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| फ़ोटो : निखिलेश त्रिवेदी | 
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
हमारे पास रोजी नहीं है रोटी दाल की लड़ाई के गाने हैं 
उन के पास पैसे हैं भारत की बर्बादी के नारे हैं तराने हैं 
एक मिट्टी का घर है छोटा सा मेरे पास अपने गांव में 
उन के पास कोठी कार फार्म हाऊस है क्रांति के गाने हैं 
फर्क बहुत है हम सब के बीच हमारे पास पेट की लड़ाई है 
उन की लड़ाई पेट के नीचे की  है देह के अनगिन फ़साने हैं 
उन के पास वैचारिक लड़ाई के हिप्पोक्रेटिक किस्से हैं बहुत 
बातों से आग लगाने में माहिर बयान बहादुर बहुत पुराने हैं  
नेतृत्व उन के हाथ में है बहुत बड़े शिकारी हैं उन का नाम है  
अन्याय अत्याचार हमारे हिस्से हम शिकार बहुत पुराने हैं
अन्याय अत्याचार हमारे हिस्से हम शिकार बहुत पुराने हैं
अपनी लफ्फाजी अंतर्विरोध और बीमारी   की काट बड़ी शान से  
भगवा रंग और संघियों में सर्वदा वह खोज लेते हैं बड़े सयाने हैं 
[ 15 फ़रवरी , 2016 ]

उत्तम
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