीत के साथ पहुंचे अमर सिंह की बेइज्जती सहित। सोचिए कि मकसद था , तब मुलायम को प्रधान मंत्री बनाना और अंबानी बंधु मूल मकसद पानी में डाल कर अपने व्यावसायिक मकसद साधने निकल गए। सुबह साढ़े आठ बजे तक बहुत मामूली रुझान आते हैं , बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी तब तक नहीं कुछ समझ पाते । लेकिन अंबानी बंधु समझ गए थे कि क्या होने जा रहा है।

फ़रवरी , 1985 में जब मैं लखनऊ स्वतंत्र भारत में आया था तब उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव हो रहे थे। तब के सिचाई मंत्री वीर बहादुर सिंह गोरखपुर के पनियारा से चुनाव लड़ रहे थे । मुझे कवरेज के लिए जाने के लिए कहा गया । गोरखपुर जाने के पहले अख़बार मालिक शिशिर जयपुरिया ने मुझे बुलाया और कहा कि सुना है आप गोरखपुर जा रहे हैं ? मैं ने हामी भरी तो जयपुरिया ने कहा कि आप जनसत्ता से आए हैं तो जनसत्ता वाली टेढ़ी रिपोर्टिंग मत कीजिएगा। वीर बहादुर सिंह होने वाले मुख्य मंत्री हैं , ज़रा ख़याल रख लीजिएगा। सुन कर मुझे बहुत ख़राब लगा। संपादक वीरेंद्र सिंह से मिल कर मैं ने जयपुरिया की बात बताई और गोरखपुर जाने से स्पष्ट मना कर दिया। गोरखपुर मेरा गृह नगर भी है , यह वह जानते थे । खैर , वीरेंद्र सिंह ने कहा , आप जाइए और जैसा लगे वैसे ही लिखिए। संपादक मैं हूं , जयपुरिया नहीं। गया गोरखपुर। पनियरा गया तो देखा कि पनियरा में वीर बहादुर सिंह ने गज़ब का काम किया था। सड़क , बिजली , परिवहन सब दुरुस्त । जहां पुलिया चाहिए थी , वहां पुल था। उस धुर पिछड़े और तराई क्षेत्र से लखनऊ और दिल्ली की सीधी बस थी। सिनेमा घर थे । उन के सामने जो चुनाव लड़ रहे थे , किसी का क्षेत्र में नामलेवा भी नहीं था। न कोई प्रचार । चहु ओर वीर बहादुर ही वीर बहादुर थे। रिपोर्ट अपने आप वीर बहादुर के पक्ष में गई। तुरंत तो नहीं पर दिलचस्प यह कि साल भर बाद वीर बहादुर सिंह मुख्य मंत्री बन गए। जयपुरिया की बात सच हो गई।

चंद्रशेखर एक समय पद यात्रा कर रहे थे। जयपुरिया ने मुझे बुलाया। कहा कि चंद्रशेखर जी को मैं मिल कर चंदा देना चाहता हूं। मैं ने कहा कि दे दीजिए , इस में मैं क्या कर सकता हूं । उन का सारा कार्यक्रम पब्लिक डोमेन में है। चंद्रशेखर से मेरा ठीक ठाक परिचय था । कई बार उन का इंटरव्यू कर चुका था । इसी आधार पर जयपुरिया ने मुझ से चंद्रशेखर से मिलवाने से कहा। कहा कि यह आदमी होने वाला प्रधान मंत्री है । सुन कर मुझे हंसी आ गई। जयपुरिया ने मुझ से हंसी का कारण पूछा। बता दिया मैं ने कि नेता बहुत अच्छे हैं , समझदार हैं , पर चुनाव जीतने के तो उन के लाले रहते हैं , पार्टी उन की वैसे ही कमज़ोर है। सपने में भी प्रधान मंत्री नहीं बन सकते । लेकिन जयपुरिया अपनी बात पर अड़े रहे। और कहा कि बस आप मिलवा दीजिए। चंद्रशेखर के एक शिष्य थे गौरी भैया । बलिया के थे । जनता दल विधान मंडल के सचेतक थे । मेरे अच्छे मित्र थे । उन से मिल कर जयपुरिया की बात बताई। बात सुनते ही वह उछल गए। बोले , चंदा तो हम लोग खोज ही रहे हैं। चंद्रशेखर को उन दिनों अध्यक्ष जी कहते थे लोग। गौरी भैया बोले , ' अध्यक्ष जी ने टारगेट भी दिया है। कूपन बेच कर वह चंदा ले रहे थे। सो गौरी भैया ने तुरंत कूपन बुक निकाल लिया। मैं ने बताया कि वह अध्यक्ष जी से मिल कर ही चंदा देना चाहते हैं। गौरी भैया यह सुन कर बिदके । बोले , दस-पांच हज़ार का चंदा तो अध्यक्ष जी लेंगे नहीं। मोटी रकम देनी पड़ेगी।

जैसे ? 

लाख , पचास हज़ार से कम का लेंगे। मैं ने गौरी भैया से कहा कि आप मुझे इस चक्कर में मत डालिए।जयपुरिया से सीधे बतिया लीजिए मेरा रिफरेंस दे कर। कल फ़ोन पर। गौरी भैया ने दूसरे दिन जयपुरिया से बात की। उन की बात जम गई। जल्दी ही गौरी भैया ने जयपुरिया से चंद्रशेखर की मुलाकात करवा दी । बात आई-गई हो गई। कि कुछ समय बाद बोफ़ोर्स आ गया। चुनाव में राजीव गांधी जय हिंद हो गए। प्रधान मंत्री पद के दावेदार बने चंद्रशेखर भी लेकिन वी पी सिंह ने देवीलाल को आगे कर चंद्रशेखर को रेत दिया। चंद्रशेखर रह गए। तो मैं ने जयपुरिया को एक बार याद दिलाया। कहा कि अब कहां ! जयपुरिया ने सब्र लेकिन नहीं खोया। कहा कि देखते रहिए। संयोग देखिए कि कुछ महीने बाद सही चंद्रशेखर प्रधान मंत्री बन भी गए। अचानक। अफ़सोस कि जयपुरिया तब तक अख़बार बेच चुके थे। हुआ यह कि इस के पहले पायनियर की 125 वीं जयंती मनाने के लिए तब के प्रधान मंत्री राजीव गांधी को जयपुरिया ने समारोहपूर्वक बुलाया। दिल्ली के विज्ञान भवन में समारोह हुआ। फिर तो राजीव गांधी से केमिकल फैक्ट्री लगाने के चार-पांच लाइसेंस जयपुरिया ने झटक लिए। पूंजी थी नहीं। लोन लेने के लिए मार्जिन मनी भी नहीं थी। अंततः पायनियर और स्वतंत्र भारत अख़बार और उस की बिल्डिंग थापर ग्रुप को जयपुरिया बेच बैठे थे । अख़बार का यह बिकना अख़बार कर्मचारियों के लिए तो बुरा साबित हुआ ही , जयपुरिया के लिए भी घातक साबित हुआ। यह एक अलग कथा है ।

जो भी हो , व्यापारियों के राजनीतिक विज्ञान की ऐसी बहुत सी कहानियां हैं मेरे पास । जो फिर कभी। इस बार भी अगर राजनीतिक परिणाम की जानकारी लेनी हो तो किसी मीडिया , किसी पार्टी , किसी सर्वे के बजाय किसी ठेठ व्यवसाई से पता कीजिए।  

Thursday, 11 April 2019

जब राजीव गांधी ने अमेठी में बंपर बूथ कैप्चरिंग करवाई और पत्रकारों को पिटवाया

दयानंद पांडेय 

राजीव गांधी 

कांग्रेस का गढ़ रही अमेठी संसदीय क्षेत्र की भी अजब कहानी है। 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के तब के युवराज संजय गांधी ने जब चुनाव लड़ने के लिए मन बनाया तो कांग्रेस शासित सभी राज्यों के मुख्य मंत्री संजय गांधी को अपने-अपने राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए बुलाने लगे। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने भी संजय गांधी को अमेठी से लड़ने के लिए बुलाया। आए अमेठी संजय गांधी , हेलीकाप्टर से नारायण दत्त तिवारी को साथ ले कर। अमेठी की खासियत यह है कि रायबरेली से सटा हुआ है। जो तब इंदिरा गांधी का संसदीय क्षेत्र था। आज सोनिया गांधी का है। सो जब गुड़ बोओ , गन्ना  बोओ  की सीख देने वाले संजय गांधी ने हेलीकाप्टर से अमेठी भ्रमण करते हुए जब नीचे खासी हरियाली देखी तो तिवारी जी से पूछा कि यह कौन सी फसल है ? तो तिवारी जी ने लपक कर जवाब दिया कि यहां की सारी फसलें हरी-भरी हैं। असल में तिवारी जी को खुद नहीं मालूम था कि यह कौन सी फसल थी सो हड़बड़ा कर हरी-भरी बता दिया था। तब , जब कि अमेठी का इलाका , ऊसर इलाका है। वह जो हरा-भरा दिख रहा था , वह कोई फसल नहीं , सरपत थी। जिसे जानवर भी नहीं खाते। बहरहाल संजय गांधी को वह हरा-भरा इलाक़ा पसंद आ गया। वह चुनाव लड़ गए। लेकिन जनता लहर में हार गए। लेकिन जनता सरकार के गिरने के बाद 1980 के चुनाव में संजय गांधी जीत गए। जीत कर पता चला कि यह  तो ऊसर है। सो अमेठी को इण्डस्ट्रियल हब बनाना चाहते थे वह।  लेकिन संजय गांधी का हवाई जहाज दुर्घटना में निधन हो गया। सो उन का यह सपना भी तभी टूट गया। बाद के दिनों में  इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984  में राजीव गांधी कांग्रेस से चुनाव लड़े। राजीव गांधी के खिलाफ मेनका गांधी ने चुनाव लड़ा। लेकिन जैसे जनता लहर में संजय गांधी चुनाव हार गए थे , वैसे ही इंदिरा लहर में मेनका गांधी भी चुनाव हार गईं । इस के पहले 1981 में हुआ उपचुनाव भी राजीव गांधी ने जीता था। 

लेकिन 1984 में राजीव गांधी को चुनाव जिताने के लिए अमेठी में जिस तरह भारी पैमाने पर बूथ कैप्चरिंग हुई वह अदभुत थी । अमेठी के इस चुनाव को कवर करने के लिए लखनऊ से दो पत्रकार गए थे और एक फ़ोटोग्राफ़र। दैनिक जागरण से वीरेंद्र सक्सेना , आज से अजय कुमार । फ़ोटोग्राफ़र थे दैनिक जागरण से बी डी गर्ग । जम कर हो रही बूथ कैप्चरिंग का प्रमाण सिर्फ फ़ोटो से ही साबित किया जा सकता था । तब के दिनों चैनल वगैरह तो थे नहीं । सो बी डी गर्ग ने धुआंधार फ़ोटो खींची इस बूथ कैप्चरिंग की। जगह-जगह बी डी गर्ग और बाकी पत्रकारों से कांग्रेसी गुंडों से लगातार झड़प होती रही। बूथ कैप्चरिंग को ले कर। इन कांगेसी गुंडों की कमान दिल्ली में बैठे अरुण नेहरु के हाथ थी। बी डी गर्ग होशियार और अनुभवी फ़ोटोग्राफ़र थे । वह समझ गए कि देर-सवेर कांग्रेसी गुंडे उन के कैमरे पर भी मेहरबान हो सकते हैं । सो वह फ़ोटो खींचते जाते थे और रील निकाल-निकाल कर झाड़ियों में फेंकते जाते । अंततः तीनों पत्रकारों समेत फ़ोटोग्राफ़र बी डी गर्ग भी कांग्रेसी गुंडों से पिट गए । बल्कि बुरी तरह पिट गए । बी डी गर्ग के कैमरे पर भी हमला हुआ । रील निकाल ली गई । लुटे-पिटे पत्रकार अमेठी से लखनऊ लौटे। पिट भले गए थे यह पत्रकार पर इन्हें संतोष था इस बात का कि प्रधान मंत्री राजीव गांधी के चुनाव क्षेत्र से बूथ कैप्चरिंग की बड़ी ख़बर ले कर वह लौट रहे हैं । लेकिन यह रिपोर्टर जब लखनऊ लौट कर अपने-अपने अख़बार के दफ़्तरों में पहुंचे तब और मुश्किल हो गई। क्यों कि इन रिपोर्टरों के दफ़्तर पहुंचने से पहले अरुण नेहरु का फ़ोन इन अख़बार दफ़्तरों में आ चुका था । रिपोर्टरों को दफ़्तर में ख़ूब डांटा गया। जलील किया गया। कहा गया कि आप लोग अमेठी रिपोर्टिंग करने गए थे कि क्रांति करने। वहां मार-पीट करने गए थे ? रिपोर्टरों ने प्रतिवाद किया और बताया कि अमेठी में भारी बूथ कैप्चरिंग होते देख कर आए हैं और वहां कांग्रेसी गुंडों ने उन की पिटाई की है। लेकिन किसी भी अख़बार में रिपोर्टरों की एक नहीं सुनी गई। उलटे उन्हें और जलील किया गया। कहा गया कि बूथ कैप्चरिंग की जगह प्लेन सी , रुटीन ख़बर लिखें। यही हुआ। दूसरे दिन रुटीन ख़बर ही सारे अख़बारों में छपी। प्रचंड इंदिरा लहर में कांग्रेस पूरे देश में जीत का झंडा लहरा कर बंपर बहुमत लाई थी। राजीव गांधी ने प्रधान मंत्री पद की शपथ ले ली। बात आई-गई हो गई। 

लेकिन सचमुच बात आई-गई नहीं हुई।

अख़बारों में अमेठी के बूथ कैप्चरिंग की ख़बर और फ़ोटो भले नहीं छपी पर पत्रकारों के बीच बूथ कैप्चरिंग और पत्रकारों की पिटाई की ख़बर चर्चा का विषय बनी रही। लेकिन लखनऊ के किसी अख़बार में इस ख़बर को छापने की हिम्मत नहीं हुई। पर लखनऊ में तैनात जनसत्ता , दिल्ली के संवाददाता जयप्रकाश शाही को जब यह पता चला तो उन्हों ने इन पत्रकारों से बातचीत की। सभी ने बूथ कैप्चरिंग की पुष्टि करते हुए पूरी डिटेल बताई। शाही ने फ़ोटोग्राफ़र बी डी गर्ग से भी बात की । और कहा कि एक भी फ़ोटो मिल जाए तो ख़बर लिख दूंगा। बी डी गर्ग ने शाही से कहा कि अब क्या फ़ायदा , अब तो सरकार गठित हो गई । जयप्रकाश शाही ने कहा कि सरकार की ऐसी-तैसी। बस आप फ़ोटो दीजिए , सरकार गिर जाएगी। राजनारायण के मुकदमे पर जस्टिस जगमोहन सिनहा इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित करने का इतिहास दर्ज कर चुके थे । जयप्रकाश शाही भी धुन के पक्के रिपोर्टर थे । कई ख़बरें ब्रेक कर चुके थे । अंततः बी डी गर्ग को ले कर वह अमेठी गए । संयोग ही था कि झाड़ियों में फेंकी कुछ रीलें मिल गईं । बी डी गर्ग ने फ़ोटो डेवलप कर शाही को सौंप दी। शाही ने फ़ोटो समेत डिटेल रिपोर्ट जनसत्ता को भेज दी। जनसत्ता के अंदर के पन्ने पर खोज ख़बर के तहत यह अमेठी में बूथ कैप्चरिंग की खबर कोई आधे पन्ने की छपी। ख़बर छपते ही बवाल हो गया। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी को सीधे राजीव गांधी का फ़ोन आया। तिवारी जी ने बी डी गर्ग को बुलवाया और स्टेट प्लेन से ले कर उन्हें दिल्ली पहुंचे। राजीव गांधी से मिलवाया। सारी निगेटिव पी एम ओ में सौंप दी। शाम तक लखनऊ लौट कर बी डी गर्ग ने एक बयान जारी कर बताया कि मैं ने ऐसी कोई फ़ोटो नहीं खींची है , क्यों कि अमेठी में कोई बूथ कैप्चरिंग नहीं हुई थी। जनसत्ता में छपी सभी फ़ोटो फर्जी हैं । बाद में जनसत्ता में भी इस ख़बर का बाक़ायदा खंडन छपा। उन दिनों मैं जनसत्ता , दिल्ली में ही था। जयप्रकाश शाही अपने समय की रिपोर्टिंग के सूर्य थे । उन की ख़बरों का कोई शानी नहीं था। इस लिए इस खंडन पर मुझे यकीन नहीं हुआ।

बाद के दिनों में फ़रवरी , 1985 में जब मैं स्वतंत्र भारत , लखनऊ आ गया तो एक बार फुर्सत में जयप्रकाश शाही से इस अमेठी बूथ कैप्चरिंग वाली ख़बर और खंडन की चर्चा की और पूछा कि इस ख़बर पर कैसे चूक गए आप ? शाही बहुत आहत हो कर , लगभग घायल हो कर बोले , मैं नहीं चूका , यह साला फ़ोटोग्राफ़र बी डी गर्ग बिक गया और पलट गया। ख़बर तो सौ फीसदी सही थी ! और वह चुप हो गए । मायूस हो गए । ऐसे , जैसे कोई विजेता हार गया हो । शाही बोले , चूक हुई कि फ़ोटो तो ख़रीद लिया था , निगेटिव भी ख़रीद लिया होता तो यह अपमान न पीना पड़ता। कि मैं फर्जी ख़बर लिखता हूं।

सचमुच इस घटना के बाद बी डी गर्ग की माली हालत काफी सुधर गई थी। रातो-रात सरकारी घर मिल गया था। स्कूटर की जगह कार आ गई थी। देखते ही देखते वह लाखों में खेलने लगे थे। सरकार में जो काम हो , वह चुटकी बजाते ही करवा लेते थे। जब तक राजीव गांधी की सरकार थी लखनऊ से दिल्ली तक उन की जय-जय थी। अब बी डी गर्ग नहीं हैं , उन की कहानियां हैं। जयप्रकाश शाही भी नहीं हैं । उन की भी सिर्फ़ कहानियां शेष हैं। एक रोड एक्सीडेंट में हम शाही जी को खो बैठे। ऐसे ही चुनाव का मौसम था। 18 फ़रवरी , 1998 का दिन था। संभल से मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ रहे थे । हम लोग संभल कवरेज के लिए जा रहे थे। अम्बेसडर कार में पीछे की सीट पर जयप्रकाश शाही और हम अगल-बगल ही बैठे थे। जैसे कि लखनऊ में हमारे घर भी अगल-बगल हैं। गोरखपुर में हमारे गांव आस-पास हैं। पत्रकारिता में भी हम शाही जी के कहने से ही आए। नहीं हम तो कविताएं लिखते थे , कहानी लिखते थे । खैर दिन के तीन बजे थे , खैराबाद , सीतापुर में हमारी कार एक ट्रक से टकरा गई। आमने-सामने की टक्कर थी। शाही जी और ड्राइवर मौके पर ही नहीं रहे। शाही जी तब हिंदुस्तान अख़बार में थे। हम राष्ट्रीय सहारा में । हम और आज अख़बार के गोपेश पांडेय महीनों मौत से लड़ने के बाद किसी तरह जीवन में लौटे ।

बहरहाल उन्हीं दिनों 1985 में एक बार आज के अजय कुमार से अमेठी की उस बूथ कैप्चरिंग के बाबत बात चली। बात करते-करते अजय कुमार अचानक रो पड़े। गला भर आया उन का , आंख से आंसू। अजय कुमार  कहने लगे , पांडेय जी , अमेठी में उस दिन पिटने का बिलकुल मलाल नहीं था। बल्कि ख़ुशी थी कि पिटे भी तो क्या , हमारे पास बहुत बड़ी ख़बर है। एक बड़ी ख़बर ले कर लौट रहे हैं। मुश्किल तब हुई जब लखनऊ के दफ़्तर आ कर डांट खानी पड़ी। बनारस तक से फ़ोन पर डांट पड़ी। यह डांट , यह बेइज्जती अमेठी में पिटाई से ज़्यादा बड़ी थी। ज़्यादा यातनादाई थी कि उस ख़बर को लिखने से रोक दिया गया था , जिसे पिटने की कीमत पर भी हम बड़ी बहादुरी से ले आए थे। इस घटना के बाद अजय कुमार का दिल आज अख़बार से टूट गया। जल्दी ही वह आज छोड़ कर तब के समय की शानदार पत्रिका माया के ब्यूरो चीफ़ बन गए लखनऊ में। आज भी वह 75 पार कर शानदार और स्वस्थ जीवन बसर कर रहे हैं । निरंतर लिखते हुए सक्रिय पत्रकारिता करते हुए।

दिसंबर , 1984 के लोकसभा चुनाव में अमेठी की बूथ कैप्चरिंग तब और महत्वपूर्ण हो जाती है कि जब पूरे देश में इंदिरा गांधी की हत्या के नाते , इंदिरा लहर थी । प्रचंड लहर थी । तब किस बात का डर था तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी को कि वह भारी बूथ कैप्चरिंग करवाने पर आमादा थे। पत्रकारों की पिटाई करवानी पड़ गई । ख़बर रुकवानी पड़ गई। आश्वस्त क्यों नहीं थे राजीव गांधी अपनी जीत के प्रति। किस बात का डर था भला। यह सवाल तो आज भी शेष है । अलग बात है कि अब राजीव गांधी भी नहीं हैं , न ही तब के उन के कमांडर अरुण नेहरु। लेकिन किसी के रहने , न रहने से सवाल कहां समाप्त होते हैं भला । सवाल तो शेष ही रहते हैं उन स्मृति-शेष लोगों के साथ ही।               


Wednesday, 10 April 2019

बइठ राफ़ेल अब उड़ो अकासा



 दयानंद पांडेय

बइठ राफ़ेल अब उड़ो अकासा 
इहां नहीं अब वोट के  आसा

मतदाता का विवेक ही जाने  
अब कौन है सोना , कौन है कांसा 

ई झूठ कि ऊ झूठ कि सारे झूठ 
किसी के पास नहीं सच का पासा  

झूठ के दलदल में बोलें ख़ुद को सांच
चुनाव जीतने के लिए खुद को फांसा

बैंड बजाते घूम रहे थे इन का उन का 
बाज रहा अब उन के सिर पर तासा

[ 10 अप्रैल , 2019 ]


Monday, 8 April 2019

वोट डाल कर हम अपनी बेहतर दुनिया बनाने जा रहे हैं

फ़ोटो : अनिल रिसाल सिंह 

ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

आप घर से निकलिए भी हम दुनिया बदलने जा रहे हैं
वोट डाल कर हम अपनी बेहतर दुनिया बनाने जा रहे हैं

चाहिए जैसे साफ़ हवा , साफ पानी , हरी धरती , नीला आकाश
वोट के हथियार से पर्यावरण का बिगड़ा संतुलन बदलने जा रहे हैं

जैसे भेजते हैं बच्चे को बढ़िया स्कूल , देते हैं पौष्टिक भोजन
सही उम्मीदवार चुन कर बच्चे को भली दुनिया देने जा रहे हैं

बच्चे हमारा भविष्य हैं तो वोट इस भविष्य की बुनियाद
वोट के इनवेस्टमेंट से बच्चे को बेहतर दुनिया देने जा रहे हैं

आप बदलिए अपनी प्राथमिकता चुनिए सही उम्मीदवार
वोट के जरिए अपनी दुनिया का मौसम बदलने जा रहे हैं

जैसे करते हैं हम कड़ी मेहनत अपने बेहतर कल के लिए
वोट की गंगा नहा कर जिंदगी को खूबसूरत बनाने जा रहे हैं

[ 8 अप्रैल , 2019 ]


Monday, 1 April 2019

लालकृष्ण आडवाणी शाम को प्रधान मंत्री पद की शपथ लेंगे , नरेंद्र मोदी कांग्रेस अध्यक्ष बने

लालकृष्ण आडवाणी 

नरेंद्र मोदी 
आखिर वही हुआ जिस का अंदेशा बीते पांच साल से था। राहुल गांधी को आज कांग्रेस अध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया गया है । इस के पहले हुआ यह कि अहमद पटेल की सलाह पर सोनिया गांधी आज सुबह श्री हरी कोटा से एमीसैट की लांचिंग के पहले ही नरेंद्र मोदी के घर पहुंचीं। बिना किसी मीडिया के। कांग्रेस पार्टी को बचाने की गरज से। नरेंद्र मोदी को कांग्रेस अध्यक्ष पद प्रस्तावित कर दिया। इसी लिए आज एमीसैट की लांचिंग पर राष्ट्र के नाम संदेश भी नहीं आया। खैर , अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के परामर्श पर नरेंद्र मोदी ने अंततः सोनिया गांधी के प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया है । हां , इस के पहले नरेंद्र मोदी ने अपने दो दोस्तों एक बराक ओबामा और दूसरे, इजराइल के राष्ट्रपति रेवेन रिवलिन से भी सलाह ली। दुबई के प्रिंस ने भी फोन कर मोदी को इस के लिए मनाने की पूरी कोशिश की। नरेंद्र मोदी के पास अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुकने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने सोनिया गांधी के इस फैसले का चुप रह कर ही स्वागत किया है। संजय बारू ने मनमोहन सिंह के इस स्वागत पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि देर से लिया गया दुरुस्त फ़ैसला है। यह फैसला मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्री रहते हुए ही ले लेना चाहिए था। जद यू के प्रवक्ता के सी त्यागी ने मोदी को दिली बधाई देते हुए कहा है कि सोनिया जी के इस फ़ैसले से कांग्रेस की वंशवादी राजनीति पर विराम लग गया है। मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि लोहिया जी का सपना इतनी जल्दी पूरा हो जाएगा , यह नहीं पता था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि यह तो बस एक आदान-प्रदान भर है। संघ के संस्थापक पूजनीय हेडगेवार जी ने कांग्रेस से निकल कर संघ की स्थापना की थी। अब हमारे संघ के एक स्वयंसेवक मोदी ने कांग्रेस पर कब्जा कर लिया है। मुझे इस का बहुत आनंद है।


मोहन भागवत
उधर भाजपा में इस की बड़ी प्रतिक्रिया हुई है। अमित शाह ने लालकृष्ण आडवाणी को 2019 के लिए प्रधान मंत्री पद के लिए मनोनीत करते हुए कहा है कि निरंतर विदेश यात्राएं करते हुए नरेंद्र भाई मोदी इस कदर अंतरराष्ट्रीय दबाव  में भी आ जाएंगे , यह अनुमान बिलकुल नहीं था।  नहीं बतौर अध्यक्ष उन की विदेश यात्राओं पर लगाम तो मैं लगा ही सकता था। अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि नरेंद्र भाई मोदी बेल पर चल रही सोनिया जी के दबाव में आ गए हैं , इस बात को मैं नहीं मान सकता। शत्रुघन सिनहा ने कांग्रेस में जाने का इरादा मुल्तवी कर दिया है। कहा है कि जिस कारण से कांग्रेस में जा रहा था , वह कारण अब खुद कांग्रेस में आ गया है तो उस कांग्रेस में अब क्या जाना। मुरली मनोहर जोशी ने कहा है कि जब हिंदू में राफेल की फाइलें  छपने लगीं तभी मुझे  एक प्रकांड ज्योतिषी  ने  बता दिया था कि मोदी अब कांग्रेस ज्वाइन कर ही बच सकते हैं।  मैं ने तभी आदरणीय आडवाणी जी और आदरणीय भागवत जी को यह बात बता दी थी।  पर आडवाणी जी मेरे पुराने विरोधी ठहरे। मेरी बात को अनसुनी करते हुए आदरणीय भागवत जी को को मेरे खिलाफ भर दिया। फिर आदरणीय आडवाणी जी शायद यह भी चाहते थे कि नरेंद्र मोदी कीचड़ में इतना गिर जाएं कि उन का अपना कमल खिल जाए। और देखिए कि फ़िलहाल खिल भी गया है। लेकिन आदरणीय आडवाणी जी नरेंद्र मोदी को ठीक से नहीं जानते , मैं जानता हूं। दूसरे , मुझे ज्योतिषी ने बताया है नरेंद्र मोदी भाजपा का कांग्रेस में विलय करवा कर खुद ही प्रधान मंत्री बनने की जुगत करेंगे। तो आदरणीय आडवाणी जी फिर रह जाने हैं। 


सोनिया गांधी 
चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान ने इस पर संयुक्त प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो जाने की अब पूरी उम्मीद है। भारत के सभी वामपंथी दलों ने एक सुर में कहा है कि इस तरह तो सेक्यूलरिज्म की स्पेस खत्म हो जाएगी। सेक्यूलर राजनीति करने वालों की स्पेस खत्म करने की कांग्रेस और भाजपा की मिली-जुली साज़िश है। आज़म खान ने कहा है कि हम इस पूरे मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने के हामीदार हैं। एक चिट्ठी लिख दी है। यशवंत सिनहा , अरुण शौरी , तोगड़िया आदि की घर वापसी हो गई है। राजनाथ सिंह ने अपना गृह मंत्रालय का पोर्टफोलियो सुनिश्चित कर लिया है। गडकरी ने कहा है कि मुझे तो उप प्रधान मंत्री भी आडवाणी जी को बना देना चाहिए। आखिर उन का मार्ग मैं ने ही बनाया है। सड़क मैं ने ही बनवाई । लेकिन आडवाणी जी ने साफ़ कह दिया है एक प्रधान मंत्री पद छोड़ कर , बाकी किसी भी मंत्री का विभाग नहीं बदला जाएगा , न कोई मंत्री बदला जाएगा। इस चुनावी बेला में मैं कोई रिश्क नहीं लेना चाहता। शाम को राष्ट्रपति भवन में लालकृष्ण आडवाणी का शपथ ग्रहण है । बस इंतज़ार है तो नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े के ऐलान का। तो शाम को मिलते हैं राष्ट्रपति भवन में। मैं ने पाकिस्तान एयर लाइंस का टिकट बुक करवा लिया है , जो सीधे राष्ट्रपति भवन के सामने इंडिया गेट पर लैंड करेगी। महबूबा मुफ़्ती और फारुख अब्दुल्ला भी इसी फ्लाईट में होंगे। हवा का रुख देख कर हम लोग अपनी प्रतिक्रिया वहीँ देंगे। मैं ने पहले योगी जी को भी फ़ोन किया था पर योगी जी ने इस शपथ समारोह में जाने से साफ़ इंकार कर दिया है। कहा है कि पाकिस्तान परस्तों और जिन्ना प्रेमियों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। गिरिराज सिंह ने तो साफ़ कह दिया मोदी जिधर , हम उधर। आडवाणी जी को ऐसे कई सारे संदेश मिल चुके हैं कि मोदी जिधर , हम उधर।  

बस एक ममता बनर्जी भर हैं जो खुले आम बोल रही हैं , मोदी जिधर , हम उधर नहीं।  लेकिन सोनिया गांधी ने मोदी को आश्वस्त करते हुए कहा है कि , मोमता ! मोमता जी को हम मना लेंगे। मोदी ने पूछा लिया है कि वह कैसे भला ? सोनिया ने कहा है कि जब आप को मना लिया तो मोमता जी का क्या है। प्रियंका को लगा दिया है पहले ही। प्रियंका साड़ी पहन कर उन को समझा रही है , मोमता जिधर , मोदी उधर। अच्छा , अच्छा । उधर नरेंद्र मोदी भागवत को फोन कर ढाढस बंधाते हुए बता रहे हैं कि घबराने की कोई बात नहीं है , जल्दी ही देश के लोग आदरणीया सोनिया जी से पूछते फिरेंगे , कांग्रेस किधर ? और उन्हें जवाब देते नहीं बनेगा। आप लोग आदरणीय आडवाणी जी को शपथ दिलवा दीजिए। 

आडवाणी जी को देश भर से लोगों ने बधाई देनी शुरू कर दी है। गोविंदाचार्य ने आडवाणी जी को बधाई देते हुए कहा है कि आख़िर आज मुखौटा उतर गया। आप के रोने और बिसूरने के दिन गए , हंसने और खिलखिलाने के दिन आए।  देर आयद , दुरुस्त आयद। आज आप के साथ न्याय हुआ है। नायडू , पटनायक , देवगौड़ा आदि ने भी बधाई दी है । शरद यादव , जेल से लालू आदि ने भी ट्विट कर बधाई परोसी है । गुलाम नबी आज़ाद ने कहा है , कश्मीरियत को आडवाणी जी से बहुत उम्मीद है । ओवैसी ने कहा है कि मुसलमानों की दुश्वारी इधर भी है , उधर भी है। हम को यह सूरतेहाल कतई पसंद नहीं है। सो हम न इधर हैं , न उधर हैं । हम बस हैदराबाद में हैं। मायावती और अखिलेश का भी एक साझा बयान आया है कि यह तो एक न एक दिन होना ही था। आख़िर हमारे गठबंधन से नरेंद्र मोदी डर गए। डर कर कांग्रेस की बिल में घुस गए। आडवाणी जी को बधाई है। इस सब के बीच राज्यपाल लोग सकते में हैं कि उन का भविष्य अब कैसा होगा। चुनाव आयोग पर भी लोगों की नज़र बनी हुई है । कि आडवाणी जी की जागी किस्मत पर कहीं वह ही न लगाम लगा दे । खदबदाहट कांग्रेस में भी बहुत है लेकिन चूंकि हाई कमान का फ़ैसला है सो चिदंबरम , कपिल सिब्बल आदि सभी कसमसा कर रह गए हैं। अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि अच्छा हुआ , कांग्रेस से हमारा समझौता नहीं हुआ। अब आडवाणी जी से मिल कर हम भाजपा से समझौता करेंगे। पी सी चाको किंकर्तव्यविमूढ़ हैं ।

एक छोटी सी ख़बर यह भी आ रही है कि राहुल गांधी आडवाणी जी के शपथ ग्रहण में शामिल नहीं होंगे । क्यों कि वह बैंकाक चले गए हैं। साथ में रावर्ट वाड्रा भी हैं। सुब्रमण्यम स्वामी न्यूज़ चैनलों को फ़ोन मिला रहे हैं , अपनी बाईट देने के लिए।

मूर्ख दिवस मुबारक हो !