कांग्रेस और राहुल गांधी की दुर्दशा देख कर मोहम्मद बिन तुग़लक़ की याद आती है। लोगों के बीच एक अवधारणा बैठा दी गई है कि तुग़लक़ सनकी था। पागल था। लेकिन सच यह है कि तुग़लक़ न तो सनकी था , न पागल। तुग़लक़ वास्तव में एक अक्षम शासक था। अपनी अक्षमता छुपाने के लिए वह कभी दिल्ली से दौलताबाद राजधानी ले जाता था , कभी दौलताबाद से दिल्ली लाता था। तो कभी चमड़े के सिक्के चलाता था। यह सब असल में जगह-जगह सूबेदारों के सिर उठाने पर , उन्हें बेअसर करने के लिए तुग़लक़ की पैतरेबाजी होती थी। वरना तुग़लक़ बहुत बुद्धिमान व्यक्ति था। तुग़लक़ की बुद्धिमानी की अनेक किस्से हैं। जिस में से एक किस्सा सुनाता हूं।
आप सब जानते ही हैं कि हमारे देश में राजनीति से भी ज़्यादा प्रभाव धर्म का है। ख़ास कर मुस्लिम समाज में तो मज़हब की कट्टरता एक से एक पढ़े लिखे के भी सिर चढ़ कर बोलती है। तो तुग़लक़ अपने राज में तमाम सूबेदारों की चुनौतियों को तो राजधानी और सिक्के बदल कर काबू कर लेता था। पर एक बार एक मौलवी तुग़लक़ के सामने चुनौती बन कर उपस्थित हो गया। उस मौलवी की स्वीकार्यता भी बहुत थी। मज़हब का आडंबर तो जो था , सो था ही। अब तुग़लक़ चिंतित हुआ। पर जल्दी ही उस ने इस मौलवी का इलाज खोज लिया। जानबूझ कर उस ने एक पड़ोसी राजा से पंगा लिया। न सिर्फ पंगा लिया बल्कि युद्ध की स्थितियां उपस्थित कर दीं। फिर युद्ध के माहौल में तुग़लक़ उस मौलवी के पास गया। डट कर उस मौलवी का ईगो मसाज किया और कहा कि आप हमारे सिर के ताज हैं। हमारे मोहतरम हैं। हमारे आप के बीच जो मतभेद हैं , उन की कोई अहमियत नहीं है। आप जो कहेंगे , वही होगा। पर अभी मुल्क पर खतरा है। कौम पर खतरा है। मैं चाहता हूं कि पहले कौम की खातिर , मुल्क की खातिर हम लोग मिल कर लड़ें। कौम और मुल्क बच गया तो हमारे बीच जो भी मसला है , आप के मुताबिक़ ही हल हो जाएगा। मौलवी यह सब सुन कर गदगद हो गया।
फिर तुग़लक़ ने एक नया पास फेंका और मौलवी से कहा कि मैं चाहता हूं कि इस जंग में एक मोर्चा आप संभालें और दूसरा मोर्चा मैं संभालता हूं। और कि आप सामान्य आदमी की तरह नहीं , बादशाह की तरह इस जंग को लड़ें। बादशाह की सवारी पर बैठ कर , बादशाह की तरह लड़ें। मौलवी मूर्ख था। तुग़लक़ के इस झांसे में फंस गया। और बादशाह बन कर , बादशाह की सवारी पर बैठ कर जंग के मैदान में कूद पड़ा। अब जंग के मैदान में शरीयत , कुरआन तो पढ़नी नहीं थी। जंग लड़नी थी। और मौलवी को जंग का कोई तजुर्बा नहीं था। नतीज़तन मारा गया। अब चूंकि मौलवी बादशाह की सवारी पर बैठ कर , बादशाह की तरह लड़ने गया था सो दुश्मन के खेमे में खबर फैल गई कि तुग़लक़ मारा गया। दुश्मन का खेमा जश्न में मशगूल हो गया। बीच जश्न तुग़लक़ ने दुश्मन पर हमला कर दिया। दुश्मन भी पराजित हो गया और मौलवी का भी काम तमाम हो गया।
कांग्रेस असल में इन दिनों तुग़लक़ काल के इसी दौर से गुज़र रही है। कांग्रेस के इस तुग़लक़ का नाम है , राहुल गांधी। लोग इन्हें लतीफ़ा गांधी , पप्पू आदि नाम से भी अलंकृत करते रहते हैं। न , मैं राहुल गांधी से तुग़लक़ की तुलना कर मैं तुग़लक़ का अपमान नहीं करना चाहता। तुग़लक़ अक्षम भले था , पर बुद्धिमान भी बहुत था। लेकिन राहुल गांधी तो बारंबार अपने को अक्षम और बुद्धिहीन साबित करने में पारंगत हो चुके हैं। निपुण हो चुके हैं। लेकिन लोकतंत्र की दुहाई देने वाली कांग्रेस पार्टी में अधिकांश लोगों के राजवंश की हामीदार होने का लाभ राहुल गांधी निरंतर ले रहे हैं। लेते रहेंगे। और कांग्रेस की लुटिया डुबोते रहेंगे।
सच यह भी कि राजवंश की गुलामी करने की अभ्यस्त कांग्रेस में राजवंश से इतर कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष बना तो कांग्रेस निश्चित रूप से दो , तीन टुकड़े हो जाएगी। कांग्रेस के ज़िम्मेदार लोगों को पार्टी टूटने का यह रिस्क लेना ही होगा। नहीं यह तो तय है कि जब तक कांग्रेस की कमान परोक्ष या अपरोक्ष रूप से राहुल गांधी के हाथ रहेगी तो कांग्रेस अंतत: समाप्त हो जाएगी। इस लिए भी कि राहुल गांधी न सिर्फ अक्षम , बुद्धिहीन , अहंकारी और बेहद बदतमीज हैं , बल्कि एक गैर राजनीतिक व्यक्ति हैं। इस लिए भी कि विभिन्न किस्म के नशे और अय्यासी में डूबे रहने वाले राहुल गांधी जब तक कांग्रेस के माई-बाप बने रहेंगे , कांग्रेस रूपी विपक्ष इसी तरह बेदम रहेगा और नरेंद्र मोदी और भाजपा का बाल भी बांका नहीं होगा।
सोनिया गांधी कैंसर से पीड़ित हैं और प्रियंका गांधी , रावर्ट वाड्रा के भ्रष्टाचार में फंसी पड़ी हैं। तो कांग्रेस के ज़िम्मेदार लोगों को इस गांधी परिवार के बोझ को हटाने का कोई कारगर विकल्प समय रहते ही खोज लेना चाहिए। और बात-बेबात हर बात में कम्युनिस्टों और मुसलामानों की तरह भाजपा और संघ की दुरभि संधि बता देने की बीमारी से परहेज करना चाहिए। बीमारी कांग्रेस के भीतर है। इलाज कांग्रेस को खुद करना है। अपना ढहता घर खुद बचाना है। रही बात भाजपा और संघ की तो उन की पसंद तो राहुल गांधी ही हैं। वह लोग तो चाहते ही हैं कि येन-केन-प्रकारेण राहुल गांधी फिर से कांग्रेस के अध्यक्ष बन जाएं। क्यों कि राहुल गांधी का पप्पू उन्हें बहुत सूट करता है।
राहुल गांधी की सनक , नशा , बदतमीजी , राजवंश का गुरुर , बुद्धिहीन और अक्षम होना भाजपा को तो खूब सूट करता है लेकिन कांग्रेस , देश के विपक्ष और देश के लोकतंत्र को बिलकुल सूट नहीं करता। हालां कि गुलाम नबी आज़ाद , कपिल सिब्बल टाइप के चमचा लोग भी अब कांग्रेस पर बोझ हैं। राहुल गांधी की तरह निकम्मे और सनकी भले न हों पर कांग्रेस की बेहतरी के लिए अब यह लोग कुछ कर सकेंगे , मुझे शक है। राहुल गांधी से ज़्यादा बदबू तो कपिल सिब्बल अपनी करतूतों के कारण करते हैं। कांग्रेस के लोग अपने भीतर से अगर गांधी परिवार से इतर नया नेतृत्व विकसित नहीं करते तो तय मानिए कि कांग्रेस शब्द अब एक दशक बाद शायद सुनाई नहीं देगा।