दयानंद पांडेय
एक समय लखनऊ की एक स्वनाम धन्य कहानीकार ही नहीं राजेंद्र यादव को प्रभावित कर हंस में निरंतर छप कर जुगनू की तरह चमकीं और तिरोहित हो गईं बल्कि राजेंद्र यादव की किताब स्वस्थ आदमी के बीमार विचार की सहयोगी लेखिका ज्योति कुमार भी धूमकेतु की तरह उपस्थित हुईं और अचानक गुम हो गईं । लखनऊ की इस कहानीकार को वह चर्चा भी कभी नहीं मिली जो ज्योति कुमारी को मिली । हालां कि कमजोर कथा के बावजूद महत्वाकांक्षा की चमक और समझौतों की नाव पर चढ़ने की शौक़ीन दोनों ही थीं और कि हैं । खैर इन्हीं सर्दियों की बात है । राजेंद्र यादव की सिफ़ारिश पर राजकमल प्रकाशन ने ज्योति कुमारी का एक कहानी संग्रह छापा । छपने के पहले ही प्रगति मैदान , दिल्ली में लगने वाले अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में विमोचन की तारीख और समय भी तय हो गया था । अध्यक्ष , वक्ता आदि भी ।
विमोचन की तारीख के दो दिन पहले ही किताब छप कर ज्योति कुमारी के हाथ में आ गई । लेकिन किताब देखते ही ज्योति कुमारी भड़क गईं । न सिर्फ़ भड़क गईं बल्कि राजकमल प्रकाशन के अशोक माहेश्वरी को फोन कर बरस पड़ीं । अशोक माहेश्वरी ने किताब छपने के पूर्व कई बार ज्योति कुमारी को अपने पास बुलाया था । ज्योति कुमारी उन के बुलाने का आशय समझ गई थीं सो उन का शौक पूरा करने से कतरा गईं । राजेंद्र यादव का मजबूत खंभे पर वह सवार थीं । अशोक माहेश्वरी को लगा कि उपकृत कर क्यों नहीं वह भी इस बाथटब में नहा लें । शौक़ीन वह भी गज़ब के हैं । कई लेखिकाओं के साथ के उन के भी किस्से हैं । खैर इस लाभ से वंचित होते देख अशोक माहेश्वरी ने शरारत यह की कि ज्योति कुमारी के कहानी संग्रह का नाम बदल दिया था । सो ज्योति कुमारी न सिर्फ अशोक माहेश्वरी पर भड़कीं , बरसीं बल्कि छपी किताब को रिजेक्ट कर दिया । कहा कि मैं यह किताब आप से वापस लेती हूं । आप इसे बाज़ार में नहीं बेच सकते । आप की हिम्मत कैसे हुई कि मेरी किताब का नाम बदल दिया । आदि-इत्यादि ।
दिलचस्प यह कि इतना कुछ होने के बावजूद ज्योति कुमारी की इस किताब का विमोचन पुस्तक मेले में तय तारीख , तय समय पर , तय वक्ताओं की उपस्थिति में हुआ । बस प्रकाशक का नाम , बैनर और स्थान बदल गया था । दो दिन में ही यह किताब छाप कर विमोचन के लिए प्रस्तुत किया राजकमल प्रकाशन के अशोक महेश्वरी के अनुज अरुण महेश्वरी ने वाणी प्रकाशन के मार्फ़त । कहानी संग्रह का नाम था दस्तखत । नामवर सिंह ने इस विमोचन समारोह की अध्यक्षता की । राजेंद्र यादव मुख्य वक्ता । दिलचस्प यह कि इस कहानी संग्रह में भूमिका नामवर सिंह के नाम से छपी थी पर नामवर सिंह ने अपने भाषण में कहा कि दस्तखत पर मेरे दस्तखत नहीं हैं । विमोचन कार्यक्रम के रंग में भंग पड़ गया । लेकिन ज्योति कुमारी सक्रिय हुईं तो हफ़्ते भर बाद नामवर सिंह का एक बयान आया कि दस्तखत की भूमिका असल में मुझ से बातचीत के आधार पर लिखी गई है । लेकिन ज्योति कुमारी फिर भी संतुष्ट नहीं हुईं । हफ्ते भर बाद नामवर सिंह का एक नया बयान आया कि असल में जाड़ा बहुत था , तो मैं लिख नहीं पा रहा था , हाथ कांप रहे थे , सो बोल कर दस्तखत की भूमिका मैं ने ही लिखवाई है ।
सोचिए कि ज्योति कुमारी हों या लखनऊ की वह कहानीकार या ऐसी ही और भी मोहतरमा लोग , जब नामवर सिंह , राजेंद्र यादव और राजकमल या वाणी जैसे प्रकाशकों पर इस कदर सार्वजनिक रुप से भारी पड़ जाती हैं तो क्या कुछ कहना शेष रह जाता है भला । किसी को प्रभावित कर कहीं कहानी , कविता छपवाना , प्रभावित कर या पैसा दे कर कोई किताब छपवा लेना , फिर जगह-जगह प्रायोजित चर्चा करवाने से क्या कोई बड़ी लेखिका या लेखक बन जाता है , यह भी एक प्रश्न है । मेरा मानना है कि बिलकुल नहीं बनता । पर कोई इस नरक से बचना कहां चाहता है भला ।
दिलचस्प यह कि इस कथा की इतिश्री यही भर नहीं थी । ज्योति कुमारी की दस्तखत के विमोचन के दो-तीन महीने बाद ही दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक समारोह हुआ । जिस में तमाम नामी-गिरामी लेखक इकट्ठे हुए । क्या तो ज्योति कुमारी का कहानी संग्रह दस्तखत बेस्ट सेलर साबित हुआ है । दो सौ प्रतियां बिक जाना बताया गया । इस समारोह को सेलिब्रेट करने का खर्च तो दस्तखत की दो सौ प्रतियों की कुल बिक्री से भी दस गुना हुआ होगा । अलग बात है कि दस्तखत की इस उड़ान ने ज्योति कुमारी का न सिर्फ़ मन बढ़ा दिया , महत्वाकांक्षी बना दिया , राजेंद्र यादव की औरतबाजी पर पावर ब्रेक लगा दिया , बल्कि राजेंद्र यादव की मृत्यु की पीठिका बना दी । हालां कि मैं मानता हूं कि यह राजेंद्र यादव की मृत्यु नहीं हत्या थी । सामूहिक हत्या ।
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