एक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का तीर्थराज प्रयाग के संगम में आज डुबकी मार कर स्नान , पूजा , अर्चना और आरती के बाद कुंभ के स्वच्छता कर्मियों का पांव परात में पखार, कर पूरी श्रद्धा से लोटे से जल गिरा कर पूरी विनम्रता , तन्मयता और श्रद्धा भाव से धोना, और फिर कपड़े से पोंछना । उन्हें शाल ओढ़ा कर सम्मानित करना । शबरी के बेर की मिठास याद आ गई। महात्मा गांधी की याद आ गई। जिन का कोई जोड़ नहीं है । फिर भी अपने पूर्वाग्रहवश आप इसे चुनावी नौटंकी मान लेना चाहते हैं , वोट की ज़रूरत मान लेना चाहते हैं , राजनीति देख लेना चाहते हैं , मोदी भक्ति करार देना चाहते हैं , पाखंड बता देना चाहते हैं तो यह आप का अपना विवेक है । इस पर मुझे कुछ नहीं कहना । लेकिन कभी अपने घर या दफ्तर के किसी स्वच्छकार , किसी ड्राइवर , किसी काम वाली बाई , किसी माली , किसी प्लंबर , किसी बिजली वाले , किसी बढ़ई , किसी मिस्त्री या किसी अन्य सहयोगी के पांव , इसी तरह परात में पखार कर , इसी तन्मयता और विनम्रता से धो कर , कपड़े से पोंछ कर अपना टेस्ट दो-चार बार या एक बार ही सही , ज़रूर कर लीजिएगा। शायद बात कुछ समझ में आए। अपने अहंकार , अपने दर्प , अपने सामान्य और विनम्र होने का टेस्ट भी शायद हो जाएगा । ख़ुद अपनी हैसियत का भी पता चल जाएगा। दलितों के यहां भोजन के तमाम लोगों के अनगिन दृश्य हैं , हमारे सामने । लेकिन स्वछ्कारों का एक प्रधान मंत्री द्वारा पांव पखारने का ऐसा दुर्लभ संगम , ऐसा अभिनव दृश्य तो पहली ही बार । सोचिए कि ज़्यादातर लोग संगम नहा कर पाप धो कर पुण्य कमाने जाते हैं। लेकिन कुंभ में अस्पृश्य समझे जाने वाले स्वच्छकारों को कर्मयोगी बताते हुए उन का पांव भी एक प्रधान मंत्री धो सकता है , यह पुण्य भी कमाया जा सकता है , ऐसा पहली बार जाना और देखा है ।
जिन भी लोगों को लगता है कि नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज कुंभ में संगम स्नान के बाद परात में पखार कर स्वछ्कारों के पांव चुनाव और वोट के मद्देनज़र धोए हैं , उन सभी बीमार लोगों का यहां स्वागत है। उन से सादर निवेदन है कि मोदी की ऐसी तैसी करते हुए एक दो फ़ोटो या वीडियो अपने घर का बाथरूम साफ़ करने वाले स्वच्छकार या घर के सामने सफाई करने वाले स्वच्छकार , काम वाली बाई , ड्राइवर आदि का ऐसे ही पांव धोते हुए अपनी वीडियो या फ़ोटो यहां शेयर करें । या फिर यह हुआं-हुआं की नौटंकी बंद करें।
राहुल गांधी कभी कहते थे कि लोग लड़की छेड़ने के लिए मंदिर जाते हैं । फिर देखा गया कि राहुल गांधी जनेऊ पहन कर मंदिर-मंदिर जाने लगे। धुआंधार । अब फिर उन्हें एक नई ज़िम्मेदारी मिल गई है । घूम-घूम कर स्वच्छकारों का पांव धोने की। मुझे लगता है कि जनेऊधारी राहुल गांधी स्वच्छकारों का पांव धोने का रिकार्ड ज़रूर गिनीज बुक में अपने नाम दर्ज करवा कर नरेंद्र मोदी को पछाड़ देंगे ।
जैसे पाकिस्तानी चैनल के एंकर भारत से टमाटर भेजना बंद करने पर चीख़-चीख़ कर बता रहे हैं कि भारत को मालूम नहीं है कि पाकिस्तान ऐटम बम वाला देश है । ठीक वैसे ही भारत में नरेंद्र मोदी द्वारा स्वच्छता कर्मियों के पांव पखारने पर नरेंद्र मोदी से नफरत करने वाले बता रहे हैं कि आप को मालूम नहीं है कि मोदी यह सारी नौटंकी चुनाव को देखते हुए वोट के लिए कर रहा है । अरे जनाबे आली कौन नहीं जानता कि मोदी राजनीति में चुनाव ही जीतने के लिए आया है , पूजा-पाठ करने नहीं । ठीक वैसे ही जैसे जब कोई राहुल गांधी जनेऊ पहन कर पूजा-पाठ करता है तो पूजा-पाठ नहीं कर रहा होता है , चुनाव के मद्दे नज़र वोट पर ही गिद्ध दृष्टि रहती है उस की , पूजा-पाठ पर नहीं । यहां तो शहीदों के प्रति हर किसी की सदभावना भी अब चुनाव की भेंट चढ़ गई है ।
लेकिन मैं फिर दुहराना चाहता हूं कि कोई अपने घर या घर के सामने सफाई करने वाले अस्पृश्य स्वच्छकार का पांव पखार कर एक फ़ोटो तो यहां फेसबुक पर पोस्ट करने का हौसला तो दिखाए। पर जानता हूं कि भिखारी को भीख देने की फोटो तो लोग छाती फुला कर खिंचवा कर पोस्ट कर सकते हैं , मोदी से नफ़रत में भस्म हो कर जद्द बद्द तो बक सकते हैं , सैकड़ो सवाल उठा सकते हैं , आरोप दर आरोप लगा सकते हैं , पर अपने यहां दैनंदिन काम करने वाले स्वच्छता कर्मी का चरण पखारते हुए एक फ़ोटो सोशल मीडिया पर नहीं डाल सकते । क्यों कि तमाम दरियादिली के बावजूद आप उसे अस्पृश्य मानते हैं ।
बहुत कम लोग जानते हैं कि नरेंद्र मोदी एक समय दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में बहुत दिनों तक , बल्कि कुछ साल , बीसियों बाथरूम रोज-ब-रोज धोते रहे हैं । तब वह भाजपा के संगठन मंत्री होते थे । उन दिनों नरेंद्र मोदी और गोविंदाचार्य में प्रतिद्वंद्विता रहती थी कि कौन ज़्यादा बाथरूम धोता है। गोविंदाचार्य भी तब संगठन मंत्री हुआ करते थे । दोनों ही पार्टी कार्यालय में रहते थे । दोनों ही सुबह लोगों के उठने के पहले तेज़ाब ले कर बाथरूम रगड़-रगड़ कर धोने में लग जाते थे । इस लिए नरेंद्र मोदी स्वच्छता कर्मी की वेदना भी जानते हैं । यह वही वेदना है जो स्वच्छता कर्मियों का भक्ति-भाव से चरण पखारने में उन्हें संलग्न कर देती हैं । जिसे आप अपनी नफ़रत और निंदा में डूब कर चुनावी तराजू में तौल देते हैं । यह आप की महिमा है , पर वह नरेंद्र मोदी की संवेदना है । लेकिन आप तो टमाटर न मिलने पर पाकिस्तानी चैनलों की तरह यह बताने को अभिशप्त हैं कि हमारे पास ऐटम बम है ।
प्रयाग के कुंभ में नरेंद्र मोदी द्वारा इस घटना को अस्पृश्यता की नज़र से देखेंगे तो पाएंगे कि यह बड़ी घटना है । याद यह भी रखा जाना चाहिए कि यह गांधी युग नहीं , अहंकार युग है । इस अहंकार युग में ऐसी घटना मेरी राय में बड़ी घटना है । रही बात सिर पर मैला ढोने की तो मुगल काल से चली आ रही इस कलंकी परंपरा का बहुत कुछ हल निकल आया है । नाम मात्र का ही रह गया है , यह कलंक । दिनों दिन बढ़ते शौचालय इस के गवाह हैं। तमाम असहमतियों के बावजूद आप यह तो स्वीकार करेंगे ही कि इस प्रधान मंत्री के कार्यकाल में रिकार्ड शौचालय बने हैं। गांव-गांव बने हैं।
स्वच्छता कर्मियों के जीवन स्तर में बदलाव आया है। उन के भीतर स्वाभिमान जगा है , ऐसा मैं देख पा रहा हूं । इस बात का अंदाज़ा आप इस एक बात से लगा सकते हैं कि जब स्वच्च्ताकर्मियों के लिए वांट निकलती है तो पढ़े-लिखे ब्राह्मण सहित तमाम सवर्ण भी इस काम के लिए संविदा पर भी अप्लाई करने लगे हैं । नाले में घुस कर सफाई करते हुए टेस्ट देते हैं ।स्वच्छकार इस बात का खुला विरोध करते हैं । बेरोजगारी का दंश भी है इस में ।
आप को बताऊं कि जिस कालोनी में मैं रहता हूं , आस-पास बहुत से सरकारी अफ़सर रहते हैं। जिन में कुछ दलित अफ़सर भी हैं। तमाम अफसरों सहित , इन दलित अफसरों के यहां भी कुछ कर्मचारी उन के घर पर चौबीसों घंटे ड्यूटी करते हैं लेकिन यह कर्मचारी उन का कोई भी बाथरूम नहीं शेयर कर सकते , कभी भी । क्यों कि वह नौकर हैं । अब चौबीसों घंटे तैनात रहने वाले यह नौकर नित्य क्रिया के लिए कहां जाते हैं , इन अफसरों को इस से कोई मतलब नहीं । ऐसे में एक प्रधान मंत्री अगर अस्पृश्य कहे जाने वाले स्वच्छता कर्मियों का चरण पखारता है तो इसे सकारात्मक ढंग से देखा जाना चाहिए। चुनावी नौटंकी के तहत भी हुई हो यह घटना , तब भी।
प्रयाग के कुंभ में नरेंद्र मोदी द्वारा इस घटना को अस्पृश्यता की नज़र से देखेंगे तो पाएंगे कि यह बड़ी घटना है । याद यह भी रखा जाना चाहिए कि यह गांधी युग नहीं , अहंकार युग है । इस अहंकार युग में ऐसी घटना मेरी राय में बड़ी घटना है । रही बात सिर पर मैला ढोने की तो मुगल काल से चली आ रही इस कलंकी परंपरा का बहुत कुछ हल निकल आया है । नाम मात्र का ही रह गया है , यह कलंक । दिनों दिन बढ़ते शौचालय इस के गवाह हैं। तमाम असहमतियों के बावजूद आप यह तो स्वीकार करेंगे ही कि इस प्रधान मंत्री के कार्यकाल में रिकार्ड शौचालय बने हैं। गांव-गांव बने हैं।
स्वच्छता कर्मियों के जीवन स्तर में बदलाव आया है। उन के भीतर स्वाभिमान जगा है , ऐसा मैं देख पा रहा हूं । इस बात का अंदाज़ा आप इस एक बात से लगा सकते हैं कि जब स्वच्च्ताकर्मियों के लिए वांट निकलती है तो पढ़े-लिखे ब्राह्मण सहित तमाम सवर्ण भी इस काम के लिए संविदा पर भी अप्लाई करने लगे हैं । नाले में घुस कर सफाई करते हुए टेस्ट देते हैं ।स्वच्छकार इस बात का खुला विरोध करते हैं । बेरोजगारी का दंश भी है इस में ।
आप को बताऊं कि जिस कालोनी में मैं रहता हूं , आस-पास बहुत से सरकारी अफ़सर रहते हैं। जिन में कुछ दलित अफ़सर भी हैं। तमाम अफसरों सहित , इन दलित अफसरों के यहां भी कुछ कर्मचारी उन के घर पर चौबीसों घंटे ड्यूटी करते हैं लेकिन यह कर्मचारी उन का कोई भी बाथरूम नहीं शेयर कर सकते , कभी भी । क्यों कि वह नौकर हैं । अब चौबीसों घंटे तैनात रहने वाले यह नौकर नित्य क्रिया के लिए कहां जाते हैं , इन अफसरों को इस से कोई मतलब नहीं । ऐसे में एक प्रधान मंत्री अगर अस्पृश्य कहे जाने वाले स्वच्छता कर्मियों का चरण पखारता है तो इसे सकारात्मक ढंग से देखा जाना चाहिए। चुनावी नौटंकी के तहत भी हुई हो यह घटना , तब भी।