हिंदुत्व के जाल में कांग्रेस अनायास फंस गई है। यह जाल भाजपा का है। वरना भाजपा के इस जाल में फंसी कांग्रेस की आत्मा आज भी मुस्लिम वोट बैंक के लिए तड़पती है। बहुत दिन नहीं हुए जब तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। दरअसल अभी तक कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की खतरनाक तलवार पर चल रही थी लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण जब उस के लिए भस्मासुर बन गया , कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई तो वह हिंदुत्व की शरण में भी आ गई। सत्ता की हवस ख़ातिर एंटोनी कमेटी की रिपोर्ट ने उसे लाचार कर दिया। एंटोनी कमेटी ने कहा था कि मुस्लिम तुष्टीकरण और कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि के कारण कांग्रेस 2014 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हारी। लेकिन कांग्रेस के लिए हिंदुत्व अब दोधारी तलवार बन कर उपस्थित है। कांग्रेस न मुसलमानों की बन कर रह पा रही है न हिंदुओं की। लेकिन एक निर्मल सच यही है कि वोटबंदी के लिए कांग्रेस आज भी मुस्लिम तुष्टीकरण को अपना मुख्य आधार मानती है , हिंदुओं या हिंदुत्व को नहीं । पारसी फ़िरोज़ गांधी के पोते राहुल गांधी ब्राह्मण कैसे हो गए कि कुर्ते के ऊपर यज्ञोपवीत पहन कर मंदिर-मंदिर घूमने लगे। कांग्रेस में यह कोई पूछने वाला नहीं है। हालां कि योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि राहुल गांधी मंदिर में भी ऐसे बैठते हैं जैसे मस्जिद में बैठे हों। सच भी यही है कि कांग्रेस न हिंदू की है न मुसलमान की , सिर्फ़ सत्ता की है। सत्ता के लिए कांग्रेस किसी भी को अपना बाप बना सकती है। उस का सॉफ्ट हिंदुत्व एजेंडा इसी बाप बनाने की एक सीढ़ी है , कुछ और नहीं।
लोकतांत्रिक भारत की चुनावी राजनीति में धर्म का कार्ड पहले पहल इंदिरा गांधी ने खेला। लेकिन इंदिरा गांधी तलवार की धार पर बड़ी ख़ूबसूरती से चलना जानती थीं। ऐसे जैसे जादूगरनी हों। इंदिरा गांधी एक साथ जामा मस्जिद , दिल्ली के शाही इमाम बुखारी , बाबा जयगुरुदेव , देवरहवा बाबा आदि सभी को साधना और उन का वोट बटोर लेना जानती थीं। इतना ही नहीं कभी कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक ब्राह्मण , दलित और मुस्लिम ही थे। तीनों , तीन ध्रुव थे लेकिन कांग्रेस के वोट बैंक के गुलदस्ते में इस तरह फिट होते थे कि किसी को कभी तकलीफ नहीं होती थी। इस का मूल कारण था कि तब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में ज़्यादातर ब्राह्मण नेता उपस्थित थे। वह बुद्धि , सदाशयता , उदारता और कूटनीति से काम लेते थे। जातीय दुर्गंध उन में नहीं थी। चौधरी चरण सिंह , करूणानिधि , जयललिता आदि पिछड़ी राजनीति के पुरोधा थे। बाक़ी वोट कांग्रेस के पाले में थे। लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दृश्य बदल गया। राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की कमान अर्जुन सिंह आदि के हाथ में आ गई। कमलापति त्रिपाठी , प्रणव मुखर्जी आदि का जिस तरह अर्जुन सिंह ने राजीव गांधी की शह पर अपमान का वातावरण बनाया , वह कांग्रेस के लिए अशुभ साबित हुआ। दिन-ब-दिन ब्राह्मण वोट कांग्रेस से छिटकना शुरू हो गया। विश्वनाथ प्रताप सिंह की बोफोर्स राजनीति में राजीव गांधी जब सत्ता से विदा हुए तो मंडल , कमंडल की राजनीति कांग्रेस के लिए सुनामी बन कर उपस्थित हुई। भारतीय राजनीति के लिए भी। देश की राजनीतिक दशा और दिशा बदल गई।
ब्राह्मण समेत अधिकांश सवर्ण वोट भाजपा में लामबंद हो गए। पिछड़े , मुस्लिम और दलित वोट जनता दल और उन के सहयोगी दलों के साथ एकजुट हो गए। कांग्रेस ख़ाली हाथ रह गई। कांग्रेस ने कसरत बहुत की कि ब्राह्मण वोट कांग्रेस के पाले में लौट आए , जो अब तक नहीं लौटा। अस्थाई रुप से कभी सपा तो कभी बसपा को भी ब्राह्मणों ने आजमाया और इन पार्टियों को सफलता की राह भी दिखाई। पर अंतत: भाजपा की तरफ लौटे। अलग बात है एस सी एस टी एक्ट और नौकरियों में प्रमोशन में भी आरक्षण के चलते ब्राह्मण वोट भाजपा से फिर बिदक गया है। लेकिन कांग्रेस को हिंदुत्व के जाल में फंस कर ब्राह्मण वोट नहीं दिख रहे। सो अपने पाले में ब्राह्मण वोट लाने की लालसा भी नहीं दिखाई। फिर फर्जी ही सही , राहुल गांधी नाम के एक ब्राह्मण का गुमान कांग्रेस को फ़िलहाल है ही। अब रह गए दलित और मुस्लिम तो तब तक कांशीराम राजनीति में कूद चुके थे। पिछड़े , दलित और मुस्लिम का एक नया गठबंधन बन गया। लालू यादव , मुलायम यादव ने मंडल और पिछड़े के नाम पर मलाई काटनी शुरू कर दी। जातिवादी राजनीति की बदबू और भ्रष्टाचार की सड़न बहुत जल्दी सामने आ गई। मायावती इन की काट बन कर उपस्थित हो गईं। लेकिन दलित दुर्गंध की राजनीति और भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डूबी मायावती कांग्रेस की सब से बड़ी दुश्मन बन कर उपस्थित हो गईं। दलितों की नाल कांग्रेस से पूरी तरह काट दिया मायावती ने। इसी लिए देखिए कि सब कुछ के बाद मायावती कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करतीं तो सिर्फ इस लिए कि यह डर उन के मन में सर्वदा समाया रहता है कि कांग्रेस कहीं दलितों को फिर से भरमा न ले। अब कांग्रेस के पास ब्राह्मण रहे नहीं , दलित रहे नहीं। अब सिर्फ़ और सिर्फ़ मुसलमानों का आसरा रह गया। तो मनमोहन सिंह का यह कहना बाध्यता हो गई कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार सिर्फ़ मुसलमानों का है। लेकिन मुसलमानों की भी प्राथमिकता बदल गई थी। उन को हर हाल भाजपा से निपटना था। सो मुसलमानों की प्राथमिकता में यह हो गया कि जहां और जैसे भी हो भाजपा को हराओ। जो उम्मीदवार भाजपा को हरा सकता हो , जिस भी किसी पार्टी का हो उसे वोट दो। मुसलमानों के इस रवैए ने स्थिति यह बना दी कि भाजपा को छोड़ कर हर किसी पार्टी ने मुस्लिम तुष्टीकरण का हलवा पकाना , खाना और खिलाना शुरू कर दिया। नतीज़ा यह हुआ कि भाजपा ने भारतीय राजनीति के इसी केमिकल लोचे का लाभ लिया और दलित , पिछड़े , सवर्ण सभी को एक साथ लामबंद कर ख़ामोश हिंदू ध्रुवीकरण कर 2014 में नतीज़ा बदल दिया।
कोई माने न माने पर शाश्वत सत्य यही है कि नरेंद्र मोदी की 2014 की जीत सिर्फ़ और सिर्फ़ मुस्लिम तुष्टीकरण के ख़िलाफ़ थी , किसी टू जी , किसी जीजा , किसी कोयला , किसी भ्रष्टाचार आदि के ख़िलाफ़ नहीं। अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद ने भाजपा के इस सोने में सुहागे का काम किया। नरेंद्र मोदी का एक दाग गुजरात दंगा उन की बड़ी ताक़त बन कर साधारण हिंदुओं के मन में कौंधा। क़दम-क़दम पर नमक में दाल बन चुके मुस्लिम तुष्टीकरण से आजिज हिंदुओं ने मन ही मन मान लिया कि मुस्लिम तुष्टीकरण से अगर कोई निपट सकता है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ नरेंद्र मोदी। कश्मीर की अराजकता भी महत्वपूर्ण कारण बनी भाजपा के इस विजय में। मान लिया लोगों ने भाजपा ही कश्मीर को दुरुस्त कर सकती है। नरेंद्र मोदी नाम की यह पीठिका तैयार की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने। तय मानिए कि 2014 में भाजपा ने अगर नरेंद्र मोदी की जगह किसी और का नाम प्रधान मंत्री के लिए आगे किया होता तो भाजपा मुंह की खा गई होती। इतनी बड़ी जीत मुमकिन नहीं थी भाजपा के लिए। 2014 का चुनाव परिणाम आते ही कांग्रेस को जैसे लकवा मार गया। कांग्रेस से ज़्यादा मुस्लिम समाज को लकवा मार गया। मुस्लिम वोट बैंक किस चिड़िया का नाम है , मुसलमान अब भी अपनी दाढ़ी खुजाते हुए सोचते रहते हैं दिन-रात। क्यों कि भारतीय राजनीति में बतौर मुस्लिम वोट बैंक दामाद बने रहने का उन का रुतबा रातो-रात खत्म हो गया। बात-बेबात देश में आग लगा देने की उन की ताक़त , दंगा फैला देने की ब्लैकमेलिंग और इस मानसिकता पर आघात लग गया। ब्रेन स्ट्रोक जैसा।
और कांग्रेस ?
कांग्रेस अब कभी दलित उभार में , कभी दलित उत्पीड़न में छेद खोजती है और वामपंथियों को लामबंद कर जय भीम , जय मीम की बिसात बिछा कर एक नकली आंदोलन का बीज बोती है। कभी रोहित वेमुला को हथियार बनाती है , कभी हार्दिक पटेल , जिग्नेश मेवाड़ी का फार्मूला बनाती है। नफ़रत का नित नया बीज बोती है। जब कि अंबेडकर वामपंथ के घनघोर विरोधी हैं। दोनों दो ध्रुव हैं। तब भी जय भीम , जय मीम ! कांग्रेस जाने क्या सोचती, समझती है। जे एन यू में भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला का नारा लगाने वालों के साथ राहुल खड़े दीखते हैं। याकूब मेनन और अफजल गुरु के समर्थकों के साथ कांग्रेस खड़ी मिलती है। मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा पार करती कांग्रेस सेना , चुनाव आयोग , सुप्रीम कोर्ट , सी बी आई आदि संस्थाओं पर हमला कर उन की छवि और मर्यादा पर निरंतर हमला करती मिलती है। अवार्ड वापसी का व्यूह रच कर साहित्य अकादमी को तहस-नहस करती है। गो मांस खाने की पैरवी में लथपथ कांग्रेस नोटबंदी , जी एस टी और राफ़ेल जैसे मुद्दों को ले कर खड़ी तो होती है पर इन मुद्दों पर कुछ भी प्रामाणिक डाक्यूमेंट नहीं दिखाती है। न कोर्ट जाती है , भाजपा की लाख चुनौती के बाद भी। क्यों कि सारे मामले हवा हवाई हैं। सिर्फ़ गगन बिहारी मुद्दे हैं यह सारे। सो इन गगन बिहारी मुद्दों से छुट्टी पाती है कांग्रेस तो अपने नेता राहुल गांधी को कुर्ते के ऊपर यज्ञोपवीत पहना कर , मंदिर-मंदिर घुमाती है। वह पारसी राहुल गांधी जिसे अपना ब्राह्मण गोत्र भी नहीं मालूम। हिंदू शब्द कांग्रेस के लिए अब राम नाम बन चुका है। इतना कि बौखलाहट में कभी हिंदू आतंकवाद का शब्द रचने वाली कांग्रेस , गाय का मांस खाने की वकालत करने वाली कांग्रेस अब गाय और गौशाला को अनुदान का वायदा अपने घोषणा पत्र में करने लगी है। हिंदू-हिंदू का फर्जी उदघोष करती कभी शिव मंदिर , कभी वह मंदिर , कभी यह मंदिर घूमते राहुल गांधी और उन की कांग्रेस जैसे सत्ता के लिए पागल हो चुकी है। चूंकि एंटोनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बता दिया कि मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू विरोधी छवि के कारण कांग्रेस लोकसभा चुनाव हारी। तो कांग्रेस की विवशता हो गई हिंदुत्व की माला जपना। लेकिन हिंदुत्व की माला कांग्रेस के लिए मुंह में राम , बगल में छुरी बन चुका है। हिंदुत्व और मुस्लिम तुष्टीकरण दोनों एक साथ साध रही है। यह हिंदू , मुसलमान को साधना कांग्रेस के लिए दो घोड़ों की सवारी कहिए या दो नाव की सवारी साबित हो रही है।
काश कि कांग्रेस हिंदुत्व की माला और मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर चलने के बजाय स्वस्थ राजनीति पर चलती । गांधी की राह चलती। कांग्रेस ही क्या सभी राजनीतिक दलों को स्वस्थ राजनीति की राह पर चलना चाहिए। जाति और धर्म की राजनीति , स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सर्वदा और सर्वथा घातक है। लेकिन लगातार लीक हो रहे वीडियो में मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कमलनाथ जिस तरह निरंतर मुस्लिम वोट बैंक के लिए प्रतिबद्ध दीखते हैं , राहुल गांधी का सारा हिंदुत्व और मंदिर दर्शन पर पानी फिराते जा रहे हैं। न सिर्फ़ पानी फेर रहे हैं , भाजपा का निरंतर प्रचार करते जा रहे हैं। एक निजी वीडियो में कमलनाथ दहाड़ते हुए कह रहे हैं कि कांग्रेस को जीतने के लिए हर हाल में नब्बे परसेंट मुस्लिम वोट पड़ना ज़रूरी है , नहीं कांग्रेस को भारी नुकसान हो जाएगा। वह मोदी को हिंदू शेर बता कर मुस्लिम बुद्धिजीवियों को उकसाते दीखते हैं , इस वीडियो में। कमलनाथ का मुस्लिम बुद्धिजीवियों को संबोधित यह निजी वीडियो कांग्रेस के हिंदुत्व की डगर के लिए बहुत अशुभ है। कांग्रेस प्रवक्ताओं का विभिन्न चैनलों पर कटखन्ना बन कर बोलना भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं जाता। राम मंदिर पर कांग्रेस का ढुलमुल रुख और कपिल सिब्बल का मुस्लिम पक्ष का वकील बन कर सुनवाई में रोड़ा बनने की कवायद ने भी कांग्रेस के हिंदुत्व की डगर में बड़े बैरियर की भूमिका निभाई है। कभी शपथ पत्र दे कर राम की अवधारणा से ही इंकार करने वाली कांग्रेस के लिए हिंदुत्व सूट नहीं करता , कांग्रेस को अभी यह जानना शेष है। यह भी कि अयोध्या में मंदिर में मूर्तियां रखवाने , मंदिर का ताला खुलवाने , शिलान्यास करवाने , विवादित ढांचा गिरवाने में कांग्रेस का अप्रत्यक्ष हाथ सर्वदा ही रहा है। सब कुछ कांग्रेस राज में ही हुआ है। पर मुस्लिम वोट बैंक की लालच में कांग्रेस कभी खुल कर सामने नहीं आई राम मंदिर के लिए। आगे भी नहीं आने वाली। कांग्रेस की इसी हिप्पोक्रेसी का लाभ भाजपा ने डट कर उठाया है , उठाती ही जा रही है।
इस लिए हिंदुत्व चाहे , सॉफ्ट हिंदुत्व ही क्यों न हो , कांग्रेस के वश का नहीं है। हिंदुत्व की राजनीति में कांग्रेस की तुलना में भाजपा बहुत पक्की और मज़बूत है। हिंदुत्व भाजपा की थाती और बिसात है , कांग्रेस जाने क्यों भाजपा की इस बिसात पर खेल रही है। निरंतर खेलती जा रही है। हिंदुत्व की बिसात पर कांग्रेस को सिर्फ़ और सिर्फ़ हारना ही है। जिन मुद्दों पर कांग्रेस चुनाव जीत सकती है , जितनी जल्दी संभव बने कांग्रेस को उन मुद्दों की खोज करनी चाहिए। कांग्रेस को यह भी जान लेना चाहिए कि सेक्यूलरिज्म किसी डिवेट के लिए , किसी के ईगो मसाज के लिए , भले मुफ़ीद विषय हो , मुस्लिम वोट बैंक के लिए मुफ़ीद हो लेकिन समग्र वोट बैंक के लिए , खास कर हिंदू वोट बैंक के लिए महज़ बदबू मारता हुआ एक शब्द है। बहुत भयानक बदबू आती है इस एक सेक्यूलर शब्द से। इस बात को सिर्फ़ सामान्य जनता जानती है , राजनीतिक और बुद्धिजीवी लोग नहीं। जानते होते तो इस शब्द से लोगों को पिन की तरह निरंतर चुभोते नहीं रहते। यह पिन भाला की तरह घोंप-घोंप कर निरंतर लोगों को नाराज नहीं करते होते। इस एक सेक्यूलरिज्म शब्द और मुस्लिम तुष्टीकरण ने एक व्यापक हिंदू वोट बैंक खड़ा कर दिया है , जो पहले कभी नहीं था। कांग्रेस , कांग्रेस समर्थक बुद्धिजीवियों और वामपंथियों को यह जानना अभी शेष है। क्यों कि इन की दुनिया बहुत बंद दुनिया है। गोया धरती पर नहीं , मंगल ग्रह पर रहते हों। बाहर की दुनिया की बात वह किसी सूरत नहीं जानना चाहते। यह उन की ज़िद ही नहीं , सनक भी है। उन का सिद्धांत तो खैर है ही। उन की राय में जो उन से असहमत हो , वह भाजपाई है , संघी है , हिंदूवादी है । तो एक बड़े हिस्से को इन लोगों ने खुद ही अपने ख़िलाफ़ मान लिया है। ऐसे में क्या कुछ कहना अब भी शेष रह जाता है ? कुल मिला कर कांग्रेस के लिए हिंदुत्व की डगर किसी सूरत मुफ़ीद नहीं है , समय की दीवार पर लिखी यह इबारत कांग्रेस के रणनीतिकारों को जान और मान लेने में कतई गुरेज नहीं करना चाहिए। राहुल गांधी का बैरियर क्या कम है कांग्रेस के पास जो हिंदुत्व का भी बैरियर बना लिया है ?