बच्चों का हत्यारा डाक्टर काफ़िल |
गोरखपुर में बीते साल बच्चों के हत्यारे डा काफ़िल को आज इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है । इस के पहले काफ़िल ने जेल से एक चिट्ठी लिख कर अपने को हीरो बना कर पेश किया। ऐसे गोया उसे सिर्फ़ मुसलमान होने के कारण सताया जा रहा हो । फिर क्या था कुछ लोगों को एक एजेंडा मिल गया । एकपक्षीय विश्लेषण ऐसे शुरू हो गया गोया काफ़िल जेल नहीं काला पानी काट रहा हो । तमाम बच्चों का हत्यारा काफ़िल चिट्ठी में बड़ी मासूमियत से लिख रहा था कि मैं अपनी बेटी को बढ़ते हुए नहीं देख पा रहा हूं । एकपक्षीय एजेंडा धारकों ने यह बात बहुत प्रचारित की । लेकिन यह कभी नहीं बताया कि काफ़िल अकेले नहीं इसी जुर्म में नौ और डाक्टर लोग भी जेल काट रहे हैं । यह भी नहीं बताया कि गोरखपुर मेडिकल कालेज का बाप उन दिनों यही डाक्टर काफ़िल था । अपने सपाई भाई के बूते अखिलेश यादव और आज़म खान का आशीर्वाद ले कर पूरे गोरखपुर मेडिकल कालेज का बाप बन कर सारा आक्सीजन अपने नर्सिंग होम में लगा रखा था । नियमों को धता बता कर प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहा था। मेडिकल कालेज में बाल विभाग का ज़िम्मेदार तो था ही , मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल को ढक्कन बना रखा था । जब पानी सिर से गुज़र गया , बच्चे मरने लगे तो चोरी के आक्सीजन रिक्शे से पहुंचाने लगा । फ़ोटो खिंचवा कर भगवान बनने लगा । बातें और भी बहुत सी हैं । लेकिन एकपक्षीय एजेंडा चलाने वाले लोगों ने यह सब नहीं देखा । न इस की चर्चा की । हाईकोर्ट ने भी किस बिना पर ज़मानत दिया है , इस पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। कि अगर काफिल की खबर ले ली तो बाकी से गाफिल क्यों हो गई हाईकोर्ट ? खैर , कफील के कारनामों पर आप को यकीन न हो तो हिंदुस्तान , गोरखपुर संस्करण में सितंबर , 2017 में छपी इस ख़बर और टीना न्यूज़ की रिपोर्टों को पढ़ लीजिए :
डॉक्टरों की तिकड़ी को मुख्य गुनहगार मान रही पुलिस
ऑक्सीजन कांड
-चार्जशीट के मुताबिक डॉ. राजीव, डॉ. कफील व डॉ. सतीश की भूमिका गंभीर
-पूर्व प्राचार्य सहित तीनों डॉक्टरों को सदोष मानव वध के प्रयास का दोषी माना
-पुष्पा सेल्स के मालिक मनीष भण्डारी पर सबसे हल्की धारा में लगी चार्जशीट
गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाता
बीआरडी मेडिकल कालेज के ऑक्सीजन कांड में नौ आरोपितों में से धाराओं के हिसाब से पुलिस ने पूर्व प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र, एनएचएम के नोडल अधिकारी डॉ. कफील खान तथा एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. सतीश को मुख्य गुनहगार माना है। इनके खिलाफ गंभीर धाराओं में चार्जशीट दाखिल की है। वहीं आक्सीजन सप्लाई करने वाली फर्म पुष्पा सेल्स के मालिक मनीष भण्डारी पर सबसे हल्की धारा में चार्जशीट हुई है।
नौ आरोपितों में से छह को सदोष मानव वध के प्रयास की धारा तो दो को भ्रष्टाचार के आरोप से पुलिस ने मुक्त कर दिया है। तीनों डॉक्टरों के खिलाफ सदोष मानव वध के प्रयास और आपराधिक साजिश की धारा में चार्जशीट तो हुई ही है इसके अलावा अन्य धाराएं भी लगी हैं। डॉ. राजीव मिश्र और डॉ. सतीश को कमीशन लेने का दोषी बनाया है। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार की धारा में चार्जशीट लगी है। हालांकि डॉ. कफील पर यह धारा नहीं लगाई गई है। वहीं गबन की धारा में डॉ. राजीव और डा. कफील दोनों के खिलाफ चार्जशीट लगी है। तीनों डॉक्टरों के अलाचा चौथे नम्बर पर गजानन जायसवाल को गंभीर आरोपितों में पुलिस ने शामिल किया है। गजानन डॉ. सतीश के सहयोगी हैं।
आक्सीजन काण्ड की साजिश रचने में सभी नौ आरोपितों को पुलिस ने दोषी बताया है जबकि सात को कमीशनबाजी में शामिल बताया है। इन सातों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण की धारा में आरोपपत्र दाखिल है। आक्सीजन की सप्लाई ठप करने वाले मनीष भण्डारी के खिलाफ साजिश रचने के अलावा सिर्फ अमानत में खयानत की धारा में ही पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल किया है। भ्रष्टाचार की जिन धाराओं में केस हुआ है उनमें डा. पूर्णिमा शुक्ला पर गंभीर आरोप है। सरकारी डॉक्टर रहते हुए एक प्राइवेट व्यक्ति की भूमिका में कमीशन मांगने के लिए उन्हें दोषी बनाया है। अब इन आरोपपत्रों के आधार पर आगे की कार्रवाई शुरू होगी।
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डॉ. कफील से भ्रष्टाचार समेत तीन धाराएं हटाईं
पुलिस की विवेचना में डा. कफील खान को बड़ी राहत मिली है। उनके ऊपर से तीन धाराएं हटाई गई हैं। भ्रष्टाचार की धारा के अलावा 420 यानी धोखाधड़ी, इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 का सेक्सन 15 और आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 66 की धारा में पुलिस को डॉ. कफील के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। लिहाजा पुलिस ने तीनों धाराओं से डॉक्टर कफील को क्लीनचिट दे दी है। जिस हिसाब से पुलिस डॉ. कफील को मुख्य आरोपी मान रही थी उस हिसाब से इन धाराओं से क्लीनचिट डा. कफील के लिए बड़ी राहत है।
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कुछ धाराएं हटाईं तो कुछ बढ़ाईं
पुलिस ने नौ आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 308, 120 बी, 420, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 8, इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 के सेक्शन 15, आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 66 के तहत केस दर्ज किया था। विवेचना के दौरान जहां कुछ धाराएं बढ़ीं वहीं कुछ धाराओं को पुलिस ने निकाल दिया। जिन धाराओं को निकाला गया है उसमें इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 का सेक्सन 15 और आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 66 की धारा शामिल है। हालांकि विवेचना में कुछ धाराएं बढ़ाई भी गईं। डा. सतीश और गजानन के खिलाफ 466, 468, 469, 471 की धारा तथा मनीष भण्डारी के खिलाफ 406 की धारा बढ़ाई गई।
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आरोपियों पर इन धाराओं में चार्जशीट
डा. राजीव मिश्र- 409 , 308,120 बी और 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
डा. कफील खान-409, 308, 120 बी
डॉ. सतीश, अध्यक्ष एनेस्थीसिया विभाग- 120 बी, 466, 468, 469, 471 , 308 व 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
डा. पूर्णिमा- 120 बी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/13, (8) (9)
मनीष भण्डारी - 120 बी और 406
उदय प्रताप शर्मा - 120 बी, 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
संजय कुमार त्रिपाठी - 120 बी, 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
सुधीर कुमार पाण्डेय - 120 बी, 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
गजानन जायसवाल - 120 बी, 466, 468,469,471, 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनयम
विभागीय जांच में तय हुए थे ये आरोप
डॉ. राजीव मिश्रा, पूर्व प्राचार्य
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा का अपने ही स्टाफ व सहयोगी डॉक्टर्स पर कोई प्रभाव नहीं। वे इनके आदेशों की अनदेखी करते रहे। प्राचार्य ने सब पता होने के बाद भी ऑक्सीजन सप्लाई सुचारु रहे इसके लिए कोई पहल नहीं की। आपूर्ति बंद होने की चेतावनी सम्बंधित सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं दी। हद तो यह कि मेडिकल कॉलेज में इतने बड़े संकट की आशंका को जानने के बाद भी 9 अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरे के तत्काल बाद छुट्टी पर चले गए। उनपर खुद मुख्यमंत्री भी आरोप लगा चुके हैं कि वह दो दिन पहले चार घंटे तक मेडिकल कॉलेज में रहे लेकिन एक बार भी इस संकट पर चर्चा नहीं की।
डॉ. सतीश कुमार, स्टाक प्रभारी
ऑक्सीजन की सप्लाई की सुनिश्चितता डा. सतीश कुमार पर ही थी। डॉ. सतीश ऑक्सीजन की उपलब्धता संबंधित और स्टॉक आदि के प्रभारी थे।इन्होंने कभी भी स्टॉक रजिस्टर या लॉग बुक चेक करने की जहमत तक नहीं उठाई। हद तो यह हुई कि जब ऑक्सीजन के लिए अफरातफरी मची थी, पूरे देश की निगाहें मेडिकल कॉलेज में थी तो वह बिना किसी आधिकारिक सूचना के मुंबई 11 अगस्त को चले गए। 100 बेड वाले एईएस वार्ड में एसी खराब होने की लिखित शिकायत के बाद भी इन्होंने कोई सक्रियता नहीं दिखाई।
डॉ.कफील खान, 100 नंबर वार्ड के प्रभारी
ऑक्सीजन ख़त्म होने की बात अधिकारियों तक समय से नहीं पहुंचाई। इसके अलावा इनपर प्राइवेट प्रैक्टिस का भी आरोप है। इसलिए ये भी इस मामले में आरोपी हैं और इनके खिलाफ भी केस दर्ज है।
डॉ. पूर्णिमा शुक्ला, पूर्व प्राचार्य की पत्नी
डॉ. पूर्णिमा पूर्व प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र की पत्नी हैं। गोला में तैनाती के बाद खुद को मेडिकल कॉलेज में संबद्ध कराया। फोन पर कर्मचारियों से कमीशन की मांगती थी। पेमेंट में लेटलतीफी में इनका भी योगदान था। ये मेडिकल कॉलेज में हर मामले में अवैध हस्तक्षेप करती थीं।
मनीष भंडारी, पुष्पा सेल्स के मालिक
पुष्पा सेल्स ने आक्सीजन की सप्लाई ठप कर दी थी। ऑक्सीजन जीवनरक्षक है। इसकी आपूर्ति बंद करना गुनाह है। इसके लिए आपूर्तिकर्ता मनीष भंडारी के खिलाफ केस दर्ज कराया गया था।
गजानन जायसवाल, चीफ फार्मासिस्ट
डॉ. सतीश कुमार के साथ आक्सीजन की उपलब्धता, लॉग बुक और स्टाक बुक का जिम्मा गजानन जायसवाल पर ही था। लॉग बुक व स्टॉक बुक में अनियमित इंट्री है। कई जगह आंकड़ों में बाजीगरी दिखाने के लिए ओवरराइटिंग भी हुई है। ये भी फरार हैं।
तीनों लिपिक
लिपिक उदय प्रताप शर्मा, लिपिक संजय कुमार त्रिपाठी व सहायक लेखाकार सुधीर कुमार पांडेय यह तीनों लेखा विभाग के कर्मचारी थे। आरोप है जिस कमीशन की बात हो रही उसकी नींव यहीं से रखी गई थी। हालांकि, भेजी गई रपट के अनुसार इन पर आरोप है कि जब शासन से बजट आया तो प्राचार्य को बताने व पत्रावली भेजने में लेटलतीफी की गई। इस लिए इनके खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कराई गई।
[ हिंदुस्तान , गोरखपुर संस्करण से साभार ]
टीना न्यूज के अमरीश श्रीवास्तव की इस रिपोर्ट में डाक्टर काफ़िल के मुंह पर लगे कालिख का व्यौरा पढ़िए :
लखनऊ– बीते दिनों उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले मे स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज मे 36 बच्चे काल के गाल मे समा गए । इस हादसे से पूरा देश आहत है , मामले की गंभीरता समझते हुये सूबे के सरदार ने जांच बैठा दिया । जांच मे एक से बढ़कर एक चौकाने वाले तथ्य सामने आ रहे है । हादसे वाले दिन इन्स्फ़्लेलाईटिस वार्ड के चीफ़ डॉ कफिल एक बेहूदा तरीका अपनाते हुये कुछ पत्रकारो का के हवाले से हीरो बनने की कोशिश किया । एक विशेष समुदाय के होने के वजह से देश की मीडिया भी इसके कारनामे को हाथो हाथ लिया व चंद मिनटों मे डॉ कफिल देश का हीरो बन गया । और बनता भी क्यो नहीं डॉ कफिल ने मीडिया को बताया था की ऑक्सिजन ख़त्म होने की सूचना मिलते ही वो अपने दोस्त के अस्पताल से तीन जम्बो ऑक्सिजन सिलिंडर लेकर रातोरात अस्पताल पहुंचा और मोर्चा संभाला । और इसके साथ उसने अपने निजी खर्चे से ऑक्सिजन खरीद कर हालत पर काबू किया । परंतु जैसे जैसे जांच आंगे बढ़ रही है डॉ काफिल के एक से बढ़ कर एक कारनामे सामने आ रहे है ।
डॉ कफिल के कारनामों की फेहरिस्त इतनी लंबी है की पढ़ते पढ़ते आपको को उबासी आने लगे । डॉ कफिल को सपा के विवादित चेहरा आजम खान के सिफ़ारिश पर 2015 मे बीआरडी मेडिकल कॉलेज मे अहम पद मिला ।कफिल चंद वर्षों मे अकूत संपति के मालिक बन गया । डॉ कफिल को इसेफालाईटिस वर्ड के चीफ़ के साथ अस्पताल मे उपयोग होने वाले सामानों की खरीद फ़रोख्त के लिए जिम्मेदार बनाया गया । इन सभी घोटालों मे मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य राजीव मिश्रा व राजीव मिश्रा की पत्नी डॉ पुर्णिमा शुक्ला डॉ कफिल का साथ देते है ।
हार्ले डेविडसन बाइक से फर्राटा भरता है डॉ कफिल
डॉ कफिल को सपा के विवादित चेहरा आजम खान के सिफ़ारिश पर 2015 मे बीआरडी मेडिकल कॉलेज मे अहम पद मिला। चंद सालो मे ही डॉ कफिल धन कुबेर बन गया । करोड़ो का अस्पताल ,नौकर , गाड़ी बंगले इसके काले कारनामे के गवाह है । डॉ कफिल लाखो की कीमत वाली हार्ले डेविडसन बाइक से फर्राटा भरता है। डॉ कफिल के शौक भी किसी राजा महराजा से कम नहीं है । अब एक बात समझ से परे है की एक सरकारी डॉक्टर ऐसे महराजाओं की तरह जिंदगी कैसे जी सकता है ?\
चोरी के वेंटीलेटर चोरी के अत्याधुनिक उपकरणो से सजा है कफिल का अस्पताल
जांच मे एक से बढ़ कर एक चौकाने वाले तथ्य सामने आ रहे है । रुस्तम नगर नहर रोड के पास प्रवीण प्लाज़ा के सामने डॉ काफ़िल ने अपना मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के नाम से अपना हॉस्पिटल चलाता था । जहां ये सुबह 9 बजे से लेकर रात 9 बजे तक मरीज देखने का दावा करता था । जांच मे पाया गया की डॉ कफिल के अस्पताल मे जो वेंटीलेटर पाया गया वो बीआरडी मेडिकल कॉलेज से चोरी कर वह पहुंचाया गया था । इसके साथ आँय जरूरी उपकरण भी बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ही है । मामला उपकरणो तक ही सीमित नहीं डॉ कफिल ऑक्सिजन व दवाए भी मेडिकल से चुरा कर अपने अस्पताल की शोभा बढ़ाता है ।
डॉ कफिल की डेन्टिस्ट बीवी के हवाले पीड़ीयट्रिक अस्पताल
डॉ कफिल बाल रोग विशेषज्ञ है , इनका मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल भी बाल रोगियों के बदौलत ही चलता है । डॉ कफिल नाम के तो बीआरडी मेडिकल कॉलेज से जुड़े है परंतु इनका ज़्यादातर समय अपने निजी अस्पताल मे व्यतीत होता है । सरकार से बचने के लिए के लिए डॉ कफिल अपने अस्पताल को डेन्टिस्ट बीवी डॉ. शबिस्ता खान के नाम सुपुर्द कर दिया है । अब सोचने वाली बात यह है की डेन्टिस्ट बच्चो का इलाज़ कैसे करती होगी । हालांकि फिलहाल इस अस्पताल मे ताला लटका मिला ।
[ टीना न्यूज से साभार ]
डाक्टर काफ़िल एक नर्स से बलात्कार के केस में 1 साल तक जेल में रह चुका है, उसे धमकी भी दी
इस केस में जमानत पर है।
* डाक्टर काफ़िल अखिलेश यादव द्वारा उत्तर प्रदेश में DGP बनाये गए जावेद अहमद का रिश्तेदार है।
* डाक्टर काफ़िल कई बार अलग अलग केस में गिरफ्तार हुआ है।
2009 में दिल्ली पुलिस ने काफ़िल खान को जनकपुरी के केंद्रीय विद्यालय से गिरफ्तार किया था, ये पैसा ले कर दूसरे शख्स की जगह एग्जाम में बैठा था। ये एग्जाम मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया का था।
यह आरोप भी लग चुके हैं डाक्टर काफ़िल पर जो अख़बारों में छपे हैं :
डाक्टर काफ़िल एक नर्स से बलात्कार के केस में 1 साल तक जेल में रह चुका है, उसे धमकी भी दी
इस केस में जमानत पर है।
* डाक्टर काफ़िल अखिलेश यादव द्वारा उत्तर प्रदेश में DGP बनाये गए जावेद अहमद का रिश्तेदार है।
* डाक्टर काफ़िल कई बार अलग अलग केस में गिरफ्तार हुआ है।
2009 में दिल्ली पुलिस ने काफ़िल खान को जनकपुरी के केंद्रीय विद्यालय से गिरफ्तार किया था, ये पैसा ले कर दूसरे शख्स की जगह एग्जाम में बैठा था। ये एग्जाम मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया का था।
अब पढ़िए आंख में धूल झोकने के लिए शहीदाना अंदाज़ में जेल से लिखी डाक्टर काफिल की चिट्ठी :
बिना बेल 8 महीने से जेल, क्या मैं वाकई कुसूरवार हूँ ?
सलाखों के पीछे इन 8 महीनों की न-काबिले बर्दाश्त यातना, बेइज्ज़ती के बावजूद आज भी वो एक एक दृश्य मेरी आँखों के सामने उतना ही ताज़ा है जैसे यह सब कुछ ठीक यहाँ अभी मेरी आँखों के सामने घटित हो रहा हो. कभी कभी मैं ख़ुद से यह सवाल करता हूँ कि क्या वाकई मैं कुसूरवार हूँ ? और मेरे दिल की गहराइयों से जो जवाब फूटता है वह होता है- नहीं! बिलकुल नहीं !
मेरे भाग्य में लिखे उस 10 अगस्त की रात को जैसे ही मुझे वह व्हाट्स एप सन्देश मिला तो मैंने वही किया जो एक डॉक्टर को, एक पिता को, एक ज़िम्मेदार नागरिक को करना चाहिए था. मैंने हर उस ज़िन्दगी को बचाने की कोशिश की जो अचानक लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाने के कारण ख़तरे में अया गयी थी. मैंने अपना हर वो संभव प्रयास किया जो मैं उन मासूम बच्चों की जिंदगियों को बचाने के लिए कर सकता था.
मैंने पागलों की तरह सबको फ़ोन किया, गिड़गिड़ाया, बात की, यहाँ-वहाँ भागा, गाड़ी चलाई, आदेश दिया, चीखा-चिल्लाया, सांत्वना दी, खर्च किया, उधार लिया, रोया, मैंने वो सब कुछ किया जो इंसानी रूप से किया जाना संभव था .
मैंने अपने संस्थान के विभागाध्यक्ष को फ़ोन किया. सहकर्मियों, बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य, एक्टिंग प्राचार्य, गोरखपुर के डीएम, गोरखपुर के स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल डायरेक्टर, गोरखपुर के सीएमएस/एसआईसी, बीआरडी मेडिकल कालेज के सीएमएस/एसआईसी को फ़ोन किया और अचानक लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई रुक जाने के कारण पैदा हुई गंभीर स्थिति के बारे में सबको अवगत करवाया और यह भी बताया की किस तरह से ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने से नन्हें बच्चों की जिंदगियां खतरे में हैं. (मेरे पास की गयी उन सभी फ़ोन कॉल के रिकॉर्ड मौजूद हैं )
सैकड़ों मासूम बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए मैंने मोदी गैस, बाला जी, इम्पीरियल गैस, मयूर गैस एजेंसी से जम्बो आक्सीजन सिलिंडर्स मांगे. आस-पास के सभी अस्पतालों के फ़ोन नम्बर इकठ्ठे किये और उनसे जम्बो आक्सीजन सिलिंडर्स की गुज़ारिश की.
मैंने उन्हें नकद में कुछ भुगतान किया और उन्हें विश्वास दिलाया की बाकी की राशि डिलीवरी के समय दे दी जाएगी. हमने प्रतिदिन के हिसाब से 250 सिलेंडरों की व्यवस्था की जब तक कि लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो गयी. एक जंबो सिलिंडर की कीमत रु. 216 थी.
हॉस्पिटल में एक क्यूबिकल से दूसरे क्यूबिकल, वार्ड 100 से वार्ड 12, इमरजेंसी वार्ड, जहाँ ऑक्सीजन सप्लाई होनी थी उस पॉइंट से लेकर वहीँ तक जहाँ उसकी डिलीवरी होनी थी, मैं दौड़-भाग करता रहा ताकि बिना किसी दिक्कत के ऑक्सीजन की सप्लाई बनी रह सके.
बीआरडी मेडिकल कालेज
अपनी गाड़ी से मैं आस-पास के अस्पतालों से सिलिंडर्स लेने गया. लेकिन जब मुझे अहसास हुआ कि यह प्रयास भी अपर्याप्त है तब मैं एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) गया और उसके डीआईजी से मिला और सिलेंडरों की कमी की वजह से उत्पन्न हुई आपद स्थिति के बारे में बताया. उन्होंने तुरंत स्थिति को समझा और सहयोग किया. उन्होंने जल्द ही सैनिकों के एक समूह और एक बड़े ट्रक की व्यवस्था की जिससे कि बीआरडी मेडिकल कालेज में खाली पड़े सिलिंडरों को गैस एजेंसी तक जल्द से जल्द लाया जा सके और फिर उन्हें भरवाकर वापस बीआरडी पहुंचाया जा सके. उन्होंने 48 घंटों तक यह काम किया.
उनके इस हौसले से हमें हौसला मिला. मैं एसएसबी को सलाम करता हूँ और उनकी इस मदद के लिए उनका आभारी हूँ. जय हिन्द .
मैंने अपने सभी जूनियर और सीनियर डाक्टरों से बात की, अपने स्टाफ को परेशान न होने के निर्देश दिए और कहा कि हिम्मत न हारें, और परेशान बेबस माता-पिताओं पर क्रोध न करें. कोई छुट्टी या ब्रेक न लें. हमें बच्चों की जिंदगियां बचाने के लिए एक टीम की तरह काम करना होगा.
मैंने उन बेहाल माता-पिताओं को ढांढस बंधाया जो अपने बच्चों को गँवा चुके थे. उन माता-पिताओं को समझाया जो अपने बच्चों को खो देने के कारण क्रोधित थे. वहाँ स्थिति बहुत तनावपूर्ण थी. मैंने उन्हें बताया कि लिक्विड ऑक्सीजन खत्म हो गया है पर हम जम्बो सिलिंडरों की व्यवस्था करने की कोशिश कर रहे हैं.
मैं कई लोगों पर चीखा-चिल्लाया ताकि लोग अन्य सब बातों से ध्यान हटाकर बच्चों की जिंदगियों को बचाने में ध्यान केन्द्रित करें. मैं ही नहीं बल्कि मेरी टीम के कई लोग उस स्थिति में यह देखकर रो दिए कि किस तरह से प्रशासन की लापरवाही से गैस सप्लायर्स को पैसे न मिलने के कारण आज यह आपद स्थिति पैदा हो गयी जिसकी वजह से इतनी सारी मासूम जिंदगियां दांव पर लग गयी हैं. हम लोगों ने अपनी इन कोशिशों को तब तक जारी रखा जब तक 13/8/17 को सुबह 1:30 बजे लिक्विड ऑक्सीजन टैंक अस्पताल में पहुँच नहीं गया.
मेरी ज़िन्दगी में उथल-पुथल उस वक्त शुरू हुई जब 13/8/17 की सुबह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी महाराज अस्पताल पहुंचें. और उन्होंने कहा – “ तो तुम हो डॉक्टर कफ़ील जिसने सिलिंडर्स की व्यवस्था की. मैंने कहा –“ हाँ सर ”. वो नाराज़ हो गए और कहने लगे “तुम्हें लगता है कि सिलिंडरों की व्यवस्था कर देने से तुम हीरो बन गए, मैं देखता हूँ इसे .”
योगी जी नाराज़ थे क्योंकि यह ख़बर किसी तरह मीडिया तक पहुँच गयी थी, लेकिन मैं अपने अल्लाह की कसम खाकर कहता हूँ कि मैंने उस रात तक इस सम्बन्ध में किसी मीडिया कर्मी से कोई बात नहीं की थी. मीडियाकर्मी पहले से ही उस रात वहाँ मौजूद थे.
इसके बाद पुलिस ने हमारे घरों पर आना शुरू कर दिया, हम पर चीखना-चिल्लाना, धमकी देना, मेरे परिवार को डराना. कुछ लोगों ने हमें यह चेतावनी भी दी कि मुझे एनकाउंटर में मार दिया जायेगा. मेरा परिवार, मेरी माँ, मेरी बीवी, बच्चे सब किस कदर डरे हुए थे इसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.
अपने परिवार को इस दुःख और अपमान से उबारने के लिए मैंने सरेंडर कर दिया, यह सोचकर कि जब मैंने कुछ ग़लत नहीं किया है तो मुझे न्याय ज़रूर मिलेगा.
पर कई दिन, हफ्ते और महीने बीत चुके हैं. अगस्त 2017 से अप्रैल 2018 आ गयी, दीवाली आई, दशहरा आया, क्रिसमस आया, नया साल आया, होली आई, हर तारीख़ पर मुझे लगता था कि शायद मुझे बेल मिल जाएगी. और तब मुझे अहसास हुआ कि न्याय प्रक्रिया भी दबाव में काम कर रही है (वो ख़ुद भी यही महसूस करते हैं)
150 से भी ज़्यादा कैदियों के साथ एक तंग बैरक में फ़र्श पर सोते हुए जहाँ रात में लाखों मच्छर और दिन में हज़ारों मख्खियाँ भिनभिनाती हैं, जीने के लिए खाने को हलक के नीचे उतारना पड़ता है, खुले में लगभग नग्नावस्था में नहाना पड़ता है, जहाँ टूटे हुए दरवाजों वाले शौचालयों में गंदगी पड़ी रहती है, अपने परिवार से मिलने के लिए जहाँ बस रविवार, मंगलवार, वृहस्पतिवार, का इंतज़ार रहता है.
ज़िन्दगी नर्क बन गयी है. सिर्फ़ मेरे लिए ही नहीं बल्कि मेरे पूरे परिवार के लिए. उन्हें न्याय की तलाश में यहाँ-वहाँ भागना पड़ रहा है, पुलिस स्टेशन से कोर्ट तक, गोरखपुर से इलाहाबाद तक पर सब व्यर्थ साबित हो रहा है.
मैं अपनी बेटी के पहले जन्मदिन में भी शामिल नहीं हो सका जो अब 1 साल 7 महीने की हो गयी है. बच्चों के डॉक्टर होने के नाते भी यह बहुत दुःख देने वाली बात है कि मैं उसे बढ़ते हुए नहीं देख पा रहा. बच्चों का डॉक्टर होने के नाते मैं अक्सर अभिभावकों से बढ़ते हुए बच्चों की उम्र के कई महत्वपूर्ण पड़ावों के प्रति उन्हें सचेत किया करता था और अब मैं ख़ुद ही नहीं जानता कि मेरी बेटी ने कब चलना, बोलना, शुरू किया ? तो अब मुझे फिर से वही सवाल सता रहा है कि क्या मैं वाकई में गुनाहगार हूँ ? नहीं ! नहीं ! नहीं !
मैं 10 अगस्त 2017 को छुट्टी पर था जिसकी अनुमति मुझे मेरे विभागाध्यक्ष ने दी थी. छुट्टी पर होने के बावजूद मैं अस्पताल में अपना कर्तव्य निभाने पहुंचा. क्या ये मेरा गुनाह है ? मुझे हेड आफ डिपार्टमेंट,मेडिकल कालेज का वाइस चांसलर, 100 नम्बर वार्ड का प्रभारी बताया गया जबकि मैं 8/8/16 को ही स्थाई सदस्य के रूप में बीआरडी से जुड़ा था, और विभाग में सबसे जूनियर डॉक्टर था. मैं एनआरएचएम के नोडल अधिकारी और बाल रोग विभाग में लेक्चरर के रूप में कार्यरत था, जहाँ मेरा काम सिर्फ छात्रों को पढ़ना और बच्चों का इलाज करना था.
मैं किसी भी रूप में लिक्विड ऑक्सीजन/जम्बो सिलिंडर के ख़रीद/ फ़रोख्त/ ऑर्डर देने/ सप्लाई/ देखरेख/ भुगतान आदि से जुड़ा हुआ नहीं रहा हूँ. अगर पुष्पा सेल्स ने अचानक लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई रोक दी तो उसके लिए मैं ज़िम्मेदार कैसे हो गया ? एक ऐसा व्यक्ति जो चिकित्सा से नहीं जुड़ा हो, वो भी बता सकता है कि एक डॉक्टर का काम इलाज करना है न कि ऑक्सीजन खरीदना.
पुष्पा सेल्स द्वारा अपनी 68 लाख की बकाया राशि के लिए लगातार 14 बार रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद भी अगर कोई इस सन्दर्भ में लापरवाही बरती गई और कोई कार्यवाही नहीं की गयी तो इसके लिए गोरखपुर के डीएम , डीजी मेडिकल एजुकेशन, और स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी दोषी हैं. यह पूरी तरह से एक उच्च स्तरीय प्रशासकीय फेल्योर है कि जिन्होंने स्थिति की गंभीरता को नहीं समझा.
हमें जेल में डालकर उन्होंने हमें बलि के बकरे की तरह इस्तेमाल किया ताकि सच हमेशा-हमेशा के लिए गोरखपुर जेल की सलाखों के पीछे दफ्न रहे.
जब मनीष (आक्सीजन सप्लायर पुष्पा सेल्स के निदेशक मनीष भंडारी) को बेल मिली तो हमें उम्मीद की एक किरण नज़र आई कि शायद हमें भी न्याय मिलेगा और हम बाहर आ पायेंगें और अपने परिवार के साथ रह पायेंगें और फिर अपना काम करेंगें. पर नहीं, हम अभी भी इंतजार कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट कहता है कि बेल अधिकार होता है और जेल अपवाद. यह न्याय प्रक्रिया के हनन का क्लासिकल उदाहरण है.
मैं आशा करता हूँ कि वो समय ज़रूर आएगा जब मैं आज़ाद हो जाऊंगा और अपने परिवार और अपनी बेटी के साथ आज़ादी की ज़िन्दगी जी पाउँगा. सच बाहर ज़रूर आएगा और न्याय होकर रहेगा.
एक बेबस और दुखी पिता/ पति/ भाई/ बेटा/ और दोस्त
डॉ. कफ़ील खान, 18/4/18
[ साभार समकालीन जनमत ]