Saturday, 20 July 2024

अद्भुत प्रेमोत्सव-- विपश्यना में प्रेम

कुमार तरल

" ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ' पंक्ति यूँ ही नहीं लिख गई, यह विधिवत मंथन के बाद सृजित हुई है। ऋषि , मुनि, तपस्वी , ज्ञानी-विज्ञानी , विद्वान यहां तक कि देवी देवता भी कभी प्रेम से विरत नहीं रहे। " लव इज गाड ' कह कर जगत नियंता को भी प्रेम के अटूट बन्धन में बांध दिया गया है। हमारे चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में भी प्रेम की सुगंध को नकारा नहीं जा सकता। अलौकिक साधना- पथ पर प्रेम की पावन परिभाषा गढ़ते हुये श्री दयानंद पांडेय जी ने एक अनमोल उपन्यास का सृजन किया है।

समस्त विचारों व बंधनों से मुक्ति की साधना है विपश्यना, स्वयं के अंदर विशेष रूप से झांकने का योग। यह बुद्ध धम्म की आधारशिला भी है। इस से जीवनकाल में ही निर्वाण संभव है। भगवान बुद्ध को भी बुद्धत्व विपश्यना से ही प्राप्त हुआ था। यह मूलतः वैज्ञानिक ध्यान विधि है। साधना एवं समाधि का सुख-संतुष्टि भाव इस के चरमोत्कर्ष में निहित है। इसकी अनुभूति अनिर्वचनीय है।

उपन्यास किसी कहानी का विस्तार है। पांडेय जी ने बड़ी सूझबूझ एवं धैर्य के साथ इस कहानी के विस्तृत स्वरूप को चित्रित किया है। भगवतीचरण वर्मा की चित्रलेखा  तथा ओशो की संभोग से समाधि की ओर  मैं ने भी पढ़ी है। दोनों कृतियाँ डूबकर पढ़ी जाने के लिए हैं। विपश्यना में प्रेम का सम्मोहन भी पाठकों को बांधे रखने में पूर्ण समर्थ है।

योग और आध्यात्म-पथ के युवक एवं युवतियां ,आश्रमों, मठों , व योग शिविरों में कुछ दिन व्यतीत करना पसंद  करते हैं। ऐसे ही एक योग शिविर में विनय व एक रशियन युवती का आगमन होता है। विनय योग तथा युवती अपने अस्वस्थ पति के स्वास्थ्य लाभ हेतु आती है। युवती विनय को भा जाती है। प्रेम के वशीभूत हो कर वह युवती का काल्पनिक नाम मल्लिका रख देता है जबकि युवती का नाम दारिया था। दोनों परस्पर आकर्षित होकर एक शाम शिविर के एक झुरमुट में दो शरीर एक जान हो जाते हैं। शिविर समाप्ति के बाद सभी साधक अपने-अपने घर चले जाते हैं। दारिया विनय के बच्चे की मां बन जाती है। दारिया फोन पर यह खुशखबरी कृतज्ञ भाव से निःसंकोच विनय को देती है। यह भाव अटूट बंधन का प्रतीक है।

विपश्यना में प्रेम पढ़ कर मैं आश्चर्यचकित हूं कि पांडेय जी ने इस कहानी को उपन्यास का रूप देने के लिए कैसे विस्तृत ज़मीन तैयार की होगी। कैसे इस ज़मीन पर रंग-बिरंगे फूल खिला कर मादक सुगंध में एक युवा जोड़े को सृजन का भार सौंप दिया होगा, वह भी पवित्रतम योग शिविर में। पांडेय जी का यह तानाबाना पूरी सूझबूझ , देश ,काल, परिस्थिति, अवस्था व व्यवस्था के अनुसार ही संपूर्ण है। अन्य पाठकों की तरह मेरा भी मानना है कि पांडेय  जी अपने संकल्पित सृजन के लिए ऐसी उर्वर जमीन तलाश ही लेते हैं। इनकी तलाश अनवरत जारी है , जारी रहेगी।

दारिया का विनय को यह सूचित करना कि वह उसके बच्चे की मां बन गई है , निश्छल प्रेम की पराकाष्ठा का अनूठा उदाहरण है। अगर वह चाहती तो यह बात छिपा भी सकती थी। इस से पाठकों को न तो विनय से ईर्ष्या होती है, न ही दारिया से नफ़रत। इस स्थिति की अनुभूति, सहानुभूति को जन्म देती है। अतृप्त धरा बादलों की घनघोर बरसात से ही तो तृप्त होती है। यह सृष्टि से जुड़ी हुई समस्या भी है साथ ही समाधान भी।

उपन्यास में कई द्वंद्व हैं, कई प्रश्न हैं, जिस का उत्तर खोजने की जिम्मेदारी पांडेय जी ने पाठकों पर डाल दी है। इस में साधना के साथ ही प्रेम अपनी सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाने में सफल रहा है। विनय और दारिया का मिलन सिर्फ वासना के इर्द गिर्द न हो कर समर्पित निर्मलता से आलोकित हो कर प्रेमोत्सव बन जाता है। यह रोमांच सुखद है।इस प्रणयन का उद्देश्य भी शायद यही भावभूमि संजोए हुए है।

अब तक कई कृतियों के प्रणेता, मंजे हुये मुखर पत्रकार होने के नाते पांडेय जी की भाषा शैली पर किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी उचित नहीं। पांडेय जी की निर्भीक कलम किसी आलोचना की परवाह नहीं करती। पांडेय जी गंभीर व्यक्तित्व के साहित्यकार, पत्रकार हैं, अतः लेखन में गंभीरता व गहराई स्वाभाविक है।

विपश्यना में प्रेम लीक से हट कर अप्रतिम उपन्यास है। इस का आवरण भी कृति की भावभूमि के अनुरूप है। आशा है पाण्डेय जी का यह उपन्यास सुधी पाठकों के लिये अविस्मरणीय होगा।


विपश्यना में प्रेम उपन्यास पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक कीजिए 


विपश्यना में विलाप 


समीक्ष्य पुस्तक :



विपश्यना में प्रेम 

लेखक : दयानंद पांडेय 

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 

4695 , 21 - ए , दरियागंज , नई दिल्ली - 110002 

आवरण पेंटिंग : अवधेश मिश्र 

हार्ड बाऊंड : 499 रुपए 

पेपरबैक : 299 रुपए 

पृष्ठ : 106 

अमेज़न (भारत)
हार्डकवर : https://amzn.eu/d/g20hNDl


     

     

               





      

उन को मुस्लिम वोट चाहिए , इन को हिंदू ग्राहक

दयानंद पांडेय 

भारतीय राजनीति भी अजीब है। राजनीतिक पार्टियों को जातीय जनगणना चाहिए। आरक्षण चाहिए। मुस्लिम वोट चाहिए। मुस्लिम को हिंदू नेता नहीं पर बहुसंख्यक हिंदू ग्राहक चाहिए। नहीं व्यापार बैठ जाएगा। हलाल सर्टिफिकेट का जूनून भी चाहिए। गाय का मांस भी चाहिए। खाद्य सामग्री पर थूकने आदि का अधिकार भी चाहिए। काफिर का कंसेप्ट भी। यह तो वही हुआ कि चीन का बहिष्कार भी चाहिए और सस्ता चीनी सामान भी। 

अपनी दुकान पर प्रोप्राइटर का नाम क़ानूनी तौर पर लिख देने में नुकसान क्या है। अगर आप किसी का धर्म भ्रष्ट करने का ठेका लेना चाहते हैं तो कोई समाज कैसे इस की इज़ाज़त दे देगा। आप को अगर झटके से परहेज़ की इज़ाज़त है तो किसी को अपनी धर्म के मुताबिक़ , अपने त्यौहार पर अपनी पसंद की जगह से खाने-पीने का अधिकार भी क्यों नहीं होना चाहिए।

लेकिन क्या कीजिएगा कि हम ऐसे समाज में रहते हैं जिस में लोगों को आक्रमणकारी मुगलों , ब्रिटिशर्स से ख़तरा नहीं दिखा , ब्राह्मणवाद से ख़तरा बहुत दिखता है। हिंदू-मुसलमान की अजीब रेखागणित है। लेकिन सेक्यूलरिज्म के फ्राड और मुस्लिम तुष्टिकरण की इंतिहा है यह। दुकान पर नाम लिखने का क़ानून पुराना है। भाजपा का बनाया क़ानून नहीं है। भाजपा के योगी ने कांवड़ियों के तप , नियम , व्रत की निष्ठा और आस्था को बचाए रखने के लिए इस क़ानून की याद दिला दी है बस। अगर यह क़ानून पुराना नहीं होता तो घड़ियाली आंसू बहाने वाले यह लोग अब तक किसी अदालत का दरवाज़ा खटखटा चुके होते। 

बहुत से लोग दिल्ली में करीम होटल के मुरीद हैं। तो क्या करीम लिख देने से उस का होटल नहीं चलता ? हबीब हेयर ड्रेसर लिख देने से क्या हबीब का कारोबार नहीं चलता ? लखनऊ में टूंडे-कबाब की धूम रहती है। हलाल लिखने से तमाम प्रोडक्ट बिकते हैं। नाम की चीटिंग ग़लत है। इन दिनों तमाम बांग्लादेशी , रोहिंग्या तो साधू-संत के वेश में भी घूमते मिलते हैं। जहां-तहां पकड़े जा रहे हैं। अकसर। तो इन को भी अपना नाम छुपाने की इज़ाज़त दे देनी चाहिए। 



Friday, 19 July 2024

हत्या तो मोदी की ही नहीं राहुल गांधी की भी हो सकती है

दयानंद पांडेय 

चहुं ओर नरेंद्र मोदी की हत्या की आशंका की बहार है। क्या चैनल , क्या सोशल मीडिया , यह मीडिया , वह मीडिया , यह लोग , वह लोग। अरे भाई राहुल गांधी की भी तो हत्या हो सकती है। इस पर चर्चा क्यों नहीं हो रही। आख़िर नरेंद्र मोदी से कम नफ़रत नहीं करते लोग राहुल गांधी से। बल्कि राहुल गांधी की नफ़रत और उन से नफ़रत करने वालों का स्कोर ज़्यादा बड़ा है। मोहब्बत की दुकान में नफ़रत की डिप्लोमेसी सर्वविदित है। राहुल के दुश्मनों में खटाखट योजना से निराश लोग तो मुस्लिम समाज में ही बहुत हैं। इधर सनातनी भी बहुत नाराज हैं। लेकिन सनातनी हिंसक नहीं होते। सो ख़तरा यहां से नहीं है। सिर्फ़ गुस्सा है। हां , जिन नक्सलियों ने राहुल गांधी से तमाम उम्मीदें पाल रखी हैं , उन्हें पूरा होते न देख नक्सली हिंसा का शिकार भी हो सकते हैं राहुल गांधी। नक्सली जिस से प्रेम करते हैं , लक्ष्य प्राप्त न होने पर उस की हत्या भी कर देते हैं। यह उन की परंपरा में है। स्वभाव में है। अनेक उदाहरण हैं इस के। मार्क्स , लेनिन , स्टालिन से लगायत माओ और शी जिपिंग तक का यही क़िस्सा है। स्टालिन हिटलर से भी बड़ा तानाशाह था। हिटलर का दोस्त भी था स्टालिन। स्टालिन की नफ़रत , हिंसा और हत्या के अनेक क़िस्से हैं। लेकिन वामपंथियों ने बड़ी चालाकी से स्टालिन की जगह हिटलर का नाम आगे बढ़ा दिया। बहुतेरे लोग हिटलर को तो जानते हैं , स्टालिन को नहीं। स्टालिन द्वारा हिंसा और हत्या की कहानियां लोग नहीं जानते। स्टालिन की नफ़रत की कहानियां लोग नहीं जानते। स्टालिन अपने लोगों की हत्या भी बड़ी निर्ममता से करवा देता था। दुनिया में कहीं भी वह किसी की हत्या करवा देता था। अपनी नफ़रत का शिकार बना लेता था। 

राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी की जब हत्या हुई तो वह भी नफ़रत में ही हुई थी। लिट्टे के लोग बहुत नाराज थे राजीव गांधी से। एक बार बतौर प्रधान मंत्री राजीव गांधी श्रीलंका गए तो गार्ड आफ आनर के दौरान एक श्रीलंकाई सैनिक ने राजीव गांधी पर अपनी सलामी देने वाली बंदूक़ की बट से अचानक हमला कर दिया। वह तो राजीव गांधी के पीछे चलने वाले सैनिक ने उन्हें लपक कर बचा लिया। हमला करने वाला सैनिक तुरंत गिरफ़्तार हो गया। बाद में उस सैनिक ने राजीव गांधी से अपनी नफ़रत का इज़हार करते हुए कहा कि अगर मेरे हाथ में झाड़ू भी होता तो मैं राजीव गांधी को झाड़ू से मार देता। तमिल आंदोलन को कुचलने के लिए श्रीलंका में भारतीय सेना भेजने के कारण तमिल लोग राजीव गांधी से बेहद नाराज थे। दशकों बाद अभी भी उन की नाराजगी गई नहीं है। 

इंदिरा गांधी की हत्या भी नफ़रत के ही कारण हुई थी। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सैनिक कार्रवाई से सिख समुदाय इतना नाराज था कि इंदिरा गांधी के घर में तैनात अंगरक्षकों ने जो कि सिख थे , इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री बना कर सिखों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की कांग्रेस ने। पर सिखों में इंदिरा और उन की कांग्रेस के प्रति गुस्सा कभी गया नहीं। अलग बात है कि इन दिनों सिखों का गुस्सा और नफ़रत नरेंद्र मोदी के प्रति कहीं ज़्यादा है। इंदिरा से भी ज़्यादा। बहुत ज़्यादा। 

भारत में राजनीतिज्ञों की हत्या अधिकतर नफ़रत के कारण ही होती हैं। मुग़ल काल की तरह सत्ता बदलने के लिए नहीं। गांधी की हत्या भी नफ़रत में ही गोडसे ने की थी। गांधी के मुस्लिम तुष्टिकरण और पाकिस्तान प्रेम के चलते एक बड़ा वर्ग गांधी से नफ़रत करता था। आज भी करता है। तो जो किसी को लगता है , नरेंद्र मोदी की हत्या के बाद कांग्रेस या वामपंथियों की सत्ता का आसमान साफ़ हो जाएगा तो ग़लत लगता है। बहुत ग़लत। ख़ुदा न खास्ता अगर नरेंद्र मोदी की हत्या हो गई तो भाजपा कम से कम पचास सालों तक और सत्ता में बनी रह जाएगी। अभी तो बिना हत्या के भी नरेंद्र मोदी के जीते जी तो कोई और सत्ता में आता नहीं दीखता। इसी लिए नरेंद्र मोदी की हत्या की बात जब-तब होती रहती है। अमरीका में ट्रंप पर हमले के बाद यह चर्चा बड़े ज़ोर शोर से हो रही है। 

बीते समय में वामपंथी लेखिका अरुंधती राय तो कोई और चारा न देख कर नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए संविधान में संशोधन की तजवीज ले कर प्रस्तुत थीं कि कोई भी एक बार से अधिक प्रधानमंत्री न बने। हां , राहुल गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस का क्या होगा , कहना कुछ कठिन है। दिलचस्प यह कि बाद की सहानुभूति बटोरने के लिए न नरेंद्र की कोई संतान है , न राहुल की। इंदिरा की हत्या बाद चुनाव में इंदिरा लहर चली। इतना कि विपक्ष साफ़ हो गया। पर राजीव की हत्या के बाद चुनाव में राजीव लहर नहीं चली। नरसिंहा राव की सरकार तो बनी पर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत भी नहीं मिला। 

तो क्या मोदी पर भी कातिलाना हमला मुमकिन है ? 

मोदी के वोटरों का मोदी से फ़िलहाल मोहभंग हो चुका है। भाजपा कार्यकर्ता नाराज हैं मोदी से। संघ प्रमुख भागवत सहित संघ के तमाम लोग मोदी से नाराज हैं। लेकिन मोदी के वोटर , भाजपा कार्यकर्ता और संघ के लोग उन की हत्या करेंगे , ऐसा सोचा नहीं जा सकता। हां , मोदी के वोटरों से भी ज़्यादा हताश मुसलमान , कांग्रेसी और वामपंथी हैं। ट्रंप पर हमला एक वामपंथी ने ही किया है। वामपंथी दुनिया भर में हताश हैं। भारत में कहीं ज़्यादा। मोदी के सामने उन की विफलता इस का बड़ा सबब है। राहुल गांधी और उन की कांग्रेस वामपंथियों के ट्रैप में बुरी तरह फंस चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष राहुल अब कांग्रेसी नहीं , नक्सल कांग्रेसी हैं। सो अब सवाल है कि नरेंद्र मोदी की हत्या कौन-कौन लोग कर सकते हैं। 

इस में प्रमुख रूप से तीन लोगों की संभावना बनती है। अव्वल तो नक्सल वामपंथी। दूसरे कोई इस्लामिक आतंकी। तीसरे कोई खालिस्तानी। तीनों मिल कर भी नरेंद्र मोदी की हत्या को अंजाम दे सकते हैं। कांग्रेस , तृणमूल , सपा , वामपंथी आदि इन को अपने बयानों से कवरिंग फ़ायर दे ही रहे हैं। कुछ कांग्रेसी हिटलर की मौत मरेगा , मोदी तेरी कब्र खुदेगी , मोदी तू मर जा जैसी बातें करते रहने में गर्व महसूस करते हैं। वह कांग्रेसी जो कभी गांधी की अहिंसा के पैरोकार थे , अब ऐसे हिंसक नारों की पैरोकारी पर आमादा हैं। अपनी शान समझते हैं। 

निर्मम और नंगा सच यही है कि नरेंद्र मोदी की ज़िंदगी पल-पल ख़तरे में है। देश ही नहीं विदेश में भी नरेंद्र मोदी के दुश्मन बहुत हैं। चीन , अमरीका , कनाडा और पाकिस्तान भी नरेंद्र मोदी के ख़ून के प्यासे हैं। इस लिए कि मोदी निरंतर चीन , अमरीका , कनाडा और पाकिस्तान के हितों को चोट पहुंचा रहे हैं। आर्थिक , कूटनीतिक और सामरिक तीनों ही मोर्चे पर। यही स्थिति देश में कांग्रेस , वामपंथी , तृणमूल कांग्रेस समेत कई क्षेत्रीय दलों की भी है। इन के हितों पर भी मोदी निरंतर हमलावर हैं। तो मोदी की हत्या की योजना बननी सहज स्वाभाविक है। लेकिन यह लोग भूल जाते हैं कि मोदी अभिमन्यु नहीं अर्जुन हैं। गंगा पुत्र भीष्म पितामह को भी शर शैया पर लिटा कर , वाण से धरती भेद कर पानी पिलाने वाले अर्जुन। 

और राहुल गांधी ?

राहुल गांधी का दुर्भाग्य है कि भारतीय राजनीति की वर्तमान पटकथा में वेद व्यास ने उन के लिए दुर्योधन की ही भूमिका लिख छोड़ी है। लाक्षागृह का निर्माण और द्रौपदी के चीर हरण करवाने के कलंक का ठीकरा ही उन्हें हासिल है। सत्ता नहीं। शकुनि जानता था कि अपने प्रतिशोध में इस पूरे वंश को समाप्त करना है। दुर्योधन जानता था कि उसे लड़ना है। लेकिन अर्जुन की परिजनों से लड़ने में दिलचस्पी नहीं थी। युद्ध भूमि में आ कर अर्जुन ने शस्त्र रख दिए। मुश्किल बहुत थी। अर्जुन की यह मुश्किल दूर करने के लिए , युद्ध कितना ज़रूरी है यह बताने के लिए , प्रेरित करने के लिए अर्जुन को समूची गीता सुनानी पड़ी थी श्रीकृष्ण को। 

राजनीतिक हत्या भी एक अवधारणा है। राहुल गांधी के नसीब में फ़िलहाल यही बदा है। तो क्या कर लेंगे उन के किसिम-किसिम के शकुनि अंकल लोग भी। यथा दिग्विजय सिंह , मणिशंकर अय्यर , सैम पित्रोदा , के सी वेणु गोपाल , जयराम रमेश , खरगे आदि-इत्यादि भी। माता गांधारी भी बेक़रार हैं पर लाचार भी हैं। हार का भी कुटिल जश्न मनाना किसी को सीखना हो तो कलयुग के इस दुर्योधन और गांधारी से सीखे। अभी और अभी तो बस नरेंद्र मोदी की हत्या की चर्चा और योजना। मौत का सौदागर किसी को ऐसे ही तो नहीं कह दिया जाता है। बरसों बरस की मेहनत है यह। वेद व्यास ने इस अर्जुन के लिए अपनी पटकथा में में जाने कैसी मृत्यु लिखी है। मृत्यु लिखी है कि हत्या। 

कौन जाने !



Saturday, 13 July 2024

मोदी मैजिक बस स्वाहा !

दयानंद पांडेय 

समय की दीवार पर लिखी इबारत बताती है कि मोदी मैजिक बस स्वाहा होना ही चाहता है। भाजपा का सूर्य आधा डूब चुका है। पूरा भी डूबने में अब बहुत देर नहीं है। नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए लगातार ख़तरे की घंटी बज रही है। 2024 के आम चुनाव ने भाजपा पर जो डेंट मारा है , विधानसभा के ताज़ा उपचुनाव के नतीज़ों ने उसे और गहरा किया है। बदरंग किया है। सारा विकास , सारी लोकल्याणकारी योजनाओं का असर जैसे किसी नदी की बाढ़ में डूब कर छिन्न-भिन्न हो तिरोहित हो गया है। जैसे किसी सुनामी ने लील लिया है। मोदी की गारंटी किसी पाताल लोक में समा गई है। 

लेकिन मोदी और भाजपा को जैसे इस की परवाह ही नहीं है। विदेश नीति की सफलता में मगन हैं। सर्वोच्च सम्मान की श्रृंखला के सुरूर में हैं। सुरूर इतना कि सांस लेने की फुरसत नहीं। नहीं जानते घर का जोगी , जोगड़ा , आन गांव का सिद्ध ! गांव , घर और मुहावरे में ही फिट पड़ता है। राजनीति और चुनाव में इस का कोई मोल नहीं। रही बात गठबंधन दलों की , बैसाखियों की तो वह कब और किधर छिटक जाएं , उन्हें भी नहीं पता। कब दांव दे जाएं , वह भी नहीं जानते। जनता जनार्दन जैसे भाजपा से दूर-दूर , बहुत दूर हो चली है। फिर भी वह अपने पुराने जादू के नशे में चूर हैं। हुजूर होने के गुरुर में धुत्त हैं। हुजूर होने के आकाश से नीचे उतरने को जैसे तैयार ही नहीं हैं। ठोकर पर ठोकर मिलती जा रही है। पर वह पीता नहीं हूं , पिलाई गई है वाली ऐंठ में मगरूर हैं। जाने किस तमन्ना में तर-बतर हैं। हुजूरे आला होश में आइए। 

भाजपा और उस के नीति-नियंता लोग मान कर बैठ गए हैं कि यह नतीज़े सिर्फ़ संविधान बदलने और आरक्षण ख़त्म करने की अफ़वाह का कुपरिणाम है। इसी लिए जवाब में 25 जून को संविधान की हत्या दिवस मनाने के बहाने कांग्रेस की काली करतूत की याद दिलाने का स्वांग करना चाहते हैं। सवाल है कि बीते पचास सालों में इमरजेंसी लगने की तारीख़ को संविधान की हत्या दिवस के रूप में सुधि क्यों नहीं आई कभी। न सही , बहुत पहले इन दस बरसों में भी क्यों नहीं आई यह सुधि। सुधि क्यों बिसरी रही। किस ने बिसराई। अब जब तगड़ी लात पड़ गई है , तभी क्यों यह सुधि आई है। 

लोग तो मुग़लों समेत तमाम आक्रमणकारियों के लूट-खसोट , अत्याचार , ब्रिटिशर्स के अत्याचार भी भुला बैठे हैं। कांग्रेस के ज़ुल्मो-सितम , इमरजेंसी के काले और कठिन दिन भी भूल गए हैं। कोई पढ़वा देता है , सुना देता है , बता देता है तो जान लेते हैं। इन पचास बरसों में दो-दो जवान पीढ़ियां आ कर आगे की पीढ़ी लाने की तैयारी में है। आज की जवान पीढ़ी को किसी इतिहास में नहीं , वर्तमान में दिलचस्पी है। वर्तमान में युवा पीढ़ी को रोजगार और अपनी निजी तरक्की में दिलचस्पी है। इस जवान पीढ़ी को जोड़ने में भाजपा बुरी तरह नाकाम रही है। यह पीढ़ी वोट डालने में भी बहुत दिलचस्पी नहीं रखती। जो लोग वोट डालने में दिलचस्पी रखते हैं ,  वह आरक्षण प्रेमी हैं , मुसलमान हैं। जो मोदी और भाजपा को वोट देने में अपनी तौहीन समझते हैं। नफ़रत करते हैं मोदी और भाजपा से। हां , जो कुछ लोग मोदी और भाजपा को वोट देने में दिलचस्पी रखते हैं , मोदी सरकार ने उन से उन का बहुत कुछ छीन लिया है। अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन देने वाली मोदी सरकार ने रेलवे टिकट में सीनियर सिटीजन को दी जाने वाली छूट चुपचाप छीन ली। अकारण। अटल सरकार ने पुरानी पेंशन छीन ली थी। सेना में वन रैंक , वन पेंशन देने वाली मोदी सरकार ने लेकिन बहुत मिन्नतों के बावजूद पुरानी पेंशन बहाल नहीं की। उलटे सीनियर सिटीजन ने जो बैंक में अपनी जमा पूँजी ,  जमा किया कि जिस के इंट्रेस्ट से जीवन आसान करेंगे , उस इंट्रेस्ट पर भारी इनकम टैक्स लगा दिया। इनकम टैक्स में राहत छीन ली। 

2014 और 2019 में लोगों ने मुस्लिम तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ वोट दिया था और मोदी मैजिक चल गया था। अनेक  तथ्य गवाह हैं कि मोदी सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण को कांग्रेस से कहीं ज़्यादा बढ़ावा दिया है। एक पुराना लोकगीत है , घर में दियना बारि के मंदिर में दियना बार हो ! बीते दस सालों में मोदी की भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं की सिर्फ़ बलि दी है। लगातार बलि दी है। अपने वोटरों के साथ छल किया है। कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की गणित के फेर में तमाम दगे कारतूस टाइप कांग्रेसियों को भाजपा में न सिर्फ़ भर लिया बल्कि उन्हें सिर पर बिठा लिया। सोनिया , राहुल को चिढ़ाने की इस रणनीति ने मोदी का ईगो मसाज तो ख़ूब किया पर भाजपा कार्यकर्ताओं का अपमान भी भरपूर किया। 

इतना कि 99 सीट लाने वाली कांग्रेस के राहुल गांधी ने अब मोदी को संसद में चिढ़ाने के ईगो मसाज का नया पाठ पढ़ना शुरू कर दिया है। मुहल्ले के लफंगे लौंडों की तरह ललकार कर चिढ़ाने का वार , काम भी ख़ूब कर रहा है। मोदी पूरे चुनाव में शहजादे कर टांट करते रहे जिस राहुल गांधी पर , उसी नामदार राहुल गांधी ने सारी संसदीय गरिमा बिसार कर मोदी को सचमुच कामदार की हैसियत में डाल कर कामदार होने की हैसियत भी उतार दी है। पश्चिम बंगाल , केरल , पंजाब आदि ही नहीं दिल्ली , उत्तर प्रदेश तक में भाजपा कार्यकर्ता सुरक्षित नहीं रह गए हैं। 

मनोबल इतना गिर गया है भाजपा नेतृत्व का कि उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक बाबा जो 121 लोगों का हत्यारा सिद्ध हो चुका है समाज में लेकिन बुलडोजर बाबा के जे सी बी का डीजल इतना सूख गया है कि उस का नाम तक एफ आई आर में नहीं दर्ज हुआ है। क्या तो वह बाबा जाटव है। यानी दलित है। तो कहीं दलित वोटर न नाराज हो जाएं , इस खौफ में बुलडोजर बाबा थर-थर कांप रहे हैं। मोदी , अमित शाह चुप हैं। राजनाथ सिंह कड़ी निंदा भी नहीं कर पा रहे। अखिलेश यादव , राहुल गांधी उस हत्यारे बाबा का ईगो मसाज मक्खन लगा-लगा कर , कर रहे हैं। मीडिया को वह हत्यारा बाबा मिल जा रहा है , बाइट दे रहा है पर बुलडोजर बाबा की पुलिस की पहुंच से दूर है। दलित मायावती रह-रह कर इस हत्यारे के ख़िलाफ़ बोल रही हैं। लेकिन टोटी चोर यादव चूंकि इस हत्यारे बाबा का पैरोकार है इस लिए बुलडोजर बाबा की पुलिस असहाय है। टोटी टाइल में भी इन सात सालों में क्या कर लिया ?

वोट बैंक के डर से कहीं कोई सरकार और प्रशासन चलता है भला। इस से अच्छी तो 25 जून , 1975 को संविधान की हत्या करने वाली वह इंदिरा गांधी ही थीं। इंदिरा गांधी ने पंजाब में खालिस्तानी आतंक को कुचलने के लिए स्वर्ण मंदिर में सेना भेज कर भिंडरावाले और उस के आतंक को नेस्तनाबूद कर दिया था। बदले में उन की हत्या हो गई यह अलग बात है। तो क्या अपनी जान बचाने के लिए वह पंजाब से आतंक खत्म करने पर आंख मूंदे रहतीं। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने दस्यु उन्मूलन अभियान चलाया था। बदले में फूलन देवी ने बेहमई कांड कर दिया। बच्चे , बूढ़े सभी 22 ठाकुरों को एक साथ मार दिया था। विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा था। पर दस्यु उन्मूलन का उन का ख्वाब पूरा हो गया था। यह और ऐसे अनेक उदाहरण हैं। 

जिस योगी मॉडल की दुनिया भर में चर्चा थी , एक हत्यारे दलित बाबा ने उस योगी मॉडल को चकनाचूर कर दिया है। उन्नाव में बलात्कारी कुलदीप सेंगर और चिन्मयानंद की हुई गिरफ़्तारी में देरी पर योगी आदित्य नाथ की बहुत भद पिटी थी। ठाकुरवाद का आरोप भी लगा था। अंतत: गिरफ़्तार करना पड़ा था। गिरफ़्तार तो देर-सवेर हाथरस में 121 लोगों का यह हत्यारा बाबा भी होगा , भले अदालती हस्तक्षेप पर ही हो। लेकिन तब तक इतनी देर हो जाएगी कि योगी के बुलडोजर राज की धमक और  इकबाल ध्वस्त हो कर मिट्टी में मिल चुकी होगी। धूल-धूल हो कर हवा में उड़ कर तार-तार हो चुकी होगी। लुंज-पुंज हो कर चलने वाली सरकारें मनमोहन सिंह सरकार की  नपुंसक सरकार की तरह याद की जाती हैं। या फिर उत्तर प्रदेश में श्रीपति मिश्र की सरकार की तरह। जिस का स्लोगन ही था : नो वर्क , नो कंप्लेंड। लेकिन योगी सरकार ने तो सिर्फ़ सात साल लगातार सरकार चलाने का एक नया रिकार्ड बनाया है , जो पहले किसी ने नहीं बनाया उत्तर प्रदेश में बल्कि क़ानून व्यवस्था क़ायम रखने का एक नया व्याकरण रचा है। वही सरकार अब हत्यारे बाबा के ख़िलाफ़ इतनी लुंज-पुंज क्यों हो गई है। 

याद आता है किसान आंदोलन के समय नोएडा में राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी की तैयारी का मंज़र। गिरफ़्तारी की सारी तैयारी कर उस रात योगी अचानक थम गए थे। राकेश टिकैत को गिरफ़्तार करने गई भारी फ़ोर्स दो-तीन घंटे की क़वायद के बाद अचानक लौट गई थी। टी वी पर यह सारा कुछ देख कर लोग अवाक रह गए थे। कि एक राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी के लिए गई हज़ारों की फ़ोर्स लौटने लगी। बाद के समय में जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने बताया था कि फ़ोन पर राकेश टिकैत बहुत रोने लगा था। तब अमित शाह को फ़ोन कर उन्हों ने राकेश टिकैत की गिरफ़्तारी रुकवाई थी। सत्यपाल मलिक की इस बात का प्रतिवाद आज तक किसी ने नहीं किया। न राकेश टिकैत ने , न अमित शाह ने। न किसी और ने। जो किसान आंदोलन लालक़िले पर खालिस्तानी झंडा फहराने के बाद ध्वस्त हो गया था , टिकैत की गिरफ़्तारी न होने से नया जीवन पा गया था। यह और बुरा हुआ था। अलग बात है कि हरियाणा की सरहद पर बंद सड़क खुलने की करवट अब ले चुकी है। किसान आंदोलन की चिंगारी शोला बनने की सनक पर आतुर होना ही चाहती है। 

हाथरस में 121 लोगों के हत्यारे इस दलित बाबा शिवहरि के ठिकानों पर बुलडोजर न चलने के पीछे भी क्या किसी अमित शाह , किसी मोदी का हाथ तो नहीं ? कि योगी का ख़ुद का यह कायराना फ़ैसला है। यह समय बताएगा। जो भी हो योगी सरकार और भाजपा को इस की भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। बर्बादी की राह पर चल रही भाजपा के लिए यह धरती में धंस जाने वाला निर्णय है। जो सरकार जनता का दुःख न समझे , हत्यारे की आड़ में वोट बैंक को महत्वपूर्ण समझे , ऐसी निकम्मी सरकार को उखाड़ ही फेकना चाहिए। ऐसी सरकार को कल जाना हो तो आज ही चली जाए। आख़िर हाथरस में कुचल कर मरने वाले भी दलित और निर्बल लोग ही थे। क्या वह लोग वोट बैंक का हिस्सा नहीं हैं। हत्यारा बाबा इस लिए बचा हुआ है कि वह अरबपति है। उस के साथ दलित वोट बैंक का वहम खड़ा है। 

इस लिए ? इस लिए कि भाजपा बर्बादी की डगर पर ढोल-नगाड़े के साथ निकल पड़ी है। 

इस लिए ? 

कांग्रेस इसी तरह बर्बाद हुई थी। सपा-बसपा इसी तरह बर्बाद हुई थीं। मुस्लिम वोट बैंक के खौफ में कांग्रेस और सपा-बसपा जैसी पार्टियां आतंकियों को हाथ लगाने से थर-थर कांपती थीं। सपा ने यादव अपराधियों के साथ भी यही नरमी बरती। मुस्लिम अपराधी तो सपा के दामाद ही थे। कांग्रेस के भी। बसपा के भी। अतीक़ अहमद , मुख़्तार अंसारी जैसे अनेक खूंखार अपराधी ऐसे ही सत्ता के सिर पर बैठ कर आग मूतते थे। बिहार में शहाबुद्दीन जैसे लालू के सिर पर बैठ कर आग मूतता था। मुस्लिम वोट बैंक अफ़ीम बन चुका था , सेक्यूलरिज्म की आड़ में। इन्हीं सब से आजिज आ कर जनता ने 2014 में भाजपा को चुना था। भाजपा भी इसी कुमार्ग पर चल पड़ेगी , जनता कहां जानती थी। भाजपा के मोदी राज में भी रामनवमी पर , हनुमान जयंती पर , दुर्गा पूजा पर दिल्ली जैसी जगह पर मिनी दंगे होने लगे। पश्चिम बंगाल में तो नर्क ही हो गया है। देश के तमाम हिस्सों में भी यह इस्लामी हिंसा का नर्क और बढ़ा है। कर्नाटक , तमिलनाडु तक में। 

सनातन को कैंसर , मलेरिया , डेंगू , एड्स जैसे ख़िताब भी मोदी राज में पेश किए गए हैं। यह और ऐसी फेहरिस्त  बहुत लंबी है। और तो और बीते कर्नाटक विधान सभा चुनाव में जैसे जय हनुमान का रंग उतर गया था वैसे ही 2024 के लोकसभा चुनाव में जय श्री राम का रंग उतर कर भाजपा को चिढ़ाने लगा है। काशी में शर्मनाक जीत हुई , अयोध्या , चित्रकूट जैसी जगहों पर भाजपा को पराजय मिली। और जैसे करेला और नीम चढ़ा जो कहते हैं न , इस उपचुनाव में बद्रीनाथ में भी भाजपा चित्त हो चुकी है। सनातन की रखवाली का जो परसेप्शन था वह पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है। गरज यह कि भाजपा के सारे चुनावी औजार अब भोथरे हो चुके हैं। सब में जंग लग चुके हैं। हिंदू-मुसलमान के नैरेटिव में भी पलीता लग चुका है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के जुमले से भाजपा के लोग ही आजिज हो चुके हैं। देश ऊब गया है , इस कोरी लफ़्फ़ाज़ी से। गगन बिहारी स्लोगन से राजनीति , चुनाव और सरकार ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकते। स्लोगन भी ओवरहालिंग मानते हैं। औज़ार भी। कई बार बदल भी। भाजपा को अब मोदी को भी बदलने की समय रहते सोचना चाहिए। कम से कम मोदी की ओवरहालिंग पर ही सोचना चाहिए। नहीं अगले चुनावों में भाजपा को कांग्रेस की तरह बर्बादी के पड़ाव पर देखने के लोग तैयार हो गए हैं। अग्निवीर जैसे तमाम मसले हैं जिन्हें सत्ता पक्ष देश को समझाने में बुरी तरह पराजित है। 

मुकेश अंबानी जैसे पूंजीपति ने बेटे के विवाह के बहाने इंडिया गठबंधन के लोगों के लिए लाल कारपेट वैसे ही तो नहीं बिछा दी है। मोदी की गारंटी का गगन बिहारी रंग एक पूंजीपति ने भी समय रहते समझ लिया है। समझ लिया है कि मोदी मैजिक बस स्वाहा ही है। पर नहीं अगर कोई समझ पाया है तो वह भाजपा के सरगना नरेंद्र मोदी हैं। मोदी अकसर कहते रहे हैं और उन के सिपाहसालार भी कि जहां लोग सोचना बंद करते हैं , मोदी वहां से सोचना शुरू करता है। तो हुजुरेआला , जब भाजपा के पतन की पराकाष्ठा और दुर्दशा प्राप्त कर ही सोचेंगे क्या कि आख़िर मोदी मैजिक स्वाहा हो कैसे गया है ! 




Thursday, 4 July 2024

अबे सुन बे मोदी !

दयानंद पांडेय 

अबे सुन बे मोदी ! 

अभी जो बातें कह रहा हूं , उसे ध्यान से सुन। बहुत ध्यान से। जब निरंतर गिरते ही जाना है , गलीज से गलीज समझौते करते ही जाना है तो सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास में आख़िर जिसे तुम बड़ी हिकारत से जिसे बालक बुद्धि कहते हो , उस बालक बुद्धि और उस की मां को भी क्यों नहीं शामिल कर लेते , इस स्लोगन के तहत। जो ढाई-तीन दर्जन केस बिचारे मां -बेटे पर हैं , उठा क्यों नहीं लेते। सरकार के पास यह अधिकार होता ही है। इस बालक की पूजा कर के उस को प्रधान मंत्री की कुर्सी ही क्यों नहीं सौंप देते। यही तो उस का सपना है। पूरा कर दो उस का सपना। बहुत पुण्य मिलेगा। केजरीवाल , सोरेन टाइप लोगों को भी आराम क्यों नहीं दे देते। हो सकता है 80 करोड़ राशन पाने वालों , मुफ़्त शौचालय , गैस आदि पाने वालों से ज़्यादा एहसान जताएं यह लोग।

एहसानफ़रामोशी न करें। 

लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का रिकार्ड तो अब तुम्हारा बन ही गया है। अब चिंता भी क्या है भला। देश किसी के भी बिना चल सकता है। तुम्हारे बिना भी। चक्रवर्ती सम्राटों , मुगलों , ब्रिटिशर्स , नेहरू , शास्त्री , इंदिरा , अटल आदि के बिना भी चल ही रहा है। तुम्हारे बिना भी चल जाएगा। लेकिन यह जो मुफ़्तख़ोरी का ख़ून लगा दिया है , न तुम ने , लोक कल्याण के नाम पर यह ठीक वैसे ही है , जैसे लोगों के मुंह में आरक्षण का ख़ून। हटा कर देख तो लो एक बार अस्सी करोड़ लोगों का मुफ़्त राशन। आग लग जाएगी देश में। जैसे आरक्षण हटाने के नाम पर आग लग जाने का भय लगता है हर किसी को। तुम को क्या लगता है कि तुम्हारी अयोध्या में आग क्या अचानक लग गई है ? काशी ने भी तुम  को क्यों ज़लील किया है ? नहीं मालूम तो अब से जान लो कि आरक्षण के भस्मासुर ने तुम्हारी अयोध्या और काशी ही नहीं , तुम्हारे  विकास की सारी मीनारों में , लोक कल्याण के कार्यक्रमों में आग लगा दी है। किसी लंका की तरह जल रही हैं , विकास की मीनारें , लोक कल्याणकारी योजनाएं। तुम्हारे इस खोखले स्लोगन सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के कारण। लफ्फाजी की इंतिहा है यह। बीच चुनाव में तुम्हारे और तुम्हारे नंबर दो और सो काल्ड चाणक्य अमित शाह के आरक्षण और संविधान के बाबत डाक्टर्ड वीडियो गांव-गांव वायरल थे और तुम लोगों को ख़बर तक नहीं हुई। देर से सही , हुई भी तो कुछ एफ आई आर और गिरफ़्तारी ही इस का इलाज था ? यू ट्यूब से यह वीडियो हटवाने की बुद्धि क्यों नहीं आई ? तुम्हारी काशी के ही एक गीतकार हुए हैं श्रीकृष्ण तिवारी। उन का एक गीत याद आ गया है :

भीलों ने बाँट लिए वन

राजा को खबर तक नहीं


पाप ने लिया नया जनम

दूध की नदी हुई जहर

गाँव, नगर धूप की तरह

फैल गई यह नई ख़बर

रानी हो गई बदचलन

राजा को खबर तक नहीं


कच्चा मन राजकुंवर का

बेलगाम इस कदर हुआ

आवारे छोरे के संग

रोज खेलने लगा जुआ

हार गया दांव पर बहन

राजा को खबर तक नहीं


उलटे मुंह हवा हो गई

मरा हुआ सांप जी गया

सूख गए ताल -पोखरे

बादल को सूर्य पी गया

पानी बिन मर गए हिरन

राजा को खबर तक नहीं


एक रात काल देवता

परजा को स्वप्न दे गए

राजमहल खंडहर हुआ

छत्र -मुकुट चोर ले गए

सिंहासन का हुआ हरण

राजा को खबर तक नहीं


तुम्हारे सिंहासन का हरण खुले आम हो रहा था , और तुम्हें ख़बर भी नहीं हो सकी। अफ़सोस ! कैसी मशीनरी है तुम्हारी। कैसे कार्यकर्ता हैं तुम्हारे। तुम जब-तब सनातन-सनातन का ढिढोरा पीटते रहते हो। और लोग तुम्हारे सनातन को डेंगू , मलेरिया , कैंसर और एड्स कह कर तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं। तुम कुछ नहीं कर पाते। हाथ मलते रहते रह जाते हो। 

इतने उदार क्यों हों ? बल्कि पलट कर पूछूं कि इतने कायर क्यों हो ? 

बंगाल में एक पुरानी कहावत है कि किसी को भीख में मछली देने से अच्छा है , उसे मछली मारना सिखा दो। कोरोना तक तो ठीक था मुफ़्त राशन। लेकिन उस के बाद यह मुफ्तखोरी विशुद्ध रूप से वोट ख़रीदने की गहरी चाल थी जो नाकामयाब साबित हुई है। यह मुफ्तखोर जान चुके हैं कि अब तुम्हारी हैसियत नहीं है इसे बंद कर पाना। ठीक वैसे ही जैसे लोकसभा और राज्य सभा में प्रतिपक्ष जान चुका है कि तुम तो प्रतिपक्ष को , उस की जली-खोटी , गाली-गलौज आदि संसदीय गरिमा के आवरण में सुनोगे ही। तुम्हारी सत्ता पक्ष में बैठने की मज़बूरी है। तुम बहिर्गमन नहीं कर सकते। समय-बेसमय स्पीकर से संरक्षण की भीख मांगोगे। जो मिलेगी नहीं। जैसे कोई श्वान किसी के मुंह पर मूत्र विसर्जित कर दौड़ कर भाग जाता है , ठीक यही सुलूक़ तुम्हारे साथ संसद में प्रतिपक्ष करता आ रहा है। और तुम अपने आत्म-मुग्ध भाषण में अपने मुंह पर श्वानों द्वारा यह मूत्र विसर्जन महसूस ही नहीं कर पा रहे। 

हद्द है !

भारतीय लोकतत्र , चुनाव और संसद के औज़ार अब बदल चुके हैं। लेकिन तुम नहीं बदलना चाहते। क्यों नहीं बदलना चाहते हो ? इस लिए कि तुम डरपोक हो। महाडरपोक। 

लेकिन अपने इस डर पर एक छाता लगा रखे हो कि तुम देश को बदलना चाहते हो। देश को प्रगति की राह ले जा कर विकसित भारत बनाना चाहते हो। दुनिया की तीसरी इकोनामी बनाना चाहते हो। बंद भी करो अब यह लफ्फाजी। बहुत हो चुका। और लड़ रहे हो , उन पुराने औज़ारों से जिस से मालवीय , तिलक , गांधी , पटेल भारत को आज़ाद करना चाहते थे। किया भी। पर क्या सावरकर , भगत सिंह , आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस आदि जैसे असंख्य क्रांतिकारियों की ज़मीन के बिना यह मुमकिन था ? 

बिलकुल नहीं। 

कांग्रेस में भी नरम दल और गरम दल था। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के मार्फ़त अगर कांग्रेसी और क्रांतिकारी भी लड़े होते तो अंगरेज अभी भी भारत पर हुकूमत कर रहे होते। क्यों कि यह एक कायर स्लोगन है। पाखंड है तुम्हारा। 

हर पार्टी अपना वोट बैंक देखती है। अपनी कांस्टीच्यवेंसी देखती है। कांग्रेस , वाम और तमाम क्षेत्रीय दल मुसलमानों के ख़िलाफ़ , पिछड़े, दलितों के ख़िलाफ़ एक शब्द नहीं सुन सकते। कोई बोल दे तो आग लगा दें। लेकिन तुम तो सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास की फ़ालतू रंगबाजी में लगे रहते हो। अपने कार्यकर्ताओं की हिफाज़त नहीं कर पाते तो वोटरों की कहां से करोगे। सनातनियों की कहां से करोगे। पश्चिम बंगाल में रोज-रोज मारे जा रहे अपने कार्यकर्ताओं की रक्षा ही नहीं कर पाते। हर चुनाव के बाद वह मारे जाते हैं। भाग कर आसाम-बिहार में जान छुपाते हैं। उन के घर जला दिए जाते हैं। 

तो क्या पश्चिम बंगाल , भारत गणराज्य से बाहर है ? 

लोगों की जान जाती रहती है , पिटते रहते हैं , आग लगती रहती है। और तुम दीदी-दीदी , लोकतंत्र-लोकतंत्र की लफ्फाजी झोंकते रहते हो। कायरता और नपुंसकता की इंतिहा है यह। ई डी , सी बी आई भी पश्चिम बंगाल जा कर पिटती रहती है। 

एक नुपूर शर्मा हैं। कभी तुम्हारी पार्टी की प्रवक्ता थीं। तुम्हारे सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के राज में लेकिन अब वह घर से निकलती नहीं। सालों से। दिल्ली में रह कर भी डरती हैं। थर-थर कांपती हैं मुसलमानों से। सिर तन से जुदा का फतवा है। नुपूर शर्मा का निजी , पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन चौपट हो चुका है। वह भी तुम्हारे सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के राज में। इस्लामिक हिंसा की शिकार एक बार तस्लीमा नसरीन दिल्ली में घूम सकती हैं। इस्लामिक हिंसा के शिकार एक बार सलमान रुश्दी भी दिल्ली और देश घूम सकते हैं। पर नुपूर शर्मा नहीं। नुपूर शर्मा को अकेला छोड़ दिया गया है। क्यों कि तुम तो सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास के नशे में चूर हो। तुम्हें कुछ सूझता ही नहीं। भगवा आतंकवाद , हिंदू आतंकवाद की गाली जैसे कम पड़ रही थी जो बालक बुद्धि राहुल समूची अराजकता और गुंडई के साथ तुम्हें लोकसभा में सरे आम हिंसक हिंदू , नफ़रती हिंदू , झूठा हिंदू कह कर तुम्हारे मुंह पर मूत्र विसर्जन कर देता है। करता ही रहता है। किसी कायर और नपुंसक की तरह तुम्हारा चेहरा मलिन हो जाता है। तुम कठोरता से प्रतिकार नहीं कर पाते। और वह काठ का स्पीकर भी तुम्हारे कंधे से कंधा मिला कर चेहरे पर मलिनता ओढ़ कर संसदीय कायरता का शिखंडी शिलालेख लिख देता है। क्या हमारी  संसदीय परंपरा इतनी कायर , इतनी नपुंसक और इतनी बेजान है ?

सुप्रीम कोर्ट के पास भी कुछ विशेषाधिकार होते हैं। जब कोई क़ानून , संविधान और अनुच्छेद नहीं साथ देते तो सुप्रीम कोर्ट अपने विशेषाधिकार का प्रयोग पूरी ताक़त से करता है। निरंकुश हो कर करता है। कोई वकील , कोई संविधान , कोई क़ानून तब सुप्रीम कोर्ट के सामने खड़ा नहीं होता। नहीं हो पाता। तो क्या सुप्रीम कोर्ट से भी कमज़ोर है , लोकसभा और लोकसभा अध्यक्ष ? संविधान क्या झूठ ही कहता है कि संसद सर्वोच्च है। सर्वोच्च है तो क्या यही दिन दिखाने के लिए ? झूठ पर झूठ फेंकता रहा वह बालक बुद्धि। पूरी गुंडई से। किसी मुहल्ले के दादा की तरह। शोर मचाने के लिए लगातार लोगों को उकसाता रहा।लोगों को भेड़ की तरह बेल में हांक दिया। अनाप-शनाप बोल कर जो चाहा किया। और क्या स्पीकर , क्या प्रधान मंत्री और अन्य मंत्री जैसे संसदीय गरिमा की लाज लुटते हुए वैसे ही देखते रहे जैसे दुर्योधन की सभा में द्रौपदी का चीर हरण भीष्म पितामह सहित अन्य लोग सिर झुका कर देखते रहे। निष्प्राण ! संसद और लोकतंत्र द्रौपदी की साड़ी नहीं है। कि जो जब चाहे , जैसे खींच ले। संसद और लोकतंत्र देश की लाज है। गरिमा है। आन-बान-शान है।  

धिक्कार है तुम्हें नरेंद्र मोदी , तुम्हारे स्पीकर और तुम्हारी सरकार को। संसद में जब इस तरह गुंडई मुसलसल चलती रहती है और तुम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हो। संसद और लोकतंत्र की लाज लुटती रहती है और तुम असहाय बैठे रहते हो। संसद के भीतर भी और बाहर भी। कब तक अपनी कायरता और अक्षमता को इको सिस्टम के माथे पर ठीकरा फोड़ते हुए लोगों को बरगलाते रहोगे। बंद भी करो अब यह इको सिस्टम का पहाड़ा। दस बरसों में कुचल क्यों नहीं पाए इस इको सिस्टम का फन। एन सी आर टी समेत तमाम पाठ्यक्रमों में बदलाव के लिए किस बादल और किस बरसात की प्रतीक्षा है। किस-किस से डरते हो। सभी अकादमिक जगहों पर आज भी वामपंथी और कांग्रेसियों का कब्ज़ा है। दस बरस क्या कम होते हैं , इन्हें बदलने के लिए ? 

डरता होगा तुम से पाकिस्तान। लेकिन तुम तो राहुल गांधी और मुसलमान से डरते हो। नहीं डरते हो तो राहुल-सोनिया के नेशनल हेराल्ड केस को क्यों ढक्कन बनाए हुए हो ? हज़ारो करोड़ का घोटाला है। हेमंत सोरेन , केजरीवाल जेल जा सकते हैं तो नेशनल हेराल्ड के आरोपी कब तक आरोपी बने ज़मानत लिए घूमते रहेंगे ? ज़मानत क्या आजीवन होती है। वाड्रा के घोटाले का क्या हुआ। क्या हुआ तब्लीगी जमात के उस मौलवी का। तब्लीग़ियों का। जहां एक दारोगा को जाना चाहिए था , राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल को जाना पड़ा था , उस तब्लीगी मौलवी को आधी रात समझाने के लिए। एफ आई आर हुई थी तब। क्यों नहीं कभी गिरफ़्तार हुआ वह मौलवी कभी। ओवैसी सिर्फ़ एक सीट जीत कर तुम्हारी छाती पर हर पांच साल पर मुसलसल मूंग दलता रहता है। क्या उखाड़ लेते हो उस का। बरेली के एक छुटभैया मौलाना तौक़ीर रज़ा के पीछे दंगे के आरोप में कोर्ट ने वारंट जारी कर रखा है , चुनाव के पहले से। चुनाव बीत चुका है। योगी की पुलिस तौक़ीर रज़ा को पकड़ कर कोर्ट में पेश नहीं कर पाई है। तुम्हारे कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर अजब-गज़ब बाते करते रहते हैं वक्फ बोर्ड को ले कर। और तुम संसद में वक्फ बोर्ड को और मज़बूत करने का संशोधन कर देते हो। कोई जान भी नहीं पाता। 

सब जानते हैं 2014 में तुम्हें हाहाकारी जीत मिली थी , मुस्लिम तुष्टिकरण के ख़िलाफ़। किसी मनमोहन सरकार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार को ले कर नहीं। 2019 में भी तुम मुस्लिम तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ और बढ़त ले कर आए। 2024 में 240 पर ठिठके तो इस लिए भी कि कांग्रेसियों और क्षेत्रीय दलों से ज़्यादा मुस्लिम तुष्टिकरण तुम करने लगे हो। जय हनुमान का निरंतर उदघोष कर के भी तुम कर्नाटक विधानसभा इसी लिए हारे। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और राम की प्राण प्रतिष्ठा बहुत बड़ी घटना है , इस सदी की। जो तुम्हारे कारण ही मुमकिन हुई। लेकिन प्रचंड राम लहर के बावजूद तुम 2024 में जो जनता की लात खाए हो , बहुत बड़ी लात। आरक्षण और संविधान का प्रोपगैंडा तो है ही , इस के पीछे। तुम्हारी मुस्लिम तुष्टिकरण की पराकाष्ठा ने भी तुम्हारी चुनावी पिच खोद कर रख दी है। नहीं हमारे जैसे निष्पक्ष प्रेक्षक भी साफ़ देख रहे थे कि तुम सचमुच चार सौ पार कर रहे थे। करते दिख रहे थे। पर यह हम और हमारे जैसे लोग भी नहीं देख पाए कि जो मुस्लिम तुष्टिकरण का दीमक है न , कि कब तुम्हें खा गया। खा गया तुम्हारा औरा और तुम्हारा सारा इवेंट। 

देश भर के रोड शो में घूम रही , हर सड़क किनारे तुम्हारी आरती की थालियों में , लोगों के हर्ष और जूनून में कहीं कोई कमी नहीं थी। काशी हो , पटना हो , केरल , तमिलनाडु या बंगाल , उड़ीसा का या देश का कोई भी शहर। राम मय था देश। राम-नाम के बीच हर कहीं मोदी नाम की खुशबू थी। यह खुशबू इतनी ज़बरदस्त थी कि इस खुशबू में ही मुस्लिम तुष्टिकरण का दीमक छुप गया। तिस पर आग में घी का काम किया आरक्षण और संविधान के प्रोपगैंडा ने। 8500 रुपए की लालच ने। आरक्षण प्रेमियों का पेट मुफ्त राशन से भरा हुआ था। वह जान गए थे कि राम मंदिर बन चुका है। अगड़ों को तुम ने बंधुआ मान रखा है। अपनी निरंतर उपेक्षा से वह भी बिफरे और थोड़ा सा सही , शिफ्ट हुए। आदतन ज़्यादातर वोट डालने भी नहीं गए। क्यों कि लोगों ने पाया कि तुम भी मुस्लिम तुष्टिकरण और उस मुसलमान के तलवे चाट रहे हो। जिसे सिर तन से जुदा करने का अभ्यास है। तो क्या फर्क पड़ता है , इधर से उधर होने में। हो जाने में। तुम्हारे कार्यकर्ता भी नहीं गए लोगों को घर से निकालने वोट देने के लिए। फिर सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास में तुम स्वाहा हो गए। भाजपा होती अगर तीन सौ पार इस बार भी तो हर ऐरा-गैरा तुम्हारे मुंह पर मूत्र विसर्जन करता हुआ इस तरह न घूमता। 

शत्रुघन सिनहा याद आ गए हैं। जब देखिए तब ख़ामोश ! कह कर सब को ख़ामोश करते रहे। पर उन की ही बेटी सोनाक्षी ने अपने एक निजी फ़ैसले से उन्हें ऐसा ख़ामोश कर दिया है कि पूछिए मत। जिसे देखिए , वही उन का मज़ाक उड़ाता घूम रहा है। उन को ख़ामोश करता घूम रहा है। सोशल मीडिया शत्रुघन सिनहा के इस मुश्किल भरे नर्क से रंगा पड़ा है। सना और भरा पड़ा है। और शत्रुघन सिनहा को कोई जवाब देते नहीं बन रहा है। मुंह छुपाए , खिसियाए घूम रहे हैं। नरेंद्र मोदी , तुम्हारी वर्तमान राजनीतिक स्थिति भी जैसे शत्रुघन सिनहा के निजी और पारिवारिक जीवन सरीखी हो चली है। शत्रुघन सिनहा का पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन नष्ट हो गया है। मारे शर्म के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी अभी शपथ लेने लोकसभा नहीं आ सके हैं। जैसे शत्रुघन सिनहा का निजी , पारिवारिक और सार्वजनिक जीवन नष्ट हुआ है , ठीक वैसे ही नरेंद्र मोदी , तुम्हारा राजनीतिक जीवन नष्ट हो गया दिखता है। लेकिन शत्रुघन सिनहा भले जीवन भर अभिनय करते रहे हों , अब अभिनय उन का , उन से पानी मांग गया है , सोनाक्षी सिनहा के एक निजी फ़ैसले के कारण। जनता के चुनावी करवट से , भारी करंट लगने के बाद भी नरेंद्र मोदी तुम्हारा अभिनय लेकिन उफान पर है। ऐसे में भी कैसे हंस और चमक लेते हो। इतनी बेशर्मी आख़िर कैसे कर लेते हो। किस चक्की का आटा खाते हो , यह बेशर्मी पाने के लिए। 

भारत देश संविधान और क़ानून से नहीं चलता है। भारत चलता है धर्म , जाति , भ्रष्टाचार , आरक्षण और माफ़िया से। और ऐसे पवित्र माहौल में नरेंद्र मोदी तुम चलते हो , सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास जैसे खोखले नारे से। दिखने में यह सूत्र वाक्य में बहुत अच्छा लगता है। लेकिन जीवन और राजनीति में सूत्र वाक्य मुंह चिढ़ाते रहते हैं। स्वेट मार्डेन की सूत्र वाक्य की किताबें पढ़ने और सुनने के लिए बहुत गुड हैं। ठीक वैसे ही तुम्हारा सूत्र वाक्य सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास भी गुड है। पढ़ने और सुनने में। पर चुनाव तो अपने वोट बैंक से जीता जाता है। किसी सूत्र वाक्य से नहीं। और नरेंद्र मोदी , विकास की तमाम मीनारें खड़ी करने , लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों की झड़ी लगा देने के बावजूद तुम ने अपने वोट बैंक को इन दस बरसों में सर्वदा ठेंगे पर रखा है। टेकेन ग्रांटेड मान लिया। इसी लिए सब कुछ के बावजूद चुनावी बिसात पर तुम बिखर गए। छिन्न-भिन्न हो गए। देह जब कमज़ोर होती है तो तमाम बीमारियां दस्तक दे देती हैं। देती ही रहती हैं। घेर लेती हैं तमाम बीमारियां। आदमी अशक्त हो जाता है। होता ही जाता है। नरेंद्र मोदी , अब तुम मानो या मत मानो पर राजनीतिक रूप से तुम बहुत कमज़ोर हो चुके हो। इस लिए अब हर अराजक मूत्र विसर्जन के लिए तुम्हारा मुंह तलाशेगा। अभी अराजक और नक्सल कांग्रेसी राहुल मूत्र विसर्जन कर रहा है। कल को केजरीवाल आदि करेंगे। परसों को क्या गारंटी है कि नायडू और नीतीश भी न करें। रहीम लिख गए हैं :

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग। 

चंदन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥ 

अफ़सोस कि नरेंद्र मोदी तुम चंदन नहीं हो लेकिन जहरीले सांपों से लिपटे हुए हो। और इन का असर भी तुम पर बहुत है। 

बार-बार लोग तुम्हें हिटलर कहते हैं। तानाशाह कहते हैं। यह कह कर तुम्हें अपमानित करते रहते हैं। और तुम इन कसाइयों के आगे हरदम अपनी गरदन पेश करते रहते हो कि नहीं-नहीं हम तो लोकतंत्र के सिपाही हैं। संविधान के आगे माथा टिकाते घूमते रहते हो। और जो संविधान का स भी नहीं जानते , जय संविधान कह कर तुम्हारी अयोध्या जला देते हैं। इस्लाम में आदमी धीरे-धीरे हलाल होता है। झटके से नहीं। जापान में इसे हाराकिरी कहते हैं। हाराकिरी आत्महत्या की एक जापानी विधि है। जिस में आदमी ख़ुद को तकलीफ़ देते हुए , ख़ुद को धीरे-धीरे काटता रहता है , कटे पर नमक भी डालता रहता है। जब तक मर नहीं जाता। तुम्हारी गरदन पर कटने के घाव के , हलाल होने के अनगिन निशान दुनिया भर को दिख रहे हैं पर तुम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्‍वास और अब सबका प्रयास की लफ़्फ़ाजी में अंधे हो चले हो। कुछ दिखता ही नहीं तुम को। 

तुम्हें पता भी क्यों नहीं चल पाता यह ?

370 ख़त्म किया। अच्छा किया। लेकिन देश का अधिकांश पैसा आतंकवादियों को सुधारने में ढकेल दिया। कोई बात नहीं। पर जम्मू का क्या अपराध है ? इन दस बरसों में जम्मू के विकास का हक़ क्यों छीन लिया ? किसी काने आदमी की तरह एक ही राज्य को एक आंख से देखना भी गुड बात है क्या ? अच्छा जम्मू के साथ यह नाइंसाफ़ी भी एक बार क़ुबूल कर लिया। पर कश्मीर में अपना एक प्रत्याशी भी चुनाव में क्यों नहीं खड़ा किया। छप्पन इंच की छाती यहां क्यों सिकुड़ गई। किसान क़ानून बनाया। अच्छा बनाया था। कुछ खालिस्तानियों की ब्लैकमेलिंग में आ कर वह किसान क़ानून वापस ले लिया। किस भय से लिया। लालक़िला की जो बेइज्जती हुई सो अलग। दिल्ली न हो गई , हर किसी की भौजाई हो गई। जो भी चाहे जब चाहे हमलावर बन कर चढ़ाई कर दे। शाहीनबाग कर दे। दंगा कर दे। सी ए ए की बात हो और दिल्ली धू-धू कर जलने लगे। अजब मंज़र है। यह सब तुम्हारे राज में हुआ। यह कलंक है तुम्हारे माथे पर। 

कार सेवकों पर मुलायम सिंह यादव ने गोलियां चलवाईं , सरयू का पानी लाल हो गया था। उस ख़ूनी मुलायम को पद्मविभूषण देने की क्या लाचारी थी भला। कौन सी उदारता थी यह। चीन में एक कहावत है कि इतने उदार भी मत बनिए कि किसी को अपनी बीवी भी गिफ्ट कर दीजिए। अच्छा महाभ्रष्ट शरद पवार को भी पद्मविभूषण देना किस रणनीति का रण था भला। एक चुनाव जीतने के लिए एक साथ पांच-पांच भारत रत्न देना भी चुनावी बिसात पर क्यों नहीं रंग ला पाया। अच्छा आडवाणी को राष्ट्रपति नहीं बनाया , न सही , भारत रत्न इतनी देर से देने का सबब भी क्या था। कि बिचारे राष्ट्रपति भवन भी नहीं जा पाए लेने खातिर। भारत रत्न का सुख नहीं ले पाए अटल जी की तरह ही। जब वह स्वस्थ थे , तभी दे दिया होता। गुरु थे। राजनीति में आक्सीजन दिया था , तुम को। 

सुनते हैं दुनिया भर में तुम्हारी डिप्लोमेसी का डंका बजता है। देश में भी कभी बजता था। लेकिन अब देश में तो नहीं बजता। नहीं जानते हो तो , अब से जान लो। बहुत कुछ हो रहा है , जो तुम शायद नहीं जानते। भारी उथल-पुथल है देश में। गृह युद्ध के मुहाने पर बैठा है भारत। कश्मीर अभी वेंटीलेटर पर ही है। पश्चिम बंगाल , केरल और पंजाब की स्थिति कश्मीर से भी बदतर है। हर शहर में बसे मिनी पाकिस्तान को अब आरक्षण प्रेमियों का भी साथ मिल गया है। कभी लोगों को अच्छे दिन की आस दिलाने वाले नरेंद्र मोदी , भविष्य की तो हम नहीं जानते पर वर्तमान में तुम्हारे कठिन और काले दिन साफ़ दिख रहे हैं। दुर्भाग्य से देश के भी। येन केन प्रकारेण सरकार चलाने की सनक में तुम चक्की पीस रहे हो , यह बात अब दुनिया जानती है। कांग्रेसी अगर कहते हैं कि यह तुम्हारी नैतिक हार है तो ठीक ही कहते हैं। मैं होता जो तुम्हारी जगह नरेंद्र मोदी तो सरकार में नहीं , विपक्ष में बैठता। स्वाभिमान और लोकतंत्र का तकाज़ा यही था। अभी तो तुम्हारी इस दुर्दशा पर जोश मलीहाबादी का एक शेर याद आता है :

हद है अपनी तरफ़ नहीं मैं भी 

और उन की तरफ़ ख़ुदाई है। 

सुन बे मोदी , बोल भारत माता की जय !