ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
अभिव्यक्ति की हवा चली है मौसम है बतियाने का
इन दिनों फैशन नया चला है सेना को गरियाने का
सेना में दाल नहीं गलती कमिश्नरी वहां नहीं चलती
सेना से डरते हैं सो मकसद है सेना को भटकाने का
मित्रों यह साज़िश बहुत बड़ी है विदेशी फंडिंग की
सेना बलात्कारी बहुत बड़ी ऐसा माहौल बनाने का
सिस्टम नहीं देश तोड़ना मकसद तो उन का साफ है
बिलकुल यही सही मौका है फासिस्टों को दौड़ाने का
अभी असहिष्णुता की आंधी आई थी वह पिट कर चली गई
सेना बलात्कारी है उन का एजेंडा है यही ढोल पिटवाने का
आज़ादी का पापड़ खा कर वह बकर बकर बतियाते हैं
लेकिन डर बहुत लगता है उन को भीड़ में पिट जाने का
देशद्रोही नारों ने उन को बेमकसद बना पिटवा दिया
नशा भी उन का यह नया नया है अपनी देह तुड़वाने का
कभी उन को देखिए कभी उन का शौक उन की हसरत भी
श्रद्धांजलि सभा में सेल्फ़ी ले कर फेसबुक पर चिपकाने का
अब आज़ादी के ढोल की होड़ व शोर देखिए इन विद्वानों में
अफजल याकूब व इशरत जैसे गद्दारों को शहीद बतलाने का
देश बांटना समाज तोड़ना जहरीली बातों और कुतर्कों में जीना
इन का मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ एक है देश को झुलसाने का
वह क्या जानें सेना की ताक़त सेना की छांव सेना का ममत्व
सेना है तो हमारी आन बान शान है समय है यह बतलाने का
सरहद से घर की विपदा तक वह मां की तरह खड़े मिलते हैं
जाति धर्म के खांचे से ऊपर उन का धर्म है सब को बचाने का
कृपया शेयर के विकल्प में WhatsApp भी रखें , कभी-कभी कुतर्क से बचने के लिए ऐसा करना अनिवार्य हो जाता है।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-03-2016) को "लोग मासूम कलियाँ मसलने लगे" (चर्चा अंक-2280) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'