शाही ईमाम सैयद इमाम बुखारी |
तब के दिनों अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री थे ।‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ की तत्कालीन सदस्या सईदा सैयदेन हमीद ने अपनी रिपोर्ट ‘वायस ऑफ वायसलेस’ में देश की मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का जो ब्यौरा परोसा था, उसे पढ़ कर दिल दहल जाता है। बरबस रूलाई आ जाती है। मुस्लिम महिलाओं पर मुस्लिम पुरूषों द्वारा अत्याचार पढ़ कर। सईदा सैयदेन हमीद ने इस रिपार्ट को सरकार को पेश करते वक्त सरकार से माँग की थी कि दुनिया के और देशों जिनमें कई मुस्लिम देश भी शामिल हैं, ने द्विविवाह प्रथा और तिहरा तलाक खतम कर सिविल कोड लागू कर दिया है, यहाँ तक कि पाकिस्तान ने भी। इसलिए हिंदुस्तान में भी मुस्लिम समाज के लिए यह तिहरा तलाक और द्विविवाह प्रथा समाप्त कर सिविल कोड लागू कर दिया जाए। लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट पर अमल करना तो छोड़िए गौर करना भी वाजिब नहीं समझा। जानते हैं क्यों? क्यों कि जामा मस्जिद के शाही ईमाम सैयद इमाम बुखारी ने सरकार को यह धमकी दे दी थी कि अगर हिंदुस्तान में यह रिपोर्ट लागू हुई तो देश में आग लग जाएगी। और फील गुड फैक्टर वाले, भारत उदय की हुंकार भरने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसी सर्द चुप्पी साधी कि सईदा सैयदेन हमीद की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली गई। इस के पहले मुस्लिम कट्टरपंथियों से डर कर राजीव गांधी शाहबानो मामला संसद में पलट चुके थे । अटल जी डरने वाले लोगों में से नहीं थे लेकिन वह मिली जुली सरकार के प्रधान मंत्री थे सो इस रिपोर्ट को पीठ दिखा गए ।
सईदा सैयदेन हमीद |
बताइए कि 16 या 18 साल की कोई लड़की तीन बच्चों की मां बन जाए और उस का इसी उम्र में तलाक भी हो जाए। तो उसका क्या होगा? उस समाज का क्या होगा? यह एकतरफा तिहरे तलाक की त्रासदी है। कुछ और नहीं। और यह सिर्फ़ और सिर्फ़ हिंदुस्तान में है। कहीं और नहीं। दुनिया के मुस्लिम देशों में भी नहीं। पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी नहीं। मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक और पारिवारिक स्थिति गाँव में भी चौपट है और शहरों में भी। उनकी विपन्नता और त्रासदी देख दिल दहल जाता है और कलेजा मुँह को आता है। लेकिन इस तरफ किसी योजनाकार, शासन, प्रशासन और समाज का ध्यान बिल्कुल नहीं है। सामाजिक ढाँचा तो जो है वो खैर है ही, मुस्लिम पर्सनल लॉ की मार इन पर सबसे ज्यादा है। हालत यह है कि अधिकांश मुस्लिम देशों ने भी समान नागरिक कानून लागू कर द्विविवाह और तिहरे तलाक को तिलांजलि दे दी है। लेकिन मजहब के नाम पर हिंदुस्तान में यह कुरीति आज भी हमारे मुस्लिम समाज में जारी है। भारतीय मुस्लिम समाज में इस कुरीति के चलते हालत यह है कि एक 18 साल की औरत 3 बच्चों की माँ बन जाती है और तलाक भी पा जाती है। अब बताइए उसकी आर्थिक स्थिति और सामाजिक स्थिति उसको कहाँ ले जाएगी? गरज यह है कि एक मुस्लिम औरत की जिंदगी शुरू होने के पहले ही तबाह हो जाती है। कोई कानून भी उसका साथ नहीं देता। मजहब का आतंक उसे जीने नहीं देता।
यहां सुविधा के लिए भारत के ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ तथा अन्य इस्लामिक देशों के मुस्लिम कानून पर तुलनात्मक दृष्टि डालना उचित होगा। प्रो. ताहिर महमूद ने अपनी किताब ‘फैमली लॉ रिफार्म्स इन द मुस्लिम वर्ल्ड’ में निम्न तथ्यों को उजागर किया है-
- तुर्की में परंपरागत मुस्लिम कानून की जगह आधुनिक सिविल कोड ने ली है।
- मिस्र, सूडान, लेबनान, जार्डन, सीरिया, ट्यूनिशिया, मोरक्को, अलजीरिया, ईरान, पाकिस्तान और बांग्लादेश ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में आवश्यक सुधार किए हैं।
- उपरोक्त सभी देशों में तखय्युर (इस्लाम धर्म के विभिन्न संप्रदायों के सिद्धांतों में समानता और विनिमयशीलता) की स्वीकृति के पश्चात परंपरागत कानून का कठोरता से पालन समाप्त हो गया।
- तुर्की और ट्यूनिशिया में मुस्लिम विवाह और तलाक के लिए अलग कानून बनाया गया है।
- इंडोनेशिया, मलेशिया और ब्रूनेई में बहुविवाह प्रतिबंधित कर दिया गया।
- ईरान, इराक, सीरिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहुविवाह पर न्यायालय और प्रशासनिक संस्थाओं का कड़ा नियंत्रण है।
- तुर्की, ट्यूनिशिया, अलजीरिया, इराक, ईरान, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश में एकपक्षीय तलाक पर रोक लगा दी गई है।
- अनेक मुस्लिम देशों में महिलाओं के तलाक, गुजारे और बच्चों की अभिरक्षा संबंधी अधिकार और अधिक व्यापक कर दिया गया है।
- मिस्र, सूडान, जार्डन, सीरिया, ट्यूनिशिया, मोरक्को, पाकिस्तान और बांग्लादेश में तीन बार तलाक कहने की प्रथा पर रोक है।
- मिस्र, सीरिया, ट्यूनिशिया, मोरक्को, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अनाथ पौत्रों के लिए विरासत संबंधी नए कानून बनाए गए हैं।
- मिस्र, सूडान, सीरिया, ट्यूनिशिया में जीवित पत्नी के उत्तराधिकार संबंधी अधिकार और व्यापक कर दिए गए।
पाकिस्तान में ‘फेमली लॉ आर्डिनेंस 1961’ लागू होने के बाद बहुविवाह अब पुरूष का यह अधिकार नहीं रहा जिसे चुनौती नहीं दी जा सकती है। दूसरे विवाह के लिए पहली पत्नी की लिखित स्वीकृति जरूरी है। क्योंकि सभी विवाह पंजीकृत होते हैं अतः तीन बार तलाक कह देने से वे समाप्त नहीं होंगे। तलाक अब लिखित अधिसूचना पर ही प्राप्त होगा। यह भी तब जब समझौते की सारी कार्रवाइयाँ दंपत्ति का पुनर्मिलन कराने में असफल हो गई हों। गुजारा भत्ता तलाकशुदा स्त्री का अधिकार है और यह केवल इद्दत की अवधि तक ही सीमित नहीं है।। धर्म तंत्री इस्लामिक देश पाकिस्तान में यह परिवर्तन 1950 के महिला आंदोलन की दृढ़ता और दबाव के कारण आया।
आज भारत में भी मुस्लिम महिलाओं की लड़ाई रंग ले आई है । भारत में भी आज तिहरा तलाक़ खत्म हुआ । लेकिन द्विविवाह प्रथा समाप्त कर सिविल कोड लागू किए बिना मुस्लिम औरतों का सामाजिक स्तर नहीं सुधरने वाला ।
यही सच है। और जो एक शेर में यही बात कहूँ तो शायद इसे आप और बेहतर ढंग से समझ सकेः
सच तो एक परिंदा है
घायल है पर जिंदा है
घायल है पर जिंदा है