Sunday, 29 May 2016

दूसरी भाषाओं की मुंडेर पर विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाएं


रचनाएं जब अपने पाठकों के पंख पाती हैं तो उड़ती हुई दूसरी भाषाओं की मुंडेर पर भी जा बैठती हैं । उन के आंगन में भी उतर कर उन से दोस्ताना संबंध बनाती हैं । मानवीय सरोकार के सारे यत्न करती हैं । विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाएं भी यही कर रही हैं । सोलह भारतीय और विदेशी भाषाओं में किलकारी मारती विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाएं अब आम हैं । एक छोटे से शहर गोरखपुर में लिखते पढ़ते किसी रचनाकार की रचनाएं दुनिया भर की भाषाओं में अनायास भा जाएं यह आसान नहीं है । लेकिन विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाओं को यह सौभाग्य निरंतर मिला है , मिलता जा रहा है । साहित्य अकादमी का अध्यक्ष रहने की व्यस्तता में भी उन्हों ने अपनी आत्मकथा पूरी की है जिसे नेशनल बुक ट्रस्ट ने अस्ति भवति नाम से प्रकाशित किया है ।

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाओं के अनुवादों का विवरण

गौर तलब है कि विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की रचनाओं के सोलह भारतीय और विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। जिस में अधिकांश कविताएं हैं। कविताओं के अतिरिक्त कुछ लेख, संपादकीयऔर डायरी आदि हैं, जो विभिन्न  भाषाओं की पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित हैं। पुस्तक रूप में प्रकाशित अनुदित कृतियों की संख्या पंद्रह है जो उड़िया, बांग्ला, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलगू व नेपाली में हैं। इन के अतिरिक्त मलयालम, राजस्थानी, कन्न्ड़, पंजाबी और अंग्रजी में शीघ्र प्रकाशित हो रही हैं। ये अनुवाद 1980 से 2015 के बीच के हैं।

इन अनुवादों का भाषावार विवरण निम्नलिखित हैः

 1.अंगरेजी

1980 के पूर्व विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की दो कविताओं का अनुवाद आर एस यादव ने दि सेंचुरी में प्रकाशित किया था। जब कि 1986 में कृष्ण खुल्लर ने मां शीर्षक कविता का अनुवाद  दि आर्ट एंड पोएट्री टुडे में किया। 2007 से 2010 के बीच सुनीता जैन, राहुल, राजेश ­­तथा शोभानारायण ने लगभग 15 कविताओं का अनुवाद लिटिल मैगज़ीन , हिंदी तथा इंडियन लिट्रेचर नामक पत्रिकाओं में प्रकाशित किया। 2011 में कनाडा के श्री अजमेर रोडे ने 10 कविताओं का अनुवाद साऊथ एशियन इनसैम्बिल में प्रकाशित किया। इनमें से एक कविता- इटरनल ऐट लास्ट  को अमेरिकी प्रोफेसर जान ब्रैंडी ने अपनी कक्षा में पढ़ाने के लिए चुना। 2014 में ही प्रसिद्ध मलयाली कवि के सच्चिदानन्द ने चार कविताओं के अनुवाद पोएट्री फ्राम दि सी शोर नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। 2014 में ही कल्पना सिंह चिटनिस ने तीन कविताओं के अनुवाद फ्रेंच पत्रिका लेव्योर लिट्रेइयर में प्रकाशित किया । मुम्बई के पोएट्री पब्लिशिंग ने विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कविताओं का अंगरेजीअनुवाद समथिंग रिमेंस नाम से 2015 मेें प्रकाशित किया है। इसी तरह वर्ष 2012 में सुबोध सरकार ने बांगला और अंगरेजी की द्विभाषी पत्रिका ‘भाषा नगर’’ में 5 कविताओं का अनुवाद किया।


2. रूसी 

1985 के आस पास विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की चार कविताओं के अनुवाद रूसी पत्रिका में प्रकाशित हुए थे। अनिल जनविजय के सौजन्य से 2015 में रूसी में कविता संकलन प्रकाशित हो गया है।

3. नेपाली

-प्रेमचंद पर विश्वनाथ प्रसाद तिवारी के लेख का नेपाली अनुवाद 1985 में दार्जिलिंग से प्रकाशित ‘हाम्रो अस्तित्व’ नामक पत्रिका में छपा। वीरभद्र कार्कीठोली द्वारा लगभग 15 कविताओं के अनुवाद सिक्किम से प्रकाशित पत्रिका ‘प्रक्रिया’ में वर्ष 2013-2014 में तथा शांति थापा द्वारा किए गए 12 कविताओं के अनुवाद गुवाहाटी से प्रकाशित ‘हाम्रो ध्वनि’ 2013 में छपे। जीवन नामदुंग द्वारा किया गया अनुवाद पुस्तकाकार 2014 में प्रकाशित हुआ-‘ विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की चयनित कविताएं ’ शीर्षक से।

4 . राजस्थानी

कुंदन माली द्वारा किए गए 4 कविताओं के अनुवाद ‘जागती जोत’ नामक पत्रिका में 1993 में छपे। कुंदन माली ने राजस्थानी में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कविताओं का संग्रह बीते वर्ष 2015 में प्रकाशित किया  है।

4.  गुजराती

सुशील दलाल ने ‘मांऔर आग’ कविता का अनुवाद ‘कविता’ नामक पत्रिका मे छापा। ‘शब्दऔर कर्म’ लेख जो दस्तावेज  अंक 19 का संपादकीय है, का आलोक गुप्त द्वारा किया गया अनुवाद ‘नया मार्ग’ में प्रकाशित हुआ। दो कविताओं का अनुचाद योसेफ मेकवान ने ‘कवि लोक’ में प्रकाशित किया। ' चुंटेली कविता ’ शीर्षक से आलोक गुप्त ने 2010 में गुजराती में विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का काव्य संकलन प्रकाशित किया। 

6 . मराठी

चंद्रकांत पाटिल ने तीन कविताओं के अनुवाद 1991 में ‘समकालीन हिदीं कविता’ शीर्षक पुस्तक में प्रकाशित किए। 6 कविताओं के अनुवाद मंगेशनारायण शवकाले ने अपनी पत्रिका ‘खेल’ में प्रकाशित किया। ‘पुस्तकें’ कविता का अनुवाद चंद्रकांत पाटील ने ‘ वांगमय वृत्त ’ में किया। दो कविताओं का अनुवाद आसावरी काकड़े ने ‘परिवर्तनाचा वाटसह’ में किया। 2014 में आसावरी काकड़े द्वारा अनुदित संग्रह प्रकाशित हुआ। ‘तरीही काही बाकी राहील’ नाम से।

7. उड़िया

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की 40 कविताओ का संग्रह विजयकुमार मोहंती ने 2010 के पहले प्रकाशित किया। इतनी ही कविताओें का दूसरा संग्रह अरूण कुमार होता  ने 2010 में प्रकाशित किया। 2012 में विजयकुमार मोहंती ने ‘तथापि कीछी रहि जीबा’ नाम से एक संकलन निकाला। इसी नाम से एक संकलन श्रीरोद परिडा ने प्रकाशित किया। श्रीनिवास उद्गीता ने विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की दस कविताओ का उड़िया में अनुवाद किया। रंजीता नायक ने भी कुछ कविताओं का अनुवाद किया। उड़िया में अनेक पत्रिकओं जैसे ‘संवाद’, ‘गोकर्णिका’, ‘जीवन रंग’, ‘शतभिषा’ आदि में कविताओं के उड़िया अनुवाद छपे।

8.बांग्ला

-श्री कालीपद दास ने 1992 में दो कविताओं का अनुवाद ‘अनुवाद’ पत्रिका  में प्रकाशित किया। सोमा बंधोपाध्याय ने ‘निर्वाचित’ कविता नाम से एक संकलन 2014  में प्रकाशित किया।

9. असमिया

उत्पल दत्त ने दो कविताओं का अनुवाद 2014 में किया। मालविका शर्मा ने ‘गरिपसी’ पत्रिका में दो कविताओं का अनुवाद 2014 में किया। हिरन वैश्य ने ‘असमिया प्रतिदिन’ में कुछ कविताओं का अनुवाद 2014 में किया।
 
10. पंजाबी

लगभग 25 कविताओं के अनुवाद अमरजीत कौंके, रामसिंह चाहत, फूलचंद मानव और परमिंदर जीत द्वारा किए गए जो ‘मेहरम’, ‘सिरनावा’,‘अर्थ’,‘भाषा’,‘नवां जमाना’,‘प्रतिमान’, और अक्खर , नामक पत्रिकाओं में 1979 से 2000 के बीच प्रकाशित हुए। ‘मेहरम’ नामक पत्रिका मेें विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कहानी ‘डायरी’ का अनुवाद 2012 में छपा।

11. उर्दू

‘आरा मशीन’ शीर्षक’ कविता का अनुवाद 1994 में ‘ऐनाने उर्दू’ नामक पत्रिका में छपा।

12. संस्कृत

 विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की चार कविताओं का अनुवाद राधावल्लभ त्रिपाठी ने किया जो ‘संस्कृत प्रतिभा’  पत्रिका  में प्रकाशित हुआ।

13. तमिल

प्रो. पदमावती ने 2014 में  विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कविताओं का अनूदित संकलन चेन्नई से प्रकाशित किया।

14. तेलगु

पिंडपर्ति वेंकट रामशास्त्री ने 1992 में ‘भाषा’ पत्रिका  में 5 कविताओं का अनुवाद किया। आर. शांता सुंदरी ने ‘कवि वाकु’ नाम से  विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की कविताओं का अनूदित संकलन प्रकाशित किया। ‘डायरी’ कहानी का अनुवाद भी तेलगु में हुआ। 
  
15. मलयालम

- ए. अरविंदाक्ष ने 20 कविताओं का अनुवाद ‘साहित्य लोकम’, ‘केरल युवता’, ‘संक्ष्कारिता समिति मासिक’, में 1990 के आस पास किया। उन के द्वारा अनुदित संग्रह भी वर्ष २०१५ में प्रकाशित हुआ है।

16. कन्नड़

‘डायरी’ कहानी का अनुवाद 1985 के पहले हुआ। सिद्धलिंग पट्टन शेट्टी ने 15 कविताओं का अनुवाद किया। इस वर्ष 2015 में शेट्टी द्वारा अनुदित  विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का कविता संग्रह प्रकाशित हुआ हैै।         

Saturday, 21 May 2016

राजनीति के आगे चलने वाली साहित्य की वह मशाल नहीं मिली


 ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

प्रेमचंद को पढ़ कर  खोजा बहुत पर फिर वह मिसाल नहीं मिली
राजनीति के आगे चलने वाली साहित्य की वह मशाल नहीं मिली

कोई अफ़सर था कोई अफसर की बीवी कोई माफ़िया संपादक
कोई पुरस्कृत तलाश किया बहुत लेकिन कोई रचना नहीं  मिली

किसी ने तजवीज दी कि आलोचना पढ़िए कोई तो मिल ही जाएगा
माफ़िया मीडियाकर लफ्फाज सब मिले पर आलोचना नहीं  मिली

खेमे मिले खिलौने मिले विचारधारा की फांस जुगाड़ और साजिशें
लेकिन इन को पढ़ने खरीदने और जानने वाली जनता नहीं मिली

संबंधों के महीन धागों में बुनी किताबें कैद हैं लाईब्रेरियों में लेकिन
मां को देखते ही बच्चा तुरंत हंस दे ऐसी निश्छल ममता नहीं मिली

रचनाओं पे ओहदेदार थे , ओहदे के साथ यश:प्रार्थी कामनाएं भी
एक सांस पर मर मिटे इन की रचना पर जो वह ललना नहीं मिली

[ 22 मई , 2016 ]

Wednesday, 11 May 2016

सुखद यह कि मन की सूखी नदी में धार ले कर लौटी है

फ़ोटो : गौतम चटर्जी
 
ग़ज़ल 
 
जो चिरई उड़ गई थी बादलों में फिर धरती पर लौटी है 
सुखद यह कि मन की सूखी नदी में धार ले कर लौटी है  
 
दूब पर जैसे गिरती है ओस धरती पर बारिश की बूंद जैसे
प्यार की नदी में बहती संबंधों की एक नाव ले कर लौटी है 
 
हाथी पर बैठ कर घूमी जंगल में इधर उधर बहुत चिरई 
सपनों में नहा पुरानी अलमस्त अंगड़ाई ले कर लौटी है 
 
परायेपन की ठोकर में बदल जाती है दुनिया बड़े बड़ों की
बालम चिरई की भी बदली प्यार की बरसात ले कर लौटी है 
 
पंख सही सलामत हैं उड़ने की चाह भी वैसी ही निर्मल 
पर अब की वह धरती पर जीने की चाह ले कर लौटी है 
 
पुल नदी में ही नहीं बनता संबंधों में कहीं ज़्यादा बनता है 
पुल के कई सारे बहाने और डिजाईन साथ ले कर लौटी है 
  
आकाश निर्मल है सुंदर है सब कुछ सुहाना भी है लेकिन 
अकेलेपन की आंच में झुलसने की कहानी ले कर लौटी है 
 
किस्से बहुत हैं आकाश की तनहाई के शोक गीत भी हैं
हक़ीकत में तो चिरई आकाश का अंगार ले कर लौटी है 
[ 11 मई , 2016 ]

Monday, 9 May 2016

अब की आई ऐसी गरमी कि बालम चिरई भाग गई

फ़ोटो : गौतम चटर्जी


ग़ज़ल 

मन में फुदक फुदक फुदकने वाली चिरई भाग गई 
अब की आई ऐसी गरमी कि बालम चिरई भाग गई 

जाती रहती थी पहले भी इस आंगन से उस आंगन
लेकिन अब की आंगन छोड़ कर जंगल भाग गई 

शिमला मसूरी वह गई नहीं सीधे पहुंची जंगल में 
जंगल में वह ऐसा झगड़ी डर कर हथिनी भाग गई 

जंगल ज़मीन से लड़ती वह सब से आगे निकल गई 
निभी नहीं कहीं किसी से तो वह बादल में भाग गई 

वह घूम रही थी मन में जैसे शहर घूमने आया हो शेर
और शेर से डर कर दिल के गांव से बिजली भाग गई

ख़बर एक दिलचस्प चली न्यूज़ चैनल के बाज़ार में
कल एक देवदास के गांव से उस की पारो भाग गई 

[ 9 मई , 2016 ]

Saturday, 7 May 2016

संबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूं



ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

अभिनय हो नहीं पाता सो सीन से निकल लेता हूं
संबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूं

दिख जाते हैं अब भी कभी कभार वह चौराहे पर 
सिगरेट सुलगाता हूं सुलगता हूं और चल देता हूं

जो मिलते कम जलाते ज़्यादा उन से दूरी भली
होता मुश्किल है लेकिन फ़ैसला अटल लेता हूं

सपना मुहब्बत मरना जीना गगन बिहारी बातें हैं
बहुत प्यार आता है तो दर्पण देख मचल लेता हूं

मौसम उदासी मूड तनहाई और तंज में डूबी बात 
याद करता हूं बेसबब बिना वजह उछल लेता हूं

आकाश उड़ान गुमान सब दुःख देने के लिए बने 
 कहना सुनना बेमानी बर्फ़ की तरह गल लेता हूं

बहुत प्यार कर लेने के बाद पर्वत बन जाती है वह
मुश्किल हो जाती जब बहुत समंदर में ढल लेता हूं

जल जंगल ज़मीन सब अपने हैं बस एक वह नहीं 
एक सपना बुनता हूं स्वेटर की तरह पहन लेता हूं

घुटन बहुत हो जाती ज़िंदगी में तो कभी रोता नहीं
मन की खिड़की सारी बहुत प्यार से खोल लेता हूं 

जैसे वृक्ष में कोंपल जैसे दूब में दूध जैसे नभ में सूर्य  
तुम्हारी श्रद्धा में डूब अपनी अंजुरी भर जल लेता हूं

[ 7 मई , 2016 ]

Monday, 2 May 2016

लेकिन बोल गया सेक्स का सागर हूं


फ़ोटो : गौतम चटर्जी


ग़ज़ल 

कहना तो चाहता था प्रेम का सागर हूं
लेकिन बोल गया सेक्स का सागर हूं

सेक्स की उम्र कहां होती प्रेम की अनंत 
इस अनंत में डूबा प्रेम का सुखसागर हूं

सच उतर जाता जुबां पर मानता नहीं 
प्रेम के सावन का बौछार भरा बादर हूं

आग उस में बहुत है पर आंच मीठी 
पनघट प्रेम का मैं नेह भरा गागर हूं

दुनिया ख़िलाफ़ हो जाती पर वह साथ
उस के दिल के दर्पण में बैठा आदर हूं

प्रेम में झूठ चल पाता नहीं किसी सूरत 
उस की दिल की नगरी का नागर हूं

ख़रीदने बेचने में कभी उलझा ही नहीं 
बाज़ार से ग़ायब रहने वाला सौदागर हूं

कोई क्या करेगा कभी पर्दाफ़ाश मेरा 
सब के सामने सर्वदा सहर्ष उजागर हूं


[ 2 मई , 2016 ]