Monday, 20 September 2021

नुस्खा यह है कि काशी और मथुरा को अगर पूरी ईमानदारी से विपक्ष उठा ले तो भाजपा चारो खाने चित्त हो जाएगी !


दयानंद पांडेय 


इन दिनों कांग्रेस , सपा , बसपा , आप समेत सभी पार्टियां अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के गुण-गान में व्यस्त हैं। क्यों कि इन्हें मुस्लिम वोटर की आंख में धूल झोंकने के बाद अब हिंदू वोटर की आंख में धूल झोंकने की सूझी है। इसी लिए जो लोग गर्भ गृह पर शौचालय बनाने की बात करते थे , मिले मुलायम कांशीराम , हवा में उड़ गए जय श्री राम ! या तिलक , तराजू और तलवार , इन को मारो जूते चार का उद्घोष करते थे। ठीक यही लोग अब राम मंदिर बनाने की बढ़-चढ़ कर बात कर रहे। ब्राह्मणों को लुभाने के लिए प्रबुद्ध सम्मेलन पर सम्मेलन कर रहे। परशुराम की भव्य मूर्ति की रेस आयोजित कर रहे हैं। जो लोग कार सेवकों पर गोली चलवाने  का अभिमान करते थे , मंदिर के लिए पत्थर अयोध्या न पहुंच पाए , इस का इंतज़ाम करते थे। वह लोग भी आज प्रभु राम के गुण-गान में व्यस्त हैं। परशुराम-परशुराम का जाप कर रहे हैं। विद्यालय बनाने की तजवीज देने वाले भी शीश झुका चुके हैं। गरज यह कि अपनी-अपनी हिप्पोक्रेसी में धूल चाट चुके हैं। या यूं कहिए कि थूक-थूक कर चाट चुके हैं। सभी के सभी। 

और तो और जो लोग प्रभु राम के अस्तित्व पर ही प्रश्न उठाते रहे , बेशर्मी की हद तक उतर कर पूछते रहे थे कि मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख़ नहीं बताएंगे। अब यह लोग भी अब राम के चरणों में लेट गए हैं। फिर भी इन लोगों को चुनाव में लाभ मिलता नहीं दिख रहा , हिंदू वोटों का। इन सभी लोगों को हिंदू वोटों का लाभ मिलने का एक नुस्खा मेरे पास है। और मुफ़्त का है। जानता हूं कि मुफ़्त की राय लोग नहीं मानते चुनावी जीत की तलब वाले लोग। करोड़ो की फीस दे कर प्रशांत किशोर जैसों की राय की कद्र करते हैं लोग। लेकिन फिर भी नुस्खा बता रहा हूं , और मुफ्त में बता रहा हूं। अगर यह चौकड़ी मान जाए तो यक़ीन मानिए , पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो जाएगी। 

नुस्खा यह है कि काशी और मथुरा को अगर पूरी ईमानदारी से विपक्ष उठा ले तो भाजपा चारो खाने चित्त हो जाएगी। गरज यह  कि इन लोगों को अयोध्या में राम मंदिर की स्तुति गान छोड़ कर मथुरा में कृष्ण मंदिर और काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर परिसर से ज्ञानवापी मस्जिद हटा कर बाबा विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का शंखनाद कर देना चाहिए। पूरी ईमानदारी से। ईंट से ईंट बजा देनी चाहिए शिव और कृष्ण मंदिर निर्माण तक। ठीक वैसे ही जैसे नवजोत सिंह सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के हटने तक उन की ईंट से ईंट बजा दी थी। बजाते रहे थे। वैसे भी राम ही नहीं , शिव और कृष्ण भी हिंदू वोटर के हृदय में वास करते हैं। राम मनोहर लोहिया ने बहुत साफ़ लिखा है : 

राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं। सबके रास्ते अलग-अलग हैं। राम की पूर्णता मर्यादित व्यक्तित्व में है, कृष्ण की उन्मुक्त या संपूर्ण व्यक्तित्व में और शिव की असीमित व्यक्तित्व में लेकिन हरेक पूर्ण है। किसी एक का एक या दूसरे से अधिक या कम पूर्ण होने का कोई सवाल नहीं उठता। पूर्णता में विभेद कैसे हो सकता है? पूर्णता में केवल गुण और किस्म का विभेद होता है।

यक़ीन मानिए अगर विपक्ष के लोग मथुरा और काशी में कृष्ण और शिव का मंदिर बनाने की ठान लें जैसे भाजपा और आर एस एस के लोगों ने राम मंदिर बनाने की ठान ली थी , बना कर ही माने। तो भाजपा की योगी सरकार ही नहीं , मोदी सरकार भी यह लोग उखाड़ फेकेंगे। मोदी , योगी दुनिया में मुंह दिखाने लायक़ नहीं रहेंगे। सेक्यूलरिज्म की जीत हो जाएगी सो अलग। आप लोगों ने तमाम फ़ोटो देखी होंगी। जैसे रामलीला के समय में कोई बुरका पहने स्त्री अपने बच्चे को राम या लक्ष्मण बना कर रामलीला के लिए ले जाती हुई। कोई बुरकाधारी स्त्री अपने बच्चे को हनुमान बना देती है। कभी शिव या दुर्गा भी। कितना तो सेक्यूलरिज्म का प्रचार हो जाता है। लोगों के दिल भर आते हैं। 

कभी किसी फ़ोटो में कोई मौलाना और संन्यासी एक साथ ताश खेलते दिख जाते हैं , एक बाइक या स्कूटर पर बैठे दिख जाते हैं तो कितना तो पॉजिटिव संदेश मिल जाता है। सेक्यूलरिज्म की बांछे खिल-खिल जाती हैं। ठीक इसी तरह जब कांग्रेस , सपा , बसपा , आप समेत सब लोग जब मथुरा और काशी में कृष्ण और शिव मंदिर बना कर इन को सम्मान देने की बात करेंगे तो देश में गंगा-जमुनी सभ्यता की लहरें उछाल मारेंगी।  भाईचारे की भव्यता निखार पा जाएगी। भाजपा समाप्त हो जाएगी। आर एस एस की बुनियाद हिल जाएगी। मोदी , योगी जैसे फासिस्टों का अंत हो जाएगा। इंटरनेशनल मीडिया में , भारत में सेक्यूलरिज्म के क़सीदे पढ़े जाएंगे। बी बी सी से लगायत , फॉक्स , टाइम , न्यूज़वीक सब भारत की प्रशस्ति में बिछ-बिछ जाएंगे। कांग्रेस , सपा , बसपा , आप आदि सभी की बल्ले-बल्ले हो जाएगी ! इरफ़ान हबीब जैसे लोग भारत में अमन-चैन के इतिहास की नई इबारत लिखेंगे। 

अब मुफ़्त का यह नुस्खा भले है पर है बहुत काम का। बात बस हिप्पोक्रेसी त्याग कर आज़मा लेने की है। अगर मोदी , योगी को हटाने का ज़ज़्बा है तो। हिंदू वोट की सचमुच तलब है तो। बाक़ी सिर्फ़ नौटंकी है तो यह नौटंकी मुसलसल जारी रखिए। हाल-फ़िलहाल के चुनाव में तो जनता आप को कतई कोई घास नहीं डालने वाली। इस लिए भी कि जनता-जनार्दन आप की नौटंकी के तार-बेतार सब जान चुकी है। किसान आंदोलन आदि के स्वांग भी अब स्वर्गीय हो चुके हैं। जीवित रहने का अब बस यही एक नुस्खा शेष रह गया है। गंगा-जमुनी तहज़ीब की नई इबारत लिखने का। ऐतिहासिक ग़लतियों को सुधार कर नया इतिहास रचने का। कभी जाइए आप काशी। काशी के विश्वनाथ मंदिर परिसर में ज्ञानवापी को निहारिए। 

पूरा शिल्प , पूरा वास्तु मंदिर का है। बस भीतर मूर्तियां नहीं हैं। इसी तरह जाइए कभी मथुरा। कृष्ण का जन्म-स्थान देखिए। क्या कंस की जेल इतनी छोटी , इतनी कमज़ोर रही होगी। फिर मंदिर और मस्ज़िद की दीवार एक कैसे हो गई। मंदिर इतना छोटा , इतना कमज़ोर और मस्जिद इतनी बुलंद और शानदार। यह कैसे मुमकिन है भला। स्पष्ट है कि यह आक्रांताओं की क्रूरता का नतीज़ा है। आक्रमणकारी मनोविज्ञान है। तोड़-फोड़ है। तर्क और तथ्य तो यही है। सो इस ऐतिहासिक चूक को सही मायने में दुरुस्त करने का समय है यह। नहीं देश सांप्रदायिकता की आग में बरसो-बरस झुलसता ही रहेगा। यह कांग्रेस , यह वामपंथी , बसपा , सपा आदि-इत्यादि सब के सब इस आग में अपना हाथ सेंकते रहेंगे। हिंदू-मुसलमान करते रहेंगे। 

उलटे चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर भाजपा और आर एस एस पर तोहमत लगाते हुए देश में नफ़रत और जहर की खेती करते रहेंगे। मनुष्यता को कलंकित करते हुए मुस्लिम वोट बैंक , हिंदू वोट बैंक की बिरयानी खाते रहेंगे। ज़रुरत इस बिरयानी की सप्लाई को बंद करने की है। देश को तालिबान में तब्दील होने से रोकने की ज़रुरत है। क्यों कि कोई बात कभी भी एकतरफा और कुतर्क पर सर्वदा नहीं चल सकती। चलती होती तो आज इरफ़ान हबीब जैसे नाज़ायज़ और झूठे इतिहासकार सवालों के घेरे में न होते। इतना कि वह आज की तारीख़ में समुचित जवाब देने की हैसियत में भी नहीं रह गए हैं। सवाल-दर-सवाल खड़े हैं और वह अपने ही झूठ के मलबे में दबे हुए चुप-चुप से हैं।

Sunday, 19 September 2021

क्यों कि पंजाब अब एक नया अफ़ग़ानिस्तान है कांग्रेस के लिए

दयानंद पांडेय 

अगर आप को लगता है कि पंजाब में जो भी कुछ हो रहा है वह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह की जंग है तो आप बहुत मासूम और निर्दोष लोग हैं। आप मानिए , न मानिए पर पंजाब अब कांग्रेस का एक नया अफ़ग़ानिस्तान है कांग्रेस के लिए। असल में यह जंग कैप्टन अमरिंदर सिंह और राहुल गांधी की जंग है। सुविधा के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह को अमरीका मान लीजिए और राहुल गांधी को तालिबान। नवजोत सिंह सिद्धू तो जमूरा है। एक मामूली सा टूल है। कैप्टन खुल कर कह ले रहे हैं कि अब वह अपना अपमान और नहीं बर्दाश्त कर पा रहे थे इस लिए इस्तीफ़ा दे दिया। लेकिन राहुल गांधी न कह पाए , न कह पा रहे , न कह पाएंगे। कि वह अपमानित हैं। अपमानित होना ही अब उन का नसीब है। कि कांग्रेस के बहादुरशाह ज़फ़र हैं वह अब। 

सच तो यह है कि बीते नौ , साढ़े नौ साल से कैप्टन अमरिंदर सिंह निरंतर राहुल गांधी को अपमानित कर रहे थे। राहुल गांधी की परिक्रमा न कर के। राजीव गांधी के बग़ावती विवाह के बाद हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन के दिल्ली के घर से निकल कर राजीव गांधी और सोनिया गांधी कैप्टन अमरिंदर सिंह के पटियाला के राज महल में काफी समय रहे थे। राजीव गांधी , अमरिंदर सिंह के स्कूली दिनों के दोस्त रहे हैं। बल्कि अमरिंदर सिंह से एक साल जूनियर थे स्कूल में राजीव गांधी। तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अपना बच्चा मानते थे कैप्टन। जब कि सोनिया गांधी से भी वह बराबरी से बात करते थे। परिक्रमा कैसे करते भला। 

लेकिन राहुल गांधी और सोनिया गांधी खुद को कांग्रेस का , भारत का खुदा मानते हैं। यह उन की खुदाई का अहंकार ही है जो किसी को बराबरी से उन से मिलने नहीं देता। कभी किसी वीडियो में सोनिया गांधी के साथ प्रधान मंत्री के रुप में मनमोहन सिंह को देख लीजिए। मनमोहन सिंह की दुर्दशा और अपमान देख कर आप को उन पर निरंतर तरस आता रहेगा। सोचेंगे कि यह आदमी प्रधान मंत्री है या सोनिया गांधी का ज़रख़रीद ग़ुलाम ! अमिताभ बच्चन की याद कीजिए। वह भी राजीव गांधी के बाल सखा थे। सो बराबरी से मिलते थे। आंख से आंख मिला कर। 

यह अमिताभ बच्चन ही थे जो राजीव गांधी के साथ सोनिया गांधी के पहली बार भारत आने पर दिल्ली एयरपोर्ट पर अकेले रिसीव करने पहुंचे थे। और राजीव , सोनिया को ले कर अपने पिता हरिवंश राय बच्चन के गुलमोहर पार्क वाले घर पर ले आए थे। क्यों कि राजीव गांधी की मां इंदिरा गांधी जो तब भारत की ताक़तवर प्रधान मंत्री थीं , राजीव गांधी और सोनिया गांधी की दोस्ती और होने वाली शादी के ज़बरदस्त ख़िलाफ़ थीं। ख़ैर बाद में हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन ने ही सोनिया गांधी का कन्यादान किया। उन के घर पर ही शादी भी हुई। 

कुल जमा यह कि राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन बहुत आत्मीय मित्र थे। बचपन में साथ खेले थे। इलाहाबाद से लगायत दिल्ली तक। इतना ही नहीं कालांतर में राहुल और प्रियंका भी इन्ही तेजी बच्चन और हरिवंश राय बच्चन के साथ अपने बचपन के अधिकांश दिन बिताए हैं। इन्हीं के अभिभावकत्व में रहे हैं। एक बार प्रियंका गांधी से पूछा गया था कि आप की हिंदी इतनी अच्छी कैसे है। प्रियंका गांधी ने बेसाख्ता कहा था , तेजी बच्चन की वज़ह से। बचपन में उन्हीं के साथ रही हूं। उन्हों ने ही सिखाया है। 

मतलब पारिवारिक प्रगाढ़ता भी थी अमिताभ बच्चन और गांधी परिवार में। इतना कि कुली फ़िल्म की शूटिंग में घायल हुए अमिताभ बच्चन को देखने बतौर प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी उन्हें अस्पताल देखने भी गई थीं। अमिताभ बच्चन के बचपन की बहुत सी फ़ोटो भी मैं ने इंदिरा गांधी , राजीव गांधी , संजय गांधी और अमिताभ बच्चन की एक साथ देखी हैं। एक फ़ोटो तो दारा सिंह के साथ की है। जिस में इंदिरा गांधी , दारा सिंह , राजीव गांधी , अमिताभ बच्चन और संजय गांधी हैं। इस फ़ोटो में इंदिरा गांधी , राजीव , अमिताभ , संजय सभी दारा सिंह के साथ खड़े हो कर खुश हैं। बहुत खुश। अमिताभ और राजीव गांधी दोनों तब टीनएज हैं। 

इतना ही नहीं , इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अमिताभ बच्चन फ़िल्म और ग्लैमर छोड़ कर राजीव गांधी का साथ और भरोसा देने के लिए निजी तौर पर लगातार साथ देखे गए। इलाहाबाद से चुनाव भी लड़े राजीव गांधी के कहने पर और हेमवतीनंदन बहुगुणा जैसे महारथी को हरा दिया था अमिताभ बच्चन ने। बाद में राजीव के चक्कर में बोफ़ोर्स का दाग़ भी लगा अमिताभ बच्चन पर। किसी तरह चंद्रशेखर राज में अमर सिंह ने अमिताभ बच्चन के नाम से बोफ़ोर्स का दाग़ मिटवा दिया। पर राजीव गांधी के विदा हो जाने के बाद सोनिया गांधी की इसी खुदाई अहंकार से टूट कर बर्बाद हुए थे एक समय यही अमिताभ बच्चन। सड़क पर आ गए थे। दिवालिया हो गए थे। मुंबई के दोनों घर केनरा बैंक द्वारा नीलामी पर आ गए। 

पी चिदंबरम उन दिनों वित्त मंत्री थे। लगता था कि जैसे अमिताभ बच्चन को बरबाद करने के लिए ही वह वित्त मंत्री बनाए गए हैं। एक सूत्रीय कार्यक्रम था उन का जैसे अमिताभ बच्चन को बरबाद करना। वह तो किस्मत के धनी थे अमिताभ बच्चन। कि उन्हें अमर सिंह और सुब्रत रॉय सहारा जैसे लोग मिले। तिकड़म से ही सही अमिताभ बच्चन का दोनों घर नीलामी से बच गया। फिर कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम मिला। अमिताभ बच्चन ने अपने को फिर से खड़ा कर लिया। अब वह सदी के महानायक का रुतबा हासिल कर बैठे हैं। 

नहीं तब के दिनों जब कोई सोनिया परिवार से उन के संबंधों और क़रीबी की बात करता तो अमिताभ तब अपने बरबादी के दिनों में कुढ़ कर सोनिया को राजा , खुद को रंक कहते हुए कहते हुए कहते थे , हमारी उन की क्या तुलना , क्या संबंध ! राजा और रंक का क्या संबंध ! अलग बात है अमिताभ बच्चन को सहारा देने के चक्कर में सुब्रत रॉय खुद बेसहारा हो गए। बरबाद हो गए। क्यों कि जब सोनिया गांधी को पता चला कि अमिताभ बच्चन का घर नीलाम होने से बचाने में सुब्रत रॉय सहारा का हाथ है है तो उन्हों ने वित्त मंत्रालय में तैनात चिदंबरम नाम की तोप सहारा की तरफ मोड़ दी। कुछ चिदंबरम नाम की तोप , कुछ सुब्रत रॉय का अपना अहंकार , कुछ उन के कारोबार की कमज़ोर नस ने सहारा को तहस-नहस कर दिया। ऐसे अनेक क़िस्से हैं। 

तो कैप्टन अमरिंदर सिंह भी अब मां-बेटे की तोप के सामने हैं। ग़नीमत है कि केंद्र में मोदी की सरकार है। अगर मां-बेटे की सरकार होती तो कैप्टन अमरिंदर सिंह कब के अपने राजमहल से बेघर हो गए होते। मुख्य मंत्री पद क्या चीज़ है भला। जो भी हो कैप्टन ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्य मंत्री बनने की बधाई दे ज़रुर दी है पर सरकार कितने दिन चलने देंगे , यह देखना दिलचस्प होगा। अभी हाल ही जालियांवाला बाग़ के बाबत जब राहुल गांधी ने विपरीत टिप्पणी की थी तब कैप्टन अमरिंदर सिंह खुल कर राहुल गांधी की उस टिप्पणी से अपनी असहमति दर्ज करवा बैठे थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह की विदाई का प्रस्थान बिंदु उसी दिन तय हो गया था। 

अब तो ख़ैर , आने वाला समय ही बताएगा कि पंजाब चुनाव चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्य मंत्री रहते होगा कि राष्ट्रपति शासन के तहत। क्यों कि कैप्टन वह सैनिक हैं जो थक कर , हार मान कर बैठ जाने के लिए नहीं जाने जाते। जब कि राहुल गांधी अपनी कुंडली में शिकस्त ही शिकस्त का लंबा सिलसिला लिखवा कर पैदा हुए हैं। तिस पर उन का अहंकार और फिर डिस्ट्रक्टिव और तुग़लकी दिमाग। पंजाब को जाने किस करवट और किस बिसात पर बैठा दे , यह तो नरेंद्र मोदी भी नहीं जानते। क्यों कि पंजाब अब एक नया अफ़ग़ानिस्तान है कांग्रेस के लिए। अभी बहुत सी मिसाइलें हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास। जब कि राहुल गांधी और नवजोत सिंह सिद्धू दोनों ही भटकी हुई मिसाइल हैं। कब किस पर नाजिल हो जाएं , यह दोनों ख़ुद भी नहीं जानते। 

हां , पंजाब के इस कांग्रेसी घमासान में अगर किसी की पांचों उंगलियां घी में हैं तो वह आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल की हैं। केजरीवाल आज उत्तराखंड के हल्द्वानी में चुनावी घोषणाओं की बरसात भले कर रहे थे पर उन के चेहरे पर मुस्कान और उल्लास पंजाब फतेह कर लेने की थी। पंजाब का अगला मुख्य मंत्री बनने का उन का सपना पुराना है। लोग कह रहे हैं कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने वाला है। जो भी हो आप लोग फ़िलहाल पंजाब में बने कांग्रेस के नए अफ़ग़ानिस्तान का आनंद लीजिए। और सुखजिंदर रंधावा से मिठाई और बधाई का दिन दहाड़े हुए मुख्य मंत्री पद के गर्भपात का हाल पूछिए। 

अंबिका सोनी से पूछिए कि बीमारी के बहाने से आगे की थाली कैप्टन के लिहाज़ में छोड़ी या राहुल गांधी और सिद्धू नामक भटकी हुई मिसाइलों के खौफ से। चरणजीत सिंह चन्नी को बधाई दीजिए कि उन की लाटरी खुल गई ! उन का दलित कितना फलित होगा यह तो 2022 का चुनाव परिणाम बताएगा। पर उस आई ए एस महिला से मी टू का दर्द कौन पूछेगा जिस का लांछन चरणजीत सिंह चन्नी पर अभी भी चस्पा है। एक बात और। वह यह कि हमारे आदरणीय मित्र और लेखक भगवान सिंह की राय है कि पाकिस्तान , तालिबान और चीन की घुसपैठ करवाने , आतंकियों को मज़बूत करने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाया है ताकि देश में अस्थिरता फैलाई जा सके। देश को कमज़ोर किया जा सके।

Tuesday, 14 September 2021

मोदी का असली मक़सद जिन्नावादी राजनीति पर अलीगढ़ी ताला लगाना ही है , किसान आंदोलन की हवा निकालने की क़वायद भर नहीं है यह

दयानंद पांडेय 

पपीते की खेती और कटहल की खेती का फ़र्क़ समझते हैं आप ? नहीं समझते तो बताए देता हूं। पपीता का पौधा लगाइए तो छ महीने में ही फल देने लगता है। पर फिर छ महीने बाद दिखाई भी नहीं देता है। लेकिन कटहल का पौधा लगाइए तो सात-आठ साल तक फल नहीं देता। कई बार सोलह साल तक भी फल नहीं देता। पर जब फल देना शुरु करता है तो सालों साल पीढ़ियों तक फल देता है। देता ही रहता है। तो नरेंद्र मोदी को पपीते की नहीं , कटहल की खेती करने का अभ्यास है। यक़ीन न हो तो कश्मीर में 370 की याद कर लीजिए। बालाकोट ,उरी सर्जिकल स्ट्राइक आदि भी। अच्छा सी ए ए , तीन तलाक़ आदि-इत्यादि भी आप जोड़ना चाहते हैं तो जोड़ लीजिए।  

अलीगढ़ में आज राजा महेंद्र प्रताप सिंह नाम से विश्वविद्यालय का शिलान्यास कर नरेंद्र मोदी ने फिर वही कटहल का एक पौधा लगाया है। बकौल मुख्य मीडिया के गुलामों के सिर्फ़ जाटों में पैठ की राह बनाने और किसान आंदोलन की हवा निकालने की क़वायद भर नहीं है यह राजा महेंद्र प्रताप सिंह नाम से विश्वविद्यालय का शिलान्यास। इस शिलान्यास के मार्फ़त मोदी का असली मक़सद जिन्नावादी राजनीति पर अलीगढ़ी ताला लगाना ही है। सिर्फ़ अलीगढ़ में ही नहीं , समूचे देश में। अब मोदी इस मक़सद में कितना कामयाब होंगे यह आने वाला समय ही बताएगा। ग़ौरतलब है कि पाकिस्तान बनाने में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और लखनऊ के मुसलामानों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। आज भी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में जिन्ना की फ़ोटो शान से लगी हुई है तो इस लिए भी कि यहां से पाकिस्तानपरस्ती की बदबू अभी तक नहीं गई है। जब भी कभी जिन्ना की फ़ोटो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से हटाने की बात उठती है , आग लग जाती है। यहां के पाकिस्तानपरस्त बड़ी ऐंठ से कहते हैं , पहले फला-फला जगह से जिन्ना की फ़ोटो हटाओ। तब देखेंगे। ईंट से ईंट बजाने पर उतर आते हैं। 

ग़ौरतलब है कि जब मदन मोहन मालवीय ने बनारस में बनारस हिंदू विश्विद्यालय बनाया तो उस के संस्थापक सदस्यों में एक सर सैयद अहमद ख़ान भी थे। मालवीय जी से प्रेरणा ले कर वह अलीगढ़ आए और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनवाई। बनारस के राजा ने बनारस हिंदू विश्विद्यालय के लिए कई सारे गांव की ज़मीन दान में दी थी। उसी तर्ज पर सर सैयद अहमद ख़ान ने भी राजा महेंद्र प्रताप सिंह से ज़मीन मांगी और महेंद्र प्रताप सिंह सहर्ष दे भी दी। अब अलग बात है कि जो सम्मान महेंद्र प्रताप सिंह को अलीगढ़ यूनिवर्सिटी वालों को देना चाहिए था , कभी नहीं दिया। बल्कि भूल गए महेंद्र प्रताप सिंह को। अपमान की हद तक भूल गए। जिन्ना को सम्मान देने वाले लोग महेंद्र प्रताप सिंह को सम्मान दे भी कैसे सकते थे भला। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय तो आज तक हिंदुत्व का गढ़ कभी नहीं बना। बनेगा भी नहीं। उस की बुनियाद आख़िर मदन मोहन मालवीय जैसे तपस्वी ने रखी है। 

लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बहुत जल्दी ही मुस्लिम लीग की गिरफ़्त में आ गया। न सिर्फ़ मुस्लिम लीग की गिरफ्त में आया बल्कि मुस्लिम लीग का गढ़ भी बन गया। फिर पाकिस्तान बनाने का केंद्र भी बन गया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी केंद्रीय यूनिवर्सिटी होने के बावजूद आज भी मुस्लिम लीग की भयानक गिरफ्त में है। एक समय तो यह आतंकियों का अड्डा भी बन कर इतना बदनाम हुआ कि यहां से पढ़ कर निकले छात्रों को कहीं नौकरी भी मिलना मुहाल हो गया था। नतीज़तन फैकल्टी की फैकल्टी ख़ाली होने लगीं। फिर किसी तरह स्थिति संभली। अभी भी मोदी के सात साल के शासन में तमाम कोशिशों के बावजूद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी पर चढ़ा मुस्लिम लीग का रंग का फीका नहीं हुआ। नफ़रत का नश्तर और तेज़ हुआ है। हां , यह ज़रूर हुआ है कि मुस्लिम लीग की बदबू से बचने के लिए यहां कुछ लोगों ने कम्युनिस्ट होने का कपड़ा पहन लिया। पर सोच वही मुस्लिम लीग वाली रही। अपने को इतिहासकार बताने वाले इरफ़ान हबीब जैसे जहरीले लोग , ऐसे ही लोगों में शुमार हैं। जो हैं तो कट्टर लीगी लेकिन कपड़ा कम्युनिस्ट का पहनते हैं। और आर एस एस का कृत्रिम भय दिखा-दिखा कर अपना लीगी एजेंडा कायम रखते हैं। 

एक वाकया है। जब पकिस्तान बन गया और मुस्लिम लीग के तमाम लोग भारत में ही रह गए तो अपना चेहरा छुपाने के लिए फ़ौरन कम्युनिस्ट पार्टी में दाख़िल हो गए। उन दिनों देश के शिक्षा मंत्री थे मौलाना आज़ाद। उन्हों ने मुस्लिम लीग पर एक टिप्पणी करते हुए तब कहा था कि एक सैलाब आया था , चला गया। पर कुछ गड्ढों में सैलाब का पानी रह गया है और बदबू मार रहा है। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में कम्युनिस्ट पार्टी का कपड़ा पहने मुस्लिम लीग के लोग मौलाना आज़ाद की इस बात पर बहुत खफा हुए। इस हद तक खफा हुए कि एक बार इन लीगी कम्युनिस्टों को पता चला कि मौलाना आज़ाद किसी ट्रेन से अलीगढ़ से गुज़रने वाले हैं। यह लोग अलीगढ़ रेलवे स्टेशन आए। रेल पटरियों पर बिखरे मानव मल को प्लास्टिक के थैलों में बटोरा। और जब ट्रेन आई तो मौलाना आज़ाद के डब्बे में चढ़ गए और वह मानव मल मौलाना आज़ाद की दाढ़ी में मल-मल कर लगा दिया। और डब्बे से उतर कर भाग गए। 

मौलाना आज़ाद जब तक कुछ समझें तब तक ट्रेन चल चुकी थी। तो क्या मौलाना आज़ाद आर एस एस के थे ? फिर सोचिए कि आर एस एस के लोगों के साथ भी यह लोग क्या सुलूक़ करते होंगे भला ? सांप्रदायिक सोच और रंग में डूबे मुस्लिम लीग के लोगों का आज तक कोई सरकार कुछ नहीं कर पाई है। नरेंद्र मोदी सरकार भी नहीं। क्यों कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का कवच-कुण्डल इन के पास है। अब इसी कवच-कुण्डल को बेअसर करने की क़वायद है महाराजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवसिटी। आप सोचिए कि जय भीम , जय मीम का नैरेटिव बनाने वाले मुस्लिम लीग ऊर्फ कम्युनिस्ट पार्टी के लोग इस अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में दलितों को आरक्षण की सुविधा से वंचित रखते हैं। यहां जय भीम , जय मीम का नैरेटिव वह भूल जाते हैं। और देश भर में इसी जय भीम , जय मीम के तहत जब-तब आग लगा देते हैं। 

तो मोदी , योगी ने एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। रही बात टिकैत के किसान आंदोलन की तो इस की मियाद उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव तक की है। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव खत्म , किसान आंदोलन खत्म। इसी लिए सरकार इन की कोई मांग मानने वाली नहीं है। इन की साज़िश में फंसने वाली नहीं है। शाहीन बाग़ से भी बुरा हश्र होगा इस किसान आंदोलन का। अव्वल तो तक-हार कर , कोई नतीज़ा न पा कर कांग्रेस किसान आंदोलन को फंडिंग बंद कर देगी। दूसरे , तब तक कम्युनिस्टों का जोश और रोजगार भी खत्म हो जाएगा। 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का परिणाम समय की दीवार पर अभी से लिखा दिख रहा है। अगर किसी को मोतियाबिंद है और वह समय की दीवार पर लिखी चुनाव परिणाम की इस इबारत को नहीं पढ़ पा रहा है तो बात और है। आप तो अभी बस राजा महेंद्र प्रताप सिंह नाम से विश्वविद्यालय का आगाज़ देखिए। मोदी ने अगर आज कल्याण सिंह की याद करते हुए उन का आशीर्वाद भी इस अवसर पर सहेज लिया है तो उस का निहितार्थ भी देखिए। मोदी के पहले दिए गए योगी के भाषण की धार और आत्म विश्वास देखिए। मोदी के सामने योगी का ऐसा मुखर भाषण पहले कभी सुना हो तो मुझे ज़रा याद दिला दीजिए। टोटी यादव की लंतरानी और टिकैत की हेकड़ी में उस के बाद फ़र्क़ न दिखा हो तो बताइए। 

फिर सौ बात की एक बात राजा महेंद्र प्रताप सिंह नाम से विश्वविद्यालय रुपी पौधे के फल देने की प्रतीक्षा कीजिए। हां , आज बहुत तलाश किया कि कम्युनिस्ट का कपड़ा पहने लीगी इतिहासकार इरफ़ान हबीब की कोई जहरीली प्रतिक्रिया कहीं दिख जाए इस राजा महेंद्र प्रताप सिंह नाम से विश्वविद्यालय के बाबत पर नहीं दिखी। किसी ने देखी हो तो कृपया बताए भी। क्यों कि यह मोहतरम इरफ़ान हबीब रहते तो इसी अलीगढ़ में हैं। इतिहास के नाम पर तमाम फ़रेबी और झूठ में सनी इबारतें इसी अलीगढ़ में बैठ कर लिखी हैं। 

पिछली बार जब मोदी ने वर्चुवली एड्रेस किया था , अलीगढ़ यूनिसिटी को तो इन मोहतरम इरफ़ान हबीब ने अजब-गज़ब जहर उगले थे। एक बार तो यह जनाब केरल चले गए थे। अपना बुढ़ापा भूल कर वहां के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान से मंच पर दो-दो हाथ करने। उन के ए डी सी ने रोका तो ए डी सी के कपड़े फाड़ दिए। ए डी सी के बिल्ले , बैज फाड़ दिए। आप जानते ही होंगे कि किसी भी राज्यपाल का ए डी सी सेना का सम्मानित अफसर होता है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से ही पढ़े आरिफ़ मोहम्मद ख़ान की भलमानसहत थी कि कोई विधिक कार्रवाई नहीं की जनाब के ख़िलाफ़। नहीं सरकारी सेवक के साथ हिंसा करने के जुर्म में अच्छी सेवा हो सकती थी। मुझे पूरी आशंका थी कि जनाब मोदी की सभा में भी कुछ हिंसात्मक कार्रवाई कर कोई इतिहास रच सकते हैं , यह इतिहासकार महोदय। पर जाने क्यों आज जनाब ने दिल तोड़ दिया। मुमकिन है कहीं बैठे अपने इतिहास का पपीता नोश फ़रमाने में व्यस्त हो गए हों मोहतरम इरफ़ान हबीब। 




Thursday, 9 September 2021

तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था

 दयानंद पांडेय 

अफगानिस्तान की यह परदेदारी वाली तस्वीर फ़ेसबुक पर घूम रही है। सोचा कि मैं भी घुमा दूं। पर यह बताते हुए कि यह स्थिति अफगानिस्तान में तालिबान की  है ज़रुर पर भारत में भी ऐसी तस्वीरें और मंज़र आम रहे हैं। अली सरदार ज़ाफ़री ने कुछ शायरों के जीवन पर लघु फ़िल्में बनाई हैं। फ़िराक़ , जिगर , मजाज़ , जोश आदि पर। मजाज़ लखनवी की फ़िल्म में एक दृश्य है कि वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कुछ छात्राओं को अपना कलाम सुना रहे हैं। और सामने उन के छात्राएं नहीं , बल्कि ब्लैक बोर्ड है। ब्लैक बोर्ड के पीछे दूसरी क्लास है जिस में छात्राएं बैठी हैं और मजाज़ का कलाम बड़ी तल्लीनता से सुन रही हैं। ग़ौरतलब है कि मजाज़ लखनवी भी तब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिर्सिटी के छात्र हैं और छात्राओं की बहुत फरमाइश पर उन्हें अपना कलाम सुना रहे हैं। तब यह सब है। 

अलग बात है कि मजाज़ भले ब्लैक बोर्ड को अपना कलाम सुना रहे हैं पर लाख परदेदारी के उन का कलाम सुन रही एक छात्रा न सिर्फ़ उन की फैन बन जाती है बल्कि बाद में दिल्ली में एक डाक्टर से विवाहित होने के बावजूद उन की असल ज़िंदगी में आहिस्ता से दाख़िल हो जाती है। न सिर्फ़ दाख़िल हो जाती है , मजाज़ को दीवाना बना देती है। मजाज़ की ज़िंदगी बन जाती है। पैसे वाली औरत है। रईसाना ठाट-बाट से रहती है। दिल्ली के अपने घर बुलाने लगती है। उन के साथ मुंबई के होटल में भी रह जाती है। बाद में मजाज़ की बर्बादी का सबब भी बन जाती है। मजाज़ घनघोर शराबी बन जाते हैं। कुछ शराब , कुछ उस औरत का ग़म मजाज़ को मौत की राह पार खड़ा कर देती है। और लखनऊ में सर्दियों की एक रात खुली छत पर मयकशी के बाद सो जाते हैं। फिर अगली सुबह उन की मृत देह मिलती है। 

कहने का सबब यह कि औरतों के शबाब के जिस क़यामत से बचने के लिए यह परदेदारी का पहरा लगाया जाता है , बिना हिजाब के औरत को कटा हुआ तरबूज बताया जाता है , शरिया की तलवार के दम पर , उस का आख़िर हासिल क्या है ? मजाज़ की दर्दनाक मौत ? एक मजाज़  लखनवी ही क्यों , जाने कितने मजाज़ ऐसी दर्दनाक मौत बसर कर चुके हैं। बताता चलूं कि मजाज़ लखनवी न सिर्फ आला दर्जे के शायर हैं बल्कि उन के पिता तब के समय तहसीलदार रहे थे सो बड़े नाज़ से पालन-पोषण हुआ था। शानो-शौकत से रहते थे। आकाशवाणी में शानदार नौकरी भी मिली थी मजाज़ को। इतना ही नहीं , अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का तराना भी मजाज़ लखनवी का ही लिखा है। इन दिनों तालिबान और संघ की तुलना पर विवाद में घिरे जावेद अख़्तर इन्हीं मजाज़ लखनवी के भांजे हैं। लेकिन जावेद अख़्तर जिस गिरगिट की तरह रंग बदलते रहते हैं , मजाज़ लखनवी ऐसे न थे। मजाज़ लखनवी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ने के बावजूद लीगी नहीं थे। मर्द आदमी थे। हिजाब , वुजाब की ऐसी तैसी करते हुए लिखते भी थे :


तिरे माथे पे ये आंचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन 

तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था। 


मजाज़ का पूरा नाम था - असरार-उल-हक़ मजाज़।

Wednesday, 8 September 2021

गृहस्थी में ऐसी उलझी कि प्यार का सारा आदाब भूल गई

पेंटिंग : मदनलाल नागर 


ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

प्रेम ही प्रेम था जीवन में पर प्रेम का हिसाब किताब भूल गई 
गृहस्थी में ऐसी उलझी कि प्यार का सारा आदाब भूल गई 

नशा ही नशा था उस के प्यार और प्यार के उस मेयार में 
नशा उतरा भी नहीं था कि प्यार की सारी शराब भूल गई 

वक़्त कैसे और क्या से क्या कर देता है जीवन में अब जाना 
लोग क्या कहेंगे के पाखंड में ऐसा झूली सारा इंक़लाब भूल गई 

पूर्णमासी का चांद देख कर होती थी न्यौछावर उस के साथ 
प्रेम की वह जुगलबंदी , वह बंदिश और सारा शादाब भूल गई 

ज़िम्मेदारी की दुनिया में कब एक जंगल दूर-दूर तक फ़ैल गया 
जिस पेड़ को पानी बन कर सींचा उस पानी की किताब डूब गई 

ज़िंदगी में प्रेम की इबारत पढ़नी सीखी थी धीरे-धीरे , निहुरे-निहुरे 
गोमती में इक डूबता चांद क्या देखा ज़िंदगी के सारे सुरख़ाब भूल गई 



[ 8 सितंबर , 2021 ]

Tuesday, 7 September 2021

भारत अब कृषि प्रधान देश नहीं , कारपोरेट प्रधान देश है , किसान आंदोलन के खिदमतगारों को जान लेना चाहिए

 

दयानंद पांडेय 


जिन विद्वानों को लगता है , राकेश टिकैत विधान सभा चुनाव में भाजपा के लिए सिर दर्द है , उन्हें जान लेना चाहिए कि 26 जनवरी को लालक़िला समेत पूरी दिल्ली में उपद्रव और मुज़फ्फर नगर में अल्ला हो अकबर ने राकेश टिकैत का ही मामला ख़राब कर दिया है। टिकैत के रोने में राजनीतिज्ञ डर सकता है , प्रशासन डर सकता है। हो सकता है यह सत्ता पक्ष की कोई चाल और रणनीति भी हो। पर घड़ियाली आंसुओं में वोटर नहीं डरता। नहीं  बहकता। कांग्रेस के पैसे और मस्जिदों के चंदे से किसान आंदोलन क्या कोई आंदोलन नहीं चलता। शहर-दर -शहर शाहीनबाग भी नहीं। 

हां , इस किसान आंदोलन में अगर कोई सब से ज़्यादा फ़ायदे में है तो वह वामपंथी साथी हैं। उन्हें रोजगार भी मिल गया है और मोदी को गरियाने का गोल्डन अवसर भी। मज़दूरों से हड़ताल करवा-करवा कर मुंबई , कोलकाता और कानपुर जैसे तमाम शहरों को उद्योगविहीन करवा कर बिल्डरों का शहर बनवा दिया। बिल्डरों से अकूत पैसा बटोरा। अपने बच्चों को यू के , यू एस में सेटल्ड करवा दिया। अब स्कॉच पीते हुए , किसानों की सेवा में लग गए हैं। लेकिन भारत के किसान , फैक्ट्रियों के मज़दूर नहीं हैं। 

क्यों कि भारत अब भी कृषि प्रधान देश है , इस पर मुझे शक़ है। भारत अब कारपोरेट प्रधान देश है। यह तथ्य किसान आंदोलन के खिदमतगारों को जान लेना चाहिए। इस सचाई को हमारे वामपंथी साथियों समेत तमाम आंदोलनकारियों को समय रहते जान-समझ लेना चाहिए। आवारा पूंजी ही अब देश संचालित कर रही है। आंदोलन वगैरह अब सिर्फ़ आत्ममुग्धता की बातें हैं। इंक़लाब ज़िंदाबाद नहीं सुनाई देता अब आंदोलनों में। अल्ला हो अकबर , हर-हर महादेव सुनाई देता है। पता नहीं , हमारे वामपंथी इस नारे को सुन पा रहे हैं कि नहीं। भाजपाई , संघी और सावरकर के नैरेटिव में ही जाने कब तक फंसे रहेंगे। कांग्रेसियों और वामपंथियों को इस छल भरे नैरेटिव से निकल कर ज़मीनी बातों पर ध्यान देना चाहिए। 

राकेश टिकैत द्वारा कुछ रटे-रटाए वामपंथी जुमलों के बोल देने भर से यह किसान आंदोलन तो कम से कम नहीं चलने वाला। टिकैत की हेकड़ी भरी जुबान और लंठई आचरण से भी नहीं। यह किसान आंदोलन वैसे भी अब कुछ मुट्ठी भर जाटों , कुछ मुसलमानों और थोड़े से सिख साहबान का आंदोलन बन कर रह गया है। कांग्रेस की फंडिंग और वामपंथियों के मार्गदर्शन में चलने वाला यह किसान आंदोलन अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। अराजकता और अभद्रता से कोई नवजोत सिंह सिद्धू तो बन सकता है , पर सुनील गावसकर नहीं। नहीं बुलाया तो इमरान खान ने गावसकर को भी था। क्यों नहीं गए , गावसकर पाकिस्तान। और कैप्टन अमरिंदर सिंह के लाख मना करने के बाद भी सिद्धू क्यों गए ? और क्या-क्या कर के लौटे ?

आज तक की एंकर चित्रा त्रिपाठी को रैली से गोदी मीडिया का तमगा देते हुए , अभद्रता और अपमान पूर्वक भगा देने और एक सिख द्वाराअजितअंजुम के माथे का पसीना पोछ देने के नैरेटिव से भी किसी आंदोलन को ज़मीन नहीं मिलती। लोकतंत्र को ठेंस ज़रुर लगती है। किसी आंदोलन को ज़मीन मिलती है , ईमानदार नेतृत्व से। ज़मीन मिलती है , ज़मीनी लोगों की भागीदारी से। इस किसान आंदोलन की हक़ीक़त का अंदाज़ा इसी एक बात से लगा लीजिए कि अपने संगठन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ही नेता हैं। फिर किसान आंदोलन की बीती रैली में कौन सी बात किसानों के लिए की गई ? किसी को याद हो तो बताए भी। हम ने तो देखा कि इस रैली में आए लोग कह रहे थे कि सी ए ए , एन आर सी और तीन तलाक़ जैसे काले क़ानून हटवाने के लिए वह लोग आए हैं। जो भी हो इस पूरे किसान आंदोलन का मक़सद अगर मोदी , योगी को हराना ही है तो जानिए कि चुनावी बिसात पर अब एक नहीं , भाजपा के ढाई स्टार प्रचारक हो गए हैं। 

फ़िराक़ गोरखपुरी एक समय कहा करते थे कि भारत में सिर्फ़ ढाई लोग ही अंगरेजी जानते हैं। एक सी नीरद चौधरी , दूसरे , ख़ुद फ़िराक़ और आधा जवाहरलाल नेहरु। नेहरु ने फ़िराक़ की इस बात पर कभी प्रतिवाद भी नहीं किया। यह नेहरु का बड़प्पन था। पर कुछ-कुछ उसी तर्ज पर आज आप को एक बात बताऊं धीरे से। कान इधर ले आइए। भाजपा के पास अब एक नहीं ढाई स्टार प्रचारक हैं। पहले सिर्फ़ एक ही था , राहुल गांधी। अब डेढ़ और आ गए हैं। एक राकेश टिकैत और आधा असुदुद्दीन ओवैसी। अल्ला हो अकबर !

Monday, 6 September 2021

तो पूरा भारत ही अब तक इस्लामी राष्ट्र होता , हम सभी मुसलमान होते , तालिबान होते !


दयानंद पांडेय 


कृपया एक बात कहने की मुझे अनुमति दीजिए। वह यह कि अगर अंगरेज भारत में न आए होते और कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ न होता तो किसी को पाकिस्तान आदि बनाने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती। नौबत ही नहीं आती। पूरा भारत ही अब तक इस्लामी राष्ट्र होता। हम सभी मुसलमान होते। तालिबान होते। अफगानिस्तान , पाकिस्तान और सीरिया से भी बुरी हालत होती हमारी। स्त्रियों की स्थिति जाने क्या होती। क्यों कि इस्लाम की किताब कुरआन में साफ़ लिखा है कि स्त्रियां , पुरुषों की खेती हैं। 

अत्याचार ब्रिटिश राज ने भी बहुत किया। धर्म परिवर्तन भी खूब करवाए। लेकिन इस्लाम के अनुयायियों ने जो और जिस तरह किया भारत में , कभी किसी और आक्रमणकारी ने नहीं किया। अब अंगरेजों को तो कुछ कह नहीं पाते लोग। क्यों कि भाई-चारा निभाने के लिए वह यहां अब उस तरह उपस्थित नहीं हैं , जैसे इस्लाम के आक्रमणकारी। जावेद अख्तर जैसे सफ़ेदपोश कठमुल्ले इसी लिए जब-तब आर एस एस के प्रति अपनी घृणा और नफरत का इज़हार करते रहते हैं। यह सब तब है जब कि अब आर एस एस वाले बार-बार इस्लाम के अनुयायियों को भी अपना बंधु बताते हुए कहते हैं कि हम सब का डी एन ए एक है। भाजपा की सरकार सब का साथ , सब का विकास , सब का विशवास और सब का प्रयास कहती ही रहती है। पर जावेद अख्तर जैसे लीगियों को तो छोड़िए तमाम सो काल्ड सेक्यूलर चैंपियंस भी इन दिनों जब कभी विवशता में तालिबान का दबी जुबान ज़िक्र करते हैं तो बैलेंस करने के लिए आर एस एस पर खुल कर हमला करते हैं। दुनिया जानती है , हिंसा इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है। नालंदा जैसी विश्वस्तरीय लाइब्रेरी जलाने की लिए इस्लाम को दुनिया जानती है। महीनों जलती रही थी नालंदा लाइब्रेरी। 

पूरी दुनिया में हिंसा और आतंक की खेती इन दिनों इस्लाम की ही जानिब हो रहा है। अमरीका , योरोप , कनाडा , फ़्रांस , चीन हर जगह इस्लाम हमलावर है। हमारे भारत में भी। लेकिन हमारे भारत में सेक्यूलर चैंपियंस इस्लाम की हिंसा को आर एस एस से बैलेंस करने की कुटिलता पर कायम हैं। आग को अगर पानी बुझाता है तो यह लोग पानी को भी उतना ही कुसूरवार मान लेने की महारत रखते हैं। कुतर्क यह कि अगर पानी न होता तो आग लगती ही नहीं। पानी ने ही आग को उकसाया कि आग लगाओ। इस मासूमियत पर भला कौन न मर जाए। सोचिए न कि पाकिस्तान और भारत में उपस्थित सेक्यूलर चैंपियंस दोनों ही बहुत ज़ोर-ज़ोर से आर एस एस-आर एस एस चिल्लाते हैं। सावरकर का स्वतंत्रता संग्राम , उन की वीरता और विद्वता भूल जाते हैं। भूल जाते हैं कि सावरकर इकलौते हैं जिन्हें ब्रिटिश राज में दो बार आजीवन कारावास की सज़ा मिली वह भी काला पानी की। 

क्यों मिली ? क्या मुफ्त में ? 

जिस ने धर्म के नाम पर पाकिस्तान बनाया , उस जिन्ना का नाम लेते हुए इन की जुबान को लकवा मार जाता है। पाकिस्तान बनाने के लिए डायरेक्ट एक्शन करवाया जिन्ना ने । डायरेक्ट एक्शन मतलब हिंदुओं को देखते ही मार दो। इस का भी ज़िक्र नहीं करते। लेकिन इस्लाम के अत्याचार से बचने के लिए सावरकर के द्विराष्ट्र सिद्धांत की बात चीख-चीख कर करते हैं। एक राहुल गांधी नाम का नालायक़ है जो देश और कांग्रेस की राजनीति पर बोझ बना हुआ है। यह राहुल गांधी चिल्लाता है , मैं राहुल सावरकर नहीं हूं , राहुल गांधी हूं ! यह मूर्ख यह नहीं जानता कि संसद भवन में सावरकर की बड़ी सी फ़ोटो उस की दादी इंदिरा गांधी ने लगवाई है। और कि सावरकर के नाम से डाक टिकट भी जारी किया है इंदिरा गांधी ने। तो क्या इंदिरा गांधी भी आर एस एस से थीं। हर व्यक्ति और हर संस्था में कुछ खूबी , कुछ खामी होती है। आर एस एस में भी खामी हो सकती है। खामी सावरकर में भी हो सकती है। पर सावरकर को हम सिर्फ ब्रिटिश राज से माफी मांगने के लिए ही क्यों जानना चाहते हैं। यह क्यों नहीं जानना चाहते कि सावरकर को माफी क्यों मांगनी पड़ी। दो-दो बार काला पानी का आजीवन कारावास क्यों मिलता है सावरकर को। इसी तरह आर एस एस की तुलना आप तालिबान से किस बिना पर करने की ज़ुर्रत कर पाते हैं ? क्या काबुल के घोड़ों की लीद खाते हैं आप , यह कहने के लिए ? आख़िर यह और ऐसा ज़ज़्बा लाते कहां से हैं यह लोग ? 

बातें बहुतेरी हैं। फिर कभी। पर यह सेक्यूलर एजेण्डेबाज अब ख़ुद वैचारिक रुप से तालिबान बन गए हैं। एकतरफा बात करने और कुतर्क करने के अफीम की लत लग गई है इन्हें।

Saturday, 4 September 2021

जस्टिस , आई ए एस आदि जब तक कंपनियों में कुत्ता बने रहेंगे तब तक ऐसा ही होता रहेगा

दयानंद पांडेय 

सच बताऊं नोएडा में सुपरटेक वाले बिल्डर आर के अरोड़ा , पत्नी संगीता और पुत्र मोहित अरोड़ा के साथ लंदन भाग जाने की खबर की अफवाह एक वेबसाइट पर चली तो इस खबर ने मुझे बिलकुल नहीं चौंकाया। बल्कि हंसी आ रही थी । और दुःख भी हो रहा था। सुप्रीम कोर्ट से लगायत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी तक पर तरस आ रहा था । योगी का सारा फोकस छोटे-छोटे दोषी अधिकारियों को खोजने में लग गया है। सुप्रीम कोर्ट आदेश जारी कर सो गया है । सच इन में क्या किसी को भी अंदाजा नहीं है कि असल दोषी बिल्डर भाग भी सकता है। उस का पासपोर्ट भी क्या ज़ब्त नहीं कर लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का आदेश जारी होते ही क्या बिल्डर के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर तुरंत जेल भी नहीं भेजना चाहिए ? लेकिन कहां , चोरी और फिर सीनाजोरी पर भी उतर आया है , अरोड़ा। कह रहा है कि सब कुछ प्राधिकरण की स्वीकृति से हुआ है और कि वह सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर रहा है। 

अब जो भी हो माल्या , नीरव मोदी , मेहुल चौकसी आदि भगोड़ों की तरह चालीस मंज़िल की अवैध बिल्डिंगें बना कर यह आर के अरोड़ा भी अब अरबों रुपए ले कर फरार हो जाएगा तो माथा फोड़ते रहेंगे घर का सपना पालने वाले मध्यवर्गीय परिवारों के लोग। कितने शहरों में कितने बिल्डर जनता का खरबो रुपया पी कर इंज्वाय कर रहे हैं , यह तथ्य भी किसी से छुपा है क्या ? कितनी चिट फंड कंपनियां गरीबों का सारा संसार उजाड़ गई हैं। किसी बिल्डर का , किसी चिट फंड कंपनी का अब तक कुछ अहित हुआ क्या ? यह सिस्टम तो बिल्डरों और चिट फंड कंपनियों के मालिकानों के साथ रामदेव का योग कर रहा है। अपनी सेहत बना रहा है। आप लड़ते रहिए , इस शहर से उस शहर तक। सड़क से अदालत तक। कभी कुछ नहीं मिलने वाला। 

बिल्डरों में एक ग्रुप है जे पी ग्रुप। मुलायम , मायावती सभी का दुलारा रहा है। अब दीवालिया हो चुका है। पर ज़माने के लिए। सिस्टम के लिए। असल में तो वह अपने बेटे के नाम दूसरी कंपनियां बना कर इसी नोएडा में गौर सिटी बसा कर ग्रेटर नोएडा वेस्ट का सिंगापुर बनाने का सपना दिखा रहा है। सफल भी इतना है कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट में गौर सिटी के आगे जे पी ग्रुप क्या सारे ग्रुप फीके पड़ गए हैं। सिस्टम आंख मूंद कर आनंद ले रहा है। सुप्रीम कोर्ट हो या कोई सरकार , धन पशुओं के आगे सभी नतमस्तक हैं। माल्या , नीरव मोदी , मेहुल चौकसी , आर के अरोड़ा आदि के आगे कंहार बन कर सभी पानी भर रहे हैं। 

सारे सामाजिक संगठन भी बस दिखावटी ही हैं। है कोई संस्था जो बस इतना ही सा एक आंकड़ा निकाल कर दुनिया के सामने रख दे कि कितने जस्टिस , कितने आई ए एस , आई पी एस रिटायर होने के बाद कारपोरेट सेक्टर , बिल्डर या अन्य व्यावसायिक संस्थाओं को किस लिए ज्वाइन कर चुके हैं। किस लिए ज्वाइन करते हैं यह लोग ? इन कंपनियों के डायरेक्टर बोर्ड में किस खुशी में बैठ जाते हैं। कितने और किस-किस पार्टी के राजनीतिज्ञ हैं जो इन व्यवसाईयों के यहां कसाई बन कर सब का हक़ मारने में इन की मदद करते हैं। 

लखनऊ में एक बार मोहन मीकिंस की शराब फैक्ट्री द्वारा जहरीला कचरा फेंकने से गोमती नदी के पानी से आक्सीजन खत्म हो गया था। सो गोमती नदी में दूर-दूर तक की सारी मछलियां मर गईं। मैं ने एक बड़ी सी खबर लिखी। पहले पन्ने पर लीड बन कर छपी थी , तब के स्वतंत्र भारत में। इस बाबत लगातार खबर लिखता रहा। यह अस्सी के दशक के आखिरी सालों की बात है। केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार की पर्यावरण और प्रदूषण की सारी नियामक संस्थाएं कान में तेल डाल कर सोई रही थीं। सभी को नियमित पैसा जो मिलता है। खैर तब किसी तरह अंतत: मोहन मीकिंस के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हुई। उस मामले की सुनवाई के दौरान देखा एक दिन अभिनेता दिलीप कुमार भी कोर्ट में पेश हुए। क्या तो वह भी मोहन मीकिंस में एक डायरेक्टर थे। गज़ब था यह भी। 

पता किया तो पता चला कि हर कंपनी में राजनीतिज्ञ , जस्टिस , रिटायर्ड आई ए एस , आई पी एस , अभिनेता , खिलाड़ी आदि डायरेक्टर बोर्ड में होते हैं और लाखों रुपए इन्हें हर महीने मिलते हैं। खैर,  मोहन मीकिंस के उस मामले में किसी का बाल बांका नहीं हुआ। कोर्ट में मामला शुरुआती दिनों में ही खत्म हो गया। कोई अपील वगैरह भी कहीं नहीं हुई किसी के तरफ से। न सरकार की तरफ से। मोहन मीकिंस बदस्तूर जहरीला कचरा फेंकता रहा। अब आलम यह है कि लखनऊ में गोमती नदी के किनारे निरंतर सैर करने वालों को कैंसर हो जाता है। लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी मीडिया में कोई खबर नहीं आती। लोगों ने गोमती किनारे टहलना ज़रूर बंद कर दिया है अब। 

एक कंपनी के विज्ञापन के एक फ़ोटो में तो मैं ने देखा कि कंपनी के मालिक , पत्नी आदि आगे कुर्सियों पर बैठे थे। जब कि सुप्रीम कोर्ट यानी भारत के पूर्व चीफ जस्टिस , इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस समेत , सेना के एक परमवीर चक्र विजेता , टी एन शेषन जैसे धाकड़ आई ए एस अफसर , अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता , कपिलदेव जैसे क्रिकेटर आदि कई लोग उस कंपनी का ड्रेस और टाई पहने लाइन से कुर्सी पर बैठे इन कंपनी मालिक के पीछे खड़े दिख रहे थे। इतनी अश्लील फ़ोटो मैं ने ज़िंदगी में अभी तक कोई और नहीं देखी है। यह फ़ोटो आप में से भी तमाम लोगों ने अवश्य देखी होगी। क्यों कि यह फोटो अनेक बार देश के तमाम अखबारों में बतौर विज्ञापन छपती रही है। 

उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्य सचिव वी के सक्सेना तो रिटायर होते ही खुल्ल्मखुल्ला चीनी मिल मालिकों के फेडरेशन में सलाहकार बन गए थे। चीनी मिल मालिकों के साथ प्रेस कांफ्रेंस में उपस्थित रहते थे। कुल जोड़-तोड़ यह रहती थी कि गन्ना किसानों का पैसा कैसे मार लिया जाए। बरसों तक किसानों का भुगतान लटका रहे और गन्ने का भाव न बढ़े। क्या तो गन्ना मिलें घाटे में हैं। अजब नौटंकी थी। गज़ब कुतर्क था। जो एक पूर्व मुख्य सचिव कर रहे थे। तो शासन में बैठ कर क्या-क्या किया होगा , समझा जा सकता है। तमाम कंपनियों में तो सेना के रिटायर्ड जनरल भी नौकरी पर हैं। तो आप क्या समझते हैं यह लोग विभिन्न कंपनियों में पूजा-पाठ के लिए रखे जाते हैं ? सिर्फ़ शो पीस बन कर ही रहते हैं ? बिलकुल नहीं। इन में से एकाध तो सिर्फ डेकोरम पूरा करते हैं। कुछ नियम सा है कि सामाजिक क्षेत्र के लोगों को डायरेक्टर बोर्ड में रखना होता है। 

बस इसी की आड़ में यह कंपनियां इन जजों और अफसरों आदि को अपनी कंपनी में डायरेक्टर कम दलाल बना कर रखती हैं। साफ़ कहूं कि कुत्ता बना कर रखती हैं। फिर यह कुत्ते इन कंपनियों के मालिकों के सारे अनियमित कार्य पर पर्दा डालने का , इन के कुकर्मों पर पानी डालने का काम करते रहते हैं। विभिन्न तरीक़े बता कर नियम , क़ानून से इन की रखवाली करते हैं। नियम , क़ानून के दुरूपयोग के तरीक़े बताते हैं। किस को कैसे ख़रीदा जाए , जुगत बताते हैं। जज हैं तो जजों से काम करवाएंगे। अफ़सर हैं तो अफसरों से भी काम करवाएंगे। सिर्फ़ सिफारिश ही नहीं , संबंधित अफ़सर , जज , पुलिस को रिश्वत देने की चेन भी बनेंगे। सिर्फ़ सिफारिश से तो काम अब कहीं होता नहीं। साम , दाम , दंड , भेद सुना है न ? तो डायरेक्टर बोर्ड में बैठे यह विभिन्न कुत्ते साम , दाम , दंड भेद के हरकारे बनते हैं। चूंकि सिस्टम में रहे होते हैं तो सारा छेद और सारी प्रक्रिया जानते हैं। सब को साधना भी। फिर एक कहावत है कि कुत्ता , कुत्ते का मांस नहीं खाता। तो कोई किसी का अहित नहीं करता। कुछ भी हो जाए , सब एकजुट रहते हैं। सुपरटेक वाले मामले में भी देखिएगा कि कोई सीनियर आई ए एस अफ़सर भी शायद ही कार्रवाई की जद में आए। मसला वही है कि कुत्ता , कुत्ते का मांस नहीं खाता। और जांच टीम का मुखिया भी तो आई ए एस ही है। 

सोचिए कि अमर सिंह जैसे लोग स्टेट बैंक के डायरेक्टर बोर्ड में रहे थे। अमर सिंह को किस ने रखवाया होगा और अमर सिंह ने क्या-क्या करवाया होगा ? हर्षद मेहता जैसे काण्ड क्या मुफ्त में होते हैं ? अभी नीरव मोदी , विजय माल्या , मेहुल चौकसी , जैसे भगोड़े बैंक लूट कर वैसे तो नहीं भाग गए। अमर सिंह जैसे डायरेक्टर लोग ही तो काम आते हैं। फिर कपिल सिब्बल , सलमान ख़ुर्शीद , रवि शंकर जैसे वकीलों का काकस अलग से इन का कवच कुण्डल बना रहता है। यही लोग इन चोरों के वकील होते हैं। क्रिकेटर मनोज प्रभाकर की याद तो होगी ही। एक चिट फंड कंपनी ने उन का नाम और फ़ोटो लगा कर ही तो लूटा था जनता को। क्या हुआ मनोज प्रभाकर का ? कुछ हुआ क्या ? तो जब तक कारपोरेट सेक्टर या अन्य कंपनियों में डायरेक्टर बोर्ड में यह नौकरशाह , ज्यूडिशियरी आदि से रिटायर्ड कुत्ते रखे जाते रहेंगे , अरोड़ा , माल्या , मोदी , मेहुल चौकसी जनता और जनता का धन लूट कर भागते रहेंगे। और हम आप नीरज का लिखा गीत सुनते रहने को अभिशप्त रहेंगे :

स्वप्न झरे फूल से,

मीत चुभे शूल से,

लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।

कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे !

Friday, 3 September 2021

बाइडेन , राहुल गांधी , तालिबान , भाईजान लोग और मौलवी का इश्क़

दयानंद पांडेय 

न जाने क्यों वामपंथी भाई जान लोग बाइडेन और राहुल गांधी की बीमारी की चर्चा मात्र से डरते रहते हैं। शायद यह भी एक बीमारी है। फिर इस बीमारी के लपेट में वामपंथी ही क्यों सारे सेक्यूलर हिप्पोक्रेट्स दीखते हैं। फ़ैसला भले बराक ओबामा का था पर जिस तरह अफगानिस्तान बाइडेन ने खाली किया है और बेआबरु हुए हैं , विश्व की दर्दनाक घटना है। पर गाय तक पर ज्ञान बघारने वाले यह लोग अफगानिस्तान के इंसानों पर हो रहे जुल्मो-गारत पर गॉगल्स लगा कर खामोश हैं। 

याद कीजिए कि कुछ समय पहले इसी अमरीका का राष्ट्रपति रहा ट्रंप जब कभी हवा भी खारिज करता था तो यही लोग तुरंत सूंघ कर उस की बदबू कैसी है से फौरन दुनिया को परिचित करवाते थे। जब कि बाइडेन भी अमरीका का ही राष्ट्रपति है जिस ने अपनी कायरता , अनुभवहीनता और छुद्रता में तालिबान से डर कर समूचे अफगानिस्तान में मल ही मल फैला दिया है। पर यही वामपंथी , यह सारे सेक्यूलर हिप्पोक्रेट्स बाइडेन के इस मल की खुशबू में तरबतर हैं। गोया कितनी पॉजिटिव बात हो गई हो। 

ब्रेख्त , पाब्लो नेरुदा के सारे गीत , सारी कविताएं जैसे मंगल ग्रह चले गए हैं। स्त्रियों , बच्चों की यातनाएं , भूख , लाचारी और बलात्कार जैसे तरक़्क़ी वाली बातें हो गई हैं इन सो काल्ड तरक़्क़ी पसंद लोगों के लिए। अजब मंज़र है। आज दुनिया ने पहली बार अफगानिस्तान में तालिबान की परेड में आत्मघाती दस्ते की परेड भी देखी। कार बम की परेड देखी। पहली ही बार देखा गया कि अमरीकी सैनिक साजो सामान को अपना बता कर परेड में तालिबानियों ने इस तरह दिखाया कि देखो हमारे कितने बाप हैं। माता एक , पिता दस बारह वाली अभद्र कहावत याद आ गई है। पर सभी भाईजान की जुबान और क़लम को जैसे लकवा मार गया है। 

इधर राहुल गांधी ने भी पूरी कांग्रेस को ट्रैक्टर से निरंतर जोत-जोत कर मुकम्मल अफगानिस्तान बना दिया है। इस पर भी कोई सांस नहीं लेते यह भाईजान लोग। गाय नहीं , भैंस ज़्यादा दुधारु है बताने वाले लोग राहुल गांधी को भी क्या दुधारु भैंस मानते हैं कि भैंस से भी ज़्यादा उपयोगी और दुधारु मानते हैं। कि राहुल गांधी की उलटबासियां नहीं दिखतीं , सुनाई देतीं। राहुल गांधी के उकसाने पर सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस को परमाणु बम पर बैठा दिया है। पर मजाल है कि कोई बोल निकले। कांग्रेस तिल-तिल कर सोनिया के पुत्र मोह में मर रही है। उधर उत्तर प्रदेश में मुलायम के पुत्र मोह में सपा सन्निपात में है। पर भाईजान लोग ऐसी राजनीतिक मुश्किलों से आंख मूंद कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जस्टिस यादव द्वारा गाय को बचाने के लिए राष्ट्रीय पशु घोषित करने की सलाह पर स्वाहा हुए जा रहे हैं। 

बता रहे हैं कि जस्टिस यादव तो जस्टिस गोगोई से भी ज़्यादा कुछ चाहने लगे हैं। गोया जस्टिस के नाम पर गोगोई पहली बार उपकृत हुए हों। जस्टिस हिदायतुल्लाह वगैरह तो खैर नमाज पढ़ कर ही उपकृत हुए थे। उन को काहे को याद रखना। याद किया तो क़यामत न आ जाएगी। फ़िलहाल तो आत्मघाती दस्ते और कार बम की परेड पर कुछ बोलना सांप्रदायिक हो जाना हो जाता है। भाजपाई और संघी हो जाना होता है। गाय के ख़िलाफ़ बोलना , गाय का मांस खाने की दलील देना ही सेक्यूलर होना मान लिया है इन हिप्पोक्रेट्स ने। बाइडेन और राहुल गांधी इन के आदर्श पुरुष हैं। इन के आइकॉन हैं। इन के देवता हैं। बावजूद इस के कि धर्म अफीम है पर आस्था जलेबी। 

इन की आस्था , बाइडेन , राहुल गांधी और तालिबान में है। सो इन के खिलाफ कुछ बोलेंगे तो क़यामत आ जाएगी। हां , इन की इन में आस्था है। सो आस्था की जलेबी खाने दीजिए इन्हें। ख़ामोश कि तालिबान अफगानिस्तान में हैं और यह तालिबान पर भारत सरकार का रुख जानना चाहते हैं बीते पंद्रह अगस्त से। अक़ल जैसे राहुल गांधी की तरह घुटनों में ले कर पैदा हुए हैं तो करें भी क्या। तालिबान सरकार अभी बनी भी नहीं। पर यह आकुल व्याकुल लोग फ़ौरन जान लेना चाहते हैं कि भारत सरकार तालिबान को मान्यता दे रही है कि नहीं ? तालिबान आतंकी हैं कि नहीं , भारत सरकार की नज़र में यह रणबांकुरे फौरन जान लेना चाहते हैं। नहीं जानना चाहते कि अफगानिस्तान में तालिबान के जबड़े में कुछ भारतीय फंसे हैं , उन्हें सुरक्षित निकालना प्राथमिकता है। तालिबान का पक्ष या विपक्ष जानना नहीं। 

पर क्या करें बिचारे कोरोना के क़हर के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार अभी तक के सब से ऊंचाई का रिकार्ड छू गया है। कोई 6 सौ अरब डालर है विदेशी मुद्रा भंडार। जी एस टी रिकार्ड कलेक्शन का ग्राफ छू चुका है। शेयर मार्केट बंपर रिकार्ड उछाल पर है। जी डी पी का भी सुधार अप्रत्याशित ऊंचाई पर है। तो बिचारे पूछें भी क्या ? गाय को माता नहीं , राष्ट्रीय पशु बनाने की सलाह पर ही उन की सुई सुलग रही है। रस्सी जल गई है , पर बल नहीं गए हैं। 

एक लतीफ़ा याद आ गया है। एक बार एक लड़की किसी मौलवी को मुस्कुराती हुई मिली और बोली , मौलवी साहब , मौलवी साहब , मुझे इश्क़ हो गया है ! मौलवी छूटते ही बोले , कमबख़्त , बेग़ैरत तुझे शरम नहीं आती मुझ से ऐसी बात करते हुए ? लड़की बोली , शरम आती तो है पर क्या करुं मौलवी साहब , पर मुझे सच्ची-मुच्ची इश्क़ हो गया है ! मौलवी बोले , लाहौल बिला कूवत , चल भाग यहां से ! लड़की फिर आहिस्ता से बोली , पर मौलवी साहब क्या करुं , बेबस हूं , भाग नहीं सकती , क्यों कि मुझे आप से ही इश्क़ हो गया है ! मौलवी साहब , ' अचानक बदल गए और मुलायम होते हुए बोले , चल्ल  ........ झूठी कहीं की ! मौलवी को अब यह इश्क़ लेकिन बेग़ैरत और शरम आने वाला लगना बंद हो गया था। झूठ लग रहा था। ऐसे ही चोंचले भरे इश्क़ में हमारे यह भाईजान लोग फंस गए हैं। बिचारे करें भी तो क्या करें ! न करते बन रहा है , न , न करते।