Thursday 11 October 2018

मी टू मतलब औरत , दौलत और शोहरत का एक्स्टेंशन


अगर मैं कहूं कि खाई-पीई अघाई , मौकापरस्त और बिगडैल औरतों की कुंठा और ब्लैकमेलिंग का एक नाम मी टू भी है , तो आप क्या कहेंगे । मेरा स्पष्ट मानना है कि मी टू मतलब औरत , दौलत और शोहरत का एक्स्टेंशन । अंतिम सच यही है । आप शानदार नौकरी में हैं , फिल्म में हैं और आप के साथ कोई अभद्रता करता है तो आप बरसों इंतज़ार करेंगी यह बात कहने के लिए ? सीधी सी बात है कि तब आप अपनी देह का अपनी तरक्की में इस्तेमाल कर रही थीं , अब बरसों बाद आप को वह दर्द याद आया है । अरे आप को तभी चप्पल खींच कर , झाड़ू खींच कर या जो भी हाथ में मिलता , उस व्यक्ति को पूरी ताकत से मारना था , तभी पुलिस के पास जाना था , कोर्ट जाना था , समाज में चीख-चीख कर यह सब बताना था । कोई छोटी बच्ची नहीं थीं , पूरी तरह समर्थ थीं आप , जब यह कुछ अप्रिय आप के साथ गुज़रा । उसी क्षण वह नौकरी , वह काम छोड़ देना था । आख़िर तरुण तेजपाल ने शराब के नशे में धुत्त हो कर जिस लड़की के साथ बदसलूकी की थी , उस लड़की ने तुरंत प्रतिरोध किया था , पुलिस में गई और तरुण तेजपाल को जेल हुई ।लेकिन आप तो सब कुछ हासिल करते हुए , सब कुछ निभाती रही थीं तब ।

बहुत सी मशहूर औरतें तो अपने पति तक के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट करती हुई दिखी हैं । ज़ीनत अमान और विद्या सिनहा जैसी हीरोइनें पुलिस में अपने पतियों के खिलाफ रिपोर्ट लिखवा चुकी हैं । लेकिन वहीँ रेखा , परवीन बाबी जैसी औरतें कभी नहीं गईं अमिताभ बच्चन के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने । परवीन बाबी ने एकाध बार शराब के नशे में दबी जुबान कुछ कहा भी अमिताभ के लिए । लेकिन महेश भट्ट के खिलाफ नहीं । मधुबाला दिलीप कुमार या अशोक कुमार के खिलाफ नहीं बोलीं । नरगिस ने राज कपूर के खिलाफ कुछ नहीं कहा , वहीदा रहमान ने देवानंद के खिलाफ नहीं कहा । सुरैया ने देवानंद के खिलाफ कुछ नहीं कहा । जब कि वहीँ मीना कुमारी अपने पति कमाल अमरोही के खिलाफ खुल कर बोलीं । ऐसी बहुत सी कही-अनकही कथाएं हैं फिल्मों में । तो अब आलोकनाथ या नाना पाटेकर के खिलाफ इतने सालों बाद बिगुल बजाने का क्या मतलब ?

इसी तरह क्या एक एम जे अकबर ही हैं पत्रकारों में लंपट और औरतबाज । अब तो लगभग हर संपादक औरतबाज है । और देख रहा हूं कि औरतें खुशी-खुशी उन के साथ हमबिस्तरी करती हुई तमाम लोगों का हक़ मार रही हैं । दर्जनों नाम हैं । दैनिक भास्कर के समूह संपादक रहे , कल्पेश याज्ञनिक और सलोनी अरोड़ा की ब्लैकमेलिंग की कहानी बस अभी-अभी की है । कल्पेश ने कूद कर जान दे दी और सलोनी अरोड़ा जेल में हैं । ऐसी तमाम दबी ढंकी , जानी-पहचानी कहानियां हैं ।

लखनऊ में तो एक ऐसे संपादक थे जो हर व्यूरो में एक रखैल रखते थे । जब कि एक संपादक खुले आम अपनी सहकर्मी स्त्रियों के साथ नोच-खसोट करते रहते थे और औरतें हंसती रहती थीं । हमबिस्तरी भी करते थे और सार्वजनिक रूप से लात भी मार देते थे , गालियां देते हुए दुत्कार देते थे । औरतें फिर भी उन से लिपटी रहतीं । एक पत्रकार तो लखनऊ के कुकरैल जंगल में एक रिपोर्टर लड़की के साथ शराब पी कर कार की बोनट पर निर्वस्त्र मिले एक दारोगा को । जब दारोगा ने टोका तो वह पत्रकार बोला , तुम्हारी नौकरी खा जाऊंगा ! दारोगा ने वायरलेस पर एस एस पी को यह संदेश दिया और बताया कि मेरी नौकरी खा जाने की धमकी भी दे रहे हैं । तो एस एस पी ने दारोगा से कहा , वह ठीक कह रहे हैं । तुम वहां से चले जाओ ।

और तो और अयोध्या में एक तरफ बाबरी ढांचा गिराया जा रहा था और दूसरी तरफ लखनऊ से गए दो संपादक एक रिपोर्टर को अपने साथ सुलाने की प्रतिद्वन्द्विता में उलझे हुए थे । गज़ब यह कि वह रिपोर्टर दोनों ही को उपकृत कर रही थी । छोड़िए लखनऊ में एक ऐसा भी संपादक भी हुआ है जो काना और अपढ़ होने के साथ ही अपनी औरतबाजी और दलाली के लिए भी खूब जाना गया । तरह-तरह की दर्जन भर से अधिक औरतें उस की सूची में उपस्थित हैं । सहकर्मी महिला पत्रकार , सहकर्मी पत्रकारों की बीवियों से लगायत गायिका तक । इस काने संपादक का परिवार टूट गया इस औरतबाजी के फेर में लेकिन इस की औरतबाजी नहीं गई । पैसा भी खूब कमाया इस ने अरबपति भी है । औरतों के साथ ही बारात घर से लगायत इंजीनियरिंग कालेज , मैनेजमेंट कालेज और फार्म हाऊस की बहार भी है इस के पास । लखनऊ के एक संपादक जो अब दिल्ली के एक अख़बार से बतौर संपादक रिटायर हो गए हैं , लौंडेबाजी के लिए भी जाने जाते थे ।

दिल्ली के तमाम संपादकों के अनगिन किस्से हैं । प्रणव रॉय के अनगिन किस्से हैं , बरखा दत्त से लगायत किन-किन का नाम लूं । सुधीर चौधरी तो नोएडा के अट्टा बाजार में एक रात एक सहयोगी एंकर को कार की डिग्गी में संभोगरत स्थिति में पुलिस द्वारा पकड़े गए थे । बाद में इस महिला एंकर का सुधीर चौधरी से अनबन हो गया तो उस ने इन का एक आपत्तिजंक आडियो जारी कर दिया । तो सुधीर चौधरी ने उस एंकर का अपने साथ संभोगरत वीडियो जारी कर दिया ।

किन-किन का बखान करूं , किन-किन को छोड़ दूं । लेकिन कोई औरत इन सब के बारे में नहीं लिख रही - मी टू । तो क्यों ? यह सवाल भी समझना बहुत कठिन नहीं है । अगर यह सारे पत्रकार भी आज एमं जे अकबर की तरह मंत्री बन जाएं तो देखिए क्या-क्या गुल खिलते हैं । बात वही कि तब स्वीटू थे , अब मीटू हैं ।





गांधी को महात्मा की उपाधि रवींद्रनाथ टैगोर ने दी थी लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि गांधी ने जयप्रकाश नारायण को समाजवाद का आचार्य कहा था । यह बात भी कम लोग ही जानते हैं कि आखिरी समय में नेहरु और पटेल की निरंतर उपेक्षा से आहत हो कर महात्मा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दिया था । यह प्रस्ताव पा कर जयप्रकाश नारायण ख़ुश भी बहुत हुए थे । लेकिन यह प्रस्ताव देने के बाद दूसरे ही दिन गांधी की हत्या हो गई । जयप्रकाश नारायण और उन की पत्नी प्रभावती गांधी की हत्या कि ख़बर से इतना हताश हो गए , उन का सपना इस कदर टूट गया कि गांधी के अंतिम दर्शन के लिए भी वह नहीं गए । दिल्ली में रहने के बावजूद तब दिल्ली में नहीं रुके । गांधी की अंत्येष्टि में शामिल होने के बजाय सीधे पटना की ट्रेन पकड़ लिया । रही बात प्रभावती की तो वह गांधी के सत्य का प्रयोग की साझेदार भी लंबे समय तक रही थीं । वह गांधी के प्रभाव में इतना थीं कि एक समय जयप्रकाश को छोड़ने के लिए भी तैयार हो गई थीं । तलाक़ की नौबत आ गई थी । जयप्रकाश नारायण ने अंततः गांधी को इस बाबत कई चिट्ठियां लिखीं और कहा कि प्रभावती को अपने आश्रम और अपनी सेवा से मुक्त कर वापस उन के पास भेज दें । लेकिन प्रभावती गांधी का साथ छोड़ने के लिए हरगिज तैयार नहीं थीं । गांधी ने जयप्रकाश नारायण को लिखा कि तुम चाहो तो दूसरा विवाह कर लो , प्रभावती तुम्हारे पास नहीं जाएगी । सरोजनी नायडू के पति बार-बार गांधी के पास उन के आश्रम आते। चीखते-चिल्लाते। लेकिन सरोजनी नायडू गांधी को छोड़ कर नहीं जातीं। राजकुमारी अमृता कौर , मेडेलीन स्लेड उर्फ मीराबेन , निला क्रैम कुक , सरला देवी चौधरानी , डॉ सुशीला नय्यर , आभा गांधी और मनु गांधी समेत कुछ और देशी , विदेशी स्त्रियां थीं , जो सब कुछ के बावजूद गांधी को छोड़ कर जाने को तैयार नहीं होती थीं। 

तो क्या यह सब भी मी टू था ? 


मेरे एक आई ए एस मित्र हैं । बहुत बड़े-बड़े पदों पर रह चुके हैं । तबीयत से पूरे फक्कड़ और बेलौस । साहित्य की गहरी समझ । मीर उन के पसंदीदा शायर । बल्कि मीर को वह जब-तब मूड में आ कर सुनाने भी लगते हैं । भाव-विभोर हो कर । हरियाणा के मूल निवासी , गोरा , लंबा कद , और हरियाणवीपन में तर-बतर । लेकिन बेहद ईमानदार और दिल के साफ़ । उन के साथ के तमाम खट्टे-मीठे किस्से हैं । बाद में उत्तर प्रदेश की राजनीति से आजिज आ कर वह उत्तराखंड चले गए । वहां भी मुख्य मंत्री के सचिव रहे । एक समय हम लोगों का नियमित मिलना-जुलना और उठाना-बैठना होता था । मेरे घर के पास ही बटलर पैलेस कालोनी में रहते थे । कभी वह मेरे घर आ जाते , कभी हम उन के घर । मेरे लिखे पर फ़िदा रहते थे वह । नब्बे के दशक के शुरुआती दिन थे जब वह लंदन भेजे गए ट्रेनिंग पर । लंदन से भी जब तब मूड में आ कर वह फ़ोन करते रहते । जेनरली रात को । बहकते हुए वहां की किसिम-किसिम की बातें बताते । एक सुबह अचानक उन का फ़ोन आया । मैं सोया हुआ था । उन के फ़ोन से उठा और पूछा कि इतनी सुबह-सुबह ? वह बोले , हां । और संजीदा हो कर बतियाने लगे । मुझे जब मुश्किल हुई तो पूछा , आप लंदन में हैं कि आ गए हैं ? वह बोले , आ गया हूं । मैं अचकचाया और पूछा कि आप तो साल भर के लिए गए थे , इतनी जल्दी ? वह बोले , शाम को घर आइए फिर तफ़सील से बतियाते हैं ।

गया शाम को ।

अपनी तमाम दिक्कतें लंदन की बताने लगे । लेकिन ट्रेनिंग छोड़ कर अचानक भारत कैसे आ गए ? पूछने पर वह हंसे और बोले , आया नहीं , भेजा गया हूं कि फ़ेमिली को साथ ले कर वहां रहूं । तो फेमिली लेने आया हूं । किस्सा कोताह यह था कि वह जब भारत से लंदन भेजे गए तो जाने से पहले ही यहां भी एक ट्रेनिंग दी गई थी । बताया गया था कि अगर कोई अंगरेज औरत मिले तो उस से हाथ जोड़ कर मिलें । हाथ नहीं मिलाएं , गले नहीं मिलें , चूमा-चाटी नहीं करें। आदि-इत्यादि । वह एड्स के आतंक के दिन थे और कहा जाता था कि किस से भी एड्स हो जाता है । अब एक दिन किसी पार्टी में कोई अंगरेज औरत आई और हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया । इन्हों ने हाथ मिलाने के बजाए हाथ जोड़ लिया । उस औरत ने तंज किया कि हैंड शेक से इतना डरते हो , कैसे मर्द हो ? इन का भी तीन-चार पेग हो गया था । बहकते हुए बोले , हैंड शेक क्या , मैं तो तुम्हारे साथ लेग शेक भी करने को तैयार हूं , लेकिन अपने देश की परंपरा और अनुशासन से बंधा हूं । तंज के जवाब में कही यह बात इन को भारी पड़ गई। दूसरे दिन किसी भारतीय अफ़सर ने इन के लेग शेक वाली बात की रिपोर्ट कर दी । उन को तुरंत भारत जा कर अपनी फ़ेमिली ले कर ट्रेनिंग पर लौटने की हिदायत दी गई । कहा गया कि लेग शेक के लिए अपनी फेमिली ले आइए । तो तब वह फ़ेमिली लेने लखनऊ लौटे थे ।

तो क्या यह भी मी टू था ?



एक समय उत्तर प्रदेश में मुख्य सचिव थे रामलाल । मुख्य सचिव मतलब प्रदेश का सब से बड़ा अफ़सर । नारायणदत्त तिवारी मुख्य मंत्री थे और इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री । लंदन से एक मिनिस्टर सपत्नीक आए थे सरकारी यात्रा पर । मंत्री की पत्नी के पिता ब्रिटिश पीरियड में लखनऊ की रेजीडेंसी में रह चुके थे । मिनिस्टर की पत्नी बिना किसी प्रोटोकाल के लखनऊ घूमना चाहती थीं । रेजीडेंसी देखना चाहती थीं । पिता की यादों को ताज़ा करना चाहती थीं । इंदिरा जी ने नारायणदत्त तिवारी से बिना किसी प्रोटोकाल के किसी सीनियर अफ़सर को उन के साथ लगा देने को कहा । तिवारी जी ने सीधे मुख्य सचिव को ही उन के साथ लगा दिया । मुख्य सचिव रामलाल ने मोहतरमा के साथ पूरा सहयोग करते हुए लखनऊ घुमाया। मोहतरमा उन के साथ बहुत ही सहज हो गईं । कह सकते हैं कि खूब खुल गईं ।

देर शाम कोई आठ बजे रामलाल ने मोहतरमा का हालचाल लेने के लिए फ़ोन किया और पूछ लिया , कैसी हैं । मोहतरमा बेकत्ल्लुफ़ हो कर बोलीं , अकेली हूं । रामलाल तब तक देह में शराब ढकेल चुके थे । कुछ शराब का असर था , कुछ मोहतरमा की बेतकल्लुफी । रामलाल बहक गए । सो बोले , कहिए तो मैं जाऊं , अकेलापन दूर कर दूं । मोहतरमा ने बात टाल दी और पलट कर अपने पति से रामलाल की लंपटई की शिकायत की । पति ने इंदिरा गांधी को यह बात बताई । इंदिरा गांधी फोन कर नारायणदत्त तिवारी पर बरस पड़ीं कि किस बेवकूफ को साथ लगा दिया ! अब दूसरे दिन रामलाल जब आफिस पहुंचे तो वहां उन के आफ़िस में ताला लटका मिला । ताला देखते ही वह भड़क गए । बरस पड़े कर्मचारियों पर । लेकिन ताला फिर भी नहीं खुला । तो वह और भड़के , कि तुम सब की नौकरी खा जाऊंगा ! लेकिन ताला नहीं खुला तो नहीं खुला ।

मौका देख कर एक जूनियर अफ़सर उन के पास आया और धीरे से बताया कि माननीय मुख्य मंत्री जी के निर्देश पर यह सब हुआ है , कृपया माननीय मुख्य मंत्री जी से मिल लीजिए । अब रामलाल के होश उड़ गए कि क्या हो गया भला ? भाग कर मुख्य मंत्री आवास गए । तिवारी जी शालीन व्यक्ति हैं , संकेतों में सब समझा दिया । लेकिन रामलाल अब मुख्य सचिव नहीं रह गए थे । उन्हें परिवहन निगम का चेयरमैन बना दिया गया था । लेकिन तब यह खबर किसी अख़बार में नहीं छपी । लेकिन बहुत पहले जब यह किस्सा एक आई ए एस अफ़सर ने मुझे सुनाया तो मैं ने उन्हें खुमार बाराबंकवी का एक शेर सुना दिया :

हुस्न जब मेहरबां हो तो क्या कीजिए 
इश्क के मग्फिरत की दुआ कीजिए ।

कोई धोखा न खा जाए मेरी तरह 
सब से खुल कर न ऐसे मिला कीजिए ।

तो क्या यह भी मी टू ही था ?



मी टू को ले कर एम जे अकबर का लोग ख़ूब मज़ा ले रहे हैं । जानने वाले जानते हैं कि एम जे अकबर औरतों के बाबत मुग़लकाल के शासक अकबर से ज़रा भी कम नहीं रहे हैं । खुशवंत सिंह के शिष्य रहे पैतीस साल की कम उम्र में संडे जैसी पत्रिका के संपादक बन जाने वाले एम जे अकबर से जुड़ी औरतों की एक लंबी फेहरिस्त है । तमाम नामी महिला पत्रकार अकबर से जुड़ कर फख्र महसूस करती रही हैं । अकबर की करीबी रही मशहूर पत्रकार सीमा मुस्तफ़ा तो जैसे एक समय अकबर के लिए ही जीती थीं । लेकिन ऐसा नहीं कि सीमा मुस्तफ़ा सिर्फ़ अकबर की दीवार में कैद थीं । एक समय पाकिस्तान क्रिकेट टीम भारत आई थी । तब सीमा मुस्तफ़ा इंडियन एक्सप्रेस में थीं और सीमा ने इमरान खान का इंटरव्यू लिया । इंटरव्यू में सीमा मुस्तफ़ा ने लिखा था कि इमरान खान ने कहा कि बिना हमबिस्तरी किए मैं इंटरव्यू नहीं देता । और मैं इंटरव्यू ले आई । यह सब इंडियन एक्सप्रेस में तब छपा और इंटरव्यू से ज़्यादा इस प्रसंग की चर्चा हुई थी तब । क्या यह भी मी टू था ? वैसे भी इमरान खान की मी टू वाली फेहरिस्त दुनिया भर में है । भारत में भी बहुतेरी हैं । फ़िल्म अभिनेत्री ज़ीनत अमान से ले कर सीमा मुस्तफ़ा तक । बहरहाल . एम जे अकबर आज की तारीख में भले भाजपा में हैं , केंद्र सरकार में विदेश राज्य मंत्री भी हैं लेकिन एक समय अकबर जबर सेक्यूलर हुआ करते थे और कि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर किशनगंज , बिहार से सांसद भी रहे हैं । अकबर की ही तरह सीमा मुस्तफ़ा ने भी एक बार उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थ नगर ज़िले की डुमरियागंज लोक सभा सीट से चुनाव लड़ा था पर हार गईं ।



एम जे अकबर से भी ज़्यादा लंपट और उजड्ड संपादक भारतीय पत्रकारिता में हुए हैं । भोगी हुई औरतों की सेंचुरी बनाने वाले संपादक तो हिंदी में भी हुए हैं । अंगरेजी पत्रकारिता के तो खैर कहने ही क्या । एक से एक तरुण तेजपाल सामने हैं । लेकिन कुछ औरतें सिर्फ़ एम जे अकबर के पीछे पड़ी हैं और एक ख़ास पाकेट इसे खूब हवा दे रहा है । तो सिर्फ इस लिए कि यह लोग एम जे अकबर पर हमला नहीं कर रहे , भाजपा पर हमला कर रहे हैं । अकबर तो बस बहाना हैं , भाजपा निशाना है । अकबर की बड़ी ग़लती यह है कि वह पत्रकारिता और कांग्रेस छोड़ कर न सिर्फ़ भाजपा में हैं बल्कि सरकार में विदेश राज्य मंत्री भी हैं । आज अगर एम जे अकबर भाजपा सरकार में मंत्री न होते तो अकबर से कभी उपकृत होने और मलाई काटने वाली यह औरतें मुंह न खोलतीं । जो लोग अकबर को उन के मी टू के लिए कोस रहे हैं , वह लोग एम जे अकबर की भारतीय पत्रकारिता में दमदार उपस्थिति को क्यों भूल जाते हैं । एम जे अकबर जैसे जीनियस पत्रकारिता में मुश्किल से मिलते हैं । एम जे अकबर अंगरेजी के जीनियस तो हैं ही , हिंदी पत्रकारिता को भी एक नया तेवर देने के लिए हम जानते हैं । लेकिन यह सब लिखने का मतलब यह हरगिज नहीं कि अकबर के गलत कामों की मैं पैरवी कर रहा हूं । स्त्री अस्मिता हर हाल में एम जे अकबर और एम जे अकबर के काम से बड़ी है । और किसी भी सभी समाज के लिए बहुत ज़रूरी ।


अभी तक अभिनेता नाना पाटेकर के कारण मी टू की चिंगारी फूट रही थी लेकिन ज्यों ही विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर मी टू के सीन में आए , मी टू शोला बन गया है , एजेंडा लेखकों और पत्रकारों के भाग्य से छींका टूट गया है । अब यह गुजरात से उत्तर प्रदेश और बिहार के मज़दूरों को जबरिया भगाने से बड़ी खबर हो गई है एजेंडाधारियों की नज़र में ।




1996 में संजय लीला भंसाली निर्देशित एक फिल्म आई थी जिस के हीरो सलमान खान थे और हिरोइन मनीषा कोइराला । नाना पाटेकर मनीषा कोइराला के पिता की भूमिका में थे और सीमा विश्वास मां की भूमिका में । नाना और सीमा विश्वास इस फ़िल्म में गूंगे और बहरे थे । गूंगे-बहरे का अद्भुत अभिनय किया था नाना पाटेकर और सीमा विश्वास ने । इस फिल्म में नाना पाटेकर भले मनीषा कोइराला के पिता की भूमिका में थे लेकिन मनीषा कोइराला उन को ले कर बहुत पजेसिव थीं । नहीं चाहती थीं कि कोई और औरत नाना पाटेकर के आस-पास भी फटके । लेकिन उन दिनों की एक मशहूर अभिनेत्री थीं आयशा जुल्का , जो इस फिल्म में कोई भूमिका तो नहीं कर रही थीं लेकिन नाना पाटेकर के चक्कर में सेट पर आती रहती थीं । न सिर्फ़ आती रहती थीं , अक्सर नाना पाटेकर के मेकप रुम में भी पहुंचती रहती थीं । मनीषा कोइराला जब कभी आयशा जुल्का को नाना के साथ देखती थीं तो बुरी तरह भड़क जाती थीं नाना पाटेकर पर । खैर फिल्म पूरी हुई और नाना मुम्बई लौट कर उस अभिनेत्री आयशा जुल्का के साथ लिव इन में रहने लगे । मनीषा कोइराला यह सब बस अवाक देखती रह गईं ।

तो क्या यह भी मी टू था ?



यह सिर्फ मशहूर लोग ही मी टू की जद में क्यों हैं ? गुमनाम लोग , सामान्य और साधारण लोग इस बीमारी से दूर क्यों हैं ? या फिर अमिताभ बच्चन , शाहरुख़ खान , आमिर खान आदि के तमाम किस्से मी टू वाले नहीं हैं ? कि साहब नाम से ख्यातिनाम हुए नरेंद्र मोदी गलत बदनाम हुए थे ? कि अपने नारायणदत्त तिवारी जी पर भी मोहतरमा लोग चुप क्यों हैं ? तमाम अफसरों के रंगीन किस्से , राजनीतिज्ञों के चटखारे भी सिर्फ़ अफवाह नहीं हैं । बहुतेरे किस्से मुझे निजी तौर पर मालूम हैं । थिएटर वालों के भी । रिक्शे वाले , ड्राइवर , सिक्योरिटी गार्ड आदि के भी तमाम किस्से हैं । मोहतरमा लोगों को इन किस्सों पर भी गौर फरमाना चाहिए । एक कारपोरेट घराने में तो तमाम गार्ड इस के लिए उपकृत किए जाते रहे हैं । मेरठ में एक पी सी एस अफसर जब अपने सरकारी ड्राइवर के साथ बहुत ज्यादे आगे निकल गईं तो उन के बॉस डी एम ने जब हस्तक्षेप किया तो दूसरे दिन वह उस ड्राइवर से शादी कर के डी एम के पास पहुंच गईं , मीट माई हसबैंड , कहती हुई । गरज यह कि जब तक आप का काम निकले तब तक ठीक नहीं , मी टू । किसी मित्र ने एक वाट्स अप भेजा है कि चालीस साल पहले जब मैं पैदा हुई तो डाक्टर ने मेरी हिप थपथपाई थी । तो मी टू की स्थिति इस विद्रूप स्थिति तक आ गई है । सवाल है कि क़ानून तब भी आप के साथ था , यह समाज भी , आप को तभी एफ़ आई आर लिखवानी थी , तभी मी टू लिखना था । रोका किस ने था ?



पता नहीं क्यों हिंदी लेखिकाओं , कवियत्रियों , महिला पत्रकारों आदि ने झमाझम मी टू के घनघोर समय में अपना मी टू शुरु नहीं किया। जब कि यहां भी मी टू की भरमार है । और कि यह लेखिकाएं साहसी भी भरपूर हैं । आख़िर शोहरत भी एक महत्वपूर्ण तत्व है । अंगरेजी में तो शुरु हो गया है ।


भोजपुरी में एक बहुत मशहूर गाना हुआ है , जब से सिपाही से भईलें हवलदार हो , नथुनिए पे गोली मारें ! बात थोड़ी पुरानी है , लेकिन अख़बारों में तब यह ख़बर उछाल कर छपी थी । बिहार में किसी कार्यक्रम में एक गायिका यह गीत गा ही रही थी कि एक बाबू साहब ने उस की नथुनिया पर गोली मार दिया । बेचारी तुरंत मर गई । बाबू साहब ख़ूब पिए हुए थे । बाबू साहब को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया । लोगों ने पूछा , ई का कर दिया बाबू साहब ! बाबू साहब बोले , कुछ भी हो मजा आ गया !

एक मी टू यह भी था ।




मी टू मतलब औरत , दौलत और शोहरत का एक्स्टेंशन । अंतिम सच यही है ।

16 comments:

  1. वाह ! पान्डेय जी वाह क्या बात है लाजवाब अन्दाज . जबर्दस्त लिखा आपने . जय हो विजय हो आपकी पंडित जी..

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  2. पूरी बखिया उधेड़ दी आपने तो

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  3. गजब का लिखे हो प्रभु

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  4. वाह ! पान्डेय जी वाह क्या बात है लाजवाब अन्दाज . जबर्दस्त लिखा आपने . जय हो विजय हो आपकी पंडित जी..

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  5. आप से ही उम्मीद थी इतनी तफ़सीलात और बेबाक़ी की।

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  6. बहूत सुंदर सच सामने लाने के लिए जिसे बहुत लोग नहीं जानते।

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  7. बहुत सुंदर,सच कहने की हिम्मत सबमें नहीं होती।

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  8. अतिसंवेदनशील व अतिसुन्दर विचारों की अभिव्यक्ति।नमन

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  9. कितने ही metoo , पढ़ने की कुव्वत हो तो पढ़िए

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  10. इस बेबाक़ बानगी के लिये बधाई...!

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  11. तथ्यपरक और रोचक लेखन

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  12. आपका लेखन पढते पढ़ते न जाने कितनी इमारतें भरभराती हुयी गिरने लगी हैं.. जो दिमाग में खड़ी थीं।

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  13. इस कुलीन और बिंदास दुनिया के किस्से नए नही है । बल्कि यह उनकी सँस्कृति का हिस्सा है । भले ही हमारा मध्यवर्गीय दिमाग इसमे लुत्फ ले । शोहरत की इस दुनियां के हमाम में लोग नँगे है । महत्वकांक्षाएं उन्हें जिंदगी के उस अंधेरे में पहुंचा देती हैं जहां से उनकी जिंदगी का मनपसन्द रास्ता जाता है । आप के ये विवरण बहुत रोचक है । यह हमें बताते है कि कुछ लोग अपने पतन के लिए खुद जिम्मेदार होते है । मी टू एपीसोड की स्त्रियों के साहस उस समय कहां चूक गए थे , जब उनके साथ गुनाह हुआ था । अब इतने वर्षों बाद उन्हें लोगो के पाप याद आ रहे हैं

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  14. एकदम सत्य
    वो भी सोलह आने

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