दयानंद पांडेय
वर्ष 1985 में जब दिल्ली से लखनऊ आया था तो एक बैंक में यूनियन के एक नेता पर नज़र गई। थे तो वह क्लर्क ही लेकिन रहते ख़ूब ठाट -बाट से थे । बड़े-बड़े बैंक मैनेजर उन के आगे-पीछे घूमते थे । बैंक मैनेजर तो छोड़िए कई आई ए एस , आई पी एस , पी सी एस अफ़सर भी उन की मुट्ठी में रहते थे । उन की कोई बात टालते नहीं थे । टेढ़े से टेढ़े मामले भी वह चुटकी बजाते ही संभव बनवा देते थे । इंजीनियर , ठेकेदार , व्यवसायी भी उन की छांव खोजते थे । गज़ब जलवा था । फिर हम ने इन को अपने राडार पर लिया । बैंक में तो जल्दी यह जनाब मिलते नहीं थे । किसी अफ़सर , किसी ठेकेदार , किसी व्यवसायी के यहां वह मिलते थे । या फिर यह लोग इन के यहां । मोबाइल का ज़माना नहीं था तब लेकिन एक फ़ोन पर यह अपने ज़रूरी काम करवा लेते । वह लगातार मोबाइल रहते । कुछ ख़ास अड्डे इन के तय थे । अलग-अलग समय पर । दोपहर का ,कहीं शाम का कहीं । लंच और डिनर भी अकसर पांच सितारा होटलों में । या उन होटलों से लोग पैक करवा लाते ।
एक व्यवसायी ने तो उन्हें हज़रतगंज जैसी जगह में ऊपरी मंजिल का एक बड़ा सा फर्निश घर ही दे रखा था । नीचे आलीशान शोरुम , ऊपर आलीशान घर । बहुत सुरागरसी की पर जनाब की असल कुंजी नहीं मिल पा रही थी । ताकि ख़बर निकल सके । बहुत दिनों तक फॉलो करता रहा । फिर अंतत: राज का पता चल गया । होता क्या था कि रिश्वत के लेन-देन में उन दिनों रिश्क बहुत बढ़ गया था । लोग रंगे हाथ पकड़े जाने से भयभीत रहते । ठीक वैसे ही जैसे औरतें संभोग से सिर्फ़ इस लिए डरती फिरती हैं कि कहीं गर्भवती न हो जाएं । तो यह जनाब बैंक कर्मचारियों के नेता जी , निरोध कहिए , कापर टी कहिए , कोई गोली कहिए , का काम करते थे । होता यह था कि किसी नाम से किसी बैंक में एक खाता खुल जाता । करोड़ , लाख किसी भी रकम में । फिर संबंधित व्यक्ति को एक चेक बुक दे दी जाती । दस्तखत कर के । लिमिट बता दी जाती । अब अगला आदमी किस नाम से , किस अकाउंट में , किस धनराशि में , बियरर या अकाउंट पेयी जैसे , जिस तरह से चाहे , जब चाहे निकाल ले । न कोई रिश्क , न कोई झंझट । किस ने दिया , किस को दिया , किसी को पता नहीं । और कार्य सुगमता से संपन्न हो जाता । हफ्ते , महीने में पैसा खत्म होते ही वह अकाउंट बंद हो जाता । सूत्रधार होते यह बैंक नेता जी । बैंक मैनेजर से लगायत हर किसी का अनुपात उस को मिल जाता । बस सूत्रधार होते यह बैंक नेता जी । हर किसी का राज इन को मालूम होता । हर किसी को इन पर विश्वास होता ।
आंख मूंद कर लोग नेता जी के एक फोन पर लाखों करोड़ों की डील कर लेते थे । छोटे-मोटे काम में नेता जी हाथ भी नहीं लगाते थे । ऐसे मामलों के कोई सुबूत भी नहीं मिलते । कहते ही हैं कि घूस और भूत के सुबूत नहीं होते । कई व्यवसायियों के खाते में पैसे नहीं होते लेकिन लाखों की डिमांड ड्राफ्ट नेता जी बनवा देते । हफ्ते दस दिन में माल आते ही खाते में पैसा पहुंच जाता । कुछ मामले हम ने निकाले । ख़बर लिखी । पर छपी नहीं । पता चला कि इस पूरे रैकेट में अख़बार के मालिकान भी शामिल थे । उन को भी पचास काम इसी पुल से गुज़र कर करवाने होते थे । नौकरी जाते-जाते बची । खैर , मजा तब आया जब इन नेता जी के एक बेटे की शादी हुई । नेता जी मुझे भी बुलाना नहीं भूले । गया भी मैं । देखा कि एक से एक अफसर , व्यवसायी , ठेकेदार , इंजीनियर उपस्थित थे । कुछ राजनीतिज्ञ भी । एक दूसरे से आंख छुपाते , बचते-बचाते । लेकिन कब तक और कितना बचते ? बैंक नेता के हमाम में सभी नंगे हो चुके थे । सब एक दूसरे की नस पकड़ चुके थे । और तो और कुछ अफ़सर तो ऐसे भी दिखे जो अपने इमानदार होने का डंका पीटते नहीं थकते थे । एक बैंक क्लर्क के बेटे की शादी में राजनीतिज्ञों , आला अफसरों , ठेकेदारों , इंजीनियरों और व्यवसायियों की उपस्थिति लेकिन किसी अख़बार की सुर्खी नहीं बनी । बनती भी कैसे भला कुछ अख़बारों के मालिकान भी तो इस हमाम में चहक और महक रहे थे । कुछ दल्ले पत्रकार भी उपस्थित थे ।
मैं अभिशप्त था यह और ऐसा नज़ारा देखने के लिए । देख कर भी खामोश था । तब मोबाइल भी नहीं होते थे कि कुछ फ़ोटो ही खींच लेता । ख़बर भी नहीं लिखी । फ़ेसबुक , ट्विटर या ब्लॉग भी नहीं था कि यह सब लिख देता । बाद के दिनों में तो सब कुछ आन लाइन होने लगा । चेक तो अब भी है ही , क्रेडिट कार्ड भी थमा देते हैं लोग । लेकिन बैंक अकाऊंट खोलने और रिश्वत लेने और देने वालों का लिंक जोड़ने वाले बैंक कर्मियों की सर्वदा ज़रुरत रही है इस सिस्टम को , सर्वदा रहेगी । बेवजह लोगों की आंखें चौंधिया गई हैं बैंक के मार्फ़त करोड़ों के गुलाबी रुपए की खेप दर खेप देख कर । यह सब तो होना ही था , सर्वदा होता रहेगा । यह जन धन खाते , खातों का इंश्योरेंस वगैरह में भी बैंक वालों ने कितना जय हिंद किया है , यह बात भी भला कितने लोग जानते हैं ? तो मित्रों जानिए कि भारत एक कृषि प्रधान देश है , यह ग़लत अवधारणा है । सच यह है कि भारत एक भ्रष्टाचार प्रधान देश है । और भारतीय बैंक इस भ्रष्टाचार के सब से बड़े कम्युनिकेशन सेंटर । केंद्र बिंदु । धुरी । भ्रष्टाचार के सूत्रधार । देश में भ्रष्टाचार की सारी ट्रैफिक बैंक की रेल , नाव और जहाज से ही गुज़रती है ।
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