Thursday, 27 December 2018

तिहरा तलाक़ बिल पास लेकिन कांग्रेस को निरंतर ऐसे लाक्षागृह निर्माण से बचना चाहिए

आखिर तीन तलाक़ बिल लोकसभा में पास हो गया। मुस्लिम बहनों को हार्दिक बधाई । अब तीन तलाक़ ही नहीं , हलाला भी बंगाल की खाड़ी में बह गया । तीन तलाक़ पर तीन साल की सज़ा से बड़े-बड़े बदतमीजों की अकल ठिकाने आ जाएगी । बिल पर वोटिंग के समय कांग्रेस और उस के सहयोगी दलों के वाक आऊट पर एक पुराना लतीफ़ा याद आ गया है ।

ऐन युद्ध में बंगाल रेजिमेंट का कमांडर अपनी रेजिमेंट से बिछड़ गया । यही हाल सिख रेजिमेंट का भी हुआ । लेकिन सिख रेजिमेंट का कमांडर बंगाल रेजिमेंट के कमांडर से मिल गया और कमान संभाल लिया । कमांडर रेजिमेंट के पीछे-पीछे चल रहा था और रेजिमेंट के जवानों से दुश्मन की पोजीशन पूछता रहा । जवान बताते रहे दोश्मन-दोश्मन दो हज़ार मीटर , पलाबो ? पलाबो शब्द बंगला का था , सो सिख कमांडर ने समझा कि पलाबो मतलब फायरिंग । सो बोला , नो पलाबो । फिर जवानों ने बताया , दोश्मन-दोश्मन एक हज़ार मीटर , पलाबो ? सिख कमांडर बोला , नो पलाबो । फिर बताते-बताते जवानों ने बताया , दोश्मन-दोश्मन पचास मीटर , पलाबो ? सिख कमांडर ने कहा , यस पलाबो ! पलाबो का मतलब होता है , भाग लेना , पलायन कर जाना । सो पलाबो बोलते ही सारे जवान वापस भाग लिए और सब के सब मारे गए । जैसे बंगाल रेजिमेंट के जवानों की पहले ही से तैयारी थी , पलाबो की उसी तरह कांग्रेस और उस के सहयोगी दलों की भी तैयारी पहले ही से पलाबो की तैयारी थी । सेलेक्ट कमेटी का सहारा लिया और पलाबो कर गए और मारे गए । बिल पास हो गया ।

असल में हर विपरीत मामले को ठंडे बस्ते में लटकाने की लत लग गई है कांग्रेस को । जैसे अयोध्या में मंदिर की सुनवाई पर चुनाव बाद करने की सुप्रीम कोर्ट से कपिल सिब्बल की अपील । इस पर भी बात नहीं बनी तो तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्र जो डे बाई डे सुनवाई की तैयारी कर रहे थे , उन के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पेश करने की तैयारी कर दी । इस पर भी बात नहीं बनी तो उन के खिलाफ कुछ जस्टिस की प्रेस कांफ्रेंस करवा दी । दीपक मिश्रा डरपोक निकले और ख़ामोश हो गए । ऐसे ही ई वी एम के बहाने चुनाव आयोग पर निरंतर हमला , सेना पर हमला , सी बी आई पर हमला , रिजर्व बैंक पर हमला और अब तीन तलाक़ पर बिल को लटकाने की नाकाम कोशिश ।

कांग्रेस को निरंतर ऐसे लाक्षागृह निर्माण से बचना चाहिए । नहीं , इस अपने ही लाक्षागृह में खुद जल जाएगी ।क्यों कि कांग्रेसी साज़िशें मुगलिया साजिशों को मात करती दिख रही हैं । लोकतंत्र में लोक की मर्यादा का महत्व होता है , साजिशों का नहीं । जो कुछ लोग मोदी सरकार से ऊबे हुए हैं , विकल्प खोज रहे हैं । तीन राज्यों में कांग्रेस को जो सांस मिली है , इस विकल्प की तलाश में , उस का सदुपयोग करे कांग्रेस , न कि दुरूपयोग । पाकिस्तान समेत 22 इस्लामिक देशों से तीन तलाक़ समाप्त है तो भारत में क्या ज़रूरत थी , इस अमानवीय तीन तलाक़ की भला , जो कांग्रेस इसे निरंतर लटकाए रखना चाहती थी ? समझना कुछ बहुत कठिन नहीं है ।



तिहरा तलाक़ और गाय का मांस खाने की ज़िद और सनक का क्या कहिए। तीन तलाक़ पर संसद में अजब बहस जारी है । तीन तलाक़ की पुरज़ोर पैरवी करने वाले लोग क्या पता जल्दी ही गाय का मांस खाने के अधिकार और पसंद पर जल्दी ही बहस करते दिखें । अपने वामपंथी नेता जो धर्म को अफीम मानते हैं , संसद में इस्लाम की रक्षा में तलवार लिए खड़े दिखे। गुड है यह भी। कांग्रेस और उस के सहयोगी दलों के लिए तो खैर चुनावी अस्तित्व का मसला है । उन पर क्या कहूं भला । सेक्यूलरिज्म की राजनीति के इस तकाजे पर भी कुर्बान जाऊं । दुनिया भर में तीन तलाक़ समाप्त है । पाकिस्तान समेत 22 इस्लामिक देशों ने भी तीन तलाक़ से तौबा कर लिया है । लेकिन भारत तो सेक्यूलर देश है और यहां के सेक्यूलर चैम्पियंस का कोई जवाब नहीं । लाजवाब हैं यह लोग । हारी हुई लड़ाई भी सीना तान कर पूरी बेशर्मी से लड़ते हुए किसी को सीखना हो तो इन से सीखे । क्यों कि पानी की तरह साफ़ है कि तीन तलाक पर तीन साल की सज़ा का प्राविधान तो आज लोकसभा में पास हो कर बस क़ानून बन ही जाना है । तौबा , ख़ुदा खैर करे ! दिलचस्प यह कि लोकसभा से ज़्यादा दिलचस्प बहस न्यूज़ चैनलों पर मुल्लाओं की देखने लायक थी । बिलकुल खुद की दाढ़ी उखाड़ लेने वाली बहस ।

Monday, 17 December 2018

बैंक यूनियन के एक नेता के बहाने देश में भ्रष्टाचार की ट्रैफिक कथा

वर्ष 1985 में जब दिल्ली से लखनऊ आया था तो एक बैंक में यूनियन के एक नेता पर नज़र गई। थे तो वह क्लर्क ही लेकिन रहते ख़ूब ठाट -बाट से थे । बड़े-बड़े बैंक मैनेजर उन के आगे-पीछे घूमते थे । बैंक मैनेजर तो छोड़िए कई आई ए एस , आई पी एस , पी सी एस अफ़सर भी उन की मुट्ठी में रहते थे । उन की कोई बात टालते नहीं थे । टेढ़े से टेढ़े मामले भी वह चुटकी बजाते ही संभव बनवा देते थे । इंजीनियर , ठेकेदार , व्यवसायी भी उन की छांव खोजते थे । गज़ब जलवा था । फिर हम ने इन को अपने राडार पर लिया । बैंक में तो जल्दी यह जनाब मिलते नहीं थे । किसी अफ़सर , किसी ठेकेदार , किसी व्यवसायी के यहां वह मिलते थे । या फिर यह लोग इन के यहां । मोबाइल का ज़माना नहीं था तब लेकिन एक फ़ोन पर यह अपने ज़रूरी काम करवा लेते । वह लगातार मोबाइल रहते । कुछ ख़ास अड्डे इन के तय थे । अलग-अलग समय पर । दोपहर का ,कहीं शाम का कहीं । लंच और डिनर भी अकसर पांच सितारा होटलों में । या उन होटलों से लोग पैक करवा लाते ।

एक व्यवसायी ने तो उन्हें हज़रतगंज जैसी जगह में ऊपरी मंजिल का एक बड़ा सा फर्निश घर ही दे रखा था । नीचे आलीशान शोरुम , ऊपर आलीशान घर । बहुत सुरागरसी की पर जनाब की असल कुंजी नहीं मिल पा रही थी । ताकि ख़बर निकल सके । बहुत दिनों तक फॉलो करता रहा । फिर अंतत: राज का पता चल गया । होता क्या था कि रिश्वत के लेन-देन में उन दिनों रिश्क बहुत बढ़ गया था । लोग रंगे हाथ पकड़े जाने से भयभीत रहते । ठीक वैसे ही जैसे औरतें संभोग से सिर्फ़ इस लिए डरती फिरती हैं कि कहीं गर्भवती न हो जाएं । तो यह जनाब बैंक कर्मचारियों के नेता जी , निरोध कहिए , कापर टी कहिए , कोई गोली कहिए , का काम करते थे । होता यह था कि किसी नाम से किसी बैंक में एक खाता खुल जाता । करोड़ , लाख किसी भी रकम में । फिर संबंधित व्यक्ति को एक चेक बुक दे दी जाती । दस्तखत कर के । लिमिट बता दी जाती । अब अगला आदमी किस नाम से , किस अकाउंट में , किस धनराशि में , बियरर या अकाउंट पेयी जैसे , जिस तरह से चाहे , जब चाहे निकाल ले । न कोई रिश्क , न कोई झंझट । किस ने दिया , किस को दिया , किसी को पता नहीं । और कार्य सुगमता से संपन्न हो जाता । हफ्ते , महीने में पैसा खत्म होते ही वह अकाउंट बंद हो जाता । सूत्रधार होते यह बैंक नेता जी । बैंक मैनेजर से लगायत हर किसी का अनुपात उस को मिल जाता । बस सूत्रधार होते यह बैंक नेता जी । हर किसी का राज इन को मालूम होता । हर किसी को इन पर विश्वास होता ।

आंख मूंद कर लोग नेता जी के एक फोन पर लाखों करोड़ों की डील कर लेते थे । छोटे-मोटे काम में नेता जी हाथ भी नहीं लगाते थे । ऐसे मामलों के कोई सुबूत भी नहीं मिलते । कहते ही हैं कि घूस और भूत के सुबूत नहीं होते । कई व्यवसायियों के खाते में पैसे नहीं होते लेकिन लाखों की डिमांड ड्राफ्ट नेता जी बनवा देते । हफ्ते दस दिन में माल आते ही खाते में पैसा पहुंच जाता । कुछ मामले हम ने निकाले । ख़बर लिखी । पर छपी नहीं । पता चला कि इस पूरे रैकेट में अख़बार के मालिकान भी शामिल थे । उन को भी पचास काम इसी पुल से गुज़र कर करवाने होते थे । नौकरी जाते-जाते बची । खैर , मजा तब आया जब इन नेता जी के एक बेटे की शादी हुई । नेता जी मुझे भी बुलाना नहीं भूले । गया भी मैं । देखा कि एक से एक अफसर , व्यवसायी , ठेकेदार , इंजीनियर उपस्थित थे । कुछ राजनीतिज्ञ भी । एक दूसरे से आंख छुपाते , बचते-बचाते । लेकिन कब तक और कितना बचते ? बैंक नेता के हमाम में सभी नंगे हो चुके थे । सब एक दूसरे की नस पकड़ चुके थे । और तो और कुछ अफ़सर तो ऐसे भी दिखे जो अपने इमानदार होने का डंका पीटते नहीं थकते थे । एक बैंक क्लर्क के बेटे की शादी में राजनीतिज्ञों , आला अफसरों , ठेकेदारों , इंजीनियरों और व्यवसायियों की उपस्थिति लेकिन किसी अख़बार की सुर्खी नहीं बनी । बनती भी कैसे भला कुछ अख़बारों के मालिकान भी तो इस हमाम में चहक और महक रहे थे । कुछ दल्ले पत्रकार भी उपस्थित थे ।

मैं अभिशप्त था यह और ऐसा नज़ारा देखने के लिए । देख कर भी खामोश था । तब मोबाइल भी नहीं होते थे कि कुछ फ़ोटो ही खींच लेता । ख़बर भी नहीं लिखी । फ़ेसबुक , ट्विटर या ब्लॉग भी नहीं था कि यह सब लिख देता । बाद के दिनों में तो सब कुछ आन लाइन होने लगा । चेक तो अब भी है ही , क्रेडिट कार्ड भी थमा देते हैं लोग । लेकिन बैंक अकाऊंट खोलने और रिश्वत लेने और देने वालों का लिंक जोड़ने वाले बैंक कर्मियों की सर्वदा ज़रुरत रही है इस सिस्टम को , सर्वदा रहेगी । बेवजह लोगों की आंखें चौंधिया गई हैं बैंक के मार्फ़त करोड़ों के गुलाबी रुपए की खेप दर खेप देख कर । यह सब तो होना ही था , सर्वदा होता रहेगा । यह जन धन खाते , खातों का इंश्योरेंस वगैरह में भी बैंक वालों ने कितना जय हिंद किया है , यह बात भी भला कितने लोग जानते हैं ? तो मित्रों जानिए कि भारत एक कृषि प्रधान देश है , यह ग़लत अवधारणा है । सच यह है कि भारत एक भ्रष्टाचार प्रधान देश है । और भारतीय बैंक इस भ्रष्टाचार के सब से बड़े कम्युनिकेशन सेंटर । केंद्र बिंदु । धुरी । भ्रष्टाचार के सूत्रधार । देश में भ्रष्टाचार की सारी ट्रैफिक बैंक की रेल , नाव और जहाज से ही गुज़रती है ।

Monday, 3 December 2018

जब राजेंद्र बाबू ने पत्नी से कहा कि अगर उस अंगरेज औरत से हाथ नहीं मिलाया तो नौकरी चली जाएगी


देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू का आज जन्म-दिन है तो उन के बहुतेरे किस्से याद आ रहे हैं । हम जब पढ़ते थे तब अक्सर मेरे पिता जी उन का ज़िक्र करते हुए बताते थे कि इक्जामिन इज बेटर देन इक्जामिनर । ऐसा किसी परीक्षक ने राजेंद्र प्रसाद की कापी पर लिखा था । लेकिन तब पिता का यह कहना समझ नहीं आता था कि ऐसा वह बार-बार क्यों सुनाते रहते हैं । बाद में जब संविधान के बाबत पढ़ना शुरु किया और जाना कि संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद ही थे तब समझ में आया । दलितों का इगो मसाज करने के लिए राजनीतिक दल और लोगबाग भले आंबेडकर को संविधान निर्माता कहते फिरते हैं , आंख में धूल झोंकते रहते हैं पर असल निर्माता तो बाबू राजेंद्र प्रसाद ही हैं । तीन सौ से अधिक लोगों की संविधान सभा थी । ढेर सारी कमेटियां थीं । आंबेडकर सिर्फ़ ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमैन थे । लेकिन राजनीतिक धूर्तता और कमीनेपन ने अम्बेडकर को संविधान निर्माता घोषित कर दिया । 

तो क्या राजेंद्र प्रसाद सहित बाक़ी संविधान सभा के तीन सौ सदस्य घास छिल रहे थे ? खैर । फिर राजेंद्र बाबू की कई सारी टिप्पणियां पढ़ीं तो उन के लिए मन में आदर भाव और बढ़ गया । उन की विनम्रता , सदाशयता , शालीनता और बड़प्पन के तमाम किस्से हैं । यह भी जग जाहिर है कि नेहरु से उन की बिलकुल नहीं बनती थी । नेहरु और राजेंद्र प्रसाद के बीच मतभेद के अनगिन किस्से हैं । तो भी एक बार जब नेहरु भारत लौटे तो यह क्या सारी परंपरा , प्रोटोकाल तोड़ कर राजेंद्र बाबू नेहरु को रिसीव करने एयरपोर्ट पहुंच गए । क्यों कि नेहरु तब विश्व में भारत का डंका बजा कर लौटे थे । इतना ही नहीं सारी परंपरा तोड़ कर , कमेटी आदि को दरकिनार कर नेहरु को भारत रत्न देने का अचानक ऐलान कर दिया तो लोग भौचक रह गए ।

एक बार क्या हुआ कि इंग्लैण्ड की महारानी को आज़ाद भारत में पहली बार आना था तो इस बाबत नेहरु राजेंद्र प्रसाद से औपचारिक मुलाकात के लिए गए । तमाम बातें हुईं पर जब नेहरु ने उन्हें बताया कि प्रोटोकाल के तहत राष्ट्राध्यक्ष होने के कारण महारानी के स्वागत में उन्हें ही आगे बढ़ कर हाथ मिलाना होगा । राजेंद्र बाबू यह सुन कर बोले कि फिर तो प्रोटोकाल के तहत मेरी पत्नी भी साथ होंगी उस समय । नेहरु ने कहा , बिलकुल । तब राजेंद्र बाबू ने कहा कि फिर तो यह मुझ से न हो पाएगा । नेहरु ने पूछा कि दिक्कत क्या है ? राजेंद्र बाबू बोले , किसी और स्त्री से हाथ मिलाने पर पत्नी कहीं भड़क गईं और महारानी के बाल नोचने पर आमादा हो गईं तो ? अनर्थ हो जाएगा । नेहरु ने कहा कि हां , यह दिक्कत तो बड़ी है । फिर नेहरु ने ही तजवीज दी कि ऐसा कीजिएगा कि आप सिर्फ़ हाथ जोड़ लीजिएगा । तब तक आगे बढ़ कर जल्दी से मैं हाथ मिला लूंगा । किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा । बात फाईनल हो गई ।

लेकिन जब महारानी आईं तो राजेंद्र प्रसाद ने नेहरु को मौका दिए बिना लपक कर ख़ुद हाथ मिला लिया। अब नेहरु घबराए कि कहीं कुछ अनर्थ न हो जाए। पर कहीं कुछ भी नहीं हुआ। राजेंद्र प्रसाद की पत्नी शांत खड़ी रहीं। बाद में जब महारानी की भारत यात्रा सकुशल संपन्न हो गई और वह इंग्लैण्ड लौट गईं तब एक दिन राजेंद्र प्रसाद से नेहरू ने पूछा कि आप ने तो हाथ मिला लिया और कुछ नहीं हुआ। तो राजेंद्र बाबू ने नेहरू को बताया कि असल में उस दिन आप के जाने बाद रात में पत्नी से बताया कि एक संकट आ गया है। एक अंगरेज औरत से हाथ मिलाना पड़ेगा तो वह बहुत नाराज हुईं कि मेरे रहते तो यह संभव नहीं । तो मैं ने पत्नी को बताया कि मामला नौकरी का है । अगर उस अंगरेज औरत से हाथ नहीं मिलाया तो नौकरी चली जाएगी । तो पत्नी ने कहा कि अगर बात नौकरी की है तो हाथ मिला लीजिए , नौकरी नहीं जानी चाहिए । 

राजेंद्र प्रसाद की पत्नी इलाहाबाद की थीं। महादेवी वर्मा की परिचित भी। एक बार महादेवी वर्मा दिल्ली गईं तो राष्ट्रपति भवन भी गईं। राजेंद्र प्रसाद की पत्नी से मिल कर जब चलने लगीं तो उन्हों ने महादेवी से कहा कि अगली बार जब आएं तो उन के लिए सूप ज़रूर ले आएं। यहां सूप नहीं है कि अनाज ठीक से फटक कर साफ़ कर सकें। अगली बार जब महादेवी इलाहाबाद से दिल्ली गईं तो राष्ट्रपति भवन सूप ले कर गईं। बाद के दिनों में जब राजेंद्र बाबू का कार्यकाल खत्म हुआ तो अपने निजी सामान में उन की पत्नी ने वह सूप भी रखा ले जाने के लिए। राजेंद्र प्रसाद ने जब उस सूप को देखा तो पत्नी से कहा कि यह उपहार में मिला हुआ है , हम इसे नहीं ले जा सकते। और वह सूप राष्ट्रपति भवन में ही छोड़ दिया। राजेंद्र बाबू चाहते तो दिल्ली में सरकारी घर में रह सकते थे। पर वह दिल्ली छोड़ कर पटना चले गए। अपने पैतृक घर में। जो खपरैल का था। बरसात में चूता था। लेकिन उन के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि उस खपरैल के घर की मरम्मत करवा सकें। दस बरस राष्ट्रपति रहने के बाद भी उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। 

राजेंद्र बाबू के संबंध तब के लेखकों और पत्रकारों से भी बहुत अच्छे थे। निजी थे। पंडित सूर्य नारायण व्यास को लिखी उन की एक चिट्ठी याद आती है। व्यास जी को ब्लड प्रेसर हो गया है। राजेंद्र बाबू को जब यह पता चला तो चिट्ठी लिख कर वह उन को सर्पगंधा लेने की तजवीज देते हैं। चिट्ठी में बताते हैं कि उन के  बिहार में नेपाल सीमा पर यह पौधा बहुतायत में मिलता है। अगर न मिले तो कृपया बताएं , भेजने की व्यवस्था करेंगे। यह एक राष्ट्रपति की चिंता है , उज्जैन में बैठे अपने एक लेखक मित्र के लिए। आज कहां संभव है ऐसी सदभावना , ऐसी संवेदना और सदाशयता। इसी लिए बाबू राजेंद्र प्रसाद याद आते हैं। पिता ठीक ही कहते थे , इक्जामिन इज बेटर देन इक्जामिनर । राजेंद्र बाबू आज भी हमारे सम्मुख बेटर इक्जामिन हैं । उन का कोई सानी नहीं ।