Saturday, 30 October 2021

रेन कोट पहन कर नहाने वाले मनमोहन सिंह , कांग्रेस के चाकर वामपंथी और पूर्व सी ए जी विनोद राय का माफ़ीनामा

दयानंद पांडेय 

फ़ेसबुक के कुछ कुंठित दरबारियों की दीवार पर पूर्व सी ए जी विनोद राय का एक माफीनामा बहुत घूम रहा है। इस में से ज़्यादातर कांग्रेस की पैरवी और खिदमत में लगे बीमार वामपंथी हैं। जो कांग्रेस की चाकरी में क्रांति के नाम पर प्रतिक्रांति का बिगुल बजाते फिरते हैं। इन कुंठित लोगों को यह नहीं मालूम कि अवमानना और मानहानि के मामलों में अदालत में बिना शर्त माफ़ी मांगने का ही चलन है। अलग बात है कि जस्टिस कर्णन तो अवमानना मामले में माफ़ी मांगने के बावजूद छ महीने के लिए जेल भेजे गए थे। अभी कुछ ही समय पहले इन वामपंथियों के वर्तमान पिता जी राहुल गांधी ने राफेल मसले पर सुप्रीम कोर्ट में बिना शर्त लिखित माफी मांगी थी। राहुल गांधी के एक नहीं अनेक लिखित माफीनामे विभिन्न अदालतों में मौजूद हैं। जो इन्हीं तीन-चार सालों में राहुल गांधी ने मांगे हैं।

अच्छा विनोद राय ने माफी मांगी है पूर्व शिव सैनिक और वर्तमान कांग्रेसी संजय निरुपम से। संजय निरुपम ने विनोद राय के खिलाफ मुकदमा किया था मानहानि का। विनोद राय ने किताब में लिखा है कि संजय निरुपम ने उन पर दबाव डाला था कि मनमोहन सिंह का नाम वह टू जी स्कैम मामले में नहीं लिखें। संजय निरुपम का पक्ष है कि उन्हों ने ऐसा कोई दबाव विनोद राय पर नहीं डाला है। इसी एक दबाव बिंदु पर विनोद राय ने मानहानि मुकदमे में माफी मांगी है। बस इतनी सी बात पर कांग्रेस की खिदमत में लगे बीमार वामपंथियों ने अपने बवासीर का बोरा खोल दिया है। 

अच्छा संजय निरुपम ने विनोद राय से अगर मनमोहन सिंह का नाम न लिखने का दबाव या तो मिल कर या फोन पर ही डाला होगा। लिख कर तो यह दबाव बनाया नहीं होगा। तब आडियो रिकार्डिंग वाले फ़ोन भी नहीं थे। तो इस दबाव का जब कोई सुबूत नहीं था , तो माफ़ी मांगना ही एक रास्ता था। अच्छा उत्तर प्रदेश के आई पी एस अफ़सर अमिताभ ठाकुर ने तो मुलायम सिंह यादव की धमकी वाले फोन की बातचीत रिकार्ड कर ली थी। एफ आई आर भी लिखवा दी। क्या उखड़ गया मुलायम सिंह का। मुलायम सिंह ने आज तक अपनी आवाज़ का सैंपल भी नहीं दिया जांच ख़ातिर। कभी किसी वामपंथी साथी ने सांस ली इस प्रसंग पर ? सब को लकवा मार गया। 

खैर विनोद राय की माफ़ी का एक मार्ग मिला तो एक चादर तान दी है इन हिप्पोक्रेटों ने कि न टू जी हुआ , न कोयला , न कोई और भ्रष्टाचार। मनमोहन सिंह बिलकुल हंस थे। सच यह है कि मनमोहन सिंह हंस के वेश में बगुला हैं। कोयला घोटाले में आई ए एस अफ़सर तक तिहाड़ में सजा काट रहे हैं। तो मनमोहन सिंह की ही कृपा से। टू जी में तो तब के संचार मंत्री ए राजा से लगायत करुणानिधि की बेटी कनु मोजी तक जेल काट चुके हैं। यह ठीक है कि यू पी ए सरकार की विदाई में इन घोटालों की बड़ी भूमिका थी। यू पी ए सरकार की विदाई के बाद वामपंथी लेखकों , पत्रकारों , विचारकों के आगे से मलाई भरी थाली खिसक गई। तब ही से इन की बवासीर की बीमारी जोर मारे हुई है। जब-तब ज़्यादा सिर उठा लेती है। 

लेकिन बवासीर के मारे इन बीमारों को यह भी जान लेना चाहिए कि यू पी ए सरकार की विदाई में सिर्फ़ भ्रष्टाचार ही नहीं , मुस्लिम तुष्टिकरण और इस्लामिक आतंक की अति की भी बड़ी भूमिका थी। कहीं ज़्यादा थी। गुजरात मॉडल आख़िर क्या है ? सिर्फ़ विकास ? हुंह ! ख़ैर , मनमोहन सिंह ने तब संसद में बतौर प्रधान मंत्री कहा था कि देश के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का ही है। जब कि प्रधान मंत्री होने के बाद बतौर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह की उपस्थिति में उन्हें इंगित करते हुए यू पी ए सरकार के भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए कहा था कि अलग बात है डाक्टर साहब रेन कोट पहन कर नहाते रहे। 

डाक्टर साहब मतलब मनमोहन सिंह। और मनमोहन सिंह ने आज तक इस रेन कोट पहन कर नहाने का प्रतिवाद नहीं किया है। एक वामपंथी साथी ने तो विनोद राय , अन्ना और रामदेव तीनों को यू पी ए सरकार की विदाई का कारण बताते हुए लिखा है कि यह तीनों ही सब से बड़े झूठे हैं। उन का वश चले तो इन तीनों को गोली मार दें। क्यों कि इन तीनों के कारण यू पी ए सरकार गई। और इन की मलाई की थाली इन के आगे से सरक गई। देश गर्त में चला गया। अद्भुत नैरेटिव है। 

एक आई ए एस अफ़सर हैं हरीशचंद्र गुप्ता। अलीगढ के रहने वाले। उत्तर प्रदेश कैडर के हैं। मेरे मित्र हैं। डेड आनेस्ट। मजाल क्या है कि किसी काम के लिए उन्हों ने किसी की एक कप चाय भी पी हो। एक पान भी खाया हो। पर इन दिनों तिहाड़ जेल में सजा काट रहे हैं। इन्हीं रेन कोट पहन कर नहाने वाले मनमोहन सिंह के कारण। हरीश जी उन दिनों कोयला मंत्रालय में सचिव थे। कोयला मंत्रालय में घोटालों की बाढ़ और विवाद के कारण तब के कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल से यह मंत्रालय ले कर मनमोहन सिंह ने अपने पास रख लिया। एक कोयला खदान के मामले में मनमोहन सिंह ने हरीश जी को टेलीफोन पर ही आदेश दे दिया। हरीश जी ने आदेश का अनुपालन कर दिया। 

क़ायदे से हरीश जी को बाद में ही सही फ़ाइल पर मनमोहन सिंह की दस्तखत करवा लेनी चाहिए थी। पर मनमोहन सिंह की सदाशयता और ईमानदार छवि के मद्देनज़र वह फ़ाइल पर दस्तखत करवाने में लापरवाही कर गए। और जब कोयला घोटाले की जांच हुई तो फ़ाइल पर हरीश जी के ही आदेश थे। हरीश जी फंस गए। लंबा मुक़दमा चला। बीच मुकदमे में हरीश जी ने अदालत से कहा , मुझे जो भी सज़ा देनी हो दे दीजिए। पर अब और मुक़दमा लड़ने की मेरी हिम्मत नहीं है। अदालत ने पूछा , दिक्कत क्या है ? इतनी जल्दी क्यों ? प्रक्रिया पूरी होने दीजिए। फ़ैसला होने दीजिए। हरीश जी ने कहा , कैसे लड़ूं मुक़दमा ? मेरे पास वकील को फीस देने भर का भी पैसा नहीं है। 

मनमोहन सिंह ने एक बार भी भूल कर हरीश जी की मदद नहीं की। जब कि हरीश जी मनमोहन सिंह के कुकर्मों की सज़ा भुगत रहे हैं। अब ऐसा भी नहीं था कि इस मामले में मनमोहन सिंह ने कोई पैसा खाया था। मनमोहन सिंह ने सिर्फ़ सोनिया गांधी का हुकुम बजाया था। कोयले में हाथ काला किया था सोनिया गांधी ने। सज़ा भुगत रहे हैं हरीश गुप्ता। करोड़ों का कोयला घोटाला था यह। हरीश जी अकेले पी गए सारा जहर। 

अब वह जेल में भी किसी से नहीं मिलते। एक ईमानदार अफ़सर भ्रष्टाचार की कालिख लगा कर जी रहा है , मरेगा भी इसी कालिख के साथ। पर ईमानदारी की मूर्ति बताए जाए जाने वाले मनमोहन सिंह की आत्मा कभी इस ईमानदार अफ़सर के लिए नहीं जागी। कभी कह नहीं पाए कि कोयला मंत्रालय तब मेरे पास था और कि यह मेरा ही मौखिक आदेश था। कह देते तो उन की गढ़ी हुई ईमानदार की मूर्ति खंडित हो जाती। रेन कोट उतर जाती। मुंह पर कोयला पुत जाता मनमोहन सिंह के। ऐसी कई कहानियां हैं यू पी ए सरकार के भ्रष्टाचार की। 

लेकिन चुनी हुई चुप्पियों और चुने हुए विरोध के तलबगार , बौद्धिक बवासीर के मारे वामपंथी लेखकों , पत्रकारों को यह सब नहीं मालूम। मालूम भी हो जाए तो भी सहन नहीं कर पाएंगे। ख़ामोश रह जाएंगे। क्यों कि रेन कोट इन की भी उतर जाएगी और मुंह पर कालिख इन के भी लग जाएगी। हजामत बन जाएगी इन की। फ़िलहाल यह ढपोरशंखी अभी विनोद राय की हजामत बनाने में व्यस्त हैं। रेन कोट पहन कर। वैसे एक पूर्व सी ए जी टी एन चतुर्वेदी भी हुए हैं। जिन्हों ने बोफ़ोर्स में कमीशन उजागर किया था। जिसे राजीव गांधी सरकार के तत्कालीन रक्षा मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ले उड़े। और यही बोफोर्स राजीव गांधी सरकार की पतन का कारण बना। गरज यह कि सी ए जी लोग कांग्रेस सरकारों की भ्रष्टाचार की जड़ों में मट्ठा डालने में पीछे नहीं रहते। रिकार्ड तो यही कहता है।

Friday, 29 October 2021

इसी लिए वह थापर थे और यह शाहरुख़ ख़ान

दयानंद पांडेय 

अदालत में एक अभिनेता और एक उद्योगपति के जुगाड़ का फ़र्क़ भी तो देखिए। काश कि जूही चावला के साथ ही हेलीकाप्टर का भी प्रबंध किया होता शाहरुख़ ख़ान ने। जो भी हो मुंबई हाईकोर्ट द्वारा आर्यन खान की ज़मानत के कागजात आज समय से आर्थर रोड जेल न पहुंच पाने में शाहरुख़ ख़ान की लीगल टीम की क़ाबिलियत तो सामने आ ही गई है , शाहरुख़ ख़ान द्वारा पैसा खर्च करने के तरीक़े पर भी हंसी आ रही है। पैसा दे कर ज़मानत दिलवाने की अभ्यस्त लीगल टीम अगर ज़मानतदार की कितनी फ़ोटो लगनी है , यह नहीं जानती थी तो इस में जूही चावला की कोई ग़लती नहीं थी। अपने जीवन में शायद पहली ही बार जूही चावला ने किसी की ज़मानत ली होगी। तो वह बिचारी क्या जानतीं भला कि कितनी फ़ोटो लगेगी। एक लगेगी कि दो लगेगी। ख़बरों में बताया गया है कि जूही चावला की एक ही फ़ोटो थी। दूसरी फ़ोटो मैनेज करने में देरी लगी। इस लिए ज़मानत की औपचारिकता में देरी हुई और कागज़ात समय से जेल नहीं पहुंच सके। फिर शाहरुख़ ख़ान ने जो बुद्धि जूही चावला को ज़मानतदार बना कर इस ज़मानत को इवेंट बनाने में खर्च की अगर यही बुद्धि कोर्ट के ज़मानत के कागज़ात जल्दी से जेल भिजवाने में खर्च की होती तो इवेंट भी तगड़ा होता , ख़बर भी चमक रही होती। 

क्यों कि जब सब कुछ इवेंट और दिखावे पर ही मुन:सर था तो यह ज़मानत के कागज़ात हेलीकाप्टर से भी जेल पहुंचाए जा सकते थे। एक क्या 50 हेलीकाप्टर हायर करने की आर्थिक क्षमता तो है ही शाहरुख़ ख़ान में। आख़िर ख़ुद को बादशाह कहलवाते हैं वह इस बिकाऊ मीडिया से। फिर शिव सेना की सेक्यूलर सरकार है। प्रशासन फ़ौरन हेलीकाप्टर लैंडिंग की अनुमति दे देता। ज़मानत के कागज़ात भी समय पर जेल पहुंच जाते और बेटा आर्यन उसी हेलीकाप्टर से मन्नत में लैंड कर जाता। ख़बर की ख़बर , इवेंट का इवेंट। सब कुछ चमाचम होता। लोग ड्रग , आर्यन और समीर वानखेड़े भूल कर हेलीकाप्टर में उड़ने लगते। इंटरनेशनल कवरेज मिलती। आखिर वकील मुकुल रोहतगी को मुंबई से दिल्ली चार्टर्ड प्लेन से ही शाहरुख़ ख़ान ने कल भिजवाया था। तो एक हेलीकाप्टर भी ले लेते। 

वैसे भी कुछ सेक्यूलर चैंपियन मान रहे हैं , अपनी बीमारी में लिख भी रहे हैं कि मोदी ने आर्यन ख़ान की ज़बरदस्त लांचिंग कर दी है। आर्यन ख़ान को मोदी ने मुफ़्त में ब्रांड बना दिया है। आदि-इत्यादि। तो इस हेलीकाप्टर सेवा से आर्यन ख़ान की लांचिंग के सोने में सुहागा मिल जाता। इलेक्ट्रानिक मीडिया चिल्ला-चिल्ला कर बताता भी कि यह देखिए , वह देखिए। हेलीकाप्टर अब उड़ा , यहां पहुंचा , वहां उतरा आदि के विवरण । यह ठीक है कि शाहरुख़ ख़ान के घर मन्नत में हेलीकाप्टर उतरने की मुश्किल है। मैं ने देखा है मन्नत , उस में हेलीकाप्टर नहीं उतर सकता। अलग बात है वहीं वाकिंग डिस्टेंस पर सलमान ख़ान भी रहते हैं। पर देखा कि वह शाहरुख़ ख़ान के घर अभी मिजाजपुरसी में अपनी शानदार कार में गए। पर मन्नत में फूटते पटाखे के बीच जब हेलीकाप्टर आस-पास कहीं उतरता तो मीडिया समेत सेक्यूलरजन विह्वल हो जाते। रास्ता रोक कर सामने की सड़क पर तो उतर ही सकता था। गेट पर अनन्या पांडे , जया बच्चन की नातिन समेत गौरी ख़ान , जूही चावला , मैनेजर ददलानी आदि आरती उतार रही होतीं। शाहरुख़ , सलमान , आमिर ख़ान समेत चंकी पांडे आदि ठुमके लगा रहे होते। जो भी अब यह सब एक कल्पना है। जाने क्यों शाहरुख़ ने देश को यह सब देखने से वंचित कर दिया। अफ़सोस !

पर ऐसा ही एक क़िस्सा देखिए और याद आ गया है। यह पुराना क़िस्सा यह भी बताता है कि एक अभिनेता की सेटिंग और एक उद्योगपति की सेटिंग में बुद्धि और समझ का क्या महत्व होता है। यह मामला तो हाईकोर्ट का था लेकिन वह मामला सुप्रीम कोर्ट का था। 

उन दिनों राजीव गांधी प्रधान मंत्री थे और विश्वनाथ प्रताप सिंह वित्त मंत्री। अमिताभ बच्चन के चलते राजीव गांधी और विश्वनाथ प्रताप सिंह के बीच मतभेद शुरु हो गए थे। बोफोर्स का क़िस्सा तब तक सीन में नहीं था। थापर ग्रुप के चेयरमैन ललित मोहन थापर राजीव गांधी के तब बहुत क़रीबी थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अचानक उन्हें फेरा के तहत गिरफ्तार करवा दिया। थापर की गिरफ्तारी सुबह-सुबह हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट के कई सारे जस्टिस लोगों से संपर्क किया थापर के कारिंदों और वकीलों ने। पूरी तिजोरी खोल कर मुंह मांगा पैसा देने की बात हुई। करोड़ो का ऑफर दिया गया। लेकिन कोई एक जस्टिस भी थापर को ज़मानत देने को तैयार नहीं हुआ। यह वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सख्ती का असर था। कोई जस्टिस विवाद में घिरना नहीं नहीं चाहता था। 

लेकिन दोपहर बाद पता चला कि एक जस्टिस महोदय उसी दिन रिटायर हो रहे हैं। उन से संपर्क किया गया तो उन्हों ने बताया कि मैं तो दिन बारह बजे ही रिटायर हो गया। फिर भी मुंह मांगी रकम पर अपनी इज्जत दांव पर लगाने के लिए वह तैयार हो गए। उन्हों ने बताया कि बैक टाइम में मैं ज़मानत पर दस्तखत कर देता हूं लेकिन बाक़ी मशीनरी को बैक टाइम में तैयार करना आप लोगों को ही देखना पड़ेगा। और जब तिजोरी खुली पड़ी थी तो बाबू से लगायत रजिस्ट्रार तक राजी हो गए। शाम होते-होते ज़मानत के कागजात तैयार हो गए। पुलिस भी पूरा सपोर्ट में थी। लेकिन चार बजे के बाद पुलिस थापर को ले कर तिहाड़ के लिए निकल पड़ी। तब के समय में मोबाईल वगैरह तो था नहीं। वायरलेस पर यह संदेश दिया नहीं जा सकता था। तो लोग दौड़े जमानत के कागजात ले कर। पुलिस की गाड़ी धीमे ही चल रही थी। ठीक तिहाड़ जेल के पहले पुलिस की गाड़ी रोक कर ज़मानत के कागजात दे कर ललित मोहन थापर को जेल जाने से रोक लिया गया। क्यों कि अगर तिहाड़ जेल में वह एक बार दाखिल हो जाते तो फिर कम से कम एक रात तो गुज़ारनी ही पड़ती। पुलिस ने भी फिर सब कुछ बैक टाइम में मैनेज किया। विश्वनाथ प्रताप सिंह को जब तक यह सब पता चला तब तक चिड़िया दाना चुग चुकी थी। वह हाथ मल कर रह गए। लेकिन इस का असर यह हुआ कि वह जल्दी ही वित्त मंत्री के बजाय रक्षा मंत्री बना दिए गए। राजीव गांधी की यह बड़ी राजनीतिक गलती थी। क्यों कि विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इसे दिल पर ले लिया था। कि तभी टी एन चतुर्वेदी की बोफोर्स वाली रिपोर्ट आ गई जिसे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने न सिर्फ लपक लिया बल्कि एक बड़ा मुद्दा बना दिया। राजीव गांधी के लिए यह बोफोर्स काल बन गया और उन का राजनीतिक अवसान हो गया। मर गए राजीव गांधी पर बोफ़ोर्स की आंच से अभी भी मुक्त नहीं हुए। 

आप लोगों को कुछ साल पहले के सलमान खान प्रसंग की याद ज़रूर होगी । हिट एंड रन केस में लोवर कोर्ट ने इधर सजा सुनाई , उधर फ़ौरन ज़मानत देने के लिए महाराष्ट्र हाई कोर्ट तैयार मिली । कुछ मिनटों में ही सजा और ज़मानत दोनों ही खेल हो गया। तो क्या फोकट में यह सब हो गया ? सिर्फ वकालत के दांव-पेंच से ?फिर किस ने क्या कर लिया इन अदालतों और जजों का ? भोजपुरी के मशहूर गायक और मेरे मित्र बालेश्वर एक गाना गाते थे , बेचे वाला चाही , इहां सब कुछ बिकाला। तो क्या वकील , क्या जज , क्या न्याय यहां हर कोई बिकाऊ है। बस इन्हें खरीदने वाला चाहिए।  पूछने को मन होता है आप सभी से कि , न्याय बिकता है , बोलो खरीदोगे !

Thursday, 14 October 2021

दो टिकट ले लेने से प्लेन या ट्रेन की स्पीड नहीं तेज़ हो जाती आर्यन ख़ान के बाप शाहरुख़ ख़ान !

दयानंद पांडेय 

कचहरी तो बेवा का तन देखती है / कहां से खुलेगा बटन देखती है। बात 1991 की है। लखनऊ के चीफ़ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में एक धनपशु के बेटे का मामला सामने आया। लड़का छुरेबाजी में गिरफ़्तार हुआ था। धनपशु ने लखनऊ के सब से मंहगे क्रिमिनल लॉयर को हायर किया। सस्ता लॉयर भी हायर करता तो भी ज़मानत मिल जाती। क्यों कि छुरेबाजी बहुत गंभीर अपराध नहीं है क़ानून की राय में। पहली ही पेशी में ज़मानत मिल जाती है। अगर इस बाबत मृत्यु न हुई हो। पर यह तो स्कूली लड़कों के बीच मामूली छुरेबाजी थी। फिर लड़के का पिता धनपशु था। बड़ा बिजनेसमैन होने के कारण बड़ा वकील तय किया। अब सी जे एम के पास चूंकि दस्तूर पहुंचा नहीं था और कि उस बड़े वकील से भी चीफ़ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के संबंध तब के दिनों छत्तीस वाले थे। पैसे वाले का मामला है , यह बात जज साहब भी जानते थे। ख़ैर , क़ानूनन ज़मानत के लिए मना भी नहीं कर सकते थे। सो जज साहब ने ठीक शाम चार बजे केस टेकअप किया और घड़ी देखते हुए बोले अब तो शाम के चार बज गए हैं सो फ़ाइल पर लिख दिया पुट-अप टुमारो ! 

अकड़े खड़े वकील साहब तुरंत ढीले पड़े और हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाए भी , प्लीज़ अभी देख लें। क्यों कि आगे दो दिन छुट्टी है। जज साहब बोले , बेल देने से मना तो कर नहीं रहा। और उठ कर खड़े हो गए। वकील साहब तैश में आ गए। लपक कर जज की  मेज पर चढ़ कर उन की कॉलर पकड़ ली। बोले , बेल तो देनी ही होगी आज ही और अभी। जाने मुवक्किल से मिले पैसे की गरमी थी या कुछ और। पर वकील साहब यह अपराध कर बैठे। जो भी हो जज साहब ने भी पलट कर वकील साहब को तड़ातड़ थप्पड़ रसीद किए। अर्दली और पेशकार को इशारा किया। दोनों ने वकील साहब को दबोच लिया। तब तक पुलिस भी जज साहब की रक्षा में आ गई। पुलिस ने भी वकील साहब को पकड़ लिया। जज साहब चैंबर में चले गए। तब मोबाइल का ज़माना नहीं था सो वीडियोग्राफी और फोटोशूट से वंचित रह गए यह सारे दृश्य। लेकिन लोगों की आंखों और बातों में आज भी यह दृश्य ताज़ा हैं। अब हुआ यह कि अगले दिन सेकेण्ड सैटरडे था। फिर संडे भी। मतलब धनपशु के बेटे को जैसे भी हो तीन दिन जेल में ही बिताना था। अलग बात है उस धनपशु के बेटे को तीन हफ्ते से अधिक जेल में बिताना पड़ गया। 

हुआ यह कि वकील साहब बड़े क्रिमिनल लॉयर ही नहीं बार के भी बड़े ख़ामख़ा थे। सो बार की मीटिंग में जज के इस रवैए के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव पारित कर वकील लोग हड़ताल पर चले गए। उधर जज साहब भी चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट थे। सो न्यायाधीश लोगों ने भी मीटिंग की और जज लोग भी हड़ताल पर चले गए। दोनों पक्ष की हड़ताल लंबी खिंच गई। कोई तीन महीने से ज़्यादा। लखनऊ के रोजाना के रुटीन अदालती कामकाज उन्नाव ट्रांसफर कर दिए गए। अब अपराधियों की पेशी लखनऊ के बजाय उन्नाव में होने लगी। पुलिस , अपराधी सभी परेशान। पूरा सिस्टम चरमरा गया। अंतत: तब के लखनऊ के संसद अटल बिहारी वाजपेयी ने वकीलों और जजों के बीच मध्यस्तता कर के यह हड़ताल खत्म करवाई। 

ऐसे और कई मामले हुए हैं। अदालती कारोबार में। बेलपालिका में तब्दील हुई न्यायपालिका के। इस लिए भी कि  अब यह पूरी तरह सिद्ध है कि न्याय भी लक्ष्मी की दासी है। 

आज भी जो मुंबई की अदालत में आर्यन ख़ान के साथ हुआ उसे न्यायिक टैक्टिस भी कह सकते हैं आप। न्यायिक बदमाशी भी। और यह और ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी होता रहा है जब-तब। इस होने के पीछे दो-तीन कारण अनुमानित हैं। अव्वल तो यह कि संबंधित जज साहब शत-प्रतिशत ईमानदार हैं। या फिर आर्यन ख़ान के दोनों वकील साहबान ने उन्हें उन का हिस्सा नहीं पहुंचाया। या फिर आर्यन ख़ान के वकील साहबान से जज साहब के रिश्ते बहुत ख़राब हैं। सो जज साहब ने इन वकीलों को सबक़ सिखा दिया है। बता दिया है कि ऑर्डर रिजर्व। 20 अक्टूबर को सुनाएंगे। मतलब धनपशु शाहरुख़ ख़ान के बिगड़ैल और नशेबाज़ साहबजादे आर्यन ख़ान पांच दिन और जेल की ख़ातिरदारी में गुज़ारेंगे। क्यों कि सभी आरोपी सलमान ख़ान की तरह भाग्यशाली और जुगाड़ू नहीं होते। कि इधर सेशन जज ने ज़मानत ख़ारिज की और उधर हाईकोर्ट पहले ही से ज़मानत देने के लिए तैयार बैठी हो। शाहरुख़ खान को अपने दोस्त सलमान ख़ान से उन के तजुर्बे के मद्देनज़र इस बाबत सलाह समय रहते ले लेनी चाहिए थी। एक नहीं दो-दो मंहगा वकील रखने , फर्जी शूटिंग के बहाने एन सी बी आफिस को कैमरे से वाच करने , करोड़ो रुपए पानी की तरह बहाने भर से बात नहीं बनती। प्रियंका गांधी वाड्रा का ब्वाय फ्रेंड बनने से भी नहीं बनती। एक नहीं , दो टिकट ले लेने से प्लेन या ट्रेन की स्पीड नहीं तेज़ हो जाती। यह समझने की चीज़ है। पान मसाला का विज्ञापन कर करोड़ो नौजवानों का जीवन बर्बाद करने से समझ नहीं विकसित होती। फिर ड्रग  आर्यन ख़ान लेता है , शाहरुख़ ख़ान नहीं। या कि शाहरुख़ ख़ान भी ड्रग लेता है ?

क्या पता ?

बहरहाल , अमूमन ऐसे मामलों में वकील साहब लोग जज से सेटिंग रखते हैं। और कई बार अपनी फीस से भी बहुत ज़्यादा जज साहब के पास समय रहते पहुंचा देते हैं। कैसे भी। चूंकि मैं जज और वकीलों के बीच बहुत ज़्यादा समय से हूं सो इस बात को बहुत बेहतर जानता हूं। पत्रकारिता और राजनीति की तरह अदालतों में भी नब्बे प्रतिशत मामले इसी दलाली के सिपुर्द हैं। इसी दलाली का परिणाम है कि मैं अब से नहीं बरसों बरस से न्यायपालिका को न्यायपालिका नहीं बेल पालिका लिखता और कहता रहा हूं। कोई 22 बरस पहले छपे अपने उपन्यास अपने-अपने युद्ध में न्यायपालिका को बेल पालिका में तब्दील कई संदर्भों के साथ लिखा था। मुझ पर कंटेम्पट आफ कोर्ट भी हुआ था तब। 

तो हमारी विभिन्न अदालतें आम आदमी को न्याय दें न दें , हत्यारों , बलात्कारियों और भ्रष्टाचारियों को बेल यानी ज़मानत देने का काम बड़ी फुर्ती से करती हैं। क्यों कि यहां पैसा जुड़ा रहता है। रात में अदालत का दरवाज़ा खोल कर , छुट्टी के दिन भी अदालत खोल कर ज़मानत देने में हमारी न्यायपालिकाएं चीते की फुर्ती से काम करती हैं। निचली अदालतों से लगायत सर्वोच्च अदालत तक यह खेल निर्बाध जारी है। ऐसे अनेक क़िस्से हैं मेरे पास। काश  ज़मानत देने में चीते सी फुर्ती दिखाने वाली यह अदालतें न्याय देने में भी यही फुर्ती दिखातीं। काश ! यहां तो आलम यह है कि अमूमन हर अपराधी छाती तान कर कहता है कि न्यायपालिका में मेरी अटूट आस्था है। और ग़रीब , निरपराध आदमी न्यायपालिका से भी वैसे ही घबराता है जैसे पुलिस से। जैसे अस्पताल से। जैसे सिस्टम से। जैसे सरकार से। तो न्यायपालिका का यह अजीबोग़रीब तिलिस्म है। अजब तिज़ारत है। 

रही बात आर्यन ख़ान के ज़मानत की तो बड़े-बड़े हत्यारों , बलात्कारियों , भ्रष्टाचारियों को चुटकी बजाते ही ज़मानत मिल जाती है। तो यह तो मामूली नशेड़ी है। रिया चक्रवर्ती , दीपिका वग़ैरह को मिल गई तो इस को क्यों नहीं मिलेगी भला। सोनिया , राहुल , रावर्ट वाड्रा , चिदंबरम जैसे तमाम लोग ज़मानत का छप्पन भोग जीम रहे हैं , आर्यन ख़ान भी जीमेगा। आर्यन ख़ान , अरे लखीमपुर का मंत्री पुत्र आशीष मिश्र भी आप देखेंगे जल्दी ही ज़मानत का छप्पन भोग खा कर डकार लेगा। आख़िर हमारी न्यायपालिका , न्यायपालिका नहीं बेलपालिका है। यक़ीन न हो तो हमारे मित्र कवि कैलाश गौतम की चार दशक से भी ज़्यादा पुरानी यह कविता पढ़िए , यक़ीन हो जाएगा। 


 कचहरी न जाना / कैलाश गौतम


भले डांट घर में तू बीबी की खाना

भले जैसे-तैसे गिरस्ती चलाना

भले जा के जंगल में धूनी रमाना

मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना

कचहरी न जाना

कचहरी न जाना


कचहरी हमारी तुम्हारी नहीं है

कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं है

अहलमद से भी कोरी यारी नहीं है

तिवारी था पहले तिवारी नहीं है


कचहरी की महिमा निराली है बेटे

कचहरी वकीलों की थाली है बेटे

पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे

यहाँ पैरवी अब दलाली है बेटे


कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे

यही ज़िन्दगी उनको देती है बेटे

खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं

सिपाही दरोगा चरण चूमते है


कचहरी में सच की बड़ी दुर्दशा है

भला आदमी किस तरह से फँसा है

यहाँ झूठ की ही कमाई है बेटे

यहाँ झूठ का रेट हाई है बेटे


कचहरी का मारा कचहरी में भागे

कचहरी में सोये कचहरी में जागे

मर जी रहा है गवाही में ऐसे

है तांबे का हंडा सुराही में जैसे


लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे

हथेली पर सरसों उगाते मिलेंगे

कचहरी तो बेवा का तन देखती है

कहाँ से खुलेगा बटन देखती है


कचहरी शरीफों की खातिर नहीं है

उसी की कसम लो जो हाज़िर नहीं है

है बासी मुँह घर से बुलाती कचहरी

बुलाकर के दिन भर रुलाती कचहरी


मुकदमें की फाइल दबाती कचहरी

हमेशा नया गुल खिलाती कचहरी

कचहरी का पानी जहर से भरा है

कचहरी के नल पर मुवक्किल मरा है


मुकदमा बहुत पैसा खाता है बेटे

मेरे जैसा कैसे निभाता है बेटे

दलालों नें घेरा सुझाया-बुझाया

वकीलों नें हाकिम से सटकर दिखाया


धनुष हो गया हूँ मैं टूटा नहीं हूँ

मैं मुट्ठी हूँ केवल अंगूंठा नहीं हूँ

नहीं कर सका मैं मुकदमें का सौदा

जहाँ था करौदा वहीं है करौदा


कचहरी का पानी कचहरी का दाना

तुम्हे लग न जाये तू बचना बचाना

भले और कोई मुसीबत बुलाना

कचहरी की नौबत कभी घर न लाना


कभी भूल कर भी न आँखें उठाना

न आँखें उठाना न गर्दन फँसाना

जहाँ पांडवों को नरक है कचहरी

वहीं कौरवों को सरग है कचहरी। ।

तो क्या तब भी यह माई नेम इज ख़ान का खिलौना बाज़ार में शेष रहेगा ?

दयानंद पांडेय 

तुम कितने अफजल मारोगे , हर घर से अफजल निकलेगा ! यह नारा तो याद ही होगा। इस बाबत ज्यूडिशियरी किलिंग का तंज और रंज भी याद ही होगा। अब वही रंग फिर जमा है और खेल फिर शुरु हो गया है। सेक्यूलरिज्म के कीड़े फिर रेशम बुनने लगे हैं। शाहरुख़ ख़ान पुत्र आर्यन ख़ान को ले कर। वही मुस्लिम विक्टिम कार्ड खेला जा रहा है। तो क्या माई नेम इज ख़ान वाली यातना ही है ? सचमुच ? वैसे इस हफ़्ते भर में किसिम-किसिम के बहाने बेटे को बचाने ख़ातिर शाहरुख़ ख़ान करोड़ो रुपए बहा चुके हैं। आर्यन को निर्दोष साबित कर छुड़ाने के लिए। और तो और नारकोटिक्स व्यूरो के आफिस के सामने फर्जी शूटिंग का स्वांग भर कर लगातार कैमरे आदि से वाच भी करते रहे हैं सब कुछ। 

जब कुछ नहीं चला तो कश्मीर से एक महबूबा हवा चली कि आर्यन ख़ान चूंकि ख़ान है इस लिए यह सब हो रहा है। गोया गोवा क्रूज़ पर वह ड्रग लेने नहीं , नमाज पढ़ने गया था। ग़ज़ब है। कश्मीर से चली यह हवा अब रफ़्तार पकड़ चुकी है। जाने क्या हमारे देश के मुसलामानों को यह बीमारी लग गई है। कि अफजल जैसों को आतंकी नहीं मुसलमान बता कर पेश किया जाता है। गोया वह मुसलमान थे इसी लिए आतंकी बता कर फांसी दी गई। ज्यूडिशियरी किलिंग की गई। तिस पर तुर्रा यह कि हर मुसलमान आतंकी नहीं होता और कि आतंक का कोई मज़हब नहीं होता। अस्सी चूहे खा कर हज पर जाने की कहावत और क़वायद ऐसे ही तो नहीं है। 

अज़हरुद्दीन जब इंडियन क्रिकेट टीम के कैप्टन बनाए गए तब वह मुसलमान नहीं थे। पर जब मैच फिक्सिंग में फंसे तो फ़ौरन वह मुसलमान बन गए। क्या कि वह अगर मुसलमान नहीं होते तो मैच फिक्सिंग में नहीं फंसते। यह कहते हुए वह यह भी भूल गए कि उन के साथ ही अजय जडेजा, मनोज प्रभाकर, निखिल चोपड़ा आदि भी उसी मैच फिक्सिंग में फंसे थे। पर मुसलमान होते हुए भी वह हिंदू संगीता बिजलानी से दूसरा विवाह रचा सकते हैं फिर उन्हें दुत्कार कर छोड़ सकते हैं। भारत की संसद में जा सकते हैं। यह बात वह भूल जाते हैं। 

यह ठीक वैसे ही है जैसे दस साल लगातार उपराष्ट्रपति रहने के बाद हामिद अंसारी को देश में डर लगने लगता है। क्यों कि वह मुसलमान हैं। जो लोग क़ुरआन की आयत नहीं पढ़ पाते उन का कत्ल हो जाता है। कश्मीर में जिन की आइडेंटिटी कार्ड पर मुसलमान नाम नहीं दर्ज है , उन शिक्षकों को किनारे कर गोली मार दी जाती है। दवाई बेचने वाले को , गोलगप्पे बेचने वाले ग़रीब को भी सरे आम गोली मार दी जाती है , मुस्लिम आतंकियों द्वारा। पर उन्हें इस देश में डर फिर भी नहीं लगता। लेकिन धन-धान्य से परिपूर्ण मुंबई में रह रहे नसीरुद्दीन शाह , आमिर खान की तब की हिंदू बीवी को और शाहरुख़ ख़ान जैसों को यह देश डराने लगता है। यह ग़ज़ब का मुस्लिम डर है। कि आप मारें भी और डरें भी। और इस डरने का नैरेटिव रच कर आग भी मूतें। 

तो क्या आर्यन ख़ान के साथ और भी जो लोग गिरफ़्तार हैं और अभी तक ज़मानत से महरुम हैं , उन में सारे मुसलमान ही हैं ? हिंदू नहीं हैं ? तो फिर यह ख़ान सरनेम का विक्टिम कार्ड कहां से आ गया है ? क्यों आ गया है ? निश्चित रुप से देश में अब आई पी सी में भी संशोधन का समय आ गया है। नहीं कभी धर्म के नाम पर कभी जाति के नाम पर विक्टिम कार्ड खेलना और नफ़रत के तीर चलाना देश के लिए भारी पड़ रहा है। इस पर तुरंत लगाम लगनी चाहिए। अपराध , अपराध होता है। हिंदू , मुसलमान नहीं होता है। 

अच्छा कल को अगर आर्यन ख़ान को ज़मानत मिल जाती है , जैसी कि उम्मीद भी है तो क्या तब भी यह माई नेम इज ख़ान का खिलौना बाज़ार में शेष रहेगा ? या फिर कोई नया खिलौना पेशे खिदमत होगा। और जो ज़मानत में थोड़ी देर हो ही गई तो क्या कोई आज़म ख़ान की तरह संयुक्त राष्ट्र संघ में भी गुहार लगा बैठेगा ? वैसे एन सी बी ने तो आर्यन ख़ान के इंटरनेशनल ड्रग कनेक्शन के आरोप भी जड़ दिए हैं। जाने यह आरोप कोर्ट में कितना टिकेगा।

Tuesday, 5 October 2021

लखीमपुर में लाशों के साझे चूल्हे पर रोटी सेंकते लोग और कुछ सवाल

दयानंद पांडेय 

चुनाव का चरखा जो न करवा दे कम है। सूत तो सूत , लोहा भी कतवा दे। जो भी हो , लखीमपुर में लाशों के साझे चूल्हे पर रोटी सेंकने में कांग्रेस बेशक़ अव्वल निकली है। सपा के अखिलेश यादव और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह भी कांग्रेस द्वारा जलाए गए लाश के इस साझे चूल्हे पर चुपके-चुपके रोटी सेंक रहे हैं। हैरत है कि वामपंथी रणबांकुरे लाशों के इस साझे चूल्हे पर अभी रोटी सेंकते नहीं दिखे। न ही ढपली बजाती , गीत गाती उन की नाटक मंडली की आमद है अभी तक। तो क्या उन का आटा खत्म हो गया है , लखीमपुर के लिए। या अभी आटा ही गूंथ रहे हैं। शिवपाल यादव नहीं दिखे तो कोई बात नहीं। बात समझ आती है कि मरने वालों में कोई यादव नहीं मिला होगा। और तो और असुदुद्दीन ओवैसी भी गोल हैं ज़मीन पर। हो सकता है , लाशों में कोई मुस्लिम न हो। पर दलितों की बहन मायावती भी इस लाशों के साझे चूल्हे से सिरे से अनुपस्थित हैं। एक बयान भी नहीं लुक हुआ है। तो क्या लखीमपुर की लाशों में कोई दलित भी नहीं है। या मायावती का आटा भी समाप्त हो गया। 

जो भी हो , किसान आंदोलन के लोग भले समझौते , एफ आई आर और मुआवजे से शांत दिख रहे हैं पर कांग्रेस बम-बम है। प्रियंका सीतापुर के पी ए सी गेस्ट हाऊस में झाड़ू लगा रही हैं। मोदी को संबोधित कर वीडियो दिखा रही हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री बघेल लखनऊ आ कर नाखून कटवा चुके हैं।  कल राहुल गांधी भी लखनऊ पहुंच कर नाखून कटवाएंगे। नाखून कटवा कर शहीदों में नाम दर्ज करवाएंगे। क्यों कि राहुल गांधी के इशारों पर अभी तक नाचने वाले राकेश टिकैत ने अचानक पाला बदल कर कल लखीमपुर में समझौता करवा कर अपनी निष्ठा बदल कर हाल-फ़िलहाल योगी सरकार की ज़बरदस्त मदद कर दी है। नहीं अगर कल यह समझौता नहीं करवाया होता टिकैत ने , हिंसा की आग पर मिट्टी न डलवाई होती तो लखनऊ में आज नरेंद्र मोदी के आज़ादी के अमृत महोत्सव की चमक चूर-चूर हो गई होती। समूचे उत्तर प्रदेश में आज आग ही आग दिखाई देती। जो भी हो सारी कसरत और क़वायद के बावजूद कसैला बोलने वाले राकेश टिकैत ने बता दिया है कि आग सिर्फ़ पानी से नहीं , मिट्टी डाल कर भी बुझाई जाती है। दिशाहीन आंदोलन की हवा ऐसे भी निकाली जाती है। 

अपने भ्रष्टाचार के लिए अरविंद केजरीवाल की तरह थप्पड़ खाने वाले शरद पवार लखीमपुर को जलियावाला बाग़ बता चुके हैं। चूहे की तरह छेद देखते ही घुस जाने वाले शिव सैनिक और सामना के कार्यकारी संपादक संजय राऊत भी लखीमपुर में लाख लगाने की बयान बहादुरी कर चुके हैं। पश्चिम बंगाल में हिंसा की नित नई नदी बहाने वाली वहां की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी और झारखंड के मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन भी बयान बहादुरी में नाम दर्ज करवा चुके हैं। 

लाशें तो जल कर ख़ाक हो गई हैं पर लखीमपुर अभी भी लाल है। राजनीति की संभावनाएं मुंह बाए खड़ी हैं। सवाल यह फिर भी शेष है कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र की सत्ता की नाव लखीमपुर की लाशों के इस साझे चूल्हे में जल जाएगी या बच जाएगी। और कि इस बाबत एफ आई आर में नामजद उन के बेटे से पुलिस पूछताछ कर भी पाएगी ? पूछताछ करेगी भी तो कब ? फिर दंगल के मुख्य अतिथि उप मुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य लाशों के साझे चूल्हे से कब तक अनुपस्थित माने जाएंगे। आख़िर यह सारा दंगल उन के दंगल में पहुंचने की ही राह में ही तो संभव हुआ। मुख्य मीडिया ने भी जाने क्यों केशव प्रसाद मौर्या को बख्श रखा है। न कोई बयान है , न कोई बाईट , न कोई सवाल। प्रयाग में भी अभी यही हुआ था। महंत की हत्या या आत्महत्या की पूर्व संध्या पर भी वह महंत गिरी के साथ थे। ऐसा क्यों है कि केशव मौर्य जहां भी कहीं पहुंच रहे हैं , अनहोनी घट जा रही है। प्रयाग हो या लखीमपुर।