इतना मजबूर , इतना बेबस , इतना लाचार और इतना लचर मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश ने पहले कभी नहीं देखा । यहां तक कि भाजपा के मुख्य मंत्री रहे रामप्रकाश गुप्ता भी इतना मजबूर नहीं रहे थे । कांग्रेस के श्रीपति मिश्र भी नहीं । जितना कमजोर , लाचार , विवश और हताश मुख्य मंत्री बन कर आज अखिलेश यादव उपस्थित हुए हैं । हां , अगर राजनीति में श्रवण कुमार खोजना हो तो अखिलेश से बड़ा श्रवण कुमार भी नहीं मिलेगा । लेकिन अपनी कैकेयी के आगे इतना लाचार तो दशरथ भी नहीं हुए होंगे , जितना मुलायम सिंह यादव अपनी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के आगे लाचार हुए पड़े हैं । सच यह है कि इस सारी उठापटक में अगर कोई महत्वपूर्ण फैक्टर है तो वह साधना गुप्ता और उन के पुत्र प्रतीक यादव ही हैं । जिन की मीडिया में अभी संकेतों में भी चर्चा नहीं हो रही है । इस लिए कि मीडिया की भी अपनी सीमा है और कि कुत्ता बन चुकी टुकड़खोर मीडिया के पास न अभी वह विजन है , न दृष्टि है और न ही साहस । सो वह चाचा , भतीजा की जमूरेबाजी में उलझी हुई है । यही उस के लिए मुफ़ीद भी है । क्यों कि कयास तो यह भी है कि शिवपाल सिंह यादव के भाजपा में भी जाने का ख़तरा आ गया था । मुलायम की पलटी के मूल में यह भी एक ख़तरा राजनीतिक गलियारों की चर्चा में सुना जा सकता है । मामला कितना संगीन है इस का अंदाज़ा आप इस एक बात से भी लगा सकते हैं कि सरकार में बड़बोले और मनबढ़ नेता आज़म ख़ान इस मसले पर न सिर्फ़ ख़ामोश हैं बल्कि यह कह कर भी किनारे हो गए हैं कि , यह बड़े लोगों की लड़ाई है , और हम छोटे लोग हैं ।
लेकिन गौर कीजिए कि आज जब मुलायम सिंह यादव मीडिया से मुखातिब हुए तो उन की पहली चिंता गायत्री प्रसाद प्रजापति के मंत्रिमंडल में वापसी के ऐलान में समाई दिखी । गायत्री प्रजापति साधना गुप्ता और प्रतीक यादव के प्रतिनिधि रहे हैं , अखिलेश मंत्रिमंडल में । अखिलेश ने अगर गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल से आनन फानन रुखसत किया भी था तो इसी फैक्टर के चलते । रही बात शिवपाल सिंह यादव और अमर सिंह की तो यह लोग भी आज की तारीख़ में साधना गुप्ता रूपी कैकेयी के टूल मात्र हैं । इन की महत्वाकांक्षाएं इन का रथ हैं । असल लड़ाई अब शिवपाल और अखिलेश के बीच की है भी नहीं । असल लड़ाई तो साधना गुप्ता , प्रतीक यादव की अखिलेश के बीच की है । मुलायम सिंह यादव इस समय दशरथ और शाहजहां के मिश्रित तत्व में निबद्ध हो कर लाचार बहादुरशाह ज़फ़र की तरह हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं । आप चाहें तो राज्य सभा सदस्य संजय सेठ की भी याद कर सकते हैं । एक समय संजय सेठ को साधना गुप्ता विधान परिषद में भिजवाना चाहती थीं । अखिलेश ने तब इस का भी विरोध किया था । लेखक , कलाकार कोटे से संजय को भेजे जाने की बात हुई थी । लेकिन तमाम विरोध के बावजूद अखिलेश को संजय सेठ का नाम आख़िरी समय में भेजना पड़ा था । लेकिन नाम भेज कर भी वाया राज्यपाल अखिलेश ने संजय सेठ का पत्ता कटवा दिया था । क्या तो वह बिल्डर हैं , व्यवसाई हैं । लेखक , कलाकार या पत्रकार नहीं । राज्यपाल महीनों रोके रहे यह सूची । अंतत: यह सूची बदलनी पड़ी । बड़ी थू-थू हुई थी । लेकिन किसी दशरथ , किसी कैकेयी के आगे किस की कब चली है भला जो अखिलेश की चलती ? संजय सेठ को जल्दी ही राज्य सभा भेजना पड़ा । राम गोपाल यादव जैसे लफ़्फ़ाज़ लोग भी सिर्फ़ घुटना टेके खड़े रहे ।
अमर सिंह की वापसी , शिवपाल सिंह की महत्वाकांक्षी मुश्किलें, दीपक सिंघल , गायत्री प्रजापति आदि-आदि सब इसी अंत:पुर की दुरभि-संधियों और साज़िशों के परिणाम हैं , कुछ और नहीं । नहीं मुलायम सिंह की वास्तविक स्थिति तो यह है कि अब वह अपने तमाम पुराने मित्रों तक को पहचान नहीं पाते । याद नहीं कर पाते । भूल-भूल जाते हैं । उम्र और बीमारियां उन्हें बहुत लाचार बना चुकी हैं । अंत:पुर उन पर हावी है । और अखिलेश क़दम-दर-क़दम अंत:पुर का विरोध अपनी क्षमता भर कर रहे हैं । लेकिन पिता की इज्ज़त और परिवार की मर्यादा उन्हें विवश किए हुए है । तिस पर चाचा शिवपाल की महत्वाकांक्षाएं उन के पांव की बेड़ी बन गई हैं । एल लाचार , बीमार पिता के अक्षम पुत्र अखिलेश के पास अब एक ही रास्ता रह गया है कि या तो वह राजपाट छोड़ दें या औरंगज़ेब की भूमिका में आ कर मुलायम को शाहजहां बना दें । जो हाल-फ़िलहाल मुमकिन नहीं दीखता । हालां कि सत्ता का , अंत:पुर का और महत्वाकांक्षा का कोई चरित्र , कोई गणित या कोई नैतिकता नहीं होती । सो कब क्या हो जाए , कुछ नहीं कहा जा सकता । मुलायम सिंह यादव , अपनी चुनरी संभालिए । उड़ती जा रही है और बहुत सारे दाग
ले कर उड़ रही है । यह जो भ्रष्टाचार , जातिवाद और अनाचार नाम के तीन
रंगरेज हैं आप के , आप की चुनरी को बहुत बुरी तरह अपने रंग में डुबो चुके
हैं । क्यों कि आप की राजनीति कम से कम इस आगामी चुनाव के लिए तो गई । अखिलेश की सारी मेहनत और बहादुरी पर आप ने पानी फेर दिया है । फिलहाल । मुलायम सिंह ने सारे चाटुकार और जी हुजूर सलाहकार रखे । नतीज़ा सामने है । उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में बसपा और भाजपा को तो वाक ओवर दे ही दिया है , घर की राजनीति में मुगलिया सल्तनत वाली साजिशों भरा घमासान जारी कर दिया है , सो अलग । गोरख पांडेय कभी गाते थे ,समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई / हाथी से आई / घोड़ा से आई ! अपने मुलायम सिंह और उन का कुनबा गा रहा है , समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे जाई / अमर सिंह-शिवपाल से जाई / आज़म खान , सी बी आई , भ्रष्टाचार से जाई / रही-सही यादविज्म , ठेकेदारी और गुंडई ले जाई! चाहे जो हो नेता जी , सरकार और समाजवाद दोनों ही जय हिंद कर दिया आप ने अपनी तानाशाही और यादवीकरण की राजनीति में । जिस ने भी सही बात कही , उसे ठिकाने लगा दिया , सत्ता के अहंकार में । आप इस पारी में नेता जी नहीं , रावण बन कर उपस्थित हुए। राजनीति सिर्फ़ मैनेजमेंट और तिकड़म से अब नहीं चलेगी ।
उत्तर प्रदेश जिसे अब पुत्र प्रदेश भी कहा जाने लगा है के मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने ताज़ा कलह पर कहा था कि यह पारिवारिक झगड़ा नहीं है , सरकार का झगड़ा है । गुड बात है । लेकिन जनाब यह तो बताईए कि जनता को आप के परिवार के झगड़े से भला क्या लेना देना ? लेना-देना तो सरकार ही से है । यह सरकार की छीछालेदर अब बहुत हो गई है । जिस के मुखिया आप हैं । अब तो अखिलेश या शिवपाल भले कहते फिरें नेता जी , नेता जी ! पर परिवार और सरकार में तो फ़िलहाल नेता जी का कोई मतलब अब तो दीखता नहीं है । दाग़ का एक शेर है :
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया झूठी क़सम से आपका ईमान तो गया
तो जैसे भी सही अखिलेश फ़िलहाल मुलायम की बात मान गए हैं । पर इसी ग़ज़ल में मक्ते का शेर है :
होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ 'दाग़' जा चुके अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया
तो नेता जी उर्फ़ मुलायम सिंह यादव आप की तिकड़म और मैनेजमेंट की राजनीति के दिन अब
फना हो गए हैं। क्या यह बात भी अब बताने की रह गई है ? क्या आप को अब यह बात भी
बताने की रह गई है ?