Saturday, 29 February 2020

पाकिस्तान से निरंतर जीतने वाले , देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से लगातार हारते नरेंद्र मोदी


कश्मीर से लगायत दिल्ली , लखनऊ , अहमदाबाद , आदि समूचे देश में पुलिस पर पत्थरबाजी कौन लोग और क्यों करते हैं ? यह भी क्या किसी से कुछ पूछने की ज़रूरत है ? जुमे की नमाज के बाद शहर दर शहर बवाल समूचे भारत में क्यों होता है ? मोहर्रम में दंगे क्यों होते हैं ? होली और दुर्गा पूजा के विसर्जन जुलूस पर हमला कौन करता है ? कभी किसी मंदिर , किसी चर्च , किसी गुरूद्वारे से किसी ख़ास मौके पर या सामान्य मौके पर किसी ने किसी को बवाल या उपद्रव करते हुए देखा हो तो कृपया बताए भी। अपने भाई को क्या बार-बार बताना होता है कि यह हमारा भाई है ? तो यह भाई चारा , सौहार्द्र , गंगा जमुनी तहजीब का पाखंड क्यों हर बार रचा जाता है। यह तो हद्द है। इस हद की बाड़ को तोड़ डालिए। 

इकबाल , फैज़ अहमद फ़ैज़ , जावेद अख्तर , असग़र वजाहत जैसे तमाम-तमाम नायाब रचनाकार भी अंतत: क्यों लीगी  और जेहादी जुबान बोलने और लिखने लगते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र , मैथिलीशरण गुप्त , प्रेमचंद , जयशंकर प्रसाद , पंत , निराला , दिनकर , बच्चन , नीरज , मुक्तिबोध , धूमिल , दुष्यंत कुमार , अदम गोंडवी आदि तो हिंदुत्व की भाषा नहीं बोलते और लिखते। भले भाकपा के महासचिव डी राजा अपनी नीचता और घृणा में कहते फिरें कि हिंदी , हिंदुत्व की भाषा है। अच्छा गजवा ए हिंद की अवधारणा का कितने बुद्धिजीवी निंदा करते हैं ? समूची दुनिया आखिर इस्लामिक आतंकवाद से क्यों दहली हुई है ? शाहीनबाग का शांतिपूर्ण धरना क्यों समूचे देश में हिंसा और दंगे की पूर्व पीठिका तैयार करता है। मुझे नहीं याद आता कि गांधी या जे पी आंदोलन ने कभी कोई हिंसात्मक आंदोलन किया हो ? हां , पुलिस की लाठियां और  अत्याचार ज़रूर भुगते लोगों ने। जालियावाला बाग़ में नृशंस हत्याओं के बाद भी , तमाम अत्याचार के बाद भी गांधी आंदोलन हिंसात्मक नहीं हुआ। सिर्फ एक चौरीचौरा के हिंसक हो जाने से , थाना जला देने से गांधी ने पूरे देश से आंदोलन वापस ले लिया था। यह कहते हुए कि ईंट का जवाब पत्थर नहीं हो सकता। इस तरह से तो पूरी दुनिया समाप्त हो जाएगी। कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीर में गजवा ए हिंद के कायल लोगों ने क्या-क्या नहीं किया पर कश्मीरी पंडितों ने आज तक कोई हिंसा नहीं की। कभी कोई हथियार नहीं उठाया। यहां तक कि अन्ना आंदोलन में तमाम अराजक लोगों के शामिल होने के बावजूद कभी कोई हिंसा नहीं हुई। रामदेव भले सलवार समीज पहन कर भागे पुलिस से डर कर लेकिन उन के लोगों ने भी कभी कोई हिंसा नहीं की। नो सी ए ए लिख-लिख कर अपने समुदाय के लोगों के घर और दुकान बचाने की रणनीति बनाने वाले लोग दूसरों की संपत्ति और जान की कीमत क्यों नहीं समझी। दिल्ली के मुस्तफाबाद , सीलमपुर , जाफराबाद जैसी जगहों को लोग खुलेआम पाकिस्तान कहते हुए क्यों गुस्सा हो रहे हैं ? हाजी ताहिर हुसैन के घर जिस तरह बेहिसाब पत्थर , तेज़ाब , पेट्रोल बम , गुलेल आदि बरामद होना क्या बताता है। आई बी कर्मचारी अंकित शर्मा की हत्या क्या कहती है ? जाने कितने ताहिर हुसैन दिल्ली समेत समूचे देश में फैले बैठे हैं। अभी सब के वीडियो तो हैं नहीं। फिर जाने कितने ताहिर हुसैन अभी सामने आने शेष हैं। कांग्रेस की पार्षद इशरत जहां भी दंगा फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी , जामिया मिलिया आदि में ही ऐसी मुश्किलें क्यों बरपा होती हैं। 

यह जिन्ना वाली आज़ादी का क्या मतलब है ? अगर सोशल मीडिया न होता , लोगों के पास मोबाइल न होता , लोग वीडियो न बनाते तो सारा सच आर एस एस , भाजपा के इन के गढ़े नैरेटिव में दब कर रह जाता। अब सच सब के सामने है। भाई चारा का पाखंड भी। मैंने अपने पत्रकारीय जीवन में ऐसे तमाम लोग देखे हैं जो लोग पहले तो बाकायदा दंगा करते करवाते हैं फिर पुलिस जब रगड़ाई करती है तो यही लोग कपड़ा और चोला बदल कर भाई-चारा कमेटी बना कर हिंदू-मुस्लिम एकता का पाखंड करने लगते हैं। सौहार्द्र की पेंग मारने लगते हैं। दुर्भाग्य से वामपंथ का चोला पहन कर कुछ लेखक , कवि भी अब घृणा और नफरत की भाषा लिख कर इन्हें अभयदान देते रहते हैं। तय मानिए कि अगर हाजी ताहिर हुसैन के घर की छत से संचालित हिंसा और दंगे की वीडियो उस के पड़ोसियों ने बनाई होती , उस का दंगाई रूप नंगा कर सामने न रखे होते तो वह भी बगुलाभगत बन कर बाकायदा किसी भाई चारा कमेटी का मुखिया बन कर हिंदू मुस्लिम एकता , सौहार्द्र आदि की मीठी-मीठी बातें कर रहा होता। एफ आई आर दर्ज होने तक कर भी रहा था। बिलकुल किसी फ़िल्मी खलनायक की तरह उस ने अपने बचने की भी कितनी तो तैयारी कर रखी थी कि एक बार तो उस की रणनीति का लोहा मानने को जी चाहता है। अपने घर की जिस छत से वह दंगा संचालित कर रहा था , वहीँ से अपनी वीडियो खुद बना कर पुलिस कमिश्नर से अपनी मदद की गुहार भी कर रहा था। डरा हुआ यह ताहिर हुसैन अपने घर के किसी कमरे में नहीं , अपनी छत से वीडियो बना रहा था। ताकि उस के घर के आस-पास की आगजनी और धुआं आदि भी दिखे। जो आग उस ने खुद लगाई थी। याद कीजिए कि ऐसे ही कभी आमिर खान , नसिरुद्दीन शाह , शाहरुख खान और वह 10 साल उप राष्ट्रपति रहा हामिद अंसारी भी डरा हुआ था। और कि इसी डर में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की फोटो बनी रहे , इस की पैरवी भी कर रहा था। अजब था यह डर भी। दिलचस्प यह कि जिन्ना की वह फ़ोटो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अभी भी बाकायदा उपस्थित है। और यह डरे हुए लोग गजवा ए हिंद का सपना पूरा करने की गरज से समूचे देश को डराने में मुब्तिला हैं। 


अच्छा दिल्ली की सड़कों पर सीना ताने गोलियां चलाता वह शाहरुख ? सिपाही को धक्का देता , गोलियां चलाता कितना तो डरा हुआ था , देखा ही होगा आप ने। लेकिन नैरेटिव कैसे बदला जाता है यह भी देखा आप ने ? मुहिम सी चला दी गई कि यह तो अनुज मिश्रा है , शाहरुख नहीं। और तो और इस मुहिम में नीरा राडिया की दलाली गेम की ख़ास हस्ताक्षर बरखा दत्त भी ट्वीट लिख कर शामिल हो गईं। जस्टिस मुरलीधर जैसे कांग्रेस के पिट्ठू लोग जो कभी चिदंबरम के जूनियर रहे थे , सोनिया गांधी के नॉमिनेशन के वकील रहे थे , कैसे तो एकतरफा आदेश जारी कर ऐसी हिंसा में सहभागी बन लेते हैं। 

ऐसे लोगों की शिनाख्त बहुत ज़रूरी है। शिनाख्त भी और देश को सचेत भी रहना ज़रूरी है। नहीं जो लोग संविधान की आड़ में दिल्ली जैसी जगह में तीन महीने से किसी सड़क को बंधक बना कर दिल्ली हिंसा की खामोश पीठिका बना सकते हैं। दिल्ली को कश्मीर बना कर सीरिया की तरह धुआं-धुआं बना सकते हैं , बार-बार बना सकते हैं वह लोग कुछ भी कर सकते हैं। यही नहीं देश और मनुष्यता को बचाने खातिर एक बड़ी और फौरी ज़रूरत है जनसंख्या नियंत्रण और कॉमन सिविल कोड लागू कर शहर-शहर बसे मिनी पाकिस्तान को उजाड़ना। मिली-जुली आबादी कभी दंगाग्रस्त नहीं होती। मिनी पकिस्तान नहीं बनती। चाहिए कि मिनी पाकिस्तान में रह रहे लोगों को सरकार नियोजित ढंग से मिली-जुली आबादी में बसाने की योजना बनाए। और अमल में लाए। गंगा जमुनी तहज़ीब , भाई चारा आदि की अवधारणा तभी पुष्पित और पल्ल्वित होगी। नहीं जाने कितने पाकिस्तान बनाने और देने के लिए आप तैयार रहिए। आप मानिए न मानिए गजवा ए हिंद तो आप के सिर पर सवार है। सी ए ए उस का बाईपास है। शाहीनबाग उस की आक्सीजन। एक समय था कि मुस्लिम  राजा युद्ध में गायों का एक झुण्ड भी साथ रखते थे। जब हारने लगते थे तब गायों को वह झुण्ड सामने कर देते थे। हिंदू राजा का आक्रमण रुक जाता था। शाहीनबाग़ में औरतों , बच्चों को आगे कर यही किया गया है। पुलिस औरतों , बच्चों को छूने से सर्वदा बचती है। लेकिन अगला पक्ष इसी आड़ में माहौल बना लेता है। मान लेता है कि आप कायर हैं और वह विजेता। मोदी सरकार अपने तीन तलाक , 370  राम मंदिर के विजय के नशे में यहीं मात खा गई। बाक़ी कसर ट्रंप की खुमारी ने पूरी कर दी। कन्हैयालाल नंदन की एक कविता याद आती है :

तुमने कहा मारो
और मैं मारने लगा
तुम चक्र सुदर्शन लिए बैठे ही रहे और मैं हारने लगा
माना कि तुम मेरे योग और क्षेम का 
भरपूर वहन करोगे
लेकिन ऐसा परलोक सुधार कर मैं क्या पाऊंगा 
मैं तो तुम्हारे इस बेहूदा संसार में 
हारा हुआ ही कहलाऊंगा 
तुम्हें नहीं मालूम
कि जब आमने सामने खड़ी कर दी जाती हैं सेनाएं 
तो योग और क्षेम नापने का तराजू
सिर्फ़ एक होता है/ कि कौन हुआ धराशायी 
और कौन है
जिसकी पताका ऊपर फहराई 
योग और क्षेम के 
ये पारलौकिक कवच मुझे मत पहनाओ 
अगर हिम्मत है तो खुल कर सामने आओ 
और जैसे हमारी ज़िंदगी दांव पर लगी है 
वैसे ही तुम भी लगाओ

तो तमाम अगर , मगर , किंतु , परंतु के बावजूद पाकिस्तान से निरंतर जीतते रहने वाले , देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से लगातार हारते नरेंद्र मोदी के तथ्य को हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। कांग्रेस और कम्युनिस्ट के लोग आम चुनाव में भले निरंतर साफ़ होते जा रहे हों पर देश को बांटने और तोड़ने की मुहिम में पूरी तरह विजयी हैं। नरेंद्र मोदी पराजित। पूरी तरह पराजित। 15 करोड़ लोग सचमुच 100 करोड़ लोगों पर ही नहीं , देश पर भी बहुत भारी पड़ गए हैं। वारिस पठान ने वह धमकी कोई झूठ-मूठ में नहीं दी थी। इसी लिए फिर दुहराता हूं कि देश को एक नया और कड़ा गृह मंत्री चाहिए। सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा। जो देश को एकसूत्र में पिरो सके। मिनी पाकिस्तान को तार-तार और गजवा ए हिंद की अवधारणा को पूरी तरह नेस्तनाबूद करने वाला गृह मंत्री। जैसे हैदराबाद में पटेल ने सेना उतार कर निजाम के दांत खट्टे किए थे। जैसे स्वर्ण मंदिर में सेना भेज कर इंदिरा गांधी ने भिंडरावाले और खालिस्तानियों के दांत खट्टे किए थे। ठीक वैसे ही अगर देश को अखंड और सुरक्षित रखना है तो मिनी पाकिस्तान को तार-तार कर उजाड़ना ही होगा। फिलिस्तीन की तरह कड़ा फैसला लेना ही होगा। चीन जैसे अपने यहां मिनी पाकिस्तान को सबक दे रहा है। फ़्रांस , रूस , अमरीका , श्रीलंका , किस-किस का नाम लूं। सब यही कर रहे हैं। देश की एकता , अखंडता और मनुष्यता के लिए यह बहुत ज़रूरी हो गया है। नहीं , सोवियत संघ और ग्रेट ब्रिटेन की तरह टूटने के लिए तैयार रहिए। सीरिया की तरह धू-धू कर जलने के लिए तैयार रहिए। सी ए ए के नाम पर कुछ झांकी मिल चुकी है। ट्रेलर देख चुका है देश और दिल्ली भी। पूरी फिल्म देखना कितना त्रासद होगा सोच लीजिए। इस त्रासदी को देखने के लिए देश तैयार नहीं है। न मनुष्यता।

केजरीवाल द्वारा कन्हैया की चार्जशीट को स्वीकृति देना और ताहिर हुसैन को पार्टी से निकाल देना


तो क्या दिल्ली से राज्य का दर्जा छिनने जा रहा है ? और दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल डर गए हैं दिल्ली के कश्मीर बन जाने से। तमाम दंगाई आप पार्टी से चिन्हित हुए हैं। दिल्ली से राज्य का दर्जा छीन लेना घायल अमित शाह का अगला वार हो सकता है। इसी लिए अरविंद केजरीवाल भाजपा शरणम गच्छामि हो गए हैं। कौन नहीं जानता कि कन्हैया ने जे एन यू में देशद्रोही नारे लगाए थे। फिर अरविंद केजरीवाल ने कन्हैया को कोई फांसी नहीं दी है। सिर्फ कन्हैया की चार्जशीट को मंजूरी दी है। जिसे बहुत पहले दे दिया जाना चाहिए था। अरविंद ने यह फ़ाइल दबा कर गलती की थी। 

फिर क्या पता जस्टिस मुरलीधर जैसा कोई कांग्रेस भक्त जज इस केस की सुनवाई करे और कन्हैया को दोषमुक्त घोषित कर दे। गो कि कन्हैया को देशद्रोह मामले से बचा पाना टेढ़ी खीर है। सज़ा तो देर सवेर कन्हैया एंड गैंग को मिलनी ही है , यह लिख कर रख लीजिए। ताकि सनद रहे और वक्त ज़रूरत काम आए। लेकिन अरविंद केजरीवाल द्वारा कन्हैया की चार्जशीट को स्वीकृति देना और ताहिर हुसैन को पार्टी से निकाल देना आप पार्टी के भीतर कुछ लोगों को बहुत नागवार गुज़र रहा है। 

कांग्रेस भी खफा है। और वामपंथी तो अरविंद केजरीवाल को कच्चा चबा जाना चाहते हैं। इस लिए भी कि कन्हैया बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहता है। अब उस को बहुत मुश्किल होगी। ताहिर हुसैन जैसे अभी कई देशद्रोही सांप भी आप पार्टी को डसने खातिर तैयार खड़े हैं। तो अरविंद केजरीवाल की विवशता समझिए। बाक़ी अपने संजय सिंह को आगाह कर दीजिए कि ताहिर हुसैन के करंट से बच कर रहें। अब भले संजय सिंह खामोश हैं लेकिन ताहिर की पैरवी में अकेले संजय सिंह ही पहले राउंड में अकेले खड़े दिखे।

तो मां का कलेजा बोल पड़ा , बेटा कहीं चोट तो नहीं लगी ?

बचपन में अम्मा भोजपुरी में एक किस्सा सुनाती थी। हो सकता है , आप की अम्मा , दादी , बुआ , मौसी ने भी आप की भाषा में सुनाई हो। तो भी सुनाता हूं आप को फिर से। संक्षेप में। हिंदी में। एक आदमी अपनी मां से बचपन से ही बहुत प्यार करता था। शादी हुई तो वह पत्नी की तरफ भी झुका। लेकिन मां को छोड़ नहीं पाता था। मां का पलड़ा भारी ही रहता था। पत्नी कुढ़-कुढ़ जाती। एक बार वह बहुत नाराज हुई। वह आदमी पत्नी को मना-मना कर थक गया।

अंतत: पत्नी पिघली पर एक शर्त रखी कि अपनी मां का कलेजा लाओ तभी बात बनेगी। आदमी पत्नी की बातों में आ गया। एक रात घर से कहीं दूर ले जा कर मां की हत्या कर उस का कलेजा निकाल कर पत्नी को पेश करने के लिए चला। अंधेरी रात थी। रास्ते में उसे कहीं ठोकर लगी तो मां का कलेजा बोल पड़ा , बेटा कहीं चोट तो नहीं लगी ? अब बेटा परेशान ! कि हाय यह मैं ने क्या किया। मरी हुई मां के कलेजे को भी मुझे चोट लग जाने की फ़िक्र है। वह पत्नी से और भड़क गया।

तो जो लोग भारत माता की जय कहने को भी गाली समझते हैं , वंदे मातरम से भी चिढ़ते हैं , वह देश को नहीं जलाएंगे तो किसे जलाएंगे भला ? लेकिन भारत माता तो माता , इन मूर्खों और कमीनों को भी अपना पुत्र समझती है। इन को कहीं चोट न लग जाए इस की परवाह करती है। चोट लगती भी है तो बोल पड़ती है , बेटा कहीं चोट तो नहीं लगी ? पर इन दंगाइयों और आतंकियों को मां की फ़िक्र कहां है भला ? वह तो इसी गुमान में जीते हैं कि उन की कोई मां नहीं है और जाने किस गुमान में , अपनी बेहूदगी में कहते फिरते हैं कि किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है। इन के बाप का होता तो हिंदुस्तान का दर्द समझते। बाप का नहीं है , इस लिए हिंदुस्तान को जलाने का दर्द नहीं समझते। मनुष्यता तार-तार करते फिरते हैं।

क्यों कि दिल्ली देश का दिल है , सरहद नहीं


नार्थ ईस्ट दिल्ली में बुलेट प्रूफ जाकेट और हेलमेट पहन कर टी वी चैनलों के रिपोर्टरों की हालत क्या बताती है आख़िर। कश्मीर में भी कभी रिपोर्टरों को इस तरह हेलमेट और बुलेट प्रूफ जाकेट में नहीं देखा गया। और तो और कारगिल के मोर्चे पर भी रिपर्टरों को इस तरह नहीं देखा गया। सिर्फ लोग नहीं मरे हैं इन तीन दिनों में। करोड़ो , अरबों रुपए की संपत्ति ही नहीं स्वाहा हुई है , श्मशान घाट तक जला दिए गए हैं। श्मशान घाट पर शिव जी की मूर्ति तक तोड़ दी गई है। तमाम शो रुम और रेस्टोरेंट जला दिए गए हैं। मान लिया कि इन का तो इंश्योरेंश रहा होगा। लेकिन छोटे-छोटे घर , छोटी-छोटी दुकानों का इंश्योरेंस तो नहीं रहा होगा। लोगों के आपसी संबंधों का तो इंश्योरेंस तो नहीं ही रहा होगा। बच्चों का इम्तहान स्थगित हुआ है , फिर किसी तारीख में हो जाएगा। लेकिन मनुष्यता के इम्तहान में तो हम फेल हो ही गए हैं। शायद ही कभी पास हो पाएंगे। 

फिर दिल्ली को सीरिया बनाने का जो प्रयोग हुआ है कि पहली बार दिल्ली का यह शांतिप्रिय दंगा रोकने के लिए आधुनिक हथियारों के साथ बी एस एफ के जवान उतारे गए हैं। तो क्या दिल्ली अब सरहद में तब्दील है ? इस घिनौने सेक्यूलरिज्म की सरहद आखिर कहां तक जाती है। कि हेड कांस्टेबिल तो हेड कांस्टेबिल , आई बी अधिकारी भी मार दिया जाता है। डिप्टी कमिश्नर का सिर फोड़ दिया जाता है। आई पी एस अफसरों पर तेज़ाब फेंका जाता है तथा जनता और पुलिस पर मुसलसल पत्थरबाजी की जाती है। फायरिंग की जाती है। गज़ब हैं यह शांति प्रिय और सेक्यूलर लोग। इन को प्रणाम कीजिए। यह हिंदुस्तान इन के बाप का है सो इसे यह लोग जला देंगे , आप से मतलब ? 

खजूरी ख़ास में एक परिवार अपनी बेटी की शादी की तैयारी में बनी , जली और बिखरी मिठाइयां दिखाते हुए रो रहा है। बेटी की बारात के स्वागत की तैयारियां स्वाहा हो चुकी हैं। पूरा परिवार रो-रो कर बेहाल है। इस दंगे में तमाम माताओं की कोख सूनी हो गई है। स्त्रियों की मांग सूनी हो गई हैं , बच्चे अनाथ हो गए हैं , बहने भाई खो बैठी हैं। शेष कुछ है तो धुआं , तबाही और शांतिप्रिय लोगों के सेक्यूलरिज्म के नाम पर की गई हैवानियत। 
किन के लिए भाई ?

रोहिंगिया और बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए ? देश को धर्मशाला बना देने के लिए ? इन दंगाइयों को बिना हिंदू , मुसलमान की परवाह किए , लाइन से खड़ा कर सीधे गोली मार देनी चाहिए। बतर्ज पंजाब के पुलिस महानिदेशक के पी एस गिल , नो अरेस्ट , नो सुनवाई , सीधे कार्रवाई। मनुष्यता के दुश्मन लोगों से इसी तरह निपटना ज़रूरी हो गया है। और हां , सोनिया गांधी , ओवैसी आदि के कहे पर न सही , नैतिकता और राजनीतिक शुचिता के नाते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को फौरन से पेस्तर इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। दिल्ली पुलिस को अमानतुल्ला खान , कपिल मिश्रा जैसे तमाम लोगों को फौरन जेल भेज देना चाहिए। साथ ही दिल्ली के पुलिस कमिशनर को तुरंत हटा कर नया पुलिस कमिशनर तैनात किया जाना भी ज़रूरी है। क्यों कि दिल्ली देश का दिल है , सरहद नहीं।

नमस्ते ट्रंप नहीं , तमाम-तमाम मिनी पाकिस्तान को नमस्ते कर देने की तलब है अब देश को

ट्रंप के आने पर दिल्ली में हुई हिंसा को दिल्ली में जगह-जगह बसे मिनी पाकिस्तान का ट्रंप को सैल्यूट मान कर चलिएगा तो बात समझने में बहुत आसानी होगी। याद कीजिए जब क्लिंटन भारत आए थे तब पाकिस्तान की आई एस आई ने क्लिंटन को सैल्यूट मारते हुए कश्मीर में कितनी लाशें बिछाई थीं। और जब इस हिंसा को आई एस आई की जड़ों को भारत में मज़बूत होते तथ्य की आंच में मोमबत्ती पिघला कर देखेंगे तो बात और समझ आएगी। और जब इस तथ्य को जब कोई मशाल जला कर देखेंगे तो पाएंगे कि मोदी सरकार मुस्लिम समाज से बेहद डरी हुई है इसी लिए शाहीन बाग़ पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करती। ज़ाफराबाद को रोकने के लिए कपिल मिश्रा जैसे मौकापरस्त का उपयोग करती है। दिल्ली हिंसा को अगर मोदी सरकार चाहती तो एक घंटे क्या पांच मिनट में पूरी सख्ती से समेट सकती थी। अव्वल तो होने ही नहीं देती। लेकिन ट्रंप की अगुआनी की आड़ में दिल्ली को तीन दिन दहकने दिया। हिम्मत इतनी बढ़ी दंगाइयों की शाहरुख जैसे कुछ मनबढ़ लोगों को पिस्तौल ले कर सरेआम फायरिंग करते हुए देखा गया। 

अराजक और कट्टर मुस्लिम समाज से भाजपा की मोदी सरकार इस लिए भी डरी हुई है कि अगर कहीं कोई कड़ी कार्रवाई कर दी तो अभी तो दिल्ली सीरिया बनी हुई है , कहीं पूरा देश न सीरिया की राह पर चल दे। हर शहर में बसे मिनी पाकिस्तान में आई एस आई ने फंडिंग और रेडिकल इस्लामिक आतंक की नर्सरी बना ली है। और मोदी सरकार तीन तलाक , 370 और नागरिकता क़ानून के नशे में चूर समान नागरिक क़ानून और जनसंख्या नियंत्रण बिल लाने के सपने में जीती रही। इस  तरफ ध्यान ही नहीं दिया। अभी भी मौका है मिस्टर मोदी , भारत को सीरिया बनाने से बचाने की हर संभव कोशिश कीजिए। इस्लामिक कट्टरता से उपजी हिंसा से बिना हिंदू , मुसलमान हुए पूरी सख़्ती से निपटने की ज़रूरत है। अभी तो दिल्ली दहक़ रही है , बरास्ता जामिया , अलीगढ़ भी दहकाने के फिराक में हैं यह लोग। ज़रा भी चूक हुई तो समूचे देश को सीरिया की तरह दहकने में देर नहीं लगेगी। ट्रंप जैसे व्यवसाई लोगों से मिले सर्टिफिकेट काम नहीं आने वाले। ज़रूरत गुजरात वाली सख्ती की है मिस्टर मोदी। जिस के लिए दुनिया आप को जानती है। 

समझ लीजिए कि दिल्ली गोधरा है और देश गुजरात। अभी गोधरा हुआ है और देश में बसे अनंत मिनी पाकिस्तान आई एस आई की फंडिंग से तर-बतर हैं। बस एक दियासलाई की तलब है। इस दियासलाई को फ़ौरन से पेस्तर सीज़ कीजिए। और चाणक्य की तरह इन इस्लामिक कट्टरपंथियों की जड़ों में मट्ठा डालिए। नहीं देश को तबाह करने की कंप्लीट तैयारी हो चुकी है। पिच तैयार है। इस पिच पर खेलने की नहीं , इस पिच को पूरी तरह खोद देने की ज़रूरत है। एक-एक को चुन-चुन कर उन के मिनी पाकिस्तान में ही दफना देने की ज़रूरत है। आई एस आई की छाती में कील ठोंकने की तुरंत ज़रूरत है। बहुत हो गई मुफ्त गैस , मुफ्त शौचालय और मुफ्त आवास के खैरात की नौटंकी। लात के भूत बात से नहीं मानते , पुरानी कहावत है। सो अब तो इस कैंसर को कड़ी सर्जरी कर नेस्तनाबूद करने की घड़ी आ गई है। नमस्ते ट्रंप नहीं , तमाम-तमाम मिनी पाकिस्तान को नमस्ते कर देने की तलब है अब देश को।

पिता का होना , यानी मूंछों का होना


नीम के यह पत्ते जब झरेंगे पतझर में , तब झरेंगे। अभी तो पूज्य पिता जी विदा हुए तो शोक में हमारी मूछ भी विदा हो गई है। जब से मूछ आई थी , कभी ओझल नहीं हुई थी , अब शोक में अनुपस्थित हुई है। तो क्या किसी भी वृक्ष के पत्ते या नीम के पत्ते , किसी शोक में विदा होते हैं। पतझर में नहीं। और केदारनाथ 
सिंह लिखने लगते हैं :

झरने लगे नीम के पत्ते बढ़ने लगी उदासी मन की,
उड़ने लगी बुझे खेतों से
झुर-झुर सरसों की रंगीनी,
धूसर धूप हुई मन पर ज्यों —
सुधियों की चादर अनबीनी,
दिन के इस सुनसान पहर में रुक-सी गई प्रगति जीवन की ।
साँस रोक कर खड़े हो गए
लुटे-लुटे-से शीशम उन्मन,
चिलबिल की नंगी बाँहों में —
भरने लगा एक खोयापन,
बड़ी हो गई कटु कानों को 'चुर-मुर' ध्वनि बाँसों के वन की ।
थक कर ठहर गई दुपहरिया,
रुक कर सहम गई चौबाई,
आँखों के इस वीराने में —
और चमकने लगी रुखाई,
प्रान, आ गए दर्दीले दिन, बीत गईं रातें ठिठुरन की ।

पिता का होना , यानी मूंछों का होना। पिता नहीं तो मूछ नहीं। गांव के घर की छत पर एक फ़ोटो।