दयानंद पांडेय
एक हैं मणिका मोहिनी। राजेंद्र यादव पर पोस्ट के विमर्श में अब यह भी कूद गई हैं। मतिमंद विमल कुमार के मल में सन कर मेरे खिलाफ तोप तान दिया है। गुड है ! कभी मोहती रही होंगी लोगों को पर अब मोह नहीं पातीं। सो अन्य मोहिनियों की चर्चा पर भी नाक-मुंह सिकोड़ती रहती हैं। मणिका ने क्या लिखा है , क्या नहीं मैं नहीं जानता। इन का लिखा कभी कुछ पढ़ने का अवसर नहीं मिला। वैसे भी यह अपनी पोस्टों में अपने लेखन के बारे में नहीं , अपनी दुकान के बारे में बताती रहती हैं। एक बार मैं ने हिमांशु जोशी की तारीफ़ में एक पोस्ट लिखी तो इन का फ़ोन आ गया। इधर-उधर की बात कर कहने लगीं कि हिमांशु जोशी ठीक आदमी नहीं हैं। फिर तफ़सील में आते हुए बताने लगीं कि वह हमारे घर आते रहते थे। मेरे साथ नाजायज हरकत करते रहते थे। जब-तब मुझे पकड़ लेते थे। जब यह बात कई बार बताई मणिका मोहिनी ने तो उन से पूछ लिया , आप उन्हें अपने घर बुलाती ही क्यों थीं ? उन की नाजायज हरकत बर्दाश्त भी क्यों करती थीं। तभी खुल कर विरोध क्यों नहीं किया ? सुन कर वह चुप हो गईं। फिर उन की बातों में पता चला कि साप्ताहिक हिंदुस्तान में छपने की ललक और मोह ने चुप कर रखा था।
वह बहुत चाहती थीं कि बिना उन का नाम लिए हिमांशु जोशी की लंपटई पर मैं कुछ लिखूं। मैं ने इंकार कर दिया। बता दिया कि हिमांशु जोशी मेरे प्रिय कथाकार हैं और निजी तौर पर वह मुझे बहुत स्नेह करते हैं। मैं उन का बहुत आदर करता हूं। बात खत्म लेकिन नहीं हुई। वह घुमा-फिरा कर हिमांशु जोशी के बाबत बात करती रहती थीं। एक बार नीलाभ और भूमिका के तात्कालिक विवाद पर मैं ने एक पोस्ट लिखी तो फिर उन के फ़ोन आने लगे। रस लेने लगीं। नीलाभ को ले कर भी वह असहज थीं। चाहती थीं कि नीलाभ पर और लिखूं। मैं ने उन्हें बताया कि नीलाभ मेरे आत्मीय मित्र हैं। उन का चरित्र हनन मेरा मकसद नहीं। उन्हें आगाह करना था। लिख कर कर दिया। अब और नहीं। उसी बीच भूमिका द्विवेदी ने भी कई बार कहा कि आप ने सिर्फ़ अपने मित्र नीलाभ की तरफ से लिखा। मेरी तरफ से भी लिखिए। भूमिका द्विवेदी से भी मैं ने हाथ जोड़ लिया कि अब बस ! आप खुद लिखिए। भूमिका मान गईं। सुखद यह कि नीलाभ और भूमिका फिर एक हो गए।
लेकिन यह मणिका मोहिनी नीलाभ के निधन पर भी चटखारा लेना नहीं भूलीं। लेकिन मैं ने खामोशी से किनारा कर लिया। एक समय गगन गिल को ले कर भी वह रस लेने लगीं। मैं ने तब भी संयम से काम लिया। मोहन राकेश और अनीता औलक को ले कर भी वह मुखर रहीं। ऐसी और भी बहुत सी बातें हैं। इस बीच कब वह अनफ्रेंड कर चंपत हो गईं। पता नहीं। खैर आज उन्हों ने राजेंद्र यादव प्रसंग पर अपनी मोहिनी मुस्कान बिखेरी है। इतना ही नहीं , वह निजी हमले पर उतर गई हैं। मेरी बेटी के विवाह तक पर आ गई हैं। मणिका मोहिनी , आप को जानना चाहिए कि मेरी बेटी का विवाह केरल में एक सुयोग्य डाक्टर से हुआ है और अरेंज्ड मैरिज है। मेट्रीमोनियल साइट के मार्फ़त। प्रेम विवाह नहीं। दामाद एम्स , दिल्ली के गोल्ड मेडलिस्ट हैं।
प्रेम विवाह में कोई बुराई नहीं है। प्रेम विवाह का समर्थक हूं मैं। जिस एक और लड़की के प्रेम विवाह की चर्चा करते हुए आप ने लिखा है कि गैर जाति में विवाह करने पर अपमानजनक पोस्ट लिखता हूं। तो यह लिखने के पहले अगर दर्पण में आप ने अपनी छवि नहीं देखी थी तो अब से देख लीजिए। वह लड़की थी राजेश कुमार मिश्रा उर्फ "पप्पू भरतौल", विधायक बिथरी चैनपुर , बरेली की बेटी साक्षी मिश्रा। यह जुलाई , 2019 की घटना थी। इस प्रसंग पर लिखा था मैं ने। खुल कर लिखा था। लिखा था कि साक्षी ने जिस दलित युवक से विवाह किया था , वह युवक साक्षी का मुंहबोला भाई बन कर उस के घर में रहता था। जिसे साक्षी का पिता पढ़ा रहा था। क्यों कि वह उस के एक कर्मचारी का बेटा था। साक्षी और उस युवक ने भाई-बहन के संबंधों पर कालिख पोती थी। विश्वासघात किया था। मुहल्ले में क्षत्रिय बन कर रह रहा था। इस विश्वासघात पर लिखा था।
दूसरे , बीच कोरोना में मैं ने अपने गृह जनपद गोरखपुर की एक अबोध बेटी के लीवर ट्रांसप्लांट के खर्च के लिए फेसबुक पर अपील की थी। सौभाग्य है कि तमाम परिचित और अपरिचित मित्रों ने उस कोरोना काल में दिल खोल कर पलक झपकते ही लाखो रुपए मदद में उस बेटी के पिता के अकाउंट में भेज दिया। बिना किसी सिफ़ारिश के उत्तर प्रदेश सरकार ने भी दिल्ली के अस्पताल में आपरेशन के लिए दस लाख रुपए जमा कर दिया। इस मदद के लिए हर किसी के प्रति कृतज्ञ हूं। और हां , वह बेटी कहीं से भी मेरे परिवार या रिश्तेदारी में से नहीं है। न पूर्व परिचित। अब वह परिवार ज़रुर हमारे संपर्क में है। लेकिन आप अपनी नीचता में किसी की मदद को भी भीख की तरह देख रही हैं , तो यह आप की अपनी कुत्सित मानसिकता है। बीमार व्यक्तित्व है। इसी लिए इस सार्वजनिक और मानवीय मदद को मोदी भक्ति से जोड़ने की जुगाली करती हैं। किसी भैंस की तरह पगुराती हुई।
आप भूल गई हैं कि उम्र के इस मोड़ पर भी एक समय आप मुझे संदेश भेज कर कहती थीं कि , साहित्य जगत की कोई और चटपटी कथा सुनाइए। और यही आप हैं कि आज सती सावित्री बन कर राजेंद्र यादव के सच पर , वह सच जिसे वह खुद ही कई जगह लिख गए हैं पर आप विस्मित हो कर मेरे खिलाफ जहर उगल रही हैं। मुझ पर निजी हमले पर उतर आई हैं। मुझ पर निजी हमले कीजिए , शौक से कीजिए। स्वागत है। पर कुछ तो तथ्यात्मक भी लिखिए। जिसे आप बाद में चुनौती मिलने पर सिद्ध भी कर सकें। अपनी बुढ़भस में आप भूल गई हैं कि कुछ तथ्यात्मक और तार्किक सूचनाएं आप की भी इस सार्वजनिक जीवन में उपस्थित हैं। कहते ही हैं कि बात निकलेगी तो फिर दूर तलाक जाएगी। फिर वह एक शेर है न :
मैं वो आशिक नहीं जो बैठ कर चुपके से ग़म खाए
यहां तो जो सताए या आली बर्बाद हो जाए।
ध्यान रखिएगा कि औरत होने के नाम पर विक्टिम कार्ड खेलने की जुर्रत मत कीजिएगा। दुकानदार हैं या लेखक जो भी हैं इसी बिना पर बराबरी से विमर्श कीजिए। अभी तो बिस्मिल्ला है। हरियाली और रास्ता फिल्म के लिए हसरत जयपुरी ने लिखा ही है : इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम सारी रात जागे / अल्लाह जाने क्या होगा आगे ! अस्सी चूहे खा कर बिल्ली हज को चले वाली कहावत को चरितार्थ करने पर अब आप ही गई हैं तो आइए , आप को हज यात्रा करवा ही देता हूं। यहां तो पारदर्शी जीवन जीता हूं। कुछ भी छुपाने के लिए नहीं है। न सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन में कभी कुछ गलत किया है। न कोई समझौता किया है। जो किया है , अपने मन का किया है। मन का ही करता रहता हूं। इसी लिए सीना तान कर लिखता हूं। कबीर कह ही गए हैं : कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर, ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर। बहरहाल , अभी 2014 - 2016 के अपने कुछ संदेशों का जायजा लीजिए और दर्पण देखिए और मुझे भी दिखाइए। फिर आप चाहेंगी तो आप को हज यात्रा के अगले पड़ावों पर भी ले चलूंगा। साहित्य जगत की कोई और चटपटी कथा सुनाइए , के अंदाज़ में कथाएं सुनी-सुनाई जाएंगी। मूंगफली खाते-खिलाते हुए।
ठीक ? क्यों कि पिक्चर तो अभी बाकी है। यह तो ट्रेलर है , सती सावित्री जी !
Happy Birthday.
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31/01/2014,
19:17
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जी, बहुत शुक्रिया
!
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27/01/2015,
20:25
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यह किस लेखक का
किस्सा आज बयां किया है ?
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नाम बताना पसंद
करेंगी ?
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27/01/2015,
20:49
Manika
क्या बताना ठीक रहेगा? किसी और से भी पता चल सकता है।
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27/01/2015,
21:05
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मोहन राकेश या
निर्मल वर्मा ?
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या कोई और ?
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बता देने में
नुक्सान क्या है
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किसी और से
कैसे पूछूं?
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बात तो आप ही
ने उठाई है
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क्यों कि हिंदी
में इतनी रायल्टी बिरले लेखकों को नसीब है
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Manika
Chalie bata deti hoon lekin yah kahna thheek nahin ki baat maine uthhaai
hai. Kyonki maine bina naam ke uthhaai hai.
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Manika
Mohan Rakesh, jinki yah patni thi Anita Aulak yani Anita Rakesh.
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27/01/2015,
21:57
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जी
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चंद सतरें और
पढ़ी है मैं ने
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अब वह अनीता
औलक हैं शायद
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Manika
Ab pata nahin kya likhti hain, pahle Anita Aulak thi.
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जी
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चंद सतरें और
मैं उन्हों ने मोहन राकेश पर अपने प्रेम और जीवन का बढ़िया संस्मरण लिखा है
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Manika
Jee
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इस में कुछ
छपने लायक है भी नहीं , अब तो यह सब
कुछ सब के सामने है
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मन्नू भंडारी
का आप का बंटी मोहन राकेश का ही बेटा है
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Manika
Haan, main soch rahi thi ki sab samaajh hi jaenge. Par aapne Nirmal
Verma ka naam kaise liya? Unki patni doosara vivaah kahan kiya?
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हाहा
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अब क्या कहूँ ?
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Manika
Kah deejiye. Mere se bhi to kahalwaya?
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हाहा
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कई किस्से हैं
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रायल्टी के
झगड़े से लगायत यह और वह के
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Manika
Sunaaiye, time hai to.
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सब आप के सामने
ही है
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Manika
Mujhe nahin pata, lekin royalty to patni ko hi milni chahie.
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Manika
Mohan Rakesh ka kissa purana tha, islie mujhe pata tha. Mujhe ab ke
kisse nahin pata kyonki main kahin jati nahin, kisi se milti nahin.
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Manika
Oh
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Manika
Kya jinhone unki pustak chhapi? Shaayad Rajkamal?
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जी
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30/01/2015,
00:49
Manika
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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30/01/2015,
13:02
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बहुत शुक्रिया
!
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23/07/2016,
18:29
Manika
दयानंद जी, यूँ ही आपके msg सामने पड़ गए। साहित्य जगत की कोई और चटपटी कथा
सुनाइए।
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हा हा
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नमस्कार
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Manika
नमस्कार। नीलाभ आज स्वर्ग? सिधार गए। भूमिका
बेचारी विधवा हो गई।
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जी
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किडनी दोनों
ख़राब हो गयी थीं
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Manika
हाँ, कुछ दिन से बीमार चल रहे थे।
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जी
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Write to Manika Mohini
छन्न .... से पढ़ गया ।
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