Sunday 12 May 2024

राजीव गांधी की जीत को मात देती नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत

दयानंद पांडेय 

2024 में अनुमान से कहीं अधिक नरेंद्र मोदी की हाहाकारी जीत 1984 के राजीव गांधी की कांग्रेसी जीत को मात देने जा रही है। तब इंदिरा लहर थी , अब की राम लहर है। बतर्ज राम से बड़ा राम का नाम। बड़े-बड़े अक्षरों में कहीं यह लिख कर रख लीजिए। स्क्रीनशॉट ले कर रख लीजिए। ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रूरत काम आए। आलम यह है कि जनता के बीच कभी भूल से भी नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ कोई टिप्पणी कर देने पर जनता मारने के लिए दौड़ा लेती है। समय पर चुप न हो जाइए तो पिटने की नौबत आ जा रही है। हालां कि राजनीति और चुनाव में असंभव जैसा शब्द कभी नहीं होता। कभी भी कुछ भी संभव हो सकता है। अपराजेय कहे जाने नरेंद्र मोदी भी कभी न कभी हार सकते हैं पर अभी और बिलकुल अभी तो नामुमकिन है। 2024 के इस चुनाव में मोदी के 400 पार के टारगेट को रोक पाना किसी भी के लिए असंभव सा ही दिखता है फ़िलहाल। 400 पार नहीं , न सही , 400 के आसपास तो है ही। दस-पांच सीट आगे-पीछे हो सकती हैं। बस।  बहुत ज़्यादा उलटफेर होता नहीं दीखता , 2024 की चुनावी धरती पर। विकास के असंख्य काम तो हैं ही भाजपा और एन डी ए के खाते में। आगे की रणनीति भी अदभुत  है। भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो लाजवाब काम किए हैं मोदी ने वह तो न भूतो , न भविष्यति। सड़कों का महाजाल , एयरपोर्ट , रेल , अंतरिक्ष हर कहीं धमाकेदार उपस्थिति। तिस पर गरीबों को मुफ़्त राशन , पक्का मकान , शौचालय , गैस , जनधन , आयुष्मान जैसी योजनाएं बिना किसी भेदभाव के , बिना हिंदू-मुसलमान के। लेकिन सेक्यूलरिज्म के थोथे नारे ने मुसलमानों को मुख्य धारा से काट कर सिर्फ़ यूज एंड थ्रो वाला वोट बैंक बना कर अभिशप्त कर दिया है। इतना कि मुसलमान सिर्फ़ इस्लाम सोचता है। ओवैसी जैसे लोग सिर्फ़ मुसलमान की बात करते हैं। देश , समाज , विकास आदि की परिधि से इतर सिर्फ़ इस्लाम और इस्लाम। नतीज़ा हिंदू-मुसलमान। वनली हिंदू-मुसलमान। यही चुनाव है और यही चुनाव परिणाम है। 

मोदी की मानें तो 2047 की कार्य-योजना पर वह कार्यरत हैं। 2047 की कार्य-योजना मतलब विकास की योजना। दुनिया में भारत को नंबर वन बनाने की योजना। हिंदू-मुसलमान की योजना नहीं। चौतरफा विकास की पूर्णिमा की यह चांदनी न भी होती तो भी सिर्फ़ कश्मीर में 370 हटाने और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण ही काफी था नरेंद्र मोदी की तिबारा सरकार बनवाने के लिए। हैट्रिक लगाने के लिए। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय सुनिश्चित कर दिया है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित इस सूर्योदय को अपने अहंकार के ग्रहण से ढंक लेना चाहते हैं। लेकिन सूर्योदय तो हो रहा है। सूर्य तो चमक रहा है। राजनीतिक पंडित दक्षिण भारत में राम लहर को नहीं देख पा रहे हैं तो यह उन का दृष्टिभ्रम है। दक्षिण भारत ही क्यों समूचे भारत में राम लहर अनायास ही देखने को मिल रहा है। शायद इसी लिए 2024 का यह लोकसभा चुनाव अंतत: हिंदू-मुसलमान और आरक्षण की मूर्खता के युद्ध में तब्दील हो चुका है। न विपक्ष मोदी के दस साल के कामकाज पर सवाल खड़े कर रहा है , न मोदी अपने कामकाज पर बात कर रहे हैं। यह गुड बात नहीं है। भ्रष्टाचार , बेरोजगारी और महंगाई जैसी सर्वकालिक समस्याएं भी इंडिया गठबंधन ने अपने अहंकार में बंगाल की खाड़ी में बहा दी हैं। उन की प्राथमिकता में हिंदू-मुसलमान ही रह गया है। 

एक मुस्लिम वोट बैंक के पागलपन के नशे में समूचा इंडिया गठबंधन धुत्त है। इतना कि इंडिया गठबंधन के लोग हर बार की तरह भूल बैठे हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की सारी ताक़त ही है मुस्लिम तुष्टिकरण। 2014 में नरेंद्र मोदी की विजय हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव पर ही हुई थी। अन्ना हजारे के आंदोलन या मनमोहन सिंह सरकार के भ्रष्टाचार के आधार पर नहीं। सर्जिकल स्ट्राइक , एयर स्ट्राइक के सुबूत मांगने , नोटबंदी , जी एस टी , राफेल के तमाम शोर-शराबे और साज़िश के बावजूद 2019 का लोकसभा चुनाव भी मोदी ने हिंदू-मुसलमान की पिच पर ही न सिर्फ़ जीता बल्कि ज़्यादा बढ़त के साथ जीता। और जान लीजिए कि 2024 का लोकसभा चुनाव भी नरेंद्र मोदी इसी हिंदू-मुसलमान की पिच पर कहीं और ज़्यादा बढ़त के साथ जीतने जा रहे हैं। याद दिलाता चलूं कि भारतीय राजनीति में हिंदू-मुसलमान और जातीय राजनीति की जनक कांग्रेस है। हिंदू-मुसलमान की बुनियाद पर भारत का बंटवारा हो गया। इसी कांग्रेस की दुरंगी नीति के चलते। यही कांग्रेस अब भी हिंदू-मुसलमान की लालटेन जलाए रखती है। कांग्रेस की देखादेखी क्षेत्रीय पार्टियों यथा उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी , बहुजन समाज पार्टी तथा बिहार राष्ट्रीय जनता दल ने तो रीढ़ और चेहरा ही बना लिया मुस्लिम वोट बैंक को। एम वाई का टर्म ही बन गया। अलग बात है कि पहले जो एम वाई का अर्थ था , मुस्लिम और यादव वह एम वाई धीरे-धीरे मोस्टली यादव में तब्दील हो गया है। फिर भी अभी एक इंटरव्यू में अखिलेश यादव कहने लगे एम वाई मतलब महिला और युवा। तो एंकर हंसती हुई बोली , अखिलेश जी जब आप राजनीति में नहीं थे तब से पत्रकारिता कर रही हूं। अखिलेश यह सुन कर पूरी बेशर्मी से टोटी बन गए। 

ख़ैर यह भी याद दिलाता और पूछता चलूं कि अगर गोधरा न होता तो ? 

गोधरा न होता तो 2002 में गुजरात दंगा न हुआ होता। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों को तब जिस तरह पूरी बेरहमी से कुचला और दंगाइयों के होश ठिकाने किए , वह एक नज़ीर बन गया। गोधरा जिस में ट्रेन की कई बोगियों का बाहर से फाटक बंद कर मिट्टी का तेल डाल कर अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को ज़िंदा जला कर मारा गया , नरसंहार किया गया , इस पर सिरे से ख़ामोश रहने वाले लोगों ने गुजरात दंगों को स्टेट स्पांसर दंगे का नैरेटिव गढ़ा। सी बी आई जांच करवाई मनमोहन सिंह सरकार ने। बारह-बारह घंटे लगातार सी बी आई तत्कालीन मुख्यमंत्री , गुजरात नरेंद्र मोदी से पूछताछ करती थी तब के दिनों। यह वही दिन थे जब अमित शाह को पहले जेल फिर तड़ीपार किया गया मनमोहन सरकार के इशारे पर। सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर बताया। ख़ून का सौदागर बताया। एक से एक नैरेटिव गढ़े गए। तीस्ता सीतलवाड़ ने एन जी ओ बना कर , मोदी के ख़िलाफ़ तमाम फर्जी मुकदमे दर्ज करवाते हुए , आंदोलन करते हुए करोड़ो रुपए कमाए। तमाम अदालतों से होते हुए मामला सुप्रीमकोर्ट तक गया और सभी मामलों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट मिली। 

देश के लोगों को समझ आ गया कि दंगाइयों से अगर कोई निपट सकता है तो वह नरेंद्र मोदी ही है। मुस्लिम तुष्टिकरण का क़िला अगर कोई तोड़ सकता है तो वह वनली नरेंद्र मोदी। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सॉफ्ट लोग नहीं। लालकृष्ण आडवाणी जैसे हार्डकोरर भी नहीं। इसी बिना पर 2013 में 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री के लिए प्रस्तावित किया गया। तैयारी 2012 में ही हो गई थी। बताया गया विकास का गुजरात मॉडल। लेकिन यह परदा था। सच तो यह था जो खुल कर कहा नहीं गया , वह था मुसलमानों के तुष्टिकरण को रोकने का गुजरात मॉडल। दंगाइयों को सबक़ सिखाने का गुजरात मॉडल। 2014 में भी पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा गया था। प्रचंड बहुमत से जीत कर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। 

गुजरात का विकास मॉडल पूरे देश में लागू किया। विकास के साथ ही दंगाइयों को क़ाबू किया और मुस्लिम तुष्टिकरण के कार्ड को नष्ट और ध्वस्त करते हुए बता दिया कि मुस्लिम वोट बैंक नाम की कोई चीज़ नहीं होती , सत्ता की राह में। मुस्लिम वोट बैंक को ध्वस्त करने के लिए मंडल-कमंडल के वोट को एक साथ किया। बताया कि यह हिंदू वोट बैंक है। इस के लिए 2012 से ही काम किया गया तब जा कर 2014 में सफलता मिली। पहली बार देश में भाजपा की बहुमत की सरकार बनी। पर नाम एन डी ए ही रहा। घटक दलों को सरकार में भी सम्मान देते हुए शामिल किया गया। 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ गुजरात दंगे की तोहमत तो कांग्रेस ने लगाया ही , उन की डिग्री की जांच-पड़ताल भी बहुत हुई। मोदी की पत्नी यशोदाबेन की खोज भी दिग्विजय सिंह जैसों ने की। ऐसे जैसे कोलंबस ने भारत की खोज की हो। पर सारे जतन धराशाई हो गए। ख़ुद दिग्विजय सिंह की बेटी की उम्र की अमृता राय से उन की प्रेम कहानी मोदी ने परोसवा दी। दिग्विजय-अमृता के तमाम अंतरंग फ़ोटो सोशल मीडिया पर घूमने लगे। 

लाचार हो कर दिग्विजय सिंह को अमृता राय से विवाह करना पड़ा। फिर भी उन का राजनीतिक निर्वासन हो गया। तब के समय राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह ही थे। मणिशंकर अय्यर हुए फिर। फिर सैम पित्रोदा। सब खेत हो गए बारी-बारी। अब वामपंथी बुद्धिजीवियों ने राहुल और उन की कांग्रेस को घेर लिया है। वामपंथी बुद्धिजीवी ही उन के भाषण लिखते हैं। नारे लिखते हैं। राहुल गांधी को कटखन्ना और अप्रासंगिक बना कर प्रियंका को लड़की हूं , लड़ सकती हूं का पाठ याद करवाते हैं। अहंकार ,  बदतमीजी की भाषा से सराबोर कर संपत्ति के समान बंटवारे की थीसिस समझा कर राहुल की राजनीति का बंटाधार करवाने की पूरी योजना बनाते हैं। नरेंद्र मोदी और भाजपा को वामपंथी बुद्धिजीवियों का विशेष आभार मानना चाहिए। क्यों कि राहुल गांधी को मोदी का बेस्ट प्रचारक बनाने में वामपंथी बुद्धिजीवियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।अपना बेस्ट एफर्ट लगा दिया है। लतीफ़ा और पप्पू बनने के बावजूद वामपंथी बुद्धिजीवियों का बेस्ट एसेट हैं राहुल गांधी। 

मोहब्बत की दुकान में नफ़रत और घृणा का सामान कैसे बेचा जाता है , वामपंथी बुद्धिजीवी ही तो सिखाते हैं राहुल गांधी को। यह हिंदू-मुसलमान भी वामपंथी ही सिखाते हैं। बुद्धू लेकिन धूर्त आदमी चने की झाड़ पर चढ़ जाता है। नहीं जानता कि विकास की पूर्णिमा की चांदनी के साथ ही साथ हिंदू-मुसलमान की पिच भी  नरेंद्र मोदी की ताक़त है। पाकिस्तान और उस के आतंक का जो बाजा बजा देता हो , भीख का कटोरा थमा देता हो , अभिनंदन जैसे जांबाज़ को रातोरात वापस ला सकता हो उस के सामने कांग्रेस और इंडिया गठबंधन का मुस्लिम वोट बैंक तो बिना किसी मिसाइल के चित्त हो जाता है। इंडिया गठबंधन के रणनीतिकारों को अब से सही , आगामी 2029 के चुनाव में ही सही , तय कर लेना चाहिए कि हिंदू-मुसलमान की पिच न बनाएं। न भाजपा के बुलाने पर भी इस पिच पर आएं। यह पिच देश , समाज और राजनीति के लिए तो हानिकारक है ही , कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए बेहद हानिकारक। हिंदू-मुसलमान , आरक्षण की खेती , जाति-पाति इस वैज्ञानिक युग में छोड़ने का अभ्यास करना चाहिए। 

महाभारत का जुआ प्रसंग याद आता है। जुआ खेलने से पहले युधिष्ठिर कृष्ण को सभा से बाहर जाने को कह देते हैं। कृष्ण के सामने वह जुआ नहीं खेलना चाहते थे। बाद में कृष्ण कहते हैं कि एक तो जुआ खेलना नहीं था। खेला भी तो मुझे साथ रखना चाहिए था। जैसे दुर्योधन ने शकुनि को अपनी तरफ से पासे फेकने के लिए रखा , युधिष्ठिर भी मुझे रख सकते थे। मैं शकुनि को हरा देता। जीतने नहीं देता। द्रौपदी का चीर हरण नहीं होता। तो यही स्थिति नरेंद्र मोदी की है। जो लोग नहीं जानते , अब से जान लें कि राम मंदिर बनवाने के लिए भी नरेंद्र मोदी ने कृष्ण नीति का उपयोग किया। चुनाव जीतने में भी नरेंद्र मोदी कृष्ण नीति का डट कर उपयोग करते हैं। अश्वत्थामा मरो , नरो वा कुंजरो किसी युधिष्ठिर से कहलवा ही देते हैं। जयद्रथ को मरवाने के लिए सूर्यास्त का ड्रामा भी। जाने क्या-क्या। चाणक्य भी साथ रखते ही हैं। भाजपा के सारथी भी हैं नरेंद्र मोदी और अर्जुन भी। जब जो भूमिका मिल जाए। बन जाए। इसी लिए दुहरा दूं कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लोग जब हिंदू-मुसलमान और जाति-पाति के आचार्य जब थे , तब थे। अब इस का आचार्यत्व नरेंद्र मोदी के पास है। इसी लिए अनुमान से कहीं अधिक हाहाकारी जीत होने जा रही नरेंद्र मोदी की। पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा जा रहा है। 

भाजपा हो , एन डी हो , कांग्रेस या इंडिया गठबंधन , मोदी नाम केवलम पर लड़ रहे हैं। 

तानाशाह कह लीजिए , सांप्रदायिक कह लीजिए , अंबानी , अडानी जैसे पूंजीपतियों का मित्र कह लीजिए , यह आप की अपनी ख़ुशी है , आप का अपना ईगो मसाज है। पर जनता-जनार्दन ने नरेंद्र मोदी का एक नाम विजेता रख दिया है। विश्व विजेता। समय की दीवार पर लिखी इस इबारत को ठीक से पढ़ लीजिए। नहीं पढ़ पा रहे हैं तो अपनी आंख का इलाज कीजिए , चश्मा बदल लीजिए। और जो फिर भी नहीं पढ़ पा रहे हैं , अपनी ज़िद और सनक पर क़ायम हैं तो आप को आप की यह बहादुरी मुबारक़ ! ठीक वैसे ही जैसे सैम पित्रोदा और मणिशंकर अय्यर अपने सुभाषितों से मोदी का बेड़ा गर्क कर रहे हैं , आप भी कीजिए न ! आप का भी यह मौलिक अधिकार ठहरा। ई वी एम का तराना अभी शेष ही था कि वैक्सीन का तराना भी लोग अचानक गाने लगे। लेकिन जैसे इलेक्टोरल बांड का गाना हिट नहीं हुआ , वैक्सीन का भी पिट गया है। 

1962 के चीन युद्ध का एक वाक़या है। एक युद्ध चौकी पर चीनी सैनिक बहुत कम रह गए थे। पास की भारतीय युद्ध चौकी पर भारतीय सैनिक ज़्यादा थे। चीनियों ने ख़ूब सारी भेड़ें इकट्ठी कीं। भेड़ों के गले में लालटेन बांध दीं। रात में लालटेन जला कर भेड़ों को भारतीय सीमा की तरफ हांक दिया। भारतीय सैनिकों को एक साथ इतने सारे लोग आते दिखे। लगा कि चीनी सैनिक आ रहे हैं। भारतीय सैनिक चीन के इस जाल-बट्टे में फंस गए। भारतीय सैनिक चौकी छोड़ कर भाग चले। चीन का नैरेटिव काम कर गया। भारतीय सेना हार गई। चौकी छिन गई। लेकिन चीन अब गले में लालटेन बांध कर , भेड़ हांक कर नहीं जीत सकता। कोरोना नाम की भेड़ लालटेन बांध कर आई थी चीन से , पराजित हो कर लौट गई। भारत का विपक्ष यानी इंडिया गठबंधन लेकिन अभी भी गले में लालटेन बांध कर भेड़ छोड़ने का अभ्यस्त है। भूल गया है कि थोक के भाव इधर-उधर के नैरेटिव रचने से चुनाव नहीं जीते जाते। कांग्रेसियों द्वारा जारी अमित शाह का आरक्षण संबंधी फर्जी वीडियो एक उदहारण है। इस डाल से उस डाल कूद कर मंकी एफर्ट से भी चुनाव नहीं जीते जाते। सेटेलाइट , नेट और ड्रोन का ज़माना है। घर बैठे दुनिया की किसी सड़क , किसी धरती , किसी आसमान का हालचाल तुरंत-तुरंत ले लेने का समय है यह। माना कि कुटिलता और धूर्तता राजनीति का अटूट अंग है। लेकिन इंडिया गठबंधन इस मामले में भी एन डी ए से बहुत पीछे है। नरेंद्र मोदी कुटिलता , धूर्तता और कमीनेपन में बहुत आगे हैं। कोसों आगे। राहुल गांधी जैसे लोग बहुत बच्चे हैं , इस मामले में। लालू यादव जैसे लोग दगे कारतूस हैं। एक शब्द है , मेहनत। नरेंद्र मोदी का कोई सानी नहीं है। दिन-रात इतनी मेहनत , इस उम्र में तो छोड़िए एक से एक लौंडे राहुल , अखिलेश , तेजस्वी सोच भी नहीं सकते। तेजस्वी तो इस चुनाव प्रचार में जाने कितनी बार ह्वील चेयर पर दिखा है। यह कैसी नौजवानी है ? 

अब देखिए न बीच चुनाव में दिल्ली शराब घोटाले के पितामह अरविंद केजरीवाल को बिना मांगे सुप्रीमकोर्ट ज़मानत थमा देता है , चुनाव प्रचार के लिए। यह भी लगभग असंभव था पर केजरीवाल के लिए संभव बन गया। अलग बात है केजरीवाल के प्रचार का कोई फ़र्क़ पड़ता नहीं दीखता इस लोकसभा चुनाव में। क्यों कि अरविंद केजरीवाल भी चीन की वही भेड़ हैं जो गले में लालटेन बांधे घूम रही है। केजरीवाल के जेल में रहने से कुछ सहानुभूति का लाभ मिल रहा था , वह भी अब जाता रहा। सुप्रीम कोर्ट और अभिषेक मनु सिंधवी ने अनजाने ही सही केजरीवाल का नुकसान कर दिया है। क़ानून का मज़ाक उड़ा दिया है। जाने कितने की डील हुई है। क्यों कि अदालतें ऐसे फ़ैसले बिना किसी डील के नहीं करतीं। परंपरा अभी तक की यही है। 

वैसे भी इंडिया गठबंधन एक डूबता हुआ जहाज है। राहुल ने मोदी को डेढ़ सौ सीट मिलने का ऐलान किया है। प्रियंका ने 180 और अरविंद केजरीवाल ने कोई दो सौ तीस सीट देने का ऐलान किया है और बताया है कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। फिर इसी सांस में यह भी कह दिया कि मोदी चूंकि 75 के होने वाले हैं इस लिए वह अमित शाह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं। इसी सांस में वह योगी की छुट्टी और ममता बनर्जी को जेल में भेजने का ऐलान थमा देते हैं। और सरकार नहीं बनेगी का चूरन फांकते हुए खांसने लगते हैं। तानाशाह भी बता देते हैं। संविधान बचाने का गाना भी गा देते हैं। बताइए कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय लोग इस केजरीवाल को इसी बिना पर मोदी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोकने के लिए भेजे हैं। ग़ज़ब न्यायप्रिय लोग हैं। एक न्याय राहुल दे रहे हैं , दूसरा टोटी यादव के रूप में विख्यात अखिलेश यादव। संदेशखाली की ममता बनर्जी के अजब रंग हैं। एक पूर्व जस्टिस और एक संपादक मोदी-राहुल में बहस करवाने का न्यौता अलग लिए घूम रहे हैं। ऐसे गोया छात्र-संघ का चुनाव हो रहा हो। राहुल ने न्यौता क़ुबूल करने का ऐलान कर दिया है। पहले भी वह मोदी से डिवेट की तमन्ना रखते हुए चैलेंज देते रहे हैं। पर मोदी ने कभी लिफ्ट नहीं दी। तानाशाह जो ठहरा। 

देखिए तो वर्तमान में भी एन डी ए के पास भीतर-बाहर मिला कर 400 सीट है ही। हालां कि कुछ चतुर सुजान 2024 के इस लोकसभा चुनाव में 1977 के चुनाव की छाया देखते हुए सब कुछ उलट-पुलट होते हुए देख रहे हैं। इन चतुर सुजानों को लगता है कि जैसे तब 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी जैसी परम शक्तिशाली शासक की चुनावी नाव डूब गई थी , ठीक वैसे ही नरेंद्र मोदी की चुनावी नाव 2024 में डूबने जा रही है। पर यह तथ्य नहीं , उन चतुर सुजानों की मनोकामना है। और मनोकामना से कभी राजनीति नहीं सधती , न ही चुनाव। ग़ालिब लिख ही गए हैं :

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन 

दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है। 

असल में लोकसभा , 2024 का चुनाव इस क़दर एकतरफा हो चला है कि किसी आकलन , किसी विश्लेषण की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। कोई आकलन करे भी तो क्या करे। फिर भी चर्चा-कुचर्चा तो हो ही सकती है। 

जैसे लड़की हूं , लड़ सकती हूं की हुंकार भरने वाली प्रियंका वाड्रा को सोनिया ने कहीं से क्यों लड़ने लायक़ नहीं समझा। रावर्ट वाड्रा तो खुलेआम इज़हार कर रहे थे कि अमेठी से वह लड़ना चाहते हैं। अब राज्य सभा की तान ले रहे हैं। सोनिया ने लेकिन वाड्रा को भी झटका दे दिया। अमेठी छोड़ कर रायबरेली से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने को राहुल गांधी के वर्तमान मुख्य चाटुकार जयराम रमेश ने बताया है कि राहुल गांधी राजनीति और शतरंज के मजे हुए खिलाड़ी हैं। वह सोच समझ कर फ़ैसला लेते हैं। राहुल सोचते-समझते भी हैं , यह मेरे लिए नई सूचना है। हक़ीक़त तो यह है कि इस मजे हुए खिलाड़ी ने समाजवादी पार्टी के कंधे पर बैठ कर रायबरेली का चुनाव जीतने की रणनीति बनाई है। इस रणनीति में जीत का अपना कोई दांव नहीं है। वायनाड का तो स्पष्ट नहीं पता पर रायबरेली से अगर राहुल गांधी चुनाव हार जाते हैं तो बिलकुल आश्चर्य नहीं करना चाहिए। अमेठी से स्मृति ईरानी की लपट रायबरेली तक पहुंचने में बहुत देर नहीं होगी। क्यों कि अमेठी में कांग्रेस ने सोनिया के मुंशी , मुनीम टाइप के एल शर्मा को खड़ा कर स्मृति ईरानी को जैसे वाकओवर दे दिया है। फिर मोदी-योगी-शाह की तिकड़ी की रणनीति को आप क्या हलवा समझते हैं , रायबरेली के लिए। अलग बात है कि अगर उसी दिन अगर भाजपा फुर्ती दिखाते हुए रायबरेली से स्मृति ईरानी का भी नामांकन करवा देती तो मंज़र कुछ और होता। 

खैर , बकौल जयराम रमेश शतरंज और राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी राहुल गांधी ने जिस समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के कंधे पर बैठ कर रायबरेली जीतने का मंसूबा बनाया है , वही अखिलेश यादव कन्नौज में फंसे दीखते हैं। जाने क्या सोच कर रामगोपाल यादव ने अखिलेश यादव को कन्नौज के कीचड़ में उतार दिया है। बदायूं , फ़िरोज़ाबाद , आज़मगढ़ भी सपा क्लीयरकट गंवा रही है। मुलायम सिंह यादव याद आते हैं। जब लखनऊ के जनेश्वर मिश्र पार्क में सम्मलेन कर मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा कर अखिलेश यादव को अध्यक्ष बनाया गया तभी मुलायम ने कहा था , रामगोपाल यादव ने अखिलेश का भविष्य ख़राब कर दिया है। तब लोगों ने मुलायम के इस बयान को उन की हताशा बता दिया था। पर जब 2017 का विधान सभा चुनाव हुआ और अखिलेश की सत्ता चली गई तब लोगों की समझ में आया। अलग बात है कि बीच चुनाव ही अखिलेश यादव के लिए लोग कहने लगे थे कि जो अपने बाप का नहीं हो सकता , वह किसी का नहीं हो सकता। कुछ समय पहले भरी विधानसभा में योगी ने भी अखिलेश को लताड़ लगाते हुए कहा कि , तुम ने तो अपने बाप का सम्मान नहीं किया ! और अब राहुल उसी अखिलेश यादव के बूते रायबरेली साधने आए हैं , मां की विरासत संभालने। 

तो क्या जैसा मोदी कहते आ रहे हैं कि शाहज़ादे वायनाड हार रहे हैं ?

पता नहीं। पर रायबरेली वह ज़रूर गंवा रहे हैं। हमारे एक मित्र हैं। पुराने समाजवादी हैं। मुलायम सिंह के इर्द-गिर्द जमे रहते थे। मुलायम ने बारंबार उन्हें राज्य सभा भेजने का लेमनचूस चुसवाया पर कभी भेजा नहीं। हां , एक बार उन्हें राज्य मंत्री स्तर का एक ओहदा ज़रूर दे दिया। वह उसी में ख़ुश रहे। बाद में अखिलेश यादव की उपेक्षा से आजिज आ कर वह कांग्रेस की गोद में जा बैठे। कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्य प्रवक्ता भी बना दिया। कि तभी चुनाव घोषित हो गए और फिर कांग्रेस और सपा के बीच संभावित समझौता हो गया। वह लेकिन भाजपा के ख़िलाफ़ बिगुल बजाने में पीछे नहीं हुए। बीते महीने उन से बात हो रही थी। बात ही बात में वह भाजपा और मोदी के चार सौ पार के दावे की बात करने लगे। पूछने लगे कि यह चार सौ आएंगे कहां से ? बढ़ाएंगे कहां से ? मैं ने उन्हें धीरे से बताया कि दक्षिण भारत से। पश्चिम बंगाल से। इस पर मित्र कहने लगे , दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से इतना ? मैं ने कहा , बस देखते चलिए। 

पहले ही कहा है कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय निश्चित कर दिया है। बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित इस सूर्योदय को अपने अहंकार के ग्रहण से ढंक लेना चाहते हैं। लेकिन दक्षिण भारत में राम लहर है। इंडिया गठबंधन इस से बेख़बर है क्या ? गिलहरी प्रसंग याद कीजिए। 

समुद्र पर सेतु बन रहा था। सभी अपने-अपने काम पर लगे थे। एक गिलहरी यह सब देख रही थी। उसे बड़ी पीड़ा हुई कि हम कुछ क्यों नहीं कर पा रहे। उस ने सोचा और फिर अचानक रेत में लोटपोट कर सेतु बनने की जगह जा कर अपनी देह झाड़ देती। बार-बार ऐसा करते उसे राम ने देखा। राम को लगा कि जब यह गिलहरी अपनी सामर्थ्य भर काम कर रही है तो हम भी कुछ क्यों न करें। राम ने एक पत्थर उठाया। लोग पत्थर पर राम नाम लिख कर समुद्र में डाल रहे थे। राम ने सोचा , अपना ही नाम क्या लिखना भला। बिना राम नाम लिखे पत्थर जल में डाल दिया। पत्थर तैरने के बजाय डूब गया। दूसरा पत्थर डाला , वह भी डूब गया। तीसरा-चौथा सभी पत्थर डूबते गए। राम घबरा गए। पीछे मुड़ कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा। देखा तो पाया कि हनुमान देख रहे हैं। राम ने हनुमान को बुलाया और पूछा कि कुछ देखा तो नहीं ? हनुमान ने कहा , प्रभु ! सब कुछ देखा ! राम ने हनुमान से कहा, चलो तुम ने देखा तो देखा पर किसी से यह बताना नहीं। हनुमान ने कहा , कि ना प्रभु , हम तो पूरी दुनिया को बताएंगे कि प्रभु राम का भी राम नाम के बिना कल्याण नहीं। इसी प्रसंग पर बहुत सारी भजन हैं , कथाएं हैं। एक मशहूर भजन है , राम से बड़ा राम का नाम ! तो क्या दक्षिण , क्या उत्तर , क्या पूरब , क्या पश्चिम राम से बड़ा राम का नाम चल रहा है। राम की यही मार जब इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ने लगी तो हिंदू-मुसलमान कर दिया। मुस्लिम आरक्षण का दांव चल दिया। 

दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से सौ सीट भले न आए पर खाता खुलना बड़ी बात है। केरल से एक भी सीट ला पाना भाजपा के लिए सपना है पर अगर वायनाड ही जीत गई भाजपा तो ? कर्नाटक , आंध्र और तेलंगाना से तो भाजपा आ ही रही हैं। तामिलनाडु भी दौड़ में है। यह पहली बार होगा कि भाजपा दक्षिण भारत में अंगद की तरह पांव रखने जा रही है। राम मंदिर का संदेश और मोदी की रणनीति , मेहनत ने दक्षिण भारत में भाजपा का सूर्योदय लिख कर रख दिया है। उत्तर पूर्व में भी स्थिति बेहतर है। पश्चिम बंगाल में संदेशखाली ने ममता बनर्जी को सकते में डाल दिया है। उत्तर प्रदेश , राजस्थान , गुजरात और मध्य प्रदेश में कोई लड़ाई ही नहीं है। इंडी गठबंधन के उम्मीदवार ही खूंटा तोड़-ताड़ कर भागने लगे हैं। महाराष्ट्र और बिहार में तो इंडी गठबंधन के लोग परिवार को ही सर्वोपरि मानने में सब कुछ लुटा बैठे हैं। 

पंजाब में भाजपा की स्थिति बहुत ख़राब है लेकिन बाक़ी के प्रदेशों में भाजपा की बल्ले-बल्ले है। ख़ास कर उत्तर प्रदेश में तो योगी ने भाजपा के आगे किसी को टिकने के लिए ज़मीन ही नहीं छोड़ी है। अस्सी सीट नहीं , न सही पचहत्तर-छिहत्तर सीट साफ़ तौर पर भाजपा की झोली में है। मैनपुरी से डिंपल यादव तो क्लीयरकट जीत रही हैं पर कन्नौज से अखिलेश यादव की जीत पक्की नहीं है। बुरी तरह फंसे हुए हैं। उन के ऊपर जूते-चप्पल चल रहे हैं। बदायूं , फ़िरोज़ाबाद , आज़मगढ़ भी सपा गंवा रही है। मुख़्तार अंसारी के परिवार में फूट पड़ जाने के कारण ग़ाज़ीपर और मऊ भी खटाई में पड़ गया है। 

लड़की हूं , लड़ सकती हूं का ज्ञान भाखने वाली प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली , अमेठी तो क्या देश में कहीं से भी अपने को लड़ने के लायक नहीं मानतीं। माता सोनिया गांधी हार के डर से राज्य सभा चली गईं ताकि 10 जनपथ , नई दिल्ली का आलीशान बंगला न छिन जाए। लतीफ़ा गांधी की जहां तक बात है , वह हारे चाहें जीतें , उन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। वह सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस डबल ज़ीरो पाने के लिए लड़ रही है। राहुल गांधी शायद अपनी ज़मानत बचा लें पर बाक़ी कांग्रेसियों की ज़मानत ज़ब्त है। 

इस चुनाव को आप महाभारत के अंदाज़ में देख सकते हैं। जिस में एक राहुल गांधी ही नहीं दुर्योधन की भूमिका में उपस्थित हैं। संपूर्ण इंडिया गठबंधन में यत्र-तत्र दुर्योधन और दुशासन उपस्थित हैं। कोई लाक्षागृह बना रहा है , कोई चीर-हरण में संलग्न है , कोई अभिमन्यु की हत्या में। 

इंडिया गंठबंधन को एक बात से संतोष बहुत है कि इस चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का बंटवारा नहीं हो रहा है। एक संतोष यह भी है कि मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने मंडल-कमंडल के वोट बैंक को एक कर के 2014 और 2019 में एक कर के अपनी विजय पताका फहराई थी , जातीय जनगणना के उन के दांव में उसे छिन्न-भिन्न कर दिया है। इसी उत्साह का कुपरिणाम है कि मल्लिकार्जुन खड़गे शिव को राम से लड़ाने और राम पर शिव के विजय की घोषणा करने की मूर्खता कर बैठते हैं। 

कभी क्षत्रिय समुदाय की भाजपा से नाराजगी , कभी कोविशील्ड की अफ़वाह , कभी स्कूलों में बम , कभी आरक्षण , कभी हिंदू-मुसलमान , कभी कुछ , कभी कुछ। हौसला इतना पस्त है , बदहवासी इतनी है कि अखिलेश यादव की उपस्थिति में मंच पर माइक से शिवपाल यादव भाजपा की बड़ी मार्जिन से जिताने का ऐलान कर बैठते हैं। राहुल गांधी की जुबान अलग बदजुबानी पर उतरती रहती है , तू-तड़ाक की भाषा बोलने लगते हैं। 

चुनाव के पहले ही राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन ने जातीय जनगणना की ढोल बजा दी थी। मंशा साफ़ थी कि मंडल और कमंडल के वोट बैंक जो 2014 में भाजपा की सोशल इंजीयरिंग में एक हो चले हैं , उन्हें छिन्न-भिन्न कर तार-तार कर देना। नीतीश कुमार जब इंडिया गठबंधन में थे , बिहार में जातीय जनगणना का झंडा गाड़ दिया। भाजपा ने अवसर गंवाए बिना नीतीश कुमार को ही तोड़ कर एन डी ए में समाहित कर इंडिया गठबंधन की ताक़त में मनोवैज्ञानिक सेंधमारी कर दी। धीरे-धीरे इंडिया गठबंधन के कई सारे लोग ऐसे कूदने लगे जैसे किसी डूबते हुए जहाज से कूदने लगते हैं। कांग्रेस के डूबते जहाज से कूदने वालों की संख्या बेहिसाब है। सिलसिला है कि रुकता नहीं। नीतीश कुमार तो इतने उत्साहित हो गए हैं कि 400 की जगह 4000 सीट जितवाने की बात कर जाते हैं। 

अपने मौलिक अधिकार और सवाल पूछने के अधिकार का प्रयोग करते हुए आप पूछ सकते हैं कि जब सब कुछ इतना आसान है , हिंदू-मुसलमान की पिच जो मोदी को इतनी ही रास आती है तो दिन-रात इतना खट क्यों रहे हैं। इतना तीन-तिकड़म क्यों कर रहे हैं भला तो आप को कन्हैयालाल नंदन की यह कविता ज़रूर ध्यान में रख लेनी चाहिए। 

 तुमने कहा मारो

और मैं मारने लगा 

तुम चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं हारने लगा

माना कि तुम मेरे योग और क्षेम का

भरपूर वहन करोगे

लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर मैं क्या पाऊंगा

मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में/ हारा हुआ ही कहलाऊंगा 

तुम्हें नहीं मालूम 

कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं सेनाएं 

तो योग और क्षेम नापने का तराजू 

सिर्फ़ एक होता है

कि कौन हुआ धराशायी

और कौन है 

जिसकी पताका ऊपर फहराई 

योग और क्षेम के

ये पारलौकिक कवच मुझे मत पहनाओ

अगर हिम्मत है तो खुल कर सामने आओ 

और जैसे हमारी ज़िंदगी दांव पर लगी है

वैसे ही तुम भी लगाओ। 

Sunday 18 February 2024

आचार्य के अवदान से गुलज़ार ज्ञानपीठ

दयानंद पांडेय 

प्रकांड पंडित पद्म विभूषण आचार्य रामभद्राचार्य [ गिरिधर मिश्र ] और गुलज़ार [ संपूर्ण सिंह कालरा ] को ज्ञानपीठ मिलने पर कुछ लोग बौखलेश हो गए हैं। यह गुड बात नहीं है। ज्ञानपीठ की उज्जवल परंपरा से , संस्कृत साहित्य के सौंदर्य सौष्ठव से अगर आप परिचित नहीं हैं तो यह आप का दुर्भाग्य है। आचार्य रामभद्राचार्य के संस्कृत साहित्य में अवदान से अपरिचित हैं तो इस में आचार्य रामभद्राचार्य का कोई दोष नहीं है। वह भगवा पहनते हैं , रामकथा बांचते हैं तो यह उन की अयोग्यता नहीं है। आप के बंद और तंग दिमाग की मुश्किल है यह। योग करते हुए गुरु गोरखनाथ महाकवि हो सकते हैं। गोरख के अनुयायी कपड़ा बुनते हुए , जुलाहा का काम करते हुए कबीर कवि हो सकते हैं। नानक कवि हो सकते हैं। कृष्ण को गाने वाली मीरा कवि हो सकती हैं। जूता सिलते हुए चर्मकार का कार्य करते हुए रैदास कवि हो सकते हैं। मांग कर खाने वाले , मसीत में सोने वाले राम के अनन्य गायक तुलसी की तो ख़ैर बात ही क्या है। इस समय में भी कई ऐसे रचनाकार हैं , दुनिया भर में हैं जो काम कुछ और करते हैं , अध्यापक , पत्रकार या अफ़सर आदि नहीं हैं फिर भी रचनाकार हैं। बड़े रचनाकार। तो रामभद्राचार्य भी संस्कृत के बड़े रचनाकार हैं। कवि हैं। अनेक महाकाव्य , खंड काव्य के रचयिता हैं। 80 से अधिक प्रकाशित पुस्तकें हैं। मनोनीत आचार्य नहीं हैं , अकादमिक आचार्य हैं। बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के गोल्ड मेडलिस्ट हैं। संस्कृत व्याकरण में पी एच डी हैं। 

आचार्य पाणिनि पर उन का बड़ा काम है। रामचरित मानस और गीता पर अनेक टीकाएं लिखी हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उन्हें सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के अध्यक्ष के पद पर भी नियुक्त किया। लेकिन गिरिधर मिश्र यानी रामभद्राचार्य ने इस नियुक्ति को अस्वीकार कर दिया और अपना जीवन धर्म, समाज और विकलांगों की सेवा में लगाने का निर्णय लिया। उन के अनेक सामाजिक और शैक्षिक कार्य काबिले तारीफ़ हैं। अयोध्या में मंदिर प्रसंग पर हाईकोर्ट से लगायत सुप्रीमकोर्ट तक रामभद्राचार्य द्वारा दिए गए अकाट्य साक्ष्यों का आज भी डंका बजता है। इसी लिए कुछ मतिमंद उन से घृणा करते हैं। नफ़रत की नागफनी ले कर खड़े हो जाते हैं। 

यह मूर्ख अपने को जाने कैसे लेखक भी मानते हैं। लेखक का काम घृणा और नफ़रत करना नहीं होता। असहमत होना , नापसंद करना , स्वीकार न करना और बात है। नफ़रत और घृणा करना और बात। श्रीभार्गवराघवीयम् महाकाव्य पर वर्ष 2005 में साहित्य अकादमी से सम्मानित रामभद्राचार्य की रचनाशीलता के अनेक पड़ाव हैं। गो कि साहित्य अकादमी पुरस्कार में किसी सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता फिर भी मतिमंदों को ध्यान रहे 2005 में यू पी ए की मनमोहन सिंह सरकार थी। गौरतलब है कि इंदिरा गांधी ने बतौर प्रधानमंत्री उन्हें पांच  स्वर्णपदकों के साथ उत्तर प्रदेश के लिए चलवैजयन्ती पुरस्कार प्रदान किया था। इतना ही नहीं ,  उन की योग्यता से प्रभावित हो कर इंदिरा गांधी ने उन्हें आंखों की चिकित्सा के लिए संयुक्त राज्य अमरीका भेजने का प्रस्ताव किया, परंतु आचार्य रामभद्राचार्य ने मना कर दिया। 1976  में सात स्वर्णपदकों और कुलाधिपति स्वर्ण पदक के साथ उन्होंने आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आजादचन्द्रशेखरचरितम् नाम से स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद पर रामभद्राचार्य ने खंड काव्य लिखा है। मेरी जानकारी में हिंदी में भी किसी ने चंद्रशेखर आज़ाद पर कोई खंड काव्य नहीं लिखा है। ऐसे ही अनेक कृतियां हैं रामभद्राचार्य की। संस्कृत में भी , हिंदी में भी। 


यह ठीक है कि कभी पंचर बनाने वाले संपूर्ण सिंह कालरा यानी गुलज़ार हिंदी फ़िल्म जगत में बतौर गीतकार और बतौर निर्देशक भी बेस्ट कॉपियर हैं। इधर-उधर का पंचर जोड़ने से बाज नहीं आते। बतौर निर्देशक सीन दर सीन उड़ा लेने में मास्टर हैं। भारतीय एडाप्टेशन के मास्टर। विदेशी फिल्मों का मुकम्मल भारतीयकरण कर देते हैं। पर हैं उर्दू के आदमी। खांटी उर्दू के आदमी। और उर्दू में किसी भी नज़्म , ग़ज़ल के एक मिसरे पर पूरी ग़ज़ल या नज़्म कहने की परंपरा है। ग़ालिब , मीर , मोमिन , इक़बाल समेत हर किसी ने इस परंपरा की गंगा में स्नान किया है। करते ही रहते हैं। बहुतेरे क़िस्से हैं। कोई नई बात नहीं है। और यह काम चूंकि गुलज़ार ने फिल्मों में किया है , सो लोग उन्हें चोर कहने लगे। यह ग़लत बात है। फिर यह काम तो गुलज़ार से कहीं ज़्यादा जावेद अख़्तर ने किया है। जावेद के मामा मजाज लखनवी के तो लगभग सारे कलाम तमाम फ़िल्मी गीतकारों ने उठा लिए हैं। कुछ भी छोड़ा नहीं है। 

सच यह है कि गुलज़ार और जावेद बेस्ट कॉपियर ही नहीं , बेस्ट प्रजेंटेटर भी हैं। इसी का यह दोनों खाते हैं। फिर तमाम शायरों ने यह काम किया है। फ़िल्मी गीत लिखने वाले अधिकांश लोगों ने यह किया है। साहिर , शक़ील , मज़रुह हर किसी ने किया है। किसी का मिसरा , गीत किसी का। तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है , फ़ैज़ का मिसरा है पर फ़िल्म में गाना तो मज़रुह ने लिखा है। इस का भी बड़ा क़िस्सा है। शैलेंद्र ने भी बहुत से मुखड़े उठाए हैं। भोजपुरी से भी उठाए हैं। अनजान ने भी। इंदीवर ने भी। आनंद बख्शी ने भी बहुत। शैलेंद्र को बहुत सारे मुखड़े तो राजकपूर देते थे। एस डी वर्मन ने तो बांग्ला लोकगीत और उस का संगीत खड़े के खड़े उठा लिए हैं और उस को किसी गीतकार से हिंदी करवा दिया है। सी रामचंद्र , नौशाद , ओ पी नैय्यर जैसे संगीतकारों ने यह सब बहुतायत में किया है। हां , गुलज़ार ने नमक़ में दाल किया है। माना। पर इस बिना पर गुलज़ार शायर नहीं हैं , चोर हैं , यह कहना ज़रा नहीं ज़्यादा ज्यादती है। गुलज़ार शायर हैं। ग़ालिब की तरह उस्ताद नहीं , न सही ग़ालिब को गाने-गवाने वाले तो हैं ही। शायरी की बढ़िया समझ भी है। 

ओरिजिनल शायरी भी है गुलज़ार के पास। 2002 में साहित्य अकादमी से सम्मानित हैं गुलज़ार। उस्ताद शायर नहीं हैं गुलज़ार पर मीना कुमारी , दीप्ति नवल जैसी अभिनेत्रियों के शायरी में उस्ताद हैं। और भी बहुतों के उस्ताद हैं गुलज़ार। मीना कुमारी की डायरी से शेर उड़ा लिए जैसी बातें , कुंठित मानसिकता की बातें हैं। मीना कुमारी के शौहर कमाल अमरोही ख़ुद बाकमाल शायर और लेखक हैं। अंतिम समय में कमाल अमरोही के पास मीना कुमारी लौट आई थीं। वह एक अलग और बड़ा क़िस्सा है। 

रामभद्राचार्य अगर पद्म विभूषण हैं तो गुलज़ार भी पद्म भूषण हैं। रामभद्राचार्य जितना विपुल रचना संसार तो नहीं है गुलज़ार के पास लेकिन आधा दर्जन से अधिक दीवान उन के खाते में दर्ज हैं। तिस पर चोखी बात यह कि गुलज़ार सेक्यूलर चैंपियन भी हैं। संजय गांधी ने भले उन की फ़िल्म आंधी को सिनेमा के परदे से उतरवा कर उस की रीलें जलवा दी थीं पर गुलज़ार की प्रतिबद्धता कांग्रेस के साथ मुसलसल जारी है। संपूर्ण कुतर्क के साथ। लगता ही नहीं कई बार कि यह वही गुलज़ार हैं जिन्हें हम रुमानी गानों और नफ़ीस बातों के लिए जानते हैं। सेक्यूलरिज्म का कीड़ा जब कुलबुलाता है , गुलज़ार का तो वह अपनी सारी नफ़ासत और लताफ़त बिसार जाते हैं। 

न जाने क्यों। 

बताते चलें कि आंधी फ़िल्म कमलेश्वर के उपन्यास काली आंधी पर आधारित है। इस उपन्यास पर एक बार सुब्रमण्यम स्वामी ने कमलेश्वर से एक लिफ्ट में अचानक मिल जाने पर कहा कि इंदिरा गांधी का बहुत बढ़िया चरित्र चित्रण किया है। कमलेश्वर ने पलट कर सुब्रमण्यम स्वामी से कहा कि वह चरित्र विजयाराजे सिंधिया का है , इंदिरा गांधी का नहीं। कमलेश्वर चाहे जो कहें , पर काली आंधी की मालती , थीं इंदिरा गांधी ही। इसी लिए इमरजेंसी में संजय गांधी ने इस आंधी को सिनेमा घरों से उतरवा कर रीलें जलवा दीं। वह तो कहीं कोई एक रील ग़लती से बची रह गई थी तो इमरजेंसी ख़त्म होने के बाद जनता पार्टी की सरकार आने के बाद उस रील से कई कॉपी बनी और आंधी फिर से रिलीज हुई। क्लासिक फ़िल्म है आंधी। इस मोड़ से जाते हैं - / कुछ सुस्त क़दम रस्ते कुछ तेज़ क़दम राहें - / कि: पत्थर की हवेली को शीशे के घरौंदों में / तिनकों के नशेमन तक इस मोड़ से जाते हैं ! जैसे कुछ लोकप्रिय गाने गुलज़ार के ओरिजिनल गीत हैं। जो आज भी लोगों की जुबां पर लरजते हैं। निर्देशन भी लाजवाब था आंधी का। सैल्यूटिंग।  

इस फ़िल्म की कथा-पटकथा तो कमलेश्वर की ही थी पर जब फ़िल्म रिलीज हुई तो कथा-पटकथा के तौर पर नाम दर्ज था परदे पर गुलज़ार का। इस पुछल्ले के साथ कि कमलेश्वर के उपन्यास काली आंधी पर आधारित। कमलेश्वर इस बात पर गुलज़ार से बहुत नाराज हुए। यह नाराजगी कह कर , लिख कर जताई। हां , इस आंधी ने गुलज़ार की ज़िंदगी में भी काली आंधी ला दी। हुआ यह कि इस आंधी फ़िल्म में नायिका की भूमिका के लिए गुलज़ार ने बंगला फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री सुचित्रा सेन को चुना था और ठीक ही चुना था। गुलज़ार की तभी नई-नई शादी हुई थी , राखी से। राखी चाहती थीं कि सुचित्रा सेन की जगह वह यह भूमिका करें। गुलज़ार लेकिन फ़ैसला कर चुके थे। बतौर निर्देशक वह राखी और सुचित्रा सेन के अभिनय की सीमा और क्षमता जानते थे। जानते थे कि राखी नहीं , सुचित्रा सेन उस भूमिका के लिए उपयुक्त थीं। राखी को मना कर दिया। राखी गुलज़ार नाराज हो गईं , गुलज़ार से। बेटी मेघना उस समय गर्भ में थी। गुलज़ार के बहुत मान-मनौव्वल के बावजूद राखी गुलज़ार , गुलज़ार का घर छोड़ कर निकल गईं। अब तक लौटी नहीं हैं। अलग बात है दोनों की ज़िंदगी में लोग आते-जाते रहे। राखी का नाम भी अमिताभ बच्चन समेत कइयों के साथ जुड़ा तो गुलज़ार का नाम भी दीप्ती नवल जैसी कई अभिनेत्रियों के साथ। बल्कि अमिताभ तो एक समय में राखी और रेखा दोनों पर ही मेहरबान रहे। फिल्मों में भी संबंधों में भी। परवीन बॉबी भी आईं , ज़ीनत अमान भी। और जाने कौन-कौन। एक लंबी फ़ेहरिस्त है। ख़ैर , तमाम पानी गुज़र गया पर गुलज़ार और राखी गुलज़ार के बीच संवादहीनता नहीं आई और न ही दोनों ने तलाक़ लिया। हां , फ़िल्मी परदे पर राखी गुलज़ार आहिस्ता से राखी हो गईं। गुलज़ार का नाम उन के नाम से हट गया। पर बेटी मेघना दोनों के बीच सेतु बनी रही। अभी भी बनी हुई है। मेघना बहुत कामयाब निर्देशक हैं। लाजवाब भी। पिता गुलज़ार की तरह कॉपियर नहीं हैं , मेघना। यह भी क़ाबिले गौर है कि अपनी फिल्मों के गीत वह पिता गुलज़ार से ही लिखवाती हैं। गुलज़ार भी बेटी के लिए ओरिजिनल गीत लिखते हैं। कहीं से कोई मिसरा नहीं उठाते। राजी फिल्म के इस गीत को याद कीजिए। इस की धुन भी बहुत मीठी है। 

फसलें जो काटी जायें, उगती नहीं हैं

बेटियाँ जो ब्याही जाएँ, मुड़ती नहीं हैं


ऐसी बिदाई हो तो, लंबी जुदाई हो तो

देहलीज़ दर्द की भी, पार करा दे


बाबा मैं तेरी मलिका, टुकड़ा हूँ तेरे दिल का

इक बार फिर से देहलीज़ पार करा दे


मुड़ के ना देखो दिलबरो दिलबरो…


हां , लेकिन मां की तरह बेटी ने गुलज़ार का नाम अपने नाम से नहीं हटाया है। विवाह के बाद भी वह हैं , मेघना गुलज़ार ही। विवाह के बाद भी वह कटी हुई फसल बनने के बजाय पिता की बेटी बनी हुई हैं। मेघना गुलज़ार। मेघना पिता के प्रेम में कविताएं लिखती रहती हैं। निर्देशक तो बाकमाल हैं ही वह। गुलज़ार के आस्कर वाले गीत के बोल में ही जो कहें कि :

जय हो ! 

Tuesday 13 February 2024

लखनऊ में गोमती नगर पुलिस के संरक्षण में मसाज पार्लर के बहाने उदय पटेल का देह व्यापार का कारोबार

दयानंद पांडेय 



लखनऊ के गोमती नगर में पुलिस के संरक्षण में आज कल कहीं मुजरा हो रहा है , कहीं मसाज पॉर्लर की आड़ में देह का धंधा। पुलिस अपना हिस्सा ले कर आंख मूंदे हुए है। लखनऊ के गोमती नगर में मुजरा के कई सारे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए तो लोग चौंके। मुजरे तो किसी तरह बंद हुए पर देह व्यापार का धंधा बदस्तूर जारी है। मसाज पार्लर के बहाने देह व्यापार के अड्डे भी। जो जब चाहे , ऑनलाइन बुक कर ऐश कर सकता है। कई बार लगता है जैसे लखनऊ के चौक का सारा देह व्यापार , सारा नर्क , गोमती नगर में उतर आया है। इस बात की जानकारी कई बार जागरुक नागरिकों ने समय-समय पर गोमती नगर पुलिस को दी है , देते ही रहते हैं लेकिन जांच करवा कर कार्रवाई की जाएगी का आश्वासन मिलता है लोगों को , पर कार्रवाई नहीं होती। 

एक है उदय पटेल। आधार और पैन कार्ड में उदय नारायण लिखता है। पिता का नाम राज बहादुर। कबूलपुर , बाराबंकी का रहने वाला है लेकिन मसाज पार्लर के बहाने देह व्यापार का धंधा , गोमती नगर में ठिकाने बदल-बदल कर करता है। गोमती नगर थाने की पुलिस का संरक्षण उसे सर्वदा मिलता रहता है। इंटरनेट उस का बड़ा हथियार है। ऑनलाइन बुकिंग करता रहता है। उदय पटेल के पास कई सारे मोबाईल नंबर हैं। ठिकाने तो वह बदलता रहता है , मोबाईल भी बदलता रहता है। ज़्यादातर वह फ़ोन नंबर बंद रखता है। वाट्सअप काल पर बात करता रहता है। ताकि उस की लोकेशन न मिले। कई बार वह मकान मालिकों का किराया भी नहीं देता। मांगने पर पहले बहाने बनाता है फिर धमकी देता है। खैर ,सुविधा के लिए उस के क्रमशः तीन फ़ोन नंबर और आधार कार्ड और पैन कार्ड यहां देखें। 

उदय नारायण पटेल 

9935527999 

9519908888 

9140041487 


ज़्यादातर वह कालेज में पढ़ रही लड़कियों को फंसा कर देह धंधे के दलदल में उतारता है। एक बार एमिटी कालेज की लड़की को उस ने बंधक बना लिया। नशे की दवाइयां दे कर धंधा करवाता रहा। वह लड़की किसी तरह उदय पटेल की चंगुल से निकली और सीधे पुलिस कमिश्नर के पास पहुंची। कार्रवाई तो हुई पर उदय पटेल फिर बच गया। उदय पटेल के क्लाइंट भी बड़े लोग और पैसे वाले ही होते हैं। एक बार 2022 में एक महिला ए सी पी तैनात हुईं तो उन्हों ने 2022 में ताबड़तोड़ उदय पटेल के कई ठिकानों पर छापे मारे। उदय पटेल के कारिंदे तो पकड़े गए पर उदय पटेल फरार हो गया। क्यों कि ऐन समय पर गोमती नगर पुलिस ने उसे छापा पड़ने की सूचना दे दी। अमर उजाला , हिंदुस्तान , दैनिक जागरण समेत लखनऊ के अख़बारों में इस बाबत विस्तार से ख़बर भी छपी। कुछ दिनों तक उदय पटेल ने अपने देह धंधे के व्यापार को स्थगित किया। लेकिन अब फिर से उदय पटेल ने अपने देह धंधे के व्यापार को विभिन्न मसाज पार्लरों के माध्यम से आनलाइन शुरु कर दिया है। इस बारे में गोमती नगर के थानेदार दीपक पांडेय को मोबाइल नंबर 9454403849 पर सूचित किया गया। पर वह दुनिया भर की व्यस्तताएं बताते रहे कि देखता हूं। फिर उन्हों बताया कि एस आई धर्मेंद्र को जांच दे दी गई है। धर्मेंद्र का मोबाईल नंबर 9452076266 है। पर धर्मेंद्र की जांच चार महीने से पूरी नहीं हुई। ए सी पी गोमती नगर , अमित कुमावत को भी 9454401499 पर इस बारे में बताया गया। अमित कुमावत भी दो महीने से जांच करवा रहे हैं। सुविधा के लिए 5 फ़रवरी , 2022 को प्रकाशित समाचार पढ़ें। 

कई ठिकाने बदलकर चार साल से चला रहे थे सेक्स रैकेट, मुख्य आरोपी की तलाश

लखनऊ ब्यूरो

Updated Sat, 05 Feb 2022 02:27 AM IST

लखनऊ। क्राइम ब्रांच व गोमतीनगर एसीपी की टीम ने बृहस्पतिवार को पीकेजी मसाज पार्लर में चल रहे सेक्स रैकेट का खुलासा किया था। मौके से छह युवकों को गिरफ्तार किया है। इसमें पार्लर मैनेजर अनिल कुमार प्रजापति भी शामिल है। पुलिस के मुताबिक, पूछताछ में सामने आया है कि यह गिरोह चार साल से राजधानी के कई इलाकों में ठिकाने बदलकर सेक्स रैकेट चलाते रहे हैं। वर्तमान में गोमतीनगर विस्तार इलाके के एक प्रॉपर्टी डीलर के मकान में ठिकाना बनाया था। कई दिनों की पड़ताल के बाद पुलिस ने इस रैकेट का खुलासा किया। वहीं पार्लर से पकड़ी गई आठ युवतियों को नारी निकेतन भेज दिया गया है। इस गिरोह का मुख्य आरोपी उदय पटेल फरार है।

एडीसीपी पूर्वी कासिम आब्दी के मुताबिक, पकड़े गए आरोपियों ने पूछताछ में बताया कि सेक्स रैकेट का कारोबार वर्ष 2018 में शुरू हुआ था। उस समय गैंग के लोगों ने गोसाईंगंज के आहिमामऊ स्थित सूर्या ओयो होम्स को अपना अड्डा बनाया था। बाद में लॉकडाउन के चलते सूर्या ओयो बंद हो गया। इसके बाद आरोपितों ने गोमतीनगर के विरामखंड-2 स्थित एक मकान में अपना अड्डा बना लिया। युवती की शिकायत के बाद आरोपितों ने गोमतीनगर विस्तार वरदान खंड स्थित प्रॉपर्टी डीलर विनोद यादव के मकान का अपना ठिकाना बनाया। एडीसीपी पूर्वी के मुताबिक, पुलिस ने बृहस्पतिवार को कानपुर निवासी अनिल कुमार, संजय कुमार, हरियाणा निवासी कुलदीप उर्फ पीके, उन्नाव निवासी छोटू, माल निवासी राजकुमार और बिहार निवासी रितिक को गिरफ्तार किया था। पूछताछ में बाराबंकी जनपद निवासी गैंग के मुख्य संचालक उदय पटेल का नाम सामने आया है। अब पुलिस उदय की तलाश में जुटी है। अनिल और पीके गैंग के मुख्य संचालकों में शामिल है। आरोपियों के पास से दो कार, 25 हजार नकदी, 15 मोबाइल, कई होटलों के कार्ड, कई आपत्तिजनक सामान बरामद हुआ।

[ अमर उजाला ]


मसाज पार्लर में युवत‍ियों को नशे का इंजेक्‍शन देकर हो रहा था देहव्‍यापार, लखनऊ में छह युवक ग‍िरफ्तार

पार्लर में काम करने वाली युवती ने की थी शिकायत। लखनऊ में युवितयों को बंधक बनाकर चला रहा था देह व्‍यापार विरोध करने पर देते थे नशे का इंजेक्शन। मसाज पार्लर में बंधक बनाई गईं आठ युवतियां बरामद।

मसाज पार्लर में युवत‍ियों को नशे का इंजेक्‍शन देकर हो रहा था देहव्‍यापार, लखनऊ में छह युवक ग‍िरफ्तार

पार्लर में काम करने वाली युवती ने की थी शिकायत। लखनऊ में युवितयों को बंधक बनाकर चला रहा था देह व्‍यापार विरोध करने पर देते थे नशे का इंजेक्शन। मसाज पार्लर में बंधक बनाई गईं आठ युवतियां बरामद।

मसाज पार्लर में युवत‍ियों को नशे का इंजेक्‍शन देकर हो रहा था देहव्‍यापार, लखनऊ में छह युवक ग‍िरफ्तार

लखनऊ के गोमतीनगर पुलिस ने पीकेजी मसाज पार्लर की आड़ में देह व्यापार का किया राजफाश।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। गोमतीनगर पुलिस ने पीकेजी मसाज पार्लर की आड़ में देह व्यापार का धंधा करने वाले गिरोह का राजफाश किया है। आरोपित युवतियों को बंधक बनाकर रखे थे। पार्लर में काम करने वाली एक युवती ने पुलिस आयुक्त डीके ठाकुर से मुलाकात कर इस मामले की शिकायत की थी। इसके बाद पुलिस आयुक्त ने टीम गठित कर मामले की जांच के आदेश दिए थे। गुरुवार को एसीपी गोमतीनगर श्वेता श्रीवास्तव ने टीम के साथ गोमतीनगर विस्तार स्थित पीकेजी पार्लर में छापा मारा और छह युवकों को गिरफ्तार कर लिया। पार्लर से आठ युवितयों को बरामद किया गया है।

मसाज पार्लर में युवत‍ियों को नशे का इंजेक्‍शन देकर हो रहा था देहव्‍यापार, लखनऊ में छह युवक ग‍िरफ्तार

पार्लर में काम करने वाली युवती ने की थी शिकायत। लखनऊ में युवितयों को बंधक बनाकर चला रहा था देह व्‍यापार विरोध करने पर देते थे नशे का इंजेक्शन। मसाज पार्लर में बंधक बनाई गईं आठ युवतियां बरामद।

मसाज पार्लर में युवत‍ियों को नशे का इंजेक्‍शन देकर हो रहा था देहव्‍यापार, लखनऊ में छह युवक ग‍िरफ्तार

लखनऊ के गोमतीनगर पुलिस ने पीकेजी मसाज पार्लर की आड़ में देह व्यापार का किया राजफाश।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। गोमतीनगर पुलिस ने पीकेजी मसाज पार्लर की आड़ में देह व्यापार का धंधा करने वाले गिरोह का राजफाश किया है। आरोपित युवतियों को बंधक बनाकर रखे थे। पार्लर में काम करने वाली एक युवती ने पुलिस आयुक्त डीके ठाकुर से मुलाकात कर इस मामले की शिकायत की थी। इसके बाद पुलिस आयुक्त ने टीम गठित कर मामले की जांच के आदेश दिए थे। गुरुवार को एसीपी गोमतीनगर श्वेता श्रीवास्तव ने टीम के साथ गोमतीनगर विस्तार स्थित पीकेजी पार्लर में छापा मारा और छह युवकों को गिरफ्तार कर लिया। पार्लर से आठ युवितयों को बरामद किया गया है।

एसीपी गोमतीनगर ने बताया कि नौकरी का झांसा देकर युवतियों को पार्लर में बुलाया जाता था। आरोपितों की चंगुल में फंसी चिनहट निवासी युवती ने पुलिस से मामले की शिकायत की थी। युवती का आरोप है कि छह माह पूर्व उसे फोन कर नौकरी का आफर दिया गया था। युवती के वहां जाने पर उसे बंधक बना लिया गया। इसके बाद विराम खंड दो स्थित एक मकान में लेकर गए और गलत काम करने का दबाव बनाया। मकान में कई और लड़कियां भी बंधक बनाकर रखी गई थीं।

मसाज पार्लर में युवत‍ियों को नशे का इंजेक्‍शन देकर हो रहा था देहव्‍यापार, लखनऊ में छह युवक ग‍िरफ्तार

पार्लर में काम करने वाली युवती ने की थी शिकायत। लखनऊ में युवितयों को बंधक बनाकर चला रहा था देह व्‍यापार विरोध करने पर देते थे नशे का इंजेक्शन। मसाज पार्लर में बंधक बनाई गईं आठ युवतियां बरामद।

मसाज पार्लर में युवत‍ियों को नशे का इंजेक्‍शन देकर हो रहा था देहव्‍यापार, लखनऊ में छह युवक ग‍िरफ्तार

लखनऊ के गोमतीनगर पुलिस ने पीकेजी मसाज पार्लर की आड़ में देह व्यापार का किया राजफाश।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। गोमतीनगर पुलिस ने पीकेजी मसाज पार्लर की आड़ में देह व्यापार का धंधा करने वाले गिरोह का राजफाश किया है। आरोपित युवतियों को बंधक बनाकर रखे थे। पार्लर में काम करने वाली एक युवती ने पुलिस आयुक्त डीके ठाकुर से मुलाकात कर इस मामले की शिकायत की थी। इसके बाद पुलिस आयुक्त ने टीम गठित कर मामले की जांच के आदेश दिए थे। गुरुवार को एसीपी गोमतीनगर श्वेता श्रीवास्तव ने टीम के साथ गोमतीनगर विस्तार स्थित पीकेजी पार्लर में छापा मारा और छह युवकों को गिरफ्तार कर लिया। पार्लर से आठ युवितयों को बरामद किया गया है।

एसीपी गोमतीनगर ने बताया कि नौकरी का झांसा देकर युवतियों को पार्लर में बुलाया जाता था। आरोपितों की चंगुल में फंसी चिनहट निवासी युवती ने पुलिस से मामले की शिकायत की थी। युवती का आरोप है कि छह माह पूर्व उसे फोन कर नौकरी का आफर दिया गया था। युवती के वहां जाने पर उसे बंधक बना लिया गया। इसके बाद विराम खंड दो स्थित एक मकान में लेकर गए और गलत काम करने का दबाव बनाया। मकान में कई और लड़कियां भी बंधक बनाकर रखी गई थीं।

युवतियों के विरोध पर उन्हें नशे का इंजेक्शन दिया जाता था। लग्जरी वाहनों से संचालक लड़कियों को ग्राहकों के पास भेजता था। ग्राहकों को वापस लड़कियों को उनके ठिकाने पर छोड़ने की हिदायत दी जाती थी। अधिकतर गिरोह में शामिल युवक लड़कियों को लाने व ले जाने का काम करते थे। छानबीन में पता चला है कि अलग अलग राज्यों से युवितयों को झांसा देकर बुलाया जाता था। पुलिस ने युवती की तहरीर पर एफआइआर दर्ज की है। पुलिस के मुताबिक पार्लर से अनिल कुमार, उदय पटेल, पीके, छोटू, राजकुमार और रितीक को गिरफ्तार किया गया है। पीड़िता ने पुलिस को बताया कि उसने पहले पुलिस चौकी में शिकायत की थी, लेकिन तब कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। पुलिस गिरोह में शामिल अन्य लोगों के बारे में भी पता लगा रही है।

[ दैनिक जागरण ]



इस के अलावा और भी अख़बारों में यह खबर तब छपी थी। इस लिंक पर बहुत से अख़बारों के लिंक हैं। कृपया देखें। 


https://www.google.com/search?q=%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%80+%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0+%2C+%E0%A4%B2%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A4%8A+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B9+%E0%A4%A7%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%87+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%AF+%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B2&sca_esv=40ad471a4e6b196f&rlz=1C1ONGR_enIN969IN969&sxsrf=ACQVn08pefcdZ1FAfxkuZ9a3t_VmlQ6XSA%3A1707832754960&ei=snXLZaGOOrWw4-EPiumtmAU&ved=0ahUKEwihr8flvKiEAxU12DgGHYp0C1MQ4dUDCBA&oq=%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%80+%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0+%2C+%E0%A4%B2%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A4%8A+%E0%A4%95%E0%A5%87+%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B9+%E0%A4%A7%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%87+%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82+%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%AF+%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B2&gs_lp=Egxnd3Mtd2l6LXNlcnAiZ-Ckl-Cli-CkruCkpOClgCDgpKjgpJfgpLAgLCDgpLLgpJbgpKjgpIog4KSV4KWHIOCkpuClh-CkuSDgpKfgpILgpKfgpYcg4KSu4KWH4KSCIOCkieCkpuCkryDgpKrgpJ_gpYfgpLIyCBAhGKABGMMESP6jAVDZGliyjAFwAXgAkAECmAHyAaABkhCqAQUwLjcuNLgBDMgBAPgBAcICCxAAGIAEGIAEGKIE4gMEGAEgQYgGAQ&sclient=gws-wiz-serp#ip=1&vhid=F79QqCKGoATElM&vssid=l

Thursday 8 February 2024

लता मंगेशकर से घृणा और नफ़रत करने वाले लोग

दयानंद पांडेय 


क़ायदे से लता मंगेशकर से घृणा और नफ़रत करने वाली फोर्सेज को उन शायरों , कवियों , संगीतकारों , फ़िल्म निर्देशकों , हीरो , हीरोइनों से भी उतनी ही नफ़रत करनी चाहिए , उतनी ही घृणा करनी चाहिए , जितनी वह लता मंगेशकर से करता हुआ दिख रहे हैं। जिन शायरों , कवियों के लता ने गीत गाए। ग़ज़लें गाईं। जिन संगीतकारों के साथ गाए। जिन गायकों के साथ गाए। जिन निर्देशकों , जिन हीरोइनों , हीरो के लिए गाए। इस तरह कोई 80-90 प्रतिशत लोगों को फ़िल्म इंडस्ट्री से इन फोर्सेज को अपनी घृणा और नफ़रत के क़ारोबार में रखना पड़ेगा। बचेंगे वही जो लता के पहले के थे या लता के बाद हुए। 

क्यों कि बिना लता मंगेशकर के तो कोई संगीत निर्देशक , कोई गीतकार , कोई फ़िल्म निर्देशक , हीरो-हीरोइन या गायक रहा नहीं। असल में घृणा और नफ़रत करने वाली यह फ़ोर्स , हिप्पोक्रेट फ़ोर्स है। ठीक वैसे ही जैसे , कोरोना वैक्सीन के ख़िलाफ़ हिक़ारत दिखाने वालों ने चुपके-चुपके वैक्सीन लगवा ली , यह घृणा और नफ़रत के दुकानदार भी लता मंगेशकर को सुनते हैं। यह बहुत बीमार लोग हैं। वैचारिकी के कोढ़ में कुढ़ते हुए सड़ गए हैं। वैचारिकी के खूंटे में बंधे तेली के बैल हैं। भेड़ चाल के अभ्यस्त लोग हैं। इन को डर है कि अगर लता मंगेशकर के प्रति अपनी घृणा नहीं परोसेंगे तो अपने बाप के नहीं रहेंगे। इन के लोग इन्हें हरामी घोषित कर देंगे। नाजायज औलाद बता देंगे। सो सब के सब प्रतिस्पर्धा में आ गए हैं। कि कौन ज़्यादा घृणा और नफ़रत परोसे। गोया कुर्सी दौड़ आयोजित हो यह बताने की कि अपने बाप की ही औलाद हूं। यह सिद्ध करने का यही समय है। अलग बात है कि इन लोगों के लिए इन दिनों ऐसा समय अकसर आता रहता है। 

एक पियक्कड़ और बदमिजाज पत्रकार याद आ रहा है जो सेक्यूलरिज्म के नाम पर एन जी ओ के पैसे से इतना मुटा गया है कि अपने बाप का दिया नाम हटा कर नया नाम रख लिया है। विदेश यात्राएं बहुत करता है। कहीं किसी देश में घर भी ले चुका है। ज़ी न्यूज़ के एंकर रोहित सरदाना के निधन पर उस ने रोहित की बेटी से बलात्कार करने की गुहार कर दी। तो यह सभी लोग बलात्कारी लोग हैं। लता मंगेशकर के मरने के बाद अपनी घृणा और नफ़रत का इज़हार कर , देवी जैसी लता मंगेशकर और उन की अप्रतिम गायकी के साथ निरंतर बलात्कार कर रहे हैं। 

सहमति-असहमति होती रहती है। पसंद-नापसंद भी। पर यह घृणा और नफ़रत ? इस के क्या मायने हैं भला ! ख़ैरियत बस यही है कि लता मंगेशकर के कोई बेटी या संतान नहीं है। नहीं यह बलात्कारी लोग , अपनी बीमार मानसिकता की बघार ज़रुर लगा देते। छी है ऐसे लोगों पर। लता मंगेशकर की गायकी छोड़िए , लोक कल्याण के लिए लता मंगेशकर ने कितने काम किए हैं , यह मूर्ख यह भी नहीं जानते। अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर के नाम पर गरीबों के लिए लगभग निःशुल्क बड़ा सा कैंसर अस्पताल बनवाया है। जाने कितनों की चुपचाप मदद की है। लोक कल्याण के और भी कई काम लता मंगेशकर के खाते में। लेकिन यह मूर्ख नहीं जानते। हां , लता को श्रद्धांजलि देते समय शाहरुख़ खान थूक नहीं रहा , इस के बचाव में ज़रुर खड़े हो गए हैं यह लोग। पर लता मंगेशकर के ख़िलाफ़ जहर बदस्तूर जारी है।


Tuesday 6 February 2024

इंद्र पुत्र और व्यास नंदन का मर्म

दयानंद पांडेय 

महाभारत में एक क़िस्सा आता है , जो कमोवेश सभी लोग जानते हैं। कि श्रीकृष्ण के पास पहले दुर्योधन पहुंचा था। मारे घमंड के श्रीकृष्ण के सिरहाने बैठा। अर्जुन बाद में पहुंचे और पैताने बैठे। श्रीकृष्ण ने पहले अर्जुन से बात शुरु की और दुर्योधन के पहले आने के हस्तक्षेप को मुल्तवी करते हुए तर्क दिया कि पहले उन्हों ने अर्जुन को देखा , सो वह पहले अर्जुन से बात करेंगे। और की भी। पर श्रीकृष्ण जब सोए हुए थे तब एक घटना और घटी। जो कम लोग जानते हैं। हुआ यह कि दुर्योधन तो पहले ही से पहुंचा हुआ था। पर जब अर्जुन आए तो दुर्योधन ने अर्जुन पर तंज करते हुए पूछा , कहिए इंद्र पुत्र कैसे आना हुआ ? अर्जुन तिलमिला कर रह गए पर चुप रहे। 

गौरतलब है कि कुंती के तीन पुत्र थे , युधिष्ठिर , भीम और अर्जुन। कर्ण को मिला लें तो चार पुत्र। कर्ण विवाह पूर्व सूर्य के पुत्र हैं। जब कि अर्जुन , कुंती-पाण्डु विवाह के बाद भी इंद्र पुत्र हैं। तो दुर्योधन ने इसी बात पर तंज किया। ख़ैर , बाद में श्रीकृष्ण की बात जब अर्जुन से हो गई तो दुर्योधन की तरफ मुखातिब होते हुए श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा कि कहिए व्यास नंदन , आप का कैसे आना हुआ ? यह सुन कर दुर्योधन तिलमिला गया। पर चुप रहा। कोई प्रतिक्रिया नहीं दी श्रीकृष्ण को। असल में श्रीकृष्ण दुर्योधन और अर्जुन के आने के समय सोए ज़रुर थे पर दोनों का संवाद सुन लिया था। 

सब जानते हैं कि धृतराष्ट्र , पाण्डु और विदुर महर्षि व्यास की संतान थे। लंबी कथा है , यह भी। तो इसी बिंदु पर कटाक्ष करते हुए श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को इंगित किया कि अगर अर्जुन इंद्र पुत्र हैं तो बेटा दुर्योधन , तुम भी पाक-साफ़ नहीं हो। हो तो व्यास नंदन ही। तो आज एक पोस्ट पर इसी तरह की बात करते हुए कुछ मित्रों ने वर्ण संकर पर विमर्श शुरु कर दिया। कुछ ज़्यादा ही उछृंखल हुए मित्र लोग। तो मन हुआ कि यह कथा भी बांच दी जाए। क्यों कि बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी।

Saturday 3 February 2024

आडवाणी बीज हैं , नरेंद्र मोदी उस का फल

दयानंद पांडेय 



अपना-अपना भ्रम तोड़ कर एक बात लोगों को अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि लालकृष्ण आडवाणी वह बीज हैं जिस के फल हैं , नरेंद्र मोदी। वृक्ष , शाखाएं , फूल और फल नष्ट हो जाएं , ख़त्म हो जाएं तो फिर हो जाएंगे। लेकिन अगर बीज ही ख़त्म हो जाए तो कुछ नहीं होगा। कभी नहीं होगा। लेकिन देख रहा हूं कि लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न क्या मिला , कई सारे पके-अधपके फोड़े फूट गए हैं। इन फोड़ों का बदबूदार मवाद , ऐसे बह रहा है जैसे नाबदान में सीवर का पानी। इन को बहने दीजिए और जानिए कि लालकृष्ण आडवाणी न होते तो भाजपा का यह वृक्ष भी आज की तारीख़ में इतना घना , इतना फलदार नहीं ही होता। 

आप कहेंगे कि फिर अटल बिहारी वाजपेयी क्या हैं ? क्या थे ? 

एक निर्मम सच यह भी है कि लालकृष्ण आडवाणी की मेहनत से ही अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। अटल बिहारी वाजपेयी के अध्यक्ष रहते भाजपा लोकसभा में दो सीट पर सिमट कर रह गई थी। भाजपा जब भी फूली-फली , लालकृष्ण आडवाणी के भाजपा अध्यक्ष रहते ही। आप कह सकते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी , भाजपा के नेहरु थे। गांधी नेहरु के बीज थे। सरदार पटेल आदि को फांद कर नेहरु प्रधानमंत्री बने थे। गांधी कहते थे कि हमारे बीच नेहरु ही एक अंगरेज है। तो कट्टर लोगों के बीच भाजपा में अटल एक उदार चेहरा थे। अलग बात है एक समय लोग अटल बिहारी वाजपेयी को भाजपा का धर्मेंद्र कहते थे। जैसे धर्मेंद्र , फिल्मों में प्रेम , हास्य , स्टंट सब कुछ कर लेते थे , अटल बिहारी वाजपेयी भी भाजपा में , भाजपा के लिए सभी कुछ कर लेते थे। अटल बिहारी वाजपेयी कट्टर नहीं , उदार चेहरा थे भाजपा के। जब कि लालकृष्ण आडवाणी भाजपा का कट्टर चेहरा। अटल बिहारी वाजपेयी ने वह सब कुछ नहीं देखा , भोगा जो लालकृष्ण आडवाणी ने देखा भुगता। पाकिस्तान बंटवारे के बाद कराची में मुस्लिम सांप्रदायिकता का सामना अटल बिहारी वाजपेयी ने नहीं किया था। नहीं भुगता था। भुगता था , लालकृष्ण आडवाणी ने। सिंधी हो कर भी लालकृष्ण आडवाणी को सिंध छोड़ना पड़ा था , अटल बिहारी वाजपेयी को नहीं। तो लालकृष्ण आडवाणी कट्टर नहीं होते तो कौन होता भला ! धूमिल की कविता पंक्ति है : 

लोहे का स्वाद

लोहार से मत पूछो

उस घोड़े से पूछो

जिसके मुँह में लगाम है। 

तो लालकृष्ण आडवाणी की स्थिति वही थी , जो लगाम वाले घोड़े की होती है। मुस्लिम सांप्रदायिकता का स्वाद आडवाणी ने चखा था , अटल ने नहीं। ख़ैर , बात भाजपा , आडवाणी , मोदी और भारत रत्न की। 


अभी आडवाणी को भारत रत्न घोषित होने तक के पहले तक आडवाणी-मोदी के संबंधों पर तंज करने वालों का सुर क्या था , अब क्या हो गया है , देखने लायक़ है। आनंददायक है। बहुत आनंददायक। अभी तक मोदी विरोध के बुखार में तप रहे लोग , आडवाणी से गहरी सहानुभूति रखने वाले लोग कैसे तो पके फोड़े की तरह फूट कर मवाद के सीवर का नाला बन कर बदबू मारते हुए बहने लगे हैं , देखना बहुत दिलचस्प है। 

अच्छा अगर सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा आडवाणी ने नहीं निकाली होती तो क्या देश की राजनीति का मंज़र यही होता ? आडवाणी की रथयात्रा अयोध्या भले नहीं पहुंची पर इस रथयात्रा ने आडवाणी को जननायक बना दिया था। इतना कि लोग आडवाणी के रथ के पहियों पर लगी धूल माथे पर लगाते थे। आडवाणी की आरती होती थी जगह-जगह। 

अच्छा अगर गोधरा न होता और समूचा सेक्यूलर गैंग गोधरा पर सांस खींच कर बैठ न गया होता , ऐसे जैसे कुछ हुआ ही न हो। तो क्या राजनीति का यही दृश्य होता ? 

सेक्यूलर गैंग ऐसे ख़ामोश रहा गोया रेल के डब्बों में बंद कर के गोधरा में कारसेवक नहीं , इंसान नहीं लकड़ी जला दी गई हो। फिर गोधरा नरसंहार की प्रतिक्रिया में पूरे गुजरात में जिस तरह दंगे-फसाद हुए , उस पर जो एकतरफा हाय-तौबा हुई , वह भी नहीं हुआ होता तो क्या यही-यही हाल-हवाल होता ? नरेंद्र मोदी को जिस तरह मुख्यमंत्री के तौर पर अपराधी घोषित कर पूरे देश में माहौल बिगाड़ा नहीं गया होता तो क्या नरेंद्र मोदी , आज की तारीख़ में प्रधानमंत्री भी होते ?

मेरा स्पष्ट मानना है कि नहीं होते। बात पानी की तरह साफ है कि मुस्लिम तुष्टिकरण की भयानक आंधी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया। 

जिस तरह तीस्ता सीतलवाड़ जैसे एन जी ओ धारी खड़े कर , दुनिया भर के एकतरफा आरोप लगा कर मोदी को खलनायक बना कर पेश किया , कांग्रेस और सोनिया गांधी ने वह अभूतपूर्व था। सी बी आई सहित तमाम जांच एजेंसियों ने नरेंद्र मोदी को घेर लिया। बारह-बारह घंटे की पूछताछ होती थी तब मोदी से। नियमित। सोनिया गांधी ने ख़ून का सौदागर बताया नरेंद्र मोदी को। पूरी दुनिया में बताया गया कि नरेंद्र मोदी से ज़्यादा घृणित मुख्यमंत्री और व्यक्ति कोई है ही नहीं। अटल बिहारी वाजपेयी की भी उदारता जागी और उन्हों ने ने भी मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ा दिया गोवा में। लेकिन आडवाणी ढाल की तरह खड़े हो गए , मोदी के पक्ष में। लंबी प्रक्रिया के बाद सभी कानूनी मामलों और जांचों से भी सुप्रीमकोर्ट से क्लीनचिट मिल गई मोदी को। कि तभी प्रयाग के महाकुंभ के धर्म संसद में विश्वहिंदू परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष अशोक सिंघल ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का नाम प्रस्तावित कर दिया। भाजपा ने इस प्रस्ताव पर अमल किया। आडवाणी अपना चेहरा उदार बनाने की गरज से जिन्ना को सेक्यूलर होने का सर्टिफिकेट दे कर फंस चुके थे। मोदी के मुखर विरोधी भी बन बैठे। लेकिन देश की जनता ने भी तमाम राजनीतिक दलों के मुस्लिम तुष्टिकरण से आजिज आ कर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर बहुमत दे कर चुन लिया। अब मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने से आजिज मोदी वार्ड के तमाम मरीज , लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी में अपनी दवा खोजने लगे। आडवाणी , जोशी की सहानुभूति में बेक़रार रहने लगे। कभी राफेल , कभी नोटबंदी , कभी जी एस टी , कभी नए संसद भवन , कभी राम मंदिर में दुःख-दर्द खोजते रहे। दुष्यंत के एक शेर में जो कहें : 

सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी 

इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है। 

यह दर्द ख़त्म ही नहीं होता। लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न अब नया दर्द है। लेकिन बात फिर वहीं आ कर ठहर जाती है कि लालकृष्ण आडवाणी बीज हैं और नरेंद्र मोदी उस के फल। नरेंद्र मोदी नाम का यह फल भारतीय राजनीति के सारे सेटिल्ड पाठ्यक्रम रद्द कर नित नए पाठ्यक्रम बनाता रहता है। रद्द करता रहता है। जाने क्यों लोग इस बात से बुरी तरह बेख़बर हैं। मुसलसल बेख़बर हैं। उलटे लोग अवसाद में आते रहते हैं। पागल होते रहते हैं। याद कीजिए पिछली बार नीतीश कुमार को फिर से एन डी ए में लाने के पहले बिहार के तत्कालीन राज्यपाल रामनाथ कोविद को राष्ट्रपति पद के लिए नामित किया था। नीतीश गए रामनाथ कोविद को बधाई देने और पलट कर इस्तीफ़ा दे कर वापस एन डी ए में। अब की बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पुरी ठाकुर को भारत रत्न का ऐलान कर नीतीश कुमार को अपने पाले में कर के इंडिया गठबंधन के ट्यूब की छूछी खोल दी। सारी हवा निकल गई। 

अच्छा तो क्या कर्पुरी ठाकुर के साथ ही लाकृष्ण आडवाणी को भी भारत रत्न देने का ऐलान नहीं किया जा सकता था ? किया जा सकता था। पहले भी एक साथ दो लोगों को भारत रत्न का ऐलान हुआ है। पर अगर तभी हो जाता तो यह निर्मल आनंद कैसे मिल पाता मोदी वार्ड के सदस्यों को। सच तो यह है कि नरेंद्र मोदी को राजनीति में अपने विरोधियों को निरंतर जुलाब देने की कुलति लग गई है। कर्पुरी ठाकुर को भारत रत्न दे कर नीतीश कुमार को अपना अल्शेसिसियन बना कर जातीय जनगणना को पलीता लगाया। अब लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दे कर , गुरु दक्षिणा दी है। अयोध्या में राम मंदिर बन जाने की गुरु दक्षिणा। नहीं देने को तो जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न दिया था , तभी लालकृष्ण आडवाणी को भी भारत रत्न दे देना था। 


भारत रत्न ही क्यों लालकृष्ण आडवाणी अगर ज़्यादा उछल-कूद न किए होते तो राष्ट्रपति भी बने होते और भारत रत्न भी। नहीं बने तो इस लिए भी कि आडवाणी , अटल से तमाम दोस्ती के बावजूद फिंगरिंग से बाज नहीं आते थे। आदत से लाचार थे। कई बार उन्हें लगता रहता था कि सारी मेहनत उन्हों ने की। भाजपा की राजनीतिक ज़मीन को उपजाऊ उन्हों ने बनाया , फ़सल अटल काट रहे हैं। तो रह-रह कर टीस उठती रहती थी। शायद आडवाणी की यह टीस देख कर ही गोविंदाचार्य एक समय कह बैठे थे कि अटल जी तो मुखौटा हैं। और खेत हो गए। 

याद कीजिए अटल जी का गोवा में वह भाषण जिस में उन्हों ने गरजते हुए कहा था , न टायर्ड , न रिटायर्ड , आडवाणी जी के नेतृत्व में विजय की ओर प्रस्थान ! तब आडवाणी ही नहीं , पूरी भाजपा को सांप सूंघ गया था। तो मोदी के साथ भी आडवाणी की फिंगरिंग लगातार जारी रही। यशवंत सिनहा , शत्रुघन सिनहा तक बाग़ी हुए तो आडवाणी की ही शह पर। सुषमा स्वराज , उमा भारती , शिवराज सिंह चौहान आदि तब समय रहते ही बाग़ी सुर बदल कर नमो-नमो पर आ गए थे। तो आडवाणी भी अगर समय की नज़ाकत देखते हुए अपने प्रिय शिष्य के साथ बेसुरे न हुए होते तो भारत रत्न ही नहीं , राष्ट्रपति भी हुए होते। अगर अभी नहीं तो मरणोपरांत भी निश्चित ही भारत रत्न होते लालकृष्ण आडवाणी। अच्छा हुआ कि जीते-जी भारत रत्न हो गए। अब वह लांछित नहीं , सम्मानित मृत्यु को प्राप्त करेंगे। लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दे कर नरेंद्र मोदी ने भी अपने दिल का भार हल्का किया है। अपना चेहरा साफ़ किया है। बीज को प्रणाम कर के ही , अपने मूल को आदर दे कर ही कोई फल , फल बने रह सकता है। नहीं सड़ कर बदबू मारने लगता है। यह कृतज्ञता भाव काश कि हर शिष्य में हो ! हुआ करे ! ग़ालिब लिख ही गए हैं :


इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई 

मेरे दुख की दवा करे कोई 


शरअ' ओ आईन पर मदार सही 

ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई 


क्या किया ख़िज़्र ने सिकंदर से 

अब किसे रहनुमा करे कोई 



Saturday 20 January 2024

चिरयौवना अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी अयोध्या को प्रणाम कीजिए !

दयानंद पांडेय 



चिरयौवना अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी अयोध्या को प्रणाम कीजिए !

आप पूछ सकते हैं यह क्या ? तो जानिए कि ऐश्वर्य में जगमग और भक्ति में लिपटी राम की नगरी अयोध्या के नामकरण की कथा बहुत दिलचस्प और रोमांचक है। यह दिलचस्प कथा न वाल्मीकि बताते हैं , न तुलसीदास , न भवभूति आदि। बताते हैं , कालिदास। रघुवंशम में कालिदास रघुवंश की कथा तो बांचते ही हैं , अयोध्या नगर के बसने की भी बहुत दिलचस्प कथा बांचते हैं। बताते हैं कि अयोध्या एक स्त्री है , जिस के नाम पर अयोध्या नगर बसा है।  

अभी भी जो अयोध्या हमारे सामने उपस्थित है , कम से कम राम की बसाई अयोध्या नहीं है। यह बात भी लोगों को अच्छी तरह जान लेना चाहिए। जान लेना चाहिए कि राम की बसाई अयोध्या उजड़ गई थी। बहुत बाद में इसे अयोध्या के कहने से ही फिर से राम के पुत्र कुश ने बसाया। राम की नगरी अयोध्या कैसे बसी , कितनी बार उजड़ी , यह तथ्य भी कितने लोग जानते हैं ? लेकिन अयोध्या के उजड़ने और बसने के तमाम विवाद पर हम अभी यहां कोई चर्चा नहीं करना चाहते। क्यों कि राम एक सकारात्मक और मर्यादित चरित्र हैं। तुलसीदास इसी लिए राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं। इसी रुप में वह राम को स्थापित करते हैं। मत भूलिए कि जन-जन और जग में आज राम इस तरह उपस्थित हैं , लोक जीवन में उन का डंका बजता है तो इस का एक महत्वपूर्ण कारण तुलसीदास कृत श्रीराम चरित मानस है। लेकिन यहां हम अयोध्या नगर के बारे में कालिदास का बताया क़िस्सा , संक्षेप में याद करते हैं। जो बहुत कम लोग जानते हैं। कालिदास तो वर्णन के कवि हैं। एक-एक बात के लिए , ज़रा-ज़रा सी बात के लिए ढेर सारे श्लोक लिख डालते हैं। बारीक़ से बारीक़ विवरण प्रस्तुत करते हैं। करते ही जाते हैं। रेशा-रेशा खोलते जाते हैं। 

अयोध्या है कौन जिस के नाम पर यह नगर अयोध्या बसा। नहीं जानते तो पढ़िए कभी कालिदास लिखित रघुवंशम् । तो पता चलेगा कि अयोध्या एक स्त्री का नाम है। अयोध्या इस नगर की अधिष्ठात्री देवी भी कही जाती हैं। इस स्त्री अयोध्या के नाम पर ही अयोध्या नगर बसा। रघुवंशम् के मुताबिक़ अयोध्या चिर यौवना थी। इंद्र का वरदान था कि वह कभी बूढ़ी नहीं होगी। सर्वदा जवान रहेगी। सदियों-सदियों जवान रहेगी। आप ख़ुद देखिए कि आज फिर अयोध्या सब से ज़्यादा जवान होने की ओर अग्रसर है। अयोध्या का वैभव फिर लौट रहा है। 

इक्ष्वाकु वंश के महाराज दिलीप संतान सुख से वंचित थे। एक ऋषि से वह मिले और संतान सुख से वंचित होने की तकलीफ़ बताई। उस ऋषि ने उन से कहा कि बागेश्वर से सरयू नदी निकलती है। उस से इतनी दूरी पर इस नदी में सपत्नीक स्नान कर पूजा-पाठ करें , संतान प्राप्ति होगी। राजा दिलीप को उस ऋषि ने बताया था कि जहां भी कहीं जाइएगा , वहां एक स्त्री मिलेगी। वहीं अपना नगर बसा लीजिएगा। तो महाराज दिलीप एक दिन सरयू नदी में नहा कर निकले तो वह अयोध्या नाम की स्त्री मिली। पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है। तो उस ने बताया अयोध्या। दिलीप ने पूछा , कि कब से हो यहां ? तो वह स्त्री बोली , दो लाख साल से यहीं हूं। महाराज दिलीप हंसे और बोले , इतनी तो तुम्हारी उम्र भी नहीं है। तो अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया। और बताया कि इसी लिए वह चिरयौवना है। खैर महाराज दिलीप ने फिर यहां अयोध्या नाम से नगर बसाया। तुलसीदास ने श्रीराम चरित मानस के बालकांड में लिखा भी है :

अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ।। 

जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।।

सरयू नदी उत्तराखंड बागेश्वर के पास से निकली बताई जाती है। उत्तराखंड के बागेश्वर से अयोध्या की दूरी कोई 500 किलोमीटर है। सरयू नदी को सर्वमैत्रेस भी कहा गया है। बौद्ध ग्रंथों में इसे सवेर नदी के नाम से दर्ज किया गया है। ऋग्वेद में भी सरयू का ज़िक्र है। बहरहाल महाराज दिलीप ने उस स्त्री के नाम से ही अयोध्या नगर बसाया और न्याय प्रिय शासन की स्थापना की। बहुत दिन बीत गए पर राजा दिलीप को संतान सुख नहीं मिला। तो वह मुनि वशिष्ठ के पास गए। मुनि वशिष्ठ ने बहुत विचार और गणना आदि के बाद महाराज दिलीप को बताया कि गऊ दोष है। गऊ की सेवा करें। संतान प्राप्ति होगी। महाराज दिलीप ने गऊ सेवा शुरु की। एक दिन अचानक एक शेर आया और नंदिनी गाय को शिकार बनाना चाहा। महाराज दिलीप शेर के सामने आ कर खड़े हो गए , यह कहते हुए कि गऊ माता को नहीं मुझे अपना ग्रास बना लें। शेर ने रुप बदल लिया और कहा कि आप गऊ सेवा की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। हम आप की गऊ सेवा से प्रसन्न हैं। 

कालिदास ने महाराज दिलीप के चरित्र का बहुत ही दिलचस्प वर्णन किया है , रघुवंशम  में। बताया है कि वैवस्वत मनु के उज्जवल वंश में चंद्रमा जैसा सुख देने वाले दिलीप का जन्म हुआ। 

महाराज दिलीप के चरित्र और व्यक्तित्व का बहुत ही दिलचस्प वर्णन कालिदास ने लिखा है। दिलीप को सारा सुख था पर उन की पत्नी सुदक्षिणा के कोई संतान नहीं थी। फिर गुरु वशिष्ठ के यहां जाने , कामधेनु का श्राप प्रसंग , नंदिनी गाय और शेर आदि की कई दिलचस्प कथाओं का वर्णन मिलता है। फिर एक पुत्र का जन्म होता है जिस का नाम रखा जाता है , दिलीप से प्रतापी भगीरथ पुत्र हुए। भगीरथ ही मां गंगा को कठोर तप के बल पर पृथ्वी पर लाने में सफल हुए थे। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ हुए और ककुत्स्थ के पुत्र रघु का जन्म हुआ। कालांतर में इसी रघु के पराक्रम के कारण इस वंश को रघुवंश नाम से जाना जाता है। फिर अज , दशरथ आदि के क़िस्से सभी जानते हैं। रघुकुल मर्यादा, सत्य, चरित्र, वचनपालन, त्याग, तप, ताप व शौर्य का प्रतीक रहा है। कोई 29 पीढ़ी की कथा मिलती है रघुवंश की। जिस में महाराज अग्निवर्ण अंतिम राजा बताए गए हैं। अग्निवर्ण की कोई संतान नहीं हुई। सो रघुवंश की यहीं इति मान ली गई है। 

बीच में एक कथा फिर यह भी आती है कि राम ने जब भाइयों , पुत्रों के बीच सारा राज-पाट बांट कर साकेत धाम गमन पर गए बाद के समय में अयोध्या पूरी तरह उजड़ गई। तो अयोध्या नाम की वह स्त्री पहुंची कुश के पास। माना जाता है कि वर्तंमान छत्तीसगढ़ में ही तब कुशावती कहिए , कुशावर्ती कहिए , कुश का शासन था। तो अयोध्या अचानक कुश के शयनकक्ष में पहुंच गई। कुश उसे देखते ही घबरा गए। बोले , तुम कैसे यहां आ गई। किसी ने रोका नहीं , तुम्हें ? फिर वह प्रहरी आदि को बुलाने लगे। 

तो अयोध्या ने कहा , घबराओ नहीं। किसी को मत बुलाओ। मैं अयोध्या हूं। मेरे युवा होने पर मत जाओ। तुम्हारे सभी पुरखों को जानती हूं। सभी मेरी गोद में खेले हैं। फिर अयोध्या ने इंद्र के वरदान के बारे में बताया। और बताया कि राम के बाद अयोध्या नगर उजड़ कर अनाथ हो गया है। जंगल हो गया है। अयोध्या में अब मनुष्य नहीं , जानवरों का वास हो गया है। सो तुम चलो और अयोध्या को फिर से बसाओ। कुश ने कहा कि लेकिन पिता राम ने तो मुझे यहां का राजकाज सौंपा है। अयोध्या कैसे चल सकता हूं। फिर अयोध्या ने जब कुश को बहुत समझाया तो कुश मान गए। लौटे अयोध्या। उजड़ चुकी अयोध्या को फिर से बसाया। तो माना जाता है कि आज की अयोध्या कुश की बसाई हुई अयोध्या है। वैसे अयोध्या को पहला तीर्थ और धाम भी माना जाता है। कहा ही गया है :

अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।

पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥

अयोध्या जैनियों का भी तीर्थ है। 24  तीर्थंकरों में से 22  इक्ष्वाकुवंशी थे और उनमें से सबसे पहले तीर्थंकर। आदिनाथ (ऋषभ-देव जी) का और चार और तीर्थंकरों का जन्म यहीं हुआ था। बौद्धमत की तो कोशला जन्मभूमि ही है। शाक्य-मुनि की जन्मभूमि कपिलवस्तु और निर्वाणभूमि कुशीनगर दोनों कोशला में थे। अयोध्या में उन्होंने अपने धर्म की शिक्षा दी और वे सिद्धांत बनाए और दुनिया भर में मशहूर हुए। बहरहाल अयोध्या जिसे साकेत भी कहते हैं कि पौराणिक कहानियां और अन्य कहानियां बहुत सारी हैं। जिन का बहुत विस्तार यहां ज़रुरी नहीं है। पर अयोध्या की आज की कथा बांचने के लिए इतनी पौराणिक पृष्ठभूमि भी बहुत ज़रुरी है। 

गरज यह कि अयोध्या सर्वदा ही उथल-पुथल की नगरी रही है। पौराणिकता तो जो है इस की वह है ही। पर एक समय बौद्धों का भी यहां बहुत प्रभाव था और जैनियों का भी। यही कारण है कि मुगलों ने अयोध्या पर हमला कर भारत के पौराणिक नगर में प्रभु राम के मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई और अपनी श्रेष्ठता और हनक क़ायम की। बाक़ी सैकड़ों बरसों का राम मंदिर विवाद सब के सामने है। विस्तार में जाने की ज़रुरत नहीं है। अब विवाद समाप्त है। आग बुझ चुकी है। पर विवाद की राख अभी भी उड़ती दिखती रहती है यदा-कदा । 

राम के बाद अनाथ हो कर उजड़ चुकी अयोध्या को जैसे कुश ने कभी दुबारा बसाया था , ठीक वैसे ही , मुगलों के आक्रमण के बाद , आज़ादी के बाद फिर से बरबाद हो रही अयोध्या और उस की अस्मिता को प्रतिष्ठित करने का काम फिर से बख़ूबी हो रहा है। लोग इस कार्य के लिए असहमत हो सकते हैं। विरोध कर सकते हैं पर ऐश्वर्य से परिपूर्ण अयोध्या को नई साज-सज्जा मिली है। नया रंग , नया रुप , नया कलेवर और नया तेवर दिया है। सुविधाजनक और सुंदर बनाया गया है। इस से कोई भला कैसे इंकार कर सकता है। अयोध्या अब जनपद है। वर्तमान का सच है। 

याद आता है कि अखिलेश यादव का एक संदेश 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर बहुत वायरल था कि सत्ता में आते ही वह अयोध्या को फिर से फैज़ाबाद कर देंगे। यह उन का अधिकार है। पर सत्ता में आए ही नहीं। आगे भी क्या आएंगे भला। ख़ैर , सड़क से लगायत एयरपोर्ट तक विकास के कई स्तंभ लांघते हुए वर्ड क्लास नगर बनने की ओर अग्रसर है अयोध्या। सिर्फ़ राम नगरी और भव्य राम मंदिर ही नहीं , पर्यटन का एक बड़ा केंद्र बन कर हमारे सामने अयोध्या नगर उपस्थित है। अयोध्या का चतुर्दिक विकास देखते हुए कई बार मन में प्रश्न उठता है कि आने वाले दिनों में अयोध्या कहीं राजनीतिक राजधानी तो नहीं बन जाएगी। 

सांस्कृतिक राजधानी तो वह बन ही गई है। दुनिया भर से लोग वहां अब उपस्थित हैं। देश भर से जनता-जनार्दन उपस्थित है। लोग इतने आ रहे हैं कि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हवाई जहाज के लिए पार्किंग की जगह नहीं मिल रही है तो आसपास के तमाम हवाई अड्डों पर हवाई जहाज की पार्किंग के लिए जगह आवंटित की गई है। देहरादून , जयपुर आगरा , वाराणसी , लखनऊ , गोरखपुर आदि हवाई अड्डे पर। फिर भी जगह कम पड़ रही है। कई शहरों से हेलीकाप्टर सेवा अलग है। अयोध्या धाम जैसा शानदार और सुविधा वाला रेलवे स्टेशन पूरे भारत में नहीं है। इस रेलवे स्टेशन के आगे तमाम हवाई अड्डे फेल हैं। 

इसी लिए पुन: कहता हूं कि  ऐश्वर्य में जगमग और भक्ति में लिपटी राम की नगरी चिरयौवना अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी अयोध्या को प्रणाम कीजिए !

Wednesday 10 January 2024

विपश्यना की मार्केटिंग के शोर- शराबे और उस के शिविर के चुप के बीच का सच है ‘विपश्यना में प्रेम’

भवतोष पांडेय 

—०—-०——-

कथानक , कथावस्तु और उद्देश्य 

——

कथानक के केंद्र में है विनय नाम का पात्र जो एक गृहस्थ है और कुछ दिनों के लिए गृहस्थ को तज कर या यूं  कहिए घर परिवार से छुट्टी ले कर विपश्यना के ध्यान शिविर में आता है ; ध्यान और साधना के अभ्यास के लिए ।

शिविर का नियम है - मौन । 

बल ,दबाव और कृत्रिम अनुशासन के बावजूद मन का शोर है कि थमता ही नहीं । विनय मन की शांति की खोज में घर से पगहा तुड़ा कर और भाग कर इस  शिविर में आया था । स्पष्ट है कि उस का गृहस्थ जीवन अशांत और अरुचिकर रहा होगा !

विनय यहां अकेले नहीं है जो इस शिविर में आया है तनाव के टेंट को तोड़ने के लिए । विविधता समेटे कई ग्रुप आए हैं जो शांति की तलाश में हैं या उसका अभिनय कर रहे हैं !

क्या कोई शिविर किसी को शांति दे सकता है ?

इसी प्रश्न की पड़ताल करते -करते लेखक ने साधन -साधना , वासना -विपश्यना , मौन -स्वर , शांति -कोलाहल आदि  युग्म पर एक अच्छी बहस का सृजन किया है ।

एक बानगी ,

‘लोग कहते हैं , मौन में बड़ी शक्ति होती है । तो मौन मन के शोर को क्यों नहीं शांत कर पाता । ‘

विनय सोचता है कि कहीं मौन का अनावश्यक महिमामंडन तो नहीं किया गया है ? 

कई अमूर्त तथ्यों और अवधारणा का मूर्तिकरण कर लेखक ने कठिन चीज़ों को पाठकों के सामने बहुत ही सीधे शब्दों में रखा है -

‘ विपश्यना शिविर में विनय भी अपने मौन के शोर को अब सँभाल नहीं पा रहा था । मौन का बांध जैसे रिस -रिस कर टूटना चाहता था । शोर की नदी का प्रवाह तेज़ और तेज़ होता जा रहा था ।…’

कथा आगे बढ़ती है और दिलचस्प मोड़ लेती है जब नायिका जिसे विनय ने एक अस्थायी नाम मल्लिका दिया है , शिविर में उस का ध्यान खींचती है ।

यह उपन्यास का वह प्रस्थान बिंदु है जहां विपश्यना में वासना का संगीत स्वरित होता है , जो कभी प्रेम के आवरण में तो कभी निर्वस्त्र वासना का रूप लेता है । और यहां पर लेखक स्त्री के देह के सौंदर्य शास्त्र और मन का व्याख्याता बना कर विस्तार से स्त्री के देह और मन की व्याख्या करता है । विनय और दारिया (मल्लिका)के बीच के प्रेम व्यापार का वर्णन और उस का प्रदीर्घ विस्तार उपन्यास की आंशिक सीमा भी बनी है । विनय और मल्लिका के बीच वासनजन्य प्रेम प्रदर्शन की बारंबार कमेंट्री साहित्य के संस्कारवादियों को खटक सकती है ।

कहानी की गति अंत में बढ़ती है और कुछ ऐसी चीज़ें उद्घाटित होती है जो पाठकों के सामने विपश्यना का ऐसा सच प्रस्तुत करती है जिस से पाठक विस्मित हो जाते हैं ।

कुछ प्रतिभागी केवल मज़े के लिये शिविर में शामिल होते हैं तो कुछ अपने पर्यटन उद्योग में एक आइटम की तरह विपश्यना को देखते हैं । कुछ के लिए विपश्यना शिविर एक सस्ता रिसोर्ट से ज़्यादा कुछ नहीं । सब से ज़्यादा ठगा विनय तब महसूस करता है जब उसे पता चलता है कि उस की अस्थायी प्रेमिका अपने पति के साथ विपश्यना में आई हुई थी । उस का वास्तविक उद्देश्य कुछ महीनों बाद उद्घाटित होता है । यह जानने के लिए आप को उपन्यास पढ़ना होगा ।


चरित्र निर्माण 

-

लेखक ने अनावश्यक आदर्शवादी चरित्र गढ़ने के बजाय वास्तविक किरदारों का निर्माण किया है और कथा -विन्यास को वायवीय होने से बचाया है । चारित्रिक दुर्बलता , व्यभिचार और बेवफ़ाई मल्लिका (दारिया ) और विनय दोनों में ही पूर्ण मात्रा में प्रदर्शित है । 

भाषा शैली और वातावरण निर्माण 

—-

उपन्यास की भाषा में आद्यंत प्रवाह है जो पाठकों को बांधे रखता है । रचनाकार ने परिष्कृत और संस्कृतनिष्ठ भाषा की जगह आम बोल चाल की भाषा का प्रयोग किया । लेखक ने कई जगहों पर अपनी बातों को प्रभावी ढंग से कहने के लिए फ़िल्मी गानों का प्रयोग किया है । अंग्रेज़ी शब्दों की प्रसंगानुसार बहुलता है । लेखक ने शब्दों का वितान ऐसा रचा है कि मानो पाठक विपश्यना शिविर का वासी है । रचनाकार का यह वातावरण निर्माण सराहनीय है ।


मज़बूत पक्ष और पठनीयता 

—-

आजकल विपश्यना जाना एक फ़ैशन सा है जिसे ‘कूल कल्चर’ भी माना जा रहा है । लेकिन विपश्यना की सच्चाई से हर कोई अवगत नहीं । रचनाकार ने इस कथा साहित्य के माध्यम से विपश्यना की मार्केटिंग के शोर- शराबे का सच उजागर करने की कोशिश की है जो अपने आप में एक नया प्रयास है।

नये कथ्य ,प्रवाहमयी भाषा और रोचकता इस उपन्यास को पठनीय बनाते हैं। 


 [ भवतोष पाण्डेय (bhavtoshpandey.com) से साभार ]


विपश्यना में प्रेम उपन्यास पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए 


विपश्यना में विलाप 


समीक्ष्य पुस्तक :



विपश्यना में प्रेम 

लेखक : दयानंद पांडेय 

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 

4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002 

आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र 

हार्ड बाऊंड : 499 रुपए 

पेपरबैक : 299 रुपए 

पृष्ठ : 106 

अमेज़न (भारत)
हार्डकवर : https://amzn.eu/d/g20hNDl


     

     

               




-


Wednesday 3 January 2024

प्रौढ़ स्त्रियों की विवशता के रैपर में लिपटी कहानियां

 दयानंद पांडेय 

अर्चना प्रकाश के पास कहानियां बहुत हैं। इन कहानियों को कहने के लिए आकुलता भी पर्याप्त है। कहानियों को कहने के लिए वह क्राफ़्ट , फार्मेट आदि के चोंचलों में नहीं पड़तीं। जैसे नदी बहती है। कभी सीधी , कभी मुड़ती , कभी पाट बदलती हुई। ठीक वैसे ही अर्चना प्रकाश की कहानियां भी बहती रहती हैं। पाट बदलती हुई। पर नदी का चरित्र नहीं छोड़तीं। नदी मतलब स्त्री। स्त्री संवेदना और इस संवेदना की थकन अर्चना प्रकाश की कहानियों का कथ्य है। अपने आस-पास की कथा को बस पात्रों का नाम बदल कर वह परोस देती हैं। बिना लाग-लपेट के। जैसे नदी में सिर्फ़ नदी का पानी ही नहीं होता , शहरों का सीवर आदि का पानी भी मिलता चलता है , फैक्ट्री का कचरा भी मिलता जाता है। ठीक वैसे ही अर्चना प्रकाश की कहानियों में मूल पात्र के साथ अन्य पात्र भी मिलते जाते हैं। जैसे नदी जब बहती है तो अपने साथ हीरा , मोती , मिट्टी , कूड़ा , कचरा सब बहा ले चलती है। अर्चना प्रकाश भी नदी बन कर यही करती हैं। बाद में ठहर कर जैसे नदी के पानी को साफ़ करती हैं। और तय करती हैं कि कहानी के लिए इस पानी में से क्या लेना है , क्या छोड़ देना है। इसी लिए अर्चना प्रकाश की कहानियों में पात्रों के नाम भले काल्पनिक लगें पर कहानियां असली लगती हैं। 

अर्चना प्रकाश की कहानियों में अकेली होती जाती प्रौढ़ स्त्री के चित्र बहुत मिलते हैं। जैसे अस्तित्व की संजीवनी की भूमि। मन की पांखें की शैलजा। कर्ण की नियति की मंदाकिनी। मैं सावित्री नहीं की वैदेही। गांधारी का पुनर्जन्म की गायत्री। ऐसी ही और स्त्रियां। अस्तित्व की संजीवनी की भूमि पति के न रहने पर बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में ख़ुद को होम कर देती है। पर यही बच्चे बड़े हो कर मां के त्याग को लात मार कर अपनी दुनिया में जीने लगते हैं। बच्चों से बहुत दुत्कार पाने के बाद भूमि अपने अस्तित्व को हेरती है और बच्चों के मोहपाश से निकल कर अपने अस्तित्व की संजीवनी तलाश लेती है। मैं सावित्री नहीं की वैदेही का संत्रास और है। लंपट और बीमार पति के साथ तनावपूर्ण जीवन , बच्चों की परवरिश ही उस का जीवन है। तमाम व्रत और उपाय करती वैदेही पति के प्रचंड मारकेश को टालने के यत्न में जीवन खपा बैठती है। और पति उसे पांव की जूती समझता है। उंगलियों में सिमटी दुनिया ईशा और रेवांत की प्रेम कहानी का घरेलू संस्करण है। इस प्रेम में न ज़्यादा मोड़ है , न संघर्ष। प्रेम ऐसे मिल जाता है जैसे नौकरी। कुछ-कुछ हिंदी फिल्मों जैसा। 

अर्चना प्रकाश की कहानियों के इस संग्रह में स्त्रियों का संघर्ष , उन की संवेदना और उन का मर्म बहुत शिद्दत से उपस्थित है। लगभग हर कहानी का तार स्त्री विमर्श की इस कश्मकश को छूता हुआ मिलता है। स्त्री की हर ख़ुशी में भी विवशता का रैपर लिपटा हुआ मिलता है अर्चना प्रकाश की कहानी में। अगर किसी कहानी में स्त्री विवश नहीं है तो समझ लीजिए वह कहानी अर्चना प्रकाश ने नहीं लिखी है। स्त्री विवशता की इबारत के बिना अर्चना प्रकाश की कहानी पूरी नहीं होती। स्त्री विवशता अर्चना प्रकाश की कहानियों में बिजली का नंगा तार बन कर उपस्थित है। भरपूर करंट लिए हुए। नई पहचान तथा गांधारी का पुनर्जन्म भी मन की पांखें कहानी की तरह हिचकोले खाती स्त्री विवशता की चौखट तोड़ती कहानियां है। गांधारी का पुनर्जन्म कहानी संग्रह की शीर्षक कहानी भी है। यूनिवर्सिटी टॉपर गायत्री का विवाह एक आई ए एस अफ़सर से हो जाता है। आई ए एस औरतबाजी के नित नए कीर्तिमान बनाता रहता है। गायत्री मायके जा कर सारे क़िस्से माता-पिता को बताती है। पर मां -बाप उसे चुप रहने की सलाह देते हैं। वह गांधारी बन कर चुप रहने लगती है। पर जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तो गायत्री विद्रोह कर देती है। पति के आफ़िस से लड़कियां अपनी लाज बचाने के लिए गायत्री के पास घर आने लगती हैं। गायत्री लड़कियों की लाज बचाती है। एक महीने के भीतर कोई सात लड़कियां। गायत्री का पति कुणाल पूछता है , आख़िर तुम चाहती क्या हो ? गायत्री कहती है , ' मैं चाहती हूं कि आप मुझे गांधारी न समझें। जिस के सौ बेटे पति की ग़लती से मृत्यु के मुख में समा गए थे। मैं अपने व बच्चों के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हूं। .' गायत्री दृढ़ता से बोली तो कुणाल का चेहरा उतर गया। 

एक साधारण आदमी रामदेव की असाधारण कहानी भी अर्चना प्रकाश ने बड़े मन से बांची है। श्रवण कुमार कहानी में अर्चना प्रकाश अपना ही बनाया सांचा तोड़ती हुई दिखती हैं। कर्ण की नियति कहानी में अर्चना प्रकाश की कहानियों की चिर-परिचित स्त्री विवशता की इबारतें फिर दस्तक देती हैं। परिवार के लिए , बच्चों के लिए होम हो जाने वाली मंदाकिनी जब बच्चों के लिए बोझ बन जाती है। एहसान फ़रामोश बच्चों की उपेक्षा और सास की निंदा कैसे तो मंदाकिनी की ज़िंदगी को नर्क बना देती है। फिर भी वह मरते समय चिट्ठी लिख कर बेटे धर्मेश को माफ़ कर जाती है। 

मन की पांखें कहानी में एक लंपट जयंत पाराशर और पत्नी शैलजा के बहाने पारिवारिक उथल-पुथल की दास्तान सामने आती है। कोरोना काल में जयंत की मुश्किलें बहुत बढ़ जाती हैं। लेकिन पत्नी की अनथक सेवा से ठीक हो जाने के बाद वह कहता है ,

 ' तुम। तुम जो मीरा हो , सीता हो , सावित्री हो , वो तुम मुझे चाहिए। पिछले माह से ही मैं  ने कम्मो , शब्बो व सभी को तिलांजलि दे दी है। अब मैं सिर्फ़ तुम्हारा हूं। मुझे बस अवसर दो शैल।  जयंत बोले तो शैलजा की दोनों आंखें बहने लगीं। और वह मौन थी। 

बदलाव के रंग कहानी भी कोरोना के रंग में रंगी हुई है। सुनयना और त्रिशला मां-बेटी की कहानी कई घर की कहानी कह जाती है। कोरोना के बहाने एक बिगड़ैल बेटी के बदलने का रंग ही और है। कोरोना कहर पर लहर या कहर कहानी स्तब्ध कर देती है। परिवार ही नहीं अस्पताल भी कैसे त्रस्त हुए कोरोना की दूसरी लहर में इस कहानी में सारा विवरण है। श्मशान घाट की त्रासदी भी इस कहानी में खुल कर सामने आती है। हारिए न हिम्मत कहानी भी कोरोना के कहर में समाहित है। मुआवजा कैसे ऊंट के मुंह में जीरा बन जाता है , कहानी बताती है। लेकिन स्लीपिंग सेल कहानी कोरोना में अस्पतालों की एक नई ही कहानी पेश करती है। एक काम वाली के बहाने कोरोना मरीजों की हत्या की कहानी। ऐसी कहानी पर सहसा यक़ीन नहीं होता। लेकिन कहानी की स्थितियां , वर्णन और तथ्य में तारतम्यता बहुत है। यह कहानी पढ़ कर अख़बारों में छपी कुछ ख़बरें याद आने लगीं। जिन में मरीजों की किडनी आदि निकाल लेने की बात होती थी। कहानी संग्रह की यह अंतिम कहानी सिर्फ विवरणात्मक होने के कारण वह प्रभाव नहीं छोड़ पाती , जिस की अपेक्षा थी। 

अर्चना प्रकाश के पास कहानियों का अथाह भंडार है। जिन्हें लिखने में ज़रा भी आलस नहीं करतीं। अपने आस-पास बिखरी कहानियों को एक सूत्र में निबद्ध कर अपनी कहानी में कह देना वह ख़ूब जानती हैं। वह आगे भी अपनी कहानियों से अपने पाठकों को परिचित करवाती रहें यही कामना करता हूं। 13 कहानियों वाले इस कहानी संग्रह के लिए अर्चना प्रकाश को कोटिशः बधाई !

[ नमन प्रकाशन , लखनऊ द्वारा प्रकाशित अर्चना प्रकाश के कहानी संग्रह गांधारी का पुनर्जन्म की भूमिका ]