तो प्रियंका गांधी अब लखनऊ में रहेंगी। इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल के घर में। गुड है। बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि एक समय इंदिरा गांधी भी लखनऊ में रही थीं। पंडित नेहरू ने भेजा था , इंदिरा गांधी और फ़िरोज़ गांधी को लखनऊ रहने के लिए। हुआ यह था कि फ़िरोज़ और इंदिरा गांधी के बीच दूरियां बहुत बढ़ गई थीं। तलाक़ के तिराहे पर खड़े होते दोनों कि पंडित नेहरू ने लखनऊ में नेशनल हेराल्ड का काम संभालने के लिए फ़िरोज़ गांधी को नियुक्त कर लखनऊ रवाना किया। साथ ही इंदिरा गांधी को भी। इंदिरा , फ़िरोज़ तब लखनऊ के शाहनजफ रोड पर के एक बड़े से बंगले में रहने लगे। लेकिन दोनों के बीच अनबन थमी नहीं। झगड़े सड़क तक सुनाई देने लगे। बर्तन तक सड़क पर आने लगे। तो भी फ़िरोज़ इंदिरा गांधी को भले न संभाल पाए लेकिन नेशनल हेराल्ड का काम ठीक से संभाल लिया। उन्हीं दिनों भारत कोकिला कही जाने वाली सरोजनी नायडू उत्तर प्रदेश की राज्यपाल थीं। तो फ़िरोज़ गांधी ने सरोजिनी नायडू की बेटी को भी संभाल लिया। सरोजनी नायडू भी कभी गांधी के सत्य के प्रयोग की साथी रही थीं। यहां तक कि सरोजनी नायडू के पति कई बार आश्रम में आ कर गांधी से लड़ते-झगड़ते भी थे। पर सरोजनी नायडू वापस नहीं जाती थीं। तो फ़िरोज़ गांधी की शाम अब राजभवन में सरोजनी नायडू की बेटी पद्मजा के साथ बीतने लगी। फ़िरोज़ गांधी वैसे भी अपने समय के लेडी किलर थे।
एक समय तो ऐसा भी आया था कि फ़िरोज़ गांधी का नाम इंदिरा गांधी की मां कमला नेहरू से भी जुड़ गया था। नेहरू उन दिनों जेल में थे। कमला नेहरू इलाहाबाद के आनंद भवन में रहती थीं। स्वतंत्रता सेनानी थीं कमला नेहरू। नेहरू भले जेल में थे पर कमला नेहरू ने अंगरेजों से अपनी लड़ाई जारी रखी थी। भरी दोपहर में एक प्रदर्शन के दौरान एक कालेज के मैदान में वह महिलाओं की एक मीटिंग को संबोधित कर रही थीं कि पुलिस टूट पड़ी। कमला नेहरू अचानक गश खा कर गिर पड़ीं। कालेज की बाउंड्री पर बैठे फ़िरोज़ बाउंड्री कूद कर , दौड़ कर कमला नेहरू को उठाया। अस्पताल ले गए। फिर अस्पताल से वापस आनंद भवन ले आए। दूसरे दिन से कमला नेहरू की देखभाल में फ़िरोज़ खुद तैनात हो गए। हर सभा , हर समय फ़िरोज़ , कमला नेहरू के साथ। लगभग दैनदिन कार्यक्रम बन गया , दोनों का साथ रहना। बात यहां तक बढ़ी कि कमला नेहरू और फिरोज की एक साथ फोटो वाले पोस्टर , इलाहाबाद की सड़कों पर चिपक गए। चहुं ओर चर्चा में कमला नेहरू और फ़िरोज़ । बात और आग इतनी फैली कि नेहरू के पास जेल में भी यह खबर पहुंची। कई लोगों से , कई तरह की बातें।
किसी भी पति की तरह नेहरू भी यह सब सुन कर बहुत परेशान हुए। इस बात की सत्यता जांचने के लिए नेहरू ने अपने करीबी रफ़ी अहमद किदवई को इलाहाबाद भेजा। किदवई ने लौट कर नेहरू को बताया , ऐसी कोई बात नहीं। पर कमला नेहरू और फ़िरोज़ की चर्चा नहीं थमी। इस से कुछ समय पहले की बात है कि एक बार आनंद भवन में डिनर के समय जवाहर लाल नेहरू ने अपने कांग्रेस साथी मीनू मसानी से मजाक में कहा था, मीनू तुम कल्पना कर सकते हो कि कोई मेरी पत्नी से प्रेम कर सकता है?’ इस पर मीनू मसानी ने हिम्मत करके कहा था-‘वे खुद ही कमला से प्रेम कर सकते हैं।’ नेहरू मीनू मसानी से नाराज़ हो कर उन्हें तरेर कर देखने लगे। और अब उन्हीं की पत्नी कमला नेहरू का फ़िरोज़ नाम के लड़के से प्रेम की चर्चाएं थीं। प्रेम था कि नहीं , लेकिन चर्चा थी कि थमती ही नहीं थी। संयोग देखिए कि जब कमला नेहरू टी बी रोग से पीड़ित हुईं तो उन के अंतिम समय में सेवा सुश्रुषा करने के लिए कोई और नहीं , फ़िरोज़ गांधी ही उपस्थित थे। टी बी उन दिनों असाध्य रोग था और छुआछूत वाला भी। कमला नेहरू के निधन के समय भी उन के पास नेहरू नहीं , फ़िरोज़ गांधी ही थे। यह 1936 की बात है।
बहरहाल पंडित नेहरू की यातनाओं को अंत यहीं तक नहीं था। बाद में इसी फ़िरोज़ नाम के लड़के से उन की इकलौती बेटी इंदिरा गांधी का प्रेम लंदन में शुरू हो गया। पत्नी से छुट्टी मिली तो बेटी आ गई फ़िरोज़ की बातों में। बात इतनी बढ़ी कि न चाहते हुए भी इंदिरा का विवाह फ़िरोज़ के साथ मंज़ूर करना पड़ा पंडित नेहरू को। बीच में महात्मा गांधी को न सिर्फ पड़ना पड़ा बल्कि गांधी नाम भी देना पड़ा पारसी फ़िरोज़ को और फ़िरोज़ गांधी से इंदिरा का विवाह कर इंदिरा गांधी बनाना पड़ा। बहुत से विवरण हैं , बहुत से विवाद हैं इस विवाह को ले कर लेकिन अगर गांधी बीच में नहीं पड़े होते तो कम से कम पंडित नेहरू इस विवाह के लिए हरगिज राजी नहीं हुए होते। बहरहाल विवाह हुआ। पर न फ़िरोज़ इंदिरा का प्रेम स्वाभाविक था , न विवाह। सो खटर-पटर भी जल्दी ही सामने उपस्थित हो गया। बात बहुत बिगड़े नहीं सो एक पिता को बेटी का दांपत्य बचाने के लिए फ़िरोज़ गांधी को लखनऊ भेजना पड़ा। नेशनल हेराल्ड पंडित नेहरू द्वारा शुरू किया हुआ अखबार था। जो तब के अंगरेजों के अखबार दि पायनियर के बरक्स निकाला था। स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई का हथियार बना कर।
खैर , नेहरू भले विभिन्न-विभिन्न औरतों के लिए बहुत बदनाम हों , उन के दामाद फ़िरोज़ गांधी उन से भी कोसो आगे थे। सरोजनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू के साथ फ़िरोज़ नत्थी हो गए। दिलचस्प यह कि पद्मजा नायडू नेहरू के साथ भी अंतरंग रहीं। पुपुल जयकर के लिखे को अगर मानें तो 1936 में कमला नेहरू के निधन के बाद पंडित नेहरू , पद्मजा नायडू के साथ जुड़ गए। विवाह भी करना चाहते थे पर इंदिरा को इस से तकलीफ न हो इस लिए , विवाह का इरादा बदल दिया। लेकिन नेहरू के कमरे में इंदिरा ने पद्मजा नायडू के फोटो पाए और फाड़ कर फेंक दिए। पुपुल जयकार को यह बात पंडित नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने बताई थी। बात यहीं तक नहीं थी एक समय बिहार की सांसद तारकेश्वरी सिनहा से भी नेहरू के रिश्ते रहे। तारकेश्वरी सिनहा ने धर्मयुग में छपे लेख में खुलासा किया था कि जब वह लोकसभा में पहुंचीं तो सब से युवा महिला सांसद थीं।
एक दिन पंडित नेहरू के पी ए मथाई ने उन्हें फोन कर कहा कि , पंडित जी आप से मिलना चाहते हैं। तय समय पर तारकेश्वरी पहुंचीं। मथाई ने उन्हें अपने पास ही बैठा लिया। और इधर-उधर की बातें करने लगे। जब बहुत देर हुई तो तारकेश्वरी ने वापस जाने की बात की। तो मथाई ने बताया कि पंडित जी अभी एक मीटिंग में हैं। मीटिंग खत्म होते ही वह आप से मिलेंगे। आइए तब तक आप को कुछ पेंटिंग दिखाता हूं। और एक कमरे में ले जा कर पेंटिंग दिखाने लगे। उन पेंटिंग में कुछ न्यूड पेंटिंग भी थीं। जिसे देख कर वह बिदकीं भी। इतना ही नहीं पंडित नेहरू से मुलाकात होने पर मथाई की शिकायत भी की और बताया कि मुझे न्यूड पेंटिंग दिखाई है। यह सुन कर पंडित नेहरू नाराज नहीं हुए बल्कि मुस्कुराए। तारकेश्वरी समझ गईं कि पंडित नेहरू की सहमति से ही मथाई ने उन्हें न्यूड पेंटिंग दिखाई। तारकेश्वरी ने लिखा है कि इस बहाने वह तारकेश्वरी के मन की थाह लेना चाहते थे।
पर बाद में यही तारकेश्वरी सिनहा नेहरू के रिश्ते से गुज़रते हुए , इंदिरा गांधी की सौत भी बनने की राह में आ गईं। फ़िरोज़ गांधी के तारकेश्वरी सिनहा से रिश्ते की खबर खूब थी। यह अलग बात है कि तारकेश्वरी सिनहा , लोहिया के फेर में भी आईं और मोरारजी देसाई के फेर में भी पड़ीं। और जैसे कुछ साल पहले गोविंदाचार्य से रिश्ते के चक्कर में उमा भारती ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या की कोशिश की थी , वैसे ही तारकेश्वरी सिनहा ने भी मोरारजी देसाई के लिए नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या की कोशिश की थी। उमा भारती भी बच गई थीं और तारकेश्वरी सिनहा भी। तारकेश्वरी सिनहा के किस्से और भी तमाम हैं। और पंडित नेहरू के भी। लेकिन पंडित नेहरू एडविना के लिए ही बदनाम हैं। अलग बात है कि एडविना के चक्कर में जिन्ना भी था। लेकिन जाने क्यों जिन्ना और एडविना की चर्चा नहीं होती। जब कि यहां मामला त्रिकोणात्मक था। खैर बात फ़िरोज़ गांधी और लखनऊ की हो रही थी। फ़िरोज़ और पद्मजा नायडू की हो रही थी। लेकिन फ़िरोज़ के पास सिर्फ पद्मजा नायडू ही लखनऊ में नहीं थीं। एक स्वरूप कुमारी बख्शी भी थीं। बल्कि पद्मजा नायडू से कहीं ज़्यादा आसक्त थीं फ़िरोज़ पर । कहा जाता था कि फ़िरोज़ गांधी से मिलने जाने के लिए वह बाथ टब में शराब भरवा कर लेट जाती थीं। ताकि फ़िरोज़ को प्रसन्न कर सकें। खूब गोरी लेकिन छोटे कद की स्वरूप कुमारी बख्शी कविताएं लिखती थीं। नाटक करती थीं। अध्यापिका भी थीं। बाद में प्रिंसिपल भी बनीं। और जब कांग्रेस की सरकार बनी तो मंत्री भी बनीं।
इंदिरा गांधी ने अपनी तमाम सौतों को दरकिनार किया पर स्वरूप कुमारी बख्शी में जाने क्या था , जाने क्या नस जानती थीं इंदिरा गांधी की , स्वरूप कुमारी बख्शी कि इंदिरा गांधी ने उन्हें तमाम उम्र ढोया। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार का मुख्य मंत्री कोई भी हो , स्वरूप कुमारी बख्शी का नाम हर कैबिनेट में सर्वदा बना रहा। वह ताकतवर भी बहुत थीं। राजनीति में लखनऊ से आगे की धरती नहीं देखी स्वरूप कुमारी बख्शी ने लेकिन दबदबा उन का हमेशा रहा। लखनऊ में वह लोकप्रिय भी बहुत थीं। खैर , स्वरूप कुमारी बख्शी और पद्मजा नायडू के बाद उत्तर प्रदेश में एक वरिष्ठ मंत्री की बेटी से भी फ़िरोज़ गांधी जुड़े। इतना जुड़े कि बात निकाह तक आ गई। पंडित नेहरू इस ख़बर से बहुत परेशान हो गए। फिर अपने दोस्त रफ़ी अहमद किदवई की मदद ली। किदवई ने इस प्रकरण को समाप्त करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रकरण किसी तरह समाप्त भी हुआ। इंदिरा गांधी भी कम नहीं थीं। तब के उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष शुक्ल जी के साथ समय गुज़ारने लगीं। दो-एक नाम और आए इंदिरा के नाम के साथ। लेकिन फ़िरोज़ गांधी की बैटिंग के आगे इंदिरा परेशान हो गईं। अंतत: दिल्ली लौट गईं। फ़िरोज़ गांधी लखनऊ ही रह गए। पर नेहरू ने जल्दी ही फिरोज को भी दिल्ली बुला लिया। फ़िरोज़ गांधी अब तीनमूर्ति भवन में नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ ही रहने लगे। इसी बीच इंदिरा गांधी कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गईं।
आज वामपंथी भले कांग्रेस के लिए आऊटसोर्सिंग करते नहीं अघाते हैं , कांग्रेस की प्रशस्ति में सर्वदा बैंड बजाते रहते हैं , इंदिरा गांधी के गुण गाते रहते हैं पर कांग्रेस की अध्यक्ष बनते ही इंदिरा गांधी ने केरल में कम्युनिस्टों की नंबूदरीपाद की सरकार को 1959 में बर्खास्त करवा कर राष्ट्रपति शासन लगवा दिया। फ़िरोज़ गांधी इंदिरा गांधी के इस फैसले से बहुत नाराज हुए। नंबूदरीपाद सरकार की बर्खास्तगी पर वह तीनमूर्ति भवन में इंदिरा गांधी से बहुत लड़े। तू-तू , मैं-मैं की। और अंतत: तीनमूर्ति भवन छोड़ कर निकल गए। फिर तीनमूर्ति भवन नहीं लौटे। आई तो उन की पार्थिव देह ही तीनमूर्ति भवन। वह नहीं। खैर , सरकार बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने का इंदिरा गांधी का अटूट रिश्ता रहा है। इंदिरा गांधी तो अपनी कांग्रेस की ही सरकार बार-बार गिरा देती थीं। लंबी सूची है इस की। ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी के पुरुषों की लंबी सूची है। नेहरू के पी ए मथाई , उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शुक्ल जी , दिनेश सिंह , धीरेंद्र ब्रह्मचारी , मोहम्मद यूनुस , ब्रेजनेव , फिदेल कास्त्रो आदि। एक अमरीकी राष्ट्रपति का भी नाम आता है। जिस ने डिनर पार्टी में डांस करते-करते अचानक इंदिरा गांधी को बाहों में भर कर उठा लिया। खैर , अब उसी दादी इंदिरा गांधी के लखनऊ प्रियंका गांधी पहुंच रही हैं। तो लखनऊ प्रियंका को कैसे स्वीकार करेगा भला , देखना दिलचस्प होगा। फिर भी इंदिरा जब लखनऊ गई थीं तब नेहरू और कांग्रेस का उत्कर्ष काल था। गोल्डन पीरियड था। नेहरू के लिए लोगों में अजब जूनून था। कांग्रेस लोगों के सांस-सांस में बसी थी।
पर अब ?
कांग्रेस अब एक दुःस्वप्न की तरह है। राजवंश को ढोते-ढोते , ध्वस्त हो चुकी , घोटालों और मुसलसल चुनावी हार के चलते कांग्रेस इस समय वेंटिलेटर पर है। तिस पर राहुल गांधी जैसा व्यक्ति कांग्रेस के इस वेंटिलेटर को भी जब तब अपनी सनक में नोचता फिरता दीखता है। नब्बे के दशक में लखनऊ में नारा लगता था , प्रियंका गांधी नहीं , आंधी है ! प्रियंका लाओ , देश बचाओ ! तब भी प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि देखी गई थी। लेकिन पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बनी सोनिया गांधी ने उत्तर प्रदेश और लखनऊ से चले इस नारे पर कान नहीं दिया। फिर इंदिरा की तरह प्रियंका भी वाड्रा के प्रेम जाल में फंस गईं। पारिवारिक विरोध से गुज़रते हुए विवाह हो गया। पर इंदिरा के पति फ़िरोज़ गांधी , लंपट भले थे , हद से अधिक औरतबाज थे पर राजनीतिक शुचिता और नैतिकता के हामीदार थे। भ्रष्टाचार के मसले पर फ़िरोज़ गांधी कांग्रेस में रहते हुए भी नेहरू सरकार की ईंट से ईंट बजा देते थे। संसद में नेहरू की नाक में दम कर देते थे। मूंदड़ा कांड पर फ़िरोज़ गांधी ने इतना हल्ला मचाया कि तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। तब कहा जाता था कि कांग्रेस में रह कर भी फ़िरोज़ गांधी , प्रतिपक्ष के नेता बन कर रहते थे। फ़िरोज़ गांधी को संगीत से बहुत प्यार था।
इंदिरा गांधी कहती भी थीं कि कविता से प्रेम करना पापा ने सिखाया लेकिन संगीत से प्रेम करना फ़िरोज़ ने सिखाया। वैसे भी इंदिरा गांधी फ़िरोज़ गांधी को पसंद भले नहीं करती थीं पर प्रेम बहुत करती थीं। एक ऋण भी था , इंदिरा गांधी के दिल पर फ़िरोज़ का कि उन की मां कमला नेहरू की अंतिम समय में अगर किसी ने देखभाल की थी तो वह फ़िरोज़ गांधी ही थे। फ़िरोज़ ने सब कुछ छोड़-छाड़ कर कमला नेहरू की सेवा की थी। तब जब कि कमला नेहरू को टी बी थी। तब के समय असाध्य और छुआछूत वाला रोग। फ़िरोज़ गांधी की बायोग्राफी में बहुत से पॉजिटिव काम भी दर्ज हैं। उन की औरतों की तरह उन के पॉजिटिव काम की सूची भी लंबी है। और इस सब से भी बड़ी बात यह कि फ़िरोज़ गांधी एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। इंदिरा गांधी खुद बताती थीं कि लंदन में होटल में चाय पिलाने के लिए फ़िरोज़ गांधी सैकड़ों प्लेट धोते थे। लेकिन चाय का पेमेंट किसी भी सूरत मुझे नहीं करने देते थे। खुद करते थे।
लेकिन राबर्ट वाड्रा ?
प्रियंका के पति के रूप में जाने , जाने वाले रावर्ट वाड्रा फ़िरोज़ गांधी से उलट बहुत बड़े भ्रष्टाचारी के रूप में भी जाने जाते हैं। जाने कितने किस्म की जांच के फंदे में हैं रावर्ट वाड्रा। और तमाम बातों पर ट्वीट पर ट्वीट करने वाली प्रियंका रावर्ट वाड्रा के पक्ष में भी कोई ट्वीट नहीं करतीं। वाड्रा की जांच में अपनी सुरक्षा खातिर मिली एस पी जी का इतना दुरूपयोग किया प्रियंका ने कि उन की एस पी जी सुरक्षा समाप्त हो गई। एस पी जी सुरक्षा गई तो सरकारी घर भी गया। सरकारी घर गया तो दिल्ली भी गई। हालां कि कहने के लिए ही सही , नाम भर के लिए ही प्रियंका लखनऊ जाने की बात कर रही हैं। लिख कर रख लीजिए कि लखनऊ में रहने का थोड़ा सा ड्रामा कर दिल्ली में वह अपनी मां के पास या कोई नया घर ले कर रहने लगेंगी। भाई के पास नहीं रहेंगी। क्यों कि भाई और बहन के शौक बहुत मिलते हैं। टकराहट हो जाएगी। हालां कि मां के पास भी प्रियंका की प्राइवेसी कितनी मेनटेन रह पाएगी , यह वही बेहतर जानती हैं। क्यों कि दादी का पुरुषों वाला शगल पोती में भी पाया जाता है। किस्से तो सोनिया गांधी और राजीव गांधी के भी तमाम हैं। वाइफ स्वैपिंग तक के किस्से हैं। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका टाइम में एक बार थोड़ा सा कुछ छपा था। बल्कि टाइम पत्रिका के उस अंक का कवर पेज भी सोनिया के सेक्सी पोज , वक्ष के उभार को पारदर्शी कपडे में एक्सपोज करता हुआ छपा था। राजीव गांधी तब प्रधान मंत्री थे। भारत में टाइम पत्रिका का वह अंक तब प्रतिबंधित कर दिया गया था।
कायदे से राजीव गांधी और सोनिया गांधी को टाइम पर तब मानहानि का मुकदमा करना चाहिए था। पर नहीं किया। फिर कुछ समय बाद ही राजीव गांधी के बालसखा , दून स्कूल में सहपाठी रहे , राजीव मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री रहे अरुण सिंह अचानक सब कुछ त्याग कर अल्मोड़ा के बिनसर में ऊंची पहाड़ी पर रहने चले गए। जहां बिजली भी नहीं है और कि वहां कोई सवारी भी नहीं जाती। वह अरुण सिंह जिन का बंगला राजीव गांधी के बंगले से सटा हुआ था। और नियम विरुद्ध बाउंड्री तोड़ कर भीतर-भीतर दरवाज़ा खोल दिया गया था। क्यों चले गए बिनसर अरुण सिंह यह भी एक बड़ी दिलचस्प कथा है। अमिताभ बच्चन का सोनिया विवाद भी सब के सामने है। विवाद का उथला भी सब के सामने है। पर असली कथा कम लोग जानते हैं। वह अमिताभ बच्चन जो पहली बार भारत आई सोनिया को रिसीव करने अकेले दिल्ली एयरपोर्ट न सिर्फ पहुंचे थे बल्कि उन्हें अपने पिता के दिल्ली वाले घर ले जा कर रखा था। आखिर सोनिया इतनी नाराज क्यों हुईं अपने पति राजीव गांधी के बालसखा अमिताभ बच्चन से कि उन को सड़क पर ला देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सड़क पर अमिताभ बच्चन आ भी गए थे। कौन सी जांच थी जो अमिताभ बच्चन के खिलाफ नहीं हुई। दिवालिया हो गए। मकान तक नीलामी पर लग गए। अमिताभ बच्चन को इस मुश्किल से बचाने वाले लोग भी निशाने पर आ गए। अस्पताल में भर्ती अमिताभ बच्चन को बेड पर इनकम टैक्स की नोटिसें सर्व की गईं। ऐसा बहुत कुछ अप्रिय हुआ , जो अमिताभ बच्चन ही जानते हैं। लेकिन वह अपनी सूझ-बूझ , मेहनत और किस्मत से सोनिया का सारा जाल छिन्न-भिन्न कर बाहर आ गए। लेकिन सभी तो किस्मत के धनी नहीं होते। सभी तो अमिताभ बच्चन नहीं होते। कुछ अरुण सिंह भी होते हैं। कुछ अनाम और अनजान लोग भी होते हैं।
कुछ राजीव शुक्ला भी होते हैं। जिन को राजीव गांधी जैसे लोग लगभग उपकृत करते हुए अपनी महिला मित्र अनुराधा प्रसाद से विवाह करवा देते हैं। और वह फिर मुड़ कर कभी पीछे नहीं देखते। फिर यही राजीव शुक्ला जैसे कहानी का चक्र घुमाते मिलते हैं। प्रियंका और शाहरुख खान की मेल-मुलाक़ात करवाते हैं। खबर सोनिया तक पहुंचती है। नाराजगी भी झेलते हैं राजीव शुक्ला। और मंत्री बनते-बनते रह जाते हैं। पर राजीव शुक्ला में और सब कुछ के अलावा धैर्य भी बहुत है। प्रियंका कार्ड चल कर थोड़ा देर से सही मंत्री भी बन जाते हैं। लेकिन यह सब दिल्ली , मुंबई में करना आसान होता है। यहां ज़्यादा किसी को किसी से मतलब नहीं होता। तो सब चल जाता है। लेकिन लखनऊ दिल्ली, मुंबई के मुकाबले अनुपातत: बहुत छोटा शहर है। सब लोग , सब कुछ जान जाते हैं। अब तो कार के शीशे पर काला शीशा भी क़ानून अलाऊ नहीं है। एस पी जी का सुरक्षा चक्र भी नहीं है। फिर लखनऊ नवाबों का शहर रहा है। नवाबों के किस्सों का शौक़ीन। नवाब नए हों , पुराने हों , अमा यार सब जानते ही हैं। तो प्रियंका के शौक लखनऊ में छुपने मुश्किल हैं। यह बात प्रियंका , बेहतर जानती हैं।
इस लिए जान लीजिए कि सिवाय राजनीतिक प्रोपगैंडा और नौटंकी के प्रियंका का लखनऊ प्रवास और कुछ भी नहीं है। रहना उन्हें दिल्ली में ही है। बाक़ी रहने को तो लखनऊ के सांसद और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी लखनऊ में नहीं रहते। बस आते-जाते रहते हैं। लखनऊ आते हैं तो खबर छपती है कि आ रहे हैं। जा रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी जब सांसद थे लखनऊ के तो उन के साथ भी यही था। वह भी लखनऊ यदा-कदा ही रहते थे। इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल , जिन के घर प्रियंका रहने आने का डंका बजा रही हैं , वह भी जब लखनऊ की सांसद थीं , तब भी लखनऊ में नहीं रहती थीं। आती-जाती रहती थीं। केंद्र में मंत्री थीं। राज्यपाल भी रहीं। तो लखनऊ में क्या धरा था। शीला कौल की बेटी दीपा कौल तो उत्तर प्रदेश सरकार में सूचना राज्य मंत्री थीं तो भी सदन के समय ही लखनऊ में रहती थीं। इस लिए भी कि जो नेता एक बार लखनऊ भोग लेता है , अपने गांव में नहीं रहता। ऐसे ही जो नेता दिल्ली भोग लेता है , वह लखनऊ नहीं रह पाता। फिर प्रियंका तो अपने को राजवंश का मानती हैं। राजवंश की हैं तभी तो प्रियंका दिल्ली छोड़ कर , लखनऊ रहेंगी की ढोल बज रही है।
नहीं जाने कितनी प्रियंका इधर से उधर होती रहती हैं। कौन जानता है।
हमारे लखनऊ में एक से एक बिरयानी बेचते , पंचर जोड़ते , ठेले लगाते लोग मिल जाते है , जो बड़े अदब और शान से अपने पुरखों को नवाब बताते नहीं थकते। इस समय भी एक मोहतरम हैं जो लखनऊ के घोषित नवाब हैं , इस-उस कार्यक्रम में लोगों के साथ चिपक कर फ़ोटो खिंचवाते दिख जाते हैं। मौसम कोई हो , शेरवानी उन की नहीं उतरती। तो दिल्ली में रहने वाली कांग्रेस की राजकुमारी प्रियंका के लखनऊ में रहने के खतरे बहुत हैं। बड़े धोखे हैं इस राह में। नुकसान बहुत हैं। व्यक्तिगत ज़िंदगी एक तो सार्वजनिक हो जाएगी। शॉर्ट्स पहन कर जो किसी दिन वाक पर निकल जाएंगी तो तमाम नवाब भी वाक पर आ जाएंगे। एस पी जी का घेरा है नहीं। तो और मुश्किल। शाहरुख़ खान जैसे सैकड़ो , हज़ारो दिल्ली आते-जाते रहते हैं लेकिन पता नहीं पड़ता। उसे खुद बताना पड़ता है। खबर छपवानी पड़ती है कि मैं आया हूं। लेकिन लखनऊ में मुंबई से कोई छुटभैया भी आ जाता है तो खबर छप जाती है। उस के उठने , बैठने , नहाने , खाने , मिलने की डिटेल छप जाती है। उसे देखने के लिए पुलिस से लाठियां खाने पब्लिक पहुंच जाती है।
फिर गोखले मार्ग , जहां शीला कौल का घर है , मेरे घर से एक किलोमीटर पर ही है। वहां सड़क भी फोरलेन वाली नहीं है। बाउंड्री भी छोटी वाली है। उजड़ा-उजड़ा दयार है। राजकुमारी प्रियंका को चेक यह भी ज़रूर कर लेना चाहिए कि इस बंगले का हाऊस टैक्स और बिजली का बिल आदि कहीं बकाया तो नहीं है। अगर बकाया हो तो चुपके से जमा करवा दीजिएगा। नहीं ऐसी ही खबरों से स्वागत शुरू हो जाएगा। इस लिए भी कि कांग्रेसियों को यह सब बकाया रखने का नवाबी शौक रहा है। आप चिल्लाती रहिएगा कि यह योगी का जुल्म है। लेकिन यह सब कोई सुनेगा नहीं। फिर लखनऊ में रहेंगी तो 10 , माल एवेन्यू कांग्रेस के दफ्तर भी जाना-आना होगा ही। माल एवेन्यू का यह कांग्रेस दफ्तर भी आप की बहुत खबर लेने और देने वाला है। कर्मचारियों का वेतन , भवन का मालिकाना विवाद , खराब मेंटेनेंस , गंदगी , जाला आदि अपनी मनहूसियत के साथ मिलेंगे ही , एक से एक घाघ मगरमच्छ भी मिलेंगे। जो आप से कुछ न मिलते ही , आप ही को काट खाएंगे। तो उलटे बांस बरेली कहिए , उलटे पांव भागना पड़ेगा।
प्रियंका की ज़िंदगी और उन की ज़िंदगी के नखरे सब लखनऊ वालों को दिख जाएंगे। महात्मा गांधी तो हैं नहीं , प्रियंका गांधी कि जो भी कुछ करेंगी , खुलेआम। तो प्रियंका जी बड़े धोखे हैं इस राह में। मनो लखनऊ में रहने की राह में। बाकी आप की यह लखनऊ में रहने की ढोल न बजती तो मुझे भी यह सारा सितार न बजाना पड़ता। अब बज गया है यह सितार तो लोग सुनेंगे ही। बाक़ी लखनऊ में आप कितना रहेंगी , यह आप भी जानती हैं और मैं भी। सचमुच रहेंगी लखनऊ में तो एक दिन आऊंगा गोखले मार्ग , आप के घर , आप से मिलने। अगर आप देंगी तो एक बढ़िया इंटरव्यू लूंगा। कि लोग पढ़ कर , अश-अश करेंगे।