Friday 18 March 2016

मधुबाला जैसी तुम्हारी आंखों में आशनाई बहुत है


मधुबाला

ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

इन आंखों के काजल की गहराई में हमारे प्यार की रोशनाई बहुत है
कशिश में डूबी हुई मधुबाला जैसी तुम्हारी आंखों में आशनाई बहुत है 

तुम्हें देख कर हो गया पागल कि तुम्हारी आंखों में हरियाली बहुत है
बहुत सहेज कर रखना कुम्हला न जाए कभी यह मतवाली बहुत है

संगम की सी शालीनता में डूबी तुम्हारी बातों में सुगंध रजनीगंधा की
तुम्हें क्या मालूम तुम्हारी आंखों के तहखाने में हमारी कहानी बहुत है

वह जहीन लोग हैं जो ढूंढते हैं पैमाने आंखों में बताते रहते हैं मयखाना 
जैसा हो जो भी हो पर मुहब्बत की दुनिया में आंख की सुनवाई बहुत है

हमारा राज हमारा साज सब तुम्हारी आंखों में बसता है बसाए रखना
मौसम में दीवानगी का आलम हो तो बजती आंख में शहनाई बहुत है  

कहीं काजल कहीं लाली कहीं हरियाली कुछ तुम जानो कुछ हम जानें 
दुनिया रखती ऐसे किस्से मुहब्बत के जिस में सांस कम अंगड़ाई बहुत है

कपोलों की लाली के किस्से भले कपोल कल्पित हों या फिर कुछ और 
लेकिन अधरों की इस लाली में हमारे चुंबन की कशीदाकारी बहुत है

पुल नदी पर ही नहीं संबंधों में भी बनता टूटता रहता है बराबर हर कहीं
बहती रहो सर्वदा तुम्हारी नदी के पानी में हमारे प्यार की रवानी बहुत है 

पत्तों की सरसराहट में मिलने की आहट है आंखों में उम्मीद का दिया
तुम्हारी चहक बताती है रंगों की इस होली में होली कम दीवाली बहुत है 

ज़िंदगी की हाईवे में बाईपास कहां होता है जाम ही जाम हर जगह होता 
आशिकों की दिलफ़रेब कहानी में गाना कम मुक़ाबला कव्वाली बहुत है 

बहुत सुर्ख इबारत है हमारी ज़िंदगी में चाहत की बातों में वही रंगत तारी है
मुहब्बत मरकज है जीवन का मरहम भी आंखों में बहकती पुरवाई बहुत है

[ 19 मार्च , 2016 ]

1 comment:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये दिनांक 20/03/2016 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
    चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
    आप भी आयेगा....
    धन्यवाद...

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