Sunday, 25 November 2018

आख़िर लौट गए वह लोग अयोध्या से


आख़िर लौट गए वह लोग अयोध्या से
लेकिन अयोध्या के लोगों को भरपेट डरा कर
शायद फिर आएंगे

अपराधी हैं यह लोग
सामान्य लोगों को डराने वाले इन अपराधियों को
माकूल सज़ा मिलनी चाहिए

सज़ा मिलनी चाहिए इन चैनलों को भी
जो अनाप-शनाप बयान दिखा-दिखा कर
अपनी दुकान चलाते है
और पूरे देश को डरा कर
नफ़रत और जहर का काला धुआं उड़ाते हैं
पैनिक फैला कर
पूरे देश में भय का माहौल बनाते हैं

सज़ा मिलनी चाहिए सुप्रीम कोर्ट के उन न्यायमूर्तियों को भी
जो तमाम मामलों की तरह
ऐसे सामाजिक सवेदना के विषय को भी
सामान्य मामला समझते हैं
सुनने और निर्णय देने का कलेजा नहीं रखते

तारीखों में उलझा कर
देश को नफ़रत के तंदूर में निरंतर भूनते रहते हैं
हत्यारों को रोज ज़मानत देने वालों के पास
टाइम क्यों नहीं है राम मंदिर का मामला सुनने के लिए
सज़ा मिलनी चाहिए इन न्याय की मूर्तियों को

सज़ा मिलनी चाहिए
ऐसे राजनीतिक दलों और उन के लोगों को
जो इस नफ़रत के तंदूर को निरंतर धधकाते रहते हैं
कोई प्रत्यक्ष रूप से , कोई अप्रत्यक्ष रूप से

राम के नाम पर
अगर कुछ लोग वोट बटोरने का दंभ भरते हैं
तो कुछ लोग
राम के खिलाफ लोगों को भड़का कर
वोट बटोरते हैं
यह सभी अपराधी हैं
सामूहिक अपराधी

इन सभी को एक साथ खड़ा कर सज़ा देनी चाहिए
यह सभी के सभी देश के गुनहगार हैं और गद्दार भी
इन्हें सजा ज़रूर दी जानी चाहिए

यह सभी अपराधी हैं

हे अपराधियों
राम को राम ही रहने दो , भगवान ही रहने दो
तंदूर की भट्ठी नहीं बनाओ
कि लोग , लोगों की संवेदनाएं जल कर खाक हो जाएं
मनुष्य को मनुष्य ही रहने दो
लोहा मत बनाओ
अयोध्या को लोहा पिघलाने वाली भट्ठी मत बनाओ
हमें मूर्ति नहीं बनना

अयोध्या को अयोध्या ही रहने दो
राम को राम

अयोध्या राम का नगर है
तुम्हारे वोट का जंगल नहीं
तुम्हारी वोट की दुकान का विज्ञापन नहीं है अयोध्या

काश कि तुम सभी अपराधियों को
एक साथ खड़ा कर गोली मार देने का कानून होता
क्यों कि तुम लोग पूरे देश को हिरोशिमा नागासाकी बनाना चाहते हो
परमाणु बम से ज़्यादा खतरनाक हो तुम लोग

[ 25 नवंबर , 2018 ]

Thursday, 22 November 2018

अपनी तारीफ़ सुन कर लजा जाने वाले अप्रतिम कथाकार हिमांशु जोशी का जाना


अपनी तारीफ़ सुन कर लजा जाने वाले अप्रतिम कथाकार हिमांशु जोशी नहीं रहे । यह जान कर आज की सुबह बरबाद हो गई । ख़ूब भले , सौम्य और शालीन हिमांशु जोशी से मैं पहली बार मई,1979 में साप्ताहिक हिंदुस्तान, नई दिल्ली के दफ़्तर में मिला था। गोरखपुर से गया था , प्रेमचंद पर एक परिचर्चा ले कर। 21 साल की उम्र  थी  , विद्यार्थी था पर कविता , कहानी के साथ ही उन दिनों मैं परिचर्चा बहुत लिखता था । हिमांशु जी ने उस परिचर्चा को साप्ताहिक हिंदुस्तान में खूब फैला कर कई पन्नों में छापा भी जुलाई,1979 के आखिरी हफ्ते के अंक में। साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिका में 21 साल के विद्यार्थी का इस तरह छपना , मेरे लिए बड़ी उपलब्धि थी । हालां कि तब तक सारिका और धर्मयुग में भी छप चुका था फिर भी इतनी ढेर सारी जगह साप्ताहिक हिंदुस्तान में ही मिली । फिर मिला उन से मई,1981 में। साप्ताहिक हिंदुस्तान के दफ़्तर में ही। हिमांशु जी बहुत प्यार से मिलते थे। हमेशा। और प्रोत्साहित भी खूब करते थे। परिजनों , मित्रों का हालचाल पूछते हुए। क्या नया लिख रहे हो पूछते हुए। उन्हों ने ही मुझे अरविंद कुमार के पास भेजा।

हिंदुस्तान टाइम्स बिल्डिंग के सामने ही सूर्य किरन बिल्डिंग में उन दिनों सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट का दफ़्तर था। मैं मिला अरविंद जी से , हिमांशु जी का संदर्भ देते हुए । अरविंद जी ने मुझे तुरंत सर्वोत्तम में नौकरी दे दी। सर्वोत्तम के बहाने मेरा जीवन बदल दिया अरविंद जी ने । फिर तो जब तक दिल्ली में रहा हिमांशु जी से जब-तब भेंट होती रही। मनोहर श्याम जोशी से भी हिमांशु जोशी ने ही मिलवाया था। एक बार मैं ने उन से कहा कि फ़िल्म अभिनेता जाय मुखर्जी और आप की शकल एक जैसी है। तो वह मुसकुरा पड़े । लखनऊ में साहित्य अकादमी ने कहानी पाठ का आयोजन किया दिसंबर, 2009 में। तब उन के साथ मैं ने कहानी पढ़ी। इस पर मैं ने उन से अपनी खुशी का इज़हार किया तो वह मुझ से भी ज़्यादा खुश दिखे। अप्रैल, 2010 में उन से फिर भेंट हुई हरिद्वार में। साहित्य अकादमी द्वारा ही आयोजित कहानी पाठ में। कहानी सत्र की अध्यक्षता उन्हों ने ही की। दो दिन उन के साथ रहना हुआ। फिर उन से मिला बीते 24 जून, 2011 को दिल्ली सरकार के सचिवालय भवन में। अरविंद कुमार को जब हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से नवाज़ा तब। यह विरल संयोग था। उस समारोह में भी वह फिर पहले ही जैसी ताजगी और खुले मन से मिले। उसी सौम्य मुसकान के साथ। मैं ने उन्हें फिर बताया कि आप की शकल जाय मुखर्जी से बहुत मिलती है तो वह फिर हंस पड़े। मैं ने यह बात अरविंद जी से भी कही तो वह भी हंस पड़े ।

हिमांशु जी के साथ यह मेरी एक फ़ोटो तब की ही है , अरविंद जी के शलाका सम्मान समारोह के मौके पर खिंची हुई। जिसे बाद में अरविंद जी ने मुझे भेजा । हिमांशु जोशी का उपन्यास तुम्हारे लिए जब पढ़ा था तब विद्यार्थी था। तब से ही मैं उन का मुरीद हूं । यह बात जब-जब उन्हें बताता था , वह खुश होने के साथ ही लजा-लजा जाते थे । लजा कर सिर झुका लेते थे । अपनी तारीफ़ सुन कर लजा जाने वाले मेरी जानकारी में वह पहले रचनाकार हैं। उन की यह सरलता और सहजता ही उन की रचनाओं में भी टपकती मिलती है। उन की मुसकुराहट की ही तरह उन की रचनाएं और उन के पात्र भी जैसे खिलखिला पड़ते हैं । लेकिन दुर्भाग्य कि अब फिर से खिलखिलाने के लिए , अपनी तारीफ़ सुन कर लजाने के लिए हिमांशु जोशी कभी नहीं मिलेंगे । अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि !

हिंदुत्व के भाजपाई जाल में कांग्रेस अनायास फंस गई है


हिंदुत्व के जाल में कांग्रेस अनायास फंस गई है। यह जाल भाजपा का है। वरना भाजपा के इस जाल में फंसी कांग्रेस की आत्मा आज भी मुस्लिम वोट बैंक के लिए तड़पती है। बहुत दिन नहीं हुए जब तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। दरअसल अभी तक कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की खतरनाक तलवार पर चल रही थी लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण जब उस के लिए भस्मासुर बन गया , कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई तो वह हिंदुत्व की शरण में भी आ गई। सत्ता की हवस ख़ातिर एंटोनी कमेटी की रिपोर्ट ने उसे लाचार कर दिया। एंटोनी कमेटी ने कहा था कि मुस्लिम तुष्टीकरण और   कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि के कारण कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारी। लेकिन कांग्रेस के लिए हिंदुत्व अब दोधारी तलवार बन कर उपस्थित है। कांग्रेस न मुसलमानों की बन कर रह पा रही है न हिंदुओं की। लेकिन एक निर्मल सच यही है कि वोटबंदी के लिए कांग्रेस आज भी मुस्लिम तुष्टीकरण को अपना मुख्य आधार मानती है , हिंदुओं या हिंदुत्व को नहीं । पारसी फ़िरोज़ गांधी के पोते राहुल गांधी ब्राह्मण कैसे हो गए कि कुर्ते के ऊपर यज्ञोपवीत पहन कर मंदिर-मंदिर घूमने लगे। कांग्रेस में यह कोई पूछने वाला नहीं है। हालां कि योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि राहुल गांधी मंदिर में भी ऐसे बैठते हैं जैसे मस्जिद में बैठे हों। सच भी यही है कि कांग्रेस न हिंदू की है न मुसलमान की , सिर्फ़ सत्ता की है। सत्ता के लिए कांग्रेस किसी भी को अपना बाप बना सकती है। उस का सॉफ्ट हिंदुत्व एजेंडा इसी बाप बनाने की एक सीढ़ी है , कुछ और नहीं।  

लोकतांत्रिक भारत की चुनावी राजनीति में धर्म का कार्ड पहले पहल इंदिरा गांधी ने खेला। लेकिन इंदिरा गांधी तलवार की धार पर बड़ी ख़ूबसूरती से चलना जानती थीं। ऐसे जैसे जादूगरनी हों। इंदिरा गांधी एक साथ जामा मस्जिद , दिल्ली के शाही इमाम बुखारी , बाबा जयगुरुदेव , देवरहवा बाबा आदि सभी को साधना और उन का वोट बटोर लेना जानती थीं। इतना ही नहीं कभी कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक ब्राह्मण , दलित और मुस्लिम ही थे। तीनों , तीन ध्रुव थे लेकिन कांग्रेस के वोट बैंक के गुलदस्ते में इस तरह फिट होते थे कि किसी को कभी तकलीफ नहीं होती थी। इस का मूल कारण था कि तब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में ज़्यादातर ब्राह्मण नेता उपस्थित थे। वह बुद्धि , सदाशयता , उदारता और कूटनीति से काम लेते थे। जातीय दुर्गंध उन में नहीं थी। चौधरी चरण सिंह , करूणानिधि , जयललिता आदि पिछड़ी राजनीति के पुरोधा थे। बाक़ी वोट कांग्रेस के पाले में थे। लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दृश्य बदल गया। राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की कमान अर्जुन सिंह आदि के हाथ में आ गई। कमलापति त्रिपाठी , प्रणव मुखर्जी आदि का जिस तरह अर्जुन सिंह ने राजीव गांधी की शह पर अपमान का वातावरण बनाया , वह कांग्रेस के लिए अशुभ साबित हुआ। दिन-ब-दिन ब्राह्मण वोट कांग्रेस से छिटकना शुरू हो गया। विश्वनाथ प्रताप सिंह की बोफोर्स राजनीति में राजीव गांधी जब सत्ता से विदा हुए तो  मंडल , कमंडल की राजनीति कांग्रेस के लिए सुनामी बन कर उपस्थित हुई। भारतीय राजनीति के लिए भी। देश की राजनीतिक दशा और दिशा बदल गई। 

ब्राह्मण समेत अधिकांश सवर्ण वोट भाजपा में लामबंद हो गए। पिछड़े , मुस्लिम और दलित वोट जनता दल और उन के सहयोगी दलों के साथ एकजुट हो गए। कांग्रेस ख़ाली हाथ रह गई। कांग्रेस ने कसरत बहुत की कि ब्राह्मण वोट कांग्रेस के पाले में लौट आए , जो अब तक नहीं लौटा। अस्थाई रुप से कभी सपा तो कभी बसपा को भी ब्राह्मणों ने आजमाया और इन पार्टियों को सफलता की राह भी दिखाई। पर अंतत: भाजपा की तरफ लौटे। अलग बात है एस सी एस टी एक्ट और नौकरियों में प्रमोशन में भी आरक्षण के चलते ब्राह्मण वोट भाजपा से फिर बिदक गया है। लेकिन कांग्रेस को हिंदुत्व के जाल में फंस कर ब्राह्मण वोट नहीं दिख रहे। सो अपने पाले में ब्राह्मण वोट लाने की लालसा भी नहीं दिखाई। फिर फर्जी ही सही , राहुल गांधी नाम के एक ब्राह्मण का गुमान कांग्रेस को फ़िलहाल है ही। अब रह गए दलित और मुस्लिम तो तब तक कांशीराम राजनीति में कूद चुके थे। पिछड़े , दलित और मुस्लिम का एक नया गठबंधन बन गया। लालू यादव , मुलायम यादव ने मंडल और पिछड़े के नाम पर मलाई काटनी शुरू कर दी। जातिवादी राजनीति की बदबू और भ्रष्टाचार की सड़न बहुत जल्दी सामने आ गई। मायावती इन की काट बन कर उपस्थित हो गईं। लेकिन दलित दुर्गंध की राजनीति और भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डूबी मायावती कांग्रेस की सब से बड़ी दुश्मन बन कर उपस्थित हो गईं। दलितों की नाल कांग्रेस से पूरी तरह काट दिया मायावती ने। इसी लिए देखिए कि सब कुछ के बाद मायावती कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करतीं तो सिर्फ इस लिए कि यह डर उन के मन में सर्वदा समाया रहता है कि कांग्रेस कहीं दलितों को फिर से भरमा न ले। अब कांग्रेस के पास ब्राह्मण रहे नहीं , दलित रहे नहीं। अब सिर्फ़ और सिर्फ़ मुसलमानों का आसरा रह गया। तो मनमोहन सिंह का यह कहना बाध्यता हो गई कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार सिर्फ़ मुसलमानों का है। लेकिन मुसलमानों की भी प्राथमिकता बदल गई थी। उन को हर हाल भाजपा से निपटना था। सो मुसलमानों की प्राथमिकता में यह हो गया कि जहां और जैसे भी हो भाजपा को हराओ। जो उम्मीदवार भाजपा को हरा सकता हो , जिस भी किसी पार्टी का हो उसे वोट दो। मुसलमानों के इस रवैए ने स्थिति यह बना दी कि भाजपा को छोड़ कर हर किसी पार्टी ने मुस्लिम तुष्टीकरण का हलवा पकाना , खाना और खिलाना शुरू कर दिया। नतीज़ा यह हुआ कि भाजपा ने भारतीय राजनीति के इसी केमिकल लोचे का लाभ लिया और दलित , पिछड़े , सवर्ण सभी को एक साथ लामबंद कर ख़ामोश हिंदू ध्रुवीकरण कर 2014 में नतीज़ा बदल दिया।

कोई माने न माने पर शाश्वत सत्य यही है कि नरेंद्र मोदी की 2014 की जीत सिर्फ़ और सिर्फ़ मुस्लिम तुष्टीकरण के ख़िलाफ़ थी , किसी टू जी , किसी जीजा , किसी कोयला , किसी भ्रष्टाचार आदि के ख़िलाफ़ नहीं। अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद ने भाजपा के इस सोने में सुहागे का काम किया।  नरेंद्र मोदी का एक दाग गुजरात दंगा उन की बड़ी ताक़त बन कर साधारण हिंदुओं के मन में कौंधा। क़दम-क़दम पर नमक में दाल बन चुके मुस्लिम तुष्टीकरण से आजिज हिंदुओं ने मन ही मन मान लिया कि मुस्लिम तुष्टीकरण से अगर कोई निपट सकता है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ नरेंद्र मोदी। कश्मीर की अराजकता भी महत्वपूर्ण कारण बनी भाजपा के इस विजय में। मान लिया लोगों ने भाजपा ही कश्मीर को दुरुस्त कर सकती है। नरेंद्र मोदी नाम की यह पीठिका तैयार की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने। तय मानिए कि 2014 में भाजपा ने अगर नरेंद्र मोदी की जगह किसी और का नाम प्रधान मंत्री के लिए आगे किया होता तो भाजपा मुंह की खा गई होती। इतनी बड़ी जीत मुमकिन नहीं थी भाजपा के लिए। 2014 का चुनाव परिणाम आते ही कांग्रेस को जैसे लकवा मार गया। कांग्रेस से ज़्यादा मुस्लिम समाज को लकवा मार गया। मुस्लिम वोट बैंक किस चिड़िया का नाम है , मुसलमान अब भी अपनी दाढ़ी खुजाते हुए सोचते रहते हैं दिन-रात। क्यों कि भारतीय राजनीति में बतौर मुस्लिम वोट बैंक दामाद बने रहने का उन का रुतबा रातो-रात खत्म हो गया। बात-बेबात देश में आग लगा देने की उन की ताक़त , दंगा फैला देने की ब्लैकमेलिंग और इस मानसिकता पर आघात लग गया। ब्रेन स्ट्रोक जैसा। 

और कांग्रेस ?

कांग्रेस अब कभी दलित उभार में , कभी दलित उत्पीड़न में छेद खोजती है और वामपंथियों को लामबंद कर जय भीम , जय मीम की बिसात बिछा कर एक नकली आंदोलन का बीज बोती है। कभी रोहित वेमुला को हथियार बनाती है , कभी हार्दिक पटेल , जिग्नेश मेवाड़ी का फार्मूला बनाती है। नफ़रत का नित नया बीज बोती है। जब कि अंबेडकर वामपंथ के घनघोर विरोधी हैं। दोनों दो ध्रुव हैं। तब भी जय भीम , जय मीम ! कांग्रेस जाने क्या सोचती, समझती है। जे एन यू में भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा लगाने वालों के साथ राहुल खड़े दीखते हैं। याकूब मेनन और अफजल गुरु के समर्थकों के साथ कांग्रेस खड़ी मिलती है। मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा पार करती कांग्रेस सेना , चुनाव आयोग , सुप्रीम कोर्ट , सी बी आई आदि संस्थाओं पर हमला कर उन की छवि और मर्यादा पर निरंतर हमला करती मिलती है। अवार्ड वापसी का व्यूह रच कर साहित्य अकादमी को तहस-नहस करती है। गो मांस खाने की पैरवी में लथपथ कांग्रेस नोटबंदी , जी एस टी और राफ़ेल जैसे मुद्दों को ले कर खड़ी तो होती है पर इन मुद्दों पर कुछ भी प्रामाणिक डाक्यूमेंट नहीं दिखाती है। न कोर्ट जाती है , भाजपा की लाख चुनौती के बाद भी। क्यों कि सारे मामले हवा हवाई हैं। सिर्फ़  गगन बिहारी मुद्दे हैं यह सारे। सो इन गगन बिहारी मुद्दों से छुट्टी पाती है कांग्रेस तो अपने नेता राहुल गांधी को कुर्ते के ऊपर यज्ञोपवीत पहना कर , मंदिर-मंदिर घुमाती है। वह पारसी राहुल गांधी जिसे अपना ब्राह्मण गोत्र भी नहीं मालूम। हिंदू शब्द कांग्रेस के लिए अब राम नाम बन चुका है। इतना कि बौखलाहट में कभी हिंदू आतंकवाद का शब्द रचने वाली कांग्रेस , गाय का मांस खाने की वकालत करने वाली कांग्रेस अब गाय और गौशाला को अनुदान का वायदा अपने घोषणा पत्र में करने लगी है। हिंदू-हिंदू का फर्जी उदघोष करती कभी शिव मंदिर , कभी वह मंदिर , कभी यह मंदिर घूमते राहुल गांधी और उन की कांग्रेस जैसे सत्ता के लिए पागल हो चुकी है। चूंकि एंटोनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बता दिया कि मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू विरोधी छवि के कारण कांग्रेस लोकसभा चुनाव हारी। तो कांग्रेस की विवशता हो गई हिंदुत्व की माला जपना। लेकिन हिंदुत्व की माला कांग्रेस के लिए मुंह में राम , बगल में छुरी बन चुका है। हिंदुत्व और मुस्लिम तुष्टीकरण दोनों एक साथ साध रही है। यह हिंदू , मुसलमान को साधना कांग्रेस के लिए दो घोड़ों की सवारी कहिए या दो नाव की सवारी साबित हो रही है।

काश कि कांग्रेस हिंदुत्व की माला और मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर चलने के बजाय स्वस्थ राजनीति पर चलती । गांधी की राह चलती। कांग्रेस ही क्या सभी राजनीतिक दलों को स्वस्थ राजनीति की राह पर चलना चाहिए। जाति और धर्म की राजनीति , स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सर्वदा और सर्वथा घातक है। लेकिन लगातार लीक हो रहे वीडियो में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के  कमलनाथ जिस तरह निरंतर मुस्लिम वोट बैंक के लिए प्रतिबद्ध दीखते हैं , राहुल गांधी का सारा हिंदुत्व और मंदिर दर्शन पर पानी फिराते जा रहे हैं। न सिर्फ़ पानी फेर रहे हैं , भाजपा का निरंतर प्रचार करते जा रहे हैं। एक निजी वीडियो में कमलनाथ दहाड़ते हुए कह रहे हैं कि कांग्रेस को जीतने के लिए हर हाल में नब्बे परसेंट मुस्लिम वोट पड़ना ज़रूरी है , नहीं कांग्रेस को भारी नुकसान हो जाएगा। वह मोदी को हिंदू शेर बता कर मुस्लिम बुद्धिजीवियों को उकसाते दीखते हैं , इस वीडियो में। कमलनाथ का मुस्लिम बुद्धिजीवियों को संबोधित यह निजी वीडियो कांग्रेस के हिंदुत्व की डगर के लिए बहुत अशुभ है। कांग्रेस प्रवक्ताओं का विभिन्न चैनलों पर कटखन्ना बन कर बोलना भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं जाता। राम मंदिर पर कांग्रेस का ढुलमुल रुख और कपिल सिब्बल का मुस्लिम पक्ष का वकील बन कर सुनवाई में रोड़ा बनने की कवायद ने भी कांग्रेस के हिंदुत्व की डगर में बड़े बैरियर की भूमिका निभाई है। कभी शपथ पत्र दे कर राम की अवधारणा से ही इंकार करने वाली कांग्रेस के लिए हिंदुत्व सूट नहीं करता , कांग्रेस को अभी यह जानना शेष है। यह भी कि अयोध्या में मंदिर में मूर्तियां रखवाने , मंदिर का ताला खुलवाने , शिलान्यास करवाने , विवादित ढांचा गिरवाने में कांग्रेस का अप्रत्यक्ष हाथ सर्वदा ही रहा है। सब कुछ कांग्रेस राज में ही हुआ है। पर मुस्लिम वोट बैंक की लालच में कांग्रेस कभी खुल कर सामने नहीं आई राम मंदिर के लिए। आगे भी नहीं आने वाली। कांग्रेस की इसी हिप्पोक्रेसी का लाभ भाजपा ने डट कर उठाया है , उठाती ही जा रही है। 

इस लिए हिंदुत्व चाहे , सॉफ्ट हिंदुत्व ही क्यों न हो , कांग्रेस के वश का नहीं है। हिंदुत्व की राजनीति में कांग्रेस की तुलना में भाजपा बहुत पक्की और मज़बूत है। हिंदुत्व भाजपा की थाती और बिसात है , कांग्रेस जाने क्यों भाजपा की इस बिसात पर खेल रही है। निरंतर खेलती जा रही है। हिंदुत्व की बिसात पर कांग्रेस को सिर्फ़ और सिर्फ़ हारना ही है। जिन मुद्दों पर कांग्रेस चुनाव जीत सकती है , जितनी जल्दी संभव बने कांग्रेस को उन मुद्दों की खोज करनी चाहिए। कांग्रेस को यह भी जान लेना चाहिए कि सेक्यूलरिज्म किसी डिवेट के लिए , किसी के ईगो मसाज के लिए , भले मुफ़ीद विषय हो , मुस्लिम वोट बैंक के लिए मुफ़ीद हो लेकिन समग्र वोट बैंक के लिए , खास कर हिंदू वोट बैंक के लिए महज़ बदबू मारता हुआ एक शब्द है। बहुत भयानक बदबू आती है इस एक सेक्यूलर शब्द से। इस बात को सिर्फ़ सामान्य जनता जानती है , राजनीतिक और बुद्धिजीवी लोग नहीं। जानते होते तो इस शब्द से लोगों को पिन की तरह निरंतर चुभोते नहीं रहते। यह पिन भाला की तरह घोंप-घोंप कर निरंतर लोगों को नाराज नहीं करते होते। इस एक सेक्यूलरिज्म शब्द और मुस्लिम तुष्टीकरण ने एक व्यापक हिंदू वोट बैंक खड़ा कर दिया है , जो पहले कभी नहीं था। कांग्रेस , कांग्रेस समर्थक बुद्धिजीवियों और वामपंथियों को यह जानना अभी शेष है। क्यों कि इन की दुनिया बहुत बंद दुनिया है। गोया धरती पर नहीं , मंगल ग्रह पर रहते हों। बाहर की दुनिया की बात वह किसी सूरत नहीं जानना चाहते। यह उन की ज़िद ही नहीं , सनक भी है। उन का सिद्धांत तो खैर है ही। उन की राय में जो उन से असहमत हो , वह भाजपाई है , संघी है , हिंदूवादी है । तो एक बड़े हिस्से को इन लोगों ने खुद ही अपने ख़िलाफ़ मान लिया है। ऐसे में क्या कुछ कहना अब भी शेष रह जाता है ? कुल मिला कर कांग्रेस के लिए हिंदुत्व की डगर किसी सूरत मुफ़ीद नहीं है , समय की दीवार पर लिखी यह इबारत कांग्रेस के रणनीतिकारों को जान और मान लेने में कतई गुरेज नहीं करना चाहिए। राहुल गांधी का बैरियर क्या कम है कांग्रेस के पास जो हिंदुत्व का भी बैरियर बना लिया है ?

Tuesday, 20 November 2018

तो सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा द वायर को कबूतर बना कर कांग्रेस एजेंट के रूप में काम कर रहे थे ?



तो क्या सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा द वायर को अपना कबूतर बना कर कांग्रेस एजेंट के रूप में काम कर रहे थे ? सुप्रीम कोर्ट में आज की सुनवाई में इस बात की साफ़ भनक मिली है । कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने आज इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए अगली तारीख दे दी है। 29 नवंबर की । गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा का जवाब 19 नवंबर तक मांगा था , सीलबंद लिफ़ाफ़े में । सी वी सी ने भी सीलबंद लिफ़ाफ़े में सुप्रीम कोर्ट को आलोक वर्मा के खिलाफ जांच रिपोर्ट दी थी । आज 20 नवंबर को सुनवाई थी । लेकिन द वायर ने 17 नवंबर को ही अपनी एक रिपोर्ट में आलोक वर्मा के खिलाफ सी वी सी रिपोर्ट और आलोक वर्मा के जवाब को देखने का दावा करते हुए कुछ सवाल खड़े किए हैं । तो सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा के ख़िलाफ़ रिपोर्ट या उन का जवाब सार्वजनिक नहीं किया फिर भी वह रिपोर्ट द वायर ने देख ली तो बिना आलोक वर्मा के दिखाए तो देखी नहीं ।

याद कीजिए कि आलोक वर्मा को जवाब देने के लिए निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा था कि संविधान और सी बी आई की गरिमा और गोपनीयता का खयाल रखिएगा । लेकिन आलोक वर्मा सुप्रीम कोर्ट की यह हिदायत भूल गए । अपनी और अपने पद की गरिमा भी । ज़िक्र ज़रूरी है कि सी बी आई निदेशक आलोक वर्मा पर पहले भी द वायर को गोपनीय रिपोर्ट लिक करते रहने के आरोप लगते रहे हैं । आरोप हैं कि द वायर के मार्फ़त आलोक वर्मा राहुल गांधी को लगातार गोपनीय रिपोर्ट भेजते रहे हैं । जानना यह भी दिलचस्प है कि द वायर ने नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ ख़बर लिखने और दिखाने की कांग्रेस से खुल्लमखुल्ला सुपारी ले रखी है । सिवाय नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ जहर उगलने के द वायर के पास कोई दूसरा काम नहीं होता है ।

कभी प्रणव रॉय के हिंदी परछाई बन कर जीने वाले , फिर एन डी टी वी के लिए दस्तरखान सजाने वाले विनोद दुआ इन दिनों द वायर में नरेंद्र मोदी के लिए कब्र खोदने के काम में लगे हुए थे पर मी टू में फंसने के बाद वह परदे के पीछे चले गए । बताया गया कि छुट्टी पर भेज दिए गए । अभी इस झटके से द वायर उबरा भी नहीं था कि यह सुप्रीम कोर्ट का झटका लग गया है । जाने राहुल गांधी का ट्वीट इस प्रसंग पर क्या और कब आएगा , यह देखना भी दिलचस्प होगा । वैसे यह तय मानिए कि तहलका की ही तरह द वायर भी कांग्रेस का उपक्रम है । इस द वायर का पतन भी तहलका की ही तरह सुनिश्चित है ।

Monday, 19 November 2018

आमार दीदी , तोमार दीदी , इंदिरा दीदी ज़िंदाबाद !


हालां कि अटल बिहारी वाजपेयी बताते नहीं थकते थे कि उन्हों ने कभी भी इंदिरा गांधी को दुर्गा नहीं कहा । अटल जी कहते थे कि यह भ्रम रोमिला थापर ने लिख कर फैलाया है । वह यह भी कहते थे कि उन्हों ने रोमिला थापर से पूछा कि आख़िर कब और कहां मैं ने इंदिरा जी को दुर्गा कहा तो वह चुप रह गईं । अटल जी ने भले कभी नहीं कहा कि इंदिरा दुर्गा हैं लेकिन जन मानस में यह बात आज भी अंकित है कि अटल जी ने कहा था कि इंदिरा जी दुर्गा हैं । तो शायद इस लिए कि उन्हों ने सचमुच दुर्गा जैसा काम किया था । पाकिस्तान को भारतीय फ़ौज के बूटों तले कुचल कर दुनिया का भूगोल बदल दिया था । बांग्लादेश को जन्म दिया था । यह 1971 का साल था । 16 दिसंबर , 1971 का वह दिन भुला पाना किसी के लिए भी मुमकिन नहीं है । मैं उस समय 13 बरस का था । स्कूल में था । गोरखपुर के सारे स्कूलों , कालजों ने उस 16 दिसंबर को रैली निकाली थी । उस हाड़ कंपाती ठंड में भी हम झूम कर गा रहे थे , सोलह दिसंबर आया ले के जवानी सोलह साल की ! बाद के दिनों में एक कवि सम्मेलन में पंडित रूप नारायण त्रिपाठी का एक गीत भी सुना जिसे उन्हों ने बांग्लादेश से लौट कर लिखा था , आमार दीदी , तोमार दीदी , इंदिरा दीदी ज़िंदाबाद ! तब हम इस गीत को भी खूब गाते थे । आज भी जब-तब गुनगुनाते रहते हैं : आमार दीदी , तोमार दीदी , इंदिरा दीदी ज़िंदाबाद ! जिस इंदिरा के पिता नेहरु ने चीन से , हिंदी-चीनी , भाई-भाई नारे के बीच पीठ में चीन का छुरा सहा था , उसी इंदिरा ने न सिर्फ़ चीन बल्कि पाकिस्तान समेत अमरीका को भी उस की औकात में रखा । इसी लिए वह आयरन लेडी भी कहलाईं । इंदिरा गांधी की विदेश नीति ने भारत का मस्तक सर्वदा ऊपर रखा । कांग्रेस के तमाम चाणक्य लोगों को भी उन्हों ने खूब पानी पिलाया था । चाहे वह कामराज हों या द्वारिका प्रसाद मिश्र या कोई और । उन की हत्या के बाद दिल्ली में जब खौफ़नाक दंगे हुए तब के समय भी मैं दिल्ली में था । उस दंगे और दंगों के कारण की तफ़सील फिर कभी । लेकिन नफ़रत के अलावा इंदिरा गांधी से मुहब्बत की एक इबारत भी थी वह ।

एक इमरजेंसी के तानाशाही के दाग को अगर छोड़ दें तो इंदिरा गांधी ने देश को बहुत कुछ दिया है । बैंकों का राष्ट्रीयकरण , खदानों का राष्ट्रीयकरण , प्रीवीपर्स खत्म करने जैसे कठोर फ़ैसले आसान नहीं थे । हरित क्रांति, आपरेशन फ्लड, पोखरण परमाणु परीक्षण , सिक्किम का भारत मे विलय, कश्मीर से सदरे रियासत और वजीरे आज़म के व्यवस्था की समाप्ति - ये सारे क़दम भी इंदिरा गांधी के खाते मे दर्ज हैं । 1977 में कांग्रेस के घनघोर पतन के बाद भी ढाई साल में ही 1979 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी भी आसान नहीं था । इंदिरा गांधी का राजनीतिक कमाल ही था । उन्हीं दिनों का रघु राय का एक फ़ोटो नहीं भूलता । जिस में एक सफाई कर्मी झाड़ू लगा रहा है , उस के झाड़ू में इंदिरा गांधी की फ़ोटो वाला पोस्टर कूड़ेदान में जाता दीखता है । मतलब इंदिरा गांधी कूड़ा हो चली थीं । खैर ,1977 में दिल्ली के रामलीला मैदान में जब जनता पार्टी मोरारजी देसाई के नेतृत्व में विजय दिवस मना रही थी तो उस में जय प्रकाश नारायण नहीं गए । ठीक उसी समय वह इंदिरा गांधी के घर गए । इंदिरा गांधी को बेटी मान कर । इंदिरा गांधी का हालचाल लेने ।

जय प्रकाश नारायण को चिंता थी कि इंदिरा का काम काज अब कैसे चलेगा ? इंदिरा ने उन से कहा कि खर्च की चिंता उन्हें नहीं है । पापू की किताबों की रायल्टी इतनी आती है कि खर्च तो चल जाएगा । उन की चिंता है कि ख़ाली समय वह कैसे बिताएंगी । जय प्रकाश नारायण ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा कि , तुम फिर से जनता के बीच जाओ । जनता से मिलो , जुलो । जनता के बीच काम करो । इंदिरा गांधी ने जय प्रकाश नारायण की बात को मान कर जनता के बीच जाना शुरू कर दिया । मुझे याद है कि 1977 कि 1978 का ही बरसात का कोई महीना था । गोरखपुर के एक पिछड़े मुहल्ले इलाहीबाग में पांच-सात लोगों के साथ इंदिरा गांधी को घर-घर घूमते , लोगों का हालचाल लेते देखा था । मुहल्ले के लड़के उन के पीछे-पीछे घूमते फिरे थे । हम भी थे । आज़मगढ़ से रामनरेश यादव तब सांसद थे लेकिन उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री बन जाने के कारण उन की संसदीय सीट ख़ाली होने के कारण हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी की मेहनत ने कमाल दिखाया । कांग्रेस की मोहसिना किदवई उप चुनाव जीत गई थीं ।

लेकिन यह दूसरा दौर उन के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण साबित हुआ । हवाई दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु ने उन्हें तोड़ दिया । पंजाब में खालिस्तान की मांग और आतंकवाद ने उन्हें मुश्किल में डाल दिया । लेकिन फौजी बूटों तले जिस तरह इंदिरा गांधी ने पंजाब के आतंकवाद को ब्लू स्टार आपरेशन कर कुचल कर नेस्तनाबूद कर दिया था , वह आसान नहीं था । वह भले शहीद हो गईं लेकिन पंजाब को आतंक से मुक्त कर गईं । कि आज कश्मीर की तबाही देख कर उन की बहुत याद आती है । कश्मीर को शांत करने के लिए इंदिरा गांधी जैसा कड़ा फ़ैसला लेने वाले की ही ज़रूरत है । कृपया मुझे यह भी कहने दीजिए कि अभी तक के सभी प्रधान मंत्रियों में इंदिरा गांधी सब से शक्तिशाली और समर्थ प्रधान मंत्री साबित हुई हैं । यह मेरा सौभाग्य है कि इंदिरा गांधी से व्यक्तिगत रूप से मिलने और उन की प्रेस कांफ्रेंस कवर करने का अवसर मिला है । उन के साथ जुड़ी बहुत सी स्मृतियां हैं । आज उन के जन्म-दिन पर उन्हें शत-शत नमन !

Sunday, 11 November 2018

रघुराम राजन जो कहें , नोटबंदी ने नंबर दो के कारोबार पर सीधी चोट मारी है , बहुत कड़ी चोट


अब जब इतिहासकार , विचारक , कवि ,लेखक , आलोचक , चिंतक , अर्थशास्त्री , प्रशासनिक अफ़सर , पुलिस अफ़सर , सिपाही , दारोगा , वकील , जस्टिस और चीफ़ जस्टिस आदि-इत्यादि तक पार्टी तथा विचारधारा की पहचान से देखे और जाने , जाने लगे हैं तो किस की बात पर कैसा भरोसा करें यह समझ पाना कई बार मुश्किल ही नहीं , बहुत मुश्किल हो जाता है । अब रघुराम राजन अगर कह रहे हैं कि नोटबंदी और जी एस टी ने देश की आर्थिक विकास की गति पर ब्रेक लगा दिया है तो आंख मूंद कर उन की बात को मान लें कि उन्हें कांग्रेसी मान कर उन की बात को ख़ारिज कर आगे बढ़ जाएं , समझ में नहीं आता । अब मैं अर्थशास्त्री नहीं हूं न ही अर्थशास्त्र का क ख ग जानता हूं । इस लिए भी कि जब पढ़ता था तो सुनता था कि अर्थशास्त्र वह शास्त्र है , जो शास्त्रों का शास्त्र है । तो अर्थशास्त्र से बहुत डर भी लगता है । गो कि मेरी बड़ी बेटी अर्थशास्त्र की आचार्य है और गिरी विकास इन्स्टीट्यूट में काम भी कर चुकी है । तो भी नोटबंदी और जी एस टी से देश की आर्थिक गति पर क्या असर पड़ा यह साफ कह पाना मेरे लिए बहुत कठिन है । लेकिन यह तो बता ही सकता हूं कि नोटबंदी के फेर में ढेर सारे भ्रष्ट लोगों को बरबाद होते अपनी आंखों से देखा है । उन का लाखो , करोड़ो रुपए पानी होते देखा है । अभी भी देख रहा हूं । सोने और शेयर से भी मंहगे रियल स्टेट को जो काले धन का सरताज रहा था , कबाड़ होते देखा है । तो कैसे कह दूं कि नोटबंदी ग़लत थी । स्पष्ट मानता हूं कि नोटबंदी ने नंबर दो के कारोबार पर सीधी चोट मारी है । बहुत कड़ी चोट । इतनी कि लोग खुल कर सहला भी नहीं पा रहे ।

आप मत मानिए इस तथ्य को आप की अपनी कोई विवशता या प्रतिबद्धता होगी , मोतियाबिंद होगी , उसे आप जानिए । रही बात जी एस टी की तो इस में बरबाद बेईमान दुकानदार भी हमारे सामने हैं । काश कि जी एस टी पेट्रोल , डीजल पर भी लागू होती तो मुझे भी इस का सीधा लाभ मिलता। बाक़ी जो बात महत्वपूर्ण बात है इस आर्थिक व्यवस्था की वह यह कि मनमोहन सिंह की सरकार ने बताया था कि उन की सरकार सिर्फ़ अमीरों की सरकार है । नरेंद्र मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार से दो क़दम आगे जा कर बताया है कि है तो यह सरकार भी अमीरों की ही लेकिन गरीबों की विरोधी भी है । गरीबों को सिर्फ़ भिखारी बन कर , आरक्षण की कृपा पर रहने का अधिकार है । सम्मान से रहने का अधिकार सिर्फ़ धनपशुओं को है , गरीबों को नहीं । या तो उज्ज्वला , मनरेगा , आरक्षण , अनाज आदि के लिए गरीबी रेखा के नीचे जी कर भिखारी बनना सीखिए या फिर चोरी-चमारी कर के सही धनपशु बनना सीखिए । बीच के लिए कोई जगह नहीं है इस देश में । है तो सिर्फ़ नरक जीने के , अनाप-शनाप टैक्स के बोझ में दब कर जीने के लिए ।

बाक़ी रघुराम राजन जैसे अर्थशास्त्री या रोमिला थापर , इरफ़ान हबीब जैसे इतिहासकार सिर्फ़ जनता को भ्रमित करने वाले राजनीतिक पुतले हैं । यह भी जान लेने में हर्ज नहीं है । यह सभी बेईमान झूठे और मक्कार लोग हैं । आज की तारीख़ में ज़्यादातर विशेषज्ञ झूठे , मक्कार और कमीने लोग ही हैं । डिक्टेशन पर काम करने वाले , एजेंडा पर चलने वाले लोग हैं । एक समय था कि मैं ही यह कहते नहीं अघाता था कि देश का सौभाग्य देखिए कि एक ईमानदार वैज्ञानिक डाक्टर ए पी जी अब्दुल कलाम हमारे देश का राष्ट्रपति है और एक ईमानदार अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह देश का प्रधान मंत्री। राष्ट्रपति कलाम ने तो देश का सिर कभी नीचा नहीं होने दिया , फख्र से विदा हुए अपने पद से भी और दुनिया से भी । लेकिन एक ईमानदार अर्थशास्त्री और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने देश का सिर बार-बार नीचा किया । जैसी विकराल और अराजक मंहगाई मनमोहन सिंह ने परोसी देश को एक अर्थशास्त्री होने के बावजूद वह तो अजब थी । काजू के दाम दाल बिकने लगी , काजू सोने के दाम और आटा के दाम भूसा , आटा दाल के दाम। त्राहिमाम कर के रह गया पूरा देश पर मनमोहन सिंह के चेहरे पर शिकन नहीं आई कभी । उन के कृषि मंत्री शरद पावर तो ऐलान ही करते रहते थे कि अब दूध के दाम बढ़ने वाले हैं , अब चीनी के दाम बढ़ने वाले हैं , अब प्याज के , अब टमाटर के । आदि-आदि । भ्रष्टाचार के भी जो कीर्तिमान मनमोहन सिंह ने बनाए वह भी न भूतो , न भविष्यति ।

कांशीराम एक समय कहा करते थे कि भाजपा कांग्रेस की बी टीम है । तब के दिनों मैं उन से सहमत नहीं था । पर नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां कांग्रेस से किसी भी तरह अलग नहीं हैं , इतर नहीं हैं तो मुझे भी अब यह मान लेने दीजिए कि भाजपा , कांग्रेस की बी टीम है । मनमोहन सिंह सरकार के नक्शेकदम पर चलते हुए मंहगाई मोदी सरकार की भी यार है , भ्रष्टाचार भाजपा सरकार की भी हमसाया है । नोटबंदी , जी एस टी के गिमिक अपनी जगह हैं , जनता से सरकारों की दुश्मनी अपनी जगह है । आप रोते रहिए , भ्रष्टाचार , मंहगाई , बेरोजगारी , कश्मीर , पाकिस्तान । शहीदों को सैल्यूट मारते रहिए और रोते रहिए । सरकार इन की हो या उन की , सैनिक शहीद होते रहेंगे , मजा अंबानी , अडानी आदि ही मारेंगे ।

अब ऐसा भी नहीं है कि भाजपा ने आर्थिक नीतियों में कांग्रेस को फालो किया है तो कांग्रेस ख़ामोश है । कभी रही होगी भाजपा कांग्रेस की बी टीम पर अब कांग्रेस , भाजपा की बी टीम हो चुकी है । यकीन न हो तो कांग्रेस का ग्राम पंचायतों को गौ शाला को अनुदान देने वाला मध्य प्रदेश का ताज़ा मेनीफेस्टो बांच लीजिए । पारसी राहुल गांधी का ब्राह्मण बनना और यज्ञोपवीत पहन कर , मंदिरों की परिक्रमा देख लीजिए । इस लिए भी कि राजनीतिक दल कोई भी हो येन केन प्रकारेण सत्ता चाहिए , पूंजीपति को पैसा । सत्ता के लिए अपना पिछवाड़ा भी आप को परोस देंगे । फिर जनता इन के लिए कोल्हू का वह मीठा गन्ना है जिसे चुनाव के कोल्हू में पेर कर इन्हें सत्ता और पैसे का रस चाहिए , बस । मंदिर-मस्जिद कर के मिले , चाहे बोफोर्स , टू जी , कोयला , राफेल आदि कर के मिले । तेरी आंख फोड़ कर मिले चाहे उस की आंख फोड़ कर , जैसे भी हो बस सत्ता मिलनी चाहिए । नोटबंदी और जी एस टी के झुनझुने से मिले या गाय का मांस खा कर या गौ शाला को अनुदान दे कर । कौन भला और क्या कुछ अपनी जेब से देना है किसी को । अपनी जेब से देना होता तो दर्द समझ में आता । फ़िलहाल तो उन्हें आप ही की जेब से आप को देना है । सो रोज बीस ठो ताजमहल लीजिए। घर बैठे लीजिए ।

Wednesday, 7 November 2018

नदी किनारे लाखों दियों की नदी थी कि तुम थी



ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

पटाखे सी छूटती यह दीपावली थी कि तुम थी 
नदी किनारे लाखों दियों की नदी थी कि तुम थी 

रोशनी की नदी थी कि हमारे प्रेम की सदी 
मनुहार की नदी में नहाया मैं था कि तुम थी

डूब गया था बीच धार बच गया जाने कैसे 
लोग थे नाव थी पतवार थी कि तुम थी 

मिलना अकुलाना अकुला कर मचल जाना  
परछाई में मचलती मछली थी कि तुम थी 

जगमग प्रेम की रोशनी थी सरयू का किनारा 
नदी की धार में लचकती लहर थी कि तुम थी 

राम के स्वागत में नाचती गाती अयोध्या है 
सीता के सम्मान में डूबी रामधुन थी कि तुम थी 

अमावस थी आकाश भी ओट में चांद भी
सुबह के सूर्य में चमकती ओस थी कि तुम थी 


[ 7 नवंबर , 2018 ]


Sunday, 4 November 2018

अब राम की शक्ति पूजा ही शेष है राहुल गांधी के लिए

सोमनाथ मंदिर में राहुल गांधी 

2019 में राहुल गांधी और उन के गठबंधन के लोग अगर सचमुच नरेंद्र मोदी और भाजपा को हराना चाहते हैं तो उन्हें तत्काल राम मंदिर बनाने की बागडोर अपने हाथ में ले कर अयोध्या में कार सेवा शुरू कर देनी चाहिए । तय मानिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ , विहिप , भाजपा और नरेंद्र मोदी , योगी वगैरह , 2019 के चुनाव में कहीं दिखाई नहीं देंगे । जगह-जगह ज़मानत ज़ब्त हो जाएगी । आखिर फर्जी ही सही , ब्राह्मण बता कर , यज्ञोपवीत पहन कर , मंदिर-मंदिर राहुल गांधी घूम ही रहे हैं । सो ऐसे में सत्ता पाने के लिए श्री राम निर्णायक हो सकते हैं राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए । सत्ता पाने के बाद राफेल के जुर्म में नरेंद्र मोदी और अनिल अंबानी को जेल में ठूंस सकते हैं । बस यह 2019 की सत्ता लूटने के लिए सिर्फ़ पाव भर कलेजे की ज़रूरत है । कम्यूनल फोर्सेज को सत्ता पाने से रोकने के लिए यही अचूक नुस्खा ही अब शेष रह गया है , सेक्यूलर फोर्सेज के लिए ।

रही मुस्लिम वोट बैंक की अवधारणा की बात की तो यह अवधारणा अब समाप्त हो चली है । कांग्रेस के गुलाम नबी आज़ाद और दिग्विजय सिंह सरीखे इस बात की तसदीक लगातार कर रहे हैं । करते ही जा रहे हैं । लगातार । सो फिकर नाट । मत चूको चौहान । राम की शक्ति पूजा निराला लिख ही गए हैं । लिख कर अमर हो चुके हैं । अब राम की शक्ति पूजा राहुल गांधी को शुरू करनी शेष है , तय मानिए राहुल गांधी भी अमर हो जाएंगे । वैसे भी अभी तक अयोध्या में राम मन्दिर को ले कर जो भी कुछ निर्णायक हुआ है , सेक्यूलर कांग्रेस के राज में ही मुमकिन हुआ है । पंडित नेहरु के समय वहां मूर्तियां रखी गईं , राजीव गांधी के समय मंदिर का ताला खुला और शिलान्यास हुआ , नरसिंहा राव के समय में विवादित ढांचा गिराया गया । तो इस तरह अयोध्या में जो भी कुछ हुआ राम मंदिर के लिए सब कुछ कांग्रेस के राज में हुआ है । कम्यूनल भाजपा ने तो मुफ्त में मलाई काटी और हवाई माहौल बना कर खामखा क्रेडिट लिए बैठी है । कांग्रेस और राहुल गांधी को चाहिए कि भाजपा से यह खामखा का क्रेडिट वह छीन ले । और सत्ता भी संभाल ले । कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए यह सुनहरा मौका है । श्री राम नाम केवलम । निराला ने लिखा ही है राम की शक्ति पूजा में :

"होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।"
कह महाशक्ति राम के बदन में हुई लीन।