फ़ोटो : रघु राय |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
वह बाज़ार के ख़िलाफ़ लिखते हैं , बोलते हैं ताकि बाज़ार में बने रहें
जींस पहन कर फ़ेसबुक पर वह लाल सलाम बोलते हैं ताकि तने रहें
फ़सिज्म का विरोध करते-करते कब ख़ुद फासिस्ट बन गए उन्हें पता नहीं
वह तो गिरोह चलाते हैं ताकि सभा सेमिनारों में ताक़तवर सरगना बने रहें
लेखकों में अफसर हैं अफसरों में लेखक बिल्डर भी उन के प्रकाशक भी
आलोचक उन की कोर्निश बजाते रहते ताकि साहित्य में वह सजे-धजे रहें
वह संपादक हैं साहित्यिक पत्रिका के भ्रष्ट नेताओं अफसरों से यारी है
विज्ञापन के बाजीगर हैं पर शीर्षासन जारी है कि कहानीकार वह बने रहें
कारपोरेट के ख़िलाफ़ वह बिगुल बजाते बच्चे मल्टी नेशनल में नौकरी बजाते
बड़े ठाट बाट से वह ब्रेड खिलाते भूखों को ताकि मजलूमों में शान से खड़े रहें
ब्रांडेड कपड़े ब्रांडेड जूते ब्रांडेड ह्विस्की ब्रांडेड जुमलों में ख़ूब नारे लगवाते
वह ब्रेख्त और नेरुदा को झूम कर गाते हैं ताकि बड़का क्रांतिकारी बने रहें
जो उन से मतभेद जता दे उस को आंख मूद संघी बतलाते और गरियाते
सेक्यूलरिज्म के कुत्ते दौड़ाते ताकि सल्तनत के बेताज बादशाह वह बने रहें
रेलवे स्टेशन भूल गए हैं शहर की गलियां उन्हें चिढ़ातीं कुत्ते दौड़ाते हैं
एयरपोर्ट से आते-जाते कूल-किनारा भूल गए ताकि वह एलिट बने रहें
मालपुआ खा कर जहर बोते हैं ब्राह्मणों को गरियाने में सर्वदा से चैंपियन
सारी कसरत है अपना जातीय मठ बचाने की ताकि मठाधीश वह बने रहें
उन की दुकान ही है जातियों में आग लगा कर दलित पिछड़ा बताने की
देश रहे चाहे जाए भाड़ में उन का मकसद साफ है सरकार में बस बने रहें
पैसा लेते हैं जो अफसर तूती उन की ही बोले ईमानदार पागल कहलाते
कमाई में सब का अपना-अपना हिस्सा है बस नेता जी सी बी आई से बचे रहें
पैसा लेते हैं जो अफसर तूती उन की ही बोले ईमानदार पागल कहलाते
कमाई में सब का अपना-अपना हिस्सा है बस नेता जी सी बी आई से बचे रहें
[ 18 जनवरी , 2016 ]
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