Wednesday, 25 April 2018

गोरखपुर में बच्चों के हत्यारे डा काफ़िल को आख़िर ज़मानत मिल गई

बच्चों का हत्यारा डाक्टर काफ़िल 

गोरखपुर में बीते साल बच्चों के हत्यारे डा काफ़िल को आज इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिल गई है । इस के पहले काफ़िल ने जेल से एक चिट्ठी लिख कर अपने को हीरो बना कर पेश किया। ऐसे गोया उसे सिर्फ़ मुसलमान होने के कारण सताया जा रहा हो । फिर क्या था कुछ लोगों को एक एजेंडा मिल गया । एकपक्षीय विश्लेषण ऐसे शुरू हो गया गोया काफ़िल जेल नहीं काला पानी काट रहा हो । तमाम बच्चों का हत्यारा काफ़िल चिट्ठी में बड़ी मासूमियत से लिख रहा था कि मैं अपनी बेटी को बढ़ते हुए नहीं देख पा रहा हूं । एकपक्षीय एजेंडा धारकों ने यह बात बहुत प्रचारित की । लेकिन यह कभी नहीं बताया कि काफ़िल अकेले नहीं इसी जुर्म में नौ और डाक्टर लोग भी जेल काट रहे हैं । यह भी नहीं बताया कि गोरखपुर मेडिकल कालेज का बाप उन दिनों यही डाक्टर काफ़िल था । अपने सपाई भाई के बूते अखिलेश यादव और आज़म खान का आशीर्वाद ले कर पूरे गोरखपुर मेडिकल कालेज का बाप बन कर सारा आक्सीजन अपने नर्सिंग होम में लगा रखा था । नियमों को धता बता कर प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहा था। मेडिकल कालेज में बाल विभाग का ज़िम्मेदार तो था ही , मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल को ढक्कन बना रखा था । जब पानी सिर से गुज़र गया , बच्चे मरने लगे तो चोरी के आक्सीजन रिक्शे से पहुंचाने लगा । फ़ोटो खिंचवा कर भगवान बनने लगा । बातें और भी बहुत सी हैं । लेकिन एकपक्षीय एजेंडा चलाने वाले लोगों ने यह सब नहीं देखा । न इस की चर्चा की । हाईकोर्ट ने भी किस बिना पर ज़मानत दिया है , इस पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। कि अगर काफिल की खबर ले ली तो बाकी से गाफिल क्यों हो गई हाईकोर्ट ? खैर , कफील के कारनामों पर आप को यकीन न हो तो हिंदुस्तान , गोरखपुर संस्करण में सितंबर , 2017 में छपी इस ख़बर और टीना न्यूज़ की रिपोर्टों को पढ़ लीजिए :

डॉक्टरों की तिकड़ी को मुख्य गुनहगार मान रही पुलिस

ऑक्सीजन कांड
-चार्जशीट के मुताबिक डॉ. राजीव, डॉ. कफील व डॉ. सतीश की भूमिका गंभीर   
-पूर्व प्राचार्य सहित तीनों डॉक्टरों को सदोष मानव वध के प्रयास का दोषी माना  
-पुष्पा सेल्स के मालिक मनीष भण्डारी पर सबसे हल्की धारा में लगी चार्जशीट  

गोरखपुर। वरिष्ठ संवाददाता 
बीआरडी मेडिकल कालेज के ऑक्सीजन कांड में नौ आरोपितों में से धाराओं के हिसाब से पुलिस ने पूर्व प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र, एनएचएम के नोडल अधिकारी डॉ. कफील खान तथा एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. सतीश को मुख्य गुनहगार माना है। इनके खिलाफ गंभीर धाराओं में चार्जशीट दाखिल की है। वहीं आक्सीजन सप्लाई करने वाली फर्म पुष्पा सेल्स के मालिक मनीष भण्डारी पर सबसे हल्की धारा में चार्जशीट हुई है। 

नौ आरोपितों में से छह को सदोष मानव वध के प्रयास की धारा तो दो को भ्रष्टाचार के आरोप से पुलिस ने मुक्त कर दिया है। तीनों डॉक्टरों के खिलाफ सदोष मानव वध के प्रयास और आपराधिक साजिश की धारा में चार्जशीट तो हुई ही है इसके अलावा अन्य धाराएं भी लगी हैं। डॉ. राजीव मिश्र और डॉ. सतीश को कमीशन लेने का दोषी बनाया है। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार की धारा में चार्जशीट लगी है। हालांकि डॉ. कफील पर यह धारा नहीं लगाई गई है। वहीं गबन की धारा में डॉ. राजीव और डा. कफील दोनों के खिलाफ चार्जशीट लगी है। तीनों डॉक्टरों के अलाचा चौथे नम्बर पर गजानन जायसवाल को गंभीर आरोपितों में पुलिस ने शामिल किया है। गजानन डॉ. सतीश के सहयोगी हैं।

 आक्सीजन काण्ड की साजिश रचने में सभी नौ आरोपितों को पुलिस ने दोषी बताया है जबकि सात को कमीशनबाजी में शामिल बताया है। इन सातों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण की धारा में आरोपपत्र दाखिल है। आक्सीजन की सप्लाई ठप करने वाले मनीष भण्डारी के खिलाफ साजिश रचने के अलावा सिर्फ अमानत में खयानत की धारा में ही पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल किया है। भ्रष्टाचार की जिन धाराओं में केस हुआ है उनमें डा. पूर्णिमा शुक्ला पर गंभीर आरोप है। सरकारी डॉक्टर रहते हुए एक प्राइवेट व्यक्ति की भूमिका में कमीशन मांगने के लिए उन्हें दोषी बनाया है। अब इन आरोपपत्रों के आधार पर आगे की कार्रवाई शुरू होगी। 
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डॉ. कफील से भ्रष्टाचार समेत तीन धाराएं हटाईं

पुलिस की विवेचना में डा. कफील खान को बड़ी राहत मिली है। उनके ऊपर से तीन धाराएं हटाई गई हैं। भ्रष्टाचार की धारा के अलावा 420 यानी धोखाधड़ी, इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 का सेक्सन 15 और आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 66 की धारा में पुलिस को डॉ. कफील के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। लिहाजा पुलिस ने तीनों धाराओं से डॉक्टर कफील को क्लीनचिट दे दी है। जिस हिसाब से पुलिस डॉ. कफील को मुख्य आरोपी मान रही थी उस हिसाब से इन धाराओं से क्लीनचिट डा. कफील के लिए बड़ी राहत है।   
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कुछ धाराएं हटाईं तो कुछ बढ़ाईं

पुलिस ने नौ आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 308, 120 बी, 420, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 8, इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 के सेक्शन 15, आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 66 के तहत केस दर्ज किया था। विवेचना के दौरान जहां कुछ धाराएं बढ़ीं वहीं कुछ धाराओं को पुलिस ने निकाल दिया। जिन धाराओं को निकाला गया है उसमें इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 का सेक्सन 15 और आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 66 की धारा शामिल है। हालांकि विवेचना में कुछ धाराएं बढ़ाई भी गईं। डा. सतीश और गजानन के खिलाफ 466, 468, 469, 471 की धारा तथा मनीष भण्डारी के खिलाफ 406 की धारा बढ़ाई गई। 
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आरोपियों पर इन धाराओं में चार्जशीट 
डा. राजीव मिश्र- 409 , 308,120 बी और 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 
डा. कफील खान-409, 308, 120 बी 
डॉ. सतीश, अध्यक्ष एनेस्थीसिया विभाग- 120 बी, 466, 468, 469, 471 , 308 व 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
डा. पूर्णिमा- 120 बी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/13, (8) (9)
मनीष भण्डारी - 120 बी और 406 
उदय प्रताप शर्मा - 120 बी, 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
संजय कुमार त्रिपाठी - 120 बी, 7/13  भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
सुधीर कुमार पाण्डेय - 120 बी, 7/13  भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
गजानन जायसवाल - 120 बी, 466, 468,469,471, 7/13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनयम 


विभागीय जांच में तय हुए थे ये आरोप

डॉ. राजीव मिश्रा, पूर्व प्राचार्य

 बीआरडी मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्रा का अपने ही स्टाफ व सहयोगी डॉक्टर्स पर कोई प्रभाव नहीं। वे इनके आदेशों की अनदेखी करते रहे। प्राचार्य ने सब पता होने के बाद भी ऑक्सीजन सप्लाई सुचारु रहे इसके लिए कोई पहल नहीं की। आपूर्ति बंद होने की चेतावनी सम्बंधित सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं दी। हद तो यह कि मेडिकल कॉलेज में इतने बड़े संकट की आशंका को जानने के बाद भी 9 अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरे के तत्काल बाद छुट्टी पर चले गए। उनपर खुद मुख्यमंत्री भी आरोप लगा चुके हैं कि वह दो दिन पहले चार घंटे तक मेडिकल कॉलेज में रहे लेकिन एक बार भी इस संकट पर चर्चा नहीं की। 

डॉ. सतीश कुमार, स्टाक प्रभारी

ऑक्सीजन की सप्लाई की सुनिश्चितता डा. सतीश कुमार पर ही थी। डॉ. सतीश ऑक्सीजन की उपलब्धता संबंधित और स्टॉक आदि के प्रभारी थे।इन्होंने कभी भी स्टॉक रजिस्टर या लॉग बुक चेक करने की जहमत तक नहीं उठाई। हद तो यह हुई कि जब ऑक्सीजन के लिए अफरातफरी मची थी, पूरे देश की निगाहें मेडिकल कॉलेज में थी तो वह बिना किसी आधिकारिक सूचना के मुंबई 11 अगस्त को चले गए। 100 बेड वाले एईएस वार्ड में एसी खराब होने की लिखित शिकायत के बाद भी इन्होंने कोई सक्रियता नहीं दिखाई। 

 डॉ.कफील खान, 100 नंबर वार्ड के प्रभारी

ऑक्सीजन ख़त्म होने की बात अधिकारियों तक समय से नहीं पहुंचाई। इसके अलावा इनपर प्राइवेट प्रैक्टिस का भी आरोप है। इसलिए ये भी इस मामले में आरोपी हैं और इनके खिलाफ भी केस दर्ज है। 

डॉ. पूर्णिमा शुक्ला, पूर्व प्राचार्य की पत्नी

डॉ. पूर्णिमा पूर्व प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र की पत्नी हैं। गोला में तैनाती के बाद खुद को मेडिकल कॉलेज में संबद्ध कराया। फोन पर कर्मचारियों से कमीशन की मांगती थी। पेमेंट में लेटलतीफी में इनका भी योगदान था। ये मेडिकल कॉलेज में हर मामले में अवैध हस्तक्षेप करती थीं। 

मनीष भंडारी, पुष्पा सेल्स के मालिक

पुष्पा सेल्स ने आक्सीजन की सप्लाई ठप कर दी थी। ऑक्सीजन जीवनरक्षक है। इसकी आपूर्ति बंद करना गुनाह है। इसके लिए आपूर्तिकर्ता मनीष भंडारी के खिलाफ केस दर्ज कराया गया था। 

गजानन जायसवाल, चीफ फार्मासिस्ट 

डॉ. सतीश कुमार के साथ आक्सीजन की उपलब्धता, लॉग बुक और स्टाक बुक का जिम्मा गजानन जायसवाल पर ही था। लॉग बुक व स्टॉक बुक में अनियमित इंट्री है। कई जगह आंकड़ों में बाजीगरी दिखाने के लिए ओवरराइटिंग भी हुई है। ये भी फरार हैं।

तीनों लिपिक

लिपिक उदय प्रताप शर्मा, लिपिक संजय कुमार त्रिपाठी व सहायक लेखाकार सुधीर कुमार पांडेय यह तीनों लेखा विभाग के कर्मचारी थे। आरोप है जिस कमीशन की बात हो रही उसकी नींव यहीं से रखी गई थी। हालांकि, भेजी गई रपट के अनुसार इन पर आरोप है कि जब शासन से बजट आया तो प्राचार्य को बताने व पत्रावली भेजने में लेटलतीफी की गई। इस लिए इनके खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कराई गई।
[ हिंदुस्तान , गोरखपुर संस्करण से साभार ]


टीना न्यूज के अमरीश श्रीवास्तव की  इस रिपोर्ट में डाक्टर काफ़िल के मुंह पर लगे कालिख का व्यौरा पढ़िए :

लखनऊ– बीते दिनों उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले मे स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज मे 36 बच्चे काल के गाल मे समा गए । इस हादसे से पूरा देश आहत है , मामले की गंभीरता समझते हुये सूबे के सरदार ने जांच बैठा दिया । जांच मे एक से बढ़कर एक चौकाने वाले तथ्य सामने आ रहे है । हादसे वाले दिन इन्स्फ़्लेलाईटिस वार्ड के चीफ़ डॉ कफिल एक बेहूदा तरीका अपनाते हुये कुछ पत्रकारो का के हवाले से हीरो बनने की कोशिश किया । एक विशेष समुदाय के होने के वजह से देश की मीडिया भी इसके कारनामे को हाथो हाथ लिया व चंद मिनटों मे डॉ कफिल देश का हीरो बन गया । और बनता भी क्यो नहीं डॉ कफिल ने मीडिया को बताया था की ऑक्सिजन ख़त्म होने की सूचना मिलते ही वो अपने दोस्त के अस्पताल से तीन जम्बो ऑक्सिजन सिलिंडर लेकर रातोरात अस्पताल पहुंचा और मोर्चा संभाला । और इसके साथ उसने अपने निजी खर्चे से ऑक्सिजन खरीद कर हालत पर काबू किया । परंतु जैसे जैसे जांच आंगे बढ़ रही है डॉ काफिल के एक से बढ़ कर एक कारनामे सामने आ रहे है ।

डॉ कफिल के कारनामों की फेहरिस्त इतनी लंबी है की पढ़ते पढ़ते आपको को उबासी आने लगे । डॉ कफिल को सपा के विवादित चेहरा आजम खान के सिफ़ारिश पर 2015 मे बीआरडी मेडिकल कॉलेज मे अहम पद मिला ।कफिल चंद वर्षों मे अकूत संपति के मालिक बन गया । डॉ कफिल को इसेफालाईटिस वर्ड के चीफ़ के साथ अस्पताल मे उपयोग होने वाले सामानों की खरीद फ़रोख्त के लिए जिम्मेदार बनाया गया । इन सभी घोटालों मे मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य राजीव मिश्रा व राजीव मिश्रा की पत्नी डॉ पुर्णिमा शुक्ला डॉ कफिल का साथ देते है ।

हार्ले डेविडसन बाइक से फर्राटा भरता है डॉ कफिल

डॉ कफिल को सपा के विवादित चेहरा आजम खान के सिफ़ारिश पर 2015 मे बीआरडी मेडिकल कॉलेज मे अहम पद मिला। चंद सालो मे ही डॉ कफिल धन कुबेर बन गया । करोड़ो का अस्पताल ,नौकर , गाड़ी बंगले इसके काले कारनामे के गवाह है । डॉ कफिल लाखो की कीमत वाली हार्ले डेविडसन बाइक से फर्राटा भरता है। डॉ कफिल के शौक भी किसी राजा महराजा से कम नहीं है । अब एक बात समझ से परे है की एक सरकारी डॉक्टर ऐसे महराजाओं की तरह जिंदगी कैसे जी सकता है ?\

चोरी के वेंटीलेटर चोरी के अत्याधुनिक उपकरणो से सजा है कफिल का अस्पताल

जांच मे एक से बढ़ कर एक चौकाने वाले तथ्य सामने आ रहे है । रुस्तम नगर नहर रोड के पास प्रवीण प्लाज़ा के सामने डॉ काफ़िल ने अपना मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के नाम से अपना हॉस्पिटल चलाता था । जहां ये सुबह 9 बजे से लेकर रात 9 बजे तक मरीज देखने का दावा करता था । जांच मे पाया गया की डॉ कफिल के अस्पताल मे जो वेंटीलेटर पाया गया वो बीआरडी मेडिकल कॉलेज से चोरी कर वह पहुंचाया गया था । इसके साथ आँय जरूरी उपकरण भी बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ही है । मामला उपकरणो तक ही सीमित नहीं डॉ कफिल ऑक्सिजन व दवाए भी मेडिकल से चुरा कर अपने अस्पताल की शोभा बढ़ाता है ।

डॉ कफिल की डेन्टिस्ट बीवी के हवाले पीड़ीयट्रिक अस्पताल

डॉ कफिल बाल रोग विशेषज्ञ है , इनका मेडिस्प्रिंग हॉस्पिटल भी बाल रोगियों के बदौलत ही चलता है । डॉ कफिल नाम के तो बीआरडी मेडिकल कॉलेज से जुड़े है परंतु इनका ज़्यादातर समय अपने निजी अस्पताल मे व्यतीत होता है । सरकार से बचने के लिए के लिए डॉ कफिल अपने अस्पताल को डेन्टिस्ट बीवी डॉ. शबिस्ता खान के नाम सुपुर्द कर दिया है । अब सोचने वाली बात यह है की डेन्टिस्ट बच्चो का इलाज़ कैसे करती होगी । हालांकि फिलहाल इस अस्पताल मे ताला लटका मिला ।
[ टीना न्यूज से साभार ]

यह आरोप भी लग चुके हैं डाक्टर काफ़िल पर जो अख़बारों में छपे हैं  :

डाक्टर काफ़िल  एक नर्स से बलात्कार के केस में 1 साल तक जेल में रह चुका है, उसे धमकी भी दी
इस केस में जमानत पर है।
* डाक्टर काफ़िल अखिलेश यादव द्वारा उत्तर प्रदेश में DGP बनाये गए जावेद अहमद का रिश्तेदार है।
* डाक्टर काफ़िल कई बार अलग अलग केस में गिरफ्तार हुआ है।
2009 में दिल्ली पुलिस ने काफ़िल खान को जनकपुरी के केंद्रीय विद्यालय से गिरफ्तार किया था, ये पैसा ले कर दूसरे शख्स की जगह एग्जाम में बैठा था। ये एग्जाम मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया का था। 


अब पढ़िए आंख में धूल झोकने के लिए शहीदाना अंदाज़ में जेल से लिखी डाक्टर काफिल की चिट्ठी :

बिना बेल 8 महीने से जेल, क्या मैं वाकई कुसूरवार हूँ ?

सलाखों के पीछे इन 8 महीनों की न-काबिले बर्दाश्त यातना, बेइज्ज़ती के बावजूद आज भी वो एक एक दृश्य मेरी आँखों के सामने उतना ही ताज़ा है जैसे यह सब कुछ ठीक यहाँ अभी मेरी आँखों के सामने घटित हो रहा हो. कभी कभी मैं ख़ुद से यह सवाल करता हूँ कि क्या वाकई मैं कुसूरवार हूँ ? और मेरे दिल की गहराइयों से जो जवाब फूटता है वह होता है- नहीं! बिलकुल नहीं !

मेरे भाग्य में लिखे उस 10 अगस्त की रात को जैसे ही मुझे वह व्हाट्स एप सन्देश मिला तो मैंने वही किया जो एक डॉक्टर को, एक पिता को, एक ज़िम्मेदार नागरिक को करना चाहिए था. मैंने हर उस ज़िन्दगी को बचाने की कोशिश की जो अचानक लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई रुक जाने के कारण ख़तरे में अया गयी थी. मैंने अपना हर वो संभव प्रयास किया जो मैं उन मासूम बच्चों की जिंदगियों को बचाने के लिए कर सकता था.

मैंने पागलों की तरह सबको फ़ोन किया, गिड़गिड़ाया, बात की, यहाँ-वहाँ भागा, गाड़ी चलाई, आदेश दिया, चीखा-चिल्लाया, सांत्वना दी, खर्च किया, उधार लिया, रोया, मैंने वो सब कुछ किया जो इंसानी रूप से किया जाना संभव था .

मैंने अपने संस्थान के विभागाध्यक्ष को फ़ोन किया. सहकर्मियों, बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य, एक्टिंग प्राचार्य, गोरखपुर के डीएम, गोरखपुर के स्वास्थ्य विभाग के एडिशनल डायरेक्टर, गोरखपुर के सीएमएस/एसआईसी, बीआरडी मेडिकल कालेज के सीएमएस/एसआईसी को फ़ोन किया और अचानक लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई रुक जाने के कारण पैदा हुई गंभीर स्थिति के बारे में सबको अवगत करवाया और यह भी बताया की किस तरह से ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने से नन्हें बच्चों की जिंदगियां खतरे में हैं. (मेरे पास की गयी उन सभी फ़ोन कॉल के रिकॉर्ड मौजूद हैं )

सैकड़ों मासूम बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए मैंने मोदी गैस, बाला जी, इम्पीरियल गैस, मयूर गैस एजेंसी से जम्बो आक्सीजन सिलिंडर्स मांगे. आस-पास के सभी अस्पतालों के फ़ोन नम्बर इकठ्ठे किये और उनसे जम्बो आक्सीजन सिलिंडर्स की गुज़ारिश की.

मैंने उन्हें नकद में कुछ भुगतान किया और उन्हें विश्वास दिलाया की बाकी की राशि डिलीवरी के समय दे दी जाएगी. हमने प्रतिदिन के हिसाब से 250 सिलेंडरों की व्यवस्था की जब तक कि लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो गयी. एक जंबो सिलिंडर की कीमत रु. 216 थी.

हॉस्पिटल में एक क्यूबिकल से दूसरे क्यूबिकल, वार्ड 100 से वार्ड 12, इमरजेंसी वार्ड, जहाँ ऑक्सीजन सप्लाई होनी थी उस पॉइंट से लेकर वहीँ तक जहाँ उसकी डिलीवरी होनी थी, मैं दौड़-भाग करता रहा ताकि बिना किसी दिक्कत के ऑक्सीजन की सप्लाई बनी रह सके.
बीआरडी मेडिकल कालेज

अपनी गाड़ी से मैं आस-पास के अस्पतालों से सिलिंडर्स लेने गया. लेकिन जब मुझे अहसास हुआ कि यह प्रयास भी अपर्याप्त है तब मैं एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) गया और उसके डीआईजी से मिला और सिलेंडरों की कमी की वजह से उत्पन्न हुई आपद स्थिति के बारे में बताया. उन्होंने तुरंत स्थिति को समझा और सहयोग किया. उन्होंने जल्द ही सैनिकों के एक समूह और एक बड़े ट्रक की व्यवस्था की जिससे कि बीआरडी मेडिकल कालेज में खाली पड़े सिलिंडरों को गैस एजेंसी तक जल्द से जल्द लाया जा सके और फिर उन्हें भरवाकर वापस बीआरडी पहुंचाया जा सके. उन्होंने 48 घंटों तक यह काम किया.

उनके इस हौसले से हमें हौसला मिला. मैं एसएसबी को सलाम करता हूँ और उनकी इस मदद के लिए उनका आभारी हूँ. जय हिन्द .

मैंने अपने सभी जूनियर और सीनियर डाक्टरों से बात की, अपने स्टाफ को परेशान न होने के निर्देश दिए और कहा कि हिम्मत न हारें, और परेशान बेबस माता-पिताओं पर क्रोध न करें. कोई छुट्टी या ब्रेक न लें. हमें बच्चों की जिंदगियां बचाने के लिए एक टीम की तरह काम करना होगा.

मैंने उन बेहाल माता-पिताओं को ढांढस बंधाया जो अपने बच्चों को गँवा चुके थे. उन माता-पिताओं को समझाया जो अपने बच्चों को खो देने के कारण क्रोधित थे. वहाँ स्थिति बहुत तनावपूर्ण थी. मैंने उन्हें बताया कि लिक्विड ऑक्सीजन खत्म हो गया है पर हम जम्बो सिलिंडरों की व्यवस्था करने की कोशिश कर रहे हैं.

मैं कई लोगों पर चीखा-चिल्लाया ताकि लोग अन्य सब बातों से ध्यान हटाकर बच्चों की जिंदगियों को बचाने में ध्यान केन्द्रित करें. मैं ही नहीं बल्कि मेरी टीम के कई लोग उस स्थिति में यह देखकर रो दिए कि किस तरह से प्रशासन की लापरवाही से गैस सप्लायर्स को पैसे न मिलने के कारण आज यह आपद स्थिति पैदा हो गयी जिसकी वजह से इतनी सारी मासूम जिंदगियां दांव पर लग गयी हैं. हम लोगों ने अपनी इन कोशिशों को तब तक जारी रखा जब तक 13/8/17 को सुबह 1:30 बजे लिक्विड ऑक्सीजन टैंक अस्पताल में पहुँच नहीं गया.

मेरी ज़िन्दगी में उथल-पुथल उस वक्त शुरू हुई जब 13/8/17 की सुबह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी महाराज अस्पताल पहुंचें. और उन्होंने कहा – “ तो तुम हो डॉक्टर कफ़ील जिसने सिलिंडर्स की व्यवस्था की. मैंने कहा –“ हाँ सर ”. वो नाराज़ हो गए और कहने लगे “तुम्हें लगता है कि सिलिंडरों की व्यवस्था कर देने से तुम हीरो बन गए, मैं देखता हूँ इसे .”

योगी जी नाराज़ थे क्योंकि यह ख़बर किसी तरह मीडिया तक पहुँच गयी थी, लेकिन मैं अपने अल्लाह की कसम खाकर कहता हूँ कि मैंने उस रात तक इस सम्बन्ध में किसी मीडिया कर्मी से कोई बात नहीं की थी. मीडियाकर्मी पहले से ही उस रात वहाँ मौजूद थे.

इसके बाद पुलिस ने हमारे घरों पर आना शुरू कर दिया, हम पर चीखना-चिल्लाना, धमकी देना, मेरे परिवार को डराना. कुछ लोगों ने हमें यह चेतावनी भी दी कि मुझे एनकाउंटर में मार दिया जायेगा. मेरा परिवार, मेरी माँ, मेरी बीवी, बच्चे सब किस कदर डरे हुए थे इसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.

अपने परिवार को इस दुःख और अपमान से उबारने के लिए मैंने सरेंडर कर दिया, यह सोचकर कि जब मैंने कुछ ग़लत नहीं किया है तो मुझे न्याय ज़रूर मिलेगा.

पर कई दिन, हफ्ते और महीने बीत चुके हैं. अगस्त 2017 से अप्रैल 2018 आ गयी, दीवाली आई, दशहरा आया, क्रिसमस आया, नया साल आया, होली आई, हर तारीख़ पर मुझे लगता था कि शायद मुझे बेल मिल जाएगी. और तब मुझे अहसास हुआ कि न्याय प्रक्रिया भी दबाव में काम कर रही है (वो ख़ुद भी यही महसूस करते हैं)

150 से भी ज़्यादा कैदियों के साथ एक तंग बैरक में फ़र्श पर सोते हुए जहाँ रात में लाखों मच्छर और दिन में हज़ारों मख्खियाँ भिनभिनाती हैं, जीने के लिए खाने को हलक के नीचे उतारना पड़ता है, खुले में लगभग नग्नावस्था में नहाना पड़ता है, जहाँ टूटे हुए दरवाजों वाले शौचालयों में गंदगी पड़ी रहती है, अपने परिवार से मिलने के लिए जहाँ बस रविवार, मंगलवार, वृहस्पतिवार, का इंतज़ार रहता है.

ज़िन्दगी नर्क बन गयी है. सिर्फ़ मेरे लिए ही नहीं बल्कि मेरे पूरे परिवार के लिए. उन्हें न्याय की तलाश में यहाँ-वहाँ भागना पड़ रहा है, पुलिस स्टेशन से कोर्ट तक, गोरखपुर से इलाहाबाद तक पर सब व्यर्थ साबित हो रहा है.

मैं अपनी बेटी के पहले जन्मदिन में भी शामिल नहीं हो सका जो अब 1 साल 7 महीने की हो गयी है. बच्चों के डॉक्टर होने के नाते भी यह बहुत दुःख देने वाली बात है कि मैं उसे बढ़ते हुए नहीं देख पा रहा. बच्चों का डॉक्टर होने के नाते मैं अक्सर अभिभावकों से बढ़ते हुए बच्चों की उम्र के कई महत्वपूर्ण पड़ावों के प्रति उन्हें सचेत किया करता था और अब मैं ख़ुद ही नहीं जानता कि मेरी बेटी ने कब चलना, बोलना, शुरू किया ? तो अब मुझे फिर से वही सवाल सता रहा है कि क्या मैं वाकई में गुनाहगार हूँ ? नहीं ! नहीं ! नहीं !

मैं 10 अगस्त 2017 को छुट्टी पर था जिसकी अनुमति मुझे मेरे विभागाध्यक्ष ने दी थी. छुट्टी पर होने के बावजूद मैं अस्पताल में अपना कर्तव्य निभाने पहुंचा. क्या ये मेरा गुनाह है ? मुझे हेड आफ डिपार्टमेंट,मेडिकल कालेज का वाइस चांसलर, 100 नम्बर वार्ड का प्रभारी बताया गया जबकि मैं 8/8/16 को ही स्थाई सदस्य के रूप में बीआरडी से जुड़ा था, और विभाग में सबसे जूनियर डॉक्टर था. मैं एनआरएचएम के नोडल अधिकारी और बाल रोग विभाग में लेक्चरर के रूप में कार्यरत था, जहाँ मेरा काम सिर्फ छात्रों को पढ़ना और बच्चों का इलाज करना था.

मैं किसी भी रूप में लिक्विड ऑक्सीजन/जम्बो सिलिंडर के ख़रीद/ फ़रोख्त/ ऑर्डर देने/ सप्लाई/ देखरेख/ भुगतान आदि से जुड़ा हुआ नहीं रहा हूँ. अगर पुष्पा सेल्स ने अचानक लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई रोक दी तो उसके लिए मैं ज़िम्मेदार कैसे हो गया ? एक ऐसा व्यक्ति जो चिकित्सा से नहीं जुड़ा हो, वो भी बता सकता है कि एक डॉक्टर का काम इलाज करना है न कि ऑक्सीजन खरीदना.

पुष्पा सेल्स द्वारा अपनी 68 लाख की बकाया राशि के लिए लगातार 14 बार रिमाइंडर भेजे जाने के बावजूद भी अगर कोई इस सन्दर्भ में लापरवाही बरती गई और कोई कार्यवाही नहीं की गयी तो इसके लिए गोरखपुर के डीएम , डीजी मेडिकल एजुकेशन, और स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी दोषी हैं. यह पूरी तरह से एक उच्च स्तरीय प्रशासकीय फेल्योर है कि जिन्होंने स्थिति की गंभीरता को नहीं समझा.

हमें जेल में डालकर उन्होंने हमें बलि के बकरे की तरह इस्तेमाल किया ताकि सच हमेशा-हमेशा के लिए गोरखपुर जेल की सलाखों के पीछे दफ्न रहे.

जब मनीष (आक्सीजन सप्लायर पुष्पा सेल्स के निदेशक मनीष भंडारी) को बेल मिली तो हमें उम्मीद की एक किरण नज़र आई कि शायद हमें भी न्याय मिलेगा और हम बाहर आ पायेंगें और अपने परिवार के साथ रह पायेंगें और फिर अपना काम करेंगें. पर नहीं, हम अभी भी इंतजार कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट कहता है कि बेल अधिकार होता है और जेल अपवाद. यह न्याय प्रक्रिया के हनन का क्लासिकल उदाहरण है.

मैं आशा करता हूँ कि वो समय ज़रूर आएगा जब मैं आज़ाद हो जाऊंगा और अपने परिवार और अपनी बेटी के साथ आज़ादी की ज़िन्दगी जी पाउँगा. सच बाहर ज़रूर आएगा और न्याय होकर रहेगा.

एक बेबस और दुखी पिता/ पति/ भाई/ बेटा/ और दोस्त

डॉ. कफ़ील खान, 18/4/18

[ साभार समकालीन जनमत ]


Friday, 20 April 2018

कठुआ की पीड़िता बच्ची के बहाने नफ़रत और जहर बो कर लाखों-करोड़ों का खेल

पीड़िता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट 

महबूबा मुफ्ती ने टेम्पल , रिचुवल एंड रेप की इबारत 

लिख कर जम्मू के हिंदुओं में आतंक का भय पैदा कर दिया है


महबूबा मुफ़्ती 
ऊपर की फ़ोटो कठुआ में पीड़िता बच्ची की पोस्टमार्टम रिपोर्ट है। जम्मू के कठुआ में नन्हीं बच्ची के साथ बलात्कार का मामला दुःख , और शर्म का सबब है। पूरा देश घायल है। लेकिन इस मामले को ले कर राजनीतिक और वैचारिक लड़ाइयों ने , हिंदू , मुसलमान की मूर्खताओं ने इस पूरे मामले को विवादास्पद बना दिया है। मजाक बना दिया है। हिंदू , मुसलमान बना दिया है। पीड़िता का घाव भूल कर सब अपनी-अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। अपने-अपने ईगो की , अपनी-अपनी रणनीति की। अपने-अपने एजेंडे की। अब इस बारे में इतने सारे विवाद और इतनी सारी कहानियां गढ़ दी गई हैं , इतनी नफ़रत और इतना जहर भर दिया गया है कि इस मामले का ज़िक्र करना भी पत्थर को दावत देना हो गया है। अब लोग कतरा रहे हैं इस बाबत बात करने से भी। फंडिंग का रैकेट अलग खड़ा हो गया है। नरेंद्र मोदी से नफ़रत करने वालों को लगता है कि उन की तो चांदी हो गई है। अब इसी मसले पर नरेंद्र मोदी को गिरा लो। मामला संयुक्त राष्ट्र तक चला गया है। भले भारतीय मीडिया की खबरों में यह बात उभर कर सामने नहीं आई है लेकिन लंदन में भी नरेंद्र मोदी को इस बाबत विरोध झेलना पड़ा है।  कुछ मुस्लिम लोगों ने नारों की लिखी तख्तियां ले कर इस बाबत विरोध किया। निश्चित रूप से इस बाबत सरकार को जहां से भी बने घेरा जाना चाहिए। इस पर कोई ऐतराज नहीं है। लेकिन ऐतराज तब होता है जब यही विरोध करने वाले लोग कश्मीर की मुख्य मंत्री महबूबा मुफ्ती का घेराव करना , उन के खिलाफ बोलना भूल जाते हैं। क्या जम्मू कश्मीर के क़ानून का मसला केंद्र का विषय है ? क्या कश्मीर की महबूबा सरकार की इस के लिए कोई जवाबदेही नहीं है ?

लंदन में विरोध  , फोटो सौजन्य : तेजेंद्र शर्मा 
यह हमारे देश और समाज का दुर्भाग्य ही है कि रोज ही कहीं न कहीं से बलात्कार की कई सारी घटनाएं सामने आती हैं। आंकड़े बताते हैं कि हर पंद्रह मिनट में एक बलात्कार होता है। ऐसी खबर आती है। बहुत सारी बलात्कार की घटनाएं स्थानीय स्तर पर ही विवाद का विषय बनती हैं।  राजनीतिक रूप से बहुत कम ऐसी घटनाएं चर्चा का विषय बनती हैं। जैसे 16 दिसंबर, 2012 को  दिल्ली में ज्योति नाम की लड़की जिसे दामिनी नाम से जाना गया। इस भयानक बलात्कार की देशव्यापी चर्चा और विरोध हुआ।  तब की दिल्ली की तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार ने मामले को बहुत संभाला पर शीला दीक्षित और मनमोहन की केंद्र सरकार के विदा होने में इस बलात्कार कांड ने बड़ी भूमिका निभाई। इस दामिनी सामूहिक बलात्कार कांड में भी मुस्लिम बलात्कारी शामिल थे लेकिन उस बलात्कार को हिंदू , मुस्लिम रंग नहीं दिया गया। दामिनी की वीभत्स घटना को देखते हुए सरकार ने पाक्सो जैसा कानून बनाया गया। लेकिन बलात्कार की वीभत्स घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं। अब केंद्र सरकार ने बलात्कार को ले कर फांसी की सज़ा खातिर क़ानून बनाने के लिए कवायद शुरू कर दिया है। कठुआ से लेकर सूरत, एटा, छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों में हर रोज़ बच्चियों के साथ बलात्कार के जो दिल दहला देने वाले मामले आ रहे हैं, इस तरह की घटनाओं के बाद पूरे देश में जो गुस्सा है उसे देखते हुए केंद्र सरकार ने आज 12 साल से कम उम्र के बच्चियों से रेप के मामले में मौत की सज़ा के प्रावधान को मंज़ूरी दे दी है । यह अच्छी बात है लेकिन क्या बलात्कार की घटनाएं इस से रुक जाएंगी ? यह सोचने का विषय है।

लंदन में पीड़िता के बाबत मोदी विरोधी नारे लगते समय नमाज का समय हो गया तो नमाज पढ़ते लोग 

तालिब हुसैन 
मेरी जानकारी में कठुआ में बच्ची से बलात्कार का देश का ऐसा पहला मामला है जिसे हिंदू , मुसलमान के चश्मे से देखने की घृणित चालबाजी और धूर्तता सामने आई है। तब जब कि बेटियां साझी होती हैं।  हिंदू , मुसलमान नहीं। लेकिन इस बलात्कार मामले में हिंदू , मुसलमान की पहल महबूबा सरकार ने ही शुरू की। कठुआ में हुए इस बलात्कार की जांच श्रीनगर की क्राईम ब्रांच के संदिग्ध पुलिस कर्मियों से इस की जांच करवा कर। तब जब कि जम्मू में भी क्राइम ब्रांच है। तीन बार जांच टीम बदली गई। स्थानीय पुलिस की फाइंडिग कुछ और थी , क्राईम ब्रांच की कुछ और। आरोप है कि इस क्राईम ब्रांच ने तफ्तीश में महबूबा सरकार के इशारे पर न सिर्फ़ हिंदू , मुसलमान का रंग भरा बल्कि बहुत सारे ग़लत तथ्य भी अपनी चार्जशीट में डाल कर इस पूरे मामले को विवादास्पद बना दिया। इस टीम में शामिल एक पुलिस अधिकारी साल भर की जेल काट चुका है।  उस पर अनगिन आरोप हैं। नहीं , जनवरी के दूसरे हफ़्ते की यह बलात्कार की घटना अब बीच अप्रैल में चर्चा के शिखर पर क्यों आई। कठुआ और जम्मू के स्थानीय लोगों का आरोप है कि जैसे नब्बे के दशक में श्रीनगर से कश्मीरी पंडितों को जलील कर के , मार कर , हत्या कर , लूट कर , बलात्कार कर , घर जला कर , मंदिर तोड़ कर , सब कुछ नदियों में बहा कर , भगा दिया गया , अब उसी की पुनरावृत्ति महबूबा सरकार जम्मू और कठुआ से डोगरा पंडितों और हिंदुओं को भगा कर करना चाहती है। रोहिंग्या मुसलमानों को बसाना चाहती है। इस काम के लिए महबूबा सरकार ने क्राईम ब्रांच से बिस्मिल्ला करवाई है। टेम्पल , रिचुवल एंड रेप की इबारत लिख कर जम्मू के हिंदुओं में आतंक का भय पैदा किया है। इस भय का ही जम्मू और कठुआ के लोगों ने विरोध किया है। लेकिन महबूबा सरकार और क्राईम ब्रांच ने इन विरोध प्रदर्शनों को कुछ ऐसे पेंट किया कि यह सारे विरोध प्रदर्शन बलात्कारियों के समर्थन में हो रहे हैं। न्यूज़ चैनलों ने इस आग में घी डाल कर पूरे जम्मू को बलात्कारियों के पक्ष में बता कर खड़ा कर दिया। कांग्रेसियों और वामपंथियों ने इस आग को उठा लिया और इस भोंथरे हथियार से मोदी को निपटाने में सारी ऊर्जा खर्च कर दी। इस सब के खिलाफ जम्मू की बार एसोसिएसन खुल कर सामने आ गई। भाजपाई , कांग्रेसी सब एक मंच पर आ गए। इतना कि सुप्रीम कोर्ट को इस में दखल देना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन जम्मू इस बाबत जांच के लिए आई। इस सब में सब से ज़्यादा जहर दो लोगों ने फैलाया। एक तालिब हुसेन , जो वकील है और गूजरों का नेता भी। तालिब हुसेन ने लाखो रुपए की फंडिंग बटोर ली।  कुछ लोगों का कहना है कि दो करोड़ रुपए से ज़्यादा बटोर लिया है तालिब हुसेन ने। अब तो बाकायदा एक अकाउंट नंबर भी सार्वजनिक कर दिया गया है। जिस में लोगों से पैसा जमा करने की अपील की गई है।


शहला राशीद शोरा और दीपिका राजावत
दूसरी हैं एडवोकेट दीपिका राजावत।  जो अपने को पीड़िता का वकील बताते नहीं थकतीं।  जब कि वह सरकारी वकील नहीं हैं। जानने वाले जानते हैं कि ऐसे मामलों में पीड़ित का पक्ष सरकारी वकील ही देखते और लड़ते हैं। इस मामले में भी पीड़िता बच्ची का केस दो सरकारी वकील भूपेंद्र सिंह और हरेंद्र सिंह देख रहे हैं।  दीपिका राजावत नहीं। लेकिन अंगुली कटवा कर दीपिका भी इस में शहीद बन चुकी हैं। दुनिया भर की नौटंकी पेश करती हुई अपने जान का खतरा बता बता चुकी हैं। जे एन यू छात्र संघ की उपाध्यक्ष रहीं भारत तेरे टुकड़े होंगे , इंशा अल्ला , इंशा अल्ला , नारे लगाने वाली शहला राशीद शोरा की दोस्त और मशहूर वकील और कांग्रेसी इंदिरा जय सिंह के एन जी ओ से जुड़ी दीपिका राजावत ने जम्मू हाईकोर्ट में एक रिट ज़रूर दायर की थी कि क्राइम ब्रांच कोर्ट की देख-रेख में तफ्तीश करे। हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश कर भी दिया था। तफ्तीश कोर्ट की देख-रेख में ही हुई। चार्जशीट फाइल हो भी गई। लेकिन दीपका का झूठ पूरी उछल-कूद के साथ अभी कायम है कि उन्हें धमकी दी जा रही है। ज़िक्र ज़रूरी है कि जम्मू बार एसोसिएशन ने दीपिका को चार साल पहले ही निष्कासित कर दिया था। लेकिन दीपिका के इस ड्रामे ने न्यूज चैनलों को मसाला दिया। न्यूज चैनलों ने इस घटना को राष्ट्रीय बना दिया । न सिर्फ राष्ट्रीय बना दिया बल्कि हिंदू , मुसलमान बना दिया। क़ानून है कि बलात्कार पीड़िता का नाम और फोटो प्रकाशित नहीं करना चाहिए , सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। लेकिन पीड़िता चूंकि मुस्लिम थी सो सेक्यूलरिज्म की हलवा-पूड़ी भी खानी-खिलानी थी। पीड़िता का नाम और फोटो दिखाने की जैसे होड़ सी लग गई। अंतत: हाईकोर्ट ने जब एक दर्जन मीडिया हाऊसों को नोटिस दे कर दस-दस लाख रुपए जुर्माना लगा दिया तो यह कुत्ता दौड़ अब जा कर बंद हुई है। मीडिया से लगायत फेसबुक के सेनापतियों तक ने पीड़िता का नाम बेचा। अब खैर पीड़िता मुस्लिम घोषित हो गई तो मुस्लिम संगठनों , मुस्लिम देशों से हवाला के मार्फत पैसे आने लगे। पैसे की जैसे बाढ़ आ गई। तालिब हुसेन नाम के वकील और गूजर नेता ने खूब पैसा बटोरा। इतना पैसा आ गया है कि पैसे की  बंदर बांट का झगड़ा शुरू हो गया है। जम्मू के अख़बारों में इस पैसे के झगड़े को ले कर ख़बरें भी छपने लगीं। कहते हैं इंडो अमरीकन इस्लामिक एसोसिएशन ने सब से ज़्यादा पैसा भेजा है , हवाला के मार्फत। और भी मुस्लिम देशों से पैसा आया है । फिल्म इंडस्ट्री से भी पैसा आया । इस सारी घटना में यह भी हुआ कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों के घाव फिर से हरे हो गए। नतीजा यह हुआ कि डोंगरा पंडित जिन से कश्मीरी पंडितों की पहले पटती नहीं थी , अब एक हो गए  हैं।

उन मीडिया हाऊस के नाम जिन पर कोर्ट ने पीड़िता का नाम और फोटो
सार्वजनिक करने के जुर्म में दस-दस लाख का जुर्माना लगा दिया 
जम्मू और कठुआ की जनता क्राइम ब्रांच की जांच में हिंदू , मुसलमान और उस के आतंक से आजिज आ कर सी बी आई जांच की मांग पर अड़ी है। लोगों का कहना है कि क्राइम ब्रांच ने धांधली की है और कि इस टीम में शामिल लोग संदिग्ध लोग हैं। इन लोगों पर पहले भी कई सारे आरोप लगे पड़े हैं। जम्मू के लोगों को सब से ज़्यादा ऐतराज क्राईम ब्रांच के एसीपी नावेद पीरजादा को ले कर है। लेकिन नावेद पीरजादा की तारीफ करने वाले लोग भी हैं। ख़ास कर इस मामले को मुस्लिम रंग देने वाले लोग। तो भी  क्राइम ब्रांच की चार्जशीट में भी बहुत सारे छेद हैं। मेरठ के लड़के विशाल को जिस दिन रेप में संलग्न बताया है , वह उस दिन मेरठ में इम्तहान देने के प्रमाण दे रहा है। उसी दिन खतौली , मेरठ में ए टी एम से पैसे निकलने के प्रमाण दे रहा है।  यहां तक जिन लड़कों से क्राइम ब्रांच ने मार पीट कर उस लड़के के खिलाफ बयान लिया था , कोर्ट में वही लड़के अपने बयान से मुकर गए। इन लड़कों ने कोर्ट में सेक्शन 164 के तहत अपने बयान में कहा है कि पुलिस ने मार-पीट कर गलत बयान ले लिया। चार्जशीट में ऐसे ढेर सारे और छेद हैं। पहला छेद तो यह कि चार्जशीट के साथ पीड़िता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं संलग्न की। इस लिए कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में स्पर्म मिलने का ज़िक्र नहीं है। सामूहिक बलात्कार का ज़िक्र नहीं है। और भी कई सारी बातें हैं। नब्बे के दशक में मैं लखनऊ , स्वतंत्र भारत अख़बार में रिपोर्टर था। तब इस के संपादक एक हिंदूवादी राजनाथ सिंह थे। संघ के स्वयंसेवक थे। वह जब कोई हिंदुत्ववादी खबर छापते तो एक मुस्लिम रिपोर्टर ताहिर अब्बास के नाम से छापते। ताकि लोग उस खबर को एथेंटिक मान लें। जैसे कि एक खबर उन्हों ने ताहिर अब्बास के नाम से छापी कि अयोध्या में कर सेवकों पर गोली चलवाने वाले पुलिस अफ़सर की एक आंख बह गई। वह पुलिस अफसर थे ए डी जी राम आसरे वर्मा। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के प्रिय। उन्हें आंख पर कैप लगा कर घूमते देखा गया। बाद में पता चला कि उस पुलिस अफ़सर की कोई आंख नहीं बही थी। मोतियाबिंद का आपरेशन हुआ था। तो क्राइम ब्रांच में महबूबा ने भी श्वेतांबरी नाम की एक डिप्टी एस पी रख दी ताकि उन की बात सही लगे। श्वेतांबरी से बयान भी इस बाबत खूब दिलवाए। खैर , तफ्तीश के दौरान क्राइम ब्रांच की दहशत से कठुआ क्षेत्र से बहुत सारे हिंदू लोग पलायन कर गए हैं। जिस मंदिर में बलात्कार की बात कही गई है , तहखाने की बात बताई गई है , उस में भी झूठ है। एक तो वह मंदिर नहीं है। देवी का थान है। दूसरे , उस में कोई तहखाना नहीं है। तीसरे , वह पूरा का पूरा खुला-खुला है। कोई छुप-छुपा नहीं सकता। घटना की तारीखों में मकर संक्रांति , लोहड़ी आदि त्यौहार होने के कारण वहां निरंतर भीड़ थी। लेकिन यह सब कर के महबूबा मुफ़्ती ने टेम्पिल , रिचुवल एंड रेप की इबारत फ़िलहाल लिख दी है। चार्जशीट में ऐसी और भी तमाम सारी बातें हैं जो कोर्ट देखेगी। मुझे इस पर कुछ नहीं कहना। फेसबुक सेनापति लोग , उन के सैनिक और साक्षर मीडिया तो बिना कुछ जाने-समझे , सब कुछ कह ही रहा है।


डाक्टर अरुण कुमार  जैन
तीन-चार दिन पहले जम्मू में अपने एक मित्र के मार्फ़त पीड़िता की पोस्टमार्टम  रिपोर्ट और चार्जशीट जब मुझे  मिली तो मैं ने उस पर अपने मित्र और लखनऊ के बलरामपुर अस्पताल से रिटायर्ड वरिष्ठ डाक्टर अरुण कुमार  जैन से राय मांगी। उन्हों ने रिपोर्ट देखते ही कहा कि बलात्कार तो हुआ है। लेकिन बाडी 5 - 6 दिन नहीं , 3 दिन पुरानी है। बिसरा रिपोर्ट में पीड़िता की सारे अंगों में दवा भी पाई गई है। जांघ पर घाव है , कान में घाव है। वजाइना लेपचर्ड है। वजाइना की दोनों लिप्स लेपचर्ड हैं। हाइमन नाट इंटैक्ट है। हां , स्पर्म का ज़िक्र नहीं है। अपने मित्र और लखनऊ हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील आई बी सिंह से भी इस बाबत राय मांगी। उन्हों ने चार्जशीट और पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख कर कहा कि यह रेप नहीं है। क्यों कि पोस्टमार्टम में स्पर्म मिलने की बात दर्ज नहीं है । फिर सामूहिक बलात्कार में प्राइवेट पार्ट ज़्यादा डिस्टर्ब होता है । जो नहीं है । सो प्राइवेट पार्ट डिस्टर्ब होने की वजह कुछ और भी हो सकती है , बलात्कार ही नहीं । डाक्टर साहब का कहना है कि कानूनी रुप से तो किसी को टच कर देना भी अब बलात्कार माना जाता है ।


सीनियर एडवोकेट आई बी सिंह 
आसिफ़ा की हत्या वैसे गला दबा कर की गई है । दम घुटने से उस की मौत हुई है । हत्या और उस के शव की बरामदगी की टाइमिंग पर भी सवाल है । आई बी सिंह का कहना है कि हत्या की कहानी तक तो ठीक है लेकिन बलात्कार की कहानी नहीं चलती इस मामले में। जो भी हो इस में एक आरोपी मेरठ के विशाल जंगोत्रा की भी एक दूसरी कहानी है । 11 जनवरी , 2018 को आसिफा की हत्या हुई है और 11 जनवरी , 2018 को वह मेरठ के खतौली के के के जैन पी जी कालेज में इम्तहान देते हुए बताया गया है । ऐसा प्रमाण पत्र प्रिंसिपल ने मय प्रमाण के जारी किया है । इसी दिन खतौली के एक ए टी एम से विशाल के पैसा निकालने की भी बात सामने आई है । वकील साहब का कहना है कि अगर यह एक बात कोर्ट में साबित हो गई तो विशाल को जमानत मिल जाएगी । फिर विशाल के बहाने सब को जमानत मिल जाएगी । पूरा केस फुस्स हो जाएगा।

स्पर्म कितना ज़रूरी होता है कोर्ट में बलात्कार साबित करने के लिए इस बात को क्या श्रीनगर के क्राइम ब्रांच के चैम्पियन नावेद पीरजादा नहीं जानते कि तमाम वह लोग जो पीड़िता के लिए जान लड़ाए पड़े हैं। स्पर्म कोर्ट के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण साक्ष्य होता है। यही स्पर्म इस्टैब्लिश करता है कि बलात्कारी कौन-कौन है। पीड़िता अब है नहीं , कोई गवाह है नहीं , सिर्फ कहानियां हैं। और कहानियों से कोर्ट अपराधियों को सज़ा नहीं देता मिस्टर नावेद पीरजादा एंड सेक्यूलर चैम्पियंस। अब कहानी की बात आई है तो बलात्कार में स्पर्म की ताक़त और साक्ष्य का एक किस्सा सुनिए। उत्तर प्रदेश सरकार में  ऊर्जा मंत्री रहे एक नेता का किस्सा है । उन दिनों कोई बड़ा काम करने के लिए मोटा पैसा लेते थे। साथ ही औरतबाजी का भी मजा लेते थे। बाद के दिनों में जब लखनऊ की औरतों से उन का पेट भर गया तो मुंबई से फ़िल्मी हीरोइनों को क्लाइंट से बुलवाने लगे। हीरोइनों को एडवांस पेमेंट और एयर टिकट भेज दिया जाता था। तय तारीख पर वह आ जाती थीं। होटल पहले से बुक रहता था। एक बार एक चर्चित हीरोइन को बुलवाया गया। ऊर्जा मंत्री की खिदमत में। वह आईं और ऊर्जा मंत्री की खिदमत में लगीं भी। लेकिन ऊर्जा मंत्री संभोग में सफल नहीं हो पाए। बावजूद तमाम कोशशों के। होटल के कमरे से निकलते हुए यह बात उन्हों ने शराब के नशे में अपने गुर्गों से जाने किस झोंक में बता भी दिया। अब गुर्गे थे दो। दोनों को लगा कि हीरोइन को पेमेंट जाया नहीं होना चाहिए। सो दोनों गुर्गों ने हीरोइन के बार-ंबार ऐतराज के बावजूद संबंध बना लिया। हीरोइन ने भी बर्दाश्त कर लिया। लेकिन जब यह गुर्गे कमरे से जाने लगे तो वह हीरोइन भी इन के पीछे-पीछे रिसेप्शन पर आ गई। चिल्लाते हुई बोली , पुलिस बुलाओ। इन दोनों लोगों ने मेरे साथ रेप किया है। अपने साथ वह एक चद्दर लिए हुए थी। दिखाते हुई बोली , इस चद्दर में इन दोनों का स्पर्म सुबूत है। अब गुर्गों की हालत ख़राब। बहुत मान-मनौव्वल की। हाथ पैर जोड़े। लेकिन हीरोइन नहीं पसीजी। पुलिस बुलाने की रट लगाए रही। गुर्गों ने घबरा कर ऊर्जा मंत्री को फोन कर सारा किस्सा बताया। मंत्री के भी हाथ-पांव फूल गए। डांटा गुर्गो को कि मेरी राजनीति को क्यों डुबोना चाहते हो। फिर कुछ ख़ास लोगों को होटल भेजा। बीच-बचाव हुआ। हीरोइन को पांच लाख एडवांस मिल चुका था। दस लाख और दिया गया। पांच लाख रुपया प्रति व्यक्ति के हिसाब से। तब यह लोग मुक्त हुए। मामला रफा-दफा हुआ। दिलचस्प यह कि वह चद्दर हीरोइन अपने साथ ले गई। पता नहीं बाद में उस का क्या किया। लेकिन मंत्री और उन के गुर्गों की औरतबाजी को वह हीरोइन बड़ा सबक दे गई।



अखबारी कतरन 

बहरहाल यहां भी पीड़िता के बहाने लाखो-करोड़ो का फंड बटोरने और फिर इस के बंटवारे का किस्सा अलग सामने है । राजनीतिक दलों और अन्य संगठनों की नीचता अपनी जगह है । सब का अपना-अपना गंदा खेल है , धंधा है । सोशल मीडिया का वार अलग है । सब का अपना-अपना एजेंडा है । अपना-अपना इगो है । संघी हैं , वामपंथी हैं। तरह के आडियो , वीडियो और वेबसाईट हैं। बस नहीं है तो पीड़िता के साथ इंसाफ नहीं है । कहानियां और भी बहुत हैं । कलंक और भी बहुत हैं । बस पीड़िता की सांस नहीं है , उस का सम्मान नहीं है । अभी और भी बातें हैं , और भी तथ्य हैं । फिर लिखूंगा ।

बलात्कार वैसे तो बहुत ही घृणित है अपने आप में । मनुष्यता पर गहरा दाग है । लेकिन राजनीति में बलात्कार जैसे फैशन है । आता-जाता रहता है । गोया बलात्कार कोई नदी हो , जिस में जब-तब बाढ़ आती रहती है । 1978-1979 से यह मैं देख रहा हूं । पहले अपराधियों के अलावा पुलिस बल के लोग यह बलात्कार करते थे और सरकारें फंस जाती थीं । विपक्ष को एक कारगर मुद्दा मिल जाता था । अब राजनीतिक लोग भी बलात्कार में फंसने लगे हैं । मुझे याद है जनता पार्टी सरकार में गोरखपुर के सिसवा में पी ए सी वालों ने सामूहिक बलात्कार किया था , तब तत्कालीन सरकार फंस गई थी । 1980 में चौधरी चरण सिंह के क्षेत्र बड़ौत में माया त्यागी कांड हुआ था । 18 जून , 1980 की घटना है । माया त्यागी के साथ आपसी झगड़े में न सिर्फ़ पुलिस ने सिर्फ़ बलात्कार किया , पूरे बड़ौत में उन्हें नंगा घुमाया भी । इस घटना से तब संसद हिल गई थी । 22 सितंबर , 1992 को जयपुर की भंवरी देवी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार ने राजस्थान की राजनीति में भूचाल ला दिया था । भंवरी देवी का गुनाह यह था कि उन्हों ने एक नाबालिग लड़की के विवाह का विरोध कर दिया था । वो भंवरी देवी का मुकदमा ही था जिस की वजह से सुप्रीम कोर्ट को दफ़्तरों में यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए दिशा-निर्देश जारी करना पड़ा था । भंवरी देवी को आज तक इंसाफ नहीं मिला है । तीन में से दो अभियुक्त मर चुके हैं । एक दिल्ली की दामिनी ने समूचे देश को हिला दिया था। पाक्सो बना था। लगा था कुछ ब्रेक लगेगा। लेकिन कहां लगा ? आशाराम बापू जैसे बलात्कारी , राम रहीम और रामपाल जैसे बलात्कारी भी जेल का मजा ले रहे हैं। लखनऊ में एक मुस्लिम अपनी ही तीन बेटियों को कैद कर लंबे समय तक बलात्कार करता रहा। अब जेल में है। बताइए कि 68 बरस की फिल्म अभिनेत्री ज़ीनत अमान के साथ 38 वर्ष का व्यक्ति दो साल तक बलात्कार करता रहा और ज़ीनत अमान को दो साल बाद पता तब चला जब उन के कुछ लाख रुपए उस व्यक्ति ने डकार लिए। ऐसे भी तमाम मामले हैं। शायद ही किसी शहर का कोई अख़बार हो जो रोज दो चार बलात्कार की खबर न छापता हो। हत्या ,लूट , चार सौ बीसी और बलात्कार की खबरें जैसे नियमित हो चली हैं। रोज-रोज की बात। अभी उत्तर प्रदेश में उन्नाव के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर द्वारा अपनी पट्टीदारी की ही एक औरत से बलात्कार का मामला उत्तर प्रदेश सरकार की थुक्का फ़ज़ीहत करवाने में सब से आगे रहा है। विधायक अब सी बी आई चंगुल का लुत्फ़ ले रहे हैं।

अब जम्मू की कठुआ की बच्ची हमारे सामने है। उस की त्रासदी सामने है। पैसा कमाने वाले पैसा कमा रहे हैं। वैचारिकी झाड़ने वाले वैचारिकी झोंक रहे हैं।  राजनीति अपनी चाल चल रही है। एजेंडा वाले एजेंडा चला रहे हैं। हिंदू , मुसलमान नफ़रत अलग है। महबूबा और भाजपा की बिसात अलग है। बस दांव पर है तो सिर्फ़ मनुष्यता। पीड़ित बच्ची के माता-पिता तो सब कुछ भूल कर जंगल चले गए थे घोड़ा चराने। लेकिन पैसे की ताक़त ने उन्हें भी अब जम्मू बुला लिया है।

पीड़िता के माता-पिता 





सब अयोध्या चले गये

कश्मीरी पंडितों के साथ देश और दुनिया ने अजीब रवैया अपनाया । वामपंथियों , कांग्रेसियों आदि ने उन्हें हिंदू मान कर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया । और हिंदुओं ने ? वह तो भाजपा के नेतृत्व में अयोध्या चले गए । कश्मीरी पंडितों के लिए नहीं । भगवान राम के लिए भी नहीं , अपने राम के राजनीतिक एजेंडे के लिए । गरज यह कि वामपंथी हों या भाजपायी या कांग्रेसी वगैरह , सब के अपने एजेंडे हैं । लेकिन कश्मीरी पंडित किसी के एजेंडे में नहीं हैं । ऐसे कि जैसे वह मनुष्य नहीं हैं । काश कि यह कश्मीरी पंडित भी दलित या मुस्लिम होते । तो इन की बात भी संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचती । देश भर में आंदोलन होता । लेकिन कहां ? यह लोग तो कश्मीरी पंडित हैं । सो इन के पास कोई नहीं गया । यह लोग मारे जाते रहे , लूटे जाते रहे , इन के घर जलाए जाते रहे , औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार होता रहा । लेकिन इन के पास कोई नहीं गया । कुछ लोग अयोध्या चले गए , कुछ लोग अयोध्या के ख़िलाफ़ चले गए । इन के आंसू पोछने , इन की मदद करने कोई नहीं गया । जाता भी कैसे , जाता तो वह हिंदू हो जाता । फ़िलहाल दिसंबर , 1992 में दिलीप कुमार कौल की लिखी इस कविता के ताप को महसूस कीजिए :

सब अयोध्या चले गये 

दिलीप कुमार कौल


भव्य प्राचीन मन्दिरों में
मूर्तियां टूट रही थीं
मूर्तिपूजक मारे जा रहे थे
पलायन कर रहे थे देवता
सुहागिन की मांग सी बह रही
वितस्ता के किनारों पर
विधवाओं की संख्या बढ़ रही थी
मगर वहां कोई नहीं गया
सब अयोध्या चले गये....

वितस्ता किनारे मेरा घर था
मेरी ज़मीन थी
जो स्वयं शिव पत्नी सती का अवतार थी
उस ज़मीन को शीतल करने के लिए
उन्होंने स्वयं ही
वितस्ता नदी का भी अवतार लिया था
जिसमें फेंके जा रहे थे अब
किनारों पर बने मन्दिरों की
मूर्तियों के टुकड़े
मूर्तियों को बचाने वहां कोई नहीं गया
सब अयोध्या चले गये....

जत्थे के जत्थे बढ़ते चल आए
देश के कोने कोने से
ध्वस्त हो गया विवादित ढांचा
राष्ट्रीय गर्व और राष्ट्रीय शर्म की बहसों के बीच
जो कुछ भी था
अयोध्या था
कहीं कोई स्थान नहीं था,
शहर, क़स्बा या राज्य नहीं था
हर ओर सिर्फ़ अयोध्या था
पर वहां जहां मेरी ज़मीन पर
सुहागिन की मांग सी बहती थी वितस्ता
कोई नहीं गया
सभी अयोध्या चले गये....

विश्वास नहीं होता तो पूछो
कवि अग्निशेखर से
उसके मोहल्ले सत्थू बरबरशाह में
मंदिर में आग लगाई गई
तो मैं उसके साथ था कि नहीं
पूछो?
पूछो कि हम लोग आग क्यों नहीं बुझा सके थे?
मंदिर के साथ ही मिट्टी के तेल का डीपो था
और हम असहाय हो गये थे।
जल कर राख हो गया मंदिर
पर वहां कोई नहीं गया
सब अयोध्या चले गये....

हां कवि अग्निशेखर मेरा गवाह है
कवि ही तो गवाह होता है
अंतरात्मा की नदियों का
मंदिरों का,
ध्वस्त होती मूर्तियों
देवताओं और उनके पलायन का।

ले जाता था मुझे कवि अग्निशेखर
वितस्ता के प्रवाह की विपरीत दिशा में
और जहां निर्मल से भी निर्मल जल होता था
पिलाता था हर बार
वितस्ता का अंजुलि भर जल
कि इतने से जल से ही
कट जाते हैं सभी जन्मों के पाप
और हर बार मेरे भीतर जमी नास्तिकता
धुल कर
आंखों के रास्ते बाहर आ जाती थी....

कवि अग्निशेखर!
काश तुमने पिलाया न होता मुझे
वितस्ता का जल
तो आज वह फूट कर निकलने को न होता
मेरे रोम रोम से
पारे की तरह
नहीं होती यह अमिट यातना

मैं आसानी से भूल जाता कि
सुहागिन की मांग सी बह रही
वितस्ता के किनारों पर जब
भव्य प्राचीन मन्दिरों में
मूर्तियां टूट रही थीं
मूर्तिपूजक मारे जा रहे थे
पलायन कर रहे थे देवता
तो वहां कोई नहीं गया
सब अयोध्या चले गये।

(दिसंबर , 1992)

Sunday, 15 April 2018

शहीद गिरिजा रैना का पोस्टमार्टम


बहुत ही शर्मिंदगी , दुःख और क्षोभ के साथ विस्थापित कश्मीरी पंडित दिलीप कुमार कौल की शहीद गिरिजा रैना का पोस्टमार्टम शीर्षक लंबी कविता यहां प्रस्तुत कर रहा हूं जिस में कश्मीरी पंडितों की स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उन्हें जीवित ही आरा मशीन से काट दिए जाने का लोमहर्षक विवरण मिलता है :

शहीद गिरिजा रैना का पोस्टमार्टम
-दिलीप कुमार कौल


सर के बीचों बीच
चलाई गई है आरी नीचे की ओर
आधा माथा कटता चला गया है
आधी नाक
गर्दन भी आधी क्षत विक्षत सी
बिखर सी गई हैं गर्दन की सात हड्डियां
फिर वक्ष के बीचों बीच काटती चली गई है नाभि तक आरी
दो भगोष्ठों को अलग अलग करती हुई
दो कटे हुए हिस्से एक जिस्म के
जैसे एक हिस्सा दूसरे को आईना दिखा रहा हो
.................
दोनों हिस्सों पर
एक एक कुम्हालाया सा वक्ष है
जैसे मुड़ी तुड़ी पॉलिथीन की थैली
नहीं जैसे एक नवजात पिल्ले का गला घोंटकर
डाल दिया गया हो
एक फटे पुराने लिहाफ़ से निकली
मुड़ी तुड़ी रुई के ढेर पर ...
................
एक हिस्से की एक आंख में भय है
और दूसरे हिस्से की एक आंख में पीड़ा....”
....................
देखो यह शव परीक्षण की भाषा नहीं है
यहां उपमाओं के लिए
कोई स्थान नहीं है...
पर क्या करें जब बीच से दो टुकड़ों में बंटा शव हो
तो इच्छा जागृत होती ही है समझने की कि
कैसा लगता होगा वह अस्तित्व
दो टुकड़ों में बंटने से पहले
कल्पनाएं खुद ही उमड़ पड़ती हैं
और भाषा बाह्य परीक्षण और आंतरिक परीक्षण की शब्दावलियों को लांघ कर
उपमाओं के कवित्व को छूने लगती है
....................
हां परन्तु यह कर्तव्य नहीं है
न ही वांछित है
क्षमा करें
तो फिर व्यावसायिक प्रतिबद्धता की ओर लौटता हूं
आता हूं बाह्य परीक्षण की ओर
परन्तु भाषा की तटस्थता का वादा नहीं कर सकता
यह औरत है,
क्षमा करें औरत थी,
बीस बाईस साल की
इस के कान ऊपर की ओर भी छिदे हुए हैं
सुहाग आभूषण अटहोर पहनने के लिए
(अटहोर ज़ोर से खींच लिया गया है क्यों कि कानों के ऊपरी छेद
कट कर लंबे हो गए हैं।)
कोष्ठक में मेरी यह व्यावसायिक टिप्पणी है परन्तु
कल तक सब के साथ इन कानों को भी फाड़ती थीं भुतहा चिल्लाहटें
“ हम क्या चाहते आज़ादी”
और दोनों कानों के श्रवण स्नायुओं से होते हुए
इन चिल्लाहटों का आतंक पहुंच गया होगा
मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्धों में
जो कि अब अलग अलग पड़े हैं
खोपड़ी के दो अलग अलग हिस्सों में
हर गोलार्द्ध में अपने अपने हिस्से का आतंक है
पीड़ा है
लेकिन मैं यक़ीन से कह सकता हूं कि
आरे पर काटे जाने से पहले ही वह मर चुकी थी
क्यों कि जिस्म के कटे हुए हिस्सों से
ख़ून ही नहीं बहा
हृदय का धड़कना तो पहले ही बंद हो चुका था
उसको महसूस ही नहीं हुई होगी वह असीम पीड़ा..
................
मूर्ख हो तुम
उसे तो दो टुकड़ों में काटा ही इस लिए गया था
कि पीढ़ियों तक बहती रहे यह पीड़ा
तुम बोलो न बोलो
कान सुनें न सुनें
आरी चलती रहे खोपड़ी को बीच में से काट कर पहुंचे भगोष्ठों तक
कि तुम्हें याद रहे
मातृत्व का राक्षसी मर्दन
............
हां कटी हुई अंतड़ियों के छेद को दबाया तो
हरे साग और भात के अंश मिले
घर से खाना खा कर निकली थी यह
कि शाम को वापस आएगी,
देखो अलग अलग पड़े दोनों हिस्सों के
अलग अलग भगोष्ठों को देखो
देखो जमे हुए काले पड़ रहे रक्त के साथ मिला हुआ
श्वेत द्रव्य
मध्य युगीन रेगिस्तानी वासनाओं का
विक्षिप्त, नृशंस वीर्य
चिल्लाता हुआ ऐ काफ़िरो ऐ ज़ालिमो
किसी को सज़ा नहीं मिलेगी
...............
बस तुम्हें यह आरी काटती रहेगी खोपड़ी के बीच से भगोष्ठों तक
इस पोस्टमार्टम के बाद
पुरुष होते हुए भी
तुम्हारे वक्ष उभर आएंगे
परिवर्तित हो जाएंगे तुम्हारे सभी अंग
आत्म परीक्षण हो जाएगा
यह शव परीक्षण
जो भी हो चलो
अभी इतना तो किया ही जा सकता है कि
बीच से कटे हुए इस जिस्म के दोनों हिस्सों को
एक दूसरे से जोड़ कर सिल दिया जाए
एकता और अखंडता के साथ
कम से कम अंत्येष्ठि तो होगी
अग्नि की भेंट चढ़ने तक ही सही
शव परीक्षक की सिलाई
कम से कम इस काम तो आएगी कि
राख होने तक भ्रम बना रहे कि
दोनों टुकड़े
एक दूसरे के अभिन्न अंग हैं।
0
जून , 1990

............... ............... ............... ...............  ...............  ............... ............... ............... ............... ...............

Name: Girija Tickoo (Age: Late 20s)

Profession: Teacher

Date Or Killing: 25.6.1990


Girija had left the Valley in the wake of mounting terrorism and spate of killings of minority community there. She was in Jammu when someone told her that she can collect her pay at Bandipora where she was working in school before fleeing the valley. Shs was assured that she will come to no harm as the conditions had started returning to normal. She left for Srinagar snd then for Bandipora in north Kashmir from there. She never returned. Her body sawn into two, was found on the road-side on 25th June, 1990. From examination of the body, it was found that she was first-raped and then cut into two pieres not by a mechanical saw, but by a carpenter's saw - yes by a carpenter saw. The agony is hard to imagine. A living human being sawn by a carpenter's saw by barbarians claiming to be the fighters for freedom.

Wednesday, 11 April 2018

अगर मैं कहूं कि अंबेडकर भी अपने किस्म के जिन्ना थे तो ?

रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी 

अगर मैं कहूं कि अंबेडकर भी अपने किस्म के जिन्ना थे तो ?

बस फर्क यही है कि जिन्ना देश तोड़ने में तभी सफल हो गए थे , अंबेडकर अब सफल होते दिख रहे हैं । जिन्ना के पाकिस्तान की ही तरह दलितिस्तान का मुद्दा अंबेडकर ने उठाया था । यह 1932 का समय था । अंगरेज ऐसा ही चाहते थे । अंबेडकर ब्रिटिशर्स के हाथो नाच रहे थे । अंबेडकर ने बाकायदा खुल्लमखुल्ला यह मांग रखी थी । यह हमेशा याद रखिए कि अंबेडकर ने स्वतंत्रता की लड़ाई में कभी कोई योगदान नहीं दिया । सर्वदा अंगरेजों के पिट्ठू बने रहे । अंबेडकर ने और भी सारे कुचक्र रचे । महात्मा गांधी उन दिनों पुणे के यरवदा जेल में बंद थे । गांधी को जब पता चला तो उन्हों ने जेल में ही इस दलितिस्तान के विरोध में उपवास शुरू कर दिया । लेकिन अंगरेजों के दम पर अंबेडकर अड़े रहे । गांधी की स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती गई । रवींद्रनाथ टैगोर उन से मिलने गए । गांधी की मरणासन्न स्थिति देख कर टैगोर रो पड़े । टैगोर ने अंबेडकर को समझाया ।

अंबेडकर कहां समझने वाले थे । भरपूर ब्लैकमेलिंग की । और पूना पैक्ट बनाया । 24 सितंबर , 1932 को इस पूना पैक्ट पर दस्तखत हुए । कालांतर में यही पूना पैक्ट संविधान में आरक्षण का आधार बना । गांधी ने तब तो देश को टूटने से बचा लिया था किसी तरह । लेकिन आरक्षण जैसे कैंसर के लिए राजनीतिक दोगलों की गोलबंदी और आरक्षण समर्थकों की ब्लैकमेलिंग देख कर अब साफ़ लगता है कि देश में गृह युद्ध बहुत दिनों तक टलने वाला नहीं है । आप क्या कोई भी कुछ कर ले , देश को टूटना ही है । दलितिस्तान बन चुका है , बस इस की घोषणा बाकी है । महात्मा गांधी भी आज की तारीख में आ जाएं तो इस टूटने को नहीं रोक सकते । कितनी भी पैचिंग कर लीजिए , आरक्षण को ले कर पक्ष और विपक्ष दोनों ही के बीच नफ़रत और जहर समाज में बहुत ज़्यादा घुल चुका है । वोट बैंक की राजनीति और आरक्षण समर्थकों की ब्लैकमेलिंग में देश डूब चुका है । यह बात किसी राजनीतिक पार्टी को क्यों नहीं दिख रही ।/ मेरा मानना है , कभी नहीं दिखेगी ।

ब्लैकमेलर अंबेडकर को कोई राजनीतिक पार्टी ब्लैकमेलर कहने की बजाय मसीहा कहते नहीं अघाती । व्यर्थ का महिमामंडन करती है सो अलग । और तो और अंबेडकर को संविधान निर्माता बता देती हैं । जब कि अंबेडकर संविधान निर्माता नहीं , सिर्फ़ ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमैन थे , वह भी पूना एक्ट की ब्लैकमेलिंग के दम पर । 299 सदस्यों की संविधान सभा के चेयरमैन राजेंद्र प्रसाद थे । संविधान सभा ने संविधान बनाया , अंबेडकर ने नहीं । सामूहिक काम था , संविधान निर्माण , व्यक्तिगत नहीं । यह तथ्य भी जान लीजिए । आप मानिए , न मानिए लेकिन जिन्ना और मुस्लिम लीग से ज़्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं अंबेडकर और अंबेडकरवादी । देश को दीमक की तरह खा लिया है । आंख खोल कर देखिए । वैसे भी यह देखने , समझने में अब बहुत देर हो चुकी है । इन की सदियों के अत्याचार की कहानी अब नासूर बन कर सवर्णों पर इन के अत्याचार की नई इबारत है । समय की दीवार पर लिखी अत्याचार की इस इबारत को ध्यान से पढ़ लीजिए । नब्बे-पनचानबे प्रतिशत नंबर पाया लड़का , पैतीस-चालीस प्रतिशत पाए हुए से सालो-साल पिटता रहेगा तो समाज का मंज़र क्या होगा । इस पर बहुत सोचने-विचारने की ज़रूरत नहीं है । आज के आरक्षण अत्याचार की नई खतौनी यही है , सदियों से अत्याचार की खतौनी पुरानी हो गई है ।

देश और समाज का इस से बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि हम इतनी नफ़रत , इतने जहर में सन कर , इतने सारे खाने में बंट गए हैं । अगर सदियों के अन्याय की मशाल जला कर लोग इसी तरह घृणा के बीज बोते रहे तो कुछ भी , कभी संभव नहीं है । यह एकपक्षीय विमर्श है । नफ़रत को और बढ़ाने वाला । जापान और वियतनाम विभाजित हो कर , वैमनस्य भुला कर फिर से एक हो सकते हैं , चीन की दीवार पिघल सकती है लेकिन भारत में लगी यह जुल्म की सदियों की आग आख़िर कब तक धधकाए रखेंगे इस के पैरोकार लोग । इस विमर्श को खंडित कर रौशनी का नया दिया जलाने का यत्न करना चाहिए । ऐसा नहीं किया गया तो इस एकपक्षीय विमर्श का नतीजा गृह युद्ध में देश को झोंक देगा । पीठिका तैयार हो गई दिखती है ।

यह हमारे संविधान की बड़ी विफलता है कि आज़ादी के इतने सालों बाद भी हमारी पहचान जातियों से इतर कुछ है ही नहीं । भारतीय हम सिर्फ़ पासपोर्ट में ही रह गए हैं । एक सभ्य समाज नहीं बना पाए । बाकी तो हम हिंदू हैं , मुसलमान हैं । दलित हैं , अगड़े हैं , पिछड़े हैं । ब्राह्मण , ठाकुर , यादव , जाटव , गूजर , जाट आदि-इत्यादि हैं । विभिन्न सरकारों , तमाम राजनीतिक पार्टियों ने हमें भारतीय बनने ही नहीं दिया । मीडिया और साहित्य भी हमें बांटने में कभी पीछे नहीं रहे । बाकी यही सब से आगे रहे हमें बांटने में । दलित एक्ट और डावरी एक्ट की अपरिहार्य अनिवार्यताएं अभी तक अपनी काली छाया में हमें घेरे हुए हैं । तिहरे तलाक़ , हलाला आदि कुप्रथाएं कुछ लोगों की अस्मिता का सबब बन कर उपस्थित हैं । आरक्षण का राक्षस जैसे लोगों को अपने स्वार्थ में भस्मासुर बनाने में सब से आगे है । एक आरक्षण के चलते समाज में जो गहरी खाई खुदी है सो अलग , प्रतिभाएं सूखती हैं तो सूख जाएं का कहर जो देश भुगत रहा है , सो अलग ।सोचिए कि आज़ादी के बाद भी हम ने कौन सा समाज बना लिया है । जातीय चेतना में घुले जहर का ऐसा कहर शायद ही कोई देश भुगतता होगा । कि नब्बे-पनचानबे प्रतिशत अंक पा कर भी कोई युवा नौकरी नहीं पाता और बेस्ट फेल्योर भी अफ़सर बन जाता है । ब्रेन ड्रेन भी सामने आता है । ऐसे-ऐसे होनहार हैं जो पांच साल का एम बी बी एस की पढ़ाई बीस-बीस साल में पूरी नहीं कर पाते । फिर भी किसी और काम पर नहीं जाते । पांच साल की पढ़ाई पचीस साल में कर के किस का और क्या इलाज करेंगे यह लोग समझना कठिन नहीं है । और जो एम डी भी करने को अरमान जाग जाए और यह दो साल की पढ़ाई भी दस साल करेंगे । सात साल की पढ़ाई पचीस साल में करने वाले इन डाक्टरों से कोई क्या इलाज करवाएगा और ये क्या करेंगे , कुछ कहने की ज़रुरत नहीं । यह उदाहरण सिर्फ़ एक क्षेत्र का है । बाकी क्षेत्रों का हाल भी इस से बहुत बेहतर नहीं है । कुछ कहिए तो देश को आग लगाने में भी हम सब से आगे मिलते हैं । यह कौन सा आदमी बना लिया है हम ने आज़ादी के इतने बरसों बाद भी । जातियों की विषबेल पर खड़ा आदमी ।

बाबू राजेंद्र प्रसाद 

9 महिलाओं सहित 299 सदस्यों वाली संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद थे । कुल 23 कमेटियां थीं । इन में एक ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष भीमराव रामजी आंबेडकर थे । सिर्फ़ ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन संविधान निर्माता का दर्जा कैसे पा गया , मैं आज तक नहीं समझ पाया । जगह-जगह संविधान हाथ में लिए मूर्तियां लग गईं । तो राजेंद्र प्रसाद सहित बाकी सैकड़ो सदस्य क्या घास छिल रहे थे । अगर कायस्थों में थोड़ी महत्वाकांक्षा जाग जाए और कि वह भी बाबू राजेंद्र प्रसाद का संविधान कहने लग जाएं तब क्या होगा ? आख़िर वह संविधान सभा के अध्यक्ष रहे थे । जब की आंबेडकर सिर्फ़ ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष । दिलचस्प यह कि संविधान सभा के पहले अध्यक्ष सच्चिदानंद सिनहा भी कायस्थ थे । फिर अच्छा-बुरा यह भारत का संविधान है , किसी आंबेडकर का संविधान नहीं । और वह लोग अंबेडकर का नाम सब से ज़्यादा लेते हैं जिन को उन के पूरे नाम में रामजी का जुड़ जाना ऐसे दुखता है गोया कलेजे में कांटा चुभ गया हो । भीमराव रामजी आंबेडकर लिखते ही कितनों के प्राण सूख गए । तब जब कि संविधान पर तमाम दस्तखत के साथ आंबेडकर के भी दस्तखत हैं । भीमराव रामजी आंबेडकर । महाराष्ट में परंपरा है कि मूल नाम के बाद पिता का नाम भी लिखा जाता है । रामजी आंबेडकर के पिता का नाम है । लेकिन यह कमीनी राजनीति है जो भारत के संविधान को आंबेडकर का संविधान कहने की निर्लज्ज मूर्खता की जाती है और सारी कुटिल राजनीतिक पार्टियां और ज़िम्मेदार लोग ख़ामोश रहते हैं । ऐसे ही आंबेडकर के नाम में रामजी नाम भाजपा सिर्फ़ दलितों का वोट जाल में फंसाने के लिए जोड़ती है और बाक़ी पार्टियां यह सही होते हुए भी ऐसे भड़क जाती हैं गोया लाल कपड़ा देख कर सांड़ ! बाकी आंबेडकर को बेचने वाले दुकानदारों की तो बात ही निराली है । गोया अंबेडकर की दुकान खोल कर वह आंबेडकर को बेचने के लिए ही पैदा हुए हैं । कि बड़ी-बड़ी कारपोरेट कंपनियों के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन पानी मांगें ।

अंबेडकर
उन को आरक्षण चाहिए , इन को वोट । दोनों न सिर्फ़ एक दूसरे को ठग रहे हैं बल्कि देश को भी ठग रहे हैं । देश को बरबादी के मुहाने पर ला कर खड़ा कर दिया है इस आरक्षण और वोट के ठगबंधन ने । इस बरबादी से बचने की अब कोई राह नहीं दिख रही । राजनीतिक ठगों ने समूचे देश को ठगी के देश में तब्दील कर दिया है । बचपन में पढ़ी एक कथा याद आती है । एक बाज़ार में दो व्यापारी पहुंचे अपना-अपना माल ले कर । एक के घड़े में चीनी थी , दूसरे के घड़े में देसी घी । दोनों ही थोक में बेचना चाहते थे , फुटकर में नहीं । सुबह से शाम हो गई । दोनों का माल नहीं बिका । बाज़ार बंद होने लगा । अंततः घी वाला व्यापारी , चीनी वाले व्यापारी के पास पहुंचा और बोला , मुझे चीनी की ज़रूरत है , चाहो तो अपनी चीनी दे कर मुझ से घी ले सकते हो । चीनी वाला बोला पर मेरे पास अतिरिक्त पैसा नहीं है देने के लिए । घी वाले व्यापारी ने कहा कि अतिरिक्त पैसे की बात ही नहीं है । लाभ-हानि की बात नहीं , आपस की बात है । हम दोनों व्यापारी हैं । सो कोई दिक्कत नहीं है । अब दोनों एक दूसरे से माल बदल कर अपने-अपने घर पहुंचे । घी वाले व्यापारी ने जब चीनी का घड़ा खोला तो ऊपर तो चीनी थी पर नीचे बालू मिला । इसी तरह जब चीनी वाले व्यापारी ने घी का घड़ा खोला तो ऊपर घी मिला लेकिन नीचे गोबर भरा पड़ा था । दरअसल यह दोनों ही व्यापारी नहीं ठग थे । संयोग से एक दूसरे से टकरा गए थे । नतीज़ा सामने था । बिलकुल यही स्थिति हमारे राजनीतिक दलों और आरक्षण की खीर खाने वालों का है । दोनों ही ठग एक दूसरे को ठगते हुए दुर्भाग्य से देश को भी ठग रहे हैं । और दुर्भाग्य से हम इन ठगों के देश में रहने को अभिशप्त हैं । हाथ-पांव और मुंह बध गए हैं इन ठगों के आगे ।

दलित हिंसा और सवर्ण उत्पीड़न के लिए यह सदियों से संचित आक्रोश की आड़ दलित हिंसक कब तक लेते रहेंगे , हिंसा को जस्टीफाई करने के लिए । सदियों से संचित आक्रोश का तर्क अब सिर्फ़ कुतर्क है , विशुद्ध कुतर्क । दोस्तों , इस झुनझुने को बजा कर लोगों को भरमाना और इस के नाम पर जहर फैलाना अब बंद भी कीजिए । नहीं अगर दूसरी तरफ भी सत्तर साल का संचित आक्रोश जब हिंसा पर आमादा हो जाएगा तो यह समाज और देश कहां जाएगा , कल्पना कर सकते हैं । गृह युद्ध की तरफ देश को कृपया मत धकेलिए ।

रजिया रूही एक बड़ी बात कहती हैं , यहाँ कहार कोरी को नीच समझता है.. कोरी चमार को नीच कहता है.. चमार पासी से छूत मनाता है... पासी अपनी बेटी भंगी के घर नहीं ब्याह सकता लेकिन फेसबुक पर ये सब दलित जातियां मिल कर जातिवाद के लिये ब्राह्मणों को गालियाँ देती हैं। सैय्यद पठान से ऊंचे हैं.. पठान, अंसारी मंसूरी मनिहारों को अपने से नीचा समझते हैं.. ये अंसारी मंसूरी मनिहार, चिकवों कसाईयों कसगरों ढफालियों के यहाँ रिश्ता नहीं जोड़ते.. ये सब सुन्नी मिल कर शियाओं का बहिष्कार करते हैं.. देवबंदी बरेलवी अहमदियों के झगड़े अलग से हैं।  लेकिन ये सब मुसलमान मिल कर जातिवाद के खिलाफ़ दलितों के साथ खड़े हैं। सामाजिक असमानता और जातिवाद से किसी कारगर लड़ाई के पहले अपना-अपना घर तो ठीक कर लो, पाखंडियों !

एक मित्र ने मुझ से कहा है कि , भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अम्बेडकर के योगदान पर चर्चा कीजिए l मैं ने उन से भी यह बात कही है , आप से भी कह रहा हूं , कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अम्बेडकर का कोई योगदान होता तो ज़रूर उस की भी चर्चा करता। आप की जानकारी में कोई योगदान हो तो ज़रूर चर्चा करें। ख़ुशी होगी , हम सब का ज्ञान बढ़ेगा।

भारत में अब जाति सिर्फ़ तीन जगह काम आती है । एक आरक्षण , दूसरे वोट , तीसरे दहेज सहित शादी-विवाह में । सब से ज़्यादा आरक्षण में । बाकी सब व्यर्थ का प्रलाप है । यह मनुवाद , फनुवाद , ब्राहमण-व्राह्मण आदि की लफ्फाजी , सदियों से सताए जाने की पीर , जातीय जहर आदि सिर्फ़ और सिर्फ़ आरक्षण की भीख का कटोरा पकड़ने का चार सौ बीसी भरा फार्मूला है । आरक्षण की खीर खाने का बहाना है । आरक्षण की बैसाखी पकड़ने की विधि है । कुछ और नहीं । सो लोगों की आंख में धूल झोंकते रहिए , आरक्षण का लुत्फ़ लेते रहिए । तीस नंबर पा कर , नब्बे नंबर पाने वाले को पीटते रहिए । देश को प्रतिभाहीन बनाते रहिए । सदियों-सदियों तक देश को ब्लैकमेल करते रहिए । जाति है तो जहान है ।

फ़िलहाल तो यह देश है , आरक्षण वालों का , इस देश का यारो क्या कहना !

#प्रतिभाहीनों की जय-जय !

Thursday, 5 April 2018

बेटी दिव्यांशी पांडेय को तीन साल के लिए आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी , केनबरा की स्कालरशिप


एक अच्छी ख़बर यह है कि मेरे प्रिय छोटे भाई ब्रह्मानंद पांडेय की बड़ी बेटी दिव्यांशी पांडेय को हंड्रेड परसेंट स्कालरशिप के साथ आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी , केनबरा से बी बी ए करने के लिए आफ़र दिया गया है । बाईस लाख रुपए सालाना की यह स्कालरशिप पूरे तीन साल के लिए है । मतलब कुल 66 लाख रुपए । इस स्कालरशिप के लिए दिव्यांशी ने सिटी मांटेसरी स्कूल , गोमती नगर , लखनऊ जहां वह पढ़ती है , के उत्कृष्ट प्रदर्शन के रिकमेंडेशन के साथ आइल्स का इम्तहान दिया था । गौरतलब है कि इस आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की रैंकिंग विश्व स्तर पर ग्यारहवें नंबर पर है । दिव्यांशी जिसे हम लोग घर में पाटू कह कर बुलाते हैं , उस के लिए भी और हमारे पूरे परिवार के लिए भी यह एक बड़ी उपलब्धि है । हमारा , हमारे परिवार , समाज और देश का मान बढ़ा दिया है । भगवान करे वह इसी तरह नित नई उपलब्धियां प्राप्त करती रहे । अभी उस के इंटर के रिजल्ट का इंतज़ार है जो संभवतः मई में आएगा । जून में संभवतः वह आस्ट्रेलिया चली जाएगी । हाई स्कूल में दिव्यांशी ने 88 प्रतिशत अंक पाए थे । मैं ने उसे बधाई देते हुए कहा कि इंटर में तो 98 परसेंट लाओगी ही । वह विह्वल होते हुए बोली , बिलकुल बड़े पापा ! हमारा पूरा परिवार दिव्यांशी की इस उपलब्धि पर हर्ष विभोर है । हमारे खानदान में अभी तक किसी ने ऐसी सफलता नहीं पाई थी। अभी मेरी बड़ी बेटी अनन्या केनबरा आस्ट्रेलिया में दो साल से रह रही है , अब एक और बेटी वहीँ रहने जा रही है । इस से बड़ी ख़ुशी की बात और क्या हो सकती है । यह भी संयोग ही है कि मेरे दामाद डाक्टर सवित प्रभु इसी आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी , केनबरा में दवाओं से होने वाले साईड इफेक्ट पर रिसर्च कार्य में संलग्न हैं । फ़िलहाल हमारे परिवार के लिए यह दोहरी ख़ुशी है । दिल बल्लियों उछल गया है । बहुत बधाई बेटी दिव्यांशी , इस शुभकामना के साथ कि इसी तरह तुम आगे भी परिवार , समाज और देश का नाम रोशन करो । ख़ूब आगे बढ़ो , बढ़ती ही रहो । आसमान की ऊंचाइयों को छुओ , यही आशीर्वाद है । इस लिए भी कि जब बेटियां आगे बढ़ती हैं तो पूरा समाज , देश और दुनिया आगे बढ़ती है ।